अध्याय-8
तीसरा दृश्य
अंतिम पल - उसे सबसे ज्यादा आश्चर्य तब हुआ जब उसने अपने बहु के मुँह से ये सुना “आह बाबू जी आप क्यों नहीं आ रहे मेरे पास यहाँ आपकी बहू चूत सहला रही और आप नीचे आराम कर रहे” चंचल को थोड़ा भी अंदाज़ा नहीं था उसके ससुर जो बाजू में खड़े उसकी हर एक बात ध्यान से सुन रहे है,
अब उसके आगे
चंचल तो बस उस कहानी में खो चुकी है जिसे वो अपने साथ घटित समझ बैठी थी वो लगातार आहे भरते अपनी चूत सहलाते बोले जा रही थी “आहह आहह ये मुझे क्या हो गया है इतना मज़ा आज तक चूत सहलाने में नहीं आया है” अपनी आँखें बंद कर चंचल ने फिर धीरे से चूत में दो उँगली डाल दी,
“आह माँ ये मीठी दर्द और रिश्ता हुआ पानी कैसे मेरे एक हफ़्ते निकलेंगे बिना लंड के आहह बाबू जी अब तो बस आप ही इसे रोक सकते है” अब उसकी दोनो उँगली अंदर बाहर होने लगी थी,
सीढ़ियों में खड़ा उसका ससुर पजामे के अंदर हाथ डाल अपने लंड को मसलने लगा, इतने पास से अपनी बड़ी बहू की चूत को देखना उसके लिए किसी सौभाग्य के कम नहीं था, उसके लिए अब और रुकना सही नहीं था वो अब और ऊपर अपनी बहू के पास जाना चाह रहा था,
धीरे से ऊपर चढ़ते हुए उसने अपनी बहू के पास जाते हुए कहा-“बहू इतनी याद करोगी तो आना ही पड़ेगा”
चंचल ने जैसे ही ये आवाज सुना उसकी हालत ऐसा हुआ जैसे किसी सदमे में चली गई हो और अचानक से जब नजरे एक दूसरे से टकराई तो पूरा सन्नाटा फेल गया, आस पास बस चिड़ियों और हवाओं की आवाज ही आ रही थी,
चंचल ने अपने आप को और साड़ी को ठीक करते हुए बिल्कुल शांत आवाज में कहा “मैं मैं वो वो बाबू जी”
रमेश-“कुछ कहने की जरूरत नहीं बहू मैंने सब देख लिया है और सुन भी लिया जो तुम कह रही थी”
चंचल शर्म से लाल हुए जा रही उसे ये सोचकर की उसके पति के अलावा किसी और मर्द जो उसके ससुर है ने आज उसे बिल्कुल अर्ध नग्न अवस्था में देखा है वो भी उन्ही को याद कर अपनी चूत में उँगली करते हुए पकड़ी गई है,
चंचल-“वो बाबू जी आपके मोबाइल मैं आपको देने ही वाली थी कि उसमे”
रमेश बिना किसी डर और शर्म के -“तो क्या तुम्हें वो मिला जो मैं थोड़ी देर पहले देख और पढ़ रहा था”
चंचल सिर को नीचे किए हुए कहती है-“मुझे नहीं पता था बाबू जी आप अपने ही बहू के लिए ऐसा सोचते है”
रमेश-“माफ करना बहू पर तुम हो ही इतनी खूबसूरत, तुम्हारा गदराया बदन देख देख मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया और तुम्हारे लिए ये सब सोचने लगा, पर तुम कबसे ऐसा करने लगी जो अभी कर रही थी”
चंचल को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो क्या बोले और कहा से सुरु करे, वो भी अब हवस के जाल में फस चुकी थी उसके ससुर ने उसे जिस हालत में देखा और रोका था जो अभी भी उसकी चूत की अधूरी प्यास थी, ये सोच कर ही उसकी उत्तेजना फिर से बड़ने लगी,
चंचल-“नहीं बाबू जी मैं नहीं बता सकती मुझे बताने में अजीब लग रहा है”
रमेश अपनी बहू के और नजदीक जाके उसके हाथो को पकड़ के उसे सहलाते हुए कहता है-“बहू बताओ मुझे सुरु से जानना है कि ये सब तुम्हें कबसे लगा”
चंचल ने जैसे ही देखा उसके ससुर नज़दीक आके उसके हाथ को पकड़ कर फिर से पूछ रहे है तो चंचल के शरीर में डर में साथ एक झनझनाहट दौड़ गई की जैसे अभी क्या हुआ, वो अब हल्की मदहोश सी होने लगी थी,
आगे बढ़ते हुए चंचल ने सारी बात बताई की कैसे उनका देखना, उससे द्विअर्थी बाते करना उसे अच्छा लगने लगा, फिर ट्यूबवेल में उनको हाथ पैर धोते समय उनका वो दिखना, फिर आज सुबह उनका चंचल को गिरते हुए बचाने के लिए उसकी कमर को पकड़ना,
रमेश बैठे बैठे अपनी बहू के पीछे हाथ ले जाके उसे गले से लगाना चाहा पर चंचल आज अचानक हुए इन सब के लिए तैयार नहीं थी वो पीछे हटना चाही पर उसके ससुर ने कस कर उसे अपनी बाहो ने जकड़ लिए जिससे चंचल के बड़े बड़े चूचे सीधे रमेश के सीने से जा लगे जिसके अहसास से दोनों ससुर बहू के शरीर में एक अलग ही उत्तेजना का संचार होना सुरु हो चुका था,
चंचल आँखे बंद कर इस नए अहसास को महसूस करना चाह रही थी पर कहीं नहीं एक डर उसे सताए जा रही थी कि कहीं वो ग़लत तो नहीं कर रही है, अपने पति और बच्चों को धोखा तो नहीं दे रही है लेकिन हवश ने उसके दिमाग़ पर क़ाबू कर लिया था वो भी अब अपने ससुर को जोर से लगे लगा ली,
रमेश ने जैसे ही देखा कि उसकी बहू ने भी उसे अपने हाथों को पीछे ले जा चुकी है वो समझ गया अब उसका आधा काम पूरा हो गया और उसका सपना पूरा होने लगने लगा था,
वो बिना कुछ कहे अपनी बहू की पीठ को सहलाते हुए उसके चेहरे के सामने आकर उसके होंठों पे अपने होठ रख दिया और चंचल की आँखे भी बंद हो गई, वो इस पल को अपने मन की आखों से देख रही थी,
रमेश अपनी बहू के होंठों को चूसना सुरु कर दिया था कभी ऊपर तो कभी नीचे के अधरों कों अपने होंठों से लगातार चूसे जा रहा था साथ ही उसके हाथ भी पीछे पीठ पर चल रहे थे, उसकी बहू चंचल भी अब अपने ससुर का साथ देने लगी थी,
रमेश ने अब अपना एक हाथ से उसके बड़े से बाँयी चूचे पर रख उसे मसलना सुरु कर दिया ये चंचल के हवस को भड़काने के लिए किसी आग से कम नहीं था, अपने चूचे मसले जाने से वो और उत्तेजित हो चुकी थी उसकी चूत अब उसका साथ नहीं दे रही थी इसलिए पानी बहाना सुरु कर दी,
उसके ससुर ने उसे वही मचान में धीरे से आवाज में लेटने को कहा चंचल बिना आँख खोले वही लेट गई और आने वाले पल के लिए उत्तेजित थी, रमेश भी बाजू में लेट के फिर से चंचल के गर्दन को चूमना सुरु किया साथ ही उसने अपने एक हाथ से अपनी बहू के ब्लाउज़ के बटन को खोलना भी चाहा पर नाकाम रहा,
चंचल आँखे खोल देखने लगी और अपने ससुर से बोली-“बाबू जी ये अभी खोलना जरूरी है क्या मुझे इतनी जल्दी ये सब करना ठीक नहीं लग रहा है”
रमेश-“कुछ भी ग़लत नहीं है बहू, पता है अभी मुझे और तुमको इसकी कितनी जरूरत है”
चंचल बिना कुछ बोले अपने ब्लाउज़ के बटन खोलना सुरु कर देती है और फिर जैसे ही सारे बटन खुल जाते है ब्रा के ऊपर से रमेश अपनी बहू के बड़े बड़े चूचों को मुँह में लेके चूसना सुरु कर देता है,
एक मुंह में एक हाथ में लेके पूरे मजे लेने लगता है, वही चंचल को तो जैसे अपने आप में कोई होश ही ना हो और अपने ससुर के सिर को अपने हाथों से चुचो पर ज़ोर से दबाने लग जाती है “आह आह बाबू जी ऐसे ही चूसो और जोर से चूसो बहुत अच्छा लग रहा है”
रमेश अब अपनी बहू के ऊपर आ जाता है और ब्रा को बगल में करते हुए उसके दोनों चुचो को बाहर निकालने लगता है फिर से वही एक को मुंह में एक को हाथ में लेके उनके साथ खेलने लगता है फिर से थोड़े देर बाद बदल लेता है,
चंचल के मुंह से लगातार आहे निकलने लगती है "आह बाबू जी खा जाइए पूरा" उसकी आंखे बंद हो गई थी वो उत्तेजना के चरम में पहुँच रही थी, जैसे ही रमेश ने अपने कमर को नीचे किया उसे अहसास हो गया की जो उसकी चूत को बाहर से छू रहा वो क्या है,
अपनी बहू के चुचो को चूसने के बाद रमेश एक बार फिर से होंठो की तरफ़ जाता है वहाँ से धीरे धीरे नीचे आते हुए दोनों हाथों को अब जोर लगा के दोनों चूचों को ज़बरदस्त तरीक़े से दबाने लगता है, चंचल की चीख निकल जाती है “आह बाबू जी आराम से आज ही पूरा कसर उतार लेंगे क्या”
रमेश-“तुम्हें नहीं पता बहू मैं कितने दिनों से ये सपना देख रहा था और वो आज पूरा हो रहा है तो मुझसे रुका नहीं जा रहा है” और हाथो को वही रखे नीचे की तरफ़ जाने लगा,
चंचल को फिर से अपने पेट पे ससुर की गर्म साँसो ही हवा ने उत्तेजित कर दिया उसकी आँखे फिर से बंद हो गई और तड़पने लगी अब वो चाह रही थी जल्दी से उसकी चूत को भर दे,
एक हाथ से साड़ी को पैरों से अलग करते हूँ रमेश में उसकी गोरी गोरी जाँघो को सहलाने लगा रमेश का लंड किसी सरिया की भाती कठोर हो चुका था अब उसने दोनों हाथों का सहारा लेके अपने बहू के टांगो को फैलाना चाहा,
पर चंचल ने शर्म के मारे अपने ससुर को मना करना चाहा और दोनों हाथों को अपने चूत के ऊपर चड्डी पे रख दिया, वो नहीं में सिर हिलाने लगी पर यहाँ से अब पीछे हटना मतलब रमेश के लिए दोबारा ये मौक़ा नहीं मिलने के बराबर था,
वो चंचल की चड्डी को उसकी गांड की तरफ़ से खोलना सुरूर किया और अब उसे सफलता मिल चुकी थी उसने देखा उसकी बहू ने अपने हाथो से चेहरे को ढक लिया है,
चड्डी को बगल में रख उसने अपना मुँह अपनी बहू की चूत की तरफ़ ले जाने लगा जिसे चंचल हल्की आँखों से देख रही थी पर हाथ अब भी उसके चेहरे में था, उसके ससुर ने बहू के दोनों टांगो को अच्छे से और फैला दिया जिससे चंचल की चूत का मुँह खुल गया,
एकदम गोरी अंदर से लाल बड़ी बड़ी फांकों वाली चूत जिसे देख रमेश के लंड ने वही एक बूंद पानी छोड़ दिया उसने दोनों हाथो से उसे खोल दिया,
चंचल अब और ज़्यादा तड़पने लगी उसे अब बस एक की चाह है किसी तरह उसकी चुत से पानी निकल जाए, उसका इतना ही सोचना था कि रमेश अचानक अपना मुँह उसकी चूत में रख देता है, चंचल को लगा जैसे वो अभी ही झड़ जाएगी,
उसका ससुर अब लगातार अपने मुंह और जीभ से चंचल के चुत का चूस और चाट रहा था, चंचल के दोनों हाथ अब अपने ससुर के सर के बालों में थी और उसे अपनी चुत की ओर धकेल रही थी,
इतने अच्छे से चुसाई और उँगली की अधूरी रह गई प्यास ने चंचल को अंतिम पड़ाव पे लाके रख दिया उसकी आँखो से हल्के आंशु भी निकल आए वो अपने ससुर की इतनी चुसायी सह नहीं पायी और एक जोरदार आवाज के साथ अपनी कमर उचकाते हुए लगातार अपने ससुर के मुँह में झड़ती चली गई,
तीसरा दृश्य यही तक दोस्तो
कहानी जारी रहेगी
मिलते अब अगले अध्याय में दोस्तो ये अध्याय कैसा रहा अपनी राय जरूर देना धन्यवाद 