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Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Nevil singh

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कविता अपने छोटे भाई के सीने पर अपनी चुचियाँ को गड़ा दिया और उसके सर के आजु बाजू अपना सर डाल दिया और उसको खूब ज़ोर से चुम्मा लेने लगी। कविता अपनी जीभ से जय के मुंह को टटोल रही थी। कविता को इस तरह चूमता देख जय ने कविता को कमर से पकड़ लिया और वो भी उसे उसी तरह पैशनेट चुम्मा लेने लगा। करीब 5 मिनट बाद दोनों सांसें उखड़ जाने की वजह से रुके, वरना वो अलग नहीं होते। कविता जय की आंखों में देख रही थी, पर इस बार शर्म की जगह मोहब्बत ने ले ली थी।
जय- कविता दीदी तुम तो बहुत ही मस्त किस करती हो।
कविता- हहम्म, मज़ा आया की नही।
जय- बहुत मज़ा आया दीदी, आज हम कितने खुशनसीब है कि हमको अपनी दीदी में ही एक बहन और औरत दोनों का प्यार मिल रहा है।
कविता- क्या मतलब? तुम ये भाई बहन का रिश्ता अभी कायम रखोगे?
जय- हाँ, दीदी ये तो हमारी पहली सच्चाई है, पर दूसरी सच्चाई ये है कि हम तुम्हें अपनी गर्लफ्रैंड बनाना चाहते हैं। जय ने उसके बालों को सवारते हुए कहा।
कविता- तो तुम सबके सामने हमको दीदी बनाये रखोगे और अकेले में हम दीदी से बीवी बन जाएंगे। ये बोलकर कविता और जय दोनों ठहाके मारकर हँसे।
जय- वो तो तुम्हे एक दिन बनना है, जानू।
जय ने बोला कि चलो में तुम्हे कहीं बाहर घुमा के लाता हूँ।
कविता- पर तेरे पास पैसे कहा से आये?
जय- कल मामाजी ने दिए थे, 5000।
कविता- अच्छा, पर तुम्हे उनसे पैसे नहीं लेने चाहिए थे। हमको अच्छा नहीं लगता कि कोई हम पर दया करके पैसे दे। उन्हें लगता है कि हम तंगी में जीते हैं।
जय- अरे कविता तुम कहाँ से कहाँ पहुंच गई, चलो ना।
कविता- जय हमको मामाजी की आंखों में हमेशा दया दिखती है, हमारे लिए जो हमको अच्छा नहीं लगता। यही सोचके उन्होंने पैसे दिए होंगे।
जय- उन्होंने कोई गिफ्ट नहीं लाया था मेरे जन्मदिन पर इसीलिए रुपये दिए। ताकि अपने हिसाब से कुछ ले लूँ। तुम आओ मेरे साथ।
कविता- ओह.... अच्छा ठीक है। हम फ्रेश हों लेते हैं।
जय -ठीक है, हम भी कपड़े बदल लेते हैं।
थोड़ी देर बाद कविता बाहर आ गयी।
कविता इस वक़्त काली कलर की लेग्गिंग्स और लाल कुर्ती में थी। जय टी शर्ट और जीन्स में था।
जय ने उसे देखा तो बोल पड़ा, क्या हॉट लग रही हो कविता। कविता मुस्कुराई, तुम भी बहुत हैंडसम लग रहे हो। जय कविता के साथ बाहर आया। और ऑटो ले ली। उसमे बैठके दोनों PVR मॉल को निकल पड़े।
बाहर गर्मी थी, तो कविता और जय दोनों को पसीने आ रहे थे। कविता की कुर्ती से उसकी चुचियों की दरार साफ दिख रही थी। जिसमे उसके गले का लॉकेट फंसा था। पसीने की वजह से चुचियाँ का हिस्सा जो दिख रहा था, बिल्कुल चमक रहा था। कविता इस बात से बेखबर थी कि जय उसकी चुचियों को निहार रहा है। जय ने एक शरारत की उसने पहले कविता को अपनी दायीं बांह से खुद से चिपका लिया। कविता मुस्कुराते हुए उसके करीब आ गयी। उसने फिर कविता की लेग्गिंग्स में अपना हाथ पीछे से घुसा दिया।
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Nevil singh

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कविता चौंक उठी- आंखों से इशारा करके बोली निकालने के लिए। पर जय कहाँ मानने वाला था। वो मुस्कुराके उसकी पैंटी में हाथ घुसा दिया, और कविता की गाँड़ की दरार में उंगलिया फेरने लगा। कविता धीरे से बोली, जय यहां नहीं प्लीज।
जय ज़ोर से बोला- क्या , यहां नहीं जानू। कविता को ये छेड़ छाड़ पसंद आ रही थी, वो झूठा गुस्सा भरा चेहरा बनाके उसे डराना चाही, पर जय ने उसे चूम लिया। कविता की हंसी छूट गयी। जय बोला हँसी तो फंसी।
तब तक वो पहुंच चुके थे , जय ने ऑटोवाले को पैसे दिए और वो चला गया। तब जय ने अपने हाथों को सूँघा जिससे उसने कविता की गाँड़ को टटोला था, कविता ये सब देख रही थी। वो मुस्कुराई और बोली जल्दी चलो। जय ने सोचा, कविता को ये घिनौना नही लगा, की मैं उसकी गाँड़ को टटोलकर सूंघ रहा हूँ, कोई और होती तो शायद घृणा करती ।
वो कविता के पीछे हो लिया। वहां टिकट की लाइन में भीड़ थी। लेडीज की लाइन में तीन चार ही लोग थे। कविता ने बोला कि टिकेट मैं ले लेती हूँ। और टिकट की लाइन में लग गयी। जय ने देखा कि कविता एक दम मस्त माल लग रही है। ब्राह्मण होने की वजह से रंग तो पूरा गोरा था। कविता की चुचियाँ क्या मस्त तनी हुई थी और गाँड़ का उभार तो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था। उसका भोला सा चेहरा। उसकी गोल बड़ी बड़ी आंखें , हाई चीक बोन्स की वजह से उसका चेहरा और निखर रहा था। उसने अपने बाल क्लचर में बांध रखे थे। कानों में से लटकता झुमका मैटेलिक रंग का था। जिसमे दो गोलाकार बॉल लगे हुए थे, उसे और आकर्षक बना रहे थे। होंठो पर हल्की लाल लिपस्टिक, आंखों में गहरा काजल वो बिल्कुल बॉलीवुड की हीरोइन लग रही थी।
तभी कविता ने जय को टोका- जय ये लो, टिकेट।
जय लगभग सपने से जागते हिये बोला - अरे तुमने हमको क्यों नही बोला? पैसे थे ना।
कविता- जब तक हम हैं तब तक तुमको पैसे खर्च नही करने हैं। जब तुम IAS बन जाओगे तब करना।
जय- तब तुमको हम बीवी बनाके रखेंगे, और इस साल ये होके रहेगा।
कविता- अच्छा है पर, माँ को कैसे मनाओगे?
जय- उन्हें समझाऊंगा की हम दोनों प्यार करते हैं।
कविता- वो बोलेंगी की ये गलत है, तब ?
जय- उनको समझायेंगे,...... क्योंकि...... ये गलत नहीं है?
तभी एंट्री शुरू हो गयी। कविता और जय ने जाकर कार्नर की सीट ले ली। जय ने पूछा कि ये कार्नर की सीट कैसे मिली। कविता ने आंख मारी की मैंने माँग ली थी। जय ने कविता की ओर देखा और बोला , क्या बात है, जानू??
पिक्चर शुरू हो गयी, पर जय का ध्यान कविता के ऊपर था। उसने कविता के बाजू में अपना हाथ रख लिया। कविता खुद खिसक कर जय के करीब आ गयी। थोड़ी देर पिक्चर चलने के बाद फ़िल्म में एक सीन था जिसमे हीरो जॉन अब्राहम दरवाज़ा तोड़के हीरोइन बिपाशा बासु के पास आके उसे किस करने लगता है और फिर सेक्स सीन होता है।
जय ने कविता से पूछा कि दीदी, मुझे तुम से कुछ पूछना है?
कविता ने कहा- हाँ पूछो।
जय - कल की रात तुम जानती थी कि तुम नंगी हो फिर भी तुमने दरवाज़ा क्यों खोला, ये जानते हुए की हम तुम्हारे साथ क्या करेंगे? हाल के अंधेरे में जय ने हिम्मत जुटाकर ये सवाल किया, ये सोचकर कि शायद अंधेरे में कविता उसका चेहरा नहीं देख पाएगी।
कविता- उस वक़्त हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। तुम हमको नंगी देख चुके थे। और शायद हमको वासना की तलब थी। ब्लू फिल्म देखकर हम जोश में भी थे। कोई मर्द ही उस समय हमको शांत कर सकता था, दिमाग ने दिल से कहा। और उस समय तुम ही दिखे।
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Nevil singh

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कविता ने जय को गाल पर चुम्मा दिया और उसका हाथ अपने सीने पर रख लिया।
जय- जब हम तुमको चोद.... सॉरी सेक्स कर रहे थे। तब तुम क्या सोच रही थी??
कविता- इसमें सॉरी की क्या बात है, हिंदी में सेक्स को चुदाई ही बोलते हैं। और तुम हमको चोद रहे थे। लड़कियां चुदती हैं और लड़के चोदते हैं। उस वक़्त हम बस ये सोच रहे थे, की कैसे अपनी प्यास बुझाए। तुम्हारा लण्ड जब हमारे बुर में था, तो बहुत मज़ा आ रहा था। जैसे आसमान में उड़ रहे हों। उस समय एक बार भी ग्लानि नहीं हुई। हाँ चुदाई के बाद हुई थी। कविता ने पूरा बेबाक होकर उत्तर दिया, शायद ये हॉल का अंधेरा उनके जीवन मे नया प्रकाश लेके आएगा।
जय - तुम कितनी मस्त हो कविता। कितने खुलेपन के साथ तुमने जवाब दिया है। तुमने लंड का रस कैसे पिया? हमको उम्मीद नहीं थी।
कविता उसकी आँखों मे देखकर बोली- सच कहें तो ये हम ब्लू फिल्मों में देखते थे। कि लड़कियां मूठ पी जाती हैं। हम भी पीकर देखना चाहते थे कि कैसा लगता है। तुम अगर मेरे बुर में निकालते तो माँ बनने का खतरा भी था। हम कहीं पढ़े भी थे कि लड़कियों को मर्दों का मूठ पीना चाहिए, उससे चेहरे में निखार आती है। हमको उसका स्वाद भी बहुत अच्छा लगा।
जय- तुम तो अलग निकली कविता, एक तो तुम हिंदुस्तानी और उसमें बिहारी उसकर ऊपर से ब्रह्मिन लड़की होकर ये सब कैसे कर पाई।
कविता- जब विदेशी लड़कियां ऐसा करती है , तब तुमलोग सोचते हो कि हिंदुस्तानी, लड़कियां ऐसा क्यों नही करती। कर दिया तो आश्चर्य। बिहार ने भारत को ही नहीं विश्व को पहला लोकतंत्र दिया है, तो बिहार की बाला मूठ नहीं पी सकती क्या। वर्ण व्यवस्था तो ढकोसला है, और एक सेकंड को मान भी लें तो सबसे ऊपर हम ब्राह्मिन ही हैं, हर चीज़ की शुरुवात तो हम ही करते हैं। कविता बोलके हसने लगी।
कविता के तर्कों को सुनकर जय चुप ही हो गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो उसकी दीदी है, जो इन विषयों की भी जानकार है।
कविता बोली- हम बाथरूम से आते हैं। जय ने बोला कि एक और बात पूछनी थी। कविता बोली आते हैं, फिर पूछना।
जय का लण्ड खड़ा हो चुका था, कविता की बातें सुनकर।जय उसका बेसब्री से इंतज़ार करने लगा।
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Nevil singh

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कविता को 5 मिनट बाद आता देख उसको सुकून मिला। कविता आकर बैठी तो जय ने फौरन पूछा, की उस दिन पैंटी क्यों नहीं लाने दी अपने कमरे से?
कविता- उस दिन शर्म आ रही थी, घिन हो रही थी अपने आप से। पर आज नहीं और जय के हाथ मे कविता ने कुछ रख दिया। जय ने गौर से देखा तो कविता की पैंटी थी, जो वो पहन कर आई थी। उसमें उसकी बुर का पानी भी लगा था। कविता बाथरूम जाकर खोल आई थी।
जय- तुम्हें ....
कविता- पता था, की यही पूछोगे।और जय के लण्ड पर हाथ फेरने लगी। वो बिल्कुल कामुक हो चुकी थी।
तब जय ने कविता से एक आखरी सवाल किया- कविता दीदी तुम कमाल हो। पर ये बात पूछनी है, की हमको रफ़ चुदाई अच्छी लगती है, तुमको कैसी पसंद है।
कविता जो कि कामुक हो चुकी थी, और अब पूरी तरह खुल चुकी थी, बोली- शायद हो सकता है कि तुम्हें हमारा जवाब सुनके आश्चर्य लगे पर खुश जरूर होंगे। हमको बिल्कुल ब्लू फिल्मों की हीरोइन की तरह चुदना पसंद है।


मर्द और औरत का जब चुदाई का समा बंधता है तो उसको एक सुखद एहसास सिर्फ औरत देती है। ये औरत पर निर्भर करता है कि वो अपने यार को किस हद तक कि खुशी देगी। मर्द तो हमेशा ही औरतों से कुछ ज़्यादा चाहते हैं, पर क्या वो चुदाई की गहराइयों में उतरकर खुद को भुलाकर अपने साथी को संतुष्टि की चरम सीमा पर पहुंचने में मदद कर सकती है? पहले तो चुदाई का मतलब सिर्फ बुर की चुदाई होती थी।दर असल ब्लू फिल्मों की वजह से आजकल चुदाई के मायने भी बदल गए हैं, अब हर कोई औरत को वैसे ही चोदना चाहता है, जैसे उस फिल्म में हीरोइन चुदती हैं। जिसमे उनकी बुर की चुसाई और चटाई के साथ साथ गाँड़ की चुदाई, गाँड़ से लौरा निकालके उनको चटवाना, उनके मुंह पर थूकना व माल निकालना, चुदाई के दौरान उनको गाल और गाँड़ दोनों पर थप्पड़ मारना, मर्द की गाँड़ चाटना और भी कई तरह से गंदी और घिनौनी चुदाई के जिसे KINKY कहते हैं, शामिल है। अगर कुल मिलाके देखा जाय तो औरतो को चुदाई का सामान समझ लिया गया है। कुछ लड़कियों को ऐसे चुदना पसंद है, हम उनमे से एक हैं।हमको ऐसे ही चुदना है खुलकर,क्या आज ऐसा दो भाई बहन के बीच देखने को मिलेगा? कविता की आंखों में ठरक साफ झलक रही थी।
जय ने अब एक पल भी बर्बाद करना ठीक नहीं समझा और कविता को चूमने लगा। कविता बोली, चलो भाई घर चलते हैं।
जय ने उसका हाथ पकड़ा और पिक्चर आधी छोड़ कविता को घर ले जाने के लिए ऑटो पकड़ ली। दोनों अब बर्दाश्त कर नहीं पा रहे थे।आधे घंटे का सफर मानो एक युग जैसा लग रहा था।
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आखिर में दोनों घर पहुंच ही गए।जय ने जबतक ऑटोवाले को पैसे दिए तब तक कविता ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गयी। जय दरवाज़े पर पहुंचा तो कविता उसकी तरफ देखके मुस्कुरा रही थी। जय उसके पीछे आया तब तक कविता बाथरूम में घुस चुकी थी, और दरवाज़ा बंद करने लगी। जय दरवाज़ा के पास दौड़ के पहुंचा पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जय ने कविता को आवाज़ लगाई, पर कविता कुछ नहीं बोली। जय कविता के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था। कविता ने फिर कहा, जय सब्र करो, सब्र का फल बहुत मीठा होता है।
जय बोला- अब सब्र नही हो रहा है दीदी।
कविता बोली - जाओ घर का सामान ले आओ लिस्ट किचन में टंगी है। पहले वो काम कर आओ। हम तुम्हारा और हमारा आज का दिन यादगार बना देंगे।जब तुम वापिस आओगे तो तुमको तुम्हारी दीदी नहीं , तुम्हारी कविता जानू मिलेगी। एक नए अवतार में।
जय कविता की बात मानकर, लिस्ट लेके बाजार से सामान लाने चला गया। उसने दरवाज़ा बाहर की ओर से बंद कर दिया। जय बाजार की ओर निकल तो रास्ते में उसे एक तरकीब सूझी। उसने सारा सामान बढ़ा के लेने की सोची। ताकि बाद में फिर उसे एक हफ्ते तक बाहर जाने की जरूरत ना पड़े। रास्ते मे उसे एक मेडिकल स्टोर दिखा तो उसने 2 पैकेट कंडोम और वियाग्रा की गोलियां ले ली। जब वो लौट के आया तो कविता अभी तक बाथरूम में ही थी। कविता तभी बाहर निकली, वो इस वक़्त गज़ब ढा रही थी। उसके बदन पे कपड़े के नाम पर एक सफेद तौलिया लिपटा हुआ था। कविता के बाल भीगे हुए थे, आंखों में अपने छोटे भाई में एक मर्द मिल जाने की वजह से एक अजीब कामुकता बसी थी। वो तौलिया उसकी चुचियों को आधा ढके हुए था, यानी ऊपर से आधे खुले थे। चुचियों की ऊपरी अर्ध गोलाइयों उसके यौवन की परिपक्वता की गवाही दे रहे थे।उसकी जांघों का जोर जहां खत्म होता था, वहीं तक तौलिया उसको ढके था। उसकी जाँघे बिल्कुल चिकनी थी।
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Nevil singh

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कविता की नज़र जय की ओर गयी, तो देखी की जय पूरे एक हफ्ते का राशन और सब्जी ले आया था। कविता उसके पास आई, वो जय के हाथों से सामान लेकर किचन की ओर जाने लगी। जय अवाक होके उसे देखे ही जा रहा था।जय ने फौरन दरवाज़ा बंद कर दिया। तौलिया भीगकर कविता के चूतड़ों से चिपक गया था, इस वजह से उसकी चूतड़ों का का दिलनुमा आकार साफ पता चल रहा था। उसकी चाल उसके चूतड़ों के हिलने से बहुत ही सेक्सी लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि कविता के बदन पर तौलिया बस उसके चुचियों और गाँड़ की वजह से टिका हुआ था।जय ने कहा - अबसे एक हफ्ते तक हम घर से बाहर नहीं जाएंगे। और पूरी मस्ती करेंगे। कविता मुस्कुराई, बोली, अच्छा जी!
जय ने अपनी जीन्स और टी शर्ट उतारकर सोफे पर फेंक दी। और कविता के पास किचन में घुस गया। उसने कविता को पीछे से पकड़ना चाहा तो कविता मुड़ गयी। उसने कंडोम के पैकेट को निकाला जो जय लाया था। उसने बोला इसे क्यों लाये हो?? जय- ताकि सेफ रहे हम। तुम कहीं ....... अआ.....वो.... जाओ।
कविता- वो .. वो क्या? कि कहीं तुम्हारा बच्चा हमारे पेट में ना आ जाये।
जय- हाँ, वही .. वही। कविता जय के करीब गयी उसके आंखों में आंखे डालकर बोली, जब तक तुम अपने लण्ड का पानी हमारे बुर में नहीं गिराओगे तब तक इसका कोई डर नहीं, तुम्हारे लण्ड का सारा मूठ तो हम पी जाएंगे। और रही इस कंडोम की बात तो हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए और उस पैकेट को फेंक दी। कविता ने हंसकर कहा।




जय ने कविता के गीले बालों पर हाथ फेरा, शैम्पू की खुसबू आ रही थी। जय ने कविता को कमर से पकड़कर अपनी बाहों में ले लिया। कविता के गुलाबी गालों पर वो हाथ फेरने लगा। कविता ने अपने मुलायम गाल से जय के हाथों पर दबाव बनाकर ये जताया कि वो उसके साथ है। जय ने फिर कविता के होंठो को अपनी उंगलियों से छुआ,उसके होंठ कांप रहे थे एक मर्द के एहसास से। कविता की आंखें अनायास बन्द हो गयी। जय ने कविता के आंखों को चूमा और कहा - आंखें खोलो। कविता ने धीरे से अपनी आंखें खोली। फिर जय कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाया और वो कब मिल गए दोनों को पता ही नहीं चला। दोनों इस चुम्मे में खो गए थे। जय कविता के होंठों को कुल्फी की तरह चूस रहा था। कविता उसके होंठो को ठीक वैसे ही चूस रही थी, जैसे कोई बच्चा चॉक्लेट चूसता रहता है। दोनों एक दूसरे के मुंह में जीभ घुसाके चूस रहे थे। जब सांस उखड़ जाती तो कुछ पल थमते फिर होंठों का रसपान करने लगते। कविता की बांहे जय के गर्दन पर जमी हुई थी। दोनों में से कोई दूसरे को छोड़ने को तैयार ही नहीं था। जय ने आखिर इस सिलसिले को तोड़ा और कविता के गर्दन पर चुम्मों की बौछार कर दी।
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Nevil singh

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कविता की चुचियाँ तन गयी थी, जो जय के सीने से रगड़ खा रही थी। जय का दाहिना हाथ कविता के दोनों चूतड़ों को बारी बारी से मसल रहा था। जैसे ही जय का हाथ उसके चूतड़ों पर गया कविता ने सहयोग के तौर पर उसके हाथों पर अपने हाथ रख दिया था। जय ये महसूस करके जोश में आ गया। और कविता का तौलिया निकाल दिया।पलक झपकते कविता नंगी हो गयी। कविता ने अपना चेहरा जय के सीने में छुपा लिया। जय ने कविता के चेहरे को सीने से अलग किया, उसके माथे पर एक किस करके बोला, तुमने ही कहा था कि हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए। कविता कुछ नहीं बोली सिर्फ कामुक होकर अपने दोनों हाथ अपने सर के पीछे रख लिया और खुद एक कदम पीछे हटके खड़ी हो गयी। फिर बोली- सही कहा था, अब देखो हमको।
ऊफ़्फ़फ़फ़ ................... क्या दृश्य था वो। कविता एक नर्तकी की मुद्रा में थी। कविता की उन्नत चुचियाँ एक दम कड़ी हो चुकी थी, जो कामुकता की वजह से तनी हुई थी। उसने जान बूझकर अपनी चुचियाँ और बाहर निकाली थी। चुचियों पर हल्के भूरे रंग के निप्पल अंगूर के जैसे लग रहे थे। चुचियों की गोलाइयां एक दम पके बड़े आमों की तरह थी, जो अपने चूसे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस आमंत्रण को जय ठीक से स्वीकार भी नही कर पाया था कि उसकी नज़र कविता के समतल पेट पर गयी। हल्की चर्बी थी, पर वो उसके कमर और पेट को कामुक बना रहा था। जय ने कविता की नाभि की गहराई अपनी आंखों से नापी, जो कि कविता के पेट का मुख्य आकर्षण था।कविता की नाभि अंडाकार और गहरी थी।
जय ये सब देख ही रहा था कि कविता घूम गयी, दूसरी ओर। ये तो बिल्कुल जय के सपने जैसा था, जिसमे एक औरत पीछे मुड़के खड़ी होती थी। पर वो कभी उसका चेहरा नहीं देख पाया था। उसे अब महसूस हुआ कि वो और कोई नही उसकी बहन ही थी। कविता ने अपने बाल आगे कर लिया।और अपनी नंगी पीठ अपने छोटे भाई को दिखाने लगी। कविता के गोरी होने की वजह से उसकी पीठ में कंधे के पास बड़ा सा तिल साफ दिख रहा था। उसके बाद कविता ने अपनी गाँड़ लहराई। कविता के चूतड़ों की थिरकन बहुत सेक्सी लग रही थी। कविता के चूतड़ों का आकार दिलनुमा था। गाँड़ की दरार बहुत सटीक थी। गाँड़ पर भी दो तिल थे। चूतड़ बिल्कुल तरबूज़ जितने बड़े थे। कविता ने अपने चूतड़ों को अलग किया और फिर छोड़ दिया। वो ऐसा चार पांच बार की। फिर अपने चूतड़ों को पकड़के हिलाने लगी। उसे दबाया और हल्के थप्पड़ मारे। जय ये सब देखते हुए अपना लण्ड रगड़ रहा था। कविता पीछे , मुड़ी और बोली, भाई क्या हुआ तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे। अच्छा नहीं लग रहा है क्या तुमको? अपनी चूतड़ को सहलाते हुए बोली।
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जय- कोई पागल ही होगा जिसको ये अच्छा ना लगे। दीदी तुम एक दम बढ़िया कर रही हो। क्या शरीर है तुम्हारा। तुमको तो फिल्मों की हीरोइन बनना चाहिए। हम तुम्हारे अंग अंग को पहले जी भरके मन में बसाना चाहते हैं।
कविता- तो फिर देखो लेकिन औरत देखने की नहीं महसूस करने की चीज़ है। आओ हमारे पास और महसूस करो हमको। कविता ने इठलाते हुए कहा।
जय उसके करीब गया और कविता की नंगी पीठ को ऊपर से सहलाते हुए उसकी कमर तक हाथ फेरा। उसकी पीठ पर जो तिल थे, उसे चूमा और एक हाथ कविता की गांड पर दूसरे से कविता की बांयी चूची को थाम लिया। जय ने इसे पहले भी महसूस किया था, पर आज कविता मन से उसका साथ दे रही थी। उसने उसकी गाँड़ और चूची दोनों को खूब मसला। उसके निप्पल को जब वो छेड़ रहा था, तो कविता सीत्कार उठती, इससस्स….........
कविता को पीछे से जकड़े हुए उसने अपना लौड़ा उसकी गाँड़ पर रगड़ने लगा। कविता को अपनी गाँड़ पर अपने छोटे भाई का चुभता लौड़ा बहुत मस्त लग रहा था। उसका एक हाथ उसके लौड़े को अंडरवियर के ऊपर से ही महसूस करने लगा। जय ने कविता को झटके से अपनी ओर घुमा लिया।कविता की गाँड़ की दरार में उसने उंगलिया घुसा दिया। और इधर कविता के अंगूर समान निप्पल्स को मुंह मे रखके चूसने लगा। कविता को अपनी चुचियों को चुसवाने में बड़ा मजा आ रहा था। वो अपनी चूची को उठाके जय के मुंह मे देने लगी। जय उसकी चुचियों को पूरा आनंद से चूस रहा था। कविता- आआआ......... आआहह...... भा...भाई .....चूस.....सो.....। ऊफ़्फ़फ़फ़...... आआहह.... खूब चूसो। बहुततत..... अच्छा लग रहा है।
जय ने उसके आनंद को बनाये रखा, और खूब चूसा। कविता के बुर से पानी लगातार बह रहा था। जय ने उसकी दोनों चुचियों को खूब चूसा। कविता जय के लण्ड को सहला रही थी।
जय ने अपना अंडरवियर उतारना चाहा तो कविता ने उसे रोक दिया। और खुद ही सिंक के पास फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी। जय के लण्ड को अंडरवियर के ऊपर से ही चाटने लगी। उसके लण्ड की खुसबू सूंघ रही थी। जय का अंडरवियर कविता ने गीला कर दिया अपने थूक से।फिर उसने जय के लण्ड को बाहर निकाला अंडरवियर से। जय ने अंडरवियर को फिर निकाल दिया। कविता ने जय के लण्ड को अपने चेहरे पर लगाके उसके साइज को नापा, लगभग पूरा चेहरा की लंबाई कवर हो गया। कविता हंस रही थी, बोली- हमारे चेहरे के बराबर है, तुम्हारा लण्ड।
जय- यही कल रात तुम्हारी चुदाई किया था। और ज़ोर से हंसा। अब खूब चुदोगी इससे।
जय के लण्ड को कविता ने अपने मुंह मे भर लिया। जय का लण्ड चुसाने का ये पहला अनुभव था। कविता ने बिल्कुल वैसे ही चूसना शुरू किया जैसे ब्लू फिल्मों में करते हैं। कविता ने उसके लण्ड को पूरा थूक से नहला दिया। उसका थूक जय के लण्ड से धागों की तरह लटका हुआ था। वो पूरा मन लगाके लण्ड को चाट रही थी।कभी लण्ड के सुपाडे को जीभ से रगड़ती, और चूसने लगती। लण्ड के छेद को जीभ से छेड़ती। फिर लण्ड पर थूककर अपने हाथों से मलती। और फिर लण्ड को मुंह मे भरकर चूसने लगती। कविता चूसते हुए बोली- भाई तुम्हारा लण्ड बहुत मस्त है। एक दम कड़क है, आहहहहह.... हहदहम्ममम्म.... चप..... चप..... उम्म......।
जय कुछ नहीं बोल पा रहा था, उसके मुंह से केवल आआहहहहहहहह…........ऊफ़्फ़फ़फ़...... ओह्हहहहहह...... तुममम्म...... कमाल की लण्डचुस्सकर हो कविताताता.... जानू।
कविता ने फिर जय के लण्ड को पूरा मुंह मे घुसा लिया। और जय को देखती रही। मुंह मे लण्ड होने की वजह से उसके गाल फूल गए थे। और वो तिरछी नज़रो से जय को देख रही थी। कुछ देर वैसे रुकने के बाद उसको उबकाई आयी और पूरा लण्ड बाहर आ गया। लौड़ा पूरा थूक से सन चुका था। कविता की आंखों में इस वजह से आंसू थे और हांफ रही थी। कविता ने जय को देखा और कहा इसे गैगिंग कहते हैं भाई। हम ये खीरे के साथ किए थे, आज लण्ड के साथ कि हूँ।
जय ने जोश में कहा- हाँ, पता है हमको, हम भी इसका फैन हैं, तुम बहुत मस्त कर रही हो, बिल्कुल ब्लू फिल्म की रंडियों की तरह। सॉरी गाली दी।
कविता- चुदाई का मज़ा तो गालियों के साथ ही आता है। हमको कोई एतराज़ नहीं है, जो मन चाहे गाली दो। बोलके कविता ने फिर लण्ड मुंह मे ले लिया।
जय- क्या बात है मेरे मुंह की बात छीन ली, आजसे तू हमारी रंडी है कविता दीदी। दीदी से रंडी बन गयी है।
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कविता फिर लण्ड चूस रही थी, तब जय ने उसके बालों का गुच्छा बनाके कसके पकड़ लिया, जिससे उसके बाल हल्के खींच रहे थे। तब उसने लण्ड को बाहर निकाल लिया, कविता का मुंह खुला था, जय ने उसके खुले मुंह मे थूक की गेंद बनाके गिराया, जो सीधा उसके मुंह मे गिरा। कविता वो जय को दिखाके पी गयी, और बोली- और थूको , प्लीज और दो, मुंह खोल दी। जय ने फिर वैसे ही किया। इस बार भी कविता ने वही किया।
कविता तुम कितनी बड़ी रंडी हो, हमको विश्वास नहीं हो रहा है कि हमारी शरीफ दीदी के अंदर इतनी बड़ी रंडी रहती है। जय बोलकर अपना लण्ड कविता के मुंह पर रगड़ने लगा। उसके पूरे चेहरे को अपने लण्ड पर लगे थूक से भिगो दिया। कविता को ये बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। कुछ देर उसके चेहरे पर ऐसा करने के बाद। उसने कविता को बालों से पकड़कर किचन की दीवार से लगा दिया, जिससे वो पीछे पूरी तरह से चिपक गयी, अब वो और पीछे नहीं जा सकती थी। जय ने कविता के मुंह मे लौड़ा डाल दिया। कविता का मुंह पूरा उसके लौड़े से भर गया। कविता के मुंह को जय बेरहमी से चोदने लगा। जय ठोकर मारता तो उसका आंड कविता के ठुड्ढी और होंठों से टकरा जाते थे। कविता की आंखें बिना पालक झपकाए जय की आंखों को निहार रही थी। गर्मी की वजह से दोनों पसीना पसीना हो चुके थे। पर कोई रुकने का नाम नही ले रहा था। जय लौड़ा निकालता और उसपर लगा थूक कविता के चेहरे पर मल देता। कविता के मुंह से थूक के धागे बन बनके फर्श पर गिर रहे थे। जय- क्यों कविता रंडी दीदी मज़ा आ रहा है, चुदाई में।
कविता सिर्फ हल्का सर हिलाके गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ......... गों गों गों गों करके जवाब दे रही थी।
फिर जय ने कविता को बालों से पकड़े हुए ही उठाया और उसे पकड़के किचन से बाहर ले आया। जय कामुकता से बोला- क्या मस्त रंडी छुपी थी इस घर में और मैं ब्लू फिल्में देखता था। सच मे लड़की में त्रियाचरित्र के गुण होते ही है। साली ऊपर से ढोंग रचती है पवित्र होने का और अंदर से उतनी बड़ी रांड के गुण छुपाये रहती है।
कविता कुछ सोची ये सुनके और हसने लगी, क्या बात बोला तुमने, एक दम सच।
जय कविता को अपने कमरे में ले गया। और उसको बिस्तर पर धकेल दिया।
कविता- अब क्या करोगे हमारे राजा भैया? वो मुस्कुराते हुए कामुकता से बोली। जय- तुम्हारी बुर का स्वाद चखना है। चल अपना पैर फैलाकर बुर को खोल।
कविता- वाह, तुम बुर को चुसोगे, आ जाओ। इस बुर को जूठा कर दो, अभी तक किसीने नहीं चूसा है इसको।
जय ने कविता की टांगों के बीच जगह बनाई और बैठ गया। आज तो दिन में सब खुल्लम खुल्ला हो रहा था। उसने बुर के करीब आके उसको पहले सूँघा। सूंघने से उसमे बुर की सौंधी सी खुसबू आ रही थी। कविता की बुर गीली हो चुकी थी। उसमें से लसलसा पदार्थ बह रहा था, जो कि बुर को चिकना बना रही थी। बुर की दोनों फाँक को कविता ने अलग कर रखा था। अंदर सब गुलाबी गुलाबी था। फैलाने से बुर की छेद हल्की दिखाई दे रही थी। उसने बुर के ऊपर थूक दिया और उसपर खूब माल दिया। उसने करीब 5 6 बार थूका। फिर बुर की चुसाई में लग गया। उसने जीभ से बुर की लंबी चिराई को सहलाना शुरू किया। और अपनी दांयी हाथ की मध्य उंगली उसकी बुर में घुसा दी।
कविता चिहुंक उठी। ऊफ़्फ़फ़फ़ ऊफ़्फ़फ़फ़,............ आआहह, ऊईईईई, आआहह.... आऊऊऊऊऊ। जय बहुत अच्छा लग रहा है। आआहह उसके हाथ जय के सर के पीछे थे, जो जय को बुर की तरफ लगातार धकेल रहे थे।
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Nevil singh

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जय तो कविता की रसीली बुर चूसने में तल्लीन था। जय के मुंह से केवल लप लप लप लप लप .......लुप लुप लुप...... सुनाई दे रहा था।
कविता कामुकता से लबरेज़ अब बकते जा रही थी- जय और चूसो खूब .... आआहह ऐसे ही.....ऊफ़्फ़फ़फ़..... ऊउईईई।जय की उंगलियां उसके बुर की गहराई में उतार रही थी। जय कभी उसके बुर के दाने को चूसता, कभी दांतो से हल्का काट लेता। ऐसा करके वो कविता को चरम सुख की ओर ले जा रहा था। वो बुर को पूरा मुंह मे भरके लपलपाती जीभ से चाट रहा था। तभी कविता ने उसके सर को अपनी जांघों के बीच जकड़ लिया, और दोनों हाथों से उसके सर को बुर पर धकेलने लगी। एक चीख आईईईईईईईईई, के साथ, वो फिर निढाल हो गयी।
कविता ने अपने भाई को अपने बांहों में भर लिया । जय ने बोला- बिना लण्ड लिए ही झड़ गयी।
कविता- उसका टाइम भी आएगा भाई, सब्र करो। हम रात के लिए कुछ तो बचाके रखे।
जय- फिर इसे कैसे मनाऐं ? लण्ड की ओर इशारा करके बोला।
कविता- इसका पूरा रस बचाके रखो। अब से वो हमारा है। रात को इसको हम मनाएंगे। जय के लण्ड और आंड को सहलाते हुए बोली। उसके माथे को चूमी और उसका सर अपनी चुचियों में छुपा लिया।
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