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मैंने तेज जहर को अपनी नसों में बहते महसूस किया, नशा सा चढ़ने लगा पर बस कुछ पलो के लिए . फिर मेरा खून नागिन के बदन में जाने लगा. थोड़ी ही देर में उसकी हालात बहुत बेहतर हो गयी . कुछ तो था उसके और मेरे बिच में . ऐसा नाता जिसे अब वो चाह कर भी नहीं छुपा सकती थी .
“जब तू जाये तो मुझे नजरे छिपा कर जाना ” मैंने कहा .
वो सुनती रही . कुछ न बोली.
मुझे इस ख़ामोशी से कोफ़्त सी होने लगी थी .
“जाती क्यों नहीं अब किसने रोका है तुझे, जा चली जा वैसे भी तू मेरी कौन लगती है ” मैंने थोड़े गुस्से से कहा .
“तुझसे पूछ कर जाउंगी क्या , जा नहीं जाती ” उसने भी जवाब दिया.
मैं- ऐसा लगता है की मेरा दिल टुटा है , दिमाग मेरे काबू में नहीं है मैं कही तुझे कुछ उल्टा सीधा न बोल पडू
नागिन- चलो इसी बहाने तेरा मन तो हल्का हो जायेगा.
मैं- ये दोहरी बात न कर , जब तुझे रोकना चाह तो जाने की जिद थी अब जाती नहीं .
नागिन- तो क्या करू मैं . मेरी बेबसी मेरी मज़बूरी मैं करू तो क्या करू.
मैं- मैं तुझसे ये नहीं कहूँगा की मैं दुनिया में अकेला हूँ , मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा , तू ही है बस मेरी , तू नहीं रहेगी तो मैं कैसे जियूँगा . मेरे दुश्मन मुझे मार देंगे. फलाना फलाना. अरे तू नहीं थी , मेरा मतलब जब मुझे मालूम नहीं था तेरे बारे में तब भी तो मैं जीता था , माना तेरे अहसान है मुझ पर और मेरी खाल की जुती बनाके तुझे पहना दू तो भी मैं तेरे अहसान नहीं चूका सकता . पर तुझे जाना है तो जा , चली जा जी लेंगे तेरे बिन भी . जो मिला सबने धोखा दिया तेरा भी सह लेंगे, अरे हम तो मुसाफिर है , और मुसाफिरों को मंजिले नहीं मिला करती, गलती मेरी ही थी जो भूल गया. और सुलतान बाबा से भी कहना अब उसे दूसरी मंजिल को छुपाने की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी , मुसाफिर अब कभी हवेली में कदम नहीं रखेगा . जा चली जा मुझसे दूर हो जा. और मैं अगर मर भी जाऊ तो तुझे कसम है मेरी तू न आना.
मैंने अपना मुह उस से मोड़ा और अपने कदम उस रस्ते पर बढ़ा दिए जहाँ थी तो बस जुदाई .
उसने भी रोका नहीं और मैं भी नहीं रुका. मैं तो ये जानता भी नहीं था किस बंधन में मैं बंध गया हूँ उस से, जिन्दगी में अचानक से कुछ ऐसे लोग आ गए थे जिन्होंने मेरे और मेरे अक्स के बीच फर्क कर दिया था .
पर मेरी असली समस्या अब शुरू होनी थी , मेरे पास कोई ठिकाना नहीं था जहाँ मैं जा सकू, कभी कभी इन्सान अहंकार में इतना डूब जाता है की बाद में उसे पछताना ही पड़ता है , सरोज का घर मैं छोड़ चूका था , हवेली मैं , तो अब कहाँ जाऊ. मैंने खुद अ घर बनाने का निर्णय लिया वैसे भी रूपा से ब्याह के बाद मुझे घर तो चाहिए ही था .
सुबह होते ही मैं गाँव में मजदूरो के घर गया और उनसे बात की की मेरी किस जमीन पर मैं घर बनाना चाहता हूँ, शहर जाकर मैंने बैंक से कुछ रकम निकाली और मजदूरो को दी. और जल्दी से जल्दी काम शुरू करने को कहा. शाम को मैं पीपल के पास बैठा पेग लगा रहा था की मैंने रूपा को आते देखा .
“कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे और तू यहाँ बैठा है ” उसने कहा
मैं- बस यूँ ही दिल थोडा परेशां था .
रूपा- तो शराब से परेशानी दूर होगी तेरी. मुझसे कह तेरी परेशानी तेरे दर्दे दिल के दवा मैं करुँगी .
मैं- मैं जिस पर भी भरोसा करता हु वो छलता है मुझे ,
रूपा- दस्तूर है दुनिया का नया क्या है
मैं- ऐसा लगता है की मैं टूट कर बिखर जाऊंगा ,
रूपा- थाम लेगी तुझे तेरी रूपा. वैसे भी किसी ने कहा ही है की दो बर्बाद मिलकर आबाद हो ही जाते है .
मैं- घर बनाने का सोचा है , एक दो दिन में काम शुरू हो जायेगा.
रूपा- बढ़िया है . एक घर ही तो होता है जाना इन्सान को सकून मिलता है .
मैं- एक पेग लेगी .
रूपा- नहीं रे, मेरे बस की नहीं
मैं- तो क्या है तेरे बस का
रूपा- तुमसे इश्क करना.
रूपा ने मेरे गाल को चूम लिया.
“ये छेड़खानी न किया कर मेरा काबू नहीं रहता खुद पर . ” मैंने कहा
रूपा- तो बेकाबू हो जा किसने रोका है मेरे सरकार.
मैं- क्या इरादा है तेरा.
रूपा- तुझे पाने का.
मैं- तो बन क्यों नहीं जाती मेरी . क्यों देर करती है .
रूपा- मैं देर करती नहीं देर हो जाती है .
मैं- उफ्फ्फ तेरी बाते ,
रूपा- बाते तो होती रहेंगी, ताजा सरसों तोड़ के लायी हु आजा चल आज साग बनाती हूँ तेरे लिए.
मैं- बाजरे की रोटी बनाएगी तो आऊंगा.
“जो हुकुम सरकार, अब चलो भी ” रूपा ने हँसते हुए कहा और हाथो में हाथ डाले हम उसके घर की तरफ चल पड़े. रूपा के साथ होने से बड़ा सकून मिलता था मुझे. एक दुसरे को छेड़ते हुए हम उसके घर से थोडा दूर ही थे की वो बोली- देव, गुड ले आ. थोडा चूरमा भी बना लुंगी .
मैं- ठीक है तू चल मैं लाता हूँ .
मैं वहां से दूकान की तरफ चल पड़ा . मैंने गुड लिया और वापस चला ही था की एक गाडी मेरे सामने आकर रुकी, मैंने देखा वो नानी थी . वो गाड़ी से उतर कर मेरे पास आई .
मैं-आप इस समय यहाँ
नानी- तुमसे मिलने ही आई थी .
मैं- मुझसे, यकीन नहीं होता.
नानी- तो यकीन कर लो .
नानी ने एक बक्सा मुझे दिया.
मैं- क्या है इसमें
नानी- खोल कर देखो .
मैंने बक्सा खोला . उसमे एक हार और चार चूडिया थी .
मैं- मेरा क्या काम इनका.
नानी- ये तेरी माँ की है .मैंने सोचा तुझे लौटा दू .
मैंने उनको माथे से लगाया .
नानी- मोना का कुछ पता चला
मैं- अभी तक तो नहीं
नानी- मेरे पोते की शादी है कुछ दिनों में . उसे ले आ बेटे .
मैं- आपसे ज्यादा मोना की मुझे फ़िक्र है और वो आ भी गयी तो आएगी नहीं शादी में .
नानी- तुम मना लाओ उसे, बड़े सालो बाद घर में कोई ख़ुशी आई है , मैं तो कुछ दिन की हूँ अंतिम इच्छा बस यही है की एक बार परिवार को इकट्ठा देख लू. मोना के सबसे करीब तुम ही हो, तुम ही तलाश सकते हो उसे.
मैं- अपने बेटे से क्यों नहीं पूछती , मुझे तो यकीन है उसने ही कुछ किया है मोना के साथ .
नानी- ऐसा नहीं है , मुझे मालूम है सतनाम लाख गलत है पर मोना का अहित कभी नहीं करेगा वो .
मैं- तो आप ही बताओ कहाँ तलाश करू उसे .
नानी-तुम तलाश कर लोगे उसकी .
मैं- एक बात पुछू
नानी- हाँ
मैं- क्या मैं जब्बर पर भरोसा कर सकता हूँ
नानी- ये तुम जानो
नानी के जाने के बाद मैंरूपा के घर की तरफ चल पड़ा आधे रस्ते पहुंचा ही था की ऐसा लगा कोई आस पास है . जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा हो. एक दो बार मैंने रुक कर देखा भी पर कोई नहीं था . मैं थोडा तेज तेज चलने लगा. फिर मुझे चूड़ी की हलकी सी आवाज आई.
चूड़ी की आवाज , मैं चलता रहा फिर से आवाज आई जैसे हवा में वो आवाज लहरा रही थी . फिर किसी ने मुझे पुकारा . “देव ”