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Update 4
(सेल नंबर 9)
(सेल नंबर 9)
“आइये आइये…मैडम जी। आइये।” - उन लोगो ने सेल के अंदर कदम रखा ही था कि पुरानी व सीनियर कैदियों ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। उनमे से एक कैदी ने उनके हाथों से उनका सामान छीन लिया और सेल का दरवाजा बंद कर दिया। उन्हें सेल में बंद किये जाने के बाद सेल में ताला नही लगाया गया था क्योंकि शाम के छः बजे तक सभी सेलो के ताले खुले रहते थे और इस दौरान अंडरट्रायल कैदियों को सर्कल परिसर के भीतर ही घूमने और टहलने की इजाजत होती थी।
सेल के अंदर किसी तरह की कोई साधन-सुविधा नही थी। सामने की ओर लोहे ही सलाखें लगी हुई थी जबकि तीन तरफ केवल दीवारे थी। इन्ही सलाखों के बीच मे लोहे का एक दरवाजा बना था जिसमे केवल बाहर से ताला लगाया जा सकता था। सेल के अंदर गर्मी के लिए एक पंखा तथा रोशनी के लिए एक पीले रंग का बल्ब लगा हुआ था। पीने के पानी के लिए एक मटका रखा था जबकि शौच के लिए सेल के अंदर ही एक कोने में टॉयलेट शीट लगी हुई थी। गोपनीयता के लिए टॉयलेट शीट के आसपास छोटी सी दीवार बना दी गई थी। सेल की दीवारो की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नही थी। उनका पेंट उखड़ने लगा था और ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों से दीवारों पर पेंट नही किया गया हो। हालाँकि फर्श अच्छी अवस्था मे थी लेकिन उस पर सोना किसी भी इंसान के लिए बेहद मुश्किल था।
‘ऐ चलो रे तुम सब। नाम बताओ अपने-अपने।’ - सेल की हेड कैदी रेणुका ने उनसे पूछा।
वे लोग बेहद घबराई हुई थी लेकिन एक-दूसरे के साथ ने उनके अंदर थोड़ी हिम्मत पैदा कर रखी थी। रेणुका के पूछने पर उन्होंने अपने-अपने नाम बतायें और फिर उसी जगह पर बैठने लगी। लेकिन यह क्या? वे लोग नीचे बैठ पाती, उससे पहले ही रेणुका ने दया की जाँघ पर एक जोर की लात मारी।
“साली कमिनियो। मैंने बैठने को कहा। कहा बैठने को..”
रेणुका गुस्से से आग बबूला थी। उसका बस चलता तो वह उन्हें जिंदा गाढ़ देती। आखिरकार वह अपनी सेल की हेड जो थी। उसने उन सभी को तब तक खड़े रहने को कहा, जब तक उन्हें बैठने को ना कहा जाये। बबिता और बाकी औरते मजबूर थी। नई जगह थी, नए लोग थे। ना तो उन्हें जेल के नियमो की जानकारी थी और ना ही जेल में रहने का सलीका पता था। भले ही उन पर हत्या का आरोप था लेकिन आखिर वे लोग शरीफ घरो से ही ताल्लुक रखती थी।
डर और घबराहट के मारे उन्हें कुछ समझ नही आ रहा था। सेल में रेणुका के अलावा चार कैदी और भी बंद थी जिनमे नीलिमा (40 वर्ष), प्रमिला (46 वर्ष), रेहाना (46 वर्ष) तथा सुधा (74 वर्ष) शामिल थी। रेणुका चार हत्याओ की आरोपी थी और पिछले छः सालो से जेल में बंद थी। उसे आजीवन कारावास की सजा हुई थी।
रेणुका के अलावा रेहाना और सुधा पर पर भी हत्या का आरोप था जबकि प्रमिला फ्रॉड केस में और नीलिमा ड्रग केस में जेल में कैद थी। रेहाना इसी जेल में हत्या के आरोप में चौदह साल की सजा काट चुकी थी लेकिन रिहा होने के बाद उसने दोबारा हत्या की वारदात को अंजाम दिया और फिर से जेल पहुँच गई। इस बार उसे मरते दम तक जेल में रहने की सजा मिली थी।
रेणुका अपनी सेल की हेड कैदी थी। जेल में प्रत्येक सेल में एक कैदी को हेड बनाया जाता था जो अपनी सेल की अन्य कैदियों पर निगरानी रखने का काम करती थी। हेड कैदी एक तरह से अपनी सेल की बॉस होती थी जो सेल की अन्य कैदियों के साथ जो चाहे वो कर सकती थी। सेल की सभी कैदियों को हेड कैदी की बात मानना जरूरी होता था और ऐसा ना करने पर उन्हें सजा के तौर पर थर्ड डिग्री टॉर्चर तक दिया जाता था। आमतौर पर हेड कैदी उस कैदी को बनाया जाता था जो सेल में सबसे सीनियर हो या शारीरिक रूप से हट्टी-कट्टी व स्वभाव से बेहद सख्त हो।
रेणुका द्वारा दया को लात मारे जाने के बाद वे लोग बहुत ज्यादा डर गई और डर के मारे खड़ी ही रही। रेणुका यही नही रुकी। उसने बबिता के बालों को जोर से पकड़ा और उसे खींचते हुए इधर-उधर घुमाने लगी।
‘आँ...क्या कर रही हैं आप? छोड़ो। आँह।’ - बबिता लगातार अपने आपको छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह असमर्थ थी। बाकी औरते भी रेणुका से बबिता को छोड़ने की विनती करती रही लेकिन उसने किसी की एक नही सुनी। उसने बबिता की गर्दन को हाथो से पकड़ा और उसे घुटनो पर बिठाते हुए उसकी गर्दन को नीचे जमीन पर दबा दिया। बबिता के लिए दर्द असहनीय हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। रेणुका उसे छोड़ने का नाम नही ले रही थी लेकिन तभी पीछे से सुधा ने उसे आवाज लगाई -
“अरे छोड़ दे रेणुका। अभी-अभी तो आई है बेचारी। अब क्या जान लेगी उसकी।”
‘तेरे को पता है ना काकी। मेरी सेल में मेरे से पूछे बिना कोई काम नही होता। और ये साली मेरे बोले बिना बैठ कैसे गई।’ - रेणुका ने गुस्से में कहा।
“उनको थोड़ी पता है कि तू सेल की हेड हैं। धीरे-धीरे पता चल जायेगा। चल अब छोड़ उसको। जो करना है रात में कर लेना।”
रेणुका सुधा की बात को मना नही कर पाई। उसने बबिता को छोड़ दिया और गुस्से में सेल से बाहर निकल गई। उसके साथ ही नीलिमा, प्रमिला और रेहाना भी बाहर चली गई। उनके जाते ही सुधा ने उन सातो को अपने पास बुलाया और बैठने को कहा।
“तुम लोग लगती नही हो अपराधी। कौन से केस में आई हो?” - उसने पूछा।
उसके पूछते ही वे लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लगी। मानो किसी ने उनकी डूबती रग पर हाथ रख दिया हो। हालाँकि सुधा ने उनकी मनोस्थिति भाँप ली और फिर से बोली -
‘घबराओ नही। ये जेल हैं। यहाँ सब किसी ना किसी अपराध में बंद हैं। चलो बताओ। कौन से केस में लाये है तुमको?’
‘जी, मर्डर केस में।’ - अंजली ने जवाब दिया।
‘आप कौन से केस में हो आँटी?’ - बबिता ने पूछा।
‘मैं भी हत्या के केस में ही अंदर हूँ बेटा। अपने बेटे को मारा था मैंने।’
वे लोग स्तब्ध रह गई। आखिर कोई माँ अपने बेटे को कैसे मार सकती हैं? सुधा की आवाज में दर्द था लेकिन उसे अपने किये का कोई पछतावा नही था। वह 74 साल की एक बूढ़ी औरत थी जो अब शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी थी। हालाँकि जेल में उसे किसी तरह की कोई सहूलियत नही थी और उसके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव किया जाता था।
“आपने अपने बेटे को क्यूँ मारा काकी?” - दया ने पूछा।
‘मेरी कहानी फिर कभी बताऊँगी बेटा। खाने का समय होने वाला हैं। अपना सामान रख दो और थाली लेके बाहर चलो।’
सुधा के कहते ही एक तेज सायरन की आवाज आई। यह सायरन खाने के समय का था। शाम के पाँच बज चुके थे और रात के खाने का समय हो चुका था। जेल में कैदियों को रात का खाना पाँच बजे ही दे दिया जाता था। हालाँकि कैदी चाहे तो खाने को सेल में ले जा सकते थे और रात में किसी भी वक़्त खा सकते थे। सायरन के बजते ही बबिता और बाकी औरतो ने अपनी-अपनी थालियाँ उठाई और खाने के लिए अन्य कैदियों के साथ सेल से बाहर चली आई।
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