उसका अंदरूनी हिस्सा बहुत गर्म लग रहा था और गांड का छेद मेरे लंड को कसकर पकड़ रहा था. यह एहसास मेरे लिए नया था, और काफी मस्त लग रहा था मुझे. मैं पूरी रफ़्तार से उसकी गांड की चुदाई करने लगा. थोड़ी देर विरोध करने के बाद वह भी शांत हो गई, और सहयोग करने लगी. पता नहीं उसे मज़ा आ रहा था या नहीं, पर वो किसी तरह मेरे मोटे लंड को अपनी गांड की गहराई तक झेल रही थी.
मन भर चोदने के बाद मैंने अपना सारा माल उसकी गांड में ही निकाल दिया. वह निढाल होकर एक तरफ गिर पड़ी.
धीरे से उसने दर्द से कराहती आवाज़ में कहा- निन मनसा अला, वंदु राक्षस.
(तुम मनुष्य नहीं, एक राक्षस हो.)
इसके बाद जब भी हमारी चुदाई के दरमियान वह पहले झड़ जाती, तो मैं उसकी गांड मारता. कभी-कभी तो वो खुद भी मुझे बोलती गांड मारने को.
उसकी गांड मैंने पहली बार मारी, फिर उसके गांव में कई औरतों ने मुझसे गांड मरवाने की फरमाइश की. कइयों की गांड मैंने मारी, जो उनके लिए नया तजुर्बा था. पर नए स्टाइल की ललक में वह तकलीफ सहकर भी अपनी गांड में मेरा लंड लेती रही.
वहाँ से मुझे औरतों की गांड मारने का नया अनुभव मिला. या यूँ कहें कि मुझे गांड मारने की ललक भी जगना शुरू हो गई.
इस तरह चूत की अपेक्षा गांड मारने में मेरे लंड को ज्यादा मज़ा आने लगा.