Sanju@
Well-Known Member
- 4,707
- 18,900
- 158
बहुत ही सुन्दर और लाजवाब अपडेट है#
जितना मैं ताई के करीब जाने की कोशिश करता तभी कोई न कोई आकर बीच में पंगा कर देता . झल्लाते हुए मैं बाहर गया तो देखा की बैंक का चपरासी खड़ा है
मैं- क्या हुआ तुझे
चपरासी- भाई, तुमको न मनेजर साहब बुला रहे है
मैं - तू चल मैं आता हूँ
वो- मेरे साथ ही चलो भाई उन्होंने कहा है की साथ लेकर ही आना
मैं- ठीक है चल फिर
कुछ ही देर में हम लोग बैंक पहुँच गए . मैं सीधा मनेजर के कमरे में गया .
मेनेजर- मैं आपकी ही राह देख रहा था.
मैं- पर किसलिए
उसने दराज से एक लिफाफा खोला और बोला- ये वो सारा लेखा जोखा है जो आपने मुझसे माँगा था .
मैं- - मेरी समझ में कहाँ ये सब , मोटा मोटा समझाओ मुझे जरा
मेनेजर ने मुझे हिसाब किताब समझाया .
“और इस पैसे को मैं कब खर्च कर सकता हूँ ” मैंने पूछा
मेनेजर- वैसे तो नियम ये है की जब तक आपकी सरपरस्ती ख़त्म नहीं हो जाती आपके चाचा के साइन की जरुरत है पर चूँकि मेरे सम्बन्ध पुराने है आप से तो आप कभी भी ले सकते है पैसे कोई दिक्कत नहीं है .
मैं- और चाचा ने इनमे से कितने रूपये निकाले है
मेनेजर- एक भी नहीं, बल्कि वो तो कभी बैंक में आये भी नहीं है
ये मेरे लिए और अचम्भा था क्योंकि चाचा ने आज तक कभी भी पैसे नहीं निकाले तो घर खर्चे , हमारे लिए जो भी वो कर रहा था वो पैसे कहाँ से आ रहे थे, फिर मैंने सोचा की उसके धंधे से आते होंगे.
मैं- और कुछ जो आप मुझे बताना चाहते है .
मेनेजर- बस यही की अब आप अपनी विरासत संभाले
मैं- कौन सी विरासत , कहाँ महल खड़े है मेरे.
मेनेजर बस मुस्कुरा दिया. मैं बैंक से निकल कर हलवाई की दुकान की तरफ आया ही था की मैंने वहां नीम के चबूतरे पर मीता को बैठे देखा, दीं दुनिया से बेगानी वो आलू-समोसे खा रही थी . हलके आसमानी कपड़ो में बड़ी सोहनी लग रही थी वो . मैंने हलवाई को जलेबी के लिए कहा और चबूतरे की तरफ बढ़ गयी. उसने मुझे देखा , मैंने उसे देखा . वो मुस्कुराई मैं हंसा.
“बस इधर उधर ही घूमते रहते हो क्या तुम ” उसने मुझसे कहा
मैं- मेरा गाँव है यहाँ नहीं मिलूँगा तो कहाँ मिलूँगा.
वो- सो तो है
मैं- और कैसी हो .बड़े दिनों बाद मिली हो
वो- परसों तो मिले ही थे हम.
मैं- तेरी जुदाई में दिन भी साल लगते है .
मीता- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे
तभी जलेबी आ गयी मैंने दोना उसकी तरफ किया .
“मीठा कम पसंद है मुझे ” उसने कहा
मैं- अब आदत डाल ले
वो- किस चीज़ की
मैं- हर उस चीज़ की जो अब तुम्हे पसंद करनी होगी.
वो- कौन सी फिल्मे देखता है तू, तेरी ये हरकते बेशक कइयो को दीवाना बना दे पर मैं उनमे से नहीं हूँ
मैं- इसमें दीवानगी की बात कहाँ आई, बात तो जलेबी की है
वो - ठीक है , ठीक है .
हम लोग अपनी मस्ती में थे, एक आधे लोग आते जाते हमें देख रहे थे पर किसे परवाह थी . मीता का साथ होना वो अहसास था जिसे मैं बार बार महसूस करना चाहता था .
“चल ठीक है , मेरे जाने का समय हुआ चलती हूँ ” उसने कहा
मैं- क्या अभी तो मिली अभी जा रही है
वो- जाना तो होगा जिस काम के लिए आई थी वो पूरा हुआ अब घर न जाऊ क्या
मैं- मैं छोड़ देता हु तुझे
वो- रहने दे
मैं- छोड़ ने ये नखरे तू दो मिनट रुक मैं अभी साईकिल लेकर आया .
उसके जवाब की परवाह किये बिना मैं दौड़ कर गया और साइकिल ले आया. वो बैठी और हम चल दिए. मैंने जान बुझ कर वो रास्ता लिया जो मेरी बंजर जमीं की तरफ से होकर जाता था . इधर उधर की बाते करते हुए हम मेरे खेतो पर पहुंचे.
“कुछ देर रुक जरा , फिर चली जाना ” मैंने उस से कहा
वो- जाना तो है ही फिर क्या थोड़ी देर क्या ज्यादा देर.
मैंने जवाब नहीं दिया. हम चलते चलते उस बावड़ी की तरफ आ गए .
मैं- इस जमीन को पता नहीं क्या हुआ है , कुवो में पानी भी है फिर भी बंजर है .
मीता- तू मेहनत करना यहाँ , क्या मालूम हरी भरी हो जाये.
मैं- मैंने भी यही सोचा है .
मीता- जमीन को पानी से नहीं बल्कि पसीने से सींचा जाता है , तू इसका मान करेगा ये पेट भरेगी तेरा. ये हमारी माँ है और माँ औलाद के लिए सब कुछ करती है
मैं- नेक विचार है
वो- तो कब से शुरू करेगा तू यहाँ काम करना
मैं- जिस दिन तू भरी दोपहर मिलने आया करेगी , इन्ही खेतो में अपनी प्रेम कहानी की फसल पकेगी.
मीता - इसीलिए मैं तुझसे दोस्ती नहीं करना चाहती थी न दो ही दिन में मोहब्बत की बाते करने लगा. मैं कहती हूँ तुझे ये मोहब्बत की बीमारी न ही लगे तो बढ़िया हो . इश्क का रोग जो लगा न तो फिर उम्र भर इलाज नहीं मिलता .
मैं- और जो अगर तेरा मेरा संजोग हुआ तो
वो- मैं जानती हूँ अपनी हदे.
मैं- पूछना तेरे सितारों से , उन्हें तो सब मालूम है न
मीता मुस्कुराई और बोली- सितारे झूठे होते है .
मैं- तो फिर सच्चा कौन हुआ
मीता-मेरे भाग के दुःख है सच्चे जो हर पल मेरे साथ है , मेरा साथ छोड़ते ही नहीं .
मैं- क्या पता वो भी इंतजार कर रहे हो की कब कोई आये तुझे थामने और वो तेरा साथ छोड़े
मीता- बस बहुत हुई बाते. जाने दे मुझे .
मैं- मेला देखेगी न मेरे साथ
मीता- नहीं बिलकुल नहीं
मैं- क्यों भला , मेरा हाथ दुनिया के आगे थामने से घबरा गयी क्या तू
मीता मेरे पास आई इतना पास की उसकी सांसे मेरी सांसो से टकराने लगी .
“इस दुनिया को इस ज़माने को अपनी जुती की नोक पर रखती हूँ मैं, अर्जुन सिंह के बेटे, अलख के पार रहूंगी मैं .मेरा हाथ थामने की हसरत है न तुम्हे , अगर तुम उस काबिल हुए तो थाम लेना मेरा हाथ किसने रोका है तुम्हे ” उसने कहा और अपने रस्ते मुड गयी .
मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा .
बैंक मैनेजर ने उसे पैसों को खर्च करने के बारे में बताया
मनीष के लिए यह भी एक पहेली बन गई की चाचा ने बैंक से एक भी पैसा नही लिया और घर का खर्चा भी चला रहे है कैसे??????????
मनीष दो कस्ती में सवार होना चाहता है वह रीना से भी प्यार करता है और मीता से भी प्यार करने लग गया है
“इस दुनिया को इस ज़माने को अपनी जुती की नोक पर रखती हूँ मैं, अर्जुन सिंह के बेटे, अलख के पार रहूंगी मैं .मेरा हाथ थामने की हसरत है न तुम्हे , अगर तुम उस काबिल हुए तो थाम लेना मेरा हाथ किसने रोका है तुम्हे ” उसने कहा ..
आखिर मीता ने ऐसा क्यू कहा क्या कोई तांत्रिक है ये लड़की या कोई और