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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#12

मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.

जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .

बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की

“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .

मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .

“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा

वो- ये जहरीला है ,

मैं- ओह

वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.

“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा

वो- अजीब संयोग है न

मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है

वो किस किस्म का इशारा.

मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.

वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.

“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा

वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.

मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .

वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.

मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .

उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- किसलिए भला.

मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.

मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .

“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.

“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.

वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में

मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .

वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.

मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.

वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर

मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं

वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को

मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं

वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं

मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे

वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने

उसकी आवाज में एक फीकापन था.

“चलती हूँ , ” उसने कहा

मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.

वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.

“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा

मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ

मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.

“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .

मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे

वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.

मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .

अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .

“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .

पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .

“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.

“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .

दद्दा- मेरे साथ आओ .

उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .

“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .

मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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हर बार की तरह कहानी बहुत ही अच्छी जा रही है और हम ये भी मालुम हाई की ये कहानी बहुत ही ज्यादा लंबी चली बस आपसे याही आशा की आप इसे बिच मैं नहीं रोकोगे और एक निश्चय बड़े समय पर बड़े बड़े अपडेट मिलेंगे तो कसम से मजा ही आएगा...
 
Last edited:

tanesh

New Member
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#12

मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.

जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .

बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की

“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .

मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .

“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा

वो- ये जहरीला है ,

मैं- ओह

वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.

“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा

वो- अजीब संयोग है न

मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है

वो किस किस्म का इशारा.

मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.

वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.

“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा

वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.

मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .

वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.

मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .

उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- किसलिए भला.

मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.

मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .

“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.

“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.

वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में

मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .

वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.

मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.

वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर

मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं

वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को

मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं

वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं

मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे

वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने

उसकी आवाज में एक फीकापन था.

“चलती हूँ , ” उसने कहा

मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.

वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.

“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा

मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ

मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.

“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .

मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे

वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.

मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .

अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .

“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .

पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .

“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.

“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .

दद्दा- मेरे साथ आओ .

उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .

“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .


मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................
कहानी अपनी रफ्तार पकड़ चुकी हैं, राज ओर भी गहरे होते जा रहे हैं, अगले भाग का बेसब्री से इंतजार रहेगा भाई; और इस शानदार अपडेट के लिए धन्यवाद
 

A.A.G.

Well-Known Member
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#12

मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.

जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .

बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की

“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .

मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .

“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा

वो- ये जहरीला है ,

मैं- ओह

वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.

“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा

वो- अजीब संयोग है न

मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है

वो किस किस्म का इशारा.

मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.

वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.

“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा

वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.

मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .

वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.

मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .

उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- किसलिए भला.

मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.

मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .

“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.

“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.

वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में

मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .

वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.

मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.

वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर

मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं

वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को

मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं

वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं

मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे

वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने

उसकी आवाज में एक फीकापन था.

“चलती हूँ , ” उसने कहा

मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.

वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.

“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा

मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ

मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.

“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .

मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे

वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.

मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .

अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .

“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .

पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .

“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.

“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .

दद्दा- मेरे साथ आओ .

उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .

“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .


मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................
nice update..!!
kahani me bahot hi suspence chal raha hai..apne hero aur tayi ka bhi kuchh secne nahi bana ab tak..dekhte hai aage kya hota hai..!!
 

Naik

Well-Known Member
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258
#12

मैंने देखा एक अद्भुद नजारा, कहने को कुछ भी नहीं और कहे तो बहुत कुछ हो जाए . मेरे सामने जलती राख थी जिसका धुआ भी अब धुआ धुआं हो चूका था . क्या मालूम कब यहाँ अलख जगी होगी पर अब कुछ नहीं था , या फिर कुछ नहीं होकर भी सब कुछ था . मैं समझ नहीं पा रहा था की ये जगह है क्या. क्या ये कोई मंदिर था, कोई मस्जिद थी , कोई आश्रम था , कोई शमशान था . मैं उस दिन नहीं जान पाया.

जब नजर उस धुएं के पार देखने लायक हुई तो मैंने देखा की एक मिटटी की मूर्ति ,जो करीब ढाई तीन फुट की रही होगी, उसके गले में दो धागे एक लाल एक काला और फिर चमकते हीरे, पन्ने . हाँ वो हीरे पन्ने ही थे . उस हलके अँधेरे में भी उनकी आभा चमक रही थी .

बड़ी बात ये नहीं थी की उस मूर्ति में जवाहरात जड़े थे , हैरत की बात थी की उस पर ऊपर से गिरती पानी की हलकी हलकी धारा ,जो लगातार गिरते हुए भी उस मिटटी को भिगो नहीं पा रही थी . पास में ही एक बेहद सुन्दर फूल था न जाने कैसा , किसका मैंने आज से पहले कभी ऐसा फूल नहीं देखा था . आकर्षण से वशीभूत मैंने उसकी तरफ उसे छूने के लिए हाथ बढाया ही था की

“उसे हाथ भी नहीं लगाना.” मेरे पीछे से एक उत्तेजित आवाज आई तो मेरी गर्दन एक दम से पीछे को घूमी .

मैंने देखा मेरे ठीक पीछे वो ही लड़की जिस से मैं दोपहरों में , अँधेरी रातो में मिला था खड़ी थी .

“डरा ही दिया था तुमने तो ” मैंने कलेजे पर हाथ रखते हुए कहा

वो- ये जहरीला है ,

मैं- ओह

वो बाहर को आई, मैं भी उसके पीछे उस कमरे से बाहर आया.

“तो हम एक बार फिर मिल गए ” मैंने कहा

वो- अजीब संयोग है न

मैं- तकदीरो का इशारा भी हो सकता है

वो किस किस्म का इशारा.

मैं- तुम जायदा जानो , देखो जरा क्या कहते है तुम्हारे सितारे.

वो मेरी बात पर मुस्कुरा पड़ी.

“ये क्या जगह है , मेरा मतलब ये ईमारत अपने आप में अनोखी है ” मैंने कहा

वो- जो तुम्हे दिख रहा है बस ये खंडहर ही है , गुजरे हुए वक्त की कोई खोयी कहानी.

मैं- कहानिया कभी अधूरी नहीं होती, किस्से बताने वाले कम हो जाते है .

वो- तो तलाश कर लो किसी ऐसे की जो तुम्हे बता सके.

मैं- तलाश क्या करना मेरे सामने ही तो है .

उसने घूर कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरे जाने का समय हो गया है .

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- किसलिए भला.

मैं- मिलोगी नहीं तो हमारी कहानी कैसे शुरू होगी.

मेरी बात सुन कर वो हंसने लगी, इतना जोर से से की उसकी हंसी उस ईमारत में गूंजने लगी. मर्ग नयनी आँखे उसकी , हैरत से भरी मुझे देख रही थी .

“बरसो बाद किसी ने मजाक किया है मुझ से ” सीने पर हाथ रखे उसने कहा मुझसे.

“और यदि इसी पल मैं तुमसे कहूँ की मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ तो क्या कहोगी तुम ” मैंने उस से सवाल किया.

वो- मेरा जवाब ना होगा, और भला कैसी दोस्ती मेरे तुम्हारे बीच , ये ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे मन में

मैं- ये तो मन ही जाने मेरा. जो भी था तुम्हे बता दिया .

वो- आज दोस्ती , कल कहोगे मोहब्बत हो गयी है , परसों न जाने क्या फरमाइश होगी तुम्हारी.

मैं- देखो मैं बस आज की बात करता हूँ कल का क्या भरोसा कल हो न हो.

वो- और कल को तुम्हे मालूम हुआ मैं दोस्ती तोड़ गयी , निभा न पायी फिर

मैं- फिर क्या ,कुछ भी तो नहीं

वो- फिर बुरा नहीं लगेगा तेरे मन को

मैं- बुरा क्यों लगेगा. दोस्ती ही तो की है कौन सा तेरे संग प्रीत की डोर बाँधी है , तू नहीं थी जब भी तो जिन्दा था न मैं

वो- क्या तुझे इस ज़माने का भी डर नहीं

मैं- डर तो ज़माने को होना चाहिए और मैंने कौन सा आसमान माँगा है तुझसे

वो- काश तूने आसमान माँगा होता, माँगा भी तो क्या तूने

उसकी आवाज में एक फीकापन था.

“चलती हूँ , ” उसने कहा

मैं- जाती है तो जा बस इतना बता फिर कब मिलेगी.

वो- रब्ब जाने , मेरे जाने के थोड़ी देर बाद निकलना तू

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई. ना जाने क्यों उसे जाते हुए देखना अच्छा नहीं लगता था . कुछ देर बाद मैं वहां से निकला . अपनी चप्पल पहन ही रहा था की कुछ ५-७ लडको का टोल उसी तरफ आ निकला. मुझे देख कर वो रुक गए.

“ओये तू क्या कर रहा है इधर, ” एक ने पूछा

मैं-कुछ नहीं बस ऐसे ही इस तरफ आया था तो ये ईमारत दिखी . प्यास लगी थी पानी पीकर आया हूँ

मैने कहा और अपने रस्ते चला ही था की उन्होंने मुझे रोक लिया.

“सोलह साल से इस गाँव ही क्या किसी के भी कदम यहाँ नहीं पड़े है और तू कहता है की पानी पीने आया था , बता क्या उद्देश्य था तेरा अन्दर जाने का ” उनमे से सबसे बड़े लड़के ने कहा .

मैं- तेरे गाँव में पानी पीना गुनाह है क्या, जाने दे मुझे

वो- जब तक तू बताता नहीं की तू अन्दर क्या करके आया है नहीं जाने दूंगा.

मेरा भी दिमाग पकने लगा था तो मैंने ऐसे ही कह दिया- धुना सुलगाने आया था सुलगा दिया अब बता जाऊ की न जाऊ, और नहीं जाने देगा तो अपने घर ले चल . दो रोटी तू दे देना .

अचानक ही उस लड़के का पूरा चेहरा पीला पड़ गया . जैसे की किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो .

“तुम लोग इसे पकड़ो , मैं अभी आता हूँ ” ऐसा कहकर उसने दौड़ लगा दी. अब वो लोग पांच- सात जने थे तो उनसे लड़ाई करना बेकार था और मैंने पहले कभी किसी से मारपीट की भी नहीं थी . मैं वही सीढियों के पास बैठ गया .

पांच- दस पंद्रह बीस तीस मिनट जाने कितना समय बीता फिर धुल उडाती तीन काली गाडिया एक के बाद एक आकर उतरी. कुछ मवाली टाइप लड़के थे गाडियों में और फिर उतरा वो जिसे देख कर उम्र का अंदाजा लगाना थोडा मुश्किल था मेरे लिए. एक दम सफ़ेद बाल. सफ़ेद दाढ़ी हाथो में अंगुठिया. लम्बी मूंछे . चेहरे से रौब झलके उस आदमी के , हाथो में बेंत लिए एक पैर से थोडा लंगड़ाते हुए वो मेरी तरफ आया. उसकी लाल आँखे घूर रही थी मुझे .

“दद्दा, यही है वो ” उसी लड़के ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए कहा.

“साहब , मुझे नहीं मालूम था की यहाँ आना मना है प्यास लगी थी तो मैंने बस पानी पिया और वापिस आया ही था की ये मुझसे उलझने लगे ” मैंने अपना पक्ष रखा .

दद्दा- मेरे साथ आओ .

उसने हाथ से बाकी लोगो को वही रुकने का इशारा किया और मैं उसके साथ वापिस ईमारत में दाखिल हो गया .

“कहाँ था पानी ” उसने गला खंखारते हुए कहा .


मैं दौड़ कर बावड़ी के पास गया और जब मैंने उसमे झांक कर देखा ,,,,,,,,, देखा तो .....................
Bahot behtareen shaandaar update bhai
Ab yeh kia chakker h abhi thodi dair pehle paani tha or ab nahi h yeh kon sa jadu h or uss ladni kaha aasman leta jo toone nahi manga
Baherhal dekhte h aage kia hota
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#13

मैंने देखा बावड़ी में पानी उसी तरह लहरा रहा था .

“ये पानी नहीं तो क्या है ” मैंने निचे जाकर हथेली में पानी भरा और उसके पास लाया. मैंने हथेली उसके आगे की . उसने हिकारत से मुझे देखा और बोला- चला जा यहाँ से .दुबारा मत आना .

मैं- वो मेरा मामला है दुबारा आना या न आना तुम्हे इससे क्या लेना देना

“उम्र छोटी है और बाते आसमान जितनी, जिसे तू खेल समझ रहा है न वो .......” उसने बात अधूरी छोड़ दी .

मैं - वो क्या ..

उसने अपनी बेंत मेरी छाती पर लगाई और बोला- निकल जा यहाँ से

मैंने भी बात आगे नहीं बढाई और वहां से बाहर निकल आया. बाहर खड़े तमाम लोगो की नजरे मुझ पर थी पर किसी ने मुझे रोका नहीं . कुछ दूर चल कर मैंने माथे का पसीना पोंछा तो कुछ रुखा सा महसूस हुआ मैंने अपने हाथ देखे, हथेलिया राख में सनी हुई थी .

मैंने अपने मुह पर हाथ रख लिया , हाथो पर ये राख कैसे आई, हलकी सी तपिश महसूस की . मैंने शर्ट से ही हाथ साफ़ किये और रुद्रपुर से अपने गाँव वापिस आ गया. शाम ढलने लगी थी . दिल में मेरे न जाने कितने सवाल थे जिनके जवाब दे सके ऐसे इन्सान को तलाश करना ही मेरा मकसद था अब .

चोबारे की छत पर लेटे हुए मैं रीना के बारे में सोच रहा था , आज वो उदयपुर चली गयी थी . बचपन से ऐसा कोई लम्हा नहीं था जो हमने साथ नहीं बिताया हो. इस दुनिया में सबसे पहले मेरे लिए कोई था तो वो बस . जबसे उसने उसकी माँ से हुई बात बताई थी , दिल में हलचल सी मची हुई थी . बहुत सी बाते थी जो उससे कहनी थी , हर सुबह जब वो तालाब पर पानी भरने आती थी , तो ग्राम देवता के मंदिर में समाधी के साथ चक्कर लगाना, थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते . वो मुझे मैं उसे देखता .उसके गेहुवे रंग पर लाल चुन्नी बड़ी फब्ती . कानो में सोने की बालिया गले में ॐ का लाकेट जो मैंने मेले में खरीद कर दिया था उसे.

ये रात भी जाने क्यों बेवफाई पर उतर आई थी , आँखे मूंदु तो भी आँखों को रीना की सूरत ही दिखे . हालत जब काबू से बाहर हो गयी तो मैंने शर्ट पहनी और घर से बाहर आ गया. चारो दिशाए सन्नाटे में डूबी थी . पैदल चलते चलते मैं खेतो को पार करके पुलिया की तरफ आ पहुंचा था की मैंने देखा की इकतारा लिए वही लड़की पुलिया पर बैठी है . हमारी नजरे मिली, उसने इकतारा साइड में रख दिया.

“मेरा पीछा क्यों करता है ” उसने उलाहना दिया.

मैं- क्यों इन रातो पर बस तेरा हक़ है क्या.

वो- हक़ तो नहीं है , पर इन रातो से बढ़िया कोई साथी भी तो नहीं

मैं- तेरी बाते मेरे जैसी क्यों है

मैं उसके पास बैठ गया .

वो- बाते है बातो का क्या . तू बता कुछ परेशां सा लगता है .

मैं - चलो तुमने इसी बहाने मेरा हाल तो पूछा

वो- क्या परेशानी हुई तुझे

मैं- जब से तुझे देखा है , नजरे हट टी नहीं तेरे चेहरे से, दिन हो या रात हो तेरा ख्याल मेरे मन से जाता नहीं . जी करता है बस तुझे देखता रहूँ

वो- कुछ नया बोल , ये लाइन पुरानी हुई , आजकल की लडकिया इन फ़िल्मी बातो से नहीं बहलती .

मैं- तो तू ही बता तुझे कैसे मना पाउँगा

वो- भला किसलिए

मैं- तुझसे दोस्ती करनी है

वो- दोपहर को मैंने तुझे कहा था न की हम में दोस्ती नहीं हो सकती

मैं- तो क्या हो सकता है

वो- कुछ नहीं , कुछ भी नहीं आखिर हम एक दुसरे को जानते ही कितना है .

मैं- चार मुलाकातों से जानते है .

वो- मैं क्या दोस्ती करू तुझसे, , मैं कौन हूँ ये भी नहीं जानता . चल बता मैं तुझसे दोस्ती कर भी लू तो तू क्या कर सकता है मेरे लिए.

मैं- दोस्ती में शर्ते नहीं होती सरकार. तू क्या है मैं कौन हु ये नहीं देखा जाता दोस्ती में ओई उम्मीद नहीं होती, दोस्ती में उम्मीद हुई तो वो लालच हुआ, दोस्ती निस्वार्थ है, मैंने तुझसे मोहब्बत नहीं मांगी , वादे मोहब्बत में किये जाते है की चाँद तारे तोड़ लाऊंगा .

वो- मैं कैसे मानु की तू मेरा सच्चा दोस्त बनेगा. कल को तूने मेरा फायदा उठाया . मुझे बदनाम किया तो .

मैं- तो फिर रहने दे . तेरे बस की नहीं है . मैंने अपने मन की बात तुझे बताई,अब तेरी मर्जी है जब तेरा दिल करे तो मुझे बता देना बाकी तेरी किस्मत तू जाने तूने क्या खोया .

वो- हाँ मेरी किस्मत.

उसने एक ठंडी साँस छोड़ी और बोली- ये किस्मत भी बड़ी अजीब होती है न राजा के घर पैदा हुए तो किस्मत, गरीब के घर पैदा हुए तो किस्मत. सुख मिले तो किस्मत, दुःख मिले तो किस्मत.

मैं- तू मुझे मिली ये भी तो किस्मत ही है न .



“तुझसे दोस्ती नहीं कर सकती ये भी तो किस्मत ही है न , ” उसने कहा

मैं- इस दुनिया, इस समाज का डर है क्या तुझे .

वो- मुझे डर होता तो यहाँ इस समय तेरे साथ न बैठी होती .

मैं- तो क्या रोक रहा है तेरे मन को

वो- मेरा मन ही रोक रहा है मुझे .

मैं- चल कोई न , हम भी क्या बाते लेके बैठ गए ये बता आज ये सितारे क्या कहते है .

उसने आसमान में देखा और बोली- खून बहने वाला है .

मैं- किसका

वो- ये तो वो ही जाने .

उसने आसमान में सितारों को देखते हुए बोला .

मैं- तेरी बाते समझ में कम आती है मुझे .अपने बारे में बता कुछ

वो- क्या बताऊँ कहने को सब कुछ है कहने को कुछ भी नहीं . मैं भी तेरे जैसी ही हूँ .कल दोपहर तू मुझे ग्यारह पीपल के पास मिलना मैं तब तुझे बताउंगी मैं कौन हूँ .



उसकी आँख से गिरते आंसू के कतरे को अपनी कलाई पर गिरते महसूस किया मैंने
 
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