Chinturocky
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Ek aur achchhi kahani samapt ho gayi.
Nice endingसाठवाँ एवं अंतिम भागकोचिंग खोलने के लिए अभिषेक और मैं अपने अभिभावक को लेकर महेश के घर चले गए। सबका अभिवादन और प्रणाम करने के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।अभिषेक- हम लोग एक बहुत जरूरी बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। हम लोग चाहते थे कि ये बाद हमारे माता-पिता के सामने हो। क्योंकि हम लोगों को आपकी सहमति चाहिए।पापा- बात क्या है ये बताओ।मैं- पापा आपको पता है। परास्नातक करने के बाद मैंने आपसे कोचिंग सेंटर खोलने की बात की थी तो आपने कहा था कि मैं पहले सरकारी नौकरी के लिए प्रयत्न करूँ। कोचिंग को मैं दूसरे विकल्प के रूप में रखूँ।पापा- हाँ तुमने मुझसे बात की थी और मैंने तुमको ये बात कही थी।महेश- तो हम लोग अब भी यही चाहते हैं कि हम तीनों मिलकर एक कोचिंग सेंटर खोलें। जिसमें गाँव के बच्चों को कम शुल्क पर शिक्षित करें। इसी के लिए हम लोगों को आप सब से बात करनी थी।अ.पापा- लेकिन ये कैसे हो सकता है। सरकारी नौकरी में रहते हुए कोई लाभ का दूसरा काम अपने नाम से नहीं कर सकते तुम तीनों। इसके अलावा तुम्हारे पास समय कहाँ रहेगा कि तुम लोग बच्चों को पढ़ाओ।अभिषेक- हम लोगों के पास समय नहीं है। लेकिन खुशबू, पल्लवी भाभी और महिमा भाभी के पास तो समय है न। ये तीनों लोग कोचिंग पढ़ा सकती हैं।म.पापा- क्या। ये तुम क्या बोल रहे हो बेटा। ये लोग कैसे कोचिंग पढ़ा सकती हैं।महेश- क्यों नहीं पढ़ा सकती पापा। तीनों पढ़ी लिखी हैं। तीनों को अपने विषयों में पकड़ भी है। इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा जब पढ़ाई लिखाई का सदुपयोग ही न हो तो।म.मम्मी- लेकिन इसके लिए पहले इन तीनों से तो पूछ लो कि ये तैयार हैं या नहीं पढ़ाने के लिए।मैं- इस बारे में उन लोगों से बात हो चुकी है। उनकी सहमति मिलने के बाद ही आप लोगों के समक्ष अपनी बात रख रहा हूँ।मम्मी- वो तो ठीक है बेटा। लेकिन बहुएँ अगर कोचिंग पढ़ाने जाएँगी तो गाँव समाज में तरह-तरह की बातें उठने लगेंगी। उसका क्या।अभिषेक- उसी लिए तो हम लोगों ने आप सबसे बात करना उचित समझा। अपने गाँव के आस-पास कोई ढंग का कोचिंग सेंटर नहीं है। और जो है भी वहाँ एक ही विषय पढाया जाता है। दूसरे विषय के लिए दूसरी कोचिंग में जाना पड़ता है। ऊपर से हर विषय के लिए अलग-अलग शुल्क जमा करने पड़ता है, लेकिन हमने जिस कोचिंग सेंटर के बारे में सोचा है उसमें सभी महत्त्वपूर्ण विषय एक ही जगह बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएगा।म.पापा- बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि गाँव समाज तरह तरह की बातें बनाने लगेगा। तुम लोगों को तो पता है कि कोई भी अच्छा काम अगर शुरू करो तो उसकी सराहना करने वाले कम और नुक्श निकालने वाले ज्यादा लोग आ जाते हैं।मैं- हम लोग जो भी काम करने चाहते हैं आप लोगों की सहमति से करना चाहते हैं। मैं ये जानता हूँ कि गाँव के कुछ लोग हैं जिनको हमारी पत्नियों के कोचिंग पढ़ाने से परेशानी होगी। कुछ दिन बात बनाएँगे और बाद में सब चुप हो जाएँगे और हम समाज की खुशी के लिए अपने अरमानों का गला तो नहीं घोंट सकते। इन लोगों की इच्छा है कि ये लोग भी कुछ काम करें, लेकिन गाँव में काम मिलने से रहा और ये लोग आप लोगों को छोड़कर शहर जाकर काम करेंगी नहीं। तो इन लोगों को भी तो अपनी इच्छाओं/सपनों को पूरा करने का हक है। जो ये कोचिंग पढ़ाकर पूरा करना चाहती हैं। हमारे सपने को ये लोग साकार करना चाहती हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हम जो कुछ कर रहे हैं समाज के हित के लिए कर रहे हैं। समाज में रहने वाले बच्चों के लिए कर रहे हैं। हमें समाज की नहीं आप लोगों की हाँ और न से फर्क पड़ता है। आप लोगों की खुशी या नाखुशी से फर्क पड़ता है। अगर आप लोगों को ये सही नहीं लगता तो हम ये बात दोबारा नहीं करेंगे आप लोगों से।इतना कहकर मैं शांत हो गया। मेरे शांत होने के बाद कुछ देर वहाँ खामोशी छाई रही। सभी के अभिभावक हमको और अपनी बहुओं को देखने लगे। फिर हम लोगों से थोड़ा दूर हटकर कुछ सलाह मशवरा किया और हम लोगों के पास वापस आ गए। कुछ देर बाद पापा ने कहा।पापा- देखो बेटों। हमें तुम लोगों के फैसले से कोई ऐतराज नहीं है। तुम लोगों की खुशी में हमारी भी खुशी है। तुम लोगों के सपनों के बीच हम लोग बाधा नहीं बनेंगे। तुम लोग कोचिंग खोलना चाहते हो तो खुशी खुशी खोलो हम सब लोग तुम्हारे साथ हैं, लेकिन उसके पहले हमारी कुछ शर्त है जो तुम लोगों को पूरा करना होगा। तभी कोचिंग खोलने की इजाजत मिलेगी।हम छहों एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर पापा की शर्त क्या है। थोड़ी देर एक दूसरे को देखने के बाद अभिषेक ने कहा।अभिषेक- आप लोगों की जो भी शर्त है वो हमें मंजूर है। बताईए क्या शर्त है आपकी।म.पापा- बात ये है कि अब हम लोगों की उमर बीत चुकी है। या उमर के उस पड़ाव पर हैं जहाँ हमें बेटों और बहुओं के होते हुए कुछ आराम मिलना चाहिए। तुम तीनों तो सुबह अपने कार्यालय चले जाते हो। कोचिंग खुलने के बाद बहुएँ भी पढ़ाने के लिए चली जाएँगी। तो हम लोगों की सेवा कौन करेगा। इसलिए हम लोग चाहते है कि हमें चाय नाश्ता और खाना यही लोग बनाकर देंगी। ऐसा नहीं कि मम्मी मैं कोचिंग पढ़ाने जा रही हूँ। तो आप खाना बना लीजिएगा, चाय-नाश्ता बना लीजिएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम लोग इन्हें बेटी मानते हैं तो एक मा-बाप की तरह हमें पूरा सम्मान मिलना चाहिए जैसे अभी तक मिलता रहा है। कोई भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए जिससे हमारी मान-मर्यादा को ठेस पहुँचे। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि अगर परिवार की तरफ से छूट मिलती है तो उसका नाजायज फायदा उठाया जाता है।पल्लवी- ऐसा ही होगा पापा। हम लोग ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे हमारे परिवार के ऊपर कोई उंगली उठा सके। आप लोग हमारे माँ बाप हैं। आपकी सेवा करना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी। जो हम हमेशा निभाएँगे। आप लोगों को कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे।अ.पापा- ठीक है फिर तुम लोग कोचिंग खोल सकते हो। पर कोचिंग का नाम क्या रखोगे।अभिषेक- आप लोग ही निर्णय लीजिए की क्या नाम रखा जाए कोचिंग का।पापा- (कुछ देर सोचने के बाद) तुम लोग अपने नाम से ही कोचिंग का नाम क्यों नहीं रख लेते। तीनों के नाम का पहला अक्षर अमन (अभिषेक, महेश, नयन) ।मैं- ठीक है पापा, लेकिन अमन के साथ ही ये कोचिंग सेंटर आप लोगों के आशीर्वाद के बिना नहीं चलना मुश्किल है। तो इसलिए आप लोगों का आशीर्वाद पहले और हम लोगों का नाम बाद में। इसलिए कोचिंग का नाम आशीर्वाद अमन रखेंगे।इस नाम पर सभी लोगों ने अपनी सहमति जता दी। फिर कुछ देर बात-चीत करने के बाद हम लोग अपने अभिभावक के साथ अपने घर पर आ गए। अगले दिन हम लोगों ने मुख्य मार्ग के आस पास कोचिंग सेंटर खोलने के लिए कमरे की तलाश करने लगे। दो चार जगह बात करने के बाद चार बड़ा बड़ा कमरा आसानी से मिल गया। फिर हम लोगों ने कोचिंग खोलने के लिए जरूरी सामान महीने भर में जमा कर लिया और कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया। शुरू के दो महीने तो बच्चों की संख्या कम रही, लेकिन दो महीने के बाद बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी। कोचिंग सेटर अच्छी तरीके से चलने लगा।हम लोगों के गाँव में भी तरह तरह ही बात उठने लगी। कि लालची हैं। पैसे के पीछे भाग रहे हैं। बहुओं के जरिए पैसे कमा रहे हैं। वगैरह वगैरह। कई बड़े बुजुर्ग लोगों ने हम लोगों के पापा से भी इस बारे में बात की कि बहुओ का यूँ घर से बाहर तीन-तीन, चार-चार घंटे रहना अच्छी बात नहीं है। जमाना बहुत खराब है। कोई ऊंच-नीच घटना हो सकती है।, लेकिन हमारे अभिभावकों ने उन्हें बस एक ही जवाब दिया कि मेरी बहुएँ समझदार मैं पढ़ी लिखी हैं। वो आने वाली परेशानियों का सामना कर सकती हैं। शुरू-शुरू में जो बातें उठी थी। वो समय बीतने के साथ धीरे धीरे समाप्त होती चली गई। देखते ही देखते कोचिंग सेंटर बहुत अच्छा चलने लगा। शुरू शुरू में जो लोग मम्मी पापा की बुराई करते थे। वो भी धीरे-धीरे तारीफ करने लगे कि बहु और बेटा हों तो फलाने के बहु बेटे जैसे। हम लोगों का शादीशुदा जीवन भी बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के डेढ़-से दो वर्ष के अंदर ही महेश-पल्लवी, अभिषेक-खुशबू और मैं-महिमा माँ बाप भी बन गए।हमने पढ़ाई में अच्छे कुछ लड़के लड़कियों को भी कोचिंग पढ़ाने के लिए रख लिया। ताकि तीनों लडकियों को कुछ मदद मिल सके।तीन साल बाद।इन तीन सालों में कुछ भी नहीं बदला। हम लोगों की दोस्ती और प्यार वैसे ही रहा जैसे पहले रहा था। हम सभी अपनी पत्नियों के साथ बहुत खुश थे। हमारे अभिभावक भी इतनी संस्कारी और अच्छी बहु पाकर खुश थे। बदलाव बस एक हुआ था कि हमारे कोचिंग सेंटर की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई थी। और हमने ये देखते हुए इस कोचिंग सेंटर की तीन और शाखाएँ खोल दी थी। जिसमें हमने कुछ अच्छे और जानकार लड़के लड़कियों को पढ़ाने के लिए रख लिया था।आज मेरा कार्यालय बंद था तो मैं घर में ही था। सुबह के लगभग 11 बजे का समय था तभी दो लाल बत्ती वाली गाड़ियाँ जो मंडल अधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक की गड़ियाँ थी। आकर मेरे घर के सामने रुकी। उसके साथ एक गाड़ी पुलिस की गाड़ी भी थी। पूरे गाँव में ये चर्चा हो गई थी कि मेरे यहाँ पुलिस वाले आए थे। गाँव के कुछ लोग भी मेरे घर के आस पास आ गए ये पता करने के लिए कि आखिर माजरा क्या है। उस गाड़ी से एक लड़का जो लगभग 26-27 वर्ष का था एवं एक लड़की जो कि 24-25 वर्ष की थी। नीचे उतरे। उस समय पापा घर से बाहर चूल्हे में लगाने के लिए लकड़ी चीर रहे थे और मैं अपने कमरे में कुछ काम कर रहा था। महिमा और काजल अम्मा के साथ बाहर बैठकर बात कर रही थी। साथ में मेरा बेटा भी था। अपने घर पर पुलिस को देखकर एक बार तो सभी डर गए। पापा को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो वो तुरंत उनके पास गए। लड़की और लड़के ने पापा के पैर छुए। लड़की ने विनम्र भाव से पूछा।लड़की- क्या नयन सर का घर यही है।पापा- हाँ यही है आप कौंन हैं।लड़की- जी मेरा नाम दिव्या है मैं कौशाम्बी जिले की पुलिस अधीक्षक हूँ। ये मेरे भाई सुनील कुमार प्रतापगढ़ जिले के मंडल अधिकारी हैं। हमें सर से मिलना था। क्यो वो घर पर हैं।पापा- हाँ। आइए बैठिए। मैं बुलाता हूँ उसे।इतना कहकर पापा ने काजल को कुर्सियाँ लाने के लिए कहा। काजल दौड़कर घर में गई और कुर्सियाँ लेकर आई। तबतक महिमा ने मुझे बता दिया था कि बाहर पुलिस आई है और एक लड़की मुझे पूछ रही है। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैंने ऐसा कौन सा काम कर दिया है जिसके लिए पुलिस को मेरे घर आना पड़ा। मैं भी अपने कमरे से बाहर आया। तो देखा कि एक लड़का और एक लड़की बाहर कुर्सी पर बैठे हुए पापा से बातें कर रहे हैं। मैं उनके पास पहुँच गया और बोला।मैं- हाँ मैडम जी। मैं नयन हूँ आपको कुछ काम था क्या मुझसे।मेरी आवाज सुनकर लड़की कुर्सी से उठी और मेरे पैर छूने लगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की ऐसा क्यो कर रही है। मै थोड़ा पीछे हटकर उस लड़की को अपना पैर छूने से रोका और कहा।मैं- ये आप क्या कर रही हैं मैडम।लड़की- मैं आपकी मैडम नहीं हूँ सर। मैं वही कर रही हूँ जो एक विद्यार्थी को शिक्षक के साथ करना चाहिए।उसकी बात सुनकर मेरे साथ अम्मा पापा भी उसे देखने लगे। मैंने उसके कहा।मैं- ये क्या बोल रही हैं आप मैडम। आप इतनी बड़ी अधिकारी होकर मेरे पैर छू रही हैं। लोग तो आपके पैर छूते हैं। और आप मेरी विद्यार्थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं।इसी बीच काजल ने सबके लिए जलपान लाकर मेज पर रख दिया और अंदर चली गई। लड़की ने कहा।लड़की- सर मैं दिव्या। आपको शायद याद नहीं है। मैं .................... कोचिंग में कक्षा 12 में पढ़ती थी। आगे वाली सीट पर बैठती थी। जिसने अपनी मर्यादा भूलकर गलत हरकत की थी तो आपने एक दिन मुझे एक छोटा लेकिन अनमोल सा ज्ञान दिया था। कुछ याद आया आपको सर जी। मैं वही दिव्या हूँ।लड़की की बात सुनकर मुझे वो वाकया याद आ गया जब मैंने एक लड़की को अपने अंग दिखाने के कारण अकेले में बैठाकर समझाया था। मुझे उसको इस रूप में देखकर बहुत खुशी हुई। मुझे खुशी इस बात की हुई कि उसने मेरी बात को इतनी संजीदगी से लिए और आज इस मुकाम पर पहुँच गई है। मैंने उससे कहा।मैं- दिव्या तुम। मुझे से विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मुझसे मिलने के लिए आओगी। वो भी इस रूप में। मुझे सच में बहुत खुशी हो रही है तुम्हें अफसर के रूप में देखकर।दिव्या- मेरी इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ आपका है सर जी। आज मैं जिस मुकाम पर पहुँची हूँ वो आपके कारण ही संभव हुआ है।मैं- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। ये सब तुम्हारी मेहनत और लगन का परिणाम है। तुमने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।दिव्या- ये सच है सर जी कि मैंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की है, लेकिन मुझे यह मेहनत करने के लिए आपने ही प्रोत्साहित किया था। जब मेरे कदम भटक गए थे तो आप ने ही मेरे भटके कदम को सही राह पर लाने की कोशिश की थी। आपने मुझको समझाया था कि मुझे वो काम करना चाहिए जिससे मेरे माता-पिता का नाम रोशन हो, उन्हें मुझपर गर्व हो, न कि मेरी काम से उनके शर्मिंदगी महसूस हो। मैंने आपकी उस बात को गाँठ बाँध लिया और उसके बाद मैंने कोई की गलत काम नहीं किया और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित किया। और उसी का नतीजा है कि आज मै इस मुकाम पर हूँ। अगर आपने उस दिन मेरे भटकने में मेरा साथ दिया होता तो आज मैं यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती। इसलिए मेरी इस सफलता का श्रेय आपको जाता है सर जी। अब तो आप मुझे अपना आशीर्वाद देंगे न कि मैं भविष्य में और ऊँचाइयों को छुऊँ।मैं- अब तुम बड़ी हो गई हो। और एक अफसर भी बन गई हो। तुम अपने कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों के सामने मेरे पैर छुओ। ये अच्छा नहीं लगता।ये बात मैंने उसके साथ आए हुए पुलिसकर्मियों को देखकर कही थी। जो हम लोगों की तरफ ही देख रहे थे। मेरी बात सुनकर दिव्या ने कहा।दिव्या- मैं चाहे जितनी बड़ी हो जाऊँ और चाहे जितनी बड़ी अधिकारी बन जाऊँ। लोकिन हमेशा आपकी विद्यार्थी ही रहूँगी। और आप हमेशा मेरे गुरु रहेंगे। गुरू का स्थान सबसे बड़ा होता है। मैं अपने कनिष्ठ अधिकारियों कर्मचारियों के सामने आपके पैर छुऊँगी तो में छोटी नहीं हो जाऊँगी सर जी। बल्कि उनको भी ये संदेश मिलेगा कि माता-पिता के बाद शिक्षक ही भगवान के दूसरा रूप होता है। इसलिए आप मुझे अपने आशीर्वाद से वंचित मत करिए सर। आपका आशीर्वाद लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाने वाली।दिव्या ने इतना कहकर मेरे पैर छुए। मैंने इस बार उसको नहीं रोका। मेरे पैर छूने के बाद दिव्या ने कहा।दिव्या- बातों बातों में मैं तो भूल ही गई। ये मेरे भाई हैं सुनील कुमार। ये प्रतापगढ़ में सर्किल अधिकारी (Circle Officer City) के पद पर हैं। मैं इनसे कुछ नहीं छुपाती। जब मैंने भइया को बताया कि मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो ये भी जिद करके मेरे साथ में आ गए। ये भी आपसे मिलना चाहते थे।दिव्या के बताने पर उसने भी मेरे पैरे छूने चाहे तो मैंने उसे मना करते हुए कहा।मैं- देखो मिस्टर सुनील। दिव्या मेरी विद्यार्थी है तो उसने मेरे पैर छुए। लेकिन तुम मेरे विद्यार्थी नहीं हो तो तुम मुझसे गले मिलो।मैं और सुनील आपस में गले मिले। फिर दिव्या ने मुझसे कहा।दिव्या- सर मैंने सुना है कि आपकी शादी भी हो गई है। तो क्या मुझे मैडम से नहीं मिलाएँगे।मैं- अरे क्यों नहीं। (अम्मा पापा की तरफ इशारा करते हुए) ये मेरी अम्मा हैं ये मेरे पापा हैं। (महिमा और काजल को अपने पास बुलाकर), ये मेरी पत्नी महिमा और ये मेरी बहन काजल, और ये मेरा प्यारा बेटा अंश है।दिव्या और सुनील ने मेरे अम्मा और पापा के पाँव छुए। दिव्या ने महिमा के पैर छुए और काजल को अपने गले लगाया और मेरे बेटे को अपनी गोद में उठाकर दुलार किया। सुनील ने महिमा और काजल को नमस्ते किया।कुछ देर बातचीत करने के बाद मैंने दिव्या से पूछा।मैं- दिव्या। तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मिला। तुम कोचिंग गई थी क्या।दिव्या- हाँ सर। मैं कोचिंग गई थी। नित्या मैडम से मिली थी तो उन्होंने बताया कि आपकी शादी हो गई है। फिर कोचिंग के रिकॉर्ड से आपका पता मिल गया। मुझे तो लगता था कि आपका घर ढ़ूढ़ने में परेशानी होगी, लेकिन यहाँ तो मुख्य सड़क पर ही आपके बारे में सब पता चल गया। आपकी कोचिंग के कारण आपको सभी जानते हैं। आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। एक तरह से ये भी समाज सेवा ही है।पापा- ये इसका सपना था बेटी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद इसके सपने को मेरी बहू ने साकार किया है। जिसमें इसके दोस्तों ने बहुत साथ दिया इसका। मेरे बेटे और बहू ने मेरा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।दिव्या- सर हैं ही ऐसे। सर की संगत में जो भी रहेगा उसका भला ही होगा। जिसके पास सर जैसा बेटा हो उसका सिर कभी नहीं झुक सकता चाचा जी। आप से एक निवेदन है चाचा जी अगर आप बुरा न मानें तो।पापा- कहो न बेटी। इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है।दिव्या- मुझे भूख लगी है। तो क्या मैं आपके घर पर खाना खा सकती हूँ। प्लीज।दिव्या ने ये बात इतनी मासूम सी शक्ल बनाकर कही कि हम लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पापा ने कहा।पापा- क्यों नहीं बेटी। तुम सभी लोग खाना खाकर ही जाना घर। मैं अभी खाना बनवाता हूँ तुम लोगों के लिए।इतना कहकह पापा ने महिमा और काजल को सबके लिए खाना बनाने के लिए कहा। दिव्या भी जिद करके महिमा और काजल के साथ रसोईघर में चली गई। सबने मिलकर खाना बनाया। उसके बाद दिव्या, सुनील और उसके उसके साथ जो पुलिस वाले आए थे। सबने खाना खाया। खाना खाने के बाद दिव्या और उसका भाई हम लोगों के विदा लेकर चले गए। उनके जाने के बाद पापा ने कहा।पापा- मुझे तुमपर बहुत गर्व है बेटा। तुमने उस समय जो किया इस बच्ची के साथ। उसे सुनकर मुझे फक्र महसूस होता है कि मैंने तुझे कभी गलत संस्कार नहीं दिए थे। ये भी प्यार को एक स्वरूप है बेटा। जिसके साथ जैसा व्यवहार और प्यार दिखाओगे। देर-सबेर उसका फल भी तुम्हें जरूर मिलेगा। इस बात को हमेशा याद रखना।मैं- जी पापा जरूर।इसी तरह दिन गुजरने लगे। काजल भी अब शादी योग्य हो गई थी 23-24 वर्ष की उम्र हो गई थी। पापा ने जान पहचान वालों से अच्छे रिश्ते के बारे में बोल दिया था। दिव्या को मेरे यहाँ आए हुए दस दिन ही हुए थे एक मैं नौकरी से घर पहुंचा ही था और हाथ मुँह धोकर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। अम्मा और पापा भी साथ में बैठे थे। कि दिव्या का फोन मेरे मोबाइल पर आया।मैं- हेलो दिव्या।दिव्या- प्रणाम सर जी।मै- प्रमाम। बोलो दिव्या। कुछ काम था।दिव्या- सर एक बात कहना था आपसे।मैं- हाँ दिव्या बोलो।दिव्या- मुझे ये पूछना था कि आपकी बहन काजल की शादी कहीं तय हो गई है क्या।मैं- नहीं दिव्या। अभी लड़का देख रहे हैं। अगर कहीं अच्छा लड़का मिला तो शादी कर देंगे।दिव्या- सर अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मना तो नहीं करेंगे।मैं- मेरे पास ऐसा क्या है दिव्या जो मैं तुम्हें दो सकता हूँ। कुछ ज्ञान था जो मैं तुम्हें पहले ही दे चुका हूँ। अब मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उसकी जरूरत होगी। फिर भी बताओ अगर मेरे सामर्थ्य में होगा तो मैं मना नहीं करूँगा।दिव्या- वो आपके सामर्थ्य में ही तभी तो मैं आपसे माँग रही हूँ।मैं- बताओ दिव्या। मैं पूरी कोशिश करूँगा।दिव्या- सर मैं आपकी बहन काजल को अपनी भाभी बनाना चाहती हूँ। अपने भाई के लिए आपकी बहन का हाथ माँग रही हूँ।मैं- क्या। ये क्या बोल रही हो तुम। तुमको कुछ समझ में आ रहा है। कि तुम क्या माँग रही हो।दिव्या- हाँ मुझे पता है कि मैं क्या बोल रही हूँ। मेरे भैया को काजल पसंद है। भैया ने खुद मुझसे कहा है। और भैया ने मम्मी पापा से भी बात कर ली है। उनको भी कोई आपत्ति नहीं है। और आप भी तो काजल के लिए रिश्ता देख ही रहे हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हाँ अगर मेरे भैया आपको अच्छे नहीं लगे तो अलग बता है।मैं- ऐसी बात नहीं है। तुम्हारे भाई में कोई कमी नहीं है। लेकिन कहाँ तुम लोग और कहाँ हम। जमीन आसमान का अंतर है हम दोनों की हैसियत में। और हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम इतनी अच्छी तरह से काजल की शादी कर पाएँगे तुम्हारे भाई के साथ। समझ रही हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। और शादी की बात घर के बड़े बुजुर्गों पर छोड़ देनी चाहिए।दिव्या- आप जो कहना चाहते हैं वो मैं समझ रही हूँ सर जी। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आपकी हैंसियत मुझसे बहुत ज्यादा है सर। मेरी नजर में आपकी हैंसियत आपका पैसा नहीं। आपके संस्कार हैं आपके गुण हैं। और यही सब काजल के अंदर भी है। वो भी आपकी तरह गुणवान है। जिसकी कोई कीमत नहीं है। हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए सर जी। सारा दहेज काजल के गुणों के रूप में हमें मिल जाएगा। बस आप हाँ कर दीजिए।मैं- देखो दिव्या मैं हाँ नहीं बोल सकता। इसके लिए पहले मुझे अपने अम्मा पापा से बात करनी पड़ेगी। अगर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं अभी फोन रखता हूँ। अम्मा पापा से बात करने के बाद तुमको बताऊँगा।इतना कहकर मैंने अपने फोन रख दिया। और अम्मा पापा को सारी बात बता दी जो दिव्या से हुई थी। अम्मा पापा को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े घर का रिश्ता खुद चलकर आया है। लेकिन पापा और अम्मा ने हाँ करने से पहले काजल की राय जाननी चाही। काजल ने कह दिया कि आप लोग जहाँ भी मेरे रिश्ता तय करेंगे मैं वहाँ शादी कर लूँगी। महिमा ने भी इस रिश्ते के लिए अपनी सहमति जता दी। अगले दिन सुबह ही मैंने दिव्या को फोन करके उसके पता लिया और अम्मा पापा को लेकर उसके घर चला गया। दोनों के अभिभावकों ने कुछ देर बात की और दोनों तरफ से रिश्ता तय हो गया। रिश्ता तय होने के बाद मैंने अपने सभी दोस्तो को इस बारे में बता दिया। सभी लोग बहुत खुश हुए। मैंने संजू और पायल को भी इसके बारे में बता दिया। समय बीतने के साथ काजल और सुनील की सगाई धूम धाम से हो गई। सारे गाँव और पास पड़ोस के गाँवों में ये चर्चा का विषय था कि एक गरीब किसान के बेटी की शादी एक मंडल अधिकारी के साथ हो रही है। कुछ को जलन हुई तो कुछ को खुशी मिली। सगाई होने के दो महीने बाद काजल और सुनील की शादी भी धूम-धाम से संपन्न हुई।आज हमारी दोस्ती, हमारा प्यार आज सबकुछ हमारे पास था। इस प्रकार हम सब अपना अपना जीवन खुशी-खुशी बिताने लगे।मित्रों एवं पाठकों।ये कहानी यहीं समाप्त होती है। जैसा कि कहानी के शुरू में मैंने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्यार का अलग-अलग मतलब होता है। हर व्यक्ति प्यार का मतलब अपने अपने हिसाब से निकालता है। किसी के लिए टूट कर प्यार करने वाले के प्यार की कोई कीमत नहीं होती तो किसी के लिए प्यार के दो मीठे बोल ही प्यार की नई इबारत लिख देता है।मैंने इस कहानी से यही बताने का प्रयास किया है कि प्यार के कितने रंग होते हैं और हर इंसान प्यार के किसी न किसी रंग में रंगा होता है।ये कहानी यहीं समाप्त हो गई है तो आप सभी पाठकों से जिन्होंने नियमित कहानी पढ़ी है उनसे भी और जिन्होंने मूक पाठक बनकर कहानी पढ़ी है उनसे भी मैं चाहूँगी कि आप पूरी कहानी से संबंध में अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया/टिप्पणी/समीक्षा चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो, जरूर दें ताकि मुझे भविष्य में आगे लिखने वाली कहानियों के संबंध में प्रेरणा मिल सके और जो भी कमियाँ इस कहानी में रह गई हैं उसे सुधारने की कोशिश कर सकूँ।साथ में उस सभी पाठकों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण समीक्षा देकर मुझे कहानी को लिखने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि बिना समीक्षा के कहानी लिखने में लेखक का भी मन नहीं लगता। साथ ही ऐसे पाठकों को भी धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर नकारात्मक टिप्पणी देकर मुझे यह अवगत कराया कि कहानी में कहाँ कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। जिसमें मुझे सुधार करना चाहिए।कहानी खत्म करने से पहले प्यार को लेकर मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। जिसे आप भी एक बार पढ़ें और आनंद लें।प्यार के कितने फलसफें हैं जिसे बयान नहीं किया जा सकता।
कितने ही अनकहे किस्से हैं जिसे जबान नहीं दिया जा सकता।
तुम्हारे प्रेम में गर हवस है, कपट है, धोखा है, छल है।
तो कसमें कितनी भी खाओ प्यार की सम्मान नहीं किया जा सकता।
किसी को पा लेना ही प्यार नहीं, किसी को खो कर भी प्यार किया जाता है।
हमेशा हँसना ही नहीं सिखाता, कभी रो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार करने के लिए चाहिए सच्ची नीयत, पवित्र मन और खूबसूरत एहसास।
प्यार जीते जी नहीं मिलता कभी कभी, गहरी नींद में सो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार मन के एहसासों से होता है।
प्यार किसी के जज्बातों से होता है।
प्यार के लिए जरूरी नहीं रोज मिलना।
प्यार तो चंद मुलाकातों से होता है।
प्यार में साथ जीने मरने की कसमें हों ये जरूरी नहीं।
हमेशा साथ रहने की भी कसमें हों ये जरूरी नहीं।
कभी कभी प्यार जुदाई भी माँगता है दोस्तों
प्यार किया हो तो शादी की रश्में हों ये जरूरी नहीं।
किसी को प्यार करके बिस्तर पर सुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
वो तुम्हें याद करें और तुम उसे भुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
प्यार एक दूसरे को टूट कर किया जाए ये जरूरी नहीं।
मगर किसी को हँसा कर फिर उसे रूला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
पूर्ण/समाप्त/खत्म
बहुत बहुत धन्यवाद सर जी आपका।Ek aur achchhi kahani samapt ho gayi.
बहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर जी आपका।Nice ending
Very nice story ended with awesome update mahijiसाठवाँ एवं अंतिम भाग
कोचिंग खोलने के लिए अभिषेक और मैं अपने अभिभावक को लेकर महेश के घर चले गए। सबका अभिवादन और प्रणाम करने के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।
अभिषेक- हम लोग एक बहुत जरूरी बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। हम लोग चाहते थे कि ये बाद हमारे माता-पिता के सामने हो। क्योंकि हम लोगों को आपकी सहमति चाहिए।
पापा- बात क्या है ये बताओ।
मैं- पापा आपको पता है। परास्नातक करने के बाद मैंने आपसे कोचिंग सेंटर खोलने की बात की थी तो आपने कहा था कि मैं पहले सरकारी नौकरी के लिए प्रयत्न करूँ। कोचिंग को मैं दूसरे विकल्प के रूप में रखूँ।
पापा- हाँ तुमने मुझसे बात की थी और मैंने तुमको ये बात कही थी।
महेश- तो हम लोग अब भी यही चाहते हैं कि हम तीनों मिलकर एक कोचिंग सेंटर खोलें। जिसमें गाँव के बच्चों को कम शुल्क पर शिक्षित करें। इसी के लिए हम लोगों को आप सब से बात करनी थी।
अ.पापा- लेकिन ये कैसे हो सकता है। सरकारी नौकरी में रहते हुए कोई लाभ का दूसरा काम अपने नाम से नहीं कर सकते तुम तीनों। इसके अलावा तुम्हारे पास समय कहाँ रहेगा कि तुम लोग बच्चों को पढ़ाओ।
अभिषेक- हम लोगों के पास समय नहीं है। लेकिन खुशबू, पल्लवी भाभी और महिमा भाभी के पास तो समय है न। ये तीनों लोग कोचिंग पढ़ा सकती हैं।
म.पापा- क्या। ये तुम क्या बोल रहे हो बेटा। ये लोग कैसे कोचिंग पढ़ा सकती हैं।
महेश- क्यों नहीं पढ़ा सकती पापा। तीनों पढ़ी लिखी हैं। तीनों को अपने विषयों में पकड़ भी है। इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा जब पढ़ाई लिखाई का सदुपयोग ही न हो तो।
म.मम्मी- लेकिन इसके लिए पहले इन तीनों से तो पूछ लो कि ये तैयार हैं या नहीं पढ़ाने के लिए।
मैं- इस बारे में उन लोगों से बात हो चुकी है। उनकी सहमति मिलने के बाद ही आप लोगों के समक्ष अपनी बात रख रहा हूँ।
मम्मी- वो तो ठीक है बेटा। लेकिन बहुएँ अगर कोचिंग पढ़ाने जाएँगी तो गाँव समाज में तरह-तरह की बातें उठने लगेंगी। उसका क्या।
अभिषेक- उसी लिए तो हम लोगों ने आप सबसे बात करना उचित समझा। अपने गाँव के आस-पास कोई ढंग का कोचिंग सेंटर नहीं है। और जो है भी वहाँ एक ही विषय पढाया जाता है। दूसरे विषय के लिए दूसरी कोचिंग में जाना पड़ता है। ऊपर से हर विषय के लिए अलग-अलग शुल्क जमा करने पड़ता है, लेकिन हमने जिस कोचिंग सेंटर के बारे में सोचा है उसमें सभी महत्त्वपूर्ण विषय एक ही जगह बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएगा।
म.पापा- बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि गाँव समाज तरह तरह की बातें बनाने लगेगा। तुम लोगों को तो पता है कि कोई भी अच्छा काम अगर शुरू करो तो उसकी सराहना करने वाले कम और नुक्श निकालने वाले ज्यादा लोग आ जाते हैं।
मैं- हम लोग जो भी काम करने चाहते हैं आप लोगों की सहमति से करना चाहते हैं। मैं ये जानता हूँ कि गाँव के कुछ लोग हैं जिनको हमारी पत्नियों के कोचिंग पढ़ाने से परेशानी होगी। कुछ दिन बात बनाएँगे और बाद में सब चुप हो जाएँगे और हम समाज की खुशी के लिए अपने अरमानों का गला तो नहीं घोंट सकते। इन लोगों की इच्छा है कि ये लोग भी कुछ काम करें, लेकिन गाँव में काम मिलने से रहा और ये लोग आप लोगों को छोड़कर शहर जाकर काम करेंगी नहीं। तो इन लोगों को भी तो अपनी इच्छाओं/सपनों को पूरा करने का हक है। जो ये कोचिंग पढ़ाकर पूरा करना चाहती हैं। हमारे सपने को ये लोग साकार करना चाहती हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हम जो कुछ कर रहे हैं समाज के हित के लिए कर रहे हैं। समाज में रहने वाले बच्चों के लिए कर रहे हैं। हमें समाज की नहीं आप लोगों की हाँ और न से फर्क पड़ता है। आप लोगों की खुशी या नाखुशी से फर्क पड़ता है। अगर आप लोगों को ये सही नहीं लगता तो हम ये बात दोबारा नहीं करेंगे आप लोगों से।
इतना कहकर मैं शांत हो गया। मेरे शांत होने के बाद कुछ देर वहाँ खामोशी छाई रही। सभी के अभिभावक हमको और अपनी बहुओं को देखने लगे। फिर हम लोगों से थोड़ा दूर हटकर कुछ सलाह मशवरा किया और हम लोगों के पास वापस आ गए। कुछ देर बाद पापा ने कहा।
पापा- देखो बेटों। हमें तुम लोगों के फैसले से कोई ऐतराज नहीं है। तुम लोगों की खुशी में हमारी भी खुशी है। तुम लोगों के सपनों के बीच हम लोग बाधा नहीं बनेंगे। तुम लोग कोचिंग खोलना चाहते हो तो खुशी खुशी खोलो हम सब लोग तुम्हारे साथ हैं, लेकिन उसके पहले हमारी कुछ शर्त है जो तुम लोगों को पूरा करना होगा। तभी कोचिंग खोलने की इजाजत मिलेगी।
हम छहों एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर पापा की शर्त क्या है। थोड़ी देर एक दूसरे को देखने के बाद अभिषेक ने कहा।
अभिषेक- आप लोगों की जो भी शर्त है वो हमें मंजूर है। बताईए क्या शर्त है आपकी।
म.पापा- बात ये है कि अब हम लोगों की उमर बीत चुकी है। या उमर के उस पड़ाव पर हैं जहाँ हमें बेटों और बहुओं के होते हुए कुछ आराम मिलना चाहिए। तुम तीनों तो सुबह अपने कार्यालय चले जाते हो। कोचिंग खुलने के बाद बहुएँ भी पढ़ाने के लिए चली जाएँगी। तो हम लोगों की सेवा कौन करेगा। इसलिए हम लोग चाहते है कि हमें चाय नाश्ता और खाना यही लोग बनाकर देंगी। ऐसा नहीं कि मम्मी मैं कोचिंग पढ़ाने जा रही हूँ। तो आप खाना बना लीजिएगा, चाय-नाश्ता बना लीजिएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम लोग इन्हें बेटी मानते हैं तो एक मा-बाप की तरह हमें पूरा सम्मान मिलना चाहिए जैसे अभी तक मिलता रहा है। कोई भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए जिससे हमारी मान-मर्यादा को ठेस पहुँचे। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि अगर परिवार की तरफ से छूट मिलती है तो उसका नाजायज फायदा उठाया जाता है।
पल्लवी- ऐसा ही होगा पापा। हम लोग ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे हमारे परिवार के ऊपर कोई उंगली उठा सके। आप लोग हमारे माँ बाप हैं। आपकी सेवा करना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी। जो हम हमेशा निभाएँगे। आप लोगों को कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे।
अ.पापा- ठीक है फिर तुम लोग कोचिंग खोल सकते हो। पर कोचिंग का नाम क्या रखोगे।
अभिषेक- आप लोग ही निर्णय लीजिए की क्या नाम रखा जाए कोचिंग का।
पापा- (कुछ देर सोचने के बाद) तुम लोग अपने नाम से ही कोचिंग का नाम क्यों नहीं रख लेते। तीनों के नाम का पहला अक्षर अमन (अभिषेक, महेश, नयन) ।
मैं- ठीक है पापा, लेकिन अमन के साथ ही ये कोचिंग सेंटर आप लोगों के आशीर्वाद के बिना नहीं चलना मुश्किल है। तो इसलिए आप लोगों का आशीर्वाद पहले और हम लोगों का नाम बाद में। इसलिए कोचिंग का नाम आशीर्वाद अमन रखेंगे।
इस नाम पर सभी लोगों ने अपनी सहमति जता दी। फिर कुछ देर बात-चीत करने के बाद हम लोग अपने अभिभावक के साथ अपने घर पर आ गए। अगले दिन हम लोगों ने मुख्य मार्ग के आस पास कोचिंग सेंटर खोलने के लिए कमरे की तलाश करने लगे। दो चार जगह बात करने के बाद चार बड़ा बड़ा कमरा आसानी से मिल गया। फिर हम लोगों ने कोचिंग खोलने के लिए जरूरी सामान महीने भर में जमा कर लिया और कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया। शुरू के दो महीने तो बच्चों की संख्या कम रही, लेकिन दो महीने के बाद बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी। कोचिंग सेटर अच्छी तरीके से चलने लगा।
हम लोगों के गाँव में भी तरह तरह ही बात उठने लगी। कि लालची हैं। पैसे के पीछे भाग रहे हैं। बहुओं के जरिए पैसे कमा रहे हैं। वगैरह वगैरह। कई बड़े बुजुर्ग लोगों ने हम लोगों के पापा से भी इस बारे में बात की कि बहुओ का यूँ घर से बाहर तीन-तीन, चार-चार घंटे रहना अच्छी बात नहीं है। जमाना बहुत खराब है। कोई ऊंच-नीच घटना हो सकती है।, लेकिन हमारे अभिभावकों ने उन्हें बस एक ही जवाब दिया कि मेरी बहुएँ समझदार मैं पढ़ी लिखी हैं। वो आने वाली परेशानियों का सामना कर सकती हैं। शुरू-शुरू में जो बातें उठी थी। वो समय बीतने के साथ धीरे धीरे समाप्त होती चली गई। देखते ही देखते कोचिंग सेंटर बहुत अच्छा चलने लगा। शुरू शुरू में जो लोग मम्मी पापा की बुराई करते थे। वो भी धीरे-धीरे तारीफ करने लगे कि बहु और बेटा हों तो फलाने के बहु बेटे जैसे। हम लोगों का शादीशुदा जीवन भी बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के डेढ़-से दो वर्ष के अंदर ही महेश-पल्लवी, अभिषेक-खुशबू और मैं-महिमा माँ बाप भी बन गए।हमने पढ़ाई में अच्छे कुछ लड़के लड़कियों को भी कोचिंग पढ़ाने के लिए रख लिया। ताकि तीनों लडकियों को कुछ मदद मिल सके।
तीन साल बाद।
इन तीन सालों में कुछ भी नहीं बदला। हम लोगों की दोस्ती और प्यार वैसे ही रहा जैसे पहले रहा था। हम सभी अपनी पत्नियों के साथ बहुत खुश थे। हमारे अभिभावक भी इतनी संस्कारी और अच्छी बहु पाकर खुश थे। बदलाव बस एक हुआ था कि हमारे कोचिंग सेंटर की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई थी। और हमने ये देखते हुए इस कोचिंग सेंटर की तीन और शाखाएँ खोल दी थी। जिसमें हमने कुछ अच्छे और जानकार लड़के लड़कियों को पढ़ाने के लिए रख लिया था।
आज मेरा कार्यालय बंद था तो मैं घर में ही था। सुबह के लगभग 11 बजे का समय था तभी दो लाल बत्ती वाली गाड़ियाँ जो मंडल अधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक की गड़ियाँ थी। आकर मेरे घर के सामने रुकी। उसके साथ एक गाड़ी पुलिस की गाड़ी भी थी। पूरे गाँव में ये चर्चा हो गई थी कि मेरे यहाँ पुलिस वाले आए थे। गाँव के कुछ लोग भी मेरे घर के आस पास आ गए ये पता करने के लिए कि आखिर माजरा क्या है। उस गाड़ी से एक लड़का जो लगभग 26-27 वर्ष का था एवं एक लड़की जो कि 24-25 वर्ष की थी। नीचे उतरे। उस समय पापा घर से बाहर चूल्हे में लगाने के लिए लकड़ी चीर रहे थे और मैं अपने कमरे में कुछ काम कर रहा था। महिमा और काजल अम्मा के साथ बाहर बैठकर बात कर रही थी। साथ में मेरा बेटा भी था। अपने घर पर पुलिस को देखकर एक बार तो सभी डर गए। पापा को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो वो तुरंत उनके पास गए। लड़की और लड़के ने पापा के पैर छुए। लड़की ने विनम्र भाव से पूछा।
लड़की- क्या नयन सर का घर यही है।
पापा- हाँ यही है आप कौंन हैं।
लड़की- जी मेरा नाम दिव्या है मैं कौशाम्बी जिले की पुलिस अधीक्षक हूँ। ये मेरे भाई सुनील कुमार प्रतापगढ़ जिले के मंडल अधिकारी हैं। हमें सर से मिलना था। क्यो वो घर पर हैं।
पापा- हाँ। आइए बैठिए। मैं बुलाता हूँ उसे।
इतना कहकर पापा ने काजल को कुर्सियाँ लाने के लिए कहा। काजल दौड़कर घर में गई और कुर्सियाँ लेकर आई। तबतक महिमा ने मुझे बता दिया था कि बाहर पुलिस आई है और एक लड़की मुझे पूछ रही है। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैंने ऐसा कौन सा काम कर दिया है जिसके लिए पुलिस को मेरे घर आना पड़ा। मैं भी अपने कमरे से बाहर आया। तो देखा कि एक लड़का और एक लड़की बाहर कुर्सी पर बैठे हुए पापा से बातें कर रहे हैं। मैं उनके पास पहुँच गया और बोला।
मैं- हाँ मैडम जी। मैं नयन हूँ आपको कुछ काम था क्या मुझसे।
मेरी आवाज सुनकर लड़की कुर्सी से उठी और मेरे पैर छूने लगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की ऐसा क्यो कर रही है। मै थोड़ा पीछे हटकर उस लड़की को अपना पैर छूने से रोका और कहा।
मैं- ये आप क्या कर रही हैं मैडम।
लड़की- मैं आपकी मैडम नहीं हूँ सर। मैं वही कर रही हूँ जो एक विद्यार्थी को शिक्षक के साथ करना चाहिए।
उसकी बात सुनकर मेरे साथ अम्मा पापा भी उसे देखने लगे। मैंने उसके कहा।
मैं- ये क्या बोल रही हैं आप मैडम। आप इतनी बड़ी अधिकारी होकर मेरे पैर छू रही हैं। लोग तो आपके पैर छूते हैं। और आप मेरी विद्यार्थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं।
इसी बीच काजल ने सबके लिए जलपान लाकर मेज पर रख दिया और अंदर चली गई। लड़की ने कहा।
लड़की- सर मैं दिव्या। आपको शायद याद नहीं है। मैं .................... कोचिंग में कक्षा 12 में पढ़ती थी। आगे वाली सीट पर बैठती थी। जिसने अपनी मर्यादा भूलकर गलत हरकत की थी तो आपने एक दिन मुझे एक छोटा लेकिन अनमोल सा ज्ञान दिया था। कुछ याद आया आपको सर जी। मैं वही दिव्या हूँ।
लड़की की बात सुनकर मुझे वो वाकया याद आ गया जब मैंने एक लड़की को अपने अंग दिखाने के कारण अकेले में बैठाकर समझाया था। मुझे उसको इस रूप में देखकर बहुत खुशी हुई। मुझे खुशी इस बात की हुई कि उसने मेरी बात को इतनी संजीदगी से लिए और आज इस मुकाम पर पहुँच गई है। मैंने उससे कहा।
मैं- दिव्या तुम। मुझे से विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मुझसे मिलने के लिए आओगी। वो भी इस रूप में। मुझे सच में बहुत खुशी हो रही है तुम्हें अफसर के रूप में देखकर।
दिव्या- मेरी इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ आपका है सर जी। आज मैं जिस मुकाम पर पहुँची हूँ वो आपके कारण ही संभव हुआ है।
मैं- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। ये सब तुम्हारी मेहनत और लगन का परिणाम है। तुमने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।
दिव्या- ये सच है सर जी कि मैंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की है, लेकिन मुझे यह मेहनत करने के लिए आपने ही प्रोत्साहित किया था। जब मेरे कदम भटक गए थे तो आप ने ही मेरे भटके कदम को सही राह पर लाने की कोशिश की थी। आपने मुझको समझाया था कि मुझे वो काम करना चाहिए जिससे मेरे माता-पिता का नाम रोशन हो, उन्हें मुझपर गर्व हो, न कि मेरी काम से उनके शर्मिंदगी महसूस हो। मैंने आपकी उस बात को गाँठ बाँध लिया और उसके बाद मैंने कोई की गलत काम नहीं किया और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित किया। और उसी का नतीजा है कि आज मै इस मुकाम पर हूँ। अगर आपने उस दिन मेरे भटकने में मेरा साथ दिया होता तो आज मैं यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती। इसलिए मेरी इस सफलता का श्रेय आपको जाता है सर जी। अब तो आप मुझे अपना आशीर्वाद देंगे न कि मैं भविष्य में और ऊँचाइयों को छुऊँ।
मैं- अब तुम बड़ी हो गई हो। और एक अफसर भी बन गई हो। तुम अपने कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों के सामने मेरे पैर छुओ। ये अच्छा नहीं लगता।
ये बात मैंने उसके साथ आए हुए पुलिसकर्मियों को देखकर कही थी। जो हम लोगों की तरफ ही देख रहे थे। मेरी बात सुनकर दिव्या ने कहा।
दिव्या- मैं चाहे जितनी बड़ी हो जाऊँ और चाहे जितनी बड़ी अधिकारी बन जाऊँ। लोकिन हमेशा आपकी विद्यार्थी ही रहूँगी। और आप हमेशा मेरे गुरु रहेंगे। गुरू का स्थान सबसे बड़ा होता है। मैं अपने कनिष्ठ अधिकारियों कर्मचारियों के सामने आपके पैर छुऊँगी तो में छोटी नहीं हो जाऊँगी सर जी। बल्कि उनको भी ये संदेश मिलेगा कि माता-पिता के बाद शिक्षक ही भगवान के दूसरा रूप होता है। इसलिए आप मुझे अपने आशीर्वाद से वंचित मत करिए सर। आपका आशीर्वाद लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाने वाली।
दिव्या ने इतना कहकर मेरे पैर छुए। मैंने इस बार उसको नहीं रोका। मेरे पैर छूने के बाद दिव्या ने कहा।
दिव्या- बातों बातों में मैं तो भूल ही गई। ये मेरे भाई हैं सुनील कुमार। ये प्रतापगढ़ में सर्किल अधिकारी (Circle Officer City) के पद पर हैं। मैं इनसे कुछ नहीं छुपाती। जब मैंने भइया को बताया कि मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो ये भी जिद करके मेरे साथ में आ गए। ये भी आपसे मिलना चाहते थे।
दिव्या के बताने पर उसने भी मेरे पैरे छूने चाहे तो मैंने उसे मना करते हुए कहा।
मैं- देखो मिस्टर सुनील। दिव्या मेरी विद्यार्थी है तो उसने मेरे पैर छुए। लेकिन तुम मेरे विद्यार्थी नहीं हो तो तुम मुझसे गले मिलो।
मैं और सुनील आपस में गले मिले। फिर दिव्या ने मुझसे कहा।
दिव्या- सर मैंने सुना है कि आपकी शादी भी हो गई है। तो क्या मुझे मैडम से नहीं मिलाएँगे।
मैं- अरे क्यों नहीं। (अम्मा पापा की तरफ इशारा करते हुए) ये मेरी अम्मा हैं ये मेरे पापा हैं। (महिमा और काजल को अपने पास बुलाकर), ये मेरी पत्नी महिमा और ये मेरी बहन काजल, और ये मेरा प्यारा बेटा अंश है।
दिव्या और सुनील ने मेरे अम्मा और पापा के पाँव छुए। दिव्या ने महिमा के पैर छुए और काजल को अपने गले लगाया और मेरे बेटे को अपनी गोद में उठाकर दुलार किया। सुनील ने महिमा और काजल को नमस्ते किया।कुछ देर बातचीत करने के बाद मैंने दिव्या से पूछा।
मैं- दिव्या। तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मिला। तुम कोचिंग गई थी क्या।
दिव्या- हाँ सर। मैं कोचिंग गई थी। नित्या मैडम से मिली थी तो उन्होंने बताया कि आपकी शादी हो गई है। फिर कोचिंग के रिकॉर्ड से आपका पता मिल गया। मुझे तो लगता था कि आपका घर ढ़ूढ़ने में परेशानी होगी, लेकिन यहाँ तो मुख्य सड़क पर ही आपके बारे में सब पता चल गया। आपकी कोचिंग के कारण आपको सभी जानते हैं। आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। एक तरह से ये भी समाज सेवा ही है।
पापा- ये इसका सपना था बेटी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद इसके सपने को मेरी बहू ने साकार किया है। जिसमें इसके दोस्तों ने बहुत साथ दिया इसका। मेरे बेटे और बहू ने मेरा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।
दिव्या- सर हैं ही ऐसे। सर की संगत में जो भी रहेगा उसका भला ही होगा। जिसके पास सर जैसा बेटा हो उसका सिर कभी नहीं झुक सकता चाचा जी। आप से एक निवेदन है चाचा जी अगर आप बुरा न मानें तो।
पापा- कहो न बेटी। इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है।
दिव्या- मुझे भूख लगी है। तो क्या मैं आपके घर पर खाना खा सकती हूँ। प्लीज।
दिव्या ने ये बात इतनी मासूम सी शक्ल बनाकर कही कि हम लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पापा ने कहा।
पापा- क्यों नहीं बेटी। तुम सभी लोग खाना खाकर ही जाना घर। मैं अभी खाना बनवाता हूँ तुम लोगों के लिए।
इतना कहकह पापा ने महिमा और काजल को सबके लिए खाना बनाने के लिए कहा। दिव्या भी जिद करके महिमा और काजल के साथ रसोईघर में चली गई। सबने मिलकर खाना बनाया। उसके बाद दिव्या, सुनील और उसके उसके साथ जो पुलिस वाले आए थे। सबने खाना खाया। खाना खाने के बाद दिव्या और उसका भाई हम लोगों के विदा लेकर चले गए। उनके जाने के बाद पापा ने कहा।
पापा- मुझे तुमपर बहुत गर्व है बेटा। तुमने उस समय जो किया इस बच्ची के साथ। उसे सुनकर मुझे फक्र महसूस होता है कि मैंने तुझे कभी गलत संस्कार नहीं दिए थे। ये भी प्यार को एक स्वरूप है बेटा। जिसके साथ जैसा व्यवहार और प्यार दिखाओगे। देर-सबेर उसका फल भी तुम्हें जरूर मिलेगा। इस बात को हमेशा याद रखना।
मैं- जी पापा जरूर।
इसी तरह दिन गुजरने लगे। काजल भी अब शादी योग्य हो गई थी 23-24 वर्ष की उम्र हो गई थी। पापा ने जान पहचान वालों से अच्छे रिश्ते के बारे में बोल दिया था। दिव्या को मेरे यहाँ आए हुए दस दिन ही हुए थे एक मैं नौकरी से घर पहुंचा ही था और हाथ मुँह धोकर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। अम्मा और पापा भी साथ में बैठे थे। कि दिव्या का फोन मेरे मोबाइल पर आया।
मैं- हेलो दिव्या।
दिव्या- प्रणाम सर जी।
मै- प्रमाम। बोलो दिव्या। कुछ काम था।
दिव्या- सर एक बात कहना था आपसे।
मैं- हाँ दिव्या बोलो।
दिव्या- मुझे ये पूछना था कि आपकी बहन काजल की शादी कहीं तय हो गई है क्या।
मैं- नहीं दिव्या। अभी लड़का देख रहे हैं। अगर कहीं अच्छा लड़का मिला तो शादी कर देंगे।
दिव्या- सर अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मना तो नहीं करेंगे।
मैं- मेरे पास ऐसा क्या है दिव्या जो मैं तुम्हें दो सकता हूँ। कुछ ज्ञान था जो मैं तुम्हें पहले ही दे चुका हूँ। अब मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उसकी जरूरत होगी। फिर भी बताओ अगर मेरे सामर्थ्य में होगा तो मैं मना नहीं करूँगा।
दिव्या- वो आपके सामर्थ्य में ही तभी तो मैं आपसे माँग रही हूँ।
मैं- बताओ दिव्या। मैं पूरी कोशिश करूँगा।
दिव्या- सर मैं आपकी बहन काजल को अपनी भाभी बनाना चाहती हूँ। अपने भाई के लिए आपकी बहन का हाथ माँग रही हूँ।
मैं- क्या। ये क्या बोल रही हो तुम। तुमको कुछ समझ में आ रहा है। कि तुम क्या माँग रही हो।
दिव्या- हाँ मुझे पता है कि मैं क्या बोल रही हूँ। मेरे भैया को काजल पसंद है। भैया ने खुद मुझसे कहा है। और भैया ने मम्मी पापा से भी बात कर ली है। उनको भी कोई आपत्ति नहीं है। और आप भी तो काजल के लिए रिश्ता देख ही रहे हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हाँ अगर मेरे भैया आपको अच्छे नहीं लगे तो अलग बता है।
मैं- ऐसी बात नहीं है। तुम्हारे भाई में कोई कमी नहीं है। लेकिन कहाँ तुम लोग और कहाँ हम। जमीन आसमान का अंतर है हम दोनों की हैसियत में। और हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम इतनी अच्छी तरह से काजल की शादी कर पाएँगे तुम्हारे भाई के साथ। समझ रही हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। और शादी की बात घर के बड़े बुजुर्गों पर छोड़ देनी चाहिए।
दिव्या- आप जो कहना चाहते हैं वो मैं समझ रही हूँ सर जी। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आपकी हैंसियत मुझसे बहुत ज्यादा है सर। मेरी नजर में आपकी हैंसियत आपका पैसा नहीं। आपके संस्कार हैं आपके गुण हैं। और यही सब काजल के अंदर भी है। वो भी आपकी तरह गुणवान है। जिसकी कोई कीमत नहीं है। हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए सर जी। सारा दहेज काजल के गुणों के रूप में हमें मिल जाएगा। बस आप हाँ कर दीजिए।
मैं- देखो दिव्या मैं हाँ नहीं बोल सकता। इसके लिए पहले मुझे अपने अम्मा पापा से बात करनी पड़ेगी। अगर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं अभी फोन रखता हूँ। अम्मा पापा से बात करने के बाद तुमको बताऊँगा।
इतना कहकर मैंने अपने फोन रख दिया। और अम्मा पापा को सारी बात बता दी जो दिव्या से हुई थी। अम्मा पापा को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े घर का रिश्ता खुद चलकर आया है। लेकिन पापा और अम्मा ने हाँ करने से पहले काजल की राय जाननी चाही। काजल ने कह दिया कि आप लोग जहाँ भी मेरे रिश्ता तय करेंगे मैं वहाँ शादी कर लूँगी। महिमा ने भी इस रिश्ते के लिए अपनी सहमति जता दी। अगले दिन सुबह ही मैंने दिव्या को फोन करके उसके पता लिया और अम्मा पापा को लेकर उसके घर चला गया। दोनों के अभिभावकों ने कुछ देर बात की और दोनों तरफ से रिश्ता तय हो गया। रिश्ता तय होने के बाद मैंने अपने सभी दोस्तो को इस बारे में बता दिया। सभी लोग बहुत खुश हुए। मैंने संजू और पायल को भी इसके बारे में बता दिया। समय बीतने के साथ काजल और सुनील की सगाई धूम धाम से हो गई। सारे गाँव और पास पड़ोस के गाँवों में ये चर्चा का विषय था कि एक गरीब किसान के बेटी की शादी एक मंडल अधिकारी के साथ हो रही है। कुछ को जलन हुई तो कुछ को खुशी मिली। सगाई होने के दो महीने बाद काजल और सुनील की शादी भी धूम-धाम से संपन्न हुई।
आज हमारी दोस्ती, हमारा प्यार आज सबकुछ हमारे पास था। इस प्रकार हम सब अपना अपना जीवन खुशी-खुशी बिताने लगे।
मित्रों एवं पाठकों।
ये कहानी यहीं समाप्त होती है। जैसा कि कहानी के शुरू में मैंने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्यार का अलग-अलग मतलब होता है। हर व्यक्ति प्यार का मतलब अपने अपने हिसाब से निकालता है। किसी के लिए टूट कर प्यार करने वाले के प्यार की कोई कीमत नहीं होती तो किसी के लिए प्यार के दो मीठे बोल ही प्यार की नई इबारत लिख देता है।
मैंने इस कहानी से यही बताने का प्रयास किया है कि प्यार के कितने रंग होते हैं और हर इंसान प्यार के किसी न किसी रंग में रंगा होता है।
ये कहानी यहीं समाप्त हो गई है तो आप सभी पाठकों से जिन्होंने नियमित कहानी पढ़ी है उनसे भी और जिन्होंने मूक पाठक बनकर कहानी पढ़ी है उनसे भी मैं चाहूँगी कि आप पूरी कहानी से संबंध में अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया/टिप्पणी/समीक्षा चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो, जरूर दें ताकि मुझे भविष्य में आगे लिखने वाली कहानियों के संबंध में प्रेरणा मिल सके और जो भी कमियाँ इस कहानी में रह गई हैं उसे सुधारने की कोशिश कर सकूँ।
साथ में उस सभी पाठकों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण समीक्षा देकर मुझे कहानी को लिखने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि बिना समीक्षा के कहानी लिखने में लेखक का भी मन नहीं लगता। साथ ही ऐसे पाठकों को भी धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर नकारात्मक टिप्पणी देकर मुझे यह अवगत कराया कि कहानी में कहाँ कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। जिसमें मुझे सुधार करना चाहिए।
कहानी खत्म करने से पहले प्यार को लेकर मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। जिसे आप भी एक बार पढ़ें और आनंद लें।
प्यार के कितने फलसफें हैं जिसे बयान नहीं किया जा सकता।
कितने ही अनकहे किस्से हैं जिसे जबान नहीं दिया जा सकता।
तुम्हारे प्रेम में गर हवस है, कपट है, धोखा है, छल है।
तो कसमें कितनी भी खाओ प्यार की सम्मान नहीं किया जा सकता।
किसी को पा लेना ही प्यार नहीं, किसी को खो कर भी प्यार किया जाता है।
हमेशा हँसना ही नहीं सिखाता, कभी रो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार करने के लिए चाहिए सच्ची नीयत, पवित्र मन और खूबसूरत एहसास।
प्यार जीते जी नहीं मिलता कभी कभी, गहरी नींद में सो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार मन के एहसासों से होता है।
प्यार किसी के जज्बातों से होता है।
प्यार के लिए जरूरी नहीं रोज मिलना।
प्यार तो चंद मुलाकातों से होता है।
प्यार में साथ जीने मरने की कसमें हों ये जरूरी नहीं।
हमेशा साथ रहने की भी कसमें हों ये जरूरी नहीं।
कभी कभी प्यार जुदाई भी माँगता है दोस्तों
प्यार किया हो तो शादी की रश्में हों ये जरूरी नहीं।
किसी को प्यार करके बिस्तर पर सुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
वो तुम्हें याद करें और तुम उसे भुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
प्यार एक दूसरे को टूट कर किया जाए ये जरूरी नहीं।
मगर किसी को हँसा कर फिर उसे रूला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
पूर्ण/समाप्त/खत्म
बहुत बहुत धन्यवाद सर जी आपका।Very nice story ended with awesome update mahiji
साठवाँ एवं अंतिम भागकोचिंग खोलने के लिए अभिषेक और मैं अपने अभिभावक को लेकर महेश के घर चले गए। सबका अभिवादन और प्रणाम करने के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।अभिषेक- हम लोग एक बहुत जरूरी बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। हम लोग चाहते थे कि ये बाद हमारे माता-पिता के सामने हो। क्योंकि हम लोगों को आपकी सहमति चाहिए।पापा- बात क्या है ये बताओ।मैं- पापा आपको पता है। परास्नातक करने के बाद मैंने आपसे कोचिंग सेंटर खोलने की बात की थी तो आपने कहा था कि मैं पहले सरकारी नौकरी के लिए प्रयत्न करूँ। कोचिंग को मैं दूसरे विकल्प के रूप में रखूँ।पापा- हाँ तुमने मुझसे बात की थी और मैंने तुमको ये बात कही थी।महेश- तो हम लोग अब भी यही चाहते हैं कि हम तीनों मिलकर एक कोचिंग सेंटर खोलें। जिसमें गाँव के बच्चों को कम शुल्क पर शिक्षित करें। इसी के लिए हम लोगों को आप सब से बात करनी थी।अ.पापा- लेकिन ये कैसे हो सकता है। सरकारी नौकरी में रहते हुए कोई लाभ का दूसरा काम अपने नाम से नहीं कर सकते तुम तीनों। इसके अलावा तुम्हारे पास समय कहाँ रहेगा कि तुम लोग बच्चों को पढ़ाओ।अभिषेक- हम लोगों के पास समय नहीं है। लेकिन खुशबू, पल्लवी भाभी और महिमा भाभी के पास तो समय है न। ये तीनों लोग कोचिंग पढ़ा सकती हैं।म.पापा- क्या। ये तुम क्या बोल रहे हो बेटा। ये लोग कैसे कोचिंग पढ़ा सकती हैं।महेश- क्यों नहीं पढ़ा सकती पापा। तीनों पढ़ी लिखी हैं। तीनों को अपने विषयों में पकड़ भी है। इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा जब पढ़ाई लिखाई का सदुपयोग ही न हो तो।म.मम्मी- लेकिन इसके लिए पहले इन तीनों से तो पूछ लो कि ये तैयार हैं या नहीं पढ़ाने के लिए।मैं- इस बारे में उन लोगों से बात हो चुकी है। उनकी सहमति मिलने के बाद ही आप लोगों के समक्ष अपनी बात रख रहा हूँ।मम्मी- वो तो ठीक है बेटा। लेकिन बहुएँ अगर कोचिंग पढ़ाने जाएँगी तो गाँव समाज में तरह-तरह की बातें उठने लगेंगी। उसका क्या।अभिषेक- उसी लिए तो हम लोगों ने आप सबसे बात करना उचित समझा। अपने गाँव के आस-पास कोई ढंग का कोचिंग सेंटर नहीं है। और जो है भी वहाँ एक ही विषय पढाया जाता है। दूसरे विषय के लिए दूसरी कोचिंग में जाना पड़ता है। ऊपर से हर विषय के लिए अलग-अलग शुल्क जमा करने पड़ता है, लेकिन हमने जिस कोचिंग सेंटर के बारे में सोचा है उसमें सभी महत्त्वपूर्ण विषय एक ही जगह बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएगा।म.पापा- बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि गाँव समाज तरह तरह की बातें बनाने लगेगा। तुम लोगों को तो पता है कि कोई भी अच्छा काम अगर शुरू करो तो उसकी सराहना करने वाले कम और नुक्श निकालने वाले ज्यादा लोग आ जाते हैं।मैं- हम लोग जो भी काम करने चाहते हैं आप लोगों की सहमति से करना चाहते हैं। मैं ये जानता हूँ कि गाँव के कुछ लोग हैं जिनको हमारी पत्नियों के कोचिंग पढ़ाने से परेशानी होगी। कुछ दिन बात बनाएँगे और बाद में सब चुप हो जाएँगे और हम समाज की खुशी के लिए अपने अरमानों का गला तो नहीं घोंट सकते। इन लोगों की इच्छा है कि ये लोग भी कुछ काम करें, लेकिन गाँव में काम मिलने से रहा और ये लोग आप लोगों को छोड़कर शहर जाकर काम करेंगी नहीं। तो इन लोगों को भी तो अपनी इच्छाओं/सपनों को पूरा करने का हक है। जो ये कोचिंग पढ़ाकर पूरा करना चाहती हैं। हमारे सपने को ये लोग साकार करना चाहती हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हम जो कुछ कर रहे हैं समाज के हित के लिए कर रहे हैं। समाज में रहने वाले बच्चों के लिए कर रहे हैं। हमें समाज की नहीं आप लोगों की हाँ और न से फर्क पड़ता है। आप लोगों की खुशी या नाखुशी से फर्क पड़ता है। अगर आप लोगों को ये सही नहीं लगता तो हम ये बात दोबारा नहीं करेंगे आप लोगों से।इतना कहकर मैं शांत हो गया। मेरे शांत होने के बाद कुछ देर वहाँ खामोशी छाई रही। सभी के अभिभावक हमको और अपनी बहुओं को देखने लगे। फिर हम लोगों से थोड़ा दूर हटकर कुछ सलाह मशवरा किया और हम लोगों के पास वापस आ गए। कुछ देर बाद पापा ने कहा।पापा- देखो बेटों। हमें तुम लोगों के फैसले से कोई ऐतराज नहीं है। तुम लोगों की खुशी में हमारी भी खुशी है। तुम लोगों के सपनों के बीच हम लोग बाधा नहीं बनेंगे। तुम लोग कोचिंग खोलना चाहते हो तो खुशी खुशी खोलो हम सब लोग तुम्हारे साथ हैं, लेकिन उसके पहले हमारी कुछ शर्त है जो तुम लोगों को पूरा करना होगा। तभी कोचिंग खोलने की इजाजत मिलेगी।हम छहों एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर पापा की शर्त क्या है। थोड़ी देर एक दूसरे को देखने के बाद अभिषेक ने कहा।अभिषेक- आप लोगों की जो भी शर्त है वो हमें मंजूर है। बताईए क्या शर्त है आपकी।म.पापा- बात ये है कि अब हम लोगों की उमर बीत चुकी है। या उमर के उस पड़ाव पर हैं जहाँ हमें बेटों और बहुओं के होते हुए कुछ आराम मिलना चाहिए। तुम तीनों तो सुबह अपने कार्यालय चले जाते हो। कोचिंग खुलने के बाद बहुएँ भी पढ़ाने के लिए चली जाएँगी। तो हम लोगों की सेवा कौन करेगा। इसलिए हम लोग चाहते है कि हमें चाय नाश्ता और खाना यही लोग बनाकर देंगी। ऐसा नहीं कि मम्मी मैं कोचिंग पढ़ाने जा रही हूँ। तो आप खाना बना लीजिएगा, चाय-नाश्ता बना लीजिएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम लोग इन्हें बेटी मानते हैं तो एक मा-बाप की तरह हमें पूरा सम्मान मिलना चाहिए जैसे अभी तक मिलता रहा है। कोई भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए जिससे हमारी मान-मर्यादा को ठेस पहुँचे। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि अगर परिवार की तरफ से छूट मिलती है तो उसका नाजायज फायदा उठाया जाता है।पल्लवी- ऐसा ही होगा पापा। हम लोग ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे हमारे परिवार के ऊपर कोई उंगली उठा सके। आप लोग हमारे माँ बाप हैं। आपकी सेवा करना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी। जो हम हमेशा निभाएँगे। आप लोगों को कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे।अ.पापा- ठीक है फिर तुम लोग कोचिंग खोल सकते हो। पर कोचिंग का नाम क्या रखोगे।अभिषेक- आप लोग ही निर्णय लीजिए की क्या नाम रखा जाए कोचिंग का।पापा- (कुछ देर सोचने के बाद) तुम लोग अपने नाम से ही कोचिंग का नाम क्यों नहीं रख लेते। तीनों के नाम का पहला अक्षर अमन (अभिषेक, महेश, नयन) ।मैं- ठीक है पापा, लेकिन अमन के साथ ही ये कोचिंग सेंटर आप लोगों के आशीर्वाद के बिना नहीं चलना मुश्किल है। तो इसलिए आप लोगों का आशीर्वाद पहले और हम लोगों का नाम बाद में। इसलिए कोचिंग का नाम आशीर्वाद अमन रखेंगे।इस नाम पर सभी लोगों ने अपनी सहमति जता दी। फिर कुछ देर बात-चीत करने के बाद हम लोग अपने अभिभावक के साथ अपने घर पर आ गए। अगले दिन हम लोगों ने मुख्य मार्ग के आस पास कोचिंग सेंटर खोलने के लिए कमरे की तलाश करने लगे। दो चार जगह बात करने के बाद चार बड़ा बड़ा कमरा आसानी से मिल गया। फिर हम लोगों ने कोचिंग खोलने के लिए जरूरी सामान महीने भर में जमा कर लिया और कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया। शुरू के दो महीने तो बच्चों की संख्या कम रही, लेकिन दो महीने के बाद बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी। कोचिंग सेटर अच्छी तरीके से चलने लगा।हम लोगों के गाँव में भी तरह तरह ही बात उठने लगी। कि लालची हैं। पैसे के पीछे भाग रहे हैं। बहुओं के जरिए पैसे कमा रहे हैं। वगैरह वगैरह। कई बड़े बुजुर्ग लोगों ने हम लोगों के पापा से भी इस बारे में बात की कि बहुओ का यूँ घर से बाहर तीन-तीन, चार-चार घंटे रहना अच्छी बात नहीं है। जमाना बहुत खराब है। कोई ऊंच-नीच घटना हो सकती है।, लेकिन हमारे अभिभावकों ने उन्हें बस एक ही जवाब दिया कि मेरी बहुएँ समझदार मैं पढ़ी लिखी हैं। वो आने वाली परेशानियों का सामना कर सकती हैं। शुरू-शुरू में जो बातें उठी थी। वो समय बीतने के साथ धीरे धीरे समाप्त होती चली गई। देखते ही देखते कोचिंग सेंटर बहुत अच्छा चलने लगा। शुरू शुरू में जो लोग मम्मी पापा की बुराई करते थे। वो भी धीरे-धीरे तारीफ करने लगे कि बहु और बेटा हों तो फलाने के बहु बेटे जैसे। हम लोगों का शादीशुदा जीवन भी बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के डेढ़-से दो वर्ष के अंदर ही महेश-पल्लवी, अभिषेक-खुशबू और मैं-महिमा माँ बाप भी बन गए।हमने पढ़ाई में अच्छे कुछ लड़के लड़कियों को भी कोचिंग पढ़ाने के लिए रख लिया। ताकि तीनों लडकियों को कुछ मदद मिल सके।तीन साल बाद।इन तीन सालों में कुछ भी नहीं बदला। हम लोगों की दोस्ती और प्यार वैसे ही रहा जैसे पहले रहा था। हम सभी अपनी पत्नियों के साथ बहुत खुश थे। हमारे अभिभावक भी इतनी संस्कारी और अच्छी बहु पाकर खुश थे। बदलाव बस एक हुआ था कि हमारे कोचिंग सेंटर की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई थी। और हमने ये देखते हुए इस कोचिंग सेंटर की तीन और शाखाएँ खोल दी थी। जिसमें हमने कुछ अच्छे और जानकार लड़के लड़कियों को पढ़ाने के लिए रख लिया था।आज मेरा कार्यालय बंद था तो मैं घर में ही था। सुबह के लगभग 11 बजे का समय था तभी दो लाल बत्ती वाली गाड़ियाँ जो मंडल अधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक की गड़ियाँ थी। आकर मेरे घर के सामने रुकी। उसके साथ एक गाड़ी पुलिस की गाड़ी भी थी। पूरे गाँव में ये चर्चा हो गई थी कि मेरे यहाँ पुलिस वाले आए थे। गाँव के कुछ लोग भी मेरे घर के आस पास आ गए ये पता करने के लिए कि आखिर माजरा क्या है। उस गाड़ी से एक लड़का जो लगभग 26-27 वर्ष का था एवं एक लड़की जो कि 24-25 वर्ष की थी। नीचे उतरे। उस समय पापा घर से बाहर चूल्हे में लगाने के लिए लकड़ी चीर रहे थे और मैं अपने कमरे में कुछ काम कर रहा था। महिमा और काजल अम्मा के साथ बाहर बैठकर बात कर रही थी। साथ में मेरा बेटा भी था। अपने घर पर पुलिस को देखकर एक बार तो सभी डर गए। पापा को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो वो तुरंत उनके पास गए। लड़की और लड़के ने पापा के पैर छुए। लड़की ने विनम्र भाव से पूछा।लड़की- क्या नयन सर का घर यही है।पापा- हाँ यही है आप कौंन हैं।लड़की- जी मेरा नाम दिव्या है मैं कौशाम्बी जिले की पुलिस अधीक्षक हूँ। ये मेरे भाई सुनील कुमार प्रतापगढ़ जिले के मंडल अधिकारी हैं। हमें सर से मिलना था। क्यो वो घर पर हैं।पापा- हाँ। आइए बैठिए। मैं बुलाता हूँ उसे।इतना कहकर पापा ने काजल को कुर्सियाँ लाने के लिए कहा। काजल दौड़कर घर में गई और कुर्सियाँ लेकर आई। तबतक महिमा ने मुझे बता दिया था कि बाहर पुलिस आई है और एक लड़की मुझे पूछ रही है। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैंने ऐसा कौन सा काम कर दिया है जिसके लिए पुलिस को मेरे घर आना पड़ा। मैं भी अपने कमरे से बाहर आया। तो देखा कि एक लड़का और एक लड़की बाहर कुर्सी पर बैठे हुए पापा से बातें कर रहे हैं। मैं उनके पास पहुँच गया और बोला।मैं- हाँ मैडम जी। मैं नयन हूँ आपको कुछ काम था क्या मुझसे।मेरी आवाज सुनकर लड़की कुर्सी से उठी और मेरे पैर छूने लगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की ऐसा क्यो कर रही है। मै थोड़ा पीछे हटकर उस लड़की को अपना पैर छूने से रोका और कहा।मैं- ये आप क्या कर रही हैं मैडम।लड़की- मैं आपकी मैडम नहीं हूँ सर। मैं वही कर रही हूँ जो एक विद्यार्थी को शिक्षक के साथ करना चाहिए।उसकी बात सुनकर मेरे साथ अम्मा पापा भी उसे देखने लगे। मैंने उसके कहा।मैं- ये क्या बोल रही हैं आप मैडम। आप इतनी बड़ी अधिकारी होकर मेरे पैर छू रही हैं। लोग तो आपके पैर छूते हैं। और आप मेरी विद्यार्थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं।इसी बीच काजल ने सबके लिए जलपान लाकर मेज पर रख दिया और अंदर चली गई। लड़की ने कहा।लड़की- सर मैं दिव्या। आपको शायद याद नहीं है। मैं .................... कोचिंग में कक्षा 12 में पढ़ती थी। आगे वाली सीट पर बैठती थी। जिसने अपनी मर्यादा भूलकर गलत हरकत की थी तो आपने एक दिन मुझे एक छोटा लेकिन अनमोल सा ज्ञान दिया था। कुछ याद आया आपको सर जी। मैं वही दिव्या हूँ।लड़की की बात सुनकर मुझे वो वाकया याद आ गया जब मैंने एक लड़की को अपने अंग दिखाने के कारण अकेले में बैठाकर समझाया था। मुझे उसको इस रूप में देखकर बहुत खुशी हुई। मुझे खुशी इस बात की हुई कि उसने मेरी बात को इतनी संजीदगी से लिए और आज इस मुकाम पर पहुँच गई है। मैंने उससे कहा।मैं- दिव्या तुम। मुझे से विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मुझसे मिलने के लिए आओगी। वो भी इस रूप में। मुझे सच में बहुत खुशी हो रही है तुम्हें अफसर के रूप में देखकर।दिव्या- मेरी इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ आपका है सर जी। आज मैं जिस मुकाम पर पहुँची हूँ वो आपके कारण ही संभव हुआ है।मैं- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। ये सब तुम्हारी मेहनत और लगन का परिणाम है। तुमने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।दिव्या- ये सच है सर जी कि मैंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की है, लेकिन मुझे यह मेहनत करने के लिए आपने ही प्रोत्साहित किया था। जब मेरे कदम भटक गए थे तो आप ने ही मेरे भटके कदम को सही राह पर लाने की कोशिश की थी। आपने मुझको समझाया था कि मुझे वो काम करना चाहिए जिससे मेरे माता-पिता का नाम रोशन हो, उन्हें मुझपर गर्व हो, न कि मेरी काम से उनके शर्मिंदगी महसूस हो। मैंने आपकी उस बात को गाँठ बाँध लिया और उसके बाद मैंने कोई की गलत काम नहीं किया और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित किया। और उसी का नतीजा है कि आज मै इस मुकाम पर हूँ। अगर आपने उस दिन मेरे भटकने में मेरा साथ दिया होता तो आज मैं यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती। इसलिए मेरी इस सफलता का श्रेय आपको जाता है सर जी। अब तो आप मुझे अपना आशीर्वाद देंगे न कि मैं भविष्य में और ऊँचाइयों को छुऊँ।मैं- अब तुम बड़ी हो गई हो। और एक अफसर भी बन गई हो। तुम अपने कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों के सामने मेरे पैर छुओ। ये अच्छा नहीं लगता।ये बात मैंने उसके साथ आए हुए पुलिसकर्मियों को देखकर कही थी। जो हम लोगों की तरफ ही देख रहे थे। मेरी बात सुनकर दिव्या ने कहा।दिव्या- मैं चाहे जितनी बड़ी हो जाऊँ और चाहे जितनी बड़ी अधिकारी बन जाऊँ। लोकिन हमेशा आपकी विद्यार्थी ही रहूँगी। और आप हमेशा मेरे गुरु रहेंगे। गुरू का स्थान सबसे बड़ा होता है। मैं अपने कनिष्ठ अधिकारियों कर्मचारियों के सामने आपके पैर छुऊँगी तो में छोटी नहीं हो जाऊँगी सर जी। बल्कि उनको भी ये संदेश मिलेगा कि माता-पिता के बाद शिक्षक ही भगवान के दूसरा रूप होता है। इसलिए आप मुझे अपने आशीर्वाद से वंचित मत करिए सर। आपका आशीर्वाद लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाने वाली।दिव्या ने इतना कहकर मेरे पैर छुए। मैंने इस बार उसको नहीं रोका। मेरे पैर छूने के बाद दिव्या ने कहा।दिव्या- बातों बातों में मैं तो भूल ही गई। ये मेरे भाई हैं सुनील कुमार। ये प्रतापगढ़ में सर्किल अधिकारी (Circle Officer City) के पद पर हैं। मैं इनसे कुछ नहीं छुपाती। जब मैंने भइया को बताया कि मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो ये भी जिद करके मेरे साथ में आ गए। ये भी आपसे मिलना चाहते थे।दिव्या के बताने पर उसने भी मेरे पैरे छूने चाहे तो मैंने उसे मना करते हुए कहा।मैं- देखो मिस्टर सुनील। दिव्या मेरी विद्यार्थी है तो उसने मेरे पैर छुए। लेकिन तुम मेरे विद्यार्थी नहीं हो तो तुम मुझसे गले मिलो।मैं और सुनील आपस में गले मिले। फिर दिव्या ने मुझसे कहा।दिव्या- सर मैंने सुना है कि आपकी शादी भी हो गई है। तो क्या मुझे मैडम से नहीं मिलाएँगे।मैं- अरे क्यों नहीं। (अम्मा पापा की तरफ इशारा करते हुए) ये मेरी अम्मा हैं ये मेरे पापा हैं। (महिमा और काजल को अपने पास बुलाकर), ये मेरी पत्नी महिमा और ये मेरी बहन काजल, और ये मेरा प्यारा बेटा अंश है।दिव्या और सुनील ने मेरे अम्मा और पापा के पाँव छुए। दिव्या ने महिमा के पैर छुए और काजल को अपने गले लगाया और मेरे बेटे को अपनी गोद में उठाकर दुलार किया। सुनील ने महिमा और काजल को नमस्ते किया।कुछ देर बातचीत करने के बाद मैंने दिव्या से पूछा।मैं- दिव्या। तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मिला। तुम कोचिंग गई थी क्या।दिव्या- हाँ सर। मैं कोचिंग गई थी। नित्या मैडम से मिली थी तो उन्होंने बताया कि आपकी शादी हो गई है। फिर कोचिंग के रिकॉर्ड से आपका पता मिल गया। मुझे तो लगता था कि आपका घर ढ़ूढ़ने में परेशानी होगी, लेकिन यहाँ तो मुख्य सड़क पर ही आपके बारे में सब पता चल गया। आपकी कोचिंग के कारण आपको सभी जानते हैं। आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। एक तरह से ये भी समाज सेवा ही है।पापा- ये इसका सपना था बेटी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद इसके सपने को मेरी बहू ने साकार किया है। जिसमें इसके दोस्तों ने बहुत साथ दिया इसका। मेरे बेटे और बहू ने मेरा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।दिव्या- सर हैं ही ऐसे। सर की संगत में जो भी रहेगा उसका भला ही होगा। जिसके पास सर जैसा बेटा हो उसका सिर कभी नहीं झुक सकता चाचा जी। आप से एक निवेदन है चाचा जी अगर आप बुरा न मानें तो।पापा- कहो न बेटी। इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है।दिव्या- मुझे भूख लगी है। तो क्या मैं आपके घर पर खाना खा सकती हूँ। प्लीज।दिव्या ने ये बात इतनी मासूम सी शक्ल बनाकर कही कि हम लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पापा ने कहा।पापा- क्यों नहीं बेटी। तुम सभी लोग खाना खाकर ही जाना घर। मैं अभी खाना बनवाता हूँ तुम लोगों के लिए।इतना कहकह पापा ने महिमा और काजल को सबके लिए खाना बनाने के लिए कहा। दिव्या भी जिद करके महिमा और काजल के साथ रसोईघर में चली गई। सबने मिलकर खाना बनाया। उसके बाद दिव्या, सुनील और उसके उसके साथ जो पुलिस वाले आए थे। सबने खाना खाया। खाना खाने के बाद दिव्या और उसका भाई हम लोगों के विदा लेकर चले गए। उनके जाने के बाद पापा ने कहा।पापा- मुझे तुमपर बहुत गर्व है बेटा। तुमने उस समय जो किया इस बच्ची के साथ। उसे सुनकर मुझे फक्र महसूस होता है कि मैंने तुझे कभी गलत संस्कार नहीं दिए थे। ये भी प्यार को एक स्वरूप है बेटा। जिसके साथ जैसा व्यवहार और प्यार दिखाओगे। देर-सबेर उसका फल भी तुम्हें जरूर मिलेगा। इस बात को हमेशा याद रखना।मैं- जी पापा जरूर।इसी तरह दिन गुजरने लगे। काजल भी अब शादी योग्य हो गई थी 23-24 वर्ष की उम्र हो गई थी। पापा ने जान पहचान वालों से अच्छे रिश्ते के बारे में बोल दिया था। दिव्या को मेरे यहाँ आए हुए दस दिन ही हुए थे एक मैं नौकरी से घर पहुंचा ही था और हाथ मुँह धोकर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। अम्मा और पापा भी साथ में बैठे थे। कि दिव्या का फोन मेरे मोबाइल पर आया।मैं- हेलो दिव्या।दिव्या- प्रणाम सर जी।मै- प्रमाम। बोलो दिव्या। कुछ काम था।दिव्या- सर एक बात कहना था आपसे।मैं- हाँ दिव्या बोलो।दिव्या- मुझे ये पूछना था कि आपकी बहन काजल की शादी कहीं तय हो गई है क्या।मैं- नहीं दिव्या। अभी लड़का देख रहे हैं। अगर कहीं अच्छा लड़का मिला तो शादी कर देंगे।दिव्या- सर अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मना तो नहीं करेंगे।मैं- मेरे पास ऐसा क्या है दिव्या जो मैं तुम्हें दो सकता हूँ। कुछ ज्ञान था जो मैं तुम्हें पहले ही दे चुका हूँ। अब मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उसकी जरूरत होगी। फिर भी बताओ अगर मेरे सामर्थ्य में होगा तो मैं मना नहीं करूँगा।दिव्या- वो आपके सामर्थ्य में ही तभी तो मैं आपसे माँग रही हूँ।मैं- बताओ दिव्या। मैं पूरी कोशिश करूँगा।दिव्या- सर मैं आपकी बहन काजल को अपनी भाभी बनाना चाहती हूँ। अपने भाई के लिए आपकी बहन का हाथ माँग रही हूँ।मैं- क्या। ये क्या बोल रही हो तुम। तुमको कुछ समझ में आ रहा है। कि तुम क्या माँग रही हो।दिव्या- हाँ मुझे पता है कि मैं क्या बोल रही हूँ। मेरे भैया को काजल पसंद है। भैया ने खुद मुझसे कहा है। और भैया ने मम्मी पापा से भी बात कर ली है। उनको भी कोई आपत्ति नहीं है। और आप भी तो काजल के लिए रिश्ता देख ही रहे हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हाँ अगर मेरे भैया आपको अच्छे नहीं लगे तो अलग बता है।मैं- ऐसी बात नहीं है। तुम्हारे भाई में कोई कमी नहीं है। लेकिन कहाँ तुम लोग और कहाँ हम। जमीन आसमान का अंतर है हम दोनों की हैसियत में। और हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम इतनी अच्छी तरह से काजल की शादी कर पाएँगे तुम्हारे भाई के साथ। समझ रही हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। और शादी की बात घर के बड़े बुजुर्गों पर छोड़ देनी चाहिए।दिव्या- आप जो कहना चाहते हैं वो मैं समझ रही हूँ सर जी। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आपकी हैंसियत मुझसे बहुत ज्यादा है सर। मेरी नजर में आपकी हैंसियत आपका पैसा नहीं। आपके संस्कार हैं आपके गुण हैं। और यही सब काजल के अंदर भी है। वो भी आपकी तरह गुणवान है। जिसकी कोई कीमत नहीं है। हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए सर जी। सारा दहेज काजल के गुणों के रूप में हमें मिल जाएगा। बस आप हाँ कर दीजिए।मैं- देखो दिव्या मैं हाँ नहीं बोल सकता। इसके लिए पहले मुझे अपने अम्मा पापा से बात करनी पड़ेगी। अगर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं अभी फोन रखता हूँ। अम्मा पापा से बात करने के बाद तुमको बताऊँगा।इतना कहकर मैंने अपने फोन रख दिया। और अम्मा पापा को सारी बात बता दी जो दिव्या से हुई थी। अम्मा पापा को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े घर का रिश्ता खुद चलकर आया है। लेकिन पापा और अम्मा ने हाँ करने से पहले काजल की राय जाननी चाही। काजल ने कह दिया कि आप लोग जहाँ भी मेरे रिश्ता तय करेंगे मैं वहाँ शादी कर लूँगी। महिमा ने भी इस रिश्ते के लिए अपनी सहमति जता दी। अगले दिन सुबह ही मैंने दिव्या को फोन करके उसके पता लिया और अम्मा पापा को लेकर उसके घर चला गया। दोनों के अभिभावकों ने कुछ देर बात की और दोनों तरफ से रिश्ता तय हो गया। रिश्ता तय होने के बाद मैंने अपने सभी दोस्तो को इस बारे में बता दिया। सभी लोग बहुत खुश हुए। मैंने संजू और पायल को भी इसके बारे में बता दिया। समय बीतने के साथ काजल और सुनील की सगाई धूम धाम से हो गई। सारे गाँव और पास पड़ोस के गाँवों में ये चर्चा का विषय था कि एक गरीब किसान के बेटी की शादी एक मंडल अधिकारी के साथ हो रही है। कुछ को जलन हुई तो कुछ को खुशी मिली। सगाई होने के दो महीने बाद काजल और सुनील की शादी भी धूम-धाम से संपन्न हुई।आज हमारी दोस्ती, हमारा प्यार आज सबकुछ हमारे पास था। इस प्रकार हम सब अपना अपना जीवन खुशी-खुशी बिताने लगे।मित्रों एवं पाठकों।ये कहानी यहीं समाप्त होती है। जैसा कि कहानी के शुरू में मैंने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्यार का अलग-अलग मतलब होता है। हर व्यक्ति प्यार का मतलब अपने अपने हिसाब से निकालता है। किसी के लिए टूट कर प्यार करने वाले के प्यार की कोई कीमत नहीं होती तो किसी के लिए प्यार के दो मीठे बोल ही प्यार की नई इबारत लिख देता है।मैंने इस कहानी से यही बताने का प्रयास किया है कि प्यार के कितने रंग होते हैं और हर इंसान प्यार के किसी न किसी रंग में रंगा होता है।ये कहानी यहीं समाप्त हो गई है तो आप सभी पाठकों से जिन्होंने नियमित कहानी पढ़ी है उनसे भी और जिन्होंने मूक पाठक बनकर कहानी पढ़ी है उनसे भी मैं चाहूँगी कि आप पूरी कहानी से संबंध में अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया/टिप्पणी/समीक्षा चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो, जरूर दें ताकि मुझे भविष्य में आगे लिखने वाली कहानियों के संबंध में प्रेरणा मिल सके और जो भी कमियाँ इस कहानी में रह गई हैं उसे सुधारने की कोशिश कर सकूँ।साथ में उस सभी पाठकों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण समीक्षा देकर मुझे कहानी को लिखने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि बिना समीक्षा के कहानी लिखने में लेखक का भी मन नहीं लगता। साथ ही ऐसे पाठकों को भी धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर नकारात्मक टिप्पणी देकर मुझे यह अवगत कराया कि कहानी में कहाँ कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। जिसमें मुझे सुधार करना चाहिए।कहानी खत्म करने से पहले प्यार को लेकर मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। जिसे आप भी एक बार पढ़ें और आनंद लें।प्यार के कितने फलसफें हैं जिसे बयान नहीं किया जा सकता।
कितने ही अनकहे किस्से हैं जिसे जबान नहीं दिया जा सकता।
तुम्हारे प्रेम में गर हवस है, कपट है, धोखा है, छल है।
तो कसमें कितनी भी खाओ प्यार की सम्मान नहीं किया जा सकता।
किसी को पा लेना ही प्यार नहीं, किसी को खो कर भी प्यार किया जाता है।
हमेशा हँसना ही नहीं सिखाता, कभी रो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार करने के लिए चाहिए सच्ची नीयत, पवित्र मन और खूबसूरत एहसास।
प्यार जीते जी नहीं मिलता कभी कभी, गहरी नींद में सो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार मन के एहसासों से होता है।
प्यार किसी के जज्बातों से होता है।
प्यार के लिए जरूरी नहीं रोज मिलना।
प्यार तो चंद मुलाकातों से होता है।
प्यार में साथ जीने मरने की कसमें हों ये जरूरी नहीं।
हमेशा साथ रहने की भी कसमें हों ये जरूरी नहीं।
कभी कभी प्यार जुदाई भी माँगता है दोस्तों
प्यार किया हो तो शादी की रश्में हों ये जरूरी नहीं।
किसी को प्यार करके बिस्तर पर सुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
वो तुम्हें याद करें और तुम उसे भुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
प्यार एक दूसरे को टूट कर किया जाए ये जरूरी नहीं।
मगर किसी को हँसा कर फिर उसे रूला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
पूर्ण/समाप्त/खत्म
बहुत बहुत धन्यवाद सर जी आपका।Great ending.. intezar rahegaa aap ki next story kaa..
ऐसे पाठकों को भी धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर नकारात्मक टिप्पणी देकर मुझे यह अवगत कराया कि कहानी में कहाँ कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। जिसमें मुझे सुधार करना चाहिए।साठवाँ एवं अंतिम भाग
कोचिंग खोलने के लिए अभिषेक और मैं अपने अभिभावक को लेकर महेश के घर चले गए। सबका अभिवादन और प्रणाम करने के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।
अभिषेक- हम लोग एक बहुत जरूरी बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। हम लोग चाहते थे कि ये बाद हमारे माता-पिता के सामने हो। क्योंकि हम लोगों को आपकी सहमति चाहिए।
पापा- बात क्या है ये बताओ।
मैं- पापा आपको पता है। परास्नातक करने के बाद मैंने आपसे कोचिंग सेंटर खोलने की बात की थी तो आपने कहा था कि मैं पहले सरकारी नौकरी के लिए प्रयत्न करूँ। कोचिंग को मैं दूसरे विकल्प के रूप में रखूँ।
पापा- हाँ तुमने मुझसे बात की थी और मैंने तुमको ये बात कही थी।
महेश- तो हम लोग अब भी यही चाहते हैं कि हम तीनों मिलकर एक कोचिंग सेंटर खोलें। जिसमें गाँव के बच्चों को कम शुल्क पर शिक्षित करें। इसी के लिए हम लोगों को आप सब से बात करनी थी।
अ.पापा- लेकिन ये कैसे हो सकता है। सरकारी नौकरी में रहते हुए कोई लाभ का दूसरा काम अपने नाम से नहीं कर सकते तुम तीनों। इसके अलावा तुम्हारे पास समय कहाँ रहेगा कि तुम लोग बच्चों को पढ़ाओ।
अभिषेक- हम लोगों के पास समय नहीं है। लेकिन खुशबू, पल्लवी भाभी और महिमा भाभी के पास तो समय है न। ये तीनों लोग कोचिंग पढ़ा सकती हैं।
म.पापा- क्या। ये तुम क्या बोल रहे हो बेटा। ये लोग कैसे कोचिंग पढ़ा सकती हैं।
महेश- क्यों नहीं पढ़ा सकती पापा। तीनों पढ़ी लिखी हैं। तीनों को अपने विषयों में पकड़ भी है। इतने पढ़ने लिखने का क्या फायदा जब पढ़ाई लिखाई का सदुपयोग ही न हो तो।
म.मम्मी- लेकिन इसके लिए पहले इन तीनों से तो पूछ लो कि ये तैयार हैं या नहीं पढ़ाने के लिए।
मैं- इस बारे में उन लोगों से बात हो चुकी है। उनकी सहमति मिलने के बाद ही आप लोगों के समक्ष अपनी बात रख रहा हूँ।
मम्मी- वो तो ठीक है बेटा। लेकिन बहुएँ अगर कोचिंग पढ़ाने जाएँगी तो गाँव समाज में तरह-तरह की बातें उठने लगेंगी। उसका क्या।
अभिषेक- उसी लिए तो हम लोगों ने आप सबसे बात करना उचित समझा। अपने गाँव के आस-पास कोई ढंग का कोचिंग सेंटर नहीं है। और जो है भी वहाँ एक ही विषय पढाया जाता है। दूसरे विषय के लिए दूसरी कोचिंग में जाना पड़ता है। ऊपर से हर विषय के लिए अलग-अलग शुल्क जमा करने पड़ता है, लेकिन हमने जिस कोचिंग सेंटर के बारे में सोचा है उसमें सभी महत्त्वपूर्ण विषय एक ही जगह बच्चों को पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाएगा।
म.पापा- बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन बात वहीं आकर रुक जाती है कि गाँव समाज तरह तरह की बातें बनाने लगेगा। तुम लोगों को तो पता है कि कोई भी अच्छा काम अगर शुरू करो तो उसकी सराहना करने वाले कम और नुक्श निकालने वाले ज्यादा लोग आ जाते हैं।
मैं- हम लोग जो भी काम करने चाहते हैं आप लोगों की सहमति से करना चाहते हैं। मैं ये जानता हूँ कि गाँव के कुछ लोग हैं जिनको हमारी पत्नियों के कोचिंग पढ़ाने से परेशानी होगी। कुछ दिन बात बनाएँगे और बाद में सब चुप हो जाएँगे और हम समाज की खुशी के लिए अपने अरमानों का गला तो नहीं घोंट सकते। इन लोगों की इच्छा है कि ये लोग भी कुछ काम करें, लेकिन गाँव में काम मिलने से रहा और ये लोग आप लोगों को छोड़कर शहर जाकर काम करेंगी नहीं। तो इन लोगों को भी तो अपनी इच्छाओं/सपनों को पूरा करने का हक है। जो ये कोचिंग पढ़ाकर पूरा करना चाहती हैं। हमारे सपने को ये लोग साकार करना चाहती हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हम जो कुछ कर रहे हैं समाज के हित के लिए कर रहे हैं। समाज में रहने वाले बच्चों के लिए कर रहे हैं। हमें समाज की नहीं आप लोगों की हाँ और न से फर्क पड़ता है। आप लोगों की खुशी या नाखुशी से फर्क पड़ता है। अगर आप लोगों को ये सही नहीं लगता तो हम ये बात दोबारा नहीं करेंगे आप लोगों से।
इतना कहकर मैं शांत हो गया। मेरे शांत होने के बाद कुछ देर वहाँ खामोशी छाई रही। सभी के अभिभावक हमको और अपनी बहुओं को देखने लगे। फिर हम लोगों से थोड़ा दूर हटकर कुछ सलाह मशवरा किया और हम लोगों के पास वापस आ गए। कुछ देर बाद पापा ने कहा।
पापा- देखो बेटों। हमें तुम लोगों के फैसले से कोई ऐतराज नहीं है। तुम लोगों की खुशी में हमारी भी खुशी है। तुम लोगों के सपनों के बीच हम लोग बाधा नहीं बनेंगे। तुम लोग कोचिंग खोलना चाहते हो तो खुशी खुशी खोलो हम सब लोग तुम्हारे साथ हैं, लेकिन उसके पहले हमारी कुछ शर्त है जो तुम लोगों को पूरा करना होगा। तभी कोचिंग खोलने की इजाजत मिलेगी।
हम छहों एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि आखिर पापा की शर्त क्या है। थोड़ी देर एक दूसरे को देखने के बाद अभिषेक ने कहा।
अभिषेक- आप लोगों की जो भी शर्त है वो हमें मंजूर है। बताईए क्या शर्त है आपकी।
म.पापा- बात ये है कि अब हम लोगों की उमर बीत चुकी है। या उमर के उस पड़ाव पर हैं जहाँ हमें बेटों और बहुओं के होते हुए कुछ आराम मिलना चाहिए। तुम तीनों तो सुबह अपने कार्यालय चले जाते हो। कोचिंग खुलने के बाद बहुएँ भी पढ़ाने के लिए चली जाएँगी। तो हम लोगों की सेवा कौन करेगा। इसलिए हम लोग चाहते है कि हमें चाय नाश्ता और खाना यही लोग बनाकर देंगी। ऐसा नहीं कि मम्मी मैं कोचिंग पढ़ाने जा रही हूँ। तो आप खाना बना लीजिएगा, चाय-नाश्ता बना लीजिएगा। ऐसा नहीं होना चाहिए। हम लोग इन्हें बेटी मानते हैं तो एक मा-बाप की तरह हमें पूरा सम्मान मिलना चाहिए जैसे अभी तक मिलता रहा है। कोई भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए जिससे हमारी मान-मर्यादा को ठेस पहुँचे। क्योंकि अक्सर देखा गया है कि अगर परिवार की तरफ से छूट मिलती है तो उसका नाजायज फायदा उठाया जाता है।
पल्लवी- ऐसा ही होगा पापा। हम लोग ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे हमारे परिवार के ऊपर कोई उंगली उठा सके। आप लोग हमारे माँ बाप हैं। आपकी सेवा करना हमारा धर्म भी है और फर्ज भी। जो हम हमेशा निभाएँगे। आप लोगों को कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे।
अ.पापा- ठीक है फिर तुम लोग कोचिंग खोल सकते हो। पर कोचिंग का नाम क्या रखोगे।
अभिषेक- आप लोग ही निर्णय लीजिए की क्या नाम रखा जाए कोचिंग का।
पापा- (कुछ देर सोचने के बाद) तुम लोग अपने नाम से ही कोचिंग का नाम क्यों नहीं रख लेते। तीनों के नाम का पहला अक्षर अमन (अभिषेक, महेश, नयन) ।
मैं- ठीक है पापा, लेकिन अमन के साथ ही ये कोचिंग सेंटर आप लोगों के आशीर्वाद के बिना नहीं चलना मुश्किल है। तो इसलिए आप लोगों का आशीर्वाद पहले और हम लोगों का नाम बाद में। इसलिए कोचिंग का नाम आशीर्वाद अमन रखेंगे।
इस नाम पर सभी लोगों ने अपनी सहमति जता दी। फिर कुछ देर बात-चीत करने के बाद हम लोग अपने अभिभावक के साथ अपने घर पर आ गए। अगले दिन हम लोगों ने मुख्य मार्ग के आस पास कोचिंग सेंटर खोलने के लिए कमरे की तलाश करने लगे। दो चार जगह बात करने के बाद चार बड़ा बड़ा कमरा आसानी से मिल गया। फिर हम लोगों ने कोचिंग खोलने के लिए जरूरी सामान महीने भर में जमा कर लिया और कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया। शुरू के दो महीने तो बच्चों की संख्या कम रही, लेकिन दो महीने के बाद बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगी। कोचिंग सेटर अच्छी तरीके से चलने लगा।
हम लोगों के गाँव में भी तरह तरह ही बात उठने लगी। कि लालची हैं। पैसे के पीछे भाग रहे हैं। बहुओं के जरिए पैसे कमा रहे हैं। वगैरह वगैरह। कई बड़े बुजुर्ग लोगों ने हम लोगों के पापा से भी इस बारे में बात की कि बहुओ का यूँ घर से बाहर तीन-तीन, चार-चार घंटे रहना अच्छी बात नहीं है। जमाना बहुत खराब है। कोई ऊंच-नीच घटना हो सकती है।, लेकिन हमारे अभिभावकों ने उन्हें बस एक ही जवाब दिया कि मेरी बहुएँ समझदार मैं पढ़ी लिखी हैं। वो आने वाली परेशानियों का सामना कर सकती हैं। शुरू-शुरू में जो बातें उठी थी। वो समय बीतने के साथ धीरे धीरे समाप्त होती चली गई। देखते ही देखते कोचिंग सेंटर बहुत अच्छा चलने लगा। शुरू शुरू में जो लोग मम्मी पापा की बुराई करते थे। वो भी धीरे-धीरे तारीफ करने लगे कि बहु और बेटा हों तो फलाने के बहु बेटे जैसे। हम लोगों का शादीशुदा जीवन भी बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के डेढ़-से दो वर्ष के अंदर ही महेश-पल्लवी, अभिषेक-खुशबू और मैं-महिमा माँ बाप भी बन गए।हमने पढ़ाई में अच्छे कुछ लड़के लड़कियों को भी कोचिंग पढ़ाने के लिए रख लिया। ताकि तीनों लडकियों को कुछ मदद मिल सके।
तीन साल बाद।
इन तीन सालों में कुछ भी नहीं बदला। हम लोगों की दोस्ती और प्यार वैसे ही रहा जैसे पहले रहा था। हम सभी अपनी पत्नियों के साथ बहुत खुश थे। हमारे अभिभावक भी इतनी संस्कारी और अच्छी बहु पाकर खुश थे। बदलाव बस एक हुआ था कि हमारे कोचिंग सेंटर की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई थी। और हमने ये देखते हुए इस कोचिंग सेंटर की तीन और शाखाएँ खोल दी थी। जिसमें हमने कुछ अच्छे और जानकार लड़के लड़कियों को पढ़ाने के लिए रख लिया था।
आज मेरा कार्यालय बंद था तो मैं घर में ही था। सुबह के लगभग 11 बजे का समय था तभी दो लाल बत्ती वाली गाड़ियाँ जो मंडल अधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक की गड़ियाँ थी। आकर मेरे घर के सामने रुकी। उसके साथ एक गाड़ी पुलिस की गाड़ी भी थी। पूरे गाँव में ये चर्चा हो गई थी कि मेरे यहाँ पुलिस वाले आए थे। गाँव के कुछ लोग भी मेरे घर के आस पास आ गए ये पता करने के लिए कि आखिर माजरा क्या है। उस गाड़ी से एक लड़का जो लगभग 26-27 वर्ष का था एवं एक लड़की जो कि 24-25 वर्ष की थी। नीचे उतरे। उस समय पापा घर से बाहर चूल्हे में लगाने के लिए लकड़ी चीर रहे थे और मैं अपने कमरे में कुछ काम कर रहा था। महिमा और काजल अम्मा के साथ बाहर बैठकर बात कर रही थी। साथ में मेरा बेटा भी था। अपने घर पर पुलिस को देखकर एक बार तो सभी डर गए। पापा को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो वो तुरंत उनके पास गए। लड़की और लड़के ने पापा के पैर छुए। लड़की ने विनम्र भाव से पूछा।
लड़की- क्या नयन सर का घर यही है।
पापा- हाँ यही है आप कौंन हैं।
लड़की- जी मेरा नाम दिव्या है मैं कौशाम्बी जिले की पुलिस अधीक्षक हूँ। ये मेरे भाई सुनील कुमार प्रतापगढ़ जिले के मंडल अधिकारी हैं। हमें सर से मिलना था। क्यो वो घर पर हैं।
पापा- हाँ। आइए बैठिए। मैं बुलाता हूँ उसे।
इतना कहकर पापा ने काजल को कुर्सियाँ लाने के लिए कहा। काजल दौड़कर घर में गई और कुर्सियाँ लेकर आई। तबतक महिमा ने मुझे बता दिया था कि बाहर पुलिस आई है और एक लड़की मुझे पूछ रही है। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैंने ऐसा कौन सा काम कर दिया है जिसके लिए पुलिस को मेरे घर आना पड़ा। मैं भी अपने कमरे से बाहर आया। तो देखा कि एक लड़का और एक लड़की बाहर कुर्सी पर बैठे हुए पापा से बातें कर रहे हैं। मैं उनके पास पहुँच गया और बोला।
मैं- हाँ मैडम जी। मैं नयन हूँ आपको कुछ काम था क्या मुझसे।
मेरी आवाज सुनकर लड़की कुर्सी से उठी और मेरे पैर छूने लगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की ऐसा क्यो कर रही है। मै थोड़ा पीछे हटकर उस लड़की को अपना पैर छूने से रोका और कहा।
मैं- ये आप क्या कर रही हैं मैडम।
लड़की- मैं आपकी मैडम नहीं हूँ सर। मैं वही कर रही हूँ जो एक विद्यार्थी को शिक्षक के साथ करना चाहिए।
उसकी बात सुनकर मेरे साथ अम्मा पापा भी उसे देखने लगे। मैंने उसके कहा।
मैं- ये क्या बोल रही हैं आप मैडम। आप इतनी बड़ी अधिकारी होकर मेरे पैर छू रही हैं। लोग तो आपके पैर छूते हैं। और आप मेरी विद्यार्थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं।
इसी बीच काजल ने सबके लिए जलपान लाकर मेज पर रख दिया और अंदर चली गई। लड़की ने कहा।
लड़की- सर मैं दिव्या। आपको शायद याद नहीं है। मैं .................... कोचिंग में कक्षा 12 में पढ़ती थी। आगे वाली सीट पर बैठती थी। जिसने अपनी मर्यादा भूलकर गलत हरकत की थी तो आपने एक दिन मुझे एक छोटा लेकिन अनमोल सा ज्ञान दिया था। कुछ याद आया आपको सर जी। मैं वही दिव्या हूँ।
लड़की की बात सुनकर मुझे वो वाकया याद आ गया जब मैंने एक लड़की को अपने अंग दिखाने के कारण अकेले में बैठाकर समझाया था। मुझे उसको इस रूप में देखकर बहुत खुशी हुई। मुझे खुशी इस बात की हुई कि उसने मेरी बात को इतनी संजीदगी से लिए और आज इस मुकाम पर पहुँच गई है। मैंने उससे कहा।
मैं- दिव्या तुम। मुझे से विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुम मुझसे मिलने के लिए आओगी। वो भी इस रूप में। मुझे सच में बहुत खुशी हो रही है तुम्हें अफसर के रूप में देखकर।
दिव्या- मेरी इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ आपका है सर जी। आज मैं जिस मुकाम पर पहुँची हूँ वो आपके कारण ही संभव हुआ है।
मैं- नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। ये सब तुम्हारी मेहनत और लगन का परिणाम है। तुमने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।
दिव्या- ये सच है सर जी कि मैंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मेहनत की है, लेकिन मुझे यह मेहनत करने के लिए आपने ही प्रोत्साहित किया था। जब मेरे कदम भटक गए थे तो आप ने ही मेरे भटके कदम को सही राह पर लाने की कोशिश की थी। आपने मुझको समझाया था कि मुझे वो काम करना चाहिए जिससे मेरे माता-पिता का नाम रोशन हो, उन्हें मुझपर गर्व हो, न कि मेरी काम से उनके शर्मिंदगी महसूस हो। मैंने आपकी उस बात को गाँठ बाँध लिया और उसके बाद मैंने कोई की गलत काम नहीं किया और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित किया। और उसी का नतीजा है कि आज मै इस मुकाम पर हूँ। अगर आपने उस दिन मेरे भटकने में मेरा साथ दिया होता तो आज मैं यहाँ तक कभी नहीं पहुँच पाती। इसलिए मेरी इस सफलता का श्रेय आपको जाता है सर जी। अब तो आप मुझे अपना आशीर्वाद देंगे न कि मैं भविष्य में और ऊँचाइयों को छुऊँ।
मैं- अब तुम बड़ी हो गई हो। और एक अफसर भी बन गई हो। तुम अपने कनिष्ठ अधिकारियों/कर्मचारियों के सामने मेरे पैर छुओ। ये अच्छा नहीं लगता।
ये बात मैंने उसके साथ आए हुए पुलिसकर्मियों को देखकर कही थी। जो हम लोगों की तरफ ही देख रहे थे। मेरी बात सुनकर दिव्या ने कहा।
दिव्या- मैं चाहे जितनी बड़ी हो जाऊँ और चाहे जितनी बड़ी अधिकारी बन जाऊँ। लोकिन हमेशा आपकी विद्यार्थी ही रहूँगी। और आप हमेशा मेरे गुरु रहेंगे। गुरू का स्थान सबसे बड़ा होता है। मैं अपने कनिष्ठ अधिकारियों कर्मचारियों के सामने आपके पैर छुऊँगी तो में छोटी नहीं हो जाऊँगी सर जी। बल्कि उनको भी ये संदेश मिलेगा कि माता-पिता के बाद शिक्षक ही भगवान के दूसरा रूप होता है। इसलिए आप मुझे अपने आशीर्वाद से वंचित मत करिए सर। आपका आशीर्वाद लिए बिना मैं यहाँ से नहीं जाने वाली।
दिव्या ने इतना कहकर मेरे पैर छुए। मैंने इस बार उसको नहीं रोका। मेरे पैर छूने के बाद दिव्या ने कहा।
दिव्या- बातों बातों में मैं तो भूल ही गई। ये मेरे भाई हैं सुनील कुमार। ये प्रतापगढ़ में सर्किल अधिकारी (Circle Officer City) के पद पर हैं। मैं इनसे कुछ नहीं छुपाती। जब मैंने भइया को बताया कि मैं आपसे मिलने आ रही हूँ तो ये भी जिद करके मेरे साथ में आ गए। ये भी आपसे मिलना चाहते थे।
दिव्या के बताने पर उसने भी मेरे पैरे छूने चाहे तो मैंने उसे मना करते हुए कहा।
मैं- देखो मिस्टर सुनील। दिव्या मेरी विद्यार्थी है तो उसने मेरे पैर छुए। लेकिन तुम मेरे विद्यार्थी नहीं हो तो तुम मुझसे गले मिलो।
मैं और सुनील आपस में गले मिले। फिर दिव्या ने मुझसे कहा।
दिव्या- सर मैंने सुना है कि आपकी शादी भी हो गई है। तो क्या मुझे मैडम से नहीं मिलाएँगे।
मैं- अरे क्यों नहीं। (अम्मा पापा की तरफ इशारा करते हुए) ये मेरी अम्मा हैं ये मेरे पापा हैं। (महिमा और काजल को अपने पास बुलाकर), ये मेरी पत्नी महिमा और ये मेरी बहन काजल, और ये मेरा प्यारा बेटा अंश है।
दिव्या और सुनील ने मेरे अम्मा और पापा के पाँव छुए। दिव्या ने महिमा के पैर छुए और काजल को अपने गले लगाया और मेरे बेटे को अपनी गोद में उठाकर दुलार किया। सुनील ने महिमा और काजल को नमस्ते किया।कुछ देर बातचीत करने के बाद मैंने दिव्या से पूछा।
मैं- दिव्या। तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मिला। तुम कोचिंग गई थी क्या।
दिव्या- हाँ सर। मैं कोचिंग गई थी। नित्या मैडम से मिली थी तो उन्होंने बताया कि आपकी शादी हो गई है। फिर कोचिंग के रिकॉर्ड से आपका पता मिल गया। मुझे तो लगता था कि आपका घर ढ़ूढ़ने में परेशानी होगी, लेकिन यहाँ तो मुख्य सड़क पर ही आपके बारे में सब पता चल गया। आपकी कोचिंग के कारण आपको सभी जानते हैं। आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। एक तरह से ये भी समाज सेवा ही है।
पापा- ये इसका सपना था बेटी, लेकिन नौकरी लग जाने के बाद इसके सपने को मेरी बहू ने साकार किया है। जिसमें इसके दोस्तों ने बहुत साथ दिया इसका। मेरे बेटे और बहू ने मेरा सिर गर्व से ऊँचा कर दिया है।
दिव्या- सर हैं ही ऐसे। सर की संगत में जो भी रहेगा उसका भला ही होगा। जिसके पास सर जैसा बेटा हो उसका सिर कभी नहीं झुक सकता चाचा जी। आप से एक निवेदन है चाचा जी अगर आप बुरा न मानें तो।
पापा- कहो न बेटी। इसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है।
दिव्या- मुझे भूख लगी है। तो क्या मैं आपके घर पर खाना खा सकती हूँ। प्लीज।
दिव्या ने ये बात इतनी मासूम सी शक्ल बनाकर कही कि हम लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पापा ने कहा।
पापा- क्यों नहीं बेटी। तुम सभी लोग खाना खाकर ही जाना घर। मैं अभी खाना बनवाता हूँ तुम लोगों के लिए।
इतना कहकह पापा ने महिमा और काजल को सबके लिए खाना बनाने के लिए कहा। दिव्या भी जिद करके महिमा और काजल के साथ रसोईघर में चली गई। सबने मिलकर खाना बनाया। उसके बाद दिव्या, सुनील और उसके उसके साथ जो पुलिस वाले आए थे। सबने खाना खाया। खाना खाने के बाद दिव्या और उसका भाई हम लोगों के विदा लेकर चले गए। उनके जाने के बाद पापा ने कहा।
पापा- मुझे तुमपर बहुत गर्व है बेटा। तुमने उस समय जो किया इस बच्ची के साथ। उसे सुनकर मुझे फक्र महसूस होता है कि मैंने तुझे कभी गलत संस्कार नहीं दिए थे। ये भी प्यार को एक स्वरूप है बेटा। जिसके साथ जैसा व्यवहार और प्यार दिखाओगे। देर-सबेर उसका फल भी तुम्हें जरूर मिलेगा। इस बात को हमेशा याद रखना।
मैं- जी पापा जरूर।
इसी तरह दिन गुजरने लगे। काजल भी अब शादी योग्य हो गई थी 23-24 वर्ष की उम्र हो गई थी। पापा ने जान पहचान वालों से अच्छे रिश्ते के बारे में बोल दिया था। दिव्या को मेरे यहाँ आए हुए दस दिन ही हुए थे एक मैं नौकरी से घर पहुंचा ही था और हाथ मुँह धोकर बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। अम्मा और पापा भी साथ में बैठे थे। कि दिव्या का फोन मेरे मोबाइल पर आया।
मैं- हेलो दिव्या।
दिव्या- प्रणाम सर जी।
मै- प्रमाम। बोलो दिव्या। कुछ काम था।
दिव्या- सर एक बात कहना था आपसे।
मैं- हाँ दिव्या बोलो।
दिव्या- मुझे ये पूछना था कि आपकी बहन काजल की शादी कहीं तय हो गई है क्या।
मैं- नहीं दिव्या। अभी लड़का देख रहे हैं। अगर कहीं अच्छा लड़का मिला तो शादी कर देंगे।
दिव्या- सर अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मना तो नहीं करेंगे।
मैं- मेरे पास ऐसा क्या है दिव्या जो मैं तुम्हें दो सकता हूँ। कुछ ज्ञान था जो मैं तुम्हें पहले ही दे चुका हूँ। अब मुझे नहीं लगता कि तुम्हें उसकी जरूरत होगी। फिर भी बताओ अगर मेरे सामर्थ्य में होगा तो मैं मना नहीं करूँगा।
दिव्या- वो आपके सामर्थ्य में ही तभी तो मैं आपसे माँग रही हूँ।
मैं- बताओ दिव्या। मैं पूरी कोशिश करूँगा।
दिव्या- सर मैं आपकी बहन काजल को अपनी भाभी बनाना चाहती हूँ। अपने भाई के लिए आपकी बहन का हाथ माँग रही हूँ।
मैं- क्या। ये क्या बोल रही हो तुम। तुमको कुछ समझ में आ रहा है। कि तुम क्या माँग रही हो।
दिव्या- हाँ मुझे पता है कि मैं क्या बोल रही हूँ। मेरे भैया को काजल पसंद है। भैया ने खुद मुझसे कहा है। और भैया ने मम्मी पापा से भी बात कर ली है। उनको भी कोई आपत्ति नहीं है। और आप भी तो काजल के लिए रिश्ता देख ही रहे हैं। तो इसमें बुराई क्या है। हाँ अगर मेरे भैया आपको अच्छे नहीं लगे तो अलग बता है।
मैं- ऐसी बात नहीं है। तुम्हारे भाई में कोई कमी नहीं है। लेकिन कहाँ तुम लोग और कहाँ हम। जमीन आसमान का अंतर है हम दोनों की हैसियत में। और हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम इतनी अच्छी तरह से काजल की शादी कर पाएँगे तुम्हारे भाई के साथ। समझ रही हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ। और शादी की बात घर के बड़े बुजुर्गों पर छोड़ देनी चाहिए।
दिव्या- आप जो कहना चाहते हैं वो मैं समझ रही हूँ सर जी। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि आपकी हैंसियत मुझसे बहुत ज्यादा है सर। मेरी नजर में आपकी हैंसियत आपका पैसा नहीं। आपके संस्कार हैं आपके गुण हैं। और यही सब काजल के अंदर भी है। वो भी आपकी तरह गुणवान है। जिसकी कोई कीमत नहीं है। हमें दहेज में कुछ नहीं चाहिए सर जी। सारा दहेज काजल के गुणों के रूप में हमें मिल जाएगा। बस आप हाँ कर दीजिए।
मैं- देखो दिव्या मैं हाँ नहीं बोल सकता। इसके लिए पहले मुझे अपने अम्मा पापा से बात करनी पड़ेगी। अगर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं अभी फोन रखता हूँ। अम्मा पापा से बात करने के बाद तुमको बताऊँगा।
इतना कहकर मैंने अपने फोन रख दिया। और अम्मा पापा को सारी बात बता दी जो दिव्या से हुई थी। अम्मा पापा को तो मानों यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतने बड़े घर का रिश्ता खुद चलकर आया है। लेकिन पापा और अम्मा ने हाँ करने से पहले काजल की राय जाननी चाही। काजल ने कह दिया कि आप लोग जहाँ भी मेरे रिश्ता तय करेंगे मैं वहाँ शादी कर लूँगी। महिमा ने भी इस रिश्ते के लिए अपनी सहमति जता दी। अगले दिन सुबह ही मैंने दिव्या को फोन करके उसके पता लिया और अम्मा पापा को लेकर उसके घर चला गया। दोनों के अभिभावकों ने कुछ देर बात की और दोनों तरफ से रिश्ता तय हो गया। रिश्ता तय होने के बाद मैंने अपने सभी दोस्तो को इस बारे में बता दिया। सभी लोग बहुत खुश हुए। मैंने संजू और पायल को भी इसके बारे में बता दिया। समय बीतने के साथ काजल और सुनील की सगाई धूम धाम से हो गई। सारे गाँव और पास पड़ोस के गाँवों में ये चर्चा का विषय था कि एक गरीब किसान के बेटी की शादी एक मंडल अधिकारी के साथ हो रही है। कुछ को जलन हुई तो कुछ को खुशी मिली। सगाई होने के दो महीने बाद काजल और सुनील की शादी भी धूम-धाम से संपन्न हुई।
आज हमारी दोस्ती, हमारा प्यार आज सबकुछ हमारे पास था। इस प्रकार हम सब अपना अपना जीवन खुशी-खुशी बिताने लगे।
मित्रों एवं पाठकों।
ये कहानी यहीं समाप्त होती है। जैसा कि कहानी के शुरू में मैंने कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्यार का अलग-अलग मतलब होता है। हर व्यक्ति प्यार का मतलब अपने अपने हिसाब से निकालता है। किसी के लिए टूट कर प्यार करने वाले के प्यार की कोई कीमत नहीं होती तो किसी के लिए प्यार के दो मीठे बोल ही प्यार की नई इबारत लिख देता है।
मैंने इस कहानी से यही बताने का प्रयास किया है कि प्यार के कितने रंग होते हैं और हर इंसान प्यार के किसी न किसी रंग में रंगा होता है।
ये कहानी यहीं समाप्त हो गई है तो आप सभी पाठकों से जिन्होंने नियमित कहानी पढ़ी है उनसे भी और जिन्होंने मूक पाठक बनकर कहानी पढ़ी है उनसे भी मैं चाहूँगी कि आप पूरी कहानी से संबंध में अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया/टिप्पणी/समीक्षा चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो, जरूर दें ताकि मुझे भविष्य में आगे लिखने वाली कहानियों के संबंध में प्रेरणा मिल सके और जो भी कमियाँ इस कहानी में रह गई हैं उसे सुधारने की कोशिश कर सकूँ।
साथ में उस सभी पाठकों का धन्यवाद जिन्होंने अपनी महत्त्वपूर्ण समीक्षा देकर मुझे कहानी को लिखने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि बिना समीक्षा के कहानी लिखने में लेखक का भी मन नहीं लगता। साथ ही ऐसे पाठकों को भी धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर नकारात्मक टिप्पणी देकर मुझे यह अवगत कराया कि कहानी में कहाँ कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। जिसमें मुझे सुधार करना चाहिए।
कहानी खत्म करने से पहले प्यार को लेकर मैंने चंद पंक्तियाँ लिखी हैं। जिसे आप भी एक बार पढ़ें और आनंद लें।
प्यार के कितने फलसफें हैं जिसे बयान नहीं किया जा सकता।
कितने ही अनकहे किस्से हैं जिसे जबान नहीं दिया जा सकता।
तुम्हारे प्रेम में गर हवस है, कपट है, धोखा है, छल है।
तो कसमें कितनी भी खाओ प्यार की सम्मान नहीं किया जा सकता।
किसी को पा लेना ही प्यार नहीं, किसी को खो कर भी प्यार किया जाता है।
हमेशा हँसना ही नहीं सिखाता, कभी रो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार करने के लिए चाहिए सच्ची नीयत, पवित्र मन और खूबसूरत एहसास।
प्यार जीते जी नहीं मिलता कभी कभी, गहरी नींद में सो कर भी प्यार किया जाता है।
प्यार मन के एहसासों से होता है।
प्यार किसी के जज्बातों से होता है।
प्यार के लिए जरूरी नहीं रोज मिलना।
प्यार तो चंद मुलाकातों से होता है।
प्यार में साथ जीने मरने की कसमें हों ये जरूरी नहीं।
हमेशा साथ रहने की भी कसमें हों ये जरूरी नहीं।
कभी कभी प्यार जुदाई भी माँगता है दोस्तों
प्यार किया हो तो शादी की रश्में हों ये जरूरी नहीं।
किसी को प्यार करके बिस्तर पर सुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
वो तुम्हें याद करें और तुम उसे भुला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
प्यार एक दूसरे को टूट कर किया जाए ये जरूरी नहीं।
मगर किसी को हँसा कर फिर उसे रूला दो तो वो प्यार नहीं रहता।
पूर्ण/समाप्त/खत्म
ठीक है अगली कहानी होगी बाप का माल। उस पर भी आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी हमें।