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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Nevil singh

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कविता बस उसे देखती ही रही और जय भी उसे ही देखता रहा। कविता ने खुद को चादर से ढक लिया और मोबाइल बन्द कर दिया। जय फिर भी उसे देखता रहा और मूठ मारता रहा। कविता की आंखों में शर्म तैर रही थी, पर नज़रें बेबाक हो अपने भाई को देखती रही। कविता को देखते हुए जय ने उसे एक बार इशारा किया कि दरवाज़ा खोलो। और वो खिड़की से अपने रूम में दाखिल हो कर कविता के दरवाजे पर खड़ा हो गया। कविता की हिम्मत नही हुई कि दरवाज़ा खोले पर जय दरवाज़ा पर से हल्के आवाज़ में ही आवाज़ लगाता रहा कि कविता दीदी दरवाज़ा खोलो। ताकि ममता ना उठ जाए। कविता ने कोई जवाब नही दिया, पर जय लगातार वही खड़ा रहा। कविता को काटो तो खून नही, और हो भी क्यों ना उसके सगे भाई ने उसे नंगी खीरा बुर में घुसाकर मूठ मारते हुए देखा था। करीब 15 मिनट तक ऐसा ही चला।
उधर जय को लगा कि अब कविता दरवाज़ा नहीं खोलेगी , वो निराश हो गया। पर तभी अंदर से छिटकनि खुलने की आवाज़ आयी।
जय ने दरवाज़ा को धक्का दिया , तो देखा कविता अपने बिस्तर पर बैठी थी चादर लपेट कर। कविता को कुछ समझ नही आया था इसीलिए उसने कपड़े नहीं पहने थे। जय ने दरवाज़ा बंद कर दिया और अपनी बहन के पास गया। उसने कविता के चेहरे को ठुड्ढी से पकड़कर ऊपर उठाया, कविता अपने नाखून चबा रही थी। उसने जय की ओर देखा जय ने भी उसे देखा। फिर जय ने बगल से मोबाइल उठाया स्क्रीन लॉक खोला और देखा तो फिर से ब्लू फिल्म चालू हो गयी। उसमे दो लड़के बारी बारी से एक लड़की को चोद रहे थे। उसने उसे चालू ही छोड़ दिया और कविता की आंखों में देखा जैसे पूछ रहा हो कि हमारी दीदी ये सब तुम भी करती हो? कविता अभी तक अपने नाखून चबा रही थी और जय को देखते हुए उसके आंखों के पूछे सवाल का मानो जवाब दे रही थी कि आखिर मेरी उम्र की लड़कियां माँ बन गयी हैं तो क्या मैं ये सब भी नही कर सकती।
कविता की आंखों में शर्म जरूर थी पर पश्चाताप नहीं।
कविता की अभी ताज़ी उतारी हुई पैंटी जो कि कविता के पैरों के नीचे फर्श पर पड़ी हुई थी, को जय ने उठाया और सूँघा, उसपर जैसे काम वासना सवार हो गयी। कविता सब देख रही थी पर कुछ बोली नहीं। कविता के बुर के रस से सरोबार थी वो कच्छी। जय ने फिर अपनी बॉक्सर उतार दी, उसने अंदर कुछ नही पहना हुआ था। उसका करीब आठ इंच का तना हुआ लण्ड बाहर आ गया। उसने कविता की कच्छी को अपने लण्ड पर फंसा लिया।
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Nevil singh

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कविता ने कुछ नही कहा बस जय से आंखों का संपर्क तोड़कर उसके लण्ड को देखने लगी। बिल्कुल मस्त फूला हुआ सुपाड़ा था, मोटाई भी कोई 3 इंच की रही होगी। कविता के हाँथ अनायास ही लण्ड की ओर बढ़ गए। वो उसे छूने ही वाली थी कि जय ने उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख लिया। कविता ने उसका लौड़ा पकड़ के महसूस किया और जय की आंखों में देखा। कविता मानो कह रही हो कि उसका लौड़ा बहुत तगड़ा है। हालांकि उसने इतने करीब से किसी का भी तना हुआ लौड़ा नहीं देखा था। वो अपने दाये हाथ के नाखून अभी भी चबा रही थी।
जय ने कविता के चादर को हटाना चाहा तो कविता ने उसे झट से एक थप्पड़ मारा। पर जय ने इसका बुरा नहीं माना।
उसने फिर कोशिश की कविता ने उसका हाथ झटक दिया इस बार । जय ने फिर कोशिश की तो कविता ने फिर से एक थप्पड़ मारा उसे। इसके बाद जय ने कविता के खुले हुए बाल को खींच के पकड़ लिया और कविता के चेहरे को ऊपर उठाया और एक थप्पड़ उसके गाल पर मारा। कविता के गाल लाल हो गए पर उसने कुछ नही किया। अब जय ने कविता के चादर को उसके बदन से अलग किया, इस बार कविता ने कोई विरोध नहीं किया। अब कविता पूरी नंगी हो चुकी थी अपने छोटे भाई के सामने। उसकी आंखें अनायास ही बंद हो गयी।
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Nevil singh

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खामोशी में भी एक धुन होती है। वो धुन बिना कोई शोर के बहुत कुछ कह जाती है। अब कुछ लोग सोचेंगे कि खामोशी में कौन सी धुन होती है और वो क्या कह जाती है?? इस सवाल का जवाब बस वो दे सकता है जिसने उस खामोशी के पल को जिया है।सवेरे का अस्तित्व सिर्फ रात से है। अगर रात ही ना हो तो सवेरे की अहमियत खत्म हो जाती है। अगर हम विज्ञान को हटा दे तो ये पूछना की सवेरा क्यों होता है या रात ही क्यों नही रहती, ये सवाल बेकार हैं या इसके उलट। ठीक वैसे ही जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जिसे बस जी लेना जरूरी होता है उनका मतलब बस होने से है, उसमे गलत या सही की कोई गुंजाइश नहीं होती।
शायद वही पल अभी कविता और जय के जीवन मे आया था। 21 वर्षीय जय इस वक़्त अपनी 26 वर्षीय दीदी के साथ पूरा नंगा खड़ा था। कविता शायद पहली बार किसी मर्द के सामने नंगी बैठी थी। जय ने कविता के हुश्न को अब तक कपड़ों में ढके हुए देखा था पर इस वक़्त कविता बिल्कुल अपने जन्म के समय के आवरण में थी अर्थात निर्वस्त्र। जय ने कविता को बालों से कसकर पकड़ रखा था। उसने कविता के चेहरे को देखा कविता की आंखे बंद थी। उसकी पलकें घनी थी और आंखों में काजल लगा हुआ था। उसके भौएँ बनी हुई थी, गाल भरे हुए थे एक दम गोरे। होंठ गुलाबी थी जो बिना लिपस्टिक के भी मदमस्त लग रहे थे। उसके होंठ कांप रहे थे। और बड़ी ही धीरे से वो अपने मुंह मे इकट्ठा हुए थूक को निगल रही थी। उसकी सुराहीदार गर्दन की चाल थूक गटकने की वजह से मस्त लग रही थी। उसका भाई जय अपनी बहन के इस रूप को देखकर पागल हो रहा था। वो भी बड़ी आराम से गले से थूक घोंट रहा था ताकि आवाज़ ना हो जाये।
जय ने झुककर कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाये और उसके होंठो से अपने होंठ चिपका दिए। जैसे चिंगारियाँ फूटी दोनों के होंठ मिलने से । जय ने कविता के होंठों को पूरा अपने मुंह में लिया हुआ था। कविता के होंठ हल्के मोटे थे , जिसे जय चूस रहा था। उसके होंठों का सारा रस लगातार पी रहा था। फिर कविता के मुंह में उसने अपने जीभ को घुसा दिया। कविता ने कोई प्रतिरोध नही किया, अपितु उसके जीभ को चूसने लगी। दोनों भाई बहन बिल्कुल किसी प्रेमी युगल की तरह काम मे लिप्त होने लगे थे।
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Nevil singh

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जय ने कविता को फिर बिस्तर पर लिटा दिया, और जो नाईट बल्ब की मद्धिम रोशनी थी उसे बंद कर दिया । कविता को महसूस हुआ कि जय ने लाइट बंद कर दी है। उसने आंखें खोली, तो अंधेरा था। पर तभी जय ने बड़ी CFL लाइट जलाई, जिसकी रोशनी में दोनों के नंगे बदन नहा गए। कविता ने आंखों पर अपने हाथ रख लिए। और दूसरे से अपनी जवानी यानी चुचियाँ और बुर को ढकने की व्यर्थ प्रयास करने लगी। जय ने अपनी गंजी उतार फेंकी थी और बॉक्सर तो वो पहले ही उतार चुका था। वो बिस्तर पर कविता के बाजू में लेट गया। उसने कविता के अथक असफल प्रयास को अंत कर दिया जब उसने कविता के हाँथ जिससे वो अपने बुर और चुचियाँ ढकना चाह रही थी उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया और किनारे दबा दिया।
कविता के 26 साल का यौवन अब अपने भाई के सामने बिल्कुल साफ नंगा था। कविता की चुचियाँ बिल्कुल दूधिया थी और उस पर हल्के भूरे रंग के चूचक मुंह मे लिए जाने के लिए बिल्कुल वैसे तने थे जैसे बारिश के बाद कुकुरमुत्ते खड़े हो जाते हैं। चुचियों कि शेप बिल्कुल आमों की तरह थी। इन आमों को अब तक किसीने नहीं चूसा या चबाया था। जो पर्वत के शिखर की तरह कविता के सीने से लटक रहे थे। जय ने बेसब्री नहीं दिखाई बल्कि कविता के जिस्म को आंखों से पी रहा था।
कविता ने हिम्मत जुटाई और हल्के आवाज़ में कहा कि, लाइट बंद कर दो।
जय ने उसकी आँखों से उसके हाथ को हटाते हुए, बोला क्यों दीदी??
कविता ने आंखें बंद करके कहा, शर्म आ रही है। उसकी आवाज़ में कंपन थी।
जय ने कहा, दीदी आंखें खोलो और हमको देखो सारी शर्म चली जायेगी। आंखे खोलो ना, देखो हमको तो कोई शर्म नही आ रही हैं।
कविता ने फिर भी आंखे नहीं खोली। जय ने ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया बल्कि वो अपनी दीदी के यौवन को फिर से घूरने लग गया। उसने फिर कविता के पेट को सहलाते हुए चूमा। गुदगुदी की वजह से कविता कांप रही थी। उसने कविता की नाभि में भी चुम्मा लिया और उंगली से उसके कमर और नाभि के आसपास के हिस्से को छेड़ रहा था। कविता इस गुदगुदी से सिहरकर कांप जाती थी। फिर उसने अपनी जवान दीदी के उस हिस्से को देख जहां से इंसान पैदा होता है। यानी कविता की योनि, बुर, चूत, फुद्दी, पुसी, मुनिया इत्यादि। कविता के बुर पर हल्के कड़े छोटे बाल थे, ऐसा लगता था मानो 3 4 दिन पहले ही साफ किये हों। जिससे उसकी बुर का हर हिस्सा साफ दिख रहा था। बुर की लगभग 4 इंच की चिराई थी और रंग गहरा सावँला था।। बुर बिल्कुल फूली हुई थी, और चुदाई ना होने की वजह से अभी बुर की शेप बिल्कुल सही थी। बुर की पत्तियां हल्की बाहर झांक रही थी।उससे एक अजीब सी महक आ रही थी। जो उस के बुर के रस की थी। बुर से लसलसा पदार्थ चिपका हुआ था।
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Nevil singh

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जय मदहोश होकर सब देखता रहा और मन में बोल आज देसी बुर के दर्शन हो गए वो भी अपने ही दीदी की।
जय ने बुर को अपने हाँथ के शिकंजे में ले लिया और उसे मसलने लगा। और कविता की बांयी चूची की घुंडी को मुंह मे भर लिया और चूसने लगा। दूसरे से कविता की दायीं चूची को दबाने लगा। कविता ने कोई विरोध नही किया। बल्कि उसका हाथ जय के सर पर आ गया। जय ने चूची चूसते हुए कविता की ओर देखा क्योंकि उसे कविता से किसी प्रोत्साहन की उम्मीद नहीं थी। पर उसका हाथ उसके सिर पर रखना कविता की सहमति का प्रतीक था। कविता को कूलर चलने के बावजूद पसीने आ रहे थे, शायद ये डर, विषमय और सुख का मिला जुला असर था। जय ने कविता की चुचियों की अदला बदली की। करीब 7 - 8 मिनट चूची की चुसाई के बाद उसने एक बार फिर कविता को बोला, प्लीज आंखें खोलो ना दीदी। पर कविता ने कोई जवाब नही दिया बल्कि वो लगातार आहें भर रही थी। अपनी चूची की चुसाई का आनंद ले रही थी। आज उसे मालूम हुआ कि इन चुचियों का चुदाई में मर्द कैसे इस्तेमाल करते हैं। जय ने फिर कविता की टांगो के बीच जगह बनाई और खुद बैठ गया।वो कविता की जांघों को सहला रहा था। कविता के बुर के करीब अपना चेहरा लाकर उसने उसे सूँघा। बिल्कुल यही खुसबू उसकी पैंटी से आ रही थी जब उसने बाथरूम से उसकी पैंटी में मूठ मारा था। उसने ब्लू फिल्मो में देखा था कि मर्द बुर को खूब मज़े से चूसते हैं पर उसकी हिम्मत नहीं हुई, वैसे भी उसके लिए ये उत्तेजना संभालना मुश्किल हो रहा था। उसने अपने लौड़ा कविता के बुर पर सटाया। कविता आह कर उठी।
जय ने कविता की बुर पर थूक दिया जैसा उसने कविता को करते हुए देखा था। और थूक जाकर बुर के रस से मिलकर बुर को चिकना कर गयी। कविता कुंवारी जरूर थी पर खीरे और गाजर की वजह से झिल्ली टूट चुकी थी। जय ने अपना लण्ड जब घुसाया तो बस हल्की दिक्कत हुई। बाकी लौड़ा पूरा अंदर घुस गया। जय को तो लगा जैसे जन्नत के दरवाजे किसीने खोल दिये हो। बुर की गर्मी का एहसास उसे अपने लण्ड पर पागल बना रहा था। कविता की आंखे इस एहसास के साथ खुल गयी कि एक लौडा अभी अभी ज़िन्दगी में पहली बार उसकी बुर में समा गया है। कविता को अपनी तरफ़ देखते जय का हौसला और जोश बढ़ गया। कविता की आंखों से अब शर्म जा चुकी थी, वो आँहें भर रही थी। आआहह.... आआदह ...ऊफ़्फ़फ़फ़.. आआहह.…………………
कविता बोल रही थी, और ज़ोर से आआहह.......... और ज़ोर से......ऊईई माँ..... आईई
जय कुछ बोले बिना ही उसकी इन बातों से उत्तेजित होने लगा । उसने कविता की आंखों में आंखे डालकर उसे चोदना शुरू किया। कविता ने भी अपने भाई को बाहों में भर लिया और आहें भर रही थी। उसने अपनी टांगो को जय के कमर के इर्द गिर्द कैंची बना ली। और उसे चुम्मा देने लगी। दोनों के नंगे जिस्म अब वासना के खेल की चरम सीमा पर पहुंचने ही वाले थे।
bejod update
 
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Nevil singh

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कविता के होंठ अभी जय के होंठो को चूस रहे थे, की जय को महसूस हुआ कि कविता की बुर उसके लण्ड को अंदर की ओर खींच रही है। कविता ने इस वक़्त चुम्बन तोड़ दिया और ज़ोर ज़ोर से आहें भरने लगी , जय ने महसूस किया कि उसका माल भी झड़ने वाला है। कविता ने अपने नाखून जय की पीठ में गड़ा दिए। जय ने बोला कि दीदी मेरा माल गिरने वाले है। कविता अब तक झड़ चुकी थी। उसने बोला जब एक दम निकलने वाला हो तब बाहर निकाल लेना भाई। जय ने बोला जानता हूं कि बाहर ही निकालना चाहिए, कविता दीदी।
तभी जय बोला कि निकलने वाला है, और लण्ड बाहर निकाला, कविता ने झट से उसके लण्ड को अपने मुंह मे भर ली। जय के लिए ये बिल्कुल अचंभा था कि कविता ने उसका लण्ड मुंह मे ले लिया, पर वो कुछ सोच समझ पाने की स्थिति में नहीं था। और कविता के मुंह मे अपना पूरा मूठ निकाल दिया। कविता अपने बुर के रस से सने लौड़े को मुंह मे लेके उसके मूठ को मुंह मे इकठ्ठा कर ली। जय के लौड़े से करीब 7 8 झटको में सारा मूठ कविता के मुंह मे समा गया। जय आआहह... आआहह करता रहा और बिस्तर पर निढाल हो गया। उसकी जाँघे कांप रही थी। कविता ने उसके लौड़े को अभी तक नहीं छोड़ा था, वो चूसे जा रही थी। जब तक उसका आखरी बूंद ना निकल गया। जय ने कविता की ओर देखा तो उसने एक झटके में पूरा लौड़े के रस को निगल गयी।
जय ने कविता को अपने ऊपर खींच लिया और उसे बाहों में जकड़ लिया। दोनों की नज़रे मिली। कविता ने अपना मुंह उसके सीने में ढक लिया। दोनों वहीं उसी हालत में सो गए।


कविता अपने छोटे भाई के ऊपर अपनी सुध बुध खोकर नंगी ही सोई हुई थी। जय ने उसे अपनी बाहों में पकड़ रखा था। ये एक अद्भुत नजारा था, कहने को दोनों भाई बहन थे पर इस समय दोनों ब्लू फ़िल्म के हीरो हीरोइन लग रहे थे। जय की आंखों में नींद कहाँ थी इतनी खूबसूरत बला उसकी बाहों में थी। जय ने कविता की ज़ुल्फ़ों को एक किनारे किया। कविता ने एक आंख खोली तो सामने जय को खुद को घूरते हुए पाया। कविता का चेहरा भावविहीन था, खुदको अपने छोटे भाई की बाहों में नंगा पाकर भी उसके चेहरे पर ना खुशी, ना दुख था। शायद उसके मन में कोई कशमकश चल रही थी, सही और गलत की पर , उसमे इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने भाई को कुछ मना कर सके। उसके आंखों में हल्की ग्लानि उतर आई थी। भाई बहन की सारी मर्यादा टूट चुकी थी। जिस भाई को उसने अपने कभी अपने गोद मे उठाया था, आज उसके लण्ड को अपने बुर में समाकर उसे शायद खुद से दूर कर दिया था।जय कविता के आंखों में देखते ही समझ गया कि कविता के मन मे क्या चल रहा है। कविता उठकर बैठ गयी, और चादर जो नीचे गिरी हुई थी उसे उठाकर खुद को ढक लिया। जय ने उसे नहीं रोका, वो उठकर कविता के ठीक पीछे बैठ गया। कविता बिस्तर के किनारे अपने पैर फर्श पर रखके बैठी थी। जय ने कविता के कंधे पर सर रख दिया, कविता हटना चाहती थी पर जय ने उसे बाहों में पकड़ लिया। कविता के कानों के पास जाकर उसने कहा- कविता दीदी हम जानते हैं कि तुम क्या सोच रही हो। तुमको अभी खुद से बहुत घृणा हो रही होगी। तुम्हे लग रहा होगा कि तुम दुनिया की सबसे गिरी हुई लड़की हो। औऱ अगर तुम वैसा सोच रही हो तो तुम गिरी हुई नही बल्कि अच्छी शरीफ लड़की हो। कोई भी लड़की अपने सगे भाई से ये सब नहीं करना चाहती है। पर वो पल ऐसा था कि हम दोनों अपने आप में ना रहे। उस वक़्त हम भाई बहन से मर्द और औरत बन गए थे। ये ही तो संसार मे होता है, मर्द औरत ही संसार को बनाते हैं। ये रिश्ते नाते कोई मायने नही रखते हैं, अगर ऐसा होता तो ना तुम्हें नंगी देखकर हमारा लण्ड खड़ा होता, ना तुम ये जानते हुए की में तुम्हारा भाई हूँ, नंगी होते हुए दरवाज़ा खोलती, और ना तुम्हारी बुर मुझे देखकर पनियाती।
maadak update
 
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Nevil singh

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कविता बोली- बस करो भाई, जय ने कविता के चेहरे को अपनी ओर घुमाया, उसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे ।
जय- दीदी इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है। हमने कुछ गलत नहीं किया, हां ये समझने में हो सकता है कि तुम्हे कुछ वक्त लगे, पर तुम कुछ कर मत बैठना।
तभी बाहर से ममता की आवाज़ गूँजी , कविता ..... कविता…........... उठ ज़रा । कविता और जय दोनों चौकन्ने हो गए। कविता झट से उठी। दोनों की नज़र घड़ी पर पड़ी इस वक़्त 5:30 हो रहे थे। कविता ने उसे कहा कि तुम जल्दी जाओ यहां से। पर कोई जगह नहीं थी, इसलिए जय नंगा ही पलंग के नीचे घुस गया। कविता ने कहा, हाँ माँ बस खोल रहे हैं दरवाज़ा। ज़रा एक मिनट । कविता ने जय के बॉक्सर और अपनी पैंटी को पलंग के नीचे खिसका दिया, और खुद नाइटी पहन ली। जल्दी में बस वही पहन सकती थी। उसने दरवाज़ा खोला तो ममता कमरे में घुस गई। और हड़बड़ाते हुुए बोली देखो हमको गांव जाना होगा। वहां तुम्हारे चाचाजी की तबियत बहुत खराब है। भले ही उन्होंने कुछ सही गलत जो भी किया हमारे साथ, लेकिन वो हमारे रिश्तेदार भी हैं। हम नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा?



कविता पहले से डरी हुई थी उसे लग रहा था कि माँ सब जान ना जाये पर ये सुनके उसका मूड खराब हो गया उसने अपनी माँ को गुस्से में कहा वो आदमी जिसने हमे सड़क पर छोड़ दिया, जिसने हमे सुई के बराबर ज़मीन नहीं दी। आप उसके पास जाओगी, मरता है तो मरे वो कमीना आदमी।
ममता बिस्तर पर बैठते हुए बोली , देखो कविता तुम बड़ी हो गयी हो, तुम्हे क्या हमने यही सिखाया था। बड़ों का सम्मान किया करो।
नीचे रवि भी ये सुन रहा था, डर से उसके पसीने छूट रहे थे । वो क्या करता बस सोच रहा था कि कब माँ यहां से जाए और वो अपने कमरे में भागे।
कविता बोली क्यों माँ क्यों करे उस आदमी का सम्मान जो सम्मान के योग्य ही नही है। तुम बहुत भोली हो। तभी कविता की नज़र रवि की गंजी पर गयी जो फर्श पर पड़ी हुई थी। उसे काटो तो खून नहीं, दिल जोरों से धक धक करने लगा।
कविता के माथे से पसीना बहने लगा। ममता की नज़र उस पर नहीं पड़ी थी। कविता ने सोचा कि माँ को किसी तरह भगाना होगा । ममता तब तक बोलती ही जा रही थी, पर कविता के कानों से वो बाते लौट गई।
ममता ने आखिर में पूछा, क्या बोलती हो कविता??
कविता ने कहा- तुमको जो ठीक लगता है, करो में क्या बोलू।
ममता ने कहा- ये मत भूलो की वो तुम्हारे चाचा ही नही मौसाजी भी हैं। मैं अपनी बहन से भी मिल लूंगी।
उधर बिस्तर के नीचे घुसे हुए रवि अपनी माँ और कविता के पैर ही देख पा रहा था। तभी कविता के पैर ने उसकी गंजी को धक्का मारा और वो सीधा उसके मुंह पर लगा। उसने गंजी को तुरंत अपने पेट के नीचे छुपा लिया।
ममता उठी और बोली की जाते हैं जय को उठा देते हैं, टिकट कटाकर मुझे अगली गाड़ी में बिठा देगा।
कविता - माँ जय तो अभी अभी सोया होगा, IAS की तैयारी जो कर रहा है, थोड़ी देर बाद उठाना , तब तक तुम समान पैक कर लो। टिकेट हम ऑनलाइन काट देते हैं।
ममता- कितना ख़याल है छोटे भाई का, ठीक है जल्दी काट दो।
कविता - हाँ माँ, तुम जाओ।
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ममता चली गयी। कविता दरवाज़ा लगाके पीछे मुड़ी तो जय बाहर आ चुका था। उसने बॉक्सर और गंजी हाथ मे रखी थी। कविता बोली, जल्दी पहन लो और जाओ यहां से। जय ने अपने बॉक्सर और गंजी पहनी और जाने लगा। तभी उसने कविता को चुम्मा लेना चाहा पर कविता ने उसे रोक दिया। जय ने कुछ नही बोला और जाने लगा। तभी कविता ने कहा- रुको, और अपना हाथ बढ़ाकर उंगलिया हिलाई, जैसे कुछ मांग रही हो।
जय ने फिर अपनी जेब से कविता की पैंटी निकालकर उसके हाथ मे रख दी।
अब जाओ, कविता बोली।
जय भागकर अपने कमरे में घुस गया।
सुबह के आठ बजे चुके थे, कविता ने तत्काल में स्वर्णजयंती एक्सप्रेस का टिकट काट दिया था, जो साढ़े नौ बजे नई दिल्ली से खुलती थी। ममता और जय ऑटो से स्टेशन की ओर निकल रहे थे। ममता ने कविता को कहा कि अपना और जय का ध्यान रखना। और ऑटो में बैठ गयी।
ममता को ट्रेन की सीट पर जय ने बैठने का इशारा किया और बोला, माँ ये 49 नंबर है तुम्हारी सीट। गाड़ी खुलने वाली है , मैं निकलता हूँ। और ममता के पैर छूकर उतर गया। ममता ने उसे खिड़की से ही गालों पे चुम्मा लिया और बोली ध्यान रखना, और दीदी को परेशान मत करना ज़्यादा। ट्रेन चल पड़ी।


ममता हाथ हिलाते हुए जय की नज़रों से ओझल हो गयी।
जय वापिस ऑटो पकड़के घर पहुंच गया। रास्ते भर कल रात की बाते उसके दिमाग मे चल रही थी। जब घर पहुंचा तो 10:35 हो रहे थे, घर पर ताला लगा था, शायद कविता आफिस जा चुकी थी। उसने बगल की आंटी से चाभी ली जैसे हर बार चाभी उनके पास ही छोड़ के जाते थे। दरवाज़ा खोलकर वो अंदर अपने कमरे में पहुंच गया।
वो कमरे में पहुंच कर पढ़ाई करने लगा। दरअसल वो पढ़ने की कोशिश कर रहा था, पर रात की बातें उसके दिमाग में घूम रही थी। कविता के नंगेपन और जवानी की चासनी में डूबी उसकी चुचियाँ, उसका बुर, उसकी गाँड़, उसकी नाभि, उसकी जाँघे, उसका पूरा बदन उसकी आँखों के सामने आ रहा था। उसकी पढ़ने की नाकाम कोशिश कोई एक घंटे चली।अंत मे उसने किताब बंद कर दी और लेट गया। उसका लौड़ा अनायास ही खड़ा हो गया था।
chapal update
 
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जय कविता के कमरे में घुस गया। वहाँ उसने कविता की अलमारी खोली। वो कविता की कच्छीयाँ ढूँढने लगा। उसे वहाँ कविता की 3 4 कच्छीयाँ मिली। तभी उसको ध्यान आया की आज उसकी माँ ममता भी नही है। कविता की कच्छीयाँ लेकर वो ममता के कमरे में गया वहाँ उसको अपनी माँ की ब्रा और पैंटी मिल गयी। उन दोनों की ब्रा और पैंटी लेकर वो हॉल में आ गया, और खुद पूरा नंगा हो गया। उसके बाद उसने वहीँ इन्सेस्ट ब्लू फिल्म लगाई। और अपनी माँ बहन की ब्रा पैंटी के साथ खेलने लगा। वो सोच रहा था कि मैं कहाँ इन ब्लू फिल्मों में सुकून ढूंढता रहता था, जो मज़ा मेरी घर की औरतों की अंडरगारमेंट्स में हैं वो कहीं और कहां मिलेगी। मेरी माँ ममता क्या माल है, और मेरी बहन वो तो माँ की परछाई है। कल रात मुझे अपने जन्मदिन का बेहतरीन गिफ्ट मिला, अपनी सगी बड़ी बहन को चोदना सबको नसीब नहीं होता। अगर खुद की माँ और बहन के बारे में सोचके मेरा इतना बुरा हाल हो जाता है, तो बाहर के मर्द तो उनके बारे में क्या क्या घिनौनी बातें सोचते होंगे।
तभी उसका मोबाइल बजने लगा। उसने इग्नोर कर दिया क्योंकि कोई अनजान नंबर था। वो फिर ममता और कविता के खयालों में खोने लगा, की मोबाइल फिर से बजने लगा।
उसने मोबाइल उठाया- हेलो?
दूसरी तरफ से- जय बोल रहे हो?
जय- हाँ जी, आप कौन?
मैं आरिफ एसोसिएट्स से बोल रहा हूँ, तुम्हारी बहन यहाँ बेहोश हो गयी है, मैन डॉक्टर को दिखा दिया है, घबराने की कोई बात नहीं है, इसे यहां से ले जाओ।
जय- जी मैं अभी आया, तुरंत।
जय ने फुर्ती से उठकर कपड़े पहने और भागता हुआ बाहर पहुंचा। वहां उसने ऑटो ली और करीब 15 मिनट में वो वहां पहुंच गया।
जय- क्या हुआ दीदी को?
आरिफ़- अरे कुछ नहीं ज़रा सा चक्कर आया है, डॉक्टर ने बताया कि स्ट्रेस की वजह से ऐसा हुआ है। बैठ जाओ। मैंने इसे एक हफ़्ते की छुट्टी दे दी है। कविता को आराम की ज़रूरत है।
जय- कोई डरने वाली बात नहीं है ना?
आरिफ- अरे नहीं यार, रिलैक्स डॉक्टर ने कहा है कि कुछ भी घबराने की ज़रूरत नहीं है, बस थोड़ा आराम चाहिए, वैसे तो मैं किसीको इतनी छुट्टी नहीं देता, बट कविता ने कभी भी इन 8 सालों में इतनी लंबी छुट्टी नहीं ली है। इसलिए छुट्टी पर भेज रहा हूँ। ये लो प्रेस्क्रिप्शन, और दवाइयां। मैंने एक हफ्ते की ले दी हैं।
जय- थैंक यू सर।
आरिफ- ठीक है, इसे ले जाओ।
जय अंदर गया जहाँ कविता लेटी हुई थी। जय ने कविता को गोद मे उठाया और और बाहर आके ऑटो में बिठाया, कविता का पर्स और छाता वो फिर ले आया। और ऑटो में बैठ गया। कविता होश में थी, पर थोड़ी कमज़ोरी थी।
जय ने ऑटोवाले को कहा भैया आराम से ले चलो।
थोड़ी देर में वो अपने घर पहुंच गए। कविता अब तक संभल चुकी थी, और ऑटो से उतर के घर की ओर जाने लगी। जय ने ऑटोवाले को पैसे दिए। जैसे ही वो मुड़ा की कविता लड़खड़ा रही थी, हल्की कमज़ोरी से। उसने कविता की बांह को अपने गर्दन में डाला और उसे गेट तक ले गया। दरवाज़ा खोलके, उसको उसके कमरे तक वैसे ही ले गया। कविता लेट गयी।
जय ने उसे वैसे ही छोड़ दिया और वहीं बैठ गया।
शाम को करीब पांच बजे कविता की नींद खुली, अब वो पूरी तरह ठीक हो चुकी थी। उसे सारी घटना विधिवत याद थी। उसने देखा जय वहीं पलंग से लगके बैठकर सो रहा था। उसने उसको देखा तो उसे उठाया,
कविता- जय....जय... उठो।
जय- अऊ.. आय दीदी तुम ठीक हो? कब उठी ?
कविता- अभी अभी। कविता ने उसे बिस्तर पर बैठने का इशारा किया।
जय- दीदी आखिर, कैसे हुआ ये?
कविता नज़रें झुकाये हुए-हम कल रात की बातें सोच रहे थे, और पता नही कब हम बेहोश हो गए।
kaamuk update
 
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Nevil singh

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जय कविता के करीब आया, और बोला- दीदी तुम भी ना, कुछ गलत नहीं हुआ है। हम दोनों ही वयस्क हैं, और ये हो जाता है। क्या हम नहीं समझते हैं कि तुमको सेक्स की ज़रूरत है। 26 साल की लड़की अगर सेक्स नहीं चाहेगी तो क्या बुढ़िया होकर सोचेगी। ये तो ज़रूरत है शरीर की, किसी और के साथ करोगी बाहर में तो, ख़तरा होगा। हमलोग अगर घर में ही एक दूसरे को खुश रखें, तो इसमें बुराई क्या है। तुम भी ब्लू फिल्में देखती हो और हम भी एक दूसरे से छुपाकर। पर जानते हैं कि दूसरा देख रहा है। हमारी तरफ देखो ना। कविता उसकी आँखों मे भोले बच्चे की तरह देखने लगी।
कविता- पर हम भाई बहन होकर चुदाई कैसे कर सकते हैं, जय? क्या हमने अपने रिश्ते को कलंकित नहीं किया है??
जय- तुमको क्या लगता है खाली हमने तुमने ऐसा किया है, अरे आदिकाल से ऐसा हो रहा है समाज में। रति ने अपने बेटे के साथ, यमी बहन होकर अपने भाई के साथ संभोग करना चाहती थी। अर्जुन से स्वर्ग की अप्सरा जो कि उसकी माँ थी वो भी उससे संभोग करना चाहती थी। तुम मुस्लिमों में ले लो चाचा, फूफा की बेटी के साथ शादी हो जाती है। ये रिश्ते नाते सब अपनी जगह हैं, अगर तुम बाहर जाके ये सब करोगी तो दुनिया तुमको बदचलन, रंडी, और ना जाने क्या क्या बोलेगी। जो हम या माँ तो बिल्कुल नही चाहेंगे। अरे, तुम्हारे साथ कुछ गलत नही होने देंगे हम। राखी का वचन है। जहाँ तक रही हमारी बात तो , हम अब तुमको एक बात कह देना चाहते हैं, आई लव यू, कविता। भले ही तुम हमारी दीदी हो, पर अब सच्चाई यही है। और हम तुमको आज से नहीं बहुत पहले से प्रेमी की तरह चाहते हैं। बस कह नहीं पाते थे, की तुम क्या सोचोगी? पर आज साला निकल ही गया। अगर हमारा बस चले तो तुमसे ही शादी करेंगे।
जय उठके जाने लगा। तभी कविता ने उसका हाथ पकड़ लिया। कविता बिस्तर से उठी और जय की आंखों में देखा," इतना प्यार करते हो हमसे। हम कभी सोचे नहीं थे कि कोई हमको इतना चाहेगा। पता है आज दिन भर हम क्या सोच रहे थे। कि हम कितनी घटिया लड़की हैं जो अपने ही भाई के साथ, अपने बिस्तर पर चुदाई की। हमको तुमसे ज़्यादा खुदसे घिन्न हो रही थी। हमको तो आज मन कर रहा था कि सुसाइड कर लें। छोटे हो हमसे तुम पर बड़ी बात सिखा दिया तुमने। आखिर प्यार कोई रिश्ते देखकर थोड़े ही होता है। हम भाई बहन हैं भी तो इस समाज के लिए, पर समाज से पहले हम दोनों को प्रकृति ने औरत और मर्द बनाया है, और ये रिश्ता समाज के रिश्ते से कहीं ऊपर है। मैं इन रिश्तों के बंधनो को तोड़कर आज तुमसे प्रेमिका का रिश्ता जोड़ती हूँ। अब चाहे जो हो, ये कविता आज से तुम्हारी है। इसके बाद तुमसे समाज का बंधन ज़रूर जोरूँगी, पति- पत्नी का।
जय- कविता दीदी, आई लव यू।
कविता- सिर्फ कविता कहो। आई लव यू टू जय। तुम हमको अकेले मत छोड़ना, हमारा साथ निभाना।
जय ने कविता को अपनी बाहों में भर लिया और उसको किस करने लगा। अबकी बार कविता उसे एक अलग ही तरह से चूम रही थी।
kajrari update
 
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