जय जो ये सब सुनते हुए कविता के चेहरे और गले पर चूम रहा था बोला," हाँ, पता नहीं माँ क्यों बार बार हर साल किसी ना किसी वजह से गांव चली जाती है। तुम तो शायद कभी नहीं जाती। खैर छोड़ो, करोड़पति तो बन गए, अब तुम अपना पति बना लो दीदी।
कविता हँस के बोली," हम तो तुमको पति मान लिए हैं। तन मन और धन से। पर......
जय- पर क्या कविता दीदी?
कविता उसकी आँखों में झांकते हुए बोली- क्या हम दोनों शादी के बंधन में बंध पाएंगे। क्या ऐसा कभी हो पायेगा? अब माँ को डीडी के बारे में पता चलेगा, तो कहीं मेरी शादी ना कर दे? शादी हो जाएगी तो हम तुमसे दूर हो जाएंगे। तुमसे दूर अब हम रह नहीं सकते।
जय उसके होंठो को चूम के बोला- ससससस........ हम तुमको कभी खुद से दूर नही होने देंगे। तुम हमारी हो, तुमको हम कहीं नहीं जाने देंगे। तुम हमारे लिए जन्मी हो। इस घर मे अब तक तुम हमारी दीदी बनके थी, आगे भी रहोगी, बस एक जिम्मेदारी बढ़ेगी की अब दीदी के साथ तुम बीवी की ज़िम्मेदारी भी निभाओगी। तुम्हारी शादी हमसे होगी, नहीं तो नहीं होगी।
और कविता को चूमने लगता है। कविता अपने भाई के बातों से छलकते आत्मविश्वास से प्रभावित हो चुकी थी। उसने भी जय के सर को पकड़ लिया और चूमने लगी। जय कविता के ऊपर लेटा था। कविता ने एक हाथ से जय के लण्ड को पकड़ लिया और सहलाने लगी।
जय ने कविता की आंखों में देखा, वो मदहोश हो चुकी थी। जय ने कविता को खड़े होने को कहा, और खुद उठके बैठ गया। उसने कविता के नाभि को चूमा, और उसमें जीभ घुसाके चाटने लगा। कविता खड़ी खड़ी आहें भर रही थी। वो अपने दोनों हाथ जय के कंधों पर रखी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी, और भौएँ कामुकता से तनी हुई थी। जय ने कविता के बुर में उंगलिया घुसा रखी थी। वो कविता के बुर में तेजी से उंगलियां अंदर बाहर कर रहा था। कविता की आवाज़ें, कमरे में दीवारों को तोड़ना चाहती थी, ऊफ़्फ़फ़, आआहहहहहहहहहह.......।
जय- दीदी, इस समय क्या मस्त लग रही हो, तुम। मन कर रहा है, तुमको हमेशा ऐसे ही देखें, रुको कैमरा लेके आते हैं।
कविता जय को रोकते हुए बोली, " जय, नहीं अभी नहीं,प्लीज बाद में इस वक़्त तो हमको तुम्हारा लौड़ा चाहिए। हम बहुत चुदासी हो गए हैं। उफ़्फ़फ़फ़फ़फ़, कितना अच्छा लग रहा है, लौड़ा डालोगे तो और मज़ा आएगा। हाय........
जय- तुम्हारा यही एक्सप्रेशन तो चाहिए, कविता रानी। बस तुरंत आ जाऊंगा और जितना चाहोगी उतना पेलूँगा तुमको। जय ने उसकी बुर से उंगली निकाली और चाट गया। कविता चुदासी थी, वो अपने अंग अंग को खुद ही सहला रही थी। जय फौरन अपने माँ के कमरे में गया, और अलमीरा से कैमरा ले आया। कविता खड़ी खड़ी अपने बुर को मल रही थी। जय ने उसको बिना बताए कुछ फ़ोटो ली उसी अवस्था में। फिर उसने कविता को सोफे पर छत की ओर देखते हुए लेटने को कहा।
कविता सोफे पर लेट गयी, जय ने उसे सर सोफे के हैंडल पर रखने को बोला, बालों को समेटकर बाहर लटका दिए। फिर, कविता एक हाथ से अपने बुर को फैलाई और दूसरा हाथ की पहली उंगली मुंह मे दबा ली ।
परफेक्ट, जय बोला।
कविता - जय तुम अभी लण्ड दो ना हमको, प्लीज बाद में तुम अलग से फोटोज ले लेना। जैसा तुम कहोगे वैसे करेंगे।
जय- इसमें कोई शक नही है, कविता डार्लिंग पर तुम्हारे चेहरे पर अभी जो चुदने की प्राकृतिक लालसा है, तुम जितनी चुदासी हो रही है, लण्ड लेने के लिए जो तुम्हारे मन की प्यास है, ये बहुमूल्य भाव तुम्हारे चेहरे पर किसी गहने की तरह तुम्हारी अंदर की औरत को निखार रही है।
कहते हुए जय ने 4 5 तस्वीरें क्लिक की। कविता अपनी बुर को रगड़ते हुए भिन्न मुद्राओं में तस्वीर खिंचवा रही थी। जय उसकी नग्नता को तस्वीरों में कैद कर रहा था।
उसने कविता को करवट लेकर लिटाया जिससे उसकी गाँड़ जय के सामने आ गए। कविता ने जय का इशारा पाकर चूतड़ों को फैलाया। उसने कुछ और तस्वीरें ली।
फिर कविता फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी, और दोनों हाथों से अपनी चुच्चियों को पकड़के, जीभ बाहर निकाल ली। जय खुश होकर फोटो लेता रहा। जय ने फिर बोला," दीदी अपने बालों को हाथों से पकड़के ऊपर उठा लो, और कैमरे की तरफ देखो, हाँ .... थोड़ा सर को झुकाओ और हाँ और चुदासी लाओ चेहरा पर, हहम्मम्म सही।
कविता ने वैसे करके पूछा - ठीक है, ये।