• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest क्या ये गलत है ? (completed)

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,540
159
गांव में दोपहर हो चली थी। बड़े से घर में, कंचन इस समय अकेले थी। शशिकांत तो कोर्ट गया था, और माया स्कूल में थी। कंचन जो कि अब जवान हो चली थी, उसके अंदर भी चुदाई की भूख और प्यास दोनों जाग रही थी। आखिर वो भी तो उसी खून की पैदाइश थी। खुद को अकेला पाकर उसने पहले कमरे को बंद कर लिया। और अपने बिस्तर के नीचे दबी, अश्लील कहानियों वाली किताब निकाल ली, जो कि उसे उसकी सहेली नीलम ने दी थी। उसमें चुदाई की काफी तस्वीरें भी थी, जिसमे पूरी नंगी लड़कियां बेहद कामुक अंदाज़ में मर्दों से चुदते हुए नज़र आ रही थी। किसी ने अपनी बुर में तो किसीने गाँड़ में लण्ड ले रखा था। किसीके होंठ सुपाड़े से चिपके हुए थे, तो कोई लण्ड चूस रही थी। कही तो एक लड़की बुर और गाँड़ के साथ साथ अपने मुँह में लण्ड को घुसा रखा था। कंचन तस्वीरें देखने के साथ साथ उसमें ऐसी भद्दी कहानी पढ़ रही थी, जिसमें एक लड़की को उसके बाप और भाई चोदते हैं, वो भी एक साथ। कंचन को पता था, की गाँव में अक्सर लड़कियों के साथ, ऐसा होता है कि घर के मर्द ही उनको खूब चोदते हैं। उसकी पहचान की एक दो लड़कियों ने उसे बताया भी था, की कैसे उसके भाई और चाचा ने उनको रखैलों की तरह घर मे रखा है। कुछ तो अपने ननिहाल में मामा से चुदकर आती थी। तो उसे इन चीजों के बारे में पता था। वो मज़े लेकर उन कहानियों को पढ़ रही थी। ऐसे करते हुए कब उसकी सलवार के भीतर उसकी उंगलियां पहुंच गई पता ही नहीं चला। वो अपनी कच्छी के भीतर छुपी कुंवारी बुर को मसल रही थी। कहानी पढ़ते हुए उसने, अपनी सलवार और कमीज़ उतार दी। और सफेद रंग की ब्रा और पैंटी में पेट के बल लेट गयी। उस सफेद ब्रा पैंटी में वो कमाल की आइटम लग रही थी। गांव में रहने के बावजूद उसने काफी डिज़ाइनर और स्टाइलिश कपड़े ले रखे थे। उसकी मेक अप और परफ़्यूम से लेकर सैंडल तक सब कमाल थे। उस पर तो गांव के कई लड़के फिदा थे पर, उसकी ऊंची जात और स्तर के वजह से कोई उसे कुछ कह नही पाता था। नहीं तो अब तक वो किसी ना किसी से चुद चुकी होती। पर बेचारी के नसीब में भगवान ने लण्ड नहीं, फिलहाल उसकी उंगलियां ही दे रखी थी। वो सब कुछ पढ़ते हुए तेज़ी से बुर में उंगलियां अंदर बाहर कर रही थी। थोड़ी ही देर में उसकी किताब हाथ से छूट गयी और, आँख बंद हो गयी। उसने अपने होंठ दांतों में भींच लिए, और चुच्चियों को दूसरे हाथ से कसके दबाने लगी। उसके मुंह से अनायास ही सिसकारियां फूटने लगी। उसके बुर के अंदर का लावा आखिर फूट गया, और एक ज़ोर की ," आआहहहहहहहहहह" के साथ वो झड़ गयी। कंचन की पैंटी पूरी तरह गीली हो चली थी। वो उसी तरह लेट गयी थोड़ी देर के लिए।

उधर दूसरी तरफ जय और ममता नवविवाहित जोड़े की तरह एक दूसरे के साथ प्यार जता रहे थे। ममता 46 साल की होकर भी किसी 18 साल की लड़की के समान जय की बाहों में पूर्ण नग्न अवस्था में समर्पण कर लेटी थी। दोनों खाना खाकर लेटे हुए थे। जय ममता के खुले बालों से खेल रहा था, और ममता उसकी छाती सहला रही थी।
जय- माँ, तुमसे एक बात पूछूँ?
ममता- हां.. पूछो।
जय- इस बुर को तो हम चख लिए, अब अपनी भूरी छेद का जलवा कब दिखाओगी, उसका मज़ा कब दोगी?
ममता- भूरी छेद??? ..........खुलकर बोलो राजाजी।
जय ममता के गाँड़ के छेद पर उंगली दबाते हुए बोला," तुम्हरी गाँड़, कब मरवाओगी?
ममता हंसते हुए, " धत, वो चुदवाने की चीज़ थोड़े ही है। वहां से तो हम हगते हैं।
जय- झूठ बोलती हो तुम, गाँड़ मरवा मरवाक़े ये छेद खुल गयी है और चूतड़ों का साइज भी डबल हो गया है। तुमको देख के अंधा भी कैह देगा कि बहुत गाँड़ मरवाई हो।



ममता ठहाके लगाते हुए हंसने लगी। फिर उसके होंठों को चूमते हुए बोली," तुम सब मर्दलोग आजकल बुर के कम और औरतों की गाँड़ के ज़्यादा शौकीन होते जा रहे हो। कोई बात नहीं हम ये इच्छा पूरी करेंगे।
जय- माँ, औरतों की बुर से भी ज़्यादा मज़ा उनकी गाँड़ मारने में आता है। और सच बात तो ये है कि औरतें भी आजकल बुर और गाँड़ एक समान ही मरवाती हैं।
जय ममता के चूतड़ों को मसलते हुए बोला। जय, " तुम अपनी गाँड़ का स्वाद हमको चखा दो। चलो खड़ी हो जाओ हमारे पैर की तरफ मुड़के, अपनी दोनों टांगे हमारी छाती के अगले बगल डालो, और अपनी भारी भरकम गाँड़ हिलाओ।" ममता ने ठीक वैसा ही किया, वो खड़ी हो गयी जिससे उसकी गाँड़ जय की ओर थी। उसने अपने बाल बांध लिए थे। और जय थप्पड़ चूतड़ पर पड़ते ही अपनी गाँड़ हिलाने लगी। वो पीछे देखते हुए मुस्कुरा भी रही थी। और जय उसकी गाँड़ की थिरकन में एक अजीब सा आनंद पा रहा था। ममता उम्रदराज़ होने के बावजूद काफी अच्छे से चूतड़ में हरकत ला रही थी। कभी वो अपने चूतड़ पर खुद थप्पड़ लगा देती, और उनको फैला के अपनी गाँड़ की छेद जय को दिखाती। फिर झुकती और ज़ोर ज़ोर से गाँड़ हिलाती। जय उसकी गाँड़ पर थूक देता तो वो उसपर खुद का थूक हथेली से रगड़कर चूतड़ को चमका देती। जय का लण्ड फिर सलामी देने लगा.
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,540
159
उसने ममता की जांघ पकड़ ली और उसको अपने मुंह पर ही बैठा लिया। ममता उठना चाहती थी, पर जय ने उसकी गाँड़ की छेद को अपने मुंह के कब्जे में ले लिया। ममता अपने हाथ से अपने खुले बाल समेट ली और अपनी गाँड़ को रगड़ने लगी। वो मुस्कुरा रही थी। ज़िंदगी में पहली बार कोई उसकी गाँड़ चूस रहा था। उसे इसका अनुभव नहीं था। उसने जय को रोकना चाहा पर जय कहां मानने वाला था। उसने ममता की भूरी गाँड़ की छेद में अपनी जीभ घुसा दी और चाटने लगा।
ममता- आहह ! जय छोड़ो जीभ अंदर क्यों घुसा दिया? गंदी जगह है वो, वहां से टट्टी करते हैं हम। ममता उठना चाही तो उठ नहीं पाई, बल्कि जय ने उसकी मोटी जांघों को कसके पकड़ रखा था। इसलिए उठ ही नही पाई।
जय- माँ, तुमको मज़ा आ रहा है ना? हमको तो तुम्हारी गाँड़ चाटने में बहुत मज़ा आ रहा है। तुम ऐसे ही बैठी रहो और हमको चाटने दो अपनी स्वादिष्ट गाँड़ को।
ममता- मज़ा आ रहा है, पर वो तो गंदी जगह है ना। लेकिन अगर तुमको मज़ा आ रहा है, हमारी गाँड़ की छेद से छेड़छाड़ करने में तो हम अपने पिछले छेद को तुमको खूब चटवाएँगे। लो मज़े इस स्वादिष्ट मीठी गाँड़ की।
जय लपलपाती जीभ से ममता की गाँड़ के स्वाद का पूरा मज़ा ले रहा था। फिर उसने कहा," तुमको भी इस गाँड़ का स्वाद चखाएंगे, तुम्हारी गाँड़ मारने के बाद अपने लण्ड पे।"
ममता अब तक गाँड़ चुसवाते हुए मस्त हो चली थी। उसे नहीं मालूम था कि गाँड़ चटवाने और चुसवाने में इतना आनंद आता है। जय ममता की गाँड़ को बेतहासा चूस रहा था। अब ममता गाँड़ को उसके मुंह पर रगड़ रही थी। ऐसा करते हुए जय के मुंह पर कभी ममता की गाँड़ छू जाती तो कभी उसकी गुलाबी बुर। उसकी चुच्चियाँ हिलोरे मार रही थी। और मस्ती में बड़बड़ा रही थी," चाटो जी गाँड़ को, बड़ा अच्छा लग रहा है। उफ़्फ़फ़, हाय, क्या मज़ा है इस भूरी सिंकुड़ी छेद को चटवाने में। चाट ले बेटा, खूब चूस।
गाँड़ और बुर का स्वाद थोड़ी और देर लेने के बाद, जय का लण्ड पत्थर की तरह कड़क हो चला था, जिसे अब ममता की गाँड़ ही अपने अंदर लेकर मोम सी पिघला सकती थी।
जय ने ममता के चूतड़ों पर एक तमाचा मारा, और बोला," उठ, साली रंडी की बच्ची, छिनाल औरत, चल घोड़ी बन जा।
ममता- हां हाँ जरूर। उफ़्फ़फ़ ये एक नया ही एहसास था। क्या मस्त मज़ा मिला हमको आज। आज इस लण्ड को अपनी गाँड़ की गहराइयों का एहसास कराएंगे।
जय- पहले कुत्ती बनकर चूस इसे। अपने थूक से नहला दो इसे माँ। तुम्हारी गाँड़ तो पहले से ही गीली है।


ममता झुककर कुत्ती बन गयी, और अपने बाल संवारते हुए, लण्ड को अपने प्यासे मुंह मे गले तक ले गयी। वो लण्ड चूसने की पुरानी उस्ताद थी। लंड उसे वाकई बहुत कड़क लग रहा था। उसने अपने जुबान का भरपूर उपयोग किया। उसके आंड़ को सहलाते हुए, वो चूसने में पूरी मगन थी। जय ने अपने एक पैर ममता की पीठ पर रखा था, और ममता के बाल सहलाते हुए उसको खूब गालियाँ दे रहा था। मादरचोद, मा की लौड़ी, भोंसड़ीवाली, चुद्दक्कड़ रांड, और भी कई अलंकारों से उसको नवाज़ा। ममता गालियां सुनके और जोश में आ जा रही थी और चूसने की गति बढ़ जाती है। थोड़ी देर बाद जय ने ममता के मुंह से लण्ड निकाल लिया। फिर ममता उसी तरह घोड़ी बनी हुई थी, वो जय की ओर बेसब्री, और कामुक अंदाज़ से उसको पीछे आती देख रही थी।
ममता- बेटा, इस रंडी की गाँड़ मारने के लिए तेल लगा लो। नहीं तो दुखेगा।
जय- तुम्हारी गाँड़ मादरजात, पहले से खुली हुई है हमारा थूक से ही गीला हो जाएगा। और ढेर सारा थूक गाँड़ की छेद पर मुंह से थूक दिया। ममता उसको अपने गाँड़ पर फैलाने लगी, फिर जय ने ममता की गाँड़ की छेद पर लण्ड टिकाया और पहले खूब रगड़ा लण्ड को उसकी भूरी सिंकुड़ी हुई छेद पर। ममता को ये एहसास हुआ और उसे लग गया, की उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा लण्ड उसकी गाँड़ में घुसने वाला है। वो वासना से ओत प्रोत थी। जय ने ममता के बाल को कसके पकड़ा, और लण्ड को दूसरे हाथ से गाँड़ में घुसाने लगा। लण्ड धीरे से गाँड़ की छेद की परिमिति को बढ़ाते हुए गाँड़ में प्रवेश करने लगा। जय धीरे से लण्ड घुसा रहा था। पर ममता की चीख अभी 1/3 सुपाड़ा घुसने समय ही निकलने लगी। जय डर गया और रुक गया, तब ममता पीछे मुरी, और हंसते हुए बोली," अरे, जान मजाक किया था, डालो ना।
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,540
159
जय ने उसके बाल को कसके खींचा, " साली देख अब तुम, कैसे तुम्हारी गाँड़ का गड्ढा बनाते हैं। इतना चोदूंगा की अपनी माँ को याद करोगी। बूझी तुम। रुक साली अभी बताते हैं, ये ले।
पूरा लण्ड एक साथ ममता की कसी हुई गाँड़ में उतर गया। ममता ने हालांकि गाँड़ बहुत मरवाई थी, पर इतना मोटा तगड़ा लौड़ा पहली बार ले रही थी। इसलिए उसकी चीख निकल गयी। वो लगभग रोते हुए बोली कि," जय आराम से तो डालते, कहीं गाँड़ फट जाती तो।
जय- तुमको अब पता चला, कैसा लगता है गाँड़ में लण्ड घुसता है तो। अब तो घुस गया, थोड़ी देर में गाँड़ उसको जगह दे देगी, और तुमको मज़ा आएगा।
ममता- अरे, हमारे सैयां बेटाजी, हम अपना सब तुमको दे चुके हैं और साथ में मज़ा लूटना है ना। आआहह ..... थोड़ा देर बस लण्ड को गाँड़ में स्थिर रखो, फिर खूब चोदना। तुम तो लण्ड ऐसे डाले हो कि, गाँड़ से लण्ड डालके मुंह से निकाल दोगे।
जय- ठीक है माँ, पर तुमने ही हमको उकसाया, एक तो तुम्हारी मस्त थुलथुली चूतड़ों को देखकर और दूसरी तुम्हारी गाँड़ की भूरी छेद।
कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद, ममता ने कहा," हैं अब लगता है, की गाँड़ अभ्यस्त हो गयी है। अब चोदो अपनी माँ की गाँड़ को जितना जी चाहे। अब मज़ा आएगा बेटा सैयांजी।


जय ने ममता की गाँड़ की छेद जिसमें उसका लण्ड ऐसे फंसा था, जैसे गूँथे हुए आंटे में किसीने लकड़ी गाड़ दी हो, पर थूक दिया। गाँड़ की छेद के किनारे गहरे भूरे रंग के थे। जय ने अपनी उंगली से थूक को छेद के चारों ओर पोत दिया। फिर उसने लण्ड को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। लण्ड को उसने बमुश्किल आधा इंच ही अंदर बाहर कर रहा था। धीरे धीरे उसने अपनी रफ्तार बढ़ानी शुरू की। उसे अपने लण्ड पर गाँड़ का कसाव मूंग के हलवे की तरह लग रहा था। लण्ड का एहसास, ममता को भी बहुत आनन्ददायक लग रहा था। गाँड़ के अंदर जो नर्व एन्डिंग्स होती है, इसलिए गाँड़ की चुदाई का मज़ा डबल हो रहा था। जय गाँड़ मारने में मस्त, ममता गाँड़ मरवाने में मस्त थी। धीरे धीरे उनकी मस्ती, अब आक्रामक कामुक जोश में बदलने लगी। जय अब आधे से भी ज़्यादा लण्ड अंदर बाहर कर रहा था। ममता भी अपनी गाँड़ पीछे करके लण्ड लेने में कोई कोतुआहि नहीं बरत रही थी। जय एक हाथ से ममता के बाल खींच रहा था, और दूसरे हाथ से उसके चर्बीदार चूतड़ को मसल रहा था। अब पूरी तेज़ी से गाँड़ मराई चल रही थी। ममता की गाँड़ से कुछ ग्रीज़ की तरह तरल पदार्थ रिसने लगा, और जय के लण्ड पर चिपकने लगा। चुकी वो गाँड़ की छेद पहले भी मरवा चुकी थी तो, गाँड़ से बाहर चूने लगी। जय ये सब देख रहा था, उसने सोचा," क्यों ना अब ममता को उसकी गाँड़ से चूते इस रस को चटवाया जाए।
जय ने ये सोचकर कमर की हरकत रोक दी। फिर दोनों चूतड़ों को फैलाके अपने लण्ड को धीरे धीरे बाहर निकाला। गाँड़ की छेद उसके लण्ड की गोलाई इतनी चौड़ी हो चुकी थी, और लण्ड पर वो पदार्थ ढेर सारा चिपक गया था। गाँड़ के अंदर का हिस्सा गुलाबी रंग का साफ दिख रहा था। लण्ड बाहर निकलने की वजह से गाँड़ के अंदर का हिस्सा ममता की सांस के साथ, ऊपर नीचे हो रहा था। जय ने गाँड़ के अंदर ही थूक दिया। वो ये दृश्य देखकर जैसे मदहोश हो रहा था, तभी ममता ने टोका," क्या हुआ क्यों निकाल लिया लण्ड बाहर बेटा सैयांजी ?
जय ने उसकी ओर मुस्कुरा के देखा और बोला," इधर आओ और चूसो इस लण्ड पर लगे अपने गाँड़ की रस को।
ममता पीछे घूम गयी और लण्ड को जड़ से पकड़ लिया, फिर जय की आंखों में देखते हुए, अपनी जीभ बाहर निकाली और लण्ड के निचले हिस्से को चाटने लगी। फिर, सुपाड़े को चूसी, फिर लण्ड के दांये बांये और फिर लण्ड के ऊपरी हिस्से पर अपनी जुबान फिराने लगी। जय उसके बालों को संवारते हुए उसकी ओर प्यार से देख रहा था। ममता ने उसकी ओर देखा और कहा," हमारी गाँड़ मीठी है, बहुत बेटा सैयांजी। और मुस्कुराई।
जय- क्यों ना होगी, तुम हो ही स्वीट, अब पता चला हम गाँड़ क्यों चाट रहे थे।
ममता के मुंह मे लण्ड था, पर हंसी रुक नही पाई। "अब रोज़ चटवाऊंगी और चाटूंगी, लंड से चुदवाने के बाद। राजाजी, ये एक नई चीज पता चली हमको।"
फिर जय ने लण्ड को छुड़ा लिया और बोला, अभी पहले तुम्हारी गाँड़ की चुदाई अधूरी है। तुम अपने बुर को मसलती रहना, तब तुमको और मज़ा आएगा।
फिर जय ने ममता को पीठ के बल अपने सामने लिटा दिया। उसके बाल बिखरे हुए थे। होंठों पर लण्ड चूसने के बाद चमक थी। आंखों में कामुकता की प्यास। चूचियों तनकर पहाड़ सी लग रही थी। जय ने उसके गाँड़ के नीचे तकिया, लगा दिया। और फिर उसकी गाँड़ में लण्ड घुसा दिया। ममता अपनी बुर मसलने लगी और जय उसकी दोनों चूचियों को अपने पंजों की गिरफ्त में ले लिया। अब फिर से घमासान चुदाई शुरू होने वाली थी।
 

prkin

Well-Known Member
5,395
6,135
189
ok.
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,540
159
जय ने अब ममता की फिर से गाँड़ मारनी शुरू की।ममता की गाँड़ भी ढीली हो चुकी थी। अब लण्ड के आवागमन में कोई दिक्कत नहीं थी। वो गाँड़ मरवाते हुए अपने बुर के दाने को छेड़ रही थी। जय ने उसकी बुर पर थूक दिया तो ममता उसे पूरे बुर पर मलने लगी।
ममता- आआहह, ऐसे ही आआहह उफ़्फ़फ़ चोदो इसस... हमको। लण्ड चाहे बुर में घुसे या गाँड़ में लड़की मस्त हो ही जाती है।
जय- माँ देखो ना तुम्हारी गाँड़ कैसे लण्ड को अपने अंदर समा रही है।जैसे लण्ड का स्वागत कर रही है, की आओ और हमको फैला दो।
ममता- औरत की गाँड़ चुदने के लिए ही बनी है राजा, ये बात समझ लो। तो क्यों ना स्वागत करे वो। उस पर इतना मस्त लौड़ा, आआहह हहहहहह। चोदो अपनी माँ की गाँड़ को और अपने लण्ड की मोहर लगा दो। उफ़्फ़फ़
जय- तुम फिक्र मत करो माँ, तुम्हारी गाँड़ की तबियत से चुदाई होगी, कोई कमी नहीं रहने दूंगा। अपनी बीवी की हर ख्वाइश पूरी करेंगे। टुंगरी गाँड़ ने पहले से ही लण्ड को जकड़ रखा है, जैसे उसे अंदर खींच रही है, उफ़्फ़फ़। आह हहहहह, ओह्ह।
ममता- मूठ गिरने वाला है क्या, बेटा ?
जय- हाँ, पियोगी । आहहहहहह...
ममता - अंदर ही गिरा दो। हमारा भी होने वाला है।
जय- ठीक है, ये लो।
करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद जय ने मूठ अपनी माँ की गाँड़ में निकाल दिया। करीब 5-7 पिचकारी मारते हुए जय चीखता हुआ, ममता के चूचियों पर सर रखकर लेट गया। उधर बुर के मसलने और गाँड़ में मूठ की धाराओं को महसूस करके, ममता भी झड़ गयी। और दोनों उसी तरह लेटे रहे। थोड़ी देर बाद जय का लण्ड धीरे से निकलने लगा, तो ममता ने अपनी गाँड़ में पास परी अपनी पैंटी घुसा ली। और फिर जय को गले से चिपका लिया।
जय जैसे बेहोश था। दोनों चुदाई से थक चुके थे। इसलिए दोनों को नींद ने अपने आगोश में ले लिया।
उधर कंचन को होश आया। उसने अपनी गीली पैंटी उतारी और ब्रा भी। पूर्ण नग्न होने से वो तराशी हुई मूर्ति लग रही थी। अनछुए कोमल यौवनांग किसी मर्द के एहसास के लिए तड़प रहे थे। वो इससे बेखबर थी कि कोई मर्द उसे इस हालात में देख ले तो उसे लड़की से औरत बना देगा। उसकी उम्र शादी के बराबर की हो भी तो चुकी थी। जो वो कहानी पढ़ रही थी, उसे ख्याल आया कि कोई उसका भी ऐसा ही भाई होता, जिसके साथ वो जवानी के मज़े लूटती। वो इस बात से बेखबर थी कि किस्मत ने उसके तार उसके भाई से ही जोड़े हुए हैं, पर उसमें शायद अभी देर थी। क्योंकि अभी तो उसकी माँ ही उसके भाई के साथ अपनी बची खुची जवानी के मज़े ले रही थी।
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,540
159
दूसरी तरफ जय लेटे हुए सोच रहा था, की कैसे ममता को अपने और कविता के रिश्ते के बारे में बताए। फिर उसने सोचा पहले मज़े लिए जाए, फिर सोचेंगे। तब ममता ने अपनी गाँड़ में ठूंसी हुई पैंटी निकाली और गाँड़ के छेद से निकलते जय के मूठ को अपने हाथों में इकट्ठा कर लिया, और बेहिचक पी गयी। जय ये देख बोला," तुमको पीना था, तो पहले क्यों नही बोली? ममता- हां, पर इस तरह पीने से, मूठ का स्वाद बढ़ गया है। हम बोले थे ना कि तुमको विश्वास नहीं होगा,कि हम कितनी घिनौनी हरकते कर सकते हैं, चुदाई में।"


ये बात सुनके जय का लण्ड फिर कड़क होने लगा।
माँ बेटे इस तरह 2 दिन तक उस होटल के कमरे में खूब मज़े किये। ममता और जय दोनों दिन नंगे ही रहे और दोनों सिर्फ खाने और हगने के अलावा कुछ नहीं की। यहां तक कि नहाए भी नहीं, बस चुदाई चुदाई और चुदाई। माम्नोंत और जय के पूरे बदन में लव बाइट्स भरे पड़े थे। दोनों का स्पेशल हनीमून पूरा हो चुका था।
ममता उदास थी, की ये दोनों मधुर दिन इतनी जल्दी खत्म हो गए। और कविता के सामने तो उसको जय को पति नही बल्कि बेटे का रिश्ता निभाना होगा। वो पूरे रास्ते ट्रेन में यही सब सोचकर उदास थी।
जय उधर उमंग में था, की वो कविता से बहुत दिनों बाद मिलेगा। परसों राखी का त्योहार भी था। जय और ममता दिल्ली आते ही उस पवित्र रिश्ते में बंध गए जिसे वो दोनों होटल के कमरे में तार तार कर चुके थे।
 

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,540
159
कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही।
कहानी के बारेे में अपनी राय अवश्य लिखे।
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

urc4me

Well-Known Member
21,814
36,252
258
Wow! Wonderful Waiting for next update
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

Rakesh1999

Well-Known Member
3,092
12,540
159
रात के करीब तीन बज रहे थे। ट्रेन दिल्ली से 1 कि मी दूर खड़ी थी, क्योंकि आगे सिग्नल नहीं मिल रही थी और गाड़ी समय से आधे घंटे पहले पहुंच गई थी। अभी ट्रेन में काफी कम लोग थे। दो सिपाही कंपार्टमेंट से गुजरते हुए निकल गए। ममता और जय दोनों का लोअर बर्थ था। ममता की आंखों से नींद गायब थी। खिड़की से छनकर दूर कहीं से आती रोशनी में जय को देख रही थी। उस कम्पार्टमेंट में इस वक़्त और कोई नहीं था। ममता को ना जाने क्या सूझा वो उठी और जय के करीब जाकर उसको चूम ली। उसके माथे को सहलाई। और वापिस अपने सीट पर जाने को मुड़ी, तभी जय ने उसके हाथ को पकड़ लिया। उसने ममता को खींच कर अपने पास लेटने का इशारा किया। ममता उसके साथ लेट गयी। जय ममता के चेहरे को गौर से देखा, उसे ममता की आंखों में एक दर्द महसूस किया। उसने इशारे से ही सर हिलाया, जैसे पूछ रहा हो," क्या हुआ? ममता ने उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा," जय, अब हमलोग एक दूसरे से दूर कैसे रह पाएंगे। तुम्हारे साथ अब हमको एक बीवी बनके रहना है। अपनी मांग में सिंदूर लगाना है, तुम्हारे नाम का। पर कविता के होते हुए ये कैसे होगा? इधर हम तड़पेंगे और उधर तुम।
जय- हहम्मम ये तो सच बात है। पर तुम फिकर मत करो, कोई ना कोई जुगाड़ लग जायेगा।
ममता- कैसे होगा? एक सुहागन होकर हम विधवा बनके कैसे रहेंगे?
जय- हमको कुछ दिन तो ऐसे गुजारने होंगे ना माँ? कविता दीदी को समझाने में थोड़ा समय तो लगेगा ही।
ममता उसकी हथेली पर अपने होंठ रगड़ते हुए बोली," यही सोचकर तो हमारी जान निकल रही है। तुम कब हमको पूरी तरह अपनाओगे।
जय- तुमको अपना तो चुके ही हैं जान। लेकिन ये दुनिया अभी हमारे प्यार को समझेगी नहीं, इसलिए थोड़ा इंतज़ार करना होगा। हम बहुत जल्दी एक नया घर भी लेंगे। जहां, हमलोग अच्छे से रहेंगे, और वहां सब तुमको हमारी माँ नहीं, बल्कि पत्नी ही समझेंगे।
ममता- कब वो शुभ दिन आएगा, जान।
जय उसके गले को चूमते हुए," बहुत जल्द हमारी रानी। उस वक़्त और मज़ा आएगा।
ममता जय के सर को अपने चुच्चियों पर चिपकाए हुए थी। तभी गाड़ी धीरे से चलने लगी। ममता ने बोला," उठ जाओ जय। अब स्टेशन आ जायेगा।
पर जय ने ममता को और कसके पकड़ लिया। ममता मुस्कुरा उठी।
तभी गाड़ी फिर रुक गयी। दोनों ने खिड़की से बाहर झाँका फिर एक दूसरे को देखा, और एक दूसरे के होंठ चूमने लगे। कुछ देर चुम्बन करने के बाद, जय ने ममता को खड़े होने को कहा। ममता उठ खड़ी हुई, जय ने उसे बाथरूम चलने को कहा। उनका कंपार्टमेंट टॉयलेट के पास ही था। ममता बाथरूम चली गयी, पर दरवाज़ा बंद नहीं किया। जय पीछे से आया और बाथरूम में घुस गया। जय ममता को और अंदर जाने का इशारा किया और कुंडी लगा दी। यहां कुछ ज़्यादा सोचने समझने की बात नहीं थी। ममता ने अपनी साड़ी उठा ली और जय ने उसकी पैंटी घुटनो तक उताड़ दी। जय ने लण्ड निकालकर सीधा ममता की गीली बुर में लण्ड घुसा दिया। दोनों बिना शोर किये आहिस्ते आहिस्ते चुदाई कर रहे थे। ममता बड़ी मुश्किल से अपनी आवाज़ रोके हुए थी। ममता के दोनों हाथ दीवार पर थे, और उसके सामने कोई भद्दी अश्लील सी चित्र बनी थी। दोनों ने बिना शोर किये जाने 10 मिनट में काम किया। और फिर दोनों बारी बारी अपनी जगह वापिस आ गए। जय ने ममता से कहा," चोरी चोरी चुदाई का अपना ही मज़ा है, जान।" ममता को भी ये बड़ा अच्छा लगा।
फिर सुबह हो गयी और दोनों पवित्र मा बेटे के बंधन में वापिस बांध गए। सुबह करीब 5 बजे वो अपने घर पहुँचे। करीब 15 मिनट घंटी बजाई तो कविता ने आंख मलते हुए दरवाजा खोला। सामने अपने भाई और माँ को देखकर वो मुस्कुराई। और ममता के पैर छुए।
 
Top