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Thriller चक्रव्यूह

Rahulp143

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चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

"तुम तुम-तुम यहाँ ?'" अपने आँफिस में दाखिल होते युवक को देखकर बैरिस्टर विश्वनाथ चौंक पड़े ।

युवक का चेहरा गम्भीर था बल्कि अगर यह कहा जाये कि उसकी 'नीली' आंखों से हल्की हल्की वेदना झांक रहीं थी तो गलत न होगा, मेज के नजदीक पहुंचकर उसने पूछा…- ""क्या मैं बैठ सकता हू ?"

"तुम अपने ऊपर चल रहे मुकदमे के सिलसिले में ही यहाँ आाए हो न ?" बैरिस्टर विश्वनाथ का स्वर उखडा हुआ था ।


“जी हां ।"


"तब तो हम तुम्हें बैठने के लिए नहीं कह सकते ।"


"क-क्यों ?"' उसने ऐसे स्वर में पूछा जैसे अभी रो देगा ।


“क्योंकि हम सरकारी वकील हैं और सरकारी वकील कोर्ट में मुजरिम की "पैरवी" नहीं करते, बल्कि उनकी पैरवी करने वालों की मुखालफत करते हैं । तुम्हारी पैरवी बचाव पक्ष के सबसे ज्यादा काबिल और खुर्राट माने जाने वाले वकील मिस्टर शहजाद राय कर रहे हैं---अपने मुकदमे से हैं सम्बन्धित जो बातें करना चाहते हो उन्हीं से करो ।"

"उनसे की जा सकने वाली सभी बाते मैं कर चुका हूं ।"






"जवाब में क्या कहा उन्होंने ?"

"राय साहब का कहना है कि सारे सबूत और शहादतें मेरे खिलाफ हैंं---- आपके द्वारा पेश किये गये गवाहों को वे नहीं तोड सकते-उन्होंने साफ लफ्जों में स्वीकार किया है बैरिस्टर साहब कि वे मुझे बचा पाने में असमर्थ हैं ।"


बैरिस्टर विश्वनाथ के होंठों पर ऐसी मुस्कान उभरी जेसी सिर्फ तब उभरती थी जव उनके कान न्यायाधीश के श्रीमुख से अपने पक्ष में सुनाया जाने वाला फैसला सुन रहे होते थे----थ्रोडी गर्वीली मुस्कराहट के साथ उन्होंने बगल वाली कुर्सी पर बैठी अपनी वेटी किरन की तरफ देखा और बोले-तुमने सुना किरन, मिस्टर राय ने अपने मुवक्किल के सामने कबूल कर लिया है कि वे मुकदमा हार रहें हैं ।"


किरन युवक की तरफ देखती हुई बोली…"इन्हे बैठने के लिए तो कहो पापा ।”


"मैं इसे बैठने की इजाजत इसलिए नहीं दे रहा हू वेटी, क्योंकि मुल्जिम का वकील कोर्ट में जब यह महसूस करने लगता है कि वह केस 'लूज' कर रहा है तो मुल्जिम को सलाह देता है कि अगर यह किसी तरह कोर्ट सरकारी वकील को बोलने से रोक सके तो बच सकता है और तुम जानती हो कि तब मुल्जिम सरकारी वकील के मुंह पर नोटों की गड्रिडयां चिपकाने चले जाते हैं ।"

एकाएक थोड़े उत्तेजित स्वर में बोला युवक----कम से कम मैं अपके पास इस मकसद से नहीं अाया हू बैरिस्टर साहब ।"


अब !


बैरिस्टर विश्वनाथ ने चौंककर उसकी तरफ देखा ।
 

Rahulp143

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कुछ देर पहले तक जो युवक गिड़गिड़ा रहा था वह अचानक उत्तेजित नजर आने लगा, वहुत ध्यान से उसका चेहरा देखते हुए वेरिस्टर विश्वनाथ ने पूछा…“तो क्यों आए हो ? "




कुछ देर पहले तक जो युवक गिड़गिड़ा रहा था वह अचानक उत्तेजित नजर आने लगा, वहुत ध्यान से उसका चेहरा देखते हुए वेरिस्टर विश्वनाथ ने पूछा…“तो क्यों आए हो ? "

"अगर आप बैठने के लिए कहें तो मैं बैठ जाऊं ।"


विश्वनाथ को कहना पड़ा-“बैठो ।"


कानूनी किताबों और अनेक केसों की फाइलों से लदी फ़दी मेज के इस तरफ पडी तीन में से एक कुर्सी के कोने पर बैठ गया युवक…-पहले मेज के पार बैठी किरन के खूबसूरत मुखड़े की तरफ देखा और फिर… नीली अांखें विश्वनाथ के चेहरे पर गड़ा दी---विश्वनाथ और उनकी बेटी …आंखों में सवालिया निशान लिए उसी की तरफ देख रहे थे ।

लम्बी खामोशी के बाद विश्वनाथ ने कहा----" कहो ।"

"क्या मैं सिगरेट पी सकता हू?"


बैरिस्टर विश्वनाथ थोड़े हिचके जरूर मगर फिर जाने क्या सोचकर बोले…"पी लो ।"

""थेंक्यू।” कहने के बाद उसने 'जीन' की जेब से विल्स फिल्टर का मुडा तुड़ा पैकिट निकाला और एक सिगरेट सीधी करके सुलगाने के बाद बोला---" यह 'श्योर' है कि अपनी पत्नी की हत्या के जुर्म में मुझे फांसी होकर रहेगी जिसने कोर्ट की अब तक की कार्यवाही देखी सुनी हेै…हद तो ये है बैरिस्टर साहब कि मैं खुद भी मान चुका हू कि दुनिया की कोई ताकत मुझे फांसी से नहीं बचा सकती मगर-

“मगर ? "

"एक बात कहने का ख्वाहिंशमन्द हूं मैं ।"

"क्या ?"

"यह कि सच्चाई तर्कों से उपर होती है ।” '

"यानि ? "

"सच्चाई ये है कि मैं बेगुनाह हूं !”
" तुमने अपनी बीबी की हत्या नहीं की ?"



मुकम्मल दृढ़ता के साथ कहा युवक ने…-"'बिल्कुल नहीं की । "



"बकवास !" बैरिस्टर विश्वनाथ ने बुरा सा मुह बनाकर कहा…


"कोरी बकवास-हर तर्क चीख चीखकर कह रहा है कि संगीता की हत्या तुम्हीं ने की है ।"



"और मैं कह चुका हूं कि सचाई तर्कों से ऊपर होती !!!!


बैरिस्टर विश्वनाथ की आंखों में झांकता युवक कहता चला गया----“यह जरूरी नहीं कि तर्क हमेशा यही साबित करें जो सच्चाई हो-ऐसा अक्सर होता है कि सच्चाई कुछ और होती है और तर्क कुछ और साबित कर देते हैं ।"


"हम अब भी नहीं समझे ।”


" फार एग्जाम्पिल " युवक ने अपना सिगरेट बाला हाथ आगे किया----"मेरे हाथ में सिगरेट है---अाप तर्कों से यह साबित करने पर अमादा हो जाते हैं कि मेरे हाथ में सिगरेट नहीं है और बहस करने लगते हैं…मैं यह साबित करने के लिए तर्क देने लगता हूं कि मेरे हाथ में सिगरेट है---बुद्धि और तर्क शक्ति में आप मुझसे मीलों आगे हैं, सो अपने तर्कों से मुझे लाजवाब कर देगे---साबित कर देगे कि मेरे हाथ में सिगरेट नहीं है ।”


“इस वक्त भला कैसे साबित हो जाएगा कि तुम्हारे हाथ में सिगरेट नहीं है ?"


"हो जाएगा ।" युवक ने कहा---"मैं खुद कर सकता हू।"


बैरिस्टर विश्वनाथ ने दिलचस्प स्वर में कहा…“करो।"



“आप क्यों मानते हैं कि मेरे हाथ में सिगरेट है ?"



हम अपनी आंखी से देख रहे हैं । "गलत देख रहे हैं अाप ।" युवक अपने एक एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला --"आपकी भली----चंगी आखें आप को धोखा दे रही हैं !"


" कैसे ?"
एकाएक युवक ने किरन से पूछा-"क्या आप भी यह देख रही हैं मिस मेरे हाथ में सिगरेट है ?"


“आँफ़क्रोसं ?" किरन ने दिलचस्प स्वर में कहा ।


_ "मैँ जानना चाहता हूं कैसे ?"


आपनी आंखों से देख रही हूं ।"


"आपकी आंखे धोखा दे रही ।"'


"कैसे ? "


"सिगरेट मेरे हाथ में नहीं बल्कि अंगुलियों में है ।”


किरन हकबका सी गई ।


सकपका बैरिस्टर विश्वनाथ भी गए थे, मगर शीघ्र ही संभलकर बोले---"बात तो एक ही हुई अंगुलियां हाथ का हिस्सा है ।"


"और हाथ जिस्म का हिस्सा है, आपने यह क्यों नहीं कहा कि सिगरेट मेरे जिस्म में है ?"


बैरिस्टर विश्वनाथ अवाक रह गया, जवाब न बन पड़ा उन पर !


युवक कहता चला गया---झेंप मत मिटाइये बैरिस्टर साहब, 'नुक्ता' होने के नाते आप जानते हैं कि जरा सा 'नुक्ता' निकल अाने से कानून की नजर में बात बदल जाती है----हमारी बहस इस "प्योंइंट' पर छिड़ी थी कि सिगरेट हाथ में है या नहीं--- आप कह रहे थे कि है, मैं कह रहा था नहीं है----मेने साबित कर दिया कि सिगरेट मेरी अंगुलियों में है, हाथ में नहीं--खुले दिल से जवाब दीजिये कि अगर यह बहस इसी ढंग से कोर्ट में है होती तो न्यायाधीश यह कहता कि आप ठीक कह रहें है या यह कि मैं ठीक कह रहा हू?”
बैरिस्टर विश्वनाथ को कहना पड़ा-"जज को तुम्हारी बात ज्यादा सटीक लगती ।"


"यानि मैंने साबित कर दिया कि सिगरेट मेरे हाथ में नहीं है, आप दोनों की आंखें धोखा दे रही थीं ?"


"बेशक साबित कर दिया ।”


युवक ने किरन से पूछा…"आप क्या कहती है ?"
"मानती हूं कि तुमने हमेँ गलत साबित कर दिया ।"


"जबकि मैं अभी भी यह साबित कर सकता हूं कि सिगरेट न मेरे हाथ में है, न अगुंलियों में ।"


किरन उछल पडी-“त--तुम यह साबित कर सकते हो?"



"पवके तौर पर ।" युवक ने दृढ़तापूर्वक कहा ।


किरन ने उत्सुक स्वर में पूछा-“कैसे साबित कर सकते हो?”


"करूं बैरिस्टर साहब ?" युवक ने विश्वनाथ की आंखों में झांककर पूछा ।

"एक मिनट ।” बैरिस्टर विश्वनाथ ने हाथ उठाकर उसे रोका, साफ़ जाहिर था कि वे अपने दिमाग पर जोर डालने के कोशिश कर रहे थे और उन्हें इस मुद्रा में देखकर युवक के होंठ होले से मुस्करा उठे, मुस्कान में एक अजीब सा फीकापन था, बोला---"लीजिए, अच्छी तरह सोच लीजिए कि मैं ये बात कैसे साबित कर सकता हूं कि सिगरेट न मेरी अंगुलियों में है, न हाथ में, सिगरेट कहीं और ही है ! " एकाएक बैरिस्टर विश्वनाथ बोले-“सिगरेट तुम्हारी अंगुलियों के बीच में है ।"


“बेशक आप समझ गए कि मैं क्या कहना चाहता हूं !”


"में शब्द का अर्थ है "अंन्दर" ।" विश्वनाथ कहते चले गए---" अगुंलियों का मतलब हुआ अंगुलियों के अन्दर यानी चमडी के अन्दर, वहां जहां खून है, नसें हैं, हड्डियां हैं –

सिगरेट वहां नहीं है लिहाजा यह कहना गलत है र्कि सिगरेट तुम्हारी अंगुलिंयों में है-यह कहना ज्यादा उपयुक्त है कि सिगरेट अंगुलियों के बीच में है ।'"
 

Rahulp143

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“यानि आप मान गए कि सिगरेट मेरी 'अंगुलियों' के बीच में है?”



"नि:सन्देह !"


"जबकि यह गलत है ।"


"क्या मतलब ?" इस बार बैरिस्टर विश्वनाथ भी उछल पड़े ।



"अंगुलियां सोलह होती है बैरिस्टर साहब, सिगरेट उन सोलह अंगुलियों के बीच नहीं हो सकती बल्कि कहना चाहिए कि नहीं है----अर्थात् केवल यह कह देना सही नहीं है कि सिगरेट मेरी अंगुलियों के बीच है बल्कि यह कहना ज्यादा सही है कि मेरे दायें हाथ की कनिष्ठा और तर्जनी अंगुलियों के बीच में है ।"


"तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो ।’" बैरिस्टर विश्वनाथ ने हथियार डाल दिए ।



किरन आंखों में प्रशंसा के भाव लिए युवक को निहारे जा रही थी जबकि युवक अपना मुकम्मल ध्यान बैरिस्टर विश्वनाथ पर कैन्द्रित किए एक…एक शब्द पर जोर देता हुआ कहता चला गया…"जब सिगरेट पर बहस हुई थी तब आप इस बात को सच सान रहे थे कि सिगरेट मेरे हाथ में है---मैंनें तर्क दिया तो आप मानने लगे कि सिगरेट अंगुलियों में है और जब मैंने उससे आगे तर्क दिए तो आपको मानना पड़ा कि सिगरेट अंगुलियों के बीच है… अन्त में मैंने यह साबित कर दिया कि सिगरेट मेरी अंगुलियों के बीच नहीं बल्कि दायें हाथ की तर्जनी और कनिष्ठा के बीच है ।"


बैरिस्टर विश्वनाथ ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा---"तर्कों से अन्त में वही साबित हुआ न जो सच्चाई है?”


"क्या गारन्टी है कि सच्चाई यही है ?"


"मतलब ?"


“जहां तक में तर्क दे चुका हु", वहां से आगे तर्क देने की क्षमता मुझमें नहीं है, आपने नहीं है इसलिए हम इसे सच्चाई मान रहे हैं जबकि किसी अन्य व्यक्ति में मुझसे और आपसे ज्यादा तर्कशक्ति हो सकती है---अपने तर्क से वह पलक झपकते ही साबित कर सकता है कि सच्चाई वह भी नहीं है जिस तक हम पहुंचे हैं-ठीर उसी तरह जेसे अगर मैं तर्क न देता तो अाप इसी को सच्चाई मानते कि सिगरेट मेरे हाथ में है, मानते या नहीं मानते ?"


"बिल्कुल मानते बल्कि कहना चाहिए कि मान रहे थे !"


"जबकि वह सच्चाई नहीं थी ?"


"बेशक नहीं थी ।"


"कहने का मतलब ये कि हर व्यक्ति उस बात को सच्चाई मान लेता है जहां उसके अपने दिमाग की तर्क क्षमता चूक जाती है जबकि वास्तव में वह सच्चाई नहीं होती-मेरे केस में ठीक वैसा ही हुआ है बैरिस्टर साहब, तर्क भले ही कह रहे हो कि मैं हत्यारा हूं मगर हकीकत यह है कि मैंने संगीता की हत्या नहीं की ।”

"बार-बार यह बात कहने के पीछे तुम्हारा मकसद क्या है ? "


"जानता हू कि अगले तीन दिन बाद मेरे केस के फैसले की तारीख है और उस तारीख पर वह तारीख मुकर्रर कर दी जाएगी जिस तारीख पर मुझे फांसी पर चढाया जाना है----" जब यह बात मेरी समझ में आ गई तो दिल से एक 'गुब्बार' सा उठा आपकी और जज साहब को यह जताने का गुब्बार, भले ही मैं खुद को बेगुनाह साबित न कर सका,

भले ही मैं अपनी पत्नी का हत्यारा साबित हो गया, मगर सच्चाई ये है कि मैं हत्यारा नहीं हूं… मैं अपनी मरहूम पत्नी की कसम खाकर कहता हू बैरिस्टर साहब कि मैंने उसे नहीं मारा ।" कहने के साथ उसने सिगरेट का अन्तिम सिरा 'ऐश ट्रे' में मसला और खड़ा हो गया ।


जाने क्या बात थी कि बैरिस्टर विश्वनाथ और उनकी बेटी हकबकाकर रह गए ।


युवक तेजी से दरवाजे की तरफ बढा ।

"ठहरो ।" बैरिस्टर विश्वनाथ कह उठे ।


वह ठिठका ।


चेहरा बुरी तरह भभक रहा था, अंगारे जैसी आंखें उनके चेहरे पर गड़ाकर बोला वह…“जो मुझे कहना था कह चुका हूं अब अाप क्या चाहते हैं मुझसे ?"


"यह सव हमसे कहने से तुम्हें क्या मिला ?"


“सुकून ।"


"सुकून ???"


"मुमकिन है कि कल.........मेरी मौत के बाद, मेरे फांसी पर चढ़ जाने के बाद कोई ऐसा चमत्कार हो जाए जिससे अाप और जज साहब इस नतीजे पर पहुंचे कि वह सब नहीं था जिसे आपने सबूतों, तर्कों, और वक्त के चक्रव्यूह में र्फसकर सच मान लिया था-----उस वक्त आपको यह बात जरूर याद आएगी कि शेखर मल्होत्रा अन्तिम सांस तक अपने बेगुनाह होने की बात कहता रहा था------निश्चित रूप से उस वक्त आपको यह सोचकर अफसोस होगा कि अाप सबूत और शहादतों के चक्रव्यूह में क्यों फंसे रहे----अाज के हालात में मुझे कुछ और तो हासिल हो नहीं सकता-सो, अगर मैं यह सोच सोचकर 'सुकून' महसूस कर रहा हू कि एक न एक दिन आपकी अफसोस जरूर होगा तो क्या गुनाह कर रहा हूं मैं ?"

"नहीं, कोई गुनाह नहीं कर रहे ।"


शेखर, मल्होत्रा नामक युवक ने अजीब स्वर में पूछा--"अब मैं चलू?”


"जज साहब से मिल चुके हो या मिलोगे?"


"मिलूंगा ।"


“यह जानते बूझते कि तुम्हारी बातों को वे बकवास समझेंगे? "
 

Rahul

Kingkong
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:congrats:bhai novel suru karne ke liye magar mai isko pahle kiran ji ki thread par padh chuka hun xp par par yahan aapne suruaat kiya bahut bahut bhadhai aapko:flowers:
 
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Riyansh

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:congrats: for new thread...
 
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Rahulp143

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शेखर मल्होत्रा चला गया ।


आँफिस में छोड़ गया सन्नाटा ।


डायमंड की धार जैसा पैना और कलेजे को चीरकर रख देने वाला सन्नाटा ।



काफी देर तक न तो बैरिस्टर विश्वनाथ के मुंह से कोई लफ़्ज निकल सका, न किरन के-----दोंनों अपनी-अपनी सोचों में गुम थे ।


एकाएक किरन ने सन्नाटे का भेजा उडा दिया----" केस से "कनेक्टिड' फाइल कहाँ है पापा ?"



"क-क्यों ?" विश्वनाथ बुरी तरह चौंककर उसकी तरफ पलटे-----"तुम क्यों पूछ रही हो ---- "मैं उसे पढ़ना चाहती हू ।"



"वजह ?"



"" देखना चाहती हूं कि ये मामला क्या है ?"



"सारे मामले को संक्षेप में यूं बयान किया जा सकता है कि- अपनी बीबी की दौलत हड़पने के लिए शेखर मल्डोत्रा ने उसकी हत्या कर दी !"


"दौलत हड़पने के लिए ?"


"संगीता के पिता यानि गुलाब चन्द जैन हमारे अच्छे दोस्त थे-----संगीता उनकी इकेलीती बेटी थी और उसने गुलाब चन्द की इच्छा के विरुद्ध जाकर शेखर मल्होत्रा से 'लव-मैरिज' की थी-गुलाब चन्द ने शेखर मल्होत्रा को कभी पसन्द नहीं किया-----वे अक्सर कहा करते थे कि देख लेना विश्वनाथ, एक दिन मैं रहस्यमय परिस्थितियों में मरा पाया जाऊंगा और अगर ऐसा हो जाए तो समझ जाना कि दौलत की खातिर मेरी हत्या मेरे दामाद ने की है-----तुम उसका पर्दाफाश करके मेरी बेटी की आंखें खोल देना----गुलाब चन्द की मौत संगीता की मौत से केवल तीन महीने पेहले सचमुच रहस्यमय परिस्थितियों में हुई । हिल एरिया में कार ड्राइव करता मरा था वह------दुर्घटना की जांच करने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि नशे की ज्यादती की वजह से गुलाब चन्द अपनी फियेट सहित सैकडों फूट गहरी खाई में जा गिरा----यानि पुलिस ने उसे दुर्घटना ही माना पर हमे आज़ भी रह-रहकर गुलाब चन्द के शब्द याद जाते और लगता है कि यह दुर्घटना नहीं, बल्कि शेखर द्वारा किया गया मर्डर था------हम चाहकर ही कुछ न कर सके और फिर इसने संगीता की भी हत्या कर दी लेकिन झूठ की हांडी रोज नहीं चढ़ती---संयगता का मर्डर करता वह घर के तीन नौकरों द्वारा रंगे हाथों पकड़ लिया गया-नौकरों के नाम बुन्दू निक्के और रधिया हैं ।"


किरन ने बडी गहरी नजरों से अपने पापा की तरफ देखा और बोली-----आपके हवाई ख्यालों के मुताबिक शेखर मल्होत्रा अपके दोस्त और उसकी बेटी का हत्यारा है, कहीं यही वजह तो नहीं है पापा कि अाप उसके द्वारा कही गई

किरन ने बडी गहरी नजरों से अपने पापा की तरफ देखा और बोली-----आपके हवाई ख्यालों के मुताबिक शेखर मल्होत्रा अपके दोस्त और उसकी बेटी का हत्यारा है, कहीं यही वजह तो नहीं है पापा कि अाप उसके द्वारा कही गई -----------------
बातों को रत्ती भर भी महत्व नहीं दे रहे है"'
"तुम भी महत्व मत दो, वे बात महत्व दी जाने लायक हैं ही नहीं ।"



“क्यों ?"


"क्योंकि वे एक मुजरिम के मुंह से निकली हैं, हर मुजरिम अपने अन्तिम समय तक यहीं कहता रहता है कि वह बेगुनाह है और फिर शेखर मल्होत्रा तो एक ऐसा मुजरिम है जिसे यकीन हो चुका है कि उसे फांसी होने वाली है-----जो कुछ उसने कहा वह उसकी हताशा से ज्यादा कुछ नहीं था ।"



मुकम्मल दृढ़ता के साथ कहा किरन ने-----" मैं आपकी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती ।"


बैरिस्टर विश्वनाथ अपने एक----एक शब्द पर जोर देते हुए उसे समझाने वाले अन्दाज में बोले…“तुम्हें हमने एल. एल. एम. कराया, एडवोकेट की डिग्री दिलवाई, अनुभव 'गेन' करने के लिए साथ बैठाना शुरू किया, इस यत्न से तुम्हें यह शिक्षा लेनी चाहिए कि एक हताश और पूरी तरह कानून की गिरफ्त में फंस चुका मुजरिंम कितने व वजनदार ढंग से लोगों को विवश कर सकता है ।"



"अगर मैं यह कहूं कि अाप अपने अनुभवों की वजह से पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं तो ?"



" क्या मतलब ?"


"आप जानते हैं कि खुद को बचाने के लिए प्रत्येक मुजरिम अंतिम समय तक खुद को बेगुनाह बताता रहता -------आप मानते हैं कि तर्क, बहस, सबूत और शहादतें हमेशा वही साबित कराती हैं जो सच होता है -------आपके दिलो-दिमाग में यह बात बैठी हुई है पापा कि झूठ कभी साबित नहीं हो सकता ---इन्ही सब पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर एक क्षण के लिए भी आप मुलजिम के हक में सोचना तक नहीं चाहते बल्कि उससे भी ऊपर की स्थिति ये है कि मेरी तरह अगर कोई हक में सोचने की चेष्टा करता भी है तो आप उसे बेवकूफ़, मूर्ख और प्रभावित हो जाने वाले की संज्ञा देते है ।"



"कहना क्या चाहती हो तुम ?"
 
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