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Adultery गुजारिश

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#41

हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए. सामने सरोज काकी खड़ी थी. मुझे समझ नहीं आया कि क्या करू.

काकी - तो ये वज़ह है जिसकी वज़ह से तुम घर नहीं आते

रूपा ने सर पर चुनरी कर ली.

मैं - काकी मेरी बात सुनो, मैं समझाता हूं

काकी - तू चुप रह मुझे इस से बात करने दे, मैं भी देखूँ की इसने ऐसा क्या कर दिया जो लड़का सब भूल बैठे है, इधर आ लड़की, क्या नाम है तेरा

"जी रूपा " रूपा ने जवाब दिया.

काकी - नाम तो बड़ा प्यारा है और जब तूने इसका हाथ थामा है तो खास है तू हमारे लिए, मुझे नाम पता दे, हम ब्याह की बात करते है तेरे घरवालों से, वैसे भी मैं अकेले थक जाती हू घर सम्हालते, बहु आएगी तो मुझे भी सुख मिलेगा

काकी ने हल्के से रूपा के माथे को चूमा और सर पर हाथ फेरा

रूपा शर्म से लाल हो गई. मैं मुस्कराने लगा

काकी - मैं तो तुझे ढूंढने आयी थी, विक्रम को कुछ बात करनी थी तुमसे, तुम रूपा को घर छोड़ आओ फिर हम चलेंगे.

मैंने सर हिलाया और रूपा के साथ झोपड़ी से बाहर आया. साँझ ढलने लगी थी. हल्का अंधेरा हो रहा था.
रूपा - मैं चली जाऊँगी

मैं - मोड़ तक चलता हूं

रूपा - घर ले चलूँगी तुझे जल्दी ही. सोचा नहीं था ऐसे काकी अचानक से आ जाएंगी

मैं - कभी ना कभी तो मिलना ही था आज ही सही

रूपा - हम्म

मैं - फिर कब मिलेगी

रूपा - जब तू कहे

मैं - मेरी इतनी ही सुनती है तो मेरे साथ ही रह, जा ही मत

रूपा - जाऊँगी तभी तो वापिस आऊंगी

मैंने उसे मोड़ तक छोड़ा और वापिस खेत पर आया काकी मेरा ही इंतजार कर रही थी
.
"छुपे रुस्तम हो " काकी ने मुझे छेड़ते हुए कहा

मैं - ऐसा नहीं है

काकी -, तो कैसा है तू बता

सरोज मेरे काफी करीब आ गई. इतना करीब की हमारी सांसे आपस मे उलझने लगी. काकी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और मुझ से लिपट गई. जैसे ही वो सीने से टकराई मैं हिल गया. और यही बात मैं काकी से छुपाना चाहता था.

"बड़ी प्यासी हूं मैं जल्दी से कर ले. कितने दिन बाद मौका लगा है " सरोज ने आतुरता से कहा

मैं - ये ठीक समय नहीं है, कोई भी आ सकता है

काकी - कोई नहीं आएगा

मैं - घर पर भी कर सकते है, मैं मना तो नहीं कर रहा ना

मैंने काकी का हाथ पकडा और उसे अपने पास बिठाया.

"जानता हूं कि तुमसे मिल नहीं पा रहा, समझता हूं नाराजगी और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कोई और आ गई है जिंदगी मे तो तुम्हारी अहमियत नहीं है बस थोड़े समय की बात है "मैंने कहा

सरोज - मैंने कुछ कहा क्या

मैं - कहने की जरूरत नहीं मैं समझता हूं

मैंने सरोज के होंठो पर एक चुंबन लिया और हम घर की तरफ चल पड़े. विक्रम चाचा बड़ी बेसब्री से मेरी राह देख रहा था

विक्रम - कहाँ लापता हो आजकल कितने दिन हुए तुम्हें देखे

मैं - बस ऐसे ही

विक्रम - सब ठीक है

मैं - हाँ

विक्रम - कल तुम्हारे ताऊ के यहां से लग्न गया तुम्हारी बड़ी राह देखी तुम पहुंचे नहीं,

मैं - मुझे ध्यान नहीं रहा

विक्रम - देखो बेटा, मैं जानता हूं जैसा व्यावहार उनका तुम्हारे प्रति रहा तुम्हारे मन मे उनके लिए क्या है पर व्यक्ती के लिए परिवार, चाहे वो कैसा भी हो उसका मह्त्व होता है. और इस शादी से यदि कुछ ठीक होता है तो क्या बुराई है.

मैं - आपकी बात ठीक है चाचा पर मुझे सच मे ही ध्यान नहीं रहा था उस बात का. मुझे शर्मिन्दगी है

विक्रम - कोई नहीं शादी मे तो रहोगे ना

मैंने हाँ मे सर हिला दिया.

विक्रम - एक बात और रात को थोड़ा समय से घर आया करो, आजकल माहौल ठीक नहीं है.

मैंने फिर हाँ मे सर हिला दिया.

बातों बातों में समय का पता नहीं चला. खाने के बाद सब अपने अपने बिस्तर पर थे मैं चुपके से बाहर निकल गया. आज तो ठंड ने जैसे कहर बरपा दिया था. मेरे सीने मे खून जमने लगा था. कंबल ओढ़े मैं मजार पर पहुंचा तो बाबा नहीं था. पर आग जल रही थी मैं उसके पास ही बैठ गया. तप्त जो लगी करार सा आया.

"यूँ अकेले बैठना ठीक नहीं मुसाफिर "

मैंने पीछे मुड़ के देखा, रूपा खड़ी थी.

"तुम इस वक़्त " मैंने कहा

रूपा - जी घबरा सा रहा आज सोचा दुआ मांग आऊँ

मैं - लगता है दुआ कबूल हो गई

"लगता तो है " उसने मेरे पास बैठते हुए कहा

मैं - अच्छा हुआ हो तू आयी अब रात चैन से कट जाएगी.

रूपा - अच्छा जी.

मैं - आगोश मे बैठी रहो, मैं तुम्हें देखते रहूं

रूपा - उफ्फ्फ ये दिल्लगी, तुम्हारी काकी क्या कह रही थी मेरे जाने के बाद

मैं - कुछ खास नहीं उन्हें पसंद आयी तुम. कह रही थी कि ठीक है उन्हें मेहनत नहीं करनी पडी लड़की ढूंढने के लिए

रूपा शर्मा गई.

मैं - हाय रे तेरी ये अदा.

रूपा - तू ऐसे ना देखा कर मुझे, तेरी निगाह घायल कर जाती है मेरे मन को

मैं - और तुम जो दिल चुरा ले गई उसका क्या

रूपा ने मेरा हाथ अपने हाथ मे लिया और बोली - कहाँ चुराया, वो तो मेरा ही था.

मैं अब उसे क्या कहता बस मुस्करा कर रह गया.

"आ साथ मेरे " उसने उठते हुए कहा

मैं - कहाँ

रूपा - घर
 

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हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए. सामने सरोज काकी खड़ी थी. मुझे समझ नहीं आया कि क्या करू.

काकी - तो ये वज़ह है जिसकी वज़ह से तुम घर नहीं आते

रूपा ने सर पर चुनरी कर ली.

मैं - काकी मेरी बात सुनो, मैं समझाता हूं

काकी - तू चुप रह मुझे इस से बात करने दे, मैं भी देखूँ की इसने ऐसा क्या कर दिया जो लड़का सब भूल बैठे है, इधर आ लड़की, क्या नाम है तेरा

"जी रूपा " रूपा ने जवाब दिया.

काकी - नाम तो बड़ा प्यारा है और जब तूने इसका हाथ थामा है तो खास है तू हमारे लिए, मुझे नाम पता दे, हम ब्याह की बात करते है तेरे घरवालों से, वैसे भी मैं अकेले थक जाती हू घर सम्हालते, बहु आएगी तो मुझे भी सुख मिलेगा

काकी ने हल्के से रूपा के माथे को चूमा और सर पर हाथ फेरा

रूपा शर्म से लाल हो गई. मैं मुस्कराने लगा

काकी - मैं तो तुझे ढूंढने आयी थी, विक्रम को कुछ बात करनी थी तुमसे, तुम रूपा को घर छोड़ आओ फिर हम चलेंगे.

मैंने सर हिलाया और रूपा के साथ झोपड़ी से बाहर आया. साँझ ढलने लगी थी. हल्का अंधेरा हो रहा था.
रूपा - मैं चली जाऊँगी

मैं - मोड़ तक चलता हूं

रूपा - घर ले चलूँगी तुझे जल्दी ही. सोचा नहीं था ऐसे काकी अचानक से आ जाएंगी

मैं - कभी ना कभी तो मिलना ही था आज ही सही

रूपा - हम्म

मैं - फिर कब मिलेगी

रूपा - जब तू कहे

मैं - मेरी इतनी ही सुनती है तो मेरे साथ ही रह, जा ही मत

रूपा - जाऊँगी तभी तो वापिस आऊंगी

मैंने उसे मोड़ तक छोड़ा और वापिस खेत पर आया काकी मेरा ही इंतजार कर रही थी
.
"छुपे रुस्तम हो " काकी ने मुझे छेड़ते हुए कहा

मैं - ऐसा नहीं है

काकी -, तो कैसा है तू बता

सरोज मेरे काफी करीब आ गई. इतना करीब की हमारी सांसे आपस मे उलझने लगी. काकी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और मुझ से लिपट गई. जैसे ही वो सीने से टकराई मैं हिल गया. और यही बात मैं काकी से छुपाना चाहता था.

"बड़ी प्यासी हूं मैं जल्दी से कर ले. कितने दिन बाद मौका लगा है " सरोज ने आतुरता से कहा

मैं - ये ठीक समय नहीं है, कोई भी आ सकता है

काकी - कोई नहीं आएगा

मैं - घर पर भी कर सकते है, मैं मना तो नहीं कर रहा ना

मैंने काकी का हाथ पकडा और उसे अपने पास बिठाया.

"जानता हूं कि तुमसे मिल नहीं पा रहा, समझता हूं नाराजगी और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कोई और आ गई है जिंदगी मे तो तुम्हारी अहमियत नहीं है बस थोड़े समय की बात है "मैंने कहा

सरोज - मैंने कुछ कहा क्या

मैं - कहने की जरूरत नहीं मैं समझता हूं

मैंने सरोज के होंठो पर एक चुंबन लिया और हम घर की तरफ चल पड़े. विक्रम चाचा बड़ी बेसब्री से मेरी राह देख रहा था

विक्रम - कहाँ लापता हो आजकल कितने दिन हुए तुम्हें देखे

मैं - बस ऐसे ही

विक्रम - सब ठीक है

मैं - हाँ

विक्रम - कल तुम्हारे ताऊ के यहां से लग्न गया तुम्हारी बड़ी राह देखी तुम पहुंचे नहीं,

मैं - मुझे ध्यान नहीं रहा

विक्रम - देखो बेटा, मैं जानता हूं जैसा व्यावहार उनका तुम्हारे प्रति रहा तुम्हारे मन मे उनके लिए क्या है पर व्यक्ती के लिए परिवार, चाहे वो कैसा भी हो उसका मह्त्व होता है. और इस शादी से यदि कुछ ठीक होता है तो क्या बुराई है.

मैं - आपकी बात ठीक है चाचा पर मुझे सच मे ही ध्यान नहीं रहा था उस बात का. मुझे शर्मिन्दगी है

विक्रम - कोई नहीं शादी मे तो रहोगे ना

मैंने हाँ मे सर हिला दिया.

विक्रम - एक बात और रात को थोड़ा समय से घर आया करो, आजकल माहौल ठीक नहीं है.

मैंने फिर हाँ मे सर हिला दिया.

बातों बातों में समय का पता नहीं चला. खाने के बाद सब अपने अपने बिस्तर पर थे मैं चुपके से बाहर निकल गया. आज तो ठंड ने जैसे कहर बरपा दिया था. मेरे सीने मे खून जमने लगा था. कंबल ओढ़े मैं मजार पर पहुंचा तो बाबा नहीं था. पर आग जल रही थी मैं उसके पास ही बैठ गया. तप्त जो लगी करार सा आया.

"यूँ अकेले बैठना ठीक नहीं मुसाफिर "

मैंने पीछे मुड़ के देखा, रूपा खड़ी थी.

"तुम इस वक़्त " मैंने कहा

रूपा - जी घबरा सा रहा आज सोचा दुआ मांग आऊँ

मैं - लगता है दुआ कबूल हो गई

"लगता तो है " उसने मेरे पास बैठते हुए कहा

मैं - अच्छा हुआ हो तू आयी अब रात चैन से कट जाएगी.

रूपा - अच्छा जी.

मैं - आगोश मे बैठी रहो, मैं तुम्हें देखते रहूं

रूपा - उफ्फ्फ ये दिल्लगी, तुम्हारी काकी क्या कह रही थी मेरे जाने के बाद

मैं - कुछ खास नहीं उन्हें पसंद आयी तुम. कह रही थी कि ठीक है उन्हें मेहनत नहीं करनी पडी लड़की ढूंढने के लिए

रूपा शर्मा गई.

मैं - हाय रे तेरी ये अदा.

रूपा - तू ऐसे ना देखा कर मुझे, तेरी निगाह घायल कर जाती है मेरे मन को

मैं - और तुम जो दिल चुरा ले गई उसका क्या

रूपा ने मेरा हाथ अपने हाथ मे लिया और बोली - कहाँ चुराया, वो तो मेरा ही था.

मैं अब उसे क्या कहता बस मुस्करा कर रह गया.

"आ साथ मेरे " उसने उठते हुए कहा

मैं - कहाँ


रूपा - घर
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#41

हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए. सामने सरोज काकी खड़ी थी. मुझे समझ नहीं आया कि क्या करू.

काकी - तो ये वज़ह है जिसकी वज़ह से तुम घर नहीं आते

रूपा ने सर पर चुनरी कर ली.

मैं - काकी मेरी बात सुनो, मैं समझाता हूं

काकी - तू चुप रह मुझे इस से बात करने दे, मैं भी देखूँ की इसने ऐसा क्या कर दिया जो लड़का सब भूल बैठे है, इधर आ लड़की, क्या नाम है तेरा

"जी रूपा " रूपा ने जवाब दिया.

काकी - नाम तो बड़ा प्यारा है और जब तूने इसका हाथ थामा है तो खास है तू हमारे लिए, मुझे नाम पता दे, हम ब्याह की बात करते है तेरे घरवालों से, वैसे भी मैं अकेले थक जाती हू घर सम्हालते, बहु आएगी तो मुझे भी सुख मिलेगा

काकी ने हल्के से रूपा के माथे को चूमा और सर पर हाथ फेरा

रूपा शर्म से लाल हो गई. मैं मुस्कराने लगा

काकी - मैं तो तुझे ढूंढने आयी थी, विक्रम को कुछ बात करनी थी तुमसे, तुम रूपा को घर छोड़ आओ फिर हम चलेंगे.

मैंने सर हिलाया और रूपा के साथ झोपड़ी से बाहर आया. साँझ ढलने लगी थी. हल्का अंधेरा हो रहा था.
रूपा - मैं चली जाऊँगी

मैं - मोड़ तक चलता हूं

रूपा - घर ले चलूँगी तुझे जल्दी ही. सोचा नहीं था ऐसे काकी अचानक से आ जाएंगी

मैं - कभी ना कभी तो मिलना ही था आज ही सही

रूपा - हम्म

मैं - फिर कब मिलेगी

रूपा - जब तू कहे

मैं - मेरी इतनी ही सुनती है तो मेरे साथ ही रह, जा ही मत

रूपा - जाऊँगी तभी तो वापिस आऊंगी

मैंने उसे मोड़ तक छोड़ा और वापिस खेत पर आया काकी मेरा ही इंतजार कर रही थी
.
"छुपे रुस्तम हो " काकी ने मुझे छेड़ते हुए कहा

मैं - ऐसा नहीं है

काकी -, तो कैसा है तू बता

सरोज मेरे काफी करीब आ गई. इतना करीब की हमारी सांसे आपस मे उलझने लगी. काकी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और मुझ से लिपट गई. जैसे ही वो सीने से टकराई मैं हिल गया. और यही बात मैं काकी से छुपाना चाहता था.

"बड़ी प्यासी हूं मैं जल्दी से कर ले. कितने दिन बाद मौका लगा है " सरोज ने आतुरता से कहा

मैं - ये ठीक समय नहीं है, कोई भी आ सकता है

काकी - कोई नहीं आएगा

मैं - घर पर भी कर सकते है, मैं मना तो नहीं कर रहा ना

मैंने काकी का हाथ पकडा और उसे अपने पास बिठाया.

"जानता हूं कि तुमसे मिल नहीं पा रहा, समझता हूं नाराजगी और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कोई और आ गई है जिंदगी मे तो तुम्हारी अहमियत नहीं है बस थोड़े समय की बात है "मैंने कहा

सरोज - मैंने कुछ कहा क्या

मैं - कहने की जरूरत नहीं मैं समझता हूं

मैंने सरोज के होंठो पर एक चुंबन लिया और हम घर की तरफ चल पड़े. विक्रम चाचा बड़ी बेसब्री से मेरी राह देख रहा था

विक्रम - कहाँ लापता हो आजकल कितने दिन हुए तुम्हें देखे

मैं - बस ऐसे ही

विक्रम - सब ठीक है

मैं - हाँ

विक्रम - कल तुम्हारे ताऊ के यहां से लग्न गया तुम्हारी बड़ी राह देखी तुम पहुंचे नहीं,

मैं - मुझे ध्यान नहीं रहा

विक्रम - देखो बेटा, मैं जानता हूं जैसा व्यावहार उनका तुम्हारे प्रति रहा तुम्हारे मन मे उनके लिए क्या है पर व्यक्ती के लिए परिवार, चाहे वो कैसा भी हो उसका मह्त्व होता है. और इस शादी से यदि कुछ ठीक होता है तो क्या बुराई है.

मैं - आपकी बात ठीक है चाचा पर मुझे सच मे ही ध्यान नहीं रहा था उस बात का. मुझे शर्मिन्दगी है

विक्रम - कोई नहीं शादी मे तो रहोगे ना

मैंने हाँ मे सर हिला दिया.

विक्रम - एक बात और रात को थोड़ा समय से घर आया करो, आजकल माहौल ठीक नहीं है.

मैंने फिर हाँ मे सर हिला दिया.

बातों बातों में समय का पता नहीं चला. खाने के बाद सब अपने अपने बिस्तर पर थे मैं चुपके से बाहर निकल गया. आज तो ठंड ने जैसे कहर बरपा दिया था. मेरे सीने मे खून जमने लगा था. कंबल ओढ़े मैं मजार पर पहुंचा तो बाबा नहीं था. पर आग जल रही थी मैं उसके पास ही बैठ गया. तप्त जो लगी करार सा आया.

"यूँ अकेले बैठना ठीक नहीं मुसाफिर "

मैंने पीछे मुड़ के देखा, रूपा खड़ी थी.

"तुम इस वक़्त " मैंने कहा

रूपा - जी घबरा सा रहा आज सोचा दुआ मांग आऊँ

मैं - लगता है दुआ कबूल हो गई

"लगता तो है " उसने मेरे पास बैठते हुए कहा

मैं - अच्छा हुआ हो तू आयी अब रात चैन से कट जाएगी.

रूपा - अच्छा जी.

मैं - आगोश मे बैठी रहो, मैं तुम्हें देखते रहूं

रूपा - उफ्फ्फ ये दिल्लगी, तुम्हारी काकी क्या कह रही थी मेरे जाने के बाद

मैं - कुछ खास नहीं उन्हें पसंद आयी तुम. कह रही थी कि ठीक है उन्हें मेहनत नहीं करनी पडी लड़की ढूंढने के लिए

रूपा शर्मा गई.

मैं - हाय रे तेरी ये अदा.

रूपा - तू ऐसे ना देखा कर मुझे, तेरी निगाह घायल कर जाती है मेरे मन को

मैं - और तुम जो दिल चुरा ले गई उसका क्या

रूपा ने मेरा हाथ अपने हाथ मे लिया और बोली - कहाँ चुराया, वो तो मेरा ही था.

मैं अब उसे क्या कहता बस मुस्करा कर रह गया.

"आ साथ मेरे " उसने उठते हुए कहा

मैं - कहाँ


रूपा - घर
Awesome Update.
Roopa ko saroj ne dekh liya Dev ke sath magar wo use na pahchanti hai . Ab dekhte hai raat ki hasheen mulakat kya rang lati hai ?
 
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ye rupa bhi raat ko ghar se nikalti hai ,jabki dev ko vikrant keh raha hai ki mahaul theek nahi to rupa ke gharwale use kaise raat me jaane dete hai ?....
dev ke ghaw ka kya hua ,ab kitne din bache hai ? ...
saroj kaki ke saath kuch nahi hua raat me ?....
ab dekhte hai kal behen ki shadi me kya hota hai ....waiting ..
 
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