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रूद्र मेरे सर के नीचे दूसरी सूखी तौलिया रख देते हैं, जिससे बिस्तर गीला न हो और फिर अपनी हथेली में ढेर सारी क्रीम लेकर मेरे स्तनों, हाथों और पेट पर धीरे धीरे रगड़ देते हैं। अगला राउंड मेरी जांघों और पैरों का था। फिर उन्होंने मेरी योनि को निशाना बनाया – क्रीम लगते ही हलकी सी चुनचुनाहट हुई। शायद शेविंग करने में कहीं कुछ कट गया होगा। मेरी सिसकियाँ निकल गई, लेकिन मैं उनको रोका नहीं।
उन्होंने तीन चार मिनट तक अपनी उँगलियों से मेरी योनि पर अच्छी तरह से क्रीम लगाया.. इतनी अच्छी तरह की मैं उसी बीच एक बार परम सुख भी पा गई। उन्होंने मुझे कुछ देर सुस्ताने दिया और फिर कहा,
“अभी पेट के बल लेट जाओ..”
मैं उनकी आज्ञापालन करते हुए पलट गई। उन्होंने पहले पीठ पर क्रीम लगाई और फिर पैर और जाँघों के पिछले हिस्से पर लगाई। माँ के बाद मुझे इतने अन्तरंग तरह से शायद ही किसी ने मालिश की हो... और मुझे वो तो याद भी नहीं! शरीर भर में सिहरन दौड़ गई। उसके बाद उन्होंने एक तकिया उठाकर मेरे जघन क्षेत्र के नीचे लगा दी। इससे यह हुआ की मेरे नितंब काफी उठ से गए।
‘क्या करने वाले हैं ये?’ मैंने सोचा।
“जानू, मेंढ़क के जैसे हो जाओ..”
मुझे समझ नहीं आया..., “मतलब? कैसे?”
रूद्र ने पीछे से ही मेरे पैर ऊपर की तरफ उठा दिए, इस प्रकार जैसे मेरे घुटने मेरे पेट के बराबर हो जाएँ, और हाथ को मेरे सर (मस्तक) के नीचे रख दिया। बहुत बेढब सी अवस्था थी... घुटने पेट के बराबर, पैर फैले हुए – मेरी योनि और ... गुदा दोनों ने खुल कर निर्लज्ज प्रदर्शनी लगा रखी थी इस समय।
“आप क्या करने वाले हो?” मैं बच्चे जैसे रिरियाई।
“श्श्श्हह्ह... कुछ देर शांत रहो.. अगर मज़ा न आए, तब कहना। ओके?”
मज़ा क्या आएगा? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। एक तो जिस तरह से रूद्र ने रोज़ रोज़ मेरे अंग-प्रत्यंग की जाँच करी है, और जिस तरह का परिचय उनका मेरे गुप्तांगों से है, वैसा तो मुझे भी नहीं है। उन पर विश्वास करने के अतिरिक्त मेरे पास कोई चारा नहीं था। उनके ही निर्देशों पर मैंने अपनी टाँगे और चौड़ी खोल दीं...
‘क्या देखना चाहते हैं ये? भला ‘वो’ भी कोई देखने की चीज़ है?!’
रूद्र इस समय मेरे नितम्बों पर क्रीम लगा रहे थे.. कभी हथेली से, तो कभी उंगली से। मुझे कुछ कुछ संशय हो रहा था, उनके इरादों पर। लेकिन फिर भी मैंने सोचा की साथ देती हूँ, जब तक हो पाता है तब तक! जल्दी ही उनकी क्रीम से भरी उंगली मेरी गुदा-द्वार पर फिरने लगी और फिर अन्दर जाने लगी। हर बार जैसे ही उंगली अन्दर आती, स्वप्रतिक्रिया में मेरी गुदा का द्वार बंद हो जाता।
‘मेरी गुदा को भी भंग करना चाहते हैं क्या?’ मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा।
“क्या करना चाहते हो?” मैंने याचना भरी आवाज़ में कहा, और साथ ही साथ पीछे की तरफ मुड़ी। उनका तना हुआ प्रबल लिंग इस तरह से उठा हुआ था की मानो मेरी गुदा को ही देख रहा हो।
“जानू, थोड़ा वेट तो करो!”
उन्होंने कुछ और क्रीम उंगली पर लेकर मेरी गुदा में प्रविष्ट कराया और देर तक भीतर ही चलाते रहे। कुछ देर में मुझे गुदा पर अभूतपूर्व फैलाव महसूस हुआ... तुरंत समझ में आ गया की इस बार उंगली नहीं, उनका लिंग अन्दर जाने की कोशिश कर रहा है!
“न न नहीं..! प्लीज! वहां पर नहीं! प्लीज! मैं मर जाऊंगी!”
“जानू! एक बार ट्राई तो करते हैं?”
“नहीं! आगे से आपका मन भर गया क्या, जो आप पीछे डालना चाहते हैं? प्लीज प्लीज! मैं आपकी हर बात मानूंगी, लेकिन ये नहीं! मैं मर जाऊंगी सच में! आप उंगली ही डाल रहे हैं और उसी में मेरी जान निकल रही है।“ मैं बुरी तरह गिड़गिड़ा रही थी। इनका जो भी प्लान था, मैं उसमे भाग नहीं लेना चाहती थी।
“अच्छा ठीक है... ठीक है! मैं कुछ नहीं करूंगा! भरोसा रखो। सॉरी! तुमको दर्द देकर मुझे कोई मज़ा थोड़े ही मिलेगा!” उन्होंने मेरे नितंब सहलाते हुए भरोसा दिलाया। लेकिन मन में डर बैठ गया...
इतना सब होते हुए भी मैंने जो मेंढकी वाला आसन लगाया था, वह अभी तक लगा हुआ था। रूद्र मेरे पीछे आकर मुझ्ह्से चिपक गए और पीछे से ही मेरे स्तनों को पकड़ कर भींचने लगे। साथ ही साथ वह अपने कमर को कुछ इस तरह से चक्कर में घुमा रहे थे जिससे उनके लिंग का अग्रिम भाग मेरी योनि और कभी कभी गुदा पर छू जाता। जैसे ही मेरी योनि को उनका लिंग छूता, मेरा मन होता की एक झटके से उनके लिंग को अन्दर ले लूं.. लेकिन स्त्रियोचित संकोच और लज्जा मुझे रोक लेती। इसी पूर्वानुमान में मेरी योनि से रस निकलने लगा।
उन्होंने बहुत देर तक मुझे ऐसे ही सताया... और इस पूरे घटनाक्रम में मैं सोच रही थी और उम्मीद लगाए बैठी थी की कभी तो इनका धैर्य छूटेगा, और कभी तो वो मेरे अन्दर प्रविष्ट होंगे। यही सब सोचते हुए मैंने इतने में ही एक बार और चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लिया।
‘क्या स्टैमिना है इनमें! लगता है एक जबरदस्त सम्भोग होने वाला है! एक तगड़ी चुदाई..!’ मन में कैसे कामुक विचार! अजीब सी मस्ती छाने लगी... इस समय मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, घुटनों में सम्हलने की ताकत ही नहीं बची थी.. इन्होने पीछे से मुझको थाम रखा था, इसलिए मैं अभी भी उसी अवस्था में टिकी थी.. नहीं तो अब तक गिर चुकी होती।
उनको मेरे चरमोत्कर्ष का पता अवश्य चला होगा, क्योंकि अब वो मेरी योनी को चाट रहे थे। उत्तेजना के वशीभूत होकर मैं अपने नितम्ब जोर जोर से हिलाने लगी। मेरी हालत बहुत बुरी थी। एकदम छंछा (निर्लज्ज औरत) जैसी हरकतें! इस समय रूद्र मेरी योनि के भगोष्ठों को खोलकर जीभ से अन्दर तक कुरेद और चाट रहे थे। न चाहते हुए भी मेरे गले से कामुक सिस्कारियां छूट गईं। उधर उन्होंने चूसना जारी रखा। कुछ ही देर में मैं दूसरी बार चरम आनंद को प्राप्त कर कांपने, और आहें भरने लगी। मेरे होशो-हवास सब गायब हो गए - उनका इस तरह चाटना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। इस बार रूद्र ने मुझे छोड़ दिया, तो मैं निढाल होकर बिस्तर पर गिर गई – इतनी भी ताकत नहीं बची की ठीक से लेट जाऊं.. बस उसी अवस्था में लेटी रही।
उन्होंने तीन चार मिनट तक अपनी उँगलियों से मेरी योनि पर अच्छी तरह से क्रीम लगाया.. इतनी अच्छी तरह की मैं उसी बीच एक बार परम सुख भी पा गई। उन्होंने मुझे कुछ देर सुस्ताने दिया और फिर कहा,
“अभी पेट के बल लेट जाओ..”
मैं उनकी आज्ञापालन करते हुए पलट गई। उन्होंने पहले पीठ पर क्रीम लगाई और फिर पैर और जाँघों के पिछले हिस्से पर लगाई। माँ के बाद मुझे इतने अन्तरंग तरह से शायद ही किसी ने मालिश की हो... और मुझे वो तो याद भी नहीं! शरीर भर में सिहरन दौड़ गई। उसके बाद उन्होंने एक तकिया उठाकर मेरे जघन क्षेत्र के नीचे लगा दी। इससे यह हुआ की मेरे नितंब काफी उठ से गए।
‘क्या करने वाले हैं ये?’ मैंने सोचा।
“जानू, मेंढ़क के जैसे हो जाओ..”
मुझे समझ नहीं आया..., “मतलब? कैसे?”
रूद्र ने पीछे से ही मेरे पैर ऊपर की तरफ उठा दिए, इस प्रकार जैसे मेरे घुटने मेरे पेट के बराबर हो जाएँ, और हाथ को मेरे सर (मस्तक) के नीचे रख दिया। बहुत बेढब सी अवस्था थी... घुटने पेट के बराबर, पैर फैले हुए – मेरी योनि और ... गुदा दोनों ने खुल कर निर्लज्ज प्रदर्शनी लगा रखी थी इस समय।
“आप क्या करने वाले हो?” मैं बच्चे जैसे रिरियाई।
“श्श्श्हह्ह... कुछ देर शांत रहो.. अगर मज़ा न आए, तब कहना। ओके?”
मज़ा क्या आएगा? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। एक तो जिस तरह से रूद्र ने रोज़ रोज़ मेरे अंग-प्रत्यंग की जाँच करी है, और जिस तरह का परिचय उनका मेरे गुप्तांगों से है, वैसा तो मुझे भी नहीं है। उन पर विश्वास करने के अतिरिक्त मेरे पास कोई चारा नहीं था। उनके ही निर्देशों पर मैंने अपनी टाँगे और चौड़ी खोल दीं...
‘क्या देखना चाहते हैं ये? भला ‘वो’ भी कोई देखने की चीज़ है?!’
रूद्र इस समय मेरे नितम्बों पर क्रीम लगा रहे थे.. कभी हथेली से, तो कभी उंगली से। मुझे कुछ कुछ संशय हो रहा था, उनके इरादों पर। लेकिन फिर भी मैंने सोचा की साथ देती हूँ, जब तक हो पाता है तब तक! जल्दी ही उनकी क्रीम से भरी उंगली मेरी गुदा-द्वार पर फिरने लगी और फिर अन्दर जाने लगी। हर बार जैसे ही उंगली अन्दर आती, स्वप्रतिक्रिया में मेरी गुदा का द्वार बंद हो जाता।
‘मेरी गुदा को भी भंग करना चाहते हैं क्या?’ मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा।
“क्या करना चाहते हो?” मैंने याचना भरी आवाज़ में कहा, और साथ ही साथ पीछे की तरफ मुड़ी। उनका तना हुआ प्रबल लिंग इस तरह से उठा हुआ था की मानो मेरी गुदा को ही देख रहा हो।
“जानू, थोड़ा वेट तो करो!”
उन्होंने कुछ और क्रीम उंगली पर लेकर मेरी गुदा में प्रविष्ट कराया और देर तक भीतर ही चलाते रहे। कुछ देर में मुझे गुदा पर अभूतपूर्व फैलाव महसूस हुआ... तुरंत समझ में आ गया की इस बार उंगली नहीं, उनका लिंग अन्दर जाने की कोशिश कर रहा है!
“न न नहीं..! प्लीज! वहां पर नहीं! प्लीज! मैं मर जाऊंगी!”
“जानू! एक बार ट्राई तो करते हैं?”
“नहीं! आगे से आपका मन भर गया क्या, जो आप पीछे डालना चाहते हैं? प्लीज प्लीज! मैं आपकी हर बात मानूंगी, लेकिन ये नहीं! मैं मर जाऊंगी सच में! आप उंगली ही डाल रहे हैं और उसी में मेरी जान निकल रही है।“ मैं बुरी तरह गिड़गिड़ा रही थी। इनका जो भी प्लान था, मैं उसमे भाग नहीं लेना चाहती थी।
“अच्छा ठीक है... ठीक है! मैं कुछ नहीं करूंगा! भरोसा रखो। सॉरी! तुमको दर्द देकर मुझे कोई मज़ा थोड़े ही मिलेगा!” उन्होंने मेरे नितंब सहलाते हुए भरोसा दिलाया। लेकिन मन में डर बैठ गया...
इतना सब होते हुए भी मैंने जो मेंढकी वाला आसन लगाया था, वह अभी तक लगा हुआ था। रूद्र मेरे पीछे आकर मुझ्ह्से चिपक गए और पीछे से ही मेरे स्तनों को पकड़ कर भींचने लगे। साथ ही साथ वह अपने कमर को कुछ इस तरह से चक्कर में घुमा रहे थे जिससे उनके लिंग का अग्रिम भाग मेरी योनि और कभी कभी गुदा पर छू जाता। जैसे ही मेरी योनि को उनका लिंग छूता, मेरा मन होता की एक झटके से उनके लिंग को अन्दर ले लूं.. लेकिन स्त्रियोचित संकोच और लज्जा मुझे रोक लेती। इसी पूर्वानुमान में मेरी योनि से रस निकलने लगा।
उन्होंने बहुत देर तक मुझे ऐसे ही सताया... और इस पूरे घटनाक्रम में मैं सोच रही थी और उम्मीद लगाए बैठी थी की कभी तो इनका धैर्य छूटेगा, और कभी तो वो मेरे अन्दर प्रविष्ट होंगे। यही सब सोचते हुए मैंने इतने में ही एक बार और चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लिया।
‘क्या स्टैमिना है इनमें! लगता है एक जबरदस्त सम्भोग होने वाला है! एक तगड़ी चुदाई..!’ मन में कैसे कामुक विचार! अजीब सी मस्ती छाने लगी... इस समय मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, घुटनों में सम्हलने की ताकत ही नहीं बची थी.. इन्होने पीछे से मुझको थाम रखा था, इसलिए मैं अभी भी उसी अवस्था में टिकी थी.. नहीं तो अब तक गिर चुकी होती।
उनको मेरे चरमोत्कर्ष का पता अवश्य चला होगा, क्योंकि अब वो मेरी योनी को चाट रहे थे। उत्तेजना के वशीभूत होकर मैं अपने नितम्ब जोर जोर से हिलाने लगी। मेरी हालत बहुत बुरी थी। एकदम छंछा (निर्लज्ज औरत) जैसी हरकतें! इस समय रूद्र मेरी योनि के भगोष्ठों को खोलकर जीभ से अन्दर तक कुरेद और चाट रहे थे। न चाहते हुए भी मेरे गले से कामुक सिस्कारियां छूट गईं। उधर उन्होंने चूसना जारी रखा। कुछ ही देर में मैं दूसरी बार चरम आनंद को प्राप्त कर कांपने, और आहें भरने लगी। मेरे होशो-हवास सब गायब हो गए - उनका इस तरह चाटना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। इस बार रूद्र ने मुझे छोड़ दिया, तो मैं निढाल होकर बिस्तर पर गिर गई – इतनी भी ताकत नहीं बची की ठीक से लेट जाऊं.. बस उसी अवस्था में लेटी रही।