• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery गुजारिश 2 (Completed)

drx prince

Active Member
1,561
1,544
143
#5

बहुत देर तक मैं ताई की राह देखता रहा पर वो आई ही नहीं, हार कर मैं खुद ही चल दिया.ताई आये न आये फर्क नहीं पड़ता था मेरी अपनी मजबूरियां थी , पैसे की जरुरत थी बेशक गलत काम था पर जिंदगी में कभी कभी वो भी करना पड़ता है जो गलत हो.

तक़रीबन ग्यारह बजे मैं उधर पहुंचा तो सब कुछ शांत था , घुप्प अँधेरा था मैंने साइकिल थोड़ी दूर खड़ी की और दबी आवाज में ट्रक के पास पहुँच गया . दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी , माथे पर पसीना था. मैं ट्रक पर चढ़ा और कोयले को बोरी में भरने लगा. एक बोरी भरने के बाद मैंने उसे साइकिल पर लाद दिया. सब कुछ आसानी से हो गया. पर वो कहते है न की हर चीज की कीमत होती है,

इसी आसानी ने मेरे दिमाग में फितूर भर दिया. मैंने सोचा एक बोरी और मचका देता हूँ, मैं फिर से ट्रक पर चढ़ गया . बोरी आधी भरी ही थी की मेरी आँखे तेज रौशनी से चोंध गयी. चोकीदार की टोर्च मुझ पर तनी हुई थी .

“हरामखोर, तेरी ही तलाश में था, आज हाथ लगा है .साले तेरे बाप का माल है क्या जो चुरा रहा था, चुपचाप निचे आ जा. ”उसने अपना लट्ठ हिलाते हुए कहा.

मैं फंस चूका था , लालच भारी पड़ने वाला था.

“चल, निचे आ ” उसने कहा.

तभी मुझे न जाने क्या सुझा मैंने बोरी चोकीदार पर दे मारी. अचानक हमले से वो गिर गया और मैं उसके ऊपर कूद पड़ा. मैंने पास में पड़ा उसका लट्ठ उठाया और उसे मारने को ही था की वो बोला- नहीं नहीं मारना मत.

मैं- जाने दे मुझे,

वो- बोरी इधर ही छोड़ जा

मैं- बोरी तो लेके ही जाऊंगा, मज़बूरी समझ मेरी

चोकीदार- एक शर्त पर जाने दूंगा, आधा हिस्सा मेरा होगा.

मैं- ठीक है , कल दे जाऊंगा

चोकीदार- कल नहीं अभी

मैं- चूतिये, कोयला बिकेगा तभी तो हिस्सा मिलेगा

चोकीदार- मैं कैसे भरोसा करू तेरा.

मैं- मत कर. तेरा नुकसान , जैसा मैंने कहा मज़बूरी है और मज़बूरी आदमी क्या ही धोखा करेगा किसी से.

चोकीदार- ठीक है भरोसा किया .

मैं- कल दोपहर को मिलता तुझे,

वो- शाम ढले आना , आयेगा न

मैं- जुबान देता हु,

उस रात मुझे एक सीख मिली थी की आदमी ईमानदार तब तक ही होता है जब तक की उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता. खैर, कोयला तो मैंने पार कर लिया था पर अभी इसे रखु कहा और शहर कैसे ले जाऊ ये भी समस्या थी. मुझे ताई पर भी गुस्सा आ रहा था , मैंने दो चार गालिया दी उसे. दो बोरी कोयला लादे मैं अँधेरी रात में चुतियो के जैसा खड़ा था . बहुत सोच कर मैंने कोयले को अपने खेतो में बने कमरे की छत पर रख दिया और विचार करने करने लगा की कैसे इसे शहर ले जाऊ, उस रात मुझे एक पल भी नींद नहीं आई. खेत में बैठे बैठे ही सुबह हो गयी.

मैं सीधा ताई के घर गया , वो चाय बना रही थी .

“ले,चा ” उसने मुझे कप दिया.

मैं- चाय गयी तेल लेने ये बता तू कल आई क्यों नहीं .

ताई- बस नहीं आ पाई. आज करेंगे वो काम

मैं- काम तो मैंने कर दिया , ये बता बोरी को शहर कैसे ले जायेंगे.

ताई की आँखों में चमक सी आ गयी .

ताई- तू चिंता कर. ये बता माल कहाँ है

मैं- हिफाजत से है

मैंने ताई को बता दिया.

ताई- तू घर जा , बाकि मैं देख लूंगी .

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था . मैं चाहता था की जल्दी से पैसा मेरे हाथ में आ जाये. दोपहर को एक कबाड़ी अपनी टूटी सी गाड़ी लेकर मेरे पास आया और बोला- भैया, आपके पास कबाड़ बताया.

मैं- कहीं और जा भाई, कोई कबाड़ नहीं है मेरे पास.

वो- मुझे तो यही सुचना मिली थी खैर तेरी मर्ज़ी



उसने इशारा किया तो मैं समझा और उसे साथ ले लिया.बोरी उसकी गाड़ी में लदवा दी. उसने तुरंत ही पैसे गिन दिए और बोला- कबाड़ और आये तो बताना. मेरे हाथ में सौ और पचास के कुछ नोट थे. जिन्हें गिन कर बड़ी ख़ुशी मिली पर बस एक पल की ताई और चोकीदार को उनका हिस्सा देने के बाद मेरे पास इतने पैसे बचते ही नहीं की मैं उदयपुर जाने के पैसे भर सकता.



खैर अब जो थे यहीं थे . ताई को उसके पैसे देने के बाद मैं चोकीदार के पास गया . उसको भी दिए.

चोकीदार- क्या बात है लड़के, खुश नहीं लगता तू

मैं- यार, जितने चाहिए थे उतने बन नहीं पाए.

चोकीदार- जो मिला उतने भी कहाँ थे तेरे पास. जितना है उसमे खुश रह .

मैं वहां से चल तो दिया पर जैसे मेरे कदमो को बेडियो ने जकड लिया था . कल का दिन ही बचा था पैसे जमा करने के लिए. कभी मैं आसमान की तरफ देखता तो कभी अपने पैर की तरफ. मुझे अपनी मजबूरियों पर गुस्सा आ रहा था. दिल पर जब काबू नहीं रहा तो मैं पुलिया पर बैठ गया और जोर जोर से रोने लगा. रोते ही रहा जब तक की मेरा दर्द आंसू बन कर बह नहीं गया.

घर पहुंचा तो देखा रीना बैठी थी .

मैं- तू कब आयी

वो-मैं तो कब से आई, तू न जाने कहाँ था . और ये कैसी शक्ल बनाई है कुछ हुआ है क्या.

मैं- कुछ, कुछ भी तो नहीं

रीना- मुझसे झूठ बोलता है

मैं- कहाँ न कुछ नहीं हुआ वो थोड़ी गर्मी ज्यादा है न तो पसीना पसीना हुआ पड़ा है

रीना-क मेरे साथ आ जरा.

मैं उसके साथ छत पर आया.

वो- पैसे का जुगाड़ नहीं हुआ न .

न जाने वो मेरे मन की बात कैसे जान लेती थी .

मैं- हो जायेगा, उसमे क्या है

रीना- मैं जानती हु, बात नहीं बनी.

मैं- क्या हुआ फिर, तू जब आएगी वहां से तो वहां क्या है कैसा है बता ही देगी फिर क्याफ फर्क पड़ा.

रीना- फर्क पड़ता है .

उसने जिस अंदाज से मेरी आँखों में देखा, मैं कुछ बोल ही नहीं पाया.

रीना- दाल चूरमा लायी थी तेरे लिए डिब्बा रखा है खा लेना गर्म ही .

मैं- हाँ,

एक कल रात नींद नहीं आई थी, एक आज की रात थी जो ख्यालो में कट रही थी .एक बार फिर मैं चाची के पास गया .

चाची- क्या है

मैं- वो पैसे चाहिए थे उदयपुर जाना है

चाची- एक बार समझ नहीं आता क्या तुझे ,कह दिया न नहीं जाना

मैं- मैं जाऊंगा

जिन्दगी में पहली बार था जब मैंने चाची को उल्टा जवाब दिया था. चाची को भी खली ये बात

“क्या कहा तूने फिर कहियो ” उसने कहा

मैं- मैंने कहा मैं उदयपुर जाऊँगा.

चाची ने पास पड़ी थापी उठा कर मेरी बाह पर मारी और बोली- जुबान लडाता है मुझसे,


जब तक उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो मुझे पीटती रही . मैं चाहता तो उसका हाथ पकड़ सकता था , रोक सकता था पर मैं चाची के मुह नहीं लगना चाहता था. दर्द भरे बदन को सहलाते हुए मैं घर से निकल गया . मुझे गुस्सा चाची पर नहीं था बल्कि उस ऊपर वाले पर था , जिसने मुझे मेरे माँ-बाप से दूर कर दिया था आज वो होते तो मेरा ये हाल नहीं होता. घूमते घूमते मैं जंगल की तरफ जा ही रहा था की एक बहुत तेज , जैसे कोई धमाका हुआ हो ऐसी आवाज मेरे कानो में आई, आवाज इतनी तेज थी आस पास सब हिल सा गया हो . मैं उस तरफ दौड़ चला. और जब मैं वहा पंहुचा तो मैंने देखा ........... मैंने देखा की.......................
Nice update
 

drx prince

Active Member
1,561
1,544
143
#6

मैंने देखा की नाहर की पुलिया से एक गाड़ी टकरा गयी थी. मैं दौड़ कर उसके पास गया . गाड़ी में एक औरत थी जिसका चेहरा खून से लथपथ था . मैंने दरवाजे के कांच को थपथपाया . झूलती आँखों से उसने मुझे देखा ,

“घबराओ नहीं मैं निकालता हूँ तुम्हे बाहर. ” मैंने कहा पर शीशे की वजह से उसे सुना नहीं होगा.

मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश की पर वो जाम था . एक पत्थर से मैंने शीशा तोडा और फिर अन्दर हाथ डाल कर दरवाजा खोला और उस औरत को बाहर निकाला. वो खांसने लगी.

“पानी , पानी दो ” वो खांसते हुए बोली.

मेरी नजर गाड़ी में पड़ी बोतल पर पड़ी मैंने उसे दी. दो घूँट पिने के बाद उसने अपना मुह साफ क्या तो मुझे मालूम हुआ ये जब्बर की घरवाली थी . चूँकि जब्बर से हमारी कम बनती थी तो बोल-चाल कम ही थी पर इस हालत में मेरा इसकी मदद करना बनता था .

“ठीक हो काकी ” मैंने कहा

काकी- सर फुट गया है , उस लड़की को बचाने के चक्कर में गाड़ी ठुक गयी . जरा उधर देख तो सही वो लड़की तो ठीक है न

मैं- कौन लड़की काकी, इधर हम दोनों के आलावा कोई और नहीं है .

काकी- ठीक से देख बेटा, वो भी गाड़ी से टकरा ही गयी थी . हे राम कही नहर में तो नहीं गिर गयी .

मैं- नहर में पानी है ही कहा काकी, कितने दिनों से नहर आई तो नहीं है .

मेरी बात सुनकर काकी को जैसे झटका सा लगा. उसके होंठ जैसे सुन्न हो गए थे .

“वो लड़की , यही तो खड़ी थी ” काकी अपनी चोट भूलकर और कहीं ध्यान देने लगी थी .

मैं- काकी, सर से खून बह रहा है, तुम्हे गाँव चलना चाहिए मरहम पट्टी करवा लो पहले कोई होगी भी तो मालूम हो ही जायेगा. चलो मैं तुमको ले चलता हूँ .

मैंने काकी को वैध जी घर छोड़ा और अपनी राह पकड़ ली. मेरे दिमाग में भी अब उस लड़की वाली बात ही घूम रही थी , कौन होगी, उसे कितनी चोट लगी होगी. पर जब हमें कोई मिला ही नहीं तो कोई क्या करे.

रात भी घिर आई थी . घर जाने का मन नहीं था तो मैं ऐसे ही ताई के घर चला गया . ताई चूल्हे पर खाना बना रही थी .

“सही टाइम पर आया तू, जा अन्दर से थाली ले आ खाना परोस दू तुझे ” ताई ने कहा.

वैसे भूख तो लगी थी पर मैंने कहा- नहीं ताई, चाची को मालूम होगा तो कलेश करेगी.

ताई- उसके कलेश से तुझे कब से फर्क पड़ने लगा.

मैं-तुझे तो सब पता है ही . खैर, ताऊ नहीं दिख रहा .

ताई- बोल रहा था की शहर में नौकरी मिल गयी है सिनेमाहाल में चोकिदारी करने की , वही जाने कह बोल के गया. अब राम ही जाने , सच कहता है या झूठ,

मैं- तुझे तो खुश होना चाहिए , अब वो कमा के लायेगा.

ताई- ऐसा मेरा भाग कहा, तू बता क्या नयी ताजा

मैं- बस वही रोज के ड्रामे.

मैंने ताई को बताया की जब्बर की घरवाली का सर फुट गया

ताई- बढ़िया होता जो मर ही जाती, कमीने जब्बर ने गाँव के लोगो का जीना हराम किया हुआ है .

मैं- गलती तो गाँव वालो की ही हैं, उसे जवाब नहीं देते. सामना करे तो उसकी क्या औकात.

ताई- कौन करे उसका सामना, जाने कहा कहाँ तक उसकी पैठ है .

मैं - छोड़ अपने को क्या मतलब उस से .

ताई- सही कहाँ और बता तेरे वो पैसे पुरे हुए क्या

मैं- कहाँ, अभी भी कसर है

ताई- अब तो कोयले पर भी हाथ नहीं मार पाएंगे, कल से काम बंद , सब सामान वापिस जा रहा है

मैं -क्यों

ताई- आज कुछ अफसर आये थे,उन्होंने ही काम बंद कर वाया है .

मैं- ये तो बुरा हुआ

ताई- अब क्या करे, कल से कहीं और मजदूरी देखूंगी

मैं- ठीक है अब चलता हूँ

इस दुनिया में हर कोई अपनी अपनी परेशानियों से घिरा था , यही सोचते सोचते मेरी वो रात कटी . मेरी जिन्दगी न जाने किस दिशा में जाने वाली थी .बिस्तर पर करवट बदलते बदलते मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी जो मैंने सुनार से चुराया था . मैंने उसे खोला और मैं हैरान हो गया उसके अन्दर कुछ भी ऐसा नहीं था जो उसे महत्वपूर्ण बनाता हो. बक्सा बाहर से जितना सुन्दर था ,अन्दर से उतना ही काला . उसके अन्दर सिर्फ एक धागा था, लाल रंग का नाल जिसे गूंध कर माला के जैसा बनाया हो.

पर जैसा हम कहते है किसी भी चीज को बस देख कर उसका अनुमान नहीं लगाना चाहिए. मैंने नाल को हल्का सा छुआ ही था की मेरी ऊँगली जल गयी , इतना गर्म था वो . एक पल में मैं समझ गया की कोई तो बात थी जो सुनार ने सोलह साल इसकी हिफाजत की थी . और अब मुझे वो बात मालूम करनी थी . सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गई पता ही नहीं चला.

सुबह चाचा ने मुझे बुलाया और बोले- बेटे, अब तुम बड़े हो रहे हो तो तुम्हे अब कुछ बाते समझनी चाहिए

मैं- जी

चाचा- तुम तो जानते ही हो की हमारी जमीने अलग अलग जगह फैली हुई है , जितना हो सके मैंने संभालने की कोशिश की है पर अब लगता है की मैं अकेला काफी नहीं हूँ, तो मैंने सोचा है की तुम मेरा थोडा हाथ बंटाओ , समझो हम कैसे काम करते है , इस कुल की परम्परा रही हैइस धरती को माँ समान मानने की हमारे पुरखो ने , तुम्हारे पिता ने और फिर मैंने इसे बढाया ही है पर ना जाने किसकी नजर लग गयी हमारी जंगल पार वाली जमीन बंजर होते जा रही है एक तरफ नहर है , अपना कुवा है फिर भी जाने क्यों जमीन की हरियाली सूख रही है . खैर, मेरी कुछ चिंताए और है जो तुम जान जाओगे पर मैं चाहता हूँ की सुबह शाम तुम जमीनों का चक्कर लगाओ . खेत में काम करने वालो से जान- पहचान बढाओ .

मैं- जी .


हम बात कर ही रहे थे की चाची आ गयी तो चाचा ने बात बदल दी और मैं घर से निकल गया . क्योंकि मेरे पास मेरी खुद की चिंताए थी, आज हार हाल में मुझे ट्रिप के पैसे जमा करवाने थे पर जुगाड़ नहीं हो रहा था तो मैं गया नहीं . मैं ऐसे ही भटकते भटकते उधर पहुँच गया जहाँ नयी सड़क बन रही थी , मेरे दिल में था की थोडा कोयला मिल जाये तो उसे बेच दू, पर वहां कुछ नहीं था सिवाय रेत, रोड़ी के, सब जा चुके थे, हताशा में मैं भी वापिस मुड ही गया था की मैंने सोचा उस बंद कमरे में ही देख लू क्या मालूम कुछ मिल जाये. और जब मैंने कमरे के दरवाजे को धक्का दिया तो ........................................
Nice update
 

drx prince

Active Member
1,561
1,544
143
#7

और जब मैंने दरवाजे को धक्का दिया तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. कमरे में चारपाई पर ताई और ठेकेदार एक दुसरे पर चढ़े हुए थे, अचानक से उनका मजा टूट गया. ताई की नजर मुझ पर पड़ी तो जैसे वो सुन्न हो गयी.

“तू, तू यहाँ कैसे ” अपना लहंगा ठीक करते हुए ताई ने कहा.

मेरा दिमाग जैसे जाम हो गया था पर मैंने ताई से एक शब्द भी नहीं कहा. मैं चुपचाप कमरे से बाहर आया और सीधा जंगल की तरफ चल पड़ा. उसी जगह जहाँ पर मेरी तन्हाई और मैं होते थे.

ताई बहन की लौड़ी, ठेकेदार से चुदवा रही थी. मेरे कानो में ताऊ की कही एक एक बात आ रही थी , जो गालिया वो उसे दारू पीकर बकता था एक एक गाली सच लग रही थी . और न जाने ये सब कबसे चल रहा होगा. बेशक वो मेरी सगी ताई नहीं थी पर फिर भी मुझे बुरा लग रहा था और अगर वो सगी ताई होती तो भी मैं क्या ही कर लेता.



दिल में अजीब सी बेचैनी थी , इस से पहले की मैं और कुछ करता मेरे कानो में वो ही इकतारे की आवाज आई, ठीक ये आवाज ही उस रात मैंने सुनी थी . ऐसा लग रहा था की आवाज बिलकुल मेरे पास से ही आ रही थी पर कहाँ से ये मालूम नहीं हो रहा था . मई की गर्मी में चलती गर्म लू अचानक से ठंडी बयार सी बहने लगी थी .

“कौन चुतिया, भरी दोपहर में संगीतकार बना हुआ है ” मैंने अपने आप से कहा .

कुछ दूर मैं इधर उधर भटका, भेड़ चराने वालो से पूछा पर उन्होंने मना किया. इकतारे की आवाज ने जैसे मुझसे डोर बाँध दी थी मैं बस दौड़ जाना था उस तरफ. भटकते भटकते मैं जंगल में न जाने कितनी दूर पहुँच गया था . और फिर मेरे पैर थम गए. आँखों जो जैसे करार सा आ गया. दिल को अजीब सी ख़ुशी हुई

“तुम्हे देखे मेरी आँखे इसमें क्या मेरी खता है ” मेरे होंठ बस इतना ही कह पाए.

सामने पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो लड़की आँखे मूंदे इकतारा बजा रही थी . केसरिया कपड़ो में सूरज सा दमकता वो सांवला चेहरा जिस पर नजर ठहरे तो फिर नजर कुछ और न देखे. उसकी कलाई पर सफ़ेद कलवा जैसा कुछ बंधा था . इस दुनिया से बेखबर अपनी धुन में मगन वो लड़की जिस शांति , जिस शिद्दत से उस इकतारे की धुन में खोयी थी . उसे देखना जैसे सर्दियों की धुप.

दबे पाँव मैं बस उसके सामने निचे धरती पर जाकर बैठ गया. अजीब सा सम्मोहन , मैं क्या ही कहूँ उन लम्हों के बारे में , उस तपती दुपहरी में जैसे ठंडा शरबत मिल जाना कुछ ऐसा हाल था मेरा. दस-पन्द्रह मिनट, आधा घंटा , न जाने कितना समय बीता वो इकतारा बजाती रही और मैं एकटक बस उसे ही देखता रहा . फिर उसने अपनी तान रोकी और आँखे खोली, पहली बार हमारी नजरे मिली, उसने मुझे, मैंने उसे देखा. वो बड़ी बड़ी कजरारी आँखे बस एक पल ही मिली . वो झटके से उठ खड़ी हुई. उसके चेहरे पर घबराहट सी आई.

मैं- माफ़, कीजिये आप को परेशां नहीं करना चाहता था पर इकतारे को सुनने से खुद को रोक नहीं पाया. मैं चलता हूँ,

“”नहीं कोई बात नहीं “ उसने हौले से कहा

मैं हलके से मुस्कुराया और शायद वो भी .हम दोनों एक दुसरे को बस देख रहे थे न वो कुछ कह पा रही थी ना मैं.

“मेरा नाम मनीष है ” मैंने कहा

“मुझे जाना होगा , ” उसने बस इतना कहा और मेरे पास से सरसराते हुए आगे को बढ़ गयी . पीछे मुड कर उसने एक बार भी नहीं देखा. मैं बस उसे जाते देखता रहा .

“सुनो, क्या हम फिर मिलेंगे.” पता नहीं क्यों मैं अचानक से चिल्ला पड़ा

पर शायद उसने नहीं सुना. मैं भी अब वहां क्या करता. पर मेरे पास जाने को जहाँ भी कहाँ था.

घर आया तो चाची मेरी ही राह देख रही थी .

“सुन ये चावल का कट्टा ताई को दे आ. और उस से कहना की पैसे नहीं पहुंचाए उसने , दे तो ले अइयो ” चाची ने कहा.

मैं- तुम खुद ही दे आओ न

मैं दरअसल ताई का सामना नहीं करना चाहता था.

चाची- देख रही हूँ, आजकल कुछ ज्यादा उड़ रहा है तू, काम चोर हो गया है , ऐसे नहीं चलेगा.

मैं- ऐसे चलाना भी नहीं चाहता मैं. मैं बस इंतजार कर रहा हूँ

चाची की त्योरिया चढ़ आई.

“किस चीज का इंतजार कर रहा है तू, मुझसे जबान तो लड़ाने लगा है अब क्या हाथ सामने करेगा मेरे ” चाची ने ताना मारा.

मैं- बस मेरी पढाई पूरी हो जाये, फिर मैं ये घर छोड़ दूंगा. हमेशा के लिए. हमेशा हमेशा के लिए.

जैसे ही मैने ये बात कही चाची के हाथ से परात छूट गयी . अविश्वास से उसका मुह खुला रह गया

“माना की इस घर में मेरी कोई जरुरत, कोई हसियत नहीं है , और न मैंने कभी कोई हसरत की सिवाय की तुम्हारी झोली से थोड़ी ममता मेरे भाग में भी आएगी. पर लगता है की मुझ बदनसीब का क्या भाग. पर एक दिन आयेगा जब मेरा भाग भी बदलेगा. मैं छोड़ जाऊंगा इस घर को ” मैंने कहा और कट्टा सर पर उठा लिया और ताई के घर की तरफ चल दिया.

दरवाजा खुला था , मैं सीधा अन्दर चले गया. ताई आँगन में ही बैठी थी. मुझे देख कर वो असहज हो गयी .

“चाची ने चावल भेजे है ” मैंने कहा और वापिस जाने को हुआ की ताई ने मुझे रोका.

“रुक जरा, मेरे पास आ. ”ताई ने कहा .

मैं उसके पास गया .

ताई-मुझे कुछ कहना है तुझसे.

मैं- कोई जरुरत नहीं , पर ये जो तू कर रही है न गलत है , जिस दिन ताऊ को मालूम होगा तुझे मार ही देगा वो और गाँव में तेरी क्या हसियत रहेगी.

ताई चुप रही .

मैं- मुझे नहीं पता तेरी मज़बूरी रही या फिर जो भी था, पर गलत था . मैं चाहता तो उसी समय ठेकेदार से उलझ सकता था पर हम दुनिया को क्या कहे जब अपने लोगो में ही कमी. मुझे देख ताई, तू लाख परेशां होगी पर मुझसे ज्यादा तो नहीं . मुझसे जायदा दुनिया देखि है तूने मैं इतना कहूँगा आज के बाद तू मजदूरी नहीं जाएगी. और उस ठेकेदार या तेरे ऐसे रिश्ते किसी और से भी है तो वो तोड़ देगी. तेरी जरुरत का हर सामान तू बनिए की दूकान से ले आ, पैसे मैं चुकाऊंगा चाहे कही से भी लाना पड़े मुझे. ये बात बस हम दोनों के बीच ही रहेगी .


ताई शायद कुछ कहना चाहती थी पर उसका गला रुंध गया था , वो मेरे पास आई और चुपचाप मेरे गले लग गयी.
Very nice update
 

Abhishek Kumar98

Well-Known Member
8,265
8,962
188
#76



संध्या- मीता तुम वो तस्वीर देख कर चौंक गयी क्योंकि उसमे तुमने खुद को देखा जबकि वो मैं थी इसका कारण ये था की मैंने तुमको अपने गर्भ में पोषित किया था .

बाबा- पर समस्या अभी और थी रीना को कैसे बचाया जाये और तब मैंने किसी ऐसे को तलाश किया और ये काम भी हो गया पर मंदा के अवचेतन मन में मेरे प्रति नफरत बढती जा रही थी ये बात तांत्रिक ने मुझे बता दी थी . पर इस से पहले की हम कुछ उपाय कर पाते मंदा ने प्राण त्याग दिए चूँकि वो प्रतिशोध से पोषित थी तो उसके कहर को रोकने के लिए मैंने किसी खास से मदद मांगी और मंदा की रूह को शिवाले में कैद कर दिया. वो हीरा और धागा चाबी थे तुम्हारी यादो के, तुम्हारे आजाद होने का तुम्हारी आत्मा कमजोर रहे इसलिए हमने उनके तीन टुकड़े किया ताकि तुम शांत रहो पर नसीब देखो मनीष के हाथ वो धागे और वो हीरा लग गया. मेरी चेतावनी को नजरंदाज करके इसने वो लाकेट बनाया दरअसल इसने आत्मा के दो टुकडो को एक कर दिया.ऐसा होते ही मंदा की बेचैनी बढ़ने लगी वो बस आजाद होना चाहती थी . आत्मा के प्यासे टुकडो ने गाँव के लोगो का खून पीना शुरू कर दिया . ये कहानी मुझे यहाँ तक मालूम है पर तुमने सुनार को क्यों मारा ये मैं चाह कर भी पता नहीं कर पाया



मंदा- क्योनी सुनार भी शामिल था मेरी बर्बादी में, बड़े चौधरी के साथ उसने भी मेरी इज्जत लूटी थी .



मंदा के इस खुलासे ने हम सबको हिला कर रख दिया मैंने सोचा साला पहले ही मर गया वर्मैंना मैं उसे मार देता. देखा मंदा की आँखों से बेहिसाब आंसू बह रहे थे , एक प्रेतनी होकर भी ऐसा व्यवहार .वो मीता और रीना के पास गयी उनको अपने सीने से लगा लिया और दहाड़ मार कर रोने लगी. रोती ही रही . फिर वो बाबा के पास आई और अपना सर बाबा के पांवो में रख दिया . उसने गले से वो लाकेट उतरा और बाबा के हाथ में रख दिया. बाबा ने उसके सर पर हाथ रखा और बोले- मुक्त हो जाओ मंदा,मुझे भी इस बोझ से मुक्त करो . तुम जो जिन्दगी नहीं जी पायी इन बच्चो को जीने दो .

मंदा रीना और मीता के पास गयी और बोली- सदा इनके सानिध्य में रहना ,

मंदा के बदन में शोले भड़काने लगे और कुछ ही देर में वहां पर बस राख ही पड़ी थी . दोनों लडकिया भाग कर संध्या चाची के गले लग गयी . बाबा ने संध्या चाची को लडकियों के साथ घर जाने को कहा रह गए हम दोनों.

बाबा- कहानी खतम हुई.

मैं- दुनिया के लिए बाबा मेरे लिए नहीं .

बाबा- क्या मतलब है तेरा

मैं- मुझे वो बाते भी जाननी है जो अधूरी है

बाबा-क्या

मैं- मुझे अमृत कुण्ड में दिलचस्पी नहीं है , मैं ये जानना चाहता हूँ की मेरी माँ को किसने मारा. दूसरी बात मैं जानता हूँ की मेरी माँ ने रीना को अपने गर्भ में रखा था . आपने ये बात छिपा ली थी पर मैं समझ गया था .

बाबा- मीता और रीना की परवरिश ऐसे ही करनी थी .

मैं- मुझे मेरी माँ के कातिल से मतलब है मैं जानना चाहता हूँ की मेरी माँ कौन थी उसने किसने मारा

बाबा- सोलह साल से मैं उसके कातिल को तलाश कर रहा हूँ.

मैंने बाबा की आँखों में अपनी आँखे डाली और बोला- क्या आप सच कह रहे है .

बाबा ने मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .

मैं- ठीक है बस एक सवाल और ताई के साथ ताऊ ने किसको देखा था जो वो ताई से इतनी नफरत करने लगा.

बाबा- तुम्हारे दादा को .

मैं- मैंने भी यही सोचा था .

बाबा- रात बहुत भारी है हमें चलना चाहिए

मैं- अब तो मेरे साथ रहोगे न

बाबा- मैं हमेशा तुम्हारे साथ था हर पल तुम्हारे साथ .

मैं-जब्बर को लगता था की मीता मंदा की लड़की है इसलिए वो तलाश कर रहा था उसे

बाबा- जब्बर जाने

मैं-जब आप रूप बदल कर आये थे खेत में तो मैंने पहचान लिया था आपको . पर वो हांडी राख वाली कैसा इशारा था आपका मैं समझ नहीं पाया

बाबा- वो मेरा नहीं , मंदा के संकेत थे , बावड़ी वाली जगह ही थी जहाँ पर मंदा में प्रतिशोध की भावना आई थी, वो सन्देश था की शिवाले में से मंदा को आजाद किया जाये मंदा को लगा की वहां पर उसकी आत्मा का टुकड़ा था पर चूँकि वहां पर मीता तुम्हारे साथ लगातार थी तो मंदा समझ नहीं पाई.



मैं- मुझे मेरी माँ से मिलना है

बाबा- वो जा चुकी है

मैं- मैंने जिसे देखा था सपने में मेरी माँ ही थी वो , वो ही उसका चेहरा था मैं समझ गया हूँ

बाबा ने कुछ नहीं कहा बस मुझे घर ले आये सुबह जब मैं जागा तो देखा की बाबा हमेशा की तरह नहीं थे. मीता और रीना भी अपने घावो की मरहम पट्टी कर रही थी . अब चूँकि हम तीनो के रिश्ते अजीब से थे तो मुझे कुछ तो कहना ही था .

मैं- मेरी बात सुनो , हालात जो भी रहे हो सच ये है की हम तीनो एक ही डोर है

रीना- तुम्हे कुछ कहने की जरुरत नहीं हम दोनों इस बारे में फैसला कर चुकी है

मैं- क्या भला

वो दोनों कुछ नहीं बोली बस चुपचाप आकार मेरे सीने से लग गयी .धडकनों ने दिल का फैसला सुना दिया था मने उनको अपनी बाँहों में भर लिया. थोड़ी देर बाद मैं निचे गया चाची के पास

मैं- बस एक बात पूछनी है

चाची- क्या

,मैं- तुम अपने मांस का भोग किसे देती थी .

चाची- वो एक समझौता है

मैं- कैसा समझौता

चाची- तुम्हे मालूम ही है की तंत्र-मन्त्र में मेरी गहरी दिलचस्पी थी. मुझसे एक भूल हुई थी . तो महीने में एक बार मुझे वैसा करना पड़ता है

मैं- बाबा जानते है न इस बात को

चाची- उन्होंने की मेरी जान बचाई थी इस समझोते को करवाके

मैं- कैसा समझोता मैं फिर पूछता हूँ

चाची- यही की मेरे प्राण तभी सलामत रहेंगे जब मैं अपना मांस अर्पण करुँगी. चूँकि सृष्टी अपने नियमो से बंधी है तो मैंने ये मान लिया

मैं- तो उस रात तुम वहां क्या मांग रही थी .

चाची-कुछ बातो को राज़ ही रहने दो

मैं- रीना जब नहारविरो से लड़ रही थी तो वो अमृत कुण्ड को ही खोलना चाह रही थी न .

चाचीने एक गहरी साँस ली और बोली- मंदा को अमृत की चाह थी उसने सोचा होगा की उस से वो अपना शरीर पुनह प्राप्त कर लेगी और रीना के गले में लाकेट के रूप में मंदा की आत्मा का एक टुकड़ा था . तो वो रीना से वो काम करवा रही थी .

मैं- क्या तुम्हारी भी इच्छा थी अमृत-कुण्ड देखने की

चाची - नहीं क्योंकि मैंने जीवन के अंतिम सत्य को देख लिया है

उसके बाद मैंने चाची से और कुछ नहीं पूछा. कुछ दिन यूँ ही गुजर गए . मैंने जब्बर को सब बात बता दी. हमने मंदा के लिए पूजा की . दिन एस ही बीत रहे थे अपने वादे के अनुसार हर शाम बाबा मुझसे मिलने आते. हम डूबता सूरज को देखते हुए बाते करते. मीता और रीना के रूप में मेरे पास दुनिया की सबसे बेहतरीन दोस्त और प्रेमिकाए थी पर मुझे चैन नहीं था . ऐसे ही एक बेचैन रात में जब मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की कम्बल ओढ़े बाबा कही जा रहे है तो मुझे शक सा हुआ

दबे पाँव मैं भी उनके पीछे पीछे हो लिया बाबा के कदम शिवाले पर जाकर थमे . वो ठीक उसी जगह पर थे जहाँ चाची ने अपने मांस का भोग दिया था जहाँ पर रीना ने नहारविरो को मारा था पर आज उस मैदान में खाली जमीन नहीं थी . वहां पर एक काला महल था . जो चाँद की रौशनी में चमक रहा था . महल के ठीक सामने एक पानी की बावड़ी थी जिसके पत्थर के किनारों पर पीठ किये कोई बैठी थी .....

“आ गये तुम ” बाबा की तरफ बिना देखे उसने कहा .

बाबा ने अपने हाथो में पहने चांदी के मोटे कड़ो को एक दुसरे से टकराया . उसने पलट कर बाबा को देखा .... चाँद की रौशनी में मैंने उसकी सूरत देखि ... और देखता रह गया .


“असंभव,,,,,,,,, ये नहीं हो सकता ” मेरे होंठो से बस इतना निकला और आसमान में चाँद को बादलो ने अपने आगोश में भर लिया .अँधेरे ने सब कुछ लील लिया..............
Bhai eska agla part kab start kar rahe ho bahut din ho gaye hai
 

drx prince

Active Member
1,561
1,544
143
#8

मैं नहीं जानता वो कैसी घडी थी जब ताई मेरे गले लगी, पर उस घडी ने आने वाले कल को बदलने की शुरुआत शायद कर दी थी, ताई की भरी हुई छातिया मेरे सीने में जैसे धंस ही जा रही थी . ताई की गर्म साँस मैंने अपने सीने में उतरते महसूस की. वो कमजोर लम्हा था भावुकता में मैंने भी ताई की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया. ताई के पसीने की गंध में अजब कशिश थी . कुछ देर हम दोनों एक दुसरे से लिपटे रहे . मेरे हाथो ने हलके से ताई की कमर को छुआ और वो अलग हो गयी .



एक तो पैसे का इंतजाम नहीं हुआ दूसरा ताई को चुदते देख लिया जब वो मेरे गले लगी थी तो मेरे मन में हलचल मच गयी थी. रात को मुझे मालूम हुआ की गाँव में किसी के घर वीसीआर लाये थे. तो मैं भी अपने दोस्त के साथ वीसीआर पर फिल्म देखने चला गया. तबियत से मै फिल्म देख रहा था की तभी बिजली चली गयी . सब लोगो का मजा किरकिरा हो गया. कुछ लोगो ने इंतजार किया पर बिजली नहीं आई तो लोग उठ कर अपने अपने घर जाने लगे.

मेरा मन घर जाने का नहीं था तो मैं पैदल ही खेतो की तरफ चल पड़ा. चारो तरफ गहरा अँधेरा छाया हुआ था , कच्चा रास्ता शुरू होते ही अँधेरा और घना लगने लगा. गीत गुनगुनाते हुए मैं अपने रस्ते चला जा रहा था की मेरी नजर धू धू कर जलती लपटों पर पड़ी, हाँ मैंने ठीक कहा वो लपटे ही थी गर्मी के इस मौसम में आग लगना अपने आप में अनोखा सा था क्योंकि इस मौसम में खेत खाली पड़े थे.

बेशक मुझे अपने खेत में जाना था पर मैं उन लपटों की तरफ बढ़ गया. जल्दी ही मैं उस आग के पास था , कुल जमा चार लकडियो को जोड़ कर वो आग जलाई गयी थी , किसी छोटे अलाव के जैसे पर उसकी लपटे ऐसी जैसे की न जाने कितने ही पेड़ जल रहे हो, हैरत की बात थी . आंच की तपत इतनी तेज जैसे पल भर में मुझे पिघला ही दे, और जबकि मैं आंच से निश्चित दुरी पर खड़ा था .

लपटे हवा से थोड़ी इधर उधर हुई तो मेरी नजर अलाव के दूसरी तरफ पड़ी. और वो , हाँ वो ही इस दीन दुनिया से बेखबर , चेहरे पर जहाँ भर का सकून लिए आँखे मूंदे बैठी थी, आखिर कोई इतना शांत कैसे हो सकता था मैंने अपने आप से सवाल किया. कायदे से मेरा सवाल ये होना चाहिए था की ये लड़की जो मुझे बियाबानो में मिलती है ये कौन है , कहाँ की है और ऐसे भटकने का क्या मकसद है इसका.

पर उसे देखते ही , बस उसे देखते रहने को ही दिल करता था मेरा. बेशक ये दूसरी मुलाकात थी , मैं भी वहीँ रेत पर बैठ गया.

“यूँ इन स्याह रातो में भटकना नहीं चाहिए , ” उसने बिना आँखे खोले ही कहा मुझसे

“तुम भी तो भटक ही रही हो, ” मैंने कहा

उसने हौले से आँखे खोली और लगभग मुझे घूरते हुए बोली- मेरे पास मेरा प्रयोजन है और दूसरी बात ये की तहजीब ये कहती है हमें अपने काम से काम रखना चाहिए दुसरो , खासकर अजनबियों के मामले में नहीं पड़ना चाहिए, न उन्हें परेशां करना चाहिए .

मैं- ये हमारी दूसरी मुलाकात है , हम अजनबी कहाँ रहे

मेरी बात सुनकर उसके होंठो पर मुस्कान आई जिसे उसने छिपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

वो- हम एक दुसरे को जानते भी तो नहीं न ,

मैं- उसमे कौन सी बड़ी बात है , मेरा नाम मैंने बताया न तुम्हे, अब तुम बता दो अपना नाम , ऐसे ही जान पहचान हो जाएगी.

वो- नाम में क्या रखा है , नाम का क्या वजूद , वक्त की धार में न जाने किस किस को भुला दिया गया , हमारा नाम हो न हो क्या फर्क पड़े.

मैं- तो चलो तुम्हे गुमनाम ही समझ लेता हु. वैसे तुम्हारा क्या प्रयोजन है , क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूँ , गाँव में सब जानते है मुझे .

वो- फर्क इस बात से नहीं पड़ता की तुम्हे कौन जानता है , महत्वपूर्ण ये है की तुम किसको जानते हो .

उसकी बात मुझे समझ नहीं आई , पर सुनकर अच्छा लगा.

“मैं खगोल शास्त्र की विद्यार्थी हूँ, ” उसने धीरे से कहा .

भंचो, ये कौन सा शाश्त्र था , मैंने तो सुना ही पहली बार था.

“ये क्या होता है ” मैंने पूछा

वो- मैं तारो की पढाई करती हूँ,हथेली की रेखाओ को तारो से मिला कर तक़दीर देखती हूँ

मैं- अरे बढ़िया, बताओ न मेरी तक़दीर में क्या लिखा है

मैंने हथेली उसकी तरफ बढाई. वो मेरे पास आई और मेरे हाथ को अपने हाथ में थामा, ऐसे लगा की जैसे बर्फ ने छू लिया हो मुझे, पास आंच जल रही थी पर मैं कंपकंपा गया. उसने एक पल मेरी हथेली थामी और फिर छोड़ दी.

“तेरे पास दौलत है बहुत, ” उसने कहा

मैं- तेरी पहली ही बात गलत साबित हो गयी . क्या तक़दीर देखेगी तू.

मैंने हँसते हुए कहा.

वो- मुझे जो दिखा मैंने बताया तू मान या ना मान तेरी मर्जी

मैं- और क्या देखा

वो- तमाम जहाँ का दुःख

उसने बस इतना कहा और उठ खड़ी हुई.

“जाने का समय हुआ मेरा ” उसने कहा

मैं- फिर कब मिलोगी

वो- मुसाफिरों के पते ठिकाने नहीं होते, तक़दीर में मुलाकात होगी तो मिल लेंगे वर्ना अपने अपने रस्ते तो हैं ही

इतना कह कर वो चल पड़ी मैं बस उसे देखता रहा . जो आंच जल रही थी वो न जाने कब बुझ गयी पता ही न चला.

सुबह जब मैं गाँव में गया तो चौपाल पर बहुत जायदा भीड़ इकठ्ठा हुई थी . अमूमन सुबह सुबह इतने लोग कम ही देखने को मिलते थे.

“क्या हुआ भाई, इतनी भीड़ क्यों है ” मैंने एक गाँव वाले से पूछा.






“वो कल, कल रात ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
Nice update
 

drx prince

Active Member
1,561
1,544
143
#9

अधूरी बात छोड़ गाँव वाले ने पीछे नीम के पेड़ की तरफ इशारा किया और मेरी आँखों ने जो देखा,एक पल के लिए कलेजा जैसे शरीर से बाहर ही आ गया मेरा. पेड़ पर एक लाश , हाँ अब उसे लाश कहना ही ठीक होगा टंगी थी, आधी सही सलामत आधी जली हुई,

मैं- ये तो . ये तो.

“ये चरनसिंह है, लालाजी का मुनीम ” गाँव वाले ने मेरी बात पूरी की. पर मेरी दिलचश्पी उसकी बात में नहीं थी , मेरी उत्सुकता जिस बात ने बढाई थी वो थी चरण सिंह के शरीर का आधा जलना,

“कैसे मारा होगा कातिल ने इसे ” मैं बुदबुदाया.

आस पास सारा गाँव जमा था पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी की लाश को पेड़ से उतार दे. वैसे भी इस देश की जनता तमाशबीन के सिवा और कुछ भी तो नहीं . ऐसी बाते मैंने उपन्यासों में ही पढ़ी थी , कभी देखा -सुना नहीं था असली जीवन में पर आज की बात कुछ और थी. पेड़ या उसके आस पास ऐसे कुछ भी नहीं था , मतलब की कातिल ने उसे कही और मारा था और यहाँ लाकर टांग दिया था.

मैंने देखा एक कोने में लाला बैठा था अकेला. , आज उसने अपना सुनहरा चश्मा नहीं पहना था, चेहरे पर शिकन थी . कुछ देर बाद पुलिस आई , लाश को उतार कर गाड़ी में रखा गया, लालाजी और कुछ गाँव वालो से पूछताछ की और चली गयी. मैं भी अपने घर को चल दिया. रस्ते में मुझे रीना मिली.

“कहाँ है तू आजकल,तुझे मालूम है क्या हुआ गाँव में ” उसने कहा.

मैं- गाँव की छोड़, अपनी बात कर

वो- अपनी क्या बात करू, दो दिन हो गए तू मिला ही नहीं .

मैं- कहीं तुझे आदत न हो जाये मेरी इसलिए नहीं मिला.

रीना- ये ख्याल आते आते कुछ देर नहीं हो गयी.

हम दोनों मुस्कुरा पड़े.

रीना-मैंने सोचा है मैं भी उदयपुर नहीं जा रही

मैं-क्यों भला

वो- तू , जो नहीं होगा साथ .

मैं- जिन्दगी में न जाने ऐसे कितने दिन आयेंगे जब मैं साथ नहीं रहूँगा ,

रीना- तब की तब देखूंगी.

मैं- तुझसे बातो में कोई नहीं जीत सकता , आज मेरा न जाना मेरी किस्मत है , आज मैं पैसे से परेशां हूँ, पैसे के पीछे भाग रहा हूँ पर रीना तू देखना एक दिन आएगा जब मैं झुका दूंगा इस जहाँ को

रीना- उसके लिए मेहनत जरुरी है , तभी तो कहती हूँ, पढाई पर हद से ज्यादा ध्यान दे, अगली बार कालेज शुरू हो जायेगा. कोई नौकरी मिल गई तो फिर सुख ही सुख होगा.

मैं- तूने मेरी बदनसीबी देखि है , मेरा वादा है , मेरी बदली किस्मत भी देखेगी तू.

रीना- तू भी न , मैं ये कह रही थी की तेरे लिए रेडियो मंगवा दिया है अभी अभी तेरे चोबारे में रख के ही आई हूँ.

मैं- सच में, झूठ तो नहीं बोल रही तू

वो- जाकर देख लेना . चल मिलती हूँ बाद में थोडा काम है मुझे.

मैं- आजकल कुछ ज्यादा ही काम रहने लगा है तुझे.

वो- ये सही है , मशरूफ तुम रहते हो. कितनी सुबह बीत जाती है आजकल मैं मंदिर पर तेरा इंतज़ार करती रह जाती हूँ, और सितम देखिये दोष भी हमारा.

मैं- दोष तो समय का है , चल आज दोपहर कुवे पर चलते है

वो- देखती हूँ , कोई काम न निकला तू चलेंगे पर अभी चलती हूँ .



रीना के जाने के बाद मैं भी अपने चोबारे में चढ़ गया और उसका लाया तोहफा देखा, फिलिप्स का रेडियो जिसमे एफएम भी था, काश मैं बता सकता की कितनी ख़ुशी हुई थी मुझे उसे देख कर. मैं लगभग दौड़ ही पड़ा था रेडियो के सेल लाने को पर तभी मेरे कदम रुक गए, मेरी नजर उस बक्से पर पड़ी,

“इसे किसने बाहर निकाला ” मैंने अपने आप से पूछा क्योंकि मैंने इसे छिपा कर रखा था पर अभी ये मेरी टेबल पर पड़ा था . कहीं चाची को तो इसके बारे में मालूम नहीं पड़ गया . मैंने फिर खुद से सवाल किया.

कांपते हाथो से मैंने बक्से को फिर खोला. हमेशा के जैसे उसमे कुछ नहीं था सिवाय उस धागे के जिसका रंग थोडा सा बदला बदला लग रहा था . मैंने एक बार फिर उसे हाथ में लिया और एक बार फिर उसने मेरी उंगलियों को झुलसना शुरू कर दिया.

“क्या बवाल है इस धागे का ” मैंने कहा.

मन में एक साथ बहुत से सवाल थे , जिसका जवाब या तो सुनार दे सकता था या फिर जब्बर क्योंकि बक्से की असलियत वो दोनों ही जानते थे, और दोनों ही मेरी पहुँच से दूर थे. मैं अपने ख्यालो में गुम था की मेरे कानो में कुछ आवाजे आने लगी , मैंने निचे आँगन में झाँक कर देखा तो चाचा किसी अजनबी के साथ बैठे थे. मैंने बक्से को छुपा कर रखा और फिर निचे चला गया .

सीढिया उतरते हुए उन दोनों की नजर मुझ पर पड़ी.

“मनीष, खेतो पर चले जाओ, नहर आई हुई है , पम्प लगा कर खेतो में पानी छोड़ देना. ” चाचा ने मुझसे कहा

मै ये सुनकर हैरान हो गया, गर्मी के इस मौसम में जब खेत खाली पड़े थे तो सिंचाई की भला क्या जरुरत भला.

“पर चाचा,” इस से पहले की मैं कुछ कह पाता चाचा ने मेरी बात काटी और बोले- मैंने कहा न अभी के अभी खेतो पर चले जाओ .

न जाने मुझे ये क्यों लगा की वो थोड़े झुंझलाए हुए थे. मैंने साइकिल उठाई और खेतो की तरफ चल दिया , वो अजनबी लगातार मुझे ही घूरे जा रहा था .

बेशक चाचा ने मुझे खेत पर जाने को कहा था पर इस गर्म दोपहर में खेतो पर जाना खुदखुशी करने जैसा था, बिनाकाम भला कौन तपेगा , इस धुप में तो मैं ताई के घर चला गया. दरवाजे को को खोला और मैं सीधा अन्दर चला गया. और जब मैं अन्दर ताई के कमरे में गया तो .....................................

मैंने देखा ताई पूरी नंगी अपने बदन को तौलिये से पोंछ रही थी , मेरे तो होश ही उड़ गए. ताई की पीठ, सुडोल नितम्ब , बदन को पोंछते हुए वो एक पल को थोडा सा आगे को झुकी और मेरी नजर कुलहो से थोड़ी निचे होते हुए उस जगह पर पहुँच गयी जिसे गहरे काले बालो ने ढक रखा था . मेरे कानो के पास गर्मी थोड़ी बढ़ सी गयी थी, बदन का सारा खून एक जगह इकठ्ठा हो गया हो ऐसा लगने लगा था मुझे.

इस से पहले मैं पकड़ा जाता मैं बाहर आ गया और आवाज लगाई- ताई, है क्या घर पर.

“हाँ, अभी आई दो मिनट रुक जरा.” उसने अन्दर से ही कहा.

कुछ देर बाद वो बाहर आई मेरी नजर ताई के ब्लाउज पर पड़ी जो उसकी छातियो से चिपका हुआ था , ताई ने ब्रा नहीं पहनी थी , गीले बदन ने ब्लाउज को अपने आप से चिपका लिया था, ताई ने भी समझ लिया था की मैं उसकी चुचियो को घुर रहा हु पर उसने कुछ नहीं कहा.



ताई- तुझे मालूम है आज गाँव में काण्ड हो गया .

मैं- हाँ देखा मैंने ,

ताई- देखने की नहीं सोचने की बात है , मेरा कलेजा तो अभी तक कांप रहा है .

मैं- पर चरण सिंह को भला कोई क्यों मारेगा

ताई - तुझे नहीं मालूम, चरण सिंह कोई भोला इन्सान नहीं था , सुनार का खास गुर्गा था वो .

मैं- हर कोई किसी न किसी के लिए काम तो करता ही है, और फिर सुनार तो सबकी मदद करता है .

ताई- मदद करता है , उसे मदद नहीं कहते

मैं- जानता हूँ, पैसे ब्याज पर देकर वो लोगो की जमीने हड़प लेता है .

ताई- नीच है वो एक नंबर का जितनी गाली तो उसे उतनी ही कम, काश कोई उसे भी मार दे .

मैं- उसकी आयेगी तो वो भी जायेगा. मैं तुझसे कुछ और बात करने आया हूँ

ताई- हाँ बता.

मैं- चाचा किसी को हमारी जंगल पार वाली जमीन बेचने की बात कर रहा था ,

ताई- क्या कहा तूने, जंगल पार वाली जमीन , उसे भला कोई क्यों खरीदेगा.

मैं- क्यों क्या हुआ.

ताई- तुझे नहीं मालूम क्या, कितने दिन हुए तुझे उधर गए हुए.

मैं- याद नहीं, बचपन में कभी गया होऊंगा उधर.

ताई- ठीक है शाम को चलेंगे उधर, मैं भी खाली ही हूँ, तेरा ताई तो दो दिन घर आने वाला नहीं, वैसे तूने पक्का जंगल पार वाली जमीन ही सुना था न .

मैं- हाँ , पर ऐसा क्या है उस जमीन में


ताई- तू खुद देख लेना शाम को . ...........
Nice update
 
काम धंधा भी देखना होता है भाई, ऊपर से सर्दी,
दोस्त आपकी कई कहानियां कई और वेबसाईट पर पढ़ी हें सेक्स बाबा पर लेखक का नाम पता नही चल पाता क्या गुजारिश का पार्ट १ भी हे क्या और क्या मुझे पढने को मिल सकता हे में दोनों कहानियां को पढना चाहूँगा बाकि आपकी कहानी काफी अच्छी लगी हे अभी शुरुआत हे वेसे भी मुझे कहानी हिंदी में ही पढनी पसंद आती हे कई कहानियां अच्छी लगती हें पर रोमन में होने की वजह से मुझे हिंदी में बदलकर पढनी पडती हें आपकी और कहानी भी कोन सी हें बताइयेगा धन्यवाद
 
Top