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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

Prison_Fetish

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यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नही हैं। इस कहानी में उपयोग की गई सभी फ़ोटो इंटरनेट से ली गई हैं।
 
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Prison_Fetish

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Update 1

केंद्रीय महिला कारागार, मुम्बई।
24 फरवरी,



“नाम बोल…” - काँस्टेबल ने पूछा।

‘बबिता अय्यर..’

“पति का नाम?”

‘कृष्णन अय्यर…’

“उमर कितनी हैं?”

‘थर्टी फाइव..’

बबिता के इतना कहते ही उसने घूरती नजरो से उसकी ओर देखा और चिल्लाते हुए बोली - “हिंदी बोलने में शर्म आ रही हैं तुझे? हाँ।”

बबिता कुछ बोल नही पाई और चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही। काँस्टेबल ने उससे इसी तरह के कुछ और सवाल पूछे और उसकी पूरी जानकारी रजिस्टर में दर्ज कर उस पर उसके साइन करवाये। उसके बाद उसे अगली टेबल पर बैठी काँस्टेबल के पास भेज दिया गया।

अगली टेबल पर जाने के बाद बबिता की हथकड़ी खोल दी गई और उसे उसके सारे गहने व सामान टेबल पर रखने को कहा गया। उसने अपने कान के बूंदे और अंगूठियाँ उतारकर टेबल पर रख दी जिसके बाद उसे आगे खड़ी दो लेडी काँस्टेबल्स के पास जाने को कहा गया। उनमे से एक काँस्टेबल ने बबिता को खींचकर दीवार से सटा दिया और उसकी ऊँचाई की जाँच करने लगी। इसके बाद उसका वजन देखा गया और फिर उसे तलाशी व शारीरिक जाँच के लिए दूसरी काँस्टेबल के सामने खड़ा करवाया गया।

Picsart-24-07-06-20-28-13-319

“चल कपड़े उतार..” - काँस्टेबल ने कहा।

कपड़े उतारने की बात सुनकर बबिता एक पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई लेकिन उसके पास कोई रास्ता नही था। वह एक कैदी के तौर पर जेल के जाँच कक्ष में खड़ी थी और वहाँ का माहौल उसके लिए डर से भरा हुआ था। कमरे में किसी प्रकार की कोई गोपनीयता नही थी। वह जिस जगह पर खड़ी थी, वहाँ पर कमरे में मौजूद सभी महिला पुलिसकर्मी व कैदी औरते उसे सीधे देख सकती थी। उसने थोड़ी हिम्मत की और काँस्टेबल से बोली -

‘मैडम, यहाँ सबके सामने कपड़े कैसे…’

तभी उस काँस्टेबल ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - “ए, क्या रे। सबके सामने कपड़े नही उतार सकती तू। हरामी साली। तेरे पास ऐसा क्या स्पेशल हैं जो हमारे पास नही हैं..😡।”

‘अबे बूब्स देख ना साली के। पूरा पहाड़ है पहाड़।’ - पीछे से एक अन्य काँस्टेबल बोली।

वे लोग उसका मजाक उड़ाने लगी और उस पर हँसने लगी। बबिता मजबूर थी। ना चाहते हुए भी उसे चुप रहना पड़ा और काँस्टेबल के कहने पर अपने कपड़े उतारने पड़े। उसने सबसे पहले अपना टॉप उतारा और फिर एक-एक करके अपना जीन्स, ब्रा और पेंटी भी उतार दी। अब वह पूरी तरह से नग्न थी। बदन पर एक भी कपड़े नही थे। उसका बदन भरा-भूरा व आकर्षक था और उसके बड़े-बड़े सुडौल स्तन गुब्बारो की तरह उसके सीने से लटक रहे थे। उसके कूल्हे उभरे हुए थे और कमर भी बहुत ज्यादा पतली नही थी। शरीर पर वसा का जमाव अधिक था जिसकी वजह से वह और भी ज्यादा सेक्सी लगती थी। काँस्टेबल ने उसे नग्न करवाने के बाद उसकी तलाशी व जाँच शुरू की।

जाँच की शुरुआत उसके बालो से हुई। उसने उसके बालो पर हाथ फेरा और उन्हें बिखेर दिया। उसके बाद उसके मुँह, कान, नाक, गले व गर्दन की जाँच की और फिर उसे दोनों हाथों को ऊपर करने को कहा। बबिता ने जैसे ही अपने दोनों हाथ ऊपर किये, वह काँस्टेबल उसके करीब आई और उसके स्तनों को दबाने लगी।

“ये क्या कर रही है आप?” - बबिता ने झट से उसके हाथों को दूर करते हुए कहा।

‘ऐ, चुपचाप खड़ी रह और हमे अपना काम करने दे।’ - काँस्टेबल ने उसे डाँट लगाई।

बबिता आगे कुछ न बोल सकी और शांत खड़ी रही। उस काँस्टेबल ने उसके स्तनों को अपने हाथो से ऊपर उठाया और उन्हें दबाकर अच्छी तरह से चेक करने लगी। इसके बाद उसने उसे दोनो टाँगे फैलाने को कहा। उसके कहने पर बबिता को अपनी दोनों टाँगे फैलानी पड़ी और वह टाँगे फैलाकर खड़ी हो गई। फिर काँस्टेबल ने अपने हाथों में दस्ताने पहने और उसकी योनि में अपनी ऊँगली डालकर चेक करने लगी कि उसने अपनी योनि में कुछ छुपाया तो नही हैं। बबिता के लिए वह क्षण बहुत ही शर्मिंदगी भरा था और उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसकी इज्जत ही लूट ली हो। काँस्टेबल यही नही रुकी। योनि की जाँच करने के बाद उसने उसे दीवार पर हाथ टिकाकर खड़े करवाया और उसके पीछे के छेद में ऊँगली घुसा दी। उसके लिए अब सब कुछ असहनीय होने लगा था और सहसा ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। इस तरह का व्यवहार किसी भी इंसान को अंदर तक झकझोर देता हैं। उस वक़्त बबिता का वही हाल था। वह एक अच्छे परिवार की पढ़ी-लिखी महिला थी। पति वैज्ञनिक थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। उसका रहन-रहन, पहनावा और बोलचाल का तरीका पूरी तरह से मॉडर्न था।

खैर, शारीरिक जाँच और तलाशी के बाद उसे एक स्लेट दी गई जिस पर उसका नाम, उम्र, अपराध व कैदी नंबर लिखा हुआ था। उसे 2392 कैदी नंबर दिया गया। जाँच के बाद उसने अपने कपड़े पहने और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। चूँकि वह एक अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उसे जेल के कपड़े नही दिए गए। उसकी तस्वीर लेने के बाद उसे कुछ सामान दिया गया जिसमें एक थाली, मग, कंबल, टॉवेल व एक बाल्टी शामिल थी। जाँच प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसे एक तरफ दीवार से सटाकर खड़ा करवाया गया और तब तक खड़ा रखा गया जब तक उसके साथ लाई गई सभी कैदियों की जाँच पूरी नही हो गई।

बबिता के साथ उसी की सोसायटी की छः अन्य महिलाओ को भी जेल लाया गया था। इन आरोपी महिलाओं में अंजली मेहता, दया गढ़ा, रोशन कौर सोढ़ी, कोमल हाथी, माधवी भिड़े और उसकी बेटी सोनालिका भिड़े शामिल थी। इन सभी पर उन्ही की सोसायटी में हुई एक व्यक्ति और उसकी पत्नी की हत्या का आरोप था। एक दिन पहले ही सभी को उनके घरों से गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद अदालत ने किसी को भी जमानत ना देते हुए सभी को 14 दिनों की ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भेजने के आदेश दिए।​
 
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Puja35

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Congratulations🎉 for your story🥰.
It's seems really ❤ amazing story line keep writing ✍️ and gave regular updates on this
And pics and gifs in between your story..
 

Premkumar65

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“नाम बोल…”

‘बबिता अय्यर..’

“पति का नाम?”

‘कृष्णन अय्यर…’

“उमर कितनी हैं?”

‘थर्टी फाइव..’

बबिता के इतना कहते ही उसने घूरती नजरो से उसकी ओर देखा और चिल्लाते हुए बोली - “हिंदी बोलने में शर्म आ रही हैं तुझे? हाँ।”

बबिता कुछ बोल नही पाई और चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही। काँस्टेबल ने उससे इसी तरह के कुछ और सवाल पूछे और उसकी पूरी जानकारी रजिस्टर में दर्ज कर उस पर उसके साइन करवाये। उसके बाद उसे अगली टेबल पर बैठी काँस्टेबल के पास भेज दिया गया।

अगली टेबल पर जाने के बाद बबिता की हथकड़ी खोल दी गई और उसे उसके सारे गहने व सामान टेबल पर रखने को कहा गया। उसने अपने कान के बूंदे और अंगूठियाँ उतारकर टेबल पर रख दी जिसके बाद उसे आगे खड़ी दो लेडी काँस्टेबल्स के पास जाने को कहा गया। उनमे से एक काँस्टेबल ने बबिता को खींचकर दीवार से सटा दिया और उसकी ऊँचाई की जाँच करने लगी। इसके बाद उसका वजन देखा गया और फिर उसे तलाशी व शारीरिक जाँच के लिए दूसरी काँस्टेबल के सामने खड़ा करवाया गया।

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“चल कपड़े उतार..” - काँस्टेबल ने कहा।

कपड़े उतारने की बात सुनकर बबिता एक पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई लेकिन उसके पास कोई रास्ता नही था। वह एक कैदी के तौर पर जेल के जाँच कक्ष में खड़ी थी और वहाँ का माहौल उसके लिए डर से भरा हुआ था। कमरे में किसी प्रकार की कोई गोपनीयता नही थी। वह जिस जगह पर खड़ी थी, वहाँ पर कमरे में मौजूद सभी महिला पुलिसकर्मी व कैदी औरते उसे सीधे देख सकती थी। उसने थोड़ी हिम्मत की और काँस्टेबल से बोली -

‘मैडम, यहाँ सबके सामने कपड़े कैसे…’

तभी उस काँस्टेबल ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - “ए, क्या रे। सबके सामने कपड़े नही उतार सकती तू। हरामी साली। तेरे पास ऐसा क्या स्पेशल हैं जो हमारे पास नही हैं..😡।”

‘अबे बूब्स देख ना साली के। पूरा पहाड़ है पहाड़।’ - पीछे से एक अन्य काँस्टेबल बोली।

वे लोग उसका मजाक उड़ाने लगी और उस पर हँसने लगी। बबिता मजबूर थी। ना चाहते हुए भी उसे चुप रहना पड़ा और काँस्टेबल के कहने पर अपने कपड़े उतारने पड़े। उसने सबसे पहले अपना टॉप उतारा और फिर एक-एक करके अपना जीन्स, ब्रा और पेंटी भी उतार दी। अब वह पूरी तरह से नग्न थी। बदन पर एक भी कपड़े नही थे। उसका बदन भरा-भूरा व आकर्षक था और उसके बड़े-बड़े सुडौल स्तन गुब्बारो की तरह उसके सीने से लटक रहे थे। उसके कूल्हे उभरे हुए थे और कमर भी बहुत ज्यादा पतली नही थी। शरीर पर वसा का जमाव अधिक था जिसकी वजह से वह और भी ज्यादा सेक्सी लगती थी। काँस्टेबल ने उसे नग्न करवाने के बाद उसकी तलाशी व जाँच शुरू की।

जाँच की शुरुआत उसके बालो से हुई। उसने उसके बालो पर हाथ फेरा और उन्हें बिखेर दिया। उसके बाद उसके मुँह, कान, नाक, गले व गर्दन की जाँच की और फिर उसे दोनों हाथों को ऊपर करने को कहा। बबिता ने जैसे ही अपने दोनों हाथ ऊपर किये, वह काँस्टेबल उसके करीब आई और उसके स्तनों को दबाने लगी।

“ये क्या कर रही है आप?” - बबिता ने झट से उसके हाथों को दूर करते हुए कहा।

‘ऐ, चुपचाप खड़ी रह और हमे अपना काम करने दे।’ - काँस्टेबल ने उसे डाँट लगाई।

बबिता आगे कुछ न बोल सकी और शांत खड़ी रही। उस काँस्टेबल ने उसके स्तनों को अपने हाथो से ऊपर उठाया और उन्हें दबाकर अच्छी तरह से चेक करने लगी। इसके बाद उसने उसे दोनो टाँगे फैलाने को कहा। उसके कहने पर बबिता को अपनी दोनों टाँगे फैलानी पड़ी और वह टाँगे फैलाकर खड़ी हो गई। फिर काँस्टेबल ने अपने हाथों में दस्ताने पहने और उसकी योनि में अपनी ऊँगली डालकर चेक करने लगी कि उसने अपनी योनि में कुछ छुपाया तो नही हैं। बबिता के लिए वह क्षण बहुत ही शर्मिंदगी भरा था और उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसकी इज्जत ही लूट ली हो। काँस्टेबल यही नही रुकी। योनि की जाँच करने के बाद उसने उसे दीवार पर हाथ टिकाकर खड़े करवाया और उसके पीछे के छेद में ऊँगली घुसा दी। उसके लिए अब सब कुछ असहनीय होने लगा था और सहसा ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। इस तरह का व्यवहार किसी भी इंसान को अंदर तक झकझोर देता हैं। उस वक़्त बबिता का वही हाल था। वह एक अच्छे परिवार की पढ़ी-लिखी महिला थी। पति वैज्ञनिक थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। उसका रहन-रहन, पहनावा और बोलचाल का तरीका पूरी तरह से मॉडर्न था।

खैर, शारीरिक जाँच और तलाशी के बाद उसे एक स्लेट दी गई जिस पर उसका नाम, उम्र, अपराध व कैदी नंबर लिखा हुआ था। जाँच के बाद उसने अपने कपड़े पहने और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। चूँकि वह एक अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उसे जेल के कपड़े नही दिए गए। उसकी तस्वीर लेने के बाद उसे कुछ सामान दिया गया जिसमें एक थाली, मग, कंबल, टॉवेल व एक बाल्टी शामिल थी। जाँच प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसे एक तरफ दीवार से सटाकर खड़ा करवाया गया और तब तक खड़ा रखा गया जब तक उसके साथ लाई गई सभी कैदियों की जाँच पूरी नही हो गई।

बबिता के साथ उसी की सोसायटी की पाँच अन्य महिलाओ को भी जेल लाया गया था। इन आरोपी महिलाओं में अंजली मेहता, दया गढ़ा, रोशन कौर सोढ़ी, माधवी भिड़े और उसकी बेटी सोनालिका भिड़े शामिल थी। इन सभी पर उन्ही की सोसायटी में हुई एक व्यक्ति की हत्या का आरोप था। एक दिन पहले ही सभी को उनके घरों से गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद अदालत ने किसी को भी जमानत ना देते हुए सभी को जेल भेजने के आदेश दिए।​
Sexy start.
 

Prison_Fetish

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Update 2

बबिता की जाँच के बाद अगली बारी अंजली की थी। हाथो में हथकड़ी और पीले रंग की सलवार पहने अंजली जब पहले नंबर की टेबल के सामने खड़ी हुई तो काँस्टेबल ने सख्त लहजे में उससे पूछा - “नाम?”

‘अंजली मेहता’ - उसने जवाब दिया।

“पति का नाम?”

‘जी...तारक मेहता।’

“उमर कितनी हैं?”

‘छत्तीस साल।’

कुछ और जानकारियाँ पूछने के बाद उस काँस्टेबल ने रजिस्टर पर उसके साइन करवाये और उसे अगली टेबल पर जाने को कहा। प्रक्रिया के तहत अगली टेबल पर उसके गहने उतरवाए गए और सारा सामान जमा करवाया गया और फिर उसकी ऊँचाई व वजन की जाँच कर उसे तलाशी के लिए आगे भेज दिया गया।​

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बबिता की तरह ही काँस्टेबल ने उसे उसके कपड़े उतारने को कहा। वह बबिता की जाँच अपनी आँखों के सामने देख चुकी थी इसलिए उसने किसी तरह की कोई आनाकानी नही की और काँस्टेबल के कहते ही अपने कपड़े उतारने लगी।

उसने सबसे पहले अपना दुपट्टा सीने से हटाया और उसे नीचे जमीन पर रख दिया। फिर अपनी सलवार उतार दी और पजामे का नाड़ा खोलकर उसे भी नीचे सरका दिया। अंदर उसने काले रंग की ब्रा-पैंटी पहन रखी थी और उसमें भी वह कमाल की लग रही थी। फिर एक-एक करके उसने अपनी ब्रा व पैंटी भी उतार दी और पूर्ण नग्न अवस्था मे काँस्टेबल के सामने खड़ी हो गई।

काँस्टेबल ने उसके साथ भी वही प्रक्रिया दोहराई जो उसने बबिता के साथ किया था। उसके बालों से लेकर शरीर के सभी अंगों की जाँच की गई और फिर काँस्टेबल ने उसकी योनि और गाँड़ के छेद में ऊँगली डालकर यह सुनिश्चित किया कि उसने अपने पास कुछ छुपाया तो नही हैं। जब वह इस बात से पूरी तरह से आश्वस्त हो गई तब उसने अंजली को छोड़ा और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। अंजली का कैदी नंबर 2393 था। मगशॉट लेने के बाद उसे जेल का सामान दिया गया और उसे बबिता के साथ ही एक तरफ खड़ा करवा दिया गया।

बबिता और अंजली की जाँच प्रक्रिया सभी के सामने ही की जा रही थी। वहाँ ना तो कोई पर्दा था और ना ही नग्न होने के दौरान अलग कमरे की व्यवस्था थी। उन्हें कमरे में मौजूद महिलाओ के सामने ही नंगा होना पड़ रहा था जो उनके जैसी सभ्य परिवारों की महिलाओं के लिए बेहद ही अपमानजनक व शर्मिंदगी भरी बात थी। बबिता और अंजली ने अपने पतियों के अलावा किसी के भी सामने कभी अपने पूरे कपड़े नही उतारे थे। जेल में आने के बाद पहली बार था जब उन्हें किसी ने पूर्ण नग्न अवस्था मे देखा था। हालाँकि वहाँ पर केवल औरते ही औरते मौजूद थी लेकिन उन महिला पुलिसकर्मियों द्वारा उनके साथ किया जा रहा व्यवहार किसी उत्पीड़न से कम नही था। खैर, वे लोग अब आजाद नही थी और कैद में होने का अर्थ था कि वे जेल स्टॉफ की बातों व जेल के नियमो को मानने के लिए बाध्य थी।

बबिता और अंजली की जाँच के बाद क्रमशः दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू की भी जाँच की गई। उन सभी के कपड़े उतरवाए गए और पूर्ण नग्न अवस्था मे उनकी जाँच की गई। उन पाँचो के लिए भी यह बिल्कुल आसान नही था। दया और माधवी ने उस वक़्त साड़ी पहनी हुई थी जबकि रोशन ने वन पीस वेस्टर्न ड्रेस, कोमल ने ओवरसाइज कुर्ती पजामा तथा सोनू ने जीन्स टॉप पहन रखा था। पाँचो को बारी-बारी से नंगा करवाया गया और उनकी जाँच की गई जिसके बाद उनका मगशॉट लिया गया। उनके घरवाले उनके कपड़ो का बैग जेल में जमा करा चुके थे जिसकी अच्छी तरह से जाँच करने के बाद उनके बैग उन्हें सौंप दिए गए। जाँच की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें जेल का सामान दिया गया और सभी को एक कतार में अंदर वार्ड की तरफ ले जाया गया।​
 
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Puja35

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A nice update 😍 love it
I think u elaborate it properly like in babita case.
Waiting for the next 😍 updates.
 
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Prison_Fetish

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Update 3

जाँच कक्ष से अंदर जाने पर उन सभी को सबसे पहले जेलर के ऑफिस में ले जाया गया। अंदर जाते ही उनकी नजर सामने कुर्सी पर बैठी उस बेहद खूबसूरत सी औरत पर पड़ी जो संभवतः उस जेल की जेलर थी। गोरा-चिट्टा दूध जैसा रंग, तीखे नैन-नक्श और चेहरे पर गजब का निखार उसकी खूबसूरती बयाँ करने के लिए काफी थे। बदन पर मौजूद वर्दी उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी और उसके चेहरे से उसकी उम्र का अंदाजा लगाना लगभग नामुमकिन ही था। वह औरत कोई और नही बल्कि उस जेल की जेलर अदिति चौधरी थी।

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अदिति दिखने में जितनी खूबसूरत थी, वास्तव में उतनी ही अधिक सख़्त और क्रूर महिला थी। जेल में बंद औरतो के लिए वह किसी यमराज से कम नही थी। चाहे 18 साल की लड़की हो या 70 साल की बूढ़ी औरत, उसका रवैया सबके साथ एक जैसा ही होता था।

“मैडम जी। यही हैं गोकुलधाम मर्डर केस वाली औरते।” - उन्हें लेकर आई काँस्टेबल ने कहा।

अदिति उस वक़्त कुछ फाइलें पढ़ रही थी लेकिन उन्हें देखकर उसने फाइलों को एक तरफ रखा और उन लोगो को ध्यान से देखने लगी। उसने उन सातो को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर सोनू से बोली - ‘तू आगे आ..”

सोनू बेहद घबरा गई। जाहिर सी बात थी। वह एक शरीफ और सीधे-सादे परिवार की लड़की थी जिसने अपनी जिंदगी में पहली बार जेल जैसी जगह पर कदम रखा था। वह जेलर के सामने खड़ी थी और उसे जरा भी अंदाजा नही था कि वह उसके साथ क्या करने वाली थी। उसने अपनी माँ माधवी की तरफ देखा और डरते हुए कदम आगे बढ़ा दिए।

“ऐज क्या है तेरी?” - जेलर ने पूछा।

‘ट्वेंटी टू इयर्स..’ - सोनू ने जवाब दिया।

“कॉलेज में है?”

‘जी। लास्ट ईयर चल रहा हैं।’

तभी पीछे से माधवी उत्सुकतावश बोल पड़ी - “टॉपर है मैडम। सांग बाड़ा।”

‘जी मैडम। टॉप…’ - सोनू आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही जेलर ने उसे ऊँगली के इशारे से चुप करा दिया। उसे माधवी का यूँ बीच मे बोलना बिल्कुल पसंद नही आया और वह इतनी सी बात पर गुस्से से आग बबूला हो उठी। वह अपनी कुर्सी से उठकर माधवी के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली - "बीच मे बोलने का बहुत शौक हैं..."

जेलर की आवाज में गुस्सा था और माधवी को एहसास था कि वह उसके साथ कुछ भी कर सकती हैं। डर के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा लेकिन वह एक शब्द भी नही बोल पाई। जेलर उसे कुछ कदम आगे लेकर आई और सोनू के सामने खड़ा करवा दिया।

'तेरी बेटी माल तो एक नंबर हैं। पर इसको चुदाई वुदाई सिखाई है या नही?' - उसने माधवी पर तंज कसते हुए कहा।

किसी भी माँ की तरह माधवी को भी जेलर की यह बात बहुत बुरी लगी। अपनी बेटी के लिए इतनी अपमानजनक बाते भला किस माँ को मंजूर होगी। उसका मन गुस्से से भरा हुआ था लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह जेलर को कुछ बोल नही सकती थी। उसने शर्म के मारे अपना सर नीचे कर लिया और चुपचाप खड़ी रही।

जेलर एक-एक करके बबिता, अंजली, दया, रोशन और कोमल के पास भी गई और उनके साथ आपत्तिजनक हरकते करने लगी। उसने उनके कूल्हों पर हाथ लगाया, उनके स्तनों को दबाया और उनके शरीर को यहाँ-वहाँ छूने लगी। वे लोग उसे ऐसा करने से इंकार तो नही कर पाई लेकिन उनकी असहजता उनके चेहरों पर साफ नजर आ रही थी।

उसके बाद उसने एक-एक करके उन सभी का परिचय लिया और उन्हें कुछ जरूरी हिदायते दी। उसने उन सभी को नियमो का पालन करने, सीनियर कैदियों की बाते मानने, जेल स्टॉफ से बदतमीजी ना करने व कुछ अन्य बातो के लिए सख्त चेतावनी दी और साथ ही यह भी कहा कि यदि वे लोग एक भी नियम तोड़ती हैं तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी। उसके बाद उसने कमरे में मौजूद काँस्टेबल्स से उन सभी को अंदर ले जाने को कहा। जेलर के आदेशानुसार उन लोगो को एक कतार में अंदर सर्कल की ओर ले जाया गया।

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जेलर के ऑफिस से अंदर जाने पर रास्ते के दोनों तरफ ऊँची-ऊँची दीवारे थी। इन्ही दीवारों के कुछ दूर आगे जाते ही एक बड़ा सा गेट था जिसके सामने कुछ बंदूकधारी महिला सिपाही तैनात थी। कैदियों के लिए यही गेट एक तरह से जेल का अंतिम गेट था क्योंकि एक बार अंदर जाने पर किसी भी कैदी को बिना अनुमति के इस गेट से बाहर आने की इजाजत नही होती थी। बबिता और बाकी सभी को गेट से अंदर ले जाया गया। जब वे लोग गेट के दूसरी तरफ पहुँची तो उन्होंने देखा कि दूसरी तरफ भी कुछ महिला पुलिसकर्मी बंदूक और डंडे थामे पहरा दे रही थी। उन लोगो की धड़कने तेज होने लगी और उन्हें घबराहट सी होने लगी थी। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। आखिरकार वे लोग हत्या जैसे संगीन आरोप में जेल में थी और उन्हें ज़रा भी अंदाजा नही था कि आगे उनकी जिंदगी कितनी तकलीफदेय होने वाली थी।

जेल में कैदियों को रखे जाने के लिए दो सर्कल बने हुए थे। इन्ही सर्कलों के भीतर सेल व बैरकों की व्यवस्था थी तथा दोनो सर्कलों की बनावट व क्षमता एक समान थी। गेट से अंदर जाने के बाद उन सातो को सर्कल 1 में ले जाया गया।

“मैडम, ये नई कैदी लोग हैं।” - उन्हें सर्कल तक लेकर गई काँस्टेबल ने सर्कल इंचार्ज मनीषा से कहा।

मनीषा शुक्ला सर्कल 1 की इंचार्ज थी। दिखने में खूबसूरत थी लेकिन स्वभाव से उतनी ही ज्यादा सख्त व क्रूर। वैसे तो जेल में तैनात ज्यादातर महिला पुलिसकर्मी स्वभाव से सख्त व क्रूर ही थी लेकिन कैदियों को ग़ुलाम और नौकर समझने की प्रवत्ति उन्हें और भी ज्यादा अत्याचारी बना देती थी। जेल स्टॉफ की महिलाओं के अंदर कैदियों के प्रति एक अलग ही नफरत थी। उनकी नजर में कैदी औरते इंसान नही बल्कि जानवरो की तरह थी। मनीषा की मानसिकता भी कुछ इसी तरह की थी। उसकी उम्र 50 साल से अधिक थी और वह कई सालों से जेल डिपार्टमेंट में नौकरी कर रही थी।

खैर, बबिता और बाकी औरतो को मनीषा के हवाले कर दिया गया और उन्हें लेकर आई काँस्टेबल्स वहाँ से वापस लौट गई। शाम के पौने पाँच बज चुके थे और सर्कल के अंदर बने मैदान में कैदी औरतो की भारी भीड़ थी। मनीषा ने कुछ लेडी काँस्टेबल्स को अपने पास बुलाया और उन्हें उन सातो को पकड़कर वार्ड नंबर 4 में ले जाने को कहा। उसके कहते ही काँस्टेबल्स उन्हें पकडकर वार्ड नंबर 4 में लेकर गई।

वार्ड के सामने जाने पर एक लोहे का दरवाजा लगा हुआ था। यह दरवाजा केवल लोहे की सलाखों से बना हुआ था जो ठीक वैसा ही था जैसी किसी हवालात की सलाखें होती हैं। दरवाजे के बाहर तैनात सिपाही आसानी से इसके अंदर यानि कोठरियों (सेल) पर नजर रख सकती थी। बबिता और बाकी औरतो को दरवाजे के सामने ले जाकर खड़ा करवाया गया और तब तक खड़ा रखा गया जब तक वार्डन शोभना ठाकुर वहाँ नही आ गई।

मनीषा के बाद उनका अगला सामना हुआ वार्ड 4 की वार्डन शोभना ठाकुर से। दिखने में बेहद खूबसूरत और हट्टे-कट्टे व मजबूत शरीर की मालकिन शोभना पिछले तेरह सालो से इसी जेल में वार्डन के पद पर तैनात थी। वह जेल की सबसे क्रूर वार्डनों में से एक थी जिसे उसके वार्ड की कैदियों का अनुशासनहीनता करना बिल्कुल पसंद नही था। कैदियों के साथ वह जानवरो की तरह बर्ताव करती थी और अपने से बड़ी उम्र की कैदियों के साथ भी मारपीट करने में बिल्कुल संकोच नही करती थी। उन सातो की बुरी किस्मत ही थी कि उन्हें शोभना के वार्ड में भेजा गया था।

शोभना ने उन सभी को ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से देखा और फिर मनीषा से बोली - “कहाँ से लाये है रे इन मालो को? सब की सब टोटा है साली।"

‘अरे वो गोकुलधाम मर्डर केस पढ़ा था ना तूने..” - मनीषा ने कहा।

“हाँ।”

‘उसी केस में आई है।’

“क्या बात कर रही है? एक आदमी को सात औरतो ने मिलकर निपटा दिया। माँ की आँख। ऐ, ठुकाई करता था क्या तुम लोगो की...” - वह उन लोगो पर हँसने लगी और उनका मजाक उड़ाने लगी।

'एक थोड़ी ना हैं। उसकी बीवी को भी निपटाया है।' - मनीषा बोली।

"हाँ तो बराबर है ना। उसको पता चल गया होगा कि उसका पति इन रंडियों को ठोकता है। मर गई बेचारी फोकट में।"

उन सभी के लिए यह सब बहुत ही शर्मिंदगी भरा था लेकिन वे लोग चाहकर भी कुछ नही कर सकती थी। शर्म के मारे उन्होंने अपना सर नीचे कर लिया और शांत खड़ी रही। थोड़ी देर बाद उन्हें वार्ड के अंदर ले जाया गया और शोभना के आदेशानुसर सभी को सेल नंबर 9 में बंद कर दिया गया। वार्ड के भीतर कुल 15 सेल थी और यह पूरी तरह शोभना पर निर्भर था कि वह उन लोगो को किस सेल में रखती हैं। हालाँकि उन लोगो के साथ एक बात अच्छी जरूर हुई कि उन्हें अलग-अलग सेल में ना डालते हुए एक साथ एक ही सेल में रखा गया। उन्हें सेल में डालने के बाद मनीषा और शोभना वहाँ से चली गई और वे लोग अन्य अपराधी महिलाओ के साथ सेल के अंदर कैद हो गई।​
 
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