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अगली सुबह काफी जल्दी उठ गया, और उठ कर बिस्तर से बाहर निकलते ही कड़ाके की ठंडक का एहसास हुआ।
सवेरे का कोई चार साढ़े-चार का समय हुआ था - सूर्योदय अभी भी कोसों दूर था। दरअसल इस बार पूरा प्रदेश भीषण ठंड की चपेट में जल्दी ही आ गया था। गढ़वाल हिमालय में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे स्थानों पर बर्फबारी भी आरम्भ हो गई थी। हमारे जाने के बाद, और आने के पहले देहरादून और अन्य निचले इलाकों में रुक-रुक कर बारिश होती रही, जिससे ठिठुरन बढ़ गई थी। खैर, उम्मीद थी की इस कारण से सड़क पर यातायात कुछ कम रहेगा। और हुआ भी वैसा ही। मैंने सवेरे फ्रेश हो कर चाय नाश्ता किया, उस बीच संध्या को जरूरी निर्देश दिए (यही की अपना ठीक से ख़याल रखे, पढाई में मन लगाए..), उसको कुछ रुपए थमाये - जिससे वह अपना, नीलम और घर का, और यात्रा के अन्य खर्चों का वहां कर सके। उसके पास कोई बैंक अकाउंट अभी तक नहीं था, इसलिए यही एकमात्र साधन था। खैर, नाश्ते के बाद सभी से विदा ली – नीलम को प्यार से गले लगाया, और संध्या को उसके होंठों पर चूमा। सबके सामने ऐसे खुलेपन से प्रेम प्रदर्शित करने से वहां सभी लोग शरमा गए। और फिर माँ-पापा से आशीर्वाद लिया, और वापसी की यात्रा शुरू की।
मैंने देखा की सड़क पर लोगों की आवाजाही काफी कम थी, ठंडक का प्रकोप साफ़ दिख रहा था। एक तो सवेरा था, और ठंडक भी ... इसके कारण ज्यादातर लोग अपने घरों में ही दुबके हुए थे। खैर, मैंने कुछ देर तक गाडी चलाई – नींद का और ठंडक का असर अभी भी था – इसलिए बहुत आलस्य लग रहा था। कोई चालीस मिनट ड्राइव करने के बाद मैंने गाड़ी रोक दी - रास्ते में ही एक ढाबे टाइप रेस्त्राँ था, अतः वहीँ पर रुक कर गरमागरम चाय और बिस्किट का सेवन करने का सोचा। शरीर में गर्मी आई – कुछ भी हो... ठंड में गर्म चाय का आनंद ही कुछ और होता है!
यह ढाबा किसी ने अपने खेत के ज़मीन पर ही बनाया हुआ था – इसके पीछे खुला हुआ खेत था, जिसमें सारस का एक जोड़ा एक अंत्यंत आकर्षक प्रणय नृत्य में मग्न था। सारस पक्षियों का प्रणय नृत्य अत्यंत मनोहारी और सुपरिष्कृत होता है। कभी इनको ध्यान से देखना – कई सारे सारस पक्षी किसी जलाशय में उतरकर अलग अलग जोड़ों में बंट जाते हैं और अपने मनमोहक नृत्यों से अपनी प्रेमिकाओं का मन जीत लेते हैं। देखा गया है की सारस नर और मादा, एक दूसरे के प्रति पूरी तरह से समर्पित होते हैं - एक बार जोड़ा बनाने के बाद ये जीवन भर साथ रहते हैं, और यदि उनमे से एक साथी की मृत्यु हो जाए, तो दूसरा अकेले ही रहता है। इसी कारण से सारस पक्षी को देखना बहुत शुभ माना जाता है, ख़ास तौर से विवाहित जोड़ो के लिए।
पक्षियों का नृत्य जैसे मेरे देखने के लिए ही हो रहा था – कोई एक मिनट के बाद वे वापस खेत में खाने पीने में लग गए। इस नृत्य ने जहाँ मेरे मन को मोह लिया, वही मेरे ह्रदय में एक अजीब सा खालीपन भी छोड़ गया... मेरा तो सब कुछ पीछे ही छूट गया था न! इतनी उम्र हो आई, लेकिन संध्या से पहले किसी भी व्यक्ति के संग की आवश्यकता मैंने कभी महसूस नहीं करी।
मैंने फ़ोन उठाया और एक sms लिखा :
“Missing you already. Your voice, your touch, your smell, your warmth! How will I spend these days without you?”
और संध्या को भेज दिया।
चाय ख़तम किया और गाड़ी स्टार्ट ही करने वाला था की मेरे फ़ोन पर एक sms आया :
“Dear husband.. my handsome husband! I also can’t wait to see you again.”
मैं मुस्कुराया – आगे की यात्रा के लिए मुझे भावनात्मक ऊर्जा मिल गई थी।
गाड़ी यात्रा का पहला पड़ाव देहरादून था – वहां मैंने गाडी वापस सौंपी, और एक जगह खाने के लिए रुका। वही जगह, जहाँ संध्या और मैंने साथ में पहले भी लंच किया था।
खाना खाते खाते मुझे संध्या का एक और sms आया :
“Can’t wait to kiss you when we see each other. Love you.”
‘किस नहीं, इतने दिनों के इंतज़ार के बाद मैं सिर्फ एक काम ही करूंगा!’ मैंने निराश होते हुए सोचा।
देहरादून एअरपोर्ट से बैंगलोर तक का सफ़र... समय मानों हवा में उड़ गया। कुछ याद नहीं। हाँ, जैसे ही बैंगलोर पहुंचा, मैंने तुरंत ही संध्या को फ़ोन लगाया और देर तक प्यार मोहब्बत की बातें करीं। जब घर पहुंचा तो सन्नाटा बिखरा हुआ था – यही सन्नाटा पहले मेरा साथी था, लेकिन आज एकदम अजनबी जैसा लग रहा था। कायाकल्प! पुनर्जीवन, जो मुझे संध्या के मेरे जीवन में आने से मिला है, वह एक अनुपम धरोहर है। और, संध्या भगवन के द्वारा भेजा हुआ उपहार है मेरे लिए। बिलकुल!!
मैंने कंप्यूटर ऑन किया, और संध्या की सबसे बेहतरीन नग्न तस्वीर ढूंढ कर उसका A4 साइज़ का प्रिंट लिया और हमारे बेडरूम की दीवार पर (ऐसे की लेटे हुए, या सो कर जागने पर बस सामने उसी तस्वीर पर नज़र पड़े) लगा दिया। रात में खाना खा कर संध्या को फ़ोन पर मैंने बहुत देर तक प्यार किया और फिर सोने से पहले एक और sms किया :
“I can almost feel you here. Kissing me. Touching me. Come in my dreams tonight.. naked!”
सवेरे देर तक सोया और जब उठा तो देखा की एक और संदेशा आया है :
“Honey! Getting ready for school. In my dream last night, we were sleeping together. We were naked and your skin was hot. I never wanted to wake up.”
बस, हमारे बिछोह भरे दिन और रातें ऐसे ही बीतने लगे – फ़ोन पर बातें (ज्यादातर रोमांटिक और सेक्सी बातें), कभी sms, तो कभी कभार पत्र-लेखन भी! मेरे वो पाठकगण जिनको इस प्रकार के बिछोह का अनुभव होगा वो मेरी इस बात से सहमत होंगे की जब एक बार साथी की आदत लग जाय, तो अकेले रहना अत्यंत मुश्किल हो जाता है! वो कहते हैं न, दिन तो कट जाता है... लेकिन रात कभी ढलती ही नहीं! दिन कैसे न कट जाय? सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ दौड़ भाग! लेकिन संध्या ने रोज़ रोज़ सम्भोग की आदत लगवा दी... अब ऐसे में रातें गुजरें तो कैसे गुजरें?
ज्यादातर पुरुष जब विरह के कष्ट में विलाप करते हैं तो उस विलाप में सिर्फ प्रेम वाली भावना होती है। प्रेम शारीरिक हो या आत्मिक – उसकी चर्चा नहीं है यहाँ। बस यह की प्रेम के कारण ही दुःख हो रहा होगा। पुरुष सिर्फ अपनी पत्नी या प्रेमिका के विरह में व्याकुल होता है। मैं भी व्याकुल था। संध्या की बातें, उसका हँसना, उसका स्पर्श, उसका शरीर, उसके शरीर की गर्माहट, उसके शरीर के कोने कोने की बनावट–नमी–और–गर्मी! यह सब बातें बस रह रह कर याद आतीं और बहुत सतातीं। और फिर दीवार पर लगा उसका चित्र! उसे देखकर हमारे पहले संसर्ग की यादें ताज़ा हो जातीं! मेरा अपने ही लिंग पर कोई काबू न रह पाता! ऐसे में हस्तमैथुन के सिवा कोई और चारा ही न बचता!
दोस्तों, हस्तमैथुन के बारे में न जाने कैसी कैसी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं! सच तो यह है की यह एक अत्यंत प्राकृतिक क्रिया है। जब यौनपरक इच्छाएँ किसी व्यक्ति में उत्तेजना जगाती हैं, तो उनसे निवृत्त होने के लिए किए गए स्वकृत्य को ही हस्तमैथुन कहा जाता है। अर्थात कोई स्त्री या पुरूष, जब कामोन्माद की चरमसीमा का तीव्र आनन्द पाने के लिए खुद ही अपनी जननेन्द्रियों से छेड़छाड़ करता है तो उसे हस्त-मैथुन कहते हैं। हस्तमैथुन बेहद प्राकृतिक और स्वभाविक प्रक्रिया है। कुछ लोग इसको बीमारी बताते हैं, और कहते है की कमजोरी आ गई! कैसे मूर्ख लोग हैं! सच तो यह है की यह बहुत सुरक्षित, और सम्मानजनक तरीका है यौन-संतुष्टि पाने का। खुद ही सोचिये! अगर हर कोई (जिसमे अविवाहित लोग भी शामिल हैं), यौन निवृत्ति के लिए वेश्यागमन करे, या अतिशय साधन के रूप में किसी लड़की से बलात्कार करे, तो क्या यह सही बात होगी? जरा सोचिये, अपने घर के सुरक्षित एकांत में बैठ कर, किसी भी प्रकार के उन्मादक विचारों और फंतासी के साथ जब आप संतुष्ट हो सकते हैं, तो उसमें भला क्या बुराई हो सकती है?
खैर, मैं तो भई जब देखो तब, अनायास ही, मैं अपना लिंग बाहर निकाल लेता, और मन ही मन संध्या के रूप को याद करते करते हस्तमैथुन करने लगता। हमारे पुनः मिलन की बेला बहुत दूर तो नहीं थी, लेकिन इस बीच कम से कम दो सप्ताह तक मैंने हस्तमैथुन कर के ही काम चलाया। लेकिन जिस पुरुष को संध्या जैसी साक्षात् रति की प्रतिरूप पत्नी मिली हो, उसका मन हस्तमैथुन से कैसे भरे? तो अब मेरे पास क्या चारा था – सिवाय संध्या के वापस आने के?
सवेरे का कोई चार साढ़े-चार का समय हुआ था - सूर्योदय अभी भी कोसों दूर था। दरअसल इस बार पूरा प्रदेश भीषण ठंड की चपेट में जल्दी ही आ गया था। गढ़वाल हिमालय में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे स्थानों पर बर्फबारी भी आरम्भ हो गई थी। हमारे जाने के बाद, और आने के पहले देहरादून और अन्य निचले इलाकों में रुक-रुक कर बारिश होती रही, जिससे ठिठुरन बढ़ गई थी। खैर, उम्मीद थी की इस कारण से सड़क पर यातायात कुछ कम रहेगा। और हुआ भी वैसा ही। मैंने सवेरे फ्रेश हो कर चाय नाश्ता किया, उस बीच संध्या को जरूरी निर्देश दिए (यही की अपना ठीक से ख़याल रखे, पढाई में मन लगाए..), उसको कुछ रुपए थमाये - जिससे वह अपना, नीलम और घर का, और यात्रा के अन्य खर्चों का वहां कर सके। उसके पास कोई बैंक अकाउंट अभी तक नहीं था, इसलिए यही एकमात्र साधन था। खैर, नाश्ते के बाद सभी से विदा ली – नीलम को प्यार से गले लगाया, और संध्या को उसके होंठों पर चूमा। सबके सामने ऐसे खुलेपन से प्रेम प्रदर्शित करने से वहां सभी लोग शरमा गए। और फिर माँ-पापा से आशीर्वाद लिया, और वापसी की यात्रा शुरू की।
मैंने देखा की सड़क पर लोगों की आवाजाही काफी कम थी, ठंडक का प्रकोप साफ़ दिख रहा था। एक तो सवेरा था, और ठंडक भी ... इसके कारण ज्यादातर लोग अपने घरों में ही दुबके हुए थे। खैर, मैंने कुछ देर तक गाडी चलाई – नींद का और ठंडक का असर अभी भी था – इसलिए बहुत आलस्य लग रहा था। कोई चालीस मिनट ड्राइव करने के बाद मैंने गाड़ी रोक दी - रास्ते में ही एक ढाबे टाइप रेस्त्राँ था, अतः वहीँ पर रुक कर गरमागरम चाय और बिस्किट का सेवन करने का सोचा। शरीर में गर्मी आई – कुछ भी हो... ठंड में गर्म चाय का आनंद ही कुछ और होता है!
यह ढाबा किसी ने अपने खेत के ज़मीन पर ही बनाया हुआ था – इसके पीछे खुला हुआ खेत था, जिसमें सारस का एक जोड़ा एक अंत्यंत आकर्षक प्रणय नृत्य में मग्न था। सारस पक्षियों का प्रणय नृत्य अत्यंत मनोहारी और सुपरिष्कृत होता है। कभी इनको ध्यान से देखना – कई सारे सारस पक्षी किसी जलाशय में उतरकर अलग अलग जोड़ों में बंट जाते हैं और अपने मनमोहक नृत्यों से अपनी प्रेमिकाओं का मन जीत लेते हैं। देखा गया है की सारस नर और मादा, एक दूसरे के प्रति पूरी तरह से समर्पित होते हैं - एक बार जोड़ा बनाने के बाद ये जीवन भर साथ रहते हैं, और यदि उनमे से एक साथी की मृत्यु हो जाए, तो दूसरा अकेले ही रहता है। इसी कारण से सारस पक्षी को देखना बहुत शुभ माना जाता है, ख़ास तौर से विवाहित जोड़ो के लिए।
पक्षियों का नृत्य जैसे मेरे देखने के लिए ही हो रहा था – कोई एक मिनट के बाद वे वापस खेत में खाने पीने में लग गए। इस नृत्य ने जहाँ मेरे मन को मोह लिया, वही मेरे ह्रदय में एक अजीब सा खालीपन भी छोड़ गया... मेरा तो सब कुछ पीछे ही छूट गया था न! इतनी उम्र हो आई, लेकिन संध्या से पहले किसी भी व्यक्ति के संग की आवश्यकता मैंने कभी महसूस नहीं करी।
मैंने फ़ोन उठाया और एक sms लिखा :
“Missing you already. Your voice, your touch, your smell, your warmth! How will I spend these days without you?”
और संध्या को भेज दिया।
चाय ख़तम किया और गाड़ी स्टार्ट ही करने वाला था की मेरे फ़ोन पर एक sms आया :
“Dear husband.. my handsome husband! I also can’t wait to see you again.”
मैं मुस्कुराया – आगे की यात्रा के लिए मुझे भावनात्मक ऊर्जा मिल गई थी।
गाड़ी यात्रा का पहला पड़ाव देहरादून था – वहां मैंने गाडी वापस सौंपी, और एक जगह खाने के लिए रुका। वही जगह, जहाँ संध्या और मैंने साथ में पहले भी लंच किया था।
खाना खाते खाते मुझे संध्या का एक और sms आया :
“Can’t wait to kiss you when we see each other. Love you.”
‘किस नहीं, इतने दिनों के इंतज़ार के बाद मैं सिर्फ एक काम ही करूंगा!’ मैंने निराश होते हुए सोचा।
देहरादून एअरपोर्ट से बैंगलोर तक का सफ़र... समय मानों हवा में उड़ गया। कुछ याद नहीं। हाँ, जैसे ही बैंगलोर पहुंचा, मैंने तुरंत ही संध्या को फ़ोन लगाया और देर तक प्यार मोहब्बत की बातें करीं। जब घर पहुंचा तो सन्नाटा बिखरा हुआ था – यही सन्नाटा पहले मेरा साथी था, लेकिन आज एकदम अजनबी जैसा लग रहा था। कायाकल्प! पुनर्जीवन, जो मुझे संध्या के मेरे जीवन में आने से मिला है, वह एक अनुपम धरोहर है। और, संध्या भगवन के द्वारा भेजा हुआ उपहार है मेरे लिए। बिलकुल!!
मैंने कंप्यूटर ऑन किया, और संध्या की सबसे बेहतरीन नग्न तस्वीर ढूंढ कर उसका A4 साइज़ का प्रिंट लिया और हमारे बेडरूम की दीवार पर (ऐसे की लेटे हुए, या सो कर जागने पर बस सामने उसी तस्वीर पर नज़र पड़े) लगा दिया। रात में खाना खा कर संध्या को फ़ोन पर मैंने बहुत देर तक प्यार किया और फिर सोने से पहले एक और sms किया :
“I can almost feel you here. Kissing me. Touching me. Come in my dreams tonight.. naked!”
सवेरे देर तक सोया और जब उठा तो देखा की एक और संदेशा आया है :
“Honey! Getting ready for school. In my dream last night, we were sleeping together. We were naked and your skin was hot. I never wanted to wake up.”
बस, हमारे बिछोह भरे दिन और रातें ऐसे ही बीतने लगे – फ़ोन पर बातें (ज्यादातर रोमांटिक और सेक्सी बातें), कभी sms, तो कभी कभार पत्र-लेखन भी! मेरे वो पाठकगण जिनको इस प्रकार के बिछोह का अनुभव होगा वो मेरी इस बात से सहमत होंगे की जब एक बार साथी की आदत लग जाय, तो अकेले रहना अत्यंत मुश्किल हो जाता है! वो कहते हैं न, दिन तो कट जाता है... लेकिन रात कभी ढलती ही नहीं! दिन कैसे न कट जाय? सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ दौड़ भाग! लेकिन संध्या ने रोज़ रोज़ सम्भोग की आदत लगवा दी... अब ऐसे में रातें गुजरें तो कैसे गुजरें?
ज्यादातर पुरुष जब विरह के कष्ट में विलाप करते हैं तो उस विलाप में सिर्फ प्रेम वाली भावना होती है। प्रेम शारीरिक हो या आत्मिक – उसकी चर्चा नहीं है यहाँ। बस यह की प्रेम के कारण ही दुःख हो रहा होगा। पुरुष सिर्फ अपनी पत्नी या प्रेमिका के विरह में व्याकुल होता है। मैं भी व्याकुल था। संध्या की बातें, उसका हँसना, उसका स्पर्श, उसका शरीर, उसके शरीर की गर्माहट, उसके शरीर के कोने कोने की बनावट–नमी–और–गर्मी! यह सब बातें बस रह रह कर याद आतीं और बहुत सतातीं। और फिर दीवार पर लगा उसका चित्र! उसे देखकर हमारे पहले संसर्ग की यादें ताज़ा हो जातीं! मेरा अपने ही लिंग पर कोई काबू न रह पाता! ऐसे में हस्तमैथुन के सिवा कोई और चारा ही न बचता!
दोस्तों, हस्तमैथुन के बारे में न जाने कैसी कैसी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं! सच तो यह है की यह एक अत्यंत प्राकृतिक क्रिया है। जब यौनपरक इच्छाएँ किसी व्यक्ति में उत्तेजना जगाती हैं, तो उनसे निवृत्त होने के लिए किए गए स्वकृत्य को ही हस्तमैथुन कहा जाता है। अर्थात कोई स्त्री या पुरूष, जब कामोन्माद की चरमसीमा का तीव्र आनन्द पाने के लिए खुद ही अपनी जननेन्द्रियों से छेड़छाड़ करता है तो उसे हस्त-मैथुन कहते हैं। हस्तमैथुन बेहद प्राकृतिक और स्वभाविक प्रक्रिया है। कुछ लोग इसको बीमारी बताते हैं, और कहते है की कमजोरी आ गई! कैसे मूर्ख लोग हैं! सच तो यह है की यह बहुत सुरक्षित, और सम्मानजनक तरीका है यौन-संतुष्टि पाने का। खुद ही सोचिये! अगर हर कोई (जिसमे अविवाहित लोग भी शामिल हैं), यौन निवृत्ति के लिए वेश्यागमन करे, या अतिशय साधन के रूप में किसी लड़की से बलात्कार करे, तो क्या यह सही बात होगी? जरा सोचिये, अपने घर के सुरक्षित एकांत में बैठ कर, किसी भी प्रकार के उन्मादक विचारों और फंतासी के साथ जब आप संतुष्ट हो सकते हैं, तो उसमें भला क्या बुराई हो सकती है?
खैर, मैं तो भई जब देखो तब, अनायास ही, मैं अपना लिंग बाहर निकाल लेता, और मन ही मन संध्या के रूप को याद करते करते हस्तमैथुन करने लगता। हमारे पुनः मिलन की बेला बहुत दूर तो नहीं थी, लेकिन इस बीच कम से कम दो सप्ताह तक मैंने हस्तमैथुन कर के ही काम चलाया। लेकिन जिस पुरुष को संध्या जैसी साक्षात् रति की प्रतिरूप पत्नी मिली हो, उसका मन हस्तमैथुन से कैसे भरे? तो अब मेरे पास क्या चारा था – सिवाय संध्या के वापस आने के?