• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,412
159
कविता बस उसे देखती ही रही और जय भी उसे ही देखता रहा। कविता ने खुद को चादर से ढक लिया और मोबाइल बन्द कर दिया। जय फिर भी उसे देखता रहा और मूठ मारता रहा। कविता की आंखों में शर्म तैर रही थी, पर नज़रें बेबाक हो अपने भाई को देखती रही। कविता को देखते हुए जय ने उसे एक बार इशारा किया कि दरवाज़ा खोलो। और वो खिड़की से अपने रूम में दाखिल हो कर कविता के दरवाजे पर खड़ा हो गया। कविता की हिम्मत नही हुई कि दरवाज़ा खोले पर जय दरवाज़ा पर से हल्के आवाज़ में ही आवाज़ लगाता रहा कि कविता दीदी दरवाज़ा खोलो। ताकि ममता ना उठ जाए। कविता ने कोई जवाब नही दिया, पर जय लगातार वही खड़ा रहा। कविता को काटो तो खून नही, और हो भी क्यों ना उसके सगे भाई ने उसे नंगी खीरा बुर में घुसाकर मूठ मारते हुए देखा था। करीब 15 मिनट तक ऐसा ही चला।
उधर जय को लगा कि अब कविता दरवाज़ा नहीं खोलेगी , वो निराश हो गया। पर तभी अंदर से छिटकनि खुलने की आवाज़ आयी।
जय ने दरवाज़ा को धक्का दिया , तो देखा कविता अपने बिस्तर पर बैठी थी चादर लपेट कर। कविता को कुछ समझ नही आया था इसीलिए उसने कपड़े नहीं पहने थे। जय ने दरवाज़ा बंद कर दिया और अपनी बहन के पास गया। उसने कविता के चेहरे को ठुड्ढी से पकड़कर ऊपर उठाया, कविता अपने नाखून चबा रही थी। उसने जय की ओर देखा जय ने भी उसे देखा। फिर जय ने बगल से मोबाइल उठाया स्क्रीन लॉक खोला और देखा तो फिर से ब्लू फिल्म चालू हो गयी। उसमे दो लड़के बारी बारी से एक लड़की को चोद रहे थे। उसने उसे चालू ही छोड़ दिया और कविता की आंखों में देखा जैसे पूछ रहा हो कि हमारी दीदी ये सब तुम भी करती हो? कविता अभी तक अपने नाखून चबा रही थी और जय को देखते हुए उसके आंखों के पूछे सवाल का मानो जवाब दे रही थी कि आखिर मेरी उम्र की लड़कियां माँ बन गयी हैं तो क्या मैं ये सब भी नही कर सकती।
कविता की आंखों में शर्म जरूर थी पर पश्चाताप नहीं।
कविता की अभी ताज़ी उतारी हुई पैंटी जो कि कविता के पैरों के नीचे फर्श पर पड़ी हुई थी, को जय ने उठाया और सूँघा, उसपर जैसे काम वासना सवार हो गयी। कविता सब देख रही थी पर कुछ बोली नहीं। कविता के बुर के रस से सरोबार थी वो कच्छी। जय ने फिर अपनी बॉक्सर उतार दी, उसने अंदर कुछ नही पहना हुआ था। उसका करीब आठ इंच का तना हुआ लण्ड बाहर आ गया। उसने कविता की कच्छी को अपने लण्ड पर फंसा लिया।
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,412
159
कविता ने कुछ नही कहा बस जय से आंखों का संपर्क तोड़कर उसके लण्ड को देखने लगी। बिल्कुल मस्त फूला हुआ सुपाड़ा था, मोटाई भी कोई 3 इंच की रही होगी। कविता के हाँथ अनायास ही लण्ड की ओर बढ़ गए। वो उसे छूने ही वाली थी कि जय ने उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख लिया। कविता ने उसका लौड़ा पकड़ के महसूस किया और जय की आंखों में देखा। कविता मानो कह रही हो कि उसका लौड़ा बहुत तगड़ा है। हालांकि उसने इतने करीब से किसी का भी तना हुआ लौड़ा नहीं देखा था। वो अपने दाये हाथ के नाखून अभी भी चबा रही थी।
जय ने कविता के चादर को हटाना चाहा तो कविता ने उसे झट से एक थप्पड़ मारा। पर जय ने इसका बुरा नहीं माना।
उसने फिर कोशिश की कविता ने उसका हाथ झटक दिया इस बार । जय ने फिर कोशिश की तो कविता ने फिर से एक थप्पड़ मारा उसे। इसके बाद जय ने कविता के खुले हुए बाल को खींच के पकड़ लिया और कविता के चेहरे को ऊपर उठाया और एक थप्पड़ उसके गाल पर मारा। कविता के गाल लाल हो गए पर उसने कुछ नही किया। अब जय ने कविता के चादर को उसके बदन से अलग किया, इस बार कविता ने कोई विरोध नहीं किया। अब कविता पूरी नंगी हो चुकी थी अपने छोटे भाई के सामने। उसकी आंखें अनायास ही बंद हो गयी।
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,412
159
कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही.....
 

Rajizexy

Punjabi Doc, Raji, ❤️ & let ❤️
Supreme
46,445
48,250
304
Nice start
 
  • Like
Reactions: Ne kabul khan

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,412
159
Gazab kahani hai , congratulations for new thread

Thanks bhai
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,412
159
Awesome. Rasprad aur Romanchak. Waiting for next


बहुत बहुत थैंक्स
 
  • Like
Reactions: Ne kabul khan

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,412
159
खामोशी में भी एक धुन होती है। वो धुन बिना कोई शोर के बहुत कुछ कह जाती है। अब कुछ लोग सोचेंगे कि खामोशी में कौन सी धुन होती है और वो क्या कह जाती है?? इस सवाल का जवाब बस वो दे सकता है जिसने उस खामोशी के पल को जिया है।सवेरे का अस्तित्व सिर्फ रात से है। अगर रात ही ना हो तो सवेरे की अहमियत खत्म हो जाती है। अगर हम विज्ञान को हटा दे तो ये पूछना की सवेरा क्यों होता है या रात ही क्यों नही रहती, ये सवाल बेकार हैं या इसके उलट। ठीक वैसे ही जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जिसे बस जी लेना जरूरी होता है उनका मतलब बस होने से है, उसमे गलत या सही की कोई गुंजाइश नहीं होती।
शायद वही पल अभी कविता और जय के जीवन मे आया था। 21 वर्षीय जय इस वक़्त अपनी 26 वर्षीय दीदी के साथ पूरा नंगा खड़ा था। कविता शायद पहली बार किसी मर्द के सामने नंगी बैठी थी। जय ने कविता के हुश्न को अब तक कपड़ों में ढके हुए देखा था पर इस वक़्त कविता बिल्कुल अपने जन्म के समय के आवरण में थी अर्थात निर्वस्त्र। जय ने कविता को बालों से कसकर पकड़ रखा था। उसने कविता के चेहरे को देखा कविता की आंखे बंद थी। उसकी पलकें घनी थी और आंखों में काजल लगा हुआ था। उसके भौएँ बनी हुई थी, गाल भरे हुए थे एक दम गोरे। होंठ गुलाबी थी जो बिना लिपस्टिक के भी मदमस्त लग रहे थे। उसके होंठ कांप रहे थे। और बड़ी ही धीरे से वो अपने मुंह मे इकट्ठा हुए थूक को निगल रही थी। उसकी सुराहीदार गर्दन की चाल थूक गटकने की वजह से मस्त लग रही थी। उसका भाई जय अपनी बहन के इस रूप को देखकर पागल हो रहा था। वो भी बड़ी आराम से गले से थूक घोंट रहा था ताकि आवाज़ ना हो जाये।
जय ने झुककर कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाये और उसके होंठो से अपने होंठ चिपका दिए। जैसे चिंगारियाँ फूटी दोनों के होंठ मिलने से । जय ने कविता के होंठों को पूरा अपने मुंह में लिया हुआ था। कविता के होंठ हल्के मोटे थे , जिसे जय चूस रहा था। उसके होंठों का सारा रस लगातार पी रहा था। फिर कविता के मुंह में उसने अपने जीभ को घुसा दिया। कविता ने कोई प्रतिरोध नही किया, अपितु उसके जीभ को चूसने लगी। दोनों भाई बहन बिल्कुल किसी प्रेमी युगल की तरह काम मे लिप्त होने लगे थे।
 
Top