कविता चौंक उठी- आंखों से इशारा करके बोली निकालने के लिए। पर जय कहाँ मानने वाला था। वो मुस्कुराके उसकी पैंटी में हाथ घुसा दिया, और कविता की गाँड़ की दरार में उंगलिया फेरने लगा। कविता धीरे से बोली, जय यहां नहीं प्लीज।
जय ज़ोर से बोला- क्या , यहां नहीं जानू। कविता को ये छेड़ छाड़ पसंद आ रही थी, वो झूठा गुस्सा भरा चेहरा बनाके उसे डराना चाही, पर जय ने उसे चूम लिया। कविता की हंसी छूट गयी। जय बोला हँसी तो फंसी।
तब तक वो पहुंच चुके थे , जय ने ऑटोवाले को पैसे दिए और वो चला गया। तब जय ने अपने हाथों को सूँघा जिससे उसने कविता की गाँड़ को टटोला था, कविता ये सब देख रही थी। वो मुस्कुराई और बोली जल्दी चलो। जय ने सोचा, कविता को ये घिनौना नही लगा, की मैं उसकी गाँड़ को टटोलकर सूंघ रहा हूँ, कोई और होती तो शायद घृणा करती ।
वो कविता के पीछे हो लिया। वहां टिकट की लाइन में भीड़ थी। लेडीज की लाइन में तीन चार ही लोग थे। कविता ने बोला कि टिकेट मैं ले लेती हूँ। और टिकट की लाइन में लग गयी। जय ने देखा कि कविता एक दम मस्त माल लग रही है। ब्राह्मण होने की वजह से रंग तो पूरा गोरा था। कविता की चुचियाँ क्या मस्त तनी हुई थी और गाँड़ का उभार तो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था। उसका भोला सा चेहरा। उसकी गोल बड़ी बड़ी आंखें , हाई चीक बोन्स की वजह से उसका चेहरा और निखर रहा था। उसने अपने बाल क्लचर में बांध रखे थे। कानों में से लटकता झुमका मैटेलिक रंग का था। जिसमे दो गोलाकार बॉल लगे हुए थे, उसे और आकर्षक बना रहे थे। होंठो पर हल्की लाल लिपस्टिक, आंखों में गहरा काजल वो बिल्कुल बॉलीवुड की हीरोइन लग रही थी।
तभी कविता ने जय को टोका- जय ये लो, टिकेट।
जय लगभग सपने से जागते हिये बोला - अरे तुमने हमको क्यों नही बोला? पैसे थे ना।
कविता- जब तक हम हैं तब तक तुमको पैसे खर्च नही करने हैं। जब तुम IAS बन जाओगे तब करना।
जय- तब तुमको हम बीवी बनाके रखेंगे, और इस साल ये होके रहेगा।
कविता- अच्छा है पर, माँ को कैसे मनाओगे?
जय- उन्हें समझाऊंगा की हम दोनों प्यार करते हैं।
कविता- वो बोलेंगी की ये गलत है, तब ?
जय- उनको समझायेंगे,...... क्योंकि...... ये गलत नहीं है?
तभी एंट्री शुरू हो गयी। कविता और जय ने जाकर कार्नर की सीट ले ली। जय ने पूछा कि ये कार्नर की सीट कैसे मिली। कविता ने आंख मारी की मैंने माँग ली थी। जय ने कविता की ओर देखा और बोला , क्या बात है, जानू??
पिक्चर शुरू हो गयी, पर जय का ध्यान कविता के ऊपर था। उसने कविता के बाजू में अपना हाथ रख लिया। कविता खुद खिसक कर जय के करीब आ गयी। थोड़ी देर पिक्चर चलने के बाद फ़िल्म में एक सीन था जिसमे हीरो जॉन अब्राहम दरवाज़ा तोड़के हीरोइन बिपाशा बासु के पास आके उसे किस करने लगता है और फिर सेक्स सीन होता है।
जय ने कविता से पूछा कि दीदी, मुझे तुम से कुछ पूछना है?
कविता ने कहा- हाँ पूछो।
जय - कल की रात तुम जानती थी कि तुम नंगी हो फिर भी तुमने दरवाज़ा क्यों खोला, ये जानते हुए की हम तुम्हारे साथ क्या करेंगे? हाल के अंधेरे में जय ने हिम्मत जुटाकर ये सवाल किया, ये सोचकर कि शायद अंधेरे में कविता उसका चेहरा नहीं देख पाएगी।
कविता- उस वक़्त हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। तुम हमको नंगी देख चुके थे। और शायद हमको वासना की तलब थी। ब्लू फिल्म देखकर हम जोश में भी थे। कोई मर्द ही उस समय हमको शांत कर सकता था, दिमाग ने दिल से कहा। और उस समय तुम ही दिखे।