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कहानी अच्छी है या नहीं


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insotter

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124
आप सभी तारीख नोट कर लीजिए 05 sep 2025 से पहले ही अपडेट दे पाऊंगा उसके बाद 05 Oct 2025 तक मैं अपडेट नहीं दे पाऊंगा किसी व्यक्तिगत समय के अनुसार (लगता है अब तो ग्रहण भी लग गया मेरा फ़ोन का डिस्प्ले गया) उसके बाद आपसे मुलाकात होगी तब तक आप लोग अन्य कहानी के मजे लेना। बीच बीच में आऊंगा बस कमेंट देखने की अपडेट की कितनी प्रतीक्षा है आप लोगों में।
 
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insotter

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अध्याय-8
पहला दृश्य

दोपहर का समय और सूरज ऊपर से बाजू में था, शाम में ठंडी हवाएं चलती हैं पर आज दिन में गर्मी कुछ ज़्यादा थी, फिर भी जिन्हें अपना जरूरी काम करना था वो लोग तो लगे ही थे और जिनको कोई जरूरी काम नहीं वो या तो घर पे आराम या काम के जगह में आराम करने लगे थे,

शोर मचाते जगह से बाहर आके रिंकी ने कमल को कॉल लगाया “भाई कहा हो”
सामने से कमल ने जवाब दिया “अभी तो कॉलेज में ही हूँ”
रिंकी ने फिर पूछा “आप आ रहे हो ना”

कमल ने थोड़ा रुक कर जवाब दिया “रिंकी आज बाहर गर्मी ज़्यादा है शाम को चले क्या”,

रिंकी-“भाई शाम को बाज़ार जाने में भीड़ मिलेगा और घर पहुँचते फिर रात ना हो जाए अभी आओ ना”

कमल-“अच्छा ठिक है तू बाहर रहना मैं अभी निकलता हूँ यहाँ से”

कमल अनिमेष को कॉल करके बता देता है और अगले बीस मिनट में रिक्शा लेके रिंकी के कॉलेज के बाहर पहुँच गया और उसे आने को कहा, रिंकी ने किसी को बाय बोलते हुए कॉल का इशारा करते हुए कमल के साथ रिक्शा में बैठ गई,

“कोन था वो लड़का जिसे बाद में कॉल करने का इशारा कर रही थी” कमल ने पूछा,

रिंकी ने पहले रिक्शा वाले को चलने कहा फिर कमल को जवाब देते हुए बोली “वो मेरी एक सहेली का भाई है”

कमल ने फिर से पूछा “तो तूने उसे क्यों कॉल का इशारा किया मैंने ये पूछा था”
रिंकी ने कहा “अरे भाई वो मुझे कुछ नोट्स भेजने है अपनी सहेली के लिए उसके मोबाइल में बस इसलिए मैं ने उसे इशारे से कहा की कॉल करके भेज दूँगी”

कमल को रिंकी का जवाब थोड़ा अजीब लगा और रिंकी को मस्ती में परेशान करते हुए “मुझे लगा तेरा बॉयफ्रेंड होगा”
रिंकी ने कमल को घूर के देखा “आप कुछ ज़्यादा ही सोच लिए भाई” और हसने लगी, थोड़ी देर में दोनों भाई बहन बाज़ार पहुँच चुके थे,

कमल-“क्या क्या ख़रीदना है तू लेके आते जाना मैं बाहर ही वेट कर लूँगा”

रिंकी-“क्या भाई आप बाहर क्यों रहोगे, नहीं आप भी मेरे साथ अंदर चलना”

रिंकी एक स्टेशनरी के दुकान में जाके कॉलेज के लिए जरूरी सामान लेके बाहर आ जाती है फिर कमल को आगे चलने बोलती है,

आगे चलके एक दवाई की दुकान में जाके दुकानदार से कुछ कहती है और वो उसे एक कागज में लपेट के दे देता है जिसे लेके रिंकी नीचे आ जाती है,

कमल तुरंत पूछता है “ये कागज में पैक करके क्या दिया उसने” रिंकी को थोड़ी हसी आ गई और उसे कहा-“कुछ नहीं है भैया बस दवाई है”

कमल को जिज्ञासा हुई “ऐसा कोन सा दवाई है जो कागज़ में देते है” रिंकी ने थोड़ी देर कमल को देखा फिर थैले में दिखाते हुए बोली “लो आप खुद ही देख लो”,

कमल ने जैसे ही पैड्स को देखा उसे थोड़ा असहज महसूस हुआ कि उसने क्यों देखने की इच्छा ज़ाहिर की और बिना कुछ कहे आगे बढ़ने लगा तो पीछे से रिंकी ने कहा “पता चल गया ना भाई क्या है” और हस्ते हुए आगे बोलने लगी “आपको तो पता ही है ये लड़कियाँ कब लेते है”

कमल को ऐसे सवाल रिंकी में मुंह से सुनने की आदत नहीं थी फिर भी कमल ने बिना हिचक के कहा “हा हा अच्छे से पता है तूने इसे क्यों लिया है और ये तो घर के दुकान में भी होगा ना चाची से पूछ लेती”,

रिंकी ने भी शर्म से लाल होते हुए आगे जवाब दिया “बड़ी माँ को पूछा था मैंने पर उन्होंने कहा आजकल में आ जाएगा तो उससे अच्छा मैंने यही से लिए”

दोनों भाई बहन इस तरह बात कर रहे थे जैसे ये सब उनके लिए पुराना हो पर कहीं ना कहीं इस तरह बात करने से दोनों में एक नया रिश्ता बन रहा था जिससे दोनों ही अंजान थे, रिंकी जो पहले ही कमल को उसके लंड हिलाते देख चुकी थी, उसकी वजह से रिंकी का कमल के लिए लगाव और बढ़ती जा रही थी,

कहीं ना कहीं अब रिंकी में भी अपने भाई के लिए हवस जाग चुकी थी, जो उसे कमल की तरफ़ खिच रही थी वो ना चाहते हुए कमल से नज़दीकियाँ बढ़ाना चाह रही थी,

कमल ने रिंकी को हिलाते हुए कहा-“कहा खो गई तू चलते चलते और क्या ख़रीदना बचा है, सामान लेले जल्दी फिर नाश्ता खाते है कुछ मुझे बहुत भूख लग रही”,

रिंकी बिना कुछ बोले श्रृंगार सदन की दुकान में जाती है और पाँच मिनट में बाहर आके कमल से कहती है “भाई चलो कहा नाश्ता करना है मेरा ख़रीदारी हो गया”

दोनों एक होटल में पहुँच वहाँ नाश्ता करने लगते है कब साढ़े तीन बज गए बाज़ार में दोनों को पता ही नहीं चला, वहाँ से रिक्शा लेके बस स्टेशन पहुँच गए,

बस में चढ़कर दोनों भाई बहन सबसे पीछे की एक ही सीट पर बैठे पहले रिंकी अंदर गई फिर कमल उसके बाजू में बैठ गया अभी ज़्यादा यात्री नहीं बैठे थे, बस निकलने में अभी थोड़ा समय था, अचानक कमल ने रिंकी से कहा-“तू आज मुझसे कुछ पूछने वाली थी ना अकेले में बता क्या था वो,

रिंकी को भी अचानक याद आया-“कुछ नहीं भाई इतना जरूरी नहीं है रहने दो”

कमल-“पूछना इतना क्यों सोच रही है”

रिंकी-“नहीं भैया आप मुझपे गुस्सा करोगे रहने दीजिए”

कमल थोड़ा सोच में पड़ गया ये ऐसा क्या पूछने वाली है-“अरे नहीं करूँगा तू पूछ तो सही”

रिंकी-“नहीं पहले आप वादा करो गुस्सा नहीं करोगे”

कमल-“हा पक्का वादा है गुस्सा नहीं करूँगा”

रिंकी थोड़े देर शांत रहती है फिर कहती है-“भैया मैंने आपके रूम से एक किताब उठाई थी वो आप ने अपने पास क्यों रखा था”

कमल को कुछ समझ नहीं आया-“अरे कौनसा किताब कैसा किताब अच्छे से बतायेगी”

रिंकी-“भैया वही किताब जिसमे कुछ गंदी फोटो है” और शर्म से लाल हो गई,

अब कमल की बारी थी डरने की वो रिंकी से कहता है-“कौनसा, ऐसा मेरे पास ऐसा कोई किताब नहीं है” फिर कहीं और देखने लगा जैसे सच में अनजान हो,

रिंकी-“भैया झूठ मत बोलो घर में अपने रूम पे रखी हूँ जो मैंने आपके किताबों से निकाली थी”

कमल ने सोचा अब छुपाने से कोई मतलब नहीं घर पे किसी को बता दे उससे पहले-“इसका मतलब वो किताब तू लेके गई थी, वो मेरे दोस्त ने गलती से मेरे बैग में डाल दिया था बस और कुछ नहीं”

रिंकी-“अब आए ना लाइन में आप और आप क्या करते उसे देख के”

कमल-“पहले तू ये बता उसे देखी तो उठायी क्यों और लेके अपने पास क्यों रखी है”

रिंकी को कुछ बोलते नहीं बना फिर उसने वो कहा जो कमल के लिए फिर से नया था, रिंकी ने कहा-“वो किताब में तस्वीरों को देखी तो ख़ुद को रोक नहीं पायी देखने से और उसे अच्छे से पूरा देखने के लिए रूम पे ले गई”

कमल-“ग़लत बात रिंकी ऐसी चीजे तुम्हें नहीं रखनी चाहिए वापस देना मुझे”

रिंकी-“सॉरी भैया पर आप भी तो देखे ना और उस रात आपने” फिर चुप होके बाहर देखने लगी,

कमल को फिर एक झटका लगा उसे याद आया “कहीं उस रात मुझे और अनिमेष को इसने मूठ मारते तो नहीं देख लिया ओह शीट अब मैं इसे क्या बोलूँगा”

कमल हड़बड़ाते हुए-“रिंकी इधर देख हा मैंने देखा क्यूंकि मैं लड़का हूँ और उस रात मैंने क्या”

रिंकी बिना किसी डर के-“अच्छा आप लड़के हो तो आप देख सकते हो, मैं क्यों नहीं देख सकती मेरी भी फीलिंग्स है मेरी भी फैंटेसी है”

कमल बात को लंबा नहीं खिंचना चाह रहा था-“ठीक है रख ले उस किताब को अपने पास और जितना मर्जी देख कर अपनी फैंटेसी पूरा कर लेना” और ये बोलके हसने लगा

रिंकी-“हल्के मुक्के मारते हुए भैया आप बहुत गंदे हो अब आप मेरा मजाक उड़ा रहे हो, मजे तो आप ले रहे थे उस रात” और मुंह पे हाथ रख मुस्कुराने लगी

कमल को समझ आ गया अब रिंकी से कुछ भी नहीं छुपा सकता-“मतलब उस रात तूने मुझे सब कुछ करते देख लिया ना”

रिंकी-“सॉरी भैया जानबूझ के नहीं गलती से पहुँच गई थी”

कमल-“कितनी देर तक देखा तूने मुझे वो करते”

रिंकी-“छी भैया मुझे शर्म आ रही वो सब बताने में मत पूछो”

कमल-“अच्छा जब जानना था तब पूछने में शर्म नहीं आई अब बताने में शर्मा रही”

रिंकी-“ठीक है तो सुनो मैं जब पानी लेने नीचे आई तो देखा आपके कमरे की बल्ब जल रही है तो मैं खिड़की के पास गई, ये देखने की आप लोग क्यों नहीं सोए तभी मैंने देखा अनिमेष भैया आपके बगल में सो रहे है और आप कुछ बोलते हुए अपना वो हिला रहे है बस”

रिंकी के इतना सब बताने के बाद कमल के लंड में हलचल मच गई, पैंट के अंदर ही अकड़ना सुरु हो गया और वहाँ रिंकी की चूत भी अब धीरे से रिसने लग गई, उसकी चूत की फाँको में रस फैलने लगा
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उसे कमल का हिलाता हुआ मोटा लंबा तगड़ा लंड फिर से याद आने लगा जिससे चूत और रिसने लगी,


दोनों भाई बहन अपने भावनाओं को अंदर रखे बिल्कुल शांत बैठे थे, थोड़ी देर तक शांति के बाद एक आवाज आई “बस निकलने वाला है किसी का जानकर बाहर हो तो बुला लो”

पहला दृश्य यही तक दोस्तों
कहानी जारी रहेगी
 
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insotter

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अध्याय-8
दूसरा दृश्य

अनिमेष अपने क्लास में बैठा था दोस्तों के साथ तभी उसे कमल का कॉल आता है कि वो रिंकी साथ बाज़ार जाने के लिए निकल रहा है, वो थोड़े देर फिर क्लास में दोस्तों साथ रहा उसके बाद अपनी माँ लेखा को कॉल करता है और बताता है कि वो पैसे निकालते हुए वहाँ पहुँच रहा है,

यहाँ दुकान में अभी तक वो थोक व्यापारी तो नहीं आया था और अनिमेष से बात होने के बाद लेखा दोपहर खाने के लिए घर चली जाती है वहाँ अपनी जेठानी को ना देख समझ जाती है वो खेत में बाबू जी के लिए खाना लेके गई होगी, लेखा अपना खाना खा के वापस दुकान पहुँच जाती है,

क़रीब एक घंटे के बाद तुरंत अनिमेष भी दुकान पैसे लेके पहुँच गया था, उसने अपनी माँ से कहा “अभी तक वो व्यापारी आया नहीं क्या?”

लेखा ने जवाब दिया “नहीं अभी तो नहीं आया पर तू पैसे लेके आया”

अनिमेष लेखा को पैसे देते हुए “हा माँ ले आया हूँ और तुरंत पैसे दे देता है”,

अनिमेष-“माँ आपने खाना खा लिया”

लेखा-“हा मैंने खा लिया तुम कुछ खाये अभी”

अनिमेष-”खाना तो नहीं पर बाहर ही होटल में नाश्ता किया”

लेखा-“चल ठीक है वैसे अभी घर जाएगा या फिर कहीं और”

अनिमेष-“अभी तो घर जाऊँगा माँ गर्मी की वजह से थकान लग रहा”

लेखा-“वहाँ तो अभी कोई नहीं सभी बाहर है तू एक काम कर यही थोड़ा आराम करले”

अनिमेष-“ठीक है पर आप कब आराम करोगे अकेले दुकान में इतने देर में तो आपको भी थकान हो गया होगा”

लेखा-“ओह मेरा बेटा, कर लुंगी तू उसकी चिंता मत कर तू जा आराम कर मैं आती हूँ शटर बंद करके”

अनिमेष को शटर बंद से उस दिन की घटना फिर याद आ जाती है और उसके लंड में हल्का हलचल हो जाता है, वो अंदर पास में लगे एक छोटे से कमरे में रखे बिस्तर में जाके लेट जाता है, जहाँ पीताम्बर ने एक छोटा कूलर भी लगा रखा था,

लेखा भी अंदर आते हुए बोली-“आज तो सच में बहुत गर्मी है बेटा” और कूलर के सामने जाके अपने पल्लू को हटा कर अपनी छाती पे ठंडी हवा लेने लगती है, ये देखना अनिमेष के लिए नया तो नहीं था पर उस दिन के बाद आज अचानक देखने से उसका लंड फिर से अकड़ने लगा था,

अनिमेष की नजर जैसे ही अपनी माँ के गठीले और गदराई कमर में पड़ती है जिसपे पसीने के कुछ बूंदे थी ना चाहते हुए, फिर उसकी नजर अपनी मां की मोटी बड़ी गान्ड पे जाती है और वो धीरे से अपने लंड को ऊपर से सहला देता है जिससे उसके लंड में अकड़न आ जाती है,

लेखा फिर बिस्तर में बैठने के लिए अचानक से जैसे ही पीछे मुड़ती है वो अनिमेष की हरकत देख लेती है और अनिमेष को चिल्ला के बोलती है-“अनी ये तू क्या कर रहा है”,

अनिमेष हड़बड़ाके जल्दी से हाथ को दूर करते हुए-“कुछ भी तो नहीं माँ”

लेखा-“झूठ मत बोल, देखा मैंने अभी तेरा हाथ कहा था”

अनिमेष-“माँ लड़को का आदत होता है कभी खुजली होता है तो ऊपर से ऐसे कर देते है”

लेखा-“अच्छा, तो फिर तेरा ये क्यों खड़ा हो रखा है” उसके पैंट के ऊपर की तरफ़ दिखते हुए बोलती है पर अनिमेष चुप रहता है और कुछ नहीं बोलता,

अनिमेष-“माफ़ करना माँ” लेखा मन में सोचती है ये सही समय है उसे समझाने का उससे इस बारे में बात करने का और उससे फिर प्यार से समझाते हुए कहती है,

लेखा-“बेटा मैं समझ सकती हूँ कि तू अब बड़ा हो गया है और जवानी में ऐसी गलती हो जाती है पर तुझे अभी ये सब नहीं सोचना चाहिए बल्कि अपनी पढ़ाई में ध्यान देना चाहिए”

अनिमेष-“माँ मैं पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहा ऐसा नहीं है पर उस दिन जबसे आपको देखा है वही ख्याल दिमाग़ में चल रहा है वही घटना बार बार याद आ जाता है जिससे मुझे कुछ कुछ होता है आप ही बताओ ऐसे में मैं क्या करूँ”

लेखा-“तो अपना ध्यान कहीं और लगा ना बेटा, तुझे अपनी माँ के बारे में बार बार नहीं सोचना चाहिए”

अनिमेष-“जब बाहर रहता हूँ तो मुझे ये सब का ख्याल नहीं आता पर जब आप सामने आती हो तो फिर से वही ख्याल आता है जिससे मुझे ना चाहते हुए अपने हाथ का सहारा लेना पड़ता है माफ करना अगर मैं कुछ ज़्यादा बोल रहा तो”

लेखा को अब समझ आ गया था वो अपने बेटे के दिमाग़ से अपनी नंगी छवि को नहीं हटा सकती फिर अपने बेटे से कहती है-“तो क्या तू ऐसे ही अपने उसको हिलाता रहेगा”

अनिमेष को अब लगने लगा था कहीं ना कहीं माँ अब गुस्सा नहीं कर रही तो वो भी थोड़ा खुलके बताने का सोचा “क्या करूँ माँ ये ख्याल ही ऐसा है जो मुझे हिलाने पे मजबूर कर देता है”

लेखा-“पर बेटा ज़्यादा सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है”

अनिमेष-“हा पर देखो ना अभी भी तना है तो ऐसे में क्या करूँ शांत तो करना पड़ेगा ना” वो अपने लंड को पैंट के ऊपर से मसलते हुए कहता है,

लेखा-“बेशरम अपनी माँ के सामने उसे मसल रहा थोड़ा शर्म करले”

अनिमेष-“अपनी चीज को छूने में उसके साथ खेलने में क्या शर्म माँ आप तो मुझे बचपन से देख रही हो”

लेखा-“अब तू बड़ा हो गया है छोटा बच्चा नहीं है जो तू मेरे सामने ये सब करेगा” अब तो लेखा भी कहीं ना कहीं अपने बेटे के लंड को फिर से देखना चाहती थी पर वो बोल नहीं पा रही थी, और थोड़ा हस के बोलती है “और तेरा वो भी अब बड़ा हो गया है नालायक”

अनिमेष-“देखो ना माँ अब तो मुझे पैंट के अंदर से दर्द कर रहा है आह ऐसे समय में ही मैं इसे बाहर निकाल लेता हूँ ताकि दर्द ज़्यादा ना बड़े”

कहा लेखा अपने बेटे को समझाने का सोच रही थी और अब वो अपने बेटे के मुँह से ये सुन रही थी की देखो ना माँ अब तो मुझे पैंट में दर्द कर रहा है, वो दुविधा में थी वो क्या करे, एक तरफ़ जहाँ उसे पारिवारिक रिश्ते समाज के नियम याद आ रहे थे तो वही दूसरी तरफ़ हवस ने दिमाग़ को जकड़ने वाला काम किया ना चाहते हुए भी उसके मुंह से निकल पड़ा,

लेखा-“तो निकाल के उसे थोड़ा आराम देदे मैंने तो इसे पहले भी देख रखा है”

लेखा को आभास ही नहीं रहा वो क्या बोल गई वही अनिमेष को भी आश्चर्य हुआ की उसकी माँ ये करने को कैसे बोल गई, और हाथों को नीचे ले जाके अपने पैंट को खोलने लगा, पर लेटे हुए उसे थोड़ी दिक्कत हो रही थी जिसे लेखा देख हसती हुई बोलती है,

लेखा-“बेटा दर्द ज़्यादा है क्या जो तुझे खोलने में दिक्कत हो रही” और फिर अपने मुंह पे हाथ रख हस्ती जाती है,

अनिमेष-“माँ आप भी ना हसो मत मुझपे, लगता है क्लिप फस गया है आप थोड़ा मदद करेंगी क्या”

लेखा-“अच्छा ठीक है हटा अपना हाथ”

लेखा बगल में बैठे हुए ही अपने बेटे के पैंट को खोलने लगती है और उससे खुल जाती है “ले खुल गया बाक़ी तू कर जो करना मैं यहाँ से जा रही”

अनिमेष-“क्या आप कहाँ जा रही यहाँ कूलर में रहो ना माँ नहीं तो गर्मी लगेगा कहीं और जाओगी तो”

लेखा-“मुझे अच्छे से पता है तू ये बहाना क्यों बना रहा है, तू अपने उसको हिला ले फिर मैं आ जाऊँगी”

अनिमेष-“पर आपने ही तो कहा था आपने देख रखा है फिर क्यों कहीं जा रही आपको देखकर वैसे भी इसे जल्दी आराम मिलेगा” और पैंट से अपने लंड को बाहर निकाल उसे मरोड़ने लगता है,

जिसे देख लेखा भी शर्म से लाल होने लगती है वो एक टक अपने बेटे के लंड को बस देखते हुए सोचने लगती है ये मुझे फिर क्या हो गया है सही ग़लत का पता होने के बाद भी मैं इससे दूर क्यों नहीं जा पा रही हूँ,

लेखा की चूत की फाँको में रस भरना सुरु हो जाता है
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वो अपनी चूत को अपने बेटे की तरह छूना चाह रही थी पर झिझक उसे रोक रही थी फिर उसने नजरे कहीं और घुमा ली,

अनिमेष-“क्या हुआ माँ देखो ना इसमें उस दिन की तरह आज भी ज़्यादा दर्द कर रहा है कोई दवा होगी क्या दुकान में”

लेखा ने नज़रे कहीं और रखे ही उससे कहती है “रुक देखती हूँ” और दुकान से एक जेल वाली क्रीम लेके अपने बेटे को देने लगती है,

अनिमेष-“माँ मुझे ठीक से नहीं दिख रहा आप थोड़ा लगा दोगी क्या”

ये लेखा के लिए थोड़ा सोचने वाली बात थी कि उसके बेटे ने आज उसे अप्रत्यक्ष रूप से अपने लंड को छूने को निमंत्रण दे दिया था,

लेखा-“नहीं मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली, तू मेरा बेटा है और मैं तेरी माँ तो ऐसा होना नामुमकिन है”

अनिमेष को पता चल गया गया अपनी माँ के सामने भले कुछ कर ले पर उसको पाना थोड़ा मुश्किल रहेगा और उसने एक और प्रयत्न किया “माँ थोडा जल्दी कर दो ताकि मैं शांत हो जाऊ”

लेखा ने फिर से क्रीम को देते हुए ना में सिर हिलायी पर कहीं ना कहीं वो चाह भी रही थी, उसने अपने बेटे के लंड को फिर से तिरछी नजरों से देखा जो अपने पूरे तने हुए आकार में था और बार बार ठुमका मार रहा था जिससे उसके चूत में रस अब बहने लगी थी,

अनिमेष-“ठीक है माँ मुझे दर्द हो उससे आपको क्या मतलब लाइये, दवाई लगा के मैं ख़ुद शांत हो जाऊँगा”

वो दवाई लेने जैसे ही हाथ बड़ाया लेखा ने अपने हाथ पीछे करते हुए कहा “बड़ा मतलबी है रे तू अपनी माँ को प्यार से बोलके फसा रहा है ना” और अपने हाथ में क्रीम को लेकर उसे अपने बेटे के लंड की तरफ़ बड़ा देती है।

दूसरा दृश्य यही तक दोस्तो
कहानी जारी रहेगी
 

Mass

Well-Known Member
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21,490
229
अध्याय-8
पहला दृश्य

दोपहर का समय और सूरज ऊपर से बाजू में था, शाम में ठंडी हवाएं चलती हैं पर आज दिन में गर्मी कुछ ज़्यादा थी, फिर भी जिन्हें अपना जरूरी काम करना था वो लोग तो लगे ही थे और जिनको कोई जरूरी काम नहीं वो या तो घर पे आराम या काम के जगह में आराम करने लगे थे,

शोर मचाते जगह से बाहर आके रिंकी ने कमल को कॉल लगाया “भाई कहा हो”
सामने से कमल ने जवाब दिया “अभी तो कॉलेज में ही हूँ”
रिंकी ने फिर पूछा “आप आ रहे हो ना”

कमल ने थोड़ा रुक कर जवाब दिया “रिंकी आज बाहर गर्मी ज़्यादा है शाम को चले क्या”,

रिंकी-“भाई शाम को बाज़ार जाने में भीड़ मिलेगा और घर पहुँचते फिर रात ना हो जाए अभी आओ ना”

कमल-“अच्छा ठिक है तू बाहर रहना मैं अभी निकलता हूँ यहाँ से”

कमल अनिमेष को कॉल करके बता देता है और अगले बीस मिनट में रिक्शा लेके रिंकी के कॉलेज के बाहर पहुँच गया और उसे आने को कहा, रिंकी ने किसी को बाय बोलते हुए कॉल का इशारा करते हुए कमल के साथ रिक्शा में बैठ गई,

“कोन था वो लड़का जिसे बाद में कॉल करने का इशारा कर रही थी” कमल ने पूछा,

रिंकी ने पहले रिक्शा वाले को चलने कहा फिर कमल को जवाब देते हुए बोली “वो मेरी एक सहेली का भाई है”

कमल ने फिर से पूछा “तो तूने उसे क्यों कॉल का इशारा किया मैंने ये पूछा था”
रिंकी ने कहा “अरे भाई वो मुझे कुछ नोट्स भेजने है अपनी सहेली के लिए उसके मोबाइल में बस इसलिए मैं ने उसे इशारे से कहा की कॉल करके भेज दूँगी”

कमल को रिंकी का जवाब थोड़ा अजीब लगा और रिंकी को मस्ती में परेशान करते हुए “मुझे लगा तेरा बॉयफ्रेंड होगा”
रिंकी ने कमल को घूर के देखा “आप कुछ ज़्यादा ही सोच लिए भाई” और हसने लगी, थोड़ी देर में दोनों भाई बहन बाज़ार पहुँच चुके थे,

कमल-“क्या क्या ख़रीदना है तू लेके आते जाना मैं बाहर ही वेट कर लूँगा”

रिंकी-“क्या भाई आप बाहर क्यों रहोगे, नहीं आप भी मेरे साथ अंदर चलना”

रिंकी एक स्टेशनरी के दुकान में जाके कॉलेज के लिए जरूरी सामान लेके बाहर आ जाती है फिर कमल को आगे चलने बोलती है,

आगे चलके एक दवाई की दुकान में जाके दुकानदार से कुछ कहती है और वो उसे एक कागज में लपेट के दे देता है जिसे लेके रिंकी नीचे आ जाती है,

कमल तुरंत पूछता है “ये कागज में पैक करके क्या दिया उसने” रिंकी को थोड़ी हसी आ गई और उसे कहा-“कुछ नहीं है भैया बस दवाई है”

कमल को जिज्ञासा हुई “ऐसा कोन सा दवाई है जो कागज़ में देते है” रिंकी ने थोड़ी देर कमल को देखा फिर थैले में दिखाते हुए बोली “लो आप खुद ही देख लो”,

कमल ने जैसे ही पैड्स को देखा उसे थोड़ा असहज महसूस हुआ कि उसने क्यों देखने की इच्छा ज़ाहिर की और बिना कुछ कहे आगे बढ़ने लगा तो पीछे से रिंकी ने कहा “पता चल गया ना भाई क्या है” और हस्ते हुए आगे बोलने लगी “आपको तो पता ही है ये लड़कियाँ कब लेते है”

कमल को ऐसे सवाल रिंकी में मुंह से सुनने की आदत नहीं थी फिर भी कमल ने बिना हिचक के कहा “हा हा अच्छे से पता है तूने इसे क्यों लिया है और ये तो घर के दुकान में भी होगा ना चाची से पूछ लेती”,

रिंकी ने भी शर्म से लाल होते हुए आगे जवाब दिया “बड़ी माँ को पूछा था मैंने पर उन्होंने कहा आजकल में आ जाएगा तो उससे अच्छा मैंने यही से लिए”

दोनों भाई बहन इस तरह बात कर रहे थे जैसे ये सब उनके लिए पुराना हो पर कहीं ना कहीं इस तरह बात करने से दोनों में एक नया रिश्ता बन रहा था जिससे दोनों ही अंजान थे, रिंकी जो पहले ही कमल को उसके लंड हिलाते देख चुकी थी, उसकी वजह से रिंकी का कमल के लिए लगाव और बढ़ती जा रही थी,

कहीं ना कहीं अब रिंकी में भी अपने भाई के लिए हवस जाग चुकी थी, जो उसे कमल की तरफ़ खिच रही थी वो ना चाहते हुए कमल से नज़दीकियाँ बढ़ाना चाह रही थी,

कमल ने रिंकी को हिलाते हुए कहा-“कहा खो गई तू चलते चलते और क्या ख़रीदना बचा है, सामान लेले जल्दी फिर नाश्ता खाते है कुछ मुझे बहुत भूख लग रही”,

रिंकी बिना कुछ बोले श्रृंगार सदन की दुकान में जाती है और पाँच मिनट में बाहर आके कमल से कहती है “भाई चलो कहा नाश्ता करना है मेरा ख़रीदारी हो गया”

दोनों एक होटल में पहुँच वहाँ नाश्ता करने लगते है कब साढ़े तीन बज गए बाज़ार में दोनों को पता ही नहीं चला, वहाँ से रिक्शा लेके बस स्टेशन पहुँच गए,

बस में चढ़कर दोनों भाई बहन सबसे पीछे की एक ही सीट पर बैठे पहले रिंकी अंदर गई फिर कमल उसके बाजू में बैठ गया अभी ज़्यादा यात्री नहीं बैठे थे, बस निकलने में अभी थोड़ा समय था, अचानक कमल ने रिंकी से कहा-“तू आज मुझसे कुछ पूछने वाली थी ना अकेले में बता क्या था वो,

रिंकी को भी अचानक याद आया-“कुछ नहीं भाई इतना जरूरी नहीं है रहने दो”

कमल-“पूछना इतना क्यों सोच रही है”

रिंकी-“नहीं भैया आप मुझपे गुस्सा करोगे रहने दीजिए”

कमल थोड़ा सोच में पड़ गया ये ऐसा क्या पूछने वाली है-“अरे नहीं करूँगा तू पूछ तो सही”

रिंकी-“नहीं पहले आप वादा करो गुस्सा नहीं करोगे”

कमल-“हा पक्का वादा है गुस्सा नहीं करूँगा”

रिंकी थोड़े देर शांत रहती है फिर कहती है-“भैया मैंने आपके रूम से एक किताब उठाई थी वो आप ने अपने पास क्यों रखा था”

कमल को कुछ समझ नहीं आया-“अरे कौनसा किताब कैसा किताब अच्छे से बतायेगी”

रिंकी-“भैया वही किताब जिसमे कुछ गंदी फोटो है” और शर्म से लाल हो गई,

अब कमल की बारी थी डरने की वो रिंकी से कहता है-“कौनसा, ऐसा मेरे पास ऐसा कोई किताब नहीं है” फिर कहीं और देखने लगा जैसे सच में अनजान हो,

रिंकी-“भैया झूठ मत बोलो घर में अपने रूम पे रखी हूँ जो मैंने आपके किताबों से निकाली थी”

कमल ने सोचा अब छुपाने से कोई मतलब नहीं घर पे किसी को बता दे उससे पहले-“इसका मतलब वो किताब तू लेके गई थी, वो मेरे दोस्त ने गलती से मेरे बैग में डाल दिया था बस और कुछ नहीं”

रिंकी-“अब आए ना लाइन में आप और आप क्या करते उसे देख के”

कमल-“पहले तू ये बता उसे देखी तो उठायी क्यों और लेके अपने पास क्यों रखी है”

रिंकी को कुछ बोलते नहीं बना फिर उसने वो कहा जो कमल के लिए फिर से नया था, रिंकी ने कहा-“वो किताब में तस्वीरों को देखी तो ख़ुद को रोक नहीं पायी देखने से और उसे अच्छे से पूरा देखने के लिए रूम पे ले गई”

कमल-“ग़लत बात रिंकी ऐसी चीजे तुम्हें नहीं रखनी चाहिए वापस देना मुझे”

रिंकी-“सॉरी भैया पर आप भी तो देखे ना और उस रात आपने” फिर चुप होके बाहर देखने लगी,

कमल को फिर एक झटका लगा उसे याद आया “कहीं उस रात मुझे और अनिमेष को इसने मूठ मारते तो नहीं देख लिया ओह शीट अब मैं इसे क्या बोलूँगा”

कमल हड़बड़ाते हुए-“रिंकी इधर देख हा मैंने देखा क्यूंकि मैं लड़का हूँ और उस रात मैंने क्या”

रिंकी बिना किसी डर के-“अच्छा आप लड़के हो तो आप देख सकते हो, मैं क्यों नहीं देख सकती मेरी भी फीलिंग्स है मेरी भी फैंटेसी है”

कमल बात को लंबा नहीं खिंचना चाह रहा था-“ठीक है रख ले उस किताब को अपने पास और जितना मर्जी देख कर अपनी फैंटेसी पूरा कर लेना” और ये बोलके हसने लगा

रिंकी-“हल्के मुक्के मारते हुए भैया आप बहुत गंदे हो अब आप मेरा मजाक उड़ा रहे हो, मजे तो आप ले रहे थे उस रात” और मुंह पे हाथ रख मुस्कुराने लगी

कमल को समझ आ गया अब रिंकी से कुछ भी नहीं छुपा सकता-“मतलब उस रात तूने मुझे सब कुछ करते देख लिया ना”

रिंकी-“सॉरी भैया जानबूझ के नहीं गलती से पहुँच गई थी”

कमल-“कितनी देर तक देखा तूने मुझे वो करते”

रिंकी-“छी भैया मुझे शर्म आ रही वो सब बताने में मत पूछो”

कमल-“अच्छा जब जानना था तब पूछने में शर्म नहीं आई अब बताने में शर्मा रही”

रिंकी-“ठीक है तो सुनो मैं जब पानी लेने नीचे आई तो देखा आपके कमरे की बल्ब जल रही है तो मैं खिड़की के पास गई, ये देखने की आप लोग क्यों नहीं सोए तभी मैंने देखा अनिमेष भैया आपके बगल में सो रहे है और आप कुछ बोलते हुए अपना वो हिला रहे है बस”

रिंकी के इतना सब बताने के बाद कमल के लंड में हलचल मच गई, पैंट के अंदर ही अकड़ना सुरु हो गया और वहाँ रिंकी की चूत भी अब धीरे से रिसने लग गई, उसकी चूत की फाँको में रस फैलने लगा
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उसे कमल का हिलाता हुआ मोटा लंबा तगड़ा लंड फिर से याद आने लगा जिससे चूत और रिसने लगी,


दोनों भाई बहन अपने भावनाओं को अंदर रखे बिल्कुल शांत बैठे थे, थोड़ी देर तक शांति के बाद एक आवाज आई “बस निकलने वाला है किसी का जानकर बाहर हो तो बुला लो”

पहला दृश्य यही तक दोस्तों
कहानी जारी रहेगी
Interesting sexy conversation between कमल and रिंकी ...

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अध्याय-8
तीसरा दृश्य

अंतिम पल - उसे सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उसने अपने बहु के मुँह से ये सुना “आह बाबू जी आप क्यों नहीं आ रहे मेरे पास यहाँ आपकी बहू चूत सहला रही और आप नीचे आराम कर रहे” चंचल को थोड़ा भी अंदाज़ा नहीं था उसके ससुर जो बाजू में खड़े उसकी हर एक बात ध्यान से सुन रहे है,

अब उसके आगे
चंचल तो बस उस कहानी में खो चुकी है जिसे वो अपने साथ घटित समझ बैठी थी वो लगातार आहे भरते अपनी चूत सहलाते बोले जा रही थी “आहह आहह ये मुझे क्या हो गया है इतना मज़ा आज तक चूत सहलाने में नहीं आया है” अपनी आँखें बंद कर चंचल ने फिर धीरे से चूत में दो उँगली डाल दी,
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“आह माँ ये मीठी दर्द और रिश्ता हुआ पानी कैसे मेरे एक हफ़्ते निकलेंगे बिना लंड के आहह बाबू जी अब तो बस आप ही इसे रोक सकते है” अब उसकी दोनो उँगली अंदर बाहर होने लगी थी,
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सीढ़ियों में खड़ा उसका ससुर पजामे के अंदर हाथ डाल अपने लंड को मसलने लगा, इतने पास से अपनी बड़ी बहू की चूत को देखना उसके लिए किसी सौभाग्य के कम नहीं था, उसके लिए अब और रुकना सही नहीं था वो अब और ऊपर अपनी बहू के पास जाना चाह रहा था,

धीरे से ऊपर चढ़ते हुए उसने अपनी बहू के पास जाते हुए कहा-“बहू इतनी याद करोगी तो आना ही पड़ेगा”

चंचल ने जैसे ही ये आवाज सुना उसकी हालत ऐसा हुआ जैसे किसी सदमे में चली गई हो और अचानक से जब नजरे एक दूसरे से टकराई तो पूरा सन्नाटा फेल गया, आस पास बस चिड़ियों और हवाओं की आवाज ही आ रही थी,

चंचल ने अपने आप को और साड़ी को ठीक करते हुए बिल्कुल शांत आवाज में कहा “मैं मैं वो वो बाबू जी”

रमेश-“कुछ कहने की जरूरत नहीं बहू मैंने सब देख लिया है और सुन भी लिया जो तुम कह रही थी”

चंचल शर्म से लाल हुए जा रही उसे ये सोचकर की उसके पति के अलावा किसी और मर्द जो उसके ससुर है ने आज उसे बिल्कुल अर्ध नग्न अवस्था में देखा है वो भी उन्ही को याद कर अपनी चूत में उँगली करते हुए पकड़ी गई है,

चंचल-“वो बाबू जी आपके मोबाइल मैं आपको देने ही वाली थी कि उसमे”

रमेश बिना किसी डर और शर्म के -“तो क्या तुम्हें वो मिला जो मैं थोड़ी देर पहले देख और पढ़ रहा था”

चंचल सिर को नीचे किए हुए कहती है-“मुझे नहीं पता था बाबू जी आप अपने ही बहू के लिए ऐसा सोचते है”

रमेश-“माफ करना बहू पर तुम हो ही इतनी खूबसूरत, तुम्हारा गदराया बदन देख देख मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया और तुम्हारे लिए ये सब सोचने लगा, पर तुम कबसे ऐसा करने लगी जो अभी कर रही थी”

चंचल को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो क्या बोले और कहा से सुरु करे, वो भी अब हवस के जाल में फस चुकी थी उसके ससुर ने उसे जिस हालत में देखा और रोका था जो अभी भी उसकी चूत की अधूरी प्यास थी, ये सोच कर ही उसकी उत्तेजना फिर से बड़ने लगी,

चंचल-“नहीं बाबू जी मैं नहीं बता सकती मुझे बताने में अजीब लग रहा है”

रमेश अपनी बहू के और नजदीक जाके उसके हाथो को पकड़ के उसे सहलाते हुए कहता है-“बहू बताओ मुझे सुरु से जानना है कि ये सब तुम्हें कबसे लगा”

चंचल ने जैसे ही देखा उसके ससुर नज़दीक आके उसके हाथ को पकड़ कर फिर से पूछ रहे है तो चंचल के शरीर में डर में साथ एक झनझनाहट दौड़ गई की जैसे अभी क्या हुआ, वो अब हल्की मदहोश सी होने लगी थी,

आगे बढ़ते हुए चंचल ने सारी बात बताई की कैसे उनका देखना, उससे द्विअर्थी बाते करना उसे अच्छा लगने लगा, फिर ट्यूबवेल में उनको हाथ पैर धोते समय उनका वो दिखना, फिर आज सुबह उनका चंचल को गिरते हुए बचाने के लिए उसकी कमर को पकड़ना,

रमेश बैठे बैठे अपनी बहू के पीछे हाथ ले जाके उसे गले से लगाना चाहा पर चंचल आज अचानक हुए इन सब के लिए तैयार नहीं थी वो पीछे हटना चाही पर उसके ससुर ने कस कर उसे अपनी बाहो ने जकड़ लिए जिससे चंचल के बड़े बड़े चूचे सीधे रमेश के सीने से जा लगे जिसके अहसास से दोनों ससुर बहू के शरीर में एक अलग ही उत्तेजना का संचार होना सुरु हो चुका था,
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चंचल आँखे बंद कर इस नए अहसास को महसूस करना चाह रही थी पर कहीं नहीं एक डर उसे सताए जा रही थी कि कहीं वो ग़लत तो नहीं कर रही है, अपने पति और बच्चों को धोखा तो नहीं दे रही है लेकिन हवश ने उसके दिमाग़ पर क़ाबू कर लिया था वो भी अब अपने ससुर को जोर से लगे लगा ली,

रमेश ने जैसे ही देखा कि उसकी बहू ने भी उसे अपने हाथों को पीछे ले जा चुकी है वो समझ गया अब उसका आधा काम पूरा हो गया और उसका सपना पूरा होने लगने लगा था,
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वो बिना कुछ कहे अपनी बहू की पीठ को सहलाते हुए उसके चेहरे के सामने आकर उसके होंठों पे अपने होठ रख दिया और चंचल की आँखे भी बंद हो गई, वो इस पल को अपने मन की आखों से देख रही थी,
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रमेश अपनी बहू के होंठों को चूसना सुरु कर दिया था कभी ऊपर तो कभी नीचे के अधरों कों अपने होंठों से लगातार चूसे जा रहा था साथ ही उसके हाथ भी पीछे पीठ पर चल रहे थे, उसकी बहू चंचल भी अब अपने ससुर का साथ देने लगी थी,

रमेश ने अब अपना एक हाथ से उसके बड़े से बाँयी चूचे पर रख उसे मसलना सुरु कर दिया ये चंचल के हवस को भड़काने के लिए किसी आग से कम नहीं था, अपने चूचे मसले जाने से वो और उत्तेजित हो चुकी थी उसकी चूत अब उसका साथ नहीं दे रही थी इसलिए पानी बहाना सुरु कर दी,
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उसके ससुर ने उसे वही मचान में धीरे से आवाज में लेटने को कहा चंचल बिना आँख खोले वही लेट गई और आने वाले पल के लिए उत्तेजित थी, रमेश भी बाजू में लेट के फिर से चंचल के गर्दन को चूमना सुरु किया साथ ही उसने अपने एक हाथ से अपनी बहू के ब्लाउज़ के बटन को खोलना भी चाहा पर नाकाम रहा,

चंचल आँखे खोल देखने लगी और अपने ससुर से बोली-“बाबू जी ये अभी खोलना जरूरी है क्या मुझे इतनी जल्दी ये सब करना ठीक नहीं लग रहा है”

रमेश-“कुछ भी ग़लत नहीं है बहू, पता है अभी मुझे और तुमको इसकी कितनी जरूरत है”

चंचल बिना कुछ बोले अपने ब्लाउज़ के बटन खोलना सुरु कर देती है और फिर जैसे ही सारे बटन खुल जाते है ब्रा के ऊपर से रमेश अपनी बहू के बड़े बड़े चूचों को मुँह में लेके चूसना सुरु कर देता है,
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एक मुंह में एक हाथ में लेके पूरे मजे लेने लगता है, वही चंचल को तो जैसे अपने आप में कोई होश ही ना हो और अपने ससुर के सिर को अपने हाथों से चुचो पर ज़ोर से दबाने लग जाती है “आह आह बाबू जी ऐसे ही चूसो और जोर से चूसो बहुत अच्छा लग रहा है”

रमेश अब अपनी बहू के ऊपर आ जाता है और ब्रा को बगल में करते हुए उसके दोनों चुचो को बाहर निकालने लगता है फिर से वही एक को मुंह में एक को हाथ में लेके उनके साथ खेलने लगता है फिर से थोड़े देर बाद बदल लेता है,

चंचल के मुंह से लगातार आहे निकलने लगती है "आह बाबू जी खा जाइए पूरा" उसकी आंखे बंद हो गई थी वो उत्तेजना के चरम में पहुँच रही थी, जैसे ही रमेश ने अपने कमर को नीचे किया उसे अहसास हो गया की जो उसकी चूत को बाहर से छू रहा वो क्या है,

अपनी बहू के चुचो को चूसने के बाद रमेश एक बार फिर से होंठो की तरफ़ जाता है वहाँ से धीरे धीरे नीचे आते हुए दोनों हाथों को अब जोर लगा के दोनों चूचों को ज़बरदस्त तरीक़े से दबाने लगता है, चंचल की चीख निकल जाती है “आह बाबू जी आराम से आज ही पूरा कसर उतार लेंगे क्या”

रमेश-“तुम्हें नहीं पता बहू मैं कितने दिनों से ये सपना देख रहा था और वो आज पूरा हो रहा है तो मुझसे रुका नहीं जा रहा है” और हाथो को वही रखे नीचे की तरफ़ जाने लगा,

चंचल को फिर से अपने पेट पे ससुर की गर्म साँसो ही हवा ने उत्तेजित कर दिया उसकी आँखे फिर से बंद हो गई और तड़पने लगी अब वो चाह रही थी जल्दी से उसकी चूत को भर दे,

एक हाथ से साड़ी को पैरों से अलग करते हूँ रमेश में उसकी गोरी गोरी जाँघो को सहलाने लगा रमेश का लंड किसी सरिया की भाती कठोर हो चुका था अब उसने दोनों हाथों का सहारा लेके अपने बहू के टांगो को फैलाना चाहा,

पर चंचल ने शर्म के मारे अपने ससुर को मना करना चाहा और दोनों हाथों को अपने चूत के ऊपर चड्डी पे रख दिया, वो नहीं में सिर हिलाने लगी पर यहाँ से अब पीछे हटना मतलब रमेश के लिए दोबारा ये मौक़ा नहीं मिलने के बराबर था,

वो चंचल की चड्डी को उसकी गांड की तरफ़ से खोलना सुरूर किया और अब उसे सफलता मिल चुकी थी उसने देखा उसकी बहू ने अपने हाथो से चेहरे को ढक लिया है,

चड्डी को बगल में रख उसने अपना मुँह अपनी बहू की चूत की तरफ़ ले जाने लगा जिसे चंचल हल्की आँखों से देख रही थी पर हाथ अब भी उसके चेहरे में था, उसके ससुर ने बहू के दोनों टांगो को अच्छे से और फैला दिया जिससे चंचल की चूत का मुँह खुल गया,
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एकदम गोरी अंदर से लाल बड़ी बड़ी फांकों वाली चूत जिसे देख रमेश के लंड ने वही एक बूंद पानी छोड़ दिया उसने दोनों हाथो से उसे खोल दिया,

चंचल अब और ज़्यादा तड़पने लगी उसे अब बस एक की चाह है किसी तरह उसकी चुत से पानी निकल जाए, उसका इतना ही सोचना था कि रमेश अचानक अपना मुँह उसकी चूत में रख देता है, चंचल को लगा जैसे वो अभी ही झड़ जाएगी,

उसका ससुर अब लगातार अपने मुंह और जीभ से चंचल के चुत का चूस और चाट रहा था, चंचल के दोनों हाथ अब अपने ससुर के सर के बालों में थी और उसे अपनी चुत की ओर धकेल रही थी,
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इतने अच्छे से चुसाई और उँगली की अधूरी रह गई प्यास ने चंचल को अंतिम पड़ाव पे लाके रख दिया उसकी आँखो से हल्के आंशु भी निकल आए वो अपने ससुर की इतनी चुसायी सह नहीं पायी और एक जोरदार आवाज के साथ अपनी कमर उचकाते हुए लगातार अपने ससुर के मुँह में झड़ती चली गई,
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तीसरा दृश्य यही तक दोस्तो
कहानी जारी रहेगी

मिलते अब अगले अध्याय में दोस्तो ये अध्याय कैसा रहा अपनी राय जरूर देना धन्यवाद 🙏
 
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