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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Abhishek Kumar98

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#2



आँख थोड़ी देर से खुली .सूरज चढ़ आया था. . मैंने कपडे बदले और रसोई की तरफ गया , वहां पर ताला लगा था . मेरी नजर छींके पर गयी जहाँ पर कपडे में तीन रोटिया लिपटी पड़ी थी .

“हम्म,” एक गहरी साँस ली और सूखी रोटी का एक टुकड़ा चबाया. लोगो से सुना था की जब रोज़ कोई चीज़ अपने साथ हो तो उसकी आदत हो जाती है पर फिर ये रोटी के सूखे टुकड़े आसानी से गले के निचे क्यों नहीं उतरते थे . ऐसा नहीं था की मुझे शिकवे नहीं थे पर शिकायत करते भी तो किससे .

कक्षा में आज थोड़ी देर से पहुंचा, मास्टर की दो बात सुनी और फिर अपने काम में लग गया. दोपहर में मालूम हुआ की स्टूडेंट्स का एक टूर करवा रहे है उदयपुर जाने के लिए . मेरे मन में भी चाव सा उठा . एक पल की उस तम्मना को दिल की जिस गहराई में मैंने महसूस किया वो बता नहीं सकता था .

“मास्टर जी, कितना खर्चा आएगा इस टूर का ” मैंने पूछा

मास्टर- 800 रूपये

“आठ सौ. ” मैंने एक गहरी साँस ली .

दिल में एक आस लिए शाम को मैं चाची के पास गया.

“चाची , मुझे कुछ पैसे चाहिए थे . ” मैंने कहा

चाची - किसलिए

मैंने अपना प्रयोजन बताया उसे.

चाची- आठ सौ, जानता भी है कितने होते है .और बड़ा आया लाट साहब जायेगा घुमने, मैं तो दिन रात काम करके टूटी पड़ी हूँ, और इसे पैसे बर्बाद करना है . कोई जरुरत नहीं है कही जाने की अगले माह गाँव में मेला लगेगा उसमे चक्कर लगा आना. वैसे भी फिर खेत कौन देखेगा.घर के काम तो होते नहीं परसों तुझसे कहा था की गेहू चक्की पर दे आ पर वो तो हुआ नहीं तुझसे.

मैं- अभी कट्टा दे आता हूँ चाची .

मैंने गेहूं का कट्टा साइकिल पर लादा और दरवाजे के पास पहुंचा ही था की पीछे से मैंने चाची की आवाज सुनी जो मुझे ही कोस रही थी . एक नजर ऊपर आसमान पर डाली और मैं आगे बढ़ गया .ऐसा नहीं था की मुझे कोफ़्त नहीं होती थी चाची के इस रवैये से पर पिछले कुछ महीनो से तो जैसे हद्द हो गयी थी . मुझे सुनाने का कोई मौका नहीं छोडती थी वो .

“आठ सौ रुपैया , ” मैंने एक गहरी सांस ली और अपना हिसाब लगाने लगा. सब कुछ जोड़ कर मेरे पास 127 रूपये थे. तालाब किनारे बैठे बैठे मेरी गुना भाग जारी थी .

“ओ क्या सोच रहा है ”

मैंने पलट कर देखा. पानी का मटका लिए वो मेरी ही तरफ आ रही थी .

“कुछ नहीं सरकार ” मैंने कहा .



“तू क्या सोचता है , मुझसे छुपा लेगा अपने मन की बात , तुझे तुझसे ज्यादा जानती हूँ ” उसने मेरे पास बैठते हुए कहा.

मैं- तो तू ही बता मैं क्या करू. मेरे हालात तुझसे छुपे तो नहीं , चाची से पैसे मांगे थे उदयपुर जाने के लिए उसने झट से मना कर दिया.

“गलती तेरी भी तो है , कब तक चुप रहेगा. कभी न कभी अपने हक़ की बात करनी ही होगी न तुझे,जो व्यवहार तेरे साथ करती है वो मैं होती तो उसका मुह तोड़ देती ” उसने कहा .

मैं- जानती है सुख की सबसे बेकार बात क्या होती है , सुख के दिन ख़त्म हो जाते है , पर दुःख की भी एक अच्छाई होती है दुःख के दिन भी बीत जाते है.

वो- सुन तू फ़िक्र मत कर तू उदयपुर जरुर जायेगा, पैसे का इंतजाम हो जायेगा.

मैं- कैसे

उसने अपनी चांदी की पायल उतारी और मेरे हाथ में रख दी.

“इसे बेच देते है ” बोली वो .

एक नजर मैंने उसकी हथेली पर रखी पायल को देखा और एक नजर मैंने मेरी मजबूरियों को देखा.ना जाने कब आँख से गिरे पानी के कतरे उसकी हथेली को भिगो गए. उसने कस के मेरे हाथ को थाम लिया. और मेरे काँधे पर अपना सर टिका दिया.

“बहुत याद आती है माँ-बाप की मुझे , बापू कहता था चाचा चाची का उतना ही मान रखना जितना हमारा करता, कभी भी इनका कहा टालना मत , बस वही तो कर रहा हूँ, तू नहीं जानती , मैं हर रोज़ मरता हूँ अपने ही घर में. चाची अपने बच्चो को इतना लाड करती है , उनकी हर फरमाइश पूरी करती है . मुझे कभी गले नहीं लगाती, गले लगाना तो दूर, कभी सर पर हाथ भी नहीं फेरा. बापू कहता था थोडा बड़ा होजा मेरे पूत फिर तुझे फौज में ले चलूँगा. 9 साल हो गए देखते देखते बापू ही नहीं आया फौज से वापिस . क्या करू मैं तू बता. गर्म रोटी मेरे भाग में उस दिन होती है जब किसी और के घर मैं जीमने जाता हु तू कहती है की मैं कहता नहीं , किस से कहूँ चाचा से , उसे नहीं पता क्या उसके घर में क्या हालात है मेरे ” मेरी रुलाई छुट पड़ी .

“मैं जानती हूँ तेरे हालात , देखना एक दिन आयेगा. ये सब झुक कर सलाम करेंगे तुझे , ये रब्ब सब देख रहा है ” उसने कहा .

“छोड़ इन बातो को , देर हो रही है तू जा घर ” मैंने कहा

वो- तू भी चल

मैं- आता हूँ थोड़ी देर बाद.

रात जब गहराने लगी तो मैं भी थके कदमो से घर की तरफ चल दिया. मोहल्ले में जाके देखा अलग ही तमाशा चल रहा था . पडोसी जो नाते में मेरा ताऊ लगता था , अपनी घर वाली को दारू पीकर पीट रहा था . गालिया दे रहा था . मोहल्ले वाले बजाय उनको अलग करने के खड़े होकर तमाशे का मजा ले रहे थे .

“ओ ताया , बहुत हुआ अब बस करो छोड़ दे ताई को ” मैंने कहा

ताऊ- न, आज न छोडू इस कुतिया ने मेरी इज्जत तार तार कर दी है .

मैं-कोई न अन्दर चल के बात कर ,

मैंने ताऊ को अन्दर की तरफ खिसकाया और कमरे में ले आया.

मैं- ताया, दुनिया तमाशा देख रही है . तेरी ही तो तोर हलकी होती है न ताऊ- तोर बची ही नहीं इस रंडी ने सब बर्बाद कर दिया .

मैं- सो जा ताऊ, सुबह आराम से बात करना ताई से जो भी बात है .

ताऊ- तू कहता है तो सुबह देखूंगा इसे .

ताऊ ने जेब से दारू का पव्वा निकाला और खींच गया उसे, थोड़ी देर बाद बडबडाते हुए ताऊ पलंग पर लुढक गया .मैंने कमरे की कुण्डी लगाई और फिर ताई को आँगन में ले आया. उसे पानी पिलाया .

मैं- न रो ताई.

ताई- मेरे तो नसीब में ही रोना लिखा है .

मैं- हुआ क्या .

ताई- ये तो सारा दिन दारू पीकर पड़ा रहता है . घर कैसे चले . तुझे तो मालूम है ही हमारा हाल. मजदूरी से आते आज देर हो गयी तो उल्टा सीधा बोलने लगा.

मैं- कोई न तू हाथ मुह धो ले. खाना खा और आराम कर . सब ठीक होगा.


मैंने उसे छोड़ा और अपने घर आ गया. पुरे घर में अँधेरा था बस चाची के कमरे में रौशनी थी . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं मटके के पास गया गिलास अपने हलक में उडेला ही था की मेरी नजर खिड़की जो की थोड़ी सी खुली हुई थी उस से अन्दर की तरफ गयी और जो मैंने देखा देखता ही रह गया.
Wonderful Start
 

Abhishek Kumar98

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#7

और जब मैंने दरवाजे को धक्का दिया तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी. कमरे में चारपाई पर ताई और ठेकेदार एक दुसरे पर चढ़े हुए थे, अचानक से उनका मजा टूट गया. ताई की नजर मुझ पर पड़ी तो जैसे वो सुन्न हो गयी.

“तू, तू यहाँ कैसे ” अपना लहंगा ठीक करते हुए ताई ने कहा.

मेरा दिमाग जैसे जाम हो गया था पर मैंने ताई से एक शब्द भी नहीं कहा. मैं चुपचाप कमरे से बाहर आया और सीधा जंगल की तरफ चल पड़ा. उसी जगह जहाँ पर मेरी तन्हाई और मैं होते थे.

ताई बहन की लौड़ी, ठेकेदार से चुदवा रही थी. मेरे कानो में ताऊ की कही एक एक बात आ रही थी , जो गालिया वो उसे दारू पीकर बकता था एक एक गाली सच लग रही थी . और न जाने ये सब कबसे चल रहा होगा. बेशक वो मेरी सगी ताई नहीं थी पर फिर भी मुझे बुरा लग रहा था और अगर वो सगी ताई होती तो भी मैं क्या ही कर लेता.



दिल में अजीब सी बेचैनी थी , इस से पहले की मैं और कुछ करता मेरे कानो में वो ही इकतारे की आवाज आई, ठीक ये आवाज ही उस रात मैंने सुनी थी . ऐसा लग रहा था की आवाज बिलकुल मेरे पास से ही आ रही थी पर कहाँ से ये मालूम नहीं हो रहा था . मई की गर्मी में चलती गर्म लू अचानक से ठंडी बयार सी बहने लगी थी .

“कौन चुतिया, भरी दोपहर में संगीतकार बना हुआ है ” मैंने अपने आप से कहा .

कुछ दूर मैं इधर उधर भटका, भेड़ चराने वालो से पूछा पर उन्होंने मना किया. इकतारे की आवाज ने जैसे मुझसे डोर बाँध दी थी मैं बस दौड़ जाना था उस तरफ. भटकते भटकते मैं जंगल में न जाने कितनी दूर पहुँच गया था . और फिर मेरे पैर थम गए. आँखों जो जैसे करार सा आ गया. दिल को अजीब सी ख़ुशी हुई

“तुम्हे देखे मेरी आँखे इसमें क्या मेरी खता है ” मेरे होंठ बस इतना ही कह पाए.

सामने पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो लड़की आँखे मूंदे इकतारा बजा रही थी . केसरिया कपड़ो में सूरज सा दमकता वो सांवला चेहरा जिस पर नजर ठहरे तो फिर नजर कुछ और न देखे. उसकी कलाई पर सफ़ेद कलवा जैसा कुछ बंधा था . इस दुनिया से बेखबर अपनी धुन में मगन वो लड़की जिस शांति , जिस शिद्दत से उस इकतारे की धुन में खोयी थी . उसे देखना जैसे सर्दियों की धुप.

दबे पाँव मैं बस उसके सामने निचे धरती पर जाकर बैठ गया. अजीब सा सम्मोहन , मैं क्या ही कहूँ उन लम्हों के बारे में , उस तपती दुपहरी में जैसे ठंडा शरबत मिल जाना कुछ ऐसा हाल था मेरा. दस-पन्द्रह मिनट, आधा घंटा , न जाने कितना समय बीता वो इकतारा बजाती रही और मैं एकटक बस उसे ही देखता रहा . फिर उसने अपनी तान रोकी और आँखे खोली, पहली बार हमारी नजरे मिली, उसने मुझे, मैंने उसे देखा. वो बड़ी बड़ी कजरारी आँखे बस एक पल ही मिली . वो झटके से उठ खड़ी हुई. उसके चेहरे पर घबराहट सी आई.

मैं- माफ़, कीजिये आप को परेशां नहीं करना चाहता था पर इकतारे को सुनने से खुद को रोक नहीं पाया. मैं चलता हूँ,

“”नहीं कोई बात नहीं “ उसने हौले से कहा

मैं हलके से मुस्कुराया और शायद वो भी .हम दोनों एक दुसरे को बस देख रहे थे न वो कुछ कह पा रही थी ना मैं.

“मेरा नाम मनीष है ” मैंने कहा

“मुझे जाना होगा , ” उसने बस इतना कहा और मेरे पास से सरसराते हुए आगे को बढ़ गयी . पीछे मुड कर उसने एक बार भी नहीं देखा. मैं बस उसे जाते देखता रहा .

“सुनो, क्या हम फिर मिलेंगे.” पता नहीं क्यों मैं अचानक से चिल्ला पड़ा

पर शायद उसने नहीं सुना. मैं भी अब वहां क्या करता. पर मेरे पास जाने को जहाँ भी कहाँ था.

घर आया तो चाची मेरी ही राह देख रही थी .

“सुन ये चावल का कट्टा ताई को दे आ. और उस से कहना की पैसे नहीं पहुंचाए उसने , दे तो ले अइयो ” चाची ने कहा.

मैं- तुम खुद ही दे आओ न

मैं दरअसल ताई का सामना नहीं करना चाहता था.

चाची- देख रही हूँ, आजकल कुछ ज्यादा उड़ रहा है तू, काम चोर हो गया है , ऐसे नहीं चलेगा.

मैं- ऐसे चलाना भी नहीं चाहता मैं. मैं बस इंतजार कर रहा हूँ

चाची की त्योरिया चढ़ आई.

“किस चीज का इंतजार कर रहा है तू, मुझसे जबान तो लड़ाने लगा है अब क्या हाथ सामने करेगा मेरे ” चाची ने ताना मारा.

मैं- बस मेरी पढाई पूरी हो जाये, फिर मैं ये घर छोड़ दूंगा. हमेशा के लिए. हमेशा हमेशा के लिए.

जैसे ही मैने ये बात कही चाची के हाथ से परात छूट गयी . अविश्वास से उसका मुह खुला रह गया

“माना की इस घर में मेरी कोई जरुरत, कोई हसियत नहीं है , और न मैंने कभी कोई हसरत की सिवाय की तुम्हारी झोली से थोड़ी ममता मेरे भाग में भी आएगी. पर लगता है की मुझ बदनसीब का क्या भाग. पर एक दिन आयेगा जब मेरा भाग भी बदलेगा. मैं छोड़ जाऊंगा इस घर को ” मैंने कहा और कट्टा सर पर उठा लिया और ताई के घर की तरफ चल दिया.

दरवाजा खुला था , मैं सीधा अन्दर चले गया. ताई आँगन में ही बैठी थी. मुझे देख कर वो असहज हो गयी .

“चाची ने चावल भेजे है ” मैंने कहा और वापिस जाने को हुआ की ताई ने मुझे रोका.

“रुक जरा, मेरे पास आ. ”ताई ने कहा .

मैं उसके पास गया .

ताई-मुझे कुछ कहना है तुझसे.

मैं- कोई जरुरत नहीं , पर ये जो तू कर रही है न गलत है , जिस दिन ताऊ को मालूम होगा तुझे मार ही देगा वो और गाँव में तेरी क्या हसियत रहेगी.

ताई चुप रही .

मैं- मुझे नहीं पता तेरी मज़बूरी रही या फिर जो भी था, पर गलत था . मैं चाहता तो उसी समय ठेकेदार से उलझ सकता था पर हम दुनिया को क्या कहे जब अपने लोगो में ही कमी. मुझे देख ताई, तू लाख परेशां होगी पर मुझसे ज्यादा तो नहीं . मुझसे जायदा दुनिया देखि है तूने मैं इतना कहूँगा आज के बाद तू मजदूरी नहीं जाएगी. और उस ठेकेदार या तेरे ऐसे रिश्ते किसी और से भी है तो वो तोड़ देगी. तेरी जरुरत का हर सामान तू बनिए की दूकान से ले आ, पैसे मैं चुकाऊंगा चाहे कही से भी लाना पड़े मुझे. ये बात बस हम दोनों के बीच ही रहेगी .


ताई शायद कुछ कहना चाहती थी पर उसका गला रुंध गया था , वो मेरे पास आई और चुपचाप मेरे गले लग गयी.
Chalo pehli mulakat toh ho gayi heroine se aur Tayi bhi shayad jaldi patne wali hai
 

Abhishek Kumar98

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#20

उस पायल की झंकार को मैं हजारो में भी पहचान सकता था , मेरे सामने मेरे बचपन की दोस्त खड़ी थी, अगर चाचा वहां पर नहीं होता तो कब का उसे अपने आगोश में भर लिया होता मैंने.

“कब आई तुम ” उसके पास जाकर मैंने कहा

वो- कल रात को , आ जरा बैठते है

मैं- चोबारे में चले क्या

वो- नहीं बाहर

मैं- चल फिर .

बाहर आकर हम लोग नीम के निचे बैठ गए. वो मुझे देख रही थी मैं उसे.

“अब बोल भी कुछ , कब तक ऐसे पागलो जैसे हंसती रहेगी. ” मैंने कहा

वो- तेरे साथ हूँ, अब भला क्या कहने की जरुरत है

मैं- कैसा रहा टूर.

वो- बस ठीक ही था

मैं- ऐसे मायूसी से क्यों बोल रही है

मैं- ठीक तो तब होता न जब तू साथ होता,क्या पता ऐसा मौका फिर कभी मिले न मिले.

मैं- तू साथ है न मेरे, हर पल जिसमे तू मेरे साथ है वो पल खास है

रीना- बाते बड़ी बड़ी करने लगा है आजकल , क्या हो जाता अगर तू भी चलता

मैं- छोड़ अब उस बात को , तू कहे तो तुझे शहर घुमाने ले चलू

वो- वाह क्या बात है

मैं- चलेगी क्या बोल

वो- अभी नहीं, पर मैं तेरे साथ मेले में चलूंगी रुद्रपुर , कल घर पे बात हो रही थी की बड़े दिनों बाद मेला लगने वाला है , मैंने तो कभी मेला देखा नहीं बड़ी हसरत है , तू मेला घुमा देना मुझे.

मैं- ये भी कोई कहने की बात है , सिर्फ घुमा ही नहीं दूंगा तू कहे तो पूरा मेला खरीद दू तेरे लिए.

रीना ने कजरारी आँखों को घुमाते हुए कहा - मैं दो चार दिन क्या बाहर गयी , जनाब के तेवर देखो. ये वादे करने की कहाँ से हिम्मत आई, बचपन से जानती हूँ तुझे मैं मुझे मत बहला

मैं - न तू लैला है न मैं मजनू जो मैं तुझे वादों से बहला दूंगा. तू मेरा ऐतबार रख , मेले में तू एक चीज़ पर हाथ रखना मैं दूकान न खरीद तू तो कहना .

रीना- ठीक है बाबा, तू बस साथ चल पड़ना मेरे यही बहुत है मेरे लिए और सुन कुल्फिया मैं चाहे कितनी भी खा लू , पैसे तू ही देगा.

मैं- हाँ पक्का

रीना- तेरे लिए कुछ लायी थी देख जरा

उसने एक पैकेट मेरे हाथ में रखा

मैं- क्या है ये

वो- देख खोल कर

मैंने पैकेट खोला, उसमे एक शर्ट थी

“इसकी क्या जरुरत थी भला ” मैंने कहा

वो- इतना तो हक़ है न मेरा

मैं- सब तेरा ही है

हम और बाते करते पर तभी उसकी मामी उसे बुलाने आ गयी , वो उसके साथ चली गयी मैं वापिस घर आ गया . मैंने शर्ट अलमारी में रखी ये सोचते हुए की मेले वाले दिन ये ही पहन कर रीना के साथ जाऊंगा. करने को कुछ खास था नहीं तो बस मैंने खाना खाया और बिस्तर पर पड़े पड़े मैं रीना के बारे में ही सोच रहा था , सोचते सोचते मेरी नजर एक बार उस बक्से पर पड़ी, मैंने फिर खोला उसे.

जैसे ही उसके धागे को मैंने छुआ , वो गरम होने लगा. तभी मुझे कुछ ध्यान आया मैंने जेब से वो धागा निकाला जिसमे हीरा लगा था . ये दोनों धागे एक जैसे ही थे बस एक काला था एक लाल . मैंने दोनों धागों को आपस में मिलाया और आश्चर्य देखिए काला धागा इतना शीतल हो गया जैसे लू में रखा कोरा मटका. कुछ तो समानता थी दोनों धागों में . मैंने अब उसे गले में पहनने का सोचा , पर गले में डालते ही मुझे ऐसे लगा की मेरी सांसे जैसे रुक रही हो.

जैसे कोई मेरा गला घोंट रहा था . घबरा कर मैंने वो धागा गले से निकाला और अपनी जेब में रख लिया. मैंने रेडियो चलाया ही था की तभी निचे से कुछ आवाजे आने लगी तो मैंने खिड़की से झाँक कर देखा निचे . ताई और चाची में कुछ बहस हो रही थी .

चाची- तू क्या सोचती है मुझे कुछ मालूम नहीं है , मुझे सब कुछ पता है

ताई- पता है तो अच्छी बात हैं न

चाची- जबसे वो तेरी संगत में आया है न तब से ये सब शुरू हुआ है , मैं उसे पाल रही थी न बचपन से मेरे सामने उसकी चूं भी नहीं निकलती थी

ताई- उसे पालना कहती है तू, अरे दो रोटी तो गली में बैठे कुत्ते को भी कोई न कोई दे देता है , तू अगर सही होती तो सीने से लगाती , वो इस घर की पहली औलाद है, तूने उसे कभी बेटा नहीं समझा पर वो तेरा मान सगी माँ से भी ज्यादा रखता है और क्या कहती है तू की मेरी संगत में बिगड़ गया है वो , आज तक कभी तुम दोनों की बात मेरे आगे नहीं की , इस डर से की तुझे बुरा लगेगा मेरे घर रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं खाता वो . तू क्या जानेगी उसको बात करती है .

चाची- मेरे घर में रहता है वो मैं चाहे उसे कैसे भी रखु तुझे क्या है तू कौन होती है

ताई - वो तेरे घर में नहीं तू उसके घर में रहती है , ये सब जिसकी तू मालकिन बनी बैठी है ये सब उसका ही है जिस दिन वो अपना हक़ मांगेगा तेरे पैरो तले ये धरती खिसक जाएगी, तू कब तक छिपा कर रखेगी आज नहीं तो कल उसे मालूम होगा ही.

चाची- होने दे, मैं किसी से डरती हूँ क्या, आजतक उसका सब कुछ मैंने ही तो किया है और आधे की हक़दार तो मैं भी हूँ ही

ताई- वाहजी वाह, ये मुह और मसूर की दाल. तेरा हिस्सा , अरे कुछ तो शर्म कर .

दोनों का झगड़ा सुन कर मुझे बड़ा दुःख हुआ, मैं निचे आया . दोनों मुझे देख कर थोडा चौंक गयी , शायद उन्हें लगा था की मैं घर पर नहीं हूँ

“आप दोनों लड़ना बंद करो , ये बाते सुनकर मुझे बड़ा दुःख होता है , मुझे एक पैसा भी नहीं चाहिए आप लोगो का . जो मेरी हसरत थी वो था परिवार का एक रहना और वो मुमकिन नहीं , आपस में जैसे भी हो कम से कम दुनिया के सामने तो तमाशा मत करो, दुनिया तो तैयार बैठी रहती है कब किसी के घर कलेश हो कब वो तमाशा देखे. ताई जी तुम मेरे साथ आओ यहाँ रहोगी तो फिर कलेश होगा ” मैंने ताई का हाथ पकड़ा और उसे ताई के घर ले आया.

मैंने उसे पानी का गिलास दिया भर कर .

“तुमको तो मालूम है न उसका स्वाभाव फिर क्यों छेडती हो उसे ” मैंने कहा

ताई- किसी ने किसी दिन सर फोड़ दूंगी उसका, मालूम नहीं खुद को क्या समझती है .

मैं- जाने भी दो अब . आओ बैठो मेरे पास

मैंने ताई को मेरे पास बिठा लिया. मेरी नजरे ताई की ऊपर निचे होती छातियो पर पड़ी . गुस्से के मारे ताई का चेहरा लाल हुआ पड़ा था .

मैं- गुस्से बड़ी प्यारी दिखती हो तुम .

ताई- तुझे प्यार आ रहा है क्या

मैं- अगर मैं कहूँ हाँ तो क्या कहोगी

ताई- प्यार करने वाले कहाँ कुछ कहते है वो तो कर लेते है जो उन्हें करना होता है

मैं- और मैं क्या करना चाहता हूँ

ताई - मैं भला क्या जानू .

मैंने ताई के हलके गुलाबी होंठो पर ऊँगली फेरी और बोला- मैं जानना चाहता हूँ की प्यार में लोग क्या क्या करते है .


ताई के कांपते होंठो का नाजुक अहसास मेरे तन बदन में आग लगा गया था . पर इस से पहले की मैं आगे बढ़ पाता बाहर से कोई मेरा नाम पुकारने लगा तो मैं झल्लाते हुए बाहर गया . ............
Hero ka toh Klpd ho gaya
 

Abhishek Kumar98

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#25



“मेरे होश तो उसी दिन से उड़े हुए है जब से माँ का संदेसा आया है , मैं तुझे बता नहीं सकती क्या हाल है तब से मेरा ”उसने कहा

मैं- तू उसकी चिंता मत कर , जब तक मैं हूँ तुझे कहीं जाने नहीं दूंगा मैं

रीना-पर मुझे जाना होगा , मेरी मजबुरिया है

मैं- कोई मज़बूरी नहीं तेरी , तू मत सोच इस बारे में . तेरी माँ जब यहाँ आएगी मैं बात कर लूँगा उनसे.

रीना- भला क्या बात करेगा तू उससे

मैं- वो तू मुझ पर छोड़ दे.

रीना- बातो में तो तुझसे कोई नहीं जीत सकता . पर आजकल तू किन बातो में उलझा हुआ है तू मुझसे ही छिपाने लगा है .

मैं- जिंदगी की किताब के बिखरे पन्ने तेरे हाथो में है और तू कहती है की तुझसे छिपाने लगा हूँ, इल्जाम लगाना है तो कुछ ढंग का तो लगा न .

रीना- फिलहाल तो मैं चलती हूँ , रात को चोबारे की छत पर मिलेंगे

मैं - तू चल मैं आता हु थोड़ी देर में .

ठंडी पवन संग लहराती चुन्नी उसकी, हमेशा वो बड़े सलीके से कपडे पहनती थी . उसकी बात ही निराली थी . जब वो साथ होती थी मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं होती थी , मुझे मुझसे जायदा वो समझती थी . पर आज फिर उसने वो बात छेड़ी थी जिसे सुनकर मैं घबरा गया था . मेरे सीने में तेज दर्द हो गया था जुदाई की बात सोच कर. वो कैसे हालात होंगे .

“हे नियति, ये जुल्म मत करना मेरे जो थे सब तो तूने छीन लिए कम से कम इसे तो मेरे भाग में रहने देना .” मैंने देवता के आगे माथा झुकाया.

घर पर आया तो देखा की ताई आँगन में ही बैठी थी.

“आया नहीं तू, ” ताई ने कहा

मैं- किसी काम में उलझा था

ताई- तेरी ये उलझने , न जाने किस उधेड़बुन में लगा रहता है

मैं-तुम तो कुछ बताती नहीं , तो मैं तो कोशिश करूँगा ही न .

ताई- मेरे पास छिपाने को भी तो कुछ नहीं

मैं- जानता हु की चाची ने सब कुछ दबा लिया है , पर तूने कभी अपना हिस्सा क्यों नहीं माँगा, तू इस घर की बड़ी बहु है . तूने ये राह क्यों चुनी .

ताई- शायद यही मेरी नियति थी . वैसे भी इन्सान के साथ कुछ नहीं जाता, राजा हो या रंक सबकी दो मुट्ठी राख ही बनती है, सेठ हो या मजदुर शमशान में साथ ही होते है सब.

मैं- फिर भी तूने माँगा क्यों नहीं हक़ जो तेरा है तुझे मिलना चाहिए. मैंने सोचा है कल चाचा से बात करूँगा.

ताई- तुझे क्या लगता है की मेरी क्या चाहत है . नियति ने जो लिखा है वो होता है, नियति के विधान को आज तक कोई बदल पाया है क्या.

मैं- पर तुझे तेरा सुख कहाँ मिला.

ताई- मेरा सुख मेरे सामने बैठा है . दुनिया मुझे पीठ पीछे न जाने क्या क्या कहती है निपूती, बाँझ पर मैंने कभी किसी की बात दिल पर नहीं ली क्योंकि मेरा वंश, मेरा कुल मेरे सामने बैठा है , हम हमेशा तेरे क्षमाप्रार्थी रहेंगे , तेरी परवरिश हम उस तरह से नहीं कर पाए जैसी होनी चाहिए थी .

“ये धन, दौलत, ये जमीने लेकर मैं करती भी क्या . हमारी सबसे अनमोल दौलत तो तुम हो , ” ताई ने कहा

मैं- फिर भी मैं चाहता हूँ

“मुझे कुछ नहीं चाहिए ,” ताई ने मेरी बात काट दी.

फिर मैंने भी कुछ नहीं कहा . ताई अपना काम करने लगी, मैं चारपाई पर पड़े पड़े बस उसे ही निहारता रहा . इस औरत से मेरा न जाने ये कैसा रिश्ता था , मैं इसे माँ के रूप में भी देखता था, अपने मन की बात भी इस से करता था किसी दोस्त के जैसे और इसके साथ सोने की हसरत भी थी मेरी.

रात को एक बार फिर मैं रीना के साथ चोबारे की छत पर बैठा था .

“ये चाँद कितना खूबसूरत है न ” उसने कहा

मैं- हाँ , पर तुमसे जायदा नहीं

रीना- हाँ, बाबा हाँ, वैसे ये कुछ जायदा ही तारीफ नहीं कर दी तुमने .

मैं- सच ही तो कहा , तेरे रोशन चेहरे के आगे ऐसे सौ चाँद भी बेकार है .

रीना- बता मुझको तुझे कैसी मैं लगती हूँ .

मैं- कैसे बताऊ.

रीना- जैसे बताते है वैसे बता.

मैं- तू क्या सुनना चाहती है मुझसे

रीना- जो तू कहना नहीं चाहता

मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और बोला- ये चाँद, ये रात , ये तेरा साथ , ये तेरी छुअन , ये होंठो की कंपकंपाहट , ये तेरी बिखरी जुल्फे,लहराता आँचल, ये तेरी शोर मचाती धड़कने ये सब तो जानती है ,

रीना- ये जानती है तो मुझसे क्यों नहीं कहती

मैं- कहने की जरुरत ही नहीं

रीना- हर पल हर लम्हा , हर घडी मैं बेक़रार क्यों रहती हूँ , आजकल बिना बात मैं हंसती रहती हूँ, खुद से बाते करती रहती हूँ .

मैं- तू खुद को जानने लगी है , पहचानने लगी है खुद को .

रीना- और मैं क्या हूँ.

मैं-सावन की पहली बारिश है तू, सौंधी मिटटी को पहली खुशबु है तू, अलसाई भोर की ओस है तू. मैं कुछ कहूँ या न कहू मेरा ताज है तू

वो मेरे पास आई , उसकी गर्म सांसे मेरे होंठो पर गिर रही थी , उसके बदन की तपिश को महसूस किया मैंने. उसने हौले से मेरे माथे को चूमा और फिर अलग हो गयी.

“काश ये रात थम जाये यु ही ” उसने कहा

मैं- काश तू रुक जाये मेरे साथ यु ही


इस से पहले की वो और कुछ कहती , निचे मोहल्ले में अचानक से ही चीख पुकार मच गयी . शोर होने लगा तो हम दोनों भाग कर गए और जाकर देखा की ..................................
Chalo ek se pyar ka izhar toh hua
 

Abhishek Kumar98

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#37

“ये जीवन अजीब होता है , इन रिश्तो को भूल भुलैया को समझने के लिए सीने में धडकता दिल होना चाहिए , अब देख ले न तेरे मेरे दरमियान जो भी है, उस से मेरी ममता कम नहीं हो जाती, मेरे आँचल की छाँव हमेशा तेरे सर पर छत बन कर रहेगी. ” ताई ने मुझे धक्का सा दिया और चल पड़ी घर की तरफ.



ये औरत भी न अपने आप में अजीब थी, छोटे से दिल में न जाने क्या क्या समेटे हुए थी . घर आने के बाद ताई खाना बनाने लगी मैं उसके पास ही बैठ गया .

ताई- ऐसे खामोश क्यों बैठा है

मैं- कुछ नहीं बस , कल के बारे में सोच रहा हूँ

ताई- कल कभी नहीं आता ,

मैं- मेरा कल आएगा जरुर आएगा.

ताई- और क्या होगा उस कल में

मैं- एक घर होगा मेरा घर .

खाना खाने के बाद मैंने आँगन में ही बिस्तर लगाया और सितारों को देखते हुए सोचने लगा. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ था मेरी जिन्दगी की चलती फिल्म जैसी हो गयी थी , एक दम से इतने बदलाव आ गए थे की समझना मुश्किल हो रहा था . मेरे पास रीना थी, मीता आ गयी थी मेरी जिन्दगी में . एक मेरी भोर का उजाला थी तो दूसरी मेरे अंधेरो की साथी . बार बार मुझे मीता की कही बात याद आ रही थी की , कुछ नहीं है सिवाय बर्बादी के.

मैं चाचा- चाची के बारे में सोचने लगा. मैंने दो बार उनकी बाते सुनी थी दोनों बार ही उन्होंने हैरत में डाला था मुझे, मुझे ये भी मालूम हुआ था की चाची की ले नहीं पाता चाचा . क्या वो भी ताई के जैसे किसी और संग चुदाई करती होगी. ऐसे तमाम सवालो ने मेरे सर में दर्द कर दिया था . पास रखे जग को मैंने मुह से लगाया और पानी पीने लगा. मेरी निगाह ऊपर चाँद की तरफ थी जो मुझे ही देख रहा था .

सुबह जब मैं उठा तो मौसम कुछ जुदा जुदा था , आसमान में बादल घुमड़ आये थे , करने को कुछ ख़ास नहीं था पर दिल में उमंग थी , आज मेले के बहाने मैं रीना से अपने दिल की बात कह देना चाहता था . दोपहर होते होते वो भी आ गयी. वादे के अनुसार उसने नीला सूट पहना था , क्या गजब लग रही थी वो आज

“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा

मैं- बड़ी प्यारी लग रही है आज, काला टीका लगा ले, कहीं नजर न लग जाये तुझे

रीना- तू साथ है न फिर क्या फ़िक्र. चल अब और देर मत कर , यही पर दोपहर कर दी तूने.

मैं- सुबह से तू गायब थी और बिल मुझ पर फाड़ रही है .

आपस में हंसी मजाक करते हुए हम और गाँव वालो संग रुद्रपुर के लिए चल पड़े. हवाओ में आज कुछ शोखिया सी थी. जब हवा बार बार रीना के झुमको को चूमती तो न जाने क्यों मुझे जलन होती. ऊँट गाड़ी पर हिचकोले खाते हुए चले जा रहे थे . आँखों के इशारे सीधे दिल तक जा रहे थे . और फिर वो घडी भी आ गयी जब हम मेले से कुछ ही दूर थे. उन ग्यारह पीपलो से थोडा पहले गाड़ी वाले ने हमें उतारा.



रंग बिरंगे खेल तमाशे , जगह जगह छोटी छोटी दुकाने लगी थी , झूले लगे थे.

“वादा याद है न ” रीना ने मेरे कान में कहा

मैं- तू भी याद है वादा भी .

मैंने उसका हाथ पकड़ा. और हम मेले में चल दिए.

“आजकल तू न जाने किस निगाह से देखता है मुझे ” उसने कहा

मैं- तू ही बता क्या दोष है मेरी निगाहों का

रीना- ये सीधा मेरे दिल में उतरती है .

मैं- पर वो दिल तेरा कहाँ , वो तो मेरा हो चूका

मेरी बात सुनकर रीना का चेहरा गुलाबी हो गया.

रीना- ऐसी बाते ना किया कर, कुछ कुछ होता है

मैं- बता फिर क्या होता है .

रीना- जान कर रोका है बताने को ,

मैं- तेरी मर्जी.

मैंने थोड़ी नमकीन खरीदी और खाते हुए रीना के साथ इधर उधर घुमने लगा. कुल्फी खाने के बाद हम लोग झूला झूलने गए. आज का दिन मेरे जीवन का सबसे बढ़िया दिन था , कम से कम उस वक्त तक तो मुझे ऐसा ही लग रहा था . घूमते-खरीदारी करते हुए समय न जाने कब ढलने लगा था .

रीना- देवता के दर्शन तो कर लेते है

मैं- हाँ चलते है .

हम शिवाले की तरफ जा ही रहे थे की तभी एक दूकान पर मेरी नजर पड़ी.

मैं- आ जरा मेरे साथ .

रीना- अब कहा ले जा रहा है .

मैं- आ तो सही .

मैं रीना को उस दूकान पर ले गया जहाँ पर पायल बिक रही थी .

मैं- काकी, सबसे सुन्दर पायल दिखा जरा.

एक पतली सी डोर वाली पायल पसंद आई मुझे.

काकी- चांदी की है .

मैं- रीना पैर उठा तेरा जरा .

जैसे ही उसने पैर उठाया मैंने पायल पहना दी उसे. वो कुछ कहना चाहती थी पर मैंने उसे रोका.

“एक दिन तूने मेरे लिए अपनी पायल बेचने की बात कही थी , आज मैंने तेरे लिए पायल खरीदी है , ” मैंने कहा

रीना- एक लड़की को पायल पहनाने का मतलब समझता है तू

मैं- मुझे समझने की जरुरत नहीं , चल आ दर्शन करने चलते है .

हम शिवाले से थोड़ी दूर ही थे की रीना बोली- “मनीष, बड़ी प्यास लगी है, पानी पीना है ”

“तू सीढियों पर बैठ, मैं अभी पानी लेकर आता हूँ ” मैंने उस से कहा और पानी लेने चल दिया. मैंने इधर उधर देखा पानी का जुगाड़ दिखा नहीं मुझे, मैं टंकी पर गया पर वो भी सूखी थी. कुछ देर भटकने के बाद मुझे प्याऊ दिखी, मैंने एक लोटा पानी भरा और रीना की तरफ चल पड़ा. जब मैं वहां पहुंचा तो मेरा दिल धक् से रह गया. मैंने देखा .........

मैंने देखा की रीना को चार पांच लडको ने घेर रखा है और एक लड़का जिसकी पीठ मेरी तरफ थी उसके हाथ में रीना की चुन्नी थी . जिसे वो लहरा रहा था एक लड़के ने रीना की बाहं पकड़ रखी थी . उस पल मुझे जो अफ़सोस हुआ , मुझे उन लडको से ज्यादा खुद पर गुस्सा था की मैं उसे छोड़ कर गया ही क्यों. मेरे हाथ से लोटा छूट गया .

“रीना ” चीखते हुए मैं उसकी तरफ भागा. रीना ने मेरी तरफ देखा उसका आंसुओ से भरा चेहरा मेरे कलेजे को चीर गया . जिस लड़के के हाथ में रीना की चुन्नी थी उसने मुझे देखा पलट कर वो जोरावर था . मेरे सीने में उसने वो आग जला दी थी जो बुझना मुमकिन थी .

“हरामजादे तेरी ये हिम्मत तू जानता है तूने क्या किया है ” मैंने कहा

जोरावर- चोट वही सबसे ज्यादा असर करती है जहाँ पर सही वार किया जाये. जब से मुझे मालूम हुआ तू अर्जुन का बेटा है , मैं जल रहा था , तेरे बाप ने मेरे बाप को मारा था आज मैं अपना बदला पूरा करूँगा.



“तेरी शिकायत मैं हस्ते हस्ते दूर कर देता पर तूने इस लड़की पर हाथ नहीं डाला, तूने मेरे गुरुर को ललकारा है , तेरी हर खता माफ़ थी , पर आज तू भी तेरे बाप के पास जायेगा. ” मैंने कहा और जोरावर की तरफ लपका. तभी उनमे से एक लड़के ने मेरे पैर में अडंगी लगा दी मैं गिर गया और गिरते ही जोरावर ने मेरी पीठ पर लात मारी.

“पीठ पर मारा है , सीने पर खायेगा. ” मैंने उठते हुए कहा.

दुसरे लड़के ने रीना की बाहं मरोड़ी. मैंने पास की एक गन्ने की रेहड़ी पर से फरसा उठाया और उस लड़के की तरफ फेंका जो सीधा उसके कंधे पर जा लगा. खून का फव्वारा छूट पड़ा. जैसे ही उसकी पकड़ ढीली हुई, रीना दौड़ पड़ी मेरी तरफ और अकार मेरे सीने से लग गयी.

“तुझे रोने की जरुरत नहीं , तेरे आंसू सूखने से पहले मैं आग लगा दूंगा इनको मेरा वादा है तुझसे ” मैंने रीना को पीछे किया. तब तक उन लोगो ने हथियार निकाल लिए थी .



मैंने उनमे से एक लड़के की लाठी रोकी और उसकी गोटियो पर लात जमा दी, पर मुझे इन चुतियो की परवाह नहीं थी मुझे बस जोरावर दिख रहा था . उस लड़के के हाथ से लाठी गिरते ही मैंने लाठी उठाई और उसके सर पर दे मारी , सर फूट गया पर मुझे कहाँ परवाह थी एक के बाद एक उसके सर पर वार करते ही गया मैं जब तक की लाठी टूट नहीं गयी. आस पास लोग इकठ्ठा होने लगे थे पर कोई भी बीच में नहीं आ रहा था .

जोरावर ने मेरी तरफ एक पत्थर फेक कर मारा जिसे मैंने बचाया और उसकी गर्दन पकड़ ली.

“मेरी आँखों में देख , तू तो न जाने किस आग में जल रहा था पर मैं तुझे आज इसी जगह पर जला दूंगा. और मुझे विश्वास है की तेरी सांसे इतनी कमजोर नहीं होगी, तू चीखेगा ” मैंने उसका गला दबाते हुए कहा. मेरे नाखून उसके गले की नसों को चीर देना चाहते थे . उसकी आँखे बाहर निकलने को मचलने लगी थी . की तभी पीछे से कीसी ने मेरे सर पर कुछ दे मारा. एक पल को मेरा सर चकरा गया . सर से टपकते लहू ने चीख कर कहा की सर फूट गया है मेरा. मेरी पकड़ जोरावर से ढीली हो गयी . मैं पीछे को पलटा ही था की मेरी पसलियों में दर्द भर गया . जिसने मेरा सर फोड़ा था उसने चक्कू घोप दिया था मेरी कमर के ऊपर .

“आह”दर्द से बिलबिला पड़ा मैं . तभी जोरावर ने लात मारी मुझे मैं गिर गया . वो चार लोग टूट पड़े मुझ पर लात पे पड़ती लात ने मुझे दोहरा कर दिया.

“तुझे क्या लगा था , तू मुझे हरा देगा. मैं इंतज़ार में कितना तदपा हु , तू नहीं समझ सकता कुत्ते, आज तेरे लहू से देवता को नहला कर मुझे चैन आएगा. ” उसने मुझे मारते हुए कहा .

मैंने अपने हाथ धरती पर टिकाये और खड़ा होते हुए कहा - तू भी झूठा , तेरा देवता भी झूठा. जिस देवता के दरबार में एक मासूम की इज्जत पर कोई भी हाथ डाल दे उस देवता को नहीं मानता मैं. और आज के बाद कोई मानेगा भी नहीं .

खड़े होते हुए मैंने उनमे से एक लड़के को धक्का दिया वो थोडा दूर हो गया और अपने आप को संभालते हुए, मैंने एक की गर्दन मरोड़ दी. पल भर में ही वो धरती पर गिर गया उसके प्राण साथ छोड़ गए उसका. झुकते हुए मैंने वो फरसा उठा लिया और एक और लड़के की पीठ पर वार किया वो चीख पड़ा. ये फरसा मेरे हाथ में होना एक मौका था जिसे मैं चूक नाही सकता था .मैंने बिना सोचे की कहाँ कहाँ लग रही है उसके, वार करने चालु किये और जैसे कसाई किसी बकरे को काटता है वैसे ही उसके टुकड़े करने शुरू कर दिए. मैं पूरी तरह खून में सन गया था .

उनमे से एक लड़का भाग गया और एक के कंधे पर पहले फरसा लगा था वो एक तरफ पड़ा था . रह गए मैं और जोरावर. मैंने फरसा साइड में फेंक दिया.

“आ जोरावर, तुझे मारने के लिए मुझे हथियार की जरुरत नहीं , ” मैंने चीखते हुए कहा . एक बार फिर हम दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. उसने मेरे सर पर मारा और एक घूँसा मेरी पसली पर जहाँ चक्कू था . मैं दोहरा हो गया . पर यही तो मजा था इस खेल का , खून का नशा क्या होता है उस ढलती शाम को जाना था मैंने . आसमान में बादल कडकने लगे थे . सूरज को अपनी ओट में ले लिया था बादलो ने . कभी वो मुझ पर भारी कभी मैं उस पर . उसने मुझे घुटने पर मारा पर मैं एक पल झुका और तुरंत ही उसे अपने कंधो पर उठाते हुए दूर फेंक दिया. वो पत्थर की सीढियों पर जाकर गिरा. और मैंने उसके सर को सीढ़ी के कोने पर दे मारा . वो डकारा मैंने उसकी बाहं को पीछे किया, कड़क की आवाज आई और जोरावर की चीख गूंजने लगी.

“इसी हाथ से तूने मेरी रीना की चुन्नी को उतारा था न , मैं इस हाथ को ही उखाड़ दूंगा. ” मैंने कहा और अपना पैर उसकी बगल पर लगते हुए पूरा जोर लगा कर बाहं उखाड़ दी उसकी. हलाल होते बकरे की तरह मिमियाने लगा जोरावर और उसकी चीख ने जो मुझे सकूं दिया था न मैं लिख नहीं सकता .

“रीना, इधर आ. ” मैंने रीना को बुलाया.

“इसी हाथ से इसने तेरा आंचल खींचा था मैंने ये हाथ ही उखाड़ दिया रीना ” मैंने कहा

रीना- घर चल मनीष, घर चल

मैं- चलेंगे , पर अभी नहीं अभी तो जोरावर को ये देखना है की मौत कैसी होती है .

रीना- छोड़ दे इसे, तेरी हालत ठीक नहीं है ,

मैं- किसे परवाह है ,

रीना- मैंने माफ़ किया इसे ,

मैं - पर मैंने नहीं .

मैंने जोरावर की दूसरी बाहं पकड़ी और उसे घिसटते हुए देवता की तरफ ले चला.

“तेरे कमजोर देवता को भी तो मालूम हो की अभी इस दुनिया में ऐसे लोग भी है जिन्हें उसके रहमो कर्म की जरुरत नहीं अगर देवता के आँगन में ही ये पाप होने लगे तो मैं उस आँगन को ही मिटा दूंगा ” जोरावर के बदन से रिश्ते खून से फर्श लाल होने लगा था .

“आखिरी बार देख ले इस दुनिया को इस देवता को ” मैंने कहा और जोरावर की आँख फोड़ दी. उसकी चीखे गूंजने लगी . जितना वो चीखता उतना उन्माद मुझ पर छाता .



“अर्जुन के लड़के छोड़ दे जोरावर को ” पीछे से किसे ने कहा

मैंने पलट कर देखा , दद्दा ठाकुर और उसके पीछे न जाने कितने लोग खड़े थे .

मैं- तेरी गांड में दम है तो छुड़ा ले इसे.

ददा- मुझे मजबूर मत कर. तूने शिवाले में खून बहा कर अनर्थ किया है .

मैं- अनर्थ तो तू देखेगा अभी .

दो चार गाँव वाले मेरी तरफ भागे. मैंने तुरंत वो फरसा उठा लिया और जोरावर की पीठ पर वार किया. वो लोग रुक गए .

“आज चाहे सरे रुद्रपुर में आग लगानी पड़े, लाशो के ढेर लग जाये, जोरावर को तो मारूंगा ही मारूंगा और जो कोई भी मादरचोद बीच में आया वो भी मरेगा. ” मैंने कहा .

दद्दा- मेरा सबर टूट रहा है

मैं- माँ की चूत तेरी और तेरे सबर की .

वो कहते है न की कभी कभी इंसान जोस में होश खो देता है मेरी जिन्दगी में ये वो लम्हा था , मैंने दद्दा के अहंकार को चोट मार दी थी . पल भर में स्तिथिया बदल गयी थी . मैं अकेला और वो नजाने कितने पर मैने भी सोच लिया था मरना है तो सबको साथ लेकर मरेंगे. एक हाथ से मैं उनसे टक्कर ले रहा था दुसरे से जोरावर को थामा हुआ था , उसे छोड़ देता तो हमारी इज्जत क्या रह जाती.

मेरे वार उन पर हो रहे थे , उनके घाव मुझ पर , बदन से न जाने कहाँ कहाँ से खून बह रहा था , हालत ये थी की या तो मर जाऊ या मार दू. मैं जोरावर को तदपा तडपा कर मारना चाहता था और ये मुमकिन होता नहीं लग रहा था तो मैंने पुरे जोर से उसकी गर्दन पर वार किया और उसकी गर्दन फर्श पर लुढ़क गयी . एक पल के लिए सब कुछ जैसे जाम हो गया .

“जिसे जोरावर चाहिए था वो इस सर को ले जाये ” मैंने कहा

ददा- तुझे ये नहीं करना था, नहीं करना था

दद्दा ने तलवार मेरी तरफ फेंकी जो सीधा मेरी जांघ में घुस गयी. और वो सब लोग टूट पड़े मुझ पर . मेरी आँखे खुल नहीं रही थी , आंसू और खून से भीगी थी वो . हर जगह मुझे अँधेरा अंधेरा ही दिख रहा था . तभी किसी ने मुझे पकड़ा और घसीट कर ले गया .

“तुझे क्या लगा था तू जिन्दा यहाँ से चला जायेगा , अब तू भी देख मौत कैसी होती है ” ददा ने मुझे खड़ा करते हुए कहा.

“मौत तो आणि जानी है दद्दा ठाकुर, पर मैं ऐसे नहीं मरूँगा ,”मैंने कहा .

ददा ने मुझे लात मारी मैं दूर जाकर गिरा. मैंने हाथ में तलवार लेकर आते देखा उसे मेरी तरफ ............. पर तभी धांय धांय गोलियों की आवाजे आने लगी और सब लोग एक तरफ हो गए.

“बस ददा बहुत हुआ, अब किसी ने भी अगर इसकी तरफ आँख भी उठाई तो मैं मारूंगी दस गिनुंगी एक , ” डूबती आँखों से मैंने देखा वो चाची थी जो हाथो में बन्दूक लिए मेरी तरफ चली आ रही थी .

“तो तू भी आ गयी , ”ददा ने चाची की तरफ देखते हुए कहा

चाची- कसम खाके गयी थी की मरना मंजूर है पर रुद्रपुर में पैर नहीं रखूंगी, मुझे कसम तोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. और ये लड़का जो वहां पड़ा है मेरा बेटा है , बेटे पर आंच आई तो माँ को तो आना पड़ेगा न , और माँ का कलेजा फटा न तो फिर ये गाँव क्या माँ दुनिया जला दे. किसी की भी नसों में ये गुमान जोर खा रहा हो की वो मनीष को नुक्सान पहुंचा देगा , मेरे सामने आये .

ऐसी ख़ामोशी छाई थी वहां पर जैसे कोई हो ही न, आसमान से बूंदे बरसने लगी थी . बरसात की बूंदों ने मेरे चेहरे को धोया तो मैंने साफ साफ देखा .

ददा- गलती कर रही है तू संध्या , तू पहले भी गलत थी तू आज भी गलत है .

चाची- मुझे तब भी फक्र था आज भी फक्र है

ददा- काश तू मेरी बेटी न होती

चाची- मैं तेरी बेटी कभी नहीं थी .....

चाची मेरे पास आई उसने रीना से मुझे उठाने को कहा और मुझे वहां से ले चली. मेरी आंखो में आंसू थे, रीना की आँखों में आंसू थे, आसमान रो रहा था .


“सोलह साल पहले आसमान भी रोया था , ” मेरे कानो में उस काबिले वाले बाबा के शब्द गूँज रहे थे . .....................
What a fight and emotional update
 

The Immortal

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread

Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread



Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees Award + 1000 Likes
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Regards :- XForum Staff
 

drx prince

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#१

“मैं जिस दिन भुला दू , तेरा प्यार दिल से वो दिन आखिरी हो मेरी जिन्दगी का ” फूली सांसो के बीच हौले हौले इस गाने को गुनगुनाते हुए मैं तेजी से साइकिल के पेडल मारते हुए अपनी मस्ती में चले जा रहा था .होंठो पर जीभ फेरी तो पाया की अभी तक बर्फी- जलेबियो की मिठास चिपकी हुई थी . मौसम में वैसे तो कोई ख़ास बात नहीं थी पर मई की गर्म रात में पसीने से भीगी मेरी पीठ से चिपकी शर्ट परेशान करने लगी थी .

“न जाने कितना समय हुआ होगा ” मैंने अपने आप से कहा और दो चार गालिया अपने दोस्तों को दी जो मुझे छोड़ कर न जाने कहाँ गायब हो गए थे . दरसल हम लोग पडोसी गाँव में दावत में आये थे.

“सुबह हरामखोरो को दो चार बाते तो सुना ही दूंगा. ” कहते हुए मैंने गाँव की तरफ जाने वाला दोराहा पार ही किया था की पट की तेज आवाज ने मेरे माथे पर बल डाल दिए.

“इसे भी अभी धोखा देना था. ” मैंने साइकिल से निचे उतरते हुए कहा टायर पंक्चर हो गया था . एक पल में मूड ख़राब हो गया . कहने को तो गाँव की दुरी कोई दो - तीन कोस ही थी पर अचानक से दुरी न जाने कितनी ज्यादा लगने लगी थी . पैदल घसीटते हुए साइकिल को मैं चांदनी रात में गाँव की तरफ चल रहा था .

धीमी चलती हवा में कच्चे सेर के दोनों तरफ लगे सीटे किसी लम्बे कद वाले आदमियों की तरह लहरा रहे थे .दूर कहीं कुत्ते भोंक रहे थे . ऐसे ही चलते चलते मैं नाहर के पुल को पार कर गया था .मेरी खड खड करती साइकिल और गुनगुनाते हुए मैं दोनों चले जा रहे थे की तभी अचानक से मेरे पैर रुक गए .अजीब सी बात थी ये इतनी रात में मेरे कानो में इकतारे की आवाज आ रही थी .इस बियाबान में इकतारे की आवाज , जैसे बिलकुल मेरे पास से आ रही हो . मुझे कोतुहल हुआ .



मैंने कान लगाये और ध्यान से सुनने लगा. ये इकतारे की ही आवाज थी . बेशक मुझे संगीत का इतना ज्ञान नहीं था पर इस गर्म लू वाली रात में किसी शर्बत सी ठंडक मिल जाना ऐसी लगी वो ध्वनी मुझे . जैसे किसी अद्रश्य डोर ने मुझे खींच लिया हो . मेरे पैर अपने आप उस दिशा में ले जाने लगे जो मेरे गाँव से दूर जाती थी . हवाओ ने जैसे मुझ से आँख मिचोली खेलना शुरू कर दिया था . कभी वो आवाज बिलकुल पास लगती , इतनी पास की जैसे मेरे दिल में ही हो और कभी लगता की कहीं दूर कोई इकतारा बजा रहा था .

पथरीला रास्ता कब का पीछे छुट गया था . नर्म घास पर पैर घसीटते हुए मैं पेड़ो के उस गुच्छे के पास पहुँच गया था जिस पर वो बड़ा सा चबूतरा बना था जिसके सहारे से पहाड़ काट कर बनाई सीढिया ऊपर की तरफ जाती थी .साइकिल को वही खड़ी करके मैं सीढिया चढ़ कर ऊपर पहुंचा तो देखा की सब कुछ शांत था ,ख़ामोशी इतनी की मैं अपनी उखड़ी साँसों को खूब सुन पा रहा था . मेरे सामने बुझता धुना था जिसमे शायद ही कोई लौ अब बची थी . सीढिया चढ़ने की वजह से गला सूख गया था तो मैं टंकी के पास पानी पीने गया ही था की मेरे कानो से वो आवाज टकराई जिसे मैं लाखो में भी पहचान सकता था .



“उसमे खारा पानी है , ले मेरी बोतल से पी ले. ”

मैं पलटा हम दोनों की नजरे मिली और होंठो पर गहरी मुस्कान आ गयी .

“तू यहाँ कैसे ” मैंने उसके हाथ से पानी की बोतल लेते हुए कहा .

“आज पूर्णमासी है न तो नानी के साथ कीर्तन में आई थी . अभी ख़तम ही हुआ है , मेरी नजर तुझ पर पड़ी तो इधर आई पर तू इधर कैसे ” उसने कहा

मैंने उसे बताया . मेरी बात सुनकर वो बोली- कीर्तन तो दो- ढाई घंटे से हो रहा पर इकतारा कोई नहीं बजा रहा था .मुझे मालूम है ये तेरा बहाना ही होगा वैसे भी तू तो भटकता ही रहता है इधर उधर

मैं- तुझे जो ठीक लगे तू समझ

“रुक मैं तेरे लिए प्रसाद लाती हूँ , ये बोतल पकड़ तब तक ” उसने कहा और तेजी से मुड गयी . मैंने बोतल का ढक्कन खोला और पानी से गले को तर करने लगा .

आसमान में पूनम का चाँद शोखियो से लहरा रहा था . काली रात और चमकता चाँद कोई शायर होता तो अब तक न जाने क्या लिख चूका होता , ये तो मैं था जो कुछ कह नहीं पाया.

“अब ऊपर क्या ताक रहा है , चलना नहीं है क्या ” उसने एक बार मेरे ख्यालो पर दस्तक दी .

मैं- हाँ चलते है .

उसने एक मुट्टी प्रसाद मेरी हथेली पर रखा और हम सीढियों की तरफ चलने लगे.

मैं- नानी कहा है तेरी .

वो- आ रही है मोहल्ले की औरतो संग , मैंने बोल दिया की तेरे संग जा रही हूँ .

मैं- ठीक किया.

“बैठ ” मैंने साइकिल पर चढ़ते हुए कहा

वो- पैदल ही चलते है न

मैं- जैसा तू कहे

वो मुस्कुरा पड़ी , बोली- कभी तो टाल दिया कर मेरी बात को .

मैं- टाल जो दी तो फिर वो बात, बात कहाँ रहेगी .

“बातो में कोई नहीं जीत सकता तुझसे ” वो बोली.

मैं- ऐसा बस तुझे ही लगता है.

बाते करते करते हम लोग अपनी राह चले जा रहे थे. कच्चे रस्ते पर झूलते पेड़ अब अजीब नहीं लग रहे थे. न ही खामोश हवा में कोई शरारत थी .

“बोल कुछ , कब से चुपचाप चले जा रहा है ” उसने कहा

मैं- क्या बोलू, कुछ है भी तो नहीं

वो- क्लास में तो इतना शोर मचाते रहता है , अभी कोई देखे तो माने ही न की वो तू है .

मैं मुस्कुरा दिया .

“बर्फी खाएगी ” मैंने पूछा उससे

“बर्फी , कहाँ से लाया तू ” उसने कहा

मैं- पड़ोस के गाँव में दावत थी , दो चार टुकड़े जेब में रख लिए थे .

वो- पक्का कमीना है तू . मुझे नहीं खानी कहीं रात में कोई भूत न लग जाये मुझे

मैं- तू खुद भूतनी से कम है क्या

कहके जोर जोर से हंस पड़ा मैं

वो- रुक जरा तुझे बताती हूँ .

मेरी पीठ पर एक धौल जमाई उसने .

मैंने जेब से बर्फी के टुकड़े निकाले और उसकी हथेली पर रख दिए.

“अच्छी है , ” उसने चख कर कहा .

मैं- वो तेरे मामा से बात की तूने

वो- तू खुद ही कर ले न

मैं- मेरी हिम्मत कहाँ उस खूसट के आगे मुह खोलने की

वो- कितनी बार कहा है मामा को खूसट मत बोला कर .

मैं- ठीक है बाबा. पर तू बात कर न .

वो- मैंने तुझसे कहा तो है , बाजार चल मेरे साथ .

मैं- तू जानती है न , वैसे ही तू बहुत करती है मेरे लिए .

वो- तो ये भी करने दे न ,

मैं- इसलिए तो कह रहा हूँ, तेरे मामा से बोल दे , कैंटीन में रेडियो थोडा सस्ता मिल जायेगा. कुछ पैसे है मेरे पास कुछ का जुगाड़ कर लूँगा.

“पर मुझसे पैसे नहीं लेगा. हैं न , कभी तो अपना मानता है और कभी एक पल में इतना पराया कर देता है . जा मैं नहीं करती तुझसे बात ” उसने नाराजगी से कहा .


फिर मैंने कुछ नहीं कहा. जानता था एक बार ये रूस गयी तो फिर सहज नहीं मांगेगी. हालाँकि हम दोनों जानते थे हालात को , ऐसे ही ख़ामोशी में चलते चलते गाँव आ गया. मैंने उसे उसके घर के दरवाजे पर छोड़ा और अपने घर की तरफ साइकिल को मोड़ दिया. घर, अपना घर ............................. .
Nice update
 

drx prince

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#2



आँख थोड़ी देर से खुली .सूरज चढ़ आया था. . मैंने कपडे बदले और रसोई की तरफ गया , वहां पर ताला लगा था . मेरी नजर छींके पर गयी जहाँ पर कपडे में तीन रोटिया लिपटी पड़ी थी .

“हम्म,” एक गहरी साँस ली और सूखी रोटी का एक टुकड़ा चबाया. लोगो से सुना था की जब रोज़ कोई चीज़ अपने साथ हो तो उसकी आदत हो जाती है पर फिर ये रोटी के सूखे टुकड़े आसानी से गले के निचे क्यों नहीं उतरते थे . ऐसा नहीं था की मुझे शिकवे नहीं थे पर शिकायत करते भी तो किससे .

कक्षा में आज थोड़ी देर से पहुंचा, मास्टर की दो बात सुनी और फिर अपने काम में लग गया. दोपहर में मालूम हुआ की स्टूडेंट्स का एक टूर करवा रहे है उदयपुर जाने के लिए . मेरे मन में भी चाव सा उठा . एक पल की उस तम्मना को दिल की जिस गहराई में मैंने महसूस किया वो बता नहीं सकता था .

“मास्टर जी, कितना खर्चा आएगा इस टूर का ” मैंने पूछा

मास्टर- 800 रूपये

“आठ सौ. ” मैंने एक गहरी साँस ली .

दिल में एक आस लिए शाम को मैं चाची के पास गया.

“चाची , मुझे कुछ पैसे चाहिए थे . ” मैंने कहा

चाची - किसलिए

मैंने अपना प्रयोजन बताया उसे.

चाची- आठ सौ, जानता भी है कितने होते है .और बड़ा आया लाट साहब जायेगा घुमने, मैं तो दिन रात काम करके टूटी पड़ी हूँ, और इसे पैसे बर्बाद करना है . कोई जरुरत नहीं है कही जाने की अगले माह गाँव में मेला लगेगा उसमे चक्कर लगा आना. वैसे भी फिर खेत कौन देखेगा.घर के काम तो होते नहीं परसों तुझसे कहा था की गेहू चक्की पर दे आ पर वो तो हुआ नहीं तुझसे.

मैं- अभी कट्टा दे आता हूँ चाची .

मैंने गेहूं का कट्टा साइकिल पर लादा और दरवाजे के पास पहुंचा ही था की पीछे से मैंने चाची की आवाज सुनी जो मुझे ही कोस रही थी . एक नजर ऊपर आसमान पर डाली और मैं आगे बढ़ गया .ऐसा नहीं था की मुझे कोफ़्त नहीं होती थी चाची के इस रवैये से पर पिछले कुछ महीनो से तो जैसे हद्द हो गयी थी . मुझे सुनाने का कोई मौका नहीं छोडती थी वो .

“आठ सौ रुपैया , ” मैंने एक गहरी सांस ली और अपना हिसाब लगाने लगा. सब कुछ जोड़ कर मेरे पास 127 रूपये थे. तालाब किनारे बैठे बैठे मेरी गुना भाग जारी थी .

“ओ क्या सोच रहा है ”

मैंने पलट कर देखा. पानी का मटका लिए वो मेरी ही तरफ आ रही थी .

“कुछ नहीं सरकार ” मैंने कहा .



“तू क्या सोचता है , मुझसे छुपा लेगा अपने मन की बात , तुझे तुझसे ज्यादा जानती हूँ ” उसने मेरे पास बैठते हुए कहा.

मैं- तो तू ही बता मैं क्या करू. मेरे हालात तुझसे छुपे तो नहीं , चाची से पैसे मांगे थे उदयपुर जाने के लिए उसने झट से मना कर दिया.

“गलती तेरी भी तो है , कब तक चुप रहेगा. कभी न कभी अपने हक़ की बात करनी ही होगी न तुझे,जो व्यवहार तेरे साथ करती है वो मैं होती तो उसका मुह तोड़ देती ” उसने कहा .

मैं- जानती है सुख की सबसे बेकार बात क्या होती है , सुख के दिन ख़त्म हो जाते है , पर दुःख की भी एक अच्छाई होती है दुःख के दिन भी बीत जाते है.

वो- सुन तू फ़िक्र मत कर तू उदयपुर जरुर जायेगा, पैसे का इंतजाम हो जायेगा.

मैं- कैसे

उसने अपनी चांदी की पायल उतारी और मेरे हाथ में रख दी.

“इसे बेच देते है ” बोली वो .

एक नजर मैंने उसकी हथेली पर रखी पायल को देखा और एक नजर मैंने मेरी मजबूरियों को देखा.ना जाने कब आँख से गिरे पानी के कतरे उसकी हथेली को भिगो गए. उसने कस के मेरे हाथ को थाम लिया. और मेरे काँधे पर अपना सर टिका दिया.

“बहुत याद आती है माँ-बाप की मुझे , बापू कहता था चाचा चाची का उतना ही मान रखना जितना हमारा करता, कभी भी इनका कहा टालना मत , बस वही तो कर रहा हूँ, तू नहीं जानती , मैं हर रोज़ मरता हूँ अपने ही घर में. चाची अपने बच्चो को इतना लाड करती है , उनकी हर फरमाइश पूरी करती है . मुझे कभी गले नहीं लगाती, गले लगाना तो दूर, कभी सर पर हाथ भी नहीं फेरा. बापू कहता था थोडा बड़ा होजा मेरे पूत फिर तुझे फौज में ले चलूँगा. 9 साल हो गए देखते देखते बापू ही नहीं आया फौज से वापिस . क्या करू मैं तू बता. गर्म रोटी मेरे भाग में उस दिन होती है जब किसी और के घर मैं जीमने जाता हु तू कहती है की मैं कहता नहीं , किस से कहूँ चाचा से , उसे नहीं पता क्या उसके घर में क्या हालात है मेरे ” मेरी रुलाई छुट पड़ी .

“मैं जानती हूँ तेरे हालात , देखना एक दिन आयेगा. ये सब झुक कर सलाम करेंगे तुझे , ये रब्ब सब देख रहा है ” उसने कहा .

“छोड़ इन बातो को , देर हो रही है तू जा घर ” मैंने कहा

वो- तू भी चल

मैं- आता हूँ थोड़ी देर बाद.

रात जब गहराने लगी तो मैं भी थके कदमो से घर की तरफ चल दिया. मोहल्ले में जाके देखा अलग ही तमाशा चल रहा था . पडोसी जो नाते में मेरा ताऊ लगता था , अपनी घर वाली को दारू पीकर पीट रहा था . गालिया दे रहा था . मोहल्ले वाले बजाय उनको अलग करने के खड़े होकर तमाशे का मजा ले रहे थे .

“ओ ताया , बहुत हुआ अब बस करो छोड़ दे ताई को ” मैंने कहा

ताऊ- न, आज न छोडू इस कुतिया ने मेरी इज्जत तार तार कर दी है .

मैं-कोई न अन्दर चल के बात कर ,

मैंने ताऊ को अन्दर की तरफ खिसकाया और कमरे में ले आया.

मैं- ताया, दुनिया तमाशा देख रही है . तेरी ही तो तोर हलकी होती है न ताऊ- तोर बची ही नहीं इस रंडी ने सब बर्बाद कर दिया .

मैं- सो जा ताऊ, सुबह आराम से बात करना ताई से जो भी बात है .

ताऊ- तू कहता है तो सुबह देखूंगा इसे .

ताऊ ने जेब से दारू का पव्वा निकाला और खींच गया उसे, थोड़ी देर बाद बडबडाते हुए ताऊ पलंग पर लुढक गया .मैंने कमरे की कुण्डी लगाई और फिर ताई को आँगन में ले आया. उसे पानी पिलाया .

मैं- न रो ताई.

ताई- मेरे तो नसीब में ही रोना लिखा है .

मैं- हुआ क्या .

ताई- ये तो सारा दिन दारू पीकर पड़ा रहता है . घर कैसे चले . तुझे तो मालूम है ही हमारा हाल. मजदूरी से आते आज देर हो गयी तो उल्टा सीधा बोलने लगा.

मैं- कोई न तू हाथ मुह धो ले. खाना खा और आराम कर . सब ठीक होगा.


मैंने उसे छोड़ा और अपने घर आ गया. पुरे घर में अँधेरा था बस चाची के कमरे में रौशनी थी . प्यास के मारे गला सूख रहा था . मैं मटके के पास गया गिलास अपने हलक में उडेला ही था की मेरी नजर खिड़की जो की थोड़ी सी खुली हुई थी उस से अन्दर की तरफ गयी और जो मैंने देखा देखता ही रह गया.
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#3

चाची के बदन पर लहंगा ही था , ऊपर से पूरी नंगी वो . सर के खुल्ले बाल जो बार बार उसके वक्ष स्थल पर आ रहे थे . चाची के चेहरे पर दुनिया भर की शिकायते थी. पर मेरी नजर उन उन्नत छातियो पर थी जिन्हें मैं इतना पास से देख रहा था . बेशक मैंने अभी पानी पीया था पर होंठो पर खुरदुरापन महसूस किया मैंने. वो चाचा से झगड़ रही थी .

“खुद तो दो मिनट में ही ठन्डे हो जाते हो , मैं हमेशा की तरह रह जाती हूँ ,” चाची ने कहा

चाचा- हो जाता है कभी कभी जल्दी . इस बात का क्या बतंगड़ बनाना.

चाची- हाँ, सारा दोष मेरा ही तो है .

“जो जा अब कल और जोर से रगड़ दूंगा तुझे. ” चाचा ने जवाब दिया और पीठ दिवार की दूसरी तरफ मोड़ ली. चाची ने भी ब्लाउज पहन लिया और चाची के पास आकर लेट गयी.

“सुनो , एक बात करनी थी ” चाची ने कहा

चाचा- हाँ बोल.

चाची- वो भतीजा उदयपुर घुमने जाना चाहता है .

चाचा- तूने क्या कहा

मैं- टाल दिया . पर अब वो बड़ा हो रहा है , उसकी आँखों में शिकायते देखती हूँ मैं.

चाचा- हम्म

“क्या हम्म, तुम तो सुबह निकल जाते हो .इस घर में मैं रहती हूँ, ये जो दुश्वारिया उसके साथ करती हूँ मैं, वो मुह से कभी नहीं बोलता पर उसकी आँखे जो सवाल करती है मैं नजरे मिला नहीं पाती उस से ” चाची ने कहा

चाचा- सो जा, कल हम इस बारे में तसल्ल्ली से बात करेंगे. जिंदगी में वैसे ही कुछ ठीक नहीं चल रहा है , वो जब्बर ने अपनी दो एकड़ जमीन दबा ली है . पंच-सरपंचो की भी नहीं मानता वो.

चाची- पुलिस की मदद क्यों नही लेते

चाचा- पुलिस के साथ बैठ के तो दारू पीता है वो . दौर था जब हमारी मर्जी के बिना गाँव में पत्ता तक नहीं हिलता था और आज देखो .

चाची- कमी तो तुम्हारी ही है , जो इस विरासत इस घर के रुतबे को थाम नहीं पाए.

चाचा- इतने साल हो गए तू आज तक समझ नहीं पायी . मेरी जगह कोई और होता तो न जाने...........खैर , रात बहुत हुई सो जा .

चाचा ने बात अधूरी छोड़ दी . वो दोनों तो सो गए थे पर मेरे दिल में एक हूक जगा गए , पहली बार ऐसा लगा की जिंदगी ऐसी भी नहीं थी जैसा मैं सोचता था . पर मेरी और इस घर की जिन्दगी ऐसी क्यों थी अब मुझे ये देखना था . जब्बर ने हमारी जमीन दबा ली थी ये बात भी मुझे मालूम हुई और मैंने सोच लिया की जमीन पर मैं वापिस कब्ज़ा कर लूँगा.

अलसाई भोर से पहले ही मैं उठ गया था . हाथ मुह धोकर मैं सीधा मंदिर की तरफ निकल गया . ऐसा नहीं था की पूजा-पाठ में मेरी बहुत दिलचस्पी थी पर मेरे दिल में हसरत रहती थी , रीना से मिलने की . हर सुबह - शाम वो मंदिर आती, दर्शन करती , तालाब से पानी भरती . और मैं बस उसे देखता. सुबह की लाली में उसे देखना किसी तीर्थ से कम नहीं था मेरे लिए.



थोड़ी देर हम सीढियों पर बैठते और फिर हमारा दिन शुरू हो जाता. पर मेरी जिन्दगी में वो दिन ही क्या जो बिना किसी परेशानी के बीत जाए. मुझे कुछ भी करके आठ सौ रूपये का जुगाड़ करना था . मैं सोच रहा था की कोई छोटा मोटा काम मिल जाये तो पैसे मिल जाये. पर इतने पैसे भला दे कौन.

नहर की पुलिया पर बैठे बैठे मैं इसी गहन सोच में डूबा था की मैंने सामने से ताई को आते देखा. मुझे देख कर वो मेरे पास आ गयी .

ताई- इधर क्यों बैठा है

मैं- वैसे ही तुम बताओ

ताई- क्या बताऊ, तुझे तो सब मालूम है ही, दिहाड़ी पीट कर आई हूँ. अब जाकर आदमी की गालिया सुनूंगी , न जाने कब सुख मिलेगा, मिलेगा भी या नहीं इस जन्म में

मैं- आखिर किस चीज की लड़ाई है तुम दोनों की

ताई- ग्रहस्थी में टोटे की लड़ाई है , तेरा ताऊ कमाता नहीं , कभी कुछ करता भी है तो उसकी दारू पी जाता है , अब उसके पीछे मरू मैं, खैर तू बता कुछ परेशान सा लगता है

मैं- मेरा हाल भी तेरे जैसा ही है ताई. कुछ पैसो की जरुरत आन पड़ी है . जुगाड़ हो नहीं रहा है

ताई- तेरी चाची से मांग, दुनिया को तो ब्याज में पैसे देती है

मैं- पर मुझे नहीं देती .

ताई- बुरा मत मानियो पर तू ही है जो उस से दबके रहता है पुरे गाँव को मालूम है की ये सब तेरा ही है.

मैं- वो भी मेरे ही है , उनके सिवा और कौन है मेरा तू ही बता

ताई- इतना सरल कैसे है तू

मैं- बस ऐसे ही .

ताई- सुन एक काम है जिस से हम दोनों की मुश्किलें थोड़ी आसान हो सकती है , पैसे का जुगाड़ हो सकता है , थोड़े तू रख लेना थोड़े मुझे दे दियो .

मैं- कैसे.

ताई- मैं जहाँ मजदूरी करती हूँ, वहां सड़क बनाने का काम है , तो तारकोल बनाने के लिए न ट्रको में कोयला आता है. अगर हम ट्रक से थोडा कोयला गायब कर ले तो उसे बेच कर पैसे आ सकते है .

मैं- तू पागल हुई है क्या. चोरी करना गलत है और फिर किसी ने पकड़ लिया तो वैसे ही परेशानी हो जाएगी.

ताई- इस दुनिया में आसानी से कुछ नहीं मिलता, मेरे मन में ये बिचार इसलिए आया है की मैंने कुछ मजदूरो की बाते सुनी थी वो कई बार कोयला बेच चुके है , सहर में एक सेठ है जो ये कोयला खरीदता है . देख ले अगर कर पाये तो .

मैं- मन नहीं मानता

ताई-तेरे मन की तू जाने, चल ठीक है मैं चलती हूँ देर से पहुंचूंगी तो दो गाली और बकेगा आदमी.

ताई चली गयी पर मेरे मन में हलचल मचा गयी .. मेरा मन दो हिस्सों में बंट गया एक तरफ मेरा जमीर कहता की गलत काम गलत ही होता है , तो दूसरा हिस्सा कहे की उदयपुर घुमने जाना ही है , जिन्दगी में ये मौका फिर मिले न मिले. कशमकश जब ज्यादा हुई तो मैं गाँव की तरफ चल निकला . कुछ दूर चला ही था की मेरी चप्पल में काँटा फंस गया . किस्मत को कोसते हुए मैं काँटा निकाल ही रहा था की पास के झुरमुट में मुझे हलचल सी महसूस हुई. लगा की कोई हैं वहां पर मैंने तुरंत चप्पल पहनी और झुरमुट में जाकर देखा. ...........................


तो वहां पर ...........................................
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drx prince

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#4

वहां पर गाँव का सुनार था . उसके हाथ में एक छोटा बक्सा था जिसे वो बार बार खोल बंद कर रहा था .लालाजी का इस समय यहाँ पर इस जंगल में होना कुछ तो ठीक नहीं था . मैं थोडा सा छिप गया और देखने लगा की सुनार आखिर कर क्या रहा है . लाला के हाथ सख्ती से उस पुराने बक्से पर जमे हुए थे, और उसकी आँखे बार बार रस्ते की तरफ देख रही थी जैसे की उसे किसी का इंतज़ार हो . पर किसका हिलते झुरमुट की आड़ में शाम अब रात में बदलने लगी थी.



कुछ देर बाद दूसरी तरफ से कदमो की आहट हुई तो मैं थोडा सा और छिप गया . लाला ने आने वाले दोनों आदमियों को देख कर एक गहरी सांस ली और बोला- कितनी देर की आने में .

आदमी जिन्होंने अपना मुह तौलिये से ढका हुआ था वो बोला- ऐसे मामलो में देर तो हो ही जाती है लाला. सामान लाया .

लाला- हाँ, पर आज पुरे 16 साल बाद ऐसी क्या बात हुई जो इस दबी बात को उखाड़नी पड़ी .

आदमी- गुजरा हुआ वक्त , कभी कभी आज बन कर आँखों के सामने आ जाता है और जब ऐसा होता है तो उस आज का सामना करना मुश्किल हो जाता है ,

लाला- तो इस राज को भी दबे रहने देते जैसे की और कितने ही राज दबा दिए हमने.

आदमी-वो दौर अलग था लाला, ये दौर अलग है . खैर, छोड़ इन बातो को तुझे तेरा हिस्सा तो मिल ही जायेगा. ला बक्सा मुझे दे.

वो कहते है न सबकी जिन्दगी में एक ऐसा लम्हा आता है जो पूरी जिन्दगी को एक झटके में बदल देता है . उस छोटे से लम्हे में मुझे न जाने क्या सोचा, मैंने वो करने का सोच लिया जिस से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था . मैंने झोली में रेत भरी और उन लोगो की आँखों में झोंक दी. इस से पहले की वो कुछ समझ पाते मैंने बक्सा लाला के हाथ से उड़ा लिया.



पीठ पीछे वो तीनो चीख रहे थे, और मैं दौड़ लगाये जा रहा था . कभी इधर कभी उधर, मेरे फेफड़े जैसे फट ही गए थे पर मैं रुका नहीं . मैं जंगल में और अन्दर भागे जा रहा था . अँधेरा घना और घना होते जा रहा था . इतना घना की जैसे रात ने सब कुछ अपने आगोश में ले लिया था. जब मुझे पूरी तस्सली हो गयी की मैं अकेला हूँ तो मैंने एक पेड़ का सहारा लिया और सांसो को दुरुस्त करने लगा.



मैं इतना तो जान गया था की इस बक्से में कुछ बेहद खास था . कोई दो-तीन किलो का वो बक्सा अपने अन्दर कुछ ऐसा समेटा हुआ था जो 16 साल पुराणी बात का गवाह था . दिल जोर से धडक रहा था ,



जानता था की लाला और उसके साथी पूरा जोर लगा देंगे इस बक्से को हासिल करने के लिए मुझे जंगल से निकल कर सुरक्षित स्थान पर जाना था . अगले कुछ घंटे मेरे लिए बड़े मुश्किल थे हर पेड़, हर लहराती शाख मुझे लाला ही लगी. जैसे तैसे करके मैं गाँव की दहलीज पर पहुंचा. और किस्मत देखिए एक तो रात का समय ऊपर से बिजली गुल.



उस पूरी रात मैं अपने कमरे में बैठा रहा , उस बक्से को घूरता रहा. चिमनी की रौशनी में बक्सा जैसे चमक रहा था . मेरे हाथ कांप रहे थे दिल चीख रहा था की खोल कर देख इसमें क्या है .पर हिम्मत नहीं हो रही थी . घबराहट इतनी की कहीं बुखार न हो जाये. जैसे तैसे सुबह हुई. मैंने बक्से को छुपा दिया. वैसे भी मेरे कमरे में कोई आता जाता तो नहीं था .



सुबह मैं पढने निकल गया . मन कर रहा था की बक्से वाली बात रीना को बता दू, पर फिर खुद को रोक लिया. उसे क्यों उलझाना बेवजह . दोपहर को मैंने साईकिल सुनार की दुकान की तरफ घुमाई मैं देखना चाहता था उसके हाव भाव पर वो बेखबर अपने काम में लगा था जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. तब मुझे समझ आया वो कितना घाघ था इतने सालो से बक्से को छुपाये हुआ था तो रात की बात की क्या ही औकात थी उसके सामने.



उदयपुर जाने के अब कुछ ही दिन बचे थे . दो दिन के भीतर पैसे जमा करवाने थे . और पैसे ही तो नहीं थे मेरे पास. मेरे दिमाग में ताई की कही बात बिजली की तरह कौंध रही थी . कुछ सोच कर मैं उस तरफ चल दिया जहाँ ताई काम करती थी .उस समय मुझे कहाँ मालूम था ये मेरी किस्मत थी तो मेरे करम लिख रही थी.

मुझे देखते ही ताई की आँखों में चमक आ गयी . वो मेरे पास आ गयी .

ताई- तो सोच लिया तूने.

मैं- हाँ सोच लिया.

“देख उस तरफ वो दो ट्रक खड़े है , आज ही आये है . दो कट्टे गायब हु तो भी कुछ मालूम नहीं होना किसी को .” ताई ने आँखों से इशारा करते हुए कहा.

मैं- आज रात ही करूँगा ये काम.

ताई- ठीक है , मैं तुझे सेठ की दूकान बताती हूँ, वहां बस कट्टे रख देना वो समझ जायेगा.

मैं- ठीक है . चलता हूँ फिर .

ताई- थोड़ी देर रुक , अब कहाँ पैदल जाउंगी, तेरे साथ ही चल दूंगी मैं भी.

मैं- हाँ,

आधे घंटे बाद मैं और ताई गाँव की तरफ आ रहे थे बाते करते हुए.

मैं-किसी को मालूम हो गया तो

ताई- नहीं होगा. सब ठीक रहेगा. वैसे अगर तू चाहे तो मैं आ जाती हूँ तेरे साथ रात को , मैं चोकिदारी कर लुंगी, तू कोयला उठा लेना.

मैं- ताऊ को क्या कहेगी.

ताई- कहना क्या है , दारू पी कर लुढक जायेगा.एक बार सोया तो फिर होश कहाँ रहता है उसे.

मैं- बड़ी दिलेर है तू

ताई- जरूरते सब कुछ करवा देती है .

मैं- सो तो है तो फिर ठीक रहा , रात को दस बजे तू मुझे फिरनी पर मिलना

ताई-पक्का.


, कल बक्से की वजह से धडकने बढ़ ह गयी थी आज कोयला चुराने का सोच कर. घर आया तो चाची आँगन में नलके पर हाथ मुह धो रही थी , झुक कर वो अपने चेहरे पर पानी के छींटे मार रही थी मेरी नजरे उसके ब्लाउज से झांकती चुचियो पर पड़ी. कल रात वाला सीन आँखों के सामने घूम गया. आधी दिखती गोरी चुचिया मेरे दिल में हलचल मचाने लगी. कनपटी के पास गर्मी महसूस की मैंने. तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो मैं आगे बढ़ गया. इंतज़ार था रात होने का.
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