चलिए अब वापस चलते हैं महल को|
अरे ये क्या! पार्टी तो ख़तम हो गयी| सारे मेहमान भी चले गये| नौकर-नौकरानी भी महल के कम्पाउंड मे ही बने अपने कमरों मे चले गये हैं| रात के खाने के बाद महल के अंदर केवल राजासाहब और उनके परिवार एवं खास मेहमानों को ही रहने का हुक्म है|
पर मैं आपको महल के अंदर ले चलती हूँ, सीधे विश्वजीत के कमरे में क्यू की अब सुरुचि से मिलने का वक़्त आ गया है|
सुरुचि-विश्वजीत की दुल्हन, बला की खूबसूरत| गोरा रंग, खड़ी नाक, बड़ी बड़ी काली आँखें, कद 5'5" | मस्त फिगर की मल्लिका| बड़े लेकिन बिल्कुल टाइट स्तनों और गांड की मालकिन| सुरुचि एक बहोत कॉन्फिडेंट लड़की है जो कि अपने मन की बात साफ साफ़ लेकिन शालीनता से कहने मे बिल्कुल नही हिचकति|
सुरुचि सुहाग सेज पे सजी-धजी बैठी अपने पति का इंतेज़ार कर रही है| ये लीजिए वो भी आ गया|
सुरुचि और विश्वजीत शादी के पहले कई बार एक दूसरे से मिले थे सो अजनबी तो नही थे पर अभी इतने करीबी भी नही हुए थे| विश्वा ने 4-5 बार उसके गुलाबी रसीले होठों को चूमा था| या ये कहीऐ की उसका होठो का रसपान किया था| उसके नशीले कसे बदन को अपनी बाहों मे भरा था पर इससे ज़्यादा सुरुचि कुछ करने ही नही देती थी| पर आज तो वो सोच कर आया था कि उसे पूरी तरह से अपनी बना के रहेगा| और क्यों ना हो?
विश्वा पलंग पे सुरुचि के पास आकर बैठ गया|
"शादी मुबारक हो, दुल्हन", कह के उसने अपनी सुरुचि का गाल चूम लिया|
"मुबारकबाद देने का ये कौन सा तरीका है?",सुरुचि बनावटी नाराज़गी से बोली|
"अरे, मेरी जान| ये तो शुरूआत है, पूरी मुबारबादी देने मे तो हम रात निकाल देंगे"| कह के उसने सुरुचि को बाहों मे भर लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा| गालों पे, माथे पे, उसकी लंबी सुरहिदार गर्दन पे, उसके होठों को चूमते हुए वो उन पर अपनी जीभ फिराने लगा और उसे उसके मुँह मे डालने की कोशिश करने लगा|
सुरुचि इतनी जल्दी इतने तेज़ हमले से चौंक और घबरा गई और अपने को उससे अलग करने की कोशिश करने लगी|
"क्या हुआ जान? अब कैसी शरम! चलो अब और मत तड़पाओ", विश्वा उसके होठों को आज़ाद लेकिन बाहो की गिरफ्त और मज़बूत करते हुए बोला|
"इतनी जल्दी क्या है? मै कही भाग जाने वाली नहीं हु"|
"मैं अब और इंतेज़ार नही कर सकता, सुरुचि प्लीज़!" कहके वो फिर अपनी पत्नी को चूमने लगा| पर इस बार जंगली की तरह नही बल्कि आराम से थोड़ा धीरे धीरे|
थोड़ी ही देर मे सुरुचि ने अपने होठ खोल दिए और विश्वा ने अपनी जीभ उसके मुँह मे दाखिल करा दी और उसे बिस्तर पे लिटा दिया| वो सुरुचि का रसपान करने लगा| उसकी बाहें अभी भी सुरुचि को कसे हुए थी और उसकी जीभ सुरुचि की जीभ के साथ खेल रही थी| उसका सीना सुरुचि के स्तनों को दबा रहा था और दाईं टाँग उसकी टाँगों के उपर थी| हलाकि जैसे हर स्त्री अपने रस को अपने पार्टनर से रसपान कराने में खुश होती है वैसे ही सुरुचि भी चाहती थी की उसका रस का पान हो|
थोड़ी देर ऐसे ही चूमने के बाद वो अपने हाथ आगे ले आया और ब्लाउस के उपर से ही अपनी बीवी की बोबले दबाने लगा, फिर उसने अपने होठ उसके क्लीवेज पर रख दिए, सुरुचि की साँसें भारी हो गयी, धीरे धीरे वो भी गरम हो रही थी| और वो अपनी इस रात को यादगार रात बनाना चाहती थी जो हर औरत चाहती है|
पर विश्वजीत बहुत बेसबरा था और उसने जल्दी से सुरुचि का ब्लाउस खोल दिया और फिर रेड ब्रा मे क़ैद उसकी रसीले बोबले पर टूट पड़ा| सुरुचि की नही नहीं का उसके उपर कोई असर नही था|
सुरुचि के लिए ये सब बहोत जल्दी था| वो एक कॉनवेंट मे पढ़ी लड़की थी| सेक्स के बारे मे सब जानती थी पर कुछ शर्म और कुछ अपने खानदान की मर्यादा का ख़याल करते हुए उसने अभी तक किसी से चुदवाया नही था| विदेश मे कॉलेज मे कभी-कभार किसी लड़के के साथ किसिंग की थी और अपने स्तनों को दब्वाया था बस| विश्वा को भी उसने शादी से पहेले किसिंग से आगे नही बढ़ने दिया था| और वो जानती थी की सुहागरात में कोई जल्दी नहीं होती सब कुछ प्रेम से एक-दूसरे में खो जाना होता है| अपने सपनो को प्रेम की डोरी से एक होने की मंशा होती है और वो दोनों साइड से होती है| जैसे सब दुल्हन अपने आप को मन से सोचती है की पतिदेव ऐसा करेगा वैसा करेगा, प्रेम से एक एक करके कपडे उतारेगा उसके यौवन की प्रशंशा करते हुए खुद भी नंगा होगा और मुझे भी करेगा और फिर हम एक हो जायेंगे| लेकिन ये बात तो है की कोई भी स्त्री अपनी सुहागरात में बेसब्री और हमला जैसा नहीं सोचती|
सो उसके हमले से वो थोड़ा अनसेटल्ड हो गयी| इसी का फायदा उठा कर विश्वजीत ने उसके साडी और पेटीकोट को भी उसके खूबसूरत बदन से अलग कर दिया| अब वो केवल रेड ब्रा और पेंटी मे थी| टांगे कस कर भीची हुई, हाथों से अपने सीने को ढकति हुई| शर्म से उसका चेहरा ओर भी ज्यादा गुलाबी हो गया था और आँखें बंद थी| सुरुचि सचमुच भगवान इन्द्र के दरबार की अप्सरा मेनका जैसी ही लग रही थी|
विश्वा ने एक नज़र भर कर उसे देखा और अपने कपड़े निकाल कर पूरा नंगा हो गया| उसका 4 एक/2 इंच का लंड प्रिकम से गीला था| उसने उसी जल्दबाज़ी से सुरुचि के ब्रा को नोच फेका और उसका मुँह उसकी स्तनों से चिपक गया| वो उसके हल्के गुलाबी रंग के निपल्स को कभी चूसता तो कभी अपनी उंगलियों से मसलता| सुरुचि उसकी इन हरकतों से और ज्यादा गरम हो रही थी| फिर विश्वा उसकी चूचियो को छोड़ उसके पेट को चूमता हुआ उसकी गहरी नाभि तक पहुचा|
जब उसने जीभ उसकी नाभि मे फिराई तो वो सीत्कार कर उठी,"आ..आ...अहह.."|
फिर वो और नीचे पहुचा, पेंटी के उपर से उसकी चूत पर एक किस ठोकी तो सुरुचि शर्म मारे कराह उठती हुई उसका सर पकड़ कर अपने से अलग करने लगी पर वो कहा मानने वाला था| उसने उसे फिर लिटाया और एक झटके के साथ उसकी पेंटी खीच कर फेक दी| सुरुचि की चूत पे झांट हार्ट शेप मे कटी हुई थी| हालाकि वो शेप उसकी चूत के ऊपर के हिस्से मे बनवाई थी, ये उसकी सहेलियों के कहने पर उसने किया था|
"वाह! मेरी जान", विश्वा के मुँह से निकला, "वेरी ब्यूटिफुल पर प्लीज़ तुम इन बालों को साफ़ कर लेना| मुझे साफ़ और बिना बालों की चूत पसंद है|"
ये बात सुनकर सुरुचि की शर्म और बढ़ गयी| एक तो वो पहली बार किसी के सामने ऐसे नंगी हुई थी उपर से ऐसी बाते! खेर ऐसा भी नहीं था की वो इस शब्दों को जानती नहीं थी या बोलती नहीं थी| लेकिन पति के मुह से और ज्यादा तो शर्म|
विश्वा ने एक उंगली उसकी चूत मे डाल दी और दूसरे हाथ से उसके बूब्स मसलने लगा| सुरुचि पागल हो गयी| तभी वो उंगली हटा कर उसकी टांगो के बीच आया और उसकी चूत मे जीभ फिराने लगा| अब तो सुरुचि बिल्कुल ही बेक़ाबू हो गयी| उसे अब बहुत मज़ा आ रहा था| वो चाहती थी की विश्वजीत ऐसे ही देर तक उसकी चूत चाटता रहे, पर उसी वक़्त विश्वा ने अपना मुह उसकी चूत से हटा लिया|
सुरुचि ने आँखें खोली तो देखा कि वो अपना लंड उसकी चूत पर रख रहा था|
वो मना करने के लिए नही बोलते हुए उसके पेट पर हाथ रखने लगी पर बेसब्र विश्वा ने एक झटके मे उसकी कुँवारी नाज़ुक चूत मे अपना आधा लंड घुसेड दिया| यूँ तो सुरुचि की चूत गीली थी पर फिर भी पहली चुदाई के दर्द से उसकी चीख निकल गयी, "उउउइईईईई ....माअ .... अनन्न्न्न्न ... न्न्न्न...ना....शियीयियी"| और अब वो कुवारी लड़की नहीं रही थी बल्कि एक महिला बन गई थी क्यों की विश्वा के लंड ने उसकी चूत की झिल्ली तोड़ दी थी| चूत से थोडा खून भी बाहर आया और उसके लंड को खून से भर दिया|
विश्वा उसके दर्द से बेपरवाह धक्के मारता रहा और थोड़ी देर मे उसके अंदर झड़ गया| फिर वो उसके सीने पे गिर कर हाँफने लगा|
सुरुचि ने ऐसी सुहागरात की कल्पना नही की थी, उसने सोचा था कि विश्वा पहले उससे प्यारी-प्यारी बातें करेगा| फिर जब वो थोड़ा कम्फर्टेबल हो जाए तब बड़े प्यार से उसके साथ चुदाई करेगा| पर विश्वा को तो पता नही किस बात की जल्दी थी|
"अरे... तुम्हारी खूबसूरती का रस पीने के चक्कर मे तो मैं ये भूल ही गया!", विश्वा अपने ज़मीन पर पड़े कुर्ते को उठा कर उसकी जेब से कुछ निकालते हुए बोला तो सुरुचि ने एक चादर खीचकर अपने नंगेपन को ढकते हुए उसकी तरफ देखा|
"ये लो अपना वेडिंग गिफ्ट|", कहते हुए उसने एक छोटा सा बॉक्स सुरुचि की तरफ बढ़ा दिया|
सुरुचि ने उसे खोला तो अंदर एक बहुत खूबसूरत और कीमती डाइमंड ब्रेस्लेट था| ऐसा लगता था जैसे किसी ने सुरुचि से ही पसंद करवा के खरीदा हो| वो बहुत खुश हो गयी और अपना दर्द भूल गयी| उसे लगा कि अभी बेसब्री मे विश्वजीत ने ऐसा प्यार किया|
"वाउ! इट'स सो ब्यूटिफुल| आपको मेरी पसंद की कैसे पता चली?", उसने ब्रेस्लेट अपने हाथ मे डालते हुए पूछा|
"अरे भाई, मुझे तो तुमहरे गिफ्ट का ख़याल भी नही था", विश्वा ने उसकी बगल मे लेटते हुए जवाब दिया| "वो तो मेरे कज़िन्स शादी के एक दिन पहले मुझ से पूछने लगे कि मैने उनकी भाभी के लिए क्या गिफ्ट लिया तो मैने कह दिया कि कुछ नही| यार, मुझे लगा कि अब गिफ्ट क्या देना| पर पिताजी ने मेरी बात सुन ली| वो उसी वक़्त शहर गये ओर ये ला कर मुझे दिया| कहा कि बहू को अपनी तरफ से गिफ्ट करना", इतना कह कर वो सोने लगा|
जारी है बने रहिये ............आपके कोमेंट की प्रतीक्षा है ............