अंत में दाई माँ की ही जीत हुयी।
शक्तियां सात्विक हों या तामसिक, उनका प्रयोग किस प्रकार और किस उदेश्य के लिए किया जाता है यह महत्वपूर्ण है और यही उस शक्तिवान के प्रति आदर से सर झुकवा देता है, अगर वह उन का इस्तेमाल लोगों के कष्टों को दूर करने के लिए करता है।
और यह बात तंत्र से बाहर भी मानव समाज में लागू है
समरथ के नहीं दोष गुसाईं
लेकिन गोस्वमी जी की पूरी बात पढ़े तो समझ में आता है
समरथ के नहीं दोष गुसाई
रवि, पावक , सुरसरि की नाइ,
" ऐसा सामर्थ्यवान, जो सूर्य, अग्नि और गंगा की तरह हो, किसी में भेद न करता है, सब के लिए उसके गुण समान हो, सूर्य की किरण के बिना जीवन एक पल नहीं रह सकता, आग हर घर में खाने को आंच देती है और गंगा सब के पाप, जाति, धर्म, सम्प्रदाय देखे बिना धोती है, तो ऐसे सामर्थ में दोष नहीं
दाई माँ का चरित्र जो आपने रचा है एकदम इसी प्रकार है, सब की सहायता करने वाली, निश्छल। और उनके जाने से कोमल का दुखी होना स्वाभाविक है, दुरजन और सज्जन में यही तो अंतर है, एक के मिलने से दुःख होता है दूसरे के बिछुड़ने से।