#37
“ये जीवन अजीब होता है , इन रिश्तो को भूल भुलैया को समझने के लिए सीने में धडकता दिल होना चाहिए , अब देख ले न तेरे मेरे दरमियान जो भी है, उस से मेरी ममता कम नहीं हो जाती, मेरे आँचल की छाँव हमेशा तेरे सर पर छत बन कर रहेगी. ” ताई ने मुझे धक्का सा दिया और चल पड़ी घर की तरफ.
ये औरत भी न अपने आप में अजीब थी, छोटे से दिल में न जाने क्या क्या समेटे हुए थी . घर आने के बाद ताई खाना बनाने लगी मैं उसके पास ही बैठ गया .
ताई- ऐसे खामोश क्यों बैठा है
मैं- कुछ नहीं बस , कल के बारे में सोच रहा हूँ
ताई- कल कभी नहीं आता ,
मैं- मेरा कल आएगा जरुर आएगा.
ताई- और क्या होगा उस कल में
मैं- एक घर होगा मेरा घर .
खाना खाने के बाद मैंने आँगन में ही बिस्तर लगाया और सितारों को देखते हुए सोचने लगा. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ था मेरी जिन्दगी की चलती फिल्म जैसी हो गयी थी , एक दम से इतने बदलाव आ गए थे की समझना मुश्किल हो रहा था . मेरे पास रीना थी, मीता आ गयी थी मेरी जिन्दगी में . एक मेरी भोर का उजाला थी तो दूसरी मेरे अंधेरो की साथी . बार बार मुझे मीता की कही बात याद आ रही थी की , कुछ नहीं है सिवाय बर्बादी के.
मैं चाचा- चाची के बारे में सोचने लगा. मैंने दो बार उनकी बाते सुनी थी दोनों बार ही उन्होंने हैरत में डाला था मुझे, मुझे ये भी मालूम हुआ था की चाची की ले नहीं पाता चाचा . क्या वो भी ताई के जैसे किसी और संग चुदाई करती होगी. ऐसे तमाम सवालो ने मेरे सर में दर्द कर दिया था . पास रखे जग को मैंने मुह से लगाया और पानी पीने लगा. मेरी निगाह ऊपर चाँद की तरफ थी जो मुझे ही देख रहा था .
सुबह जब मैं उठा तो मौसम कुछ जुदा जुदा था , आसमान में बादल घुमड़ आये थे , करने को कुछ ख़ास नहीं था पर दिल में उमंग थी , आज मेले के बहाने मैं रीना से अपने दिल की बात कह देना चाहता था . दोपहर होते होते वो भी आ गयी. वादे के अनुसार उसने नीला सूट पहना था , क्या गजब लग रही थी वो आज
“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा
मैं- बड़ी प्यारी लग रही है आज, काला टीका लगा ले, कहीं नजर न लग जाये तुझे
रीना- तू साथ है न फिर क्या फ़िक्र. चल अब और देर मत कर , यही पर दोपहर कर दी तूने.
मैं- सुबह से तू गायब थी और बिल मुझ पर फाड़ रही है .
आपस में हंसी मजाक करते हुए हम और गाँव वालो संग रुद्रपुर के लिए चल पड़े. हवाओ में आज कुछ शोखिया सी थी. जब हवा बार बार रीना के झुमको को चूमती तो न जाने क्यों मुझे जलन होती. ऊँट गाड़ी पर हिचकोले खाते हुए चले जा रहे थे . आँखों के इशारे सीधे दिल तक जा रहे थे . और फिर वो घडी भी आ गयी जब हम मेले से कुछ ही दूर थे. उन ग्यारह पीपलो से थोडा पहले गाड़ी वाले ने हमें उतारा.
रंग बिरंगे खेल तमाशे , जगह जगह छोटी छोटी दुकाने लगी थी , झूले लगे थे.
“वादा याद है न ” रीना ने मेरे कान में कहा
मैं- तू भी याद है वादा भी .
मैंने उसका हाथ पकड़ा. और हम मेले में चल दिए.
“आजकल तू न जाने किस निगाह से देखता है मुझे ” उसने कहा
मैं- तू ही बता क्या दोष है मेरी निगाहों का
रीना- ये सीधा मेरे दिल में उतरती है .
मैं- पर वो दिल तेरा कहाँ , वो तो मेरा हो चूका
मेरी बात सुनकर रीना का चेहरा गुलाबी हो गया.
रीना- ऐसी बाते ना किया कर, कुछ कुछ होता है
मैं- बता फिर क्या होता है .
रीना- जान कर रोका है बताने को ,
मैं- तेरी मर्जी.
मैंने थोड़ी नमकीन खरीदी और खाते हुए रीना के साथ इधर उधर घुमने लगा. कुल्फी खाने के बाद हम लोग झूला झूलने गए. आज का दिन मेरे जीवन का सबसे बढ़िया दिन था , कम से कम उस वक्त तक तो मुझे ऐसा ही लग रहा था . घूमते-खरीदारी करते हुए समय न जाने कब ढलने लगा था .
रीना- देवता के दर्शन तो कर लेते है
मैं- हाँ चलते है .
हम शिवाले की तरफ जा ही रहे थे की तभी एक दूकान पर मेरी नजर पड़ी.
मैं- आ जरा मेरे साथ .
रीना- अब कहा ले जा रहा है .
मैं- आ तो सही .
मैं रीना को उस दूकान पर ले गया जहाँ पर पायल बिक रही थी .
मैं- काकी, सबसे सुन्दर पायल दिखा जरा.
एक पतली सी डोर वाली पायल पसंद आई मुझे.
काकी- चांदी की है .
मैं- रीना पैर उठा तेरा जरा .
जैसे ही उसने पैर उठाया मैंने पायल पहना दी उसे. वो कुछ कहना चाहती थी पर मैंने उसे रोका.
“एक दिन तूने मेरे लिए अपनी पायल बेचने की बात कही थी , आज मैंने तेरे लिए पायल खरीदी है , ” मैंने कहा
रीना- एक लड़की को पायल पहनाने का मतलब समझता है तू
मैं- मुझे समझने की जरुरत नहीं , चल आ दर्शन करने चलते है .
हम शिवाले से थोड़ी दूर ही थे की रीना बोली- “मनीष, बड़ी प्यास लगी है, पानी पीना है ”
“तू सीढियों पर बैठ, मैं अभी पानी लेकर आता हूँ ” मैंने उस से कहा और पानी लेने चल दिया. मैंने इधर उधर देखा पानी का जुगाड़ दिखा नहीं मुझे, मैं टंकी पर गया पर वो भी सूखी थी. कुछ देर भटकने के बाद मुझे प्याऊ दिखी, मैंने एक लोटा पानी भरा और रीना की तरफ चल पड़ा. जब मैं वहां पहुंचा तो मेरा दिल धक् से रह गया. मैंने देखा .........
मैंने देखा की रीना को चार पांच लडको ने घेर रखा है और एक लड़का जिसकी पीठ मेरी तरफ थी उसके हाथ में रीना की चुन्नी थी . जिसे वो लहरा रहा था एक लड़के ने रीना की बाहं पकड़ रखी थी . उस पल मुझे जो अफ़सोस हुआ , मुझे उन लडको से ज्यादा खुद पर गुस्सा था की मैं उसे छोड़ कर गया ही क्यों. मेरे हाथ से लोटा छूट गया .
“रीना ” चीखते हुए मैं उसकी तरफ भागा. रीना ने मेरी तरफ देखा उसका आंसुओ से भरा चेहरा मेरे कलेजे को चीर गया . जिस लड़के के हाथ में रीना की चुन्नी थी उसने मुझे देखा पलट कर वो जोरावर था . मेरे सीने में उसने वो आग जला दी थी जो बुझना मुमकिन थी .
“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तू जानता है तूने क्या किया है ” मैंने कहा
जोरावर- चोट वही सबसे ज्यादा असर करती है जहाँ पर सही वार किया जाये. जब से मुझे मालूम हुआ तू अर्जुन का बेटा है , मैं जल रहा था , तेरे बाप ने मेरे बाप को मारा था आज मैं अपना बदला पूरा करूँगा.
“तेरी शिकायत मैं हस्ते हस्ते दूर कर देता पर तूने इस लड़की पर हाथ नहीं डाला, तूने मेरे गुरुर को ललकारा है , तेरी हर खता माफ़ थी , पर आज तू भी तेरे बाप के पास जायेगा. ” मैंने कहा और जोरावर की तरफ लपका. तभी उनमे से एक लड़के ने मेरे पैर में अडंगी लगा दी मैं गिर गया और गिरते ही जोरावर ने मेरी पीठ पर लात मारी.
“पीठ पर मारा है , सीने पर खायेगा. ” मैंने उठते हुए कहा.
दुसरे लड़के ने रीना की बाहं मरोड़ी. मैंने पास की एक गन्ने की रेहड़ी पर से फरसा उठाया और उस लड़के की तरफ फेंका जो सीधा उसके कंधे पर जा लगा. खून का फव्वारा छूट पड़ा. जैसे ही उसकी पकड़ ढीली हुई, रीना दौड़ पड़ी मेरी तरफ और अकार मेरे सीने से लग गयी.
“तुझे रोने की जरुरत नहीं , तेरे आंसू सूखने से पहले मैं आग लगा दूंगा इनको मेरा वादा है तुझसे ” मैंने रीना को पीछे किया. तब तक उन लोगो ने हथियार निकाल लिए थी .
मैंने उनमे से एक लड़के की लाठी रोकी और उसकी गोटियो पर लात जमा दी, पर मुझे इन चुतियो की परवाह नहीं थी मुझे बस जोरावर दिख रहा था . उस लड़के के हाथ से लाठी गिरते ही मैंने लाठी उठाई और उसके सर पर दे मारी , सर फूट गया पर मुझे कहाँ परवाह थी एक के बाद एक उसके सर पर वार करते ही गया मैं जब तक की लाठी टूट नहीं गयी. आस पास लोग इकठ्ठा होने लगे थे पर कोई भी बीच में नहीं आ रहा था .
जोरावर ने मेरी तरफ एक पत्थर फेक कर मारा जिसे मैंने बचाया और उसकी गर्दन पकड़ ली.
“मेरी आँखों में देख , तू तो न जाने किस आग में जल रहा था पर मैं तुझे आज इसी जगह पर जला दूंगा. और मुझे विश्वास है की तेरी सांसे इतनी कमजोर नहीं होगी, तू चीखेगा ” मैंने उसका गला दबाते हुए कहा. मेरे नाखून उसके गले की नसों को चीर देना चाहते थे . उसकी आँखे बाहर निकलने को मचलने लगी थी . की तभी पीछे से कीसी ने मेरे सर पर कुछ दे मारा. एक पल को मेरा सर चकरा गया . सर से टपकते लहू ने चीख कर कहा की सर फूट गया है मेरा. मेरी पकड़ जोरावर से ढीली हो गयी . मैं पीछे को पलटा ही था की मेरी पसलियों में दर्द भर गया . जिसने मेरा सर फोड़ा था उसने चक्कू घोप दिया था मेरी कमर के ऊपर .
“आह”दर्द से बिलबिला पड़ा मैं . तभी जोरावर ने लात मारी मुझे मैं गिर गया . वो चार लोग टूट पड़े मुझ पर लात पे पड़ती लात ने मुझे दोहरा कर दिया.
“तुझे क्या लगा था , तू मुझे हरा देगा. मैं इंतज़ार में कितना तदपा हु , तू नहीं समझ सकता कुत्ते, आज तेरे लहू से देवता को नहला कर मुझे चैन आएगा. ” उसने मुझे मारते हुए कहा .
मैंने अपने हाथ धरती पर टिकाये और खड़ा होते हुए कहा - तू भी झूठा , तेरा देवता भी झूठा. जिस देवता के दरबार में एक मासूम की इज्जत पर कोई भी हाथ डाल दे उस देवता को नहीं मानता मैं. और आज के बाद कोई मानेगा भी नहीं .
खड़े होते हुए मैंने उनमे से एक लड़के को धक्का दिया वो थोडा दूर हो गया और अपने आप को संभालते हुए, मैंने एक की गर्दन मरोड़ दी. पल भर में ही वो धरती पर गिर गया उसके प्राण साथ छोड़ गए उसका. झुकते हुए मैंने वो फरसा उठा लिया और एक और लड़के की पीठ पर वार किया वो चीख पड़ा. ये फरसा मेरे हाथ में होना एक मौका था जिसे मैं चूक नाही सकता था .मैंने बिना सोचे की कहाँ कहाँ लग रही है उसके, वार करने चालु किये और जैसे कसाई किसी बकरे को काटता है वैसे ही उसके टुकड़े करने शुरू कर दिए. मैं पूरी तरह खून में सन गया था .
उनमे से एक लड़का भाग गया और एक के कंधे पर पहले फरसा लगा था वो एक तरफ पड़ा था . रह गए मैं और जोरावर. मैंने फरसा साइड में फेंक दिया.
“आ जोरावर, तुझे मारने के लिए मुझे हथियार की जरुरत नहीं , ” मैंने चीखते हुए कहा . एक बार फिर हम दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. उसने मेरे सर पर मारा और एक घूँसा मेरी पसली पर जहाँ चक्कू था . मैं दोहरा हो गया . पर यही तो मजा था इस खेल का , खून का नशा क्या होता है उस ढलती शाम को जाना था मैंने . आसमान में बादल कडकने लगे थे . सूरज को अपनी ओट में ले लिया था बादलो ने . कभी वो मुझ पर भारी कभी मैं उस पर . उसने मुझे घुटने पर मारा पर मैं एक पल झुका और तुरंत ही उसे अपने कंधो पर उठाते हुए दूर फेंक दिया. वो पत्थर की सीढियों पर जाकर गिरा. और मैंने उसके सर को सीढ़ी के कोने पर दे मारा . वो डकारा मैंने उसकी बाहं को पीछे किया, कड़क की आवाज आई और जोरावर की चीख गूंजने लगी.
“इसी हाथ से तूने मेरी रीना की चुन्नी को उतारा था न , मैं इस हाथ को ही उखाड़ दूंगा. ” मैंने कहा और अपना पैर उसकी बगल पर लगते हुए पूरा जोर लगा कर बाहं उखाड़ दी उसकी. हलाल होते बकरे की तरह मिमियाने लगा जोरावर और उसकी चीख ने जो मुझे सकूं दिया था न मैं लिख नहीं सकता .
“रीना, इधर आ. ” मैंने रीना को बुलाया.
“इसी हाथ से इसने तेरा आंचल खींचा था मैंने ये हाथ ही उखाड़ दिया रीना ” मैंने कहा
रीना- घर चल मनीष, घर चल
मैं- चलेंगे , पर अभी नहीं अभी तो जोरावर को ये देखना है की मौत कैसी होती है .
रीना- छोड़ दे इसे, तेरी हालत ठीक नहीं है ,
मैं- किसे परवाह है ,
रीना- मैंने माफ़ किया इसे ,
मैं - पर मैंने नहीं .
मैंने जोरावर की दूसरी बाहं पकड़ी और उसे घिसटते हुए देवता की तरफ ले चला.
“तेरे कमजोर देवता को भी तो मालूम हो की अभी इस दुनिया में ऐसे लोग भी है जिन्हें उसके रहमो कर्म की जरुरत नहीं अगर देवता के आँगन में ही ये पाप होने लगे तो मैं उस आँगन को ही मिटा दूंगा ” जोरावर के बदन से रिश्ते खून से फर्श लाल होने लगा था .
“आखिरी बार देख ले इस दुनिया को इस देवता को ” मैंने कहा और जोरावर की आँख फोड़ दी. उसकी चीखे गूंजने लगी . जितना वो चीखता उतना उन्माद मुझ पर छाता .
“अर्जुन के लड़के छोड़ दे जोरावर को ” पीछे से किसे ने कहा
मैंने पलट कर देखा , दद्दा ठाकुर और उसके पीछे न जाने कितने लोग खड़े थे .
मैं- तेरी गांड में दम है तो छुड़ा ले इसे.
ददा- मुझे मजबूर मत कर. तूने शिवाले में खून बहा कर अनर्थ किया है .
मैं- अनर्थ तो तू देखेगा अभी .
दो चार गाँव वाले मेरी तरफ भागे. मैंने तुरंत वो फरसा उठा लिया और जोरावर की पीठ पर वार किया. वो लोग रुक गए .
“आज चाहे सरे रुद्रपुर में आग लगानी पड़े, लाशो के ढेर लग जाये, जोरावर को तो मारूंगा ही मारूंगा और जो कोई भी मादरचोद बीच में आया वो भी मरेगा. ” मैंने कहा .
दद्दा- मेरा सबर टूट रहा है
मैं- माँ की चूत तेरी और तेरे सबर की .
वो कहते है न की कभी कभी इंसान जोस में होश खो देता है मेरी जिन्दगी में ये वो लम्हा था , मैंने दद्दा के अहंकार को चोट मार दी थी . पल भर में स्तिथिया बदल गयी थी . मैं अकेला और वो नजाने कितने पर मैने भी सोच लिया था मरना है तो सबको साथ लेकर मरेंगे. एक हाथ से मैं उनसे टक्कर ले रहा था दुसरे से जोरावर को थामा हुआ था , उसे छोड़ देता तो हमारी इज्जत क्या रह जाती.
मेरे वार उन पर हो रहे थे , उनके घाव मुझ पर , बदन से न जाने कहाँ कहाँ से खून बह रहा था , हालत ये थी की या तो मर जाऊ या मार दू. मैं जोरावर को तदपा तडपा कर मारना चाहता था और ये मुमकिन होता नहीं लग रहा था तो मैंने पुरे जोर से उसकी गर्दन पर वार किया और उसकी गर्दन फर्श पर लुढ़क गयी . एक पल के लिए सब कुछ जैसे जाम हो गया .
“जिसे जोरावर चाहिए था वो इस सर को ले जाये ” मैंने कहा
ददा- तुझे ये नहीं करना था, नहीं करना था
दद्दा ने तलवार मेरी तरफ फेंकी जो सीधा मेरी जांघ में घुस गयी. और वो सब लोग टूट पड़े मुझ पर . मेरी आँखे खुल नहीं रही थी , आंसू और खून से भीगी थी वो . हर जगह मुझे अँधेरा अंधेरा ही दिख रहा था . तभी किसी ने मुझे पकड़ा और घसीट कर ले गया .
“तुझे क्या लगा था तू जिन्दा यहाँ से चला जायेगा , अब तू भी देख मौत कैसी होती है ” ददा ने मुझे खड़ा करते हुए कहा.
“मौत तो आणि जानी है दद्दा ठाकुर, पर मैं ऐसे नहीं मरूँगा ,”मैंने कहा .
ददा ने मुझे लात मारी मैं दूर जाकर गिरा. मैंने हाथ में तलवार लेकर आते देखा उसे मेरी तरफ ............. पर तभी धांय धांय गोलियों की आवाजे आने लगी और सब लोग एक तरफ हो गए.
“बस ददा बहुत हुआ, अब किसी ने भी अगर इसकी तरफ आँख भी उठाई तो मैं मारूंगी दस गिनुंगी एक , ” डूबती आँखों से मैंने देखा वो चाची थी जो हाथो में बन्दूक लिए मेरी तरफ चली आ रही थी .
“तो तू भी आ गयी , ”ददा ने चाची की तरफ देखते हुए कहा
चाची- कसम खाके गयी थी की मरना मंजूर है पर रुद्रपुर में पैर नहीं रखूंगी, मुझे कसम तोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. और ये लड़का जो वहां पड़ा है मेरा बेटा है , बेटे पर आंच आई तो माँ को तो आना पड़ेगा न , और माँ का कलेजा फटा न तो फिर ये गाँव क्या माँ दुनिया जला दे. किसी की भी नसों में ये गुमान जोर खा रहा हो की वो मनीष को नुक्सान पहुंचा देगा , मेरे सामने आये .
ऐसी ख़ामोशी छाई थी वहां पर जैसे कोई हो ही न, आसमान से बूंदे बरसने लगी थी . बरसात की बूंदों ने मेरे चेहरे को धोया तो मैंने साफ साफ देखा .
ददा- गलती कर रही है तू संध्या , तू पहले भी गलत थी तू आज भी गलत है .
चाची- मुझे तब भी फक्र था आज भी फक्र है
ददा- काश तू मेरी बेटी न होती
चाची- मैं तेरी बेटी कभी नहीं थी .....
चाची मेरे पास आई उसने रीना से मुझे उठाने को कहा और मुझे वहां से ले चली. मेरी आंखो में आंसू थे, रीना की आँखों में आंसू थे, आसमान रो रहा था .
“सोलह साल पहले आसमान भी रोया था , ” मेरे कानो में उस काबिले वाले बाबा के शब्द गूँज रहे थे . .....................