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Horror किस्से अनहोनियों के

Raj_sharma

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Saya ke update likh rahi hu. Is month tak use complete karna he.
Koi na lagi raho👍 mai jaroor padhta per kya karu yaar. Jo feel devnagri me aati hai wo hinglish me nahi aati :madno:
Sorry. Fir bhi kosis karunga kabhi time nikal ke
 

Shetan

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Koi na lagi raho👍 mai jaroor padhta per kya karu yaar. Jo feel devnagri me aati hai wo hinglish me nahi aati :madno:
Sorry. Fir bhi kosis karunga kabhi time nikal ke
Me janti hu. Koi bat nahi. Aage se jo bhi story likhungi devnagri me hi likhuungi
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

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Shetan

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Update 19A

दाई माँ चली गई. कोमल का रो रो कर बुरा हाल हो गया. दाई माँ उसके घर पहेली बार आई. और उसका भला कर के चली गई. ना उसके साथ रहने का मौका मिला और ना ही दाई माँ की सेवा करने का.

पर दाई माँ भी क्या करती. दो ख़तरनाक जिन्न उनके पास जो थे. दाई माँ अपने काम को लेकर मुल्क के वो सभी इलाके मे घूम चुकी थी. जिस से दाई माँ के पेशे से वास्ता था. सबसे नजदीक जगह दाई माँ को पता था.

गुजरात मे ही एक सारंगपुर नाम की जगह थी. जहापर एक पीर का स्थान था. वहां पर दरगाह के साथ ही एक पेड़ है. जिसपर कई सारी एनटीटी को बांध कर लटका दिया जता है. क्यों की पृथ्वी पर सभी जीवो का वक्त मुकरर है.

ऐसी एनटीटी जो दुसरो को तकलीफ पहोंचा सकती है. वो ऐसी जगह पर ही अपना वक्त बिताई यही सही है. ताकि कोई पजेश ना हो. दाई माँ एक लोकल ट्रैन पकड़ कर सारंगपुर के लिए तुरंत ही निकल गई.

वही कोमल बलबीर की बाहो मे मुँह छीपाए बस रोए ही जा रही थी. पर डॉ रुस्तम आगे की करवाई मे तुरंत ही जुट गए. उस ड्रेसिंग टेबल के शीशे को हवन की कलिक से काला किया. पर इतने बड़े टेबल को जलाने के लिए निचे ले जाना ज्यादा जरुरी था. वो अकेले नहीं लेजा सकते थे. ताकि उस एनटीटी का कोई लिंक ना रहे.


डॉ : ऐसे बैठे रहने से काम नहीं चलेगा. हमें काम ख़तम करना है. इस टेबल को निचे पहोंचाना होगा.


बलबीर तुरंत खड़ा हुआ. दोनों मिलकर टेबल निचे लेजाने लगे. कोमल ये सब खड़े खड़े देख रही थी. पर उसे भी लगा की उसे भी कुछ करना चाहिये. वो भी उनके साथ लग गई. कड़ी महेनत के बस वो तीनो मिलकर उस ड्रेसिंग टेबल को निचे पहोंचा देते है. कोमल की फ्लेट की बिल्डिंग के पास ही एक खाली प्लाट था. जिसमे झाड़िया जंगल टाइप हो गया था.

उस टेबल को वही लेजाकर जला दिया गया. वो तीनो थक गए. उस एनटीटी से जुडी सभी चीजे जल चुकी थी. वो तीनो ऊपर आए और थके हुए सोफे पर ही बैठ गए. कुछ देर कोई नहीं बोला.


डॉ : मेरे ख्याल से मुजे अब जाना चाहिये. मै रात की कोई फ्लाइट बुक कर लेता हु.


कोमल : प्लीज डॉक्टर साहब. आज तो रुक जाइये. देखो माँ भी मुजे छोड़ कर चली गई.


डॉ : उन्हें इस वक्त तो जाना ही बहेतर था. दो खतरनाक एनटीटी को लेकर किसी एक जगह रुकना ठीक नहीं है.


कोमल और सभी को काफ़ी अच्छा फील हो रहा था. माहोल मे एकदम से बदलाव आ चूका था. चारो तरफ पॉजिटिव वाइब्स आने लगी थी. हवन की खुशबु अब भी आ रही थी. कोमल डॉ रुस्तम के कहने का मतलब समझ भी गई. और उसका माइंड भी दाई माँ के दुख से डाइवर्ट हो चूका था.


डॉ : ठीक है. पर मै सिर्फ आज ही रुकूंगा. कल मे चले जाऊंगा.


कोमल : (स्माइल) इसी बात पे गरमा गरम चाय हो जाए.


कोमल तुरंत उठकर किचन मे चली गई. और चाय बनाने लगी. बलबीर और डॉ रुस्तम दोनों आमने सामने थे. कोमल भी उनकी बाते आसानी से सुन भी सकती थी. और बाते भी कर सकती थी.


बलबीर : डॉक्टर साहब आप इस पेशे मे कैसे आए??? मतलब ये सब भुत प्रेत आप ने पहेली बार कैसे देखे मतलब...


कोमल भी ये सब सुन रही थी. डॉ रुस्तम सोच मे पड़ गए. पर उन्होंने अपनी कहानी सुनना स्टार्ट किया.


डॉ : मै पहले एयर फोर्स मे था. मुजे जो सबसे पहेली एनटीटी मिली वो कुछ अलग ही थी. इस से पहले मेने कभी कोई पैरानॉर्मल एक्टिविटीज नहीं देखि थी. और ना ही मुजे किसी हॉरर स्टोरी मे इंटरस था.


कोमल : (किचन से ही) एयरफोर्स वाओ..


डॉ : उस वक्त मे सिर्फ 21 इयर्स का ही था. मै फ़्लाइंग लेफ्टनें की रैंक पर था.


कोमल : (किचन से ही) वाओ मतलब आप पायलट भी थे??


डॉ : जी बिलकुल. जयपुर एयर बेस पर मेरी पोस्टिंग थी. ये मेरी दूसरी पोस्टिंग थी. ये गर्मियों की बात है.

मै अपनी सोटी ख़तम कर के आ रहा था.
उस वक्त कैंप के चारो तरफ दिवार नहीं हुआ करती थी. बस तार से बाउंड्री फेंसिंग बनी हुई होती थी. कैंप हमेशा शहर के बहार की तरफ ही बनाए जाते है. और कैंप के पास कोई रेजिडेंस भी नहीं होते.

बस कुछ 10 या 12 घर ही होते है. जिसका दाना पानी कैंप की वजह से ही चलता है. फ्रेश, दूध, बहोत कुछ सप्लाई करने वाले ही कैंप के पास अपना घर बना लेते है. हा कैंप के बहार बाउंड्री की तरफ पोल लाइट जरूर होती है. बाउंड्री की उस तरफ कच्चा रस्ता भी था.

जिसपर हमारी पेट्रोल पार्टी, शहर जाने के लिए रोड तक का रस्ता हुआ करता था. जब मै अपनी सोटी कम्प्लीट कर के वापिस आ रहा था. मुजे बाउंड्री पर एक बच्चा दिखाई दिया. कुछ 4 या 5 साल का लग रहा था. मेरे आगे मेरे एक साथी भी चल रहे थे. जो मुझसे सीनियर थे. मेने उन्हें आवाज दि.



मै : संदीप सर.


उन्होंने पीछे मुड़कर मुजे देखा. मै उनके पास गया.


मै : सर मेने वहां एक 4,5 साल के बच्चे को देखा. जो बोल से खेल रहा है.


संदीप : हम्म्म्म होगा कोई घर पे माँ बाप सो रहे होंगे. बच्चा बहार निकल गया होगा.


मै : सर मै उसे उसके घर तक पहोंचाकर आता हु.


संदीप : गुड... जाओ मगर अपना बेल्ट और पिस्तौल मुजे दे दो. और छोड़ कर जल्दी आ जाना.


मेने उन्हें पिस्टल और बेल्ट दे दिया. और बाउंड्री की तरफ दोडते हुए जाने लगा. जब मै कैम्प की बाउंड्री की तरफ गया तो देखा की सच मे वो छोटा बच्चा ही था. और अकेला मस्त एक बोल के साथ खेल रहा था.


तभी वहां कोमल चाय की ट्रे लेकर आ गई.


कोमल : कैसे माँ बाप होंगे जिन्हे होश तक नहीं की उनका बच्चा इतनी रात को घर से बहार निकल गया. कितने बज रहे होंगे वो टाइम.


डॉ रुस्तम बस थोडा सा हसे कोमल ने उनकी तरफ चाय का कप बढ़ाया था. उसे ले लेते है.


डॉ : (स्माइल एक्क्सइटेड) रात के एक बज रहे थे उस वक्त.


सुनते ही कोमल के होश ही उड़ गए.


कोमल : फिर तो अच्छा ही हुआ की आप की नजर पड़ गई. कोई जानवर या किसी बदमाश के हाथ आ जाता तो...


डॉ रुस्तम को हसीं आने लगी.


डॉ : (स्माइल) जो दीखता है. हर बार ऐसा नहीं होता. जो तुम सोच रही हो.

मेने भी ऐसा ही सोचा था. मै बाउंड्री तक पहोच कर उस बच्चे को देखने लगा. वो तो मस्त होकर खेल रहा था. कभी बोल को उछालता और खुद ही कैच करने की कोसिस करता. मेने दए बाए भी देखा. वहां कोई नहीं था. मेने उस बच्चे को आवाज दि.


मै : हेलो बेटा हेलो हेलो.


आवाज देते ही वो रुक गया. और मुजे देखने लगा.


मै : हेलो बेटा तुम्हारा घर कहा है????


उसने उस रास्ते की तरफ बस हाथ दिखाया. वो रस्ता कैम्प के साइड से ही कैंप की बाउंड्री बाउंड्री गेट तक जाता है. बस वही सिविलियन के घर भी है. कुछ 10, 12 के आस पास. मै बाउंड्री मेसे बहार निकल गया. और उसके पास गया.


मै : बेटा इतनी रात को बहार नहीं निकलते. चलो मै तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हु.


मेने उसे गोदी मे उठा लिया. और कैंप के बहार की तरफ के कच्चे रास्ते पर चलने लगा. वो रस्ता कैंप के साथ साथ ही था. उस वक्त मुजे टॉफी खाने की बहोत आदत थी. चालू सोटी मे भी मै टॉफी खाया करता था. मेने जेब से एक टॉफी निकली और उसे दे दि.


मै : लो बेटा टॉफी खाओ.


उसने वो टॉफी ले ली. उसे गोद मे उठाए मै चले जा रहा था. मै उस से कुछ भी पूछता वो जवाब ही नहीं दे रहा था. पर जो मेरे साथ हो रहा था. वो कुछ अजीब था. उस बच्चे को जब मेने उठाया. वो एकदम हलका ही था. जैसे हर बच्चे का वजन होता है. पर धीरे धीरे मुजे एहसास होने लगा की उसका वेट बढ़ रहा है. अब जो मै बताऊंगा तो तुम्हारे होश उड़ जाएंगे. वो बच्चा धीरे धीरे बड़ा हो रहा था. गांव मे मेने लोगो से ऐसे किस्से सुने थे.

मै समझ गया की ये कोई गलत चीज है. मेने उसे जोर से पटका. और वो बच्चा एकदम बड़ा जमीन पर गिरा. और गिरते ही वो वहां से भागने लगा. मै देखता ही रहे गया. वो वहां से भाग गया.


बलबीर : वो तो फिर छलवा था.


बलबीर गांव का था. और उसने ऐसे किस्से सुन रखे थे. भले ही उसने ऐसा कुछ देखा नहीं था. पर उसे जानकारी थी.


डॉ : बिलकुल सही कहा. हम फौजी किसी चीज से डरते तो नहीं. पर मेरे साथ पहेली बार हुआ था. इस लिए मुजे डर लगने लगा.

मै वहां से कैंप मै आ गया. मै बाउंड्री से नहीं गया. बल्कि रास्ते से ही गेट तक आया. सुबह मेने अपने सीनियर संदीप सर को भी ये किस्सा सुनाया. पर सर बोले की उस वक्त मुजे कोई बच्चा नहीं दिखा. मेने तुम्हारी बात पर यकीन किया.

बाद मे मै और संदीप सर उन सिविल मकानों की तरफ गए. सर सायद किसी को जानते थे. वहां एक बंजारा भी रहता था. जो अपनी भेड़ बकरिया कैंप के पास चराया करता था. हमने उनसे बात करी. और उसने हमें बताया की वो एक छलवा था.


कोमल : चलावा??? वो क्या होता है???


बलबीर : छलवा वो होता है जो सुमसान रास्ते या खेत मे मिले लोगो को छल से फसता है. और उन्हें किसी ना किसी तरह मरवाता है. जैसे की एक्सीडेंट करवाएगा. किसी गाड़ी के निचे ले आएगा. या पानी मे डुबवा देगा. या खाई मे कुड़वा देगा.


कोमल : तो फिर उन्होंने डॉक्टर साहब को कैसे जिन्दा छोड़ दिया??.


बलबीर : क्यों की डॉक्टर साहब ने उसे टॉफी दि थी. अगर उसे कोई चीज दे दो तो वो उन्हें नहीं फसता है. पर डॉक्टर साहब उसे गोद मे लेकर चलने लगे तो उसे उनसे पीछा छुड़ाना था. इस लिए उस छालावे ने ऐसा किया.


कोमल : (स्माइल) वाह बलबीर तुम तो बहोत कुछ जानते हो. पर तुम छालावे के बारे मे इतना सब कैसे जानते हो?.?

 

Shetan

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Update 19B


बलबीर ने डॉ रुस्तम की तरफ देखा. जैसे बलबीर उनकी परमिसन चाहता हो. डॉ रुस्तम ने भी गर्दन हिलाकर हा मे सहमति दे दि.



डॉ : हा बलबीर पर रुको. इस एनटीटी के बारे मे मै कुछ बताता हु.

ये अमूमन सुमशान रास्ते पर या जंगल या खाली खेतो मे ज्यादा मिलते है. ये लोहे और आग से दूर रहते है. लोग इस से ज़्यादातर पजेश तो गांव के बहार वाले रास्ते पर या खेतो मे अकेले ही होते है. इनकी सबसे खास बात ये है की ये किसी का भी रूप ले सकते है. कभी तो ये कुत्ता या गाय बन जाते है.

तो कभी बकरी. ये इंसान का भी रूप ले लेते है. कभी ये छोटा बच्चा बनाकर मिलेंगे तो कभी बुढ़िया बनकर. ये कभी कभी तो हमारे सामने हमारे माँ बाप भाई बहन या दोस्त के रूप मे भी मिल जाते है. इसी लिए इन्हे छलवा कहते है. बलबीर ने ऐसे किस्से गांव मे सुने ही होंगे. क्यों बलबीर क्या मे सही हु????


बलबीर : हा डॉक्टर साहब. हमारे गांव मे भी ऐसे किस्से हो चुके है. और वो भी मेरे बाबा मतलब मामा के साथ ही.


बलबीर गांव का भांजा था. वो अपने मामा के घर बड़ा हुआ था. छोटा था तब से ही वो अपने मामा मामी को ही माँ बाबा बोलता था.


बलबीर : उस वक्त मे काफ़ी छोटा था. कितनी उम्र होंगी याद नहीं. मेरे बाबा खेतो मे रात पानी देने गए थे.. ठंड बहोत थी. गेहूं का सबसे पहला पानी था. पानी देते वक्त उन्हें किसी ने पुकारा. आवज से जोरावर चाचा लग रहे थे.


जोरावर चाचा : रे भगवान सिंह. हुक्का पजार ले.
(भगवान सिंह हुक्का जला ले )


भगवान सिंह(मामा) : अब सबरे खेतन मे तो पानी हते. आयजा तोए बीड़ी पीबा दाऊ.


बाबा को जोरावर चाचा की आवाज तो सुनाई दि. पर वो दिखे नहीं थे. बाबा ने दो बीड़ी जला ली. पर जोरावर चाचा आए नहीं. बाबा ने आवाज भी दि.


भगवान सिंह : रे जोरावर... ओओ जोरावर. रे कहा रेह गो?? (कहा रहे गया???)


पर कोई नहीं आया. बाबा को शक हो गया. वो इस लिए नहीं आया क्यों की बाबा के हाथो मे फावड़ा था. वो हुक्का के बहाने बाबा से फावड़ा रखवाना चाहता था. वो आग जलाने से पहले बाबा को अपनी चपेट मे ले लेता. बाबा वहां से उसी वक्त चल दिये. ना तो उन्होंने अपना फावड़ा छोड़ा. और ना ही बीड़ी बूझने दी.

जब घर आए तो उन्होंने ये किस्सा माँ को सुनाया. मेने भी तब ही सुना. उन्होंने ये बात जोरावर चाचा को भी बताई. पर वो तो खेतो मे गए ही नहीं थे. अब इस बात के साल भर बाद. जोरावर चाचा बगल वाले गांव के एक लड़के से बात करते हुए गांव मे आ रहे थे. उस वक्त शाम थी. अंधेरा हो चूका था.


जोरावर : रे रामु सबेरे 4 बजे आ जाना. हम दोनों काम शुरू कर देंगे. हमें सुबह सुबह एक बिगा तो काम से काम खोदना ही पड़ेगा.


रामु : मै आ तो जाऊंगा चाचा. पर सबेरे सबेरे दरवाजा खट ख़तऊंगा चाची डांटेगी. पिछली साल भी मुजे खूब खरी खोटी सुनाई.


जोरावर : रे बावरे मै पहले ही कमरे मे सोऊंगा. तू बस आवज देना. दरवाजा मत खट खटाना.


रामु : ठीक है चाचा. 4 बजे मै आवाज लगा दूंगा. खेतो मे ही जंगल पानी( टॉयलेट) चले जाएंगे.


जोरावर : ठीक है.


अब जोरावर चाचा रात सो गए. उनके पास घड़ी थी नहीं. और उस वक्त मोबाइल कहा होता था. रात 2 बजे ही उन्हें रामु की आवाज आई.


रामु : चाचा.... चाचा...


जोरावर चाचा उठ गए. और दरवाजा खोल कर देखते है की रामु बहार खड़ा है.


जोरावर : रे रामु??? बड़ी जल्दी 4 बज गए रे. रुक मै औजार लेकर आता हु.


चाचा दो फावडे लेकर बहार निकले तो रामु आगे आगे चल दिया. अब चाचा को उसे फावडे पकड़वाने थे. मगर रामु तो आगे आगे चल रहा था. चाचा ने दो बीड़ी भी जलाई.


जोरावर : रे ले रामु. इतना तेज कहे चल रहा है. बीड़ी तो ले ले.


पर वो रुका नहीं.


रामु : अरे बीड़ी पिऊंगा तो यही लग जाएगी. जंगल पानी जाते वक्त ही लूंगा. जल्दी चलो सूरज माथे चढ़ गया तो काम होना मुश्किल है.


चाचा अपनी बीड़ी पीते चुप चाप चलने लगे. वो ट्यूबवेल के पास पहोचे और फावडे को अपने पास रखे बैठ कर दूसरी बीड़ी जलाकर पिने लगे. वो सोच रहे थे की पहले टॉयलेट जाए फिर काम शुरू करेंगे. पर आधा घंटा भी नहीं हुआ और रामु आ गया.


रामु : लो चाचा. पूरा खेत खोद दिया. अब चलो पोखर. जंगल पानी हो आए.


चाचा हैरान रहे गए. वो फावड़ा उठाकर खेतो मे गए. बात एक बिगा खोदने की थी. मगर 7 बिगाह खुद चूका था. चाचा हैरान रहे गए. अब चाचा को सक हुआ. पर रामु सामने ही खड़ा था.


रामु : अरे चलो ना चाचा. पोखर मे ही जंगल पानी हो जाएगा. वही धो लेंगे.


चाचा डर गए. और वो उसी के साथ चल पड़े. पर उन्हें ये ध्यान ही नहीं था की उनके हाथ मे फावड़ा है. जब पोखर के करीब पहोचे तब. वो दोनों खड़े हो गए.


रामु : चाचा ये फावड़ा यहाँ रखो. और जाओ हो आओ हलके.


चाचा : नहीं पहले तू जा आ.


रामु जैसे ही आगे गया. चाचा तुरंत वहां से गांव की तरफ चल पड़े. वो समझ गए थे की फावड़ा रखा तो वो जिन्दा नहीं बचेंगे. मगर जाती वक्त उन्हें आवाज भी सुनाई दीं. वो छलवा ही था.


छलावा : (हसना) जोरावर आज तू जिन्दा बच गया. मगर जिस दिन तू मेरे हाथ आया. तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा.


बलबीर शांत हो गया. मगर कोमल फटी आँखों से उसे ही देख रही थी. कोमल को ऐसे देख कर बलबीर डर गया.


बलबीर : कोमल... तुम ठीक...


कोमल : मुजे क्या हुआ. फट्टू हो तुम.


कोमल खड़ी हुई और किचन मे चली गई.


कोमल : मै डिनर बना रही हु. किसी को कुछ खाने का मन हो तो बता दो.



डॉ रुस्तम को हलकी सी हसीं आई. क्यों की बलबीर खुद कहानी सुनते हलका सा डर गया. मगर कोमल को तो बिलकुल डर नहीं था. उल्टा वो लीन होकर किस्सा सुन रही थी. जाने से पहले डॉ रुस्तम कोमल से पूछना चाहते थे की क्या वो इनके साथ पैरानॉरोल इन्वेस्टिगेशन मे काम करना चाहेगी या नहीं.
 
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दाई माँ चली गई. कोमल का रो रो कर बुरा हाल हो गया. दाई माँ उसके घर पहेली बार आई. और उसका भला कर के चली गई. ना उसके साथ रहने का मौका मिला और ना ही दाई माँ की सेवा करने का.

पर दाई माँ भी क्या करती. दो ख़तरनाक जिन्न उनके पास जो थे. दाई माँ अपने काम को लेकर मुल्क के वो सभी इलाके मे घूम चुकी थी. जिस से दाई माँ के पेशे से वास्ता था. सबसे नजदीक जगह दाई माँ को पता था.

गुजरात मे ही एक सारंगपुर नाम की जगह थी. जहापर एक पीर का स्थान था. वहां पर दरगाह के साथ ही एक पेड़ है. जिसपर कई सारी एनटीटी को बांध कर लटका दिया जता है. क्यों की पृथ्वी पर सभी जीवो का वक्त मुकरर है.

ऐसी एनटीटी जो दुसरो को तकलीफ पहोंचा सकती है. वो ऐसी जगह पर ही अपना वक्त बिताई यही सही है. ताकि कोई पजेश ना हो. दाई माँ एक लोकल ट्रैन पकड़ कर सारंगपुर के लिए तुरंत ही निकल गई.

वही कोमल बलबीर की बाहो मे मुँह छीपाए बस रोए ही जा रही थी. पर डॉ रुस्तम आगे की करवाई मे तुरंत ही जुट गए. उस ड्रेसिंग टेबल के शीशे को हवन की कलिक से काला किया. पर इतने बड़े टेबल को जलाने के लिए निचे ले जाना ज्यादा जरुरी था. वो अकेले नहीं लेजा सकते थे. ताकि उस एनटीटी का कोई लिंक ना रहे.


डॉ : ऐसे बैठे रहने से काम नहीं चलेगा. हमें काम ख़तम करना है. इस टेबल को निचे पहोंचाना होगा.


बलबीर तुरंत खड़ा हुआ. दोनों मिलकर टेबल निचे लेजाने लगे. कोमल ये सब खड़े खड़े देख रही थी. पर उसे भी लगा की उसे भी कुछ करना चाहिये. वो भी उनके साथ लग गई. कड़ी महेनत के बस वो तीनो मिलकर उस ड्रेसिंग टेबल को निचे पहोंचा देते है. कोमल की फ्लेट की बिल्डिंग के पास ही एक खाली प्लाट था. जिसमे झाड़िया जंगल टाइप हो गया था.

उस टेबल को वही लेजाकर जला दिया गया. वो तीनो थक गए. उस एनटीटी से जुडी सभी चीजे जल चुकी थी. वो तीनो ऊपर आए और थके हुए सोफे पर ही बैठ गए. कुछ देर कोई नहीं बोला.


डॉ : मेरे ख्याल से मुजे अब जाना चाहिये. मै रात की कोई फ्लाइट बुक कर लेता हु.


कोमल : प्लीज डॉक्टर साहब. आज तो रुक जाइये. देखो माँ भी मुजे छोड़ कर चली गई.


डॉ : उन्हें इस वक्त तो जाना ही बहेतर था. दो खतरनाक एनटीटी को लेकर किसी एक जगह रुकना ठीक नहीं है.


कोमल और सभी को काफ़ी अच्छा फील हो रहा था. माहोल मे एकदम से बदलाव आ चूका था. चारो तरफ पॉजिटिव वाइब्स आने लगी थी. हवन की खुशबु अब भी आ रही थी. कोमल डॉ रुस्तम के कहने का मतलब समझ भी गई. और उसका माइंड भी दाई माँ के दुख से डाइवर्ट हो चूका था.


डॉ : ठीक है. पर मै सिर्फ आज ही रुकूंगा. कल मे चले जाऊंगा.


कोमल : (स्माइल) इसी बात पे गरमा गरम चाय हो जाए.


कोमल तुरंत उठकर किचन मे चली गई. और चाय बनाने लगी. बलबीर और डॉ रुस्तम दोनों आमने सामने थे. कोमल भी उनकी बाते आसानी से सुन भी सकती थी. और बाते भी कर सकती थी.


बलबीर : डॉक्टर साहब आप इस पेशे मे कैसे आए??? मतलब ये सब भुत प्रेत आप ने पहेली बार कैसे देखे मतलब...


कोमल भी ये सब सुन रही थी. डॉ रुस्तम सोच मे पड़ गए. पर उन्होंने अपनी कहानी सुनना स्टार्ट किया.


डॉ : मै पहले एयर फोर्स मे था. मुजे जो सबसे पहेली एनटीटी मिली वो कुछ अलग ही थी. इस से पहले मेने कभी कोई पैरानॉर्मल एक्टिविटीज नहीं देखि थी. और ना ही मुजे किसी हॉरर स्टोरी मे इंटरस था.


कोमल : (किचन से ही) एयरफोर्स वाओ..


डॉ : उस वक्त मे सिर्फ 21 इयर्स का ही था. मै फ़्लाइंग लेफ्टनें की रैंक पर था.


कोमल : (किचन से ही) वाओ मतलब आप पायलट भी थे??


डॉ : जी बिलकुल. जयपुर एयर बेस पर मेरी पोस्टिंग थी. ये मेरी दूसरी पोस्टिंग थी. ये गर्मियों की बात है.

मै अपनी सोटी ख़तम कर के आ रहा था.
उस वक्त कैंप के चारो तरफ दिवार नहीं हुआ करती थी. बस तार से बाउंड्री फेंसिंग बनी हुई होती थी. कैंप हमेशा शहर के बहार की तरफ ही बनाए जाते है. और कैंप के पास कोई रेजिडेंस भी नहीं होते.

बस कुछ 10 या 12 घर ही होते है. जिसका दाना पानी कैंप की वजह से ही चलता है. फ्रेश, दूध, बहोत कुछ सप्लाई करने वाले ही कैंप के पास अपना घर बना लेते है. हा कैंप के बहार बाउंड्री की तरफ पोल लाइट जरूर होती है. बाउंड्री की उस तरफ कच्चा रस्ता भी था.

जिसपर हमारी पेट्रोल पार्टी, शहर जाने के लिए रोड तक का रस्ता हुआ करता था. जब मै अपनी सोटी कम्प्लीट कर के वापिस आ रहा था. मुजे बाउंड्री पर एक बच्चा दिखाई दिया. कुछ 4 या 5 साल का लग रहा था. मेरे आगे मेरे एक साथी भी चल रहे थे. जो मुझसे सीनियर थे. मेने उन्हें आवाज दि.



मै : संदीप सर.


उन्होंने पीछे मुड़कर मुजे देखा. मै उनके पास गया.


मै : सर मेने वहां एक 4,5 साल के बच्चे को देखा. जो बोल से खेल रहा है.


संदीप : हम्म्म्म होगा कोई घर पे माँ बाप सो रहे होंगे. बच्चा बहार निकल गया होगा.


मै : सर मै उसे उसके घर तक पहोंचाकर आता हु.


संदीप : गुड... जाओ मगर अपना बेल्ट और पिस्तौल मुजे दे दो. और छोड़ कर जल्दी आ जाना.


मेने उन्हें पिस्टल और बेल्ट दे दिया. और बाउंड्री की तरफ दोडते हुए जाने लगा. जब मै कैम्प की बाउंड्री की तरफ गया तो देखा की सच मे वो छोटा बच्चा ही था. और अकेला मस्त एक बोल के साथ खेल रहा था.


तभी वहां कोमल चाय की ट्रे लेकर आ गई.


कोमल : कैसे माँ बाप होंगे जिन्हे होश तक नहीं की उनका बच्चा इतनी रात को घर से बहार निकल गया. कितने बज रहे होंगे वो टाइम.


डॉ रुस्तम बस थोडा सा हसे कोमल ने उनकी तरफ चाय का कप बढ़ाया था. उसे ले लेते है.


डॉ : (स्माइल एक्क्सइटेड) रात के एक बज रहे थे उस वक्त.


सुनते ही कोमल के होश ही उड़ गए.


कोमल : फिर तो अच्छा ही हुआ की आप की नजर पड़ गई. कोई जानवर या किसी बदमाश के हाथ आ जाता तो...


डॉ रुस्तम को हसीं आने लगी.


डॉ : (स्माइल) जो दीखता है. हर बार ऐसा नहीं होता. जो तुम सोच रही हो.

मेने भी ऐसा ही सोचा था. मै बाउंड्री तक पहोच कर उस बच्चे को देखने लगा. वो तो मस्त होकर खेल रहा था. कभी बोल को उछालता और खुद ही कैच करने की कोसिस करता. मेने दए बाए भी देखा. वहां कोई नहीं था. मेने उस बच्चे को आवाज दि.


मै : हेलो बेटा हेलो हेलो.


आवाज देते ही वो रुक गया. और मुजे देखने लगा.


मै : हेलो बेटा तुम्हारा घर कहा है????


उसने उस रास्ते की तरफ बस हाथ दिखाया. वो रस्ता कैम्प के साइड से ही कैंप की बाउंड्री बाउंड्री गेट तक जाता है. बस वही सिविलियन के घर भी है. कुछ 10, 12 के आस पास. मै बाउंड्री मेसे बहार निकल गया. और उसके पास गया.


मै : बेटा इतनी रात को बहार नहीं निकलते. चलो मै तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ देता हु.


मेने उसे गोदी मे उठा लिया. और कैंप के बहार की तरफ के कच्चे रास्ते पर चलने लगा. वो रस्ता कैंप के साथ साथ ही था. उस वक्त मुजे टॉफी खाने की बहोत आदत थी. चालू सोटी मे भी मै टॉफी खाया करता था. मेने जेब से एक टॉफी निकली और उसे दे दि.


मै : लो बेटा टॉफी खाओ.


उसने वो टॉफी ले ली. उसे गोद मे उठाए मै चले जा रहा था. मै उस से कुछ भी पूछता वो जवाब ही नहीं दे रहा था. पर जो मेरे साथ हो रहा था. वो कुछ अजीब था. उस बच्चे को जब मेने उठाया. वो एकदम हलका ही था. जैसे हर बच्चे का वजन होता है. पर धीरे धीरे मुजे एहसास होने लगा की उसका वेट बढ़ रहा है. अब जो मै बताऊंगा तो तुम्हारे होश उड़ जाएंगे. वो बच्चा धीरे धीरे बड़ा हो रहा था. गांव मे मेने लोगो से ऐसे किस्से सुने थे.

मै समझ गया की ये कोई गलत चीज है. मेने उसे जोर से पटका. और वो बच्चा एकदम बड़ा जमीन पर गिरा. और गिरते ही वो वहां से भागने लगा. मै देखता ही रहे गया. वो वहां से भाग गया.


बलबीर : वो तो फिर छलवा था.


बलबीर गांव का था. और उसने ऐसे किस्से सुन रखे थे. भले ही उसने ऐसा कुछ देखा नहीं था. पर उसे जानकारी थी.


डॉ : बिलकुल सही कहा. हम फौजी किसी चीज से डरते तो नहीं. पर मेरे साथ पहेली बार हुआ था. इस लिए मुजे डर लगने लगा.

मै वहां से कैंप मै आ गया. मै बाउंड्री से नहीं गया. बल्कि रास्ते से ही गेट तक आया. सुबह मेने अपने सीनियर संदीप सर को भी ये किस्सा सुनाया. पर सर बोले की उस वक्त मुजे कोई बच्चा नहीं दिखा. मेने तुम्हारी बात पर यकीन किया.

बाद मे मै और संदीप सर उन सिविल मकानों की तरफ गए. सर सायद किसी को जानते थे. वहां एक बंजारा भी रहता था. जो अपनी भेड़ बकरिया कैंप के पास चराया करता था. हमने उनसे बात करी. और उसने हमें बताया की वो एक छलवा था.


कोमल : चलावा??? वो क्या होता है???


बलबीर : छलवा वो होता है जो सुमसान रास्ते या खेत मे मिले लोगो को छल से फसता है. और उन्हें किसी ना किसी तरह मरवाता है. जैसे की एक्सीडेंट करवाएगा. किसी गाड़ी के निचे ले आएगा. या पानी मे डुबवा देगा. या खाई मे कुड़वा देगा.


कोमल : तो फिर उन्होंने डॉक्टर साहब को कैसे जिन्दा छोड़ दिया??.


बलबीर : क्यों की डॉक्टर साहब ने उसे टॉफी दि थी. अगर उसे कोई चीज दे दो तो वो उन्हें नहीं फसता है. पर डॉक्टर साहब उसे गोद मे लेकर चलने लगे तो उसे उनसे पीछा छुड़ाना था. इस लिए उस छालावे ने ऐसा किया.


कोमल : (स्माइल) वाह बलबीर तुम तो बहोत कुछ जानते हो. पर तुम छालावे के बारे मे इतना सब कैसे जानते हो?.?
Superb update shetan ji👌🏻👌🏻👌🏻 ro abki baar chalawa ke baare me hai :D
Bohot ache. Waise chalawa itni aasani se pakad me nahi aata jitna ki dr. Rustam bata rahe hai👍
 

Shetan

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Superb update shetan ji👌🏻👌🏻👌🏻 ro abki baar chalawa ke baare me hai :D
Bohot ache. Waise chalawa itni aasani se pakad me nahi aata jitna ki dr. Rustam bata rahe hai👍
आसान तो कोई भी नहीं. सबसे नार्मल वाली भी कम से कम 5 घंटे खा जाती है.
 

Logan(Wolverine)

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Very interesting update,

Jab mein chhota thaa to bhoit-pret AUR insaanoli boore logo SE dartaa thaa, USKE LIYE merit maa ne mujhevghode ki naal ka lohe ka kadaa pehnaya , Jo 6 months tak mene pehene rakhaa thaa, magar kuchh kamine ladle the Jo iskaa majaak banaate the, ki yeh old fashion hai ya aisa hai ya vaise hai tareh tareh ki baatein karke, uske baad pareshaan hokar mene wah lohe ka kadaa apni kalaai SE hataa diya, usse pehle ek ladle ne mera majaak banaaya thaa uska chehra par punch maarkar ( ghode ki nasl SE bane kade ke dwara) uska chehra bigaad diya uski aankh tak soojh gayi,
Ghode ki naal waale kade ko hataane par mene apne agle 2.5 saal darr ke saaye me bitaaye, magar usme koi paranormal activities nahi thi,
Vaise me bachhpan me average personality ( na bahadur na hi darpok) thaa.


Meri maa ki daadi bhoot-pret ityaadi me kaafi vishwaas rakhti thi, unka, meri maa Aur mera janm u.p. me huaa, aur meri poori life Delhi me biti,
 
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