पहला भाग
मैं नयन, इलाहाबाद शहर के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ। मेरा गांव इलाहाबाद शहर से 35 किलोमीटर दूर पड़ता है। मैं देखने मे बहुत ज्यादा आकर्षक तो नहीं हूँ। पर ठीक ठाक हूँ। चूंकि मेरे पापा किसान हैं तो मुझे खेतों में भी बचपन से काम करना पड़ता था। इसलिए मेरा शरीर गठीला हो गया था इस समय मेरी उम्र 23 वर्ष की है। ये पूरी कहानी मेरी जुबानी ही चलेगी।
मेरे पापा श्री विनोद कुमार। मुख्य पेशा किसानी है। हमारे पास 5 बीघा खेत है जिस पर पापा खेती करते हैं आप सब को तो पता है हमारे देश में किसानों की क्या स्थिति है। किसान अपना परिवार चला ले अपने बच्चों को पढ़ा ले। बस इतनी ही कमाई होती है खेती से।
मेरी माँ नैना देवी। इन्हीं के नाम पर मेरा नाम नयन रखा गया है। एक सामान्य गृहिणी। हमारी देखभाल और घर के काम के अलावा मेरी माँ ने कभी कोई ख्वाहिश नहीं रखी।
मेरी बहन काजल। थोड़ी सी सांवली, लेकिन तीखे नैन नक्श वाली लड़की। मेरा मेरी बहन के साथ बहुत लगाव था। मैं अपनी बहन से हर बात साझा करता था। हम दोनों में सामंजस्य बहुत अच्छा था। उम्र इस समय 18 वर्ष है।
अभिषेक मेरे बचपन का मित्र और लगोटिया यार। मेरे गांव से 5 किलोमीटर दूर उसका गांव था। इसके पापा ग्रामीण बैंक में प्रबंधक के पद पर थे और घर मे पुस्तैनी जमीन भी बहुत थी लगभग 25 बीघे। तो घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी। अभिषेक बचपन से बड़ा शरारती और मस्त मौला इंसान था। इसकी उम्र इस समय मेरे ही बराबर थी यानी कि 23 वर्ष। इसके मम्मी पापा का इस कहानी में ज्यादा भूमिका नहीं है इसलिए उनका जिक्र नहीं किया।
पायल अभिषेक की बहन। देखने में बहुत ही गोरी चिट्टी लड़की है और खूबसूरत भी है। इस कहानी में पायल की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण है। इसकी उम्र इस समय 20 वर्ष है।
ये थे कहानी के मुख्य पात्र। आगे और भी पात्र आएंगे कहानी में। तो उसी समय उनका जिक्र करूँगा।
तो जैसा मैंने बताया कि मैं शुरू से गांव में रहने वाला लड़का हूँ और मेरा बचपन गांव में ही बीता है मैं अपने माँ बाप का इकलौता बेटा हूँ तो लाड प्यार भी मुझे बहुत मिला है खासकर पापा से। मेरी प्रारंभिक शिक्षा गांव से 3 किलोमीटर दूर स्थित स्कूल में हुई थी इंटर तक की पढ़ाई मैंने गांव में की थी।
अभिषेक का घर मेरे घर से 5 किलोमीटर दूर था स्कूल से 2 किलोमीटर दूर। मेरी दोस्ती वहीं पर अभिषेक से हुई। मैं निम्न माध्यम वर्गीय परिवार से हूँ तो अभिषेक माध्यम उच्च वर्गीय परिवार से, लेकिन हमारे बीच कभी भी यह दीवार रोड़ा नहीं बनी।
मैं कहानी तब से शुरू कर रहा हूं जब मैं कक्षा 10 की परीक्षा दे चुका था।
जिस दिन परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था मैं अपने घर में बैठा भगवान से अच्छे अंक से पास करने की प्रार्थना कर रहा था। चूंकि मैं पढ़ाई में औवल दर्जे का नहीं था। फिर भी अच्छा खासा था। उस समय तो मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था ऊपर से जिस स्कूल में मेरी परीक्षा हुई थी वो हमारे क्षेत्र का जाना माना स्कूल था, इस स्कूल की एक खासियत ये थी कि यहाँ नकल बिल्कुल नहीं होती थी।
वैसे नकल किसी स्कूल में नहीं होनी चाहिए। लेकिन अगर पढ़ने वाला मेरे जैसा हो तो उसे थोड़ी सी उम्मीद रहती है कि थोड़ी बहुत मदद किसी भी बहाने मिल जाए तो अच्छे से बेड़ा पार हो जाए।
तो मैं कमरे में बैठा हुआ उत्तीर्ण होने के लिए आंख बंद भगवान से प्रार्थना कर रहा था।
मैं- हे भगवान तुम तो जानते हो मैं कैसे हूँ। मैंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी से परीक्षा दी है। और नकल भी नहीं की। आपके होते हुए मैं नकल करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। मुझे आप पर पूरा भरोसा है। मैं आप को अच्छी तरह जानता हूँ आप मुझे असफल होने ही नहीं देंगे और अच्छे अंक से पास करेंगे। फिर भी अगर आपके कोई आशंका हो या घूंस लेने से आप ऐसा करें तो मैं 10 किलो लड्डू चढ़ाऊँगा आपको। नहीं नहीं 10 किलो तो बहुत ज्यादा जो गया। मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं हैं। इस बार 1 किलो से काम चला लीजिए अगली बार पक्का 10 किलो लड्डू खिलाऊँगा आपको।
मेरे इतना बोलने के बाद मेरे कानों में एक आवाज़ सुनाई पड़ी।
वत्स। मुझे लड्डू नहीं 100 रुपए दे देना। मैं तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी करूँगा।
मुझे ये आवाज़ एकदम भगवान की लगी इसलिए आवाज़ सुनकर मैंने अपनी आँख खोली और इधर उधर देखने लगा। तभी मुझे फिर से वो आवाज़ सुनाई पड़ी।
अरे मूर्ख। इधर उधर क्या देख रहा है। दरवाज़े की तरफ देख मैं वहीं खड़ा हूँ।
आवाज़ सुनकर मैंने दरवाज़े की तरफ देखा तो काजल के साथ-साथ पापा हाथ में खाली बोतल लिए हंसते हुए कमरे में दाखिल हुए। पापा उसी बोतल में मुंह लगाकर बोल रहे थे जिससे उनकी आवाज़ बदली बदली लग रही थी। जैसे शोले फ़िल्म में बसन्ती को पटाने के लिए अपने धरम पाजी ने किया था ठीक वैसा ही। मुझे देखते हुए पापा हंसकर बोले।
पापा- क्यों वत्स। पहचाना अपने प्रभु को। बोलो क्या कष्ट है तुमको वत्स।
इतना कहकर पापा हंसने लगे। साथ साथ काजल भी हंसने लगी। मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट दौड़ गई। मैंने नाराजगी का नाटक करते हुए पापा से कहा।
मैं- क्या पापा आप भी मेरी खिंचाई कर रहे हैं। मैं यहां इतना परेशान हूँ और आपको मज़ा आ रहा है मेरी परेशानी देखकर।
पापा- अरे नहीं नयन। ऐसा कुछ नहीं है। मुझे पता है कि तू अच्छे अंकों से पास होगा। फिर इतनी परेशानी किस बात की है तुझे। तेरे परेशान होने से परिणाम तो नहीं बदल जाएगा न। चल अब ज्यादा मत सोच। सब अच्छा ही होगा।
काजल- पापा भैया तो आपकी आवाज सुनकर एकदम चौक गए थे। भैया ने सोचा भगवान इनसे बात कर रहे हैं। ही ही ही ही
मैं- तेरी जुबान बहुत तेज़ हो गई है, और इसमें सोचने वाली बात कहां से आ गई। मेरे पापा मेरे लिए भगवान से बढ़कर हैं समझी तू। चल भाग यहां से पागल।
काजल- देखो न पापा। भैया हर समय मुझे डाँटते रहते हैं। जाओ मैं आपसे बात नहीं करूंगी।
वो रूठते हुए मुझसे बोली तो मैं उसे पकड़कर अपनी गोद में उठाते हुए उसके माथे को चूमकर बोला।
मैं- अरे तू तो नाराज़ हो गई। मैं तो मज़ाक कर रहा था तेरे साथ। भला मैं अपनी प्यारी बहन को क्यों डाटूंगा। अच्छा अब तू जा पढ़ाई कर नहीं तो कल तू भी मेरी तरह ही करने लगेगी।
मेरी बात सुनकर काजल मुंह बनाती हुई बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैंने पापा से कहा।
मैं- पापा, मुझे बहुत बेचैनी हो रही है अपने परीक्षा परिणाम के बारे में। मैं अच्छे अंक से पास तो हो जाऊंगा न।
पापा- अरे इसमें बेचैन होने की जरूरत नहीं है और तो अच्छे अंकों से नहीं बहुत अच्छे अंकों से पास होगा। देख लेना। ये तुम्हारे इन प्रभु का आशीर्वाद है।
पापा की बात सुनकर मैं उनके गले लग गया। फिर मुझे एकाएक कुछ याद आया तो मैंने पापा से कहा।
पापा मेरे साथ तो अभिषेक का भी परीक्षा परिणाम आएगा न। मैं तो अपने चक्कर में उसे भूल ही गया था। मैं अभी उनके पास जा रहा हूँ। परिणाम आने के बाद उसे लेकर घर आऊंगा।
इतना कहकर मैंने अपनी साइकिल उठाई और अभिषेक के घर चल पड़ा। ऐसा नहीं है कि मेरे घर में बाइक नहीं है, पापा ने हीरो कंपनी की पैशन प्रो बाइक खरीदी हुई है, लेकिन मुझे साईकिल चलना बहुत पसंद है। इसके दो कारण है। एक तो पैसे की बचत होती है जो निम्न माध्यम वर्ग के लिए बहुत जरूरी है। और दूसरा कारण है अगर आप 4-5 किलोमीटर साईकिल चला लेते हैं तो आपका अलग से कसरत करने की जरूरत नहीं रहती।
बहरहाल मैं साईकिल लेकर अभिषेक के घर की तकरफ निकल गया। आज मौसम का मिज़ाज़ भी कुछ बदला बदला लग रहा था। आखिर बदले भी क्यों न आखिर आज कितने लोगों की किस्मत जो बदलने वाली थी। अभिषेक के घर पहुंच कर मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटाया। थोड़ी देर बाद उसकी बहन पायल ने दरवाजा खोला। उस समय पायल कक्षा 8 में पढ़ती थी और उम्र लगभग 13 वर्ष की रही होगी। लेकिन वो अपनी उम्र से ज्यादा दिखती थी। मतलब उसके शरीर का भराव उसकी उम्र की लड़कियों से अधित था।
मैंने कभी भी उसे गलत नज़र से नहीं देखा था। चूंकि अभिषेक मेरा लंगोटिया मित्र था और एक भाई की तरह था तो पायल भी मेरी बहन थी। ये मैं मानता था, लेकिन पायल के मन में क्या था ये आपको आगे पता चलेगा।
बहरहाल दरवाज़ा खोलने के बाद वो मुझे एक तक ऊपर से नीचे देखने लगी। मैंने उसे इस तरख देखते हुए देखा तो मुझे लगा कि कहीं मेरे कपड़े में कुछ लगा तो नहीं है, इसलिए मैंने अपने कपड़े को देखते हुए उससे पूछा।
मैं- क्या हुआ पायल। इसे क्या देख रही हो। मैं हूँ नयन। अभिषेक का दोस्त।
पायल- कुछ नहीं भैया। बड़े दिन बाद आए आप। आइये अंदर। अभिषेक भैया अपने कमरे में हैं।
इतना कहकर वह दरवाज़े से हट गई और मैं अंदर आते हुए सीधे अभिषेक के कमरे की तरफ चल पड़ा। पायल मुझे जाते हुए पीछे से देखती रही।
इसके आगे की कहानी अगले भाग में।