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Thriller चक्रव्यूह

Rahulp143

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"सिर्फ इतना कि जो कुछ मल्होत्रा ने कहा अगर उसकी जांच कर ली जाए तो क्या बुराई है ?"


"कैसे जांच करना चाहती हो ?"


" इस केस की फाइल पढ़कर, सारे मामले की "इन्वेस्टीगेशन करके ।"


"जिस केस में से शहजाद राय जैसा काइयां एडवोकेट कुछ नहीं निकाल सका उसमें से तुम भला क्या निकाल लोगी ?"

" ऐसे वहुत-से-काम होते है पापा, जिन्हें हाथी नहीं कर पाता मगर चींटी कर देती है ।"


"तुम उन तिलों में से तेल निकालने की कोशिश करोगी जिनमें तेल नहीं है ।"


"कोल्हू में डालने से पहले कोई नहीं बता सकता कि किन तिलों में तेल है किन में नहीं।''


“बता देते हैं बेटी ।" बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहा------" अनुभवी लोग तिलों को देखते ही, विना उन्हें कोल्हू में डाले बता देते है कि उनमें तेल है या नहीं ।"

"देखना यहीं है पापा कि आपका अनुभव जीतता है या . . मेरे दिल की आवाज ।"

अजय देशमुख नामक जिला एवं सत्र न्यायधीश ने शेखर मल्होत्रा की सभी बाते धैर्य पूर्वक सुनी और सुनने के बाद सवाल किया----“अगर तुम बेगुनाह हो तो तुम्हारे खिलाफ़ इतने पुख्ता गवाह और ऐसे अकाटय सबूत कहां से पैदा हो गए जिन्हें शहजाद राय जैसा धुरन्धर वकील न काट सका ।"


"इस किस्म के सवालों का जवाब अगर मेरे पास होता तो आज आप उसे सच न मान रहे होते जिसे मान रहे हैं ।"



"एक सेकेंड के लिए मान ले कि तुम सच बोल रहे हो तो-;------"'इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें हत्यारा सावित करने वाले पुख्ता गवाह और अकाट्य सबूत किसी के द्वारा प्लांट किये गये हैं !"



"अब इन बातों पर गौर करने का वक्त निकल चुका है जज साहब ।"


"क्या तुम्हें किसी पर शक है !"



"कैसा शक ?”


"कि फलां शख्स तुम्हें अपनी बीबी की हत्या के जुर्म में फंसाने की चेष्टा कर सकता है ।"


"जो कुछ एाप कह रहे हैं वह मेरे लिए नया नहीं है, राय साहब भी यही सब कहते रहे है और मैं-----मैं यह सब सोचता रहा हू…इतना सोचा है मैंने कि अब तो सोचने की " कल्पना से ही दिमाग में दर्द शुरू हो जाता है सोचते-सोचते आपकी तरह मुझे भी हर बार ऐसा जरूर लगा कि किसी के प्रयास कि बगैर मैं इतनी बुरी तरह नहीं कंस सकता किसी-न-किसी ने तो मेरे चारों तरफ चक्रव्यूह रचा ही है ।"



"चक्रव्यूह ?"


"हां, जो कुछ हुआ है, उसे शायद यही शब्द दिया जाना उपयुक्त है-----किसी ने, ऐसे शख्स ने मेरे चारों तरफ कोई चक्रव्यूह रचा है 'जिसके बोरे में मैं कल्पनाओं तक में नहीं सोच पाया हूं

जब मुझे यही नहीं मालूम कि चक्रव्यूह किसने रचा है तो उसे तोडने का प्रयास कहां से शुरू करता और फिर.......... "मेरी तो बिसात क्या है-इस चक्रव्यूह को इंस्पेक्टर अक्षय श्रीवास्तव जैसा घाघ पुलिसिया न तोड़ सका, शहजाद राय जैसे धुरन्धर वकील न तोड सके---और बैरिस्टर साहब तक इस चक्रव्यूह में फंस गए हैं !"



"हम और विश्वनाथ ?"


"क्यों, क्या खुद को आप चक्रव्यूह के चक्र से बाहर समझते हैं ?"


"हम कैसे फंसे हुए हैं ?"


" आपने खुद कबूल किया कि अगर मां बेगुनाह हूं तो किसी ने मुझे फंसाया है-जाहिर है कि फंसाने वाले का लक्ष्य मुझे अपनी बीबी की हत्या के जुर्म में फांसी करा देना है, और मुझे फांसी के फंदे तक पहुचाने की जिम्मेदारी से न आप बच सकते हैं, न बैरिस्टर साहब ।"
“देखो शेखर, हम सिर्फ वह करते हैं जो सबूत और गवाह कराते हैं ।"


"और वे सबूत और गवाह वकील अाप ही के किसी के द्वारा 'प्लॉट' किये गए हो सकते हैँ…प्लांट किये गये सबूत और गवाहों के फेर में पडकर अगर आप एक बेगुनाह को फांसी पर चढा देते हैं तो क्या यह नहीं माना जायेगा कि किस अदृश्य ताकत द्वारा रचे गये चक्रव्यूह में फंसकर मैं फांसी के फंदे पर झूल जाऊंगा उसी ताकत द्वारा रचे गये चक्रव्यूह में फंसकर अाप व बैरिस्टर साहब भी वह कर रहे हैं, जो वह करवा रहा है ?"



"हम नहीं समझते कि हम किसी चक्रव्यूह में फंसे हुए ।"



"वह चक्रव्यूह ही क्या हुआ जज साहब, जिसमें फंसे शख्स को यह इल्म हो जाये कि वह फंसा हुआ है खैर , मुझें लगता है कि बहस लम्बी होती जा रही है बहस भी वह जिसका कोई लाभ नहीं है-----मैँ आपको दोष देने नहीं आया----इतना जाहिल भी नहीं हूं कि आपके और बैरिस्टर साहब के कर्त्तव्य को न समझता होऊं-------जानता हूं कि आप और बैरिस्टर साहब अपना कर्तव्य मुकम्मल ईमानदारी से निभा रहे हैं, मैं तो सिर्फ इतना सावित करके अपने दिल को समझाने की चेष्टा कर रहा हूँ कि चक्रव्यूह जिसने रचा है, उसके फेर में मैं कम-से-कम अकेला फंसा हुआ नहीं हूं बल्कि-------आप, बैरिस्टर साहब, शहजाद राय और श्रीवास्तव भी फंसे हुए हैं-------यह सोच-सोचकर मुझे चैन मिलता है कि जिस चक्रव्यूह का शिकार ऐसी-ऐसी धुरन्धर 'घाघ' खुर्राट और काइयां हस्ती हैं , उसमें अगर मैं फंस गया तो कौन-सी बडी बात है-जिस चक्रव्यूह को ऐसी हस्तियां न तोड़ सकी उसे तोड़ने की 'कुव्वत' मैं अदना-सा शख्स भला कहाँ से लाता…खैर आपने मेरी बातें सुनीं --- बहस की, भले ही कुछ सेकेंड के लिए सही, मगर मुझे बेगुनाह माना तो है ही, इन सबके लिए शुक्रिया ---- अब मैं चलता हूं ।


कहने के बाद शेखर मल्होत्रा लम्बे-लम्बे कदमों के साथ ड्राइंगरूम से बाहर निकल गया, जिला एवं सत्र न्यायधीश ने उसे रोकने की चेष्टा नहीं की ।

वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा उठा ।


किरन इस हमले का तात्पर्य तक न समझ पाई थी कि स्टेयरिंग काबू से बाहर होने लगा-----गाड़ी नशे में धुत शराबी के भांति लडखडाई और यह पहला क्षण था जब किरन को लगा की किसी ने उसकी गाड़ी के टायरों को निशाना बनाया गया है !



दिमाग पर आतंक सवार हो गया ।
 

Rahulp143

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गाडी की रफ्तार यदि ज्यादा होती तो निश्चित रूप से उलट जाती----इस वक्त सिर्फ इतना हुआ कि किरन के ब्रेक मारने पर गाडी दो-तीन जबरदस्त झटकों के साथ रुक गई । " तभी !"


"धांय.....धांय..…धांय ।"



गोलियों की एक और बाढ़ गाडी पर झपटी ।



इस बार मारुति डीलक्स के टिंटिड ग्लास चकनाचूर होगये ।



किरन ने तेजी से खुद को अगली सीटो पर गिरा दिया-----गोलियां चलने और खतरनाक कांच टूटने की आवाजों ने उसके रोंगटे खड़ेे कर दिए।



सीट में मुंह दिये उकडू वैठी थी वह !



गोलियों की बाढ़ जिस तेजी से अाई थी उसी तेजी से शति पड़ गयी ।



परन्तु । किरन का दिल धाड़धाड़ करके बज रहा था ।



चेहरा पसीने-पसीने हो गया ।


मारे दहशत के हालत ऐसी हो गई कि काफी देर तक कोई घटना न घटने के बावजूद सिर उठाकर देखने का साहस न कर सकी कि हुआ क्या है ?



उसके जीवन की यह पहली भयानक घटना थी ।


हाथ-पावं फूल गये ।


एकाएक दिमाग में ख्याल उभरा कि हमलावर उसकी गाडी को घेरने का प्रयत्न कर रहे होंगे और इस ख्याल ने तो छक्के ही छुडा दिये उसके------दिमाग हालांकि ठीक से काम नहीं कर रहा था मगर फिर भी, उकडू अवस्था में ही उसने खुद को दोनों सीटों के बीच से गुजार कर पिछली सीट पर डाल दिया !

एकाएक दिमाग में ख्याल उभरा कि हमलावर उसकी गाडी को घेरने का प्रयत्न कर रहे होंगे और इस ख्याल ने तो छक्के ही छुडा दिये उसके------दिमाग हालांकि ठीक से काम नहीं कर रहा था मगर फिर भी, उकडू अवस्था में ही उसने खुद को दोनों सीटों के बीच से गुजार कर पिछली सीट पर डाल दिया !




तभी !


ऐसी आवाज सुनी जैसे कोई गाड़ी "सर्र ..र्र ..रररर......से दौडती चली गई हो ।


चेहरा ऊपर उठाकर देखा ।


आंधी-तूफाऩ की तरह दोडी चली अा रही एक काली एम्बेसेडर के पृष्ट भाग पर उसकी आंखें स्थिर हो गई--नम्बर पढने के चेष्टा की, परन्तु 'प्लेट' गायब थी और तब तक गाडी इतनी दूर निकल चुकी थी कि प्रयास के बावजूद किरन यह अनुमान न लगा सकी कि एम्बेसेडर में कितने आदमी थे ?



चकनाचूर हुई अपनी 'विंड-स्कीन' के पार सुनसान सडक पर दौडी चली जा रही एम्बेसेडर को वह तब तक देखती रही जब तक कि बिन्दु की शक्ल में चेंज होने के बाद आंखों की रेंज से -बाहर न निकल गई ।



हालांकि उसे विश्वास था कि हमलावर अभी गाडी में सवार थे और अब वे यहां नहीं हैं, परन्तु इतना साहस न जुटा सकी कि गाडी का दरवाजा खोलकर सडक पर आ जाती !



चूहे की मानिन्द सहमी किरन के दिमाग ने धीरे-घीरे काम करना शुरू किया-----जहन में यह विचार उभरा कि हमला करने वालों का आखिर उद्देश्य क्या था ?


केवल गाडी को क्षति पहुंचाकर क्यों भाग गये ?
अभी दिमाग ने ज़वाब नहीं उगला था कि पीछे से अाई 'ग्रे' कलर की एक फियेट 'सर्र.........'र्र.......से गुज़र गई ।


किरन उसके पिछले हिस्से को देख ही रही थी कि करीब दो सो गज आगे जाने के बाद ब्रेकों की चरपराहट के साथ फियेट रुकी

किरन का दिल पुन: जोर जोर से धड़कने लगा ।


हालांकि उसने नोट कर लिया था कि फियेट में केवल एक व्यक्ति था और वह भी जो ड्राइव कर रहा था किन्तु फियेट के बैक गेयर में पड़कर वापस सरकते ही उसके होश फाख्ता हो गए ।


चेहरा पीला पड़ चुका था ।


फियेट उसकी गाडी के ठीक बगल में रुकी, ड्राइविंग सीट पर मौजूद युवक ने ऊचीं आवाज में पूछा-----" क्या मैं आपकी मदद कर सकता हुं ?"



" हहह हां ।" हलक सूखा होने के कारण बडी मुश्किल से कह सकी किरन ।


युवक ने पूछा-----" आपकी गाड़ी को यह क्या हो गया है ?"

" म-मुझ पर कुछ बदमाशों ने गोलियां चलाई थी ।"


"गोलियां ?" युवक हकला गया, अातंक के भाव उसके चेहरे पर भी उभर आये !



किरन यह सोचकर घबरा गई कि कहीं एकमात्र मददगार स्वयं डरकर न भाग जाये, अत: तेजी से बोली----" अब वे भाग गये है, काले रंग की एम्बेसेडर में थे वे” ।



युवक के चेहरे की रौनक लौटी पूछा…"आपसे क्या चाहते थे ?"


"प-पता नहीं ।"


"मेरी गाडी चलने लायक नहीं है, क्या आप मुझे लिफ्ट दे सकते हैं ?"



"आँफकोर्स ?" युवक ने आकर्षक मुस्कान के साथ कहा ।


किरन ने फुर्ती से डैशबोर्ड के टॉप पर पड़ा अपना पर्स उठाया, मारुति का दरवाजा खोला और फियेट में युवक की बाल में बैठती हुई बोली -----"थेंक्यू।" .

"कहां चलना है ?"
"मुझे किसी पब्लिक टेलीफोन बूथ में छोड दीजिए ।"



युवक ने जवाब मुह से नहीं दिया मगर आंखों में ऐसे भाव अवश्य उत्पन्न किये जैसे उसे अपने प्रभाव में लेना चाहता हो ----जाने क्यों, उस क्षण किरन को लगा कि इस युवक को उसने कहीं देखा है !


कहां देखा है ?


अभी जवाब नहीं सूझा था कि गाडी अागे बढाते हुऐ युवक ने पूछा---" हृमलाबर कौन थे ? "



"मैं देख नहीं पाई ।"


“अनुमान तो होगा कुछ, किसी से आपकी दुश्मनी होगी ?"


"द-दुश्मनी ?" किरन के मस्तिष्क में विस्फोट-सा हुआ-----पलक झपकते ही दिमाग में वह विचार कौंधा कि जो होलनाक घटना घटी है जिसकी वजह इसके अलावा कुछ और नहीं हो सकती कि उसने संगीता मर्डर कैस की रिं-इन्वेस्टीगेशन के लिए कदम बढा दिये हैं ।


युवक ने तन्द्रा भंग की ----"आपने जवाब नहीं दिया, किसी से दुश्मनी है आपकी हैं''



"नहीं ।” किरन ने युवक को संक्षिप्त जवाब देकर टरका दिया, परन्तु स्वयं उसका मस्तिष्क यही तेजी से काम कर रहा था----हमले के बारे में जितना सोचती गई उतना ही विश्वास होता गया कि कारण संगीता मर्डर कैस की रि--इन्वेटीगेशन का उसका फैसला है ।
 

Rahulp143

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हमलावरों ने सिर्फ उसकी गाडी को क्षति पहुंचाई । वे केवल उसे आतंकित करना चाहते थे ।


क्यों ?

क्या वे यह कहना चाहते है कि अगर मैंने इस केस की रि'-इन्वेस्टीगेशन की तो अंजाम खतरनाक होगा ?


हां…यही वजह है ।

इसके अलावा दूसरी कोई वजह हो ही नहीं सकती ।


बात किरन को जम गई ।


और इस बात के जमते ही उसके दिलो--दिमाग पर छाया सारा भय, सारा आतंक, सारा खौफ़ यूं काफूर हो गया जैसे आग में गिरते ही कपूर काफूर हो जाता है------सफलता से लबालब मुस्कराहट पहले से गुलाबी होंठों का श्रृंगार बन गई,,,, आंखें 'विजयी' अंदाज से 'देदीप्यमान' हो उठी----उसकी इस अवस्था को देखकर युवक चकरा गया ।

चकराने की बात भी थी ।


. जिस युवती को क्षण-भर पूर्व शेर से डरी हिरनी की सी हालत में देखा था उसी को इस वक्त चालाक लोमडी की भाति मुस्कराते देख रहा था, बोला----" जाने आप क्या सोच रहीं हैं ?"


“क-कुछ नहीं ।" किरन ने उसे टालना चाहा ।


"कुछ देर पहले आप बुरी तरह डरी हुई थी । मगर अब ! "



" व-वो सामने पब्लिक टेलीफोन बूथ है, मुझे यहीं उतार दीजिए ।"' किरन ने उसकी बात काट दी ।


"मेरे ख्याल में आपको पुलिस स्टेशन जाना चाहिए ।"


"क्यों ?"


“जो हुआ है, उसकी 'रपट' लिखवाने ।"


"नहीं, रपट की जरूरत नहीं है-मुझें उतार दो ।"


युवक ने कंधे उचकाने के साथ ब्रेक लगाये----गाडी बूथ के नजदीक रुकी और किरन गजब की तेजी के साथ दरवाजा खोलकर बाहर निकलती हुई बोली ----" थैक्यू फॉर लिफ्ट !"

" इंसपेक्टर अक्षय हियर !" दूसरी तरफ से कहा गया !


“बैरिस्टर विश्वनाथ की बेटी बोल रही हूं इंस्पेक्टर, अम्बेडकर रोड़ पर मुझ पर हमला हुआ है ।"


"कैसा हमला?"


"मेरी गाड़ी पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गई ।" किरन कहती चली गई----" पहले उसके टायर "ब्रस्ट' किये फिर शीशों को चकनाचूर किया गया और इसके बाद बिना नम्बर प्लेट वाली काले रंग की एक एम्बेसेडर में हमलावर फरार हो गये ।"


" क-क्या कह रहीं हैं अाप ?"


"मेरी रपट दर्ज कर लीजिए-क्षतिग्रस्त गाडी वहीं खडी है-जैसे चाहें, जांच करने के बाद मारुति को वर्कशाप में पहुंचवा दीजिए ।"


“आप कहां से बोल रही हैं ?"


"सुभाष मार्ग स्थित बूथ से ।"


"में अम्बेडकर मार्ग पर गाडी के नजदीक पहुंच रहा हूं आप भी वहीं--



" नहीं, मैं वहां नहीं पहुंच रही हूं इंस्पेक्टर------मुझे इस वक्त कहीं और पहुंचना है ।"


“कहां ? "



"जहां मुझे संगीता का हत्यारा नहीं पहुचने देना चाहता ।" रहस्यमय स्वर में कहने के साथ उसने सम्बन्थ विच्छेद कर दिया ।

"ओह, किरन बेटी !" शहजाद राय की अावाज उभरी----"कैसे फोन किया ?"


"मैं आपसे "संगीता मर्डर कैस' के सिलसिले में बात करना चाहती हूं अंकल ।"


" संगीता मर्डर केस ?" ये शब्द शहजाद राय के मुंह से ऐसे अन्दाज में निकले जेसे वह उस सिलसिले को याद न करना चाहते हों, कुछ देर चुप्पी के बाद बोले----" उस बारे में बात करने के लिए अब बचा ही क्या है ?"


"जब क्रोईं "क्लाइन्ट' अपना केस लेकर बचाव पक्ष के वकील के पास जाता है तो वकील क्लाइन्ट से सबसे पहला यह सवाल यह पूछता है कि 'जो अभियोग तुम पर लगाया गया है वह सच्चा है या झूठा----क्या यह सवाल आपने शेखर मल्होत्रा से किया था ?"


"अनेक बार ।"


"क्या जवाब दिया उसने ?"
"यही तो मुसीबत रही…हंमने उससे हर तरह से पूछा, एक बार नहीं बल्कि अनेक बार यह कहा कि अगर तुमने कुछ किया है तो साफ़-साफ़ बता दो----" वताने से तुम्हारा कुछ बिगड़ेगा नहीं बल्कि फायदा ही होगा, क्योंकि तब हम ज्यादा सशक्त ढंग में कोर्ट से तुम्हारा बचाव कर सकेगे--वह पटृठा था कि लगातार झूठ रहा, आज तक झूठ बोल रहा है ।"


“झूठ बोल रहा है ?”


“यह झूठ नहीं तो और क्या है कि उसने संगीता की हत्या नहीं की ?"


" अाप ? " "किरन चकित रह गई-----“आप उसके वकील होने के बाबजूद ऐसा कह रहे है है"'


"कोर्ट में जो कुछ भी कहें मगर कोर्ट के बाहर हम वही कहते हैं जो लग रहा होता है और फिर इस मामले में तो शायद इतना भी दम नहीं रहा कि कोर्ट में हमारे कहने से कुछ हो सके ।”


"आप तो जरूरत से ज्यादा निराश हैं अंकल ! " किरन बोली…“अब मेरी समझ में इतना सब आ रहा है कि आप शेखर मल्होत्रा क्रो बेगुनाह साबित क्यों नहीं कर सके हैं"'


"क्या कहना चाहती हो ?"


' "जो वकील अपने ही दिल में अपने क्लाइन्ट को भी गुनेहगार मानता हो वह उसे कोर्ट में बेगुनाह साबित कैसे कर सकता है ?” कहने के साथ उसने रिसीवर हैंगर पर लटका दिया ।

" सिगार मुंह में दबाये कीमती कपडे़ पहने और लान में खडे अधेड़ आदमी ने पूछा---"'किससे मिलना है तुम्हें ?"


"शेखर मल्होत्रा से ।"


"श-शेखर ?""' यह लपज उसके मुंह से . कुछ यूं निकला जैसे भद्दी गाली निकली हो और फिर लगभग गुर्राता-सा बोला ----“कौन हो तुम ?"



""मेरा नाम किरन अग्निहोत्री है ।"
 

Rahulp143

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. अधेड के चेहरे पर मौजूद भाव साफ-साफ बता रहे थे कि वह शेखर मल्होत्रा से ही नहीं बल्कि उससे मिलने अाने वालों से भी नफरत करता है, ऊंची आवाज में बोला---“अरे बुन्दू है ?"




"जी मालिक ?" फूलों की पानी देता बलिष्ठ नौकर आकर्षित हुआ ।"


"ये लड़की शेखर से मिलना चाहती है, उसके कमरे में ले जाओ ।"



"जीं ।" उसने वहीं से चीखकर कहा और फिर किरन को कुछ ऐसी नजरों से देखता हुआ इस तरफ अाने लगा जैसे वह चिडि़याघर से निकल भागी हिरनी हो ।



किरन ने अधेड़ से पूछा-“क्या मैं आपका परिचय जान सकती हूँ ?"

"क्यो ?-"' उसने अक्खड़ स्वर में कहा----" हमारा परिचय जानकर क्या करोगी ?"


नजदीक आते वुन्दू पर एक नजर डालती हुई किरन बोली…"नौकर द्वारा, आपको 'मालिक' कहने से असमंजस में पड़ गई हूं क्योंकि जानती हू कि इस कोठी का मालिक शेखर मल्होत्रा है !
हां ।" सिगार मुंह में दबाये अधेड ने अागे बढ़त्ते हुए कहा-----''" अनजाने में जो भूल की सो की, मगर भविष्य में कभी उस हत्यारे को इस कोठी का मालिक कहने की 'जुर्रत' मत करना ।"



' “क्यों ?"



क्योंकि उसने इस जायदाद का मालिक बनने के फेर में पहले हमारे बड़् भाई को ऐसे ढंग से मरवा दिया कि जिसे पुलिस 'हत्या' ही नहीं समझती----" फिर उस हरामजादे ने हमारी बेटी संगीता की हत्या कर दी मगर पाप की हांडी रोज नहीं चढ़ती-इस वार फूट गई-यह जायदाद भला उस कमीने की कैसे हो सकती है जिसने इसे हथियाने के लिए दो दो हत्याएं कर दी , अंधेर है क्या ?"


"आपने किस अधिकार से जायदाद का चार्ज सम्भाल लिया है?"\\

"अधिकार--- तुम अधिकार की बात करती हो ?" अधेड भड़क उठा---" हमें कोर्ट ने सम्पूर्ण जायदाद और र्फवट्री का 'रिसीवर' नियुक्त किया है ।"


"र-रिसीवर ?”


"हुंह......तुम बेवकूफ लड़की भला क्या जानो कि रिसीवर किसे कहते है है"'



हौले से मुस्कूराईं किरन, बोली---" आप बता दीजिए !"



"जब कोई ऐसा शख्स किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या के जुर्म में फंस जाता है जिसके बाद जिसकी सारी दौलत फंसने वाले की होनी हो तो कोर्ट वारिस नम्बर दो को मरने वाले की जायदाद का 'रिसीवर' नियुक्त कर देती है…रिसीवर को कानून यह अधिकार सौंपता है कि जब तक _ बारिस नम्बर एक पर मुकदमा चले तब तक जायदाद की देखभाल तुम्हें करनी है-----वारिस नम्बर एक अगर बेगुनाह साबित हो जाता है तो वारिस नम्बर दो यानि रिसीवर को सारा चार्ज उसे वापस सोंप देना होता है और अगर वह गुनाहगार साबित होता है तो वारिस नम्बर दो मालिक बन जाता है ।"


किरन अचानक अागे बढी और अधेड़ की आंखों में आंखें डालकर बोली-----"अाप तो यह सोचते होंगे कि शेखर मल्होत्रा ने संगीता की हत्या करके अच्छा ही किया ?”


" क---क्या मतलब ?" अधेड़ सकपका गया । किरन ने तपाक से कहा----"उसकी बेवकुफी के कारण आप करोडों की जायदाद के मालिक बन गये ।"


"क-क्या' ' ' 'क्या बका तुमने !" अधेड़ हलक फाड़कर चीख पड़ा-“त--तुम हमेँ जायदाद का लालची समझती हो?"



"अजी क्या हुआ........ 'इतनी जोर'-जोर से क्यों चीख रहे है आप ?" कहती हुई एक अधेड़ महिला ड्राइंगरूम से निकलकर लॉन में आ गई ।

यह अकेली नहीं थी ।

एक जवान लडकी और दो युवा लडके भी लॉन में आ गये थे ।


किरन उन सबको ध्यान से देख ही रही थी कि शक्ल से गुन्डा और लफंगा--सा नजर आने वाला लड़का अधेड़ के नजदीक पहुंचता हुआ बोला----'"क्या हुआ पापा, अाप इतने गुस्से में क्यों हैं ?"



जरा इस लड़की की बात सुनो ।" अधेड़ किरन की तरफ हाथ नचाकर बोला---"कहती है हम बड़े भाई और संगीता बेटी की मौत पर वहुत खुश होंगे, यह जायदाद जो मिल गई है हमें ।"


लड़के ने सुर्ख आंखों से किरन को घूरा ।


अधेड़ स्त्री ने पुछा ---" कौन है ये ?"



"पता नहीं कौन है, हत्यारे से मिलने आई है ।"



सबकी नजरें किरन पर स्थिर थीं ।


किरन यह सोच-सोच-कर मुस्करा रही थी कि उसके शब्दों का प्रभाव ठीक बैसा ही हुआ जैसा वह चाहती थी----"दरअसल वह यह जानना चाहती थी कि शेखर मल्होत्रा के बाद वारिस किस मन: स्थिति में है ?"




अभी यह मुस्करा ही रही थी कि बड़ा लड़का बांहें चढाता हुआ उसकी तरफ़ बढा और नजदीक पहुंचकर गुर्राया-“कौन है तू?"


"तमीज से बात करो मिस्टर "किरन गुर्राई !



किरन के इन शब्दों ने अधेड़ को तिलमिलाकर रख दिया--मारे गुस्से से चेहरा भभक उठा, गुर्राया ---" बुन्दु , इस बेवकूफ़ लड़की को बताओ कि कोठी का मालिक कौन है ?"



"य-ये बड़े शाब के भाई हैं मेमसाब ।"' बुन्दू ने किरन से कहा ।



“कौन बड़े साहब ?"



"सेठ गुलाब चन्द जी, संगीता मेमसाब के पिता ।"



"ओह !" बात किरन की समझ में आ गई----" तो ये ' संगीता के चाचा हैं ?
 

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"त--तु मुझे तमीज सिखाएगी ?" कहने साथ उसने हाथ हवा में उठाया ही था कि-----

अधेड़ झपटकर उसे पकड़ता हुआ चीखा--" क्या बेवकूफी है कमल, छोटे लोगों के मुंह नहीं लगते !"



"कमल ने कुछ कहने के लिए मुहं खोला ही था कि---" अरे आप…आप यहाँ किरन जी ?"

किरन सहित सभी ने आवाज की दिशा में देखा !


साइड गैलरी से निकलकर सफेद कुर्ता और पायजामा पहने शेखर मल्होत्रा अभी-अभी वहां पहुंचा था-उसके पहुचते ही अधेड, उसकी पत्नी, बेटी पर ही नहीं बुन्दू तक पर सन्नाटा छा गया ।



" हां शेखर ।" किरन ने संयत स्वर में क्ला-“मैं यहाँ ।"


"अअ-आप यहां किसलिए अाई है ?"



"तुमसे मिलने ।"



"म-मुझसे मिलने है"' शेखर उछल पड़ा-"क-क्यों ?"



किरन ने पूछा-"क्या हम कहीं अराम से बैठकर बाते नहीं कर सकते ?‘"



"क-क्यों नहीं--म-मगर.............'मुझसे क्या बातें करना चाहती हैं आप ?"



किरन ने एक नजर कमल, अधेड़ और उसके पूरे परिवार पर डाली तथा शेखर से बोली--" तुम्हें बेगुनाह साबित करने निकली हुं ।"



" ब-बेगुनाह-म---मैं समझा नहीं ।" शेखर बुरी तरह बौखला गया ।



"मेरी बात जल्दी ही तुम्हारी समझ में अा जायेगी और इनकी समझ में भी ।" कहने के साथ उसने 'खुखार नजरों से कमल की तरफ़ देखा-कमल-अभी तक खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था ।

भीतर कमरे में अधेड़ , उसकी पत्नी, दौनों बेटे और बेटी आपस में सिऱ जोड़े फुसफुसाते के से अन्दाज में बातें कर रहे थे ।


उनके बीच एक छोटी सीं सेन्टर टेबल थी ।




अधेड की पत्नी ने अभी-अभी कहा था…"मुझे तो उस लड़की की इस बात से डर लग रहा है कि वह उस मुए को बेगुनाह साबित करने निकली है---' उसने-उसे सचमुच बेगुनाह साबित कर दिया तो हमारा क्या होगा ?"



"बरबाद हो जायेगे हम ।" बड़ा लड़का अर्थात् कमल कह उठा ।"



छोटे ने पूछा----"कैसे ?"



"कैसे ?"---कमल भड़क उठा-"पूछ्ता है कैसे-----तेरे भेजे में भूसा भरा है क्या----हम अपनी अमीनाबाद वाली दुकान बेच चुके हैं---अगर दौलत हाथ से निकल गई तो खायेंगे क्या ?"



"उस दुकान से हमें मिलता--ही क्या था?"



"कुछ न सही…मगर पेटे भर रोटी तो दे ही रही थी दुकान ।" कमल कहता चला गया-कुछ भी हो अब हम इस जायदाद और फेवट्री को किसी भी कीमत पर नहीं गंवा सकते ।"



"फैसले की तारीख में अब केवल तीन दिन रह गए है और ये लगभग स्पष्ट है कि अदालत का फैसला क्या होने जा रहा है ---- दुनिया की कोई ताकत उसे सजा से नहीं बचा सकती ।" अधेड़ ने कहा ।


"लेक्ति अगर उससे पहले इस लड़की ने उसे बेगुनाह साबित कर दिया है?" अधेड स्त्री ने पुन: शंका व्यक्त की ।



"ऐसा नहीं होगा, एड़ी--चोटी का जोर लगाने के बावजूद वह ऐसा नहीं क़र सकेगी ।"



कमल बोला----" और अगर मुझे लगा कि वह ऐसा कर सकती है तो तुम सब यकीन रखो मैं ऐसी स्थिति कर दूगा कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी ।"


"यानि ?"



"शेखर का काम तमाम कर दूंगा मैं !"

" तुम ऐसी बेवकूफी हरगिज नहीं करोगे ।" गुर्राकर अधेड ने सख्त स्वर में कहा---""जरा-सी चूक होते ही सारे किए-धरे पर पानी फिर सकता है, हम बरबाद हो जायेगे ।"



कुछ कहने के लिए कमल ने मुंह खोता ही था कि मां पर नजर पड़ते ही ठिठक गया…होठों पर अंगुली रखे बड़े रहस्यमय अन्दाज में वह सबको चुप रहने का इशारा कर रही थी ।


कमल का मुंह खुला रह गया ।

सबकी नजरें अधेड़ स्त्री के चेहरे पर स्थिर थी , दिल जोर-जोर से धड़कने लगे थे ।


कमरे में संनाटा छा गया ।


. डायमंड की धार'-सा पैना सन्नाटा ।

"अधेड ने उसके कान पर झुककर पूछा…"क्या बात है सुमित्रा?"



"उ उधर देखिये, उधर ।” सुमित्रा ने अंगुली से कमरे के बन्द दरवाजे की तरफ इशारा किया ।


अधेड़ सहित सबकी नजरें दरवाजे की तरफ उठ गई और'वहां नजर पड़ते ही सबके दिल धक्क से रह गये-----" चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगी, सबकी हालत सुमित्रा जैसी हो गई थी ।


बंद किवाडों और फर्श के बीच बनी बारीक झिर्री से एक जोड़ी पैरों का थेड़ा सा हिस्सा अस्पष्ट नजर आ रहा था…समझते देर न लगी कि वहाँ खड़ा कोई शख्स बाते सुनने का प्रयत्न कर रहा है ।



आतंक की ज्यादती के कारण छोटा लड़का चीख पड़ा…



" कौन कौन है दरवाजे पर?"


और बस !


खेल बिगड गया ।

पैर तेजी के साथ हटे और गेलरी में भागते कदमों की आवाज गूंजी । "



सबसे पाले उछलकर कमल खडा हुआ-दौड़कर दरवाजे तक पहुंचा, चटकनी गिराकर जब उसने दरवाजा खोला तो कोई पांच मीटर लम्बी गेलरी....सन्नाटे में डूबी हुई थी ।


एक साया कोठरी के अन्तिम मोड़ पर गुम होते जरूर देखा था उसने ।


अभी कमल वहीं खड़ा था और जिस्म में एक अजीब-सी सनसनी का अहसास कर रहा था कि थर्राते से उसके मम्मी, पापा, भाई-बहन नजदीक अाये, अधेड़ ने पूछा---"कौन था कमल ?"


"पता नहीं ।" कमल अपने छोटे भाई पर चढ दौडा…“इसकी बेवकूफी से भाग गया ।"

"अ--अाप .......आप कहीं मजाक तो नहीं कर रही हैं किरन जी ?"


किरन ने गम्भीर स्वर में कहा--"' मैं इतनी दूर से चलकर तुमसे मजाक करने अाई हूं?"'



"म......मगर.......मगर मेरे लिए यह बात दुनिया के 9 आश्चर्य जैसी है कि किसी ने मुझे मेरे कहने---सिर्फ कहने के आधार पर बेगुनाह मान लिया---कोई तर्क, सबूत पेश नहीं किया है मैंने ।"


“अगर ऐसा है तो यूं समझो कि दुनिया का 9 आश्चर्य हो चुका है ।"
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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:congrats:for new story...
novel ko dekh kiran ji ki yaad aa gayi..
Khair brilliant update... Great going :applause::applause:
 
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Rahulp143

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“यानि आप मुझे बेगुनाह मानती हैं ?"'


"पूरी तरह ।"

शेखर मल्होत्रा ने अपने सामने वाले सोफे पर बैठी किरन को इस तरह देखा ---- जैसै किरन को नहीं बल्कि
साक्षात् कुतुबमीनार को अपने कमरे में , अपने सामने वाले सोफे पर बैठी देख रहा हो।


जुबान से बोल तक न फूटा, होंठ फ़ड़फड़ाकर रह गये ।


हां आंखें जरूर भर जाई थीं ।



और उन भरी हुई आंखों को देखकर किरन ने कहा-----"त-तुम रो रहे हो ?"



"न-नहीं.......नहीं तो ?" बोखलकर शेखर ने अपनी दोनों आंखे हथेलियों से ढक लीं ।



फिर स्वयं को संयत करने के लिए एक सिगरे सुलगाई ।




किरन समझ सकती थी कि पल-मर के लिए झिलमिलाने वाले वे आँसू अचानक मिली असीमित खुशी के आंसू थे, विषय चेंज करने की गरज से वह बोली----"मगर जैसा कि तुम जानते हो, मात्र मेरे बेगुनाह समझ लेने से स्थिति में कुछ चेंज आंने वाला नहीं है----चेंज तब आयेगा जव मैं कोर्ट में बेगुनाह साबित करने में कामयाब होऊंगी !"



"म-मेरे ख्याल में ऐसा नहीं हो सकेगा किरन जी ।"


“क्यों नहीं हो सकेगा ?"



"जो चक्रव्यूह मेरे चारों तरफ़ रची गया है वह इतना चक्करदार है कि जिसे अपके पापा, अक्षय श्रीवास्तव, शहजाद राय और स्वयं जज साहब तक नहीं समझ सके, उसे भला हम--------जो कि बौद्धिक स्तर पर उनके सामने बहुत 'बोने' हैं, क्या समझ सकेंगे----चक्रव्यूह के अन्दर घुसकर इसे तोडने की तो बात ही दूर, लाख प्रयत्न करने बावजूद मैं इतना तक नहीं जान पाया हूं कि यह चक्रव्यूह रचा किसने है ?"

"तुम्हें फंसाने की इतनी जबरदस्त योजना वही बना सकता हैं, जिसे तुम्हारे फंसने पर जबरदस्त लाभ हो ।"


"जाहिर-सी बात है ।"



"तो सोचो, तुम्हारे फंसने से किसे लाम है सकता है ।"


"लाख दिमाग घुमाने के बावजूद मैं किसी ऐसे व्यक्ति का नाम नहीं सोच पाया हू।"



“सीधा-सीघा लाभ तो संगीता के चाचा को पहुंचा है ।"


"क्या नाम है उनका !"


"अतर जैन ।"


" पत्नी, बेटी और दोनों बेटों के नाम भी बताओ ।"



"पत्नी का नाम सुमित्रा है, वेटी का नाम संगम, छोटे लड़के का राकेश और बड़े लड़के का कमल मगर------



"मगर !"


“ये लोग भला संगीता की हत्या कैसे कर सकते हैं ?"



"क्यों नहीं कर सकते ?"



"संगीता की मौत से पहले ये अमीनाबाद में रहते थे--- यहाँ अाते-जाते तक नहीं थे , अतर जैन को या तो मैंने तब देखा था जव बाबूजी की मृत्यु हुई थी या संगीता के बाद देखा है ।"


" शेखर की आखों में आँखें डालकर सवाल किया किरन ने-----"गुलाब चन्द की मौत कैसे हुई थी ?"



"उनकी मृत्यु हिल एरिया में कार ड्राइव करते हुई थी--- ब्रेक फेल हो जाने की वजह से उनकी फियेट एक खाई में जा गिरी थी---लाश गद्दी और स्टेयरिंग के बीच फंसी मिली थी,आग भी लग गई थी कार मे----बुरी तरह जल गए थे वे----इतने ज्यादा कि लाश पहचान तक में नहीं अा रही थी---अंगुठी के वेस पर ही मैं और संगीता ने उनकी शिनाख्त कर सके थे ।"

शेखर को बडी गहरी नजरों से देखती हुई किरन ने एक सवाल और किया-----"'क्या गुलाब चन्द जी संगीता को बहुत चाहते थे ?"



“यह भी कोई पूछने वाली बात है, संगीता उनकी बेटी थी ।"


"तब तो तुम्हें भी उतना ही चाहते होंगें आखिर तुम उनकी इकलोती और प्यारी बेटी के पति थे ?"


"अ-अ...आं ।" हिचका शेखर !



किरन ने तुरन्त पूछा----"हिचक क्यों रहे हो ?"


"बाबू जी मुझसे कुछ चिड़े-चिड़े से रहते थे ।"

" क्यों ?"



"दरअसल संगीता और मैंने लव-मैंरिज की थी------लव-मैरिज भी ऐसी कि बाबूजी जिसके सख्त खिलाफ थे, जाने क्यों मैं उनकी नजर में कभी अच्छी छबि न वना पाया---वे हमेशा मुझे गुन्डा-लफंगा और पैसे का लालची समझते रहे----खैर अब उन बातों को दोराने से क्या लाभ ?"




"तो अतर जैन एन्ड फैमिली को तुमने सबसे पहले तब देखा जब गुलाब चन्द के अन्तयेष्टि हुई थी ?



"फेमिली को नहीं, सिर्फ 'अंकल' को---वे अकेले आये थे, अन्त्येष्टि उन्होंने ही की थी ।"'


"बीबी-बच्चे नहीं आए थे ?"


"नहीं ?"


" क्यों ?"


"दरअसल इन तीनों भाइयों के सम्बन्थ आपस में ठीक नहीं थे ।"



"तीन भाई ?"

"हां...........हालांकि तीसरे को मैंने कभी देखा नहीं और बकौल संगीता के उसने भी बचपन में ही देखा था ----उसका नाम सुब्रत जैन था---तीनों भाइयों में सबसे बड़ा था वह उस वक्त संगीता केवल चार वर्ष की थी जब वह घर से रूठकर बल्कि लड़-झगड़कर चला गया था ।"


"लड़-झगड़कर ?"

"संगीता वताया करती थी कि मूल रूप से ये लोग हस्तिनापुर के निवासी हैं-----तीनों भाइयों के पिता हस्तिनापुर के सबसे सम्भ्रांत व्यक्ति थे । बड़ा लडका यानि सुब्रत गंदी सोसायटी में उठने-बैठने लगा था । गुन्डो-लरफगों के साथ रहकर वह भी गुन्डागर्दीं करने लगा था-------सबसे छोटा यानि अतर भी फुछ-कुछ उसी के रंग जैसा था जबकि बाबूजी दोनों से बिल्कुल अलग अपने पिता के रंग में रंगे हुए थे---धीरे - धीरे सुब्रत और अतर की 'आवारगियां और बदतमीजियां इतनी बढ़ गई कि उनके पिता ने दोनों को चेतावनी दे दी कि अगर नहीं सुधरेंगे तो वे उन्हें अपनी सम्पूर्ण जायदाद से बेदखल कर देगे-इस चेतावनी का थोड़ा सा असर अतर पर पड़ा किन्तु सुब्रत की बदतमीजियां कुछ और बढ़ गई बार-बार की चेतावनी के बावजूद उसने एक न सुनी और एक दिन ऐसा आ गया कि उनके पिता ने अखवार में इस आशय, की विज्ञप्ति निकाल थी कि सुब्रत से उनका कोई सम्बन्थ नहीं है और. उनकी सम्पत्ति में भी उसका कोई हिस्सा नहीं है वकौल संगीता के उस दिन परिवार में मानो तूफान आ गया था ----घर में कदम रखते ही सुब्रत सब पर बरस पड़ा----सबसे ज्यादा अपने पिता और बाबूजी पर भड़का था।"


" गुलाब चन्द पर क्यों ?"



सुब्रत का कहना था कि सव कुछ उसी का करा-धरा है-बाबूजी पर यह आरोप लगाया कि पिता पर उसने जादु कर दिया है----वह उसी दिन अपनी पत्नी और दस वर्षीय बेटे को लेकर हस्तिनापुर से निकल गया-जाता-जाता बाबूजी को धमकी दे गया, कह गया कि अगर उसका मौका लगा तो बाबूजी से और उनके पूरे परिवार से बदला लेगा ।



"फिर ?"'


“वह अन्तिम दिन था जव इन लोगों ने सुब्रत की शक्ल देखी यी-बाबूजी और संगीता का कहना यह था कि पता नहीं सुब्रत को धरती निगल गई या आसमान खा गया ---पता नहीं कहाँ जाकर बस गया था वह ?"


"और अतर ?"'


"सुब्रत का अंजाम देखकर अतर सम्भल तो गया किन्तु खुद को इतना कभी न सुधार सका कि अपने पिता

की नजरों में चढ जाए-उनका चहेता बेटा हमेशा बाबूजी ही रहे इसी का परिणाम था कि उनकी मौत के बाद जब वसीयत खोती गई तो पता लगा कि सम्पत्ति का नब्बे प्रतिशत भाग उन्होंने बाबूजी को दिया था और कुल दस प्रतिशत अतर को----झगड़ा होना था सो हुआ---- मगर झगड़े से अब हो क्या सकता था, अतर ने भी बाबूजी पर वहीँ आरोप लगाये जो घर छोड़ते वक्त सुब्रत ने लगाए थे, मगर वैसी कोई धमकी नहीं दी जैसी सुव्रत ने थी --- जो सम्पत्ति बाबूजी के हिस्से में आयी उसके बूते पर उन्होंने इस शहर में असली घी की फैकट्री लगा ली और अतर ने अमीनाबाद में रेडीमेड कपडों की दुकान खोल ली-----अब ये लोग उसे वेच-वाचकर यहां आ गए है मगर------

" मगर ?"



"आपने मुझसे इस परिवार की हिस्ट्री क्यों पूछी ?"


"हत्या के अधिकांश मामलों में कई पीढियों पहले हुए पारिवारिक कलह महत्वपूर्ण होते हैं ।" किरन ने कहा…"खेर, मतलब यह हुआ कि गुलाब चन्द और अतर के बीच न रंजिश जैसी बात थी न मुहब्बत जैसी, एक खिंचाव-सा था और उसी खिंचाव के कारण अपने आई की मृत्यु पर अतर अकेला आया , फैमली नहीं आई थी ?"

"हां !"


"खैर हत्यारा जो भी है, सामने तो अब उसे आना ही पड़ेगा ! आखें शून्य में केन्दित किए किरन अजीब-भी दृढ़ता के साथ कहती चली गई…"मैं उसके रचाए गए चक्रव्यूह के अन्दर घुस चुकी हूं ---इस चक्रव्यूह को तोडकर रख दूंगी मैं---चक्रव्यूह एक - एक 'जाले' की धज्जियां उड़ाकर रख दूंगी !"



"अ---अाप-आप-सेन्टीमेन्टल हो रही हैं किरन जी ।"


"ओह !" किरन चौंकी----" शायद हां-----शायद मैं सेन्टीमेन्टल ही हो उठी थी--खैर अतर एन्ड फैमिली के बीच मैं एक "शगूफा छोड़ अाई थी-अगर उनके दिल में जरा भी 'मैल' है तो उस "शगूफे’ के परिणाम सामने आने चाहिये ।"


“कैसे ?"


" मैंने उसे बता दिया कि शीघ्र ही तुम्हें बेगुनाह साबित कर दूगी।" किरंन ने कहा----"अगर वे अपराधी हैं तो ये खबर उनके लिए "शगूफा होगी और यह शगूफा ऐसा है जो उनके बीच जबरदस्त खलबली मचा देगा ।"

और !!!



खलबली मच गयी थी ।
 

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उस खलबली का ही परिणाम था कि--



बंद दरवाजे पर दस्तक हुई ।


किरन और शेखर मल्होत्रा चौक पड़े, दोनों की नजरें एक साथ दरवाजे की तरफ उठ गयीं, शेखर ने ऊंचे स्वर में 'पूछा-"कौन है ?"




"म-मैं हूं शाब, बुन्दू----जल्दी से दरवाजा खोलिए ।" आवाज बुन्दू की ही थी और ऐसी थी जैसे चाहता हो कि आवाज इस कमरे में मौजूद लोगों के अलावा कोई और न सुन सके ।




"बुन्दू ? "' शेखर चकित स्वर में बड़बड़ाया----"बुन्दू आज यहाँ कैसे अा गया?"


किरन ने पूछा-“क्यों, क्या बुन्दू तुम्हारे कमरे ने नहीं आता ?"



जवाब देने के लिए शेखर ने मुंह खोला ही था कि की दरवाजे के पार से बुन्दू की फुसफुसाहट पुन: उभरी-----" जल्दी से दरवाजा खोल दीजिए शाब,, अगर उन्होंने मुझे देख लिया तो मार डालेंगे ।”



किरन लपककर उठी । शेखर कुछ समझ नहीं पाया था कि उसने चटकनी गिरा कर दरवाजा खोल दिया ।



सामने बुन्दू खडा था ।


चेहरे पर हवाइयां लिए । "



किरन उसके पीले जर्द पड़े चेहरे का सबब समझने की चेष्टा कर ही रही थी कि बुन्दू ने कमरे के अन्दर झांकने का प्रयत्न करते हुए पूछा----" श शेखर शाब कहां है ?"'


दरवाजे पर पहुचते हुए शेखर ने कहा--" यहीं है बुन्दू क्या बात है ?"


"श-शाब .......शाब !" अजीब-सी हड़बड़ाहट हावी थी उस पर------“म-पुझे आपसे कुछ कहना है ।"



"कहो ।"


"म-मगर ......मगर, शाब, अकेले में ! उसने किरन के तरफ देखा है !



शेखर ने एक-नजर किरन पर डाली और फिर बुन्दू की तरफ आकर्षित होकर बोला ----" ये बिल्कुल अपनी हैं बुन्दू , इनके सामने बिना डरे कोई भी बात कह सकते हो !"

वुन्दू चुप रह गया । किरन ने बेहद नर्म स्वर में कहा---आओ बुन्दू जो कुछ कहना है अन्दर जाकर आराम से कहो ।"
बुन्दू अन्दर आगया !



किरन के इशारे पर शेखर ने दरवाजा बंद करके चटकनी चढा ली ।


तब, जबकि वुन्दू कुछ. बताने की स्थिति मैं आया, बोला---"शाब कमल बाबू अपकी हत्या कर सकते है ।"



"क्या !"



वह बोला-“मैं सच कह रहा है शाब अपने कानों से सुना है मगर…


" मगर ?"



"उनसे मत कहना शाब कि यह सब-कुछ आपसे मैंने कहा है वर्ना---वर्ना वे मेरी जान के दुश्मन बन जायेगे ।"



. “नहीं कहेगे ।" किरन ने तपाक से उसका हौंसला बढाने के लिए कहा------"बिना डरे सब-कुछ बताओ बुन्दू वादा रहा कि तुम्हारा नाम नहीं आने देगे !"



"व वैसे तो आप जानते ही है शाब कि मैं उस दिन से आपसे नफरत करता दूं कि जिस दिन आपने संगीता मेमशाब की हत्या की थी ।"बुन्दू सीधी शेखर की तरफ देखता हुआ कहता रहा…"इसीलिए मैं तबशे आज तक कभी आपके कमरे में नहीं आया-"एंकभी अच्छी बात नहीं क्रि-आप ही ने कुछ पूछा तो जवाब दे दिया मगर आजआज इसलिए आना पड़ा शाब क्योंकि मैंने अपने कानों से कमल बाबू को यह कहते हुए शुना है कि ये मेमशाव आपको बेगुनाह शाबित करने हाली हैं तो है आपका काम तमाम कर देंगे ।"



"ये बात कमल ने किससे कही ?

"वहां शभी थे---- उसके मामी-पापा छोटा भाई और बहन !"

और क्या-क्या सुना तुमने ?” किरन ने पूछा ।


"ज्यादा तो न सुन सका, मेमशाब, क्योंकि वे लोग बात ही इतने -धीरे-धीरे कर रहेकि दरबाजे तक ठीक से अबाज नहीं आ रही थी---हां कमल बावू कभी जरूर जोर शे बोल पड़ते थे-उनकी, और दूसरे लोगों की फुश-फुशाहटों से हो ऐशा लगा कि वे आप ही दोनों के बारे में बात कर थे ।"



किरन के होठो पर बेहद जीवंत मुस्कान उभरी, बोली----"देखो......खैर मेरे शगूफे ने कितनी जल्दी कमाल दिखाया और कमाल भी वैसा जैसे कि मैंने उम्मीद की थी ।"



हैरत में डूबे शेखर ने कहा----क्या इस बात से यह , ध्वनित होता है, संगीता के मर्डर में उनका हाथ है. ?"



"इतनी जल्दी किसी निश्चय पर नहीं पहुच जाना चाहिए हमे ।"


"फिर ।"

"आओ ’ उनसे बात करते हैं ।"


"क-क्या ?" शेखर चौंक पड़ा----“उनसे बात करेंगी आप ?"


गजेब की फुर्ती के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ती किरन ने कहा-"मेरे साथ आओ ।"



शेखर हक्का--वक्का रह गया था, बुन्दू को काटो तो खून नहीं ।

ड्राइंग हॉल में पाचों एक दुसरे से काफी दूर दूर पड़े पांच सोफों पर बैठे थे !


चुपचाप !


अपने-अपने विचारों में गुम।

हॉल में सन्नाटा व्याप्त था।


चेहरे इस कदर निचुड़े नजर आ रहे थे मानो कोल्हू के भारी पाटों के बीच से कई-कई बार गुजारा गया हो और फिर अचानक वहां एक आवाज गुजीं------ " क्या बात है, शेखर का मर्डर करने की अभी तक स्कीम नहीं बनी क्या ?"


पांचों चौंके ।


एक झटके के साथ सोफों से उछलकर इस तरह खडे हो गये जैसे एक ही स्विच से "कनेक्टिड' हौं।


नजर हॉल में दाखिल होती किरन पर पड़ी ।


उस-किरन पर जिसके कमल की पंखुडियों जैसे पतले सुर्ख और रस को होंठो पर मुर्दे में भी जान डाल देने वाली मुस्कुराहट नृत्य कर रही थी !


बुन्दू नजर नहीं आ रहा था ।


उसे देखते ही पांचों के चेहरे मानो एक---एक बार और कोल्हू के पाटों के बीच गुजार गये अभी वे हक्कै-ववकै ही थे कि किरन सोफों के बीच मैं, ठीक वहां पहुची जहाँ शीशे की एक विशाल और बेशकीमती सेन्टर टेबल रखी थी, सीधी कमल से मुखातिब होकर बोली वह----"मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तुमने ?"


"कं-कौन सा सवाल ?" वह हकला ग्या !!!!



"मैँने पूछा था कि शेखर का मर्डर करने की कोई स्कीम नहीं बनी?"



"क्या-क्या बक रही हो तुम ?" वह हिम्मत करके गुर्राया-"हम भला इस कमीने का मर्डर क्यों करेगे ?"



बेहद जानदार लहजे में कहा किरन ने----“क्योंक्रि मे शीघ्र ही इसे बेगुनाह साबित करने जा रही हूं ।”
 

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इसे बेगुनाह साबित करने वाली तुम होती कौन हो ?"


“इस केस की जांच पड़ताल करने के लिए मुझे कोर्ट ने नियुक्त किया है !"

“क----क्या कोर्ट ने ?" कमल के हलक से चीख निकल गई ।


"हां कोर्ट ने----अदालत नहीं चाहती कि उससे कोई गलत फैसला हो-----हालांकि "डेट" वही है यानि फैसला आज़ से ठीक चौथे दिन सुनाया जाना है-मगर सुनाया मेरी रिपोर्ट के आधार पर जायेगा----मुझे अाज से ठीक तीसरे दिन जज साहब के सामने अपनी रिपोर्ट पेश करनी है स्पष्ट रूप से यह बताना है कि शेखर संगीता का हत्यारा है या नहीं ?"


"फैसले से पहले कोर्ट द्वारा किसी को इस तरह नियुक्त करने की बात तो मैंने पहली ही बार सुनी है ।"


किरन ने मजेदार स्वर में कहा---" तो ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन्हें अपने जीवन में पहली बार सुनोगे ।"



“तुम शेखर बेगुनाह साबित करने निकली हो या जज साहब को अपनी निष्पक्ष रिपोर्ट देने?"कमल ने कहा


"निष्पक्ष रिपोर्ट देने ।"



"कुछ देर पहले तुमने कहा था कि......... !"



"वह इसलिए कहा था ताकि देख सकुं कि उन शब्दों की आप लोगों पर क्या 'प्रतिक्रिया' होती है !



“प्रतिक्रियास्वरूप अाप सब अन्दर वाले कमरे में इकटृठे हुए और लगे इस बारे में बाते करने कि अगर मैंने शेखर को बेगुनाह साबित कर दिया तो क्या होगा ?"



ये शब्द सुनते ही पांचों के छक्कै छूट गये ।


दिल धक्क से रह गये ।


चेहरों पर बज गये पौने बारह !



किसी के मुह से बोल न फूट सका-अभी वे डरी-डरी आंखों से एक-दूसरे की तरफ देख ही रहे थे कि किरन ने
घूम-धूमकर पांचों के चेहरों का निरीक्षण करते हुए कहा-----" और कमल नाम के इस बहादुर ने तो यह घोषणा तक कर दी कि अगर इसे लगा कि मैं शेखर को बेगुनाह साबित करने बाली हूं तो ये शेखर का काम तमाम कर देगा !"

पांचों को एक साथ ऐसा लगा जैसे कोई बड़ा पर्वत अचानक गड़गड़ाकर उनके उपर गिर पड़ा हो और वे लोग उसके मलवे के नीचे दब चुके हों---------मौत की सिहरन विद्युतीय तरंगों की तरह अभी उनके जिस्मों में दोड़ रही थी कि किरन ने सीधे कमल से कहा----"बोलो तुमने ऐसा कहा था या नहीं है ??"
कमल कुछ बकने ही वाला था कि अतर जैन ने कहा----“कमल बेवकूफ है बेटी मैं तुम्हें बताता हु, कि असलियत क्या थी?”



यह सोचकर किरन मन-ही-मन मुस्करा उठी कि अब वह 'बेटी' बन गई है-अ्तर जैन की तरफ पलटती हुई बोली वह----"आप ही कहिए ?"




"यह सच है कि अन्दर वाले कमरे में हम सब बाते कर रहे थे और यह भी सच है कि कमल ने शेखर की हत्या कर देने वाली बात कही थी मगर तुम्हें यह भी सोचना चाहिए कि यह बात किन हालात में, क्यों, कैसे और किन भावनाओं के साथ कही गई ?"



"आप बता दीजिये ।"


कमल अपने पापा की तरफ इस तरह देख रहा था जैसे वे पागल हो गए हों जबकि अतर जैन अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा प्रभावशाली ढंग से कहता चला गया… “हम सबको पुरा यकीन है कि संगीता बिटिया की हत्या शेखर ने ही की है----जव सुना कि इसे तुम बेगुनाह साबित करना चाहती हो तो हम यह सोचकर चिन्तित हो उठे कि संगीता बिटिया का हत्यारा खुला घूमता रहेगा बस, इसी बजय से गुस्से मे भरा कमल ये शव्द कह गया ---- किसी भाई को यह लगे कि उसकी बहन के हत्यारे को सजा नहीं होगी तो उसका क्रोधित हो उठना स्वाभाविक है --- कमल पर हुई उस स्वाभाविक प्रतिक्रिया को जरा भी गम्भीरता से नहीं लिया जाना चाहिये ----- यह बके चाहे जितना मगर शेखर की तो बात दूर , चीटीं तक को नहीं मार सकता !!"

किरन कह उठी---अपने बेटे की अच्छी पैरवी की है आपने !"



"यह पैरवी नहीं, हकीकत है बेटी।"



किरन के कुछ कहने से पहले ही वातावरण में एक जोरदार चीख की आवाज गूंजी ।


सभी चौंक पडे़ ।


अभी उनमें से कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि "बचाओ........बचाओ........बचाओ !" किसी के चिल्लाने से सारी कोठी दहल उठी ।

शेखर चीखा----" ये तो बुन्दू की आवाज है किरन जी ।"


मगर !


किरन को उक्त शब्द सुनने का होश कहाँ था ?


अनुमान से उस तरफ़ भागी जिस तरफ से वुन्दू के चिल्लाने की आवाज आ रही थी--- लम्बी --चौड़ी बारादरी में भागती हुई वह कोठी के भीतर की तरफ़ दाखिल हो गयी ।



शेखर, अतर, कमल, राकेश, सुमित्रा और संगम उसके पीछे लपके ।



वुन्दू की "बचाओ .......बचाओ' की पुकार अभी भी सारी कोठी में गुंज रही थी -----आंधी--तूफान की तरह भागती किरन बारादरी एक मोड़ पर मुडी और मुड़ते ही नज़र सामने से चिल्ला-चिल्लाकर इसी तरफ आते बुन्दू पर पड़ी ।



किरन कुछ और तेजी से उसकी तरफ लपकी !!



बुन्दू की हालत ऐसी थी जैसे सैकडों भूत उसके पीछे दौड रहे हों-उस वक्त वह किरन से करीब दस मीटर दुर था जब भागता भागता अचानक यूं लड़खड़ाया जैसे किसी ने अड़ंगी मार दी हो फिर झोंक में एक दर्दनाक चीख के साथ फर्श पर गिरा !!!
 

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और चिकने फर्श पर फिसलता हुआ जिस्म ठीक किरन के पैरों के नजदीक जाकर स्थिर हुआ । कोई हरकत नहीं थी उसमें ।


एकदम शान्त, निश्वेष्ट ।


किरन ने बारादरी के सामने वाले मोड़ पर निगाह मारी ---- मोड़ करीब तीस मीटर दुर था परन्तु कहीं कोई हलचल नजर नहीं आइ---अभी वह अपनी उखड़ी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयत्न कर ही रही थी कि भागते कदमों की आवाज के साथ सभी लोग वहां पहुंच गये ।



फूली सांसों के साथ लगभग सभी ने पूछा----“क-क्या हुआ ?? "



किसी के सवाल का जवाब देने के स्थान पर किरन जहां खडी थी , घुटनों के बल वहीं बैठ गई फिर उसने औंधे पड़े बुन्दू के जिस्म को सीधा किया ।



नब्ज टटोली !


यह अहसास करके किरन के चेहरे पर छाया तनाव .. कुछ कम हुआ कि वुन्दू केवल बेहोश था…फर्श पर गिरने के कारण उसके मस्तक के अग्रभाग से खून बह रहा था ! चेहरा पसीने से तर -- बतर ।


पीला जर्द ।


मुर्दे के चेहरे की मानिन्द निस्तेज !


आतंक की परछाई उसके चेहरे पर ऐसे विकराल रूप में नजर आ रही यी जैसे आपको अपनी परछाईं तब नजर अाती है जव अाप किसी आन बल्ब के नजदीक खडे हों ।"
सभी लोग बुन्दू के चारों तरफ ख़ड़े थे----उनमें "निक्कू‘ भी आ मिला था, वह निक्कू जो वुन्दू के बेहोश होने के बाद सब्जी लेकर अाया था-----ज़ब उसे वारदात के बारे में बताया गया तो उसकी हालत भी उन जैसी हो गई और वह भी यह जानने के लिए उत्सुक हो उठा कि आखिर हुआ क्या है ?



जख्म पर पट्टी बांध दी गई थी ।


एक बार होश में आने के बाद बुन्दू बड़े ही खौफ़नाक अन्दाज से चीखा और पुन: बेहोश हो गया ।


कुछ देर बाद ।


फिर होश में लाया गया ।


वड़ी मुशिकल से सम्भाला गया उसे ।


किरन ने समझाया कि "अब डरने की कोई जरूरत नहीं है, वह अपने शुभचिंतकों के बीच है ।"


" व वह मुझे मार डालेगी ।" आतंकित बुन्दू पागलों की तरह आंखें फाड़-फाड़कर कहता चला गया-उसने मेरी

गर्दन पकड़ ली थी…में-मैं बडी मुश्किल से छूट सका-भागा उसने मेरा" पीछा किया मेम शाब मुझें बचा लीजिए-मेरे पीछे भागी थी वह ।"


"किसकी बात कर रहे हो ?"


"व----वह..........वह ।”बुन्दू हकलाकर रह गया आतंक की छाया ने चेहरे के साथ-साथ आंखों तक को ढक लिया था जबकि किरन ने कहा--- "हां' 'हां बोलो बुन्दू डरो नहीं---बताओ, कौन थी वह?"



"लाश !"


सम्भलकर सबसे पहले किरन ही ने पूछा…“किसकी लाश थी ?"

"ब--वडे शाब की, बडे मालिक की !"




"गुलाव चन्द की!" आर्श्वय मिश्रित चीखें निकल पड़ी ।



प्रत्येक व्यक्ति के जिस्म में मीत की झुरझुरी-सी दौड गई जबकि ब्रुन्दू कुछ ऐसे अन्दाज में कहता चला गया जैसै अभी भी गुलाब चन्द की लाश को अपने सामने देख रहा हो-----------हां, बडे शाब की लाश थी वह-----बहुत ही डरावनी, बुरी तरह जली हुई…-शारा जिस्म जला हुआ था उशके जिस्म पर वही कपडे थे, वही अधजले कपडे और चेहरा------चेहरा तो इतना भयानक था-कि देखते ही मेरे हलक से चीख निकल गई !"



"जब चेहरा जला हुअा था तो तुमने कैसे पहचाना कि लाश गुलाब चन्द की है ?"


"म-मैंने मालिक की लाश देखी नहीं थी क्या ?"


. "कब देखी थी ?"



"तभी जब वे मरे थे-अंत्येष्टि से पहले मैंने ही तो नहलाया था उन्हे ।"



"और अंत्येष्टि भी तुम्हारे सामने हुई थी ?"

" हां !"


" तुमने उनकी जलती चिता देखी थी ?"



" देखी थी !!"



"उसकी लाश को पंचतत्वों में मिलते भी देखा था?"


“बिल्कुल देखा था !"

"तो फिर लाश कोठी में कैसे आ सकती है ?"
"म----मुझे नहीं मालूम कि कैसे अाई म-मगर अगर वह थी शाब की लाश-मैँने उनकी फुली हुई अगुलियों के बीचं फंसी अगुंठिया देखी थी---शाब' जो अगुठियों की मैं लाखों में पहचान सकता हू बड़ी कीमती अंगुठिया थीं वे! "

"इसका मतलब ये है बुन्दू कि किसी बहरुपिए ने गुलाब चन्द की लाश का रूप धारण करके तुम्हें डराया है ।"


'ऐ-ऐसा कैसे हो सकता है ?"


"और ऐसा भी कैसे हो सकता है कि जिस लाश को तुमने अपनी आंखों से पंचतत्वों में विलीन होते देखा वह उसी रूप में तुम्हें फिर मिल जाये ?"


बून्दु चुप रह गया।



आंखों में सोचने बाले भाव उभर आये ।


उसे सामान्य अवस्था में लाने की गरज से किरन कहती चली गई----"यकीन मानो वह लाश नहीं हो सकती कोई बहरूपिया था जिसका उदूदेश्य तुम्हें डराना था और तुम डर गये ,बेवजह डर गये ! तुम्हें डटकर उसका मुकाबला करना चाहिए था ।"

॰ "म-मैं.....?" बुन्दू सकपका गया-""मैं भला उसका मुकाबला कैसे कर सकता था ?"


"खेर, अब यह बताओ कि बहरूपिया तुम्हें मिला कहां था है"'


"वह मुझे शेखर शाब के पुराने बेडरूम के नजदीक मिली थी-जव आपने मेरे सामने शेखर शाब से कहा कि चलो इन लोगों से बात करते हैं तो मैं यह सोचकर डर गया कि आप अपना वादा भूलकर इन पर मेरा भेद खोल दोगी---बारादरी के मोड़ पर मुड़ा ही था कि अचानक लाश मेरे सामने आ गयी ।"


"फिर ?"


. "मैं भाग रहा था कि दरवाजा बंद होने की जोरदार आवाज सुनी-भागते ही भागते पीछे मुड़कर देखा-देखा कि वह, आवाज स्टडी की दरवाजा बंद होने की थी ।"



"और लाश ?"


"बारादरी नजर नहीं अा रही थी ।"


"यानि स्टडी के अन्दर चली गयी ।"
अपनी आंखों शे मैंने उसे श्टडी के अन्दर जाते नहीँ देखा और बारादरी में उसे न प्राकर भागने या चीखने की रफ्तार में भी कोई कमी नहीं लाया मगर हां, जिस तरह से श्टडी का दरवाजा बन्द होते ही आवाज के शाथ वह बारादरी से गायब हो गई उशसे लगता तो यही है कि श्टडी में ही चली गयी होगी ।"



इससे पूर्व कि किरन उससे अगला सवाल करती, शेखर बोला----" एक मिनट किरन जी ।"


"क्या चाहते हो ?" किरन ने उसकी तरफ पलटकर पूछा ।


"मैँ यह बताना चाहता हू कि स्टडी के नीचे एक तहखाना है ।"


"तहखाना ? "


"तहखाना भी ऐसा जिसकी जानकारी मेरी 'नॉलिज' के मुताबिक मुझे, संगीता और केवल बाबूजी को थी---मेरे ख्याल से इसकी जानकारी अंकल या इनके किसी फेमिली मैम्बर्सं को भी अभी तक नहीं होगी ।"


"जब' हमें किसी ने बताया ही नहीं तो जानकारी कैसे होगी?" अतर जैन गुर्रा-सा उठा ।


किरन ने एक पल चुप रहकर कुछ सोचा और पुन: पलटकर बुन्दू से बोली----“तुम्हें हम सबको बहाँ ले चलना होगा बुन्दू जहां लाश मिली थी ।"


एक बार पुन: बुन्दू की आंखों में आतंक के साये नाच उठे ।

" य य य---यहा" ।" बारादरी के एक मेड़ पर पहुंचकर बुन्दू ने बताया---'' यहां मिली थी ।"


"गर्दन दबाने की कोशिश भी उसने यहीं की थी ?"'


"हां ।"



तुम उससे छूटकर किधर भागे ?"'


"उधर ।" उसने दूर तक खाली पड़ी बारादरी की तरफ अंगुली उठाई ।



"स्टडी कहां है ?"'


"वो रही ।" बुन्दू ने करीब बीस मीटर दुर तक एक बंद दरवाजे की तरफ अंगुली उठाई ।


सभी लोगों को साथ लिए स्टडी की तरफ़ बढ़ती किरन ने शेखर से सवाल किया-----"तुमने गुलाब चन्द की अंगुठियों का क्या किया था शेखर ? "


"मेरा या संगीता का तो अंगुठियों की तरफ़ ध्यान तक नहीं था---ध्यान दिलाया अंत्येष्टि आये लोगों ने----सभी ने कहा कि अंगूठियां वहुत कीमती हैं अत: उसे निकाल लिया जाये----ऐसा कहने वालों में अंकल भी थे-मैंने और संगिता ने न विरोध किया, न स्वीकृति दी बल्कि जाने किस-किसने सारी अंगूठियां मुझे पकड़ा दी थीं ।"
 
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