malikarman
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ये तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैबिलकुल सही.... वैसे अनुश्री पर जोर दे कर आप अनुश्री को पूरा लिखवा के ही मानोगे
ये तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैबिलकुल सही.... वैसे अनुश्री पर जोर दे कर आप अनुश्री को पूरा लिखवा के ही मानोगे
समझ रहे हो हमारी भावनाओं कोबिलकुल सही.... वैसे अनुश्री पर जोर दे कर आप अनुश्री को पूरा लिखवा के ही मानोगे
Awesome updateअपडेट -5
Day -3
सुबह शांत थी, रोहित नाश्ता कर चूका था.
"काया मै चलता हूँ "
"रोहित ये टिफ़िन " काया ने रोहित को टिफ़िन थमा दिया.
रोहित चलने को ही था " सुनो ना रोहित आज लंच मे आ जाओगे क्या, घर के लिए जरुरी सामान लेना है "
"कैसी बात करती हो काया आज दूसरा ही दिन है मेरा बैंक मे "
काया का चेहरा उतर सा गया.
"ऐसा करता हूँ मकसूद को भेज दूंगा दिन मे, वो बाजार जनता भी यहाँ का जो इच्छा हो ले लेना"
रोहित बाहर को चल पड़ा.
"ररर.... रो... रोहित " लेकिन रोहित रुका नहीं.
काया के मन मे दुविधा थी, मकसूद उसे कुछ अजीब नजरों से देखता था.
खेर काया शहरी लड़की थी हैंडल कर सकती थी ये सब.
काया घर के कामों मे व्यस्त हो गई...
अभी मकसूद को आने मे वक़्त है" काया बाथरूम की ओर बड़ी ही थी की
"टिंग टोंग...." अभी कौन आया?
शायद रोहित ही होंगे कुछ भूल तो नहीं गए?
काया रात वाले गाउन मे ही थी, जिस्म पर टाइट गाउन कसा हुआ था, ब्रा पहनती ही नहीं थी, और पैंटी कल रात बालकनी से नीचे जा गिरी थी,
घर के काम काज मे काया को इस बात का इल्म भी ना हुआ
साद्ददाककककम.... से दरवाजा खोल दिया.
"बाबू तत त त.... तुम "
"हाँ मैडम आपका कपड़ा कल नीचे गिर गया था वही लौटने आया हूँ "
काया का तो खून सफ़ेद पड़ गया था, कल रात का दृश्य उसके सामने दौड़ पड़ा, मतलब अब.... अभी उसने गाउन के नीचे कुछ नहीं पहना है?
सामने बाबू की भी वही हालत थी, पीछे खिड़की से आती रौशनी काया के गाउन मे छुपी उसकी जवानी को बयान कर रही थी, मादक जिस्म का एक एक कटव साफ झलक रहा था.
"ममम.... मैडम.... वो.... वो आपकी ये कच्छी "
बाबू ने हाथ आगे बड़ा दिया, उसकी अवस्था भी कुछ ठीक नहीं थी.
उसके हाथ मे तुड़ी मुड़ी लाल कलर की पैंटी थी.
काया क्या बोलती? कैसे बोलती.... मममम.... मेरी..मेरी कैसे?
काया आज अपनी पैंटी को अपनाने से मना कर रही थी,
"आपकी ही तो है मैडम जी " बाबू ने हथेली खोल काया के सामने लहरा दी...
काया ने झट से हाथ आगे बढ़ा पैंटी को अपने कब्जे मे ले लिया.
उसकी इस हरकत से साबित हो गया था की ये पैंटी उसी की है.
"मैंने कहाँ था ना आपकी ही है" बाबू ने जैसे जीत प्राप्त कर ली हो.
"वो... वो.... कल गिर गई होगी शायद सूखने को डाली थी.
आओ अंदर बाबू.... काया ने खुद को संभाल लिया था,
दरवाजा बंद हो चला.
"तुम्हे कैसे पता की मेरी है? काया जानना चाहती थी बाबू इतने विश्वास के साथ कैसे बोल रहा है.
"अब ऐसी डिजाइनर कच्छी भला इस गांव मे कौन पहनेगा, महंगी लगती है, मुझे लगा आपकी ही होगी "
काया बाबू का सामना ना कर सकी.
"रुको मै पानी लाती हूँ गड़ब " काया किचन मे जा glass भर खुद पानी पी गई.
पीछे बाबू की हालत ज्यादा ख़राब थी, वो किस्मत वालो मे से था जो काया की गांड को पतले से गाउन मे हिलते, हिचकोले खाते देख रहा था.
"ये लो बाबू " काया कब पानी ले आई पता नहीं चला. पैंटी वही किचन मे रख आई थी
गटक गटक... गटक.... बाबू का भी गला सुख आया था.
दोनों की एक जैसी हालत थी,
काया शर्म से और बाबू उत्तेजना मे.
"वैसे.... मैडम.... छोटी... छोटी...." बाबू कुछ बोलना चाहता था लेकिन अटक रहा था.
"क्या बोलो "
"इतनी छोटी कच्छी मे कैसे ढकता होगा सब "
ससससननननन.... बाबू के सवाल से काया सकते मे आ गई.
काया को गुस्सा होना चाहिए था, लेकिन बाबू ने सवाल ही इतनी मासूमियत से पूछा था की काया को हसीं आ गई.
हाहाहाहा.... बाबू तुम भी ना, सब आ जाता है.
"भगवान जाने मैंने तो जिंदगी मे पहली बार ऐसी कच्छी देखी है "
"अच्छा इतनी कितनी जिंदगी जी ली तुमने " काया को मजा आ रहा था बाबू की मासूमियत पर.
"यहाँ गांव मे बाजार मे भी नहीं दिखती कभी ऐसी " बाबू हैरान था सर खुजा रहा था.
" अच्छा अब ज्यादा दिमाग़ मत लगाओ, सब आ जाती है इतने मे ही "
"लल्ल... लेकिन आपकी कैसे आ जाती है?"
"क्या मतलब "
"वो... वो.... जाने दीजिये, मै चलता हूँ " बाबू को शायद गलती का अहसास हो गया था.
"बोलो भी मेरी से क्या मतलब " काया को कुछ कुछ अंदाजा तो हो गया था बाबू क्या कहना चाहता है लेकिन उसके मुँह से सुनना चाहती थी.
"वो... वो... वो.... आपकी गांड बड़ी है ना "
ससससस.... सससन्नन्न.... काया का दिमाग़ सन्न पड़ गया उसे इन शब्दों की उम्मीद नहीं थी.
"छी.... बत्तमीज़ कैसी भाषा बोलते हो " काया ने बाबू को झड़क दिया.
हालांकि उसे भाषा से दिक्कत मालूम पड़ती थी, बाकि बात से नहीं.
"अब हमारे यहाँ तो यही कहते है" बाबू ने वापस मासूमियत से जवाब दिया.
"अच्छा बाबा.... जो तुम कहो, सबकी ऐसी ही होती है ना "
"ना मैडम जी... मैंने तो आपसे बड़ी किसी की नहीं देखी "
"सच... कितनो की देख चुके...?"
बारी अब बाबू की थी, काया के सवाल का कोई जवाब नहीं था.
"बच्चू अभी ठीक से जवान भी नहीं हुए और बाते देखो"
बाबू झेम्प के रह गया.
हालांकि बाबू के मुँह से बचकानी तारीफ काया को गदगद कर रही थी.
"मुझे ऐसी ही पसंद है, छोटी.." काया छोटी शब्द पर जोर दे कर मुस्कुरा दी.
काया के मुस्कुराने से बाबू शर्माहत से बाहर आया.
काया को अच्छा टाइम पास मिल गया था.
अच्छा बाबू चाय पिओगे?
"ममम.... मै..... अभी लाता हूँ " बाबू उठने लगा
"बुद्धू मै बना देती हूँ ना साथ मे पीते है " काया उठ के किचन मे जा खड़ी हुई.
बाबू फिर से जन्नत के दरवाजे को देख रहा था, काया के सोफे पे बैठ के उठने से गाउन का कपड़ा गांड की दरार मे जा धसा था.
बाबू नया ताज़ा जवान हुआ लड़का था, ये दृश्य भी खूब था उसके लिए.
पाजामे मे तम्बू बनने लगा था.
"अच्छा बाबू तुम्हारी फैमली मे कौन कौन है?"
काया ने वैसे ही खड़े रह के सवाल पूछा.
"जज्ज..... जी मैडम 5 बहने पापा मम्मी और मै "
"ककककयययय.... क्या? 5 बहने?" काया पलट गई,
"हाँ मैडम क्या करे.... इसलिए ही गांव से यहाँ चले आये कुछ पैसा कमाने ताकि पापा की हेल्प हो सके " बाबू ने मज़बूरी कह सुनाई.
काया के लिए बहुत ताज्जुब की बात थी " आज जे ज़माने मे इतने बच्चे कौन करता है "
"वो.. पापा मम्मी से बहुत प्यार करते है ना "
"हाहाहाबा.... बुद्धू " काया बाबू का जवान सुन जोरदार हस पड़ी.
बाबू को समझ नहीं आया काया क्यों हसीं " हमारे गांव के काका है,उन्ही के साथ यहाँ चला आया, वो जो लिफ्ट चलाते है ना वो "
बाबू ने पूरी रामायण कह सुनाई थी.
"अच्छा ये लो चाय पीओ " काया ने चाय की ट्रे आगे बढ़ा दी
"थैंक you मैडम आप बहुत अच्छी है, मै ही सबको चाय पिलाता हूँ, आज आपने पिलाई "
"ओह... बाबू... थैंक यू की क्या बात है तुमने मेरी वो भी तो ला कर दी ना " काया ने चुस्की लेते हुए कहाँ.
"क्या वो.... कच्छी?"
"हाँ वही कच्छी " काया ने आज पहली बार पैंटी को कच्छी कहाँ था, एक अलग सा फील था इसमें काया ने साफ महसूस किया.
"महंगी है ना मैडम जी देने तो आना हूँ था वैसे उसमे से खुसबू भी आती है पता नहीं था की महंगी कच्छी मे खुसबू भी होती है " बाबू चाय पिता पानी मस्ती मे बोले जा रहा था.
"कककक.... क्या खुसबू " काया को कल रात का दृश्य याद आ गया जब बाबू ने उसे उठा कर सुंघा था.
"छी.... मतलब तुमने उसे सुंघा था?" काया ने आंखे निकाल बाबू को घुरा.
"वो तो सामने पड़ी दिखी तो मन मे आ गया, उस समय पता नहीं था ना आपकी है, गांव मे बड़े लड़के लड़कियों की कच्छी को ऐसे ही सूंघते थे "
काया सन सनाये जा रही थी बाबू की बातो से.
उसे बाबू जैसा कच्चा जवान लड़का अभूतपूर्व बाते बता रहा था.
"तो मैंने भी सूंघ के देखा, बहुत अच्छी और तेज़ खुसबू थी "
काया हैरान थी, आज तक रोहित जिसे पसीने की बदबू कहता था, उसी को ये लड़का खुसबू कह रहा है.
"सच मे खुसबू थी?" काया बाबू की बातो से उत्तेजना महसूस कर रही थी, उसे कुछ नया सा अहसास हो रहा था.
"सच्ची मैडम जी...., मन किया सूंघते रहु "
"हट बदमाश ऐसा कही होता है क्या " काया ने खुद को सँभालते हुए कहाँ.
"पैंटी गंदी होती है, ऐसा नहीं करते " काया ने समझाया.
"ठीक है मैडम जी...." चाय खत्म हो गई थी, बाबू खड़ा हुआ तो पाजामे के आगे का हिस्सा तना हुआ था, हिल रहा था.
काया उसके आकर प्रकार को देख हैरान थी.
"चलता हूँ मैडम जी " काया कुछ नहीं बोली बस एकटक उसी उभार को देखे जा रही थी.
बाबू पलट के चलते को हुआ, तब काया का ध्यान भंग हुआ.
"बबब.... बाबू... वो... कचरा कहाँ फेंकते है?"
"लाइए मै फेंक देता हूँ ना"
"नहीं मै फेंक आउंगी तुम क्यों तकलीफ करते हो " काया अपने सरल स्वाभाव मे बोली.
"मै नीचे ही जा रहा हूँ, बाहर गेट के पास ही कचरा पेटी है वही फेंकते है "
काया ने कुछ ना बोलते हुए, कचरे की थैली बाबू को पकड़ा दी.
बाबू चला गया लेकिन काया के जिस्म मे एक बेचैनी सी छोड़ गया,
वो कभी बंद दरवाजे को देखती तो कभी किचन के मार्बल पे रखी अपनी लाल कलर की पैंटी को, जो गुड़ी मुड़ी खिड़की से आती रौशनी मे चमक रही थी.
"इसे लड़के सूंघते क्यों है? क्या मजा आता होगा " काया के जहाँ मे सवाल कोंध रहा था जिसका जवाब उसे ही हासिल करना था.
काया ने पल भर की देरी भी ना करते हुए, पैंटी उठाई और बाथरूम का रुख अपना लिया.
बाथरूम की तेज़ रौशनी मे काया का जिस्म चमक रहा था.
"आपकी बड़ी गांड कैसे इस छोटी सी कच्छी मे आ जाती है?" बाबू का मासूम सवाल अकेले मे उसके जिस्म को कुरेद रहा था.
"क्या वाकई मेरी वो इतनी बड़ी है "
प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवशयकता, काया के जिस्म से गाउन एक पल मे अलग हो गया.
असल मायनो मे आज इस बाथरूम की शोभा बड़ी थी, काया का मादक गद्दाराया जिस्म सामने कांच मे दमक रहा था, काया के हाथ मे पैंटी थमी हुई थी,
आज तक उसने इस तरीके से सोचा ही नहीं था, ना जाने क्यों काया का जिस्म थोड़ा सा घूम गया, सामने कांच मे काया की मदमस्त बड़ी बाहर को निकलती गांड का एक हिस्सा चमक उठा.
"बाबू सही तो कहता है " काया मुस्कुरा दी....
बेचारी पैंटी पे बड़ा जुल्म हुआ, काया ने कभी अपनी पैंटी को इतना कामुक नहीं पाया था, आजतक वो सिर्फ एक वस्त्र थी जिसे वो बाकि कपड़ो के अंदर पहनती थी.
परन्तु आज ये एक सादहरण सी पैंटी उसके जिस्म मे मस्ती घोल रही थी.
काया ने एक बार फिर से घूम के अपने जिस्म को आईने मे अच्छे से देखा, कही बाबू की बात झूठ तो नहीं थी?
आज काया पहली बार खुद के जिस्म को देख, उत्तेजित हो रही थी.
"हमारे गांव के बड़े लड़के इसे सूंघते है " बाबू की कही बात उस बाथरूम मे गूंज रही थी.
"नहीं... छी... ऐसा कौन करता है, रोहित तो नहीं बोले कभी ऐसा " काया अब बाबू की बात को नकार रही थी.
ना जाने किस आवेश मे काया के पैंटी थामे हाथ, उसकी नाक तक चले गए शनिफ्फफ्फ्फ़...... हहहहममममम... A. आआहहहह.... काया ने जी भर के एक लम्बी सांस खिंच ली.
एक मादक कैसेली सी गंध से उसका जिस्म नहा गया, काया अपनी स्मेल पहचानती थी लेकिन इस स्मेल मे कुछ घुला सा था, एक अजीब सी गंध जो सीधा काया की नाक से होती उसकी चुत तक जा पहुंची.
काया कामवासना के पहले पन्ने को पलट चुकी थी, उसने जाना इसमें कुछ खास है.
एक लम्बी सांस और खिंच ली.... ऊफ्फफ्फ्फ़..... काया के रोगटे खड़े हो गए, झुरझुरी सी चल पड़ी पुरे जिस्म मे.
आंख खोल सामने देखा, काया पूर्णतया नंगी खुद की पैंटी को सूंघ रही थी.
सामने का दृश्य देखना था की वो तुरंत हकीकत मे आ गई " छी... ये क्या कर रही हूँ मै "
लेकिन उसका जिस्म बार बार वो गंध महसूस करना चाहता था,
अक्सर मर्द और औरत कामुक अंगों की स्मेल को पसंद करते है, काया के लिए ये नया अनुभव था, उसे देख के लगता था ज़ये शानदार अनुभव है.
काया को अपनी जांघो के बीच कुछ रिसता सा महसूस हुआ, काया हैरान थी, उसके नाभि के नीचे खलबली सी मची हुई थी,
काया की एक उंगकी उस खाई मे जा लगी, हाथ दूर किया तो एक पतली सी लकीर साथ चल पड़ी.
काया की चुत रिस रही थी.
"ये... ये.... क्या हो रहा है, मेरी पैंटी मे ये अजीब सी गंध कैसी है, काया हैरान थी उसने पास पड़े अपने गाउन को तुरंत उठा के सुंघा उसने सिर्फ माया के जिस्म की महक थी, फिर पैंटी को सुंघा इसमें कुछ अलग सा था क्या था पता नहीं बस उसका जिस्म उस गंध को बार बार महसूस करना चाहता था.
"उउउफ्फ्फ...... ये क्या हो रहा है " काया ने खुद को सँभालते हुए पैंटी और गाउन वही जमीन पर पटक दिया, और शावर चालू कर दिया.. ठन्डे पानी के साथ माया के जिस्म की गर्मी भी घुलने लगी.
काया का दिमाग़ शांत ही चला.
1 बजने को थे, मकसूद के आने का वक़्त था.
काया लिस्ट बना चुकी थी.
टिंग टोंग.....
तभी बेल बज उठी.
"जरूर मकसूद ही होगा, काया ड्रेसिंग टेबल के समनी लिपस्टिक लगा रही थी, सुर्ख लाल.
काया ने लाल रंग की चमकदार सारी पहनी थी, गांव के लिए साड़ी ही उसे उचित परिधान लगा.
साड़ी काया के जिस्म को और मादक बना रही थी, जिस्म से चिपकी एक एक कटव को दिखा रही थी, गले मे मंगल सूत्र, माथे पर लाल बिंदी, सिंदूर और हाथो मे चूड़ी से सजी काया वाकई अपनी माया मे थी.
हालांकि काया साड़ी से पूरी तरह ढंकी हुई थी, फिर भी उसके जिस्म के कटाव को छुपा पाने मे असमर्थ थी.
साड़ी के बाहर से भी उसके बड़े स्तन और मादक गांड अपनी पहचान करवा ही रही थी.
"आती हूँ....." काया ने दरवाजा खोल दिया
सामने मकसूद ही था,
" अभी आई रुको " काया ने मकसूद को बिना भाव दिए पलट अंदर को चल दी
उसने देखा ही नहीं मकसूद मुँह बाये खड़ा है, वो जब भी यहाँ आता था लगता था जैसे जन्नत का दरवाजा खुद अप्सरा उसके लिए खोलती है..
आज भी काया दरवाजा खोल अंदर चल दी, मकसूद तो उस हुस्नपरी की मटकती गांड को ही देखता रह गया.
पल भर मै ही काया वापस मौजूद थी " चले मकसूद मियां "
काया ने मुस्कुरा के कहा, आज काया का दिल दिमाग़ मस्ती से भरा हुआ था, वो जानती थी मकसूद की हालत को.
"च च... चले मैडम जी " मकसूद झेम्प सा गया, तुरंत थैला काया के हाथ सेऐ आगे चल पड़ा.
गनीमत थी आज लिफ्ट चालू थी.
पल भर मे ही कार सडक पे दौड़े जा रही थी, "मैडम कौनसे बाजार चलाना है " मकसूद सामने के शीशे पर देख माया को पूछ रहा था, काया का दमकता चेहरा शीशे मे उजागर था.
" रोहित ने तो कहाँ था तुम बाजार जानते हो " काया और मकसूद की आंखे उस शीशे पे जा मिली.
मकसूद अक्सर आँखों मे सुरमा लगता था.
काया और मकसूद की कजरारी आंखे एक दूसरे को देख रही थी.
"मतलब लेना क्या है मैडम, उस हिसाब से पूछ रहा हूँ?"
"बर्तन और कुछ किचन का सामान, बेडशीट वगैरह "
"फिर ती बड़े बाजार जाना होगा मैडम जी"
"तो चलो फिर " काया मुस्कुरा दी
काया की मुस्कुराहट से उसके सफ़ेद दाँत झलक पड़ते थे, लाल होंठो की मुस्कान मकसूद का ध्यान सामने जाने ही नहीं दे रहु थी.
"30 km दूर है मैडम बड़ा मार्किट "
काया ने घड़ी देखी 1.30 ही बजे थे " कोई बात नहीं बहुत टाइम है, चलते है "
काया की हामी थी की मकसूद ने एक कच्चे रास्ते पर कार को घुमा दिया "
"ये रास्ता तो कच्चा है?" काया ने बाहर देखते हुए कहा
"शॉर्टकट है मैडम, समय बचेगा 6बजे से पहले बैंक भी तो जाना है " मकसूद ने सफाई दी.
काया बाहर के नज़ारे को देखे जा रही थी, दूर दूर तक खेत खलियान, साफ आसमान, कोई शोर शराबा नहीं, साफ शुद्ध प्राकृतिक नजारा.
काया इस माहौल मे खो सी गई थी.
"आपको हमारा इलाका कैसा लगा मैडम जी "
"कककक.... क्या?" काया जैसे नींद से जागी हो.
"आपको यहाँ आ कर कैसा लगा मैडम जी?" मकसूद ने सवाल दोहरा दिया
"अच्छा.... बहुत अच्छा है मकसूद मियां, शहर मे ये सब महा देखने को मिलता है"
काया के मुँह से मियां सुन कर मकसूद के जिस्म मे हज़ारो चीटिया रेंग जाती, काया मुस्कुरा के उसे मकसूद मियां कहती.
"आप मुझे मियां क्यों कह रही है?" मकसूद ने जिज्ञासावंश पूछ ही लिया
काया ने सुना देखा था अक्सर लोग मुस्लिम को मियां ही कहते थे, " बस वहा शहर मे लोग कहते है तो मैंने भी कह दिया, भाई ही होता है ना मियां का मतलब? "
काया हैरानी के साथ बोली, कही कोई भेद तो नहीं?
"Hehehehe.... मकसूद हस पड़ा, आप शहरी मैडम है लगता है आपको सही मतलब नहीं पता "
"क्या मतलब होता है?"
" मियां औरते अपने पति को कहती है " मकसूद हस्ते हुए बोल पड़ा.
"ककम्म..... क्या.... ओह्ह्ह....... सॉरी "
काया झेम्प गई, उसने अनजाने मे ही गलती कर दी थी.
"सॉरी... मकसूद मि... मतलब मकसूद जी मुझे पता नहीं था " काया बगले झाकने लगी.
सामने कांच ने मकसूद काया का शर्माता देख रहा था, काया के लाल होंठ उसके दांतो तले दब गए थे.
"परेशान ना हो मैडम जी, ये तो पुरानी बात है दोस्त को या प्यार से जिसकी आप इज़्ज़त करते है उसे भी मियां कह सकते है "
मकसूद ने चुटकी ली.
"सच?"
"सच्ची मैडम, आपके मुँह से अच्छा लगता है "
मकसूद जल्दी घुल मिल जाता था किसी से भी, और काया भी जल्दी किसी बात का बुरा नहीं मानती थी, हलकी हसीं मज़ाक चलता जा रहा था....
की तभी..... चरररररर...... जोरदार ब्रेक के साथ मकसूद ने गाड़ी रोक दी, मकसूद का सारा ध्यान माया को ताड़ने मे ही था सामने एक कार कब आ खड़ी हुई उसे पता ही नहीं चला..
मकसूद की कार सामने की कार से ठुकते हुए बची.. "आउच..... क्या हुआ... मकसूद " काया सामने की सीट पर जा चिपकी.
"कौन है बे दीखता नहीं क्या तुझे " एक आदमी दौड़ता हुआ पास आ गया.
"अबे फारुख तू.... इधर " मकसूद शायद उस बाहर खड़े आदमी को पहचानता था.
" हाँ बे दादा की कार ख़राब हो गई थी, बड़े मार्किट जाते वक़्त "
"मममम... मममम..... मतलब कय्यूम दादा कार मे बैठे है " मकसूद के चेहरे पे हवाइया उड़ आई.
काया की आंखे चौड़ी हो चली, कल ही उसने रोहित के मुँह से कय्यूम का नाम सुना था.
आखिर अनजाने ही कय्यूम दादा और काया का आमना सामना होने जा रहा था.
कय्यूम की गाड़ी ख़राब है, उसे भी बड़ा बाजार जाना है और काया को भी?
तो क्या ये ही है उनकी पहली मुलाक़ात? ये मुलाक़ात क्या रंग दिखाएगी?
देखते है, बने रहिये... बड़ा बाजार आने वाला है.
Bahut kamukअपडेट -5
Day -3
सुबह शांत थी, रोहित नाश्ता कर चूका था.
"काया मै चलता हूँ "
"रोहित ये टिफ़िन " काया ने रोहित को टिफ़िन थमा दिया.
रोहित चलने को ही था " सुनो ना रोहित आज लंच मे आ जाओगे क्या, घर के लिए जरुरी सामान लेना है "
"कैसी बात करती हो काया आज दूसरा ही दिन है मेरा बैंक मे "
काया का चेहरा उतर सा गया.
"ऐसा करता हूँ मकसूद को भेज दूंगा दिन मे, वो बाजार जनता भी यहाँ का जो इच्छा हो ले लेना"
रोहित बाहर को चल पड़ा.
"ररर.... रो... रोहित " लेकिन रोहित रुका नहीं.
काया के मन मे दुविधा थी, मकसूद उसे कुछ अजीब नजरों से देखता था.
खेर काया शहरी लड़की थी हैंडल कर सकती थी ये सब.
काया घर के कामों मे व्यस्त हो गई...
अभी मकसूद को आने मे वक़्त है" काया बाथरूम की ओर बड़ी ही थी की
"टिंग टोंग...." अभी कौन आया?
शायद रोहित ही होंगे कुछ भूल तो नहीं गए?
काया रात वाले गाउन मे ही थी, जिस्म पर टाइट गाउन कसा हुआ था, ब्रा पहनती ही नहीं थी, और पैंटी कल रात बालकनी से नीचे जा गिरी थी,
घर के काम काज मे काया को इस बात का इल्म भी ना हुआ
साद्ददाककककम.... से दरवाजा खोल दिया.
"बाबू तत त त.... तुम "
"हाँ मैडम आपका कपड़ा कल नीचे गिर गया था वही लौटने आया हूँ "
काया का तो खून सफ़ेद पड़ गया था, कल रात का दृश्य उसके सामने दौड़ पड़ा, मतलब अब.... अभी उसने गाउन के नीचे कुछ नहीं पहना है?
सामने बाबू की भी वही हालत थी, पीछे खिड़की से आती रौशनी काया के गाउन मे छुपी उसकी जवानी को बयान कर रही थी, मादक जिस्म का एक एक कटव साफ झलक रहा था.
"ममम.... मैडम.... वो.... वो आपकी ये कच्छी "
बाबू ने हाथ आगे बड़ा दिया, उसकी अवस्था भी कुछ ठीक नहीं थी.
उसके हाथ मे तुड़ी मुड़ी लाल कलर की पैंटी थी.
काया क्या बोलती? कैसे बोलती.... मममम.... मेरी..मेरी कैसे?
काया आज अपनी पैंटी को अपनाने से मना कर रही थी,
"आपकी ही तो है मैडम जी " बाबू ने हथेली खोल काया के सामने लहरा दी...
काया ने झट से हाथ आगे बढ़ा पैंटी को अपने कब्जे मे ले लिया.
उसकी इस हरकत से साबित हो गया था की ये पैंटी उसी की है.
"मैंने कहाँ था ना आपकी ही है" बाबू ने जैसे जीत प्राप्त कर ली हो.
"वो... वो.... कल गिर गई होगी शायद सूखने को डाली थी.
आओ अंदर बाबू.... काया ने खुद को संभाल लिया था,
दरवाजा बंद हो चला.
"तुम्हे कैसे पता की मेरी है? काया जानना चाहती थी बाबू इतने विश्वास के साथ कैसे बोल रहा है.
"अब ऐसी डिजाइनर कच्छी भला इस गांव मे कौन पहनेगा, महंगी लगती है, मुझे लगा आपकी ही होगी "
काया बाबू का सामना ना कर सकी.
"रुको मै पानी लाती हूँ गड़ब " काया किचन मे जा glass भर खुद पानी पी गई.
पीछे बाबू की हालत ज्यादा ख़राब थी, वो किस्मत वालो मे से था जो काया की गांड को पतले से गाउन मे हिलते, हिचकोले खाते देख रहा था.
"ये लो बाबू " काया कब पानी ले आई पता नहीं चला. पैंटी वही किचन मे रख आई थी
गटक गटक... गटक.... बाबू का भी गला सुख आया था.
दोनों की एक जैसी हालत थी,
काया शर्म से और बाबू उत्तेजना मे.
"वैसे.... मैडम.... छोटी... छोटी...." बाबू कुछ बोलना चाहता था लेकिन अटक रहा था.
"क्या बोलो "
"इतनी छोटी कच्छी मे कैसे ढकता होगा सब "
ससससननननन.... बाबू के सवाल से काया सकते मे आ गई.
काया को गुस्सा होना चाहिए था, लेकिन बाबू ने सवाल ही इतनी मासूमियत से पूछा था की काया को हसीं आ गई.
हाहाहाहा.... बाबू तुम भी ना, सब आ जाता है.
"भगवान जाने मैंने तो जिंदगी मे पहली बार ऐसी कच्छी देखी है "
"अच्छा इतनी कितनी जिंदगी जी ली तुमने " काया को मजा आ रहा था बाबू की मासूमियत पर.
"यहाँ गांव मे बाजार मे भी नहीं दिखती कभी ऐसी " बाबू हैरान था सर खुजा रहा था.
" अच्छा अब ज्यादा दिमाग़ मत लगाओ, सब आ जाती है इतने मे ही "
"लल्ल... लेकिन आपकी कैसे आ जाती है?"
"क्या मतलब "
"वो... वो.... जाने दीजिये, मै चलता हूँ " बाबू को शायद गलती का अहसास हो गया था.
"बोलो भी मेरी से क्या मतलब " काया को कुछ कुछ अंदाजा तो हो गया था बाबू क्या कहना चाहता है लेकिन उसके मुँह से सुनना चाहती थी.
"वो... वो... वो.... आपकी गांड बड़ी है ना "
ससससस.... सससन्नन्न.... काया का दिमाग़ सन्न पड़ गया उसे इन शब्दों की उम्मीद नहीं थी.
"छी.... बत्तमीज़ कैसी भाषा बोलते हो " काया ने बाबू को झड़क दिया.
हालांकि उसे भाषा से दिक्कत मालूम पड़ती थी, बाकि बात से नहीं.
"अब हमारे यहाँ तो यही कहते है" बाबू ने वापस मासूमियत से जवाब दिया.
"अच्छा बाबा.... जो तुम कहो, सबकी ऐसी ही होती है ना "
"ना मैडम जी... मैंने तो आपसे बड़ी किसी की नहीं देखी "
"सच... कितनो की देख चुके...?"
बारी अब बाबू की थी, काया के सवाल का कोई जवाब नहीं था.
"बच्चू अभी ठीक से जवान भी नहीं हुए और बाते देखो"
बाबू झेम्प के रह गया.
हालांकि बाबू के मुँह से बचकानी तारीफ काया को गदगद कर रही थी.
"मुझे ऐसी ही पसंद है, छोटी.." काया छोटी शब्द पर जोर दे कर मुस्कुरा दी.
काया के मुस्कुराने से बाबू शर्माहत से बाहर आया.
काया को अच्छा टाइम पास मिल गया था.
अच्छा बाबू चाय पिओगे?
"ममम.... मै..... अभी लाता हूँ " बाबू उठने लगा
"बुद्धू मै बना देती हूँ ना साथ मे पीते है " काया उठ के किचन मे जा खड़ी हुई.
बाबू फिर से जन्नत के दरवाजे को देख रहा था, काया के सोफे पे बैठ के उठने से गाउन का कपड़ा गांड की दरार मे जा धसा था.
बाबू नया ताज़ा जवान हुआ लड़का था, ये दृश्य भी खूब था उसके लिए.
पाजामे मे तम्बू बनने लगा था.
"अच्छा बाबू तुम्हारी फैमली मे कौन कौन है?"
काया ने वैसे ही खड़े रह के सवाल पूछा.
"जज्ज..... जी मैडम 5 बहने पापा मम्मी और मै "
"ककककयययय.... क्या? 5 बहने?" काया पलट गई,
"हाँ मैडम क्या करे.... इसलिए ही गांव से यहाँ चले आये कुछ पैसा कमाने ताकि पापा की हेल्प हो सके " बाबू ने मज़बूरी कह सुनाई.
काया के लिए बहुत ताज्जुब की बात थी " आज जे ज़माने मे इतने बच्चे कौन करता है "
"वो.. पापा मम्मी से बहुत प्यार करते है ना "
"हाहाहाबा.... बुद्धू " काया बाबू का जवान सुन जोरदार हस पड़ी.
बाबू को समझ नहीं आया काया क्यों हसीं " हमारे गांव के काका है,उन्ही के साथ यहाँ चला आया, वो जो लिफ्ट चलाते है ना वो "
बाबू ने पूरी रामायण कह सुनाई थी.
"अच्छा ये लो चाय पीओ " काया ने चाय की ट्रे आगे बढ़ा दी
"थैंक you मैडम आप बहुत अच्छी है, मै ही सबको चाय पिलाता हूँ, आज आपने पिलाई "
"ओह... बाबू... थैंक यू की क्या बात है तुमने मेरी वो भी तो ला कर दी ना " काया ने चुस्की लेते हुए कहाँ.
"क्या वो.... कच्छी?"
"हाँ वही कच्छी " काया ने आज पहली बार पैंटी को कच्छी कहाँ था, एक अलग सा फील था इसमें काया ने साफ महसूस किया.
"महंगी है ना मैडम जी देने तो आना हूँ था वैसे उसमे से खुसबू भी आती है पता नहीं था की महंगी कच्छी मे खुसबू भी होती है " बाबू चाय पिता पानी मस्ती मे बोले जा रहा था.
"कककक.... क्या खुसबू " काया को कल रात का दृश्य याद आ गया जब बाबू ने उसे उठा कर सुंघा था.
"छी.... मतलब तुमने उसे सुंघा था?" काया ने आंखे निकाल बाबू को घुरा.
"वो तो सामने पड़ी दिखी तो मन मे आ गया, उस समय पता नहीं था ना आपकी है, गांव मे बड़े लड़के लड़कियों की कच्छी को ऐसे ही सूंघते थे "
काया सन सनाये जा रही थी बाबू की बातो से.
उसे बाबू जैसा कच्चा जवान लड़का अभूतपूर्व बाते बता रहा था.
"तो मैंने भी सूंघ के देखा, बहुत अच्छी और तेज़ खुसबू थी "
काया हैरान थी, आज तक रोहित जिसे पसीने की बदबू कहता था, उसी को ये लड़का खुसबू कह रहा है.
"सच मे खुसबू थी?" काया बाबू की बातो से उत्तेजना महसूस कर रही थी, उसे कुछ नया सा अहसास हो रहा था.
"सच्ची मैडम जी...., मन किया सूंघते रहु "
"हट बदमाश ऐसा कही होता है क्या " काया ने खुद को सँभालते हुए कहाँ.
"पैंटी गंदी होती है, ऐसा नहीं करते " काया ने समझाया.
"ठीक है मैडम जी...." चाय खत्म हो गई थी, बाबू खड़ा हुआ तो पाजामे के आगे का हिस्सा तना हुआ था, हिल रहा था.
काया उसके आकर प्रकार को देख हैरान थी.
"चलता हूँ मैडम जी " काया कुछ नहीं बोली बस एकटक उसी उभार को देखे जा रही थी.
बाबू पलट के चलते को हुआ, तब काया का ध्यान भंग हुआ.
"बबब.... बाबू... वो... कचरा कहाँ फेंकते है?"
"लाइए मै फेंक देता हूँ ना"
"नहीं मै फेंक आउंगी तुम क्यों तकलीफ करते हो " काया अपने सरल स्वाभाव मे बोली.
"मै नीचे ही जा रहा हूँ, बाहर गेट के पास ही कचरा पेटी है वही फेंकते है "
काया ने कुछ ना बोलते हुए, कचरे की थैली बाबू को पकड़ा दी.
बाबू चला गया लेकिन काया के जिस्म मे एक बेचैनी सी छोड़ गया,
वो कभी बंद दरवाजे को देखती तो कभी किचन के मार्बल पे रखी अपनी लाल कलर की पैंटी को, जो गुड़ी मुड़ी खिड़की से आती रौशनी मे चमक रही थी.
"इसे लड़के सूंघते क्यों है? क्या मजा आता होगा " काया के जहाँ मे सवाल कोंध रहा था जिसका जवाब उसे ही हासिल करना था.
काया ने पल भर की देरी भी ना करते हुए, पैंटी उठाई और बाथरूम का रुख अपना लिया.
बाथरूम की तेज़ रौशनी मे काया का जिस्म चमक रहा था.
"आपकी बड़ी गांड कैसे इस छोटी सी कच्छी मे आ जाती है?" बाबू का मासूम सवाल अकेले मे उसके जिस्म को कुरेद रहा था.
"क्या वाकई मेरी वो इतनी बड़ी है "
प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवशयकता, काया के जिस्म से गाउन एक पल मे अलग हो गया.
असल मायनो मे आज इस बाथरूम की शोभा बड़ी थी, काया का मादक गद्दाराया जिस्म सामने कांच मे दमक रहा था, काया के हाथ मे पैंटी थमी हुई थी,
आज तक उसने इस तरीके से सोचा ही नहीं था, ना जाने क्यों काया का जिस्म थोड़ा सा घूम गया, सामने कांच मे काया की मदमस्त बड़ी बाहर को निकलती गांड का एक हिस्सा चमक उठा.
"बाबू सही तो कहता है " काया मुस्कुरा दी....
बेचारी पैंटी पे बड़ा जुल्म हुआ, काया ने कभी अपनी पैंटी को इतना कामुक नहीं पाया था, आजतक वो सिर्फ एक वस्त्र थी जिसे वो बाकि कपड़ो के अंदर पहनती थी.
परन्तु आज ये एक सादहरण सी पैंटी उसके जिस्म मे मस्ती घोल रही थी.
काया ने एक बार फिर से घूम के अपने जिस्म को आईने मे अच्छे से देखा, कही बाबू की बात झूठ तो नहीं थी?
आज काया पहली बार खुद के जिस्म को देख, उत्तेजित हो रही थी.
"हमारे गांव के बड़े लड़के इसे सूंघते है " बाबू की कही बात उस बाथरूम मे गूंज रही थी.
"नहीं... छी... ऐसा कौन करता है, रोहित तो नहीं बोले कभी ऐसा " काया अब बाबू की बात को नकार रही थी.
ना जाने किस आवेश मे काया के पैंटी थामे हाथ, उसकी नाक तक चले गए शनिफ्फफ्फ्फ़...... हहहहममममम... A. आआहहहह.... काया ने जी भर के एक लम्बी सांस खिंच ली.
एक मादक कैसेली सी गंध से उसका जिस्म नहा गया, काया अपनी स्मेल पहचानती थी लेकिन इस स्मेल मे कुछ घुला सा था, एक अजीब सी गंध जो सीधा काया की नाक से होती उसकी चुत तक जा पहुंची.
काया कामवासना के पहले पन्ने को पलट चुकी थी, उसने जाना इसमें कुछ खास है.
एक लम्बी सांस और खिंच ली.... ऊफ्फफ्फ्फ़..... काया के रोगटे खड़े हो गए, झुरझुरी सी चल पड़ी पुरे जिस्म मे.
आंख खोल सामने देखा, काया पूर्णतया नंगी खुद की पैंटी को सूंघ रही थी.
सामने का दृश्य देखना था की वो तुरंत हकीकत मे आ गई " छी... ये क्या कर रही हूँ मै "
लेकिन उसका जिस्म बार बार वो गंध महसूस करना चाहता था,
अक्सर मर्द और औरत कामुक अंगों की स्मेल को पसंद करते है, काया के लिए ये नया अनुभव था, उसे देख के लगता था ज़ये शानदार अनुभव है.
काया को अपनी जांघो के बीच कुछ रिसता सा महसूस हुआ, काया हैरान थी, उसके नाभि के नीचे खलबली सी मची हुई थी,
काया की एक उंगकी उस खाई मे जा लगी, हाथ दूर किया तो एक पतली सी लकीर साथ चल पड़ी.
काया की चुत रिस रही थी.
"ये... ये.... क्या हो रहा है, मेरी पैंटी मे ये अजीब सी गंध कैसी है, काया हैरान थी उसने पास पड़े अपने गाउन को तुरंत उठा के सुंघा उसने सिर्फ माया के जिस्म की महक थी, फिर पैंटी को सुंघा इसमें कुछ अलग सा था क्या था पता नहीं बस उसका जिस्म उस गंध को बार बार महसूस करना चाहता था.
"उउउफ्फ्फ...... ये क्या हो रहा है " काया ने खुद को सँभालते हुए पैंटी और गाउन वही जमीन पर पटक दिया, और शावर चालू कर दिया.. ठन्डे पानी के साथ माया के जिस्म की गर्मी भी घुलने लगी.
काया का दिमाग़ शांत ही चला.
1 बजने को थे, मकसूद के आने का वक़्त था.
काया लिस्ट बना चुकी थी.
टिंग टोंग.....
तभी बेल बज उठी.
"जरूर मकसूद ही होगा, काया ड्रेसिंग टेबल के समनी लिपस्टिक लगा रही थी, सुर्ख लाल.
काया ने लाल रंग की चमकदार सारी पहनी थी, गांव के लिए साड़ी ही उसे उचित परिधान लगा.
साड़ी काया के जिस्म को और मादक बना रही थी, जिस्म से चिपकी एक एक कटव को दिखा रही थी, गले मे मंगल सूत्र, माथे पर लाल बिंदी, सिंदूर और हाथो मे चूड़ी से सजी काया वाकई अपनी माया मे थी.
हालांकि काया साड़ी से पूरी तरह ढंकी हुई थी, फिर भी उसके जिस्म के कटाव को छुपा पाने मे असमर्थ थी.
साड़ी के बाहर से भी उसके बड़े स्तन और मादक गांड अपनी पहचान करवा ही रही थी.
"आती हूँ....." काया ने दरवाजा खोल दिया
सामने मकसूद ही था,
" अभी आई रुको " काया ने मकसूद को बिना भाव दिए पलट अंदर को चल दी
उसने देखा ही नहीं मकसूद मुँह बाये खड़ा है, वो जब भी यहाँ आता था लगता था जैसे जन्नत का दरवाजा खुद अप्सरा उसके लिए खोलती है..
आज भी काया दरवाजा खोल अंदर चल दी, मकसूद तो उस हुस्नपरी की मटकती गांड को ही देखता रह गया.
पल भर मै ही काया वापस मौजूद थी " चले मकसूद मियां "
काया ने मुस्कुरा के कहा, आज काया का दिल दिमाग़ मस्ती से भरा हुआ था, वो जानती थी मकसूद की हालत को.
"च च... चले मैडम जी " मकसूद झेम्प सा गया, तुरंत थैला काया के हाथ सेऐ आगे चल पड़ा.
गनीमत थी आज लिफ्ट चालू थी.
पल भर मे ही कार सडक पे दौड़े जा रही थी, "मैडम कौनसे बाजार चलाना है " मकसूद सामने के शीशे पर देख माया को पूछ रहा था, काया का दमकता चेहरा शीशे मे उजागर था.
" रोहित ने तो कहाँ था तुम बाजार जानते हो " काया और मकसूद की आंखे उस शीशे पे जा मिली.
मकसूद अक्सर आँखों मे सुरमा लगता था.
काया और मकसूद की कजरारी आंखे एक दूसरे को देख रही थी.
"मतलब लेना क्या है मैडम, उस हिसाब से पूछ रहा हूँ?"
"बर्तन और कुछ किचन का सामान, बेडशीट वगैरह "
"फिर ती बड़े बाजार जाना होगा मैडम जी"
"तो चलो फिर " काया मुस्कुरा दी
काया की मुस्कुराहट से उसके सफ़ेद दाँत झलक पड़ते थे, लाल होंठो की मुस्कान मकसूद का ध्यान सामने जाने ही नहीं दे रहु थी.
"30 km दूर है मैडम बड़ा मार्किट "
काया ने घड़ी देखी 1.30 ही बजे थे " कोई बात नहीं बहुत टाइम है, चलते है "
काया की हामी थी की मकसूद ने एक कच्चे रास्ते पर कार को घुमा दिया "
"ये रास्ता तो कच्चा है?" काया ने बाहर देखते हुए कहा
"शॉर्टकट है मैडम, समय बचेगा 6बजे से पहले बैंक भी तो जाना है " मकसूद ने सफाई दी.
काया बाहर के नज़ारे को देखे जा रही थी, दूर दूर तक खेत खलियान, साफ आसमान, कोई शोर शराबा नहीं, साफ शुद्ध प्राकृतिक नजारा.
काया इस माहौल मे खो सी गई थी.
"आपको हमारा इलाका कैसा लगा मैडम जी "
"कककक.... क्या?" काया जैसे नींद से जागी हो.
"आपको यहाँ आ कर कैसा लगा मैडम जी?" मकसूद ने सवाल दोहरा दिया
"अच्छा.... बहुत अच्छा है मकसूद मियां, शहर मे ये सब महा देखने को मिलता है"
काया के मुँह से मियां सुन कर मकसूद के जिस्म मे हज़ारो चीटिया रेंग जाती, काया मुस्कुरा के उसे मकसूद मियां कहती.
"आप मुझे मियां क्यों कह रही है?" मकसूद ने जिज्ञासावंश पूछ ही लिया
काया ने सुना देखा था अक्सर लोग मुस्लिम को मियां ही कहते थे, " बस वहा शहर मे लोग कहते है तो मैंने भी कह दिया, भाई ही होता है ना मियां का मतलब? "
काया हैरानी के साथ बोली, कही कोई भेद तो नहीं?
"Hehehehe.... मकसूद हस पड़ा, आप शहरी मैडम है लगता है आपको सही मतलब नहीं पता "
"क्या मतलब होता है?"
" मियां औरते अपने पति को कहती है " मकसूद हस्ते हुए बोल पड़ा.
"ककम्म..... क्या.... ओह्ह्ह....... सॉरी "
काया झेम्प गई, उसने अनजाने मे ही गलती कर दी थी.
"सॉरी... मकसूद मि... मतलब मकसूद जी मुझे पता नहीं था " काया बगले झाकने लगी.
सामने कांच ने मकसूद काया का शर्माता देख रहा था, काया के लाल होंठ उसके दांतो तले दब गए थे.
"परेशान ना हो मैडम जी, ये तो पुरानी बात है दोस्त को या प्यार से जिसकी आप इज़्ज़त करते है उसे भी मियां कह सकते है "
मकसूद ने चुटकी ली.
"सच?"
"सच्ची मैडम, आपके मुँह से अच्छा लगता है "
मकसूद जल्दी घुल मिल जाता था किसी से भी, और काया भी जल्दी किसी बात का बुरा नहीं मानती थी, हलकी हसीं मज़ाक चलता जा रहा था....
की तभी..... चरररररर...... जोरदार ब्रेक के साथ मकसूद ने गाड़ी रोक दी, मकसूद का सारा ध्यान माया को ताड़ने मे ही था सामने एक कार कब आ खड़ी हुई उसे पता ही नहीं चला..
मकसूद की कार सामने की कार से ठुकते हुए बची.. "आउच..... क्या हुआ... मकसूद " काया सामने की सीट पर जा चिपकी.
"कौन है बे दीखता नहीं क्या तुझे " एक आदमी दौड़ता हुआ पास आ गया.
"अबे फारुख तू.... इधर " मकसूद शायद उस बाहर खड़े आदमी को पहचानता था.
" हाँ बे दादा की कार ख़राब हो गई थी, बड़े मार्किट जाते वक़्त "
"मममम... मममम..... मतलब कय्यूम दादा कार मे बैठे है " मकसूद के चेहरे पे हवाइया उड़ आई.
काया की आंखे चौड़ी हो चली, कल ही उसने रोहित के मुँह से कय्यूम का नाम सुना था.
आखिर अनजाने ही कय्यूम दादा और काया का आमना सामना होने जा रहा था.
कय्यूम की गाड़ी ख़राब है, उसे भी बड़ा बाजार जाना है और काया को भी?
तो क्या ये ही है उनकी पहली मुलाक़ात? ये मुलाक़ात क्या रंग दिखाएगी?
देखते है, बने रहिये... बड़ा बाजार आने वाला है.
Nice one updateअपडेट -6
चिलचिलाती गर्मी मे मकसूद ने कार को जबरजस्त ब्रेक मारा था,
सामने एक सफ़ेद ambassador खड़ी थी,
ब्रेक की आवाज़ से सामने की कार से एक आदमी निकल बाहर आया,
"क्यों बे दिखता नहीं क्या?" आदमी मकसूद के पास आ खड़ा हुआ.
"अबे....फारुख तू?" मकसूद बाहर खड़े आदमी से मुख़ातिब हुआ,
दोनों एक दूसरे को जानते थे.
"अबे मकसूद तू इधर कहा जा रहा है?" सवाल के जवाब मे फारुख ने सवाल ही किया.
"वो.... नये बाबू आये है ना, उनकी ही बेग़म है, मैडम को बाजार ले जा रहा था"
"ननन... नमस्ते मैडम जी " बाहर खडे फारुख ने काया का अभिवादन किया
"नमस्ते " काया ने भी मुस्कुराहट के साथ अभिवादन स्वीकार किया.
फारूक काया की मुस्कुराहट, उसके नैन नक्श, सुंदरता से प्रभावित सा दिखा.
"मकसूद तेरी कार मे extra टायर है क्या, दादा को बाजार ले के जा रहा था साला टायर पंचर हो गया, दादा गुस्से मे बैठे है"
फारूक बोल मकसूद को रहा था लेकिन क्या जैसे स्त्री का यौवन ताड़ने से बाज़ भी नहीं आ रहा था.
"कक्क.... क्या... क्या ? ममम... मतलब कय्यूम दादा कार मे ही बैठे है " मकसूद के चेहरे पे हवाइया उड़ गई, कल रोहित की बदतमीज़ी के बाद से मकसूद के दिल मे एक डर सा बैठ गया था.
"पीछे काया भी कय्यूम का नाम सुन चौंक पड़ी, अभी कल ही उसने रोहित के मुँह से उसका नाम सुना था "
फारूक और मकसूद कोई हल निकालते उससे पहले ही.
"कहा मर गया साले हरामी मदरचोद, किसकी गाड़ी है पीछे? " वातावरण मे एक भयानक भारी आवाज़ गूंज उठी.
सामने कार का गेट खुला, कार एक तरफ से झुकी फिर सीधी हो गई, एक राक्षसनुमा आदमी बाहर निकल आया था.
काया इस नज़ारे को देख रही थी,
सफ़ेद शर्ट, सफ़ेद पैंट, सफ़ेद जूता पहने भालू जैसा आदमी नजदीक चला आ रहा था.
"मकसूद फ़ौरन कार से उतर गया "
"ससस.... सससलाम... कय्यूम दादा " मकसूद की घिघी बंध गई थी.
कय्यूम खान बिना कोई जवाब दिए नजदीक आ गया था, कार मे झाँक के देखा साड़ी मे लिपटी काया उसे ही देख रही थी, नजरों मे हैरानी थी.
कय्यूम भी काया के खूबसूरत चेहरे को देख हैरान था,
कय्यूम इस गांव आस पास कस्बे की ना जाने कितनी लड़कियों, औरतों को अपने बिस्तर पे ला चूका था, उस चुद जाने वाली औरत उसकी दीवानी हो जाती थी, लेकिन इस गांव मे ये कौन है? जैसे कोई स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.
"अबे हरामी मकसूद ये माल कौन है? " कय्यूम की भयानक आवाज़ काया तक भी पहुंची थी शायद काया का दिल किसी अनजाने डर से धाड़ धाड़ बज रहा था, काया खुद को समेटने लगी.
कय्यूम पीछे विंडो के सामने आ खड़ा हुआ था,
"ददद... दादा... कय्यूम दादा, मैडम है, वो नये बाबू आये है ना उनकी बेग़म है " मकसूद तुरंत भागता हुआ सा आया
"कौन जो कल आया था पैसे लेने " कय्यूम ऊपर ज़े नीचे काया को घूरे जा रहा था, जैसे खा जायेगा.
जैसे जैसे उसकी नजर काया के जिस्म मे धसती गई, वैसे वैसे कय्यूम के चेहरे का गुस्सा हवा हो गया, आवाज़ मे एक शालीनता सी आ गई..
"नमस्ते मैडम... माफ़ करना मैंने पहचाना नहीं, अब इस गांव बीहड़ मे आप जैसी खूबसूरत औरत कहा देखने को मिलती है " कय्यूम ने हाथ जोड़ नमस्ते किया
फारूक और मामसूद दोनों कय्यूम के बर्ताव से हैरान थे.
"मैडम जी ये कय्यूम खान है, यहाँ के बड़े व्यापारी है " मकसूद बीच मे बोल पड़ा.
"जी नमस्ते...." काया ने नजरें नीची कर वैसे ही नमस्ते बोल दिया.
काया कय्यूम के रंगरूप से भयभीत थी.
"मैडम एक अहसान कर दे, मै भी बड़ा बाजार ही जा रहा हूँ, आपकी इज़ाज़त हो तो?"
कय्यूम जैसा भयानक इंसान ऐसी बोली भी बोल सकता था ये तो किसी ने सोचा भी ना होगा.
"जज.... जी... जी.... चलिए " काया ने हामी भर दी
और क्या करती उसकी हालत तो वैसे ही भीगी बिल्ली जैसी हो चली थी.
"फारुख कार का पंचर बनवा के बड़ा बाजार ही मिलना, चल मकसूद " कय्यूम ने जैसे आर्डर दिया
काया के दूसरी तरफ का गेट खुला, और कय्यूम ड्राइवर सीट के पीछे जा बैठा, कार एक साइड से थोड़ी सी झुक गई.
"उउउफ्फ्फ..... सॉरी...." काया का कन्धा कय्यूम के कंधे से जा टकराया, काया के तरफ से कार ऊँची हो गई थी.
"मै... मै.. सॉरी मैडम जी वजन ज्यादा है ना hehehehe...." कय्यूम ने दाँत निपोर दिए.
काया ने जैसे तैसे खुद को समेट साड़ी ठीक की, कय्यूम के हसने से काया की नजरें उस से टकरा गई,
वाकई बहुत काला था कय्यूम, सफ़ेद शर्ट जी तीन बटन खुली हुई, उसने से झाँकते पसीने से सने काले बाल, गले की शोभा बढ़ाती एक मोटी सोने की चैन.
कय्यूम कोई 150 kg का भारी भरकम इंसान था, hight भी 6फ़ीट, उम्र यही कोई 50 के पड़ाव पर होंगी.
"कक्क.... कोई बात नहीं " काया ने एक फीकी सी मुस्कान दे दी.
लाल होंठो से झाँकते मोटी जैसे सुन्दर दाँत कय्यूम कर दिल पर छुरिया चला रहे थे.
"चल बे मकसूद लेट हो रहा है " कय्यूम ने हड़का दिया.
मकसूद के पैर एक्सीलेटर पर दबते चले गए.
कार ने शांति सी छाई हुई थी, अब मकसूद सामने देख रहा था उसकी हिम्मत नहीं थी की कांच मे पीछे की तरफ देख सके.
कार कय्यूम की तरफ से झुकी हुई चल रही थी, सडक पे कोई गड्डा या ब्रेकर आता तो काया सरकती हुई कय्यूम के नजदीक आ जाती, फिर खुद को दूसरी तरफ धकेलती.
"कल आये थे साब " कय्यूम ने उस शांति को भंग करना चाहा.
"कक्क.... कौन....?
"कौन क्या आपके शोहर, अच्छे इंसान है, बस गुस्सा जल्दी करते है "
"हहमममम.... वो... वो काम से ऐसा हो जाते है " काया ने सफाई दी.
"लेकिन किसी काम मे जल्दी करने से काम ख़राब भी तो होता है ना "
"हहहहमममम..... आप सही कह रहे है दादा " काया सहज़ ही बोली जो सुना था.
"धत.... कौन दादा?"
"आप.... और कौन " काया का आत्मविश्वास जल्द ही वापस आ गया था.
"हाहाहां.... मै तो व्यपारी हूँ, बाकि लोग तो बस इज़्ज़त के लिए बोल देते है " कय्यूम की आवाज़ मे शहद था.
"अब अल्लाह ने ये हुस्न दिया तो क्यां करे मैडम जी " कय्यूम बड़े ही बनावटी लहजे मे बोला.
"हाहाहाहा.... हुस्न " काया एकाएक खिलखिला के हस पड़ी, कय्यूम अपनी शक्ल को हुस्न बोल रहा था.
कय्यूम तो बस उस हुस्नपरी को देखता ही रह गया,
जीवन के 50 बरस बीतने को आये, ऐसी खूबसूरत, ऐसा जिस्म, ऐसी मनमोहक सुंदरी ना देख पाया कभी.
की तभी कार एक झटका सा लगा.
"आउच..... आअह्ह्ह......" काया झटके से सरकती हुई कय्यूम से जा चिपकी, इतनी की काया के बड़े कठोर स्तन कय्यूम की बाह मे दबते चले गए.
"कय्यूम का बदन 440वोल्ट के कर्रेंट से नहा गया.
झटका इतना तेज़ था की, काया का मुँह कय्यूम की गर्दन से जा लगा.
उसके होंठो की छाप, कय्यूम के पसीने से भीगे गले पर छाप छोड़ती चली गई, नाक पसीने से सराबोर हो गई.
काया का जिस्म एक मर्दानी महक से भर गया.
"आआआह्हः..... मकसूद..." काया तुरंत ही सम्भली.
"ये किस रास्ते से ले आये?" काया के चेहरे पे गुस्सा था
कय्यूम तो जैसे दूसरी दुनिया मे खोया हुआ था. कभी काया के चेहरे पे हसीं होती तो कभी गुस्सा.
"वो... वो.... मैडम गांव की सड़के " मकसूद सफाई दे दी.
अभी जो भी हुआ वो कुछ पल के लिए ही था.
ये 2पल ही दोनों के जिस्म मे एक अलग सी उत्तेजना घोल गए थे.
काया नजर नहीं मिला पा रही थी, कय्यूम उसे ही देखे जा रहा था, काया बाहर देख रही थी.
झटके से काया की साड़ी कंधे से सरक चुकी थी, काया के कठोर स्तन ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को उतारू थे, दोनों स्तन टाइट ब्लाउज मे एक मादक घाटी को जन्म दे रहे थे.
जिसर कय्यूम टकटकी लगाए देखे जा रहा था, उसका एक हाथ अपनी पैंट के अगले हिस्से को कुरेदने लगा.
एक नशीली सी गंध काया की नाक से होती जिस्म मे जा रही थी, होंठो पे कुछ नमकीन सा लगा हुआ था,
"ययय... ये क्या " कोतुहाल मे काया ने जबान बाहर निकाल होंठ चाट लिए, एक कैसेली, नमकीन युक्त लेकिन बेहद ही अजीब सा स्वाद था, ये स्वाद उसके जिस्म मे एक गुदगुदी सी मचा रहा था.
"ऊऊह्ह्ह्ह.... नहीं... ये नहीं " काया के मन मे अभी थोड़ी देर पहले हुई घटना चल पड़ी उसे किसी बात का अंदेशा सताने लगा.
काया ने धीरे से गर्दन घुमा, कय्यूम की ओर देखा.
कय्यूम की नजर उस पर ही टिकी थी, लेकिन वो उसे नहीं देख रहा था उसकी नजर झुकी हुई थी, काया ने गर्दन झुका कर देखा, उसे बड़े मादक स्तन लगभग ब्लाउज से बाहर थे,
काया ने झट से पल्लू सही किया, उसका जिस्म सकपाकहट मे पसीने से नहा गया.
"ओह..... No...." काया ने तुरंत मुँह फेर लिया
"क्या हुआ मैडम जी " कय्यूम हैरान था काया ने उसे देख वापस क्यों मुँह फेर लिया.
"उफ्फ्फ... ये कैसे हो गया" काया मन ही मन बुदबूदाये जा रही थी.
"सब ठीक तो है ना मैडम जी " कय्यूम ने बात दोहराई
"वो... वो.... वहा " काया ने ऊँगली से कय्यूम की गर्दन पे इशारा कर दिया.
"क्या लगा है, कुछ भी तो नहीं " कय्यूम हैरानी से गर्दन पर हाथ फेर उंगलियां देखने लगा.
"ओफ़्फ़्फ़... वहा नहीं वहा " काया के चेहरे पे ना जाने क्यों इस खेल मे स्माइल आ गई थी.
कय्यूम ने मोबाइल निकाल फ्रंट कैमरा ऑन कर लिया, कय्यूम की गर्दन मे लाल होंठ छपे हुए थे.
" ये आपने क्या किया? " कय्यूम बनावटी गुस्से से बोला.
"सॉरी.... वो गलती से हो गया, गांव की सडक " काया ने भी जवाब उसी बनावटी गुस्से मे दे दिया.
दोनों के बीच बड़ी ही अच्छी छन रही थी. काया खुले विचार की लड़की थी, ज्यादा ओवर रियेक्ट नहीं करती थी.
"ये लीजिये साफ कर लीजिये " काया ने पर्स से टिश्यू पेपर निकाल दे दिया.
रहने दीजिये ऐसा हादसा नसीब वालो के साथ ही होता है"
"बाते बड़ी बना लेते है आप "
"सच ही तो बोल रहा हूँ, आप जैसी अप्सरा से ऐसा इनाम मिलना कोई आम बात है "
"कोई इनाम नहीं है गलती से हुआ"
साब कहाँ उतारू बड़ा बाजार आ गया, मकसूद की आवाज़ ने दोनों की चूहेलबाज़ी मे विघ्न डाल दिया.
कय्यूम को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन पी गया " यही शुरू मे उतार दे पेमंट लेनी है बाजार से "
"अच्छा मैडम जी.... कोई काम हो तो याद कीजियेगा " कय्यूम कार से उतरा कार झटके से ऊपर हो गई.
"बेचारी कार को सांस आई अब " काया मुस्कुरा दी.
"कुछ कहाँ मैडम जी आपने "
"नहीं... नहीं तो " काया मुस्कुरा दी.
बाहर कय्यूम पैंट के आगे हिस्से को एडजस्ट कर रहा था, सफ़ेद पैंट मे एक मोटी लम्बी आकृति बनी हुई दिख रही थी.
काया की सारी मुस्कुराहट तुरंत गायब हो गई, आंखे चौड़ी हो गई.
दिमाग़ मे सांय सांय हवा चल पड़ी, जब से बाबू का उभार देखा था तभी से ना चाहते हुए उसकी नजर मर्दो की जांघो के बीच चल जाया करती थी, लेकिन ये जो था इसके सामने बाबू का उभार तो कुछ नहीं था.
"नहीं... नहीं.... ये क्या सोचने लगी मै " काया ने तुरंत वो ख्याल दीमाग से झटक दिया.
कय्यूम काया की निशानी लिए बाजार मे एक तरफ चल दिया.
"मैडम पहले क्या लेना है?" मकसूद की आवाज़ से काया हक़ीक़त मे आई.
उसे अपनी सोच पर हैरानी हो रही थी, कैसे वो ये सब सोचने लगी.
काम की मारी स्त्री और क्या करे.
खेर मकसूद और काया कार से उतर मार्किट चल पड़े.
काया बताती गई, मकसूद झोला थैला उठाये पीछे पीछे काया की गांड की थिरकन देखते हुए चलता गया.
शाम 6बजे
मकसूद काया को वापस घर छोड़ आ चूका था.
"साब चले "
"हाँ मकसूद चलो "
"क्या बात है साब बड़े ख़ुश दिख रहे है "
"हाँ मकसूद आज बैंक का प्रॉफिट हुआ ना "
मकसूद को क्या पता बैंक क्या करता है, कैसा प्रॉफिट उसने कार दौड़ा दी.
थोड़ी ही देर मे
"मकसूद रुकना जरा, मै अभी आया "
रोहित कार से उतर सामने मेडिकल स्टोर पर चला गया, कुछ माँगा और जेब मे रख लिया.
"चलो मकसूद "
7pm
टिंग टोंग फ्लैट नंबर 51 की डोर बेल बज उठी.
काया के दरवाजा खोलते ही, काया... ओह काया रोहित काया से गले जा लगा.
"क्या बात है आके बहुत ख़ुश दिख रहे है "
"हाँ बात ही ऐसी है, रोहित सोफे पर जा बैठा.
"क्यों क्या हुआ?"
"वो कय्यूम के बारे मे बताया था ना मैंने "
"कौन कय्यूम दादा " काया के चेहरे पे भी मुस्कान आ गई, शायद आज दिन की नौक झोंक याद आ गई हो.
"काये का दादा कल धमका के आया था ना, आज पुरे 5लाख रूपए जमा कर गया " रोहित ऐसे बोला जैसे कोई जंग जीत के आया हो.
"ककककक..... क्या...." काया के चेहरे से मुस्कान काफूर थी उसकी जगह हैरानी ने ले ली थी.
वो खुद भी आज दिन मे कय्यूम से अचानक मिलने वाली बात बताना चाहती थी, लेकिन रूपए लौटने की बात ने उसे रोक लिया.
"ऐसे कैसे लौटा दिए "
"क्यों... कल गया तो था उसके पास, समझा के आया था "
काया हैरान थी, जो शक्ल जो हैसियत वो देख के आई थी उसके हिसाब से तो कय्यूम पैसे लौटने से रहा, फिर क्यों? कही... कही..... नहीं... ऐसा क्यों करेगा, मेरी वजह से? नहीं... नहीं....
काया दुविधा मे थी.
"क्या हुआ काया तुम ख़ुश नहीं हो?"
"नहीं... वो.. वो मतलब ख़ुश हूँ ना, मै पानी लाती हूँ " काया आपने ख्यालो मे चलती चली गई.
तो क्या कय्यूम वाकई अच्छा इंसान है या फिर इस लोन से भी बड़ा फायदा देख लिया उसने?
बने रहिये
Contd....