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Adultery गुजारिश

Studxyz

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रूपा बेचारी न तो अपना खून भी दे दिया लेकिन बाबाजी कहाँ गायब हो गए हैं और ये नागिन भी एक रहस्य है पर है ये देव की रक्षक। कहानी रोमांच व् सस्पेंस के बीच भरपूर मनोरंजन करते हु आगे बढे रही है की आगे क्या होगा ?

इस मज़ार और बाबा से देव के माँ का गहरा नाता है
 

RAAZ

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#41

हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए. सामने सरोज काकी खड़ी थी. मुझे समझ नहीं आया कि क्या करू.

काकी - तो ये वज़ह है जिसकी वज़ह से तुम घर नहीं आते

रूपा ने सर पर चुनरी कर ली.

मैं - काकी मेरी बात सुनो, मैं समझाता हूं

काकी - तू चुप रह मुझे इस से बात करने दे, मैं भी देखूँ की इसने ऐसा क्या कर दिया जो लड़का सब भूल बैठे है, इधर आ लड़की, क्या नाम है तेरा

"जी रूपा " रूपा ने जवाब दिया.

काकी - नाम तो बड़ा प्यारा है और जब तूने इसका हाथ थामा है तो खास है तू हमारे लिए, मुझे नाम पता दे, हम ब्याह की बात करते है तेरे घरवालों से, वैसे भी मैं अकेले थक जाती हू घर सम्हालते, बहु आएगी तो मुझे भी सुख मिलेगा

काकी ने हल्के से रूपा के माथे को चूमा और सर पर हाथ फेरा

रूपा शर्म से लाल हो गई. मैं मुस्कराने लगा

काकी - मैं तो तुझे ढूंढने आयी थी, विक्रम को कुछ बात करनी थी तुमसे, तुम रूपा को घर छोड़ आओ फिर हम चलेंगे.

मैंने सर हिलाया और रूपा के साथ झोपड़ी से बाहर आया. साँझ ढलने लगी थी. हल्का अंधेरा हो रहा था.
रूपा - मैं चली जाऊँगी

मैं - मोड़ तक चलता हूं

रूपा - घर ले चलूँगी तुझे जल्दी ही. सोचा नहीं था ऐसे काकी अचानक से आ जाएंगी

मैं - कभी ना कभी तो मिलना ही था आज ही सही

रूपा - हम्म

मैं - फिर कब मिलेगी

रूपा - जब तू कहे

मैं - मेरी इतनी ही सुनती है तो मेरे साथ ही रह, जा ही मत

रूपा - जाऊँगी तभी तो वापिस आऊंगी

मैंने उसे मोड़ तक छोड़ा और वापिस खेत पर आया काकी मेरा ही इंतजार कर रही थी
.
"छुपे रुस्तम हो " काकी ने मुझे छेड़ते हुए कहा

मैं - ऐसा नहीं है

काकी -, तो कैसा है तू बता

सरोज मेरे काफी करीब आ गई. इतना करीब की हमारी सांसे आपस मे उलझने लगी. काकी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और मुझ से लिपट गई. जैसे ही वो सीने से टकराई मैं हिल गया. और यही बात मैं काकी से छुपाना चाहता था.

"बड़ी प्यासी हूं मैं जल्दी से कर ले. कितने दिन बाद मौका लगा है " सरोज ने आतुरता से कहा

मैं - ये ठीक समय नहीं है, कोई भी आ सकता है

काकी - कोई नहीं आएगा

मैं - घर पर भी कर सकते है, मैं मना तो नहीं कर रहा ना

मैंने काकी का हाथ पकडा और उसे अपने पास बिठाया.

"जानता हूं कि तुमसे मिल नहीं पा रहा, समझता हूं नाराजगी और ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कोई और आ गई है जिंदगी मे तो तुम्हारी अहमियत नहीं है बस थोड़े समय की बात है "मैंने कहा

सरोज - मैंने कुछ कहा क्या

मैं - कहने की जरूरत नहीं मैं समझता हूं

मैंने सरोज के होंठो पर एक चुंबन लिया और हम घर की तरफ चल पड़े. विक्रम चाचा बड़ी बेसब्री से मेरी राह देख रहा था

विक्रम - कहाँ लापता हो आजकल कितने दिन हुए तुम्हें देखे

मैं - बस ऐसे ही

विक्रम - सब ठीक है

मैं - हाँ

विक्रम - कल तुम्हारे ताऊ के यहां से लग्न गया तुम्हारी बड़ी राह देखी तुम पहुंचे नहीं,

मैं - मुझे ध्यान नहीं रहा

विक्रम - देखो बेटा, मैं जानता हूं जैसा व्यावहार उनका तुम्हारे प्रति रहा तुम्हारे मन मे उनके लिए क्या है पर व्यक्ती के लिए परिवार, चाहे वो कैसा भी हो उसका मह्त्व होता है. और इस शादी से यदि कुछ ठीक होता है तो क्या बुराई है.

मैं - आपकी बात ठीक है चाचा पर मुझे सच मे ही ध्यान नहीं रहा था उस बात का. मुझे शर्मिन्दगी है

विक्रम - कोई नहीं शादी मे तो रहोगे ना

मैंने हाँ मे सर हिला दिया.

विक्रम - एक बात और रात को थोड़ा समय से घर आया करो, आजकल माहौल ठीक नहीं है.

मैंने फिर हाँ मे सर हिला दिया.

बातों बातों में समय का पता नहीं चला. खाने के बाद सब अपने अपने बिस्तर पर थे मैं चुपके से बाहर निकल गया. आज तो ठंड ने जैसे कहर बरपा दिया था. मेरे सीने मे खून जमने लगा था. कंबल ओढ़े मैं मजार पर पहुंचा तो बाबा नहीं था. पर आग जल रही थी मैं उसके पास ही बैठ गया. तप्त जो लगी करार सा आया.

"यूँ अकेले बैठना ठीक नहीं मुसाफिर "

मैंने पीछे मुड़ के देखा, रूपा खड़ी थी.

"तुम इस वक़्त " मैंने कहा

रूपा - जी घबरा सा रहा आज सोचा दुआ मांग आऊँ

मैं - लगता है दुआ कबूल हो गई

"लगता तो है " उसने मेरे पास बैठते हुए कहा

मैं - अच्छा हुआ हो तू आयी अब रात चैन से कट जाएगी.

रूपा - अच्छा जी.

मैं - आगोश मे बैठी रहो, मैं तुम्हें देखते रहूं

रूपा - उफ्फ्फ ये दिल्लगी, तुम्हारी काकी क्या कह रही थी मेरे जाने के बाद

मैं - कुछ खास नहीं उन्हें पसंद आयी तुम. कह रही थी कि ठीक है उन्हें मेहनत नहीं करनी पडी लड़की ढूंढने के लिए

रूपा शर्मा गई.

मैं - हाय रे तेरी ये अदा.

रूपा - तू ऐसे ना देखा कर मुझे, तेरी निगाह घायल कर जाती है मेरे मन को

मैं - और तुम जो दिल चुरा ले गई उसका क्या

रूपा ने मेरा हाथ अपने हाथ मे लिया और बोली - कहाँ चुराया, वो तो मेरा ही था.

मैं अब उसे क्या कहता बस मुस्करा कर रह गया.

"आ साथ मेरे " उसने उठते हुए कहा

मैं - कहाँ

रूपा - घर
Oho to aaj apna Musafir apni sangni me ghar ka Musafir banega. Vikram bhi theek kehta hain ki rishte dar aakhir rishte dar Hotey hai aur shadi biyah ke moke per hi to apnepan ka pata chalta hain.
 

RAAZ

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#42

रूपा - आ चल मेरे साथ

मैं - कहाँ

रूपा - घर

मैं - सच मे

रूपा - सच मे

रूपा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया मैं उसका सहारा लेकर उठा, सीने मैं के दर्द की वज़ह से पैर लडखडाए.
रूपा - क्या हुआ

मैं - कुछ नहीं चल चले

सर्द रात के अंधेरे मे अपनी जाना का हाथ थामे कच्चे रास्ते पर चलना अपने आप मे एक सुख होता है. हमने जल्दी ही वो मोड़ पार किया जहां अक्सर मैं उसे छोड़ कर जाता था. जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे रूपा की पकड़ मेरी कलाई पर मजबूत होते जा रही थी. करीब आधा कोस चलने के बाद मुझे रोशनी दिखने लगी. जल्दी ही हम एक छप्पर के सामने खड़े थे.

"बस यही है मेरा आशियाँ " रूपा ने टूटते लहजे मे कहा.

मैं - महल से कम भी नहीं है जहां मेरी रानी रहती है
वो मुझे अंदर ले आयी. एक चूल्हा था. एक कोने मे बिस्तर प़डा था. पास मे एक कमरा और था. रूपा ने मुझे पानी दिया. मैं बैठ गया.

रूपा - चाय पियेगा

मैं - हाँ

उसने चूल्हा जलाया, बहती ठंड मे धधकता चूल्हा, ऊपर से बर्तन मे उबलती चाय, जिसकी खुशबु ने माहौल बना दिया था. जल्दी ही कप मेरे हाथो मे था

मैं - तू भी ले

वो - तुझे तो मालूम है मुझे दुध पसंद है.

मैं - तेरी मर्जी, पर दिलबर के संग चुस्की लेने का मजा ही अलग है सरकार

रूपा - जानती हूं सनम. मेरे संग तू है और क्या चाहिए. रात दिन बस एक ही ख्याल है मुझे, कभी सोचा नहीं था कि ऐसे कोई. मुसाफिर आएगा जो मुझे यूँ बदल देगा. मेरी जिन्दगी को एक नया रास्ता देगा
.
रूपा ने एक डिब्बे से कुछ मिठाई दी मुझे खाने को.

"बोल कुछ " उसने मुझसे कहा

मैं - क्या बोलू, बस तेरे पहलू मे बैठा रहूं, मुझे अपने आगोश मे छिपा ले, इतनी तमन्ना है जब आंख खुले तो तेरा दीदार हो, नींद आए तो तेरी बाहें हो.

रूपा - कहाँ से सोचता है तू ये बाते,

मैं - तुझे देखते ही अपने आप सीख जाता हूँ

मैं रूपा से बात कर रहा था पर मुझे कुछ होने लगा था. कुछ बेचैनी सी होने लगी थी, जी घबराने लगा जैसे उल्टी गिरेगी.

रूपा - क्या हुआ ठीक तो है ना

मैं - हाँ ठीक हुँ,

ठंडी मे भी मेरे माथे पर पसीना बहने लगा था.

"मुझे जाना होगा सरकार, जल्दी ही मिलूंगा " मैंने कहा

रूपा - क्या हुआ

मैं - एक काम याद आया

मैंने अपना दर्द छुपाते हुए रूपा से कहा.

रूपा - तेरी तबीयत ठीक नहीं लगी मुझे, मैं चलती हूं तेरे साथ

मैं - क्यों परेशान होती है, ऐसी कोई बात नहीं, बस एक काम याद आ गया.

मैं रूपा को परेशान नहीं करना चाहता था.

" फिर भी मोड़ तक आती हूं तेरे साथ. "उसने कहा
हम दोनों वहां से चल पड़े. एक एक कदम भारी हो रहा था मैंने सीने से रिसते खून को अपने कपडे भिगोता महसूस किया. बाबा ने सही कहा था आने वाले दिन बड़े मुश्किल होंगे. मोड़ तक आते आते मैं गिर प़डा. आंखे बंद सी होने लगी

"देव, क्या हो रहा है तुम्हें " रूपा चीख पडी.

"उठो देव उठो " रूपा रोने लगी मेरी हालत देख कर.
"बाबा के पास ले चलो मुझे " टूटती आवाज मे मैने कहा

रूपा ने मुझे सहारा दिया और बोली - अभी ले चलती हूं, तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी मैं, कुछ नहीं होगा तुम्हें
अपना सहारा दिए, मुझे घसीटते हुए रूपा मजार तक ले चली थी. जैसे किसी नल से पानी बहता है ठीक वैसे ही बदन से रक्त बह रहा था, मेरे लिए सब अंधेरा हो चुका था, सांसे जैसे टूट गई थी.

"हम आ गए देव हम आ गए " मुझे बस रूपा की आवाज सुनाई दे रही थी. मैं आंखे खोलना चाहता था पर सब अजीब हो रहा था

"बाबा, बाबा कहाँ हो तुम, देव को जरूरत है तुम्हारी " रूपा पागलों की तरह चीख रही थी. पर उसकी सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

खुले सीने पर कुछ बांध कर वो खून बहना रोकने की कोशिश कर रही थी. बार बार मेरे चेहरे पर मार रही थी.

"आंखे खोल देव आंखे खोल, मैं हूँ तेरे साथ कुछ नहीं होगा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी अपने सरताज को " रूपा बुरी तरह चीख रही थी.

"रूपा, रूपा " मैंने उसके हाथ को कसके पकड़ लिया. बड़ी मुश्किल से मैं उसे देख पाया. आंसुओ मे डूबा उसका चेहरा मेरे दिल को छलनी कर गया. मैं बहुत कुछ कहना चाहता था पर ये अजीब सा वक़्त था.

" क्या करू, कहाँ जाऊँ कोई सुनता क्यों नहीं मेरी
"रूपा बोली

मैंने देखा रूपा के चेहरे के भाव बदलने लगे थे. उसने अपनी आस्तीन ऊपर की और अपने हाथ पर एक चीरा लगाया. ताजा खून की खुशबु हवा मे फैल गई.
"कुछ नहीं होगा तुम्हें ". रूपा ने अपनी आस्तीन मेरे सीने के ऊपर की ही थी कि वो चीखती हुई पीछे की तरफ जा गिरी. एक दिल दहला देने वाली चिंघाड़ हुई. मैं समझ गया कि रूपा को किसने झटका दिया. ये वो ही सर्प था जिसे दुनिया मेरा साथी मानती थी.

सर्प ने मेरे चारो तरफ कुंडली जमा ली और अपनी पीली आँखों से मेरे दिल मे झाँक कर देखा. अगले ही उसकी फुंकार से जैसे आसपास जहर फैल गया.

"ये मर रहा है इसकी जान बचाने दे मुझे " रूपा ने कहा

सर्प ने ना मे गर्दन हिला दी.

रूपा - मैं विनती करती हूं. इसके अलावा कोई चारा नहीं है.

सर्प अपनी जगह से नहीं हिला. रूपा ने मेरे पास आने की कोशिश की पर उसने झपटा मारा रूपा पर.

"तू समझती क्यों नहीं अभी कुछ नहीं किया गया तो प्राण हर लिए जाएंगे इसके " रूपा ने कहा

"इलाज मिल जाएगा तेरी सहायता की जरूरत नहीं " पहली बार वो सर्प मानव भाषा बोला
.
रूपा -ठीक है, तो कर इसका इलाज पर याद रखना इसकी एक एक साँस की कीमत है इसे कुछ हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, चाहे तू हो या कोई. महादेव की कसम किसी का मान नहीं रखूंगी मैं. चाहे मुझे मेरे प्राण देने पड़े पर मुसाफिर को जिंदा रहना होगा

"मैंने कहा ना, तेरी जरूरत नहीं, जहां तू खड़ी है वहाँ तुझे आने की इजाजत है किस्मत है तेरी " सर्प ने अभिमान से कहा

रूपा - तू रोक नहीं सकती, तेरी बदनसीबी है

"गुस्ताख, तेरी ये हिम्मत " सर्प ने अपनी पुंछ रूपा के जिस्म पर मारी, रूपा का सर दीवार से टकराया
Zabardast Musafir bhai waqai jaisa aapne kaha hai naya sochne per majboor kar diya kuch lag to raha tha rupa ke baare lekin yaha to pura change hai. I mean kuch shak thaa sarp ka roopa per lekin yaha to sarp ke opposite khadi hui hai aur sarp ka hamla bhi jhel rahi hain. Lekin ek baat to pata chali ki yah sarp ek naagin hain.. Kahi yah dev ki maa to nahi shayad isi liye nagesh ne dev per waar kia hain,
 

Nevil singh

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#42

रूपा - आ चल मेरे साथ

मैं - कहाँ

रूपा - घर

मैं - सच मे

रूपा - सच मे

रूपा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया मैं उसका सहारा लेकर उठा, सीने मैं के दर्द की वज़ह से पैर लडखडाए.
रूपा - क्या हुआ

मैं - कुछ नहीं चल चले

सर्द रात के अंधेरे मे अपनी जाना का हाथ थामे कच्चे रास्ते पर चलना अपने आप मे एक सुख होता है. हमने जल्दी ही वो मोड़ पार किया जहां अक्सर मैं उसे छोड़ कर जाता था. जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे रूपा की पकड़ मेरी कलाई पर मजबूत होते जा रही थी. करीब आधा कोस चलने के बाद मुझे रोशनी दिखने लगी. जल्दी ही हम एक छप्पर के सामने खड़े थे.

"बस यही है मेरा आशियाँ " रूपा ने टूटते लहजे मे कहा.

मैं - महल से कम भी नहीं है जहां मेरी रानी रहती है
वो मुझे अंदर ले आयी. एक चूल्हा था. एक कोने मे बिस्तर प़डा था. पास मे एक कमरा और था. रूपा ने मुझे पानी दिया. मैं बैठ गया.

रूपा - चाय पियेगा

मैं - हाँ

उसने चूल्हा जलाया, बहती ठंड मे धधकता चूल्हा, ऊपर से बर्तन मे उबलती चाय, जिसकी खुशबु ने माहौल बना दिया था. जल्दी ही कप मेरे हाथो मे था

मैं - तू भी ले

वो - तुझे तो मालूम है मुझे दुध पसंद है.

मैं - तेरी मर्जी, पर दिलबर के संग चुस्की लेने का मजा ही अलग है सरकार

रूपा - जानती हूं सनम. मेरे संग तू है और क्या चाहिए. रात दिन बस एक ही ख्याल है मुझे, कभी सोचा नहीं था कि ऐसे कोई. मुसाफिर आएगा जो मुझे यूँ बदल देगा. मेरी जिन्दगी को एक नया रास्ता देगा
.
रूपा ने एक डिब्बे से कुछ मिठाई दी मुझे खाने को.

"बोल कुछ " उसने मुझसे कहा

मैं - क्या बोलू, बस तेरे पहलू मे बैठा रहूं, मुझे अपने आगोश मे छिपा ले, इतनी तमन्ना है जब आंख खुले तो तेरा दीदार हो, नींद आए तो तेरी बाहें हो.

रूपा - कहाँ से सोचता है तू ये बाते,

मैं - तुझे देखते ही अपने आप सीख जाता हूँ

मैं रूपा से बात कर रहा था पर मुझे कुछ होने लगा था. कुछ बेचैनी सी होने लगी थी, जी घबराने लगा जैसे उल्टी गिरेगी.

रूपा - क्या हुआ ठीक तो है ना

मैं - हाँ ठीक हुँ,

ठंडी मे भी मेरे माथे पर पसीना बहने लगा था.

"मुझे जाना होगा सरकार, जल्दी ही मिलूंगा " मैंने कहा

रूपा - क्या हुआ

मैं - एक काम याद आया

मैंने अपना दर्द छुपाते हुए रूपा से कहा.

रूपा - तेरी तबीयत ठीक नहीं लगी मुझे, मैं चलती हूं तेरे साथ

मैं - क्यों परेशान होती है, ऐसी कोई बात नहीं, बस एक काम याद आ गया.

मैं रूपा को परेशान नहीं करना चाहता था.

" फिर भी मोड़ तक आती हूं तेरे साथ. "उसने कहा
हम दोनों वहां से चल पड़े. एक एक कदम भारी हो रहा था मैंने सीने से रिसते खून को अपने कपडे भिगोता महसूस किया. बाबा ने सही कहा था आने वाले दिन बड़े मुश्किल होंगे. मोड़ तक आते आते मैं गिर प़डा. आंखे बंद सी होने लगी

"देव, क्या हो रहा है तुम्हें " रूपा चीख पडी.

"उठो देव उठो " रूपा रोने लगी मेरी हालत देख कर.
"बाबा के पास ले चलो मुझे " टूटती आवाज मे मैने कहा

रूपा ने मुझे सहारा दिया और बोली - अभी ले चलती हूं, तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी मैं, कुछ नहीं होगा तुम्हें
अपना सहारा दिए, मुझे घसीटते हुए रूपा मजार तक ले चली थी. जैसे किसी नल से पानी बहता है ठीक वैसे ही बदन से रक्त बह रहा था, मेरे लिए सब अंधेरा हो चुका था, सांसे जैसे टूट गई थी.

"हम आ गए देव हम आ गए " मुझे बस रूपा की आवाज सुनाई दे रही थी. मैं आंखे खोलना चाहता था पर सब अजीब हो रहा था

"बाबा, बाबा कहाँ हो तुम, देव को जरूरत है तुम्हारी " रूपा पागलों की तरह चीख रही थी. पर उसकी सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

खुले सीने पर कुछ बांध कर वो खून बहना रोकने की कोशिश कर रही थी. बार बार मेरे चेहरे पर मार रही थी.

"आंखे खोल देव आंखे खोल, मैं हूँ तेरे साथ कुछ नहीं होगा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी अपने सरताज को " रूपा बुरी तरह चीख रही थी.

"रूपा, रूपा " मैंने उसके हाथ को कसके पकड़ लिया. बड़ी मुश्किल से मैं उसे देख पाया. आंसुओ मे डूबा उसका चेहरा मेरे दिल को छलनी कर गया. मैं बहुत कुछ कहना चाहता था पर ये अजीब सा वक़्त था.

" क्या करू, कहाँ जाऊँ कोई सुनता क्यों नहीं मेरी
"रूपा बोली

मैंने देखा रूपा के चेहरे के भाव बदलने लगे थे. उसने अपनी आस्तीन ऊपर की और अपने हाथ पर एक चीरा लगाया. ताजा खून की खुशबु हवा मे फैल गई.
"कुछ नहीं होगा तुम्हें ". रूपा ने अपनी आस्तीन मेरे सीने के ऊपर की ही थी कि वो चीखती हुई पीछे की तरफ जा गिरी. एक दिल दहला देने वाली चिंघाड़ हुई. मैं समझ गया कि रूपा को किसने झटका दिया. ये वो ही सर्प था जिसे दुनिया मेरा साथी मानती थी.

सर्प ने मेरे चारो तरफ कुंडली जमा ली और अपनी पीली आँखों से मेरे दिल मे झाँक कर देखा. अगले ही उसकी फुंकार से जैसे आसपास जहर फैल गया.

"ये मर रहा है इसकी जान बचाने दे मुझे " रूपा ने कहा

सर्प ने ना मे गर्दन हिला दी.

रूपा - मैं विनती करती हूं. इसके अलावा कोई चारा नहीं है.

सर्प अपनी जगह से नहीं हिला. रूपा ने मेरे पास आने की कोशिश की पर उसने झपटा मारा रूपा पर.

"तू समझती क्यों नहीं अभी कुछ नहीं किया गया तो प्राण हर लिए जाएंगे इसके " रूपा ने कहा

"इलाज मिल जाएगा तेरी सहायता की जरूरत नहीं " पहली बार वो सर्प मानव भाषा बोला
.
रूपा -ठीक है, तो कर इसका इलाज पर याद रखना इसकी एक एक साँस की कीमत है इसे कुछ हुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, चाहे तू हो या कोई. महादेव की कसम किसी का मान नहीं रखूंगी मैं. चाहे मुझे मेरे प्राण देने पड़े पर मुसाफिर को जिंदा रहना होगा

"मैंने कहा ना, तेरी जरूरत नहीं, जहां तू खड़ी है वहाँ तुझे आने की इजाजत है किस्मत है तेरी " सर्प ने अभिमान से कहा

रूपा - तू रोक नहीं सकती, तेरी बदनसीबी है


"गुस्ताख, तेरी ये हिम्मत " सर्प ने अपनी पुंछ रूपा के जिस्म पर मारी, रूपा का सर दीवार से टकराया
Bahut behtreen update hai dost.
RUPA bhi ataryami nikli aur yeh sarp shayad SHUHASINI hai baaki Musafir bhai jaane.
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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Yahi baat to tum samjh nahi pati, ishq itni aasani se kahan samjh aata hai,
इसलिए..... इसलिए...
ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता। हम आपको मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर है की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो..... :lollypop:
jassi aaj bhi mere dil me hai, ishara samjho
jassi jaisi koi ho bhi nahi sakti.. ... kahin yeh saanpin hi toh jassi nahi :D
 
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Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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wo jarur pichhale janam ki premika hogi ?..kyunki wo dev ki maa bhi nahi hai ,pehle mujhe maa hi lagi thi ...?
Dekho sidhi baat hai...
is kahani mein is tharki dev ki teen premikaye hai.... ek woh roopa, dusri mona aur teesri yeh saanpin ... aur yeh saanpin hi jassi urf thakurain jashpreet hai :D
 
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Dekho sidhi baat hai...
is kahani mein is tharki dev ki teen premikaye hai.... ek woh roopa, dusri mona aur teesri yeh saanpin ... aur yeh saanpin hi jassi urf thakurain jashpreet hai :D
par writer ne kaha tha us kahani se is kahani ka koi lena dena nahi hai ??...ye alag kahani hai ...roopa aur mona ka sahi hai par lagata nahi jaspreet is kahani me hai ?
 
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