• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery गुजारिश

Naik

Well-Known Member
21,005
76,668
258
56

मैंने तेज जहर को अपनी नसों में बहते महसूस किया, नशा सा चढ़ने लगा पर बस कुछ पलो के लिए . फिर मेरा खून नागिन के बदन में जाने लगा. थोड़ी ही देर में उसकी हालात बहुत बेहतर हो गयी . कुछ तो था उसके और मेरे बिच में . ऐसा नाता जिसे अब वो चाह कर भी नहीं छुपा सकती थी .

“जब तू जाये तो मुझे नजरे छिपा कर जाना ” मैंने कहा .

वो सुनती रही . कुछ न बोली.

मुझे इस ख़ामोशी से कोफ़्त सी होने लगी थी .

“जाती क्यों नहीं अब किसने रोका है तुझे, जा चली जा वैसे भी तू मेरी कौन लगती है ” मैंने थोड़े गुस्से से कहा .

“तुझसे पूछ कर जाउंगी क्या , जा नहीं जाती ” उसने भी जवाब दिया.

मैं- ऐसा लगता है की मेरा दिल टुटा है , दिमाग मेरे काबू में नहीं है मैं कही तुझे कुछ उल्टा सीधा न बोल पडू

नागिन- चलो इसी बहाने तेरा मन तो हल्का हो जायेगा.

मैं- ये दोहरी बात न कर , जब तुझे रोकना चाह तो जाने की जिद थी अब जाती नहीं .

नागिन- तो क्या करू मैं . मेरी बेबसी मेरी मज़बूरी मैं करू तो क्या करू.

मैं- मैं तुझसे ये नहीं कहूँगा की मैं दुनिया में अकेला हूँ , मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा , तू ही है बस मेरी , तू नहीं रहेगी तो मैं कैसे जियूँगा . मेरे दुश्मन मुझे मार देंगे. फलाना फलाना. अरे तू नहीं थी , मेरा मतलब जब मुझे मालूम नहीं था तेरे बारे में तब भी तो मैं जीता था , माना तेरे अहसान है मुझ पर और मेरी खाल की जुती बनाके तुझे पहना दू तो भी मैं तेरे अहसान नहीं चूका सकता . पर तुझे जाना है तो जा , चली जा जी लेंगे तेरे बिन भी . जो मिला सबने धोखा दिया तेरा भी सह लेंगे, अरे हम तो मुसाफिर है , और मुसाफिरों को मंजिले नहीं मिला करती, गलती मेरी ही थी जो भूल गया. और सुलतान बाबा से भी कहना अब उसे दूसरी मंजिल को छुपाने की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी , मुसाफिर अब कभी हवेली में कदम नहीं रखेगा . जा चली जा मुझसे दूर हो जा. और मैं अगर मर भी जाऊ तो तुझे कसम है मेरी तू न आना.



मैंने अपना मुह उस से मोड़ा और अपने कदम उस रस्ते पर बढ़ा दिए जहाँ थी तो बस जुदाई .

उसने भी रोका नहीं और मैं भी नहीं रुका. मैं तो ये जानता भी नहीं था किस बंधन में मैं बंध गया हूँ उस से, जिन्दगी में अचानक से कुछ ऐसे लोग आ गए थे जिन्होंने मेरे और मेरे अक्स के बीच फर्क कर दिया था .

पर मेरी असली समस्या अब शुरू होनी थी , मेरे पास कोई ठिकाना नहीं था जहाँ मैं जा सकू, कभी कभी इन्सान अहंकार में इतना डूब जाता है की बाद में उसे पछताना ही पड़ता है , सरोज का घर मैं छोड़ चूका था , हवेली मैं , तो अब कहाँ जाऊ. मैंने खुद अ घर बनाने का निर्णय लिया वैसे भी रूपा से ब्याह के बाद मुझे घर तो चाहिए ही था .



सुबह होते ही मैं गाँव में मजदूरो के घर गया और उनसे बात की की मेरी किस जमीन पर मैं घर बनाना चाहता हूँ, शहर जाकर मैंने बैंक से कुछ रकम निकाली और मजदूरो को दी. और जल्दी से जल्दी काम शुरू करने को कहा. शाम को मैं पीपल के पास बैठा पेग लगा रहा था की मैंने रूपा को आते देखा .

“कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा तुझे और तू यहाँ बैठा है ” उसने कहा

मैं- बस यूँ ही दिल थोडा परेशां था .

रूपा- तो शराब से परेशानी दूर होगी तेरी. मुझसे कह तेरी परेशानी तेरे दर्दे दिल के दवा मैं करुँगी .

मैं- मैं जिस पर भी भरोसा करता हु वो छलता है मुझे ,

रूपा- दस्तूर है दुनिया का नया क्या है

मैं- ऐसा लगता है की मैं टूट कर बिखर जाऊंगा ,

रूपा- थाम लेगी तुझे तेरी रूपा. वैसे भी किसी ने कहा ही है की दो बर्बाद मिलकर आबाद हो ही जाते है .

मैं- घर बनाने का सोचा है , एक दो दिन में काम शुरू हो जायेगा.

रूपा- बढ़िया है . एक घर ही तो होता है जाना इन्सान को सकून मिलता है .

मैं- एक पेग लेगी .

रूपा- नहीं रे, मेरे बस की नहीं

मैं- तो क्या है तेरे बस का

रूपा- तुमसे इश्क करना.

रूपा ने मेरे गाल को चूम लिया.

“ये छेड़खानी न किया कर मेरा काबू नहीं रहता खुद पर . ” मैंने कहा

रूपा- तो बेकाबू हो जा किसने रोका है मेरे सरकार.

मैं- क्या इरादा है तेरा.

रूपा- तुझे पाने का.

मैं- तो बन क्यों नहीं जाती मेरी . क्यों देर करती है .

रूपा- मैं देर करती नहीं देर हो जाती है .

मैं- उफ्फ्फ तेरी बाते ,

रूपा- बाते तो होती रहेंगी, ताजा सरसों तोड़ के लायी हु आजा चल आज साग बनाती हूँ तेरे लिए.

मैं- बाजरे की रोटी बनाएगी तो आऊंगा.

“जो हुकुम सरकार, अब चलो भी ” रूपा ने हँसते हुए कहा और हाथो में हाथ डाले हम उसके घर की तरफ चल पड़े. रूपा के साथ होने से बड़ा सकून मिलता था मुझे. एक दुसरे को छेड़ते हुए हम उसके घर से थोडा दूर ही थे की वो बोली- देव, गुड ले आ. थोडा चूरमा भी बना लुंगी .

मैं- ठीक है तू चल मैं लाता हूँ .

मैं वहां से दूकान की तरफ चल पड़ा . मैंने गुड लिया और वापस चला ही था की एक गाडी मेरे सामने आकर रुकी, मैंने देखा वो नानी थी . वो गाड़ी से उतर कर मेरे पास आई .

मैं-आप इस समय यहाँ

नानी- तुमसे मिलने ही आई थी .

मैं- मुझसे, यकीन नहीं होता.

नानी- तो यकीन कर लो .

नानी ने एक बक्सा मुझे दिया.

मैं- क्या है इसमें

नानी- खोल कर देखो .

मैंने बक्सा खोला . उसमे एक हार और चार चूडिया थी .

मैं- मेरा क्या काम इनका.

नानी- ये तेरी माँ की है .मैंने सोचा तुझे लौटा दू .

मैंने उनको माथे से लगाया .

नानी- मोना का कुछ पता चला

मैं- अभी तक तो नहीं

नानी- मेरे पोते की शादी है कुछ दिनों में . उसे ले आ बेटे .

मैं- आपसे ज्यादा मोना की मुझे फ़िक्र है और वो आ भी गयी तो आएगी नहीं शादी में .

नानी- तुम मना लाओ उसे, बड़े सालो बाद घर में कोई ख़ुशी आई है , मैं तो कुछ दिन की हूँ अंतिम इच्छा बस यही है की एक बार परिवार को इकट्ठा देख लू. मोना के सबसे करीब तुम ही हो, तुम ही तलाश सकते हो उसे.

मैं- अपने बेटे से क्यों नहीं पूछती , मुझे तो यकीन है उसने ही कुछ किया है मोना के साथ .

नानी- ऐसा नहीं है , मुझे मालूम है सतनाम लाख गलत है पर मोना का अहित कभी नहीं करेगा वो .

मैं- तो आप ही बताओ कहाँ तलाश करू उसे .

नानी-तुम तलाश कर लोगे उसकी .

मैं- एक बात पुछू

नानी- हाँ

मैं- क्या मैं जब्बर पर भरोसा कर सकता हूँ

नानी- ये तुम जानो

नानी के जाने के बाद मैंरूपा के घर की तरफ चल पड़ा आधे रस्ते पहुंचा ही था की ऐसा लगा कोई आस पास है . जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा हो. एक दो बार मैंने रुक कर देखा भी पर कोई नहीं था . मैं थोडा तेज तेज चलने लगा. फिर मुझे चूड़ी की हलकी सी आवाज आई.




चूड़ी की आवाज , मैं चलता रहा फिर से आवाज आई जैसे हवा में वो आवाज लहरा रही थी . फिर किसी ने मुझे पुकारा . “देव ”
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
 

Naik

Well-Known Member
21,005
76,668
258
#57

किसी ने मुझे पुकारा, “देव ”

खेतो से एक साया निकल कर मेरे पास आया , मैंने देखा ये सरोज थी .

“तुम यहाँ कैसे ” मैंने कहा

सरोज- तुम्हे ढूंढते ढूंढते आ गयी , मुझे तुमसे बेहद जरुरी बात करनी थी .

मैं- जब्बर को मेरी मौत की सुपारी देने से ज्यादा जरुरी क्या बात है अब .

सरोज- मैं जानती थी ऐसा ही होगा. ये सब एक साजिश है हम दोनों के बीच दरार डालने की देव, मुझे मालूम हो गया है तुमने घर क्यों छोड़ा विक्रम उस शकुन्तला के साथ मिल कर जो भी कर रहा है उसमे मेरा उसका कोई साथ नहीं है देव, और जब्बर तो उनका ही मोहरा है .

मैं- जो भी हो मैं इस हालात में नहीं हूँ की किसी पर भी भरोसा कर सकू. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.

सरोज- तुम्हे मेरी बात सुननी ही होगी,

मैं- मैंने कहा न जाओ तुम यहाँ से.

सरोज- इतना कठोर मत बनो देव, मुझ पर भरोसा नहीं कर सकते और मेरे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जो तुम्हे भरोसा दिला सके. बस मेरी जान है जो तुम ले लो शायद तब तुम्हे यकीन आये.

मैं- मैंने कहा न मेरे हालात ऐसे नहीं है , और तुम्हे अगर मेरी फ़िक्र है तो फिर मत आना मेरे पास.

मैंने कहा और आगे बढ़ गया . सरोज मुझे आवाज देती रह गयी .समझ नहीं आ रहा था की क्या करू क्या न करू. रिश्तो की ऐसी भूलभुलैया में उलझा था मैं की अपने पराये सच्चे झूठे का भेद समाप्त हो गया था .



रूपा के घर जब तक मैं पंहुचा , वो मेरी ही राह देख रही थी .

रूपा- बड़ी देर लगाई कब से राह देख रही हूँ मैं .



मैं- बस देर हो गयी .

रूपा- ये कैसा बक्सा है हाथ में .

मैं- रख ले तेरे पास , मुझे भूख लगी है बाद में देखेंगे इसे , हिफाजत से रख दे.

रूपा- जो हुकुम सरकार.

रूपा खाना बनाने लगी मैं वही दिवार का सहारा लेकर बैठ गया .

मैं- तू जादू करना जानती है

रूपा- कितनी बार तुझे बताऊ ,

मैं- कोई ऐसी तरकीब है की मैं अतीत देख पाउँगा

रूपा- बाबा सुलतान से पूछ , वैसे जादू में ऐसा होता है कुछ जादूगर अपनी यादो को कही छुपा देते है . वैसे तुझे किसका अतीत देखना है .

मैं- नागेश का

रूपा- जानता है तू क्या कह रहा है .

मैं- तू शायद जानती नहीं पर मुझे लगता है उसका मुझसे कोई नाता है .

रूपा- नागेश किवंदिती के सिवा कुछ भी नहीं . उसे मरे जमाना हुआ .

मैं- बाबा को लगता है की वो लौट आया है . चरवाहों का तिबारा शायद उसने ही तोडा है .

रूपा- नहीं ऐसा नहीं है .

मैं- क्यों

रूपा- वो तिबारा मैंने तोडा है .

मुझे जैसे रूपा ने झटका सा दिया.

मैं- पर क्यों

रूपा- जब तुझे चोट लगी तो मेरा दिमाग भन्ना सा गया था . मैं इलाज के लिए उपचार तलाश कर रही थी , तुझे मालूम नहीं उसे चरवाहों का तिबारा क्यों कहा जाता था क्योंकि वहां पर ये जादूगर लोग अपने सफ़र के दौरान अक्सर रुकते थे , एक तरह का गुप्त ठिकाना था ये लोगो को मालूम न हो की जादूगर है तो वो चरवाहों का भेस ले लेते थे .

मैं- पर तूने तोडा क्यों

रूपा- बता तो रही हूँ , उस रात जब मैं वहां पर पहुंची . तो मुझे कटोरे की तलाश थी जो मन्नते पूरी करता था .

मैं- कैसा कटोरा .

रूपा- तिबारे में हमेशा से एक कटोरा रखा होता था जिसमे से जो मांगो मिल जाता था , मतलब कुछ जरुरत की चीजे .

मैं- तो तुझे क्या जरुरत थी

रूपा- कितने सवाल करता है तू

मैं- बस उत्सुकता .

रूपा- मैं प्रतिकृति पत्थर को तलाश रही थी .

मैं- क्या होता है ये .

रूपा- एक तरह का छलावा .

मैं- समझा नहीं

रूपा- तेरा घाव तेरे कलेजे को खा रहा था , यदि जल्दी से उपचार न होता तो जहर तेरे कलेजे को भेद देता. चूँकि मुझे उपचारों का ज्ञान है तो मैंने एक रिस्क लेने का सोचा, मैं तेरे कलेजे की नकल बनाती और उस तंत्र वार के असर को उस पर उतार लेती बाद में कलेजा वापिस कर देती.

पर ये पत्थर मिलना दुर्लभ है तो बस मैं अपनी हताशा को रोक नहीं पाई.

मैं- मैं कैसे ठीक हुआ तुमने उस रात क्या किया था .

रूपा- कुछ भी नहीं किया मैंने .

मैं- रूपा, मुझे सच बता तुझे मेरी कसम है सच बता.

रूपा- मैंने कुछ नहीं किया सिवाय तेरे जख्म को सिलने के. जो किया उस नागिन ने किया उसने ....

रूपा ने एक आह भरी

मैं- क्या किया था उसने बताती क्यों नहीं .

रूपा- उसने तेरी जान के बदले खुद की जान रख दी. वो कोई मामूली नागिन नहीं है वो अलग है , हम सब जानते थे की नागेश के वार का कोई भी तोड़ नहीं है . तो उसने एक ऐसा फैसला किया जो बस काम कर गया . उसने तेरी जान के बदले अपनी जान रख दी. नागो की अपनी शक्तिया होती है , उसने रक्तभ्स्म तुझे दी .

मैं- क्या होती है ये .

रूपा- जैसे इंसानों के लिए शरीर में रक्त जरुरी होता है , नागो के लिए रक्त्भास्म होती है . वार उतारने के कुछ नियम होते है हर चीज का मूल्य होता है उसने तेरे कलेजे के बदले अपना कलेजा रख दिया. उसने सोचा था की उसका जहर नागेश के वार को झेल लेगा पर ऐसा हुआ नहीं .

मैं- मतलब

रूपा- मतलब ये की नागिन पल पल मर रही है , उसके पास समय बहुत कम है इस श्राप ने हम तीनो को आपस में जोड़ दिया है . उसका कलेजा गल रहा है , हर रात तेरी भारी होगी दर्द से, और मेरी पीठ का ये जख्म सदा ताजा रहेगा कभी भरेगा नहीं .

मैं- तू सब जानती थी तो तूने क्यों किया ऐसा.

रूपा- आशिकी इम्तेहान लेती है मेरे सरकार. और जब तुझसे नाता जोड़ा है तो फिर मैं कैसे कदम पीछे हटाती, जब सुख में तेरी साथी हूँ तो तेरा दर्द भी मेरा हुआ न .

मैं- पर नागिन ने मेरे लिए अपनी जान की बाजी क्यों लगाई,

रूपा- मुझे भी इंतजार है इस सवाल के जवाब का .

हम दोनों के दरमियान कुछ देर के लिए एक ख़ामोशी छा गयी. जिसे मैं इतना भला बुरा कह आया था वो मौत के करीब थी सिर्फ मेरी वजह से सिर्फ मेरी वजह से. अब मुझे समझ आया की मेरे खून से उसकी हालात क्यों ठीक हो रही थी क्योंकि मेरे खून में रक्त भस्म भी थी .

“रक्त भस्म कहा मिलेगी रूपा ” मैंने पूछा

रूपा- परचून की दुकान पर तो नहीं मिलेगी.

मैं- बता न .

रूपा- मैं नागो के बारे में गहराई से नहीं जानती मुसाफिर, बाबा से पूछ .

मैं- ठीक है उनके पास ही जाता हूँ ,

रूपा- खाना तो खा ले पहले

मैं- मुझे जाना होगा.

रूपा- बेशक पर पहले खाना खा, बड़ा सकून होता है जब मैं तेरे साथ रोटी खाती हूँ , इस थोड़े से सुख पर तो मेरा अधिकार रहने दे सरकार.

रूपा ने साग, चूरमा परोसा मुझे . और कुछ पालो के लिए मैं सब कुछ भूल गया . खाने के बाद मैं वहां से निकल कर चल दिया मुझे मालूम था की कहाँ जाना है , आधे रस्ते में मुझे सुलतान बाबा मिल गए.

बाबा- कहाँ था तू, तुझे ही तलाश रहा था मैं .

मैं- मैं भी तुम्हारे पास ही रहा था बाबा , मुझे मालूम हो गया इस झोले में क्या है


बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी.
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
 
Top