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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

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Update 4

(सेल नंबर 9)

“आइये आइये…मैडम जी। आइये।” - उन लोगो ने सेल के अंदर कदम रखा ही था कि पुरानी व सीनियर कैदियों ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। उनमे से एक कैदी ने उनके हाथों से उनका सामान छीन लिया और सेल का दरवाजा बंद कर दिया। उन्हें सेल में बंद किये जाने के बाद सेल में ताला नही लगाया गया था क्योंकि शाम के छः बजे तक सभी सेलो के ताले खुले रहते थे और इस दौरान अंडरट्रायल कैदियों को सर्कल परिसर के भीतर ही घूमने और टहलने की इजाजत होती थी।

सेल के अंदर किसी तरह की कोई साधन-सुविधा नही थी। सामने की ओर लोहे ही सलाखें लगी हुई थी जबकि तीन तरफ केवल दीवारे थी। इन्ही सलाखों के बीच मे लोहे का एक दरवाजा बना था जिसमे केवल बाहर से ताला लगाया जा सकता था। सेल के अंदर गर्मी के लिए एक पंखा तथा रोशनी के लिए एक पीले रंग का बल्ब लगा हुआ था। पीने के पानी के लिए एक मटका रखा था जबकि शौच के लिए सेल के अंदर ही एक कोने में टॉयलेट शीट लगी हुई थी। गोपनीयता के लिए टॉयलेट शीट के आसपास छोटी सी दीवार बना दी गई थी। सेल की दीवारो की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नही थी। उनका पेंट उखड़ने लगा था और ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों से दीवारों पर पेंट नही किया गया हो। हालाँकि फर्श अच्छी अवस्था मे थी लेकिन उस पर सोना किसी भी इंसान के लिए बेहद मुश्किल था।

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‘ऐ चलो रे तुम सब। नाम बताओ अपने-अपने।’ - सेल की हेड कैदी रेणुका ने उनसे पूछा।

वे लोग बेहद घबराई हुई थी लेकिन एक-दूसरे के साथ ने उनके अंदर थोड़ी हिम्मत पैदा कर रखी थी। रेणुका के पूछने पर उन्होंने अपने-अपने नाम बतायें और फिर उसी जगह पर बैठने लगी। लेकिन यह क्या? वे लोग नीचे बैठ पाती, उससे पहले ही रेणुका ने दया की जाँघ पर एक जोर की लात मारी।

“साली कमिनियो। मैंने बैठने को कहा। कहा बैठने को..”

रेणुका गुस्से से आग बबूला थी। उसका बस चलता तो वह उन्हें जिंदा गाढ़ देती। आखिरकार वह अपनी सेल की हेड जो थी। उसने उन सभी को तब तक खड़े रहने को कहा, जब तक उन्हें बैठने को ना कहा जाये। बबिता और बाकी औरते मजबूर थी। नई जगह थी, नए लोग थे। ना तो उन्हें जेल के नियमो की जानकारी थी और ना ही जेल में रहने का सलीका पता था। भले ही उन पर हत्या का आरोप था लेकिन आखिर वे लोग शरीफ घरो से ही ताल्लुक रखती थी।

डर और घबराहट के मारे उन्हें कुछ समझ नही आ रहा था। सेल में रेणुका के अलावा चार कैदी और भी बंद थी जिनमे नीलिमा (40 वर्ष), प्रमिला (46 वर्ष), रेहाना (46 वर्ष) तथा सुधा (74 वर्ष) शामिल थी। रेणुका चार हत्याओ की आरोपी थी और पिछले छः सालो से जेल में बंद थी। उसे आजीवन कारावास की सजा हुई थी।

रेणुका के अलावा रेहाना और सुधा पर पर भी हत्या का आरोप था जबकि प्रमिला फ्रॉड केस में और नीलिमा ड्रग केस में जेल में कैद थी। रेहाना इसी जेल में हत्या के आरोप में चौदह साल की सजा काट चुकी थी लेकिन रिहा होने के बाद उसने दोबारा हत्या की वारदात को अंजाम दिया और फिर से जेल पहुँच गई। इस बार उसे मरते दम तक जेल में रहने की सजा मिली थी।

रेणुका अपनी सेल की हेड कैदी थी। जेल में प्रत्येक सेल में एक कैदी को हेड बनाया जाता था जो अपनी सेल की अन्य कैदियों पर निगरानी रखने का काम करती थी। हेड कैदी एक तरह से अपनी सेल की बॉस होती थी जो सेल की अन्य कैदियों के साथ जो चाहे वो कर सकती थी। सेल की सभी कैदियों को हेड कैदी की बात मानना जरूरी होता था और ऐसा ना करने पर उन्हें सजा के तौर पर थर्ड डिग्री टॉर्चर तक दिया जाता था। आमतौर पर हेड कैदी उस कैदी को बनाया जाता था जो सेल में सबसे सीनियर हो या शारीरिक रूप से हट्टी-कट्टी व स्वभाव से बेहद सख्त हो।

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रेणुका द्वारा दया को लात मारे जाने के बाद वे लोग बहुत ज्यादा डर गई और डर के मारे खड़ी ही रही। रेणुका यही नही रुकी। उसने बबिता के बालों को जोर से पकड़ा और उसे खींचते हुए इधर-उधर घुमाने लगी।

‘आँ...क्या कर रही हैं आप? छोड़ो। आँह।’ - बबिता लगातार अपने आपको छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह असमर्थ थी। बाकी औरते भी रेणुका से बबिता को छोड़ने की विनती करती रही लेकिन उसने किसी की एक नही सुनी। उसने बबिता की गर्दन को हाथो से पकड़ा और उसे घुटनो पर बिठाते हुए उसकी गर्दन को नीचे जमीन पर दबा दिया। बबिता के लिए दर्द असहनीय हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। रेणुका उसे छोड़ने का नाम नही ले रही थी लेकिन तभी पीछे से सुधा ने उसे आवाज लगाई -

“अरे छोड़ दे रेणुका। अभी-अभी तो आई है बेचारी। अब क्या जान लेगी उसकी।”

‘तेरे को पता है ना काकी। मेरी सेल में मेरे से पूछे बिना कोई काम नही होता। और ये साली मेरे बोले बिना बैठ कैसे गई।’ - रेणुका ने गुस्से में कहा।

“उनको थोड़ी पता है कि तू सेल की हेड हैं। धीरे-धीरे पता चल जायेगा। चल अब छोड़ उसको। जो करना है रात में कर लेना।”

रेणुका सुधा की बात को मना नही कर पाई। उसने बबिता को छोड़ दिया और गुस्से में सेल से बाहर निकल गई। उसके साथ ही नीलिमा, प्रमिला और रेहाना भी बाहर चली गई। उनके जाते ही सुधा ने उन सातो को अपने पास बुलाया और बैठने को कहा।

“तुम लोग लगती नही हो अपराधी। कौन से केस में आई हो?” - उसने पूछा।

उसके पूछते ही वे लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लगी। मानो किसी ने उनकी डूबती रग पर हाथ रख दिया हो। हालाँकि सुधा ने उनकी मनोस्थिति भाँप ली और फिर से बोली -

‘घबराओ नही। ये जेल हैं। यहाँ सब किसी ना किसी अपराध में बंद हैं। चलो बताओ। कौन से केस में लाये है तुमको?’

‘जी, मर्डर केस में।’ - अंजली ने जवाब दिया।

‘आप कौन से केस में हो आँटी?’ - बबिता ने पूछा।

‘मैं भी हत्या के केस में ही अंदर हूँ बेटा। अपने बेटे को मारा था मैंने।’

वे लोग स्तब्ध रह गई। आखिर कोई माँ अपने बेटे को कैसे मार सकती हैं? सुधा की आवाज में दर्द था लेकिन उसे अपने किये का कोई पछतावा नही था। वह 74 साल की एक बूढ़ी औरत थी जो अब शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी थी। हालाँकि जेल में उसे किसी तरह की कोई सहूलियत नही थी और उसके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव किया जाता था।

“आपने अपने बेटे को क्यूँ मारा काकी?” - दया ने पूछा।

‘मेरी कहानी फिर कभी बताऊँगी बेटा। खाने का समय होने वाला हैं। अपना सामान रख दो और थाली लेके बाहर चलो।’

सुधा के कहते ही एक तेज सायरन की आवाज आई। यह सायरन खाने के समय का था। शाम के पाँच बज चुके थे और रात के खाने का समय हो चुका था। जेल में कैदियों को रात का खाना पाँच बजे ही दे दिया जाता था। हालाँकि कैदी चाहे तो खाने को सेल में ले जा सकते थे और रात में किसी भी वक़्त खा सकते थे। सायरन के बजते ही बबिता और बाकी औरतो ने अपनी-अपनी थालियाँ उठाई और खाने के लिए अन्य कैदियों के साथ सेल से बाहर चली आई।​
 
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Update 5

(खाने का समय)

बाहर मैदान में कैदी औरतो की भारी भीड़ थी। खाने के लिए लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी और औरते लाइन में लगने के लिए धक्का-मुक्की करने से भी पीछे नही हट रही थी।

“हे काय आहे? ऐसे कैसे हम लोग खाना लेंगे?” - माधवी ने टेंशन भरी आवाज में कहा।

‘लेना तो पड़ेगा माधवी भाभी। भूखे तो नही रह सकते ना।’ - अंजली ने कहा।

दया - “हाँ, अंजली भाभी सही कह रही है। खाना तो लेना पड़ेगा।”

मजबूरन वे लोग एक लाइन में जाकर खड़ी हो गई। लाइन लंबी थी और वे लोग किसी को भी नही जानती थी। काफी देर तक लाइन में लगने के बाद उन्हें खाना नसीब हुआ। खाना बाँटने का काम कैदी औरते ही कर रही थी लेकिन खाने की क्वालिटी बहुत ही बेकार थी। कच्चे चावल, जली हुई रोटियाँ, पानी जैसी दाल और अजीब तरह के पत्तो की सब्जियाँ। थाली में खाना पड़ते ही पूरी दाल पानी की तरह थाली में तैरने लगी। खाना देखकर उन्हें खाना खाने का बिल्कुल मन नही हुआ लेकिन भूख की वजह से मजबूर होकर उन्हें वही खाना खाना पड़ा।​

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“आई, मेरा बिल्कुल मन नही कर रहा हैं खाने का।” - सोनू ने कहा।

‘खा ले बेटा, तूने सुबह से कुछ नही खाया हैं। पता नही हमसे कौन सा पाप हो गया है जो ऐसी जगह पर रहना पड़ रहा हैं।’ - माधवी ने उसे ढाँढस बँधाते हुए कहा।

माधवी की बात सुनकर सभी के चेहरों पर मायूसी छा गई लेकिन वे लोग जानती थी कि अब वे लोग ही एक-दूसरे का सहारा थी। सबसे ज्यादा मुश्किल सोनू के लिए थी। मात्र बाईस साल की छोटी सी उम्र में उसे जेल आना पड़ा था। जेल का माहौल बहुत ही खराब था और अपराधी औरतो के बीच मे रहना उनके लिए कतई भी आसान नही था। खैर, जो भी था लेकिन अब वे लोग कैद में थी। वे लोग बाहर के लोगो की तरह आजाद जिंदगी जीने का हक खो चुकी थी। उन्हें जेल में आये हुए एक घंटा भी नही बिता था कि उन्हें घुटन सी महसूस होने लगी थी। जेल की ऊँची-ऊँची दीवारे और दीवारों से पार जाने की लालसा उन्हें बेचैन कर रही थी। बड़ी मुश्किल से उन्होंने जैसे-तैसे खाना खाया और फिर वापस अपनी सेल में चली आई।​
 
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“आइये आइये…मैडम जी। आइये।” - उन लोगो ने सेल के अंदर कदम रखा ही था कि पुरानी व सीनियर कैदियों ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। उनमे से एक कैदी ने उनके हाथों से उनका सामान छीन लिया और सेल का दरवाजा बंद कर दिया। उन्हें सेल में बंद किये जाने के बाद सेल में ताला नही लगाया गया था क्योंकि शाम के छः बजे तक सभी सेलो के ताले खुले रहते थे और इस दौरान अंडरट्रायल कैदियों को सर्कल परिसर के भीतर ही घूमने और टहलने की इजाजत होती थी।

सेल के अंदर किसी तरह की कोई साधन-सुविधा नही थी। सामने की ओर लोहे ही सलाखें लगी हुई थी जबकि तीन तरफ केवल दीवारे थी। इन्ही सलाखों के बीच मे लोहे का एक दरवाजा बना था जिसमे केवल बाहर से ताला लगाया जा सकता था। सेल के अंदर गर्मी के लिए एक पंखा तथा रोशनी के लिए एक पीले रंग का बल्ब लगा हुआ था। पीने के पानी के लिए एक मटका रखा था जबकि शौच के लिए सेल के अंदर ही एक कोने में टॉयलेट शीट लगी हुई थी। गोपनीयता के लिए टॉयलेट शीट के आसपास छोटी सी दीवार बना दी गई थी। सेल की दीवारो की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नही थी। उनका पेंट उखड़ने लगा था और ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों से दीवारों पर पेंट नही किया गया हो। हालाँकि फर्श अच्छी अवस्था मे थी लेकिन उस पर सोना किसी भी इंसान के लिए बेहद मुश्किल था।

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‘ऐ चलो रे तुम सब। नाम बताओ अपने-अपने।’ - सेल में बंद एक सीनियर कैदी रेणुका ने उनसे पूछा।

वे लोग बेहद घबराई हुई थी लेकिन एक-दूसरे के साथ ने उनके अंदर थोड़ी हिम्मत पैदा कर रखी थी। रेणुका के पूछने पर उन्होंने अपने-अपने नाम बतायें और फिर उसी जगह पर बैठने लगी। लेकिन यह क्या? वे लोग नीचे बैठ पाती, उससे पहले ही रेणुका ने दया की जाँघ पर एक जोर की लात मारी।

“साली कमिनियो। मैंने बैठने को कहा। कहा बैठने को..”

रेणुका गुस्से से आग बबूला थी। उसका बस चलता तो वह उन्हें जिंदा गाढ़ देती। आखिरकार वह अपनी सेल की हेड जो थी। उसने उन सभी को तब तक खड़े रहने को कहा, जब तक उन्हें बैठने को ना कहा जाये। बबिता और बाकी औरते मजबूर थी। नई जगह थी, नए लोग थे। ना तो उन्हें जेल के नियमो की जानकारी थी और ना ही जेल में रहने का सलीका पता था। भले ही उन पर हत्या का आरोप था लेकिन आखिर वे लोग शरीफ घरो से ही ताल्लुक रखती थी।

डर और घबराहट के मारे उन्हें कुछ समझ नही आ रहा था। सेल में रेणुका के अलावा चार कैदी और भी बंद थी जिनमे नीलिमा (40 वर्ष), प्रमिला (46 वर्ष), रेहाना (46 वर्ष) तथा सुधा (74 वर्ष) शामिल थी। रेणुका चार हत्याओ की आरोपी थी और पिछले छः सालो से अंडरट्रायल कैदी के तौर पर जेल में बंद थी।

रेणुका के अलावा रेहाना और सुधा पर पर भी हत्या का आरोप था जबकि प्रमिला फ्रॉड केस में और नीलिमा ड्रग केस में जेल में कैद थी। रेहाना इसी जेल में हत्या के आरोप में चौदह साल की सजा काट चुकी थी लेकिन रिहा होने के बाद उसने दोबारा हत्या की वारदात को अंजाम दिया और फिर से जेल पहुँच गई।

रेणुका अपनी सेल की हेड कैदी थी। जेल में प्रत्येक सेल में एक कैदी को हेड बनाया जाता था जो अपनी सेल की अन्य कैदियों पर निगरानी रखने का काम करती थी। हेड कैदी एक तरह से अपनी सेल की बॉस होती थी जो सेल की अन्य कैदियों के साथ जो चाहे वो कर सकती थी। सेल की सभी कैदियों को हेड कैदी की बात मानना जरूरी होता था और ऐसा ना करने पर उन्हें सजा के तौर पर थर्ड डिग्री टॉर्चर तक दिया जाता था। आमतौर पर हेड कैदी उस कैदी को बनाया जाता था जो सेल में सबसे सीनियर हो या शारीरिक रूप से हट्टी-कट्टी व स्वभाव से बेहद सख्त हो।

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रेणुका द्वारा दया को लात मारे जाने के बाद वे लोग बहुत ज्यादा डर गई थी और डर के मारे खड़ी ही रही। रेणुका यही नही रुकी। उसने बबिता के बालों को जोर से पकड़ा और उसे खींचते हुए इधर-उधर घुमाने लगी।

‘आँ...क्या कर रही हैं आप? छोड़ो। आँह।’ - बबिता लगातार अपने आपको छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह असमर्थ थी। बाकी औरते भी रेणुका से बबिता को छोड़ने की विनती करती रही लेकिन उसने किसी की एक नही सुनी। उसने बबिता की गर्दन को हाथो से पकड़ा और उसे घुटनो पर बिठाते हुए उसकी गर्दन को नीचे जमीन पर दबा दिया। बबिता के लिए दर्द असहनीय हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। रेणुका उसे छोड़ने का नाम नही ले रही थी लेकिन तभी पीछे से सुधा ने उसे आवाज लगाई -

“अरे छोड़ दे रेणुका। अभी-अभी तो आई है बेचारी। अब क्या जान लेगी उसकी।”

‘तेरे को पता है ना काकी। मेरी सेल में मेरे से पूछे बिना कोई काम नही होता। और ये साली मेरे बोले बिना बैठ कैसे गई।’ - रेणुका ने गुस्से में कहा।

“उनको थोड़ी पता है कि तू सेल की हेड हैं। धीरे-धीरे पता चल जायेगा। चल अब छोड़ उसको। जो करना है रात में कर लेना।”

रेणुका सुधा की बात को मना नही कर पाई। उसने बबिता को छोड़ दिया और गुस्से में सेल से बाहर निकल गई। उसके साथ ही नीलिमा, प्रमिला और रेहाना भी बाहर चली गई। उनके जाते ही सुधा ने उन सातो को अपने पास बुलाया और बैठने को कहा।

“तुम लोग लगती नही हो अपराधी। कौन से केस में आई हो?” - उसने पूछा।

उसके पूछते ही वे लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लगी। मानो किसी ने उनकी डूबती रग पर हाथ रख दिया हो। हालाँकि सुधा ने उनकी मनोस्थिति भाँप ली और फिर से बोली -

‘घबराओ नही। ये जेल हैं। यहाँ सब किसी ना किसी अपराध में बंद हैं। चलो बताओ। कौन से केस में लाये है तुमको?’

‘जी, मर्डर केस में।’ - अंजली ने जवाब दिया।

‘आप कौन से केस में हो आँटी?’ - बबिता ने पूछा।

‘मैं भी हत्या के केस में ही अंदर हूँ बेटा। अपने बेटे को मारा था मैंने।’

वे लोग स्तब्ध रह गई। आखिर कोई माँ अपने बेटे को कैसे मार सकती हैं? सुधा की आवाज में दर्द था लेकिन उसे अपने किये का कोई पछतावा नही था। वह 74 साल की एक बूढ़ी औरत थी जो अब शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी थी। हालाँकि जेल में उसे किसी तरह की कोई सहूलियत नही थी और उसके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव किया जाता था।

“आपने अपने बेटे को क्यूँ मारा काकी?” - दया ने पूछा।

‘मेरी कहानी फिर कभी बताऊँगी बेटा। खाने का समय होने वाला हैं। अपना सामान रख दो और थाली लेके बाहर चलो।’

सुधा के कहते ही एक तेज सायरन की आवाज आई। यह सायरन खाने के समय का था। शाम के पाँच बज चुके थे और रात के खाने का समय हो चुका था। जेल में कैदियों को रात का खाना पाँच बजे ही दे दिया जाता था। हालाँकि कैदी चाहे तो खाने को सेल में ले जा सकते थे और रात में किसी भी वक़्त खा सकते थे। सायरन के बजते ही बबिता और बाकी औरतो ने अपनी-अपनी थालियाँ उठाई और खाने के लिए अन्य कैदियों के साथ सेल से बाहर चली आई।​
Update 5

बाहर मैदान में कैदी औरतो की भारी भीड़ थी। खाने के लिए लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी और औरते लाइन में लगने के लिए धक्का-मुक्की करने से भी पीछे नही हट रही थी।

“हे काय आहे? ऐसे कैसे हम लोग खाना लेंगे?” - माधवी ने टेंशन भरी आवाज में कहा।

‘लेना तो पड़ेगा माधवी भाभी। भूखे तो नही रह सकते ना।’ - अंजली ने कहा।

दया - “हाँ अंजली भाभी सही कह रही है। खाना तो लेना पड़ेगा।”

मजबूरन वे लोग एक लाइन में जाकर खड़ी हो गई। लाइन लंबी थी और वे लोग किसी को भी नही जानते थे। काफी देर तक लाइन में लगने के बाद उन्हें खाना नसीब हुआ। खाना बाँटने का काम कैदी औरते ही कर रही थी लेकिन खाने की क्वालिटी बहुत ही बेकार थी। कच्चे चावल, जली हुई रोटियाँ, पानी जैसी दाल और अजीब तरह के पत्तो की सब्जियाँ। थाली में खाना पड़ते ही पूरी दाल पानी की तरह थाली में तैरने लगी। खाना देखकर उन्हें खाना खाने का बिल्कुल मन नही हुआ लेकिन भूख की वजह से मजबूर होकर उन्हें वही खाना खाना पड़ा।​

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“आई, मेरा बिल्कुल मन नही कर रहा हैं खाने का।” - सोनू ने कहा।

‘खा ले बेटा, तूने सुबह से कुछ नही खाया हैं। पता नही हमसे कौन सा पाप हो गया है जो ऐसी जगह पर रहना पड़ रहा हैं।’ - माधवी ने उसे ढाँढस बँधाते हुए कहा।

माधवी की बात सुनकर सभी के चेहरों पर मायूसी छा गई लेकिन वे लोग जानती थी कि जेल में एक-दूसरे का साथ ही उन्हें हिम्मत दे सकता था। सबसे ज्यादा मुश्किल सोनू के लिए थी। मात्र बाईस साल की छोटी सी उम्र में उसे जेल आना पड़ा था। जेल का माहौल बहुत ही खराब था और अपराधी औरतो के बीच मे रहना उनके लिए कतई भी आसान नही था। खैर, जो भी था लेकिन अब वे लोग कैद में थी। वे लोग बाहर के लोगो की तरह आजाद जिंदगी जीने का हक खो चुकी थी। उन्हें जेल में आये हुए एक घंटा भी नही बिता था कि उन्हें घुटन सी महसूस होने लगी थी। जेल की ऊँची-ऊँची दीवारे और दीवारों से पार जाने की लालसा उन्हें बेचैन कर रही थी। बड़ी मुश्किल से उन्होंने जैसे-तैसे खाना खाया और फिर वापस अपनी सेल में चली आई।​
Shaandaar update
 

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(सेल में बंद और रात की हाजिरी)

शाम के पौने छः बज चुके थे और सभी कैदी अपनी-अपनी सेलो में वापस आने लगी थी। बबिता और बाकी औरते तो पहले ही सेल में आ चुकी थी जबकि रेणुका, नीलिमा, प्रमिला, रेहाना और सुधा भी सेल में आ गई थी। उन पाँचो ने अपना खाना सेल में ही ला लिया था। शाम के छः बजते ही जेल में एक और सायरन बजा जिसके बजते ही महिला सिपाहियों ने सभी सेलो में ताले लगाने शुरू कर दिए और कुछ ही देर में जेल की प्रत्येक सेल व बैरक में ताले जड़ दिए गए।​

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“ऐ, अप्सरा टॉकीज़। अभी वार्डन मैडम आएगी हाजिरी लेने को। इधर खड़े रहने का।” - रेणुका ने उन सातो से कहा।

जेल में दिन में दो बार गिनती की जाती थी। पहली सुबह प्रार्थना के दौरान तथा दूसरी शाम को कैदियों को सेलो में बंद किये जाने के बाद। उन लोगो को बहुत ज्यादा इंतजार नही करना पड़ा और कुछ देर बाद ही वार्डन कुछ महिला सिपाहियों के साथ कैदियों की गिनती करने पहुँच गई।

‘‘रेणुका…’’ - वार्डन ने नाम पुकारा।

‘यस मैडम।’’

“नीलिमा…प्रमिला…रेहाना…सुधा…”​

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इन पाँचो के नाम पुकारे जाने के बाद बबिता का नाम पुकारा गया और उसके बाद बारी-बारी से अंजली, दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू का नाम लिया गया। हाजिरी लेते समय वार्डन उन सातो को ध्यान से देखती रही। ना जाने उसके मन मे क्या चल रहा था लेकिन वह उन्हें ऐसे देख रही थी जैसे मानो उन्हें कच्चा चबा जाएगी। जब वार्ड की सभी कैदियों की गिनती पूरी हो गई, उसके बाद वार्डन तथा वार्ड के भीतर पहरा दे रही सभी काँस्टेबल्स वहाँ से बाहर चली गई और वार्ड के दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया गया। सभी कैदी सुबह के पाँच बजे तक सेलो व बैरकों में बंद हो चुकी थी और किसी को भी बाहर निकलने की इजाजत नही थी।​
 
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Update 7

वे सातो अब तक उन्ही कपड़ो में थी जिनमे उन्हें जेल लाया गया था। गिरफ्तारी के बाद से ना तो उन्होंने नहाया था और ना ही कपड़े बदले थे। शाम को जब उनकी सेल में ताला लगा दिया गया तब उन्होंने अपने कपड़े बदले और नाइट ड्रेस पहनी।

सेल में किसी तरह की कोई गोपनीयता नही थी। कैदियों को अन्य कैदियों के सामने ही अपने कपड़े बदलने पड़ते थे। जो औरते काफी समय से जेल में कैद थी, उन्हें इस चीज की आदत हो चुकी थी लेकिन उन सातो के लिए यह बहुत ही असहजतापूर्ण था। उस छोटी सी सेल में इतनी भी जगह नही थी कि वे लोग आसानी से अपने कपड़े बदल पाये। उन्होंने अपने कपड़े तो बदले लेकिन उनके लिए यह बेहद मुश्किल था।

उनके कपड़े बदलने के दौरान सेल की सीनियर औरते उन पर गंदी-गंदी फब्तियाँ कसने लगी और उन्हें रंडी, छिनाल, कुतिया और ना जाने क्या-क्या कहने लगी। एक ही सेल में रहते हुए उनकी बातों को नजरअंदाज करना आसान नही था लेकिन फिर भी उन सातो ने काफी देर तक उनकी बातों पर ध्यान नही दिया। उनके कपड़े बदलते ही हेड कैदी रेणुका अपनी जगह से उठी और उनके पास आकर बोली - “चलो महारानियो, खड़े हो जाओ और कपड़े उतारो अपने-अपने..”

वे लोग थोड़ी देर के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई और एक-दूसरे की तरफ देखती रही। फिर कोमल ने एकाएक रेणुका से कहा - “कपड़े क्यूँ उतारे हम?”

‘साली मादरचोद। मेरे से ज़बान लड़ाएगी।’ - रेणुका गुस्से से लाल हो चुकी थी और उसे कोमल का जोर से बोलना इतना बुरा लगा कि उसने कोमल को अपनी तरफ खींचकर उसकी पीठ पर दो बार कोहनी से वार किया। कोमल दर्द के मारे चीखने लगी। बबीता और बाकी औरते अपनी आँखों के सामने यह सब देख रही थी और कोमल को पिटता देखकर वे लोग उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ी। उन्होंने रेणुका का हाथ पकड़ लिया और उसके साथ ही धक्का-मुक्की करने लगी। धीरे-धीरे उनका झगड़ा बढ़ने लगा जिसे देखकर अन्य सेलो की कैदी औरते शोर मचाने लगी। कैदियों का शोर सुनकर बाहर तैनात काँस्टेबल्स और वार्डन दौड़ी-दौड़ी वार्ड में आई और उनकी सेल का ताला खोलकर उनका झगड़ा शांत करवाया।

“ऐ, क्या हो रहा है ये?” - वार्डन शोभना ने पूछा।

‘मैडम, मैंने इनको कपड़े उतारने बोली तो ये साली मारपीट पे आ गई।’ - रेणुका ने बताया।

रेणुका की बात सुनकर शोभना उनके करीब आई और उन सबके चेहरों पर अपने डंडे को घुमाते हुए बड़े प्यार से बोली - “जेल में आये हुए एक दिन भी नही हुआ और मारपीट करने लगी हो।”

‘मैडम, हमारी कोई गलती नही हैं। हम जब से आये हैं, तब से ये लोग हमें परेशान कर रहे हैं।’ - बबिता ने रेणुका की शिकायत करते हुए कहा।

वार्डन - “ये तो गलत बात हैं ना रेणुका। देख। बेचारी शरीफ घरो की औरते हैं। अब तू ऐसे सीधे कपड़े उतारने बोलेगी तो कैसे उतारेगी। बता।”

रेणुका - ‘जी मैडम।’

वार्डन - “लेकिन मेरी बात को मना नही करेगी। देखना है तुझे?”

इतना कहकर उसने उन सातो की ओर देखा और बोली - ‘उतारो कपड़े..’

“जी?” - बबिता आश्चर्य भरी नजरों से उसकी ओर देखते हुए बोली।

बबिता ने इतना कहा ही था कि वार्डन ने अपने पास पड़ा डंडा उठाया और उसकी जांघो पर दे मारा। उसने बबिता और बाकी सभी को दो-तीन बार तेज डंडे मारे और फिर बबिता की गर्दन पकड़ते हुए बोली -

‘साली हरामजादियो, मैडम ने समझाया था ना कि इधर सीनियरों की किसी भी बात को मना नही करते। जेल को अपने बाप का घर समझ रखा हैं क्या साली छिनालो।’

उसने गुस्से में आगे कहा - “चलो, ज्यादा नाटक नही। दो मिनट का टाइम दे रही हूँ। दो मिनट में तूम लोग नंगी नही हुई तो माँ कसम, आज तुम्हारी गाँड़ मारके रख दूँगी।”

जाहिर सी बात थी। उसकी चेतावनी से उनकी घबराहट बढ़ने लगी थी और वे लोग अपने कपड़े उतारने को मजबूर हो गई। उन सातो ने एक साथ अपने कपड़े उतारने शुरू किये और दया ने अपनी साड़ी व बाकी सभी ने अपनी नाइट ड्रेस उतार दी। वे लोग अब ब्रा व पैंटी में वार्डन के सामने खड़ी थी।
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वार्डन शोभना उनके करीब आई और बबिता को पैंटी से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। उसके होंठ बबिता के होंठो के ठीक सामने थे और दोनों की छाती एक-दूसरे की छाती से टकराने को आतुर थी। बबिता कुछ समझ पाती, उससे पहले ही शोभना ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और एकाएक उसके होठो पर किस करने लगी। यह दृश्य देखकर बाकी सभी ने शर्म के मारे अपना सर नीचे कर लिया और चेहरे को दूसरी तरफ घुमा लिया। हालाँकि बबिता मजबूर थी और वह शोभना को ऐसा करने से इंकार नही कर सकती थी।

शोभना ने पुलिस की साड़ी पहन रखी थी जबकि बबिता ब्रा-पैंटी में थी। किस करते हुए ही उसने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया और बबिता के बूब्स पर अपने बूब्स को रगड़ने लगी। शोभना के स्तन भी बबिता की तरह ही बड़े-बड़े व सुडौल थे। धीरे-धीरे वह बबिता के बदन को अपने हाथों से सहलाने लगी और उसकी ब्रा व पैंटी उतार दी। बबिता अब पूरी तरह से नग्न हो चुकी थी। शोभना ने अपना एक हाथ उसकी योनि पर रखा और दूसरे हाथ से उसके बूब्स को दबाने लगी।

उस सेल में बबिता और शोभना के अलावा उस वक़्त 11 कैदी और कुछ महिला काँस्टेबल्स भी मौजूद थी जो अपनी आँखों के सामने सब कुछ देख रही थी। उन लोगो के लिए यह सब बिल्कुल सामान्य बात थी लेकिन बबिता सहित गोकुलधाम सोसायटी की सातो महिलाओं के लिए यह बहुत ही गंदा काम था। वे लोग सभ्य परिवारो व सोसायटी से थी लेकिन जेल की दुनिया बाहरी दुनिया से पूरी तरह अलग थी।

शोभना ने बबिता की वजाइना को अपनी ऊँगली से सहलाना शुरू कर दिया जिस वजह से उसके अंदर भी अब उत्तेजना पैदा होने लगी थी। बबिता की आंखे चढ़ने लगी और वह सेक्स के नशे में डूबने लगी। उस वक़्त उसे किसी मर्द की सख्त जरूरत थी जो अपने लिंग के प्रकोप से उसे यौन सुख का आनंद दे सके। मगर वह एक महिला जेल में कैद थी जहाँ दूर-दूर तक कोई मर्द नही था। उसके आसपास केवल और केवल महिलाएँ ही मौजूद थी।

शोभना उसे दीवार के पास से खींचकर सलाखों के पास ले आई और उसे आगे की ओर झुकाकर उसके दोनों हाथों को हथकड़ी से सलाखों में बाँध दिया। बबिता किसी कुतिया की तरह आगे झुककर बँधी हुई थी और फिर शोभना ने अंजली व गोकुलधाम सोसायटी की बाकी औरते को एक-एक कर उसकी चूत चाटने को कहा।

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शोभना की बात सुनकर वे लोग दंग रह गई। आखिर भला वार्डन उनके साथ ऐसा कैसे कर सकती थी। छि! कितना गंदा है यह। एक औरत हमेशा एक आदमी की ओर आकर्षित होती हैं और सेक्स के दौरान वह आदमी का लिंग और गाँड़ चाटने से भी पीछे नही रहती। मगर यहाँ तो एक औरत द्वारा दूसरी औरत की चूत चाटने की बात हो रही थी। उन लोगो को यह सब बहुत ही गंदा लग रहा था और उन्हें घिन्न आने लगी थी। वे लोग कोई लेस्बियन तो थी नही जो सब कुछ अपनी इच्छा से कर लेती।

फिर शुरू हुआ उन लोगो से जबरन बबिता की चूत चटवाने का सिलसिला। अंजली आगे आई और बबिता की फैली हुई टाँगों के नीचे बैठकर उसकी वजाइना पर अपनी जीभ टिका दी। बबिता की चिकनी गुलाबी चूत किसी मर्द के लिए स्वर्ग का खजाना होती लेकिन अंजली के लिए वह कोई खास चीज नही थी। आखिर अंजली भी एक औरत ही थी और उसके पास भी वह सब कुछ था जो बबिता के पास था। अंजली के बाद दया, रोशन, कोमल और माधवी ने भी बारी-बारी से बबिता की चूत चाटी और फिर सबसे आखिरी में बारी आई सोनू की।

सोनू के लिए यह आसान नही था। उसने अपनी जिंदगी में पहले कभी भी सेक्स नही किया था और ना ही उसका कोई बॉयफ्रेंड था। बबिता को पूरी तरह नंगी देखकर वैसे ही उसे गंदा महसूस हो रहा था और जब उसे उसकी चूत चाटने के लिए आगे बुलाया गया तो उसे घिन्न आने लगी थी। हालाँकि मजबूरन उसे बबिता की चूत चाटनी पड़ी लेकिन बीच मे उसे कई बार उल्टी जैसे महसूस हुआ।

वार्डन शोभना ने आगे वह किया जिसकी उन लोगो ने कल्पना तक नही की थी। उसने अपना डंडा उठाया और बबिता के पीछे के छेद में घुसा दिया। बबिता दर्द के मारे चीख उठी लेकिन शोभना उसके दर्द की परवाह किये बिना डंडे को लगातार अंदर बाहर करने लगी। बबिता का दर्द अब दर्द के साथ आनंद में बदलने लगा और वह “आँह आँह” की तेज सिसकियाँ लेने लगी। कुछ देर बाद शोभना ने उसकी हथकड़ी खोल दी और उसे बाकी औरतो के साथ एक तरफ खड़ा करवा दिया।

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शोभना ने अंजली, दया, रोशन, कोमल, माधवी और सोनू की भी ब्रा व पैंटी उतरवा दी और उन्हें सेल की उन पाँचो सीनियर कैदियों के हवाले कर वहाँ से चली गई। सुधा को छोड़कर चारो सीनियरों ने उनके साथ काफी देर तक लेस्बियन सेक्स किया और उनकी जमकर रैगिंग की। उन्हें नग्न अवस्था मे ही मुर्गा बनाया गया, एक पैर पर खड़े करवाया गया, उठक-बैठक करवाई गई, दीवार और जमीन पर नाक रगड़वाई गई और कई तरह से प्रताड़ित किया गया। यहाँ तक कि उन्हें एक-दुसरे के स्तनों से दूध पीने के लिए भी मजबूर किया गया।

सबसे ज्यादा शर्मिंदगी माधवी और सोनू को महसूस हो रही थी। एक माँ का अपनी बेटी को और एक बेटी का अपनी माँ को इस तरह प्रताड़ित होते देखना वाकई में बेहद शर्मिंदगी भरा था। एक माँ कभी नही चाहती कि उसकी बेटी के साथ इस तरह का बर्ताव हो लेकिन माधवी चाहकर भी सोनू के लिए कुछ नही कर सकती थी। जेल में आने के बाद उन दोनों में कोई फर्क नही रह गया था। जेल स्टॉफ को इस बात से कोई मतलब नही था कि उन दोनों का आपस मे क्या रिश्ता हैं। उनके लिए वे दोनों केवल कैदी थी और वे लोग उनके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव कर रही थी।

काफी देर तक रैगिंग किये जाने के बाद पाँचो सीनियर कैदियों ने उन्हें अपनी-अपनी सेवा में लगा दिया और उनसे अपने हाथ-पैर दबवाने लगी। बबिता और रोशन को छोड़कर बाकी सभी को सीनियरों की सेवा करनी पड़ रही थी जबकि इस दौरान उन दोनों को जमकर नचवाया गया। वे सातो अब भी पूरी तरह से नंगी थी। सीनियर कैदी उन्हें अपनी स्लेव की तरह उपयोग कर रही थी और उनके शरीर के साथ खेलती जा रही थी। हाथ-पैर दबाते वक़्त वे लोग उनके स्तनों और कूल्हों को दबाने लगी, उनकी योनि के साथ छेड़छाड़ करने लगी और उन्हें अनेक तरह से परेशान करने लगी। इतना सब कुछ होने के बाद भी उन सातो को रोना मना था। यदि उनकी आँखों से आँसू निकलते तो वे लोग उन्हें मारने लगती। जेल की पहली रात ही उनके लिए किसी भयानक सपने की तरह थी जिस पर यकीन करना मुश्किल था कि जो हो रहा था, वह वास्तविक था।

देर रात तक उनके साथ रैगिंग, मारपीट और सेक्स किया गया और आखिरकार रात के साढ़े ग्यारह बजे सीनियरों ने उन्हें परेशान करना बंद किया। उन सातो ने अपने-अपने कपड़े पहने और एक-दूसरे के गले मिलकर रोने लगी। पहली रात ही उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि उनके लिए जेल में रहना कतई भी आसान नही है और जेल में उन्हें कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने सपने में भी नही सोचा था कि जेल में कैदियों के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाता हैं और जेल की दुनिया बाहरी दुनिया से इतनी अलग होती हैं। जो चीजे बाहर की दुनिया मे अपराध थी, वही चीजे जेल में बिल्कुल सामान्य थी। हालाँकि अभी उनका सामना जेल की अन्य कैदियों से बिल्कुल नही हुआ था जिनमे एक से बढ़कर एक अपराधी महिलाएँ शामिल थी।​
 
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Update 8

(जेल की पहली सुबह)

“उठ जाओ रे साली रंडियों। ये जेल हैं। तुम्हारे बाप का घर नही साली हराम की जनियो…” सुबह के पाँच बजते ही वार्डन व कुछ महिला पुलिसकर्मी दनदनाती हुई वार्ड में घुसी और कैदियों पर चिल्लाने लगी। उनका कैदियों को जगाने का तरीका बेहद ही बुरा व असभ्यतापूर्ण था और जो कैदी उनके आने के बाद भी सोती रही, उन्हें उनके लातो व डंडो का स्वाद भी चखना पड़ा।​

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वार्डन के चिल्लाने से बबिता और बाकी सभी की नींद भी खुल गई। वे लोग रात में नीचे फर्श पर ही सोई थी जिस वजह से उन्हें ठीक से नींद भी नही आ पाई। रात भर उनके मन मे अनेक तरह ही चीजे चल रही थी। जेल से बाहर निकलने की बेचैनी और घरवालो की याद ने उन्हें रात भर सोने नही दिया।

‘ऐ, तुम लोगो को अलग से बोलना पड़ेगा क्या? बाहर निकलो।’ - वार्डन ने उन पर चिल्लाते हुए कहा।

वार्डन की डाँट पड़ते ही उन्होंने अपनी चादरे फोल्ड की और नित्यक्रिया के लिए सेल से बाहर आ गई। उन्होंने देखा कि प्रत्येक सेल के ताले खोल दिये गए थे और कैदी औरते अपनी-अपनी सेलो से बाहर निकलने लगी थी। वार्डन कैदियों पर लगातार चिल्लाये जा रही थी और उन्हें डंडे भी मारती जा रही थी। कई औरते वार्डन की मार से बचने के लिए बहुत ही हड़बड़ी में बाहर निकलने लगी। बबिता और बाकी सभी भी, अन्य कैदियों के साथ ही बाहर आ गई।

बाहर शौचालय के लिए कैदी औरतो की लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी। अभी सूरज भी पूरी तरह से नही निकला था लेकिन जेल की दिनचर्या शुरू हो चुकी थी। वे सातो भी शौचालय की एक लाइन में जाकर खड़ी हो गई और काफी देर तक इंतजार करने के बाद उनका नंबर आया। शौचालय की हालत बहुत खराब थी। अंदर बदबू की वजह से साँस लेना भी दूभर था। अंदर एक बाल्टी और मग रखा था जबकि पानी के लिए एक नल की भी सुविधा थी। उनके पास कोई और विकल्प मौजूद नही था जिस वजह से उन्हें मजबूरीवश उसी शौचालय में जाना पड़ा।

शौच के बाद उन्होंने अपने हाथ धोये और वापस अपनी सेल में आ गई। उन लोगो को जेल की तरफ से टूथपेस्ट व ब्रश भी दिया गया था। उन्होंने अपने-अपने ब्रश लिए और दोबारा बाहर आ गई। उन्हें इस बात की कोई जानकारी नही थी कि किस जगह पर ब्रश करना हैं इसलिए बबिता ने वहाँ मौजूद एक काँस्टेबल से पूछा - “मैडम, ब्रश कहाँ करना हैं?”

‘जा, संडास में जाकर कर ले। हरामजादी साली। वो दिख नही रह है तेरे को उधर। चल जा उधर बाथरूम में।’ - उसने चिढ़ते हुए कहा।​

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बबिता को उसका ऐसा बर्ताव बहुत ही बुरा लगा लेकिन वह मन मारकर रह गई और कुछ नही बोल पाई। वे लोग अन्य औरतो के साथ ही बाथरूम में गई और ब्रश किया। हालाँकि बाथरूम में भी कैदियों की बहुत भीड़ थी जिस वजह से उन्हें वहाँ भी काफी इंतजार करना पड़ा। बाथरूम में अन्य कैदी औरते उन्हें तंग करने लगी थी और कई औरते उनके साथ छेड़खानी भी करने लगी। किसी ने उनके कूल्हों पर हाथ मारे तो किसी ने उनके स्तनों को दबाया। किसी ने उन्हें गालियाँ दी तो किसी ने उनके साथ हल्की-फुल्की मारपीट भी की। जेल में यह सब बहुत ही सामान्य बात थी। खासकर नई कैदियों को तो बहुत ज्यादा परेशान किया जाता था और उनकी जमकर रैगिंग की जाती थी।​
 
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Update 9

(व्यायाम)

सुबह के छः बज चुके थे। जेल में अनाउंसमेंट होने लगी कि सभी कैदी व्यायाम के लिए मैदान में चले जायें। जेल का मैदान सर्कल कंपाउंड के बाहर था। सभी कैदियों को बाहर जाते देख वे सातो भी बाहर मैदान में चली गई और व्यायाम के लिए अन्य कैदियों के साथ जाकर खड़ी हो गई।

सभी कैदियों को व्यायाम के लिए एक जगह खड़े करवाया गया था। उनमे से कई अंडरट्रायल कैदी औरते साड़ी में थी तो कइयों ने सलवार पहन रखी थी। ज्यादातर जवान लड़कियाँ या तो शॉर्ट्स में थी या कैपरी व नाइट पजामे पहने हुए थी। उन सातो में केवल दया ही थी जिसने साड़ी पहनी हुई थी जबकि माधवी ने गाऊन और बाकी सभी ने नाइट ड्रेस पहन रखी थी।​

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व्यायाम की शुरुआत कैदी औरतो को दौड़ाने से हुई। सभी कैदियों को एक कतार में मैदान में दौड़ाया जाने लगा। यहाँ तक कि बूढ़ी औरतो को भी नही छोड़ा गया। जिस ट्रैक पर औरते दौड़ रही थी, वहाँ पर कदम-कदम पर महिला सिपाही खड़ी थी और वे लोग कैदियों पर चिल्लाती जा रही थी। उनमे से कुछ महिला सिपाही दौड़ रही औरतो के पिछवाड़े में अपने डंडो को चुभाती जा रही थी और उनके मजे ले रही थी। चूँकि वे सातो जेल में नई कैदी थी इसलिए महिला सिपाहियों ने उनके साथ भी कई बार ऐसा किया। दौड़ने के दौरान बहुत बार उनके पिछवाड़े में डंडे चुभाए गए और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।

कुछ देर तक कैदियों को दौड़ाने के बाद व्यायाम शुरू हुआ। सबसे पहले सभी से दंड बैठक लगवाई गई और फिर तरह-तरह के व्यायाम करवाये गए। ज्यादातर बूढ़ी कैदियों के लिए यह बेहद मुश्किल काम था लेकिन जेल में ना तो 18 साल की लड़कियों को कोई छूट मिलती थी और ना ही 70 साल की बूढ़ी औरतो को। सभी को व्यायाम करना अनिवार्य था।​
 
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