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Incest कैसे कैसे परिवार

prkin

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आठवाँ घर: स्मिता और विक्रम शेट्टी
अध्याय ८.३.६
************

अब तक:

महक आज अपनी भावी ससुराल में रुकने वाली थी. आज उसे अपने भावी सास और ससुर से समागम करने का प्रथम अवसर प्राप्त होने जा रहा था. श्रेया और मोहन इस समय श्रेया के घर गए थे और रात को वहीँ रुकने वाले थे. कुछ विचार के बाद सामूहिक चुदाई का निर्णय हुआ और सभी सुजाता के शयनकक्ष में चल दिए. मेहुल नूतन के पास था जब स्मिता ने उसे फोन किया और रात्रि में वहीं रुकने की अनुमति दे दी. स्मिता और विक्रम पहले समय के समान दिन भर घूमे और अब एक दूसरे से साथ अकेले हैं. ऐसा अवसर कभी कभार ही उन्हें प्राप्त होता था और इसका वो सम्पूर्ण लाभ उठाना चाहते थे.

अब आगे:
************

सुनीति का घर:

सुनीति महक को अपने कमरे में ले गयी.
सुनीति: “महक, पहले जाकर स्नान कर लो, हम सभी ये करते हैं और तुम्हें भी शाम को स्नान करना चाहिए.”
“जी मम्मीजी, हम भी घर में सोने जाने के पहले स्नान करते हैं. मैं अभी जाती हूँ.” ये कहकर उसने अपने बैग में से उचित वस्त्र निकालने लगी.
“इनको आवश्यकता नहीं पड़ेगी,” सुनीति ने मुस्कुराते हुए कहा. “बाथरूम में बाथरोब है, वही पहन लेना.”
“जी.”
“वैसे स्नान करने से त्वचा मुलायम और कोमल हो जाती है. चुदाई में आनंद आता है, क्यों?”
“जी, मम्मीजी. अपने सही कहा. इसी कारण हमने भी ये पद्धति अपने है. पर हम चुदाई के बाद स्नान नहीं करते, जिससे कि एक दूसरे के रस को हम यूँ ही न बहा दें.”
“सच है, रस में नहाकर पानी से नहाना व्यर्थ ही ही.” सुनीति ने कहा और फिर महक की थोड़ी पकड़कर उसका चेहरा ऊपर किया. फिर हल्के से उसके होंठ चूमते हुए बोली, “तुम बहुत सुंदर हो महक. हमारा भाग्य अच्छा है जो तुम जैसी बहू मिलने जा रही है. असीम बेचारा तुम्हारे सानिध्य से इतने दूर रहेगा. कहीं पागल न हो जाये मेरा बेटा।”
“मम्मीजी, अपने विवाह की कोई तिथि निश्चित की है क्या अब तक?” महक ने पूछा.
“हाँ, कल पंडितजी आये थे. तीन महीने बाद की तिथि दी है. कल मैं स्मिता से बात करूंगी. अगर उनके लिए वो तिथि उपयुक्त है, अन्यथा चार महीने और प्रतीक्षा करनी होगी. लगता है तुम भी असीम से मिलने के लिए इच्छुक हो.”
“मम्मीजी, अपने भावी पति से मिलने के लिए कौन इच्छुक नहीं होगा. पर नियम के अनुसार हम चुदाई के सिवाय किसी भी अन्य रूप से मि सकते हैं. घूमने जा सकते है, चुंबन ले सकते हैं, एक दूसरे को छूकर या सहला कर संतुष्ट कर सकते हैं, परन्तु चुदाई नहीं कर सकते, मौखिक भी नहीं.”
“हाँ मुझे बताया गया है. चलो तुम नहा कर आ जाओ. तुम्हारे ससुर भी आते ही होंगे, इन्हें समाचार देखना अधिक आवश्यक लगता है अपनी बहू से मिलने के स्थान पर.”
महक उनकी बात पर धीमे से हंस दी.
“बहुत मोहक हंसी है. सदा यूँ ही हंसती रहना. चलो अब जाओ.”
महक स्नान के लिए गई और सुनीति ने आशीष को अंदर बुला लिया.
“अब समाचार बाद में देख लेना. अंदर आइये.”
आशीष पीने के सामान के साथ अंदर आ गया.
“और पीनी है आपको?”
“देखेंगे, मन किया तो. वैसे एक एक पेग यहाँ अलग से पीकर महक की धड़क निकल जाएगी, क्यों.”
“आपको तो बहाना चाइये. चलिए ठीक है. महक स्नान कर ले तो आप चले जाना. फिर मैं जाऊंगी।”
इतने में ही महक बाहर आ गई, बाथरोब में और उसका शरीर पानी की बूंदों से झिलमिल कर रहा था. आशीष उसे देखकर मंत्रमुग्ध हो उठा. फिर वो नहाने चला गया. नहाते हुए भी उसका लंड महक की सुंदरता के कारण खड़ा हो गया. स्नान के बाद उसने भी बाथरोब पहना पर उसका खड़ा लंड उसमें से भी विदित था. बाहर आया ही था कि सुनीति तपाक से अंदर चली गई. महक ने भी अपने भावी ससुर के लंड की स्थिति को देख लिया, पर शर्माते हुए आँखें झुकाकर खड़ी रही.

“अरे शर्माने जैसी कोई बात ही नहीं है. तुम तो इन सब खेलों में हम सबसे भी अधिक अनुभवी हो. इतने वर्षों से समुदाय में जो हो. तो फिर झिझक किस बात की है, महक.”
“जी, वो अलग बात है. पर अब मैं इस घर में बहू जो बनके आने वाली हूँ तो कुछ तो लाज आएगी न, पापाजी.”
“हम्म्म, बात तो तुम्हारी सही है. और यही कारण है कि सुनीति ने तुम्हें आज आमंत्रित किया और रुकने के लिए कहा. शर्म और झिझक जितनी पहले हट जाये उतना ही अच्छा है सबके लिए.”
“जी, पापाजी.”
ससुर बहू एक दूसरे का आकलन कर रहे थे. महक का इन दो मिनट की बातचीत से ही बहुत कुछ संकोच दूर हो गया था. इतने में सुनीति भी स्नान करके बाहर आई और उसी प्रकार के बाथरोब में थी. सुनीति की सुंदरता को देखते ही महक की जैसे साँस ही रुक गई. उसके बालों से गिरता हुआ हल्का पानी और तराशा हुआ सुंदर शरीर किसी अप्सरा की कल्पना के समान था. अविरल भी सुनीति को देखकर गर्व से फूल गया. सुनीति ने उन दोनों को देखा तो कुछ शर्मा सी गई. विशेषकर महक की आँखों की चमक और लालसा देखकर. आज उसे अपनी भावी बहू के सानिध्य का आनंद मिलने वाला था और महक को देखकर वो समझ गई कि उसे दोनों प्रकार के सुख का अनुभव है.


नूतन और मेहुल:


नूतन को जैसे ही पता चला कि मेहुल आज रात उसके साथ ही रुकने वाला है, इसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही. वो मेहुल के तगड़े लंड को, जिसे वो अब तक प्रेम से चूस रही थी, अब एक नए जोश के साथ चूसने लगी.
दोपहर को जब वो नूतन के घर पहुंचे थे तो नूतन ने खाना बाहर से ही मंगा लिया था. घर में जाकर दोनों ने स्नान किया, हालाँकि मेहुल को पाने वही वस्त्र पहनने पड़े. तब तक खाना भी आ गया और हल्का खाना खाने के बाद नूतन मेहुल को अपने शयनकक्ष में ले गई. बहुत सुंदर सजा हुआ था परन्तु किसी भी प्रकार की अतिश्योक्ति नहीं थी. नूतन ने तुरंत अपने कपड़े निकाल फेंके. वो इस समय के लिए बहुत समय से प्रतीक्षारत थी. मेहुल के लंड को नापने के बाद उससे चुदे बिना नूतन को शांति नहीं मिलनी थी. वो तो शोनाली की कृपा थी जो मेहुल को उसने नूतन के साथ भेजा, अन्यथा ऐसा कम ही होता था.
नूतन को नंगा होते देखने के बाद मेहुल ने उसके शरीर को जांचा. नूतन अवश्य अपना ध्यान रखती थी, क्योंकि कुछ हल्की रेखाओं के सिवाय उसका शरीर बहुत गठा हुआ था. नूतन ने अब आशा से मेहुल को देखा तो मेहुल ने भी अपने कपड़े निकाल ही दिए. उसका लम्बा मोटा लंड उछलकर व्यायाम करने लगा. नूतन ने उसे अपने हाथ में लिया और सहलाने लगी.
“अगर शोनाली न होती तो मुझे न जाने कब इस लंड से चुदाई का अवसर मिलता कहना सम्भव नहीं है. सच में तुम्हारे लंड में इतनी शक्ति है कि तुम किसी भी स्त्री को संतुष्ट कर सकते हो.”
मेहुल ने कुछ भी कहना उचित न समझा. कुछ समय तक सहलाने के बाद नूतन घुटनों के बल बैठ गई और उसने लंड को सूँघा। फिर जीभ निकालकर टोपे को चाटा और कुछ समय तक यूँ ही चाटती रही. फिर लंड की गोलाई को चाटने में उसे अच्छा समय बिताना पड़ा. जब उसने लंड के बाहर के हर भाग से अपनी पहचान कर ली तो फिर उसे मुंह में लिया और चूसने लगी.

लंड पूरा तो मुंह में लेना सम्भव था नहीं, उसकी चौड़ी मात्र से ही नूतन के गाल फूल रहे थे, परन्तु उसने पूरी श्रद्धा के साथ जितना सम्भव हो पाया उतना लंड मुंह में लिया और बहुत प्रेम से उसे चूसा. कुछ ही मिनटों में उसे ये पता चल गया कि इस प्रकार से तो उसके मुंह का आकार ही बदल जायेगा. तो उसने लंड को मुंह से निकाला और उसे चूमते हुए चाटने से ही संतोष कर लिया. अब तक मेहुल के लंड में इतना तनाव आ चुका था कि उसके लिए रुकना कठिन हो रहा था. उसने नूतन के सिर पर हाथ फेरा. नूतन भी लंड की स्थिति देखकर समझ चुकी थी कि अब अपनी चूत का संहार करवाने का समय आ ही चुका है.
वो खड़ी हुई और बिस्तर पर जाकर लेट गई और अपने पैर फैला लिए. मेहुल ने उसकी चूत को देखा तो कुछ समय के लिए अपने लंड की इच्छा को दबाकर अपने मुंह की इच्छा को चुना. नूतन की बहती चूत के आगे जाकर उसने अपने मुंह को उसकी चूत में डाला और उसके रस को चाटने के बाद उसकी चूत और उसके आसपास के अंग को भी चाटने लगा. नूतन की सिसकारी निकली और उसने कुछ और रस मेहुल को अर्पण कर दिया. मेहुल ने उसे बह पी लिया और अब अपनी जीभ से नूतन की चूत को टटोलने लगा.
चूत में जीभ जाते ही नूतन के शरीर ने अंगड़ाई ली और फिर उसकी चूत ने रस की फुहार छोड़ दी. मेहुल समझ गया की नूतन अब चुदास से भरपूर है और उसने अपनी जीभ को कुछ और अंदर चलने के बाद बाहर निकाला। नूतन ने एक गहरी साँस भरी और संतुष्टि की भावना व्यक्त की.
“मेहुल, मैं चाहती हूँ कि अगर हो सके तो तुम आज रात मेरे पास ही रुक जाओ.”
“ऐसा सम्भव नहीं लगता. पर देखते हैं.”
परन्तु फिर नूतन ने एक भीषण गलती भी कर दी.
“अगर रुक नहीं सकते तो मुझे आज पटक पटक कर चोदो। ऐसे चोदो कि मेरी आत्मा काँप जाये. बहुत दिन हो गए ऐसी चुदाई किये हुए. क्लब की अंतिम पार्टी के बाद मेरी अच्छी चुदाई नहीं हुई है, तो प्लीज मेरी माँ चोद दो. ऐसे चोदो कि मैं दया की भीख माँगू पर दया करना नहीं.”
नूतन ने ये कह तो दिया पर उसने मेहुल के चेहरे के बदलते भाव नहीं देखे. मेहुल ये सुनकर अपने पशु वाले व्यक्तित्व की ओर जा रहा था.
“अगर तुम ऐसे चोदोगे तो मैं तुमसे गांड भी मरवाऊँगी, आज नहीं तो कुछ ही दिन में.”
मेहुल अब अपने पाशविक रूप के निकट था. उसने नूतन को एक अवसर दिया अपने वक्तव्य को बदलने का.
“आप सच में ऐसी चुदाई ही चाहती हैं. क्योंकि अगर मैंने आरम्भ कर दिया तो फिर मैं रुकुंगा नहीं.”
नूतन तो अपनी ही कल्पना में खोई थी, उसने मेहुल की चेतावनी और उसके बदले हुए स्वर पर कोई अधिक ध्यान नहीं दिया. और ये उसके लिए एक अत्यंत कष्टकारी अनुभव होने वाला था. अंत में संतुष्टि के पहले उसे पीड़ा का सामना करना था. पर अब उसने अपने पत्ते फेंक दिए थे और मेहुल के हाथ में बाजी थमा दी थी.

मेहुल ने नूतन की चूत पर एक दृष्टि डाली. उत्तेजना से चूत कुछ फूल सी गई थी और पंखुड़ियाँ अलग हो गई थीं. चूत चुदने के लिए आतुर थी और मेहुल चोदने के लिए. मेहुल ने अपने शक्तिशाली लंड को नूतन की चूत पर कुछ देर तक रगड़ा जिसके कारण चूत और गीली हो गई. फिर धीरे से उसने अपने लंड को अंदर डालना आरम्भ किया. नूतन उसकी ओर प्रेम से देख रही थी. शनैः शनैः मेहुल ने लगभग आधे से अधिक लंड को चूत में डाला और रुक गया. उसने नूतन की तरसती हुई आँखों में देखा। आगे झुकते हुए उसने नूतन के होंठों से होंठ मिला दिए और चूसने लगा. नूतन ने भी उसका पूरा साथ दिया.
चुंबन को तोड़ते हुए मेहुल ने नूतन के मम्मों पर अपने हाथ रखे और उन्हें पहले तो प्यार से सहलाया पर धीरे धीरे उन्हें मसलने लगा. चुदाई की आग में जल रही नूतन को ये भी अच्छा ही लगा. दोनों मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुए इस बार मेहुल ने लंड बाहर निकाला तो नूतन की आँखें जैसे बुझ गयीं. इससे पहले कि वो कुछ कह पाती मेहुल ने एक शक्तिशाली धक्का मारा और नूतन की भयावह चीख के साथ उसका लंड नूतन की चूत में समा गया. नूतन के चेहरे के भाव अब प्रेम से बदलकर पीड़ा के हो गए. उसकी आँखों में आँसू आ गए. पर वो कुछ बोल न पाई और उसके होंठ केवल कुछ कहने को कांप कर रह गए.
मेहुल ने जैसा कहा था, वही किया. अपने लंड को वो लगभग पूरा निकालता और फिर पूरा ही अंदर डालता. कुछ समय तक तो उसने इस क्रिया को एक धीमी गति से ही किया, परन्तु फिर उसकी गति बढ़ने लगी. और एक समय के बाद उसके कूल्हे इस तीव्रता से चल रहे थे कि नूतन को पटक पटक के चुदने की जो इच्छा थी वो पूरी होने लगी. पर मेहुल को सीखने वाली अनुभवी स्त्रियों ने उसे और भी बहुत कुछ सिखाया था. और उसका अनुशरण करते हुए कुछ ही देर में मेहुल ने अपनी गति कम कर दी. फिर बढ़ाई फिर मध्यम की और इस प्रकार एक अनियमित गति से नूतन की चुदाई में जुट गया.
मेहुल की शिक्षिका ने समझाया था कि मस्तिष्क कुछ ही समय में एक गति से अवगत हो जाता है और फिर उसके अनुसार स्वयं को ढाल लेता है. अगर गति और गहराई बदलती रहे तो उसे समझ नहीं आता कि हो क्या रहा है और वो शिखर पर ही झूमता रहता है, क्योंकि उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता कि अब क्या होगा. इस ज्ञान का उपयोग मेहुल कई बार अनन्य स्त्रियों पर कर चुका था. आज इसका लाभ नूतन को मिल रहा था. अंतर ये था कि जहाँ नूतन को इस समय इस बात का भान नहीं था,वहीँ वो बाद में इस चुदाई का जीवन भर स्मरण करने वाली थी.
मेहुल के शक्तिशाली लंड के धक्कों से नूतन अब कई बार झड़ चुकी थी. उसे समय का ज्ञान और ध्यान ही नहीं था. बस उसकी चूत की जो कुटाई हो रही थी उसके कारण उसका शरीर मानो संकुचित होकर उसकी चूत की नसों में समा गया था, हर संवेदन अब उसी में केंद्रित था. पीड़ा ने अब आनंद का रूप ले लिया था. चूत ने भी अपने आक्रमणकारी से समझौता कर लिया था और अपने भीतर उसके हर धक्के के साथ स्वागत कर रही थी. बदलती गति और धक्कों की आकस्मिकता के कारण नूतन भी जैसे किसी आनंद के समुद्र में तैर रही थी. कभी वो लहरों में ऊपर जाती, तो कभी शीघ्र गति ने नीचे डूबने लगती, और फिर ऊपर चल देती.
उसे जीवन का एक नया और अविस्मरणीय अनुभव हो रहा था. वो वस्तुतः इस अनुभव को दोबारा कभी नहीं पाने वाली थी. नीचे डूबता हुए उसे लगता की उसकी लीला समाप्त हो रही हो तो ऊपर जाते हुए एक जीवनदान का आभास होता. मेहुल उसके चेहरे के बदलते हुए भावों पर पैनी दृष्टि रखे हुए था. और कुछ देर की और चुदाई के बाद उसे आभास हुआ कि अब नूतन ढीली पड़ चुकी है, अर्थात वो अचेत हो गई थी. मेहुल ने अपनी गति कम की और कुछ देर की और चुदाई के बाद नूतन ने आँखें खोली दीं। इस बार उसकी आँखों में समर्पण था. अब मेहुल उसे जिस प्रकार से भी चाहता भोग सकता था.
कुछ देर और धक्के लगाने के बाद मेहुल जब झड़ने के निकट हुआ तो उसने अपने लंड को बाहर खींचा और फिर नूतन के सिर के पास जाकर रुक गया. नूतन ने उसका अभिप्राय समझ लिया और सिर ऊँचा करते हुए लंड को चाटा और फिर चूसने लगी. कुछ ही देर में मेहुल ने उसके मुंह में अपने रस की वृष्टि कर दी और नूतन ने बिना संकोच हर बूँद को पी कर अपनी प्यास को बुझाया.
मेहुल हट गया और नूतन वहीँ पसर गई और आँखें बंद किये हुए अपने शरीर में उठ रही आनंद की संवेदनाओं का आभास करती रही. उसके चेहरे पर संतुष्टि की एक मुस्कराहट थी.

मेहुल बैठा हुआ नूतन को देखता रहा जो आँखें बंद किये मुस्कुरा रही थी. जिन अन्य स्त्रियों को उसने चोदा था और जिन्होंने उसे बहुत कुछ सिखाया भी था उनमें और नूतन में अंतर था. उन स्त्रियों ने उसका उपयोग अपने स्वार्थ और वासना मात्र के लिए किया था. और वो नूतन के समान भाग्य की सताई हुई भी नहीं थीं. हालाँकि नूतन ने भी उसे अपनी वासना मिटाने के लिए प्रयोग किया था, परन्तु उसकी इसमें कोई अन्य लालसा नहीं थी. और वो अपने स्वर्गीय पति के कार्य को भी संभाल रही थी, जो प्रशंसनीय था.
नूतन ने आँखें खोलीं और फिर मेहुल की ओर देखा.
“मुझे बीच में लगा था कि मैंने तुम्हें पटक कर चोदने का आमंत्रण देकर गलती कर दी. पर अब लग रहा है जैसे मेरी वर्षों की प्यास बुझ गई है. आत्मा और शरीर दोनों तृप्त हो गये हों जैसे. सच में तुम कुछ ही दिनों में क्लब के अबसे प्रचलित रोमियो बन जाओगे. तुम्हारा कार्ड सदा बुक रहेगा. मैं इसके बाद कब तुमसे मिल पाऊँगी इसका मुझे कोई अनुमान नहीं है.”
“आप इतना चिंतन न करें. मैं आपसे अत्यंत आकृष्ट हूँ और किसी न किसी अवसर पर आकर आपका साथ पाना चाहूँगा।”
“काश तुम रुक पाते।”
मेहुल फिर चुप ही रहा.
“चलो अब कुछ खाना पीना नहाना धोना भी हो जाये. फिर तुम्हें जाना भी होगा.” नूतन ने कहा और उठकर बाथरूम में चली गई. इसके बाद मेहुल गया और फिर दोनों ने यूँ नंगे खाना खाया.
“जाने के पहले एक बार मैं तुम्हारा लंड चूस कर उसका रस पीना चाहती हूँ.”
“बिलकुल.”
ये कहते हुए मेहुल बिस्तर पर लेट गया और नूतन उसके लंड को चूसने और चाटने लगी. कुछ ही देर हुई थी कि मेहुल का फोन बजा और उसे स्मिता ने रात में बाहर रखने के लिए कहा. नूतन उसके लंड को और अधिक परिश्रम के साथ चूसने लगी. कुछ और देर में मेहुल ने अपने वीर्य से उसका मुंह भर दिया जिसे नूतन ने पी लिया और फिर उसके पास आकर बैठ गई.
“मेरे घर के पास एक कपड़े की दुकान है, रात और कल सुबह के लिए कुछ ले आओ. तब तक मैं खाने पीने के लिए प्रबंध करती हूँ. व्हिस्की पीते हो या बियर?”
“दोनों ही ठीक हैं, जो आपको प्रिय हो वही पी लूँगा।”
“तो फिर व्हिस्की ही रहेगी।”
“तो मैं कपड़े लेकर आता हूँ, दुकान कहाँ है?”
नूतन ने उसे दिशा बताई और मेहुल कपड़े पहनकर चला गया. आधे घंटे बाद वो अपने लिए कपड़े लेकर आ गया. नूतन ने तब तक सारा प्रबंध भी कर लिया था. व्हिस्की, चिकन और अन्य अल्पाहार से टेबल सुसज्जित थी.
“क्यों न आपके कमरे में ही बैठें, यहाँ कुछ आनंद नहीं आएगा.”
“ओके, पर तुम्हें ये सब ले चलने में मेरी सहायता करनी होगी.”
“इसमें कहने वाली बात ही नहीं, मैं वैसे भी करता. क्यों न आप जाकर कमरे में व्यवस्था कीजिये, मैं ये सब लेकर आता हूँ.”
कुछ ही देर में कमरे में पूरा प्रबंध हो गया. मेहुल ने कुछ खोदने का भी निणर्य लिया। उसे विश्वास था कि शोनाली के बारे में वो अवश्य कुछ बता पायेगी. और अभी तक उसे ये पता भी नहीं था कि शोनाली और वो पड़ोसी हैं. तो बता भी देगी.

मेहुल और नूतन दोनों बिस्तर पर ही अधलेटे अपनी ड्रिंक पीने लगे और बीच बीच में एक दूसरे को चूम लेते.
“आपको याद है न अपने क्या कहा था अगर मैं रात को रुका तो?” मेहुल ने कहा.
नूतन: “हाँ याद है, अच्छे से. मेरी गांड मारोगे। है न?”
मेहुल: “अगर मन न हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है.”
नूतन: “नहीं, अगर मन न होता तो मैं बोलती ही नहीं. पर दो मिनट रुको मैं गांड में कुछ लगा लूँ, जिससे बाद में सरलता हो.”
मेहुल: “ठीक है, पर जो भी हो मेरे सामने ही करो, मैं भी तो देखूँ क्या लगा रही हैं आप?”
नूतन उठी और बाथरूम में जाकर एक ट्यूब और एक गांड का प्लग ले आई, जिस प्रकार का शोनाली ने लगाया था. फिर उसने एक ऊँगली से गांड में ट्यूब से जैल लगाई और फिर आगे झुककर मेहुल को अपनी गांड दिखाते हुए उसमें वो प्लग धीरे से अंदर डाल दिया. थोड़ा अंदर बाहर करते हुए ठीक से बैठाया और फिर सीधे होकर मेहुल की ओर मुड़ गई. बिस्तर में लौटकर वो मेहुल से चिपक गई.
नूतन: “शोनाली ने दिया था मुझे, ऐसे ही समय के लिए. कम ही उपयोग में लेती हूँ.”
मेहुल को जो प्रश्न पूछना था उसके लिए नूतन ने अनजाने में ही अवसर दे दिया था.
मेहुल: “हाँ, मुझे याद आया. शोनाली मैडम ने मुझसे गांड मरवाने के बाद मेरा वीर्य ऐसे ही प्लग से अपनी गांड में सहेज लिया था, जैसे किसी के लिए हो. ये क्या रहस्य है? अगर आप बता सकती हो तो बताओ, मैं किसी से न कहूँगा।”
नूतन: “नहीं, ये कोई ऐसा बड़ा राज नहीं है क्लब में. शोनाली की नन्द और पार्थ की माँ को गांड में से निकला वीर्य पीने का व्यसन है. इसीलिए हर बार जब शोनाली किसी नए रोमियो की परीक्षा लेती है तो सुमति, उसकी नन्द के लिए उस रोमियो का वीर्य भी ले जाती है.”
मेहुल: “ओह!” उसका अनुमान सही था परन्तु अधिक जानने के लिए उसने अचरज जताया.
नूतन: “हाँ, वैसे वो हर मासिक पार्टी में विशेष अतिथि के रूप में आती हैं. पहले तो वो अकेली ही हर गांड से रस पी जाती थीं, परन्तु पिछले आठ नौ मास पूर्व एक नयी सदस्या आयी हैं जो गांड के साथ साथ चूत से भी रस पीने का व्यसन रखती हैं. तो अब दोनों ही ये कार्य में व्यस्त रहती हैं.”
मेहुल: “ओह!”
नूतन ने किसी अच्छे भेदिए के समान और कुछ भी बताना चाहा.
नूतन: “मुझे पता है कि सुमति तो सबसे अधिक आनंद उसके बेटे पार्थ के रस को पीने में ही आता है, इसीलिए क्लब की समस्त महिलाएं पार्थ से जब गांड मरवाती हैं तो सुमति को ही वो रस अर्पण करती हैं.”
मेहुल और खोदते हुए: “यानि माँ और बेटा?”
नूतन: “हाँ, वैसे सुमति अपने भाई से भी चुदवाती है, ये मुझे लगता है. पर पक्का नहीं है. पर तुम्हें क्लब में लाने वाले सचिन और उसकी माँ रमोना इस खेल में खुले आम लिप्त रहते हैं. यहाँ तक कि रमोना ने ही सचिन को क्लब में प्रवेश दिलवाया था.”
मेहुल ने अपने बाएं हाथ से नूतन के एक मम्मे की घुंडी को मसला और दूसरे से उसकी चूत के भग्नाशे को. फिर उसे चूमते हुए बोला, “क्लब बहुत रोमांचक स्थान लगता है.”
नूतन: “तुम देखना इस माह की पार्टी में संभ्रांत महिलाएं, जिनमें मैं भी एक हूँ, किस प्रकार से अपनी वासना और शारीरिक भूख की तृप्ति करती हैं. कुछ कृत्य तो ऐसे होते हैं कि तुम्हें विचलित कर सकते हैं.”
मेहुल: “वो जब होगा तब देखेंगे. अब तो मैं आपकी गांड की सेवा करना चाहता हूँ.”
नूतन: “कुछ देर और ठहर जाओ. फिर. पर पटक पटक के मत मारना। चूत थी तो मैं सहन कर पाई, पर गांड तो फट ही जाएगी.”
मेहुल: “जैसे आप कहेंगी, वैसे ही मारूंगा। आप निश्चिन्त रहिये.”
अब मेहुल उस समय की प्रतीक्षा करते हुए अपनी ड्रिंक पीने लगा जब नूतन उसे अपनी गांड मारने के लिए हरी झंडी दिखाएगी.


सुजाता का घर:

सुजाता के शयनकक्ष में सामूहिक चुदाई का वातावरण बन चुका था. सुजाता, अविरल, श्रेया और मोहन विवाहित जोड़े थे तो स्नेहा और विवेक अविवाहित. इस प्रकार से सामूहिक सम्भोग के कम ही अवसर मिलते थे. स्नेहा भी अब अधिकतर श्रेया के घर चली जाती थी और सुजाता के लिए अविरल और विवेक ही बचते थे. अब दोनों उसकी भरपूर चुदाई करते थे इसमें कोई संशय नहीं था, परन्तु इस प्रकार सम्पूर्ण परिवार एक साथ कम ही मिलता था. और इसीलिए एक अधिक ही उत्सुकता थी सबके मन में.
जब ये ध्यान आया कि एक बाथरूम में इतने लोग कैसे नहाएंगे तो सबको शीघ्र नहाकर लौटने के लिए कहा गया. श्रेया और मोहन उसके कमरे में गए तो स्नेहा और विवेक अपने में. दस ही मिनट में सभी नहाकर हल्के वस्त्रों में कमरे में लौट आये. पर अंदर आये तो पाया कि सुजाता और अविरल केवल अंगवस्त्रों में ही थे. अन्य सबके लिए ये समस्या बन गई क्योंकि वे केवल ऊपर ही वस्त्र डालकर आ गए थे. सुजाता ने भाँप लिया और हाथ पीछे करते हुए अपनी ब्रा खोल दी और फिर हाथों से अपनी पैंटी भी उतार दी. अविरल ने भी अपना अंडरवियर उतार दिया तो देखा देखि अन्य सब भी अपने वस्त्रों से वंचित हो गए. ऐ सी की ढंडी हवा में चूचियाँ और लंड अकड़ने लगे. सभी सुजाता की ओर देख रहे थे.
“अरे मुझे क्यों ताक रहे हो सब?”
कोई कुछ न बोला तो सुजाता समझ गई.
“देखो, मुझे तो मोहन से ही पहले चुदवाने की इच्छा है. तुम सब अपना देख लो. जब मोहन और मेरा हो जायेगा तब आगे अन्य मिश्रण देखेंगे.”
“मुझे श्रेया दीदी…” विवेक ने कहा.
“चलो स्नेहा, अब मेरी लाड़ली ही मेरा प्यार पायेगी.” अविरल ने स्नेहा को बाँहों में भरते हुए कहा.


स्मिता का घर:


स्मिता और विक्रम एक दूसरे के साथ बैठे बातें कर रहे थे. पूरा दिन साथ बिताने के बाद अब बैठकर अपने जीवन पर चिंतन कर रहे थे.
“समय न जाने कैसे पंख लगाकर उड़ गया न? जैसे कुछ ही दिन हुए हों जब हम मेहुल और महक की आयु में थे. आज पीछे देखो तो सब कुछ धुंधला सा लगता है.” विक्रम भावुक हो रहा था.
स्मिता: “ऐसा नहीं है. मुझे आज भी सब कल के समान ही याद है. हमारा विवाह, फिर सुहागरात, फिर बच्चे, आपके व्यवसाय में हानि के बाद फिर से उठने का परिश्रम, सब याद है.”
“परिवार में उन्मुक्त चुदाई का आरम्भ, मोहन से पहली चुदाई, समुदाय में प्रवेश, भानु का विवाह और उसकी घोषणा के बाद मेरी, सुजाता, और श्रेया की सामूहिक चुदाई, सब याद है.”
विक्रम उसे देख रहा था, स्मिता ने दो तीन वाक्यों में ही जीवन का सारांश व्यक्त कर दिया था.
“हाँ, सच है. याद मुझे भी है. मोहन को गोद में लेना। फिर महक और मेहुल का आगमन. महक के साथ मेरी पहली चुदाई, गौड़ा परिवार से भेंट और फिर संबंध. वैसे देखो तो यद् सब है. पर कुछ यादें धुंधला भी गई हैं.”
स्मिता उसके सीने से चिपकते हुए, “वो अच्छी यादें नहीं होंगी. भूल भी जाओगे तो कुछ न होगा.”
विक्रम ने उसके सिर को चूमा.
“हमें सच में अब अपने लिए हर माह कुछ समय निकालना होगा. आज बहुत अच्छा दिन रहा.”
“वैसे और कुछ भी है जो इस दिन को इससे भी अच्छा बना सकता है.”
विक्रम मुस्कुराते हुए, “ऐसा क्या हो सकता है?”
“चलिए अपने कमरे में वहाँ दिखती हूँ.”
“अब आपकी तो बात माननी ही होगी, चलो.”

स्मिता और विक्रम अपने कमरे में गए तो स्मिता विक्रम की ओर मुड़ी और बोली, “चलो कुछ देर डांस करते हैं.”
विक्रम स्मिता के आज के मूड से बहुत प्रसन्न था. आज वो किसी अलग ही रंग में दिख रही थी. विक्रम ने तुरंत अपनी स्वीकृति दे दी और स्मिता ने अपने कमरे में रखे स्टीरिओ पर एक हल्का सा संगीत चला दिया जो नृत्य के लिए अनुकूल था. संगीत आरम्भ करते ही स्मिता विक्रम की बाँहों में सिमट गई और दोनों उस संगीत पर नृत्य करने लगे. यूँ ही एक दूसरे से लिपटे हुए न जाने कितनी ही देर तक नाचते रहे. एक के बाद एक संगीत बदलते रहे पर दोनों पति पत्नी एक दूसरे के साथ यूँ ही नृत्य करते रहे.
एक बार नृत्य समाप्त हुआ तो दोनों उत्तेजित हो चुके थे और अब ये समझा जा सकता था कि इस खेल के अगले चरण में क्या होने वाला है.
“कुछ गर्मी लग रही है, मैं नहाने जा रही हूँ.” स्मिता ने इठलाते हुए कहा. उसका संकेत विक्रम ने समझ लिया.
“हमें पानी बचाने का प्रयास करना चाहिए, मैं भी साथ चलता हूँ.”
“ओह, नहीं! आप मुझे स्नान करते हुए नंगा देखना चाहते हो?” स्मिता ने नखरे दिखाए.
“हम्म, मैं ऐसा कैसा कर सकता हूँ? मैं तो कितना सीधा हूँ आप तो जानती ही होंगी.”
“हाँ हाँ, सब जानती हूँ. देखा है आपको समुदाय के मिलन समारोह में जब आप लड़कियों और स्त्रियों को कैसे ताड़ते हैं.”
“ओहो, तो ये आपकी सोच है. वैसे मैंने भी आपको जवान जवान लड़कों को नापते हुए देखा है.”
अब चूँकि स्मिता फंसने लगी तो उसने तुरंत बात को बदला.
“चलिए, अब स्नान कर लेते हैं फिर देखते हैं आज क्या करना शेष है.”
दोनों स्नान करने के लिए बाथरूम में शेष रात्रि के बारे में सोचते हुए चले गए.

रात अभी शेष थी.

क्रमशः
स्नेहा और मेहुल का मिलान दिलचस्प होगा, रिश्ता भी इन दोनों का ही हो तो ज्यादा रोमांचक होगा। बेहतरीन अपडेट।
 

prkin

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स्नेहा और मेहुल का मिलान दिलचस्प होगा, रिश्ता भी इन दोनों का ही हो तो ज्यादा रोमांचक होगा। बेहतरीन अपडेट।

बिलकुल।
खट्टे मीठे का आनंद ही अलग होता है.
 
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prkin

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Bahut achchhe
Lekin thoda samaj me aaye aisi bhasa ka upyog kare
Pls….

अंश भाई,

भाषा अपनी ही है. हिंदी।
हम लोग अपनी भाषा को इतना भ्र्ष्ट कर चुके हैं कि अब मूल भाषा लगभग गुम ही गई है.
हम में से कितने समय शब्द का उपयोग करते हैं?
अधिकतर टाइम या वक्त ही कहते हैं.

ये सच है कि ये एक सेक्स कथा है. परन्तु मैं अपनी मूल भाषा से हटकर नहीं लिखना चाहता था. सम्भव है कि इसी कारण कुछ पाठक भी कम हैं. परन्तु मैं स्वयं के साथ ये धोखा नहीं करना चाहता था.

मैं समाज को बदलने का प्रयास नहीं कर रहा, परन्तु स्वयं को अवश्य करना चाहता हूँ.

मुझे विश्वास है आप मेरी बात का अर्थ समझे होंगे और इस कहानी से जुड़े रहेंगे।

मैं आपका आभारी हूँ जो अपने ये बात कही, मैं भी कुछ समय से ये कहने के लिए आतुर था.

आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
 

Sing is king 42

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अंश भाई,

भाषा अपनी ही है. हिंदी।
हम लोग अपनी भाषा को इतना भ्र्ष्ट कर चुके हैं कि अब मूल भाषा लगभग गुम ही गई है.
हम में से कितने समय शब्द का उपयोग करते हैं?
अधिकतर टाइम या वक्त ही कहते हैं.

ये सच है कि ये एक सेक्स कथा है. परन्तु मैं अपनी मूल भाषा से हटकर नहीं लिखना चाहता था. सम्भव है कि इसी कारण कुछ पाठक भी कम हैं. परन्तु मैं स्वयं के साथ ये धोखा नहीं करना चाहता था.

मैं समाज को बदलने का प्रयास नहीं कर रहा, परन्तु स्वयं को अवश्य करना चाहता हूँ.

मुझे विश्वास है आप मेरी बात का अर्थ समझे होंगे और इस कहानी से जुड़े रहेंगे।

मैं आपका आभारी हूँ जो अपने ये बात कही, मैं भी कुछ समय से ये कहने के लिए आतुर था.

आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
क्या बात कही है आपने।हिंदी में लिखने का और पढ़ने का अपना ही मजा है।आप की कहानी और "पाप ने बचाया" हिंदी में सबसे अच्छी कहानियों में से हैं।आप के अगले अद्यतन की प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।
 
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क्या बात कही है आपने।हिंदी में लिखने का और पढ़ने का अपना ही मजा है।आप की कहानी और "पाप ने बचाया" हिंदी में सबसे अच्छी कहानियों में से हैं।आप के अगले अद्यतन की प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।


धन्यवाद भाई,
प्रयास यही है.
 
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prkin

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prkin

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prkin

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Welcome Sahil to the story.

Hope you will enjoy and give comments.
 
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