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#12
मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.
जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .
बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की
“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .
मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .
“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा
वो- ये जहरीला है ,
मैं- ओह
वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.
“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा
वो- अजीब संयोग है न
मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है
वो किस किस्म का इशारा.
मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.
वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.
“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा
वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.
मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .
वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.
मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .
उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .
मैं- फिर कब मिलोगी
वो- किसलिए भला.
मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.
मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .
“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.
“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.
वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में
मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .
वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.
मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.
वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर
मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं
वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को
मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं
वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं
मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे
वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने
उसकी आवाज में एक फीकापन था.
“चलती हूँ , ” उसने कहा
मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.
वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू
मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.
“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा
मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ
मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.
“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .
मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे
वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.
मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .
अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .
“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .
पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .
“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.
“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .
दद्दा- मेरे साथ आओ .
उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .
“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .
मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................
मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.
जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .
बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की
“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .
मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .
“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा
वो- ये जहरीला है ,
मैं- ओह
वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.
“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा
वो- अजीब संयोग है न
मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है
वो किस किस्म का इशारा.
मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.
वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.
“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा
वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.
मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .
वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.
मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .
उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .
मैं- फिर कब मिलोगी
वो- किसलिए भला.
मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.
मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .
“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.
“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.
वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में
मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .
वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.
मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.
वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर
मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं
वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को
मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं
वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं
मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे
वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने
उसकी आवाज में एक फीकापन था.
“चलती हूँ , ” उसने कहा
मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.
वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू
मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.
“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा
मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ
मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.
“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .
मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे
वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.
मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .
अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .
“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .
पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .
“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.
“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .
दद्दा- मेरे साथ आओ .
उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .
“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .
मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................