Naik
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#36
जिंदगी कुछ ऐसी उलझी थी कि सुबह और रातों मे कोई खास फर्क़ नहीं रह गया था. सुबह अंधेरे ही मैं उठ गया था पर बदन मे बड़ी कमजोरी थी, लालटेन की रोशनी मे मैने देखा बिस्तर पूरा सना था खून से. मैंने उसे साफ़ करने की कोशिश नहीं की ब्लकि बिस्तर को झोपड़ी से बाहर फेंक दिया.
इस बेहद मुश्किल रात के बाद मुझे अह्सास होने लगा था कि मैं किसी बड़ी मुसीबत मे हूं, फिलहाल मैं बस सोच सकता था, मैंने नागेश के बारे मे सोचा, मेरी माँ के बारे मे मुझे ऐसी बाते मालूम हुई जो आसानी से गले नहीं उतरने वाली थी.
"हो ना हो इस कहानी की जड़ जूनागढ मे ही है, मुझे फिर वहां जाना होगा " मैंने निर्णय किया और बाबा से मिलने चल प़डा. रास्ते मे मुझे सरोज काकी मिल गई,
"मैं खेतों पर ही आ रही थी, घर आने की फुर्सत ही नहीं तुझे तो, पहले कम से कम खाना तो समय से खा लेता था अब तो ना जाने क्या हुआ है " काकी ने एक साँस मे ढेर सारी बात कह दी
मैं - थोड़ी जल्दी मे हूं काकी, जल्दी ही आता हूं घर
काकी - क्या जल्दी क्या देर, तुझे मुझे बताना होगा किस उधेड बुन मे लगा है तू, रात रात भर गायब रहते हो, जबसे उस मजार वाले से संगति की है अपनेआप मे नही हो, देखना तुम कभी ना कभी लड़ बैठीं ना मैं उससे तो मत कहना
मैं - बाबा का कुछ लेनादेना नहीं काकी, मैं बस उस पेड़ के पास जाता हूँ
काकी - मुझे डर लगता है देव, हम पहले ही बहुत कुछ खो चुके है, तुम्हें नहीं खोना चाहते, तुम बस घर रहो तुम्हें जो चाहिए मैं दूंगी.
मैं - घर ही तो चाहिए मुझे.
काकी कुछ पलों के लिए चुप हो गई.
"वहाँ क्या हुआ था " पूछा काकी ने
मैं - कहाँ क्या हुआ
काकी - जहां तुम गए थे, कौन लड़की है वो मुझे बताओ, जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा, हम ब्याह करवा देंगे उसी से, उसी बहाने कम-से-कम भटकना तो नहीं होगा तुम्हारा
मैं - ऐसी कोई बात नहीं है, ऐसा कुछ होता तो मैं तुम्हें बताता
काकी - रख मेरे सर पर हाथ
मैं - क्या काकी तुम भी छोटी मोटी बात को इतना तूल दे रही हो
काकी - मैं तूल दे रही हूँ मैं, जानते हो रात रात भर सो नहीं पाती हूँ, विक्रम को जबसे मालूम हुआ है तुम वहाँ गए थे कितना घबराए हुए है वो और तुम कहते हो कि मैं तूल दे रही हूँ
मैं समझ गया कि काकी का पारा चढ़ गया मैंने मैंने उसे मनाया और घर आ गया. बेशक मेरा बाबा से मिलना जरूरी था पर कुछ अनचाही मजबूरियाँ भी थी. मैं सरोज के साथ घर आया और सबसे पहले पट्टी बदली ताकि कुछ आराम मिले. मैं सरोज से हर हाल में इस ज़ख्म को छुपाना चाहता था. खैर पूरा दिन मैं काकी की नजरो मे ही रहा. पर रात को मैं मजार पर पहुंच गया.
बाबा वहाँ नहीं था पर मोना थी.
मैं - तुम कब आयी
मोना - कुछ देर पहले, मालूम था तुम यही मिलोगे तो आ गई.
मैं - नहीं आना था तुम्हारा पैर ठीक नहीं है
मोना - कैसे नहीं आती, तुम इस हालत मे हो मुझे चैन कैसे आएगा
मैं - हमे तुम्हारे गाँव जाना होगा अभी.
मोना - अभी पर क्यों
मैं - दर्द वहीं मिला तो इलाज भी उधर ही मिलेगा
मोना ने देर ना कि और हम जल्दी ही शिवाले पर खड़े थे, पर यहां जैसे तूफान आया था. सब अस्त व्यस्त था. आँधी आकर चली गई थी.
"किसने किया ये, अपशकुन है ये तो " मोना ने कहा
मैं - इस श्मशान की कहानी बताओ मुझे.
मोना - मैं कुछ खास नहीं जानती, पर गांव के पुजारी बाबा जरूर बता सकते है, कहो तो मिले उनसे
मैं - जरूर
मोना - कल सुबह सुबह मिलते है उनसे
फिर हम मोना की हवेली आ गए. एक बार फिर वो मेरे साथ थी, हालात चाहे जैसे भी थे पर उसका साथ होना एक एहसास था. हम दोनों एक बिस्तर पर लेटे हुए थे. कोई और लम्हा होता तो हम गुस्ताखी कर ही बैठते. पर सम्हालना अभी भी मुश्किल था
मोना के होंठो को पीते हुए मेरे हाथ उसके नर्म उभार मसल रहे थे, पर फिर उसने मुझे रोक दिया.
"ये ठीक समय नहीं है " उसने कहा तो हम अलग हो गए. सुबह मोना मुझे वहाँ ले गई जहां पुजारी था. एक छोटा सा मंदिर था बस पर पुराना था.
मोना - बाबा हमे थोड़ा समय चाहिए आपका
पुजारी - बिटिया अवश्य परंतु थोड़ा इंतजार करना होगा, आज अमावस है और हर अमावस को रानी साहिबा तर्पण देने आती है, उसके बाद मैं मिलता हूँ
"बाबा, हम एक बहुत जरूरी मामले मे आपके पास आए है " मैंने हाथ जोड़े
पुजारी - मेरे बच्चे, यहां से कोई खाली नहीं जाता तुम्हारी भी मुराद पूरी होगी.
बाबा ने मेरे कांधे पर हाथ रखा और अंदर चले गए. मैं मोना के साथ वहीं बैठ गया.
"कौन है ये रानी साहिबा " मैंने पूछा
मोना - मेरी दादी
मोना की दादी यानी मेरी नानी.
मैं - मिलना चाहता हूं मैं उनसे
मोना - कोशिश कर लो, थोड़ी देर मे जनता को खाना देंगी वो.
मैं - तुम मिलवा दो
मोना - मुमकिन नहीं. बरसों से कोई बात नहीं हुई हमारी.
मैं - मैं कोशिश करूंगा
मैंने कंबल ओढ़ा और जनता मे जाके बैठ गया. कुछ देर बाद वो मंदिर से बाहर आयी, उम्र के थपेड़ों ने बेशक शरीर को बुढ़ा कर दिया था पर फिर भी शॉन शौकत दिखती थी. उनके नौकरों ने सबको पत्तल दी. वो खुद खाना परोस रही थी.
"लो बेटा, प्रसाद, आज हमारी बेटी की बरसी है, उसकी आत्मा के लिए दुआ करना " नानी ने प्रसाद मेरी पत्तल मे रखते हुए कहा
"नानी, उसी बेटी की निशानी आपसे मिलने आयी है " मैंने कहा
रानी साहिबा के हाथ से खीर की कटोरी नीचे गिर गई, उन्होंने मुझे देखा, मैंने उनकी आँखों मे आंसू देखे.
"चौखट पर इंतजार करेंगे "उन्होंने कहा और आगे बढ़ गई.
Awesome Update.#36
जिंदगी कुछ ऐसी उलझी थी कि सुबह और रातों मे कोई खास फर्क़ नहीं रह गया था. सुबह अंधेरे ही मैं उठ गया था पर बदन मे बड़ी कमजोरी थी, लालटेन की रोशनी मे मैने देखा बिस्तर पूरा सना था खून से. मैंने उसे साफ़ करने की कोशिश नहीं की ब्लकि बिस्तर को झोपड़ी से बाहर फेंक दिया.
इस बेहद मुश्किल रात के बाद मुझे अह्सास होने लगा था कि मैं किसी बड़ी मुसीबत मे हूं, फिलहाल मैं बस सोच सकता था, मैंने नागेश के बारे मे सोचा, मेरी माँ के बारे मे मुझे ऐसी बाते मालूम हुई जो आसानी से गले नहीं उतरने वाली थी.
"हो ना हो इस कहानी की जड़ जूनागढ मे ही है, मुझे फिर वहां जाना होगा " मैंने निर्णय किया और बाबा से मिलने चल प़डा. रास्ते मे मुझे सरोज काकी मिल गई,
"मैं खेतों पर ही आ रही थी, घर आने की फुर्सत ही नहीं तुझे तो, पहले कम से कम खाना तो समय से खा लेता था अब तो ना जाने क्या हुआ है " काकी ने एक साँस मे ढेर सारी बात कह दी
मैं - थोड़ी जल्दी मे हूं काकी, जल्दी ही आता हूं घर
काकी - क्या जल्दी क्या देर, तुझे मुझे बताना होगा किस उधेड बुन मे लगा है तू, रात रात भर गायब रहते हो, जबसे उस मजार वाले से संगति की है अपनेआप मे नही हो, देखना तुम कभी ना कभी लड़ बैठीं ना मैं उससे तो मत कहना
मैं - बाबा का कुछ लेनादेना नहीं काकी, मैं बस उस पेड़ के पास जाता हूँ
काकी - मुझे डर लगता है देव, हम पहले ही बहुत कुछ खो चुके है, तुम्हें नहीं खोना चाहते, तुम बस घर रहो तुम्हें जो चाहिए मैं दूंगी.
मैं - घर ही तो चाहिए मुझे.
काकी कुछ पलों के लिए चुप हो गई.
"वहाँ क्या हुआ था " पूछा काकी ने
मैं - कहाँ क्या हुआ
काकी - जहां तुम गए थे, कौन लड़की है वो मुझे बताओ, जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा, हम ब्याह करवा देंगे उसी से, उसी बहाने कम-से-कम भटकना तो नहीं होगा तुम्हारा
मैं - ऐसी कोई बात नहीं है, ऐसा कुछ होता तो मैं तुम्हें बताता
काकी - रख मेरे सर पर हाथ
मैं - क्या काकी तुम भी छोटी मोटी बात को इतना तूल दे रही हो
काकी - मैं तूल दे रही हूँ मैं, जानते हो रात रात भर सो नहीं पाती हूँ, विक्रम को जबसे मालूम हुआ है तुम वहाँ गए थे कितना घबराए हुए है वो और तुम कहते हो कि मैं तूल दे रही हूँ
मैं समझ गया कि काकी का पारा चढ़ गया मैंने मैंने उसे मनाया और घर आ गया. बेशक मेरा बाबा से मिलना जरूरी था पर कुछ अनचाही मजबूरियाँ भी थी. मैं सरोज के साथ घर आया और सबसे पहले पट्टी बदली ताकि कुछ आराम मिले. मैं सरोज से हर हाल में इस ज़ख्म को छुपाना चाहता था. खैर पूरा दिन मैं काकी की नजरो मे ही रहा. पर रात को मैं मजार पर पहुंच गया.
बाबा वहाँ नहीं था पर मोना थी.
मैं - तुम कब आयी
मोना - कुछ देर पहले, मालूम था तुम यही मिलोगे तो आ गई.
मैं - नहीं आना था तुम्हारा पैर ठीक नहीं है
मोना - कैसे नहीं आती, तुम इस हालत मे हो मुझे चैन कैसे आएगा
मैं - हमे तुम्हारे गाँव जाना होगा अभी.
मोना - अभी पर क्यों
मैं - दर्द वहीं मिला तो इलाज भी उधर ही मिलेगा
मोना ने देर ना कि और हम जल्दी ही शिवाले पर खड़े थे, पर यहां जैसे तूफान आया था. सब अस्त व्यस्त था. आँधी आकर चली गई थी.
"किसने किया ये, अपशकुन है ये तो " मोना ने कहा
मैं - इस श्मशान की कहानी बताओ मुझे.
मोना - मैं कुछ खास नहीं जानती, पर गांव के पुजारी बाबा जरूर बता सकते है, कहो तो मिले उनसे
मैं - जरूर
मोना - कल सुबह सुबह मिलते है उनसे
फिर हम मोना की हवेली आ गए. एक बार फिर वो मेरे साथ थी, हालात चाहे जैसे भी थे पर उसका साथ होना एक एहसास था. हम दोनों एक बिस्तर पर लेटे हुए थे. कोई और लम्हा होता तो हम गुस्ताखी कर ही बैठते. पर सम्हालना अभी भी मुश्किल था
मोना के होंठो को पीते हुए मेरे हाथ उसके नर्म उभार मसल रहे थे, पर फिर उसने मुझे रोक दिया.
"ये ठीक समय नहीं है " उसने कहा तो हम अलग हो गए. सुबह मोना मुझे वहाँ ले गई जहां पुजारी था. एक छोटा सा मंदिर था बस पर पुराना था.
मोना - बाबा हमे थोड़ा समय चाहिए आपका
पुजारी - बिटिया अवश्य परंतु थोड़ा इंतजार करना होगा, आज अमावस है और हर अमावस को रानी साहिबा तर्पण देने आती है, उसके बाद मैं मिलता हूँ
"बाबा, हम एक बहुत जरूरी मामले मे आपके पास आए है " मैंने हाथ जोड़े
पुजारी - मेरे बच्चे, यहां से कोई खाली नहीं जाता तुम्हारी भी मुराद पूरी होगी.
बाबा ने मेरे कांधे पर हाथ रखा और अंदर चले गए. मैं मोना के साथ वहीं बैठ गया.
"कौन है ये रानी साहिबा " मैंने पूछा
मोना - मेरी दादी
मोना की दादी यानी मेरी नानी.
मैं - मिलना चाहता हूं मैं उनसे
मोना - कोशिश कर लो, थोड़ी देर मे जनता को खाना देंगी वो.
मैं - तुम मिलवा दो
मोना - मुमकिन नहीं. बरसों से कोई बात नहीं हुई हमारी.
मैं - मैं कोशिश करूंगा
मैंने कंबल ओढ़ा और जनता मे जाके बैठ गया. कुछ देर बाद वो मंदिर से बाहर आयी, उम्र के थपेड़ों ने बेशक शरीर को बुढ़ा कर दिया था पर फिर भी शॉन शौकत दिखती थी. उनके नौकरों ने सबको पत्तल दी. वो खुद खाना परोस रही थी.
"लो बेटा, प्रसाद, आज हमारी बेटी की बरसी है, उसकी आत्मा के लिए दुआ करना " नानी ने प्रसाद मेरी पत्तल मे रखते हुए कहा
"नानी, उसी बेटी की निशानी आपसे मिलने आयी है " मैंने कहा
रानी साहिबा के हाथ से खीर की कटोरी नीचे गिर गई, उन्होंने मुझे देखा, मैंने उनकी आँखों मे आंसू देखे.
"चौखट पर इंतजार करेंगे "उन्होंने कहा और आगे बढ़ गई.
#37
रानी साहिबा अपनी बात कह कर इस तरह आगे बढ़ गई जैसे कोई सरोकार ही नहीं हो, मैंने उन्हें इतनी बड़ी बात बताई थी, उनकी बेटी की एक मात्र निशानी उनके सामने थी पर फिर भी उनका व्यावहार समान्य था. खैर मैं वापिस मोना के पास आया.
मोना - क्या हुआ
मैं - कुछ नहीं
मोना - बात हुई
मैंने ना मे सर हिला दिया.
"कोई बात नहीं अभी हम पुजारी से मिलते है " मोना बोली
हम अंदर गए
पुजारी - अब बताओ मैं तुम लोगों की किस प्रकार सहायता कर सकता हूं
मैंने पुजारी को तमाम बात बताई और इलाज पूछा.
मेरी बात सुनकर उसके ललाट पर जैसे शोक छा गया.
"कभी सोचा नहीं था कि इस प्रकार दुविधा मेरे सामने आ खड़ी होगी " पुजारी ने कहा
मैं - बाबा समस्या होती है तो उसका समाधान भी होता है, आप राह दिखाओ
पुजारी - कुछ चीजें बड़ी दुष्कर होती है, ये दुनिया ये जीवन वैसा नहीं है जैसा हमे दिखता है यदि सच है तो झूठ है, यदि अच्छाई है तो बुराई है, इस संसार मे ना जाने कितने संसार है, मनुष्य तो बस एक कण है इस रेगिस्तान का. तुम जो अपने साथ लाए हो ये मौत का वार है, जहां तुम इस से मिले वहाँ अवश्य ही कोई संरक्षित वस्तु थी, जिसकी सुरक्षा जागृत हो गई, चूंकि तुम अधिकृत नहीं थे सो तुम्हें झेलना प़डा, नागेश के बांधे मंत्र का वार है ये, और नागेश आज भी सर्वश्रेष्ठ है, परंतु हैरानी की बात ये है कि मृत्यु ने उसी क्षण तुम्हारा वर्ण नहीं किया, तो तुम भी कुछ खास हो, इसका इलाज तो मेरे पास नहीं है पर मैं तुम्हें एक आस दिखा सकता हूं यदि तुम मुझे अपना असली परिचय दो, क्योंकि मैंने देख लिया है, बस सुनने की इच्छा है.
पुजारी ने मंद मंद मुस्काते हुए अपनी बात कही और साथ ही मुझे दुविधा मे डाल दिया. क्योंकि मेरे साथ मोना थी और मोना के सामने अपनी पहचान बताने का मतलब था कि उसे मेरे और उसके छिपे रिश्ते के बारे मे भी मालूम हो जाता.
पुजारी - कोई संकोच
मैं - बाबा मैं सुहासिनी का बेटा हूं
मेरी बात सुनकर उन दोनों के चेहरे पर अलग अलग भाव थे, मोना के चेहरे का रंग उड़ गया था, पर बाबा ने अपनी आंखे मूंद ली.
"कोई ऐसा जो शापित भी हो जो पवित्र भी हो, जो आमंत्रित भी हो जो बहिष्कृत भी हो, जो अमावस मे चंद्र हो और पूनम मे रति, उसका रक्त तब सहारा दे जब मृत्य की टोक लगे. प्रीत ने पहले भी रोका था प्रीत अब भी रोकें तेरी डोर किधर उलझी तू जाने या वो शंभू जाने " बाबा ने कहा
मंदिर से निकल कर हम बाहर आए, अचानक से ही मेरे और मोना के बीच एक गहरी खामोशी छा गई थी. क्योंकि हमारा जो नाता था उसे पीछे छोड़ कर मैंने एक नया रिश्ता कायम किया था मोना से. चबूतरे पर बैठे वो बस शून्य मे ताक रही थी.
" तुमने मुझे सच क्यों नहीं बताया "पूछा उसने
मैं - कुछ था भी तो नहीं मेरे पास तुम्हें बताने को, और मैं कहता भी तो क्या. तुम ऐसे मेरे जीवन मे आयी इससे पहले कोई आया नहीं था. और फिर हमे दुनिया से क्या मतलब हम जानते हैं हमारी हकीकत तो कोई फर्क़ नहीं पड़ना चाहिए
मोना - फर्क़ पड़ता है देव, बहुत फर्क़ पड़ता है, क्योंकि बात अगर अब खुल ही गई है तो पूरा खुले, सुहासिनी मेरी बुआ थी. तो हमारे रिश्ते के मायने बदल जाते है,
मैं - मैंने तुम्हें इस रिश्ते मे नही जाना, तुम मेरे लिए क्या हो तुम भी जानती हो और फिर जिस रिश्ते की अब बात करती हो वो तब कहाँ था जब मुझे अपनों की जरूरत थी, तब मेरा कोई अपना नहीं आया, सोच के देखो मैं कैसे जिया हूं, तुम्हारे आने से पहले हर रोज ही अकेला था मैं, तुम साथी बनकर मेरे जीवन मे आयी. तुम्हारे साथ मैंने मुस्कुराना सीखा अपने मन की बात किसी से करना सीखा. पर फिर भी तुम्हें लगता है कि अब मायने इसलिए बदल जाते है कि मेरी माँ तुम्हारी बुआ थी तो फिर मुझे नहीं चाहिए ये ढकोसला, ये आडंबर.
मेरी आँखों मे आंसू भर आए थे और मैं किसी को अपना दर्द दिखाना नहीं चाहता था तो मैं चबूतरे से उठा और पैदल ही वहां से चल प़डा. एक बार भी मैंने मुड़ कर ना देखा. ना मोना ने कोई आवाज दी. चौपाल की तरफ आते समय मुझे एक लड़का मिला
"सुनो, चौखट पर जाना है मुझे " मैंने कहा
लड़का - गाँव की सीम पर एक बगीचा है उसे ही चौखट कहते है
मैं उस तरफ ही चल प़डा. करीब बीस मिनट बाद मैं वहां पहुंचा तो देखा नानी पहले से ही मौजूद थी
"नानी " मैंने कहा
नानी - हम जानते थे किसी रोज़ तुम जरूर आओगे, पर आज के दिन ऐसे मुलाकात होगी सोचा नहीं था.
आज ही तुम्हारी माँ हमे छोड़ कर गई थी. जी तो करे है कि तुम्हें गले लगा ले पर क्या करे हम बंधे है
मैं - क्या फर्क़ पड़ता है नानी, आदत है मुझे वैसे भी मोना नहीं बताती तो मुझे मालूम भी नहीं होता कि मेरी नानी भी है और जिसके माँ बाप नहीं होते उसका कैसा परिवार.
मेरी बात चुभी नानी को पर उसने बात बदली.
नानी - मोना को कैसे जानते हो तुम.
मैं - दोस्त है मेरी, पर फ़िलहाल आपसे मैं अपनी माँ के बारे मे बात करने आया हूं, वो कैसे मरी कौन है उनका कातिल
"हमारे लिए तो वो उसी दिन मर गई थी जब उसने हमारी दहलीज लांघने की हिमाकत की थी, मैं माँ थी उसकी, मेरी भी नहीं मानी उसने, ना जाने क्या देख लिया था उस आवारा युद्ध मे उसने जो महल छोड़ चली एक बार जाने के बाद ना वो आयी ना हमने देखा उसे, वैसे भी उसकी हरकत अजीब थी, आधे से ज्यादा गांव तो उसे पागल समझता था " नानी ने कहा
मैं - मंदिर मे मैने जब आपको अपना परिचय दिया तब लगा था कि आप से मिलके मुझे ऐसा लगेगा जैसे मुझे अपनी मां की झलक मिली, और जब ये नफरत है तो वो ढोंग क्यों मंदिर मे बरसी का. मैंने तो सोचा था ना जाने परिवार कैसा होता होगा पर यदि ऐसा है तो अनाथ होकर खुश हूं मैं.
दिल बड़ा भारी हो गया था. अब यहां रुकना मुनासिब नहीं था मैं पैदल ही वहां से चल प़डा, रात होते होते मैं अपने गांव की सीम मे आ गया था, एक मन किया कि घर चल पर फिर सोचा कि बाबा के पास चल, मैंने कच्ची पगडण्डी का रास्ता पकड़ लिया, कि अचानक बरसात शुरू हो गई.
"बस तुम्हारी ही कमी थी, तुम भी कर लो अपनी " मैंने उपरवाले को कोसा और आगे बढ़ गया. बारिश की वज़ह से अंधेरा और घना लगने लगा था पगडंडी के चारो ओर खड़ी फसल किसी सायों सी लग रही थी. मैंने एक मोड़ लिया ही था कि बड़े जोर से बिजली गर्जी, जैसे हज़ारों बल्ब एक साथ जला दिए हो और उस पल भर की रोशनी मे मैने कुछ ऐसा देखा कि दिल जैसे सीने से निकल कर गिर गया हो.