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Incest कैसे कैसे परिवार

prkin

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prkin

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Prkin, bhai jesi aapki marzi...pr kese kese pariwar kahani ka koi mukabla nahi h....you are the best writter.....
Bus mujhe kisi ki chudai wali sadi dekhni h....

Woh to dekhne ko milegi hi.
Bina chudai ke shadi hogi kaise?
vo bhi is kahani mein?
 

prkin

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कुछ ही दिनों में (दिशा की कहानी के पहले पड़ाव के आने के बाद), ये कहानी पुनः आरम्भ होगी।

परन्तु इस बार कहानी किसी भी एक परिवार के आसपास न घूमकर, एक उन्मुक्त ढंग से चलेगी।
इसीलिए अब अध्याय भी एक निरंतर शृंखला में चलेंगे।
इस विराम के पश्चात पहले कुछ अध्याय, पात्रों के वर्तमान में चल रहे दृष्टांतों पर आधारित रहेगी।
इस प्रकार से आप सभी पात्रों से पुनः परिचित हो पाएंगे।
पिछली बीती हुई कहानी से भी आप फिर से परिचित हो पाएंगे।

एक कल्पना बन चुकी है, जिसपर अब लिखना होगा।

परन्तु कुछ और प्रतीक्षा करनी होगी।

मेरी इच्छा है कि इस वर्ष ही दोनों कहानियाँ एक पड़ाव तक पहुँच सकें।
उसके बाद आगे की सोचेंगे।
 

Maanjaat40

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कुछ ही दिनों में (दिशा की कहानी के पहले पड़ाव के आने के बाद), ये कहानी पुनः आरम्भ होगी।

परन्तु इस बार कहानी किसी भी एक परिवार के आसपास न घूमकर, एक उन्मुक्त ढंग से चलेगी।
इसीलिए अब अध्याय भी एक निरंतर शृंखला में चलेंगे।
इस विराम के पश्चात पहले कुछ अध्याय, पात्रों के वर्तमान में चल रहे दृष्टांतों पर आधारित रहेगी।
इस प्रकार से आप सभी पात्रों से पुनः परिचित हो पाएंगे।
पिछली बीती हुई कहानी से भी आप फिर से परिचित हो पाएंगे।

एक कल्पना बन चुकी है, जिसपर अब लिखना होगा।

परन्तु कुछ और प्रतीक्षा करनी होगी।

मेरी इच्छा है कि इस वर्ष ही दोनों कहानियाँ एक पड़ाव तक पहुँच सकें।
उसके बाद आगे की सोचेंगे।
Jaisa bhai ko theek lage
 

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पाँचवा घर: शोनाली और जॉय चटर्जी
अध्याय ५.२


शोनाली का घर:

आज चटर्जी परिवार में बहुत अधिक हलचल थी. सभी बहुत व्यस्त थे और जल्दी में भी. शोनाली को दिंची क्लब जाना था, कल के आयोजन की तैयारी हेतु. सुमति को शीला ने घर बुलाया था, संभवतः शादी के बारे में कुछ बात करने के लिए. सागरिका और पारुल को सुप्रिया ने शॉपिंग के लिए आमंत्रित किया था. इस बार उसकी छोटी बहन सुरेखा भी साथ रहने वाली थी. सागरिका सुरेखा से पहली बार मिल रही थी. सुरेखा की बेटी संजना के आने की भी सम्भावना थी.

पार्थ को कुछ आर्थिक निर्णय लेने थे. अगले सप्ताह उन्होंने एक बॉलीवुड अभिनेत्री का एक शो रखा था. उसे ये देखना था कि उनकी फीस कैसे दी जाएगी. हालाँकि उन्होंने सभी सदस्यों की राय ली थी और उन्होंने इस शो की लिए अलग से धनराशि के लिए सहमति दी थी. पर ये राशि पूरी फीस से कम थी और आज उसे अग्रिम राशि भेजनी भी थी. उसने शाम को मामा से सलाह लेने पर विचार किया.

जॉय की आज रिचर्ड और उसके साले जैसन के साथ गोष्ठी थी. उनकी कम्पनी कई दिनों से निर्यात के नए अवसर ढूंढ रही थी. रिचर्ड ने कुछ दिनों पहले उसे बताया था कि उसका साला जैसन भारत अपने वयवसाय के लिए आ रहा है. जॉय ने उन्हें अपने ऑफिस में चर्चा के लिए आमंत्रित किया था और आज सुबह १० बजे उन्हें आना था.

अब चूँकि सभी जाने की जल्दी में थे तो हड़बड़ी और अफरा तफरी का वातावरण था. ९ बजे से एक एक करके सब निकलने लगे. जॉय और शोनाली सबसे पहले गए. जॉय को अपनी कम्पनी के सहयोगियों के साथ कार्यनीति पर चर्चा करनी थी. शोनाली को पहुँचने में समय लगना था और उसे दो और लोगों को साथ ले जाना था.

सुमति और पार्थ १० बजे के आसपास निकले. सुमति को तो साथ के घर ही जाना था, परन्तु पार्थ को आज बहुत चक्कर लगाने थे. उसने कुछ सोचकर निखिल को अपने साथ ले जाने का निर्णय लिया. दो संपन्न परिवारों के वंश के कारण उन्हें वस्तुतः इस अल्पायु ऋण मिलने में सरलता होती.

सबसे अंत में पारुल और सागरिका निकले, उनका पूरे दिन केवल एक ही काम था - अपने पिता के धन को व्यय करना.

**********

शोनाली:

शोनाली ने अपने साथ सोनम और सचिन को लिया और क्लब की ओर गाड़ी दौड़ा दी. रास्ते में सबने क्या क्या आयोजित करना है इसके बारे में चर्चा की. अब चूँकि ये क्लब के पूर्णतया अंदरूनी आयोजन था, अधिक समय नहीं लगना था. परन्तु पार्थ और शोनाली सदैव हर बिंदु पर ध्यान रखते थे और किसी प्रकार की कमी उन्हें पसंद नहीं थे. मुख्य समस्या दोपहर के भोजन को लेकर थी. क्योंकि ये सिमरन का पुरुस्कार समारोह था तो उसके द्वारा केटरिंग नहीं की जा सकती थी.

अंत में ये निश्चय हुआ कि खाने का आयोजन किया तो सिमरन के ही साथ जाये पर अलग स्थान पर और दो महिला सदस्य उसे लाने और परोसने में सहायता करें. सोनम ने इसके लिए अपना सहयोग देने का आश्वासन दिया. सचिन ने कहा कि वो अपनी माँ रमोना से पूछ सकता है, परन्तु फिर हसंते हुए बोला कि अगर उसे पता चलेगा कि ऐसा भी कुछ संभव है, तो वो भरसक प्रयत्न करेगी इसी प्रकार का पुरुस्कार जीतने के लिए. इस बात पर सब हंस पड़े.

कुछ ही देर में क्लब पहुंचे जहाँ इस सप्ताह की रिसेप्शनिस्ट मंजुला ने उनका स्वागत किया. सोनम ने मंजुला से बात की और उसे कल के आयोजन में सोनम की सहायता के लिए प्रतिबद्ध कर लिया. उसके बाद शोनाली ने सिमरन से बात करके अपनी राय रखी. सिमरन ने उसे मान लिया और कहा कि वो आज ही सारा प्रयोजन कर लेगी. उसने एक बार शोनाली को धन्यवाद दिया कि उन्होंने अपनी बात को पूरा करने का साहस दिखाया. इस बात पर शोनाली ने चुटकी ली कि साहस तो सिमरन का है जो ऐसे खेल के लिए मान गई.

अब उन्हें दो महिलाओं को सफाई के लिए भी नियुक्त करना था. अब अगर १६ रोमियो एक अकेली महिला की चुदाई करने वाले थे तो उस महिला के गुप्तांगों को अधिक गीला और चौड़ा होने से भी रोकना होगा. इसके लिए क्लब की दो सदस्यों का चयन करना था जिन्हें चूत और गांड चाटकर कामरस पीने में आनंद आता हो. इसके लिए जब चर्चा हुई तो मंजुला ने वर्षा रेड्डी और एंजेला मैथ्यू के नाम सुझाये.

वर्षा एक राजनीतिज्ञ थी और नारी सशक्तिकरण के लिए बहुत प्रसिद्द थी. उसका बाहरी आडम्बर वाले चेहरे से पुरुषों के प्रति केवल अपशब्द ही सुनाई देते थे. पर बंद कमरे में उसका रूप अलग था जिससे क्लब के सदस्य भली भांति परिचित थे. एंजेला एक प्रकार से अस्थायी सदस्य थी. वो पुलिस के एक अति उच्च अधिकारी की पत्नी थी. परन्तु क्योंकि उनका स्थानांतरण कभी भी हो जाता था इसीलिए उसे “जब तक शहर में हैं” की श्रेणी में सदस्य्ता दी गई थी. उसका वीर्यप्रेम अद्भुत था. मंजुला ने इन दोनों महिलाओं से फोन पर बात की और उन्हें कल के कार्यक्रम के बारे में और इसमें उनकी भूमिका के सम्बन्ध में सहमति मांगी. जैसा अपेक्षित था दोनों ने इसके लिए अत्यंत प्रसन्नता से हामी भर दी.
अब जब सब कुछ सेट था तो सबने अंदर जाकर कुछ देर और मंत्रणा की और फिर वापिस शहर की ओर निकल पड़े.

**********

सुमति:

सुमति जब शीला के घर पहुंची तो केवल समर्थ और शीला ही घर पर थे. शीला ने उसका बड़े प्रेम से स्वागत किया. अंदर जाने के बाद शीला ने सबके लिए जूस लाया और सब बैठ गए. अधिकतर चर्चा विवाह की तैयारी से सम्बंधित थी. शीला ने सुमति को कुछ संकेत दिए जो वो चाहती थी कि ध्यान में रखे जाएँ. दहेज़ की कोई भी बात नहीं थी और समर्थ और शीला ने इसके लिए कठोर शब्दों में मना कर दिया. हालाँकि ये बात निश्चित हुई कि दोनों परिवार मिलकर नवविवाहितों को एक घर खरीद कर देंगे. इसके लिए सुप्रिया की भी सहमति थी, परन्तु निखिल इससे किसी भी प्रकार से सहमत नहीं था. अंत में इसे निवेश समझकर निखिल ने स्वीकार कर लिया था. जिस घर के बारे में बात थी वो एक विशाल अपार्टमेंट था जो सुप्रिया के घर से अधिक दूर नहीं था.

इसके अतिरिक्त शीला ने ये भी बता दिया कि पूरा खर्चे का वहां दोनों परिवार मिलकर करेंगे.

शीला: “सुमति, हमारा जो भी कुछ है, इन बच्चों का ही है. अगर आज सुप्रिया की बेटी होती तो भी हम यही करते. इसीलिए, इसमें किसी प्रकार का संकोच करने की आवश्यकता नहीं है. हम इस विवाह को आर्थिक सम्बन्ध नहीं अपितु पारिवारिक सम्बन्ध बना रहे हैं.”

सुमति ने उनके विचार जॉय और शोनाली के समक्ष रखने का वादा किया. सुमति ने अपने साथ रखी डायरी में सब लिख लिया.

शीला: “आओ अब मैं तुम्हें अपने घर का टूर करवाती हूँ.”

ये कहते हुए उसने सुमति का हाथ पकड़कर उसे घर के अंदर ले गई.

**********

पार्थ और निखिल:

पार्थ और निखिल निर्धारित समय से अपने गंतव्य पर पहुंच गए. इस समय वो रूचि आहूजा के समक्ष बैठे थे. रूचि नगर की सबसे बड़ी फाइनेंसर थी. हर महीने वो लगभग १० से १५ करोड़ की फाइनेंसिंग करती थी. वो ४५ वर्ष की एक परिपक्व विधवा थी. उसके पति का निधन कोई ३ वर्ष पहले एक दुर्घटना में हो गया था. दबी हुई आवाज़ में लोग इसमें रूचि का हाथ होने का आकलन करते थे, परन्तु कभी किसी ने इस पर कोई शक नहीं जताया. अपने पति की अथाह संपत्ति को पाने के बाद रूचि ने अपने इस व्यापार का और विस्तार कर लिया था. कुछ लोगों का कहना था की वो बॉलीवुड और कन्नड़ फिल्म जगत में भी फाइनैंस करती थी.

रूचि ने कुर्सी में पीछे झुकते हुए दोनों की ओर देखा, “तो आपको ५० लाख रूपये चाहिए, २ सप्ताह के लिए. आप जानते हो कि मेरी ब्याज दर क्या है?”
पार्थ: “जी मैडम, हमें पता है और हम उसे स्वीकार करते हैं.”
रूचि: “मैंने तुम्हारे बिज़नेस के बारे में पता लगाया है. जो तथ्य तुम दुनिया से छुपा सकते हो, वो मुझसे छुपा नहीं है. काफी नया तरीका है तुम्हारा. आई ऍम इम्प्रेस्ड.”
पार्थ: “थैंक यू मैडम”
रूचि: “मुझे तुमसे एक दूसरी डील करनी है. मैं चाहती हूँ कि मैं तुम्हारे इस क्लब में पार्टनर बनूँ. मैं २६% हिस्सा लेने के लिए इच्छुक हूँ.”
पार्थ का दिमाग घूम गया. उसने ये स्थिति के बारे में तो विचार भी नहीं किया था.
पार्थ: “मुझे अपने पार्टनर से पूछना पड़ेगा.”
रूचि: “पूछना भी चाहिए. मैंने तुम्हारे पूरे बिज़नेस का आकलन किया है और जमीन और अन्य सभी संसाधनों का कुल मूल्य ६ करोड़ के लगभग है. पर जैसा तुम समझते हो, इसकी बाजार कीमत लगभग ९ से १० करोड़ हो सकती है. मैं इस बिज़नेस में २.५ करोड़ लगाने की इच्छा रखती हूँ. तुम्हारी बैलेंस शीट ये दिखाती है कि अभी ये उपक्रम ४० लाख के नुकसान में है. बैंक के ऋण की दर भी अधिक है. मेरे इस निवेश से तुम्हारा नुकसान समाप्त हो जायेगा और जो आगे के तुम्हारे विस्तार के जो लक्ष्य है, उसे भी जल्दी पूरा कर पाओगे.”

पार्थ सोच में पड़ गया. “मैडम क्या मुझे सोचने के लिए एक दिन का समय मिल सकता है?”
रूचि: “ये डील तुम्हारे इस ऑफिस में रहने तक ही है. यहाँ से निकलने के बाद ये प्रस्ताव समाप्त हो जायेगा. हाँ मैं जो ऋण लेने आये हो, वो मैं अवश्य दूँगी.”

पार्थ गहरी सोच में था. उसने निखिल की ओर देखा. अब चूँकि निखिल बचपन से बिज़नेस के बारे में सुनता आ रहा था उसने इस प्रस्ताव का सही मूल्य समझ लिया.

निखिल: “मैडम, अगर हम स्वीकार करेंगे, तो इस निवेश के अतिरिक्त और भी जो व्यय हैं, उन्हें कैसे करेंगे?”

रूचि: “इस राशि से तुम्हारे व्यय कम होंगे. नुकसान पूरा होने के पश्चात् तुम्हारे पास २.१ करोड़ बचेंगे. बैंक का लोन इस समय (एक पेपर पढ़ते हुए) ९० लाख बकाया है, जिसका वार्षिक ऋण ११ लाख के आसपास है. अगर ये ऋण चूका दो तो भी तुम्हारे पास 1.२ करोड़ बचेंगे और हर वर्ष ११ लाख भी बचेंगे. क्लब जिस प्रकार से चल रहा है, वैसे ही चलेगा, पर हर तीन महीने में मेरी टीम ऑडिट करेगी. कुल आय का २६% मेरा होगा.”

निखिल ने धीरे से पार्थ का हाथ दबाकर उसे स्वीकृति देने के लिए संकेत दिया.

पार्थ: “मुझे स्वीकार है.”
रूचि: “पर मेरी कुछ और भी शर्तें हैं.”
पार्थ: “कैसी शर्त.”

रूचि खिलखिला पड़ी. “घबरा मत बच्चे. तुम्हारे क्लब के रोमियो मैं जब भी इच्छा करुँगी, मेरी सेवा में उपस्थित होंगे. क्लब में तो मैं आऊंगी नहीं, तो उन्हें मेरे घर पर ही आकर मुझे संतुष्ट करना होगा. कब कितने रोमियो आएंगे ये मेरी इच्छा पर निर्भर होगा.”

पार्थ: “अन्य दिनों में तो इसमें कोई कठिनाई नहीं है, परन्तु जब क्लब के विशेष समारोह होते हैं उन दो दिनों ये संभव नहीं हो पायेगा.”
रूचि मुस्कुराते हुए: “कोई चिंता नहीं. मैं इतना तो अपने आप को बहला ही सकती हूँ. तो बताओ, क्या ये डील पक्की की जाये?”
पार्थ ने हामी भरी तो रूचि ने एक अग्रीमेंट अपने दराज से निकाला।

“इसे ध्यान से पढ़ लो. और इस पर अपने हस्ताक्षर कर दो. मैं बिज़नेस में धोखा नहीं करती यही मेरी सफलता का रहस्य है.” फिर निखिल की ओर सीखकर, “तुम चाहो तो समर्थ से विचार विमर्श कर सकते हो.”
उसने रिमोट से एक दरवाजा खोला जिसमे एक सभा कक्ष था. “वहां बैठकर तुम लोग अपना निर्णय करो, मैं एक घंटे में तुम्हें मिलूंगी. पर इस कमरे से बाहर जाने की तुम्हे अनुमति नहीं है. आवश्यक होने पर बाथरूम उस कक्ष से ही संलग्न है.”

पार्थ और निखिल उस कमरे में गए और रूचि ने उसे लॉक कर दिया. निखिल ने अपने नाना को फोन लगाया और सारी स्थिति समझाई। फिर उनके मांगने पर एग्रीमेंट को व्हाट्स ऐप से उन्हें भेज दिया. लगभग ४० मिनट में समर्थ का फोन आया. उसने अपने वकील से सलाह ली थी और उसने इसे सही पाया था. समर्थ ने पार्थ को हस्ताक्षर करने की सलाह दी. अब समय भी पूरा हो चला था. कुछ ही मिनटों में क्लिक की ध्वनि से सभाकक्ष का द्वार खुल गया. पार्थ और निखिल बाहर आये.

“क्या कहा समर्थ ने?”
“उन्हें ये अग्रीमेंट उचित लगा है.”
“जैसा मैंने कहा, मैं धंधे में धोखा नहीं करती.”

पार्थ और रूचि ने एग्रीमेंट पर साइन किया, फिर निखिल और रूचि की सेक्रेटरी ने गवाहों के स्थान पर साइन किये. सेक्रेटरी ने दो प्रतियां बनायीं और उसमें से एक पार्थ को सौंप दी. फिर वो कमरा बंद करके अपने स्थान पर चली गई. रूचि ने अपनी चेक बुक निकाली और २.५ करोड़ का चेक काटकर पार्थ को सौंप दिया.

पार्थ और निखिल दोनों बोल पड़े: “थैंक यू, रूचि मैडम.”
रूचि मुस्कुराई. “ये तो हुई धंधे की बात. अब इतने बड़े निर्णय के लिए कुछ मनोरंजन भी होना चाहिए, क्यों?”
पार्थ और निखिल ने बिना कुछ सोचे सिर हाँ में हिलाया.

“वेरी गुड़.” ये कहकर रूचि ने अपने रिमोट से एक बटन दबाया और उसके पीछे की दीवार दो पाटों में बँट गई.

उस दीवार के पीछे एक सुसज्जित शयन कक्ष था.
रूचि ने इंटरकॉम से अपनी सेक्रेटरी को कॉल किया: “एक घंटे तक मैं व्यस्त हूँ. नो कॉल्स, नो विज़िटर्स। ओके?”
रूचि अपनी कुर्सी से उठकर अंदर जाते हुए बोली,” ओके, बॉयज़, फॉलो मी.”

**********

सास बहू और शॉपिंग:

सागरिका और पारुल सुप्रिया के ऑफिस पहुंचे. सुप्रिया ने अपने ऑफिस में आमंत्रित किया और सुरेखा को भी बुला लिया. सागरिका और पारुल ने सुप्रिया और सुरेखा के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। सुरेखा दोनों बहनों के सौंदर्य पर मुग्ध हो गई. चारों महिलाएं ऑफिस से निकलीं. उन्होंने अपनी सेक्रेटरी को कहा कि अगर कोई आवश्यक काम पड़े तो मोबाइल पर कॉल करे, अन्यथा वो लोग आज वापिस नहीं आएंगे.

सुप्रिया: “शोनाली का फोन आया था. वो भी ३ बजे के पहले हमारे पास पहुँच जाएगी. कह रही थी कि तुम्हें क्रेडिट कार्ड दिया है शॉपिंग के लिए. तो चलकर कुछ शॉपिंग भी करेंगे और कुछ मस्ती भी.”

सागरिका और पारुल दोनों बहुत खुश हुए. ऐसी सास सबको मिले जो मित्र अधिक थी. सब एक मॉल में गए और लगभग दो घंटे खूब घूमे, शॉपिंग की, खाया पिया और अच्छा समय बिताया. जब तीन बजने को हुए तो सुप्रिया ने कहा कि अब घर चलते हैं वहीँ गपशप करेंगे. सब गाड़ी में बैठकर सुप्रिया के घर चल पड़े. बीच ही में शोनाली की कॉल आ गई. सुप्रिया ने उसे भी घर पर ही पहुँचने का आमंत्रण दिया. घर पहुंचकर सबने अपने शॉपिंग के बैग डाइनिंग टेबल पर लगा दिए. सुरेखा अपने सैंडल उतारकर अपने पांव दबाने लगी. सागरिका तुरंत उसके सामने नीचे बैठी और उसके पाँवों की मालिश करने लगी. सुरेखा की आनंद और आराम से ऑंखें बंद हो गयीं.

तभी पारुल ने सुप्रिया से कहा, “आप भी बैठो, मैं आपके पैरों की मालिश करती हूँ. सुप्रिया को उस पर बहुत प्यार आ गया. उसने पारुल के गाल चूमे और सोफे पर बैठ गई. पारुल सुप्रिया के पाँवों की मालिश करने लगी. कुछ क्षणों के लिए सुप्रिया और सुरेखा की आंख लग गई. उन्हें सोता छोड़कर, पारुल और सागरिका किचन में गए और सबके लिए चाय का प्रबंध करने लगे. साथ ही उन्होंने कुछ हल्का सा अल्पाहार भी बना लिया. जब तक ये सब हुआ तब तक सुरेखा और सुप्रिया की आंख भी खुल गई. दोनों एक दूसरे को देखकर खिलखिलाने लगीं.

इतने में चाय नाश्ता आ गया और जैसे इसी समय की प्रतीक्षा हो रही हो, घर की घंटी बजी और शोनाली ने घर में प्रवेश किया. उसने डाइनिंग टेबल पर लगे शॉपिंग बैग देखे तो आश्चर्य में पड़ गई.

सुप्रिया: “ये सब इनके नहीं हैं. मेरे और सुरेखा के भी हैं.” ये कहते हुए उसने शोनाली को गले लगाकर उसके गाल चूमे. “आओ सुरेखा से मिलो.”

शोनाली सुरेखा के गले लगी और दोनों हाथ पकड़कर एक ओर बैठकर बातें करने लगीं. दोनों लड़कियों ने सबको चाय नाश्ता दिया। इस सब में ४ बजने को आ गए थे.

सुप्रिया ने कहा कि वो बियर पीने के मूड में है, क्या कोई उसका साथ देगा. सुरेखा ने हाँ की और फिर शोनाली ने भी अपनी सहमति दे दी. सुप्रिया उठने लगी तो सागरिका ने उसे रोका, “आप बता दो, मैं लेकर आती हूँ.” सुप्रिया ने उसे बताया तो सागरिका पारुल के साथ बियर लेने चली गई. सुप्रिया की ऑंखें छलक गयीं. आज तक किसी ने उसके काम में हाथ नहीं बंटाया था. उसने शोनाली को फिर से गले लगा लिया.

शोनाली: “दीदी, आप अब भावुक मत हो. मेरी बेटी सब संभाल लेगी. अब आपका आराम करने का समय आ चुका है.”

ये कहते हुए शोनाली ने सुप्रिया के होंठ चूम लिए. सुप्रिया के तन बदन में जैसे आग लग गई. उसने उस चुम्बन का उत्तर एक और चुम्बन से दिया. कुछ ही क्षणों में सुप्रिया और शोनाली के शरीर गुत्थमगुत्था हो गए. सुरेखा ये सब देख रही थी और उसके शरीर में भी भूख जाग गयी. सागरिका ने ये सब देखा तो उसने पारुल को संकेत किया और दोनों बहनें सुरेखा की ओर अग्रसर हुईं और उसे अपने बाहुपाश में ले लिया. सागरिका सुरेखा के होंठ चूम रही थी तो पारुल ने उसकी गर्दन और कानों पर अपनी जीभ का जादू चलाया.

शोनाली ने सुप्रिया के वस्त्र निकलते हुए उसे नंगा कर दिया और उसके मम्मे चूसने लगी. पारुल ने जब ये देखा तो उसने सुप्रिया के सामने बैठकर उसके पांव फैलाये और अपनी जीभ से उसकी चूत चाटना शुरू कर दिया. सुप्रिया इस दोहरे आघात से बेबस हो गई और उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया. पारुल ने उसके पांवों को और फैलाकर अपने आक्रमण में तेजी कर दी. अब वो सुप्रिया की चूत के अंदर तक अपनी जीभ घुसा कर उसे चोद रही थी. इसके साथ उसने अपने बाएं हाथ के अंगूठे और ऊँगली से भगनासे को मसलते हुए दाएं हाथ की एक ऊँगली सुप्रिया की गांड के छेद पर हल्के से सहलाने लगी. शोनाली हर मिनट एक स्तन को चूसती फिर दूसरे को, फिर सुप्रिया के होंठ चूसती. सुप्रिया आनंद की लहरों में बह रही थी.

उधर सागरिका ने सुरेखा को निर्वस्त्र कर दिया था. पर चटर्जी परिवार की तीनों महिलाएं अभी भी अपने पूरे वस्त्र पहने थीं. सागरिका ने सुरेखा को बड़े प्रेम से सोफे पर बैठाया, फिर उसके पांव चौड़े करते हुए उसकी चूत में अपना चेहरा छुपा लिया. शोनाली अचानक खड़ी हो गई और उसने अपने कपड़े आनन फानन में उतार फेंके. उसने सुप्रिया का एक प्रगाढ़ चुम्बन लिया और फिर स्वयं पारुल के पीछे से उसकी गांड को चाटने लगी. उसकी जीभ पारुल की मखमली गांड से उसकी चूत के बीच की यात्रा करने लगी.

सुप्रिया ने उन्हें रुकने का संकेत दिया और वो जमीन पर लेट गई, फिर उसने सागरिका को अपनी और खींचा और उसकी चूत पर अपना मुंह लगा दिया. अब शोनाली की बारी थी. उसने सबको एक गोलाकार क्रम में आने का सुझाव दिया और देखते ही देखते एक नए व्यूह की रचना हो गई. पारुल सुरेखा की चूत चाट रही थी. सुप्रिया पारुल की, शोनाली सुप्रिया की सागरिका शोनाली की और सुरेखा ने सागरिका की चूत में अपना चेहरा गढाया हुआ था.



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पांचों इस बात से अनिभिज्ञ थे कि उन्हें इस अवस्था में अचंभित आँखों से एक लड़की देख रही थी. और वो कोई और नहीं, संजना थी !

**********

जॉय का दिन:

जॉय ने अपने ऑफिस पहुँच कर अपने अतिथियों के आगमन का आयोजन किया. १० बजे रिचर्ड और जैसन पहुँच गए. सभी मिलकर सभाकक्ष में चले गए. जॉय के बॉस ने आकर सबका स्वागत किया और उन्हें दोपहर के भोज के लिए आमंत्रित किया और आगे की चर्चा के लिए छोड़कर अपने काम पर चले गए.

चर्चा में ये तय किया गया कि जॉय की कंपनी के उत्पादों को जैसन की कंपनी अपने देश में बेचेगी. इसके ऊपर जो कमीशन है, वो भी तय किया गया. इसी के साथ जैसन भी अपनी कंपनी के कुछ उत्पादों को भारत में बेचने के लिए उत्सुक था. इसके लिए रिचर्ड की कंपनी जॉय की कंपनी के साथ अनुबंध करेगी और उसका सहयोग करेगी. चर्चा बहुत सफल रही और तीनों पक्षों ने एक दूसरे के साथ काम करने के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किये. इसके बाद जॉय के बॉस के साथ सभी एक पांच सितारा होटल में भोजन हेतु गए और उन्हें चर्चा और अनुबंध से अवगत कराया. बॉस ने सबको बधाई दी. इसके बाद बॉस अपने काम पर चले गए परन्तु ये तीनों वहीँ कुछ देर और बैठे.

जैसन के मन में कुछ चल रहा था, उसे जॉय के हाव भाव से ये प्रतीत हो रहा था कि वो एक खिलाड़ी प्रवत्ति का पुरुष है. एक तो जॉय की सेक्रेटरी के साथ कुछ अधिक खुला बर्ताव और कुछ जॉय की हर आती जाती स्त्री या लड़की का पीछे करती हुई ऑंखें उसे ये विश्वास दिला रही थीं कि ये रंगीन आदमी है. जब जॉय ने बाथरूम जाने की अनुमति ली तब उसकी अनुपस्थिति में जैसन ने अपनी राय रिचर्ड को बताई. रिचर्ड ने उसकी बात को स्वीकारा और कहा कि उसे जॉय और उसकी पत्नी के बारे में कुछ उड़ती हुई बातें सुनाई दी हैं. जैसन के पूछने पर रिचर्ड ने थोड़ा कुछ बताया कि तब तक जॉय लौट आया.

अब जैसन ने बात आगे बढ़ाई , “हम चाहेंगे कि अगर संभव हो सके तो हम दोनों, आप और आपकी पत्नी को अपने घर आमंत्रित करना चाहते हैं. दिन आप तय कर लें, समय शाम ७ बजे का रखें.”

जॉय ने अपने फोन में अपने कैलेंडर को देखकर शुक्रवार अथवा शनिवार का दिन उचित बताया. “परन्तु मुझे शोनाली से भी पूछना पड़ेगा. अगर वो सहमत होगी तो ये दिन ठीक रहेगा.”

रिचर्ड और जैसन ने इस बात को स्वीकार किया और जॉय ने रात में उन्हें अवगत कराने के लिए कहा. इसके बाद सब लोग उठे. जॉय अपने ऑफिस चला गया और रिचर्ड और जैसन अपने घर. शाम को उन्हें अपने अन्य पार्टनर्स के साथ दूसरी पार्टी से मिलने जाना था.

**********

सुमति:

शीला अपने घर का पूरा भ्रमण करवाने के बाद सुमति को वापिस बैठक में ले गई.
शीला: “इन्होने पूरे घर को वीडियो कैमरों से लैस किया हुआ है. हाँ बाथरूम छोड़ दिए है.”
समर्थ हंसने लगा.
शीला: “और हमारे घर में एक लाइब्रेरी है, जिसकी चाबी केवल इनके ही पास है. बस वही एक स्थान है जो तुमने नहीं देखा.”
समर्थ: “शीला, चाबी ले लो. सुमति तो अब अपने ही घर की सदस्य है. जाओ इसे दिखा लाओ. अगर इच्छा होगी तो मैं भी आ जाऊंगा.”
शीला चाबी लेकर सुमति को बेसमेंट में ले गई. कमरे में प्रवेश करते ही सुमति चकित रह गई. कमरे की एक दीवार पर दर्जनों टीवी लगे हुए थे. उनके सामने सोफे लगे हुए थे और अन्य दीवारें अलमारियों के प्रकार थीं. शीला ने एक अलमारी खोलकर सुमति को दिखाई.
“इन्होनें पिछले कुछ सालों के वीडियो संभाल कर रखे हैं. पहले सीडी में थे, फिर डीवीडी बनाये. और पिछले साल सबको इन्होने हार्ड डिस्क में स्थानांतरित कर दिया.”
“ये किस चीज़ के वीडियो हैं, माँ जी?” हालाँकि सुमति कुछ कुछ समझ चुकी थी पर पूछना ही ठीक समझा.

“चुदाई के, हमारे घर के अंदर के. संभवतः चुदाई का ऐसा कोई प्रकरण नहीं जिसे रिकॉर्ड करके सहेजा न गया हो. इन्हें कभी कभार पुराने वृत्तांत देखने का मन करता है. आओ मैं तुम्हें कुछ पुराने प्रकरण दिखती हूँ.”
ये कहकर शीला ने एक डिस्क निकाली।
“हम्म्म, ये कोई ७ साल पहले की है. देखें क्या है इसमें?” ये कहकर शीला ने एक मशीन में वो डिस्क लगाई और उसके साथ में लगा टीवी चालू कर दिया.

वीडियो की क्वालिटी इतनी अच्छी तो नहीं थी पर कुछ ही समय में सब पात्र समझ आ गए. नीचे लेती हुई सुप्रिया के मुंह के ऊपर शीला की चूत थी और सुप्रिया उसे चूस रही थी. और शीला की पीछे से समर्थ अपना तगड़ा लंड उसकी गांड में डालकर कर जोरदार चुदाई कर रहे थे.
“ओह, लगता है, शुरू में इन्होनें वीडियो चालू नहीं किया था.”
सुमति बोली, “माँ जी, मुझे वो दिखाओ न जिसमे आपके दोनों नाती हों.”
“तब तो दो साल पहले वाले देखने होंगे. रुको, मैं निकालती हूँ.” ये कहकर शीला ने उस समय की एक डिस्क निकाली और बदलकर लगा दी. पुरानी डिस्क उसने यथास्थान लौटा दी.
जब वीडियो चला तो कुछ समय तो अलग अलग दृश्य आते रहे. अचानक शीला ने एक स्थान पर रोक कर फॉरवर्ड करना बंद कर दिया. ये शीला और समर्थ का शयनकक्ष था. और इस समय उसमें शीला और समर्थ अकेले थे.
सुमति ने प्रश्न भरी आँखों से शीला को देखा, तो शीला मुस्कराने लगी.
“जैसे कोई लड़की अपनी पहली चुदाई नहीं भूलती, वैसे ही मैं वो दिन नहीं भूल सकती जब मेरे तीनों सबसे प्यारे पुरुषों ने मुझे एक साथ चोदा था. ये देखकर मुझे वो दिन दोबारा याद आ जायेगा.”
और तत्क्षण कमरे में नंगी सुप्रिया ने प्रवेश किया. उसकी चूत से बहता हुआ रस साफ दिखाई दे रहा था.
“मम्मी, ये सम्भालो अपने नाती. मुझे चोद चोद कर अधमरा कर दिया इन दोनों ने. पर इनके लौड़े हैं कि झुकते ही नहीं.”
उसके पीछे नितिन और निखिल ने नंगे ही प्रवेश किया.

और उसी समय उस कमरे में समर्थ भी आ गए.
“कौन सी वीडियो देख रहे हो?”
“जब आप तीनों ने मुझे पहली बार एक साथ चोदा था.”

“अच्छा।” ये कहकर समर्थ ने अपनी पैंट उतारी और सोफे पर बैठ गए.
“मुझे सुमति की याद आ रही थी. ये लंड बहुत अच्छा चूसती है.”

शीला समझ गई की अब वीडियो देखना संभव नहीं होगा. पर उसने बंद नहीं किया और आगे बढ़कर सुमति के कपडे निकालने शुरू कर दिए. समर्थ भी अब अपने ऊपर के कपड़े निकाल चुके थे. शीला उनके सामने झुकी और उनके लंड को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी. अब शीला ने अपने कपड़े उतारे और एक ओर की अलमारी से कोई १० इंच लम्बा एक नकली लंड निकला. उसने उस लंड को सुमति की चूत पर घिसना चालू कर दिया. सुमति की चूत पनिया गई और शीला ने पूरा लंड धीरे धीरे अंदर पेल दिया.

कुछ ही समय में शीला के हाथ तेजी से चल रहे थे. सुमति की चूत नदी के समान बह रही थी और उसका मुंह समर्थ के लंड पर उसी गति से चल रहा था जितनी शीला के हाथ. समर्थ ने सुमति के सिर पर हाथ फेरा और उसे रोक दिया.

“तेरी गांड मारने का बहुत मन है. पर यहाँ नहीं, चल कमरे में चलते हैं.” सुमति अपने कपड़े उठाने लगी तो शीला बोली, “अरे समय मत ख़राब करो. ये बाद में ले लेना.”

कमरा बंद करके तीनों नंगे ही शीला के शयनकक्ष में चले गए. कमरे में शीला लेट गई और सुमति को संकेत किया तो सुमति ने उलटे होकर शीला की चूत में अपना मुंह डाल दिया. अपने सामने सुमति की चूत को थोड़ा सा चाटने के पश्चात् शीला ने डिल्डो दोबारा उसकी चूत में डाल दिया और धीमी गति से उसकी चुदाई करने लगी. समर्थ ने साइड टेबल से वेसलीन निकाला और अपने लंड पर मल लिया. फिर उसने सुमति की गांड को खोलते हुए उसमे अच्छी खासी मात्रा ट्यूब से भर दी. अब जैसे ही समर्थ ने अपने लंड को सुमति की गांड पर लगाया, शीला ने पूरा का पूरा डिल्डो अंदर डाल कर पकड़ लिया और सुमति की चूत पर अपनी जीभ चलाने लगी.

समर्थ ने अपने लंड का दबाव बनाया और सुमति की गांड ने फैलकर उसका स्वागत किया. जब सुपाड़ा अंदर चला गया तो समर्थ ने दबाव बढ़ाते हुए ४ इंच लंड और अंदर डाल दिया. सुमति की चूत में फंसा डिल्डो अब तंग होने लगा था. उसने अपनी सांस रोकी हुई थी, वो जानती थी कि अब समर्थ पूरे लंड को पेलने वाला है. शीला ने सुमति का सिर पकड़कर अपनी चूत में घुसा लिया और उसी क्षण समर्थ ने एक तगड़े झटके के साथ पूरा लंड सुमति की गांड में पेल दिया. अगर शीला ने डिल्डो को पकड़ा न होता तो वो अवश्य ही बाहर निकल जाता. पर शीला के अनुभव ने इस परिस्थिति को पहले ही समझ लिया था. शीला एक हाथ से डिल्डो को दबाये हुए थी और एक से सुमति की सिर को. सुमति की गूँ गूँ की ध्वनि शीला की जांघों के बीच ही दबकर रह गई थी.

समर्थ ने अब अपने पसंदीदा कृत्य अपना ध्यान केंद्रित किया.
समर्थ: “वाह, क्या टाइट गांड है इसकी. सच में इसे चोदकर बहुत मजा आता है.”
शीला: “आप तो गांड के रसिया हो. ऐसी कोई गांड है जिसे आपको चोदने में मजा नहीं आता हो?”

समर्थ हंस पड़ा और अपने धक्कों से सुमति की गांड का कीमा बनाने में जुटा रहा. सुमति भी अब संभल गई थी और उसने शीला की चूत पर ध्यान केंद्रित किया और जो जादू उसने सुप्रिया को दिखाया था वही शीला पर भी किया. शीला अद्भुत अनुभूति से जल्द ही सुमति के मुंह में अपना रस बिखेरने लगी. समर्थ के हर धक्के के साथ सुमति की जीभ शीला की चूत के और भीतर तक चली जाती. सुमति उसे घुमाती और समर्थ के लंड बाहर निकलते हुए उसकी जीभ शीला के अंदरूनी हिस्से को चाटते हुए बाहर आती और फिर धक्के के साथ वापिस अंदर चली जाती.

शीला ने भी अब अपने हाथ के डिल्डो को सुमति की चूत में अंदर बाहर करना शुरू किया. अब सुमति के दोनों छेदों में चुदाई हो रही थी. उसकी चूत में एक अजीब सी खुजली होने लगी. गांड की खुजली तो समर्थ का लंड मिटा रहा था, पर चूत का नकली लंड उसे वो सुख नहीं दे पा रहा था. शीला को वस्तुतः ये समझ में आया. उसने समर्थ को हटने को कहा और फिर लेटने को. जब समर्थ लेट गए तो सुमति को अपनी गांड उसके लंड पर रखने के लिए शीला ने आदेश दिया. सुमति ने समर्थ के लंड पर गांड के छेद को टिकाया और पूरे लंड को अंदर ले लिया. अब शीला ने डिल्डो को दोबारा से सुमति की चूत में डाल दिया और अपने हाथों से तेज गति से चुदाई प्रारम्भ कर दी. समर्थ ने भी अपनी पूर्व गति को पाया और अब सुमति की दुगनी चुदाई होने लगी.

पर चाहे मनुष्य कितना भी हृष्ट-पुष्ट क्यों न हो, पर आयु फिर भी अपना अंकुश रखती है. समर्थ भी अब अधिक देर नहीं टिक सकते थे. पर उन्हें ये भी पता था कि झड़ना तो सुमति की गांड के अंदर ही है. यही हुआ समर्थ के लंड का उबलता हुआ लावा सुमति की फटी गांड को सींचते हुए उसे ठंडा कर रहा था. अपना पूरा माल अंदर छोड़कर जैसे ही लंड बाहर निकाला शीला ने डिल्डो को चूत से निकालकर गांड में डालकर उसे सील कर दिया. फिर उसने समर्थ के लंड को बहुत प्रेम के साथ चाटकर साफ किया और चमक उठने के बाद उसे चूम लिया.

फिर उसने सुमति की गांड से डिल्डो निकाला और अपने मुंह से उसे चाटकर साफ किया और समर्थ के रस को अपने मुंह में भर लिया. फिर वो उठी और सुमति के मुंह से मुंह लगाकर उसने आधा रस सुमति को समर्पित कर दिया. सुमति को ये प्रसाद अत्यंत ही रुचिकर लगा और शीला और वो बहुत समय तक एक दूसरे लिपटी हुई एक दूसरे को चुम्बनों से भिगोती रहीं।

अंत में सुमति ने घर जाने की अनुमति मांगी. सब अपने कपड़े लेने के लिए वीडियो कक्ष में गए. समर्थ ने जो डिस्क लगी थी उसे निकाल कर सुमति को दिया।

समर्थ: “आज तक कभी इनमें से कुछ भी बाहर नहीं गया है. मैं आज पहली बार एक अपवाद कर रहा हूँ. इसे संभाल कर रखना और किसी अन्य को बिल्कुल भी न देना. और मेरा अर्थ है किसी को भी. और जल्दी ही इसे वापिस लेकर देना.”

सुमति: “अगर मैं किसी के साथ देखना चाहूँ तो?”
समर्थ: “अपने कमरे में, अपने सामने. मुझे विश्वास है तुम मेरी अवहेलना नहीं करोगी.”
सुमति: “कभी नहीं.”

ये कहकर सुमति ने डिस्क अपने पर्स में राखी, दोनों के गले लगी और पांव छूकर अपने घर चली गई.

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पार्थ और निखिल:

निखिल और पार्थ दोनों मेमनों के सामान रूचि के पीछे चल दिए.

रूचि ने उस कक्ष के बाथरूम में जाते हुए बोली: “मुझे खुली भाषा में बात करने की आदत है. मैं नहा कर आयूंगी और तुम दोनों को भी नहाना होगा. नहाने के बाद शरीर मत पोंछना, मुझे भीगे हुए शरीर अच्छे लगते है, विशेषकर चुदाई के समय. तो अपने कपडे उतारो, यूँ गई और यूँ आई.”

पार्थ और निखिल ने अभी कपड़े निकाले ही थे कि रूचि बाथरूम से बाहर आ गई. उसका सुन्दर तराशा हुआ भीगा शरीर कमरे के उजाले में चमक रहा था. दोनों उसे आँखें फाड़े देख रहे थे. रूचि के चेहरे पर एक रहस्यमई मुस्कान थी. वो जानती थी कि वो बहुत सुन्दर है और बहुत भूखी भी.

“जाओ, मेरे सूखने के पहले वापिस आओ। “ ये कहकर वो एक लम्बे शीशे के आगे खड़े होकर अपने शरीर को देखकर मुग्ध हो रही थी. उसने अपनी चूत पर हाथ फिराया, बिलकुल चिकनी और मुलायम. दो साल पहले उसने वहां लेसर से बाल निकलवाए थे. अपनी फांकों को खोलकर उसने अंदर के गुलाबी छेद को एक ऊँगली से छुआ और उसे अपने होठों पर लेकर चखा। इतने में ही पार्थ और निखिल बाहर आ गए. दोनों के शरीर से पानी टपक रहा था.

“हम्म, बिल्कुल जैसा मुझे पसंद है. अब एक को मेरी चूत को चाटने का काम करना है. कौन करेगा?”
दोनों कुछ नहीं बोले. रूचि ने नाटकीय रूप से अपना हाथ गोल गोल घुमाया और निखिल की ओर ऊँगली करते हुए कहा: “तुम”
और फिर पार्थ की और देखकर बोली: “मैं तुम्हारे लंड का स्वाद लेना चाहूंगी.”

ये कहते हुए वो एक लम्बी लॉउन्ज कुर्सी पर पांव फैलाकर अधलेटी मुद्रा में बैठ गई. निखिल ने नीचे बैठकर उसकी चिकनी चूत का अवलोकन किया. पार्थ ने अपने लंड को रूचि के मुंह से लगाया.

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चूतों की शृंखला:

संजना का मुंह आश्चर्य से खुला हुआ था और वो कुछ बोलना तो चाहती थी, पर उसकी बोलती ही बंद हो गई थी. अब सुप्रिया मौसी ने उसे ये तो बताया था कि उसकी माँ लेस्बियन सम्बन्ध में पहले लीन हो चुकी थीं, पर आज अपनी आँखों से देखने पर भी उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था. अंततः उसे अपनी वाणी प्राप्त हो ही गई.

“मम्मी ! मौसी !” उसकी हल्की टूटती हुई पुकार ने अचानक सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित किया. सुरेखा के तो जैसे पांवों के नीचे से जमीन ही निकल गई. पर सुप्रिया की चतुर बुद्धि ने यहाँ भी स्थिति को समझ लिया.

“ओह, माई स्वीट स्वीट संजू. तुम बिल्कुल सही समय पर आयी हो.” सुप्रिया ने उठकर संजना की ओर बढ़ते हुए कहा. “जैसा कि तुम देख रही हो ये हमारा पारिवारिक भोग चल रहा है. और मुझे विश्वास है कि तुम्हारी मिठास के लिए सब आतुर होंगे. पर पहले आओ, मैं तुम्हें अपने नए सम्बन्धियों से अवगत करा दूँ.”

सुप्रिया ने सबका परिचय कराया और सबको संजना से परिचित करवाया. संजना इस बात से ज्यादा विस्मित थी कि सुरेखा ने अपने आप को छुपाने या उसे कुछ समझाने की कोई चेष्टा नहीं की.

“संजना को मैंने अभी कुछ ही दिन पहले चखा था. पहली बार.” ये कहते हुए सुप्रिया ने संजना के वस्त्र निकालने का क्रम प्रारम्भ किया. “सच कहूँ, तो मुझे सुरेखा की याद दिला दी मेरी इस गुड़िया ने. मैंने इससे ये वादा लिया था कि ये किसी भी आदमी से मेरी अनुमति के बिना संसर्ग नहीं करेगी.” अब तक संजना के ऊपर के वस्त्र निकल चुके थे. सुप्रिया ने उसके सामने बैठकर उसके निचले वस्त्र निकालने का उपक्रम शुरू किया. “पर मैंने ये वादा नहीं लिया था कि वो किसी स्त्री से संसर्ग नहीं करेगी.”

वस्त्रहीन संजना के हाथ पकड़कर उसने उसे सुरेखा के आगे खड़ा कर दिया.
“मैंने मौसी के रूप में जो मिठास चखी है, उसकी माँ होने के कारण क्यों न तुम भी उसका रसपान करो.”

ये कहकर उसने संजना को वहीँ छोड़ दिया. और अन्य तीनों की ओर बढ़ती हुई बोली, “हम अपना खेल चालू रखते है.”

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पार्थ और निखिल:

रूचि बड़े चाव से पार्थ का लंड चाट रही थी.
रूचि: “मुझे लम्बे मोटे लौड़े बहुत पसंद हैं, पर उनका उपलभ्ध होना एक समस्या है. और आज तो मेरे हाथ में ऐसे दो दो अस्त्र हैं. ऑफिस में अधिक कुछ नहीं कर पाएंगे, पर मैं तुम्हें अपने घर आमंत्रित करना चाहूंगी.”
पार्थ: “अब आप हमारी पार्टनर हो, आपकी ख़ुशी और संतुष्टि हमारी प्राथमिकता रहेगी. आप अगर एक दिन पहले बता दें तो हम दोनों उपस्थित हो जायेंगे. परन्तु अगर क्लब का कोई कार्य हुआ तो हमें क्षमा करियेगा.”
“हम्म्म, क्लब में तो अब मेरा भी निवेश है, मैं क्योंकर अपना नुकसान करुँगी. क्या तुम दो दिन बाद मेरे बंगले पर आ सकते हो.”
“हाँ, ये संभव है. पर आज भी आपको अपने कौशल का प्रमाण देना चाहते हैं. अपने एक घंटा हमें दिया है, चलिए इसका सदुपयोग करें.”

निखिल अब चूत के पाट खोलकर उसमे अपनी जीभ से खुदाई कर रहा था. उसे इस उम्र की स्त्रियों को क्या अच्छा लगता है, भली भांति पता था. आखिर उसकी पहली शिक्षिका भी रूचि की आयु की ही थी. और उसके दिए हुए पाठ्यक्रम में चूत की चुसाई को अतिरिक्त महत्त्व दिया गया था. निखिल ने रूचि की चूत और उसके आसपास के स्थान को अपने हाथ, होंठ, उँगलियों और दाँतों से हर संभव प्रकार से उत्तेजित किया हुआ था. रूचि अपनी कमर और गांड उछाल कर निखिल के इस आक्रमण को प्रोत्साहित कर रही थी.

रूचि के भग्नासे पर निखिल की थिरकती उँगलियाँ एक लहर के समान चल रही थी. उँगलियाँ चूत के अंदर जाकर स्थान बनातीं और उस रिक्त स्थान को निखिल की जीभ शीघ्र ही भर देती. सांप की जीभ के समान चंचल निखिल की जीभ रूचि के रोम रोम को प्रफुल्लित कर रही थी. उसका रस बह कर उनके गीले शरीरों को और भी भीगा रहा था. पर ये नहीं था कि रूचि केवल अपने सुख में लीन थी. उसने भी पार्थ के लंड पर इतना प्रेम बरसाया हुआ था कि वो अब लोहे के समान तन चुका था. जैसे ही रूचि ने हल्की चीख के साथ अपना पानी निखिल के मुंह में छोड़ा, पार्थ ने अपने लंड को रूचि के मुंह से निकाल लिया.

“रूचि मैडम, अब हमारी परीक्षा का अगला पेपर लिखना है. अगर आपको आपत्ति न हो तो मैं आपकी इस मखमली चूत को चोदना चाहता हूँ. और अगर आप निखिल को अपने इस सुन्दर और सेक्सी मुंह से कुछ देर चाटकर उसे भी मेरी तरह सुख देंगी तो अच्छा रहेगा.”

“ओह, श्योर. मैं भी अब चुदाई के लिए रेडी हूँ. पर हम यहाँ नहीं, बिस्तर पर खेलेंगे.”

रूचि उस कुर्सी से इठलाती हुई उठी और बिस्तर पर जाकर लेट गई.

पार्थ और निखिल उसके ये नखरे देखकर मुस्कुरा दिए और एक सहमति में संकेत किया.

पार्थ: “रूचि मैडम, आपको कैसी चुदाई पसंद है. हम आपकी वैसे ही सेवा करेंगे.” पार्थ जानता था कि रूचि जैसी आत्मविश्वासी महिला ये कभी नहीं स्वीकारेगी कि उसे कोई हरा सकता है.

रूचि: “जितना तुम दोनों के लौंड़ों में दम है, उतनी ताकत से चोदकर दिखाओ मुझे.” विनाश काले विपरीत बुद्धि.
पार्थ ने उसे KBC की तरह एक अवसर और दिया.
“मैडम आपको तकलीफ न हो जाये. आप एक बार और विचार कर लें.”
ये सुनकर रूचि के तन बदन में आग लग गई कि कल के छोकरे मुझे डराने चले हैं.
“अबे सुन, तेरे जैसे लंड मैं तब से ले रही हूँ जब से मैं १९ साल की हुई थी. हाँ तुम्हारे उन सबकी तुलना में कुछ अधिक बड़े हैं, पर मैं भी कोई कच्ची कली नहीं हूँ. दिखाओ मुझे अपनी सबसे जोरदार चुदाई का नमूना. मैं भी तो जानूँ कि मैंने पैसा नाली में तो नहीं फेंके.”

अब पार्थ को क्रोध आ गया, पर उसने अपने आपको संयत किया और एक बड़ी ही सधे स्वर में बोला, “रूचि मैडम, अब आप जब ऐसे चैलेंज दे रही हैं, तो हम भी चाहेंगे कि ये चुदाई हम अपने तरीके से करें. हम जैसे चाहेंगे आपको मानना होगा. नहीं तो इस चुनौती का कोई अर्थ नहीं.”

रूचि अब अपने घमंड के घोड़े से चाहकर भी नहीं उतर सकती थी. हालाँकि उसे लगा कि वस्तुतः उसने गलत लोगों से पन्गा ले लिया है, पर पीछे होना उसकी शान के विपरीत था.

“मुझे स्वीकार है, अब समय मत बर्बाद करो, देखें तुम किस खेत की मूली हो.”

पार्थ और निखिल ने एक दूसरे को देखा और थम्ब्स अप किया कि मुर्गी ने दाना चुग लिया.

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संजना का मात्र प्रेम:

सुरेखा ने अपना हाथ बढाकर संजना को अपने पास खींचकर बैठा लिया.

“तुम मौसी के घर इस समय कैसे आ गयीं.”
“वो मौसी ने मुझे ये सब सिखाया है अभी कुछ दिनों में. मेरा मन कर रहा था तो मैंने सोचा कि मौसी अकेली होंगी तो हम दोनों….”
“अरे मेरी प्यारी गुड़िया रानी. तुझे पता है, हम दोनों कई वर्ष तक एक दूसरे के साथ रोज संसर्ग करते थे. जब नानी ने हमें अलग कमरा देने के लिए कहा, तब भी हम साथ ही रहीं. मौसी शादी के बाद अलग चली गयीं और हमारा ये सम्बन्ध भी समाप्त हो गया. मौसी के तलाक के बाद उन्होंने मुझे फिर साथ होने का निमंत्रण दिया था, परन्तु तब तक मेरी भी शादी हो गई थी. तो सब कुछ वहीँ समाप्त हो गया. पर कुछ दिन पहले, निखिल की शादी तय होने के लगभग एक सप्ताह पूर्व हम फिर से साथ आ गए.”
“और पापा, उनका क्या?”

सुरेखा ने अन्य लोगों की ओर संकेत किया और कहा कि ये बात हम घर पर करेंगे.
“पर अभी मैं भी तुम्हारा अमृत चखना चाहती हूँ.” ये कहते हुए सुरेखा ने अपने होंठ संजना के होठों से मिला दिए. कुछ ही क्षणों में माँ बेटी एक दूसरे में विलीन हो गए.

सुरेखा ने संजना को सोफे पर बैठने के लिया कहा और फिर उसके पांव फैलाकर अपना चेहरा उसकी कमसिन बुर में छुपा लिया.

“उफ्फ्फ ये सुगंध.” सुरेखा ने मन में सोचा. फिर उसने अपनी जीभ को संजना की योनि पर फिराया और वहां पर कामोत्तेजना से उत्पन्न नमी का चटकारा लिया. “उफ्फ्फ ये स्वाद. मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो मुझे इस कच्ची कली का रस प्राप्त हुआ है.” इस विचार के साथ उसने अपने पूरे मातृप्रेम के साथ उस कमसिन कुंवारी बुर पर अपनी जीभ का प्रहार तीव्र कर दिया. अपने हाथों से उस अमृतकलश के पट खोले और अपनी लपलपाती हुई जीभ से उसके अंदर प्रवेश किया. अंदर उस अमृतसुधा में उसकी जीभ एक एक किनारे को छूते हुए अपने लिए जीवनसुधा एकत्रित कर रही थी.

संजना जो इसके पहले सुप्रिया के संसर्ग से इस प्रणाली से अनिभिज्ञ तो न थी पर उसे अपनी माँ के प्रेम की थाह अब अनुभव हो रही थी. उसने अपनी माँ के बालों में प्यार से हाथ फिराने के साथ अपनी पतली बाली कमर को मटकाना शुरू किया. उसकी इस प्रतिक्रिया से उसकी जांघों के बीच छुपी उसकी माँ मन ही मन मुस्कुरा उठी. अब उसकी बेटी पूर्ण रूप से यौवन में पदापर्ण कर चुकी थी. और वो समय दूर नहीं था जब वो अपना कौमार्य किसी पुरुष को सौंप देगी. और तब इस झरने के पानी का स्वाद और सुगंध दोनों बदल जायेंगे. अगर उसका बस चलता और उसमे ऐसी शक्ति होती तो वो इस जल को एक ऐसी शीशी में बंद कर लेती जिसका वो जीवन भर स्वाद लेती.

संजना एक नयी नवेली खिलाड़िन थी. और उसे इस प्यार की चूमा चाटी ने स्वतः ही अपने चरम पर पहुंचा दिया. और उसने एक रुदन के साथ अपनी माँ की मुंह में अमृतवर्षा कर दी. वात्स्ल्य से भरपूर उसकी माँ ने एक बूँद का भी तिरिस्कार नहीं किया. जब संजना का झड़ना थम गया तो तब उसने अपना खिला और भीगा चेहरा अपनी बेटी की चूत से हटाया.

“सच में संजू. तेरा स्वाद अनुपम है. आज तू मेरे ही साथ सोना. हमें कई वर्षों की दूरी को समाप्त करना है.”

सुप्रिया ने ये सुना तो बहुत प्रसन्न हुई. उसने इस कली को फूल बनाने में एक अहम् योगदान जो किया था. कुछ देर में ही माँ बेटी ने सबसे विदा ली. अन्य सभी स्त्रियां भी अब अपने घर जाने को व्याकुल थीं. तो एक दूसरे को चूमकर सब अपने गंतव्य की ओर निकल गए.

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पार्थ और निखिल:

रूचि अपने आपको मानसिक रूप से तैयार कर रही थी. निखिल अपने लटकते हुए लंड को लेकर रूचि के मुंह के सामने आ गया और रूचि को अपना मुंह खोलने को कहा. रूचि ने अपने मुंह को खोलकर अपनी जीभ से निखिल के टोपे पर चमकते हुए मदन रस की बूंदों को चाट लिया और अपना सिर उठाकर निखिल की ओर देखा और मुस्कुराई. निखिल ने भी उसकी इस मुस्कराहट का उत्तर दिया. अब रूचि ने अपने मुंह में लंड को लिया और चूसने लगी. लंड की चौड़ाई अधिक होने के कारण उसे अपने मुंह को सामान्य से अधिक खोलना पड़ रहा था.

उसकी चूत पर भी एक भारी भरकम लंड दस्तक दे रहा था. वो लंड इस समय चूत की लम्बाई पर अपने टोपे से घिसाई कर रहा था. और उस चूत ने अपने ऊपर आने वाले संकट को समझते हुए और अपने लिए रास्ता सरल करते हुए ढेरों पानी को छिड़क दिया था. अचानक पार्थ के चेहरे पर एक पाशविक भाव आया, अगर रूचि इस समय उसे देखती तो संभवतः इस क्रीड़ा को तुरंत रोक देती. पर निखिल ने उसके मन को भटकाया हुआ था, और यही अपनी शक्ति से आश्वस्त रूचि के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ.

“रूचि मैडम!” पार्थ ने पुकारा. रूचि ने अपने मुंह में लंड रखते हुए उसकी और वासनामय आँखों से देखा. पर ये पुकार रूचि के लिए नहीं थी, निखिल के लिए थी. रूचि की ऑंखें एक क्षण के लिए पार्थ से मिलीं और उसकी शरीर भय से सिहर उठा. पर अब बहुत देर हो चुकी थी.

निखिल ने अचानक ही उसका सिर पकड़ा और अपने पूरे लंड को उसके मुंह में धकेल दिया. रूचि की ऑंखें फ़ैल गयीं और आंसुओं से लथपथ होने लगीं. पर उसके अहंकार पर असली आक्रमण पार्थ ने किया जब उसने एक ही लम्बे और शक्तिशाली धक्के में अपना लगभग तीन चौथाई लौड़ा उसकी चूत में गाढ़ दिया. रूचि छटपटाने लगी. उसके आँसू थम नहीं रहे थे. पर इन दोनों शक्तिशाली युवा चुदाई मशीनों के समक्ष उसका प्रतिरोध नगण्य था. पार्थ ने अपने लंड को लगभग पूरा बाहर खींचा और अगले ही धक्के में अपने पूरे मूसल को रूचि की ओखली में जड़ दिया. निखिल ने अपने लंड को बाहर निकाला जिससे रूचि का दम न घुट जाये. रूचि के आँसू अविरल बह रहे थे. पर अब वो सांस ले सकती थी. उसने दया भरी दृष्टि से पार्थ की ओर देखा पर उसे समझ आ गया कि उन आँखों में दया नहीं एक पैशाचिक चमक थी.

उसने अपने आप को अब भाग्य के भरोसे छोड़ दिया.

पार्थ ने अपनी निर्दयता का परिचय देते हुए रूचि को अपने लंड की पूरी लम्बाई से ताबड़तोड़ गति से चोदना प्रारम्भ किया. रूचि निखिल के लंड को इन झटकों के कारण सही प्रकार से चूस भी नहीं पा रही थी. निखिल ने पार्थ को थोड़ी सहजता के लिए कहा तो पार्थ ने अपनी गति कुछ कम कर दी, केवल इतनी कि रूचि निखिल के लंड का भी आनंद ले पाए.

इस घनघोर चुदाई ने रूचि के पोर पोर को खोल दिया था. उसकी चूत अपनी खाल बचने के लिए पानी के धार छोड़ रही थी. रूचि ने जीवन में ऐसी चुदाई कभी नहीं करवाई थी. पर ये भी था कि उसके साथी उससे डरते भी थे और इसीलिए उसे बहुत सहजता से ही चोदते थे. पर आज रूचि ने इन्हे ललकार कर उस सुख को पाया था जो उसे आज तक प्राप्त नहीं हुआ था. उसकी चूत लगातार पानी छोड़ रही थी. इस कारण अब पार्थ का मूसल भी अब बड़ी सरलता से उसमे परेड कर रहा था. जब पार्थ को लगा कि उसका पानी छूट न जाये तो उसने अपने लंड को बाहर खींचा और निखिल को बागडोर सँभालने का न्योता दिया.

निखिल ने अपने लंड को रूचि के मुंह से निकले और रूचि की खुली चूत के गीलेपन को देखकर एक तौलिये से उसकी चूत को पोछकर कुछ सुखा दिया. उसके बाद उसने पार्थ के ही समान एक लम्बे झटके से अपने लंड को अंदर पेल दिया. अब चूँकि रूचि की चूत में पार्थ का आवागमन हो चूका था तो निखिल के पूरे लंड को भी वो एक ही धक्के में डकार गई. पार्थ ने रूचि को उसके रस से सना अपना लंड चूसने के लिए दिया जिसे रूचि ने बड़ी अधीरता से अपने मुंह में ले लिया। और इस बार निखिल ने अपने जोरदार धक्कों से रूचि की ईमारत हिला दी. पर उसने गति इतनी ही रखी कि पार्थ अपने लंड को रूचि से चुसवा पाए.

पर पार्थ ने ऐसा कोई दया का कार्य नहीं किया वो रूचि के मुंह को चूत समझ कर चोदने लगा. पर अब रूचि भी इस खेल का आनंद उठा रही थी. आज उसने अनुभव किया था कि जिनसे वो अब तक चुदवाती आयी थी वो पहली कक्षा के विद्यार्धी थे और जो आज उसे चोद रहे हैं वो उनसे बहुत आगे. उसके मन में क्लब के अन्य रोमियो से भी चुदने की इच्छा बल पकड़ने लगी. इन सबके बीच उसकी चूत का झड़ना अबाधित था. न जाने कितने वर्षों की प्यास थी जो उसकी चूत के आँसू मिटा रहे थे. पर अंत में उसके शरीर ने हाथ डाल ही दिए. एक फौहारे के साथ उसकी चूत ने एक लम्बी पिचकारी सी मारी और वो ठंडी होकर ढीली पड़ गई.

पार्थ और निखिल का भी अब समय पूरा हो चुका था, पर वो रूचि को अपने प्यार के रस से नहलाना चाहते थे जिससे उसे ये दिन सदैव याद रहे. निखिल अपने लंड को चूत ने निकालकर रूचि के चेहरे के पास आ गया और अपने हाथों से मुठ मारने लगा. उधर पार्थ ने मुंह को तब तक चोदा जब तक कि पक्का न हो गया कि वो झड़ने वाला है. इसके बाद उसने भी अपने लंड को निकाल लिया. दोनों मित्रों ने एक साथ अपने लौंड़ों से रूचि के चेहरे पर गाढ़ा सफ़ेद पानी सींचना शुरू किया. जब चेहरा भर गया तो उसके स्तनों पर भी छिड़क दिया. अंत में पार्थ ने अपने लंड को रूचि के मुंह में डालकर साफ करने के लिए कहा. उसके बाद निखिल ने भी अपने लंड की सफाई करवाई.

इसके बाद दोनों मित्र खड़े होकर अपने संपन्न कार्य का आकलन करने लगे. उनके वीर्य से भीगी सुन्दर रूचि अब उन्हें और भी रुचिकर लग रही थी. इस समय वो एक अति संपन्न और बड़ी व्यवसाई न होकर एक सस्ती वेश्या प्रतीत हो रही थी. रूचि ने कुछ समय बाद अपनी आंख खोलकर उन दोनों को उसे इस स्थिति में देखते हुए पाया.

“क्या देख रहे हो? ऐसा माल पहले नहीं भोगा होगा.”

पार्थ और निखिल ने उत्तर देना आवश्यक नहीं समझा, क्योंकि ये धंधे की बात थी पर हामी में सर हिला दिया.

“तुम चुदाई बहुत अच्छी करते हो. मेरा घर के लिए निमंत्रण अभी भी है. और इस बार... “ रूचि ने अपनी ऊँगली से एक थक्के वीर्य को लिया और अपनी गांड में उस ऊँगली से डाला. ‘’... इस छेद का भी स्वाद दूंगी.”

अब ऐसा प्रलोभन हो और कोई न करे ऐसा हो ही नहीं सकता.

“चलो अब नहा कर साफ हो जाओ. अपनी एक घंटे की छुट्टी समाप्ति पर है. तीनों साथ ही नहा लेते हैं.”

तीनों जल्दी से नहाये और कमरे से बाहर निकले. रूचि ने रिमोट से कमरे को लॉक किया. फिर इंटरकॉम उठाया.

“आधे घंटे और रुकना फिर अगले अपॉइंटमेंट वाले को भेजना. और घर जाने के पहले मेरे कमरे की सफाई कर देना और कपड़े बदलकर जाते हुए लॉन्ड्री में देती जाना.”

फिर उसने पार्थ को देखा, “ मुझे तुम्हारे साथ बिज़नेस करना रास आएगा. पहली बार मैं कोई बिज़नेस आनंद के लिए करूंगी.”

पार्थ: “रूचि मैडम. आप क्यों नहीं उस अभिनेत्री के शो को देखने आतीं? और कुछ बातें और....”
रूचि: “सोचकर बताती हूँ. और क्या बात है?”

पार्थ: “आप क्यों नहीं हमारी चयन समिति में शामिल हो जातीं? पार्टनर होने के कारण हर दूसरे नए रोमियो का इंटरव्यू आपको लेना होगा। और इंटरव्यू का तात्पर्य होता है प्रार्थी की चुदाई की तकनीक और क्षमता का आकलन.”

रूचि: “ओह, तो तुम मुझे रिश्वत दे रहे हो. मैं इस बारे में भी सोचकर ही बताऊंगी. पर प्रस्ताव अच्छा है. और क्या बात है.”

पार्थ: “कल क्लब में एक विशेष आयोजन है, ११ बजे से. हमें शुशी होगी अगर आप आ सकें तो. एक तो आप क्लब की व्यवस्था देख लेंगी. और कल सभी रोमियो उपस्थित होंगे और आप उनकी क्षमता को देख सकती है. इससे आपको अपने लिए सेवादार चुनने में मदद होगी.”

रूचि: “हम्म्म तब तो कल छुट्टी ही लेनी होगी. मैं प्रयास करुँगी आने का. अरे प्रयास नहीं, मैं अवश्य आऊंगी. पर किसी से अभी मिलूंगी नहीं. वो सब बाद में. क्लब की व्यवस्था इत्यादि भी मैं किसी और दिन देखूँगी. पर अब प्लीज मुझे क्षमा करो, मुझे अब दूसरे कार्य भी संपन्न करने है. तुम दोनों का धन्यवाद, मुझे इतना सुख देने के लिए.”

पार्थ ने अपना ब्रीफ़केस खोलकर चेक किया और देखा कि चैक ठीक से रखा है. तभी रूचि ने रिमोट उठाया और पार्थ को अपने पीछे दरवाजा खुलने की आहत सुनाई दी.

“थैंक यू, रूचि मैडम.” कहते हुए पार्थ और निखिल वहां से निकल गए.

**********

शोनाली का घर:

शाम हो चुकी थी. सारे पंछी लौट कर घर पहुँच चुके थे.

बैठक में बैठे सब भोजन के पहले की ड्रिंक ले रहे थे.

पार्थ ने सबको नयी पार्टनर और फाइनेंस के बारे में बताया. जॉय को बहुत गर्व हुआ कि पार्थ ने रूचि जैसी शक्तिशाली स्त्री को अपना पार्टनर बनाया है. इसके बाद उनके क्लब की सफलता निश्चित थी.

जॉय ने जैसन के साथ हुई नयी संधि के बारे में बताया और शोनाली से पूछा कि वो कब जाना चाहेगी. शोनाली ने उसे सोचकर बताने के लिया कहा.

सुमति ने शादी की तैयारी से समर्थ और शीला के संतुष्ट होने का शुभ समाचार दिया. सब इस बात से बहुत प्रसन्न हो गए.

शोनाली ने फिर सागरिका और पारुल के साथ सुप्रिया के घर का प्रकरण बताया और सुरेखा और उसकी बेटी के अद्वितीय सौंदर्य की भरपूर प्रशंसा की. ये सुनकर सबके मन ललचा गए और उनके मुंह में पानी आ गया.

फिर सबने भोजन किया और कुछ समय के लिए टीवी पर कुछ कार्यक्रम देखे.

“हम्म्म्म, तो सभी लोग किसी न किसी खेल में व्यस्त रहे आज, मुझे छोड़कर.” जॉय ने हँसते हुए कहा.

“ओह, पापा ! अगर दिन सूना गया है तो क्या हुआ. हम आपकी रात रंगीन करेंगे.” सागरिका और पारुल ने एक स्वर में कहा.

दोनों ने उठकर जॉय का हाथ लिया और लगभग घसीटते हुए उसे अपने कमरे में ले जाने लगीं. अचानक पारुल ने पीछे मुड़कर देखा.

“बुआ, आप भी आ ही जाओ. आपको डबल प्रसाद खिलाएंगी हम दोनों बहनें.”

सुमति तपाक से उठी और अपने होंठों पर जीभ फिरते हुए उन तीनों के पीछे चल पड़ी.

“मामी, अब आप किसके बिस्तर पर चुदना चाहोगी? अपने या मेरे?”

शोनाली बिना कुछ बोले पार्थ का हाथ पकड़कर अपने कमरे में चली गई.

**********

बॉलीवुड अभिनेत्री का शयनकक्ष:

वो सुन्दर अभिनेत्री इस समय एक मोटे लंड पर उठक बैठक कर रही थी. लंड की पूरी चौड़ी के कारण उसकी चूत पूरी फैली हुई थी और इसमें उसे बहुत आनंद आ रहा था.
“सच में हरजीत, तेरा अपना पारिश्रमिक लेने का ये तरीका मुझे बेहद पसंद है. मैं तो चाहूंगी कि तुम ऐसे ही मेरे लिए शो का आयोजन करते रहो.”
“मैडम, जब तक आप अपनी इस चूत का लालच मेरे लिए रखेंगी, तब तक मैं आपको काम की कमी नहीं होने दूंगा.”
ये वही हरजीत था जो विशेष शो इन दोनों के लिए आयोजित करता था और इस उद्योग के गुप्त नियमों के आधार पर उसे एक रात का सहवास प्राप्त था. पर आज अभिनेत्री के मन में कुछ और भी इच्छा थी. उसने सोफे पर नंगे बैठे अपने पति की ओर देखा तो उसका लंड इस समय पूरे जोश में था. अभिनेत्री का मन उसके प्रति प्रेम से भावुक हो उठा.
“जानू , क्यों नहीं तुम अपने लंड को मेरी गांड में डाल लेते. मुझे विश्वास है कि हरजीत को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी.”
हरजीत: “यस, बॉस. आई एम ओके विथ देट”
विवाह से पहले अभिनेत्री ने बहुतेरे लोगों से गांड मरवाई थी. आखिर इस उद्योग में सबका गांड मारना ही सबका उद्देश्य होता है. पर शादी के बाद उसने अपनी गांड केवल अपने पति के लंड के लिए सुरक्षित कर दी थी. हालाँकि इसके कारण उसके हाथ से कुछ फ़िल्में छूट गयीं, पर उसने अपने वचन को नहीं तोड़ा.
प्रौढ़ अभिनेता ने साइड टेबल से वेसलीन निकली और अपनी सुन्दर पत्नी के पीछे आ गया. और कुछ ही समय में वो अतिसुन्दर फिल्मों में चरित्रवान दिखने वाली अभिनेत्री दो लौंड़ों से चुद रही थी. और आने वाले अपने गैंग-बैंग की कल्पना कर रही थी.

क्रमशः
boss prkin sirf do din pahle ye kahani mere samne aai aur yaha tak padh chuka hu.
Aap gazab ke storyteller ho bhai.
Hats off to your work.
 

prkin

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boss prkin sirf do din pahle ye kahani mere samne aai aur yaha tak padh chuka hu.
Aap gazab ke storyteller ho bhai.
Hats off to your work.
main apka dhanyvad deta hoon ki apne ye kaha.
kahani age badhegi aur apko anand degi.
 
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prkin

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कुछ ही दिनों में (दिशा की कहानी के पहले पड़ाव के आने के बाद), ये कहानी पुनः आरम्भ होगी।

परन्तु इस बार कहानी किसी भी एक परिवार के आसपास न घूमकर, एक उन्मुक्त ढंग से चलेगी।
इसीलिए अब अध्याय भी एक निरंतर शृंखला में चलेंगे।
इस विराम के पश्चात पहले कुछ अध्याय, पात्रों के वर्तमान में चल रहे दृष्टांतों पर आधारित रहेगी।
इस प्रकार से आप सभी पात्रों से पुनः परिचित हो पाएंगे।
पिछली बीती हुई कहानी से भी आप फिर से परिचित हो पाएंगे।

एक कल्पना बन चुकी है, जिसपर अब लिखना होगा।

परन्तु कुछ और प्रतीक्षा करनी होगी।

मेरी इच्छा है कि इस वर्ष ही दोनों कहानियाँ एक पड़ाव तक पहुँच सकें।
उसके बाद आगे की सोचेंगे।

अगर आपकी कोई इच्छा हो तो ये समय उसे बताने के लिए श्रेष्ठ है.
विशेषकर उन आरम्भिक अध्यायों के बारे में जहां से कहानी पात्रों से पुनः परिचित करवाने वाली है.

आप मुझे इनबॉक्स में भी लिख सकते हैं.
 

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कैसे कैसे परिवार
पहला घर: अदिति और अजीत बजाज.
अध्याय १.३
भाग ३


************

गोकुल: “चिंता न कर मैं जल्दी ही लौट आऊंगा.”

दोनों एक दूसरे की बाँहों में खोये हुए कुछ देर में सो गए.

अब आगे..

एक नया दिन



अगला दिन सबके लिए एक नयी तरंग लाया था. शालिनी की गांड की खुजली मिटी या बढ़ी ये कहना अभी संभव नहीं था. परन्तु ये निश्चित था कि गौरव को उसकी गांड की यात्रा के अब अनगिनत अवसर मिलने थे. गौरव शालिनी के कमरे से बाहर आया तो सामने उसे अनन्या अपने कमरे में जाती हुई दिखी. अनन्या भी उसे देखकर ठहर गई.

दोनों भाई बहन एक दूसरे को देखते रहे फिर लगभग एक ही साथ पूछ पड़े, “कैसी रही रात?

गौतम: “अकल्पनीय, दादी में आज भी वही मादकता और भूख है जो उनकी जवानी में रही होगी. हालाँकि कल उन्होंने कुछ कोमल चुदाई की इच्छा की थी, पर मुझे लगता है कि आगे से ऐसा कम ही होगा. तुम्हारा कैसा रहा?”

अनन्या: “मॉम तो सो गयी थीं जल्दी ही, ये दवाइयाँ सच में उन्हें बहुत सुस्त बना रही हैं. पापा उन्हें कल डॉक्टर के पास ले जायेंगे. कह तो रही हैं कि अब वे अंदर से ठीक अनुभव कर रही हैं और आशा कर रही हैं कि डॉक्टर उन्हें चुदाई की आज्ञा दे देंगे. वैसे कल उन्होंने और पापा ने मुझे चूत चाटना भी सिखाया. और मुझे अच्छा भी लगा. मुझे लगता है कि ये भी अब हमारे सामान्य जीवन का अंग बन जायेगा. फिर पापा ने मुझे फिर उतने ही प्यार से चोदा। मेरा मन तो नहीं भरा पर ये समझना होगा कि वे मुझे धीरे धीरे आगे ले जाना चाहते हैं. अब मैं तुम्हारे जितनी अनुभवी तो हूँ नहीं.”

गौतम: “तुम अधिक भाग्यशाली हो जो कि हर गुर अपनों से ही सीखोगी। मुझे जिन्होंने सिखाया है, उसमे केवल वासना और व्यभिचार था. प्रेम का एक अंश भी नहीं था.”

अनन्या: “ये सच है. चलाओ नहा धोकर मिलते हैं.”

उधर अजीत और अदिति भी तैयार होकर बैठक में पहुँचते हैं. अदिति चाय बनती है और अजीत पेपर पढ़ते हुए टीवी चलकर अदिति के साथ चाय पीता है.

गोकुल का सामान लगा हुआ था. उसकी नौ बजे की बस थी और उसे जल्दी ही निकलना था. गोकुल और राधा तड़के सुबह ही उठकर एक बार और चुदाई कर चुके थे. गोकुल और राधा बंगले में गए और गोकुल को अजीत ने बुलाकर एक लिफाफा दिया.

अजीत: “इसमें मैंने दस हजार रूपये रखे हैं. अगर तुम्हें रहने का प्रबंध ठीक न लगे तो अपने मन का प्रबंध कर लेना. हालाँकि, मुझे नहीं लगता कि इसकी आवश्यकता पड़ेगी. ये पूरा तुम्हारा है, खर्चो या बचाओ, मुझे लौटना मत. अगर उन्हें तुम्हारा काम पसंद आया तो सम्भव है कि आगे भी बुलाएँ और इससे तुम्हारी कमाई बढ़ेगी. वो जो देंगे, यहाँ के वेतन के अतिरिक्त होगा. अब जाओ और अच्छे से रहना.”

गोकुल ने अजीत और अदिति के पाँव चुकार आशीर्वाद लिया और फिर राधा के साथ बाहर चला गया.

अजीत: “रुको दो मिनट, मैं गौतम को कहता हूँ, तुम्हें छोड़ आएगा.” ये कहकर अजीत ने गौतम को फोन लगाया.

गोकुल: “इसकी कोई आवश्यकता नहीं, बाबूजी.”
अजीत: “कोई बात नहीं. बस दो मिनट रुको, गौतम आ ही गया.”
गौतम आया और कार की चाभी लेकर राधा और गोकुल के साथ चला गया. आधे घंटे में वो राधा के साथ लौट आया. अदिति ने राधा के चेहरे पर आंसुओं की दाग देखे तो उसे पास बुलाकर अपने गले से लगा लिया.

“चिंता न कर, इनके अच्छे मित्र हैं, गोकुल को अपने जैसे ही रखेंगे. और तेरा ध्यान हम सब रखेंगे. १० ही तो दिन हैं, यूँ निकल जायेंगे. और जैसा माँ जी ने कहा है, तुझे अकेले नहीं रहना है, उनके साथ ही रहना है. समझी? अब दुखी मत हो और मुंह धोकर खुश हो जा कि गोकुल को इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए चुना गया है.”

राधा बाथरूम में गयी और फिर बाहर निकलकर किचन में चली गयी.

अदिति ने उसे देखा तो बोल पड़ी, “यहाँ क्या करने आयी है. माँ जी तेरी राह देख रही होंगी.”

राधा के मन में तितलियाँ उड़ने लगीं. अब उसे पता तो था ही कल रात क्या हुआ था, सो वो उत्तेजित मन और पैरों से शालिनी के कमरे में चली गई. अब चूँकि घर में पूर्ण उन्मुक्त वातावरण बन ही चुका था तो शालिनी ने कोई कपड़ा नहीं डाला था और वो भी राधा की ही प्रतीक्षा कर रही थी. राधा के ध्यान के बिना भी उसे उपयुक्त प्रेम मिल रहा था, पर आज ये राधा को उस राह पर ले जाने के लिए आवश्यक था जिससे उसका लौटना असम्भव हो.

“बड़ी देर कर दी आने में आज, क्या कर रही थी?”
“माँ जी, इन्हें बस अड्डे तक छोड़ने गई थी. इसीलिए.”
“ये अच्छा किया. कुछ सुबह भी किया गोकुल के साथ या बेचारे को यूँ ही सूखा भेज दिया?”
राधा शर्मा गई.
“एक बाद चुदाई करके गए हैं.”
“ये ठीक किया, अब उसका तो उपवास आरम्भ हो गया. पर तेरी दावत होने वाली है हर रात।”
राधा फिर से शर्मायी पर उसका मन ख़ुशी से उछलने लगा.”

शालिनी ने अपने पांव फैलाये और उसे अपनी चूत दिखाकर बोली, “बड़ी देर से ये तेरी ही राह देख रही है. अब देर न कर, फिर मुझे भी नीचे जाना है.”

राधा ने शालिनी के पांवों के बीच अपना स्थान लिया और उसकी चूत में अपना मुंह डालकर चाटने में व्यस्त हो गयी.

“आज तेरे लिए मैंने अपनी गांड में कुछ बचाकर रखा है. उसका ही स्वाद ले ले.”

राधा जानती थी कि वो गौतम के रस के बारे में कह रही हैं. पर उसने अनिभिज्ञता दर्शाई और अपना मुंह शालिनी की गांड में डालकर चूसने लगी. गौतम के वीर्य का पान करके उसे एक विशिष्ट उत्तेजना हुई. गोकुल ने कभी उसकी गांड को छुआ भी नहीं था. पर उसे शालिनी की गांड में से निकले रस का स्वाद कुछ ऐसा भय कि उसने तय किया कि वो अपनी गांड में से भी इसका स्वाद लेगी.

“कैसा लग रहा है ये नया स्वाद?” शालिनी ने छेड़ते हुए पूछा.
“बहुत अच्छा लग रहा है माँ जी. क्या है ये?”
“मेरे पोते का रस. कल रात में गौतम ने मेरी गांड मारी थी और तेरे लिए मैंने उसका रस संभलकर रखा था. कैसा लगा?”
राधा कुछ नहीं बोली.
“मैं सोच रही थी कि तुझे भी ये रस पिलाऊँ, पर इस बार तेरी गांड से निकालकर। और ये तो कुछ बासी सा है, जब ताज़ा पीयेगी तो इसकी दीवानी हो जाएगी.” शालिनी बोलती रही.

“माँ जी, क्या आपने भी ये पिया है कभी? “
“बिलकुल, जब अजीत मेरी गांड मारता था तो मैं अपनी गांड से निकाल कर पीती थी. कुछ कठिनाई होती है, पर हो जाता है. अब जब तू करेगी तब जानेगी.”

राधा ने शालिनी की गांड को पूरा साफ कर दिया तो शालिनी ने उसे हटने को कहा.
“बाकी आज रात में करेंगे. तू आज से मेरे ही साथ सोयेगी. चल अब नीचे भी जाना है.”

ये कहते हुए शालिनी उठी और कपड़े डालकर राधा को लेकर किचन में चली गयी.

अदिति ने राधा को छेड़ते हुए पूछा, “चाय पीयेगी या मुंह का स्वाद नहीं बदलना चाहती. कैसा लगा तुझे नया स्वाद?”

राधा शरमाते हुए बोली: “अच्छा लगा, दीदी.”
अदिति: “मेरे बेटे का था, तुझे पता है न?”
राधा: “जी. माँ जी ने बताया.”

अदिति कुछ गंभीर होकर: “देख राधा, तू इस घर में हमारे परिवार जैसी है, ये तुझे अच्छे से पता है. बच्चे तुझे मौसी और तू मुझे दीदी कहती है. तुझे हम सबकी कसम कभी ये बात बाहर नहीं जाये.”

राधा: “दीदी, मैं सुगंध कहती हूँ, कभी ऐसा नहीं होगा. पर मुझे इनके (गोकुल) के बारे में भी कुछ सोचना होगा. उन्हें अगर कुछ शक हुआ तो मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगी.”

अदिति: “इसके बारे में भी इन्होने (अजीत) ने कुछ सोचा हुआ है. दो तीन दिन रुक, फिर बताती हूँ, वो कुछ तय कर लें उसके बाद.”

राधा: “जी दीदी. पर उन्हें कोई परेशानी न हो.”
अदिति: “कैसी बात करती है, तेरा पति ही तो मेरा भी कुछ हुआ न? चिंता छोड़. सबके जाने का समय हो रहा है. हम बाद में भी बातें कर सकती हैं.”

तीनों महिलाएं अपने काम में व्यस्त हो गयीं. जब नाश्ता लगा तो राधा गौतम से आंख नहीं मिला पा रही थी.

गौतम: “मौसी, मुझसे कोई गलती हो गयी क्या? मुझसे नाराज़ लग रही हो.”
राधा हड़बड़ा गई: “नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं. बस इनके बारे में सोच रही थी. कैसे रहेंगे इतने दिन मेरे बिना.”

अजीत: “मेरा अच्छा मित्र है जहां भेजा है और उसे कह भी दिया है कि मेरे परिवार का ही सदस्य है गोकुल. निश्चिन्त रह, वो मुझसे भी अधिक ध्यान रखेगा उसका.”

राधा ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी और अपने काम में लग गयी.
अजीत ने गौतम और अनन्या को सम्बोधित करते हुए कहा: “देखो, मौसी का ध्यान रखना. उसे अकेलापन नहीं लगना चाहिए बिलकुल भी.”

दोनों बच्चों ने उन्हें विश्वास दिलाया और नाश्ता करके वे तीनों अपने अपने गंतव्य की ओर निकल गए.

शालिनी और अदिति के बीच आँखों से कुछ संकेत हुआ और वे मुस्कुराकर बैठक में चली गयीं.

बैठने के बाद शालिनी ने अदिति से पूछा, “क्या सोचा है अजीत ने?”
अदिति: “माँ जी, मुझे अभी बताया नहीं कुछ. पर ये जो काम दिलाया है, इसमें गोकुल को हर महीने १० दिन के लिए जाना होगा. पैसा भी उसे अच्छा मिलेगा. पर इससे अधिक कुछ भी नहीं बताया.”

शालिनी: “इसकी आज चुदाई तो हो ही जानी है. और फिर इसे लंड के बिना रहा नहीं जायेगा. गोकुल इसे पूरा संतुष्ट नहीं कर पाता है. पर मैं सोच रही थी कि क्यों न हम भी इसकी चूत का स्वाद लें?”

अदिति: “मुझे कोई आपत्ति नहीं. आज रात आप शुभारम्भ करो फिर मैं भी बाद में किसी दिन चख लूंगी।”

फिर दिनचर्या और अन्य बातों में समय निकल गया. दोपहर को अपने नियत कार्यक्रम के अनुसार अदिति और शालिनी ने एक दूसरे की चूत और गांड चाटी और कुछ देर के लिए सो गयीं. ५ बजे से परिवार के सदस्य लौटने लगे. और ७ बजे तक समय निकल गया जब अजीत लौटा. अजीत नहाने के बाद आया और उसके हाथ में अदिति ने ड्रिंक दी. शालिनी को भी एक ड्रिंक थमा दी गयी. बाहर की बातों में समय व्यतीत हो गया. अदिति ने बताया की समर्थ और जॉय के बच्चों का सम्बन्ध पक्का हो गया है और सगाई अगले महीने है. ये बात सुनकर सब अनन्या के विषय में सोचने लगे पर अजीत ने कहा कि अभी उसके विवाह की आयु नहीं है. अगर कोई विशेष ही बात हो जाये तो अलग, अन्यथा अगले वर्ष ही वो इस विषय में कुछ सोचेगा.

आठ बजे खाना खाने के समय राधा की ऑंखें अजीत से हट नहीं रही बार उसे अजीत का तना खड़ा हुआ मूसल जैसा लंड याद आ रहा था. अगर उसने गलत नहीं सोचा था तो आज की रात उसकी खुदाई होनी थी. शालिनी ये सब देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी. खाने के बाद शालिनी ने राधा से कहा कि वो अपने कुछ कपड़े लेकर नौ बजे उसके कमरे में आ जाये. बार बार कपड़ों के लिए घर जाने की आवश्यकता नहीं होगी. उधर अदिति ने अनन्या को आज अपने ही कमरे में सोने को कहा क्योंकि उन्हें सुबह ही डॉक्टर के पास जाना था. चूँकि उनके डॉक्टर को कहीं जाना था तो उसने उन्हें सुबह जल्दी बुलाया था सात बजे तक. अनन्या मन मसोस कर अपने कमरे में चली गयी. शालिनी ने गौतम को बुलाया और उसे कुछ समझाया और उसे भी उसके कमरे में भेज दिया.

नौ बजने में देर नहीं लगी और राधा अपने हाथ में एक छोटा सा बैग लेकर शालिनी के कमरे में जा पहुंची

शालिनी ने उसे देखा तो बाँहों में ले लिया.
फिर पूछा, “ बड़ी अच्छी खुशबु आ रही है, नहा कर आयी है?”
राधा ने शर्माकर हामी भरी.
“ये अच्छा किया. अब आ जा. तेरे नए जीवन की नयी रात है. और अब जो तू मेरे साथ ही रहेगी कुछ दिन तो हम सखियों जैसे ही रहेंगी.”
राधा ने फिर केवल हामी ही भरी. उसका मन तेज गति से धड़क रहा था और वो देख रही थी कि अभी तक अजीत नहीं आये थे. तभी शालिनी ने उसका चेहरा ऊपर किया और उसके होंठ चूम लिए.

“जिसकी राह देख रही है, वो भी आएगा. पर कुछ ठहर कर. तब तक हम अपना खेल खेलते हैं. अब तू भी कपड़े उतार दे, देखूं तो सही कैसी लगती है नंगी होने के बाद.”

अब चूँकि राधा कभी शालिनी के सामने निर्वस्त्र नहीं हुई थी तो थोड़ी झिझकी.

शालिनी ने उसे समझाया, “जिस खेल जो खेलने वाली है, उसमे शर्म और झिझक का कोई स्थान नहीं होता. अगर इसका सुख लेना है, तो अपने आपको बिलकुल निर्लज्ज बनाकर खेल, नहीं तो न मन संतुष्ट होगा न ही तन.”

राधा भी समझ तो चुकी ही थी, सो वो कुछ ही देर में नंगी हो गयी. शालिनी ने उसे भरपूर दृष्टि से निहारा और उसने जो देखा वो सच में सुंदर था. हाँ राधा का रंग अवश्य थोड़ा सांवला था पर उसमे जो आकर्षण था वो कई गोरी स्त्रियों में भी नहीं होता. और तो और उसका शरीर बेहद सुडौल और भरा हुआ था. अंग प्रत्यंग बिलकुल सांचे में ढाले गए हों जैसे.

शालिनी: “अरे राधा, तू तो सच में बहुत सुन्दर है. क्यों छुपाती है अपनी ये सुंदरता?” ये कहते हुए शालिनी ने अपने भी वस्त्र उतारे और राधा को खींच कर उसके होंठ चूमने लगी. राधा के शरीर में मानो आग सी लग गयी. शालिनी उसे यूँ ही चूमते हुए बिस्तर पर ले गयी और उसे लिटा दिया.

शालिनी: “ हर दिन तू मेरी चूत चाटती है न, आज मुझे तेरा स्वाद लेने दे.”

ये कहते हुए उसने राधा के पांव फिलाये और अपना मुंह राधा की चूत में डाल दिया. राधा चिहुंक पड़ी. उसकी चूत में कभी किसी ने मुंह नहीं लगाया था. गोकुल हर बार उसे इसके लिए मना कर देता था. पर आज उसे इसका भी अनुभव होना निश्चित था. उसने अपना शरीर ढीला किया और अपने आपको शालिनी के वश में छोड़ दिया.

शालिनी की अनुभवी जीभ और मुंह के पराक्रम से राधा अधिक देर अपने आप को न रोक सकीय. कल रात ही से वो एक उत्तजेना में थी जिसे शालिनी के स्पर्श ने एक बांध के समान तोड़ दिया था. शालिनी ने बिना रुके राधा के रस का सेवन किया. उसे इस बात का कोई क्लेश नहीं था कि राधा उनकी नौकरानी थी. उसे उन्होंने सदैव ही अपने परिवार का ही जो समझा था. जब राधा का ज्वर उतरा तो वो एकदम से निढाल हो गयी.

“माँ जी. ऐसा तो मेरे साथ कभी नहीं हुआ.”
“क्यों गोकुल के साथ ऐसे नहीं झड़ती है क्या?”
“नहीं माँ जी. मजा तो बहुत आता है, पर ऐसा कभी नहीं हुआ.”
“अभी तूने जीवन में कुछ देखा नहीं है मेरी बन्नो. असली सुख तो तुझे अब मिलने वाला है. अब मैं तेरे मुंह पर बैठूंगी और तू मेरी चूत चाटना। ”

ये कहते हुए शालिनी उठी और राधा के मुंह पर अपनी चूत लगा दी. इस कार्य में अभ्यस्त राधा चूत केंद्र तक चाटने लगी. तभी उसे ऐसा लगा जैसे कोई दरवाजा खुला और बंद हुआ. पर ये तो बाथरूम की ओर से ध्वनि आयी थी. राधा ने इसे अपनी कल्पना समझा और शालिनी की चूत में मुंह गढ़ाए रही. फिर उसे अपने दोनों पांव किसी के द्वारा फ़ैलाने का आभास हुआ. और फिर एक मुंह उसकी चूत पर लगा और उसे चूसने लगा. राधा समझ गयी की अजीत आ चुके हैं और आज उसकी भरपूर चुदाई होगी.

उसकी पानी छोड़ती हुई चूत भी इस बात का संकेत दे रही थी कि उसकी प्रतीक्षा समापन पर है. शालिनी ने राधा से कहा कि जब तक वो न कहे अपने ऑंखें बंद ही रखे, नहीं तो कार्यक्रम बंद कर दिया जायेगा. ये बताते हुए वो राधा के मुंह से हट गयी और बंद आँखों से राधा ने अनुभव किया कि उसकी चूत पर से मुंह हटा और फिर दोबारा लगा. ये मुंह मुलायम था अर्थात अजीत ने शालिनी को स्थान दे दिया था. फिर उसने अपने सिर के पास कुछ हलचल का आभास किया. और उसके मुंह से कुछ छुआ. उसकी सांसों ने ये भान कर लिया कि ये किसी का लंड ही है क्योंकि उसके नथुनों में उसकी गंध घर कर गयी. पर डर के मारे उसने ऑंखें बंद ही रखी पर उसकी साँसे अब तीव्र गति से चलने लगीं और मन उसी गति से धड़कने लगा.

उसे शालिनी की पुकार कहीं दूर से आती हुई सुनाई दी, “ आँख खोल ले बन्नो और अपने आज के दूल्हे का स्वागत कर.”

राधा ने धीरे से अपनी आंखे खोलीं और अपने आँखों के सामने एक मोटे बड़े लम्बे लंड को झूलता हुआ पाया. उसने अपनी आँखें ऊपर उठाकर अजीत की ओर देखा तो वो हतप्रभ रह गयी. ये अजीत नहीं, बल्कि गौतम था. और कल उसने दूर से जो लंड देखा था अगर वो बड़ा था तो पास से देखने पर ये लंड तो भयावह लग रहा था. उसकी साँस रुक सी गयीं, क्या ये लंड मेरी चूत में जायेगा? वो ये सोच ही रही थी कि उसे किसी ने बुलाया.

“मौसी, क्या इसको प्यार नहीं करोगी?” ये गौतम था और उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट थी.
“ गौतम बेटा तुम? मैं तो समझी थी कि ..’”
“पापा होंगे. वो भी आएंगे मौसी, पर आज नहीं. दादी ने आज आपको खुश करने का कार्य मुझे सौंपा है. और इसके लिए आपको मेरे लंड को प्यार से तैयार करना होगा.”

राधा ने जीभ निकालकर गौतम के लंड पर थिरक रही मदन रस की बूंदो को चाट लिया. उधर कामिनी ने अपनी जीभ राधा की चूत की गहराइयों में गुमा दी. राधा अपनी कामवासना में इतनी खो चुकी थी कि उसे गौतम से छुड़वाने में भी कोई आपत्ति नहीं थी. बाप न सही बेटा ही चोद दे उसे. उसकी उबलती हुई चूत की प्यास मिटाना ही अब उसका उद्देश्य था. माँ जी भी उसकी चूत को जिस प्रकार से चाट रही थीं, उसे नहीं लगता था कि वो अधिक देर ठहर पायेगी. गौतम ने अपने लंड को उसके मुंह पर लगाया.

गौतम: “मौसी, देखो न, तुम्हारे प्यार के लिए कैसा लालायित है. इसे चूसोगी नहीं?”

राधा ने अपना मुंह खोला और लंड मुंह में ले लिया. पर इसका आकर गोकुल से कहीं बड़ा था.

सुपाड़ा ही दो इंच से अधिक बड़ा और मोटा रहा होगा. पर एक कहावत है कि खाने का निवाला और लौड़े का सुपाड़ा मुंह में जगह बना ही लेते हैं. तो राधा ने भी जब लंड निगला तो सुपाड़े ने अपने पीछे चल रहे लंड के लिए भी स्थान बना ही लिया. पर अब समस्या थी चूसने की, तो गौतम ने राधा की कठिनाई को समझते हुए ये काम भी अपने हिस्से में लिया और लंड को धीरे धीरे उसके मुंह में चलाने लगा. जब राधा कुछ अभ्यस्त हुई तो भी अपने गालों और जीभ से लंड पर अपना खेल खेलने लगी. ये देखकर गौतम रुक गया और उसने राधा के ही ऊपर ये कार्यभार सौंप दिया. राधा ने भी अपने समर्थ्य के अनुसार लंड को चूसा. पर अब गौतम उसकी चूत का आनंद लेना चाहता था.

“दादी, मौसी की चूत का क्या हाल है.”
“मैं तो सोच रहेगी कि तू पूछेगा ही नहीं. बन्नो की चूत अपने सैंया के लौड़े के लिए बहे जा रही है. इतना पानी छोड़ रही है कि मेरी तो प्यास ही मिट गयी.”

फिर उसने राधा की चूत से मुंह निकाला और उसकी आँखों में ऑंखें डालकर बोली, “ क्यों रे मेरी बन्नो, तेरा आज का दूल्हा अब तेरी सवारी के लिए आ रहा है. तेरी चूत की तो आज खैर नहीं है. पर अगर उससे विनती करेगी तो वो इतने प्यार से चोदेगा कि तेरी आत्मा तृप्त कर देगा. तो क्या चाहती है उसे बता दे.”

राधा ने गुहार लगाई, “गौतम बेटा, आज अपनी मौसी न समझना बल्कि अपनी दुल्हन समझ कर मेरी चूत को खोल दे. तेरा लौड़ा बहुत बड़ा है, तो मुझे प्यार से चोदना नहीं तो तेरी ये दुल्हन मर ही न जाये. फिर न तुझे दुल्हन मिलेगी न मौसी.”

गौतम: “अरे मौसी, तुम बस आज रात भर की ही दुल्हन हो. सुबह होते होते तुम मेरी मौसी ही बन जाओगी. तो मेरी राधा रानी, अब मैं तुम्हारी चूत को अपना बनाने वाला हूँ.”

शालिनी हटकर राधा की बगल में बैठ गयी और उसका एक हाथ अपने हाथ में थाम लिया. गौतम ने राधा की टांगों के बीच में बैठकर अपने टनटनाये लौड़े को राधा की अनवरत बहती हुई चूत के मुहाने पर रखा.

राधा ने अंतिम अनुरोध किया, “बेटा, धीरे और प्यार से करना.”

गौतम ने दबाव बनाते हुए लंड को चूत में अंदर डाला, सुपाड़े के अंदर जाते ही राधा झड़ गयी और इसका लाभ उठाते हुए गौतम ने निर्विघ्न होकर ४-५ इंच लंड अंदर उतार दिया. अब वो उस स्थान पर पहुंचा था जहाँ तक राधा का रास्ता गोकुल ने खोला हुआ था. आगे की राह संकीर्ण और कठिन अवश्य थी पर गौतम जैसे योद्धा के लिए अजेय तो थी नहीं. पर उस दुर्ग को भेदने के पूर्व गौतम राधा को सामान्य होने का समय दे रहा था.

राधा को अधिक समय नहीं लगा, क्योंकि वो इस गहराई तक की चुदाई की अभ्यस्त थी, पर उसे ये भी पता था कि अभी गौतम का आधा ही लंड उसकी चूत में गया है. डर और रोमांच ने उसकी चूत को फिर ढ़ेर सारा पानी छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया. गौतम ने जब अपने लंड पर नए जलपात का अनुभव किया तो उसने दादी की ओर देखा जो समझ गयी कि अब किला गिरने के लिए आक्रमण करने का समय आ गया है.

“बन्नो, एक बात बता, अगर तुझे चोट लगी हो और उस पर बैंडऐड लगाया हो, तो निकालने के लिए क्या करेगी? धीरे धीरे निकालेगी जिसमे अधिक देर कष्ट होगा या एक ही बार में जिससे कि दर्द हो भी पर जल्दी ही दूर भी हो जाये?”

राधा ने इस बात का अर्थ इस परिपेक्ष में समझा नहीं और वो समझी की माँ जी उसका ध्यान बाँटने के लिए बात कर रही हैं. तो उसने भी अनिभिज्ञता से उत्तर दिया, “माँ जी, एक ही बार का कष्ट ठीक है, वैसे भी मैं ऐसा ही करती हूँ.” जिस समय वो उत्तर दे रही थी गौतम अपने लौड़े को बाहर की ओर निकाल रहा था जिससे की आक्रमण के समय लम्बाई और गहराई एक साथ जल्दी तय हो सकें.

शालिनी: “तो मेरी बन्नो, आज तेरा दूल्हा भी तुझे अधिक देर तक न तड़पाते हुए एक ही बार का कष्ट देगा.”

राधा को जब अर्थ समझ आया तो वो न नुकुर करते हुए शालिनी का हाथ छोड़कर अपनी कमर पीछे करने का प्रयास करने लगी. पर दादी और पोता दोनों उसकी इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार थे. शालिनी ने हाथ नहीं छोड़ने दिया और आगे झुकते हुए अपने होंठों से राधा का मुंह बंद कर दिया. पर राधा की चीखें निकलने लगी थीं. गौतम ने एक लब्बी तगड़े झटके के साथ अपना तीन चौथाई लंड राधा की चूत में उतर दिया था. राधा तड़प रही थी और किसी प्रकार से मुक्त होने का प्रयास कर रही थी. पर गौतम का बलिष्ठ शरीर और शालिनी के उसे चुप करते हुए होंठ उसे असमर्थ कर दे रहे थे.

राधा ने अपनी चूत में से गौतम के लंड को बाहर निकलते हुए अनुभव किया तो थोड़ा आश्वस्त हुई कि शायद गौतम को उस पर दया आ गयी है. पर ये विचार किंचित गलत सिद्ध हुआ जब बाहर निकलते हुए लंड ने तेजी के साथ उसकी चूत में एक और धक्का मारा और इस बार गौतम के पुरे लंड ने अपना लक्ष्य पा लिया. राधा इस तीव्र दर्द से निढाल हो गयी. उसकी आँखों से आंसू बहने लगे. गौतम ने शालिनी की पीठ पर थप्पी देकर उसे संकेत किया कि किला धराशायी हो गया है. शालिनी ने अपना चेहरा उठाकर राधा के बहते हुए आँसू चूम लिए और उसे सांत्वना देने लगी.

“बस मेर बन्नो, हो गया. आज तू पूरी औरत बन गयी. आज तेरी चूत की पूरी गहराई को खँगालने वाले लंड ने तुझे एक नया जीवन दिया है. और जिसे तू अभी दर्द समझ रही है, वो तेरे इस नए जीवन का नया द्वार है जिसके खुलने से तुझे आनंद का एक नया मार्ग दिखेगा. बस कुछ देर ठहर, फिर देख मैं सच कह रही हूँ.”

राधा ने गौतम से पूछा: “मैंने आपसे कहा था कि प्यार से करना, मौसी हूँ मैं तेरी. मुझ पर थोड़ी भी दया नहीं आयी तुझे?’

गौतम: “मौसी, बस कुछ ही देर रुको फिर आप यही कहोगी कि मैंने सही किया. बस कुछ और देर.” गौतम बहुत हल्के हल्के अपने लंड को राधा की चूत में चलाते हुए उसे समझाने लगा.

राधा की चूत से उठता दर्द उसे कुछ भी न समझने के लिए विवश कर रहा था. गौतम उसकी चूत में उसी गति से लंड चलाता जा रहा था. शालिनी उसके होंठ और मम्मे चूम और चाट रही थी. राधा की चूत ने ही इस समस्या का निदान किया और अपने रस से उस सुरंग को जलमग्न कर दिया. छप छप की ध्वनि से ये विदित हो गया कि अब राधा की चूत उस लौड़े की उपस्थिति को स्वीकार कर चुकी है और संभवतः कुछ अधिक की इच्छा रखती है. राधा को अचानक ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसका दर्द कम होने लगा हो. और इस पीड़ा के साथ उसके एक नया आनंद भी आने लगा. पीड़ा और सुख का ये अद्भुत समागम उसने केवल कहानियों में ही पढ़ा था. पर आज उसका शरीर इसे स्वयं अनुभव कर रहा था.

राधा ने अपने कूल्हे हिलाकर अपने आनंद को बढ़ाने का प्रयास किया तो गौतम ने भी उसका साथ देते हुए अपनी गति बढ़ाई। शालिनी वस्तुस्थिति भांपते हुए राधा के मम्मों को मसलने लगी जिसके कारण राधा एक बार फिर से अपने चरम की ओर बढ़ चली. शालिनी ने अब अपने मुंह और हाथों से राधा के मम्मों पर वार करना शुरू किया और नीचे से गौतम ने भी अपनी गति कुछ और बढ़ाई। राधा का मस्तिष्क एक नए उल्लास में लीन हो गया और उसे एक ऐसा आनंद आने लगा जिसमे वो अपना सब कुछ भूल गयी.

“चोद दे मुझे, और अच्छे से चोद। माँ जी अपने मुझे पहले ये सब क्यों नहीं दिया. आप बहुत बुरी हैं माँ जी. आअह, क्या हो रहा है मुझे. माँ जी! मेरी चूत में क्या हो रहा है.” राधा का अकड़ता बिखरता शरीर अब छटपटा रहा था. पर इस छटपटाहट में एक मुक्ति थी. उसके कूल्हे अचानक ही ऊपर की ओर हुए और काँपते हुए वो निश्चल हो गयी. उसकी चूत ने एक धार फेंकी जो गौतम के लंड से बंद होने के कारण बाहर न निकल पायी पर चलते हुए लंड के साथ कुछ कुछ मात्रा में बाहर रिसने लगी. फिर उसके कूल्हे एक थाप के साथ बिस्तर पर गिर गए पर उसका कम्पन अभी भी रुका नहीं. और इस पूरे प्रकरण के समय गौतम ने एक भी ताल छूटने नहीं दी. जब राधा अपने शीर्ष से उत्तरी तो वो शालिनी का चेहरा हाथ में लेकर उन्हें बेतहाशा चूमने लगी.

शालिनी हँसते हुए बोली, “ क्यों मेरी बन्नो, कैसी लगी चुदाई तुझे, अब दर्द है?”
राधा: “जी माँ जी, दर्द तो है, पर मीठा मीठा. और सच में ऐसे तो मेरी कभी चुदाई हुई ही नहीं.”

“तो अब मेरे पोते को अपने ढंग से चोदने दे.”
“जी माँ जी.”

ये सुनकर गौतम ने अपने धक्कों को और तेज कर दिया.

गौतम के बढ़ते और तेज होते हुए धक्कों की थाप पुरे कमरे में गूंज रही थी. और इसमें मिले हुई थीं राधा की सिसकारियां और आनंदकारी चीत्कारें. गौतम के मोटे लम्बे लंड ने राधा की चूत को ऐसे पैक किया हुआ था कि उसे जीवन का अलग हैअनुभव हो रहा था. चूत अब तक हाथ डाल चुकी थी. कितना झड़ती आखिर. लगातार पानी के स्त्राव से सुख सी गयी थी. और इसी कारण अब गौतम के लंड को अधिक घर्षण मिल रहा था और वो स्वयं भी आनंद के महासागर में गोते लगा रहा था. शालिनी के मन में न जाने क्या आया उसने अपना हाथ बढाकर राधा के भग्नाशे को मसलना शुरू कर दिया. अब राधा के लिए एक नया आयाम था. उसे इस बात का आभास भी नहीं था कि उसके शरीर का कोई ऐसा अंग भी है जो उसे आनंद के शिखर पर मात्र मसलने से ले जा सकता है.

सूखती चूत में एक नया ज्वार सा उठा और और इस बार फिर राधा का शरीर अकड़कर काँपने लगा. परन्तु शालिनी ने भग्नाशे की छोड़ा नहीं, बल्कि और अधिक तीव्रता से उसे मसलने लगी. राधा के मस्तिष्क में मानो रक्त का संचालन रुक गया. वो अपने हाथ पैर इधर उधर फेंकने लगी और उसकी चूत फिर से जलमग्न हो गयी. अब गौतम को भी रुकना सम्भव नहीं लग रहा था और उसने भी स्वयं को छोड़ दिया और उसके लंड से निकलती हुई तेज धाराओं ने राधा की चूत को तृप्त कर दिया. उसने अपने अकड़े हुए लंड को इसी अवस्था में बाहर खींचा तो न जाने कितना पानी राधा की चूत ले बाहर बहने लगा.

शालिनी अब तक राधा के भग्नाशे को रगड़ती हुई पास आ चुकी थी. उसने तुरंत अपना मुंह राधा की चूत पर लगाया और उस धार को पीने का प्रयास किया. पर पानी इतनी तेजी से बहा था कि शालिनी के इस प्रयत्न के बाद भी उसे केवल कुछ ही रस पीने को मिला. पर वो ऐसे हार मानने वालों में तो थी नहीं. उसने गौतम के लंड को लपक कर अपने मुंह में डाला और उस मिश्रण को चाटकर अपनी प्यास बुझा ही ली. इसके बाद उसने फिर राधा की चूत पर धावा बोला और इस बार चूस कर उसे पूरा खाली कर दिया.

राधा बेसुध सी लेटी दादी पोते के इन क्रियाकलापों को केवल देखती ही रही. पर उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट थी. एक असीम संतुष्टि से उसका चेहरा खिला हुआ था.

“कैसी है मेरी बन्नो?” शालिनी ने पूछा.
राधा ने थकी मगर ख़ुशी से भरे स्वर में उत्तर दिया, “एकदम मस्त, माँ जी.”
फिर कुछ देर रुकी और बोली, “माँ जी, अब दोबारा कब करेंगे?”

“आज की रात अपनी ही है. पहले मैं भी तो अपने अपनी चूत और गांड की सिकाई करवा लूँ। “

गौतम: “दादी. पहले आपकी चूत , फिर मौसी की चुदाई, फिर आपकी गांड, फिर मौसी की चुदाई.”

राधा और शालिनी उसके इस उतावलेपन पर हंस पड़ीं. और रात भर गौतम ने उन दोनों की जी भर कर चुदाई की और सुबह तक तीनों संतुष्ट होकर सो गए.

*****

उधर अदिति और अजीत सुबह डॉक्टर से मिलने के लिए निकल गए. अनन्या उठी तो देखा घर शांत है. पापा और मॉम तो चलो डॉक्टर के पास थे पर दादी, राधा और गौतम ही नहीं दिखे तो वो गौतम के कमरे में झाँकने गई तो उसे खाली पाया. उसने दादी के कमरे का दरवाजा खोला तो उसे कपड़े बिखरे हुए दिखे. आगे बढ़कर उसने दादी के बिस्तर को देखा तो उसे तीनों सोते हुए दिखे. उसकी आँखों ने गौतम के लंड को देखा और उसे अपने पापा के लंड की याद आ गयी. गौतम का लंड उनके लंड से बीस ही लग रहा था. उसने हल्के पैरों से आगे बढ़कर गौतम के लंड को देखा और अनायास ही झुकते हुए उसे अपने मुंह में ले लिया.

चूत और वीर्य का स्वाद तो वो जानती थी, पर कुछ एक अलग स्वाद भी था. उसकी आंख अपनी सोती हुई दादी की ओर गयी जिनकी पीठ उसकी ओर थी. उसने देखा की दादी की गांड का छेद कुछ खुला हुआ था और उसमे से कोई सफेद रंग का द्रव्य बाहर बहा हुआ था. अनन्या को समझ आ गया कि उस नए स्वाद का क्या कारण है. उसने एक बार फिर गौतम के लंड को चाटा और लौटने के लिए मुड़ी.

“कैसा लगा अपने भाई के लंड का स्वाद, अनन्या बिटिया?” ये राधा मौसी का स्वर था.
अनन्या चौंककर मुड़ी तो देखा मौसी बैठ चुकी थी. उनके स्तन लाल थे, लगता था रात में अच्छे से मसले गए थे.

“बहुत अच्छा मौसी. तुम्हारा भी तो स्वाद मिला हुआ है न इसमें.”
“हाँ, और अब वो दिन दूर नहीं जब इस लौड़े पर से तुम भी अपना स्वाद चाटोगी अपनी माँ के साथ.”

अनन्या उस आने वाले दिन के बारे में सोचती हुई कमरे से निकली और अपनी चूत सहलाने के लिए अपने कमरे में चली गई.

*****

दिन के ११ बजे के आसपास अदिति और अजीत भी लौट आये. अदिति के चेहरे पर एक चमक थी और पांव मानो जमीं नहीं छू रहे थे. उसने आते ही शालिनी को बाँहों में भर लिया.

“बताओ माँ जी, डॉक्टर ने क्या कहा?”
“तेरी ख़ुशी तो यही बता रही है, कि चुदाई की अनुमति मिल गयी है.”
“बिलकुल सही. माँ जी मैं आज बहुत खुश हूँ.”
“तो जा और अजीत को काम पर लगा दे. पर सुन. ध्यान रख. अधिक अधीरता मत दिखाना. नयी नयी सिलाई है, उधेड़ मत देना।”
“जी माँ जी. डॉक्टर ने भी यही कहा है. अगले दस दिन सीमा के अंदर ही सम्भोग करें. नहीं तो समस्या हो सकती है.”

“अब जा, और अपने पति को समर्पित कर दे तेरी ये नयी चूत.”

अदिति उड़ती हुई अपने कमरे में गयी जहाँ अजीत पहले ही जा चूका था. और उसने कमरा बंद किया और पीछे मुड़ी तो अजीत को नंगा खड़ा पाया.

“वापसी पर स्वागत है.” अजीत ने अपने लंड को हाथ से हिलाते हुए मुस्कुराकर कहा. “तुमने कुछ कपड़े अधिक नहीं पहने हुए हैं?”

अदिति ने आनन फानन कपड़े फेंके और जाकर अजीत से लिपट गयी.

*****

बाहर इतना शोर सुनकर अनन्या और गौतम भी आ गए. पर देखा कि दादी अकेली है.

“कुछ शोर सुनाई दिया था, क्या था?”
“तेरी माँ को चुदवाने की अनुमति मिल गयी है. अब अंदर है अजीत के साथ.”

अनन्या और गौतम के चेहरे पर ख़ुशी छा गयी. पर दोनों की ख़ुशी के कारण अलग थे.


क्रमशः
अगले परिवार की ओर अग्रसर
पर एक कहावत है कि खाने का निवाला और लौड़े का सुपाड़ा मुंह में जगह बना ही लेते हैं.


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छठा घर: दिया और आकाश पटेल
अध्याय ६.३
भाग ६


*********

अब तक:

दो नगरों के चार कमरों में चुदाई की पूरी भूमिका बन चुकी थी.
दिया के घर पर आलोक और कनिका की चुदाई का एक क्रम पूर्ण हो चुका है. वहीं दिया की भी डबल चुदाई एक बार हो चुकी है. देखते हैं उधर उसकी बहन सिया के घर पर क्या चल रहा है, क्योंकि ऐसा तो हो नहीं सकता कि इस कहानी में कोई बिना चुदाई के छूट जाये.
पर अब सिया और हितेश, माँ और बेटा एक दूसरे के साथ मिलन के लिए बेचैन हो रहे थे. सिया की कुलबुलाती चूत भी हितेश को संदेश दे रही थी, जो इस अल्प आयु में भी स्त्री के अंगों की सांकेतिक भाषा पढ़ने में निपुण हो चला था.
नीलम समझ गयी कि चंद्रेश और प्रकाश के साथ एक लम्बी रात का आरम्भ हो चुका है.

*******
अब आगे:

*******

सिया का घर:

सिया और हितेश:



सिया की कुलबुलाती चूत भी हितेश को संदेश दे रही थी, जो इस अल्प आयु में भी स्त्री के अंगों की सांकेतिक भाषा पढ़ने में निपुण हो चला था. कुछ समय तक अपनी माँ की चूत को प्रेम से देखने के बाद हितेश ने अपने लंड को पकड़ा और सिया की चूत पर लगाया. सिया ने एक गहरी साँस ली और बिना कुछ बोले अपने होंठों से कहा “डाल दे.”
हितेश वैसे भी अब रुकने वाला तो था नहीं, पर सिया के इस निशब्द संकेत ने उसे अपने लंड को अंदर डालते हुए अनुभव किया. माँ बेटे के आनंद का इस समय कोई पर्याय नहीं था.

अभी लंड का केवल टोपा ही अंदर गया था, पर दोनों एक शांति का अनुभव कर रहे थे. एक अवधि के बाद के मिलाप से दोनों आनंदित थे. हितेश का लंड एक धीमी गति के साथ सिया की चूत को बेधता चला गया. सिया उसे प्रेम भरी दृष्टि से देखती रही और होनी चूत में उसके लंड का आव्हान करती रही. हितेश जब रुका तो उसका लंड उसकी माँ की चूत में पूरा समाया हुआ था.

हितेश रुक गया और दोनों एक दूसरे के गुप्तांगों के स्पंदन का आभास करते रहे. कोई शीघ्रता नहीं थी. न किसी ने आना था, न किसी ने टोकना, न उन्हें कहीं जाना ही था आज की रात. एक दूसरे की आँखों में देखते हुए हितेश का अपनी माँ के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा. वो आगे झुका और उसने सिया के होंठों से अपने होंठ मिला लिए. लंड को चूत में डाले हुए दोनों एक दूसरे को चूमने में व्यस्त हो गए. अचानक ही हितेश ने अपने लंड को बाहर खींचा और सिया के होंठों को चूमते हुए एक लम्बे धक्के के साथ उसे फिर अंदर पेल दिया.

हितेश को सिया के होंठों का कम्पन अपने होंठों पर अनुभूत हुआ. उसने अपनी जीभ को सिया के मुंह में डाला और अब उनका चुंबन माँ बेटे से अधिक प्रेमियों की श्रेणी में स्थापित हो गया. सिया ने भी हितेश की जीभ को चूसते हुए अपनी स्वीकृति दर्शाई. हितेश अब सिया की लम्बे पर धीमे और सधे हुए धक्कों से कर रहा था. सिया ने अपने दोनों मम्मों को अपने हाथों से ही मसलना आरम्भ कर दिया. हितेश दुविधा में पड़ गया. अगर वो अपनी माँ के मम्मों पर ध्यान देता तो अवश्य ही चुंबन तोड़ना पड़ता. वो इतना अनुभवी भी नहीं था कि चुदाई और चुम्बन के साथ सिया के मम्मे मसल सकता.

सिया ने उसकी इस दुविधा को स्वयं ही दूर कर दिया. उसने हितेश के बाएँ हाथ को अपने स्तन पर रखा और अपना हाथ हटाकर उसके सिर पर रख दिया. अब सिया हितेश के सिर को पकड़े थी और उनके होंठ अभी भी जुड़े हुए थे. हितेश दाएँ हाथ के सहारे उसकी चुदाई कर रहा था और बाएँ हाथ से उसके मम्मों को मसल रहा था. पर इस कारण चुदाई की गति क्षीण हो चली थी. कुछ देर तक यही स्थिति बनी रही.

सिया ने ये समझते हुए कि ऐसा आसन अनुपयोगी है, अपना हाथ हितेश के सिर से हटाया और उसे बोली कि मेरे मम्मे निचोड़ दो. हितेश के चेहरे के आनंद को देखकर सिया को भी लगा कि हितेश भी यही चाहता था. हितेश ने अपने दोनों हाथ सिया के मम्मों पर जमाये और उन्हें मसलते हुए अपनी चुदाई की गति तीव्र कर दी. अब सिया को सच्चा सुख मिल रहा था. एक ओर उसकी चूचियों पर आक्रमण हो रहा था वहीं दूसरी ओर उसकी चूत को भी अपने बेटे के लंड का सुख मिल रहा था.

बहुत समय तक हितेश सिया की इसी आसन में चुदाई करता रहा. दोनों को मानो थकान का बोध भी नहीं था. सिया की चूत अब पानी से लबालब हो चुकी थी और हितेश के लंड के अंदर बाहर होने उसे उसकी थापों की ध्वनि भी बदल चुकी थी. हितेश ने आसन बदलने के लिए सिया से आग्रह किया और सिया ने उसकी बात को मानते हुए तुरंत ही घोड़ी का आसन ले किया. हितेश ने पास पड़े अपने अंडरवियर से सिया की चूत को पोंछा और फिर अपने लंड को उसकी चूत में फिर से पेल दिया। चूत पोंछने के कारण कुछ सीमा तक फिर से तंग लग रही थी और हितेश को चुदाई का आनंद फिर से प्राप्त होने लगा.

इस आसन में वैसे भी वो अधिक नियंत्रण में था और उसका लाभ उठाते हुए वो अपने धक्कों को प्रभावशाली रूप से सिया की चूत में मारने में सफल हो रहा था. सिया को भी इस आसन में अधिक आनंद मिल रहा था क्योंकि पिछले आसन में पाँवों को फ़ैलाने से उसे थकान सी हो चली थी. वो रह रह कर पीछे देखती और हितेश से और गहरी चुदाई करने के लिए आग्रह करती. हितेश अपनी गति और धक्कों की लम्बाई को संभावित रूप से बढ़ा रहा था, पर उसकी सीमा अब समाप्त हो चुकी थी. सिया की भी चूत का रस एक बार फिर से उसी तेजी से निकल रहा था और उन दोनों के संसर्ग मार्ग से गिरता हुआ बिस्तर को गीला कर रहा था.

हितेश से अब और रुका न गया और उसने एक चिंघाड़ के साथ सिया की चूत को अपने वीर्य से भर दिया. सिया भी बिस्तर पर लुढ़क गयी और उसके ऊपर ही हितेश भी जा गिरा.

“तुम्हारा हुआ न, मम्मी?’ हितेश ने पूछा.
“मेरा तो पहले ही हो चुका था, वो तो तेरे लिए ही इतनी देर तक टिकी रही, नहीं तो तू फिर मुझे अलग हो जाता.”

हितेश ने सिया की गर्दन को चूमा और फिर उसके साथ ही लेट गया.

“मैं अलग नहीं हूँ, पर पढ़ाई पूरी किये बिना भी अब नहीं आ सकता. बस अब कुछ और महीनों की ही तो बात है, फिर यहीं लौट आयूंगा और पापा का बिज़नेस में हाथ बाटूंगा.” दोनों यूँ ही लेटे हुए बात कर रहे थे.

“हाँ, उन्हें भी अब तेरी आवश्यकता पड़ेगी, अगर तेरे चाचा चले गए तो. अब तक उनका बहुत सहारा था.”
“मैं समझता हूँ, पर मुझे लगता है कि चाचा के जाने और मेरे आने के मध्य अधिक समय नहीं रहेगा. कुछ दिन तक तो पापा को कठिनाई होगी, पर एक बात और भी है जो अपने अब तक नहीं सोची.” हितेश ने मुस्कुराकर कहा.

“क्या नहीं सोचा, बदमाश!”
“यही कि न जाने कितने वर्षों बाद उस अवधि में आप और पापा अकेले रहेंगे. उस समय का सदुपयोग करना. अब तक हम सबके लिए आप दोनों त्याग करते रहे, अब किसी को बीच में मत आने देना.”

सिया सोच में पड़ गयी. ये सच था. हितेश के जन्म के दो वर्ष बाद से वो और चंद्रेश कभी अकेले नहीं रहे थे. चंद्रेश के पिता की मृत्यु के बाद प्रकाश उनके ही पास जो आ गया था. उसने अपने बेटे को देखा.

“सच कह रहा है, तेरी बात से तो लगता है की तेरे चाचा को जल्दी से जल्दी भगा देना चाहिए. और मैं स्वयं इनके काम में साथ दूंगी. कुछ तो कर ही लूँगी.”

“मम्मी, आप बहुत कुछ कर लोगी. सबसे बड़ी बात ये होगी कि पापा को किसी भी समस्या या कठिनाई में उनके सबसे घनिष्ठ मित्र का साथ रहेगा. ये और भी अच्छा होगा.”

“बेटा, सच में तू बहुत बुद्धिमान है. और हम दोनों के लिए इतना चिंतन करता है. तो इसी बात पर अब मेरी गांड को भी थोक डाल. तेरी प्रतीक्षा में बहुत व्याकुल सी हो गयी है.”

“हाँ हाँ जैसे आज चाचा ने नहीं मारी हो. पर सच में मुझे भी इसकी बहुत याद आती है.”

“तो चल फिर पहले इसे चाटकर अपने अनुकूल बना और फिर पेल दे.” सिया ने वही घोड़ी का आसन फिर से ले लिया और अपनी गांड को लहराकर हितेश को आमंत्रित किया.

हितेश ने अपनी माँ की आँखों में मंडराती वासना और प्रेम की छाया देखि और उसके होंठों को चूमकर उठा और सिया की गांड के पीछे आ गया. सिया की गांड दोपहर की चुदाई के कारण अभी भी कुछ खुली हुई थी पर हितेश को इससे कोई अरुचि नहीं हुई. उसने सिया के नितंबों पर अपनी जीभ से वार किया और एक गोलाकार आकृति में उसकी गांड के छल्ले तक पहुंच गया. सिया ने एक आह भरी और हितेश ने अपने हाथों से उसकी गांड को फैलाते हुए अपनी जीभ से उसे छेड़ दिया.

कुछ ही पल में उसकी जीभ सिया की गांड के भीतर थी और सिया की सिसकियाँ तेज हो रही थीं. अपनी माँ की गांड को कुछ समय तक अपनी जीभ से अनुकूल करने के पश्चात् हितेश ने अपने लंड को सहलाया. उसका लंड आने वाले सुख की कामना से तना हुआ था और फिर अपने मुंह से कुछ थूक निकालकर हितेश ने अपने लंड के टोपे पर लगाया. सिया अब उसके लंड की प्रतीक्षा में थी. और हितेश ने उसकी कामना पूरा करते हुए अपने लंड को उसकी मखमल जैसी गांड पर लगा दिया.

“कैसे मरवाना है अपनी गांड मम्मी?”
“जोर से. नहीं तो दोपहर की चुदाई की खुजली मिटेगी नहीं.”
“जैसा आप कहो.”

और इसी के साथ हितेश ने एक शानदार धक्का मारा और उसका लंड सिया की गांड को चीरता हुआ अंदर चला गया. सिया कुलबुलाकर रह गई. और हितेश ने अब उसकी गांड को बिना दया भावना के पूरी शक्ति के साथ छेदना आरम्भ कर दिया. सिया की खुजली का उपचार अब उसका बेटा उसी रूप में कर रहा था जैसा उसकी इच्छा थी.

हितेश की चक्रवाती गति के आगे सिया ने हाथ डाल दिए और वो भी अपनी गांड का सत्यानाश करने में हितेश का साथ देने लगी. अपनी गांड को पीछे उछालते हुए वो अब हितेश के हर धक्के का बराबर उत्तर दे रही थी. हितेश को अपनी माँ की गांड मारने का अवसर बहुत दिनों के बाद मिला था. उसकी इच्छा तो थी कि वो इसे प्रेम पूर्वक चोदे पर दोपहर की चुदाई के कारण सिया की वासना चरम पर थी. हितेश किसी भी आज्ञाकारी पुत्र के समान अपनी माँ की इच्छा के सामने नतमस्तक था और उसकी गांड को सम्पूर्ण मनोबल और शक्ति के साथ चोद रहा था.

सिया की सिसकारियां अब चीखों में परिवर्तित हो चुकी थीं और हितेश को उनसे और भी अधिक प्रोत्साहन मिल रहा था. अपनी अनियमित और प्रचंड गति से उसने सिया की गांड के तार खोल दिए थे. सिया की इस प्रकार से गांड मारते हुए हितेश ने कोई दस मिनट और लिए. और उसके बाद उसके शरीर ने भी उसे उत्तर दे दिया. उसका लंड सिया की गांड में फूलने लगा और सिया भी जान गई कि अब हितेश झड़ने के निकट पहुंच गया है.

“मुझे अपने लंड का रस का स्वाद देना अब. अंदर मत छोड़ देना.”
“ओके, मम्मी.”

हितेश इसके बाद कोई चार मिनट ही और टिक पाया फिर उसने गति तोड़कर अपने लंड को सिया की गांड में से बाहर निकाल लिया. सिया के सामने जब तक पहुंचता, सिया ने एक पलटी ली और फिर सीधी होते हुए बैठ गई. उसके सामने हितेश का सना हुआ लंड नाच रहा था. उसे बिना हाथ से छुए सिया ने जीभ से चाटा और साफ होने के बाद हाथ में लेकर अपने मुंह में लेकर चूसने लगी.

हितेश का लंड फिर से फूलने पिचकने लगा और फिर उसे अपना लावा सिया के मुंह में छोड़ दिया. एक बार झड़ चुकने के कारण इस बार मात्रा इतनी ही थी कि सिया सरलता से पी सके और उसने पूरा स्वाद लेकर अपने पुत्र के वीर्य को ग्रहण किया. लंड के शांत होने के बाद उसने एक बार उसे चूमा और चाटकर हितेश को प्रेम से देखा.

“बहुत अच्छा किया जो तू घर आ गया. आज पूरी रात अपनी माँ को चोदकर निहाल कर देना.”

“इसमें कोई शंका ही नहीं कि ऐसा ही होगा. अगर कल आप सीधी चल पायीं तो मेरे लिए शर्म की बात होगी.”

“मुझे भी यही आशा है. वैसे नीलम की स्थिति तो और भी बुरी होने के संभावना है. तेरे चाचा आज कुछ अलग मूड में हैं.”

“फिर तो उनकी खैर नहीं.”

दोनों माँ बेटे इस बात पर हंस पड़े और फिर उठकर बाथरूम में चले गए.



क्रमशः
One of the very touching update till now. Filled with so much mom-son love, care and hotness.
Aur aap jaise narrate karte hain. Wo lajawab hai.
 

Nigarnoor79

Banned
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169
44
Bhai.....bhai.....bhai..... Please..... please..... please......kese kese pariwar ka update do bro.....kaha ho.......aap aajkl to bilkul v nazar nahi aa rahe ho....
 
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