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dhanywad md broSuper emotional update sir ji
dhanywad md broSuper emotional update sir ji
dhanywad rekha jiBahut sunder update rha ye sir ji, emotional krne wala
dhanywad sir jihmm very emotional and factual update dactar sahib
to ye sala arya yahan bhi sab ki maa-behan kar ke bhaga tha aur mumbai jakar bhi saley ne kajal se fraud shaadi kar li koi aur ban kar aur ab fir se kuch aur ban gya hai
naa hi akrit raha na hi dev
dhanywad xxxlove broBahut hi emotional aur dil ko chune wala update Dr Sahab.Mind blowing update es update ne to gaon ki yaaden taza kara dali .
Awesome update with brilliant writing skill.
dhanywad subham bhaiWell done dr sahab,,,,
Idhar ke update padhne ke baad lag raha hai ki kahani apni patri par waapas lauti hai. Kaha kaha ghumaya kahani ko aur fir kaha la ke patak diya...bahut khoob,,,
Wang ke sapno ko choor choor kar ke Aarya ko pel diya. Ye to khair aapki khaasiyat hai, aakhir adultery likhne me bahut kuch sochna padta hai par Dev urf akrit ke character ko mysterious sa bana diya jo ki thoda shocking laga. Aakrat ko sapna aana ya ye kahe ki uska behosh hona aur fir gairy dwara use khaas dawa dena jisse uska dimaag khul jana ye sab mysterious aur shocking type tha. Halaaki dev ki asaliyat ke bare me aapne pahle hi bata diya tha ki wo asal me kaun tha lekin fir bhi itna kuch expect nahi kiya raha hoga kisi ne. Khair dimag khulne ke baad aakrat ab apne asli form me aa chuka hai. Wang aur Aarya ko le kar wo ek mission par nikal chuka hai jisme wo sabse pahle apne gaav gaya. Gaav wale sare scene dil ko chhu gaye aur shayad aakrat ke dil par bhi aghaat kar gaye tabhi to usne ye soch liya ki ab wo sare kaam finish kar ke apni janm bhumi me waapas aayega. Khair dekhte hain uska ye sochna kaha tak safal hota hai kyoki jis field me wo tha usme waapsi sambhav nahi hoti lekin dr sahab ke liye aisa karna bhala kaha mushkil hai. So let's see what happens. Will waiting for the next update,,,,
ab thodi teji se likhne ki koshis karunga , ho sake to daily ya ek do din me hi updates post karungaPadh liya, itne lambe arshe baad ginti ke chaar update huye the,,,
dhanywad sanju bhaiये अपडेट पढ़ने के बाद पहले तो बहुत गुस्सा आया अकृत मिश्रा पर कि कैसे कोई अपने बुढ़े मां बाप को ऐसे ही अपने हाल में छोड़ सकता है । लेकिन बाद में जब उसके हालात पर गौर किया तो नाराजगी थोड़ी कम हुई । लेकिन फिर भी पुरी तरह से नहीं ।
अकृत मिश्रा के बारे में जो मेरा अनुमान है वो गांव का एक सीधा-सीधा लड़का था । पैसे कमाने के चक्कर में शहर गया और ब्लैक कोबरा गैंग ज्वाइन कर लिया । बाद में उसे रियलाइज हुआ कि उसने गलती कर दिया है । अतः वो वहां से भाग निकला और संयोग से देव नामक एक पुलिस अफसर से उसकी मुलाकात हुई । किसी कारणवश देव की मृत्यु हो जाती है और वो प्लास्टिक सर्जरी के द्वारा देव का शकल अख्तियार करके उसकी जगह ले लेता है । बाद में देव की मंगेतर काजल से उसकी शादी हो जाती है ।
मुझे लगता है कि ब्लैक कोबरा गैंग में रहते हुए किसी मेडिसिन के द्वारा उसके दिमाग के सोचने समझने की शक्ति को छिन लिया गया था इसी कारण वो अपने गांव और अपने माता-पिता को भुला चुका था ।
( यह मेरा अनुमान है जो गलत भी हो सकता है )
लेकिन अपने गांव प्रवास के दौरान उसने अपने माता-पिता से मुलाकात क्यों नहीं की ? उसकी मां मौत के द्वार पर खड़ी है फिर भी उनसे मिलने की जहमत क्यों नहीं उठाई ?
( ये सवाल है डॉ साहब )
वसीम ! दोस्त हो तो ऐसा । दोस्ती की मिसाल कायम की उसने । अपनी पुरखों की हवेली तक बेच दी अकृत की मां के इलाज के लिए । उस हवेली को जिसे उसके पिता ने बड़ी ही कष्टों से प्राप्त किया था । और खुद गांव के बाहर एक छोटी सी झोपडी में रहकर एक चाय दुकान खोलकर गुजर बसर कर रहा है ।
नमन करता हूं वसीम को । दिल से उसके लिए दुआएं निकलती है ।
( यह पुरा प्रसंग बहुत ही इमोशनल था )
डॉ साहब ! छा गए इस अपडेट पर । बहुत ही उम्दा अपडेट था यह । आउटस्टैंडिंग ।
जगमग जगमग अपडेट ।
Akrit apni yaadasht bhul chuka tha tabi to usko apne maa,baap ke bare main yaad nahi kiya.ab dekhte hai ke kon sa neya chehra lagvata hai dev ka ya akrit ka.baki apki kahani dimag na chakra de aisa ho hi nahi sakta.tabi to aap mere or sab ke fev. Writer ho DR.SAHEBअध्याय 26मैंने मुंबई पहुचते ही पहले एक ठिकाना ढूंढा , अब ये करना मेरे लिए मुशिकल नहीं रह गया था , उन्हें घर में ही छोड़ कर मैं काम से निकल पड़ा ..
शाम का समय था जब मैं अपने पुराने घर पंहुचा था , कई दिनों से शायद वंहा कोई नहीं आया था इसलिए जगह जगह में मकडियो ने जाल बना लिया था ,मेरे पास कोई चाबी नहीं थी लेकिन मैं यंहा कई सालो तक रहा था , मैंने उन जगहों में ढूंढा जन्हा अक्सर हम चाबी रखते थे , और मुझे चाबी मिल गई जिसे शायद मैंने ही रखी थी , वक्त की कमी थी और मैं नहीं चाहता था की यंहा कोई मुझे देख ले , मैंने तुरंत अपना काम शुरू कर दिया ,,
अपने बेडरूम में जाकर मैं सीधे वंहा के टॉयलेट में पहुचा,
मुझे याद आया की काजल को शावर लेना पसंद नहीं था , ये बाद याद करते ही मेरे होठो में अजीब सी मुस्कान आ गई , काजल को याद करते ही मैं हँस पड़ा था , वो अच्छा खेल गई थी ,कोई बात नहीं अब मैं खेलूँगा …
मैंने शावर के ढक्कन को खोला जो की कई दिनों से बंद होने के कारण जाम हो चूका था , थोड़ी मसक्कत के बाद वो खुल गया और उसमे से मैंने एक पुडिया निकाली , पोलीथिन की उस पुडिया को मैंने जेब में डाल लिया ..
अब मुझे दूसरी पुडिया की जरुरत थी जिसे मैंने टॉयलेट सिट के अंदर छिपाया था , उसके लिए मुझे उसे तोडना पड़ा था लेकिन मैंने अपनी दोनों अमानतो को हासिल कर लिया था ..
मैं वंहा से जैसे आया था चुप चाप वैसे ही निकल गया ..
मुंबई का सराफा बाजार , जन्हा करोडो नहीं अरबो के लेनदेन रोज ही होते है , कई लीगल और कई इनलीगल कामो वाला ये मार्किट लोगो के शोर से गूंज रहा था , मैं एक अपना मुह मास्क से छिपाए हुए और बालो को ढककर चल रहा था , मुझे पता था की मेरा चहरा इतना अजीब है की यंहा लोग अगर मुझे देख ले तो मैं एक आकर्षण का केंद्र बन जाऊंगा …
आगे बढ़ते हुए मैं उस रोशनी से जगमाती सडक से होकर एक अँधेरी गली में घुस गया , थोड़े आगे जाते ही मुझे कुछ पुराणी दुकाने दिखने लगी , दिखने में ये किसी झोपडी की तरह खास्तहाल दिखती थी लेकिन जानने वाले जानते थे की रोशन सडक में बने बड़े बड़े शोरुम से ज्यदा का धंधा यंहा पर होता है , वो भी चुपचाप …
थोडा आगे जाकर मैं ऐसे ही एक पुराने जर्जर हो चुके से दूकान में घुस गया , वंहा एक सेठ टाइप का आदमी सफ़ेद गद्दे पर बैठा हुआ वंहा बैठे कुछ और लोगो से गपिया रहा था , मुझे देखते ही वो सभी सतर्क हो गए और सेठ थोड़े अदब से बैठ गया ..
“कहो जनाब क्या चाहिए …??”
सेठ के बोलने पर मैंने एक बार वंहा बैठे हुए लोगो को देखा
“माणिक सुरसती लेना है “
मेरे बोलते ही सेठ ने तुरंत ही उन सभी को वंहा से जाने को बोला और मेरे आगे बोलने का इतजार करने लगा
“आई डी 1121 “
मेरे आई डी बोलते ही वो मेरे चहरे को घूरने लगा जैसे मुझे पहचानने की कोशिस कर रहा हो
“मत घूरो पहचान नहीं पाओगे काम सुनो समय नहीं है “
मैंने अपने घर से लाई दोनों छोटे छोटे पेकेट जेब से निकाल कर उसके सामने रख दिए , वो उसे उठाते हुए मुझे अपने साथ उपर आने को बोल उपर चला गया , उपर का मंजर और भी निराला था , जैसे कोई कबाड़ खाना हो , सभी सामान इधर उधर बिखरे पड़े थे , उसने वही से एक मखमली कपडे में लिपटी ट्रे निकाली और खुर्सी में खुद बैठ गया , मैं भी उसके सामने से एक खुर्सी लेकर बैठ चूका था , उसने उस ट्रे में मेरी लाइ पुडिया को खोलकर डाल दिया …
पेकेट में रखे सारे हीरे उसके सामने जगमगाने लगे थे , उसकी आँखों में चमक आ गई , उसने एक हिरा उठा कर देखा ..
“खालिस जैसा की आप हमेशा लाते है “
उसने मुस्कुराते हुए कहा
मैंने मौन हामी भर दी
“कितने चाहिए ..??”
उसने दूसरा सवाल किया
“10 उसी पते पर भिजवा दो जिसमे हर महीने रूपये भिजवाते हो , और 5 मुझे कैस चाहिए “
सेठ के होठो में मुस्कान आ गई
“बिलकुल कल तक पैसा पहुच जायेगा और कैस अभी ले जाना .. लेकिन कुछ 25 और बच जायेगा “
“कोई नहीं वो रखो जब जरुरत होगी ले लूँगा “
सेठ ने हामी भर दी
मैंने उसे लगभग 35 करोड़ के हीरे दिए थे मेरा 5 करोड़ उसके पास पहले से जमा था जिसे वो थोडा थोडा करके हर महीने मेरे घर सालो से पंहुचा रहा था , वो 20% के कमीशन में काम करता था लेकिन आदमी बिलकुल भरोसे वाला, मैं देव बनने के बाद से ही उसके बारे में भूल चूका था ,गैरी की दवाई ने मुझे अब फिर से पूरी तरह से आकृत बना दिया था , वो सभी राज मुझे याद आ चुके थे जो मैं हुआ करता था , मैंने अपने भविष्य के लिए बहुत कुछ काम करके रखा था जो अब मुझे याद आ गए थे ..
मेरी माँ के लिए वासिम को अपनी हवेली बेचनी पड़ी थी जबकि मेरे पास इतना पैसा था की मैं आराम से उनका इलाज करवा सकता था , खैर ये मेरी नियति थी मेरे कर्म जिसका प्रकोप तो मुझे भुगतना ही था ..
सेठ उठकर उन कबाड़ो में कुछ ढूंढने लगा और एक पुरानी सी पेटी निकाली , पेटी से उसने 5 करोड़ निकाल कर मेरे सामने रख दिया था और मेरे हीरो को धूल से भरे एक दराज में डाल दिया ..
कोई अगर यंहा गलती से पहुच भी जाए तो यंहा की हालत देखकर वो अंदाजा भी नहीं लगा पायेगा की यंहा अरबो के हीरे और कैश ऐसे ही पड़े रहते है , दो हजार के नोटों की 250 गद्दिया उसने एक पोलीथिन में डालकर मुझे दे दी जैसे वो करोडो रूपये नहीं बल्कि राशन का सामान हो , एक साधारण से और पुराने से दिखने वाले थैली को उसने मेरी ओर बढ़ा दिया , कोई देखता तो सोचता की शायद कोई मजदुर सब्जिया लेकर जा रहा होगा ..
मैंने बिना कुछ कहे अपने पैसे उठाये और वंहा से निकल गया ..
ऑटो लेकर मैं फिर से एक चाल में पंहुचा जन्हा एक छोटी सी क्लिनिक थी , सालो से ये क्लिनिक वही पर थी और उसकी हालत भी अंग्रेज ज़माने के दवाखानो सी ही थी , बाहर बोर्ड लगा हुआ था .. डॉ सुकाराम दुबे , 12 वी पास , बायोलॉजी ..
उसे देखकर मेरे होठो में मुस्कान आ गई , पुलिस और स्वस्थ विभाग वाले सुकाराम को कई बार चेता चुके थे की वो बिना किसी डॉ की डीग्री के प्रेक्टिस ना करे लेकिन वो था की सालो से यही टिका हुआ था , और गरीबो का तो जैसे मसीहा ही हो , सिर्फ 10 रूपये में इलाज वो भी दवाइयों के साथ, स्वस्य्थ महकमा भी इनसे परेशां हो चूका था , हर बार ही इसे कोई बड़ा पोलिटिशियन बचा लेता उन्हें भी कभी समझ नहीं आया की आखिर ये आदमी है क्या ..
खैर मैं अंदर आया तो लगभग 70 साल के सुकाराम भीड़ से घिरा हुआ था , मुझे देखते ही वो रुक गया ..
“तर्पण भेदन करवाना है डॉ साहब “
मैंने उसे देखते ही कहा , उसके चहरे में अजीब से भाव उभरे उसने हामी में सर हिलाया ,और वंहा बैठे अपने एक असिस्टेंट को बुला लिया ..
“तू देख मैं इनके साथ आ रहा हु “
वो मुझे अपने साथ उस जर्जर बिल्डिंग के उपर वाले माले पर ले गए
“आई डी ..??”
“1121…?”
उन्होंने मुझे घुर कर देखा
मैंने अपना पूरा चहरा उनके सामने खोल दिया था
“तुम्हे क्या हो गया , भुने हुए मुर्गे लग रहे हो “
उन्होंने अपने चश्मे को ठीक करते हुए कहा
“मत पूछो बड़ी लम्बी कहानी है ..”
“माल ..??”
“कितना लगेगा ..??”
“देखो ऐसे तो पूरी तरह प्लास्टिक सर्जरी करनी पड़ेगी , तुम्हे कितना करवाना है ??”
“इतना की आराम से घूम सकू , “
“हम्म्म पुराना चहरा तो गया तुम्हारा , लगता है किसी दुसरे का चहरा भी लगाये थे अपने उपर , उसी के वजह से ये हाल हुआ है , उपर के चहरे को जलाकर निकाला गया है , किसने किया ये ..”
“गैरी ..”
गैरी का नाम सुनकर वो उछल गया
“साला अब भी जिन्दा है … कमाल हो गया मुझे तो लगा था मर गया होगा “
मैं हँस पड़ा
“मैंने भी नहीं सोचा था की आप भी जिन्दा होगे “
मेरे मजाक से वो भी हँस पड़ा
“हम लोग ब्लैक कोबरा के डॉ है ऐसे थोड़ी ना मर जायेंगे , ठीक है 2 करोड़ कैश “
मैंने अपने झोले से 2 करोड़ निकाल कर उनके हाथो में रख दिया उन्होंने उसे वही खड़े खड़े उन पैसो को साइड में फेक दिया और अपने जेब से पेन निकाल कर एक पता लिखकर मुझे दिया ..
“कल आ जाओ यंहा पर , सुबह 5 बजे काम हो जाएगा “
“आप करोगे ???”
मेरे सवाल पर वो थोडा हँसा
“अरे नहीं नए लड़के आये है वो कर देंगे , लेकिन उन सालो में हमारे जैसा दम नहीं है , हम बिना किसी खास मशीन के ये सब कर देते है अब उन्हें करोडो की मशीने लगती है “
मैंने एक बार उसे देखा
“बिना मशीनों के आप ये करते हो “
मैंने अपने चहरे की ओर दिखाया , वो हँस पड़ा
“गैरी ने जंगल में इतना कर दिया वो क्या कम है … कल सुबह “
इतना बोलकर वो रुक्सत हो गया साथ ही मैं भी ……
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मैंने अपना बेसिक काम कर लिया था , यंहा कमरे में आने पर मैं सामने का नजारा देखकर हँस पड़ा , आर्या आराम से कुर्सी में बैठी हुई थी और वांग उसके पैर दबा रहा था …
आर्या ने एक छोटी सी स्कर्ट पहन रखी थी जो उसने जिद करके ली थी और अंदर कुछ भी नहीं , उसके पैर वांग के कंधे में थे , वो आराम से आँखे बंद कर लेटी हुई थी वही वांग की नजर स्कर्ट में से झांकते हुए उसके दोनों जांघो के बीच की जगह पर थी , आर्या की कोमल गुलाबी पंखुड़िया उसे साफ साफ दिखाई दे रही थी जिसे वो ललचाई निगाहों से देख रहा था ,
अब आर्या ने ये अनजाने में किया था या जानबूझ कर ये मुझे पता नहीं लेकिन आज वांग की किस्मत जैसे खुल गई हो ..
मेरी आहट पाकर दोनों ही थोड़े हडबडा गए
“बहुत दर्शन करवा रही हो अपने आशिक को “
मैंने आर्या को थोडा ताना मारा
“क्यों नहीं यही तो मेरा सच्चा आशिक है , आपको तो मेरी कुछ भी नहीं पड़ी , “
“ओह तो सिर्फ दिखा को रही हो दे भी दो बेचारे को “
आर्या ने गुस्से से मेरी ओर देखा और फिर वांग की ओर , आर्या ने बड़े प्यार से वांग के चहरे में हाथ सहलाया और उसकी भाषा में बोली
“बहुत इतजार किया है तुमने मेरा तुम्हे इसका फल जरुर मिलेगा “
वांग की आँखों में चमक आ गयी थी , वो ख़ुशी में भरा हुआ मेरी ओर देखने लगा , उसका बलिष्ट देह भी उसकी मासूमियत को नहीं छिपा पता है , उसे देखकर मैं हँसने लगा ..
“चलो अब सो जाओ कल बड़ा दिन है , और मुझे बहुत काम है “
दोनों ने अपने सर हां में हिला दिए ….