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गांव में दोपहर हो चली थी। बड़े से घर में, कंचन इस समय अकेले थी। शशिकांत तो कोर्ट गया था, और माया स्कूल में थी। कंचन जो कि अब जवान हो चली थी, उसके अंदर भी चुदाई की भूख और प्यास दोनों जाग रही थी। आखिर वो भी तो उसी खून की पैदाइश थी। खुद को अकेला पाकर उसने पहले कमरे को बंद कर लिया। और अपने बिस्तर के नीचे दबी, अश्लील कहानियों वाली किताब निकाल ली, जो कि उसे उसकी सहेली नीलम ने दी थी। उसमें चुदाई की काफी तस्वीरें भी थी, जिसमे पूरी नंगी लड़कियां बेहद कामुक अंदाज़ में मर्दों से चुदते हुए नज़र आ रही थी। किसी ने अपनी बुर में तो किसीने गाँड़ में लण्ड ले रखा था। किसीके होंठ सुपाड़े से चिपके हुए थे, तो कोई लण्ड चूस रही थी। कही तो एक लड़की बुर और गाँड़ के साथ साथ अपने मुँह में लण्ड को घुसा रखा था। कंचन तस्वीरें देखने के साथ साथ उसमें ऐसी भद्दी कहानी पढ़ रही थी, जिसमें एक लड़की को उसके बाप और भाई चोदते हैं, वो भी एक साथ। कंचन को पता था, की गाँव में अक्सर लड़कियों के साथ, ऐसा होता है कि घर के मर्द ही उनको खूब चोदते हैं। उसकी पहचान की एक दो लड़कियों ने उसे बताया भी था, की कैसे उसके भाई और चाचा ने उनको रखैलों की तरह घर मे रखा है। कुछ तो अपने ननिहाल में मामा से चुदकर आती थी। तो उसे इन चीजों के बारे में पता था। वो मज़े लेकर उन कहानियों को पढ़ रही थी। ऐसे करते हुए कब उसकी सलवार के भीतर उसकी उंगलियां पहुंच गई पता ही नहीं चला। वो अपनी कच्छी के भीतर छुपी कुंवारी बुर को मसल रही थी। कहानी पढ़ते हुए उसने, अपनी सलवार और कमीज़ उतार दी। और सफेद रंग की ब्रा और पैंटी में पेट के बल लेट गयी। उस सफेद ब्रा पैंटी में वो कमाल की आइटम लग रही थी। गांव में रहने के बावजूद उसने काफी डिज़ाइनर और स्टाइलिश कपड़े ले रखे थे। उसकी मेक अप और परफ़्यूम से लेकर सैंडल तक सब कमाल थे। उस पर तो गांव के कई लड़के फिदा थे पर, उसकी ऊंची जात और स्तर के वजह से कोई उसे कुछ कह नही पाता था। नहीं तो अब तक वो किसी ना किसी से चुद चुकी होती। पर बेचारी के नसीब में भगवान ने लण्ड नहीं, फिलहाल उसकी उंगलियां ही दे रखी थी। वो सब कुछ पढ़ते हुए तेज़ी से बुर में उंगलियां अंदर बाहर कर रही थी। थोड़ी ही देर में उसकी किताब हाथ से छूट गयी और, आँख बंद हो गयी। उसने अपने होंठ दांतों में भींच लिए, और चुच्चियों को दूसरे हाथ से कसके दबाने लगी। उसके मुंह से अनायास ही सिसकारियां फूटने लगी। उसके बुर के अंदर का लावा आखिर फूट गया, और एक ज़ोर की ," आआहहहहहहहहहह" के साथ वो झड़ गयी। कंचन की पैंटी पूरी तरह गीली हो चली थी। वो उसी तरह लेट गयी थोड़ी देर के लिए।
उधर दूसरी तरफ जय और ममता नवविवाहित जोड़े की तरह एक दूसरे के साथ प्यार जता रहे थे। ममता 46 साल की होकर भी किसी 18 साल की लड़की के समान जय की बाहों में पूर्ण नग्न अवस्था में समर्पण कर लेटी थी। दोनों खाना खाकर लेटे हुए थे। जय ममता के खुले बालों से खेल रहा था, और ममता उसकी छाती सहला रही थी।
जय- माँ, तुमसे एक बात पूछूँ?
ममता- हां.. पूछो।
जय- इस बुर को तो हम चख लिए, अब अपनी भूरी छेद का जलवा कब दिखाओगी, उसका मज़ा कब दोगी?
ममता- भूरी छेद??? ..........खुलकर बोलो राजाजी।
जय ममता के गाँड़ के छेद पर उंगली दबाते हुए बोला," तुम्हरी गाँड़, कब मरवाओगी?
ममता हंसते हुए, " धत, वो चुदवाने की चीज़ थोड़े ही है। वहां से तो हम हगते हैं।
जय- झूठ बोलती हो तुम, गाँड़ मरवा मरवाक़े ये छेद खुल गयी है और चूतड़ों का साइज भी डबल हो गया है। तुमको देख के अंधा भी कैह देगा कि बहुत गाँड़ मरवाई हो।
ममता ठहाके लगाते हुए हंसने लगी। फिर उसके होंठों को चूमते हुए बोली," तुम सब मर्दलोग आजकल बुर के कम और औरतों की गाँड़ के ज़्यादा शौकीन होते जा रहे हो। कोई बात नहीं हम ये इच्छा पूरी करेंगे।
जय- माँ, औरतों की बुर से भी ज़्यादा मज़ा उनकी गाँड़ मारने में आता है। और सच बात तो ये है कि औरतें भी आजकल बुर और गाँड़ एक समान ही मरवाती हैं।
जय ममता के चूतड़ों को मसलते हुए बोला। जय, " तुम अपनी गाँड़ का स्वाद हमको चखा दो। चलो खड़ी हो जाओ हमारे पैर की तरफ मुड़के, अपनी दोनों टांगे हमारी छाती के अगले बगल डालो, और अपनी भारी भरकम गाँड़ हिलाओ।" ममता ने ठीक वैसा ही किया, वो खड़ी हो गयी जिससे उसकी गाँड़ जय की ओर थी। उसने अपने बाल बांध लिए थे। और जय थप्पड़ चूतड़ पर पड़ते ही अपनी गाँड़ हिलाने लगी। वो पीछे देखते हुए मुस्कुरा भी रही थी। और जय उसकी गाँड़ की थिरकन में एक अजीब सा आनंद पा रहा था। ममता उम्रदराज़ होने के बावजूद काफी अच्छे से चूतड़ में हरकत ला रही थी। कभी वो अपने चूतड़ पर खुद थप्पड़ लगा देती, और उनको फैला के अपनी गाँड़ की छेद जय को दिखाती। फिर झुकती और ज़ोर ज़ोर से गाँड़ हिलाती। जय उसकी गाँड़ पर थूक देता तो वो उसपर खुद का थूक हथेली से रगड़कर चूतड़ को चमका देती। जय का लण्ड फिर सलामी देने लगा.
उधर दूसरी तरफ जय और ममता नवविवाहित जोड़े की तरह एक दूसरे के साथ प्यार जता रहे थे। ममता 46 साल की होकर भी किसी 18 साल की लड़की के समान जय की बाहों में पूर्ण नग्न अवस्था में समर्पण कर लेटी थी। दोनों खाना खाकर लेटे हुए थे। जय ममता के खुले बालों से खेल रहा था, और ममता उसकी छाती सहला रही थी।
जय- माँ, तुमसे एक बात पूछूँ?
ममता- हां.. पूछो।
जय- इस बुर को तो हम चख लिए, अब अपनी भूरी छेद का जलवा कब दिखाओगी, उसका मज़ा कब दोगी?
ममता- भूरी छेद??? ..........खुलकर बोलो राजाजी।
जय ममता के गाँड़ के छेद पर उंगली दबाते हुए बोला," तुम्हरी गाँड़, कब मरवाओगी?
ममता हंसते हुए, " धत, वो चुदवाने की चीज़ थोड़े ही है। वहां से तो हम हगते हैं।
जय- झूठ बोलती हो तुम, गाँड़ मरवा मरवाक़े ये छेद खुल गयी है और चूतड़ों का साइज भी डबल हो गया है। तुमको देख के अंधा भी कैह देगा कि बहुत गाँड़ मरवाई हो।
ममता ठहाके लगाते हुए हंसने लगी। फिर उसके होंठों को चूमते हुए बोली," तुम सब मर्दलोग आजकल बुर के कम और औरतों की गाँड़ के ज़्यादा शौकीन होते जा रहे हो। कोई बात नहीं हम ये इच्छा पूरी करेंगे।
जय- माँ, औरतों की बुर से भी ज़्यादा मज़ा उनकी गाँड़ मारने में आता है। और सच बात तो ये है कि औरतें भी आजकल बुर और गाँड़ एक समान ही मरवाती हैं।
जय ममता के चूतड़ों को मसलते हुए बोला। जय, " तुम अपनी गाँड़ का स्वाद हमको चखा दो। चलो खड़ी हो जाओ हमारे पैर की तरफ मुड़के, अपनी दोनों टांगे हमारी छाती के अगले बगल डालो, और अपनी भारी भरकम गाँड़ हिलाओ।" ममता ने ठीक वैसा ही किया, वो खड़ी हो गयी जिससे उसकी गाँड़ जय की ओर थी। उसने अपने बाल बांध लिए थे। और जय थप्पड़ चूतड़ पर पड़ते ही अपनी गाँड़ हिलाने लगी। वो पीछे देखते हुए मुस्कुरा भी रही थी। और जय उसकी गाँड़ की थिरकन में एक अजीब सा आनंद पा रहा था। ममता उम्रदराज़ होने के बावजूद काफी अच्छे से चूतड़ में हरकत ला रही थी। कभी वो अपने चूतड़ पर खुद थप्पड़ लगा देती, और उनको फैला के अपनी गाँड़ की छेद जय को दिखाती। फिर झुकती और ज़ोर ज़ोर से गाँड़ हिलाती। जय उसकी गाँड़ पर थूक देता तो वो उसपर खुद का थूक हथेली से रगड़कर चूतड़ को चमका देती। जय का लण्ड फिर सलामी देने लगा.