ममता ने भी फूल माला जय के गले में डाली और फिर परंपरा के हिसाब से उसने जय के पाँव छुए। जय ने उसको आशिर्वाद दिया," सदा सुहागन रहो। ममता की आंखों से खुशी के आंसू जय के पैरों पर गिरे। जय ने ममता को उठाया और बोला," क्यों रो रही हो? तुम खुश नहीं हो क्या?
ममता के मुंह से अचानक निकला," हम बहुत खुश हैं कि आपने एक विधवा को स्वीकारा।" और मुस्कुराई।
तब तक पंडितजी आये और उन दोनों को प्रसाद दिया। दोनों ने उनके पैर छुए। पंडितजी बोले," बेटा अपनी पत्नी का ध्यान रखना, तुमसे उम्र में बड़ी हैं, इसलिए इनकी इज्जत करना। फिर ममता की ओर मुड़कर बोले," तुमको इस उम्र में विधवा से फिर से सुहागन बनने का मौका मिला है, बेटी। ये मौका सबको नहीं मिलता है। अपने पति का पूरा सम्मान करना, उसकी सेवा करना। ऐसे लोग कम होते हैं जो इस उम्र में औरतों को अपनाते हैं। ये तुम्हारे लिए देवता हैं। इनका पूरा ध्यान रखना।"
ममता- पंडितजी, हम पूरा कोशिश करेंगे कि हम अछि पत्नी बने। चुकी आप बोले हैं कि ये हमारे देवता हैं तो हम इनका चरणामृत पीना चाहते हैं। हमको एक लोटा पानी मिलेगा क्या?
पंडितजी अवाक रह गए और बोले- बिल्कुल सती की तरह हो तुम बेटी, ऐसी नारी तो अब होती नहीं। ठीक है ये लो। पंडितजी ने थाली से लोटा दे दिया।
जय- ये क्या कर रही हो ममता?
पंडितजी- इसकी इच्छा है इसे रोको मत बेटा। तुम भाग्यशाली हो जो तुम्हे ऐसी पत्नी मिली है।
ममता जय के चरणों के करीब बैठ गयी और लोटा से पानी डालकर उसके पैरों को अपने हाथों से धोया। फिर उसके चरणों में मत्था टेका और चुल्लू में चरणामृत लेकर पी गयी और अपनी मांग में भी लगाया। जय ने उसे उठाया और बोला," तुम्हारी जगह यहां है।" और गले से लगा लिया।
कुदरत का अद्भुत खेल था, जो कुछ घंटे पहले इसी मंदिर में माँ के पैर छू रहा था, अब वही माँ उसकी पत्नी बनके उसके पैर छू रही थी।
जय ने फिर उन सबको दान दक्षिणा दिया और दोनों नवविवाहित जोड़े की तरह मंदिर से निकलकर बाहर चले गए। जय ने ममता को कार में बिठाया। फिर दोनों एक दूसरे होटल की ओर चल दिये। टैक्सी होटल के सामने रुकी, ममता और जय उतर गए। जय ने टैक्सी को रवाना किया। फिर दोनों अंदर गए और जय ने रिसेप्शन पर हनीमून स्वीट बुक किया।
जय ने नाम पर मिस्टर एंड मिसेस झा बताया। थोड़े ही देर बाद दोनों उस कमरे में थे।
रूम में पहुंचते ही जय सोफे पर लुढ़क गया। ममता को अपने भाग्य पर भरोसा नहीं हो रहा था। ममता बिस्तर पर बैठी थ, क्योंकि वो कमरे में पहले आ चुकी थी। पर जैसे ही जय आया, ममता खड़ी हो गयी। और उसके बगल में बैठ गयी। ममता- आप थक गए हैं, लाइये हम आपकी थकान दूर कर देते हैं। आप ये पानी लीजिए। ममता ने गिलास बढाके कहा।
जय ने ममता के हाथों से गिलास ले लिया और उसको वहीं टेबल पर रख दिया। फिर ममता को अपने गोद में बिठा लिया। फिर उसके होंठों को चूमकर बोला," हमारी प्यास तो इन रसीले होंठो से बुझेगी, माँ। ममता मुस्कुराई और उसकी आँखों में कामुक नज़रों से देखते हुए बोली," अब तो सब आपका है, जो मन चाहे कीजिये।"
जय," आये हाय हमारी जान तुम्हारे साथ अभी बहुत कुछ करना है। पर तुम ये आप आप क्यों बोल रही हो, हम तुम्हारे बेटे हैं ना। तुम हमको अभी जय ही बोलोगी जब तक हम तुमको ऐसे करने के लिए नहीं कहेंगे।"
ममता- नहीं अब हम आपको ऐसे नहीं बुलाया सकते। अब आप हमारे बेटे नहीं बल्कि पति हैं। हम ऐसा नहीं कर सकते।
जय- ममता इस रिश्ते में बने रहकर तुमको चोदने का मज़ा अलग ही है।" जय धीरे से बुदबुदाते हुए" यही बात कविता से कहा था।"
ममता- क्या कुछ कहा आपने?
जय- वही कह रहा था कि तुम बिस्तर पर चुदते हुए अभी माँ बनके चुदो। फिर वो मौका भी आएगा जब तुम हमारे लिए करवा चौथ भी करोगी यानी तुम दुनिया के सामने हमारी पत्नी बनोगी।"
ममता- ठीक है बेटा, जैसा तुम कहो। पर हम तुम्हारी पत्नी होने का सब धर्म निभाएंगे।
जय- तुम मंदिर में बिल्कुल भावुक हो चुकी थी माँ। हमारे पैर छूवे और उसको धोकर चरणामृत पी। तुम बहुत अच्छी पत्नी बनोगी। हम तुमसे शादी इस पवित्र मंदिर में करना चाहते थे, क्योंकि यहाँ की सुंदर कामुक चुदाई की मुद्रा में अश्लील मूर्तियां देखकर तुम्हारे उपर की पवित्र साफ सुथरी विधवा स्त्री के अंदर से एक कामुक अप्सरा को चुदक्कड़ रंडी की तरह बाहर निकालना चाहते थे। माँ तुम एक मस्त औरत हो और जो कल अपना रूप तुमने दिखाया वैसी तो हमने कभी कल्पना भी नहीं कि थी।" जय ने ममता के कमर पर जोर से चिकोटी काट ली।
ममता चिहुंक उठी," आउच....., फिर बोली," अभी तो शुरुवात है जय हम तुमको अपना ऐसा रूप दिखाएंगे की तुमको विश्वास ही नहीं होगा कि तुम्हारी माँ ऐसी गंदी और घिनौनी हरकते भी कर सकती है। अब तक तुमने हममें एक संस्कारी पवित्र माँ को देखा है, पर अब हमको अपनी पत्नी के रूप में एक मदमस्त कामुक औरत के रूप में देखोगे।"