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Ye raat kab hogi yaar 3 din ho gaye.हां अभी लिख रही हूं रात तक पोस्ट कर दूंगी
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Ye raat kab hogi yaar 3 din ho gaye.हां अभी लिख रही हूं रात तक पोस्ट कर दूंगी
आज जितना भी लिखूँगी पोस्ट कर दूंगी.Ye raat kab hogi yaar 3 din ho gaye.
Kar hi daloआज जितना भी लिखूँगी पोस्ट कर दूंगी.
वाह... चलो कर रही हु पोस्टKar hi dalo![]()
Bohot badhiya update shetan.A
Update 27A
कोमल जब उस स्कूल से बहार निकली उसे बहोत ही हलका महसूस हो रहा था. जैसे अंदर उसका दम घुट रहा हो. और बहार निकलते ही उसे सांस लेने मे आसानी हुई हो. कोमल बहार निककते हो हाफ रही थी.
तभि उसे कुछ आवाजे आई. लाठी पटकने की. कई लोगो के कदमो की. कोमल ने सर उठाकर देखा तो एक भीड़ उसकी तरफ ही चली आ रही थी. कोमल ने देखा की बिच मे सबसे आगे डॉ रुस्तम है.
उसके साथ मुखिया भी थे. पीछे कुछ लोग चले आ रहे थे. दो लोग दयाराम का पीछे से कुर्ते की कोलर पकड़ रखी थी. वो हाथ जोड़े रो रहा था. गिड़गिड़ा रहा था. पर वो दो मर्द उसे धक्का देकर वहां ला रहे थे.
वो सारे स्कूल के बहार खड़े हो गए. डॉ रुस्तम कोमल के पास आए. डॉ रुस्तम ने कोमल को स्माइल करते हुए देखा.
डॉ : (स्माइल) मूर्ति मिल गई.
कोमल हैरानी से कभी डॉ रुस्तम को देखती है. फिर भीड़ को. कोमल ने बारी बारी सबको देखा.
कोमल : (सॉक) कहा है???
उस भीड़ से कुछ लोग साइड हटे. और पीछे बैलगाड़ी खड़ी थी. जिसमे कुछ 3 फिट बड़ी पत्थर की माता की मूर्ति थी. कोमल के फेस पर भी स्माइल आ गई. आंखे बंद किये उसने राहत की शांस ली.
डॉ : दाई माँ कहा है??
कोमल : वो अंदर है. उन्होंने उन बच्चों को सायद बांध दिया है. पर वो बहार नहीं आई.
डॉ : सायद बहोत लोगो ने यहाँ सुसाइड एटम किया है. उन एंटिटीस से संपर्क कर रही हो.
कोमल : तो अब क्या करेंगे???
डॉ : माँ को आने दो. पंचायत लगेगी.
कोमल : बलबीर कहा है??
डॉ कुछ बोले नहीं बस स्माइल करते है. कोमल को एहसास हुआ की उसके बगल मे कोई खड़ा है. कोमल ने एकदम से बलबीर को देखा. और वो झपट के इसके बाहो मे चली गई.
बलबीर : अरे... क्या कर रही हो.... सब....
कोमल को हसीं आने लगी. बलबीर गांव का ही था. और वो लोग किसी गांव मे ही थे. इसी लिए बलबीर को शर्म आ रही थी.
डॉ : चलो हम उस पेड़ के निचे चलते है. जब तक दाई माँ नहीं आती.
दोपहर हो चुकी थी. और धुप तेज़ भी हो गई थी. वो लोग एक पेड़ के निचे चले गए. दिन दयाल को भी उन लोगो ने पकड़ के रखा. जब तक दाई माँ नहीं आई. दिन दयाल के रोने के कारण सब बहोत इरेट हुए. पर किसी को भी उस पर दया नहीं आ रही थी.
उल्टा सब तो उसे बिच बिच मे गालिया देते. कोई तो ज्यादा ही परेशान हो जता तो खड़े होकर दिन दयाल को एक थप्पड़ भी मर देता. दोपहर के दो बजे दाई माँ बहार निकली. उनके हाथो मे उनका वही झोला था. पर हाथो मे चार पांच लाल कपड़ो मे लटकाती हांडी.
वो बहोत छोटी छोटी ही थी. बलबीर तुरंत भाग कर दाई माँ के पास पहोंचा. दाई माँ ने उसे अपना झोला तो दिया. मगर वो हंडिया नहीं दी.बलवीर दाई माँ को उस पेड़ की छाव तक ले आया. डॉ रुस्तम का एक टीम मेंबर तुरंत दाई माँ के लिए प्लास्टिक चेयर ले आया.
दाई माँ को पानी दिया. पर उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. दाई माँ ने थोड़ी शांस ली. पसीना पोछा. और अपने आप को ठीक किया.
दाई माँ : जे सारे सुन लो. जिन लोगन ने मरे भए को छू रखो है. बे सारे कछु खानो पिनो अभाल मत कर दीजो. मरे भए है बा की पनोती लगेगी.
(ये सारे सुन लो. जिन लोगो ने मरे हुए लोगो का कुछ भी छुआ है तो कुछ भी खाना पीना मत. मरे हुए है. उनकी पनोती लगेगी.)
बलबीर : माँ इस से वैसे कुछ होता है क्या???
दाई माँ : हम काउ के मरे मे जाए तब का घर मे घुसने ते पहले नीम के पत्तन बारे पानी ते हाथ मो ना धोते?? कुला ना करते. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज करो. बे पागल ना है. समझो करो.
(हम किसी के मरे मे जाते है. तो घर मे घुसने से पहले नीम के पत्तों वाले पानी से हाथ मुँह धोते है या नहीं. कुल्ला करते है या नहीं. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज किये है वो पागल नहीं है. समझा करो)
सभी दाई माँ की बात मान लेते है. वैसे उनके आने से पहले सभी पानी पी चुके थे. खुद डॉ रुस्तम भी. क्यों की गर्मी बहोत ज्यादा थी. और डॉ रुस्तम ये सब जानते भी थे. पर गर्मी की वजह से कुछ रियते लेनी ही पडती है. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ हाथ दिखाया.
डॉ : ये देखो माँ. यही है सारी फसाद की जड़.
दाई माँ ने दिन दयाल की तरफ देखा. जैसे सुने बिना ही वो कुछ समझ चुकी हो. दाई माँ ने अपना पाऊ हिलाकर अपनी चप्पल ढीली की.
दाई माँ : बेटा बलबीर जे मेइ चप्पल दीजो.
(बेटा बलबीर मेरी चप्पल देना जरा)
कोमल दाई माँ के पास मे थी. वो उठाने गई तो माँ ने उसे रोक दिया.
दाई माँ : ना चोरी. तू रिन दे. चोरी पाम ना छूती. पाप परेगो मोए.
(ना बेटी तू रहने दे. पाप पड़ेगा मुजे)
बलबीर ने माँ को उनकी चप्पल दी. मा थोड़ी बैठे बैठे ही घूमी. और पूरी ताकत से दिन दयाल को चप्पल मारी.
दाई माँ : बाबाड़ चोदे.... बली दाई ना तूने हे...(भयकार गुस्सा)
(भोसड़ीके बली दी ना तूने... हा...)
दाई माँ समझ गई की दिन दयाल ने अपना काम निकलवाने के लिए बली दी थी. दाई माँ बहोत गुस्से मे चिल्ला चिल्लाकर बोल रही थी.
दाई माँ : (गुस्सा चिल्लाकर) जे मदरचोद ने अपने दोनों छोरन की बली दी है.
(इस मादर चोद ने अपने बेटों की बली दी है.)
सभी सुनकर हैरान हो गए. दाई माँ ने फिर दिन दयाल की तरफ देखा.
दाई माँ : मदरचोद तोए पतोंउ हे कछु. जिनकी बली होते. बाए मुक्ति ना मिलती. तोए तो भोत पाप लगेगो. तेइ योनि पीछे चली गई.
(मदरचोद तुझे पता भी है कुछ. जिनकी बली होती है. उन्हें मुक्ति नहीं मिलती. तुझे तो पाप लगेगा. तेरी योनि पीछे चली गई. )
डॉ रुस्तम जानते थे की सब कुछ लोगो को समझ नहीं आएगा. इस लिए वो समझाते है.
डॉ : जैसे इसने अपने बेटों की बली दी. अब उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी. क्यों की उनकी आत्मा अब कैद हो गई है. हलाकि इसने बली किसे दी है.
ये विधि जानेंगे. उन्हें भी मुक्ति देने की विधि है. पर लोग ये नहीं जानते की हम अपना काम निकलवाने के लिए जो बली देते है. उस से हमारी योनि का स्तर गिर जता है. हम अपना काम तो निकलवा लेते है.
इंसान या जानवर किसी की भी बली देने से उनकी आत्माए उस चीज से हमेशा जुड़ जाती है. हमारा तो काम बन जता है. मगर हर चीज की एक कीमत होती है. हम जन्म लेते है. वो एक इंसान की योनि है.
ऐसे कीड़े मकोड़े कुत्ता बिल्ली कई योनि के बाद हमें इंसान की योनि मिलती है. हमें हमारे काम निकलवाने के बदले तो बली की कीमत चूका दी. पर बली की कीमत कौन चुकाएगा. उसके बदले हमारी योनि गिरा दी जाती है. बली देने वाला सबसे निचले स्तर पर चले जता है. तो किसी की बली देना महा पाप है.
कोमल और बलबीर को भी ये ज्ञान हुआ. वो भी ये सुनकर हैरान हुए. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ देखा.
डॉ : दिन दयाल. अब तो तुम पुरे पकडे गए हो. जो हमें नहीं पता था. वो भी माँ ने पकड़ लिया. अब बताओ क्या बात थी. जो तुम इतना निचे गिर गए.
दिन दयाल की भी आंखे खुली. जब उसने डॉ रुस्तम की पूरी बात सुनी. उसे उस पाप का एहसास भी हुआ. और नशा भी उतार गया.
दिन दयाल : आश्रम का पैसा मेरे पिताजी ने नहीं मेने चुराया था. क्यों की पिताजी सारा पैसा हमारे घर ही रखते थे. पर जब पैसा चोरी हो गया. ये उन्हें पता चली तो उन्हें दिल का दोरा आ गया. वो मर गए.
मै पैसे अपने पास छुपाए हुए था. कुछ दिन तो सब अच्छा चला. फिर मेरी बेटी मे पंडितजी आने लगे. मुजे समझाया. वो पैसे लौटा दे. पर मे नहीं मना. वो मुजे बार बार परेशान करते थे. मेने ये बात किसी को नहीं बताई.
मगर उस दिन जब स्कूल के बच्चे मरे उस दिन सब को पता चल गया की मेरी बेटी मे कुछ गड़बड़ है. मेने लोगो मे ज़ुट्ठी अफवाह उड़ा दी की मेरी बेटी माता है. सभी ने मान भी लिया. मगर पंडितजी ने मेरा जीना हराम कर दिया था. तभि मै एक बाबा से मिला. उन्हें मेने गांव मे भी बुलाया. और उन्होंने ही मुजे ये सलाह दी थी.
कोमल का चालक दिमाग़ दिन दयाल की चोरी पकड़ चुकी थी. उसे गड़बड़ साफ नजर आ गई.
कोमल : (गुस्सा) अबे ओय चूतिये.
सभी कोमल का ये रूप देख कर हैरान हो गए. बलबीर ने तो कोमल का हाथ पकड़ लिया. क्यों की बड़ो के बिच गांव के माहोल मे ऐसा बर्ताव बहोत ही गलत मना जता है.
कोमल : (गुस्सा) साले माँ ने तो चप्पल मारी है. मे तो पत्थर मरूंगी तुझे. मंदिर की मूर्ति क्या तेरे बाप ने गायब की थी???
बात तो सही थी. ये मुद्दा वाकेई सोचने लायक था. कोमल तो गुस्से मे गली देते हुए चिल्लाकर बोल रही थी. क्यों की कोर्ट मे तो संभल कर बोलना पड़ता था. वो भड़ास निकालने का मौका नहीं खोना चाहती थी.
कोमल : (गुस्सा) तू उस से पहेली बार नहीं मिला था. तू उस तांत्रिक से पहले भी मिला. नहीं तो मूर्ति गायब करने का आईडिया तुझे आता ही नहीं.
दाई माँ भी खुश हो गई. वो थोडा झूक कर कोमल की पिठ थप थपाते हुए उसे सबासी देती है. दिन दयाल दरसल अपने बेटों की हत्या के बारे मे नहीं बताना चाहता था..
दिन दयाल : मेरे मन मे लालच थी. मै उन्हें अपनी जवानी के वक्त तब मिला था.
जब मेरे दो ही बेटे थे. मेरा तीसरा बेटा और बेटी तब पैदा ही नहीं हुए थे. मुजे पूरा विश्वास था की पंडितजी के पास और भी धन होगा. पर ढूढ़ने से कुछ नहीं मिलता था. तब मै एक बार वाराणसी गया. वहां पहेली बार उस बाबा से मिला. मेने उन्हें सारी जानकारी सुनाई.
पर उन्हें धन का लालच ही नहीं था. उन्हें तो कुछ और चाहिये था. उस वक्त मंदिर तो बन चूका था. पर स्कूल नही बना था. मेरे पिताजी भी जिन्दा ही थे. पिताजी सोच सोच कर पागल हुए जा रहे थे की स्कूल कैसे बनाए. क्यों की सारा पैसा तो चोरी हो गया.
उन्हें नहीं पता थी की वो चोर मे ही हु. उस तांत्रिक से मेरी पहले ही बात हो चुकी थी. मेने ही पिताजी से कहा एक तांत्रिक है. वो यहाँ आएँगे. पंडितजी का छुपा हुआ बहोत सारा धन है. जो कही उनकी जमीन मे गाड़ा हुआ है. हम उनकी मदद से उसे ढूढ़ लेंगे.
हमारा काम हो जाएगा. स्कूल हम बना लेंगे. वो मान गए. एक रात वो तांत्रिक आया. किसी को पता नहीं चला. उस वक्त मे जवान था. उसने मंदिर देखा. और मंदिर के चारो तरफ घुमा.
तांत्रिक : मै ये स्कूल बनवाने के लिए खुद पैसा दे दूंगा. मगर उसके लिए ये मूर्ति मुजे चाहिये.
मै मान गया. उसने वो पैसे मुजे नहीं दिये. मेरे पिताजी को दिये. क्यों की सायद मुजे दिये होते तो आज भी मंदिर ना बनता. वो चले गया. स्कूल बन ने का काम शुरू हो गया. तब मेरे पिताजी ने मुजे ही वो काम सौपा.
मे उसमे से भी बहोत पैसे खा गया. वो तांत्रिक एक रात और आया. स्कूल का काम चालू था. रात हम दोनों ने मिलकर मूर्ति चोरी की. और वही दाढ़ दी मेरे ही घर. लेकिन उसके बाद हकात ठीक नहीं हुए.
और ज्यादा बिगड़ने लगे. पहले तो मेरे पिताजी को दिल का दोहरा आया. जिसमे मेरे पिताजी चल बसें. मेरी बीवी मर गई. मै फिर वापस बनारस गया. क्यों की ना तो मुजे कोई धन मिला और ना ही घर का भला हो रहा था. उस तांत्रिक ने मुजे बताया की ये सब पंडितजी कर रहे है. वो तेरे परिवार के सभी लोगो को बारी बारी ले जाएगा.
दाई माँ : जे वाने तोते झूठ कओ. (यह उसने झूठ कहा.)
दिन दयाल : हा उसने मुझसे झूठ ही बोला था. मेने उस से उपाय पूछा तो उसने कहा की तेरे दोनों बेटे तो बचेंगे नहीं. हा मै तुझे तेरी बीवी के पेट मे है. उसे बचा सकता हु.
मै उसकी बात मान ली. मुजे नहीं पता थी की वो झूठ बोल रहा है. उस रात वो फिर आया. उसने उसी स्कूल मे पूजा की. इसका पता किसी को नहीं था. मेने अपने दोनों बेटों को खुद चल कर आते देखा. वो मेरे सामने ही उसी स्कूल की छत से कूद गए.
बोलते हुए दिन दयाल रोने लगा. डॉ रुस्तम उसके पास गए. और इसे दिलासा दिया.
डॉ : उस तांत्रिक ने तुझे मुर्ख बनाया. और तेरे दोनों बेटों की जान ले ली. तेरे सामने ही तेरे दोनों बेटों की बली ले ली.
दिन दयाल : उसने कहा अगर अपनी बीवी और होने वाले बच्चों को बचाना है तो इस मंदिर को छुपाना होगा. उस रात मेने खुद अपने हाथो से खोद खोद कर उस मंदिर को छुपा दिया. उसने कहा की जब तक ये मूर्ति तेरे आंगन के जमीन मे दफ़न है तेरा परिवार बचे रहेगा.
मेने उसी डर से वो मूर्ति दोबारा कभी नहीं निकली. मेरे बाद मे एक बेटा और बेटी हुए. बेटा तो ठीक था. पर बेटी बहोत कमजोर थी. मेरी माँ ने मुजे समझाया. ये सब गलत मत कर. मुजे मेरी माँ की बात ठीक लगी.
उस रात मेने अपने घर के आँगन मे मूर्ति निकालने के लिए खुदाई शुरू की. पर उसी वक्त मेरी बीवी चल बसी. मा को उसी वक्त लकवा हो गया. मेने काम बंद किया. मुजे लग रहा था की ये सब मूर्ति वापस निकालने के चक्कर मे ही हो रहा है. मेने मूर्ति वापस दफना दी.
और मेरी बीमार माँ को उसपर ही बैठा दिया. वो वही पड़ी रहती. लेकिन बेटी मे फिर पंडितजी आने लगे.
डॉ : ये सब वो तांत्रिक कर रहा था. उसने बली ली तो उसे तू क्या कर रहा है सब पता चल रहा था. तुझे सिर्फ डराने के लिए उसने ऐसा किया. तेरी माँ के कुछ पुण्य रहे होंगे जो वो बच गई.
दिन दयाल : उसके बाद पंडितजी मेरी बेटी मे आने लगे. उन्होंने मुजे रुक जाने को कहा. पर मे तो उन्हें ही कारण समझ रहा था. पंडितजी ने ही लोगो की जान बचाने की कोसिस की. पर मे समझा ही नहीं. स्कूल की छत गिरने के बाद मुजे एहसास तो हो गया. पर अगर मूर्ति निकलता तो मेरा एक बेटा बचा है. वो भी मर जता.
डॉ : तो वो तांत्रिक कहा है अभी???
दिन दयाल : पता नहीं कहा है. मै वाराणसी गया था. मुजे वो घाट पर मिला नहीं.
दाई माँ : वाराणसी मतबल तो बो मानिकर्निका मे मिलेगो.
( वाराणसी का है तो मतलब वो मनिकारनिका घाट पे ही मिलेगा )
डॉ रुस्तम ने दाई माँ की तरफ देखा
डॉ : अब क्या करें दाई माँ???
दाई माँ : संजऊ जाकी बेटी के पास चलिंगे. फिर देखींगे का कारनो है. अभाल नहाओ धोऊ.
(शाम को इसकी बेटी के पास चलेंगे. फिर देखते है. इसका क्या करना है)
सभी वहां से चले गए. दाई माँ कोमल से क्या सभी से दूर रहती. दाई माँ ने कोमल को अपने से दूर रखने के लिए बलबीर को हिशारा कर दिया था. सभी लोग आश्रम मे आए. सभी लोगो ने नहाया धोया.
खाना पीना खाया. पर दाई माँ आश्रम के बहार ही एक पेड़ के निचे खटिया डाल के पड़ी रही. पेड़ पर ही दाई माँ ने उन हंडियो को टांगे रखा. शाम हुई. सभी लोग दिन दयाल के घर गए. वहां पूजा आरम्भ की.
पर दाई माँ नहीं गई. दिन दयाल के घर पर तंत्र पूजा हुई वहां दीनदयाल की बेटी मे पंडितजी की आत्मा आई. वो बहोत खुश थी. उन्होंने बताया की स्कूल को तोड़ कर फिर से बनाया जाए. वास्तु के हिसाब से.
मंदिर और मूर्ति का शुद्धिकरण हो. मूर्ति मंदिर मे पूरी विधि वश स्थापना हो. और बहोत बड़ा भंडारा करें. एक बड़ा यज्ञ किया जाए. इतना सब करने के लिए बहोत पैसे लगने थे. पंडितजी को बताया गया. पंडितजी ने बोला आप कार्य शुरू करो. सब अपने आप हो जाएगा.
अब बारी थी पंचायत की. जिसमे गांव वाले दान देने का फेशला किया. डॉ रुस्तम ने 1 लाख रूपय दान देने का वादा किया तो कोमल ने भी 1 लाख दान देने का वादा कर दिया. बलबीर के पास कुछ नहीं था. वो बेचारा चुप ही रहा. दिन दयाल अपने पाप का प्रश्चित करना चाहता था. मगर सजा तो उसे कटनी ही थी.
दिन दयाल को गांव की पंचायत ने हुक्का पानी बंद की सजा सुनाई. मतलब गांव मे अब कोई भी दिन दयाल के परिवार से कोई वास्ता नहीं रखेगा. और जल्द से जल्द गांव छोड़ देने की हिदायत दी.
ये गांव वालों की अच्छाई ही थी की जमीन मकान बिक्री करने के लिए वक्त दिया जा रहा था. डॉ रुस्तम ने पंचायत मे दाई माँ की तरफ से बताया. सारे बच्चे गांव के ही थे. वो सारो के पिंड दान के लिए वाराणसी चले. सा गांव के कई लोग जो मारे गए वहां पर जो गांव के ही थे.
उनके परिजन भी साथ चले. ताकि उनका पिंडदान हो जाए. और सभी की आत्माओं को शांति मिले. जो अनजान लोग थे. उनका पिंड दान वहां नहीं हो सकता था. उनके लिए गया बिहार जाना पड़ता है. डॉ रुस्तम कोमल बलबीर और बाकि कई उनके टीम मेंबर वापस आश्रम मे आए. सारी जानकारी दाई माँ को दी. और दूसरे दिन वाराणसी जाने का प्लान बन गया.