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चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma
"तुम तुम-तुम यहाँ ?'" अपने आँफिस में दाखिल होते युवक को देखकर बैरिस्टर विश्वनाथ चौंक पड़े ।
युवक का चेहरा गम्भीर था बल्कि अगर यह कहा जाये कि उसकी 'नीली' आंखों से हल्की हल्की वेदना झांक रहीं थी तो गलत न होगा, मेज के नजदीक पहुंचकर उसने पूछा…- ""क्या मैं बैठ सकता हू ?"
"तुम अपने ऊपर चल रहे मुकदमे के सिलसिले में ही यहाँ आाए हो न ?" बैरिस्टर विश्वनाथ का स्वर उखडा हुआ था ।
“जी हां ।"
"तब तो हम तुम्हें बैठने के लिए नहीं कह सकते ।"
"क-क्यों ?"' उसने ऐसे स्वर में पूछा जैसे अभी रो देगा ।
“क्योंकि हम सरकारी वकील हैं और सरकारी वकील कोर्ट में मुजरिम की "पैरवी" नहीं करते, बल्कि उनकी पैरवी करने वालों की मुखालफत करते हैं । तुम्हारी पैरवी बचाव पक्ष के सबसे ज्यादा काबिल और खुर्राट माने जाने वाले वकील मिस्टर शहजाद राय कर रहे हैं---अपने मुकदमे से हैं सम्बन्धित जो बातें करना चाहते हो उन्हीं से करो ।"
"उनसे की जा सकने वाली सभी बाते मैं कर चुका हूं ।"
"जवाब में क्या कहा उन्होंने ?"
"राय साहब का कहना है कि सारे सबूत और शहादतें मेरे खिलाफ हैंं---- आपके द्वारा पेश किये गये गवाहों को वे नहीं तोड सकते-उन्होंने साफ लफ्जों में स्वीकार किया है बैरिस्टर साहब कि वे मुझे बचा पाने में असमर्थ हैं ।"
बैरिस्टर विश्वनाथ के होंठों पर ऐसी मुस्कान उभरी जेसी सिर्फ तब उभरती थी जव उनके कान न्यायाधीश के श्रीमुख से अपने पक्ष में सुनाया जाने वाला फैसला सुन रहे होते थे----थ्रोडी गर्वीली मुस्कराहट के साथ उन्होंने बगल वाली कुर्सी पर बैठी अपनी वेटी किरन की तरफ देखा और बोले-तुमने सुना किरन, मिस्टर राय ने अपने मुवक्किल के सामने कबूल कर लिया है कि वे मुकदमा हार रहें हैं ।"
किरन युवक की तरफ देखती हुई बोली…"इन्हे बैठने के लिए तो कहो पापा ।”
"मैं इसे बैठने की इजाजत इसलिए नहीं दे रहा हू वेटी, क्योंकि मुल्जिम का वकील कोर्ट में जब यह महसूस करने लगता है कि वह केस 'लूज' कर रहा है तो मुल्जिम को सलाह देता है कि अगर यह किसी तरह कोर्ट सरकारी वकील को बोलने से रोक सके तो बच सकता है और तुम जानती हो कि तब मुल्जिम सरकारी वकील के मुंह पर नोटों की गड्रिडयां चिपकाने चले जाते हैं ।"
एकाएक थोड़े उत्तेजित स्वर में बोला युवक----कम से कम मैं अपके पास इस मकसद से नहीं अाया हू बैरिस्टर साहब ।"
अब !
बैरिस्टर विश्वनाथ ने चौंककर उसकी तरफ देखा ।
"तुम तुम-तुम यहाँ ?'" अपने आँफिस में दाखिल होते युवक को देखकर बैरिस्टर विश्वनाथ चौंक पड़े ।
युवक का चेहरा गम्भीर था बल्कि अगर यह कहा जाये कि उसकी 'नीली' आंखों से हल्की हल्की वेदना झांक रहीं थी तो गलत न होगा, मेज के नजदीक पहुंचकर उसने पूछा…- ""क्या मैं बैठ सकता हू ?"
"तुम अपने ऊपर चल रहे मुकदमे के सिलसिले में ही यहाँ आाए हो न ?" बैरिस्टर विश्वनाथ का स्वर उखडा हुआ था ।
“जी हां ।"
"तब तो हम तुम्हें बैठने के लिए नहीं कह सकते ।"
"क-क्यों ?"' उसने ऐसे स्वर में पूछा जैसे अभी रो देगा ।
“क्योंकि हम सरकारी वकील हैं और सरकारी वकील कोर्ट में मुजरिम की "पैरवी" नहीं करते, बल्कि उनकी पैरवी करने वालों की मुखालफत करते हैं । तुम्हारी पैरवी बचाव पक्ष के सबसे ज्यादा काबिल और खुर्राट माने जाने वाले वकील मिस्टर शहजाद राय कर रहे हैं---अपने मुकदमे से हैं सम्बन्धित जो बातें करना चाहते हो उन्हीं से करो ।"
"उनसे की जा सकने वाली सभी बाते मैं कर चुका हूं ।"
"जवाब में क्या कहा उन्होंने ?"
"राय साहब का कहना है कि सारे सबूत और शहादतें मेरे खिलाफ हैंं---- आपके द्वारा पेश किये गये गवाहों को वे नहीं तोड सकते-उन्होंने साफ लफ्जों में स्वीकार किया है बैरिस्टर साहब कि वे मुझे बचा पाने में असमर्थ हैं ।"
बैरिस्टर विश्वनाथ के होंठों पर ऐसी मुस्कान उभरी जेसी सिर्फ तब उभरती थी जव उनके कान न्यायाधीश के श्रीमुख से अपने पक्ष में सुनाया जाने वाला फैसला सुन रहे होते थे----थ्रोडी गर्वीली मुस्कराहट के साथ उन्होंने बगल वाली कुर्सी पर बैठी अपनी वेटी किरन की तरफ देखा और बोले-तुमने सुना किरन, मिस्टर राय ने अपने मुवक्किल के सामने कबूल कर लिया है कि वे मुकदमा हार रहें हैं ।"
किरन युवक की तरफ देखती हुई बोली…"इन्हे बैठने के लिए तो कहो पापा ।”
"मैं इसे बैठने की इजाजत इसलिए नहीं दे रहा हू वेटी, क्योंकि मुल्जिम का वकील कोर्ट में जब यह महसूस करने लगता है कि वह केस 'लूज' कर रहा है तो मुल्जिम को सलाह देता है कि अगर यह किसी तरह कोर्ट सरकारी वकील को बोलने से रोक सके तो बच सकता है और तुम जानती हो कि तब मुल्जिम सरकारी वकील के मुंह पर नोटों की गड्रिडयां चिपकाने चले जाते हैं ।"
एकाएक थोड़े उत्तेजित स्वर में बोला युवक----कम से कम मैं अपके पास इस मकसद से नहीं अाया हू बैरिस्टर साहब ।"
अब !
बैरिस्टर विश्वनाथ ने चौंककर उसकी तरफ देखा ।