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Incest कैसे कैसे परिवार

prkin

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prkin

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अध्याय ८: आठवाँ घर - स्मिता और विक्रम शेट्टी १

मेहुल कॉलेज से घर पहुंचा तो उसने घर में स्नेहा की गाड़ी खड़ी देखी। उसका मन प्रसन्न हो गया. वो अंदर गया तो स्मिता बैठक में टीवी देख रही थी.

"माँ, स्नेहा आयी है क्या?"

"हाँ, जब गाड़ी देख चुका है तो पूछ क्यों रहा है."

"कहाँ है, भाभी के साथ?"

"हाँ दोनों बहनें श्रेया के ही कमरे में हैं. अरे तू कहाँ चल पड़ा? अरे रुक तो!" स्मिता ने उसे रोकने का प्रयास किया.

"मिल कर आता हूँ." मेहुल ने उत्सुकता से उत्तर दिया और सीढ़ी से ऊपर मोहन और श्रेया के कमरे की ओर चल पड़ा.

जब वो कमरे के बाहर पहुंचा तो उसे कुछ आवाजें आती सुनाई दीं. उसका माथा ठनका क्योंकि ये निःसंदेह चुदाई की आवाजें लग रही थीं. पर ये कैसे हो सकता है? उसकी उत्सुकता बढ़ गई. नीचे से उसकी माँ उसे पुकार कर बार बार नीचे आने को कह रही थी. तो क्या माँ को पता था की यहाँ कुछ खेल चल रहा है? उसने हलके से दरवाजे को धकेला तो वो खुल गया. उस दरार से उसने जब अंदर झाँका तो उसके होश उड़ गए.

बिस्तर पर उसकी भाभी श्रेया नंगी पड़ी थी. उसकी जांघों के बीच में एक लड़की का सिर छुपा हुआ था. वो लड़की भी नंगी ही थी. अवश्य ही स्नेहा थी क्योंकि वो उसे अच्छे से पहचानता था. बहनों के बीच ऐसे सम्बन्ध बनना संभव था, उसने कई जगह यह पढ़ा था. इसीलिए उसे इस बात पर इतना झटका नहीं लगा. जिस दृश्य ने उसके होश गुम कर दिए वो था वो पुरुष जो स्नेहा के पीछे था और उसे चोद रहा था.

वो कोई और नहीं बल्कि विक्रम शेट्टी था, उसके पिता!

मेहुल सकते में था और वो दरवाजे का सहारा लेकर ठगा सा देख रहा था. तभी उसे पीछे से आहट सुनाई दी और उसकी माँ ने आकर दरवाजा वापिस बंद कर दिया और उसका हाथ पकड़कर उसे अपने साथ लगभग घसीटते हुए नीचे ले गई. मेहुल कुछ भी न बोल पाया. नीचे स्मिता ने उसे सोफे पर बिठाया और पानी लेने किचन में चली गई.

पानी पीकर मेहुल ने अपने शब्द संजोये, "माँ हमारे घर में ये क्या चल रहा है?"

"तुम पहले जाकर कपड़े बदल लो. फिर मैं तुम्हे बताती हूँ."

**********

उस कमरे में बाहर क्या हुआ था इससे अनिभिज्ञ विक्रम स्नेहा को बड़े प्यार से चोद रहा था. वहीँ स्नेहा अपनी दीदी की चूत चाट रही थी.

"दीदी, जीजू कब तक आएंगे" स्नेहा ने पूछा.

श्रेया ने घड़ी की ओर देखा तो अभी ४ बजे थे. "अभी समय है, ६ के पहले नहीं आते कभी. तुझे क्या काम है उनसे?"

"मुझे उनकी कंपनी में ट्रेनिंग लेनी है, उसी के लिए बात करनी थी."

"अरे तुझे थोड़े ही मना करेंगे मोहन, तू तो उनकी सबसे प्यारी साली है."

"इकलौती साली हूँ." स्नेहा ने श्रेया की चूत पर जीभ फिरते हुए कहा.

"थोड़ा अच्छे से और अंदर तक चाट न. कुछ पता नहीं लग रहा."

ये सुनकर स्नेहा ने अपनी गतिविधि तेज कर दी और एक उंगली भी श्रेया की चूत में डालकर उसके भगनासे को चूसने लगी. श्रेया उछल गई पर स्नेहा ने अपना चेहरा नहीं हटाया. उसके पीछे विक्रम अब अपनी चुदाई को गतिशील कर रहा था. कसी चूत में उसका लंड बहुत घर्षण के साथ जा रहा था.और उसने भी स्नेहा की नक़ल करते हुए, स्नेहा के भग्नासे को दो उँगलियों में लेकर हलके से मसल दिया और रगड़ने लगा. अब बारी स्नेहा के उछलने की थी.

"अंकल मेरा होने वाला है."

"जा अपनी दीदी के मुंह पर बैठ, उसे पिलाना अपना शरबत."

स्नेहा तुरंत उठी और अपनी चूत को श्रेया के मुंह पर लगा दिया. विक्रम घूमकर उसके पीछे गया और अपना लंड फिर उसकी चूत में ठोककर चोदने लगा. स्नेहा कांपने लगी और थरथराते हुए उसने पानी छोड़ दिया। विक्रम ने अपना लंड बाहर निकला और स्नेहा का रस श्रेया के मुंह में जाने लगा. श्रेया ने निसंकोच उस रस को पी लिया और अपनी जीभ अपने होठों पर फिराई. विक्रम भी अब निकट था, उसने अपना लंड वापिस स्नेहा को चूत में पेला और तेज धक्के लगाने लगा. कुछ ही समय में उसका भी पानी छूटने को हुआ तो उसने अपने लंड को श्रेया के मुंह पर रखा.

"ले श्रेया, तेरी आज की औषधि."


श्रेया ने अपना मुंह खोलकर लंड को गपक लिया और चूसने लगी. विक्रम ने बिना देरी किये अपना रस उसके मुंह में छोड़ दिया. और फिर अपना लंड बाहर खींच लिया और एक ओर हट के खड़ा हो गया. अगला दृश्य उसका सबसे प्रिय दृश्य था. श्रेया बैठ गई, उसका मुंह फूला हुआ था. उसने वीर्य पिया नहीं था. फिर उसने अपने मुंह को स्नेहा के मुंह से लगाया और कुछ अंश स्नेहा के मुंह में छोड़ दिया.

फिर दोनों बहनों ने अपने हिस्से का टॉनिक पी लिया और एक दूसरे को फिर से चूमा.

"चलो नीचे माँजी प्रतीक्षा कर रही होंगी."

सबने अपने कपडे पहने और नीचे के और चल पड़े.

**********

जब मेहुल कपडे बदलने के लिए गया तो स्मिता ने अपना फ़ोन से एक नंबर लगाया.

"हैलो, मनोज, हाँ सुनो तुम तुरंत घर आ जाओ. मेहुल आज जल्दी आ गया और उसने श्रेया, स्नेहा और तुम्हारे पापा को देख लिया. अब समय आ गया है की उसे सब बता दिया जाये."

दूसरी ओर की बात सुनकर उसने फ़ोन काटा और एक दूसरा नंबर लगाया.

"सुनिए, आप अभी नीचे मत आना. मैंने मनोज को भी बुला लिया है. मेहुल ने आप तीनों को देख लिया है. यस, आई थिंक इट इस टाइम टू टेल हिम द ट्रुथ। आप लोग वहीँ रुको जब तक मैं न बुलाऊँ."

फोन रखकर वो सोचने लगी कि मेहुल को कैसे बताएगी. पर उन्हें पता था कि ये दिन दूर आना है, इसीलिए वो तैयार तो थे पर इस आकस्मक घटना से उनका समय चक्र अब बदल गया था.

मेहुल नीचे आ गया, उसे देखकर स्पष्ट था कि वो इस समय एक भ्रम की स्थिति में है.

"तुम्हारी गर्लफ्रेंड शीबा कैसी है?"

"ठीक है. आप कुछ बताने वाली थीं."

"हाँ. हम तुम्हे तुम्हारे २०वें जन्मदिन पर अगले महीने बताने वाले ही थे. पर अब उस वार्तालाप को आज ही करना होगा. मनोज भी कुछ ही देर में आने वाला है. महक भी अपने समय से आने ही वाली होगी."

"ये क्या है, क्या इसमें सब सम्मलित हैं?"

"हम सब ये बात एक साथ करेंगे। प्लीज, थोड़ा धीरज रखो. मेरे लिए."

मेहुल मन मार कर बैठ गया.

**********

लगभग २० मिनट में मोहन घर पहुँच गया. उसने देखा कि मेहुल बहुत उत्तेजित अवस्था में था. उसने एक गहरी श्वास ली और स्वयं को संयत किया. ये दिन तो आना ही था, पर उन्होंने इसे किसी और समय और प्रकार में इसकी योजना की थी, जो अब व्यर्थ हो चुकी थी. उसकी ऑंखें स्मिता से मिलीं तो स्मिता ने अपना फोन निकला और विक्रम को एक मिस कॉल दे दिया. ये संकेत था नीचे आने का. विक्रम, श्रेया और स्नेहा नीचे आये, विक्रम ने स्नेहा को चले जाने के लिए पहले ही कह दिया था. इसीलिए स्नेहा सीधे बाहर जाने लगी. पर उसे अपने ऊपर मेहुल की ऑंखें गढ़ती हुई लग रही थीं.

"मेहुल, बेटा हम तुम्हारे २०वें जन्मदिन की प्रतीक्षा कर रहे थे कुछ बताने के लिए. पर शायद वो समय आज ही आ गया है." विक्रम ने कहा.

"पापा, ऐसा क्या है जिसे आप मुझे पहले नहीं बता सकते थे. और जो अभी आप लोग कर रहे थे, ये कैसे संभव है? और मोहन दादा भी ऐसा नहीं लगता कि इससे विचलित है."

"नहीं. हम ये पहले नहीं बता सकते थे. हमारा परिवार और हमारी जैसे सोच वाले परिवार एक विशिष्ट समुदाय के सदस्य हैं. और उसमे प्रवेश के लिए २० साल का होना अनिवार्य है." विक्रम ने उत्तर दिया.

"कैसा समुदाय? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा."

"हम सब एक ऐसे समुदाय के सदस्य हैं जिसमे अपने परिवार वालों के साथ हम अपार प्रेम करते हैं. और यह हर रूप में होता है, मानसिक, सामाजिक और शारीरिक." मोहन ने बताया.

मेहुल का सिर घूम गया. "मैं कुछ समझा नहीं."

"इसका मतलब ये है की हम सब एक दूसरे के साथ सम्भोग करते हैं."

"यानि आप मम्मी....."

"हाँ और महक भी. श्रेया का परिवार भी उसका हिस्सा है और हमारी शादी भी उनकी सम्मति से हुई है. और अगले महीने जब तुम २० वर्ष के होंगे तो तुम भी उसमे सम्मिलित हो सकोगे. "

"क्या मतलब, फिर मैं मम्मी के साथ."

"हाँ, मम्मी, महक, श्रेया, स्नेहा और उनकी माँ सबके साथ तुम सम्भोग कर सकते हो."

मेहुल अब सकते में था. वो हमेशा अपनी माँ को केवल माँ नहीं बल्कि एक स्त्री के रूप में भी देखता था. और स्नेहा पर तो वो लट्टू था. अगर वो इस प्रस्ताव को मान लेगा तो न सिर्फ ये दोनों बल्कि उसकी भाभी, बहन और श्रेया की माँ भी उसके बिस्तर में होंगी. उसका मन प्रफुल्लित हो गया.


"तो क्या मुझे इस सब के लिए अगले महीने की प्रतीक्षा करनी होगी?"

"नहीं मेहुल, अपने घर और मोहन की ससुराल में तो तुम चाहो तो आज से ही सम्मिलित हो सकते हो. पर शेष सदस्यों से भेंट के लिए रुकना होगा." ये महक थी जो आ चुकी थी और सारी बातें सुन चुकी थी. "मेरे विचार से इस एक महीने के लिए हम चारों ही तुम्हारे लिए पर्याप्त होंगे."

"मुझे पहले मम्मी चाहिए।"

सबने एक चैन की सांस ली और हंस दिए. जितना कठिन उन्होंने सोचा था उससे कहीं सहज रहा था.

"आपने सुना. आज मैं मेहुल के साथ सोऊंगी. आप अकेले ही रहेंगे."

"ओह, यू डोंट वरी डियर. मुझे विश्वास है कि महक आज अपने पापा को अपने प्यार से ओतप्रोत कर देगी."

"पूर्ण रूप से" महक ने हँस के कहा.

"तो चलो इस बात पर एक पार्टी हो जाये. श्रेया व्हिस्की की बोतल और सब सामान ले आओ." विक्रम ने श्रेया को आदेश दिया.

"ओके, पापा."

और एक पार्टी आरम्भ हुई.

*********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

स्मिता ने मेहुल का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में ले गई. कमरे में जाकर उसने मेहुल को बिस्तर पर बैठा दिया.

"क्या तुम्हें कोई असहजता लग रही है?" स्मिता ने प्यार से पूछा.

मेहुल ने सिर हिलाया.

"चिंता न करो, मोहन की भी यही स्थिति थी, पर एक बार जब उसने चढ़ाई की मेरे ऊपर, तो रात भर रौंदा था मुझे. सारे छेद भर दिए थे." स्मिता ने अर्थपूर्ण ढंग से समझाया.

मेहुल के दिमाग की बत्ती जल उठी जब उसने सारे छेद सुना. क्या मम्मी का मतलब..?

"सारे छेद, यानि?"

"यानि मेरा मुंह, चूत और गांड. आज तुम्हें ये तीनों को अपने रस से भरना होगा."

"आ आ आप गांड भी मरवाती हो?"

"बिलकुल. और तुम्हारे जैसे जवान लड़कों को तो मैं बिना गांड मारे हुए छोड़ती ही नहीं." स्मिता ने हँसते हुए बताया.

"क्या तुमने कभी किसी को चोदा है."

धीरे धीरे अब मेहुल को अपना आत्मविश्वास को लौटता हुआ अनुभव कर रहा था. उसे ये समझ आ गया था कि उसका परिवार कोई आम परिवार नहीं है और इसमें हर संभव सेक्स क्रीड़ा होती है.

"हाँ, कईयों को."

"गर्लफ्रेंड्स?"

"नहीं, टीचर्स और फ्रेंड्स की मम्मियों को."

"अपने उम्र की कोई लड़की?"

"कुछ, क्योंकि एक बार में वो शादी की बात शुरू कर देती हैं."

"स्मार्ट, वैरी स्मार्ट. अभी खेलने के दिन हैं, बंधने के नहीं."

"वही."

"कितनी औरतों को चोद चुके हो?"

"बारह औरतें और तीन लड़कियाँ."

अब आश्चर्यचकित होने की बारी स्मिता की थी. "बारह औरतें?"

"हाँ, और आज का मिलकर तेरह हो जाएँगी." मेहुल ने बताया, "वैसे वो बारह की बारह आज भी मुझसे चुदवाती हैं. मैं इसलिए कालेज से ३ बजे घर नहीं आ पाता क्योंकि उनमें से किसी एक के बिस्तर में उसे रगड़ रहा होता हूँ."


"तो फिर आज क्यों जल्दी आये?"

"भाग्य. आज उन सबसे ज्यादा आकर्षक और प्यारी महिला को मेरी झोली में गिरना था."

मेहुल का ये विश्वास देखकर स्मिता विस्मित थी. ऐसा क्या था मेहुल में जो उसे अधिक आयु की महिलाएं पसंद करती हैं. मेहुल भी अब अपने उस रूप में आ रहा था जिसके लिए महिलाएं उस पर लट्टू थीं. उसका ४ घंटे पहले का आश्चर्य अब एक अवसर में बदल चुका था. उसे ये जानकर बहुत प्रसन्नता थी की न केवल अपनी माँ, बल्कि उनके चुदाई समूह की और औरतें भी उसके बिस्तर की शोभा बढ़ाएंगी. इसीलिए वो अब पूरे फ़्लर्ट की शैली में आ चुका था. वो आज अपनी माँ को ये दिखाना चाहता था कि वो उसे ही नहीं बल्कि औरों को भी पूरी संतुष्टि दे सकता है.

"कैसे?" स्मिता अभी भी अचरज में थी, "मुझे बताओ सब."

"क्या?"

"यही कि तुम इतनी जल्दी एक शर्मीले और शांत लड़के से इतने अनुभवी चुड़क्कड़ कैसे बन गए कि इतनी औरतें तुम्हें चाहती हैं."

"एक आयु के बाद स्त्रियाँ ऐसे भोले भाले लड़कों को सेक्स में दीक्षित करना चाहती है जिससे उनका मनोबल और अपने ऊपर विश्वास बढ़ता है कि वो अभी भी आकर्षक हैं." मेहुल एक कुटिल मुस्कान के साथ बोला।

"पर उन्हें ये नहीं पता होता की इस भोले चेहरे के पीछे सेक्स में निपुण एक आदमी छुपा है." स्मिता ने बात समझते हुआ कहा.

"हाँ और ३-४ मिलन के बाद उन्हें ये लगता है की मैं उनके द्वारा सिखाये हुए पाठ पर ही अनुशरण कर रहा हूँ."

"बेचारी भोली औरतें." स्मिता ने हैरत में सिर हिलाया. "तुमने किस आयु की औरतों को चोदा है?

"लड़कियों को छोड़ दें तो करीब ३० साल से ६५ साल तक की."

"६५? वो कैसे? कौन?"

"हमारी प्रिंसिपल की माँ."

"तुमने अपने प्रिंसिपल की माँ तक को चोद दिया!" स्मिता ने आश्चर्य से कहा.

"क्या करता, जब मैं उनके घर में अपनी प्रिंसिपल की गांड मार रहा था तो वो पता नहीं कैसे अंदर आ गयी कमरे में. और जाने का नाम ही नहीं ली. आखिर में मुझे उसके तीनों छेद पैक करने पड़े. पर अब सप्ताह में एक बार दोनों बुलाती है और साथ में चुदवाती है."

"तुम कौन हो? मेरा सीधा सादा बेटा कहाँ गया."

मेहुल ने एकदम से अपना भाव बदला और वही घबराया और परेशान लड़का दिखने लगा जिसे सब जानते थे.


"पर मम्मी हम ये सब बातें करने तो यहाँ आये नहीं है. आप तो मुझे सेक्स का ज्ञान देने के लिए आमंत्रित की थीं न?"

"जो इतनी औरतों को चोद चुका हो उसे ज्ञान देने की नहीं उससे सुख लेने की आवश्यकता है."

मेहुल ने अपनी माँ का हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया और उसके रसीले होंठ चूमने लगा. स्मिता का शरीर वासना से थरथरा उठा और वो भी इस चुम्बन में पूरा साथ देने लगी. मेहुल ने पीछे करते हुए स्मिता के ब्लाउज और ब्रा के हुक खोल दिए. फिर उसने होंठों को छोड़कर गर्दन को चूमते और चाटते हुए स्मिता के पीछे गया और उसके कानों को चूमते हुए उसका ब्लाउज और ब्रा अलग कर दी. अपने हाथ आगे करते हुए स्मिता के दोनों मम्मों की घुंडिया अपनी उँगलियों में लेकर हल्के से मसलने लगा. उसके चुंबन बिना रुके स्मिता के कान, गर्दन और पीठ को तर कर रहे थे. स्मिता ये जान गई की आज उसका सामना सेक्स में निपुण एक ऐसे खिलाडी से है जो उसके रोम रोम को पुलकित कर देगा. मेहुल अब अपने हाथों से उसके दोनों मम्मों को दबा रहा था, या यूँ समझो की मसल रहा था, और उसकी उंगलिया घुंडियों को मसल रही थीं.

"कैसा लग रहा है, मम्मी। "

"ब ब ब बहुत अच्छा"

मेहुल यूँ ही स्मिता को चूमते हुए अपने हाथ को हटाता है और उसकी साड़ी को एक हाथ से उसके शरीर से उतारने लगता है और कुछ ही पलों में साड़ी कालीन पर गिर जाती है. पर मेहुल का हाथ ठहरता नहीं और वो पेटीकोट का नाड़ा खोल देता है और पेटीकोट भी लहरा कर स्मिता का शरीर छोड़ देता है. स्मिता ने पैंटी नहीं पहनी थी और वो पेटीकोट के गिरते ही नंगी हो गई. दो पल के लिए मेहुल अपने दोनों हाथ मुक्त करता है और अपनी टी-शर्ट, शॉर्ट्स उतार फेंकता है. वो और अंडरवियर में अपने शरीर को स्मिता के शरीर के पीछे पूरा मिला देता है. स्मिता को अपनी गांड में कुछ चुभता हुआ प्रतीत होता है तो वो समझ जाती है कि मेहुल ने अपने कपडे उतार दिए हैं. वो उसके देखने के लिए लालायित हो जाती है और घूम जाती है.

**********


श्रेया का शयनकक्ष: श्रेया और विक्रम

"पापा जी, मुझे मेहुल भैया के लिए बहुत डर लग रहा है. वो इतने सीधे हैं कि कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर बैठें."

"चिंता तो मुझे भी है, श्रेया, पर मोहन भी शीशे में उतर गया था. मुझे स्मिता पर विश्वास है कि वो सब अच्छे से संभाल लेगी. दूसरा तुम ने ही देखा की मेहुल ने उसका ही नाम लिया था."

"आप बाथरूम से आईये तब तक मैं स्नेहा और मम्मी से बात कर लेती हूँ." कहते हुए वो अपनी माँ को कॉल लगाती है.

"हेलो मम्मी, स्नेहा पहुँच गयी न?"

“------”

"आज मेहुल को हमने अपना खेल दिखा दिया. अभी मम्मी जी उसे अपने कमरे में समझाने के लिए ले गई हैं."

“------”

"आप तो मम्मी जी को जानती हो, उनका तीर कभी नहीं चूकता।"

“------”

"अरे आपका भी नंबर आएगा, शीघ्र. पहले हम तो निपट लें. पर वो स्नेहा को जरूर चोदेगा, बहुत आगे पीछे घूमता है उसके."

“------”

"जी. आज तो मैं पापाजी के साथ हूँ. महक है, मोहन के साथ. और आप?"

“------”

"चलो आप भी इन्जॉय करो, गुड नाईट."

इतने में विक्रम बाथरूम से बाहर आ गया, एकदम नंगे और श्रेया अंदर घुस गयी और नहाकर कुछ ही मिनटों में नंगी ही बाहर आ गई. विक्रम बिस्तर पर लेटा था और उसका लंड सीधे पंखे को देख रहा था. श्रेया ने अपनी चूत को विक्रम के मुंह पर रखा और झुककर उसका लंड चूसने लगी.

**********


मोहन का शयनकक्ष: महक और मोहन


"कल पता लगेगा कि मेहुल माना कि नहीं. हालाँकि वो इतना दब्बू है कि मम्मी के कहने पर मानेगा अवश्य." महक ने अपने विचार रखे.

"तुम ये क्यों सोचती हो कि वो दब्बू है. मेरी समझ से वो बहुत संयम में रहता है. वो कभी कॉलेज बंद होने पर सीधे घर नहीं आता। २ -३ घंटे कहाँ रहता है, पता नहीं. दब्बू या डरपोक लोग ऐसा नहीं कर सकते. मुझे तो लगता है की वो हम सबसे कुछ छुपा रहा है. मैंने इसीलिए नहीं पूछा ताकि उसे झूठ न बोलना पड़े मुझसे."

"चलो, ये भी कल पता चल जायेगा. मम्मी राज उगलवाने की विशेषज्ञ है. उन्हें तो किसी खुफ़िआ जाँच एजेंसी में होना चाहिए था."

महक अपने कपडे उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों पाँव फैला दिए.

"आइये, आपकी स्वीट डिश (मिठाई) परोसी हुई है. सीधे चाट लीजिये."

मोहन ने भी देर न की और कपडे उतार कर महक की चूत में अपने मुंह से पिल गया.

**********


गौड़ा परिवार के घर:


"श्रेया का फोन था. स्मिता मेहुल का आज उद्घाटन कर रही है. इतना सीधा लड़का है, पता नहीं उसे आघात न पहुंचे."

"उसे घर किसने भेजा था जल्दी, वैसे तो वो ६ बजे के पहले नहीं जाता है?"

"स्नेहा ने, उसे बोली थी कि वो उधर जा रही है. बाकी उसने भाग्य के हाथ में छोड़ दिया था."

"वही तरीका जो मोहन और मेरे लिए काम आया था. पर हम दोनों फिर भी थोड़े तेज हैं. मेहुल सच में बहुत सीधा है."

"अब कल ही पता चलेगा कि क्या हुआ. मुझे नहीं लगता मेहुल कल कॉलेज जाने की स्थिति में होगा."

इस समय सब लोग बैठक में बातें कर रहे थे. स्नेहा अविरल की गोद में थी, और विवेक का सिर अपनी माँ की गोद में.

"चलो सोते हैं, कल शायद श्रेया के घर जाना होगा. सब कुछ ठीक ठाक रहे और मेहुल कहीं कुछ उल्टा न कर बैठे."

ये कहकर सब अपने कमरों में चले गए.

**********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

जब परिवार के सब लोग इस चिंता में डूबे थे कि मेहुल पर कोई विपरीत असर न हो, बाकी लोगों की धारणा के विपरीत, यहाँ मेहुल ही इस अभियान को नियंत्रित कर रहा था.

स्मिता जब मेहुल की ओर मुड़ी तो उसे विश्वास था कि मेहुल भी उसकी ही तरह निर्वस्त्र होगा. पर उसे ये देखकर अचरज हुआ कि अभी भी मेहुल अंडरवियर पहने हुए था. वो अपना हाथ नीचे बढ़ाती इससे पहले ही मेहुल ने उसके हाथ अपने कन्धों पर रखे और एक गहरा चुम्बन लेने लगा. स्मिता फिर से लहरा उठी. चूमते हुए ही मेहुल ने स्मिता को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी आँखों से आरम्भ करते हुए, एक एक इंच शरीर को चूमते और चाटते हुए नीचे की ओर अग्रसर हुआ. स्मिता ने ऐसा उत्तेजक और मादक प्रेम कभी भी अनुभव नहीं किया था. अंततः मेहुल उसकी जांघों के जोड़ पर पहुंच गया जहाँ एक अमूल्य निधि उसको देख रही थी. उसने अपनी जीभ से उस गुफा के चारों और चाटकर उसे चमका दिया.

स्मिता अब वासना से तड़प रही थी और उसकी चूत से पानी की धार बह रही थी. मेहुल बहुत प्रेम और संयम से हर एक बूँद को चाट रहा था. तभी उसने स्मिता के भगनासे को दो उँगलियों के बीच में लेकर दबाया और अंगूठे से उसके ऊपर के पतले हल्के छेद को रगड़ने लगा. स्मिता को जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा. उसका पूरा शरीर बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल गया और उसकी चूत से एक फुहार निकली जिसने मेहुल के पूरे चेहरे को सरोबार कर दिया.

"हम्म्म्म, मॉमा लव्स इट. क्यों माँ तुम्हें मज़ा आया? कभी छोड़ी है ऐसी धार पहले." मेहुल ने अपने चेहरे पर लगे स्मिता के रस को हाथों से पोंछते हुए पूछा.

"न न न नहीं. ऐसा कभी नहीं हुआ, तू तो जादूगर है रे."

"लो अपने पानी का स्वाद लो", कहते हुए मेहुल ने अपनी कामरस से सनी उँगलियाँ स्मिता के मुंह में डाल दीं। स्मिता ने उसकी ओर कामुक आँखों से देखते हुए उँगलियाँ चूस कर साफ कर दीं. फिर मेहुल स्मिता के बगल में लेट गया और अपने एक हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसके होंठों का रस पीने में जुट गया. फिर उसने अपना बायाँ हाथ स्मिता की गर्दन के नीचे से निकालकर उसके बाएँ स्तन को भींचने लगा. दायाँ हाथ चूत में व्यस्त था.

स्मिता ने अपना मुंह मोड़कर मेहुल के होंठ चूम लिए. कामातुर माँ अब अपने बेटे के हाथों में एक खिलौना थी, एक ऐसा बेटा जो बाहर से जो दिखता था अंदर से बिल्कुल अलग था.


"सब ये सोच रहे होंगे कि आज मैं तेरा उद्घाटन करूंगी क्योंकि तू सेक्स से अनिभिज्ञ होगा. उन्हें बहुत आश्चर्य होगा ये जानकर कि तू इतना बड़ा खिलाड़ी है. तूने मुझे बिना अपने लंड को छुए बिना ही इतना आनंद दिया है कि मैं वर्णन नहीं कर सकती. पर तू अभी तक अंडरवियर क्यों पहने है."

"वो भी उतार दूंगा मेरी प्यारी मम्मी. मैं तुम्हे वो सुख देना चाहता हूँ जो आपने स्वप्न में भी नहीं अनुभव किया होगा. पर मेरी एक विनती है आपसे. हमारे बीच जो भी होगा, पर आप अभी किसी को बताना मत. मैं चाहता हूँ कि सब यही सोचते रहें कि मैं अनाड़ी हूँ. जब तक मैं परिवार की सभी महिलाओं को नहीं चोद लेता, जैसा कि मुझसे अपेक्षित है, आप कुछ नहीं कहोगी."

स्मिता इस समय हर शर्त पर सहमत थी. मेहुल की तीन उँगलियाँ उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थीं, और उसे अपनी चूत की आग बुझानी थी. पर मेहुल था कि इतना धीरे चल रहा था की उसे रुकना भारी लग रहा था.

"मेहुल, क्या अब तुम मुझे चोदोगे। मैं जली जा रही हूँ. मेरी आग को शांत कर दो बेटा। "

"हम्म्म्म, मम्मी तुमने तो कहा था कि दीक्षा में तुम मुझे अपने तीनों छेद समर्पित करोगी."

"हाँ, अवश्य. हमारा यही नियम है. इससे न सिर्फ दीक्षार्थी को सेक्स का पूरा अनुभव होता है, बल्कि ये भी पता लगता है कि उसकी ठहरने की क्षमता कितनी है और वो कितनी बार लड़ाई में खेल सकता है. क्योंकि उसे हमारे समुदाय की अन्य स्त्रियों को भी संतुष्ट करना होता है. और हम मानक से नीचे के खिलाड़ी को अतिरिक्त परीक्षण देते हैं.

"और आप लोग तीन बार को एक मानक मानते हो." मेहुल ने मुस्कराते हुए पूछा.

"हाँ, क्यों तू कितने बार चोद लेता है."

"ज्यादा नहीं, बस यूँ समझो की तीन स्त्रियों को तो पूरा अनुभव दे ही सकता हूँ."

"क्या!" स्मिता की ऑंखें फटी की फटी रह गयीं.

"अरे छोड़ो ये सब मम्मी, अब आपके पहले छेद का समय है. और मैं चाहूंगा कि आप मुंह से मेरे लंड को शांत करो."

स्मिता की आँखों में चमक आ गई. उसने मेहुल से अंडरवियर उतारने को कहा. मेहुल जानता था कि ये उसके लिए एक सरप्राइस होना चाहिए.

"नहीं मम्मी, ये शुभ कार्य तो आपको अपने ही हाथों से संपन्न करना होगा. आखिर मैं आपका शिष्य जो हूँ."

ये कहकर मेहुल बिस्तर के उस ओर खड़ा हो गया जहाँ स्मिता लेटी थी. स्मिता बैठ गई और उसने मेहुल का अंडरवियर उतार दिया.

"ओ गॉड! ये क्या है?" उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव थे. "क्या है ये?"

**********


श्रेया का शयनकक्ष: श्रेया और विक्रम

विक्रम और श्रेया ने एक बार मौखिक सम्भोग का आनंद लिया और दोनों एक दूसरे के मुंह में अपना पानी छोड़ चुके थे. पर दोनों का मन अभी भरा नहीं था. दोनों का पूरा ध्यान इस बात पर ही लगा था की स्मिता मेहुल को कैसे अपने वश में कर रही होगी और मेहुल की क्या प्रतिक्रिया हो रही होगी. दोनों के कान किसी भी ऐसी ध्वनि के लिए संवेदनशील थे जिससे ये पता लगे कि कहीं मेहुल कमरा छोड़कर बाहर तो नहीं जा रहा. ऐसी किसी भी विषम परिस्थिति में उसे रोकना आवश्यक था.

"पापाजी, आज आप मुझे घोड़ी के आसान में ही चोदिये, कहीं दौड़ना पड़ा मेहुल के पीछे तो देर नहीं होगी." ये कहकर श्रेया ने आसन धारण किया और सिर और कमर को झुककर अपनी गांड को ऊँचा उठा दिया.

विक्रम के मन में पहले श्रेया की गांड मारने का विचार आया पर अपने लंड को चूत पर रखकर अंदर पेल दिया. चाहे श्रेया कम आयु की थी पर उसने चुदाई ५ साल पहले ही शुरू कर दी थी. वो इस तगड़े धक्के को भी बड़ी सरलता से झेल गई. विक्रम उसे तेज गति से चोदने लगा. श्रेया भी उसका पूरा साथ दे रही थी और दोनों जल्दी ही अपनी भूख (या प्यास) मिटाकर विश्राम करना चाहते थे.

जल्द ही दोनों एक बार फिर से झड़ गए और एक दूसरे को चूमकर कपडे पहनकर बैठक में चले गए. आज पहरे की रात थी, जब तक स्मिता का सन्देश नहीं आता कि स्थिति काबू में है, उन्हें इसी प्रकार जागते रहना था.

श्रेया ने दोनों के लिए एक छोटा पेग बनाया, टीवी को सायलेंट में डालकर देखते हुए चुस्की लेने लगे. दोनों के दिल इस समय धड़क रहे थे. ४० मिनट से अधिक हो गया था और स्मिता ने कोई भी सूचना नहीं दी थी.

**********


मोहन का शयनकक्ष: महक और मोहन

मोहन अपनी जीभ महक की चूत में डालकर झाड़ू के समान घुमाने लगा. अपनी एक ऊँगली महक की चूत में डालकर उसे कुछ समय के किये ऊँगली से चोदा और अपने होंठों से उसके भगनासे को दबाकर रखा. इस आक्रमण के सामने महक ने हाथ डाल दिए और उसकी चूत भरभरा कर पानी छोड़ने लगी. अब चूँकि भगनासा मोहन के होंठों के बीच ही था तो सारी धार मोहन के मुंह में ही सीधी चली गई. मोहन ने अपने तेजी से अपना मुंह हटाया और अपनी दायीं हथेली में थोड़ा पानी इकठ्ठा किया। फिर महक के दोनों पांव अपने बाएं हाथ से इस तरह ऊपर उठाये कि उसके घुटने पेट से जा लगे. अब महक की चूत और गांड के दोनों छेद मोहन के सामने थे. उसने अपने हाथ में एकत्रित महक का कामरस उसकी गांड की छेद पर मल दिया.

महक समझ गयी कि मोहन आज उसकी गांड का आनंद लेगा, वो भी इस खेल के लिए अपने आपको मनाने लगी. अब महक की गांड पहली बार तो मारी जा नहीं रही थी. समुदाय में गांड मारने के लिए पुरुष लालायित रहते थे. वैसे महिलाएं भी इसमें पीछे नहीं थीं पर महक चाहती थी कि मोहन एक बार उसकी चूत की खुजली मिटा देता तो अच्छा होता. पर आज की विशेषता को देखकर उसने कोई आपत्ति नहीं की.

"थोड़ी वेसलीन लगा लो. ऐसे दर्द होगा." उसने मोहन से कहा.

मोहन जल्दी से ड्रेसिंग टेबल से वेसलीन की शीशी उठा लाया. तब तक महक घोड़ी की तरह अपनी गांड ऊपर करके लेट गई. मोहन ये देखकर मुस्कुरा दिया. वो पिछले आसन में ही उसकी गांड मारना चाहता था क्यूंकि उसमे गांड का रास्ता और तंग हो जाता था और आनंद अधिक आता था. पर इसमें महक को परेशानी होती थी. तो महक ने उसका ध्यान दूसरी ओर करके अपनी अनुसार मुद्रा ले ली थी. मोहन महक की गांड पर अच्छे से वेसलीन की मालिश की और उतने ही ध्यान से अपने लंड को भी चिकना कर लिया. महक की गांड का छेद इस समय आक्रमण की उत्सुकता से लपलपा रहा था. मोहन ने अपना लंड रखा और हल्के हल्के अंदर उतार दिया.

"आअह, वाह, क्या गजब की गांड है तेरी महक."

"लंड आपका भी कोई कम नहीं. चाहे जितनी बार भी खाऊं हमेशा नया और बड़ा ही लगता है. मेरी गांड को बिल्कुल सही लेवल तक भरता है. मेरी ही गांड का साइज देखकर ये लंड बना है."

"तू मुझसे छोटी है, तेरी गांड इसके साइज की बनी है."

"चलो ठीक है अब चोदो भी, बातें बाद में कर लेंगे. नीचे भी जाना है."

ये सुनकर मोहन को आज के दिन का महत्त्व याद आ गया. उसे अपना वो समय याद आ गया जब वो अपनी माँ के कमरे में था और उसके पिता बैठक में उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे. उसने मन ही मन मेहुल को शुभकामना दीं और इच्छा की कि मेहुल भी उसकी तरह इस पूरे पारिवारिक समारोह में सम्मिलित हो जाये.

ये सोचते हुए उसने महक की गांड में अच्छे लम्बे शॉट आरम्भ किया , पर इन धक्कों में तीव्रता तेजी नहीं थी, अपितु शीघ्रता अवश्य थी. वो कभी भी महक की कठोर चुदाई नहीं करता था, उसकी छोटी बहन जो ठहरी. महक को भी उसके बड़े भाई का प्यार ही भाता था. उसे चोदने वाले और भी थे, कुछ तो ऐसे जो हड्डियां हिला देते थे. उसे कभी कभार वो भी अच्छा लगता था. पर जो प्यार मोहन देता था उसकी कोई तुलना नहीं थी.

कुछ ही मिनटों की चुदाई के बाद मोहन महक की गांड में ही झड़ गया. लगभग साथ में महक भी झड़ चुकी थी. दोनों बाथरूम में जाकर निर्मल हुए और कपड़े पहन कर बैठक पहुंचे जहाँ विक्रम और श्रेया टीवी देख रहे थे. उन्हें देखकर मोहन ने भी दो हल्के ड्रिंक्स बनाये और सब चुपचाप चुस्कियां लेते हुए टीवी देखने लगे.

मोहन ने विक्रम से पूछा "मम्मी का कोई मेसेज।"

"नहीं"

"आशा करनी चाहिए कि सब ठीक रहे. मेहुल अब शायद लड़कियों से न घबराये."

**********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

"ओ गॉड! ये क्या है?" स्मिता के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे, "क्या है ये?"

स्मिता की आँखों के आगे उसके जीवन का सबसे बड़ा लंड झूल रहा था. मोटा इतना था जितनी कि उसकी कलाई. और लम्बा जितना कि उसकी कोहनी से इसकी कलाई. ये मनुष्य का लंड नहीं था. यही कारण था कि उसे केवल विवाहित महिलाएं ही झेल पाती थीं. कैसे जायेगा वो उसकी चूत में. और गांड, ये सोचते ही स्मिता के शरीर में झुरझुरी सी होने लगी.

"ये, ये, ये तुम्हारा लंड है?"

"आपको क्या लगता है."

"और तुम्हारी प्रिंसिपल इसे अपनी गांड में लेती है?"

"और उसकी माँ, बहन और सास भी."

"क्या? तुमने उसके खानदान की सारी औरतों को चोद दिया है क्या?"

"नहीं, बेटी अभी बाकी है. नहीं, उसे चोदने का कोई प्लान नहीं है. नहीं तो मेरी अन्य ९ रंडियों का क्या होगा."

"रंडी! ये क्या कह रहे हो?"

"अरे मम्मी, जब एक बार आप इस खूंटे से बंध जाओगी न तो रंडी की ही तरह चुदवाओगी मुझ से. अब देर मत करो, लंड चूसो मेरा, आपके पहले छेद का उद्घाटन करना है."

स्मिता ने धीरे से उसका लंड अपने मुंह में डाला और हल्के हलके चूसने लगी. वो ये सोच रही थी कि उनके समुदाय की महिलाएं तो पागल ही हो जाएँगी. फिर उसके मुँह से हंसी निकल गई.

"क्या हुआ?"

"श्रीमती गुप्ता, जो अपने आप को बहुत बड़ी चुड़क्कड़ मानती है और कहती है की ऐसा कोई लंड नहीं बना जो उसकी गांड की गर्मी ठंडी कर सके जब इसे देखेगी तो फट जाएगी हरामजादी की गांड."

"उसकी गांड उस समय देखेंगे. आज आपकी बारी है. पहले अपनी बचा लो फिर दूसरों की सोचना. वैसे सुजाता आंटी की गांड भी मस्त है. परसों के लिए बुक कर दो उन्हें मेरे लिए. परसों में फ्री हूँ ३ बजे के बाद. पर याद रहे उसे कुछ बताना नहीं है."

ये कहते हुए मेहुल ने पहल की और स्मिता के मुंह में अपना लंड डालकर उसका सिर पकड़ा और लंड अंदर तक धकेल दिया. लंड गले में जाकर फंस गया और स्मिता की साँस रुक गई और आँखों में आंसू आ गए. वो सिर हिलाकर छटपटाने लगी. मेहुल ने सिर को छोड़ा और लंड को बाहर खींच लिया पर मुंह से निकला नहीं. स्मिता ने उसे विनती भरी आँखों से देखा.

"जब मैं कह रहा हूँ की चूसो इसे तो इधर उधर की बातें क्यों कर रही हो. अब लगो काम पर और इसकी ठीक से सेवा करो. जब तक मैं न बोलूं, रुकना नहीं."

कहते हुए मेहुल बिस्तर पर पांव चौड़े करके बैठ गया और स्मिता को अपना स्थान लेने का संकेत किया. एक तकिया उठाकर अपने पांवों के बीच डाल दी जिससे स्मिता के घुटने न दुखें. स्मिता ने अपना स्थान ग्रहण किया और ऊपर से नीचे तक लंड को अच्छे से चाटते हुए अपने मुंह में ले लिया और इस बार पूरी तन्मयता से चूसने लगी. हालाँकि मुंह इतना चौड़ा करके चूसने में उसे कठिनाई हो रही थी पर वो मेहुल को अपने प्यार की गहराई से भी अवगत कराना चाहती थी.

मेहुल जानता था कि माँ अधिक देर ये नहीं कर पायेगी अन्यथा उसके जबड़े दुःख जायेंगे. वो उन्हें केवल उन्हें अपना और उनका स्थान दिखाना चाहता था. जो औरतें उससे चुदवाती थीं उन्हें उसके पांवों में झुकना पड़ता था. आज उसकी माँ वहां थी.

"आगे से जब भी हम चुदाई के लिए साथ होंगे तो आपका यही स्थान होगा. फिर मैं आपकी सेवा करूँगा पर पहले आपको मेरे सामने इसी आसन में आना होगा. ठीक है?"

स्मिता ने लंड चूसते हुए सिर हिलाया कि उसे ये स्थिति स्वीकार्य है.

"उठिये अब, मैं नहीं चाहता कि आपको कोई कष्ट हो." मेहुल ने आज्ञा दी.

स्मिता खड़ी हो गई.

"थोड़ा अपने इस सौंदर्य का दर्शन तो कराओ मम्मी. पीछे मुङो और नीचे झुको."

स्मिता ने वैसे ही किया जिससे उसकी गांड मेहुल के मुंह से सामने आ गई. मेहुल ने उसकी कमर पकड़कर धीरे से अपनी ओर खींचा और उसकी गांड में अपना मुंह डाल दिया. स्मिता चिहुंक पड़ी, पर अपने आसन से हटी नहीं.

मेहुल उसकी गांड के चारों ओर अपनी जीभ से चाट रहा था और गांड के छेद के सितारे पर विशेष रूप से ध्यान दे रहा था. स्मिता को गुदगुदी होने लगी तो वो हंस पड़ी. मेहुल ने उसकी ख़ुशी बढ़ने के लिए उसके नितम्ब दोनों हाथों से फैलाये और अपनी जीभ को गांड की गुफा में ढकेल दिया. स्मिता एक झुरझुरी के साथ एकदम से झड़ गई.

"मम्मी, आपकी गांड तो बहुत टाइट है, लगता है किसी अच्छे लंड से इसकी सिकाई नहीं हुई कभी."

स्मिता की अचानक मानो चेतना जाग्रत हुई. वो स्वयं को कोसने लगी कि क्यों उसने तीनों छेदों का नाम लिया. उसे नहीं लगता था कि वो मेहुल का डंडा अपनी गांड में ले पायेगी, चूत तो अम्भ्वतः उसे स्वीकार कर भी ले, पर गांड! ये सोचते ही उसकी गांड फट गई. और अगर गांड में ले भी लिया तो कितने दिन तक उसकी स्थिति थिंक हो पायेगी ये समझना कठिन था.

"अरे मम्मी, घबराओ नहीं, मैंने जितनी आंटियों को चोदा है सब की गांड इतनी ही संकरी थी, कई तो पहली बार गांड में लंड ले रही थीं. पर आज सब उछल उछल कर मुझसे गांड मरवाती हैं. आप मेरा विश्वास करो मैं आपको असीम सुख के सिवा कुछ नहीं दूंगा."

स्मिता ने अपनी सांसे संयत की. मेहुल ने उसकी गांड चाटना बंद करके, उसे सीधे होने के लिए कहा.

"अगर वेसलीन हो, तो ले आईये न प्लीज."

स्मिता गांड मटकाती हुई ड्रेसर से वेसलीन ले आयी. देखा तो मेहुल बिस्तर पर लेट चूका था और दोनों तकिये अपने सिर के नीचे लगा रखे थे.

मेहुल का तना लंड इस समय बहुत ही भयावना लग रहा था.

"पहले अपनी चूत में अच्छे से वेसलीन लगा लीजिये और फिर मेरे लंड पर भी. मैं नीचे रहूँगा, जिससे आप अपनी सुविधा के अनुसार जितना संभव हो उतना लंड डाल पाएं. अपने अनुमान से चुदवाइये अपनी चूत।"

स्मिता ने चैन की साँस ली, कि चलो अपने तरीके से ही लेगी. इतने में मेहुल ने उसे झटका दिया.

"पर गांड मैं अपने ढंग से मारूंगा।"

स्मिता की फिर गांड फट गई. पर ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना सोचते हुए अपने मन को मनाया. स्मिता बिस्तर पर बैठी और अपने पांव चौड़े करते हुए अपनी चूत में वेसलीन लगाने लगी. जब उसे लगा की उसकी चूत अच्छी चिकनी हो गई है, तो उसने मेहुल के लंड को पकड़ा और उसके टोपे पर एक चुम्मा लिया. फिर वेसलीन लगाकर उसे भी बिल्कुल चिकना कर दिया.

"आइये अब सवारी कीजिये. आपका घोड़ा तैयार है."

**********


बैठक में:

इस समय सब परिवार वाले एक गूढ़ चिंतन में डूबे थे. २ घंटे से ऊपर हो चुके थे. रात का लगभग १ बजने को था, पर स्मिता की ओर से कोई सन्देश नहीं आया था.

"कहीं मम्मी और मेहुल सो तो नहीं गए. जाकर देखूं?" महक ने पूछा.

"नहीं, नियम यही है कि मैसेज के पहले कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया नहीं की जाएगी. अगर मेहुल बाहर नहीं गया है तो स्थिति तनावपूर्ण अवश्य है, पर नियंत्रण में है. मुझे स्मिता पर पूरा विश्वास है. वो मेहुल को सांचे में ढाल लेगी. पर हमें अपनी निगरानी हटानी नहीं है." विक्रम ने मना करते हुए स्पष्ट किया.

"ठीक है पापा."

और सब बैचेनी से प्रतीक्षा में लगे रहे.

**********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

स्मिता ने बिस्तर पर चढ़ते हुए मेहुल के दोनों ओर पाँव किये, अपनी चूत के छेद पर मेहुल के लंड को लगाया और बहुत धीरे धीरे से उस पर उतरने लगी. लगभग ६-७ इंच लेने के बाद वो रुक गई और आगे झुककर मेहुल को चूमने लगी. मेहुल ने भी उसका भरपूर साथ दिया और उसके मम्मे मसलने लगा. स्मिता इस समय बहुत आनंदित थी और इतनी लम्बाई के लंड कई बार ले चुकी थी. पर चौड़ाई थी जो उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी. इस समय उसे अपनी चूत पूरी तरह से पैक लग रही थी, मानो हवा तक जाने का स्थान न हो.

उसने धीरे धीरे उठक बैठक शुरू की, वेसलीन लगी होने से वो बहुत हो आसानी से चुदवा रही थी. इसी उपक्रम में उसने अपनी गति बढ़ा दी, चौड़ी हुई चूत अब और लंड की मांग करने लगी. वो लंड पर शायद एक दो इंच और उतरी होगी कि उसके ऐसे स्थान पर पंहुचा जहाँ आज तक कोई बिरला ही जा पाया था. इसी गहराई पर उसने अपनी चूत को रोक लिया और अपनी गति बढ़ाते हुए चुदवाने लगी.

"ओह, माँ, क्या लंड है तेरा मादरचोद. पूरी सिलाई खोल दी मेरी चूत की." वो बड़बड़ा रही थी.

उसकी चूत अब दनादन पानी की धार छोड़ रही थी जो मेहुल की जांघों को तर बतर कर रही थीं. वो इस समय वासना के ऐसे उन्माद में थी की उसे किसी भी और चीज़ का भान नहीं था. उसके सारी इन्द्रियाँ एक ही स्थान पर केंद्रित थीं और वो थी उसकी चूत। यही कारण था की जब मेहुल ने अपने दोनों हाथ उसकी कमर में डालकर मुट्ठी बंधी तो उसे इसका अर्थ न समझ पायी. मेहुल ने धीरे धीरे अपने बंधे हुए हाथ उसकी कमर के बिल्कुल नीचे के हिस्से पर ले जाकर रोक दिए.

हल्की हल्की चुम्मियाँ लेते हुए मेहुल ने बड़े प्यार से पूछा," मम्मी, मज़ा आ रहा है?"

"हूँ. बहुत. बहुत मजा आ रहा है. तेरा लंड वाकई में बहुत शानदार है."

"पर अभी तो आधा ही खाई हो, फिर भी इतना मजा आ रहा है."

"मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है , बस मुझे चोदने दे."

"हम्म्म, मम्मी."

"ह्म्म्मम्म"

"पर मैंने आपको पूरा सुख देने का वचन दिया था, है न?"

"हाँ दे तो रहा है. और कितना देगा." अचानक स्मिता के दिमाग की बत्ती जल उठी. कहीं ये सारा तो नहीं जड़ देगा मेरी चूत में., वो हटने का प्रयास करने लगी. पर मेहुल ने उसे अपने बाहुपाश में जकड रखा था.

"मम्मी, मैं हमेशा अपना वचन पूरा करता हूँ."

ये कहकर आधी ऊपर उठी स्मिता को जोर से अपने लंड की ओर खींचा और साथ ही अपनी कमर को बहुत तेजी के साथ ऊपर की ओर उठाते हुए एक जोरदार धक्का मारा. मेहुल का पूरा लंड अब स्मिता की चूत में जड़ तक समा गया था. स्मिता ऐसे आघात से एकदम सन्न हो गई. उसे लग रहा था जैसे किसी ने उसको चाकू से चीर दिया हो. उसकी आँखों से आंसू झरने लगे.


मेहुल स्मिता को उसी स्थिति में पकड़कर उसके बहते हुए आंसू चूम चूम कर पीने लगा. हल्के हल्के चुम्बन भी ले रहा था. एक हाथ से वो स्मिता की पीठ सहला रहा था. कुछ देर इसी तरह रहने पर स्मिता को थोड़ा आराम लगा तो वो रोने लगी. मेहुल ने उसके होंठ चूमते हुए कहा.

"मम्मी, एक बात बताओ."

"पूछ"

"जब बैंड ऐड की पट्टी निकालते है तो धीरे धीरे निकालने में अधिक दर्द होता या एक बार में निकालने में?"

"एक बार में निकालने में दर्द ज्यादा होता है पर ठीक भी जल्दी होता है."

"अब समझीं मैंने ऐसा क्यों किया. अपने आप कभी भी पूरा लंड नहीं लेतीं और जो अब आनंद मिलने वाला है उससे वंचित रह जातीं. मुझे क्षमा करना आपको इस तरह से छलना पड़ा. " मेहुल ताबड़तोड़ चुम्बन जड़ते हुए बोला।

"तू बहुत दुष्ट है. अब?"

"अब मैं आपको नीचे करूँगा और आपकी सही तरह से चुदाई करूँगा, जो आपका अधिकार है." ये कहकर मेहुल ने स्मिता की कमर पकड़कर एक करवट ली और स्मिता उसके नीचे आ गई. इस पूरे उपक्रम में मेहुल के लंड ने अपना स्थान नहीं छोड़ा.

मेहुल ने अब हलके और सधे हुए धक्कों से स्मिता की चुदाई शुरू की. अपने बाएं अगूंठे से वो रह रह कर भग्नाशे को कभी सहलाता, कभी रगड़ता और कभी उँगलियों में लेकर दबा देता. पर उसके इस प्रयास में कोई क्रम नहीं थे. स्मिता को अब वो आनंद आ रहा था जिससे वो इस जीवन में अछूती थी और ये सुख कोई और नहीं उसका सबसे लाडला बेटा ही उसे दे रहा था.

मेहुल ने भी अब गति पकड़ ली थी पर अभी भी वो पूरी लम्बाई का प्रगोग नहीं कर रहा था. उसकी चौड़ाई ही इतना घर्षण पैदा कर रही थी कि स्मिता कि चूत पानी पानी हो रही थी. अब कमरे में फच फच की ध्वनि गूंज रही थी.

"और चोद मुझे, और!" स्मिता ने मेहुल का उत्साह बढ़ाते हुए कहा. मेहुल ने भी अब समझ लिया कि उसकी माँ पूरे लंड के लिए तैयार है. उसने अब अपने धक्के पूरे गहरे और लम्बे कर दिये। बिस्तर कराह रहा था और स्मिता की चूत रो रो कर बेहाल थी. इतना पानी उसने छोड़ा था आज की पूरी बाल्टी भर जाती और अभी भी खेल समाप्त नहीं हुआ था. मेहुल के धक्के स्मिता की बच्चेदानी को हिला दे रहे थे. जिस रास्ते वो निकला था आज वहीँ उसने अपना झंडा गाढ़ दिया था.


"बेटा, अब बस कर. मेरी चूत फट गई है. इतना झड़ी हूँ कि कुछ बचा नहीं. अपने पानी से सींच दे मेरी चूत।"

मेहुल भी अब अधिक दूर नहीं था. उसने अपनी गति में परिवर्तन करते हुए कभी गहरे तो कभी तेज, कभी हलके तो कभी कभी रूककर धक्कों की झड़ी लगा दी. अपने निकट आते हुए उत्सर्ग से भी अंकुश हटा दिया. बस फिर क्या था स्मिता की चूत में तो जैसे एक बाढ़ सी आ गयी. उसका अपना पानी जब मेहुल के रस से मिला तो पूरा बिस्तर गीला हो गया. मेहुल ने पूरा झड़ने के बाद अपना लंड बाहर निकाला स्मिता की चुम्मियाँ लेता हुआ उसकी बगल में लेट गया.

दोनों हांफ रहे थे. फिर एक दूसरे की ओर मुड़कर एक लम्बा चुम्बन लिया.

"कैसा रहा." मेहुल ने पूछा.

"अद्वितीय. परम सुख मिला है आज. तूने सीखा कहाँ से ये सब?"

"बताया न, मुझे बहुत अच्छी शिक्षिकाएँ मिलीं. जो इस कला में बहुत निपुण हैं. उन्होनें बहुत कुछ सिखाया कि किसी स्त्री को कैसे सुख देते हैं."

"पर तू जो जबरदस्ती कर गया, वो."

"उनका कहना है की स्त्री सदैव हर क्रीड़ा के लिए मानती नहीं है, कभी कभी मनाने की असफल चेष्टा से कर लेना सही रहता है."

"क्या मैं पास हो गया?"

मेहुल का मुंह चूमते हुए स्मिता बोली, "एकदम टॉप."

"कुछ पियोगी?"

"हाँ बना दे एक पेग. टाइम क्या हुआ है?"

"१ बजे हैं."

"क्या. अरे मेरा फोन दे और पेग बना कर ला."

स्मिता ने विक्रम को मेसेज किया, "मिशन सफल,"

तब तक मेहुल पेग ले आया और दोनों माँ बेटे नंगे ही चुस्कियां लेने लगे.

**********


बैठक में:

"मिशन सफल,"विक्रम ने अपने फोन पर मेसेज पढ़ा. और सबको बता दिया. सबके मन में आनंद और सफलता की एक लहर दौड़ गई. और सब उठ के एक दूसरे के गले मिले और फिर अपने अपने कमरों में चले गए.

**********


स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

जब दोनों ने दो पेग लगा लिए तो मेहुल ने चिहुल की, "मम्मी, अब आओ, आपके तीसरे छेद का वचन भी पूरा कर देता हूँ." उसे पता था कि आज उसकी माँ किसी भी स्थिति में अपनी गांड नहीं मरवाने वालीं. स्मिता के हाथ पांव कांपने लगे.

वो विनती करने लगी, "बेटा, आज तू बस चूत ही से संतुष्ट हो ले."

मेहुल भी अपनी माँ को अधिक नहीं सताना चाहता था. हाँ अगर वो उसके परिवार की न होकर कोई और होती तो वो बिना गांड फाड़े छोड़ता नहीं.

"ठीक है मम्मी. पर कब."

स्मिता ने कुछ सोचा फिर बोली, "एक आइडिया है. परसों तू सुजाता और मुझे एक ही साथ क्यों नहीं चोदता। मेरी गांड भी तभी मार लेना और सुजाता की भी."

"हम्म आइडिया बुरा नहीं है. परन्तु मुझे स्वीकार नहीं है. मैं सुजाता आंटी को एक बार अकेले में ही चोदना चाहता हूँ. वे भी मुझे मूर्ख समझती हैं और आपको भी अधिक आदर नहीं देतीं. इसके बारे में कुछ करना होगा”, मेहुल के चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान थी, “तब तक अपने २-३ राउंड हो जाएँ"

"क्यों नहीं।" ये कहते हुए दोनों माँ बेटे फिर से एक दूसरे के आलिंगन में खो गए.

अभी पूरी रात जो शेष थी.


क्रमशः
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prkin

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आखिरी घर के सदस्यों से मिलये।
 
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Nasn

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बहुत ही शानदार अपडेट था...
विक्रम और श्रेया.…..की जोड़ी लाजबाब.....
विक्रम के साथ महक होती तो और ज्यादा
मज़ा आता....
विक्रम के साथ श्रेया और महक दोनों होती
तो भी ..........बहुत ही अच्छा इरोटिक होता...

Amazing update..
 
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Royal king

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Nice update
 

prkin

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बहुत ही शानदार अपडेट था...
विक्रम और श्रेया.…..की जोड़ी लाजबाब.....
विक्रम के साथ महक होती तो और ज्यादा
मज़ा आता....
विक्रम के साथ श्रेया और महक दोनों होती
तो भी ..........बहुत ही अच्छा इरोटिक होता...

Amazing update..

इस घर में सब संभव है. पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।
 
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ABHISHEK TRIPATHI

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Awesome update
 

prkin

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तो दोस्तों आप लोग अब इस सोसाइटी के हर परिवार से मिल चुके हैं.

अब मेरे ये सवाल है:

१. आपको कौन सा परिवार सबसे ज्यादा पसंद आया (मैं उस पर अधिक ध्यान दूंगा।)

२. इन सब में से मैं कौन हूँ?


There is some special award for the winner.
 
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Nasn

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घर परिवार तो सभी एक से बढ़कर एक हैं....
परन्तु मुझ..…

तीसरा घर: शीला और समर्थ सिंह

सबसे ज्यादा समर्थ लगा.....

इस परिवार का best charcter..
समर्थ लगा...
जो दोनों अपनी शादीशुदा बेटियों को चोदता है....
 
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