RAJIV SHAW
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#46
मेरी नजरे उस खाली जमीन को घूर रही थी, मैं जानता था वो हवेली वहीं पर थी बस उसे देखने वाली नजर चाहिए थी. बहुत देर तक मैं खड़ा सोचता रहा कि कैसे अदृश्य हवेली को प्रकट किया जाए. और वो कहते है ना कि किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने मे लग जाती है, अपनी कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. अंदाज़े से मैं उस जगह पर पहुंचा, जहां सीढियां थी.
"आ भी जाओ सामने " मैंने कहा. पर कुछ नहीं हुआ. कैसे हवेली को देखूँ मैं सोच मे प़डा मैं पागलों की तरह शून्य मे ताक रहा था. पर कहते है ना कि जहां चाह होती है वहां राह होती है. मैंने अपना पैर जैसे ही सीढि वाली जगह पर रखा. सीढिया सामने आ गई. हवेली ने शायद पहचान लिया था, एक के बाद एक करके पूरी हवेली मेरे सामने थी.
सामने दरवाजा ठीक वैसे ही खुला था जैसा मैंने छोड़ा था. मैं तुरंत अंदर घुस गया. कुछ मोमबत्तियां जल रही थी जिनसे रोशनी हो रही थी. अंदर गर्मी थी.. मैंने जैकेट उतार कर मेज पर रखी. मेज पर ही एक केतली रखी थी जिससे गर्म चाय की खुशबु आ रही थी. मैंने एक कप मे चाय डाली. पास ही कुछ और खाने की चीजे थी. जैसे किसी को अंदाजा हो कि मैं आने वाला हूं.
इक बात और थी जिसने मेरा ध्यान खींचा था हवेली मे जैसे हाल ही मे सफाई की गई हो, किसी ने जैसे कुछ छुपाने की कोशिश की थी क्योंकि कई जगह ताजा खून के धब्बे थे. खैर, अब तो मुझे ईन सब की आदत होने लगी थी, जिन्दगी ऐसी उलझी थी कि कब कहां क्या दिख जाए कोई ताज्जुब नहीं होता था. मैंने चाय खत्म की और एक बार फिर वापिस से मैं उस बड़ी सी तस्वीर के सामने था जिसमें मैं अपने माँ बाप के साथ था.
मोमबत्ती की रोशनी मे तस्वीरें ऐसी थी जैसे कि अभी मेरी माँ बाहर निकल कर मुझे अपने आगोश मे भर लेगी. पर एक बात थी कि ये मेरा घर था. सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर आया. खून बिखरा था जैसे किसी को घसीट कर लाया गया हो. मैंने खून को हथेली में लिया और सूंघ कर देखा. महक कुछ पुरानी सी थी पर खून में गर्मी थी . और साथ ही बहुत गाढ़ा भी था ये.
“अवश्य ही वो नागिन किसी जानवर को लायी होगी ” मैंने अपने आप से कहा.
इस हवेली को बड़ी कारीगरी से बनाया गया था , पहली मंजिल के सभी कमरे एक जैसे ही लगते थे . मैं एक कमरे के दरवाजे को खोलने ही वाला था की मेरे कानो में आवाज पड़ी, पानी गिरने की आवाज जो ऊपर की मंजिल से आ रही थी . मैं दूसरी मंजिल पर चढ़ गया . ये मंजिल जैसे अपने आप में अजूबा थी . यहाँ पर बस एक ही कमरा था जिसका दरवाजा आधा खुला था . एक रसोई थी . जिसमे से बढ़िया खाने की महक आ रही थी .
मेरे कान बहते पानी को सुन रहे थे . मैं सोच ही रहा था की तभी पास वाला दरवाजा खुला और मेरे सामने बाबा आ गए, सुल्तान बाबा. वो मुझे देख कर चौंक गए और मैं उनको देख कर. बाबा के कपडे खून से सने थे .
“तू यहाँ कैसे मुसाफिर ” बाबा ने सवाल किया .
मैं- मेरा ही तो घर है बाबा.
बाबा - हाँ , मैं तो भूल ही गया था तेरा ही घर है. उम्र हो चली है बेटा.
मैं- पर आप यहाँ क्या कर रहे थे और ये खून कैसा आपके कपड़ो पर
बाबा- अरे कुछ नहीं , एक जानवर घायल मिला था तो उसकी मरहम पट्टी कर रहा था .
मैं- कैसा जानवर बाबा .
बाबा- तू भी न मुसाफिर , कितनी सवाल पूछता है . आ मेरे साथ .
बाबा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वापिस से निचे ले आये. सीढिया उतरते हुए मैंने देखा की हॉल, और सीढिया चमक रहे थे जैसे अभी अभी किसी ने साफ़ किया हो. खून के दाग जो मैंने देखे थे अब गायब थे.मेरा सर अब दर्द करने लगा था . बाबा की सकशियत भी अब मुझे कुछ अजीब लग रही थी . कुछ तो था जो वो छुपा रहे थे .
“बाबा मैं उस सापिन से मिलना चाहता हूँ ” मैंने कहा
बाबा- मिल ले फिर .
मैं- कहाँ रहती है वो . क्या नाम है उसका.
बाबा- आजकल का तो पता नहीं पर एक ज़माने वो अपने गाँव के मंदिर में रहती थी .
मैं- बाबा, बातो को न घुमाओ अपने गाँव में कोई मंदिर नहीं है .
बाबा- मैंने कहा एक ज़माने में मुसाफिर. एक ज़माने में . एक समय था इस गाँव में भोले का मंदिर था . पर फिर तेरे दादा ने उसे तुडवा दिया . मिटटी में दबवा दिया.
मैं- क्यों
दादा- बड़ी उलझी हुई कहानी है वो मुसाफिर, तू समझ नहीं पायेगा मैं बता नहीं पाउँगा रहने दे उस बात को
मैं- ठीक है पर मुझे सापिन से मिलवा दो.
बाबा- मेरे बस की नहीं वो अपनी मर्जी से आती है जाती है .
मैं- आप हर बात को हवा में उड़ाते हो बाबा, मुझे सच बताते क्यों नहीं.
बाबा- मुसाफिर, समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता जब समय होगा तुझे तेरे सवालो के जवाब मिल जायेंगे. . जैसे समय आया तो तुझे तेरे परिवार की जानकारी हुई. इस घर तक तू आ पहुंचा.
मैं- घर की बात आई तो कहना चाहूँगा की बेशक घर मेरा है पर वारिस कोई और है इसका .
बाबा- क्या फर्क पड़ता है, मोना भी तेरी माँ के इतने ही करीब है जितना तू,
मैं- सो तो है .
बाबा- तू जब चाहे यहाँ आ सकता है दिन के उजाले में रात के अँधेरे में .हवेली की सीढिया तेरे कदमो को पहचान लेंगी . दुनिया के लिए ये होकर भी नहीं है पर अपने लिए ये हमेशा है .
मैं- बाबा इसे छुपाया क्यों गया .
बाबा- तुम्हारे लिए. तुम्हारे जीवन के लिए .
मैं- पर बाबा मैं तो हमेशा यहाँ से दूर ही रहा .
बाबा- यही तो पहेली है हम सबके लिए. .खैर, अभी मुझे जाना होगा, तुझे रुकना है तो रुक, आना है तो आ. तेरी मर्जी
बाबा ने अपना झोला उठाया, और मुझे पूरा यकीन था की झोले में कुछ फडफडा रहा था .
“एक मिनट बाबा, बस एक मिनट, मोना पिछले कुछ दिनों से लापता है , आपको कोई खबर है क्या ” मैंने कहा
बाबा- नहीं कई दिन से मिली नही मुझे, कोई खबर मिली तो बताऊंगा.
बाबा ने झोला उठाया और चले गए. मैं वापिस हवेली में आया. मुझे बड़ी उत्सुकता थी की दूसरी मंजिल पर क्या था . क्योंकि मैं जानता था की बाबा ने मुझसे झूठ बोला है. मैंने हवेली का बड़ा दरवाजा बंद किया और दूसरी मंजिल की तरफ चल दिया. पर जैसे ही पहली मंजिल से दाई तरफ मुड़ा. एक बार फिर मेरी किस्मत ने जैसे ठग लिया मुझे. मेरे सामने ..............
Awesome update.#46
मेरी नजरे उस खाली जमीन को घूर रही थी, मैं जानता था वो हवेली वहीं पर थी बस उसे देखने वाली नजर चाहिए थी. बहुत देर तक मैं खड़ा सोचता रहा कि कैसे अदृश्य हवेली को प्रकट किया जाए. और वो कहते है ना कि किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने मे लग जाती है, अपनी कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. अंदाज़े से मैं उस जगह पर पहुंचा, जहां सीढियां थी.
"आ भी जाओ सामने " मैंने कहा. पर कुछ नहीं हुआ. कैसे हवेली को देखूँ मैं सोच मे प़डा मैं पागलों की तरह शून्य मे ताक रहा था. पर कहते है ना कि जहां चाह होती है वहां राह होती है. मैंने अपना पैर जैसे ही सीढि वाली जगह पर रखा. सीढिया सामने आ गई. हवेली ने शायद पहचान लिया था, एक के बाद एक करके पूरी हवेली मेरे सामने थी.
सामने दरवाजा ठीक वैसे ही खुला था जैसा मैंने छोड़ा था. मैं तुरंत अंदर घुस गया. कुछ मोमबत्तियां जल रही थी जिनसे रोशनी हो रही थी. अंदर गर्मी थी.. मैंने जैकेट उतार कर मेज पर रखी. मेज पर ही एक केतली रखी थी जिससे गर्म चाय की खुशबु आ रही थी. मैंने एक कप मे चाय डाली. पास ही कुछ और खाने की चीजे थी. जैसे किसी को अंदाजा हो कि मैं आने वाला हूं.
इक बात और थी जिसने मेरा ध्यान खींचा था हवेली मे जैसे हाल ही मे सफाई की गई हो, किसी ने जैसे कुछ छुपाने की कोशिश की थी क्योंकि कई जगह ताजा खून के धब्बे थे. खैर, अब तो मुझे ईन सब की आदत होने लगी थी, जिन्दगी ऐसी उलझी थी कि कब कहां क्या दिख जाए कोई ताज्जुब नहीं होता था. मैंने चाय खत्म की और एक बार फिर वापिस से मैं उस बड़ी सी तस्वीर के सामने था जिसमें मैं अपने माँ बाप के साथ था.
मोमबत्ती की रोशनी मे तस्वीरें ऐसी थी जैसे कि अभी मेरी माँ बाहर निकल कर मुझे अपने आगोश मे भर लेगी. पर एक बात थी कि ये मेरा घर था. सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर आया. खून बिखरा था जैसे किसी को घसीट कर लाया गया हो. मैंने खून को हथेली में लिया और सूंघ कर देखा. महक कुछ पुरानी सी थी पर खून में गर्मी थी . और साथ ही बहुत गाढ़ा भी था ये.
“अवश्य ही वो नागिन किसी जानवर को लायी होगी ” मैंने अपने आप से कहा.
इस हवेली को बड़ी कारीगरी से बनाया गया था , पहली मंजिल के सभी कमरे एक जैसे ही लगते थे . मैं एक कमरे के दरवाजे को खोलने ही वाला था की मेरे कानो में आवाज पड़ी, पानी गिरने की आवाज जो ऊपर की मंजिल से आ रही थी . मैं दूसरी मंजिल पर चढ़ गया . ये मंजिल जैसे अपने आप में अजूबा थी . यहाँ पर बस एक ही कमरा था जिसका दरवाजा आधा खुला था . एक रसोई थी . जिसमे से बढ़िया खाने की महक आ रही थी .
मेरे कान बहते पानी को सुन रहे थे . मैं सोच ही रहा था की तभी पास वाला दरवाजा खुला और मेरे सामने बाबा आ गए, सुल्तान बाबा. वो मुझे देख कर चौंक गए और मैं उनको देख कर. बाबा के कपडे खून से सने थे .
“तू यहाँ कैसे मुसाफिर ” बाबा ने सवाल किया .
मैं- मेरा ही तो घर है बाबा.
बाबा - हाँ , मैं तो भूल ही गया था तेरा ही घर है. उम्र हो चली है बेटा.
मैं- पर आप यहाँ क्या कर रहे थे और ये खून कैसा आपके कपड़ो पर
बाबा- अरे कुछ नहीं , एक जानवर घायल मिला था तो उसकी मरहम पट्टी कर रहा था .
मैं- कैसा जानवर बाबा .
बाबा- तू भी न मुसाफिर , कितनी सवाल पूछता है . आ मेरे साथ .
बाबा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वापिस से निचे ले आये. सीढिया उतरते हुए मैंने देखा की हॉल, और सीढिया चमक रहे थे जैसे अभी अभी किसी ने साफ़ किया हो. खून के दाग जो मैंने देखे थे अब गायब थे.मेरा सर अब दर्द करने लगा था . बाबा की सकशियत भी अब मुझे कुछ अजीब लग रही थी . कुछ तो था जो वो छुपा रहे थे .
“बाबा मैं उस सापिन से मिलना चाहता हूँ ” मैंने कहा
बाबा- मिल ले फिर .
मैं- कहाँ रहती है वो . क्या नाम है उसका.
बाबा- आजकल का तो पता नहीं पर एक ज़माने वो अपने गाँव के मंदिर में रहती थी .
मैं- बाबा, बातो को न घुमाओ अपने गाँव में कोई मंदिर नहीं है .
बाबा- मैंने कहा एक ज़माने में मुसाफिर. एक ज़माने में . एक समय था इस गाँव में भोले का मंदिर था . पर फिर तेरे दादा ने उसे तुडवा दिया . मिटटी में दबवा दिया.
मैं- क्यों
दादा- बड़ी उलझी हुई कहानी है वो मुसाफिर, तू समझ नहीं पायेगा मैं बता नहीं पाउँगा रहने दे उस बात को
मैं- ठीक है पर मुझे सापिन से मिलवा दो.
बाबा- मेरे बस की नहीं वो अपनी मर्जी से आती है जाती है .
मैं- आप हर बात को हवा में उड़ाते हो बाबा, मुझे सच बताते क्यों नहीं.
बाबा- मुसाफिर, समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता जब समय होगा तुझे तेरे सवालो के जवाब मिल जायेंगे. . जैसे समय आया तो तुझे तेरे परिवार की जानकारी हुई. इस घर तक तू आ पहुंचा.
मैं- घर की बात आई तो कहना चाहूँगा की बेशक घर मेरा है पर वारिस कोई और है इसका .
बाबा- क्या फर्क पड़ता है, मोना भी तेरी माँ के इतने ही करीब है जितना तू,
मैं- सो तो है .
बाबा- तू जब चाहे यहाँ आ सकता है दिन के उजाले में रात के अँधेरे में .हवेली की सीढिया तेरे कदमो को पहचान लेंगी . दुनिया के लिए ये होकर भी नहीं है पर अपने लिए ये हमेशा है .
मैं- बाबा इसे छुपाया क्यों गया .
बाबा- तुम्हारे लिए. तुम्हारे जीवन के लिए .
मैं- पर बाबा मैं तो हमेशा यहाँ से दूर ही रहा .
बाबा- यही तो पहेली है हम सबके लिए. .खैर, अभी मुझे जाना होगा, तुझे रुकना है तो रुक, आना है तो आ. तेरी मर्जी
बाबा ने अपना झोला उठाया, और मुझे पूरा यकीन था की झोले में कुछ फडफडा रहा था .
“एक मिनट बाबा, बस एक मिनट, मोना पिछले कुछ दिनों से लापता है , आपको कोई खबर है क्या ” मैंने कहा
बाबा- नहीं कई दिन से मिली नही मुझे, कोई खबर मिली तो बताऊंगा.
बाबा ने झोला उठाया और चले गए. मैं वापिस हवेली में आया. मुझे बड़ी उत्सुकता थी की दूसरी मंजिल पर क्या था . क्योंकि मैं जानता था की बाबा ने मुझसे झूठ बोला है. मैंने हवेली का बड़ा दरवाजा बंद किया और दूसरी मंजिल की तरफ चल दिया. पर जैसे ही पहली मंजिल से दाई तरफ मुड़ा. एक बार फिर मेरी किस्मत ने जैसे ठग लिया मुझे. मेरे सामने ..............
ThanksFull of suspense.. Every part are suspensive and interesting... Waiting for next update
Meri bhi yahi kosish hai ki kuch accha content apko de sakuKoi Baat nahi Sir....app vyast hai to..
Kay kare hum reader hai to Jada aas lagate hai..
ThanksSuper update hai bhai
दरअसल कभी सोचा नहीं था कि ऐसा कुछ होगा, मैं बस इश्क करना चाहता था मेरी जान कहती थी भूखे पेट इश्क नहीं होता, रखेगा कहाँ खिलाएगा क्या तो नसीब इधर ले आया, xossip पर मैं आया था अपनी कहानी लिखने आपका साथ यहां तक ले आयाAgain lajabaab dhasu update.
Yar tujhe fauji kisne banaya tumhe writer hi hona chahiye suspense or thriller ka combination mere hisab se tumse acha kon likhega.
Again waiting for next update bro
MaybeAwesome update.
Ye kya ho raha hai lagta hai mona ghayal hai aur wo khoon bhi uska hi hai .