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Horror किस्से अनहोनियों के

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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हां अभी लिख रही हूं रात तक पोस्ट कर दूंगी
Ye raat kab hogi yaar 3 din ho gaye.
 

Shetan

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Ye raat kab hogi yaar 3 din ho gaye.
आज जितना भी लिखूँगी पोस्ट कर दूंगी.
 

Shetan

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Saya ek chudel ki prem kahani. part 1
काल्पनिक हॉरर स्टोरी.


 
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Raj_sharma

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Shetan

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Kar hi dalo👍
वाह... चलो कर रही हु पोस्ट
 

Shetan

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Update 28A


कोमल जब उस स्कूल से बहार निकली उसे बहोत ही हलका महसूस हो रहा था. जैसे अंदर उसका दम घुट रहा हो. और बहार निकलते ही उसे सांस लेने मे आसानी हुई हो. कोमल बहार निककते हो हाफ रही थी.

तभि उसे कुछ आवाजे आई. लाठी पटकने की. कई लोगो के कदमो की. कोमल ने सर उठाकर देखा तो एक भीड़ उसकी तरफ ही चली आ रही थी. कोमल ने देखा की बिच मे सबसे आगे डॉ रुस्तम है.

उसके साथ मुखिया भी थे. पीछे कुछ लोग चले आ रहे थे. दो लोग दयाराम का पीछे से कुर्ते की कोलर पकड़ रखी थी. वो हाथ जोड़े रो रहा था. गिड़गिड़ा रहा था. पर वो दो मर्द उसे धक्का देकर वहां ला रहे थे.

वो सारे स्कूल के बहार खड़े हो गए. डॉ रुस्तम कोमल के पास आए. डॉ रुस्तम ने कोमल को स्माइल करते हुए देखा.


डॉ : (स्माइल) मूर्ति मिल गई.


कोमल हैरानी से कभी डॉ रुस्तम को देखती है. फिर भीड़ को. कोमल ने बारी बारी सबको देखा.


कोमल : (सॉक) कहा है???


उस भीड़ से कुछ लोग साइड हटे. और पीछे बैलगाड़ी खड़ी थी. जिसमे कुछ 3 फिट बड़ी पत्थर की माता की मूर्ति थी. कोमल के फेस पर भी स्माइल आ गई. आंखे बंद किये उसने राहत की शांस ली.


डॉ : दाई माँ कहा है??


कोमल : वो अंदर है. उन्होंने उन बच्चों को सायद बांध दिया है. पर वो बहार नहीं आई.


डॉ : सायद बहोत लोगो ने यहाँ सुसाइड एटम किया है. उन एंटिटीस से संपर्क कर रही हो.


कोमल : तो अब क्या करेंगे???


डॉ : माँ को आने दो. पंचायत लगेगी.


कोमल : बलबीर कहा है??


डॉ कुछ बोले नहीं बस स्माइल करते है. कोमल को एहसास हुआ की उसके बगल मे कोई खड़ा है. कोमल ने एकदम से बलबीर को देखा. और वो झपट के इसके बाहो मे चली गई.


बलबीर : अरे... क्या कर रही हो.... सब....


कोमल को हसीं आने लगी. बलबीर गांव का ही था. और वो लोग किसी गांव मे ही थे. इसी लिए बलबीर को शर्म आ रही थी.


डॉ : चलो हम उस पेड़ के निचे चलते है. जब तक दाई माँ नहीं आती.


दोपहर हो चुकी थी. और धुप तेज़ भी हो गई थी. वो लोग एक पेड़ के निचे चले गए. दिन दयाल को भी उन लोगो ने पकड़ के रखा. जब तक दाई माँ नहीं आई. दिन दयाल के रोने के कारण सब बहोत इरेट हुए. पर किसी को भी उस पर दया नहीं आ रही थी.

उल्टा सब तो उसे बिच बिच मे गालिया देते. कोई तो ज्यादा ही परेशान हो जता तो खड़े होकर दिन दयाल को एक थप्पड़ भी मर देता. दोपहर के दो बजे दाई माँ बहार निकली. उनके हाथो मे उनका वही झोला था. पर हाथो मे चार पांच लाल कपड़ो मे लटकाती हांडी.

वो बहोत छोटी छोटी ही थी. बलबीर तुरंत भाग कर दाई माँ के पास पहोंचा. दाई माँ ने उसे अपना झोला तो दिया. मगर वो हंडिया नहीं दी.बलवीर दाई माँ को उस पेड़ की छाव तक ले आया. डॉ रुस्तम का एक टीम मेंबर तुरंत दाई माँ के लिए प्लास्टिक चेयर ले आया.

दाई माँ को पानी दिया. पर उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. दाई माँ ने थोड़ी शांस ली. पसीना पोछा. और अपने आप को ठीक किया.


दाई माँ : जे सारे सुन लो. जिन लोगन ने मरे भए को छू रखो है. बे सारे कछु खानो पिनो अभाल मत कर दीजो. मरे भए है बा की पनोती लगेगी.
(ये सारे सुन लो. जिन लोगो ने मरे हुए लोगो का कुछ भी छुआ है तो कुछ भी खाना पीना मत. मरे हुए है. उनकी पनोती लगेगी.)


बलबीर : माँ इस से वैसे कुछ होता है क्या???


दाई माँ : हम काउ के मरे मे जाए तब का घर मे घुसने ते पहले नीम के पत्तन बारे पानी ते हाथ मो ना धोते?? कुला ना करते. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज करो. बे पागल ना है. समझो करो.
(हम किसी के मरे मे जाते है. तो घर मे घुसने से पहले नीम के पत्तों वाले पानी से हाथ मुँह धोते है या नहीं. कुल्ला करते है या नहीं. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज किये है वो पागल नहीं है. समझा करो)


सभी दाई माँ की बात मान लेते है. वैसे उनके आने से पहले सभी पानी पी चुके थे. खुद डॉ रुस्तम भी. क्यों की गर्मी बहोत ज्यादा थी. और डॉ रुस्तम ये सब जानते भी थे. पर गर्मी की वजह से कुछ रियते लेनी ही पडती है. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ हाथ दिखाया.


डॉ : ये देखो माँ. यही है सारी फसाद की जड़.


दाई माँ ने दिन दयाल की तरफ देखा. जैसे सुने बिना ही वो कुछ समझ चुकी हो. दाई माँ ने अपना पाऊ हिलाकर अपनी चप्पल ढीली की.


दाई माँ : बेटा बलबीर जे मेइ चप्पल दीजो.
(बेटा बलबीर मेरी चप्पल देना जरा)


कोमल दाई माँ के पास मे थी. वो उठाने गई तो माँ ने उसे रोक दिया.


दाई माँ : ना चोरी. तू रिन दे. चोरी पाम ना छूती. पाप परेगो मोए.
(ना बेटी तू रहने दे. पाप पड़ेगा मुजे)


बलबीर ने माँ को उनकी चप्पल दी. मा थोड़ी बैठे बैठे ही घूमी. और पूरी ताकत से दिन दयाल को चप्पल मारी.


दाई माँ : बाबाड़ चोदे.... बली दाई ना तूने हे...(भयकार गुस्सा)
(भोसड़ीके बली दी ना तूने... हा...)


दाई माँ समझ गई की दिन दयाल ने अपना काम निकलवाने के लिए बली दी थी. दाई माँ बहोत गुस्से मे चिल्ला चिल्लाकर बोल रही थी.


दाई माँ : (गुस्सा चिल्लाकर) जे मदरचोद ने अपने दोनों छोरन की बली दी है.
(इस मादर चोद ने अपने बेटों की बली दी है.)


सभी सुनकर हैरान हो गए. दाई माँ ने फिर दिन दयाल की तरफ देखा.


दाई माँ : मदरचोद तोए पतोंउ हे कछु. जिनकी बली होते. बाए मुक्ति ना मिलती. तोए तो भोत पाप लगेगो. तेइ योनि पीछे चली गई.
(मदरचोद तुझे पता भी है कुछ. जिनकी बली होती है. उन्हें मुक्ति नहीं मिलती. तुझे तो पाप लगेगा. तेरी योनि पीछे चली गई. )


डॉ रुस्तम जानते थे की सब कुछ लोगो को समझ नहीं आएगा. इस लिए वो समझाते है.


डॉ : जैसे इसने अपने बेटों की बली दी. अब उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी. क्यों की उनकी आत्मा अब कैद हो गई है. हलाकि इसने बली किसे दी है.

ये विधि जानेंगे. उन्हें भी मुक्ति देने की विधि है. पर लोग ये नहीं जानते की हम अपना काम निकलवाने के लिए जो बली देते है. उस से हमारी योनि का स्तर गिर जता है. हम अपना काम तो निकलवा लेते है.

इंसान या जानवर किसी की भी बली देने से उनकी आत्माए उस चीज से हमेशा जुड़ जाती है. हमारा तो काम बन जता है. मगर हर चीज की एक कीमत होती है. हम जन्म लेते है. वो एक इंसान की योनि है.

ऐसे कीड़े मकोड़े कुत्ता बिल्ली कई योनि के बाद हमें इंसान की योनि मिलती है. हमें हमारे काम निकलवाने के बदले तो बली की कीमत चूका दी. पर बली की कीमत कौन चुकाएगा. उसके बदले हमारी योनि गिरा दी जाती है. बली देने वाला सबसे निचले स्तर पर चले जता है. तो किसी की बली देना महा पाप है.


कोमल और बलबीर को भी ये ज्ञान हुआ. वो भी ये सुनकर हैरान हुए. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ देखा.


डॉ : दिन दयाल. अब तो तुम पुरे पकडे गए हो. जो हमें नहीं पता था. वो भी माँ ने पकड़ लिया. अब बताओ क्या बात थी. जो तुम इतना निचे गिर गए.


दिन दयाल की भी आंखे खुली. जब उसने डॉ रुस्तम की पूरी बात सुनी. उसे उस पाप का एहसास भी हुआ. और नशा भी उतार गया.


दिन दयाल : आश्रम का पैसा मेरे पिताजी ने नहीं मेने चुराया था. क्यों की पिताजी सारा पैसा हमारे घर ही रखते थे. पर जब पैसा चोरी हो गया. ये उन्हें पता चली तो उन्हें दिल का दोरा आ गया. वो मर गए.

मै पैसे अपने पास छुपाए हुए था. कुछ दिन तो सब अच्छा चला. फिर मेरी बेटी मे पंडितजी आने लगे. मुजे समझाया. वो पैसे लौटा दे. पर मे नहीं मना. वो मुजे बार बार परेशान करते थे. मेने ये बात किसी को नहीं बताई.

मगर उस दिन जब स्कूल के बच्चे मरे उस दिन सब को पता चल गया की मेरी बेटी मे कुछ गड़बड़ है. मेने लोगो मे ज़ुट्ठी अफवाह उड़ा दी की मेरी बेटी माता है. सभी ने मान भी लिया. मगर पंडितजी ने मेरा जीना हराम कर दिया था. तभि मै एक बाबा से मिला. उन्हें मेने गांव मे भी बुलाया. और उन्होंने ही मुजे ये सलाह दी थी.


कोमल का चालक दिमाग़ दिन दयाल की चोरी पकड़ चुकी थी. उसे गड़बड़ साफ नजर आ गई.


कोमल : (गुस्सा) अबे ओय चूतिये.


सभी कोमल का ये रूप देख कर हैरान हो गए. बलबीर ने तो कोमल का हाथ पकड़ लिया. क्यों की बड़ो के बिच गांव के माहोल मे ऐसा बर्ताव बहोत ही गलत मना जता है.


कोमल : (गुस्सा) साले माँ ने तो चप्पल मारी है. मे तो पत्थर मरूंगी तुझे. मंदिर की मूर्ति क्या तेरे बाप ने गायब की थी???


बात तो सही थी. ये मुद्दा वाकेई सोचने लायक था. कोमल तो गुस्से मे गली देते हुए चिल्लाकर बोल रही थी. क्यों की कोर्ट मे तो संभल कर बोलना पड़ता था. वो भड़ास निकालने का मौका नहीं खोना चाहती थी.


कोमल : (गुस्सा) तू उस से पहेली बार नहीं मिला था. तू उस तांत्रिक से पहले भी मिला. नहीं तो मूर्ति गायब करने का आईडिया तुझे आता ही नहीं.


दाई माँ भी खुश हो गई. वो थोडा झूक कर कोमल की पिठ थप थपाते हुए उसे सबासी देती है. दिन दयाल दरसल अपने बेटों की हत्या के बारे मे नहीं बताना चाहता था..


दिन दयाल : मेरे मन मे लालच थी. मै उन्हें अपनी जवानी के वक्त तब मिला था.

जब मेरे दो ही बेटे थे. मेरा तीसरा बेटा और बेटी तब पैदा ही नहीं हुए थे. मुजे पूरा विश्वास था की पंडितजी के पास और भी धन होगा. पर ढूढ़ने से कुछ नहीं मिलता था. तब मै एक बार वाराणसी गया. वहां पहेली बार उस बाबा से मिला. मेने उन्हें सारी जानकारी सुनाई.

पर उन्हें धन का लालच ही नहीं था. उन्हें तो कुछ और चाहिये था. उस वक्त मंदिर तो बन चूका था. पर स्कूल नही बना था. मेरे पिताजी भी जिन्दा ही थे. पिताजी सोच सोच कर पागल हुए जा रहे थे की स्कूल कैसे बनाए. क्यों की सारा पैसा तो चोरी हो गया.

उन्हें नहीं पता थी की वो चोर मे ही हु. उस तांत्रिक से मेरी पहले ही बात हो चुकी थी. मेने ही पिताजी से कहा एक तांत्रिक है. वो यहाँ आएँगे. पंडितजी का छुपा हुआ बहोत सारा धन है. जो कही उनकी जमीन मे गाड़ा हुआ है. हम उनकी मदद से उसे ढूढ़ लेंगे.

हमारा काम हो जाएगा. स्कूल हम बना लेंगे. वो मान गए. एक रात वो तांत्रिक आया. किसी को पता नहीं चला. उस वक्त मे जवान था. उसने मंदिर देखा. और मंदिर के चारो तरफ घुमा.


तांत्रिक : मै ये स्कूल बनवाने के लिए खुद पैसा दे दूंगा. मगर उसके लिए ये मूर्ति मुजे चाहिये.


मै मान गया. उसने वो पैसे मुजे नहीं दिये. मेरे पिताजी को दिये. क्यों की सायद मुजे दिये होते तो आज भी मंदिर ना बनता. वो चले गया. स्कूल बन ने का काम शुरू हो गया. तब मेरे पिताजी ने मुजे ही वो काम सौपा.

मे उसमे से भी बहोत पैसे खा गया. वो तांत्रिक एक रात और आया. स्कूल का काम चालू था. रात हम दोनों ने मिलकर मूर्ति चोरी की. और वही दाढ़ दी मेरे ही घर. लेकिन उसके बाद हकात ठीक नहीं हुए.

और ज्यादा बिगड़ने लगे. पहले तो मेरे पिताजी को दिल का दोहरा आया. जिसमे मेरे पिताजी चल बसें. मेरी बीवी मर गई. मै फिर वापस बनारस गया. क्यों की ना तो मुजे कोई धन मिला और ना ही घर का भला हो रहा था. उस तांत्रिक ने मुजे बताया की ये सब पंडितजी कर रहे है. वो तेरे परिवार के सभी लोगो को बारी बारी ले जाएगा.


दाई माँ : जे वाने तोते झूठ कओ. (यह उसने झूठ कहा.)


दिन दयाल : हा उसने मुझसे झूठ ही बोला था. मेने उस से उपाय पूछा तो उसने कहा की तेरे दोनों बेटे तो बचेंगे नहीं. हा मै तुझे तेरी बीवी के पेट मे है. उसे बचा सकता हु.

मै उसकी बात मान ली. मुजे नहीं पता थी की वो झूठ बोल रहा है. उस रात वो फिर आया. उसने उसी स्कूल मे पूजा की. इसका पता किसी को नहीं था. मेने अपने दोनों बेटों को खुद चल कर आते देखा. वो मेरे सामने ही उसी स्कूल की छत से कूद गए.


बोलते हुए दिन दयाल रोने लगा. डॉ रुस्तम उसके पास गए. और इसे दिलासा दिया.


डॉ : उस तांत्रिक ने तुझे मुर्ख बनाया. और तेरे दोनों बेटों की जान ले ली. तेरे सामने ही तेरे दोनों बेटों की बली ले ली.


दिन दयाल : उसने कहा अगर अपनी बीवी और होने वाले बच्चों को बचाना है तो इस मंदिर को छुपाना होगा. उस रात मेने खुद अपने हाथो से खोद खोद कर उस मंदिर को छुपा दिया. उसने कहा की जब तक ये मूर्ति तेरे आंगन के जमीन मे दफ़न है तेरा परिवार बचे रहेगा.

मेने उसी डर से वो मूर्ति दोबारा कभी नहीं निकली. मेरे बाद मे एक बेटा और बेटी हुए. बेटा तो ठीक था. पर बेटी बहोत कमजोर थी. मेरी माँ ने मुजे समझाया. ये सब गलत मत कर. मुजे मेरी माँ की बात ठीक लगी.

उस रात मेने अपने घर के आँगन मे मूर्ति निकालने के लिए खुदाई शुरू की. पर उसी वक्त मेरी बीवी चल बसी. मा को उसी वक्त लकवा हो गया. मेने काम बंद किया. मुजे लग रहा था की ये सब मूर्ति वापस निकालने के चक्कर मे ही हो रहा है. मेने मूर्ति वापस दफना दी.

और मेरी बीमार माँ को उसपर ही बैठा दिया. वो वही पड़ी रहती. लेकिन बेटी मे फिर पंडितजी आने लगे.


डॉ : ये सब वो तांत्रिक कर रहा था. उसने बली ली तो उसे तू क्या कर रहा है सब पता चल रहा था. तुझे सिर्फ डराने के लिए उसने ऐसा किया. तेरी माँ के कुछ पुण्य रहे होंगे जो वो बच गई.


दिन दयाल : उसके बाद पंडितजी मेरी बेटी मे आने लगे. उन्होंने मुजे रुक जाने को कहा. पर मे तो उन्हें ही कारण समझ रहा था. पंडितजी ने ही लोगो की जान बचाने की कोसिस की. पर मे समझा ही नहीं. स्कूल की छत गिरने के बाद मुजे एहसास तो हो गया. पर अगर मूर्ति निकलता तो मेरा एक बेटा बचा है. वो भी मर जता.


डॉ : तो वो तांत्रिक कहा है अभी???


दिन दयाल : पता नहीं कहा है. मै वाराणसी गया था. मुजे वो घाट पर मिला नहीं.


दाई माँ : वाराणसी मतबल तो बो मानिकर्निका मे मिलेगो.
( वाराणसी का है तो मतलब वो मनिकारनिका घाट पे ही मिलेगा )



डॉ रुस्तम ने दाई माँ की तरफ देखा


डॉ : अब क्या करें दाई माँ???


दाई माँ : संजऊ जाकी बेटी के पास चलिंगे. फिर देखींगे का कारनो है. अभाल नहाओ धोऊ.
(शाम को इसकी बेटी के पास चलेंगे. फिर देखते है. इसका क्या करना है)


सभी वहां से चले गए. दाई माँ कोमल से क्या सभी से दूर रहती. दाई माँ ने कोमल को अपने से दूर रखने के लिए बलबीर को हिशारा कर दिया था. सभी लोग आश्रम मे आए. सभी लोगो ने नहाया धोया.

खाना पीना खाया. पर दाई माँ आश्रम के बहार ही एक पेड़ के निचे खटिया डाल के पड़ी रही. पेड़ पर ही दाई माँ ने उन हंडियो को टांगे रखा. शाम हुई. सभी लोग दिन दयाल के घर गए. वहां पूजा आरम्भ की.

पर दाई माँ नहीं गई. दिन दयाल के घर पर तंत्र पूजा हुई वहां दीनदयाल की बेटी मे पंडितजी की आत्मा आई. वो बहोत खुश थी. उन्होंने बताया की स्कूल को तोड़ कर फिर से बनाया जाए. वास्तु के हिसाब से.

मंदिर और मूर्ति का शुद्धिकरण हो. मूर्ति मंदिर मे पूरी विधि वश स्थापना हो. और बहोत बड़ा भंडारा करें. एक बड़ा यज्ञ किया जाए. इतना सब करने के लिए बहोत पैसे लगने थे. पंडितजी को बताया गया. पंडितजी ने बोला आप कार्य शुरू करो. सब अपने आप हो जाएगा.

अब बारी थी पंचायत की. जिसमे गांव वाले दान देने का फेशला किया. डॉ रुस्तम ने 1 लाख रूपय दान देने का वादा किया तो कोमल ने भी 1 लाख दान देने का वादा कर दिया. बलबीर के पास कुछ नहीं था. वो बेचारा चुप ही रहा. दिन दयाल अपने पाप का प्रश्चित करना चाहता था. मगर सजा तो उसे कटनी ही थी.

दिन दयाल को गांव की पंचायत ने हुक्का पानी बंद की सजा सुनाई. मतलब गांव मे अब कोई भी दिन दयाल के परिवार से कोई वास्ता नहीं रखेगा. और जल्द से जल्द गांव छोड़ देने की हिदायत दी.

ये गांव वालों की अच्छाई ही थी की जमीन मकान बिक्री करने के लिए वक्त दिया जा रहा था. डॉ रुस्तम ने पंचायत मे दाई माँ की तरफ से बताया. सारे बच्चे गांव के ही थे. वो सारो के पिंड दान के लिए वाराणसी चले. सा गांव के कई लोग जो मारे गए वहां पर जो गांव के ही थे.

उनके परिजन भी साथ चले. ताकि उनका पिंडदान हो जाए. और सभी की आत्माओं को शांति मिले. जो अनजान लोग थे. उनका पिंड दान वहां नहीं हो सकता था. उनके लिए गया बिहार जाना पड़ता है. डॉ रुस्तम कोमल बलबीर और बाकि कई उनके टीम मेंबर वापस आश्रम मे आए. सारी जानकारी दाई माँ को दी. और दूसरे दिन वाराणसी जाने का प्लान बन गया.








 
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Shetan

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Update 28B

वाराणसी जाने के लिए सुबह के 6 बजे 2 बस निकली. एक तो डॉ रुस्तम की टीम जिसमे दाई माँ कोमल और बलबीर भी शामिल थे.

और दूसरी बस मे गांव वाले. रस्ता भी ज्यादा नहीं कुछ 3 घंटे के आस पास का ही था. गांव से जो अपने बच्चों का या घर के सदस्य जो मर चुके थे.

उन लोगो की आत्मा की शांति के लिए उन हर घर से कोई ना कोई सदस्य उस बस मे था. दाई माँ और कोमल के सिवा कोई और लेडीज़ नहीं थी. दाई माँ अकेली एक शीट पर बैठी हुई थी.

उनके पीछे वाली शीट पर डॉ रुस्तम थे. और वो भी अकेले ही उस शीट पर थे. कोमल और बलबीर दोनों थोडा पीछे थे. कोमल जानती थी की दाई माँ उसे अपने से दूर क्यों रख रही है. पर इतने पास दाई माँ हो तो कोमल कैसे दूर रहे सकती है.

कोमल खड़ी हुई और डॉ रुस्तम के बगल मे बैठ गई. दाई माँ ने थोड़ी गर्दन घुमाकर कोमल को देखा. और फिर मुश्कुराने लगी.


दाई माँ : (स्माइल) जे छोरी मेरे बिना एक पल ना रहे सके.
(ये लड़की मेरे बिना एक पल नहीं रहे सकती.)


डॉ रुस्तम और कोमल दोनों ही मुश्कुराने लगे. बलबीर से भी रहा नहीं गया. और वो भी पास आ गया. दूसरी रो की सीट पर बस थोडा सा टिक के बैठ गया.


कोमल : माँ ये वास्तु से भी भुत प्रेत आ जाते है???


दाई माँ : रे डाक्टर बता याए. (डॉक्टर बता इसे )


डॉ : जिस यारह ग्रह नक्षत्र का प्रभाव हमारे जीवन मे पड़ता है. ठीक उसी तरह जमीन की भी अपनी एक एनर्जी होती है. और वही एनर्जी हमारे जीवन पे प्रभाव डालती है. जमीन हमेशा सब कुछ सोखती है. और एनर्जी बहार निकलती है. जैसे की ज्वालामुखी. वो एक आग है. कितनी एनर्जी हे उसमे. बीज डालो पेड़ पौधे. ऊपर की ओर ही तो बढ़ते है.


कोमल : लेकिन वास्तु का कैसे सम्बन्ध मतलब.....


डॉ रुस्तम समझ गए की कोमल जान ना क्या चाहती है.


डॉ : ये हम पर निर्भर है की हम उन्हें क्या देते है. क्या तुम्हारी जमीन के अंदर तुमने कुछ ऐसा तो नहीं डाला??? जिसे देख कर खुद तुम्हे घिर्णा आए. तो उस जमीन पर तुम्हे मिलने वाली एनर्जी मे बदलाव भी आएगा. जमीन पर ग्रहो का प्रभाव किस तरह गिरेगा. हम अगर हमारे जीवन को उसी तरह ढले तो हमारा जीवन अच्छा हो सकता है.

जैसे की घर की बनावट. जिस से जमीन की एनर्जी और ग्रहो की छाया. हमारे जीवन पर अलग अलग असर करेगी. हम कोसिस करें की दोनों का प्रभाव हम पर अच्छा ही हो. यही तो वास्तु है.

प्राकृति हमसे क्या चाहती है. हम से क्या उम्मीद करती है. हम क्या प्राकृति को दे रहे है. ये सब वास्तु है. और वास्तु कोई जादू नहीं है. ये एक साइंस है. फिजिक्स है. मैथमेटिक्स है. जिन्हे कई पढ़े लिखें जादू टोना मान कर अंधविश्वास समझते हैं.


कोमल : हम्म्म्म मे समझ गई.


डॉ रुस्तम एग्जांपल के लिए एक कहानी सुनाते हैं.


डॉ : दिल्ली के मेरे क्लाइंट है. महेंद्र छाबरा. कुछ उनकी ऐज 44 के आस पास की होंगी.

उनकी बीवी का नाम था आरती छावरा. वो कोई काम मुझसे पूछे बिना करते ही नहीं थे. जैसे की कोई नई प्रॉपर्टी लेना हो. कोई नया कंस्ट्रक्शन बहोत कुछ. हम तक़रीबन 10 सालो से साथ जुड़े थे.

कोई भी बात हो मुजे call कर देते. उनकी एक प्रॉब्लम भी. उनकी कोई औलाद ही नहीं थी. उनकी बीवी इसी वजह से उखड़ी उखड़ी रहती थी.

किसी काम मे उनका मन नहीं लगता था. छावरा जी को बस यही दुख था. पर मेरे पास इसका कोई उपाय नहीं. क्यों की उनका कोई औलाद का कोई योग ही नहीं था. बाकि काम मे वो मेरी मदद लेते ही थे.

वो अपनी बीवी के उखड़े उखड़े रवाइये से परेशान थे. एक तो उनके घर मे वो पति और पत्नी के आलावा कोई नहीं था. ऊपर से उनका घर बहोत बड़ा था. उन्हें एहसास हुआ की उन्हें कोई छोटा घर ले लेना चाहिये.

ताकि अपनी पत्नी को घर के कामों मे आसानी हो. उन्होंने रोहिणी सेक्टर मे एक फ्लेट देखा. जो उन्हें बहोत सस्ते मे मिल गया. उन्होंने घर का पूरा नक्शा मुजे भेजा. एग्जैक्ट लोकेशन भी बताइ.

मेने उसपर अध्यन किया. पंचाग की मदद से उन घर की भी कुंडली बनाई. अब घर का वास्तु और कुंडली ये बोल रही थी की घर मे जो भी रहेगा. हार 4 साल मे एक मृत्यु पक्का होंगी. उस घर के हिसाब से वहां कोई खुश नहीं रहे सकता. मेने चावरा साहब को call कर के बताया की उस घर का वास्तु बहोत ख़राब है.

वहां कोई खुश नहीं रहे सकता. छावरा साहब ने मेरी बात मान ली. मगर वो प्रॉपर्टी डीलर थे. वो फ्लेट सस्ता था. बहोत ही ज्यादा सस्ता. रहने के लिए नहीं बस प्रॉपर्टी बनाने के उदेश्य से उन्होंने वो घर खरीद लिया.

कुछ दिन बीते पर छावरा साहब परेशान हो गए. बाद अपनी बीवी की तकलीफो के कारण. उन्होंने एक जमीन खरीदी. कही गुड़गांव के पास. उसके बारे मे भी उन्होंने मुजे बताया ही था. मेने ही वो जल्द खरीदने की सलाह दी थी. पर उन्होंने वो जमीन खरीदने के लिए अपना घर( कोठी ) को बेच दिया. उनका अपना घर भी काफ़ी अच्छे दामों मे बिक रहा था. लेकिन पार्टी को वो घर जल्द से जल्द चाहिये था.

छावरा साहब ने सोचा की वो कुछ दिन रेंट पर कोई घर ले लेंगे. जब गुड़गांव की जमीन पर कंस्ट्रक्शन करवा कर बिल्डिंग बनवाएंगे. बाकी फ्लैट्स बिक्री कर देंगे. और उनमें से एक प्लेट में वह खुद रह लेंगे.

एकदम से छवरा साहब को रेंट पर मकान नहीं मिला तो वो कुछ दिन के लिए वही फ्लेट मे चले गए. जिस फ्लेट को मेने खरीदने से इनकार किया था. उन्हें ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ता ही वहां रहना था. पर वो कुछ 15 दिन से ज्यादा वहां रुक गए. एक दिन मुजे उनका call आया.


मै (डॉ) : हेलो छावरा साहब. कहिये कैसे याद किया???


महेन्द्र छावरा : अरे डॉ साहब नमस्ते. वो गुड़गांव वाली तो डील फाइनल हो गई. पर आपको मैं कुछ बताना चाहता हूं.


मै : जी कहिये???


छावरा : आप को याद है. आप को मेने कहा था की मै एक फ्लेट खरीद कर उसमे रहना चाहता हु. और आप ने उस फ्लेट को खरीदने से ही मना कर दिया था..


मै : हा मुजे याद है. वो घर बहोत मनहूस है. मेने तुम्हे वो घर खरीदने से भी मना किया था.


छावरा : पर मेने तो वो घर खरीद ही लिया था. और कुछ 15 दिनों से उस घर मे रहे भी रहा हु.


ये सुनकर मै हैरान रहे गया. उन्होंने अपनी सारी सिचवेशन बताई की उन्हें वो घर मे क्यों रहने जाना पड़ा.


मै : छावरा साहब. आपने गलती कर दी. वो घर खरीदना भी घाटे का सौदा है.


छावरा साहब ने जो कहा. वो सुनकर मै भी हैरान रहे गया.


छावरा : मगर डॉ साहब आप कहते हो की ये घर मनहूस है. और यहाँ पर कोई खुश नहीं रहे सकता. मगर हम 15 दिन से इसी घर मे है. और ये घर बहोत अच्छा है. मेरी बीवी को तो मेने इतना खुश कभी नहीं देखा. मै तो सोच रहा हु की लाइफ टाइम यही ही रुक जाऊ.


मुजे उनकी बात सुनकर हैरानी हुई. ये क्या?? मेरा वास्तु गलत हो सकता है?? मुजे भरोसा ही नहीं हो रहा था. पंचांग जमीन की कुंडली सब कुछ तो खिलाफ थे.


मै : छावरा साहब मै आप के घर आकर देखना चाहता हु??


छावरा : हा तो आ जाइये. आप से मिलने को तो मै हर वक्त तरसता ही रहता हु.


मुजे समझ नहीं आ रहा था की ये कैसे हो सकता है. ग्रह नक्षत्र कुंडली सारे जिसके खिलाफ हो. उस जमीन पर कोई कैसे खुश रहे सकता है. हो सकता है सायद मे गलत होउ. मेने फिर सब चेक किया. नेट पर उस जमीन का डाटा भी निकला. गोवर्मेंट साइड पर मुजे उस जमीन की हिस्ट्री भी मिल गई. और मे उसी शाम दिल्ली निकल गया.

महेंद्र छावरा साहब ही मुजे एयरपोर्ट रिसीव करने आए. मैं उनके साथ ही उनके घर गया. उनका फ्लेट 2nd फ्लोर पर ही था. आस पास बजी कई बल्डिंगे बनी हुई थी. वहां कई फ्लेट थे. जिस फ्लेट मे छावरा साहब अपनी बीवी के साथ रहे रहे थे. वो 8 मंज़िला बिल्डिंग थी.

जाब मै उनके घर मे घुसा और बैठा तो मेरे फेस पर अपने आप स्माइल आ गई. मेने बहोत अच्छा महसूस किया. तभि छावरा की बीवी आरती आई.


आरती : (स्माइल) अरे डॉ साहब. आप कब आए???


मै उन्हें देख कर हैरान था. पहेली बार उनके फेस पर मेने स्माइल देखि. मै उनसे पहले भी मिल चूका था. पर वो हमेशा उखड़ी उखड़ी रहती थी. चहेरा एकदम उदास. जैसे जीने की इच्छा ही ना हो.


मै : (स्माइल) बस अभी आया.


आरती : (स्माइल) मै आप के लिए चाय लेकर आती हु.


वो अंदर चली गई. मै खुद वहां खुश था. मुजे ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ की वहां कुछ हो सकता है. मै और छावरा बाते कर रहे थे. और थोड़ी देर मे आरती जी चाय लेकर आई. हमने साथ मे चाय पी.

तभि छावरा ने डिसाइड किया की हम डिनर बहार करेंगे. मै भी खुश हुआ. पर आरती जी बहार नहीं जाना चाहती थी. हमने उन्हें फोर्स नहीं किया. और छावरा और मै. हम दोनों ही बहार डिनर के लिए चल दिये..

पर घर के बहार आते मुजे झटका लगा. वो खुशियों भरा माहोल एकदम से गायब था. हम उनके फ्लेट से निकल कर लिफ्ट से निचे उतरे. तब मै अंदर क्या हो रहा था. उसपर गौर करने लगा.

मुजे सब धीरे धीरे याद आ रहा था. हम पार्किंगलोट पहोच गए और कार मे बैठ गए. मेने कार मे बैठ ते ही छावरा साहब से कुछ सवाल पूछे.


मै : छावरा साहब आप और भाभीजी के सिवा यहाँ घर मे कोई और भी है क्या???


छावला : नहीं तो. क्यों???


छावरा साहब थोडा सा हैरान हुए. जब आरती जी चाय बनाने अंदर गई. और हम बाते कर रहे थे. तब मेने आरती जी की आवाज सुनी. जो किचन से आ रही थी.


गुड्डी नई.... गुड्डी जल जाओगी ना.... बैठ जाओ ना मेरी प्यारी बची. साबास... वैरी गुड गर्ल...


जैसे आरतीजी किचन मे काम कर रही हो. और कोई छोटी बच्ची उनके साथ हो.. और वो उनसे बाते कर रही हो..


छावरा : डॉ साहब क्या हुआ आप कुछ पूछ रहे थे???


मै : वो.... मेने जब भाभी जी किचन मे थी तब मुजे ऐसा लगा की भाभी जी किसी बच्ची से बात कर रही हो. वो किसी गुड्डी नाम की लड़की को पुकार रही थी.


छावरा साहब हसने लगे.


छावरा : (स्माइल) अरे वो..... वो बस एक गुड़िया है. आरती हमेशा उस गुड़िया से बाते करती रहती है. जैसे वो कोई बच्चा हो. मै भी उसे नहीं रोकता. क्यों की आरती उस गुड़िया से ऐसे अकेले अकेले बाते कर के ख़ुश होती है. बेचारी कई सालो बाद हस रही है.


मेरे पास ऐसे बच्चों के खिलोने या सामान पर कई केस आ चुके थे. जिसमे उन सामान पर कोई जादू टोना कर के लोगो को दे देते. और लोग किसी ना किसी चीज से पजेश हो जाते.


मै : तो वो गुड़िया कहा से आई???


छावरा : जब हम यहाँ रहने आए थे. तब पुराने मकान मालिक का कुछ सामान पड़ा हुआ था. मेने बाकि सामान तो निकलवा दिया. लेकिन ये गुड़िया आरती ने रख ली.


मै ये सुनकर हैरान था. मै समझ नहीं पा रहा था की समस्या क्या है. हमने एक रेस्टोरेंट में डिनर किया. और वापस आ गया गए. मै सोचता रहा की घर के अंदर का माहोल और बहार के माहोल मे फर्क क्या है.

घर मे रहने से फेस पर स्माइल रहती है. एकदम मूड ऐसा की बस बैठे रहे. कोई माइंड पर दबाव नहीं. सब कुछ हैप्पी. लेकिन बहार निकलते ही सब कुछ नार्मल. लेकिन एक बात थी. की बहार निकलने के बाद उस घर मे वापस जाने को बहोत मन होता था. समझ नहीं आ रहा था क्यों. हम जब वापस आ रहे थे. मेने एक टोटका किया.

एकदम सात्विक टोटका. मेरा एक छोटा बैग हमेसा मेरे पास ही होता है. मेरे पास अभिमत्रित किया हुआ कपूर और लॉन्ग थी. मेने उसे एक कपडे मे लपेट कर अपने हाथ पर बांध दिया. मै छावरा के साथ वापस उसके घर आया. मुजे तब वहां एक बहोत बड़ा झटका लगा.

जब मै घर के डोर पर पहोंचा. और आरती जी ने जब डोर ओपन किया तो घर से बहोत बुरी बदबू आ रही थी. डोर ओपन होते ही बदबू का एक बापका सा लगा. मै समझ गया की यहाँ कोई नेगेटिव एनर्जी है.

क्यों की मेने जो अभिमत्रित कपूर और लॉन्ग धारण किया था. वो नेगेटिव एनर्जी का अभ्यास करवाती है. मेने और एक चीज नोट की. जब मे आया था. वो ख़ुशी वो हैप्पीनेस मुजे फिर नहीं मिली.

बल्की मुजे मनहूसियत महसूस हुई. मगर मेने किसी को भी ये सब के बारे मे आभास नही होने दिया. कुछ देर मेने उन दोनों के साथ बैठ कर बाते की. तभि उनके बेडरूम से कुछ गिरने की आवाज आई. छावरा ने तो ध्यान नहीं दिया. पर मेरा और आरती जी ने गर्दन घुमाकर तुरंत उस बेडरूम की तरफ देखा.


आरती : उफ्फ्फ... ये लड़की भी ना.


आरती जी तुरंत खड़ी हुई और बेडरूम मे चली गई. और उन्होंने जाते ही रूम बंद कर दिया. अंदर से आरती जी की आवाज मुजे सुनाई दे रही थी.


अरे मेरी बच्ची. क्यों गुस्सा कर रही हो. मै आ ही रही थी ना. फिकर मत करो. वो बूढा कल सुबह चले जाएगा. नहीं... बिलकुल नहीं. तुम ऐसा करोगी तो मै तुमसे बात नहीं करुँगी. इ लव यू ना बाबा.


ये सुनकर मै हैरान रहे गया. मुजे सिर्फ आरती जी की ही आवाज सुनाई दे रही थी. बिना सवाल के तो जवाब नहीं हो सकता. पर हैरानी छावरा को देख कर हो रही थी. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था.

या फिर उसे पता नहीं चलता था. ये भी हो सकता था की वो खुद भी किसी चीज से पजेश हो. कई बार पजेश हुवा हुआ व्यक्ति खुद भी एनटीटी का साथ देने लगता है. पर फिर भी मुजे आँखों से देख कर कन्फर्म भी करना था. मै रात गुजरने के लिए गेस्ट रूम मे चले गया.

वो 3BHK का ही फ्लेट था. मै रात देर हो गई. पर सो नहीं पा रहा था. तभि मुजे रात 1 बजे फिर आरती जी की आवाज आई. जैसे वो किसी बच्ची के साथ खेल रही हो.


मै यहाँ हु........ अरे अरे मुजे पकड़ लिया.


मुजे हैरानी हुई क्यों की इस बार मुजे किसी बच्ची के हसने की भी आवाज आई. मै ध्यान से सुन ने लगा.


अच्छा अब तुम छुपो. मै तुम्हे ढूढ़ लुंगी. वन.... टू......थ्री...


मै तुरंत खड़ा हुआ. और हलके से डोर खोला. मेने देखा आरती जी के फेस पर स्माइल थी. जैसे वो किसी को ढूढ़ रही हो. और दबे पाऊ चल रही थी. मेने तुरंत ही डोर धीमे से बंद कर लिया. नहीं तो उन्हें पता चल जता. मै उनकी आवाज बड़े ध्यान से सुनता रहा.


पकड़ लिया....... अब चलो. मै थक गई. पापा भी उठ जाएंगे. हम बैडरूम मे थोड़ी देर रेस्ट करते है.


मै आरती जी के कदमो की आहट सुन रहा था. कुछ वक्त बाद मै बहोत धीरे से डोर खोलकर बहार निकला. वो मुजे कही नहीं दिख रही थी. लेकिन उनके बेडरूम का डोर खुला हुआ था. मैं धीरे-धीरे बिना आवाज किए इसी तरफ बढा. और डोर से अंदर देखा तो हैरान रहे गया.

आरती जी अपने बेड पर पीछे दीवार से पीठ टेके बैठी हुई थी. छाबड़ा साहब उसके पास में ही सो रहे थे. आरती जी के गोद में एक डाल थी. उनके रूम में एक बड़ा मिरर भी था. जब मेने मिरर में देखा तो मुझे बहुत बड़ा झटका लगा. आरती जी के गोद में एक बच्ची बैठी हुई थी.

तकरीबन 4,5 साल की. और उसकी गोद में वो डाल थी. सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि वह बच्ची मुझे ही देखकर स्माइल कर रही थी. मैं तुरंत ही पीछे हट गया. और वापस रूम में आ गया.

उस रात में सो नहीं पाया. और सुबह होने का इंतजार करता रहा. सुबह हुई और मैं नहा धोकर वापस जाने के लिए रेडी हो गया. आरती जी मेरे साथ बहुत अच्छा बर्ताव कर रही थी. मुझे चाय नाश्ता दिया. बहुत अच्छे से ट्रीट किया. मुझे इन सबके लिए कोई सबूत चाहिए था.

जिससे मैं छावरा जी को सब बता सकूं. कि तुम्हारे घर में क्या हो रहा है. मैंने अपने मोबाइल में रिकॉर्डिंग चालू कर दी. मेरे जाने का वक्त हो गया. मैं जाने के लिए रेडी था. लेकिन जाते वक्त उन्होंने स्माइल करते हुए जो कहा. वो सुनकर मैं हैरान रह गया.


आरती : (स्माइल) बूढ़े दोबारा आया तो जान से मार डालूंगी.


हैरानी सिर्फ इतनी नहीं थी. आरती जी ने वो बात छवरा जी के सामने कहीं. और छावरा जी भी मुझे देखकर स्माइली कर रहे थे. मैं समझ नहीं पाया. क्या उन्हें कुछ पता नहीं चल रहा है. या वह भी यही चाहते हैं.


छावरा : (स्माइल) तो चले डॉक्टर साहब??
 
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Update 28C

मै छावरा जी के साथ निकल गया. नीचे आने के बाद हम कर में बैठे. और तब मैंने उन्हें बताया.


मै : छवरा जी आप जानते हो आपके घर में क्या हो रहा है??


छावरा : क्या???


मै : आप के घर मे एक बच्चे की आत्मा है. और आपकी बीवी उसके चपेट में है.


छावरा : क्या बात कर रहे हो डॉ साहब.


मै : क्या आप को अजीब नहीं लगता आप के घर का माहोल.


छावरा : मुझे तो घर का माहौल बहुत ही अच्छा लग रहा है. आप कह रहे थे कि यह घर मनहूस है. लेकिन ये घर आकर मुजे एहसास हुआ की ये घर ही मे मै खुश रहे सकता हु.


मै : क्यों की वो बच्ची की आत्मा ने उस घर के माहोल को वैसा बना रखा है. क्या आप को अभी वैसी ख़ुशी महसूस हो रही है..


छावरा भी ये सोचने लगा.


मै : क्या इस घर में आने के बाद आपकी कोई भी डील फाइनल हो पाई.


छावरा : (सोचते हुए ) नहीं..... जो है वो भी अटक गई.


मै : लेकिन फिर भी आप खुश हो सोचो.


छावरा की भी थोड़ी आंखे खुली..


छावरा : पर ये कैसे हो सकता है???


मै : छावरा साहब आप की बीवी किसी बच्चे से बाते करती है. ये आप ने भी नोट किया. और उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आया जब मै आप के घर आया. ये सुनो.


मेने वो रिकॉर्डिंग छावरा साहब को सुनाई जिसमे हस्ते हस्ते आरती जी ने मुजे धमकी दी थी. बूढ़े अब वापस आया तो तुझे मर डालूंगी. छावरा साहब सुन कर हैरान हो गए. उन्होंने तुरंत कार रोक दी. उनके चेहरे का तो रंग ही उड़ गया. और मैं अपनी पूरी रिसर्च में सुनाई.


मै : आपके घर एक बच्चे की आत्मा है. वह घर का माहौल खुशियों से भरा रखती है. ताकि कोई उसे घर को छोड़ ना पाए. आरती जी भी उनकी चपेट में आ गई है. लेकिन वह घर मनहूस है. अगर आपने जल्द फैसला नहीं लिया. कुछ किया नहीं तो आप आरती जी को खो बैठोगे.


छावरा : मगर मेरी बीवी वहां खुश है. वो किसी को नुकसान तो नहीं पहुंचा रही. अगर वह उसके साथ है तो क्या प्रॉब्लम है.


मै : यही तो बात है छाबरा साहब. उस बच्चे की आत्मा को आरती जी अच्छी लगी. इस लिए वो उन्हें दिखाई दे रही है. आरती जी भी उस बच्चों की आत्मा से प्यार करने लगी है. क्योंकि वह एक औरत है.

और उनकी ममता उन्हें उसे बच्चों के करीब ला रही है. आने वाले वक्त में. वह बच्ची उन्हें मरने पर मजबूर कर देगी. ताकि आरती जी की आत्मा भी इस बच्चे की आत्मा से मिल जाए. इसके बाद आरती जी की आत्मा तुम्हें खींचने की कोशिश करेंगी. क्योंकि आरती जी आपसे प्यार करती है.


छावरा साहब ये सुनकर हैरान हो गए.


छावरा : (घबराहट ) आप क्या करूं डॉक्टर साहब??


मै : तुम उसे घर को अब छोड़ नहीं सकते. क्योंकि वह तुम्हें जाने नहीं देगी. ना ही आरती जी वहां से जाना चाहेगी. मुझे पहले पूरी तैयारी करनी है. जिसके लिए मुझे वक्त चाहिए.




 
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Update 27A


कोमल जब उस स्कूल से बहार निकली उसे बहोत ही हलका महसूस हो रहा था. जैसे अंदर उसका दम घुट रहा हो. और बहार निकलते ही उसे सांस लेने मे आसानी हुई हो. कोमल बहार निककते हो हाफ रही थी.

तभि उसे कुछ आवाजे आई. लाठी पटकने की. कई लोगो के कदमो की. कोमल ने सर उठाकर देखा तो एक भीड़ उसकी तरफ ही चली आ रही थी. कोमल ने देखा की बिच मे सबसे आगे डॉ रुस्तम है.

उसके साथ मुखिया भी थे. पीछे कुछ लोग चले आ रहे थे. दो लोग दयाराम का पीछे से कुर्ते की कोलर पकड़ रखी थी. वो हाथ जोड़े रो रहा था. गिड़गिड़ा रहा था. पर वो दो मर्द उसे धक्का देकर वहां ला रहे थे.

वो सारे स्कूल के बहार खड़े हो गए. डॉ रुस्तम कोमल के पास आए. डॉ रुस्तम ने कोमल को स्माइल करते हुए देखा.


डॉ : (स्माइल) मूर्ति मिल गई.


कोमल हैरानी से कभी डॉ रुस्तम को देखती है. फिर भीड़ को. कोमल ने बारी बारी सबको देखा.


कोमल : (सॉक) कहा है???


उस भीड़ से कुछ लोग साइड हटे. और पीछे बैलगाड़ी खड़ी थी. जिसमे कुछ 3 फिट बड़ी पत्थर की माता की मूर्ति थी. कोमल के फेस पर भी स्माइल आ गई. आंखे बंद किये उसने राहत की शांस ली.


डॉ : दाई माँ कहा है??


कोमल : वो अंदर है. उन्होंने उन बच्चों को सायद बांध दिया है. पर वो बहार नहीं आई.


डॉ : सायद बहोत लोगो ने यहाँ सुसाइड एटम किया है. उन एंटिटीस से संपर्क कर रही हो.


कोमल : तो अब क्या करेंगे???


डॉ : माँ को आने दो. पंचायत लगेगी.


कोमल : बलबीर कहा है??


डॉ कुछ बोले नहीं बस स्माइल करते है. कोमल को एहसास हुआ की उसके बगल मे कोई खड़ा है. कोमल ने एकदम से बलबीर को देखा. और वो झपट के इसके बाहो मे चली गई.


बलबीर : अरे... क्या कर रही हो.... सब....


कोमल को हसीं आने लगी. बलबीर गांव का ही था. और वो लोग किसी गांव मे ही थे. इसी लिए बलबीर को शर्म आ रही थी.


डॉ : चलो हम उस पेड़ के निचे चलते है. जब तक दाई माँ नहीं आती.


दोपहर हो चुकी थी. और धुप तेज़ भी हो गई थी. वो लोग एक पेड़ के निचे चले गए. दिन दयाल को भी उन लोगो ने पकड़ के रखा. जब तक दाई माँ नहीं आई. दिन दयाल के रोने के कारण सब बहोत इरेट हुए. पर किसी को भी उस पर दया नहीं आ रही थी.

उल्टा सब तो उसे बिच बिच मे गालिया देते. कोई तो ज्यादा ही परेशान हो जता तो खड़े होकर दिन दयाल को एक थप्पड़ भी मर देता. दोपहर के दो बजे दाई माँ बहार निकली. उनके हाथो मे उनका वही झोला था. पर हाथो मे चार पांच लाल कपड़ो मे लटकाती हांडी.

वो बहोत छोटी छोटी ही थी. बलबीर तुरंत भाग कर दाई माँ के पास पहोंचा. दाई माँ ने उसे अपना झोला तो दिया. मगर वो हंडिया नहीं दी.बलवीर दाई माँ को उस पेड़ की छाव तक ले आया. डॉ रुस्तम का एक टीम मेंबर तुरंत दाई माँ के लिए प्लास्टिक चेयर ले आया.

दाई माँ को पानी दिया. पर उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. दाई माँ ने थोड़ी शांस ली. पसीना पोछा. और अपने आप को ठीक किया.


दाई माँ : जे सारे सुन लो. जिन लोगन ने मरे भए को छू रखो है. बे सारे कछु खानो पिनो अभाल मत कर दीजो. मरे भए है बा की पनोती लगेगी.
(ये सारे सुन लो. जिन लोगो ने मरे हुए लोगो का कुछ भी छुआ है तो कुछ भी खाना पीना मत. मरे हुए है. उनकी पनोती लगेगी.)


बलबीर : माँ इस से वैसे कुछ होता है क्या???


दाई माँ : हम काउ के मरे मे जाए तब का घर मे घुसने ते पहले नीम के पत्तन बारे पानी ते हाथ मो ना धोते?? कुला ना करते. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज करो. बे पागल ना है. समझो करो.
(हम किसी के मरे मे जाते है. तो घर मे घुसने से पहले नीम के पत्तों वाले पानी से हाथ मुँह धोते है या नहीं. कुल्ला करते है या नहीं. हमारे बड़े बूढ़ो ने जो रीवाज किये है वो पागल नहीं है. समझा करो)


सभी दाई माँ की बात मान लेते है. वैसे उनके आने से पहले सभी पानी पी चुके थे. खुद डॉ रुस्तम भी. क्यों की गर्मी बहोत ज्यादा थी. और डॉ रुस्तम ये सब जानते भी थे. पर गर्मी की वजह से कुछ रियते लेनी ही पडती है. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ हाथ दिखाया.


डॉ : ये देखो माँ. यही है सारी फसाद की जड़.


दाई माँ ने दिन दयाल की तरफ देखा. जैसे सुने बिना ही वो कुछ समझ चुकी हो. दाई माँ ने अपना पाऊ हिलाकर अपनी चप्पल ढीली की.


दाई माँ : बेटा बलबीर जे मेइ चप्पल दीजो.
(बेटा बलबीर मेरी चप्पल देना जरा)


कोमल दाई माँ के पास मे थी. वो उठाने गई तो माँ ने उसे रोक दिया.


दाई माँ : ना चोरी. तू रिन दे. चोरी पाम ना छूती. पाप परेगो मोए.
(ना बेटी तू रहने दे. पाप पड़ेगा मुजे)


बलबीर ने माँ को उनकी चप्पल दी. मा थोड़ी बैठे बैठे ही घूमी. और पूरी ताकत से दिन दयाल को चप्पल मारी.


दाई माँ : बाबाड़ चोदे.... बली दाई ना तूने हे...(भयकार गुस्सा)
(भोसड़ीके बली दी ना तूने... हा...)


दाई माँ समझ गई की दिन दयाल ने अपना काम निकलवाने के लिए बली दी थी. दाई माँ बहोत गुस्से मे चिल्ला चिल्लाकर बोल रही थी.


दाई माँ : (गुस्सा चिल्लाकर) जे मदरचोद ने अपने दोनों छोरन की बली दी है.
(इस मादर चोद ने अपने बेटों की बली दी है.)


सभी सुनकर हैरान हो गए. दाई माँ ने फिर दिन दयाल की तरफ देखा.


दाई माँ : मदरचोद तोए पतोंउ हे कछु. जिनकी बली होते. बाए मुक्ति ना मिलती. तोए तो भोत पाप लगेगो. तेइ योनि पीछे चली गई.
(मदरचोद तुझे पता भी है कुछ. जिनकी बली होती है. उन्हें मुक्ति नहीं मिलती. तुझे तो पाप लगेगा. तेरी योनि पीछे चली गई. )


डॉ रुस्तम जानते थे की सब कुछ लोगो को समझ नहीं आएगा. इस लिए वो समझाते है.


डॉ : जैसे इसने अपने बेटों की बली दी. अब उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी. क्यों की उनकी आत्मा अब कैद हो गई है. हलाकि इसने बली किसे दी है.

ये विधि जानेंगे. उन्हें भी मुक्ति देने की विधि है. पर लोग ये नहीं जानते की हम अपना काम निकलवाने के लिए जो बली देते है. उस से हमारी योनि का स्तर गिर जता है. हम अपना काम तो निकलवा लेते है.

इंसान या जानवर किसी की भी बली देने से उनकी आत्माए उस चीज से हमेशा जुड़ जाती है. हमारा तो काम बन जता है. मगर हर चीज की एक कीमत होती है. हम जन्म लेते है. वो एक इंसान की योनि है.

ऐसे कीड़े मकोड़े कुत्ता बिल्ली कई योनि के बाद हमें इंसान की योनि मिलती है. हमें हमारे काम निकलवाने के बदले तो बली की कीमत चूका दी. पर बली की कीमत कौन चुकाएगा. उसके बदले हमारी योनि गिरा दी जाती है. बली देने वाला सबसे निचले स्तर पर चले जता है. तो किसी की बली देना महा पाप है.


कोमल और बलबीर को भी ये ज्ञान हुआ. वो भी ये सुनकर हैरान हुए. डॉ रुस्तम ने दिन दयाल की तरफ देखा.


डॉ : दिन दयाल. अब तो तुम पुरे पकडे गए हो. जो हमें नहीं पता था. वो भी माँ ने पकड़ लिया. अब बताओ क्या बात थी. जो तुम इतना निचे गिर गए.


दिन दयाल की भी आंखे खुली. जब उसने डॉ रुस्तम की पूरी बात सुनी. उसे उस पाप का एहसास भी हुआ. और नशा भी उतार गया.


दिन दयाल : आश्रम का पैसा मेरे पिताजी ने नहीं मेने चुराया था. क्यों की पिताजी सारा पैसा हमारे घर ही रखते थे. पर जब पैसा चोरी हो गया. ये उन्हें पता चली तो उन्हें दिल का दोरा आ गया. वो मर गए.

मै पैसे अपने पास छुपाए हुए था. कुछ दिन तो सब अच्छा चला. फिर मेरी बेटी मे पंडितजी आने लगे. मुजे समझाया. वो पैसे लौटा दे. पर मे नहीं मना. वो मुजे बार बार परेशान करते थे. मेने ये बात किसी को नहीं बताई.

मगर उस दिन जब स्कूल के बच्चे मरे उस दिन सब को पता चल गया की मेरी बेटी मे कुछ गड़बड़ है. मेने लोगो मे ज़ुट्ठी अफवाह उड़ा दी की मेरी बेटी माता है. सभी ने मान भी लिया. मगर पंडितजी ने मेरा जीना हराम कर दिया था. तभि मै एक बाबा से मिला. उन्हें मेने गांव मे भी बुलाया. और उन्होंने ही मुजे ये सलाह दी थी.


कोमल का चालक दिमाग़ दिन दयाल की चोरी पकड़ चुकी थी. उसे गड़बड़ साफ नजर आ गई.


कोमल : (गुस्सा) अबे ओय चूतिये.


सभी कोमल का ये रूप देख कर हैरान हो गए. बलबीर ने तो कोमल का हाथ पकड़ लिया. क्यों की बड़ो के बिच गांव के माहोल मे ऐसा बर्ताव बहोत ही गलत मना जता है.


कोमल : (गुस्सा) साले माँ ने तो चप्पल मारी है. मे तो पत्थर मरूंगी तुझे. मंदिर की मूर्ति क्या तेरे बाप ने गायब की थी???


बात तो सही थी. ये मुद्दा वाकेई सोचने लायक था. कोमल तो गुस्से मे गली देते हुए चिल्लाकर बोल रही थी. क्यों की कोर्ट मे तो संभल कर बोलना पड़ता था. वो भड़ास निकालने का मौका नहीं खोना चाहती थी.


कोमल : (गुस्सा) तू उस से पहेली बार नहीं मिला था. तू उस तांत्रिक से पहले भी मिला. नहीं तो मूर्ति गायब करने का आईडिया तुझे आता ही नहीं.


दाई माँ भी खुश हो गई. वो थोडा झूक कर कोमल की पिठ थप थपाते हुए उसे सबासी देती है. दिन दयाल दरसल अपने बेटों की हत्या के बारे मे नहीं बताना चाहता था..


दिन दयाल : मेरे मन मे लालच थी. मै उन्हें अपनी जवानी के वक्त तब मिला था.

जब मेरे दो ही बेटे थे. मेरा तीसरा बेटा और बेटी तब पैदा ही नहीं हुए थे. मुजे पूरा विश्वास था की पंडितजी के पास और भी धन होगा. पर ढूढ़ने से कुछ नहीं मिलता था. तब मै एक बार वाराणसी गया. वहां पहेली बार उस बाबा से मिला. मेने उन्हें सारी जानकारी सुनाई.

पर उन्हें धन का लालच ही नहीं था. उन्हें तो कुछ और चाहिये था. उस वक्त मंदिर तो बन चूका था. पर स्कूल नही बना था. मेरे पिताजी भी जिन्दा ही थे. पिताजी सोच सोच कर पागल हुए जा रहे थे की स्कूल कैसे बनाए. क्यों की सारा पैसा तो चोरी हो गया.

उन्हें नहीं पता थी की वो चोर मे ही हु. उस तांत्रिक से मेरी पहले ही बात हो चुकी थी. मेने ही पिताजी से कहा एक तांत्रिक है. वो यहाँ आएँगे. पंडितजी का छुपा हुआ बहोत सारा धन है. जो कही उनकी जमीन मे गाड़ा हुआ है. हम उनकी मदद से उसे ढूढ़ लेंगे.

हमारा काम हो जाएगा. स्कूल हम बना लेंगे. वो मान गए. एक रात वो तांत्रिक आया. किसी को पता नहीं चला. उस वक्त मे जवान था. उसने मंदिर देखा. और मंदिर के चारो तरफ घुमा.


तांत्रिक : मै ये स्कूल बनवाने के लिए खुद पैसा दे दूंगा. मगर उसके लिए ये मूर्ति मुजे चाहिये.


मै मान गया. उसने वो पैसे मुजे नहीं दिये. मेरे पिताजी को दिये. क्यों की सायद मुजे दिये होते तो आज भी मंदिर ना बनता. वो चले गया. स्कूल बन ने का काम शुरू हो गया. तब मेरे पिताजी ने मुजे ही वो काम सौपा.

मे उसमे से भी बहोत पैसे खा गया. वो तांत्रिक एक रात और आया. स्कूल का काम चालू था. रात हम दोनों ने मिलकर मूर्ति चोरी की. और वही दाढ़ दी मेरे ही घर. लेकिन उसके बाद हकात ठीक नहीं हुए.

और ज्यादा बिगड़ने लगे. पहले तो मेरे पिताजी को दिल का दोहरा आया. जिसमे मेरे पिताजी चल बसें. मेरी बीवी मर गई. मै फिर वापस बनारस गया. क्यों की ना तो मुजे कोई धन मिला और ना ही घर का भला हो रहा था. उस तांत्रिक ने मुजे बताया की ये सब पंडितजी कर रहे है. वो तेरे परिवार के सभी लोगो को बारी बारी ले जाएगा.


दाई माँ : जे वाने तोते झूठ कओ. (यह उसने झूठ कहा.)


दिन दयाल : हा उसने मुझसे झूठ ही बोला था. मेने उस से उपाय पूछा तो उसने कहा की तेरे दोनों बेटे तो बचेंगे नहीं. हा मै तुझे तेरी बीवी के पेट मे है. उसे बचा सकता हु.

मै उसकी बात मान ली. मुजे नहीं पता थी की वो झूठ बोल रहा है. उस रात वो फिर आया. उसने उसी स्कूल मे पूजा की. इसका पता किसी को नहीं था. मेने अपने दोनों बेटों को खुद चल कर आते देखा. वो मेरे सामने ही उसी स्कूल की छत से कूद गए.


बोलते हुए दिन दयाल रोने लगा. डॉ रुस्तम उसके पास गए. और इसे दिलासा दिया.


डॉ : उस तांत्रिक ने तुझे मुर्ख बनाया. और तेरे दोनों बेटों की जान ले ली. तेरे सामने ही तेरे दोनों बेटों की बली ले ली.


दिन दयाल : उसने कहा अगर अपनी बीवी और होने वाले बच्चों को बचाना है तो इस मंदिर को छुपाना होगा. उस रात मेने खुद अपने हाथो से खोद खोद कर उस मंदिर को छुपा दिया. उसने कहा की जब तक ये मूर्ति तेरे आंगन के जमीन मे दफ़न है तेरा परिवार बचे रहेगा.

मेने उसी डर से वो मूर्ति दोबारा कभी नहीं निकली. मेरे बाद मे एक बेटा और बेटी हुए. बेटा तो ठीक था. पर बेटी बहोत कमजोर थी. मेरी माँ ने मुजे समझाया. ये सब गलत मत कर. मुजे मेरी माँ की बात ठीक लगी.

उस रात मेने अपने घर के आँगन मे मूर्ति निकालने के लिए खुदाई शुरू की. पर उसी वक्त मेरी बीवी चल बसी. मा को उसी वक्त लकवा हो गया. मेने काम बंद किया. मुजे लग रहा था की ये सब मूर्ति वापस निकालने के चक्कर मे ही हो रहा है. मेने मूर्ति वापस दफना दी.

और मेरी बीमार माँ को उसपर ही बैठा दिया. वो वही पड़ी रहती. लेकिन बेटी मे फिर पंडितजी आने लगे.


डॉ : ये सब वो तांत्रिक कर रहा था. उसने बली ली तो उसे तू क्या कर रहा है सब पता चल रहा था. तुझे सिर्फ डराने के लिए उसने ऐसा किया. तेरी माँ के कुछ पुण्य रहे होंगे जो वो बच गई.


दिन दयाल : उसके बाद पंडितजी मेरी बेटी मे आने लगे. उन्होंने मुजे रुक जाने को कहा. पर मे तो उन्हें ही कारण समझ रहा था. पंडितजी ने ही लोगो की जान बचाने की कोसिस की. पर मे समझा ही नहीं. स्कूल की छत गिरने के बाद मुजे एहसास तो हो गया. पर अगर मूर्ति निकलता तो मेरा एक बेटा बचा है. वो भी मर जता.


डॉ : तो वो तांत्रिक कहा है अभी???


दिन दयाल : पता नहीं कहा है. मै वाराणसी गया था. मुजे वो घाट पर मिला नहीं.


दाई माँ : वाराणसी मतबल तो बो मानिकर्निका मे मिलेगो.
( वाराणसी का है तो मतलब वो मनिकारनिका घाट पे ही मिलेगा )



डॉ रुस्तम ने दाई माँ की तरफ देखा


डॉ : अब क्या करें दाई माँ???


दाई माँ : संजऊ जाकी बेटी के पास चलिंगे. फिर देखींगे का कारनो है. अभाल नहाओ धोऊ.
(शाम को इसकी बेटी के पास चलेंगे. फिर देखते है. इसका क्या करना है)


सभी वहां से चले गए. दाई माँ कोमल से क्या सभी से दूर रहती. दाई माँ ने कोमल को अपने से दूर रखने के लिए बलबीर को हिशारा कर दिया था. सभी लोग आश्रम मे आए. सभी लोगो ने नहाया धोया.

खाना पीना खाया. पर दाई माँ आश्रम के बहार ही एक पेड़ के निचे खटिया डाल के पड़ी रही. पेड़ पर ही दाई माँ ने उन हंडियो को टांगे रखा. शाम हुई. सभी लोग दिन दयाल के घर गए. वहां पूजा आरम्भ की.

पर दाई माँ नहीं गई. दिन दयाल के घर पर तंत्र पूजा हुई वहां दीनदयाल की बेटी मे पंडितजी की आत्मा आई. वो बहोत खुश थी. उन्होंने बताया की स्कूल को तोड़ कर फिर से बनाया जाए. वास्तु के हिसाब से.

मंदिर और मूर्ति का शुद्धिकरण हो. मूर्ति मंदिर मे पूरी विधि वश स्थापना हो. और बहोत बड़ा भंडारा करें. एक बड़ा यज्ञ किया जाए. इतना सब करने के लिए बहोत पैसे लगने थे. पंडितजी को बताया गया. पंडितजी ने बोला आप कार्य शुरू करो. सब अपने आप हो जाएगा.

अब बारी थी पंचायत की. जिसमे गांव वाले दान देने का फेशला किया. डॉ रुस्तम ने 1 लाख रूपय दान देने का वादा किया तो कोमल ने भी 1 लाख दान देने का वादा कर दिया. बलबीर के पास कुछ नहीं था. वो बेचारा चुप ही रहा. दिन दयाल अपने पाप का प्रश्चित करना चाहता था. मगर सजा तो उसे कटनी ही थी.

दिन दयाल को गांव की पंचायत ने हुक्का पानी बंद की सजा सुनाई. मतलब गांव मे अब कोई भी दिन दयाल के परिवार से कोई वास्ता नहीं रखेगा. और जल्द से जल्द गांव छोड़ देने की हिदायत दी.

ये गांव वालों की अच्छाई ही थी की जमीन मकान बिक्री करने के लिए वक्त दिया जा रहा था. डॉ रुस्तम ने पंचायत मे दाई माँ की तरफ से बताया. सारे बच्चे गांव के ही थे. वो सारो के पिंड दान के लिए वाराणसी चले. सा गांव के कई लोग जो मारे गए वहां पर जो गांव के ही थे.

उनके परिजन भी साथ चले. ताकि उनका पिंडदान हो जाए. और सभी की आत्माओं को शांति मिले. जो अनजान लोग थे. उनका पिंड दान वहां नहीं हो सकता था. उनके लिए गया बिहार जाना पड़ता है. डॉ रुस्तम कोमल बलबीर और बाकि कई उनके टीम मेंबर वापस आश्रम मे आए. सारी जानकारी दाई माँ को दी. और दूसरे दिन वाराणसी जाने का प्लान बन गया.
Bohot badhiya update shetan.
Us babad chode deen dayal ka hi kiya dhara tha sab😄. Mujhe lagta hai ki uske ghar me pooja karne ke liye dai ma ko jana chahiye tha, per ho sakta hai pakdi hui aatmao ke karan wo nahi gai hogi? Tantra sakti bohot peabal hoti hai👍 samanya aatma ki sakti se kahi jyada blak mazik or kale tantra ki urja jyada prabal hoti hai,
Anyways superb update 👌🏻👌🏻👌🏻
👌🏻👌🏻💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥💥
 
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