अध्याय-9
पहला हथियार
दोनों भाई बहन अपनी भावनाओं को अंदर रखे बिल्कुल शांत बैठे थे, थोड़ी देर तक शांति के बाद एक आवाज आई “बस निकलने वाला है किसी का जानकर बाहर हो तो बुला लो”
शाम के पाँच बज चुके थे बस गाँव में पहुँच चुकी थी दोनों भाई बहन बस से उतर चुके थे तब से लेकर अब तक दोनो में कोई बातचीत नहीं हुई थी,
घर की तरफ़ बड़ते हुए रिंकी ने कमल से कहा-“भाई आप गुस्सा तो नहीं हो ना”
कमल-“नहीं तो मैं क्यों गुस्सा होऊँगा”
रिंकी-“मुझे लगा आप किताब को लेके गुस्सा ना हो जाओ घर पहुँच के मैं वो आपको वापस कर दूँगी”
कमल-“हा वो मुझे तुम वापस कर देना तेरे पास रखना सही नहीं है, किसी और ने देख लिए तो गड़बड़ ना हो जाए”
रिंकी-“लो भाई हम तो घर भी आ गए”
दोनों भाई बहन जैसे ही घर पहुँचे वहाँ उनकी मुलाक़ात चंचल, लेखा और उनके दादा जी से हो गई सभी चाय पीते घर के बाहर बरामदे में बैठे बात कर रहे थे,
चंचल-“बड़ी जल्दी आ गए तुम लोग बाज़ार से”
लेखा-“ये लोग कॉलेज नहीं गए थे क्या”
कमल-“चाची हम कॉलेज गए थे पर दोपहर में बाज़ार चले गए रिंकी को कुछ समान खरीदना था तो”
लेखा-“अच्छा ठीक है मुझे पता नहीं था बेटा इस लिए पूछ बैठी रिंकी क्या लेके आई बाज़ार से”
रिंकी-“कुछ ख़ास नहीं बड़ी माँ वही कॉलेज के लिए जरूरी समान और श्रृंगार समान बस”
रमेश-“अरे अब उनको जाने भी दो जाओ बेटा तुम दोनों और जल्दी से चाय पीने बाहर आ जाओ” और अपनी चाय की चुस्की लेने लगा,
दोनों भाई बहन ने एक साथ कहा ठीक है दादा जी,
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अब चलते है कुछ घंटे पहले जब लेखा दुकान में थी और अनिमेष के लंड में क्रीम लगाने वाली थी,
अनिमेष दवाई लेने जैसे ही हाथ बड़ाया लेखा ने हाथ पीछे करते हुए कहा “बड़ा मतलबी है रे तू अपनी माँ को प्यार से बोलके फसा रहा ना” और अपने हाथ में क्रीम को लेकर उसे अपने बेटे के लंड की तरफ़ बड़ा दी,
लेखा-“तू आँखे बंद कर मैं क्रीम लगा रही हूँ”
अनिमेष-“ठीक है माँ आप जल्दी से क्रीम लगाओ ताकि मुझे थोड़ा जल्दी आराम मिले”
लेखा अब हल्के से अनिमेष के लंड के टोपे को खोलते हुए क्रीम लगाते हुए पूछती है-“यहाँ दर्द हों रहा है क्या” और लंड पे हलचल होता देखती है,
अनिमेष अपने लंड पें पहली बार किसी औरत के हाथ का स्पर्श पा कर ख़ुद पे संयम खो देता है और उसके लंड ने एक ठुमका मार देता है और उसके मुह से बस एक ही शब्द निकलता है-“हाँ मां” और उसकी आँखे बंद हो जाती है,
लेखा अब उसके लंड पे क्रीम पूरी तरह लगा देती है फिर उसे मलने लगती है और देखती है अनी ने अपनी आँखे बंद कर रखी है, साथ ही वो अपने एक हाथ को साड़ी के ऊपर रख अपनी चूत को मसलने लगती है,
लेखा भी अब अपने आपे से बाहर हो रही थी उसे भी अब अपनी चूत खुले में मसलनी थी, उसने अनिमेष से कहा-“हो गया लग गया क्रीम अब तू थोड़ा आराम कर फिर दर्द ठीक हो जाएगा”
अनिमेष-“माँ दर्द तो ठीक हो जाएगा पर ये खड़ा है उसका क्या करूँ इसे तो शांत करना पड़ेगा ना”
लेखा-“हा तो ख़ुद हिला के करले मैं उस तरफ़ जा रही हूँ”
अनिमेष-"आप फिर कहीं और जा रही यही रहो ना माँ वैसे आपने मुझे पहले भी देखा है ना हिलाते हुए”
लेखा-“बेटा देखा है पर वो गलती से देखा था जानबूझ के नहीं”
अनिमेष-“तो अब देख लो ना माँ, देखो कैसे खड़ा है ये इसे शांत करने में मदद करो ना माँ”
लेखा-“बड़ा ही ढीड़ है तू ठीक है चल हिला देख रही मैं”
अनिमेष-“माँ उतने गुस्से में मत देखो मैं कोई गुनाह थोड़े कर रहा बस अपनी तकलीफ़ आपको बता के उसको दूर कर रहा हूँ”
लेखा-“ठीक है मैं गुस्सा नहीं हूँ अब तू जल्दी से शांत हो बस”
अनिमेष अब जोर से अपने लंड को हिलाने लग जाता है जिसे देख लेखा ख़ुद पे काबू नहीं कर पा रही थी वो बस अपने बेटे को लंड मसलते देख रही थी,
अनिमेष-“आह माँ कितना अच्छा लग रहा है ऐसा लग रहा ये समय यू ही बस चलता रहे”
लेखा अपने बेटे से नज़रे बचा के अपनी चूत को भी बीच बीच में सहलाते जा रही थी,
लेखा-“और कितना समय लगेगा तेरा शांत होने में”
अनिमेष-“माँ मुझे थोड़ा समय लगता है जब कुछ सामने हो रहा हो तो और जल्दी निकल सकता है जैसे उस दिन देखा था आपको और पापा को”
लेखा-“तू उस दिन की बात मत ला बस अपना हिला के जल्दी ला वरना मैं भी बहक नहीं जाऊ”
अनिमेष-“तो आप ही मेरे साथ करलो ना माँ मैंने कब मना किया है”
लेखा अपने बेटे का जवाब सुनके एक सेकंड के लिए सोचती है इसी के साथ अपना पानी भी निकाल लू, पर फिर ख़ुद पर काबू करते हुए कहती है-“नहीं मैं बाद में कर लूंगी तू अभी जल्दी कर हमे आराम भी करना है”
अनिमेष-“माँ मेरा तो आ नहीं जब तक मैं आपको उस रूप में ना देखू जो मेरे ख्यालों में आता है”
लेखा-“ओह हो तू भी ना बहुत शैतान हो चुका है अब और क्या करना पड़ेगा मुझे बता”
अनिमेष-“माँ बस एक बार अपनी वो दिखाओ ना” लेखा के चुचो की तरफ़ इशारा करते हुए”
लेखा -“अनी तू होश में है क्या कह रहा अपनी माँ से”
अनिमेष-“माफ़ करना माँ मेरा तभी जल्दी शांत होगा जब मैं आपका पहले वाला रूप देखूँगा”
लेखा-“हे भगवान ये लड़का भी ना आज पता नहीं मुझसे क्या क्या कराएगा” और अपने ब्लाउज़ के हुक्क खोलने लगती है “ले देख और कर शांत”
लेखा जो भी कर रही थी ये हो तो उसके बेटे के हिसाब से रहा था पर कहीं ना कहीं वो ये चाह भी रही थी तभी तो अपने बेटे की हर बात मान रही थी, वो तो यहाँ तक सोच बैठी थी की उसका बेटा अगर उसकी चूत के लिए भी बोलेगा तो वो भी कर देगी,
अनिमेष-“आह माँ बस ऐसे ही रहो थोड़ा और पास आइए ना” लेखा थोड़ा और पास आ जाती है अनिमेष एक हाथ से हिलाते हुए अपनी माँ के एक चूचे में हाथ रख देता है, लेखा दूर हटती है पर अनी उसे फिर से जिद्द करके पास बुला के अब अपनी माँ के चूचो को और अच्छे से सहलाते हुए अपने लंड को हिलाने लगता है,
लेखा अब अपना होश खो रही थी उसे किसी तरह अपनी चूत को भी छूना था पर वो नहीं कर पा रही थी बस अपनी टांगो को हिला के ख़ुद को रोके हुए थी, यहाँ अनिमेष अब लगातार अपने लंड को हिलाये जा रहा था जिसे लेखा बस मदहोशी में देखे जा रही थी,
अनिमेष-“माँ थोड़ी मदद करो ना आप एक बार और दवाई को अच्छे से लगाओ ना”
लेखा अपने बेटे के भावनाओ को अच्छे से समझ रही थी उसने भी बिना कुछ कहे उसके लंड को पकड़ के हिलाना सुरु कर दी, ये पहली बार था जब लेखा ने अपने पति के अलावा किसी और के लण्ङ को इस तरह हिलाया था,
उसके बेटे ने एक आह भरी “ओह माँ कितना आराम मिल रहा रहा आपके हाथो से बस ऐसे करते रहिए मुझे आराम मिल रहा है”,
अनिमेष अपने चरम सुख की ओर बढ़ चला था वो अपने माँ के कोमल हाथों का स्पर्श अपने लंड पे पाके धन्य हो चुका था उसे लगने लगा अभी कभी भी वो झड़ सकता है, लेखा अब तेजी से अपने बेटे के लंड को हिलाए जा रही थी “आह कैसा लग रहा बेटा उम्म आराम मिल रहा ना मेरे बेटे को बताओ”
अनिमेष-“हा माँ मुझे आपके हाथो से बहुत आराम मिल रहा है बस अब शांत होने ही वाला है ऐसे ही करते रहिए” अनिमेष अपने एक हाथ को अपनी माँ के कमर में रख उसे अपनी ओर खिचने लगता है और लेखा आ भी जाती है,
अनिमेष तुरंत बिना समय बर्बाद किए अपने मुह को अपनी माँ के चुचो की तरफ़ बड़ा देता है,
लेखा-“आह नहीं बेटा ये मत कर मैं कहीं कुछ ग़लत ना कर बैठू”
अनिमेष -“उम्म उम्म नहीं माँ मुझे पता है आपको भी अच्छा लग रहा है और मुझे तो और भी ज़्यादा”
लेखा-“बेटा ऐसा मत कर नहीं तो मैं अब सच में बहक जाऊँगी”
अनिमेष-“बस मेरा होने वाला है माँ”
लेखा के लगातार हिलाते रहने के मेहनत ने आख़िर कर अपना रंग ला ही दिया अनिमेष भल भला के लगातार लेखा के हाथो में झड़ने लगा, अनिमेष के मुह से बस “आह माँ अब अच्छा लग रहा है जो मैं नहीं निकाल पाया,
लेखा अपने हाथों को फिर दूर करते हुए होश में आते ही वहाँ से निकल अपने हाथो को साफ़ करने लगी और कपड़ों को ठीक करते हुए अनिमेष से कहा “तू अब आराम कर थोड़े देर में साथ घर चलेंगे”
अनिमेष आखे बंद किए हुए ही बोला “बहुत बहुत धन्यवाद माँ आपने मेरी इतनी मदद की” और उसी तरह सोता रहा,
अनिमेष के सोते ही बिस्तर और कूलर के बीच नीचे बैठ लेखा ने अपनी नजर अपने बेटे के चेहरे में देखते हुए एक बार अपनी चूत को छू के देखा जो पूरी तरह रस से भर चुकी थी
वो आगे कुछ करती उससे पहले ही,
थोड़ी देर बाद उस व्यापारी के आने के बाद उससे सामान लिए और उसे पैसे देकर वो भी थोड़ा आराम की, फिर पाँच बजे से पहले दोनों माँ बेटे घर के लिए निकल गए,
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वह खेतों में चंचल अपनी कमर उचकाते हुए लगातार अपने ससुर के मुँह में झड़ती चली गई,
और आँखे बंद कर वही चित्त होकर लेटी रही और अपने साँसो को काबू करते हुए उसके कमर अब भी झटके से धीरे धीरे हिल रहे थे, उसका ससुर भी अब अपने मुंह पर लगे उसके बहु के चुतरश को अपने हाथों से साफ़ करते हुए उसके बगल में लेट गया और साँसो को आराम देने लगा,
चंचल ने शर्म से रमेश की तरफ़ पीठ करके उसी अवस्था में लेट गई वो अब वास्तविक दुनिया में आने लगी उसे लगने लगा उसने इतना बड़ा पाप कैसे होने दिया,
रमेश अब अपने खड़े लंड को बाहर निकाल उसे मसलने लगा जो अभी भी बिल्कुल तनकर खड़ा था जैसे अपनी बहू को सलामी दे रहा हो,
उसने बहू के एक हाथ को पकड़ उसने अपने लंड पे रखना चाहा पर चंचल ने शांत रहकर ही अपना हाथ हटा लिया, रमेश ने अपने बहू का हाथ फिर से पकड़ के अपने खड़े लंड पे रखा और उसी के साथ उसे हिलाने लगा,
चंचल अपने हाथों में एक तगड़े लंड को पकड़ कर फिर से वापस हवस की दुनिया में जाने लगी, और इस बार लंड से हाथ ना हटा के अपने ससुर का साथ देने लगी, रमेश ने धीरे से अपने हाथ को हटा लिया और अपने बहू के कोमल हाथों को अपने लंड पर चलते महसूस करने लगा,
रमेश-“आह बहू तुम्हारी हाथों में क्या जादू है” साथ ही अपने एक हाथ को फिर से अपने बहू के चूत के ऊपर रख दिया,
चंचल बिना कुछ बोले अब लगातार अपने ससुर के लंड को हिलाती रही फिर रमेश उठ कर बैठ गया और अपने ऊपर के कपड़े निकाल बाजू में रख दिया और ऊपर से पूरा नंगा हो गया, साथ ही उसने चंचल के कपड़ों को भी उसके बदन से दूर करना चाहा पर चंचल ने खुद ही सब जल्दी से कर ली,
चंचल का हाथ अब उसके लंड के ऊपर ही था फिर जो अचानक हुआ उसकी चंचल को कोई उम्मीद नहीं थी, उसके ससुर ने उसके सर को पकड़ अपने लंड की तरफ़ झुकाने लगा, जैसे कह रहा हो अब मेरा पानी भी अपने मुँह से निकल दो बहू,
चंचल भी उनका साथ देते हुए अपने ससुर के लंड पे झुकती चली गई धीरे धीरे उसके मुंह में उसने अपने ससुर के बड़े मोटे लंबे लंड को आँखे फाड़ते अंदर जाते देखने लगी, वो अब पूरी मस्ती में आ चुकी थी और उसने अपने ससुर के लंड से पानी को निकालने की ठान ली,
फिर चंचल ने अपने दोनों हाथों से अपने ससुर के लंड को पकड़ के अपने पूरे मुँह में ले के अंदर बाहर करना शुरु कर दी,
रमेश-“आह बहू क्या जादू है तुम्हारे मुंह में”
चंचल लंड से मुंह हटाते हुए बोली-“आपको अच्छा लग रहा बाबू जी” और लंड को मुह में लेके फिर से चुभलाने लगती है कभी पूरा जीभ से चाटती तो कभी टोपे को कुरेदती है,
रमेश-“हा बहू बिल्कुल तुम्हारी मुंह में मेरे लंड का होना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं है आह कितना अच्छा लग रहा है बस ऐसे ही चूसती रहो”
चंचल-“बाबू जी आप ऐसे गंदे शब्द मत कहो मुझे अभी थोड़ी शर्म लग रही”
रमेश-“बहू तुम ही बताओ फिर मैं लंड को लंड और चूत को चूत नहीं बोलूँगा तो क्या बोलूँगा”
चंचल बिना कुछ कहे अपने जीभ और मुंह से लगातार अपने ससुर के लंड पर कहर बरसा रही थी, रमेश के लिए ये पल एक अनोखा एहसास दे रहा था, जिसे उसने कभी महसूस नहीं किया और मादक आवाज निकालते हुए उसने अपने हाथ के एक उंगली को चूत में डालकर थोड़ा अंदर की तरफ जोर दे दिया,
चंचल की चूत इस एहसास से की उसके चूत में उसके ससुर ने उँगली डाल दी है, अपनी चूत को सिकोड़ने लग जाती है जिसका पता अब उसके ससुर को अच्छे से हो रहा था,
चंचल अपनी जीभ को निकाल पूरे लंड को चाटती फिर पूरे लंड को एक बार में अपने मुँह में ले लेती,
रमेश-“आह बहू ऐसे ही बहुत अच्छा लग रहा मुझसे अब रुका नहीं जाएगा, तुम्हारे मुह ने मेरे लंड को अब और ज़्यादा सख़्त बना दिया है”
वही मचान के ऊपर रमेश अब खड़ा हो जाता है और अपने पजामे को निकाल फेकता है फिर चंचल को अपने सामने घुटने पर बैठा देता है और उसके मुंह में फिर से लंड घुसा देता है, बीच बीच में चंचल के सर को पकड़ उसके मुंह को भी चोदने लगता है, रमेश खुशी के साथ सातवे आसमान में पहुँच चुका था,
नीचे बैठी चंचल एक हाथ से अपने ससुर के आँखों में देखते हुए उसके लंड को पकड़ मुठियाते हुए फिर लंड को चाटती और चूसती जाती है, और दूसरे हाथ से अपनी छूत के दाने को कुरेदने लगती है, अब चंचल को फिर से अपनी छूट से पानी निकालने की चुल्ल मचने लगी,
रमेश-“बहू अब मैं तुम्हारी चुचियों को चोदना चाहता हूँ इसे अपने दोनों हाथों से पकड़ो ना”
चंचल अपने ससुर की बातो को मानते हुए अपने हाथो से बड़े बड़े दोनों चुचो को पकड़ लेती है और अपने ससुर के लंड को दोनों के बीच घुसा के उनको पूरा मजे देने शुरू करती है,
चंचल-“अब ठीक है बाबू जी मजा आ रहा है ना आपको”
रमेश आँखे बंद कर चुचो की चूदाई करते हुए -“आह बहू पूछो ही मत मुझे कितना मजा आ रहा है ऐसा मजा आज से पहले कभी नहीं आया था” और लगातार चंचल के चुचो को चोदने लगता है,
चंचल भी बीच बीच में अपने ससुर के लंड को जीभ से चाट लेती है,
थोड़े देर बाद रमेश-“आह बहू मैं अब और नहीं रुक सकता हूँ मेरा लंड तुम्हारी चूत को पाना चाह रहा है और उसे वही सामने घुटने नीचे कर आगे झुकने बोलता है,
चंचल का शरीर अब हवस से भर चुका था रोम रोम बस एक ही चीज की माँग रही थी लंड, जिसकी चाहत ने उसे सामने घुटनो पे झुकने पे मजबूर कर दिया, वो सब कुछ भूल चुकी थी कि कहा और किसके साथ है अब तो उसे बस लंड की मोटाई और लंबाई ही दिखाई दे रही थी,
रमेश भी झुक कर एक बार अपनी जुबान को चूत से लगा कर उसे बाहर से ही एक बार अच्छे से चूस लेता है, चंचल इस हमले से पूरी तरह गनगना जाती है और उसकी चूत की प्यास और बड़ जाती है,
फिर खड़े होकर अपने लंड को अपनी बहू की चुत में बाहर लगा देता है,
ये पहली बार है जब किसी और मर्द ने चंचल की चूत को पाने का रास्ता पार कर लिया था, उसे पता था वो पल दूर नहीं जब उसकी चूत एक नए लंड को अपने अंदर समाने वाली थी, उसे अपने चूत का नया मालिक मिलने वाला था,
चंचल अब तन और मन से पूरी तरह अपने ससुर के लंड को अपनाने को तैयार हो चुकी थी वो सामने झुकी हुई अब इस आनंद के लिए बिल्कुल तैयार थी, पीछे से उसके ससुर ने कमर पे एक हाथ रख दूसरे हाथ से लंड को अपनी बहू की चुत के ऊपर ही रगड़ना शुरू किया,
चंचल ने एक मधुर आह भरी जो आसपास को और मादक बना रहा था उसके ससुर ने अब धीरे से रगड़ते हुए अंदर डालना शुरू किया और ससुर बहू ने एक साथ मादक स्वर में कहा
चंचल-“आह बाबू जी अब बस अपने सपने को पूरा कीजिए और बिना चूके लगातार अपने हथियार से मेरी मुनिया को चीर दीजिए आह माँ ये अहसास कितना अच्छा है”
रमेश-“आह बहू तुम्हारी चूत इतनी गीली हो चुकी है मेरा लंड तो फिसलते हुए अंदर जा रहा है”
फिर एक बार अच्छे से पूरा अंदर डालने के बाद थोड़ा बाहर निकाल के फिर से चंचल के ससुर ने पूरा लंड उसके चुत में भर दिया और अपनी रफ़्तार पकड़नी शुरू किया,
चंचल ने आह भरते हुए अपने एक हाथ को पीछे ले जाकर अपनी गांड को पकड़ बाहर की तरफ़ खिचने लगी जिससे उसके ससुर का लंड और अच्छे से अंदर बाहर हो सके, फिर नीचे दूसरी हाथ से अपनी चूत को लंड के साथ सहलाना भी शुरू कर दी,
चंचल-“ओह आह ऊह बाबू जी थोड़ा तेज मारिये ना बड़ा मजा आ रहा है, आह माँ ओह बाबू जी और जल्दी जल्दी करिए, हा ऐसे ही वैसे भी इस तरह का ये मेरा पहला हथियार है”
रमेश-“ओह बहू तुम तो सच में बहुत गर्म औरत हो मुझे नहीं लगा था तुम्हें मैं कभी चोद पाऊँगा”
चंचल-“आह बाबू जी अब मिल गई तो करते रहिए बिना रुके” और अपनी गांड को पीछे धकेलने लगी,
रमेश अपनी बहू की गांड को सहलाते हुए उसे चोदे जा रहा था ये अहसास सोच कर ही की वो आज अपनी बड़ी बहू को चोद रहा है उसके लंड में जरा भी नरमी नहीं थी, वो बस चोदे जा रहा था,
थोड़ी देर बाद लंड को बाहर निकाल रमेश अपनी बहू को लेटने को कहता है चंचल तो बिल्कुल होश में नहीं थी बिना ज़्यादा समय गवाये तुरंत अपने ससुर के सामने लेट जाती है उसके दोनों टांगो को अगल बगल में कर रमेश अपनी बहू के ऊपर चड़ जाता है,
और अपनी बहू को चूमने से पहले चंचल से कहता है “बहू लंड को रास्ता दिखाओ ना अपनी चूत का” और उसके होठों को चूमने लगता है, चंचल आँखे बंद किए तुरंत हाथ नीचे ले जाकर अपने हाथों से ससुर जी का लंड मुट्ठी में पकड़ के सीधे चूत की तरफ़ ले जाती है,
रमेश अब बिना समय गवाये अपनी बहू की चूत का भोसड़ा बनाना शुरू कर देता है उसके झटके इतने तेज हो चुके थे की चंचल को भी अब दर्द का अहसास हो रहा था,
चंचल-“आह बाबू जी दर्द हो रहा है पर आप अब तेज रफ़्तार को रोकिए मत और ऐसे ही करते रहिए आह बाबू जी बहुत अच्छा लग रहा है आह ओह माँ मेरा आने ही वाला है हा और तेज और तेज आह ह ह ह ह ह माँ” और अपने आप को दोबारा से झड़ते महसूस करने लगती है,
रमेश भी अब लगातार इसी तरह पाँच मिनट चोदने के बाद अपने लंड पे तनाव महसूस करता है उसने चंचल से कहा “आह बहू लगता है मेरा भी आने वाला है,
चंचल-“हा बाबू जी और तेज कीजिए आपका और ज़्यादा पानी आयेगा” चंचल ने अपने ससुर को बाहर निकालने को कहा,
रमेश को अगले पल जैसे ही लगा कि वह आने वाला है उसने अपने लंड को अपनी बहू की चूत से बाहर निकाल उसके पेट में लगातार पिचकारी मारते हुए झड़ने लगा,
रमेश-“आह बहू लो मेरा पानी अपने ऊपर”
चंचल साथ देते हुए बोली-“हा बाबू जी दीजिए मुझे डालिए मेरे ऊपर”
रमेश अब पस्त होके अपने बहू के बगल में लेट गया और दोनों ससुर बहू मचान के छत की तरफ़ देखने लगे दोनों इतने थक चुके थे कि उनको पता ही नहीं चला और बिना अपने आप को ठीक किए उसी तरह उनकी आँख लग गई,
क़रीब घंटे भर बाद जब अचानक चंचल की नींद खुली तो उसे अपने हालात पर यकीन नहीं हुआ उसने मन ने सोचना शुरू किया चूत की भूख ने उसे आज ये क्या करवा दिया पर जैसे ही उसकी नजर अपने ससुर और उसके हल्के तने लंड पर गई थोड़ी शर्मा गई,
उसने कपड़ो को खोज के जल्दी से अपने आप को ठीक करना शुरू कर रही थी की तभी उसके ससुर भी उठ गए लेकिन जैसे ही आँख खुली और सामने का नजारा देखा तो वो अपनी बहू को कुछ बोल नहीं पाया, फिर अपने आप को ठीक करके तुरंत नीचे आ गया,
हाथ पैर धोके वापस आया तो देखा उसकी बहू नीचे आ चुकी थी, उसने अपने बहू से कहा-“जाओ बहू हाथ मुंह दो आओ”
चंचल बिना कुछ बोले चली गई और वापस आके सामान समेट लिया जैसे ही अपने ससुर को घर जाने के लिए बताने वाली थी,
रमेश-“मुझे माफ करना बहू अगर आज मैंने जोश जोश में कुछ ग़लत किया हो तो”
चंचल बिना बोले एकटक कहीं और देख कुछ सोच रही थी फिर उसने अपने ससुर से कहा-“इसमें आपकी नहीं बाबू जी हम दोनों की ही गलती थी, जो भी हुआ दोनों की मर्जी से हुआ है और कहीं ना कहीं हम दोनों ही चाह रहे थे तो इसके लिए आप अपने आप को ग़लत मत बोलिए”
रमेश-“धन्यवाद बहू मुझे तो लग रहा था कहीं तुम बुरा ना मान जाओ”
चंचल-“ये छोड़िये बाबू जी समय देखिए आज तो मुझे बहुत देर हो गई घर का बाक़ी काम भी पहुँच के पूरा करना पड़ेगा”
रमेश-“मुझे ख़ुशी है बहू तुमने बुरा नहीं माना और ये बात हम दोनों के बीच ही रहेगी”
चंचल-“मैंने कहा ना बाबू जी आप ये सब छोड़िए अभी और आप भी चल रहे साथ में चलिए, अब आपको भी आराम की जरूरत है तो सीधे मेरे साथ घर चलिए” और हंसते हुए आगे बढ़ना चाही पर,
रमेश आगे बड़के सीधे अपने बहू को जाके गले लगा लेता है और कहता है-“तुम बड़ी बहू के साथ एक समझदार बेटी भी हो मेरे लिए कितना सोचने लग गई हो, धन्यवाद मेरी बेटी” और उसके गर्दन में एक चुम्मा दे देता है,
चंचल अचानक से अपने ससुर के इस हरकत से शर्मा जाती है और चुम्मा लेने के तुरंत बाद उन्हें दूर हटाते हुए कहती है “दूर हटिये बहु जी यहाँ कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी” और दोनों सीधे घर की तरफ़ चल पड़ते है।
आज के लिए इतना ही दोस्तो मिलते है अगले अध्याय में धन्यवाद 