घर पहुँचकर जय बोला।
"हम हैं ना। तुम बेफिक्र रहो।" जय बोला " आज तुम आराम करो, खाना बाहर से मंगवा लेते हैं।" कविता को सोफे पर बैठाके बोला। जय और कविता खाना खाके बिस्तर पर लेट गए। कविता उसके बगल में ही चिपकी हुई लेटी थी। जय अपने मोबाइल पर तस्वीरें देख रहा था। उसमें उसकी माँ ममता की तस्वीर भी थी, जिसपर उसकी आंखें टिकी हुई थी। ममता का चेहरा बहुत चुदासी लग रहा था। जय ने उसको देखकर कहा- क्या दिखती है, हमारी माँ, तुम बिल्कुल उसकी परछाई हो, दीदी।
कविता- ये हमारी तारीफ है या माँ की ?
जय- तुम दोनों की।
कविता आँखे खोली, और जय की आंखों में कुछ देर देखकर बोली," जय, हम तुमसे कुछ पूछें, बुरा तो नहीं मानोगे ना ?
जय- बिल्कुल नहीं, पूछो ना।
कविता- इस समय जो हम तुम्हारी आँखों मे देख रहे हैं, वो एक बेटे का प्यार नहीं, बल्कि किसी आशिक़ का अपनी माशूका के लिए होता है। क्या ये सच है, कि तुम माँ को बेटे की तरह नहीं बल्कि औरत के तरह चाहते हो? क्या .....
जय- इसके आगे सवाल मत करना, दीदी। तुम शायद सुन नहीं पाओगी। जय ने कविता के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा।
कविता- हम अब सब सुन सकते हैं, हमको कोई अचम्भा या आश्चर्य नहीं होगा अगर तुम कह दो की तुम माँ को चाहते हो ! क्योंकि तुम कहो ना कहो तुम्हारी आंखे सब बता रही हैं।
जय कविता को खुद से अलग करके उठ गया और खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया, वो दरअसल कविता से कहने में झिझक रहा था, कि कहीं कविता बुरा ना मान जाए। अभी अभी तो उनकी प्रेम कहानी शुरू हुई थी।
कविता उसके पीछे से आकर उसको बांहों में पकड़ लेती हैं, और उसके दिल की बात समझ चुकी थी। उसके पीठ पर सर रखके उसको बोलती है," जानू, हम तुमको हमेशा खुश देखना चाहते हैं, तुम खुश रहोगे तभी हमको अच्छा लगेगा। और अब तो हम तुमको अपने पर अधिकार दे चुके हैं, और तुम पर भी अगर हमारा थोड़ा सा हक़ है, तो प्लीज बता दो। दीदी ना सही बीवी समझ के बता दो।
जय- इतना आसान नहीं है ये कहना, पता नहीं तुम क्या सोचोगी। अभी अभी तुम्हारा और हमारा संबंध बना है। तीन दिन पहले तक तुम सिर्फ हमारी बहन थी, पर अब बीवी बनना चाहती हो। हाँ, तुमको हक़ है कि हमारे बारे में सब जानो, पर कोई भी औरत अपने पति/ प्रेमी के साथ दूसरी औरत बर्दाश्त नहीं करती। हाँ हम ममता को प्यार करते हैं। भले ही हम उसके बेटे हैं पर वो हमको बहुत पसंद है। माँ जब सामने होती है, तो लगता है जैसे उसको देखते रहें। इस उम्र में भी कितनी खूबसूरत है। उसको जब देखते हैं तब मन करता है कि उसको हमेशा के लिए अपना बना लें। उसके अंदर एक अजीब सा आकर्षण है, जो हमको उसकी ओर खींचता है। ममता और तुमको हम एक समान चाहते हैं। तुम दोनों ही हमारी अंदर की दबी वासना को बाहर लाती हो। बाहर की औरतें हम पर कोई खास आकर्षण नही डालती। जब घर में तुम दोनों जैसी कामुक औरतें हो तो कोई बाहर की औरतों को देखे भी क्यों।
हम दरअसल तुम दोनों को अपनाना चाहते हैं, तुम दोनों को अपनी बीवी बनाना चाहते हैं। अब चाहे तुम जो भी सोचो, पर सच ये है कि हम यही चाहते हैं, कि माँ और तुम हमेशा के लिए हमारी बनकर रहो।
जय ये सब कहके मुड़ा नहीं, उसकी हिम्मत हुई नहीं। कविता उसके सामने घूमके आई, उसकी आँखों में जय ने देखा, तो वो बोली," तुम माँ को इतना चाहते हो? ये तो हमको पता ही नही था। हमसे पहले माँ का हक़ है। तुमने तो आज, माँ बेटे, भाई बहन के रिश्ते की परिभाषा ही बदल दी। हम तुमको अपने ऊपर पूरा हक दे चुके हैं, और अब माँ पर भी एक बेटी के तौर पर छूट देते हैं। भले अंजाम जो भी हो, हम तुम्हारा भरपूर साथ देंगे। अगर हम भाई बहन के रिश्ते को नया नाम दे सकते हैं, तो माँ बेटे के बीच भी ये बीज बोया जा सकता है। आज तुमने ये बात बोलकर हमको पत्नी से भी ऊंचा दर्जा दे दिया। हमारा रिश्ता इस सच्चाई की बुनियाद पर और मजबूत होगा।