• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery कामुक काजल -जासूसी और मजा

Status
Not open for further replies.

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,302
304
अध्याय 25
पूरा दिन पैदल चलने के बाद हम नागालैंड की राजधानी कोहिमा पहुचे , मेरे पास पहला काम था की मैं आर्या और वांग का हुलिया सुधारू , कुछ कपड़ो से मैं इनकी सूरत सुधरने की कोशिस कर रहा था लेकिन आदते इने जल्दी कहा जाती है , उन्होंने पहली बार ऐसे कपडे पहने थे …
फिर भी जैसे तैसे उन दोनों को तैयार करके मैं मुबई की तरफ निकला ….
हम ट्रेन में थे जब मेरी नींद खुली कोई 3 बज रहे थे ..
बाहर स्टेशन का नाम देख मेरे आँखों में आंसू आ गए , मैंने तुरंत ही उन दोनों को उठाया और सामान सहित हम उसी स्टेशन में उतर गए ..
“ये तो मुबई नहीं है , कहा उतार दिए हमें “
आर्या थोड़े गुस्से में थे वही वांग को कौन सा स्टेशन का नाम पढना आता था ….
“मेरा जन्म यही हुआ , ये मेरा घर है “
मेरे आँखों के आंसू अभी भी नहीं सूखे थे , मुझे बचपन की सब बाते याद आ रही थी …
“इन्दोंर …???’
आर्या ने स्टेशन में लगे हुए बोर्ड को देखकर कहा
मेरे होठो में एक मुस्कान आ गयी , इन्दौर् से कोई 30 किलो मीटर की दुरी में मेरा गाँव था , बचपन की यादे और माता पिता का चहरा देखने की तमन्ना ने मुझे इस ओर खिंच लिया था , पता नहीं मैं अब आखरी बार् वंहा गया था ..
हम रेलवे स्टेशन से निकल कर बाहर आये , अभी सुबह चढ़ी भी नहीं थी , मैंने एक ऑटो को पकड लिया ..
“500 रूपये लगेंगे “
उसने हमारे हुलिए को देखकर कहा
“अरे भाई 500 में तो लन्दन पहुच जाऊ तुम रवेली के 500 बोल रहे हो , चुतिया समझे हो क्या , 100 रूपये देंगे “
मैं अपनी गांव वाली ओकात में आ गया था
“अरे अभी कोई बस नहीं मिलेगी तुम्हे “
उसने हमें घूरते हुए कहा , मैं जानता था की हमारे हुलिए से ही उसने भांप लिया था की हम यंहा के नही है लेकिन उसे पता नहीं था की मैं इसी मिटटी में पला बढ़ा हु
“बस में एक झन के 30 रूपये लगते है समझे , चलो तुम्हे 50 दिया 150 में ले जाओ “
मेरा बोलना था और मैं अपने सामान को उसके ओटो में फेक कर बैठ गया मेरे साथ साथ आर्या और वांग भी चुप चाप बैठ चुके थे ..
“अरे भैया 150 रूपये में नहीं पड़ेगा क्या कर रहे हो “
ऑटो वाला बाहर आ गया
“तू बोल सही रेट बोल वरना सोच ले बेटा , रवेली का रहने वाला हु समझ लेना …”
वो चुप चाप सोचने लगा था , मानो गणित लगा रहा हो
“भैया 300 दे दो , आते हुए सवारी भी नहीं मिलेगी “
उसने मुह बनाते हुए कहा
“200 दूंगा और आते हुए तुझे सवारी भी दिलाऊंगा ठीक “
ये मेरा अंतिम वार था .. वो मन मसोज के फिर से अपनी सिट में बैठ गया
“ठीक है भैया लेकिन सवारी मिलनी चाहिए ..”
मैं अपने गांव को अच्छे से जानता था , वंहा से इंदौर के लिए 20- 20 रूपये में एक सवारी बोलकर इसका पूरा ऑटो भर जाता , मैंने हामी भर दी ..
जैसे जैसे सुबह निकल रही थी मेरे यादो की घटाए जैसे छट रही हो , आसमान खुलने लगा था, गांव में 5 बजे से ही लोगो का आना जाना शुरू हो जाता है , इंदौर से निकलने के बाद हवा की खुशबु ही बदलने लगी भी , मुझे मेरी मिटटी की खुशबु आ रही थी , मैं आँखे बंद किये हुए अपने सपनो में खोया हुआ था ..
रवेली के बस स्टेंड में ऑटो खड़ी हुई ..
“यंहा से 20 रूपये में सवारी मिल जायेगी तुझे “
मैंने पैसे देते हुए उसे कहा , लेकिन उसे ये पहले से ही पता था … उसने गाड़ी घुमा कर इंदौर इंदौर चिल्लाना भी शुरू कर दिया था …
“अब कहा जाना है ‘
आर्या के बोलने पर मुझे याद आया की मैंने इसकी कोई प्लानिंग तो की ही नहीं थी , मेरा चहरा अब आकृत का नहीं था जिसे लोग जानते थे , ना ही देव का जिसे मुंबई में लोग जानते थे … मैं बस सामान उठा कर चल पड़ा था ..
बनवारी के चाय की दूकान सुबह सुबह ही खुल जाती थी , मजदूरो की भीड़ भी लग चुकी थी मैंने उसे 3 चाय और पोहा जलेबी का ऑर्डर दे दिया , ..
“ओ काका ये वसिम और आकृत कहा रहते है आजकल “
मेरी बात सुनकर बनवारी जैसे आंखे फाडे मुझे देखने लगा
“किन मनहुसो का नाम ले दिया सुबह सुबह … आकृत तो सदिया बीते यंहा से भाग गया है , और वसीम गाँव के उस छोर में किराने की दूकान चलाता है , ऐसे तुम कौन को और उन्हें क्यों पूछ रहे “
बनवारी ने शक की निगाहों से हमें देखा ऐसे भी वांग और आर्या का हुलिया और मेरा चहरा किसी को भी शक करने को मजबूर कर देता था ..
“कुछ नही बस वसीम से मिलना था , मुंबई से आये है हम लोग “
“अच्छा मेरी उधारी भी दोगे क्या जो उन दोनों कमीनो ने की है “
बनवारी के मुह से ये सुनकर मैं हँस पड़ा ..
“वो तो तब मिलेगा ना जब आकृत आएगा “
बोलते हुए मेरा गला थोडा बैठ गया था , ऐसे भी बनवारी को देख कर मैं थोडा इमोशनल सा हो गया था , वो हमारा दोस्त हुआ करता था , उम्र में हमसे बड़ा लेकिन फिर भी दोस्त , हम साथी और हम जाम भी , उसके पास की उधारी ही हमारे रिश्ते को बयान करने को काफी थी , उसकी ये पूरी दूकान की जितनी कीमत रही होगी उससे ज्यादा हमारी उधारी बाकी थी वंहा , लेकिन मजाल है की उसने कभी माँगा हो और हमने कभी दिया हो ..
मैंने जाते हुए उसे 500 का एक नोट थमा दिया
“अरे बाबु इसके छुट्टे नहीं है मेरे पास “
“रखो काका समझो आकृत्त ने पैसे दिए है “
मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा ..
उसने एक बार मेरे चहरे को गौर से देखा जो की अक्सिडेंट में विकृत हो चूका था ..
“तुम कौन हो बाबु , अपने से लगते हो “
उसका स्वर ही बदल चूका था , जैसे वो भांप गया हो की मेरी असलियत क्या है ..
“अरे कभी आया था आकृत के साथ आपकी दूकान पर जब ये महज एक झोपडी थी “
मैंने बात को बदलते हुए कहा और वंहा से निकल गया ..
क्या दिन थे वो जब मं यंहा रहता था , मैं एक हीरो हुआ करता था और अब ..???
मेरे बचपन और जवानी ही यादे वैसे ही ताजा हो रही थी जैसे बनवारी की जलेबी , होठो में अनायास ही एक मुस्कान सी आ जाती थी , मैं अपना सामान उठाकर वसीम के घर की ओर बढ़ चला था ..
“भैया परले बिस्कुट मिलेगा क्या ??”
मैं अभी एक दुकान के सामने खड़ा था , रवेली गांव के बाहर तालाब के पास छोटा सा एक दूकान जन्हा लोग बस सिगरेट और गुटका लेने ही आते होंगे , साथ में थोड़ी किराने वाली और चीजे थी लेकिन महत्वहीन सी ..
सुबह के 6 बज चुके थे अभी अभी ये दूकान खोली गई थी , लोग हगने के लिए सिगरेट और गुटका लेने में व्यस्त थे ,
बिस्कुट का नाम सुनकर वसीम ने सीधे मुझे ही देखा , उसकी आँखे जैसे मुझपर जम गई मेरे होठो में एक मुस्कुराहट थी ..
मेरा दोस्त मेरा भाई जिसने मेरे कारण अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली थी आज इतने दिनों बाद मेरे सामने खड़ा था लेकिन किस्मत ऐसी थी की मैं उसे गले तक नही लगा सकता था , वो बड़े गौर से मुझे देखने लगा
“अबे जल्दी दे न प्रेसर आया है “
किसी और ने कहा और उसने जल्दी से 2 सिगरेट निकाल कर उसे दे दिया , असल में गांव में लोग तालाब के पास पहुचने के बाद प्रेसर बनाते है और वैसा ही यंहा भी हो रहा था ..
“भाई बिस्कुट …”
मैंने उसे फिर से कहा …
“कहा से आये हो बाबु “
वो अभी ही मुझे ही देख रहा था और मेरे लिए इमोशन को छिपा पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था
“मुंबई से ..”
मैंने आहिस्ता से कहा और वसीम जैसे नाच उठा वो वो दूकान से बाहर आ गया ..
“आकृत के दोस्त हो क्या “
उसने बड़े ही बेताबी से ये कहा था … अब मैं अपने आंसुओ को नहीं छुपा पाया ये बैरी आँखों में आ ही गये ..
“मेरा भाई ..”
वसीम की आँखों में अनायास ही आंसू आ गए थे मैं वंहा से पलट कर जाने लगा था लेकिन वासिम ने मेरा हाथ ही पकड़ लिया और मेरे चहरे को देखने लगा ..
“तू आ गया साले “
उसने इतना ही कहा था और मेरे आँखों ने मुझे धोखा दे दिया वो बहने लगे मैंने आगे बढ़कर उसे अपने गले से लगा लिया ..
“कुत्ते तेरे चहरे को क्या हो गया , कोई कुतिया मूत दी क्या ??”
वासिम भी रो ही रहा था ..
“तुझे ऐसे देख कर दुःख हुआ , बनवारी ने बताया की तू यंहा है …”
हम दोनों अभी भी गले से लगे हुए थे ..
“मादरचोद रुक थोड़े देर तुझे इसी तालाब में डुबो डुबो कर मरूँगा , भडवे साले , आज याद आई तुझे अपने गांव की , अपने भाई की … चाचा तो साला तुझे देखे बिना ही मर जाता “
वसीम मेरे पिता को चाचा कहता था , वसीम की बात सुन मेरा चहरा खिल गया था , मेरा दोस्त इतने सालो बाद मुझे मिला था ..
“अब आ गया ना साले …”
मै उससे अलग होते हुए कहा, उसने मेरे गालो में एक खिंच कर झापड़ मार दिया
“हां बहनचोद अहसान किया है तूने आके , भाग जा भोसड़ी के अभी जा यंहा से ‘
मेरे होठो की मुस्कान मानो जा ही नही रही थी और ना ही आँखों के आंसू जा रहे थे …
“शादी किया की अभी भी मुठ ही मार रहा है “
“भोसड़ी के देख उधर “
वसीम ने गली में खेलते हुए एक बच्चे की ओर इशारा किया , उस देखकर लगा जैसे मुझे जन्नत मिल गयी हो , मेरे दोस्त का खून था वो …
“जन्नत याद है ??“
उसने बड़े प्यार से कहा
“वो बाजु गांव वाली , उसके भाई को तो इसी तालाब में डूबा डूबा के मारा था हमने “
मैं अपनी बीती यादो को याद कर चहक गया था
“भोसड़ी के धीरे बोल , जन्नत ने सुन लिया ना तो आज खाना नहीं मिलेगा “
उसकी बात सुनकर मैं हँस पड़ा और उसे फिर से गले लगा लिया …
“माफ़ कर दे भाई , अपने जीवन में कुछ ऐसा भुला की ये भी भूल गया की मेरी जिंदगी कहा है “
मैंने अपने आंसुओ को साफ़ करते हुए कहा
“कोई नहीं तू आ गया ना साले , चाचा चाची से मिला और तेरे चहरे को क्या हुआ बे , भुना हुआ मुर्गा लग रहा है “
मैं हँस पड़ा था ,
“क्या बताऊ भाई बड़ी लम्बी कहानी है , खैर छोड़ अभी माँ बाबूजी से नही मिल सकता , शायद कभी नहीं मिल पाउँगा “
वसीम ने मुझे घुर कर देखा
“ऐसा भी क्या काम की अपनों से दूर हो जाए ...हर महीने तेरे पैसे आते है लेकिन तू कभी नहीं आया , उन्हें पैसा नहीं तू चाहिए “
अब मैं वसीम को क्या बताता की मैं किन मुश्किल हालात में फंसा हु , पैसे भी मैं नहीं भेज रहा था , मैंने ऐसा इतजाम कर दिया था की हर महीने मेरे घर वालो के पास एक फिक्स रकम पहुच जाए , जो की हमेशा ही पहुचते रहती लेकिन पैसे कभी भी अपनों की कमी को पूरा नहीं कर सकते .. ये तो मुझे भी पता था …
“अन्दर नहीं बुलाएगा “
मैंने बात बदलते हुए कहा , उसने एक बार आर्या और वांग को देखा और उसके होठो में भी मुस्कराहट आ गयी
“तू साले कभी नहीं सुधरेगा , लगता है कोई कांड करके आया है , चल आ अंदर “
उसने मेरा समान उठा लिया था ……..
दोपहर का वकत था , जब मैं और वासिम तालाब के किनारे बैठे सुट्टा मार रहे थे , जन्नत दिन भर से मुह फुला कर बैठी थी उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था की वासिम किसी अजनबी को यु घर में लेकर आये , वो भी ऐसे अजीब लोग जिन्हें सामान्य दुनिया के कायदे कानूनों का पता ही नही हो , फिर भी वासिम ने उसे मना ही लिया था ..
वांग और आर्या अभी उसके घर में आराम कर रहे थे , उनके लिए हर चीज नहीं थी और मैंने सख्त हिदायत दे रखी थी की कुछ भी हो जाए ज्यादा मुह नहीं खोलना , बस काम की बात वो भी आर्या करेगी , वांग को हमने गूंगा बना दिया था ताकि उसका कुछ बोलना दिक्कते पैदा ना करे …
“तो भाई कितने दिन रुकने का प्लान है “
“आज शाम को निकल जाऊंगा “
“तो साले यंहा आया ही क्यों ?? ,सालो से घर नहीं गया तू आज आया वो भी कुछ देर के लिए , वो भी इन नमूनों के साथ , और तेरा ये चहरा ??”
”‘भाई मत ही पूछ ये सब ख़त्म करके आराम से आऊंगा यही रहूँगा , एक जमीन लेंगे और उसमे बनायेंगे एक फार्म ,, ओरगेनिक खेती करेंगे और देशी मुर्गे ,मछलिया भी . वही बैठ कर भुन कर खाया करेंगे “
मैं खुद में खो कर बोले जा रहा था वही वासिम अभी भी मेरे चहरे को ही घुर रहा था …
“भोसड़ीवाले तेरे इन्ही सपनो के चक्कर में बहुत पेला चूका हु अब और नहीं समझा , ठीक चल रही है लाइफ अपनी “
“ये ठीक है , साले तू मेरा दोस्त है , कितने सपने थे हमारे , बड़े बड़े सपने की ये करेंगे वो करेंगे और तू यंहा बैठ कर एक झांट भर का दूकान चला रहा है वो भी गांव से बाहर , कहा गया वो वासिम जो अपने सपनो के लिए मरने मारने से भी नहीं कतराता था , और बस्ती को छोड़कर तू यंहा क्या कर रहा है ??”
मेरी बात सुनकर वासिम के होठो में मुस्कान आ गई लेकिन वो मुस्कान कई दर्द से भरी हुई थी ..
“हमारे सपनो की सजा किसी को तो भुगतनी थी , अब्बू का इन्त्त्काल होने के बाद आम्मी की तबियत भी ठीक नहीं रहती थी , गुडिया की शादी की भी जिम्मेदारी मेरे उपर आ गयी , जो थोड़े मोड पैसे बचा कर रहे थे हमने सब इन्ही सब में खर्च कर दिया …”
“मतलब तूने कोई जमीन नहीं ली “
“पुरे सपने घर की जिम्मेदारियों ने खा दिया साले , कहा की जमीन … तू तो निकल लिया सब छोड़ कर सब मुझे ही सम्हालना पड़ा , अपने घर को भी और चाचा चाची को भी “
“कोई नहीं बस ये काम हो जाए फिर सब ठीक कर दूंगा “
“क्या ठीक करेगा , तू बस आजा , नहीं चाहिए कोई जमीन और ना ही कोई फार्म “
मेरे होठो पर मुस्कराहट आ गई
“वो सब छोड़ तू बता बस्ती क्यों छोड़ दिया …”
मेरी बात सुनकर वासिम थोडा उदास हो गया ,
“अबे बोलेगा ..”
“जाने दे यार .. “
मैंने उसे घुर कर देखा
“भोसड़ी के सीधे सीधे बता “
“कोई नहीं वो घर बेच दिया मैंने …”
मैं बुरी तरह से शॉक में था , वासिम के पास घर नहीं बल्कि एक पुरखो की हवली थी जो उसके जमीदार पूर्वजो ने बनाई थी और उसके बाप ने कई केस लड़कर हासिल की थी … मैं उसे सवालिया आँखों से देख रहा था
“ऐसे क्या देख रहा है बे , चाची के केंसर का इलाज करवाना जरुरी हो गया था , तेरे भेजे पैसे से मेनेज नहीं हो पा रहा था और साले तूने अपना पता बताया था क्या जो मैं तुझे कुछ बता पाता “
उसकी बात सुनकर मैं खुद को सम्हाल ही नहीं पाया , आँखों से पानी की धार बह निकली थी , मैं अपने जिंदगी में इतना मस्त हो गया था की मुझे खुद के परिवार की भी फिक्र नहीं रही थी , मेरी माँ को केंसर था और मुझे पता भी नहीं , उसके इलाज लिए वासिम को अपना पुस्तेनी घर बेचना पड़ा ??
मैंने वसीम को अपनी बांहों में कस लिया …
“अबे ऐसे क्यों रो रहा है , मेरी भी तो माँ है वो , उनके हाथो से खा खा कर तो बड़े हुए है “
वसीम की बात ने मुझे वो शुकून दिया था जो इतने दिनों में नहीं मिला , खुद पर मुझे गुस्सा आ रहा था लेकिन मेरे गुस्से से ना तो मेरे दोस्त को ना ही मेरे माँ बाप को कुछ हिसिल होने वाला था …
मैंने बस वसीम को गले से लगा लिया …….
रात के 9 थे जब हम इंदौर की तरफ निकल पड़े , अब अगला पड़ाव मुंबई थी , लेकिन इस बार मेरे दिमाग में मेरा गांव और मेरा परिवार हावी होने लगा था , उन्होंने मेरे जिद की वजह से बहुत कुछ सह लिया था , मुझे उनपर और मुशीबत नही बनना था , मैंने एक गहरी साँस छोड़ी अब मैं वो आकृत नहीं था जो कभी इस गांव से भाग गया था , मैंने इन सालो को बहुत कुछ सिखा था ,लेकिन एक हादसे ने मुझे सब भुला दिया , गैरी के दिए दवाओ से मेरा दिमाग फिर से खुल चूका था और आँखों में एक जूनून मंडराने लगा ……….
dev had se zyada emotional ho gaya tha, waise khud ke gaon ki mitti khushbu hi kuch aur hai... ek apnapan dil dimag pe cha jaye gaon pahunchte hi, dev bhi isse alag nahi.. uske dost, uske pariwar to wohi hai, sath hi purani yaadein jo aaj bhi taza hai uski soch mein..
waise us autowale sath achhi khasi bahas ho gayi,
to bachpan dost se finally mil hi gaya dev, waise washim bhi khushi ke sath sath hairan bhi ki dev ke chehre ke sath kya hua .
waise washim jaise dost Nasib walo ko milte,apne dost ke Absence mein apne dost ki family ki niswarth roop se dekh rekh karna ya tak apne dost ki mom itni badi bimari huyi to ushe thik karne ke liye apni purkho ki haweli ko bech dena, sach mein jitni tarif ki jaaye utni kam hai..
is update ko padhkar main bhi emotional ho gayi..
So dev aarya aur wanga ke sath nikal para pehle indore phir Mumbai ki aurr..
ye jo junun uski ankhon mein hai lage ki jarur kuch bada karne wala hai dev..
Ab bas intezaar hai to Dr chunnilal, Kajal aur kabeer ki maut ki..
Update sach mein emotional ke sath sath dilchasp aur dilkash bhi tha
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:
 
15,606
32,132
259
majedar aur emotional update 😍😍..mumbai aate huye apne gaon me jaane ki sochi aakrut ne aur indor me utar kar apne gaon aa gaya ..
rikshwa wale waise har jagah lootne ka kaam hi karte hai jab kisiko pata nahi hota real kiraya kya dena hai ..par hero ne sahi se bargaining ki riksha wale ke saath ..

gaon me aakar banwari se mila aur apni purani dosti bhi yaad aa gayi ,,banwari pehchan to nahi paya aaakrut ko par aakrut ne usko 500 rs. de diye 😍..
in teeno ke dosti ke baare me jaankar achcha laga ..

vasim sabse achcha dost hai hero ka jisne apni haweli bechkar aakrut ke maa ki cancer ka iaaj kiya 😍😍😍..
vasim ki kahani jaankar dukh hua ki uske maa baap marr gaye hai 😔..
par ye aakrut apne maa baap se mile bina hi mumbai laut gaya ..

apne dusmano ko thikane lagakar dobara apne gaon aakar apne pariwar aur dosto ke saath rehna chahiye aakrut ko aur shayad wo bhi yahi soch raha hai ..
 

Studxyz

Well-Known Member
2,933
16,301
158
dev had se zyada emotional ho gaya tha, waise khud ke gaon ki mitti khushbu hi kuch aur hai... ek apnapan dil dimag pe cha jaye gaon pahunchte hi, dev bhi isse alag nahi.. uske dost, uske pariwar to wohi hai, sath hi purani yaadein jo aaj bhi taza hai uski soch mein..
waise us autowale sath achhi khasi bahas ho gayi,
to bachpan dost se finally mil hi gaya dev, waise washim bhi khushi ke sath sath hairan bhi ki dev ke chehre ke sath kya hua .
waise washim jaise dost Nasib walo ko milte,apne dost ke Absence mein apne dost ki family ki niswarth roop se dekh rekh karna ya tak apne dost ki mom itni badi bimari huyi to ushe thik karne ke liye apni purkho ki haweli ko bech dena, sach mein jitni tarif ki jaaye utni kam hai..
is update ko padhkar main bhi emotional ho gayi..
So dev aarya aur wanga ke sath nikal para pehle indore phir Mumbai ki aurr..
ye jo junun uski ankhon mein hai lage ki jarur kuch bada karne wala hai dev..
Ab bas intezaar hai to Dr chunnilal, Kajal aur kabeer ki maut ki..
Update sach mein emotional ke sath sath dilchasp aur dilkash bhi tha
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:

लेकिन हुस्न की मल्लिका व् काली दुनिया की शहजादी काजल को डॉ नहीं मरवाएगा कुछ और ही कांड करेगा वैसे भी अगर काजल मर गयी तो लेखक का दिल टूट जायेगा ऐसे ही नहीं उसने चौथी कहानी में काजल को खल-नायिका बनवाया है :D
 
Last edited:

SultanTipu40

🐬🐬🐬🐬🐬🐬🐬
Prime
14,751
19,499
214
अध्याय 25
पूरा दिन पैदल चलने के बाद हम नागालैंड की राजधानी कोहिमा पहुचे , मेरे पास पहला काम था की मैं आर्या और वांग का हुलिया सुधारू , कुछ कपड़ो से मैं इनकी सूरत सुधरने की कोशिस कर रहा था लेकिन आदते इने जल्दी कहा जाती है , उन्होंने पहली बार ऐसे कपडे पहने थे …
फिर भी जैसे तैसे उन दोनों को तैयार करके मैं मुबई की तरफ निकला ….
हम ट्रेन में थे जब मेरी नींद खुली कोई 3 बज रहे थे ..
बाहर स्टेशन का नाम देख मेरे आँखों में आंसू आ गए , मैंने तुरंत ही उन दोनों को उठाया और सामान सहित हम उसी स्टेशन में उतर गए ..
“ये तो मुबई नहीं है , कहा उतार दिए हमें “
आर्या थोड़े गुस्से में थे वही वांग को कौन सा स्टेशन का नाम पढना आता था ….
“मेरा जन्म यही हुआ , ये मेरा घर है “
मेरे आँखों के आंसू अभी भी नहीं सूखे थे , मुझे बचपन की सब बाते याद आ रही थी …
“इन्दोंर …???’
आर्या ने स्टेशन में लगे हुए बोर्ड को देखकर कहा
मेरे होठो में एक मुस्कान आ गयी , इन्दौर् से कोई 30 किलो मीटर की दुरी में मेरा गाँव था , बचपन की यादे और माता पिता का चहरा देखने की तमन्ना ने मुझे इस ओर खिंच लिया था , पता नहीं मैं अब आखरी बार् वंहा गया था ..
हम रेलवे स्टेशन से निकल कर बाहर आये , अभी सुबह चढ़ी भी नहीं थी , मैंने एक ऑटो को पकड लिया ..
“500 रूपये लगेंगे “
उसने हमारे हुलिए को देखकर कहा
“अरे भाई 500 में तो लन्दन पहुच जाऊ तुम रवेली के 500 बोल रहे हो , चुतिया समझे हो क्या , 100 रूपये देंगे “
मैं अपनी गांव वाली ओकात में आ गया था
“अरे अभी कोई बस नहीं मिलेगी तुम्हे “
उसने हमें घूरते हुए कहा , मैं जानता था की हमारे हुलिए से ही उसने भांप लिया था की हम यंहा के नही है लेकिन उसे पता नहीं था की मैं इसी मिटटी में पला बढ़ा हु
“बस में एक झन के 30 रूपये लगते है समझे , चलो तुम्हे 50 दिया 150 में ले जाओ “
मेरा बोलना था और मैं अपने सामान को उसके ओटो में फेक कर बैठ गया मेरे साथ साथ आर्या और वांग भी चुप चाप बैठ चुके थे ..
“अरे भैया 150 रूपये में नहीं पड़ेगा क्या कर रहे हो “
ऑटो वाला बाहर आ गया
“तू बोल सही रेट बोल वरना सोच ले बेटा , रवेली का रहने वाला हु समझ लेना …”
वो चुप चाप सोचने लगा था , मानो गणित लगा रहा हो
“भैया 300 दे दो , आते हुए सवारी भी नहीं मिलेगी “
उसने मुह बनाते हुए कहा
“200 दूंगा और आते हुए तुझे सवारी भी दिलाऊंगा ठीक “
ये मेरा अंतिम वार था .. वो मन मसोज के फिर से अपनी सिट में बैठ गया
“ठीक है भैया लेकिन सवारी मिलनी चाहिए ..”
मैं अपने गांव को अच्छे से जानता था , वंहा से इंदौर के लिए 20- 20 रूपये में एक सवारी बोलकर इसका पूरा ऑटो भर जाता , मैंने हामी भर दी ..
जैसे जैसे सुबह निकल रही थी मेरे यादो की घटाए जैसे छट रही हो , आसमान खुलने लगा था, गांव में 5 बजे से ही लोगो का आना जाना शुरू हो जाता है , इंदौर से निकलने के बाद हवा की खुशबु ही बदलने लगी भी , मुझे मेरी मिटटी की खुशबु आ रही थी , मैं आँखे बंद किये हुए अपने सपनो में खोया हुआ था ..
रवेली के बस स्टेंड में ऑटो खड़ी हुई ..
“यंहा से 20 रूपये में सवारी मिल जायेगी तुझे “
मैंने पैसे देते हुए उसे कहा , लेकिन उसे ये पहले से ही पता था … उसने गाड़ी घुमा कर इंदौर इंदौर चिल्लाना भी शुरू कर दिया था …
“अब कहा जाना है ‘
आर्या के बोलने पर मुझे याद आया की मैंने इसकी कोई प्लानिंग तो की ही नहीं थी , मेरा चहरा अब आकृत का नहीं था जिसे लोग जानते थे , ना ही देव का जिसे मुंबई में लोग जानते थे … मैं बस सामान उठा कर चल पड़ा था ..
बनवारी के चाय की दूकान सुबह सुबह ही खुल जाती थी , मजदूरो की भीड़ भी लग चुकी थी मैंने उसे 3 चाय और पोहा जलेबी का ऑर्डर दे दिया , ..
“ओ काका ये वसिम और आकृत कहा रहते है आजकल “
मेरी बात सुनकर बनवारी जैसे आंखे फाडे मुझे देखने लगा
“किन मनहुसो का नाम ले दिया सुबह सुबह … आकृत तो सदिया बीते यंहा से भाग गया है , और वसीम गाँव के उस छोर में किराने की दूकान चलाता है , ऐसे तुम कौन को और उन्हें क्यों पूछ रहे “
बनवारी ने शक की निगाहों से हमें देखा ऐसे भी वांग और आर्या का हुलिया और मेरा चहरा किसी को भी शक करने को मजबूर कर देता था ..
“कुछ नही बस वसीम से मिलना था , मुंबई से आये है हम लोग “
“अच्छा मेरी उधारी भी दोगे क्या जो उन दोनों कमीनो ने की है “
बनवारी के मुह से ये सुनकर मैं हँस पड़ा ..
“वो तो तब मिलेगा ना जब आकृत आएगा “
बोलते हुए मेरा गला थोडा बैठ गया था , ऐसे भी बनवारी को देख कर मैं थोडा इमोशनल सा हो गया था , वो हमारा दोस्त हुआ करता था , उम्र में हमसे बड़ा लेकिन फिर भी दोस्त , हम साथी और हम जाम भी , उसके पास की उधारी ही हमारे रिश्ते को बयान करने को काफी थी , उसकी ये पूरी दूकान की जितनी कीमत रही होगी उससे ज्यादा हमारी उधारी बाकी थी वंहा , लेकिन मजाल है की उसने कभी माँगा हो और हमने कभी दिया हो ..
मैंने जाते हुए उसे 500 का एक नोट थमा दिया
“अरे बाबु इसके छुट्टे नहीं है मेरे पास “
“रखो काका समझो आकृत्त ने पैसे दिए है “
मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा ..
उसने एक बार मेरे चहरे को गौर से देखा जो की अक्सिडेंट में विकृत हो चूका था ..
“तुम कौन हो बाबु , अपने से लगते हो “
उसका स्वर ही बदल चूका था , जैसे वो भांप गया हो की मेरी असलियत क्या है ..
“अरे कभी आया था आकृत के साथ आपकी दूकान पर जब ये महज एक झोपडी थी “
मैंने बात को बदलते हुए कहा और वंहा से निकल गया ..
क्या दिन थे वो जब मं यंहा रहता था , मैं एक हीरो हुआ करता था और अब ..???
मेरे बचपन और जवानी ही यादे वैसे ही ताजा हो रही थी जैसे बनवारी की जलेबी , होठो में अनायास ही एक मुस्कान सी आ जाती थी , मैं अपना सामान उठाकर वसीम के घर की ओर बढ़ चला था ..
“भैया परले बिस्कुट मिलेगा क्या ??”
मैं अभी एक दुकान के सामने खड़ा था , रवेली गांव के बाहर तालाब के पास छोटा सा एक दूकान जन्हा लोग बस सिगरेट और गुटका लेने ही आते होंगे , साथ में थोड़ी किराने वाली और चीजे थी लेकिन महत्वहीन सी ..
सुबह के 6 बज चुके थे अभी अभी ये दूकान खोली गई थी , लोग हगने के लिए सिगरेट और गुटका लेने में व्यस्त थे ,
बिस्कुट का नाम सुनकर वसीम ने सीधे मुझे ही देखा , उसकी आँखे जैसे मुझपर जम गई मेरे होठो में एक मुस्कुराहट थी ..
मेरा दोस्त मेरा भाई जिसने मेरे कारण अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली थी आज इतने दिनों बाद मेरे सामने खड़ा था लेकिन किस्मत ऐसी थी की मैं उसे गले तक नही लगा सकता था , वो बड़े गौर से मुझे देखने लगा
“अबे जल्दी दे न प्रेसर आया है “
किसी और ने कहा और उसने जल्दी से 2 सिगरेट निकाल कर उसे दे दिया , असल में गांव में लोग तालाब के पास पहुचने के बाद प्रेसर बनाते है और वैसा ही यंहा भी हो रहा था ..
“भाई बिस्कुट …”
मैंने उसे फिर से कहा …
“कहा से आये हो बाबु “
वो अभी ही मुझे ही देख रहा था और मेरे लिए इमोशन को छिपा पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था
“मुंबई से ..”
मैंने आहिस्ता से कहा और वसीम जैसे नाच उठा वो वो दूकान से बाहर आ गया ..
“आकृत के दोस्त हो क्या “
उसने बड़े ही बेताबी से ये कहा था … अब मैं अपने आंसुओ को नहीं छुपा पाया ये बैरी आँखों में आ ही गये ..
“मेरा भाई ..”
वसीम की आँखों में अनायास ही आंसू आ गए थे मैं वंहा से पलट कर जाने लगा था लेकिन वासिम ने मेरा हाथ ही पकड़ लिया और मेरे चहरे को देखने लगा ..
“तू आ गया साले “
उसने इतना ही कहा था और मेरे आँखों ने मुझे धोखा दे दिया वो बहने लगे मैंने आगे बढ़कर उसे अपने गले से लगा लिया ..
“कुत्ते तेरे चहरे को क्या हो गया , कोई कुतिया मूत दी क्या ??”
वासिम भी रो ही रहा था ..
“तुझे ऐसे देख कर दुःख हुआ , बनवारी ने बताया की तू यंहा है …”
हम दोनों अभी भी गले से लगे हुए थे ..
“मादरचोद रुक थोड़े देर तुझे इसी तालाब में डुबो डुबो कर मरूँगा , भडवे साले , आज याद आई तुझे अपने गांव की , अपने भाई की … चाचा तो साला तुझे देखे बिना ही मर जाता “
वसीम मेरे पिता को चाचा कहता था , वसीम की बात सुन मेरा चहरा खिल गया था , मेरा दोस्त इतने सालो बाद मुझे मिला था ..
“अब आ गया ना साले …”
मै उससे अलग होते हुए कहा, उसने मेरे गालो में एक खिंच कर झापड़ मार दिया
“हां बहनचोद अहसान किया है तूने आके , भाग जा भोसड़ी के अभी जा यंहा से ‘
मेरे होठो की मुस्कान मानो जा ही नही रही थी और ना ही आँखों के आंसू जा रहे थे …
“शादी किया की अभी भी मुठ ही मार रहा है “
“भोसड़ी के देख उधर “
वसीम ने गली में खेलते हुए एक बच्चे की ओर इशारा किया , उस देखकर लगा जैसे मुझे जन्नत मिल गयी हो , मेरे दोस्त का खून था वो …
“जन्नत याद है ??“
उसने बड़े प्यार से कहा
“वो बाजु गांव वाली , उसके भाई को तो इसी तालाब में डूबा डूबा के मारा था हमने “
मैं अपनी बीती यादो को याद कर चहक गया था
“भोसड़ी के धीरे बोल , जन्नत ने सुन लिया ना तो आज खाना नहीं मिलेगा “
उसकी बात सुनकर मैं हँस पड़ा और उसे फिर से गले लगा लिया …
“माफ़ कर दे भाई , अपने जीवन में कुछ ऐसा भुला की ये भी भूल गया की मेरी जिंदगी कहा है “
मैंने अपने आंसुओ को साफ़ करते हुए कहा
“कोई नहीं तू आ गया ना साले , चाचा चाची से मिला और तेरे चहरे को क्या हुआ बे , भुना हुआ मुर्गा लग रहा है “
मैं हँस पड़ा था ,
“क्या बताऊ भाई बड़ी लम्बी कहानी है , खैर छोड़ अभी माँ बाबूजी से नही मिल सकता , शायद कभी नहीं मिल पाउँगा “
वसीम ने मुझे घुर कर देखा
“ऐसा भी क्या काम की अपनों से दूर हो जाए ...हर महीने तेरे पैसे आते है लेकिन तू कभी नहीं आया , उन्हें पैसा नहीं तू चाहिए “
अब मैं वसीम को क्या बताता की मैं किन मुश्किल हालात में फंसा हु , पैसे भी मैं नहीं भेज रहा था , मैंने ऐसा इतजाम कर दिया था की हर महीने मेरे घर वालो के पास एक फिक्स रकम पहुच जाए , जो की हमेशा ही पहुचते रहती लेकिन पैसे कभी भी अपनों की कमी को पूरा नहीं कर सकते .. ये तो मुझे भी पता था …
“अन्दर नहीं बुलाएगा “
मैंने बात बदलते हुए कहा , उसने एक बार आर्या और वांग को देखा और उसके होठो में भी मुस्कराहट आ गयी
“तू साले कभी नहीं सुधरेगा , लगता है कोई कांड करके आया है , चल आ अंदर “
उसने मेरा समान उठा लिया था ……..
दोपहर का वकत था , जब मैं और वासिम तालाब के किनारे बैठे सुट्टा मार रहे थे , जन्नत दिन भर से मुह फुला कर बैठी थी उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था की वासिम किसी अजनबी को यु घर में लेकर आये , वो भी ऐसे अजीब लोग जिन्हें सामान्य दुनिया के कायदे कानूनों का पता ही नही हो , फिर भी वासिम ने उसे मना ही लिया था ..
वांग और आर्या अभी उसके घर में आराम कर रहे थे , उनके लिए हर चीज नहीं थी और मैंने सख्त हिदायत दे रखी थी की कुछ भी हो जाए ज्यादा मुह नहीं खोलना , बस काम की बात वो भी आर्या करेगी , वांग को हमने गूंगा बना दिया था ताकि उसका कुछ बोलना दिक्कते पैदा ना करे …
“तो भाई कितने दिन रुकने का प्लान है “
“आज शाम को निकल जाऊंगा “
“तो साले यंहा आया ही क्यों ?? ,सालो से घर नहीं गया तू आज आया वो भी कुछ देर के लिए , वो भी इन नमूनों के साथ , और तेरा ये चहरा ??”
”‘भाई मत ही पूछ ये सब ख़त्म करके आराम से आऊंगा यही रहूँगा , एक जमीन लेंगे और उसमे बनायेंगे एक फार्म ,, ओरगेनिक खेती करेंगे और देशी मुर्गे ,मछलिया भी . वही बैठ कर भुन कर खाया करेंगे “
मैं खुद में खो कर बोले जा रहा था वही वासिम अभी भी मेरे चहरे को ही घुर रहा था …
“भोसड़ीवाले तेरे इन्ही सपनो के चक्कर में बहुत पेला चूका हु अब और नहीं समझा , ठीक चल रही है लाइफ अपनी “
“ये ठीक है , साले तू मेरा दोस्त है , कितने सपने थे हमारे , बड़े बड़े सपने की ये करेंगे वो करेंगे और तू यंहा बैठ कर एक झांट भर का दूकान चला रहा है वो भी गांव से बाहर , कहा गया वो वासिम जो अपने सपनो के लिए मरने मारने से भी नहीं कतराता था , और बस्ती को छोड़कर तू यंहा क्या कर रहा है ??”
मेरी बात सुनकर वासिम के होठो में मुस्कान आ गई लेकिन वो मुस्कान कई दर्द से भरी हुई थी ..
“हमारे सपनो की सजा किसी को तो भुगतनी थी , अब्बू का इन्त्त्काल होने के बाद आम्मी की तबियत भी ठीक नहीं रहती थी , गुडिया की शादी की भी जिम्मेदारी मेरे उपर आ गयी , जो थोड़े मोड पैसे बचा कर रहे थे हमने सब इन्ही सब में खर्च कर दिया …”
“मतलब तूने कोई जमीन नहीं ली “
“पुरे सपने घर की जिम्मेदारियों ने खा दिया साले , कहा की जमीन … तू तो निकल लिया सब छोड़ कर सब मुझे ही सम्हालना पड़ा , अपने घर को भी और चाचा चाची को भी “
“कोई नहीं बस ये काम हो जाए फिर सब ठीक कर दूंगा “
“क्या ठीक करेगा , तू बस आजा , नहीं चाहिए कोई जमीन और ना ही कोई फार्म “
मेरे होठो पर मुस्कराहट आ गई
“वो सब छोड़ तू बता बस्ती क्यों छोड़ दिया …”
मेरी बात सुनकर वासिम थोडा उदास हो गया ,
“अबे बोलेगा ..”
“जाने दे यार .. “
मैंने उसे घुर कर देखा
“भोसड़ी के सीधे सीधे बता “
“कोई नहीं वो घर बेच दिया मैंने …”
मैं बुरी तरह से शॉक में था , वासिम के पास घर नहीं बल्कि एक पुरखो की हवली थी जो उसके जमीदार पूर्वजो ने बनाई थी और उसके बाप ने कई केस लड़कर हासिल की थी … मैं उसे सवालिया आँखों से देख रहा था
“ऐसे क्या देख रहा है बे , चाची के केंसर का इलाज करवाना जरुरी हो गया था , तेरे भेजे पैसे से मेनेज नहीं हो पा रहा था और साले तूने अपना पता बताया था क्या जो मैं तुझे कुछ बता पाता “
उसकी बात सुनकर मैं खुद को सम्हाल ही नहीं पाया , आँखों से पानी की धार बह निकली थी , मैं अपने जिंदगी में इतना मस्त हो गया था की मुझे खुद के परिवार की भी फिक्र नहीं रही थी , मेरी माँ को केंसर था और मुझे पता भी नहीं , उसके इलाज लिए वासिम को अपना पुस्तेनी घर बेचना पड़ा ??
मैंने वसीम को अपनी बांहों में कस लिया …
“अबे ऐसे क्यों रो रहा है , मेरी भी तो माँ है वो , उनके हाथो से खा खा कर तो बड़े हुए है “
वसीम की बात ने मुझे वो शुकून दिया था जो इतने दिनों में नहीं मिला , खुद पर मुझे गुस्सा आ रहा था लेकिन मेरे गुस्से से ना तो मेरे दोस्त को ना ही मेरे माँ बाप को कुछ हिसिल होने वाला था …
मैंने बस वसीम को गले से लगा लिया …….
रात के 9 थे जब हम इंदौर की तरफ निकल पड़े , अब अगला पड़ाव मुंबई थी , लेकिन इस बार मेरे दिमाग में मेरा गांव और मेरा परिवार हावी होने लगा था , उन्होंने मेरे जिद की वजह से बहुत कुछ सह लिया था , मुझे उनपर और मुशीबत नही बनना था , मैंने एक गहरी साँस छोड़ी अब मैं वो आकृत नहीं था जो कभी इस गांव से भाग गया था , मैंने इन सालो को बहुत कुछ सिखा था ,लेकिन एक हादसे ने मुझे सब भुला दिया , गैरी के दिए दवाओ से मेरा दिमाग फिर से खुल चूका था और आँखों में एक जूनून मंडराने लगा ……….
Super emotional update sir ji
 
Last edited:

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,302
304
लेकिन हुस्न की मल्लिका व् काली दुनिया की शहजादी काजल को डॉ नहीं मरवाएगा कुछ और ही कांड करेगा वैसे भी अगर काजल मर गयी तो लेखक का दिल टूट जायेगा ऐसे ही नहीं उसने चौथी कहानी में काजल को खल-नायिका बनवाया है :D
bas... bahot utpat macha liya un dono ne, ab aur nahi :D
ab waqt purvi, aarya aur wanga ka hai..
Tharki Dr chunnilal aur hawas ki pujaran Kajal gayi tel lene :roflol:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,302
304
Fir bhi dr. Shahab ka kabhi bhi bharosa nahi kar sakte ye up police 🚓 ke jaisa khade khade gaadi palta dete h 😁😁😁
Haan ye to Sau pratishat sach hai :D mujhe to is baat se dar hai ki kahi dev ke sath sath bechare wanga, aarya aur purvi ki band na baj jaaye :sigh2:
Juhi ko bhi dev ke khilaf kar diya :sigh:
isliye to bol rahi hun ki us Kajal aur Dr chunnilal ka kissa hi khatam kar deni chahiye story se hi... :D
 

brego4

Well-Known Member
2,850
11,104
158
hmm very emotional and factual update dactar sahib

to ye sala arya yahan bhi sab ki maa-behan kar ke bhaga tha aur mumbai jakar bhi saley ne kajal se fraud shaadi kar li koi aur ban kar aur ab fir se kuch aur ban gya hai

naa hi akrit raha na hi dev
 

xxxlove

Active Member
1,185
2,432
158
Bahut hi emotional aur dil ko chune wala update Dr Sahab.Mind blowing update es update ne to gaon ki yaaden taza kara dali .
Awesome update with brilliant writing skill.
 
Status
Not open for further replies.
Top