- 5,394
- 6,129
- 189
कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
Please read and give your views.
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
Please read and give your views.
Last edited:
Yes.. i was busy but keeping an eye on your story.Bahut din baad dikh rahe ho Evan Bhai.
Hope all is well.
Yes.. i was busy but keeping an eye on your story.
पहली पहली ही होती है,Jaisi aapki icha par pehli story pehli hoti hai.
मदमस्त बनाया आप नेकैसे कैसे परिवार
प्रस्तावना
एक बड़े शहर में एक सुंदर कॉलोनी थी. कुछ ८ घर ही घर थे इस कॉलोनी में. इनके मालिक ज़्यादातर या तो व्यवसाई थे या ऊँचे ओहदे पर काम करने वाले लोग. सारे आदमियों की आयु ४०-५० और औरतों की ३५-४५ के बीच थी. आदमियों की एक मित्र मंडली थी, और औरतों की किटी. आठों मकान दो पंक्तियों में थे. एक ओर इन्होने एक जिम, स्पोर्ट्स हाल और स्विमिंग पूल बनवाया था, और दूसरी ओर एक दो मंज़िला भवन जिसमे लगभग ४०० लोगों की पार्टी आराम से हो सकती थी. इसमें ही एक किचॅन था. पहले रेस्तराँ खोलने का प्लान था पर इतने कम लोगों के लिए उसका कोई औचित्य नहीं था. अमूमन किटी पार्टीस और जेंट्स पार्टीस यहीं होती थीं. हालाँकि सब अच्छे दोस्त थे पर एक दूसरे के जीवन में कोई दखलंदाजी नहीं करता था. ये पार्टीस ही थीं जिनमें कुछ बातें सामने आती थीं. पर कभी भी इस कमरे से बाहर किसी ने इसको दोबारा नहीं बोला.
६ लोग इन दोनों की देखभाल के लिए रखे थे, और एक सेक्यूरिटी एजेन्सी पहरेदारी के लिए. अब क्योंकि इस कॉलोनी का कोई नाम भी होना चाहिए, तो हम इसे "संभ्रांत नगर" से बुला लेगे. ये अलग बात है कि पर्दे के पीछे झाँकने पर कुछ और ही मिलेगा. ये तो अब समझ आता ही है कि ये सब धनाढ्य और संभ्रांत थे. सबके बच्चे या तो शहर के कॉलेज में पढ़ते थे, या विदेश में. इन परिवारों में से दो पुरुषों की ये दूसरी शादी थी,जबकि एक महिला की ये दूसरी. बच्चों की उम्र १८-२२ के बीच थी.
हम अब हर घर का लेखा जोखा लेंगे और देखेंगे की उन घरों में कब कब क्या क्या गुल खिलते हैं.
पहला घर: अदिति और अजीत बजाज: अध्याय १.१
इस घर में वैसे तो चार ही लोग रहते हैं, पर कुछ महीनों से अजीत की माँ शालिनी बजाज भी यहीं आ गई थीं. अपने पति के देहांत के बाद तीन साल तो उन्होंने काट लिए, पर अजीत की बहुत ज़िद के कारण उन्होंने अपना घर बेचकर यहीं रहना शुरू कर दिया था. अब लगभग साल भर निकालने के बाद वो अपने निर्णय से बहुत संतुष्ट थीं. न सिर्फ़ अदिति उनकी इज़्ज़त करती थी, बल्कि बच्चों के साथ रहने से उनका अकेलापन भी अब उन्हें सताता नहीं था. अजीत तो दिन में हमेशा बाहर ही रहता था, पर दोनों सास बहू की खूब पटती थी.
अदिति के बेटी अनन्या और बेटा गौतम भी अपनी दादी का बहुत ध्यान रखते थे. दोनों में बस १.५ साल का अंतर था और कॉलेज में थे. गौतम अनन्या से बड़ा था.
कुछ ही दिन पहले अदिति का एक ऑपरेशन हुआ था जिससे उसको शारीरिक संबंध बनाने की ३ महीने की मनाही थी. अजीत उसे पहले हफ्ते में लगभग तीन से चार दिन चोदता था, पर इस ऑपरेशन ने उस पर लगाम लगा दी थी.
अदिति और गौतम अक्सर अपने दोस्तों के घर रुक जाते थे, उनके भी दोस्त अक्सर ऐसा ही करते थे. सप्ताह में एक दिन तो वो बाहर ही रहते थे.
आज भी वो अपने दोस्तों के साथ बाहर थे. शाम को अजीत घर पहुँचा और फ्रेश होकर अदिति के साथ सोफे पर बैठ गया. अदिति ने उसे उसकी मनपसंद ड्रिंक हाथ में थमाई और एक अपने लिए भी ले ली. तभी किचन से शालिनी भी अपनी ड्रिंक के साथ आ गई. तीनों पूरे दिन की बातें करने लगे. ड्रिंक्स का एक और राउंड होने के बाद सब खाने के लिए बैठ गये. अजीत को इस सबमें कुछ पकता हुआ दिख रहा था. पर वो शांत रहा और उचित समय की प्रतीक्षा करने लगा. खाने के बाद अदिति ने एक और ड्रिंक की बात की तो अजीत चौंक गया. पर उसने हामी भारी और जाकर सोफे पर बैठ गया. तीनों अपनी ड्रिंक्स की चुस्कियाँ लेने लगे.
"हनी, मेरे ऑपरेशन के बाद तुमने बहुत धीरज रखा है." ये कहते हुए उसने अजीत के हाथ में एक गोली थमा दी. गोली देखते ही अजीत सकपका गया.
"पर तुम्हें तो अभी २ महीने तक कुछ भी नहीं करना है." अजीत ने अदिति की ओर देखकर कहा.
"वो तो है. पर मैं चाहती हूँ कि अब मैं भी तुम्हारी और शालिनी की प्रेम कहानी में भागीदार बन जाऊं."
अजीत का दिमाग़ चक्कर खाने लगा. उसकी पत्नी उसकी माँ को नाम से पुकार रही थी. न सिर्फ़ इतना बल्कि उसे संभवतः उन दोनों के बारे में पता था. अजीत ने अपनी माँ को ओर नज़र डाली तो वो मुस्कुरा रही थी.
"मैं तुम्हें हमेशा कहती हूँ कि मुझे इस घर में बहुत प्यार मिला है." शालिनी उठकर अदिति के पास बैठ गई और उसके होंठ चूम लिए. "अदिति को अपने बारे में मैने ही बताया, पर शायद तुम्हें हम दोनों के बारे में कुछ नहीं पता." शालिनी ने फिर से अदिति को चूमते हुए कहा.
"मैने तुम्हारे लिए एक यादगार शाम की तैयारी की है."
अजीत का ध्यान अपनी माँ की ओर गया, अभी तक उसने ध्यान नहीं दिया थे पर वो इस समय बहुत सुंदर लग रही थी. वो अपने शरीर का बहुत ध्यान रखती थी और इस आयु में भी लोगों को आकर्षित कर सकती थी. अजीत के दिमाग़ पर छाई धुन्ध छटने लगी. उसने बेध्यानी में अपने हाथ की गोली तो एक सिप के साथ खा लिया.
अब ऐसा नहीं था की अजीत इन तीन हफ्तों में सेक्स से वंचित रहा था. वो हफ्ते दो बार तो अपनी सेक्रेटरी को चोद लेता था. इसका लाइसेन्स उसे अदिति ने ही दिया था. दरअसल दोनों काफ़ी खुले विचारों के थे. जब वो कहीं बाहर जाता तो उसे और अदिति के बाहर जाने पर अदिति को कुछ हद तक दूसरों को चोदने की छूट थी. पर वो ऐसा कम ही करते थे. पर अपनी माँ के साथ संबंधों का अदिति को भी पता नहीं था, जैसा वो सोचता था.
"बेडरूम में चलें?" अदिति ने अचंभित अजीत का हाथ पकडकर उसे उठाया और अपनी सास को साथ आने का इशारा किया.
बिस्तर के पास पहुँचकर अदिति ने उसे जोरदार चुंबन दिया और उसे बिस्तर पर धकेल दिया.
"माँ जी आइए." अदिति बोली और उन दोनों ने मिलकर कुछ ही क्षणों में अजीत को नंगा कर दिया. अजीत का शरीर काफ़ी गठा हुआ था. जो गोली उसने खाई थी उसके असर से उसका लंड भी बुरी तरह से तना हुआ था. अदिति घुटनों के बल बैठ गई और उसने अजीत का लंड अपने मुँह में भर लिया और पूरे ज़ोर शोर से चूसने लगी.
अजीत ने कनखियों से देखा तो उसकी माँ अपने कपड़े उतार रही थी और जल्दी ही वो भी नंगी हो गई. उसने अपने आप को अजीत के चेहरे की ओर लाकर, अजीत के मुँह को अपनी पसीजी हुई चूत को रख दिया. अजीत उसकी चूत को चूसने लगा. जल्दी ही उसने अपनी जीभ अंदर डाल दी और घुमाने लगा. नीचे अदिति उसके लंड को चूस रही थी और ऊपर वो शालिनी की चूत.
"माँ जी, आपका बेटा तैयार है सवारी के लिए. चढ जाइए."
"और तुम?"
"मुझे ज़्यादा तनाव नहीं लेना है. मैं आपकी जगह ले लेती हूँ."
ये कहते हुए, अदिति ऊपर आ गई और शालिनी ने अजीत का भारी मोटा लंड अपने हाथ में लिया. २ मिनट के लिए चूसा और फिर दोनों ओर पाँव फैलाकर अपनी रसीली चूत को उस पर उतार दिया.
अदिति ने थोड़ा संभाल कर अपनी चूत को अजीत के मुँह पर रखा, अजीत की जीभ फिर हरकत में आ गई. पर अदिति के लिए इसमे थोड़ी मुश्किल हो रही थी. सो वो हट गई और एक तरफ बैठकर अपनी चूत को सहलाने लगी. अजीत को देखकर अच्छा नहीं लगा. उसने जानने के लिए पूछा, "तो तुम दोनों का क्या रहस्य है."
"हम दिन में एक दूसरे को सुख देते हैं." माँ ने बड़े नपे तुले शब्दों में कहा. अजीत को हँसी आ गई.
"अपने बेटे से यहाँ नंगी होकर अपनी बहू के सामने चुदवा रही हो और बातें ऐसी जैसे कोई सती सावित्री हो. कोई बात नहीं मैं समझ गया."
"अदिति, आओ तुम यहाँ लेट जाओ और माँ को तुम्हें सुख देने दो और मैं उन्हें घोडी बनाकर सुख दूँगा" अजीत ने व्यंग्य से कहा.
अदिति और शालिनी की हँसी छूट गई. पर शालिनी हट गई और उसने अदिति को बिस्तर पर लिटा दिया.
खुद घोड़ी बनकर, अदिति की चूत में अपना मुँह घुसा दिया. पीछे से अजीत ने उसकी चूत में लंड पेल दिया.
"ओह, माँ ! तुम्हारी चूत का कोई जवाब नहीं." अजीत ज़ोरदार धक्के लगता हुआ बोला. शालिनी भी पूरी मस्ती से इस तबाड़तोड़ चुदाई का आनंद ले रही थी. उसका मुँह उसकी बहू के चूत में था और अपनी जीभ पूरी अंदर कर रखी थी. अदिति भी इस समय एक अलग ही लोक में थी. अजीत ने ये दृश्य कभी सपने में भी नहीं सोचा था.उसने अपने धक्कों की गति तेज़ कर दी.
"अओऊउघह" अजीत की आँखों के आगे तारे से नाचने लगे. उसे अपने लंड में एक जबरदस्त फुलाव महसूस हुआ. वो झडने लगा था और उसने अपनी माँ की चूत में अपना रस भर दिया. ये दुनिया का संभवतः सबसे नीच काम था पर वो तीनों अपने वासना में ऐसे रंगे हुए थे कि इस सुख के आगे उन्हें कुछ न दिख रहा था.
तभी अदिति और शालिनी का भी पानी छूट गया. शालिनी बेझिझक अपनी बहू का स्वादिष्ट रस पी गई. अदिति भी इस समय निढाल सी हो गई.
"अपने पति और मेरे रस का एक साथ स्वाद लोगी?" शालिनी ने अदिति की चूत पर एक चुंबन लेते हुए पूछा.
अदिति की आँखों में एक चमक आ गई.
"क्यों नहीं"
"तुम लेटी रहो, मैं तुम्हारे मुँह में सीधे परोसती हूँ." ये कहकर उसने अजीत को हटने को कहा और अपने दोनों पाँव अदिति के सिर के पास रखकर अपनी चूत को उसके मुँह से लगा दिया.
अदिति सडप सडप कर शालिनी की चूत से बहता हुआ रस गटक गई.
तीनों एक संतुष्टि का अहसास करते हुए एक दूसरे से लिपट गए.
"आई लव यू" तीनों के मुँह से एक साथ निकला.
तीनों हँसते हुए आगे आने वाले नये रोमांच के बारे में सोचते हुए सो गये.
क्रमशः
मस्त मदमस्त विस्फोटकतीसरा घर: शीला और समर्थ सिंह
अध्याय ३.१
सुरेखा सिंह का मन बहुत उदास था. वो अपने पति को ऐयरपोर्ट छोड़कर अपने घर वापिस जा रही थी. उसके पति को किसी काम से १ महीने के लिए विदेश जाना था. उन दोनों के बीच में पिछले दो महीनों से कोई शारीरिक संबंध नहीं हुआ था. वो अपनी २० साल की शादी से पूरी तरह से असंतुष्ट थी. पर उसे कोई और राह भी नहीं दिख रही थी. उसके दोनों बच्चे सजल और संजना अब बड़े हो चुके थे और कॉलेज में थे.
सुरेखा जानती थी की इस आयु में भी वो इतनी आकर्षक थी कि पुरुषों को आकृष्ट करती थी. पुरुष अक्सर उसके नितंब निहारा करते थे. पर अगर कोई आँख गढ़ाकर देखता था तो वो थी उसकी सुडोल और भारी चुचियाँ. अपने ऑफीस के कई पुरुषों को वो किसी भी तरह का भाव नहीं देती थी. उसने कभी भी अपने पति से बेवफ़ाई नहीं की. पर उसके बर्ताव से वो अब उचट चुकी थी.
वो अपने माता पिता को देखकर आश्चर्य करती थी की वो आज तक एक दूसरे से कितना प्यार करते थे. दोनों की शादी उस समय के अनुसार बहुत छोटी आयु में ही हो गई थी. वो दोनों अभी भी स्वस्थ और सक्रिय थे. उसकी बड़ी बहन सुप्रिया की भी शादी बहुत दिन नहीं चली थी. दो बच्चे होने के कुछ साल में ही उसका तलाक़ हो गया था. पर सुरेखा ने तलाक़ के कुछ दिनों के बाद कभी सुप्रिया को दुखी नहीं देखा. उसने अपना सारा समय अपने काम और अपने बच्चों की देखभाल में लगा दिया था.
कुछ सोचते हुए उसने अपनी कार अपने घर की जगह संभ्रांत नगर में अपने पिता के घर की ओर मोड़ दी. घर पर कोई था नहीं और वो बहुत बेचैन थी. उसे ये देखकर खुशी हुई की सुप्रिया की कार भी वहीं थी. आज वो अपनी माँ और बहन से कुछ सलाह लेने का मन बना चुकी थी. ये अच्छा ही हुआ कि दोनों साथ मिल गयीं. उसने घंटी बजाई पर कोई उत्तर न मिलने पर अपनी चाबी से दरवाजा खोला और अंदर चली गयी. वो अपनी माँ को पुकारने ही वाली थी की उसे ऊपर के कमरे से सिसकारियाँ सुनाई दीं. उत्सुकता वश वो दबे पाँव उपर की ओर बढ़ने लगी और अपने माता पिता के कमरे को ओर जाने लगी.
"उूउउह, और अंदर, और ज़ोर से." सुरेखा ने अपनी माँ की आवाज़ को पहचान लिया. वो अपनी हँसी दबाते हुए सोचने लगी की दोनों दोपहर में चुदाई कर रहे हैं.
"मैं बाद में आ जाऊंगी, अभी इन्हे आनंद लेने दूँ ." सोचकर वो पलटी, फिर ये सोचकर की थोड़ी जासूसी की जाए, वो बढ़ी तो देखा की दरवाज़ा पूरा बंद नहीं था. बचपन की शरारत याद करते हुए उसने पल्ला थोड़ा सा खोला और अंदर झाँका.
उसकी माँ निर्वस्त्र थी और अपने लाल होठों से अपने पति की लंबा और मोटा लंड चूस रही थी. सुरेखा ने ये देखकर अपने सूखे होठों पर जीभ फिराई. उसकी माँ पिता के अंडकोष हल्के हाथों से दबा रही थी. उसके पिता का सिर ऊपर पीछे था और चेहरा आनंद विभोर था. अपनी माँ को लंड चूसते हुए देखकर सुरेखा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ. पर उसे झटका लगा जब उसने ये जाना की वो दोनों अकेले नहीं थे. एक और आदमी था जो उसकी माँ शीला की पीछे से एक विशाल लंड से चुदाई कर रहा था.
वो कोई और नहीं, सुप्रिया का बड़ा बेटा निखिल था!
*****
निखिल का बांयां हाथ उसकी नानी के नितम्ब पर था,और दाएं हाथ से वो उनका भग्नासा निचोट रहा था. शीला ने अपने मुंह को समर्थ ने लंड से हटाया और पीछे मुड़कर निखिल की ओर हवस भरी आँखों से देखा.
"नानी की चूत को ऐसे ही अच्छे से धीरे धीरे पेलते रह." उसने आज्ञा दी. "सच तो ये है, कि इस चूत में आज तक न जाने इतने लंड गए हैं, पर तेरे मूसल को लेने में अभी भी थोड़ी हिम्मत चाहिए. हाँ ऐसे ही,ऐसे ही. किसी घोड़ी को भी तेरा लंड लेने में तकलीफ होगी, पर मजा भी आएगा."
निखिल अपनी तारीफ सुनकर गर्व से फूल गया. "नानी तुम भी बहुत भी मस्त चुड़क्कड़ हो, मैं सिर्फ एक ही और औरत को जानता हूँ जो मेरे पूरा लौड़ा ले पाती है और पसंद भी करती है."
"पसंद, मैं जान छिड़कती हूँ इस पर." शीला बोली, "मुझे जिंदगी में दो लोगों से एक साथ चुदवाने से ज्यादा कुछ भी पसंद नहीं. और तुम्हारा तो ये ११" का मूसल तो जैसे मेरे ही लिया बना था."
"११"?" सुरेखा के मुंह से अनजाने ही एक आश्चर्य भरी सिसकारी निकल गई.
तीन सर बैडरूम के दरवाजे की ओर मुड़े और उनकी ऑंखें सुरेखा की आँखों से जा टकराईं. वो इस कौटुम्बिक व्यभिचार के कृत्य की जीती जागती साक्षी थी.
*****
सुरेखा जड़वत खड़ी थी, वो डर और शर्म से अवाक् थी. पर चुदाई में मशगूल वो तिकड़ी न गुस्सा लग रही थी न ही शर्मिंदा। निखिल ने एक हलकी सी मुस्कान के साथ अपनी आंखे अपनी मौसी की आँखों में डालीं और नानी की चूत में अपने लंड का घर्षण जारी रखा. शीला ने अपना सर मोड़कर सुरेखा की और देखा, इससे उसके मुंह से समर्थ का लंड बाहर निकल गया.
उसने बेशर्मी की एक कुटिल मुस्कान से व्यंग्य किया,"ओह मेरी मासूम बेटी, सुरेखा" वो खिलखिलाई,"देखने आयी थी न की उसके बूढ़े माँ बाप अपनी दवाइयाँ ले रहे हैं की नहीं? है न?" उसने समर्थ के थूक से लिपटे हुए लंड को अपने हाथ से हलके से सहलाते हुए आगे बोली," मैं तो अवश्य ले रही हूँ. मेरी पसंदीदा प्रोटीन शेक की डबल डोज़ जो लेने वाली हूँ."
"माँ, तुम ऐसा भद्दा मजाक कैसे कर सकती हो?" सुरेखा चिल्लाई, "हे प्रभु! दो आदमियों के साथ एक साथ ऐसा काम, और उसमे से एक तुम्हारा नाती है. ये इन्सेस्ट है."
"बिलकुल, और इसीलिए इतना अद्भुत है," शीला ने वासना से भरी आवाज़ में कहा.
"और ये दोनों घोड़े भी कोई शिकायत नहीं कर रहे." अपने नितम्बों को निखिल के लंड के इर्दगिर्द घूमते हुए बोली. "ऐ लड़के, मुझे चोदना बंद मत कर."
ये सुनते ही निखिल ने वापिस रफ़्तार पकड़ ली और लम्बे और ताकतवर धक्कों से अपनी नानी को चोदने लगा.
शीला ने सुरेखा को कहा," अब टेंशन छोड़कर शांत हो जा और इस शो का आनंद ले."
"आनंद लूँ !" सुरेखा ने आश्चर्य से कहा, "माँ तुम दिमागी रूप से बीमार हो. तुमने सोचा भी कैसे की मैं इसका आनंद लूंगी। "
उसके शब्द तो उसे इस दृश्य से दूर कर रहे थे, पर वो खुले हुए मुंह से अवाक् अपने भांजे को ताक रही थी जो हर धक्के में और गहरा जाता प्रतीत हो रहा था.
निखिल ने अपनी शक्ति दिखाते हुए अपने दोनों घुटनों को और फैलाया, शीला के भी पैरों को और फैलते हुए जोरदार धक्के लगाने लगा शीला अपने बिस्तर पर सिसकती और कराहती हुई पेट के बल फ़ैल गई. समर्थ ने अपने लंड को शीला के चेहरे और होठों पर हलके हलके पीटना शुरू किया दिया. शीला अभी भी उसे पकड़ने की चेष्टा कर रही थी पर निखिल की गति से वो इतना हिल रही थी की असमर्थ थी.
"ठहरो सब! ठहर जाओ! माँ तुम छिनाल हो." सुरेखा ने आपत्ति से बोला।
"और मुझे इस बात पर गर्व है. तुम ज्यादा पाखंडी न बनो, तुम्हारी पैंट क्यों गीली है? तुम्हारी चूत पानी छोड़ रही है न?"
सुरेखा का हाथ अपनी पैंट के सामने गया. उसे महसूस हुआ की उसकी माँ सच कह रही थी. उसका सर झुक गया और वो शर्म से लाल हो गई.
"सुरेखा, गुड़िया, आराम से." उसके पिता ने पहली बार कुछ बोला। उसके लंड को इतने में शीला ने अपने मुंह में डाल लिया. "माफ़ करना, कि तुम्हें इस तरह पता चला. पर पता तो लगना ही था एक दिन. मैं तो कब से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहा था." एक रहस्यमई मुस्कान से उसने आगे बोला "बहुत सारी नयी संभावनाएं खुल जाती हैं इस तरह, क्यों शीला?"
"बिलकुल" एक स्त्री के पीछे से आते हुए स्वर ने सुरेखा को सनसना दिया. दो छोटे कोमल हाथ उसके वक्ष के ऊपर आये , उसके शर्ट के अंदर गए और आगे से उसके ब्लाउज के हुक खोल दिए. उन दोनों की कोमल हथेलियों ने उसके स्तनों को मसलना और सहलाना प्रारम्भ कर दिया. सुरेखा डर और अचम्भे से पीछे मुड़ी तो उसने अपनी बड़ी बहन सुप्रिया का मुस्कुराता चेहरा पाया. सुप्रिया पूरी नंगी ही थी और उसके बड़े बड़े स्तन सुरेखा के स्तनों से मेल जोल कर रहे थे.
सुरेखा ने विरोध करने के लिए मुंह खोला परन्तु सुप्रिया ने इसका लाभ उठाकर अपनी बहन को पास खींचा और गहरा चुम्बन लिया. सुप्रिया ने वासनामय आँखों से सुरेखा की आँखों में देखा और अपनी जीभ उसके मुंह में डालकर प्रगाढ़ चुम्बन लेने लगी. अपने एक हाथ से वो सुरेखा के माँसल स्तनों को भींचने लगी. अपने अनुभवी उँगलियों से वो सुरेखा की चूचियों को बिलकुल सही मात्रा में मसल रही थी. सुरेखा का दिमाग घूम रहा था.
"नहीं, नहीं, मुझे इसमें मजा नहीं आना चाहिए, मेरी बहन गलत कर रही है. जैसे मैं गलत थी अपनी माँ की चुदाई देखकर अपने भांजे से."
पर उसका शरीर अब उसका साथ नहीं दे रहा था. दो महीने से सेक्स का भूखा शरीर इस आक्रमण का उत्तर देने में अक्षम था. अपनी जीत अनुभव करते हुए सुप्रिया ने अपनी नंगी जांघों को सुरेखा की जांघों से सटा दिया। सुरेखा ने देखा की सुप्रिया की चूत बिलकुल चिकनी थी, और गीली भी.
"मत करो ऐसा, प्लीज."
पर सुप्रिया कहाँ रुकने वाली थी, उसने अपने पराक्रम और बढ़ा दिया.
"सही जा रही हो मम्मी." ये एक नयी मरदाना आवाज़ थी. "खेलो इन चूचियों से."
ये नितिन था, सुप्रिया का दूसरा बेटा, जो सुप्रिया से कुछ ही दूर खड़ा था. अन्य लोगों की तरह वो भी इस समय नंगा ही था. और उसका गीला लंड जिससे कुछ रस गिर रहा था, निखिल से किसी मायने में काम नहीं था.
नितिन चलकर सुरेखा के पीछे आया और उसने अपने बड़े हाथों से सुरेखा की पैंट के बटन और ज़िप खोली और बड़ी सादगी से उसे सुरेखा के लम्बे सुडौल पैरों से नीचे उतार दिया. सुरेखा तो मानो एक तन्द्रा में थी. उसने एक एक करके पाने पाँव उठाये और पैंट निकल दी. सुप्रिया भी सुरेखा के ब्लाउज निकलने में व्यस्त थी. एक बार निर्वस्त्र होने पर सुप्रिया ने सुरेखा को अपनी बाँहों में भर लिया. सुप्रिया उसे प्रगाढ़ चुम्बनों से ओतप्रोत कर रही थी और उसके नितम्बों को जोर जोर से मसल रही थी. सुरेखा ने अपने पीछे नितिन के लंड का स्पर्श महसूस किया जो उसकी गांड के ऊपर दस्तक दे रहा था. सुप्रिया ने हाथ हटाकर अब सुरेखा की चूत पर लगा दिया और उसे सहलाने और मसलने लगी. सुरेखा इस समय अपने भांजे और बहन के बीच फंसी हुई थी और उसे बहुत आनंद आ रहा था.
"ओह, मैं झड़ रही हूं !" शीला चीखी, "और जोर से चोद मुझे! फाड़ दे मेरी चूत अपने मूसल से! फक मी! समर्थ समर्थ अपना पानी मेरे मुंह में छोड़ दे."
"नहीं!" समर्थ ने अपना विशाल लंड शीला के मुंह से निकलते हुए कहा.
शीला अपने स्खलन के उत्कर्ष पर थी और निखिल ने भी अपने अण्डों में कसाव महसूस किया और अपनी गति और तेज कर दी.
"मैं भी गया नानी!" निखिल चीखा और अपने लंड को शीला की चूत की गहराई में जाकर जड़ कर दिया. "तुम्हारी चूत में झड़ रहा हूँ, मेरी प्यारी नानी! आआह!"
अंततः निखिल और शीला शांत होकर हाँफते हुए लेट गए. सुरेखा स्वयं सांसे रोके हुए थी सामने के दृश्य को देखकर. निखिल ने धीरे से अपना लंड अपनी नानी की बहती चूत से निकला.
"मुझे तेरा रस पीना है, इधर आ." निखिल ने अपना लंड नानी के मुंह में डाल दिया जिसे बहुत प्यार से शीला ने चाट चाट कर साफ किया. "तू अच्छा है, तेरे नाना ने तो मुझे अपना पानी पिलाने से मना कर दिया."
"मैं किसी और के लिए बचाकर रखा हूँ." समर्थ ने कहा.
ये सुनकर सुप्रिया और नितिन ने सुरेखा को छोड़ दिया.
"तुम्हें आज बहुत धक्का लगा है, है न?"
सुरेखा ने हामी भरी.
"इधर औ, मेरे पास, हमें बाप बेटी के बीच कुछ बात करनी है."
सुरेखा हलके क़दमों से अपने पिता के तने हुए लंड पर नज़र गढ़ाए हुए, समर्थ के पास बैठ गई.
"तुम जानती हो की हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे तुम्हें परेशानी हो. तुम तो जानती हो की मैंने दो साल पहले पूरे घर को HD क्वालिटी के CCTV से सुरक्षित किया था." समर्थ ने सुरेखा की चिकनी जांघ पर हाथ फिरते हुए कहा.
"नितिन और मैं CCTV पर तुम्हें देख रहे थे जब तुम आयीं। " सुप्रिया ने बताया. "मुझे TV पर दूसरों की चुदाई देखकर चुदने में बहुत मजा आता है."
"पिछली बार जब तुम आयीं थीं तब हमने देखा था तुम्हे अपने पति से चुदवाने की असफल कोशिश करते हुए." कहते हुए समर्थ ने सुरेखा का हाथ अपने लंड पर रख दिया. सुरेखा सिहर उठी. वो हलके हलके उसे मुठियाने लगी.
"अपने हमें देखा था?"
"बिलकुल." शीला ने निखिल के लंड को मुठियाते हुए कहा. "हमें बहुत दुःख हुआ था ये देखकर की उसने तुम्हें झिड़क दिया था. पर अब तुम सही जगह आयी हो. यहाँ हमेशा खड़े हुए हलब्बी लौंड़ों से तुम्हे दोबारा कभी सेक्स से वंचित नहीं रहना होगा." निखिल के लंड को अपने मुंह में लेते हुए उसकी माँ बोली.
फिर समर्थ और निखिल के लंडों को अपने हाथ में लेकर बोली, "जो तुम्हारी प्यास मिटा सकें वो सब यहाँ है. बस आँखों से पट्टी हटा कर देखो.
"मैं समझ नहीं पा रही हूँ. ऐसा कैसे कर सकती हूँ? सुप्रिया तुम अपने ही बेटों से चुदवाती हो? ये पाप है."
"अरे सुरेखा, अपनी सोच बदल." सुप्रिया ने डाँटते हुए कहा, "देख मेरे बेटों के लंड! मैं एक चुदासी औरत हूँ, और मैं ईमानदार हूँ. मुझे लगभग हमेशा लंड चाहिए, और ये दोनों मेरी चूत में उतने ही अच्छे से फिट बैठते हैं जैसे कोई और. असली पाप तो होगा की ऐसे घोड़ों के साथ रहना और इनसे बिना चुदे जीवन बिताना. और क्योंकि ये मेरी ही संतान हैं, इससे पूरे व्यभिचार का आनंद कई गुना हो जाता है." ये कहकर सुप्रिया झुकी और सुरेखा की चूत को ऊपर से नीचे तक चाट लिया. फिर उसने सुरेखा का भग्नासा अपने होठों में लेकर दबा दिया.
सुरेखा बेबस हो गई और ऐसा लगे जैसे वो झड़ने वाली ही है. वो अब झड़ना चाहती थी, कई दिनों की प्यासी जो थी.
"देखो पापा, कैसे लुपलुपा रही है ये, और कितनी गीली हो गई है, देखो छूकर।" सुप्रिया ने समर्थ का हाथ पकड़कर सुरेखा की चूत पर रख दिया. समर्थ ने उसे थोड़ा सहलाया और अपनी एक उंगली अंदर डाल दी.
"ओह हाँ, ओह" सुरेखा सिसक उठी, "मेरा मतलब, नहीं नहीं."
पर अब देर हो चुकी थी. उसका शरीर उसे धोखा दे रहा था. उसने अपने पिता के लंड की ओर हाथ बढ़ाया, पर वापिस खींच लिया. वो अपनी अनियंत्रित होती वासना पर कुछ अंकुश लगाना चाहती थी.
"ह्म्म्मम्म, लगभग तैयार हो, है न? चलो तुम्हें राजी करने के लिए एक और औजार देती हूँ." सुप्रिया ने नितिन को इशारा किया. नितिन अपने खड़े लंड को लेकर सुरेखा के चेहरे के पास खड़ा हो गया.
"मौसी, लगता है काफी दिन हो गए तुम्हें लंड चूसे हुए." उसने छेड़ते हुए बोला और अपना लंड सुरेखा के होठों से लगा दिया और रुक गया.
सुरेखा ने जीभ से टोपा चाटा और स्वाद और सुगंध से उत्तेजित हो गई. उसके मुंह में पानी आ गया.
"मेरे टट्टों से खेलो मौसी, मैं न तुम्हारा पिता हूँ न बेटा। इसे गलत मत समझो." नितिन ने एक चाल चली. सुरेखा की आँखों में एक नयी चमक आई जैसे कि उसे नया उद्बोध हुआ हो. उसने मुंह खोला और नितिन का लंड निगल लिया.
उसने नितिन को अपनी ओर खींचा. नितिन उसके रेशम बालों को सहलाते हुए धीरे धीरे अपना लंड उसको खिलाने लगा. उसके पति ने उसे सालों से लंड चूसने नहीं दिया था. और उसका लंड भी इस स्तर का नहीं था. उसने शर्म तक में रखकर नितिन के लंड को संभव स्तर तक मुंह में ले लिया.
"ये हुई न बात!" उसके पिता ने उसका उत्साहवर्धन किया. "अब नितिन को अपने मुंह से चोदो। "
उसे अपने पीछे स्लर्प स्लर्प की धनि आ रही थी और निखिल की आहें सुनाई दे रही थीं. उसकी माँ वाकई बहुत ऊँचे स्टार की चुड़क्कड़ सोचते हुए उसने नितिन के भरी लंड पर पाने आक्रमण तेज कर दिया.
कई दिनों की प्यास आज बुझाने वाली थी. नितिन ने भी हलके हलके अपने लंड का दबाव बढ़ाया, फिर हलके से सर पकड़कर थोड़ा तेजी से मुंह चोदने लगा.
अचानक नितिन ने अपना लंड एक ही झटके से निकला और छिटककर दूर चला गया. उसने अपनी माँ के कन्धों पर हाथ रखा और उसे भी हटा दिया.
सुरेखा निराशा से चिल्ला पड़ी," नहीं नितिन, यहाँ आओ , मुझे इतने दिन हो गए, मुझे लंड पीना है."
"सॉरी मौसी" नितिन ने हलके मन से कहा, "मुझे लगता है की नाना को अच्छा नहीं लगेगा अगर मैं सबसे पहले आप में अपना पानी छोडूंगा. ये उनका अधिकार है." कहते हुए उसने अपनी माँ सुप्रिया के होंठ चूमे और मम्मे मसल दिए.
"चलो मम्मी, हमारा खेल बीच में रुक गया था. अब नीचे लेटो और अपने पांव फैला दो."
"हाँ, मेरा राजा बेटा , माँ का कितना ध्यान है रे तुझे." वो नीचे कालीन पर लेटकर अपने पैर फैलाती हुई चिहुंक पड़ी. "मेरी चूत लबलबा रही है और मैं तैयार हूँ. कर मेरी सवारी मेरे घोड़े. तेज और कठोर सवारी."
"जैसी आज्ञा, मम्मी " नितिन ने कहा.
सुरेखा अब बेचैन हो रही थी चुदने के लिए. उसने ललचाई आँखों से नितिन को अपने घुटनों के बल बैठकर सुप्रिया की चूत पर लंड रखते देखा. और तब नितिन ने एक ही झटके में अपना खूंटा सुप्रिया के पनियाई हुई चूत में पेल दिया.
"आईईई!" सुप्रिया चीख पड़ी, और अपने कूल्हे मटका कर नितिन को प्रोत्साहित करने लगी. "मर डाल मुझे चोद चोद कर, और जोर से दबा के चोद. मम्मी की प्यास बुझा दे रे मेरे लाड़ले , चीर दे इसे."
सुरेखा के पिता ने उसकी चूत की पंखुड़ियों को सहलाते हुए दो उंगलियां अंदर डाल दीं और अंदर बहार करने लगे. पर अब सुरेखा की मोटर ऑन हो चुकी थी, उसके शरीर ने उसके नैतिक विचारों को पीछे धकेल दिया था. अब उसे उँगलियों नहीं, बल्कि किसी और औजार की आवश्यकता थी.
उसने अपने पिता की ओर मुंह करते हुए बोलै," पापा, प्लीज़। आप मुझे चोदोगे? प्लीज, पापा. छोड़ दो मुझे."
"क्या सच में?" समर्थ ने उसे छेड़ा, "क्या तुम्हें ये पाप नहीं लगता?" कहते हुए दो उँगलियों से भगनासे को मसल दिया.
"मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता. मुझे अपनी आत्मा को तृप्त करना है. मेरी चूत अब और सहन नहीं कर सकती. मुझे आपका लंड चाहिए पापा! प्लीज मुझे मत तरसाओ!" सुरेखा ने मिन्नत की.
समर्थ ने अपनी बेटी की याचना सुनी और उसे हलके से बिस्तर पर लिटा दिया. अपने लंड को सुरेखा की चूत पर रखा ही था कि सुरेखा कमर उचकने लगी. समर्थ ने उसके पेट पर हाथ रखा और उसे संयत लिया. फिर धीरे धीरे अपने लंड को अंदर उतारने लगा.
"पापा, डाल दो अंदर" सुप्रिया ने नितिन के नीचे धक्के कहते हुए कहा. फिर उसने घोड़ी की स्थिति बनाई और नितिन को पीछे से चोदने को कहा. "ऐसे अच्छे से दिखाई देगा. मौसी नाना के लंड की दीवानी हो गई है."
ये सच भी था. सुरेखा अपने पांव बेतहाशा इधर उधर फेंक रही थी. समर्थ ने बहुत संतोष के साथ अपना पूरा लंड अंततः अंदर घुसा ही दिया. सुरेखा ने ये समझ लिया की अब वो कभी भी अपने पिता को मना नहीं कर पायेगी. इतना पूरी तरह उसे पूरी गहरी तक छूने वाले लंड को छोड़ना असंभव था. समर्थ ने हलके हलके धक्के लगाने शुरू किये. सुरेखा ने नीचे देखा और अचरज किया की वो ऐसी मूसल को ले पाई. फिर वो आंखे बंद कर सुख के सागर में गोते लगाने लगी.
"नानी देखो!" निखिल ने शीला का ध्यान आकर्षित किया. "नाना मौसी को चोद रहे है! और मैं झड़ने वाला हूँ!"
शीला ने सुरेखा से ऑंखें मिलायीं और एक संतुष्ट मुस्कान के साथ निखिल के रस का पान करने लगी.
"उह्ह्ह! हाय पापा, पहले क्यों नहीं क्या मुझे शामिल?" सुरेखा ने अपने कूल्हों को ऊपर नीचे करते हुए पूछा.
"मेरे अंदर ही झड़ना पापा. मुझे आपका पूरा पानी अंदर लेना है." ये सुनकर समर्थ ने अपनी गति और तेज कर दी. उसकी इस फुर्ती को देखकर उसकी उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था.
"मैं झड़ने वाला हूँ. देख शीला, मैं अपनी बेटी की चूत में झड़ रहा हूँ."
"देख रही हूँ. भर दे उसकी चूत. मिटा दे अपनी बेटी की प्यास."
"बेटा क्यों न तुम भी नाना के साथ ही झड़कर हम दोनों बहनों को एक साथ तर कर दो." सुप्रिया ने नितिन से कहा.
"जैसा कहो." नितिन ने भी अपने धक्को को अति तीव्र कर दिया.
सुरेखा ने अपने पिता का बीज अपनी चूत को सींचते हुए महसूस किया. वो इस पूरे समय में तीन बार झड़ चुकी थी.
उधर सुरेखा ने नितिन को भी सुप्रिया के अंदर झड़ते हुए देखा.
उसने अपनी चूत पर हाथ रखा और उसे छूते ही एक बार और उसका पानी छूट गया. वो निढाल हो कर पड़ गई. समर्थ उसके ऊपर से हलके से हटा और लेट गया.
उसने सोचा न था की उसे एक दिन में इतने चौंकाने वाले वृत्तांत देखने और खेलने के लिए मिलेंगे. वो स्वप्निल आँखों से एक मुस्कान लेकर अपनी सांसे संभाल रही थी की एक और झटका उसे तब लगा जब उसने अपने पिता की आवाज़ सुनी.
"मुझे उम्मीद है की ये सब वीडियो में रिकॉर्ड हो गया होगा."