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Adultery कामुक हसीना

Prasant_xlover

कामुक हसीना
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दोस्तों कहानी को आगे भड़ाने में तभी मज़ा आएगा की आप लोगो के लाइक्स और कमेंट का प्यार मिले... कहानी में कुछ गलतिया हो तो कमेंट करके ज़रुर बताये
 
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Is update se malum hota hai vidya sagar ka lakshya kuch aur hai...awesome lines

यह सुन विद्या अठास करते हुए हसने लगा…और कहा देखते है कौन सी नियती कौनसा खेल खेलती है… (यह कहते वक्त उसके आँखों में एक जीत नज़र आ रही थी)

ऐसा क्या बोल रहा था जो खुद नियती(समय) और खुद की नियती(लड़की) नही समझ पा रही थी…
 
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दोस्तों कहानी को आगे भड़ाने में तभी मज़ा आएगा की आप लोगो के लाइक्स और कमेंट का प्यार मिले... कहानी में कुछ गलतिया हो तो कमेंट करके ज़रुर बताये
Bhai aap kahani ko kahani ke tarah aagey bhadaaye... Abhi tak bahut hi umda updates hai...

Kahani ko padkar lagta hai ki aap readers ke mind mein vidya sagar ka khoobi aur bakhoobi dono batana chahte honge....

Waise updates are 👍awsome
 
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कामुक हसीना
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अगला अपडेट....

वो देख जोर से चिल्लायी “बाबा…….”



नियती के पिताजी की हत्या हो चुकी थी, सब लोग आतंकित थे की कौन एक सीधे साधे मास्टर साहब को मार देगा वो भी इतनी बेरहमी से।

पूरे बनारस में बात आग की तरह फैल गयी, सब लोग चोंक रहे थे की कोई क्यों इन्हे मारेगा। बात फैलते फैलते विद्या सागर के घर भी पहुँच गई… विद्यासागर के पिता हड्भडकर घाट की तरफ जाने लगे की तभी उन्होंने अपने बेटे से कहा…

“तु भी चल, आखरी बार तु भी उनके दर्शन करले… पता नही किस पापी ने उनकी हत्या कर दी है?”

विद्या—“देखना क्या है… जो भी इस धरती पर आया है सबको एक ना एक दिन मरना ही है। चलो एक और इंसान के श्राद्ध मैं खीर पूरी खाने को मिल जायेगी।

इतना सुन उन्हे क्रोध आ गया और कहने लगे….

पिता—“यह कैसी मूर्खता वाली बाते कर रहे हो?”

तुम्हे पता है ना वो तुम्हारे गुरु है। अगर तुम उनकी इज्जत नही करते तो ना करो कम से कम मृत्यु के समय उनके परिवार के साथ खड़े रहो।

मुझे शर्म आती है की तुम जैसा राक्षस मेरे घर में पैदा हुआ है। अब चलता है या उठाऊँ चप्पल?

विद्या—चुपचाप पिता के साथ चल देता है।

कुछ ही देर मैं दोनों घाट पर पहुँच जाते हैं… वहाँ का नजारा देख कर तो विद्या के पिता के हाथ पाँव ही फूल गए और ना चाहकर भी उनका गला भर आया। और इधर विद्यासागर की आँखे नियती को ढूँढने लगी।

कुछ ही देर में उसे नियती दिखाई दी… वो बरगद के पेड़ के पास बैठ कर बुरी तरह से रोये जा रही थी…

विद्या की हिम्मत नही हुई की उसके सामने जाये, वो bas वही खड़े होकर तमाशा देख रहा था। कुछ देर बाद पुलिस आयी और नियती के पिता की लाश पेड़ से उतारकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

सब जगह एक खौफ का माहोल था। किसी को यह अंदाज़ा नही था की बनारस के पवित्र घाट पे भी किसी की हत्या हो सकती है। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है…

कुछ दिन इसी की चर्चा रही और फिर लोग अपने अपने काम में व्यस्त होने लगे… इधर पुलिस ने बहुत छानबीन करी लेकिन कोई nispaksh समाधान नही मिला। कुछ ही दिनो में मामला ठंडा पड़ गया। और पुलिस अपने दुसरे काम में व्यस्त हो गयी और वो मर्डर case अनसुलझा ही रह गया….

इस बात को आज 2 महीने हो चुके थे, लेकिन विद्यासागर और नियती की मुलाकात नही हुई थी। नियती एक बार तो विद्या से मिलना चाहती थी, लेकिन कोइ मौका नही मिल रहा था।

अगले दिन नियती के घर पर किसी की दस्तक हुई। नियती ने दरवाज़ा खोला तो सामने विद्यासागर था… विद्या ने उसको देखते ही कहा मुझे पिताजी ने भेजा है आज घाट पर आपके पिताजी के आत्म की शांति के लिए पूजा करना है…

नियती उसकी बेखौफ बाते सुनकर थोड़ा अचम्भा तो हुआ… लेकिन फिर भी उसने उसे कुछ नही कहा और अपनी माँ को आवाज़ लगाई… कुछ ही देर में उसकी माँ आ गयी….

नियती की माँ को देखते ही विद्या ने नमस्कार किया और अपनी आने की वजह बताई…

“अच्छा बेटा लेकिन में तो घाट पे जा नही सकती, तुम ऐसा करो नियती को साथ ले जाओ” माँ ने रोती आवाज़ में कहा…

“जी जैसी आपकी मर्ज़ी” विद्या ने हा में सर हिलाया

दोनों मणिकरणीका घाट पर शिव जी के मंदिर मैं पूजा सम्पन्न करा रहे थे… पूजा समपत् होने के बाद पंडित ने कहा अब यह फल और फूल गंगा नदी में चडा देना और उनकी आत्मा की शांति की मनोकामना मांग लेना…

दोनों नदी के पास जाकर आखरी पूजा सम्पन्न की और वहाँ खड़े होकर नियती ने गंगा जल हाथ में लेते हुए विद्या से पूछा…. ..

नियती—क्यों मारा मेरे पिताजी को?

विद्या—(उसकी तरफ ना देखते हुए कहा) वो मेरे और तुम्हारे जिंदगी के बीच खड़े थे… किसी न किसी को हटना ही था…

भगवान की कृपा से तुम्हारे पिताजी हट गए अब वो कभी हमारे रास्ते मैं नही आ सकते…

नियती—(रोते हुए) तुम ऐसे कैसे कर सकते हो?

मैंने तुमसे प्यार किया था… सच्चा प्यार और तुमने इस प्यार की बुनियाद मेरे पिता की हत्या से रखी है… तुम इंसान हो या हैवान?

विद्या—उस दिन तुमने ही कहा था की में कुछ भी कर सकती हूँ

नियती—हाँ हाँ कहा था, मैं तुम्हारे साथ जिंदगी बिताना चाहती थी… लेकिन अपने बाप के हत्या के कातिल के साथ नही…

विद्या—मैंने उस दिन तुम्हे स्पष्ट रूप से कह दिया था की “समय आने पर धीरता से काम लेना होगा अपनी बुद्धि का प्रायोग करना होगा”

नियती—मैंने ऐसा ही किया है… उस दिन से मैंने अपनी बुद्धि का प्रायोग किया है तभी तो पुलिस तुम्हारे घर तक नही पहुँच पायी… में चाहती तो तुम्हे कब की हत्या के आरोप में जेल करवा सकती थी… लेकिन मुझे पता नही की में क्यों ऐसे नही कर पायी…

शायद मैं तुमसे अब भी प्यार करती हूँ…लेकिन यह कैसा प्यार है.. कैसा प्रेम है… कैसी चाहत है?

जो अपने बाप की बलि देने को भी त्यार हो गयी… मुझे इस प्यार से घृणा हो गयी है विद्या… जो इतनी छोटी उम्र में इतना भयनाक काम करवा दिया…

क्या मेरा प्रेम इतना कमजोर है जो अपनो के प्रति ना होकर एक पराये मर्द के लिए है?

विद्या—(नियती को देखते हुए कहता है)

प्रेम या प्यार यह एक समाजीक शब्द है… समाज ने प्रेम की एक मन घड़ंत कहानी बनाई है जैसे की… .

प्यार या प्रेम एक एहसास है। जो दिमाग से नहीं दिल से होता है प्यार अनेक भावनाओं जिनमें अलग अलग विचारो का समावेश होता है!,प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे धीरे अग्रसर करता है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है। ... यह प्यार एक दूसरे से जुड़े होने के लिए कुछ भी करा सकता है…

मैंने भी यही किया है…प्रेम हम लोगो की ताकत होनी चाहिए कमजोरी नही… में तुमसे प्रेम करता हूँ और तुम्हे पाने के लिए में खुद भगवान से भी भिड जाऊंगा…

इस वक्त मुझे अपने प्यार से अलग नही होना था…में नही चाहता था की मेरी नियती किसी और की होके रह जाये…

विद्या की बाते सुन नियती मन ही मन खुश होती है… अपने आपको इस दुनिया की भाग्शाली समझने लगती है… फिर भी उसने अपने मन को नियत्रन करके पूछा…

नियती—ऐसी क्या ताकत होती है प्रेम मैं?

विद्या—प्रेम मैं वो ताकत है जिसके बल पर हम एक दूसरे की मदत हमेशा के लिए करते रहेंगे…

जैसे आज मैंने तुम्हारी की है… तुम्हें खोने के डर से मैंने कठोर कदम उठाया… अगर कल मुझपे कोई दिक्कत आये तो तुम्हे भी कोई न कोई कठोर कदम उठाना पड़ेगा… .

नियती—(आत्मविश्वास से) में तुम्हारे साथ हमेशा रहूँगी…मरते दम तक तुम्हारा साथ नही छोड़ऊँगी….. और…

विद्या बीच में बोल पड़ा…

नियती मुझे लगता है हमे यहाँ से अभी निकलना है… लगता है कोई हमारी बाते सुन रहा है… अब हम लोग स्कूल के पीछे ही मिला करेंगे

इतना कहकर विद्या नियती को साथ लेकर घर की तरफ चलने लगता है… ..

कौन था जो इन दोनों की बाते सुन रहा था? ऐसा क्या देख लिया था विद्या ने? ये देखीये अगले अपडेट मैं… .
 

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