हर्ष त्रिभुवन के घर से जल्दी से अपने हॉस्टल चला आया
और तभी उसकी दादी गायत्री देवी का फोन आया
गायत्री देवी - हेलो बेटा कैसे हो हर्ष
हर्ष: हेलो दादी प्रणाम मैं ठीक हूं आप कैसी हैं
गायत्री देवी: मैं भी ठीक हूं बेटा तुम्हारी बहुत याद आती है तुम बस जल्दी से चले आओ हम लोग सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं
हर्ष: क्या दादी 10 साल से मैं यही पड़ा हुआ हूं हॉस्टल में ही आप लोगों को मेरी याद ही नहीं आती जैसे दादी मैं हॉस्टल में पड़ा पड़ा बोर हो रहा हूं मैं कराना चाहता हूं मैं आप लोग से मिलना चाहता
गायत्री देवी: हां मेरे लाल हम लोग भी तुमसे मिलना चाहते हैं अपने कलेजे के टुकड़े से इतने दिन हो गए हैं तो मैं हॉस्टल गए हुए तुम्हारी बहुत याद आती बेटा तुम बस जल्दी से अब आज अब तुम्हें देखे बिना रहा नहीं जाता जिंदगी का जिंदगी का कोई भरोसा नहीं बेटा पता नहीं कब ऊपर से बुलावा आ जाए
हर्ष: नहीं दादी ऐसे नहीं बोलिए मैं जल्दी आऊंगा बस आप लोग मुझे लेने आ जाओ कोई भी
गायत्री देवी: हां बेटा अब तो तुम्हारे पेपर भी खत्म हो गए हैं अच्छा हां बेटा सुनो कल तुम्हारी मां और तुम्हारे पापा तुमको मैंने हॉस्टल जा रहे हैं क्योंकि गांव में हर 10 साल बाद लगने वाला मेला भी 10 दिनों बाद है तुम आ जाओ मैंने मन्नत मांगी है तुम्हारे हाथों ही उस मेले का शुभारंभ करवाया जाएगा
हर्ष: क्या दादी सच कल मां और पिताजी मुझे लेने आ रहे हैं आप झूठ तो नहीं बोल रही
गायत्री देवी: नहीं मेरे लाल बस तुम कल तैयार रहना तुमसे मिलने को मेरी आंखे तरस देंगे जी करता है कब मेरा लाल मेरे पास आया और मैं उसे गले लगा कर खूब प्यार करूं
हर्ष: मैं भी अपनी दादी को गले लगा कि उन्हें खूब प्यार करूंगा
गायत्री देवी: अच्छा बेटा अब मैं फोन रखती हूं कल तुम्हारा बेसब्री से इंतजार रहेगा
हर्ष: ठीक है दादी प्रणाम
गायत्री देवी: सदा खुश रहो मेरे लाल यह कहकर गायत्री देवी फोन कट कर देती हैं और हर खुशी के मारे उछल पड़ता है अगले दिन सुबह हर खुशी खशी अपना सारा सामान पैक करता है और अपने मां और पिताजी का इंतजार करने लगता है इधर रतनपुर में कलावती देवी अपने अपने बच्चे से मिलने की खुशी में जल्दी से जल्द तैयार होना चाहती थी इसलिए वह सुबह ही उठकर घर के सारे काम निपटा कर खुशी-खुशी नहाने चली गई और नहा धो के अच्छे से तैयार आज आज कलावती देवी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी उन्होंने एक लाल रंग की साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज पहना हुआ था जो कि उनके गदराये बदन पर खूब जच रहा था कलावती देवी का भरा हुआ बदन उस गहरे लाल रंग की साड़ी में खूब खुलकर सामने आ रहा था कलावती देवी का बड़ा सा पिछवाड़ा साड़ी में एकदम चिपका हुआ था
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मादकता कलावती देवी के अंग साफ-साफ झलक रहा था खैर कलावती देवी अपने पति के साथ अपने बेटे के हॉस्टल के लिए निकल पड़ी और कुछ ही देर में हो हॉस्टल के गेट के पास अपनी कार से पहुंच गई और जैसे ही उन्होंने अपनी कार का गेट खोल कर बाहर निकली तो हॉस्टल में रहने वाले सभी लड़कों की नजर कलावती देवी पर पड़ी तो कलावती देवी के हुस्न को देखकर सभी लड़कों की आह निकल गई सभी एक दूसरे से कहने लगे यार क्या गदराया माल है इस उम्र में भी एकदम कहर ढा रहे हैं यार इसका पिछवाड़ा तो देखो कितना बड़ा है मिल जाए तो स चाट चाट के लाल कर दु हॉस्टल के सभी लड़कों की नजर कलावती देवी पर एक Tak टिकी हुई थी तभी कलावती देवी जैसे ही आगे की ओर कदम बढ़ाने को हुई तो उसके साड़ी का पल्लू कार के गेट में फस गया उसको सही करने के चक्कर में कलावती देवी का पल्लू उनके बड़े-बड़े स्तन से हट गया कलावती देवी का यह रूप देख कर हॉस्टल के सभी नौजवान बच्चों की आह निकल गई हॉस्टल के सभी बच्चों की नजर अपनी तरफ देखकर कलावती देवी शर्म के मारे पानी पनी हो गई और जैसे तैसे उसने अपने पल्लू को संभालते हुए आगे बढ़ी
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हर्ष अपने रूम में बैठा हुआ अपने मां और पिताजी का इंतजार कर रहा था कि इतने में उसके कानों में माल माल की आवाज सुनाई पड़ी और वह अपने कमरे से बाहर निकलकर बालकनी से नीचे की ओर देखा तो उसकी मां और पिताजी हॉस्टल के गेट के पास हॉस्टल के अधीक्षक से बात कर रहे थे और उसके ही सहपाठी उसकी मां के बारे में बड़ी गंदी गंदी बातें कर रहे थे तब तक एक लड़के ने कहा यार ऐसी कयामत आंटी और गदराए बदन वाली औरत मैंने पहली बार देखा बाप रे कितनी बड़ी बड़ी सी नारियल जैसी चूचियां है इसको तो खूब दबा दबा कर पीने में बड़ा मजा आएगा यार मुझसे तो बर्दाश्त नहीं हो रहा मैं तो जा रहा हूं इस आंटी की नाम की मुठ मारने इतना कहकर वह अपने रूम में चला गया हॉस्टल के लड़कों के मुंह से अपनी मां के बारे में ऐसे कमेंट सुनकर हर्ष को अच्छा तो नहीं पर बुरा भी नहीं लग रहा था और वह अपने रूम में जाकर अपना सामान लेकर नीचे चला गया तभी कलावती देवी की नजर अपने सामने आते हुए एक लंबे चौड़े नौजवान जो अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा था पर पड़ी देखते ही देखते वह नौजवान कलावती देवी के पास आकर रुक गया और नीचे झुक कर कलावती देवी के पैर छूकर नमस्ते मां बोला कलावती देवी को समझते हुए देर नहीं लगी कि वह उनके कलेजे का टुकड़ा उनका अपना बेटा हर्ष है जिसे वह 10 वर्ष पहले अपने पास से दूर इस हॉस्टल में पढ़ने के लिए भेज दिया था कलावती देवी ने अपने बच्चे को अपनी बाहों में लेकर खूब कस कर चिपका लिया और बोली हर्ष मेरा बच्चा कितना बड़ा हो गया है तू तभी कर्म देव भी उनके पास आ गए और बोले हर्ष मेरे लाल कैसा है तू तो हर्ष ने अपनी मां के बाहों से आजाद होते हुए अपने पिताजी के पैर छू कर बोला अच्छा हूं पिताजी तभी कलावती देवी बोली चलो बच्चे अपने घर चलते हैं और यह कह कर वह तीनों कार में बैठकर अपने घर की तरफ चल पड़े रास्ते भर मां बेटे में खूब गपशप हो रही थी और कर्म देव कार को ड्राइव करने पर ध्यान दे रहा था जब से हर्ष त्रिभुवन के घर से आया था तभी से उसकी निगाहें औरतों के बारे में बदल सी गई थी त्रिभुवन की मां जया देवी के गदरए बदन को जब से देखा था तब से ही उसकी हालत खराब हो गई थी और आज अपने सहपाठियों द्वारा अपनी खुद की मां के बारे में गंदे गंदे भद्दे कमेंट सुनकर उसके पैंट में उसका बंबू तंबू बना चुका था कुछ दूर तक ऐसे ही चलते चलते और गपशप करते करते पता नहीं कब कलावती देवी की आंखें लग गई और वह कार में ही सो गई तो हर्ष ने भी अपनी मां को डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा हर्ष को बार-बर हॉस्टल के बच्चों की बात याद आ रही थी तभी ना चाहते हुए भी हर्ष ने अपनी मां की तरफ नजर दौड़ाई पर इस बार उसके नजरिए में एक कामुक बदलाव था जब उसने कलावती देवी को अपनी कामुक नजरों से देखा तो उसने पाया कि उसकी मां तो जया देवी से भी हजारों गुना सुंदर और आकर्षक महिला है कलावती देवी के गदर आए बदन के आगे जया देवी भी पानी भरते नजर आएंगी बल्ला की खूबसूरत और कामुक महिला उसकी खुद की मां थी माथे पर बड़ी सीन बिंदी लाल गहरे रंग की साड़ी और स्लीवलैस ब्लाउज उसके बदन मे चार चांद लगा रही थी लगभग 2 घंटे बाद वह लोग अपने गांव रतनपुर के बॉर्डर के पास पहुंच चुके थे तो कर्म देव ने चारों तरफ खेतों से गिरी एक झोपड़ी के पास कार को रोक दिया तो कलावती देवी की निद्रा टूटी हर्ष ने अपने पिताजी से पूछा की पिताजी आपने यहां कार को क्यों रोका तो कर्म देव ने बोला बेटा यह तुम्हारे रामू काका की झोपड़ी है जो हमारे खेतों की देखभाल और बागों की रक्षा करते हैं कार से उतर कर कर्म देव ने झोपड़ी की तरफ आवाज दी रामू ओ रामू कहां हो लगभग 2 मिनट बाद झोपड़ी में से एक लगभग 50 साल की लंबी चौड़ी भरे बदन की महिला हाथ जोड़ते हुए बाहर आई जो सिर्फ लहंगे और चोली में थी उसने बोला की मालिक वह तो नहीं है बाजार से खाद लाने गए हैं कुछ काम था क्या मालिक तो कर्म देव ने बोला कि हां यह कुछ रुपए पकड़ो और रामू को दे देना की मिठाई ले ले क्योंकि आज 10 वर्ष बाद मेरा बेटा हर्ष घर को जा रहा है उस महिला ने बड़ी उत्सुकता के साथ बोला कि क्या छोटे मालिक आज घर आ रहे हैं बड़ी खुशी की बात है भगवान उन्हें खूब खुशियां और दीर्घायु प्रदान करें तो कर्म देव ने कहा धन्यवाद ललिया हां एक बात और हर्ष हम लोग के साथ ही है वहां खड़ी कार में अगर मिलना चाहो तो मिल सकती हो इतना सुनते ही ललिया लगभग दौड़ते हुए कार के पास पहुंची और झुक कर कार के अंदर देखते हुए कलावती देवी को प्रणाम मालकिन और हर्ष की ओर देखते हुए प्रणाम छोटे मालिक बोली तब कलावती देवी ने हर्ष से बोला की बेटा यह तुम्हारी ललिया का की है बाग और खेतों के रखरखाव की सारी जिम्मेदारी इन्हीं की है प्रणाम करो तब हर्ष ने प्रणाम करते हुए बोला काकी आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा लगभग आधे से ज्यादा झुके होने की वजह से ललिया के चोली से उसकी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां आधे से ज्यादा दिखने लगी जिसको देख देख कर हर्ष की हालत खराब होने लगी और उसका ल** पहले से ही टाइट था वह अब और ज्यादा उफान मारने लगा हर्ष की नजर बार-बर ललिया की बड़ी-बड़ी चुचियों और उसके उठे हुए गुदाज पेट और गहरी नाभि पर जाकर टिक जा रही थी
झुंकी हुई लालिया
तभी कर्म देव वहां पहुंचा और उसने बोला की ललिया कल घर में पूजा है तुम सुबह ही रामू के साथ घर पहुंच जाना ललिया बोली जी मालिक और इतना कहकर कर्म देव कार में बैठ गया और वह तीनों घर की तरफ चल पड़े