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Adultery गांड बचा के आये हैं......INCEST + ADULTARY

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सभी दोस्तों का बहुत बहुत धन्यवाद....आपके सपोर्ट से बहुत हौसला बढ़ रहा है....आज की अपडेट काफी लेट हो गयी.....लेकिन ये अब तक की सबसे बड़ी अपडेट है....उम्मीद है आप सब को पसंद आएगी....
 

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पूजा का नाम आते ही मैंने देखा की वहां सभी ने एक सिसकी सी ली....पापा भी कुछ देर के लिए खामोश हो गए जैसे कुछ याद कर रहे हों.....इस मौके में मैंने वहां मौजूद सभी लोगों की और देखा....थे तो सब नंगे ही...लेकिन आज उनके ऊपर वो सेक्स वाला भूत नहीं था...इससे पहले भी वो लोग ये सब कहानियां कई बार सुन चुके थे और जी भी चुके थे लेकिन आज भी ऐसा लगता था जैसे पहली बार सुन रहे हों....आज भी सभी की चूत खुली हुई थी...चूचियां बाहर थी लेकिन आज कोई ऊँगली नहीं कर रहा था...सीमा का हाथ भी मेरे लंड के ऊपर बस था....कुछ कर नहीं रही थी वो..न लंड को सहला रही थी न दबा रही थी बस उसका हाथ था वहां....और भी सब बस अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए थे...कुछ देर की शांति के बाद पापा ने फिर से बोलना शुरू किया....

पापा – उस रात जब मैं अपनी दूकान में वापस आया तो सोचता रहा की चंदू सच कह रहा था...दोनों माँ बेटी अगर एक साथ खोल के देने के लिए कड़ी हो जाएँ तो आदमी तो यही सोच सोच के मर जाए की पहले किसको पेलूँ.....हालांकि पूजा को मैंने बस कुछ पलों के लिए ही देखा था लेकिन उसके एक गजब का आकर्षण था...और वो सीन देखने के बाद उसका उस तरह से मुस्काना तो जैसे कहर कर गया था मेरे ऊपर...मुझे लगा की मैं तो एक को लेने की सोच रहा था यहाँ तो दो दो इतने सुन्दर फूल हैं...साला चंदू सही कह रहा था की फूल जैसी हैं दोनों माँ बेटी....तब तक मेरे मन में मेडम के लिए या तो दया थी या वासना थी...बाकी और कोई भाव नहीं था...जब उनकी दशा के बारे में सोचता था तो बहुत दया आती थी और जब ये सोचता था की ये औरत रोज चुदाई की फिल्म देखती है तो लंड तनतना जाता था....मुझे लगा की मुझे चंदू से और गहरी दोस्ती करनी चाहिए...वो इन लोगों के बारे में बहुत कुछ जानता है...मैंने इसी तरफ पहल की...और अगले दिन मुझे चंदू मिल भी गया...वो दूकान के सामने से ही जा रहा था..मैंने आवाज दी तो इशारे में बोला की देर हो रही है...मैंने फिर भी जिद की और उसे दूकान में बुला लिया...दोपहर का समय था..इस समय ग्राहक कम आते थे तो बात करने की भी फुर्सत थी....आज मैं फिर से चंदू से बातें उगलवाने की सोच रहा था...

मैं – कहा भागे जा रहे हो काका...

चंदू = अरे भैया....तुम हमको काका वाका न कहो....

मैं – क्यों काका...

चंदू – अरे भैया तुम मादरचोद हो...

(उसका बात करने का लहजा सीधी लाइन के जैसा था....न उतार न चढाव....जिस आवाज में किसी की तारीफ करता उसी तरह से उसे गाली भी दे देता....इसलिए उसके मुंह से गाली सुन के गुस्सा कम और हंसी ज्यादा आती थी)

मैं – अरे क्या कह रहे हो काका..मैंने क्या किया...

चंदू – अरे भैया...उस दिन तुम हमको अद्धा पिला दिए हम न जाने क्या क्या बक गए...

मैं – अद्धा नहीं था काका..पौवा भर था...तुम तो उतने में ही निकल पड़े थे..

चंदू – बाप रे...सच में..हमको तो तुम ठग लिए बे मादरचोद...साला इतना सब हमसे सुन लिए और पूरी पिलाए भी नहीं. हम नहीं बैठेंगे भैया तुम्हारे पास...

मैं – अरे काका...अपना बाकी का पौवा तो पीते जाओ...
 

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चंदू – हाँ लाओ लाओ दो..रखे हो का दूकान में? अरे गजब मादरचोद हो भाई..दूकान में पौवा रखे हो...

मैं – अरे दूकान में नहीं है. उतावले न हो जाओ. रात में आना तब पिला देंगे.

चंदू – रात में हम अपनी औरत को छोड़कर तुम्हारे पास काहे आयेंगे भईया....हमारी नली सीधी है हम उल्टा पानी नहीं फेंकते हैं...हमसे लपड़ घपड न करना बहुत मारेंगे...

मैं – अरे काका मेरी नली भी सीधा पानी फेंकती हैं..तुम्हारी नली और तुम्हारी गांड दोनों सुरक्षित हैं..हम तो पौवा पिलाने के लिए बुला रहे थे लौड़ा पिलाने के लिए नहीं...

चंदू – देखा हम कहे थे न तुम मादरचोद हो...हमसे उम्र में कितने छोटे हो और अपनी भासा देख लो....कैसी बातें कर रहे हो...

मैं – अरे काका मुझे तो लगा की हम दोस्त हैं..इसलिए बोल गया...तुम भी तो मुझे तब से मादरचोद कह रहे हो मैंने तो बुरा नहीं माना...

चंदू – हाँ मैं भी सोच रहा था की बुरा काहे नहीं मान रहे..कहीं सच में तो नहीं हो न...

मैं – क्या?

चंदू – मादरचोद...और का...

मैं – नहीं काका...ऐसा कुछ नहीं है...वो तो दोस्त लोग आपस में एक दुसरे को ऐसा कहते रहते हैं इसलिए मैं बुरा नहीं माना...ठीक है अब तुम जाओ...लेकिन रात में जरुर आना...तुम्हारे साथ बात करने में मजा आता है...

उस रात जब चंदू आया तो मेरे मन में पहले से ही बहुत सारे सवाल थे..मैं उससे बहुत कुछ जान लेना चाहता था लेकिन इस तरह से की उसे कोई शक भी ना हो...दूकान कर शतर बंद कर के हम अन्दर बैठ गए..उसे मैंने उसका पौवा दे दिया..मैं तो पीता नहीं था...चंदू भी समझ रहा था की मेरे मन में कुछ तो है...शायद वो भी मेरी थाह लेना चाह रहा था की क्यों मैं उसका इतना ख्याल रख रहा हूँ...

मैं – आओ काका...देखो तुम्हारे लिए पौवा तैयार रखा है...

चंदू – हाँ भैया वो तो दिख रहा है....वैसे तुम बताओ हमारी क्यों इतनी खातिरदारी कर रहे हो..

मैं – क्या करें काका...शहर में अकेले हैं...कोई मिलता ही नहीं बात करने को..

चंदू – इतना भी चुटिया नहीं हूँ भैया...सही सही बताओ..

मैं – कुछ नहीं काका...बस ऐसे ही ...वो उस दिन तुमने मेडम जी लोगों के बारे में बताया था न...वही सोच रहा था...सच बड़ा दुःख सहा उस बेचारी ने..दिल भर आया मेरा..

चंदू – तो मैं क्या करूँ भैया..मुझे काहे बुला लिए...वहां मेरी औरत घर पे अकेली होगी...

मैं – हाँ तो काकी को कौन सा बाघ खाए ले रहा है...चले जाना थोड़ी देर में...

( मुझे लगा की ये चंदू तो कुछ ज्यादा ही भाव खा रहा है..मैं उतावला हो रहा था..मुझे लगा बिना पिए ये कुछ नहीं बोलेगा...मैंने कुछ बात नहीं की तो वो बोतल खोल के अपनी दारू पीने लगा...और फिर दारू ने बोलना शुरू किया...)

चंदू – भैया किसी दिन विदेशी भी पिला देना..ये देसी पी के मेरा पेट ख़राब हो जाता है...

मैं – अरे मेरे पास कहाँ इतने पैसे हैं काका..

चंदू – क्यों दूकान में तो कितना पैसा आता होगा..

मैं – वो पैसा तो सब हिसाब का देना पड़ता है काका...मालिक भले न आये पर मैं पैसा पार नहीं करता...

चंदू – ठीक है भैया...सब कोई थोड़ी न महंगी दारू की दोस्ती करते हैं...हमारे नसीब में यही देसी लिखी है...

मैं – वैसे कल मेडम जी ने कुछ बख्शीश दी थी...अगली बार तुम्हारे लिए महंगी वाली ले आऊंगा..

चंदू – तुम्हें क्यों बख्शीश दी भैया...तुमने क्या काम कर दिया उनका..

मैं – कुछ नहीं काका...वो उन्हें केसेट देने जाता हूँ न दूकान बंद कर के...तो कह रही थी रख लो तुम्हारा आने जाने में दूकान का नुक्सान होता होगा...

चंदू – हाँ भैया..मेडम जी दिल की बड़ी साफ़ हैं...
 

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(मुझे लगा आज अगर ये फिर से फूल सी मेडम वाला गाना शुरू करेगा तो भगा दूंगा साले को....लेकिन उस दिन उसका अलग राग था...)

मैं – हाँ काका ठीक कह रहे हो...मुझे भी बहुत भली लगती हैं..पता नहीं कौन सा पाप किया जो ये हाल हो गया उनका...

चंदू – अरे उनका क्या पाप...वो तो दिल की बड़ी साफ़ हैं...उनका मरद हराम का जना निकला...फंसा गया उनको...

मैं – काका मेडम की बेटी नहीं दिखी कभी...

(बेटी का जिक्र आते ही चंदू की आँखें लाल होने लगी..पता नहीं दारू का असर था या मेडम की बेटी का..)

चंदू – अरे भैया..बहुत नेक लड़की है..इस उम्र में अपनी माँ की पूरी सेवा करती है...वो तो अब बिस्तर पर हैं..उनका सब काम करती है उनकी बेटी...लेकिन कहीं बाहर आती जाती नहीं..

मैं – क्यों काका..

चंदू – नेता ने मना कर के रखा है..वो तो नेता की बेटी और पूजा बिटिया एक ही क्लास में हैं बहुत अच्छी सहेली हैं इसलिए सिर्फ नेता की बेटी के साथ बाहर जाती हैं...और बाकी कहीं नहीं जाती...घर में ही रहती है..

मैं – फिर तो बोर हो जाती होगी...

चंदू – अरे काहे का भैया...कमरे में टीवी में लगा है..वीसीआर लगा है..वो भी फिल्म देखती रहती है..

मैं – कौन सी फिल्म देखती है काका..

चंदू – मुझे क्या पता भैया..देखती होगी कुछ...वैसे मेडम जितनी दिल की साफ़ हैं न वैसे ही पूजा भी दिल की बड़ी साफ़ है....हमें बड़े प्यार से काका कहती थी..अब तो गुमसुम रहती है..

मुझे लगा की आज बेकार में ही इसे बुला लिया मैंने...साला पूरा मूड ख़राब किये दे रहा था...उसे किसी तरह से रवाना किया मैंने और फिर से सोचने लगा उन दोनों माँ बेटी के बारे में...मुझे लगा की दोनों पर एक साथ हाथ साफ़ किया जाये...दोनों में कोई एक तो मान ही जाएगी,...फिर आगे जो होगा सो देखा जायेगा...मैंने उस रात दो तीन केसेट ऐसी फिल्मो की अलग रख ली जिसमे ज्यादा कुछ नहीं दिखाते थे बस थोडा चूमा चाटी होती रहती थी पूरी फिल्म में...मुझे अंग्रेजी तो समझ में आती नहीं थी...मैं एक दो दिन रुका और फिर से मेडम के घर चला गया...इस बार भी रात में गया था...मेडम अपने कमरे में लेटी थी और टीवी चल रही थी...मुझे आता देख के मेडम टीवी को पॉज कर दिया था....लेकिन टीवी बंद नहीं की थी..मैं कमरे में गया...उनको जो केसेट दी थी उसमे से एक चल रही थी...उसे रहने दिया और बाकी की ले के और नयी रख के कुछ पल वहीँ खड़ा रहा...सोचा की शायद मेडम कुछ कहें...लेकिन वो खामोश रही...मेरी तरफ देखा भी नहीं..मैंने जल्दी से एक नजर टीवी पर डाली तो समझ गया की ये कौन सी वाली फिल्म है.....

मैं चुपचाप वापस निकल के चल दिया...कमरे के बाहर आया तो हलकी आवाज सुनाई दी....मुझे पुकारा था मेडम ने...मन खिल उठा...तुरंत वापस पलटा और उनके कमरे में गया...

मेडम- तुमसे कहा था न की रात में नहीं आया करो.

मैं – जी वो दिन में दूकान बंद कर के आता हूँ तो ग्राहक चले जाते हैं

मेडम –इतनी तकलीफ होती है तो मत आया करो. मैंने थोड़ी न कहा की तुम बार बार आओ...मुझे इतनी लत नहीं है फिल्म देखने की. अब तुम्हें आने की जरुरत नहीं है.

मैं = जी मैं आपको नाराज नहीं करना चाहता था.आईंदा मैं दिन में ही आया करूँगा...

मेडम- मैं कह रही हूँ आने की जरुरत नहीं है. न दिन में न रात में. ये केसेट भी लेते जाओ और नहीं चाहिए है मुझे.

मैं – मुझसे कोई गलती हो गयी क्या?

मेडम= नहीं. वो बात नहीं है. मैं बस अब और फिल्म नहीं देखना चाहती. बोर हो गयी हूँ. और मुझे किसी अजनबी का मेरे घर रात में आना पसंद नहीं है.

मैं – मैं अजनबी नहीं हूँ. आपको बताया तो था की मेरा नाम राजेश है.

मेडम= देखो राजेश..मुझे ज्यादा होशियारी करने वाले लोग पसंद नहीं हैं. तुम जानते हो की मैं क्यों तुम्हें आने से मना कर रही हूँ. बेकार में नाटक मत करो.

मैं – नहीं मेडम जी...मैं नहीं जनता हूँ..मैं तो यही समझ रहा हूँ की मुझसे कोई गलती हो गयी है और आप नाराज हैं..

मेडम = तुम्हें लगता है मैं बहुत भोली हूँ और तुम बहुत चालू हो...मैं कमजोर हूँ...बिस्तर पर हूँ इसलिए कुछ कर नहीं सकती...तुम मुझे जानबूझ के ऐसी फ़िल्में दिखाते हो...खुद भी देखते होगे...मेरे बारे में सोचते होगे की ये कोई ऐसी वैसी औरत है...इसे ऐसी चीजें पसंद हैं इसलिए तुम रात में मेरा फायदा उठाने की नीयत से आते हो...
 

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मैं – नहीं. मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा. मैंने आपके बारे में कभी गलत नहीं सोचा. आप मुझे गलत समझ रही हैं. आप नहीं चाहती तो मैं नहीं आऊंगा आपको फिल्म देने. ये भी लिए जाता हूँ...

मैं वहां से सब केसेट वापस ले के चलाया आया..मुझे भी बुरा लगा था मेडम की वो सब बात सुन के...लेकिन करता क्या...पता नहीं कैसे उन्हें कैसे मेरे बारे में ये शक हो गया...कुछ दिन के लिए मूड एकदम ऑफ रहा..क्या क्या सोच लिया था मैंने और अचानक से क्या हो गया...मैं तो दो दो को लेने वाला था यहाँ तो एक ने ही घास नहीं डाली और भगा दिया...ऐसे ही करीब दस दिन बीत गए.....मुझे तो अब कोई उम्मीद नहीं थी मेडम से...फिर एक दिन चंदू दूकान पे आया...कहा की मेडम जी याद कर रही थी...मैंने कहाँ की अभी नहीं आ सकता..अभी बहुत भीड़ है दूकान में...ग्राहकों के आने का टाइम है..कह देना किसी दिन फुर्सत रही तो आ जाऊंगा.....चंदू भी कुछ बोला नहीं और चला गया...उस दिन रात में चंदू फिर से दूकान आया और कह गया की मेडम जी ने याद किया है..कहा है की बहुत जरुरी है जाना. मैं तो घर जा रहा हूँ तुम चले जरुर जाना नहीं तो मुझे कल दांत पड़ेगी.....मेरा मन तो नहीं था लेकिन फिर भी मैं चला गया...खली हाथ गया था..केसेट नहीं ले गया...

मेडम= मुझे लगा तुम केसेट ले के आओगे. तुम तो खाली हाथ अ अगये...

मैं – आपने ही कहा था की अब फिल्म नहीं देनी है. \(मेरा जवाब तीखा था. उन्हें समझ आ गया की मैं उखड़ा हुआ हूँ)

मेडम- बगल के कमरे में किचन है. वहां से मेरे लिए पानी ले आओ...

पानी ले के मैं आया तो मेडम ने वहीँ रुकने को कहा...मैं रुका रहा..उन्होंने थोडा उठ के पानी पिया..मुझे बैठने के लिए नहीं कहा....कुछ देर शांत रही...

मैं – कोई काम न हो तो मैं वापस जा सकता हूँ ?

मेडम = तुम्हें मेरी बात बुरी लगी ठीक है. लेकिन अब जरुरत से ज्यादा भाव खाने की जरुरत नहीं है. दूकान पे जाओ और एक केसेट ले आओ.

मैं – जी दूकान बंद हो चुकी है.

मेडम – चाबी तो तुम्हारे पास रहती है न...दूकान खोल के ला दो...

मैं – जी बहुत रात हो चुकी है.

इस बार जब मेडम बोली तो उनकी आवाज बदल चुकी थी..जैसे गला भरा हुआ हो...

मेडम – राजेश मेरा कहा कर दो. एक केसेट ला के दे दो.

उनकी रुंधे गले की आवाज सुन के मेरा गुस्सा गायब हो गया...उनकी तरफ देखा तो चेहरे पर कोई भाव नहीं था लेकिन आवाज जरुर रुंधी हुई थी...मैंने हाँ में सर हिलाया और भाग के दूकान आया...केसेट ली और उतनी ही तेजी से भाग के वापस घर गया...

मेडम – टीवी पे लगा के चालू कर दो...तुमने देखि है ये फिल्म?

मैं – चालू कर देता हूँ.

मेडम= तुमने देखि है ये फिल्म?

मैं – चालू हो गयी है फिल्म.

मेडम = पता है. मैं कुछ पूछ रही हूँ तुमसे. तुमने देखि है ये फिल्म?

मैं – नहीं. मैंने नहीं देखि है.

मेदम० ठीक है. मैं देख के तुम्हें कल बता दूँगी की तुम्हारे देखने लायक है की नहीं. अब जाओ. कल रात में दूसरी केसेट ला देना. दूकान बंद करने के बाद रोज एक केसेट देते जाया करना. अब जाओ.

उनकी बात सुन के मेरा दिमाग भी ख़राब हो रहा था और लंड भी...मैं कुछ बोला नहीं...बाहर आया तो देखा की दुसरे कमरे की लाइट चालू थी...पूजा के कमरे की..मैं उसके कमरे की खिड़की के बाहर गया और अन्दर झाँका तो कोई दिखा नहीं....अन्दर कमरे में टीवी भी बंद थी...टेबल पर कुछ किताबें राखी थी बस....मैं वापस दूकान आ गया....अगले दिन सोचता रहा की मेडम चालू है या मुझे परख रही थी या सच में उस दिन की बात का उन्हें बुरा लगा था...आखिर ये माजरा क्या था..कुछ समझ नहीं आ रहा था...रात में मैंने केसेट ली और उनके घर की तरफ चल दिया...घर का दरवाजा खोल के अन्दर घुसा...अभी हाल में ही था की अन्दर के कमरे में मुझे दिखा की पूजा वहीँ थी...अपनी माँ को बिस्तर पर लिटा रही थी...उस दिन के बाद से आज देखा था पूजा को...लाइट ज्यादा नहीं थी इसलिए बहुत कुछ दिखा नहीं..मैं वहीँ रुक गया...पूजा अपना काम करने के बाद वापस मुड़ी...मुझे देखा तो कोई रिएक्शन नहीं दिया...बस एक नजर देख के अपने कमरे में चली गयी और दरवाजा बंद कर दिया...मैं अब मेडम के रूम में गया...वो बिस्तर पर लेती हुई थी....टीवी बंद था..मुझे देख के हलके से मुस्कुरा के अन्दर आने को बोली...इसके पहले कभी उन्होंने मुझे देख के मुस्कुराया नहीं था....मैं कितना कुछ सोच के आया था सब पिघल गया...
 

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मेडम – आओ. दूकान बंद कर के आये हो..

मैं – जी.

मेडम- तुम वहीँ दूकान में सोते हो?

मैं – जी.

मेडम- खाना कहाँ खाते हो?

मैं – जी पास के होटल में खा लेता हूँ.

मेडम- बहुत महंगा पड़ता होगा तुम्हें तो.

मैं – जी. इसीलिए एक टाइम ही खता हूँ. दोनों टाइम खाने लगूंगा तो पैसे ही नहीं बचेंगे.

मेडम- पैसे बचा के घर भेजते हो.

मैं – नहीं. अपने पास रख लेता हूँ.

मेडम- एक टाइम खाते हो तो फिर ऐसी हरकतें क्यों करते हो. कमजोर हो जाओगे बहुत जल्दी.

मैं – जी मैं कुछ समझा नहीं.

उन्होंने एक बार अपने कमरे से बाहर देखा...शायद ये देख रही थी की पूजा अपने कमरे में है या नहीं...उसका दरवाजा बंद है या नहीं...फिर मुझे देख के बोली...

मेडम- अपनी पेंट देखि है कभी?

मैं – मैं समझा नहीं.

मेडम- तुम्हारी पेंट में चेन के पास कितने दाग लगे हैं. तुम चौराहे पर रहते हो पर तुम्हारी बदबू यहाँ तक आ जाती है. इतनी मुट्ठ मारोगे तो किसी काम के नहीं रहोगे. समझ में आया?

समझ में क्या आना था मुझे...उनके मुंह से ये बात सुन के तो मेरा फ्यूज ही उड़ गया था..जैसे लाइट जाने पर अँधेरा हो जाता है वैसे ही मेरे सामने भी अँधेरा छा गया था..मेडम ये क्या कह रही थी..मैं मुट्ठ मारता हूँ उन्हें पता चल गया..मेरी पेंट देख ली मेरे दाग देख लिए...उनकी बात सही थी. मेरे पास एक ही पेंट थी. उसी को धो धो के पहन लेता था....और कभी मैंने खुद उन दागो पआर ध्यान नहीं दिया था...

मेडम- इसमें शर्मिंदा होने वाली बात नहीं है. ये तो आम बात है. सब करते होंगे तुम्हारी उम्र में. लेकिन ख्याल रखा करो की दूसरों के सामने जाओ तो ये नौबत न आये. मेरा पर्स रखा है वहां. उसमे से सौ रुपये ले लो.

उनका पर्स उठा के मैंने उन्हें दिया तो बोली मुझे देने को नहीं कहा. पर्स खोलो और पैसे निकाल लो. कल बाजार चले जाना और अपने लिए कपडे ले लेना. जब यहाँ आया करो तो साफ़ कपडे पहन के आया करो.

मैंने पर्स में से पैसे ले लिए...कहाँ मैं प्लान कर रहा था की इन दोनों के साथ खेलूँगा और कहाँ ये तो मुझसे बहुत बड़ी खिलाडी निकली....इनकी बातों का तो कोई जवाब नहीं था मेरे पास...मैं चुप खड़ा रहा...

मेडम- वैसे मैं इन सब बातों पर ध्यान नहीं देती लेकिन उस दिन तुम आये तो तुम्हारे पेंट का दाग एकदम गीला था. सच बताओ तुमने यहाँ आने के पहले मुट्ठ मारी थी न.

मैं – जी..

मेडम-मुझे पता चल गया था. मुझे लगा की तुम मुझे फिल्म देते हो तो मेरे बारे में कुछ गलत सोचते होगे और कहीं ऐसा तो नहीं की तुमने मुझे सोच के ही मुट्ठ मारी हो..इसलिए मुझे गुस्सा आ गया था और तुम्हें आने को मना कर दिया था..

मैं – जी.

मेडम- क्या जी? मुझे सोच के मुट्ठ मारी थी?

मैं – नहीं. फिल्म देख रहा था.

मेडम- ठीक है. मेरे बारे में कोई उल्टा सीधा सोचे तो मुझे पसंद नहीं आता. तुम मेरे लिए इतना करते हो दूकान बंद कर के आते हो मेरी सहूलियत का ख्याल रखते हो तो इसका कुछ गलत अर्थ मत निकाल लेना. ज्यादा कुछ मत सोच लेना. तुम्हें ये नसीहत देना जरुरी था. समझ में आया?

मैं – जी.

मेडम- कौन सी फिल्म लाये हो आज.

मैं – जी. नयी आई है.

मेडम- तुमने देख ली. ?
 

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मैं – नहीं मैंने नहीं देखि.

मेडम- ठीक है. चालू करो. तुम्हें जल्दी न हो तो बैठ के देख भी सकते हो...

मेरी हालत ख़राब हो गयी थी...ये क्या हो रहा है..ये मेडम क्यों मेरे साथ ऐसे खेल रही है...जरुर कोई चाल होगी इसकी...कहीं ये मुझे फंसा तो नहीं रही है...मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैं चुप खड़ा रहा...

मेडम- अरे मैं तो मजाक कर रही थी..तुम तो परेशान हो गए...जाओ देखो वहां कुछ खाने को रखा होगा...ले के खा लो. हमारे यहाँ तो खाने वाले दो ही लोग हैं. तुम चाहो तो हमारे यहाँ खाना खा सकते हो...तुम्हारे पैसे भी बच जायेंगे और सेहत भी.

मैं – नहीं नहीं मैं ठीक हूँ. अब तो एक टाइम खाने की आदत हो गयी है. भूख नहीं लगती है ज्यादा.

मेडम- तुम्हारी दूकान कैसी चल रही है?

मैं – ठीक चल रही है. मालिक बहुत खुश है.

मेडम- होगा ही. तुम इतनी मेहनत जो करते हो...ठीक है अब तुम जाओ...जाते जाते देख लेना कुछ खाने का मन करे तो लेते जाना. कल इसी टाइम आ के केसेट देते जाना.

उनके कमरे से मैं बाहर निकलने वाला ही था की उन्होंने आवाज दे के कहा सुनो वहां देखो दराज में एक मोमबत्ती राखी होगी वो देते जाओ....मैंने कहा लेकिन बिजली तो है अभी....और फिर उस औरत ने एक और तगड़ा हमला किया.....बड़े ही हलके से बोली....ये वाली मोमबत्ती जलाने के लिए नहीं है......

उसकी बात सुन के मुझे लगा की मेरे पैर पत्ते की तरह काँप रहे हैं...यहाँ कुछ गलत हो रहा है..ये औरत मेरे से ऐसी बातें क्यों कर रही है...मैं फंसाया जा रहा हूँ..मैंने तुरंत मोमबत्ती उठा के दी और लगभग भाग के घर के बाहर आया...लेकिन यहाँ एक और झटका मेरी राह देख रहा था...मैंने देखा की पूजा के कमरे की बत्ती जल रही थी...अभी अभी उसकी माँ से इतने झटके खाने के बाद भी मैं सम्हाला नहीं था...मैं चुपचाप उसकी खिड़की के पास गया तो वो कोई किताब लिए दिखी मुझे....मेरे कुछ कहने के पहले ही उसने मुझे देख लिया...

पूजा – तुम्हें रात में आने के लिए मम्मी ने कहा है?

मैं – हाँ.

पूजा – और मेरे कमरे में झाँकने के लिए भी कहा है?

मैं – नहीं.

पूजा. – तो क्यों झाँकने आते हो> कल भी आये थे न?

मैं – हाँ.

पूजा – क्यों?

मैं – ऐसे ही.

पूजा – ऐसे ही क्या होता है? बता दूं मम्मी को? तुम्हारा आना जाना बंद हो जायेगा. समझे की नहीं.

मैं – जी समझ गया,.

पूजा – कल से झांकोगे?

मैं – नहीं.

पूजा- ठीक है. अब खड़े क्या हो जाओ यहाँ से.

उसकी बात सुन के मैं वापस पलटा तो फिर से उसकी आवाज आई..

पूजा – सुनो
 

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मैं – हाँ.

पूजा – फिल्म लाये हो ?

मैं – कौन सी ?

पूजा – अरे कोई सी भी. फिल्म लाये हो ?

मैं – हाँ.

पूजा – दे दी ममी को?

मैं – जी दे दी.

पूजा – उन्हें किसी से कोई चीज मांगने की आदत नहीं है. तुम इतना कर सकते हो उनके लिए की बिना उनके मांगे ही उन्हें फिल्म दे दिया करो.

मैं – जो अब तो मैं रोज ही फिल्म ले के आता हूँ.

पूजा – ठीक है. रोज ले आया करना. याद रहे उन्हें कुछ मांगने की जरुरत नहीं पड़नी चाहिए.

मैं – जी ध्यान रखूँगा.

पूजा – तुम्हारे पास फ़िल्मी पत्रिका आती है ?

मैं – नहीं.

पूजा – ठीक है. अगर ला सकते हो तो मेरे लिए ला दिया करना. मायापुरी मिल जाये तो ला देना. पैसे मुझसे ले लेना अलग से. मम्मी को मत बताना.

मैं – जी ठीक है.

पूजा – ये लो दस रुपये हैं. रख लो. और कभी कभी मम्मी से खुद पूछ लिया करना की किसी चीज की जरुरत तो नहीं है.

मैं – जी वो तो मुझसे बात तक नहीं करती. मैं ऐसा पुचुन्गा तो वो नाराज हो जाएँगी.

पूजा – वो सिर्फ देखने में सख्त हैं. मैं कह रही हूँ न. रोज रोज नहीं. कभी कभी पूछ लिया करना उनसे.

मैं – जी.

पूजा – ठीक है. और मेरी पत्रिका भी ले आना. रात में ही आना. ऐसे ही बाहर से दे देना. मम्मी को पता न चले.

मैं – जी.

पूजा – अब मुझे घूर क्या रहे हो? जाओ. मेरे सोने का टाइम हो रहा है. मुझे कपडे उतारने हैं...

उसकी बात सुन के मैं चला आया....रात भर सो नहीं पाया...मुझे ये तो पता चल गया था की ये लोग जितने बाहर से शरीफ दिख रहे हैं उतने हैं नहीं...उसे मुझसे ये कहने की क्या जरुरत थी की कपडे उतारने हैं....मेडम को बार बार मुट्ठ मुट्ठ बोलने की क्या जरुरत थी...मोमबत्ती मुझसे ही क्यों मांगी...क्या मैं नहीं समझता की मोमबत्ती कहाँ डालती होगी...ये दोनों माँ बेटी जरुर कोई खेल खेल रहे हैं....मैं तो इन्हें अपने जाल में फंसाने वाला था लेकिन लगता है मैं ही उनके जाल में फंस रहा हूँ...पूजा को पता था की मैं घर आने वाला हूँ...फिर भी वो सिर्फ शमीज पहन के अपनी माँ के कमरे में थी...शमीज में से तो सब कुछ दीखता है.....मुझे खाना क्यों खिला रहे हैं....मेरी सेहत से इन्हें क्या लेना देना...बहुत सोच विचार के बाद भी मैं समझ नहीं पा रहा था की उनके बर्ताव को क्या समझूं....ये मेरी गलतफहमी भी हो सकती है...हो सकता है की वो लोग दिल के नेक हों और सिर्फ इंसानियत के नाते मुझसे खाने का पूछ लिया हो...लेकिन मोमबत्ती मांग के ये बताना की ये जलाने वाली मोमबत्ती नहीं है...ये कहाँ की इंसानियत है....मुझे ज्यादा कुछ समझ नही आया और मैं सो गया....

उसके बाद से अगले कई दिनों तक यही रूटीन रहा..मैं रोज रात को उनके घर जाता और मेडम को केसेट देता. थोड़ी बहुत इधेर उधेर की बात होती फिर मैं बाहर आता तो पूजा की खिड़की के बाहर जाता..कभी बत्ती बंद मिलती कभी चालू...ज्यादातर उसकी बत्ती बंद ही रहती थी...कभी कभार जब चालू रहती तो वो बार बार यही कहती की मम्मी का सब काम ठीक से किया की नहीं....ऐसा करते करते लगभग तीन महीने बीत चुके थे....एक दिन जब वो केसेट वाला एजेंट आया तो उससे मैंने कहा की सेक्स वाली और ज्यादा से ज्यादा फ़िल्में दिया करे...उसने मुझे फिल्म भी दी और साथ में तीन किताबें भी दी...इन किताबों में सिर्फ फोटो थे...और सब फोटो सिर्फ चुदाई के थे...आदमी औरत अलग अलग तरह से चुदाई कर रहे थे और सब कुछ दिख रहा था....पूरे नंगे...और सब फोटो एक से बढ़कर एक थे...उसने बताया की हर आदमी वीसीआर नहीं देख सकता...ऐसे लोगों को ये किताब दिया करो. इसकी बहुत मांग है दुसरे शहरों में...मैंने वो किताबे चलाना शुरू कर दिया...और सच में उससे बहुत तेज बिक्री बढ़ गयी...मेडम के यहाँ आते जाते चंदू से भी मेरी अच्छी बात होने लगी थी....अक्सर वो मेरी दूकान में आता था....उस दिन चंदू भरी दोपहर में रंग में था...दूकान में आया...

चंदू – कैसे हो भैया...इधर से गुजर रहा था सोचा थोडा तुमसे मिलता चलूँ..
 

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मैं – ठीक किया काका..मैं भी बोर हो रहा था बैठा बैठा. आज तो कोई ग्राहक ही नहीं आया. आओ बैठो बातें करेंगे..

चंदू – अरे भैया बहुत प्यास लगी है...देखो कुछ पीने को दे दो.

मैं – पानी है काका..

चंदू – अरे भैया पानी की प्यास नहीं है...देखो कहीं दूकान में पौवा तो नहीं रखा है.

मैं – काका ये दारू की दुकान थोड़ी न है की रखा हो पौवा.

चंदू – अरे मुझे लगा की उस दिन का कुछ बचा हो रखा हो कहीं...

मैं – नहीं है काका. तुम तो ऐसे पीते हो की बोतल बच जाए वही गनीमत है...तुम क्या एक बूँद छोड़ोगे पौवे की...

चंदू – अरे क्या बताऊँ भैया...बहुत मन कर रहा था...सोचा की तुम खाली होगे तो पौवा पिला दोगे फिर मेडम जी की बात करेंगे...

पता नहीं चंदू मुझे गोली दे रहा था या मैं उसे पौवा पिला के उसे गोली दे रहा था...कौन किसे फंसा रहा था..लेकिन फायदा हम दोनों का था..उसे पौवा मिलता और मुझे मेडम की बातें...तो मैं तुरंत गया और दूसरी दूकान से एक पौवा ले आया...

चंदू – अरे तुम बहुत तकलीफ करते हो भैया मेरे लिए.

मैं – मांग मांग के पीते हो काका और कहते हो की मैं तकलीफ करता हूँ...

चंदू – तुम भी भैया ताना देने में पीछे नहीं रहते..क्या हम नहीं जानते की क्यों पिलाते हो हमें...

मैं – अच्छा? बता दो जरा क्यों पिलाते हैं?

चंदु – तुम्हें मदम जी की बात सुन्नी रहती है..कितनी बार मुझसे पूछ चुके हो उनके बारे में...मैं सब जानता हूँ तुम्हारी नियत कुछ ठीक नहीं है.

मैं – अरे नहीं काका. अब तो मैं उनके यहाँ दो तीन महीने से रोज जाता हूँ....वो तो मुझे खाने को भी देती हैं...उनके बारे में क्या नियत ख़राब होगी...

चंदू – तुमसे कुछ काम करने को कहती हैं?

मैं – हाँ कभी कभी घर का कुछ काम कह देती हैं ?

चंदु – तुमसे मोमबत्ती मांगी है कभी?

(साला इसे मोमबत्ती के बारे में कैसे पता....लेकिन मुझे लगा की सच कहना ही ठीक रहेगा ताकि ये और भी कुछ बोले..)

मैं – हाँ काका. मोम्बाती तो माँगा करती हैं कभी कभी.

चंदू – मैंने ही खरीद के दी थी. मुझसे कहा करती थी की चंदू थोड़ी मोती मोमबत्ती ला दो. अब तुम मिल गए हो तो तुमसे मांग लेती हैं.

मैं –अच्छा काका.मुझे तो पता नहीं था.

चंदु – और क्या क्या काम करवाई हैं तुमसे?

मैं – बस घर का कुछ सामान मंगवा लेती हैं बाजार से. और कुछ ख़ास नहीं.

चंदू – तुमको पैसे देती हैं न?

मैं – हाँ काका. देती हैं.
 

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चंदु – उनकी चड्डी धोये हो?

मैं – ये क्या कह रहे हो..

चंदु – अरे बताओ बताओ..धोये हो कभी?

मैं – नहीं तो. मैं क्यों ये सब करने लगा....

चंदु – अच्छा ठीक है...और पूजा बिटिया का क्या क्या कर दिए हो?

मैं – कुछ नही काका. मैं तो उससे बात तक नहीं किया आज तक.

चंदु – ठीक है. जानते हो मैं उनके घर में झाड़ू लगता हूँ.

मैं – हाँ.

चंदू – अमीर लोग इतने लापरवाह होते हैं कुछ भी कहीं भी गिरा देते हैं...

मैं – होते होंगे...

चंदू – एक दिन पूजा बिटिया के कमरे से ये मिला हमें...

उसने मुझे एक केसेट का कवर दिया....मेडम के यहाँ से लाते समय शायद मुझसे गिर गया होगा जो पूजा ने उठा के रख लिया होगा...और फिर शायद उससे भी कहीं गिर गया होगा वो कवर...वो साला मिल गया इस चंदू को...

मैं – अरे ये क्या है? दिखाओ तो....

चंदू – ऐसे नाटक कर रहे हो जैसे जानते न हो...बहुत बड़े मादरचोद हो भैया..

मैं – अरे नहीं काका. मुझे क्या पता. दिखाओ तो...

चंदू – लो देख लो...इतने अनजान हो तो देख लो...क्या दिख रहा है? नंगी फोटो दिख रही है? नंगी लड़की कड़ी है. देख लो पूरी नंगी है....आदमी क्या कर रहा है उसके साथ? नहीं जानते होगे तो बता देता हूँ चोद रहा है उसको...समझ में आया? ये केसेट का कवर है. तुम ही देते हो न केसेट मेडम को....ऐसी केसेट देते हो? चोदा चादी वाली...साले मादरचोद हमारे दोस्त बनते हो...मेडम को चुदाई दिखाते हो उनकी बिटिया पे नजर रखते हो...नंगा नंगी फिल्म देते हो...सबको बता देंगे तुम्हें पीट पीट के मार डालेंगे सब...

उसका ये रूप देख के तो एकदम से गांड ही फट गयी थी मेरी...मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था....चंदू नशे में तल्ली था...मुझे इस तरह से डरा हुआ देख के हंसने लगा....फिर बोला...

चंदू – डर गए न....मुझे पता था की कुछ दाल में काला है....तुम साला रोज रात में जाते हो...मेडम जी पूरा दिन फिल्म देखती हैं. हमारे जाते ही बंद कर देती हैं...हमारे बाहर आते ही फिर देखने लगती हैं...हमें समझ में आ तो रहा था की कुछ गड़बड़ है लेकिन सबूत नहीं मिल रहा था. लेकिन आज मिल गया. अपना मुंह देखो कैसे सफ़ेद हो गया है....चलो अब हमसे कुछ छुपाना नहीं...सच सच बताओ कब पेले मेडम जी को...

मैं – क्या बकवास कर रहे हो...
 
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