#58
बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी .
“झोला दिखाओ मुझे बाबा ” मैंने कहा
बाबा- तेरे मतलब का सामान नहीं है इसमें
मैं- कब तक छुपाओगे बाबा ,
बाबा कुछ नहीं बोला. मैंने हाथ आगे बढाकर झोला ले लिया और खोला पर उसमे वो नहीं था जो मैंने सोचा था बल्कि कुछ ऐसा था जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी .झोले में एक जिंदा दिल फडफडा रहा था . किसी कटे कबूतर जैसा .
“ये तो दिल है बाबा , मैंने सोचा था आपने झोले में नागिन छुपाई है ” मैंने कहा
बाबा- उसे छुपाने की जरुरत नहीं ,
मैं- तो इस दिल का क्या करेंगे, किसका है ये .
बाबा- ये प्रतिकृति है , मुझे लगता है ये कारगर होगा.
मैं- असली उपाय क्या है , नागिन को कैसे रक्तभ्स्म दी जाये.
बाबा- गूढ़ है रक्त्भास्म प्राप्त करना . नागो के नियम जादू के नियम से अलग होते है
मैं- मुझे बस ये जानना है कैसे मिलेगी वो भस्म क्योंकि वही नागिन को प्राणदान दे सकती है .
बाबा- उत्सुकता ठीक है परन्तु अधुरा ज्ञान सदैव हानिकारक होता है मुसाफिर .
मैं- मतलब
बाबा- मतलब ये की मैं आजतक समझ नहीं पाया हूँ की तुम कौन हो अस्तित्व क्या है तुम्हारा, तुम साधारण होकर भी असाधारन हो , तुम्हारे अन्दर जादू नहीं है पर कुछ तो ऐसा है जो असामान्य है , तुम्हारे रक्त को पीकर नागिन के जख्म भरे, वो बेहतर हुई ये बड़ी हैरानी की बात है .
मैं- क्योंकि रक्तभ्स्म मेरे शरीर में है .
बाबा- और क्या ये तुम्हे साधारण लगता है . आखिर क्यों बड़ी आसानी से उस दिव्य भस्म को आत्मसात कर लिया तुमने , कभी सोचा .
मैं- मुझे लगा ऐसा ही होता होगा.
बाबा- रक्त भस्म इसलिए दिव्य है की स्वयं शम्भू के तन पर मली जाती है , शमशान की राख जब महादेव का अभिषेक करती है , तो वो उसका अंग हो जाती है , जिसे स्वयं शम्भू अपने बदन पर स्थान दे तो उसके गुण दिव्य होते है , एक खास वंश के नाग ही उसका तेज झेल पाते है .
मैं- तो क्या मैं नाग हूँ
बाबा- निसंदेह नहीं और यही बात मुझे खटक रही है .
मैं- पर मेरी प्राथमिकता नागिन को बचाना है
बाबा- सीधे शब्दों में मैं कहूँ तो हर दस दिन में यदि वो तुम्हारा खून पीती रहे तो उसे कुछ नहीं होगा.
मैं- पर ये हमेशा का उपाय नहीं है .
बाबा- तो फिर रक्त भस्म ले आओ ,
मैं- कहाँ मिलेगी ये तो बताओ
बाबा- मुझे क्या मालूम , मैं अपनी कोशिश करूँगा तुम अपनी करो . मैं प्रतिकृति को असली की जगह स्थापित करके छलावा कामयाब करने की कोशिश करूँगा.
मैंने झोला वापिस बाबा को दिया. बाबा चला गया और कुछ नए सवाल में उलझा गया मुझे, उसने तो मेरे अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे . मुझे आज मेरी माँ की बड़ी कमी महसूस हो रही थी काश वो होती तो मेरी समस्या यु सुलझा देती . पर वो नहीं थी, दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति होती है माँ, और माँ से मुझे घर की याद आई, नागिन का घर था वो मंदिर जो तोड़ दिया गया था .
“उसे वापिस खोदना होगा. ” मैंने अपने आप से कहा . घर किसी के लिए भी सबसे सुरक्षित होता है , अक्सर घर में ही सबसे चाहती वस्तुए रखी जाती है पर क्या वो हवेली मेरा घर नहीं थी . मेरी माँ सुहासिनी एक बड़ी जादूगरनी थी तो क्या ये मुमकिन नहीं था की मुझे हवेली में कुछ न कुछ मिले जो मेरे काम आ सके. बेशक मैंने वहां न जाने की कसम खाई थी पर नागिन के प्राणों के आगे मेरा अहंकार बहुत तुच्छ था . मैं तुरंत हवेली की तरफ चल दिया.
ये हवेली बाहर से जितना खामोश थी अपने अन्दर उतने ही तूफ़ान छुपाये हुई थी , जितनी बार भी मैं आता था यहाँ पर इसका स्वरूप हर बार बदला हुआ होता था . इस बार यहाँ पर सिर्फ एक ही मंजिल थी . तमाम मोमबतिया बुझी थी , बस एक जल रही थी उस बड़ी सी मेज के ऊपर . मैंने अपनी जैकेट उतारी और वहां गया . हमेशा की तरह गर्म चाय मेरा इंतजार कर रही थी .
“ये मेरा घर है और यहाँ जो भी जादुई अहसास है उसे मेरी बात जरुर माननी होगी ” मैंने सोचा .
मैं- मैं चाहता हूँ की थोड़ी और रौशनी हो जाये.
और तुरंत ही मोमबतिया जल गयी .
मैंने बस हवा में तीर मारा था पर वो तुक्का सही लगा था .
“मैं पहली मंजिल पर जाना चाहता हूँ ” मैंने कहा और सीढिया खुल गयी .
“दूसरी मंजिल ” मैंने कहा . पर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. ये बड़ी हैरानी की बात थी . मैंने फिर दोहराया पर कुछ नहीं हुआ.
“मैं सुहासिनी के कमरे में जाना चाहता हूँ ” इस बार भी कुछ नहीं हुआ.
मैं- मैं मोना के कमरे में जाना चाहता हूँ,
कुछ देर ख़ामोशी छाई रही फिर चर्र्रर्र्र की एक जोर से आवाज आयी मेरी दाई तरफ वाला एक दरवाजा थोडा सा खुल गया था. मुझे बड़ी उत्सुकता हुई दौड़ता हुआ मैं उस कमरे में गया . छोटा सा कमरा था , कुछ खास नहीं था वहां पर दिवार पर कुछ कपडे टंगे थे, दो बैग पड़े थे और मैं जानता था की ये सामान मोना का था . मतलब मोना गायब होने से पहले यहाँ आई थी जरुर. कुछ और खास नहीं मिला तो मैं वापिस आकर कुर्सी पर बैठ गया . मेरे दिमाग में बहुत सवाल थे.
“नागिन क्या तुम यहाँ पर हो , अगर हो तो सामने आओ, हम बात कर सकते है ” मैंने कहा . पर कोई जवाब नहीं आया. शायद वो यहाँ नहीं थी. अचानक से मेरे सीने में दर्द होने लगा. अब तो मुझे आदत सी हो चली थी इसकी पर दर्द तो बस दर्द होता है. न चाहते हुए भी मैं अपनी चीखो पर काबू नहीं रख पाया. मैं कुर्सी से गिर गया और फर्श पर तड़पने लगा. अभी इस दर्द से फारिग हुआ भी नहीं था की दरवाजे पर ऐसी तेज आवाज हुई जैसे की किसी ने कोई बड़ा पत्थर दे मारा हो .
खुद को सँभालते हुए मैं दरवाजे के पास गया उसे खोला और मेरे सामने एक लाश आ गिरी. वो लाश ............. .