#53
“खामोश रातो में यु अकेले नहीं भटका करते मुसाफिर ”
मैंने देखा ये रूपा थी.
“तुम यहाँ ,इस समय ” मैंने कहा
रूपा- तुम भी तो हो यहाँ, इस समय .
मैं- मेरा क्या है , मैं तो मुसाफिर हूँ भला मेरा क्या ठिकाना और वैसे भी इस जहाँ से बेगाना हु ,
रूपा- पर ऐसे कैसे फिरता है तू, क्या हाल है तेरा, मैं अगर थाम न लेती तो गिर जाता .
मैं- अच्छा होता जो गिर जाता
रूपा- क्या हुआ
मैं- जाने दे, ये गम भी मेरा ये तन्हाई भी मेरी
रूपा- मैं भी तो तेरी ही हूँ .
मैंने रूपा को सारी बात बताई की कैसे विक्रम मुझे अपने लालच के लिए पाल रहा था .
“तुझे किसी बात से घबराने की जरुरत नहीं है तेरे साथ मैं खड़ी हूँ , मेरे होते तुझे कुछ नहीं होगा. सावित्री जैसे सत्यवान के लिए यमराज के सामने खड़ी थी , तेरे और तेरे दुश्मनों के बीच एक दिवार है , उस दिवार का नाम रूपा है . ” रूपा ने कहा था .
“सावित्री पत्नी थी सत्यवान की ” मैंने कहा .
रूपा ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- चल मेरे साथ .
मैं- कहाँ
रूपा- चल तो सही .
मुझे लेकर रूपा मजार पर आ गयी.
“अब यहाँ क्यों ले आई . ”मैंने कहा
रूपा ने जलते दिए को अपनी हथेली पर रखा और बोली- पीर साहब को साक्षी मानकर मैं तुझे वचन देती हूँ की मेरी मांग में तेरा सिंदूर होगा. मैं तुझे वचन देती हूँ की तू दिल है तो मैं धड़कन बनूँगी, मैं हर कदम तेरे साथ चलूंगी . आज मेरे हाथ में ये दिया है , कुछ दिन बाद इसी अग्नि के सामने मैं तेरे संग फेरे लुंगी. आज से पंद्रह दिन बाद तू मेरे घर आना , मेरे पिता से मेरा हाथ मांगना. मैं इंतज़ार करुँगी. मुसाफिर तेरे सफ़र की मंजिल तेरे सामने खड़ी है “
रूपा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया.
“तैयारिया कर ले मुसाफिर, ” उसने मेरे कान में कहा.
इस से पहले मैं उसे जवाब दे पाता बाबा की आवाज आई- इबादत की जगह है ये ,
मैं- इश्क से बड़ी क्या इबादत भला .
बाबा- सो तो है , इतनी सुबह सुबह कैसे.
रूपा- हम जैसो की क्या रात और क्या सुबह बाबा . मैं तो इसी समय आती हु,
बाबा- मैंने इस से पूछा था
बाबा ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा.
मैं- बाबा , मैं मकान बनाना चाहता हूँ
बाबा- अच्छी बात है पर समय ठीक नहीं है . और तुम्हारे पास घर तो है ही .
बाबा का इशारा हवेली की तरफ था.
“रूपा, चा बना ला जरा ” बाबा ने रूपा को वहां से भेजा
बाबा- फिजा में एक गर्मी सी है , वक्त करवट ले रहा है मुसाफिर, जल्दी न कर .
मैंने देखा बाबा के झोले में कुछ फडफडा रहा था,
मैं- क्या है झोले में
बाबा- कुछ नहीं , तू तैयार रहना आज शाम हम चलेंगे हवेली .
मैंने हां में सर हिला दिया. तब तक रूपा चाय ले आई, सर्दी में गर्म चाय ने थोडा आराम दिया पर दिमाग में अभी भी विक्रम चाचा और शकुन्तला की बाते घूम रही थी . मैंने देखा रूपा भी बड़े गौर से बाबा के झोले को घुर रही थी .
एक मन किया की तांत्रिक वाली बात बता दू इन दोनों को पर फिर खुद को रोक लिया. क्योंकि मेरे दिमाग में एक बात और थी .
मैं- बाबा, अब जबकि मैं जानता हूँ की मंदिर के असली चोर कौन कौन थे तो क्यों न पंचायत बुलाई जाये और भूल सुधारी जाए.
बाबा- गड़े मुर्दे उखाड़ने का कोई फायदा नहीं और वैसे भी तुम्हारे पास क्या सबूत है वो लोग साफ़ मना कर देंगे फिर क्या करोगे तुम. बताओ
बाबा की बात सही थी.
मैं- तो क्या करू मैं .
बाबा- फ़िलहाल तो शांत रहो . अभी जाओ तुम दोनों
रूपा- मैं रुकुंगी, सफाई करके जाउंगी.
मैं-मैं जाता हूँ , रूपा दो मिनट आना जरा .
मैं रूपा को बाहर लाया.
रूपा- क्या हुआ.
मैं- क्या तू मालूम कर सकती है बाबा के झोले में क्या है .
रूपा- नहीं .
मैं- ठीक है चलता हूँ फिर.
मैं घर की तरफ चल पड़ा. सरोज शायद थोड़ी देर पहले उठी ही थी .
“कहाँ थे तुम रात भर ” पूछा उसने.
मैं- क्या मालूम कहाँ था , बस अपना कुछ सामान लेने आया हूँ . मैं इस घर को छोड़ कर जा रहा हूँ .
मेरी बात ने जैसे सरोज को सुन्न सा कर दिया था . कुछ पलो के लिए उसे समझ ही नहीं आया की मैंने क्या कह दिया उसने.
“क्या कहा तूने , घर छोड़ कर जा रहा है ” उसका गला जैसे रुंध सा गया .
मैं-मुझे कही जाना है और मैं वापिस शयद नहीं लौट पाउँगा.
सरोज-पर ऐसा क्या हुआ, ये तुम्हारा अपना घर है .
मैं-फिर कभी बताऊंगा.
मैं अपने कमरे में आया जितना सामान मुझे चाहिए था मैंने दो बैग में भर लिया . और वहां से वापिस हो गया. सरोज रोकती रह गयी पर मैं रुका नहीं . उसने रो रोकर पूछा पर मैं चाह कर भी उसे उसके पति की करतूतों के बारे में बता न सका.
बैग मैंने गाडी में डाले और जूनागढ़ पहुँच गया , मोना अभी तक नहीं वापिस आई थी. मेरे लिए बड़ी चिंता की बात थी ये.
“कुछ तो मालूम होगा, ” मैंने नौकर से कहा .
नौकर- हुकुम, बड़ी रानी सा भी दो तीन बार मेमसाहब के बारे में पूछ गयी
मैं- सतनाम के घर में क्या हाल है .
नौकर- शादी की तैयारिया चल रही है ,
मैं- ऐसी कोई तो जगह होगी जहाँ मोना अक्सर जाया करती थी . उसके कोई तो दोस्त होंगे,
नौकर- सबसे पड़ताल कर ली है सबका एक ही जवाब हमारे यहाँ नहीं आई.
मैं- नानी क्यों आई थी यहाँ पर .
नौकर- छोटे साहब की शादी है तो रस्मो में आरती का हक़ मेमसाहब है , बड़ी रानी चाहती है की शादी के बहाने परिवार के शिकवे दूर हो जाये.
मैं- सुन एक काम कर, नानी को संदेसा दे की मैं मिलना चाहता हूँ उनसे, वो हाँ कहे तो यहाँ ले आ उनको .
नौकर चला गया . मैं सोचने बैठ गया की दूसरी तरफ से क्या जवाब आएगा. करीब बीस मिनट बाद नौकर वापिस आया , उसके साथ नानी तो नहीं थी पर कोई और था , जिसके आने की मैंने कभी नहीं सोची थी .