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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Sanju@

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जितना मैं ताई के करीब जाने की कोशिश करता तभी कोई न कोई आकर बीच में पंगा कर देता . झल्लाते हुए मैं बाहर गया तो देखा की बैंक का चपरासी खड़ा है

मैं- क्या हुआ तुझे

चपरासी- भाई, तुमको न मनेजर साहब बुला रहे है

मैं - तू चल मैं आता हूँ

वो- मेरे साथ ही चलो भाई उन्होंने कहा है की साथ लेकर ही आना

मैं- ठीक है चल फिर

कुछ ही देर में हम लोग बैंक पहुँच गए . मैं सीधा मनेजर के कमरे में गया .

मेनेजर- मैं आपकी ही राह देख रहा था.

मैं- पर किसलिए

उसने दराज से एक लिफाफा खोला और बोला- ये वो सारा लेखा जोखा है जो आपने मुझसे माँगा था .

मैं- - मेरी समझ में कहाँ ये सब , मोटा मोटा समझाओ मुझे जरा

मेनेजर ने मुझे हिसाब किताब समझाया .

“और इस पैसे को मैं कब खर्च कर सकता हूँ ” मैंने पूछा

मेनेजर- वैसे तो नियम ये है की जब तक आपकी सरपरस्ती ख़त्म नहीं हो जाती आपके चाचा के साइन की जरुरत है पर चूँकि मेरे सम्बन्ध पुराने है आप से तो आप कभी भी ले सकते है पैसे कोई दिक्कत नहीं है .

मैं- और चाचा ने इनमे से कितने रूपये निकाले है

मेनेजर- एक भी नहीं, बल्कि वो तो कभी बैंक में आये भी नहीं है

ये मेरे लिए और अचम्भा था क्योंकि चाचा ने आज तक कभी भी पैसे नहीं निकाले तो घर खर्चे , हमारे लिए जो भी वो कर रहा था वो पैसे कहाँ से आ रहे थे, फिर मैंने सोचा की उसके धंधे से आते होंगे.

मैं- और कुछ जो आप मुझे बताना चाहते है .

मेनेजर- बस यही की अब आप अपनी विरासत संभाले

मैं- कौन सी विरासत , कहाँ महल खड़े है मेरे.



मेनेजर बस मुस्कुरा दिया. मैं बैंक से निकल कर हलवाई की दुकान की तरफ आया ही था की मैंने वहां नीम के चबूतरे पर मीता को बैठे देखा, दीं दुनिया से बेगानी वो आलू-समोसे खा रही थी . हलके आसमानी कपड़ो में बड़ी सोहनी लग रही थी वो . मैंने हलवाई को जलेबी के लिए कहा और चबूतरे की तरफ बढ़ गयी. उसने मुझे देखा , मैंने उसे देखा . वो मुस्कुराई मैं हंसा.

“बस इधर उधर ही घूमते रहते हो क्या तुम ” उसने मुझसे कहा

मैं- मेरा गाँव है यहाँ नहीं मिलूँगा तो कहाँ मिलूँगा.

वो- सो तो है

मैं- और कैसी हो .बड़े दिनों बाद मिली हो

वो- परसों तो मिले ही थे हम.

मैं- तेरी जुदाई में दिन भी साल लगते है .

मीता- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे

तभी जलेबी आ गयी मैंने दोना उसकी तरफ किया .

“मीठा कम पसंद है मुझे ” उसने कहा

मैं- अब आदत डाल ले

वो- किस चीज़ की

मैं- हर उस चीज़ की जो अब तुम्हे पसंद करनी होगी.

वो- कौन सी फिल्मे देखता है तू, तेरी ये हरकते बेशक कइयो को दीवाना बना दे पर मैं उनमे से नहीं हूँ

मैं- इसमें दीवानगी की बात कहाँ आई, बात तो जलेबी की है

वो - ठीक है , ठीक है .

हम लोग अपनी मस्ती में थे, एक आधे लोग आते जाते हमें देख रहे थे पर किसे परवाह थी . मीता का साथ होना वो अहसास था जिसे मैं बार बार महसूस करना चाहता था .

“चल ठीक है , मेरे जाने का समय हुआ चलती हूँ ” उसने कहा

मैं- क्या अभी तो मिली अभी जा रही है

वो- जाना तो होगा जिस काम के लिए आई थी वो पूरा हुआ अब घर न जाऊ क्या

मैं- मैं छोड़ देता हु तुझे

वो- रहने दे

मैं- छोड़ ने ये नखरे तू दो मिनट रुक मैं अभी साईकिल लेकर आया .

उसके जवाब की परवाह किये बिना मैं दौड़ कर गया और साइकिल ले आया. वो बैठी और हम चल दिए. मैंने जान बुझ कर वो रास्ता लिया जो मेरी बंजर जमीं की तरफ से होकर जाता था . इधर उधर की बाते करते हुए हम मेरे खेतो पर पहुंचे.

“कुछ देर रुक जरा , फिर चली जाना ” मैंने उस से कहा

वो- जाना तो है ही फिर क्या थोड़ी देर क्या ज्यादा देर.

मैंने जवाब नहीं दिया. हम चलते चलते उस बावड़ी की तरफ आ गए .

मैं- इस जमीन को पता नहीं क्या हुआ है , कुवो में पानी भी है फिर भी बंजर है .

मीता- तू मेहनत करना यहाँ , क्या मालूम हरी भरी हो जाये.

मैं- मैंने भी यही सोचा है .

मीता- जमीन को पानी से नहीं बल्कि पसीने से सींचा जाता है , तू इसका मान करेगा ये पेट भरेगी तेरा. ये हमारी माँ है और माँ औलाद के लिए सब कुछ करती है

मैं- नेक विचार है

वो- तो कब से शुरू करेगा तू यहाँ काम करना

मैं- जिस दिन तू भरी दोपहर मिलने आया करेगी , इन्ही खेतो में अपनी प्रेम कहानी की फसल पकेगी.

मीता - इसीलिए मैं तुझसे दोस्ती नहीं करना चाहती थी न दो ही दिन में मोहब्बत की बाते करने लगा. मैं कहती हूँ तुझे ये मोहब्बत की बीमारी न ही लगे तो बढ़िया हो . इश्क का रोग जो लगा न तो फिर उम्र भर इलाज नहीं मिलता .

मैं- और जो अगर तेरा मेरा संजोग हुआ तो

वो- मैं जानती हूँ अपनी हदे.

मैं- पूछना तेरे सितारों से , उन्हें तो सब मालूम है न

मीता मुस्कुराई और बोली- सितारे झूठे होते है .

मैं- तो फिर सच्चा कौन हुआ

मीता-मेरे भाग के दुःख है सच्चे जो हर पल मेरे साथ है , मेरा साथ छोड़ते ही नहीं .

मैं- क्या पता वो भी इंतजार कर रहे हो की कब कोई आये तुझे थामने और वो तेरा साथ छोड़े

मीता- बस बहुत हुई बाते. जाने दे मुझे .

मैं- मेला देखेगी न मेरे साथ

मीता- नहीं बिलकुल नहीं

मैं- क्यों भला , मेरा हाथ दुनिया के आगे थामने से घबरा गयी क्या तू

मीता मेरे पास आई इतना पास की उसकी सांसे मेरी सांसो से टकराने लगी .

“इस दुनिया को इस ज़माने को अपनी जुती की नोक पर रखती हूँ मैं, अर्जुन सिंह के बेटे, अलख के पार रहूंगी मैं .मेरा हाथ थामने की हसरत है न तुम्हे , अगर तुम उस काबिल हुए तो थाम लेना मेरा हाथ किसने रोका है तुम्हे ” उसने कहा और अपने रस्ते मुड गयी .


मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा .
बहुत ही सुन्दर और लाजवाब अपडेट है
बैंक मैनेजर ने उसे पैसों को खर्च करने के बारे में बताया
मनीष के लिए यह भी एक पहेली बन गई की चाचा ने बैंक से एक भी पैसा नही लिया और घर का खर्चा भी चला रहे है कैसे??????????
मनीष दो कस्ती में सवार होना चाहता है वह रीना से भी प्यार करता है और मीता से भी प्यार करने लग गया है
“इस दुनिया को इस ज़माने को अपनी जुती की नोक पर रखती हूँ मैं, अर्जुन सिंह के बेटे, अलख के पार रहूंगी मैं .मेरा हाथ थामने की हसरत है न तुम्हे , अगर तुम उस काबिल हुए तो थाम लेना मेरा हाथ किसने रोका है तुम्हे ” उसने कहा ..

आखिर मीता ने ऐसा क्यू कहा क्या कोई तांत्रिक है ये लड़की या कोई और
 

Sanju@

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#22

मैं मीता को जाते हुए देखता रहा, मैं चाहता तो उसे रोक सकता था . मेरा यहाँ आने का मकसद ही था उसके साथ वक्त बिताना . उसकी सांवली सूरत मेरी नजरो से हटती ही नहीं थी , उसका दीदार करना ठीक ऐसा ही था जैसे किसी मजदुर को टाइम पर उसकी रोज़ी मिल जाना. जब वो नजरो से ओझल हो गयी तो मैं बावड़ी की तरफ बढ़ा . काफी समय से किसी ने इसकी सफाई नहीं की थी जिस वजह से पानी भी ख़राब था. मैंने इसकी मरम्मत करवाने की सोची .

इस जमीन को हरीभरी करना ही अब मेरा लक्ष्य था . मीता के जाने के बाद मेरा वहां पर रुकना जायज नहीं था तो मैं वापिस गाँव आ गया . शाम को पनघट पर रीना पानी भरने आई. लाल चुनरिया ओढ़े , माथे पर टीका लगाये बड़ी खूबसूरत लग रही थी . उसने मटका साइड में रखा और मेरे पास आकर बैठ गयी .

“ठंडी रेट पर बैठे डूबते सूरज को देखना भी अनोखा है न ” उसने कहा

मैं- बड़ी बात ये नहीं है बड़ी बात है इन शामो में तेरे साथ बैठना

रीना- पर कभी न कभी वो दिन भी आयंगे जब ये शामे तो होंगी पर मैं न रहूंगी.

उसने मेरी आँखों में देखा.

मैं- तू हमेशा रहेगी मेरे साथ .

रीना- कभी कभी सोचती हूँ

मैं- क्या सोचती है

रीना- कुछ नहीं , तू भी न कैसी बाते लेकर बैठ गया है मैंने सुना की तूने सुनार से पंगा कर लिया , आखिर तुझे क्या जरुरत थी ऐसे लोगो के मुह लगने की .

मैं- वो मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा बोल रहा था .

रीना- दुनिया तो कुछ न कुछ कहती ही है , अगर हम भी उनके जैसे हो गए तो हममे और उनमे क्या फर्क रहेगा. और तू भला कब से ऐसा गुस्सा करने वाला हो गया .

मैं- तू कहती है तो गुस्सा नहीं करता बस . मैं गुस्सा करना भी नहीं चाहता पर तू तो जानती है न मेरी परेशानियों को घर पर चाची के ताने सहे नहीं जाते और बाहर ये दुनिया वाले करू तो क्या करू.



रीना- तू कुछ मत कर सब तक़दीर पर छोड़ दे, कब तक दुःख के बादल रहेंगे, कभी तो सुख की बरसात होगी न

मैं- कब आयेंगे वो दिन

रीना- आयेंगे,सब का भाग पलटता है तेरा भी पलटेगा तू बस भरोसा रख .

मैंने उसका हाथ थाम लिया और बोला- तू कहती है तो मान लेता हूँ , कल तू कहे तो तुझे कही ले चलू

रीना- कहाँ

मैं- ऐसी जगह , जो कभी जन्नत होती थी.

रीना- जहाँ तेरी मर्जी वहां ले चल , पर तेरी खटारा साईकिल पर न बैठूंगी

मैं- हाँ बाबा मत बैठना

वो- चल फिर चलते है , मामी टोकेगी और देर की तो .

मैं- तुझे कब से परवाह हुई टोकने की .

रीना- बस कुछ दिनों से .

उसने मटका भरा और हम साथ साथ ही मोहल्ले में आ गए. उसकी लहराती जुल्फे, रोशन आँखे , मंद मुस्कान जी करता था बस उसे देखता ही रहू और देखता ही रहता अगर गली में आती चाची ने मुझे टोक न दिया होता- अब क्या घर छोड़ कर आएगा उसे, मैं देख रही हूँ तेवर बदले हुए है तुम्हारे, नाम रोशन करोगे हमारा

मैं- तुम्हारा ना सही किसी न किसी का तो करूँगा ही .

चाची- बेहूदगी, बद्त्मिजिया बहुत बढ़ गयी है तुम्हारी .

मैं- मेरी छोड़ो तुम. मेरी जिन्दगी किसी की गुलाम नहीं है इस जिन्दगी को कैसे जीना है ये मैं देख लूँगा. और मैं आज तुमसे कहता हूँ उस खूबसूरत जिन्दगी में तुम नहीं होगी.

“क्या कहा तूने ,” चाची मुझे मारने को को हाथ आगे किया पर फिर हाथ को रोक लिया .

“ठीक ही तो कहा तूने, ये तेरी जिन्दगी है , ठीक कहा तूने ” चाची मुझसे दूर हो गयी .

मैं ताई के घर चला गया . ताई अपने कमरे में बैठी थी. मैं भी उसके पास जाकर बैठ गया .

“क्या हुआ तुझे ” उसने पूछा

मैं- कुछ भी तो नहीं

ताई- फिर चेहरा क्यों उतरा हुआ है .

मैं- ताई मैं कह रहा था की क्यों न हम सिनेमा देखने चले.

ताई- तेरा ताऊ वहीँ पर गाली बकने लगेगा मुझे.

मैं- कुछ न करेगा वो ऐसा . चल न इसी बहाने सहर घूम आयेंगे.

ताई- न , मुझसे न होगा ये

मैं- ठीक है , पर कल के कल ही कुछ जरुरी काम करने है

ताई- क्या

मैं- कुछ मजदूरो को लेकर तू सुबह ही बावड़ी पर चली जाना , उसकी सफाई करवाना . वहां पर जो भी मरम्मत करवानी है वो करवाओ. मैंने सोच लिया है की मुझे मेरा घर वहीँ पर बनाना है .

ताई- अब ये क्या नयी खुराफात है तुम्हारी

मैं- तुम नहीं समझोगी.चाची के साथ नहीं रहना चाहता मैं

ताई- कितनी बार कहाँ है की ये भी तुम्हारा ही घर है तुम यहाँ रह लो

मैं- यहाँ भी नहीं रह सकता

ताई- क्यों भला

मैं- उसका कारण तुम हो, तुम जानती हो मैं तुम्हे पसंद करता हूँ. तुम्हारे साथ रहा तो कहीं मुझसे कुछ गलत न हो जाये.

ताई- क्या गलत करना चाहते हो तूम

मैंने ताई के चेहरे को अपने हाथो में लिया और बोला- मैं तुमसे प्यार करना चाहता हूँ तुम्हारे इन लबो को चूमना चाहता हूँ . मैं जानता हूँ ये गलत है , ये पाप है . पर ये पाप करना चाहता हूँ मैं . जब से मैंने तुम्हारे उस रूप को देखा है मैंने , मैं बार बार तुम्हे उसी रूप में देखना चाहता हूँ, हर पल मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है , हर पल मैंने खुद को रोका है

इस से पहले की मेरी बात पूरी हो पाती, ताई ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. गीले होंठो का स्पर्श मुझे अन्दर तक भिगो गया . बहुत देर तक ताई और मैं एक दुसरे को चुमते रहे , एक दुसरे को बार बार चूमा हमने. पर बात इस से पहले की और आगे बढ़ पाती, मेरी किस्मत एक बार मुझे धोखा दे गयी.

मुझे ऐसे लगा की मेरी जांघो में गर्मी बहुत बढ़ गयी है , जैसे वो जल उठी है . मैं झटके से ताई से अलग हुआ और जेब में हाथ दिया. वो हीरा जो धागे में पिरोया हुआ था वो बड़ी तेजी से चमक रहा था , जैसे की कोई बल्ब जल रहा हो. वो इतना गर्म हो गया था की मुझे उसे बिस्तर पर फेंक देना पड़ा.

“ये तुम्हे कहा मिला ” ताई ने पूछा

मैं- तुम जानती हो ये किसका ह
मीता इस कहानी की नायिका हो सकती हैं वह मनीष की जिंदगी में प्रवेश जरूर करेगी शायद वह भी मनीष से प्यार करती है रीना मनीष को समझाती है कि ऐसे न भटकता फिरे चाची फिर रीना के साथ देखकर मनीष को डाट लगाती हैं देखते हैं ये रीना कोन है कहा की है ये
 
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#23

“तुम जानती हो ये किसका है ” मैंने फिर पूछा

“मुझे नहीं मालूम , ” ताई ने कहा

मैं- तुम जानती हो

ताई- तू जा यहाँ से ,

मैं- बताओ ये किसका है

“मैंने कहा न तू जा यहाँ से ” ताई ने इस बार थोड़े गुस्से से बोला

मैं- जा रहा हूँ, मत बताओ पर मुझे मालूम है तुम जानती हो ये किसका है

मैं नीम के निचे चबूतरे पर जाकर बैठ गया और सोचने लगा की ताई ने इस धागे को पहले भी देखा है वो जानती है , आँखों के सामने उस हीरे को देख रहा था जिसकी गर्मी अब थोड़ी कम हो गयी थी पर वो गर्म था . जैसे उसमे आग जल रही हो. सफ़ेद हीरे का रंग केसरिया हो गया था . जब कुछ न सोचा तो मैं चबूतरे पर लेट गया और थोड़ी देर के लिए आँखों को मूँद लिया.

न जाने कितनी देर मेरी आँख लगी होगी पर अचानक से कुत्तो के भोंकने की आवाज से मैं जागा तो मैंने देखा की बिजली नहीं थी, पूरा गाँव अँधेरे में डूबा हुआ था .

“ये साले कुत्ते क्यों इतना भोंक रहे है ” मैंने उनको गाली दी. पर तभी पायल की आवाज से मुझे महसूस हुआ की गली में कोई है, कोई औरत है . काले अँधेरे में काले कपडे पहले वो आबनूस सी तेजी से जा रही थी . न जाने मुझे क्या हुआ . मैं भी उसी दिशा में चल पड़ा.

छम छम करती वो औरत बस चली जा रही थी , गाँव पीछे बहुत पीछे रह गया था . मुझे उस से कुछ लेना देना नहीं था पर चुल थी की इतनी रात गए ये कौन है , कहाँ जा रही है .अचानक से एक मोड़ पर वो रुक गयी . उसे जैसे किसी का इंतज़ार था .

कुछ देर बाद वहां पर एक आदमी और आ गया . मैं थोडा सा और आगे हुआ ताकि जान सकू ये कौन थे .

“बात मेरे काबू से बाहर निकल चुकी है , उसकी रगों में खून उबाल मार रहा है , मैं चाह कर भी उसे नहीं रोक पाउँगा जो उसे करना है वो करके ही रहेगा ” आदमी ने कहा

“पर इसका अंजाम कौन भुगतेगा , ” औरत ने कहा

मैं आवाज को पहचानने की कोशिश करने लगा.

“तो मैं क्या करू , कुछ भी तो नहीं समझ आ रहा ” आदमी ने कहा .

उसकी आवाज जानी पहचानी तो लग रही थी पर शब्द लडखडा रहे थे उसके शायद नशे में था तो समझ नहीं आ रहा था .

“उसे बाहर भेजने का इंतजाम कर दिया है पर वो मानता नहीं ” जब उसने ये बात कही तो मैं समझ गया ये मेरे बारे में थी और ये आदमी चाचा था . पर ये औरत कौन थी जिस से मिलने के लिए उसे इतनी दूर आना पड़ा था .

“मुझे चिंता ये नहीं है, उसने लालाजी से भी तो पंगा ले लिया है, ऊपर से लाला के आदमियों को कोई पेल रहा है , लाला को शक है ” औरत ने कहा

चाचा- पर मेरे भतीजे का लाला के आदमियों से कोई लेना देना नहीं

औरत- जानती हूँ, लाला के शक की वजह कोई और ही है , मैंने कोशिश भी की थी पर उसने खुल कर कुछ नहीं बताया . कुछ तो ऐसी बात है जो लाला के दिल की गहराई में दफ़न है.

चाचा- मनीष की तरफ अगर लाला ने बुरी नजर डाली तो मैं चुप नहीं बैठूँगा

“जानती हूँ, पर तुम्हारे भतीजे को भी थोडा देखना चाहिए था न , लाला को थप्पड़ मार दिया उसने ” औरत ने कहा

चाचा- जानता हूँ उसकी गलती है , पर लाला को भी भाई का जिक्र नहीं करना था पूरा गाँव जानता है लाल और भाई की कभी बनी नहीं आपस में. मनीष की जगह कोई और भी होता तो वो ये ही करता .

औरत- पर लाला घाघ है

चाचा- परवाह नहीं मुझे. अपनी अगली पीढ़ी के लिए मैं कुछ भी कर जाऊँगा

औरत- अलख के बारे में क्या सोचा, मेले के थोड़े दिन बचे है , मनीष को बताया तुमने

चाचा- कोई जरुरत नहीं उसे बताने की

औरत-अर्जुन का भार कौन उतारेगा , काश वो होता

चाचा- भाई नहीं है तो क्या हुआ मैं तो हूँ, मैं जाऊंगा वहां .

औरत- तुम जानते हो , तुम अलग हो इन सब बातो का बोझ तुम नहीं उठा सकते .

चाचा- अपने परिवार का बोझ तो उठा सकता हूँ न, चाहे मुझे जान देनी पड़े पर मैं मेरे भतीजे को इन सब में शामिल नहीं करूँगा. मेरे जीते जी कुल का दीपक ही बुझ गया तो मेरे जीने का क्या फायदा .

उस औरत ने चाचा का हाथ अपने हाथ में पकड लिया.

“काश ये दुनिया तुम्हे समझ पाती ” उसने कहा

चाचा- तुम तो समझती हो न मुझे.

चाचा ने उस औरत की गोद में अपना सर रख दिया. और मैं सोचने लगा की ये औरत कौन है , चाचा के इतनी नजदीक है तो मैं इसे जरुरर जानता हूँ . मैं वहां उन्हें छोड़ तो आया था पर मेरा ध्यान बस फिर इसी बात पर अटक गया था .

अगले दिन मैंने ताई को कुछ पैसे दिए और खेतो का काम याद दिलाया. उसके बाद मैं रीना से मिला तो मालूम हुआ की वो शहर निकल गयी . मुझे बहुत जरुरी बात करनी थी पर अब तो उसका इंतज़ार ही कर सकते थे . मैं कुछ सोच ही रहा था की तभी मुझे सुनार आता दिखा. वैसे तो वो गाड़ी में ही चलता था पर न जाने आज क्यों छतरी लिए पैदल ही जा रहा था . मैं उसके पास गया .

“और लाला कैसा है ” मैंने उससे कहा

“पुरे इलाके में लोग हाथ जोड़कर अदब से सेठ जी कहते है मुझे ” उसने कहा

मैं- पुरे इलाके में पीठ पीछे तुझे न जाने क्या क्या कहते है लोग

लाला- तेरी हिम्मत की दाद देता हूँ मैं आग से खेलने का बहुत शौक है तुझे

मैं- मैं खुद एक आग हूँ लाला तपिश तो गाल पर महसूस होती ही होगी न तुझे

लाला- जिस दिन तू झुलसेगा न तपिश क्या होती है तब समझेगा तू

मैं- पहले मेरे बाप ने तेरी गांड तोड़ी थी अब मैं तोडूंगा . क्या लाला तेरे तो नसीब ही चुतिया है .

लाला- तेरे बाप को भी यही घमंड था

“खैर लाला , उस दिन तूने मुझसे कहा था की माल तुझे बेच दू, सुन मेरे पास एक ऐसी चीज है जिसमे तेरी दिलचस्पी हो सकती है ” मैंने कहा

लाला ने अपनी सुनहरी ऐनक को उतार कर जेब में रखा और बोला- इतना चुतिया नहीं है तू जितना दुनिया तुझे समझती है , सीधा मुद्दे पर आ .


अब जो मैं करने वाला था , मैं जानता था की मैं मेरे ऊपर एक ऐसी मुसीबत ले रहा हूँ जो मुझे बहुत दिनों तक सताने वाली थी . पर मैं वो दांव खेलने जा रहा था जो इस खेल के ऐसे पत्ते मेरे सामने खोल देता जिस से की बाज़ी खुल जाती .
अभी तक इस कहानी में चाची जी , ताई और लाला की बीवी के अलावा किसी और बुजुर्ग महिला को नहीं देखा । चाचा जी जिस महिला से छुप छुपाकर मनीष और पड़ोसी गांव में होने वाले स्पर्धा की बात कर रहे थे , कहीं वो ताई तो नहीं ? या लाला की धर्मपत्नी थी?
 
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