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"सिर्फ इतना कि जो कुछ मल्होत्रा ने कहा अगर उसकी जांच कर ली जाए तो क्या बुराई है ?"
"कैसे जांच करना चाहती हो ?"
" इस केस की फाइल पढ़कर, सारे मामले की "इन्वेस्टीगेशन करके ।"
"जिस केस में से शहजाद राय जैसा काइयां एडवोकेट कुछ नहीं निकाल सका उसमें से तुम भला क्या निकाल लोगी ?"
" ऐसे वहुत-से-काम होते है पापा, जिन्हें हाथी नहीं कर पाता मगर चींटी कर देती है ।"
"तुम उन तिलों में से तेल निकालने की कोशिश करोगी जिनमें तेल नहीं है ।"
"कोल्हू में डालने से पहले कोई नहीं बता सकता कि किन तिलों में तेल है किन में नहीं।''
“बता देते हैं बेटी ।" बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहा------" अनुभवी लोग तिलों को देखते ही, विना उन्हें कोल्हू में डाले बता देते है कि उनमें तेल है या नहीं ।"
"देखना यहीं है पापा कि आपका अनुभव जीतता है या . . मेरे दिल की आवाज ।"
अजय देशमुख नामक जिला एवं सत्र न्यायधीश ने शेखर मल्होत्रा की सभी बाते धैर्य पूर्वक सुनी और सुनने के बाद सवाल किया----“अगर तुम बेगुनाह हो तो तुम्हारे खिलाफ़ इतने पुख्ता गवाह और ऐसे अकाटय सबूत कहां से पैदा हो गए जिन्हें शहजाद राय जैसा धुरन्धर वकील न काट सका ।"
"इस किस्म के सवालों का जवाब अगर मेरे पास होता तो आज आप उसे सच न मान रहे होते जिसे मान रहे हैं ।"
"एक सेकेंड के लिए मान ले कि तुम सच बोल रहे हो तो-;------"'इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें हत्यारा सावित करने वाले पुख्ता गवाह और अकाट्य सबूत किसी के द्वारा प्लांट किये गये हैं !"
"अब इन बातों पर गौर करने का वक्त निकल चुका है जज साहब ।"
"क्या तुम्हें किसी पर शक है !"
"कैसा शक ?”
"कि फलां शख्स तुम्हें अपनी बीबी की हत्या के जुर्म में फंसाने की चेष्टा कर सकता है ।"
"जो कुछ एाप कह रहे हैं वह मेरे लिए नया नहीं है, राय साहब भी यही सब कहते रहे है और मैं-----मैं यह सब सोचता रहा हू…इतना सोचा है मैंने कि अब तो सोचने की " कल्पना से ही दिमाग में दर्द शुरू हो जाता है सोचते-सोचते आपकी तरह मुझे भी हर बार ऐसा जरूर लगा कि किसी के प्रयास कि बगैर मैं इतनी बुरी तरह नहीं कंस सकता किसी-न-किसी ने तो मेरे चारों तरफ चक्रव्यूह रचा ही है ।"
"चक्रव्यूह ?"
"हां, जो कुछ हुआ है, उसे शायद यही शब्द दिया जाना उपयुक्त है-----किसी ने, ऐसे शख्स ने मेरे चारों तरफ कोई चक्रव्यूह रचा है 'जिसके बोरे में मैं कल्पनाओं तक में नहीं सोच पाया हूं
जब मुझे यही नहीं मालूम कि चक्रव्यूह किसने रचा है तो उसे तोडने का प्रयास कहां से शुरू करता और फिर.......... "मेरी तो बिसात क्या है-इस चक्रव्यूह को इंस्पेक्टर अक्षय श्रीवास्तव जैसा घाघ पुलिसिया न तोड़ सका, शहजाद राय जैसे धुरन्धर वकील न तोड सके---और बैरिस्टर साहब तक इस चक्रव्यूह में फंस गए हैं !"
"हम और विश्वनाथ ?"
"क्यों, क्या खुद को आप चक्रव्यूह के चक्र से बाहर समझते हैं ?"
"हम कैसे फंसे हुए हैं ?"
" आपने खुद कबूल किया कि अगर मां बेगुनाह हूं तो किसी ने मुझे फंसाया है-जाहिर है कि फंसाने वाले का लक्ष्य मुझे अपनी बीबी की हत्या के जुर्म में फांसी करा देना है, और मुझे फांसी के फंदे तक पहुचाने की जिम्मेदारी से न आप बच सकते हैं, न बैरिस्टर साहब ।"
“देखो शेखर, हम सिर्फ वह करते हैं जो सबूत और गवाह कराते हैं ।"
"और वे सबूत और गवाह वकील अाप ही के किसी के द्वारा 'प्लॉट' किये गए हो सकते हैँ…प्लांट किये गये सबूत और गवाहों के फेर में पडकर अगर आप एक बेगुनाह को फांसी पर चढा देते हैं तो क्या यह नहीं माना जायेगा कि किस अदृश्य ताकत द्वारा रचे गये चक्रव्यूह में फंसकर मैं फांसी के फंदे पर झूल जाऊंगा उसी ताकत द्वारा रचे गये चक्रव्यूह में फंसकर अाप व बैरिस्टर साहब भी वह कर रहे हैं, जो वह करवा रहा है ?"
"हम नहीं समझते कि हम किसी चक्रव्यूह में फंसे हुए ।"
"वह चक्रव्यूह ही क्या हुआ जज साहब, जिसमें फंसे शख्स को यह इल्म हो जाये कि वह फंसा हुआ है खैर , मुझें लगता है कि बहस लम्बी होती जा रही है बहस भी वह जिसका कोई लाभ नहीं है-----मैँ आपको दोष देने नहीं आया----इतना जाहिल भी नहीं हूं कि आपके और बैरिस्टर साहब के कर्त्तव्य को न समझता होऊं-------जानता हूं कि आप और बैरिस्टर साहब अपना कर्तव्य मुकम्मल ईमानदारी से निभा रहे हैं, मैं तो सिर्फ इतना सावित करके अपने दिल को समझाने की चेष्टा कर रहा हूँ कि चक्रव्यूह जिसने रचा है, उसके फेर में मैं कम-से-कम अकेला फंसा हुआ नहीं हूं बल्कि-------आप, बैरिस्टर साहब, शहजाद राय और श्रीवास्तव भी फंसे हुए हैं-------यह सोच-सोचकर मुझे चैन मिलता है कि जिस चक्रव्यूह का शिकार ऐसी-ऐसी धुरन्धर 'घाघ' खुर्राट और काइयां हस्ती हैं , उसमें अगर मैं फंस गया तो कौन-सी बडी बात है-जिस चक्रव्यूह को ऐसी हस्तियां न तोड़ सकी उसे तोड़ने की 'कुव्वत' मैं अदना-सा शख्स भला कहाँ से लाता…खैर आपने मेरी बातें सुनीं --- बहस की, भले ही कुछ सेकेंड के लिए सही, मगर मुझे बेगुनाह माना तो है ही, इन सबके लिए शुक्रिया ---- अब मैं चलता हूं ।
कहने के बाद शेखर मल्होत्रा लम्बे-लम्बे कदमों के साथ ड्राइंगरूम से बाहर निकल गया, जिला एवं सत्र न्यायधीश ने उसे रोकने की चेष्टा नहीं की ।
वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा उठा ।
किरन इस हमले का तात्पर्य तक न समझ पाई थी कि स्टेयरिंग काबू से बाहर होने लगा-----गाड़ी नशे में धुत शराबी के भांति लडखडाई और यह पहला क्षण था जब किरन को लगा की किसी ने उसकी गाड़ी के टायरों को निशाना बनाया गया है !
दिमाग पर आतंक सवार हो गया ।
"कैसे जांच करना चाहती हो ?"
" इस केस की फाइल पढ़कर, सारे मामले की "इन्वेस्टीगेशन करके ।"
"जिस केस में से शहजाद राय जैसा काइयां एडवोकेट कुछ नहीं निकाल सका उसमें से तुम भला क्या निकाल लोगी ?"
" ऐसे वहुत-से-काम होते है पापा, जिन्हें हाथी नहीं कर पाता मगर चींटी कर देती है ।"
"तुम उन तिलों में से तेल निकालने की कोशिश करोगी जिनमें तेल नहीं है ।"
"कोल्हू में डालने से पहले कोई नहीं बता सकता कि किन तिलों में तेल है किन में नहीं।''
“बता देते हैं बेटी ।" बैरिस्टर विश्वनाथ ने कहा------" अनुभवी लोग तिलों को देखते ही, विना उन्हें कोल्हू में डाले बता देते है कि उनमें तेल है या नहीं ।"
"देखना यहीं है पापा कि आपका अनुभव जीतता है या . . मेरे दिल की आवाज ।"
अजय देशमुख नामक जिला एवं सत्र न्यायधीश ने शेखर मल्होत्रा की सभी बाते धैर्य पूर्वक सुनी और सुनने के बाद सवाल किया----“अगर तुम बेगुनाह हो तो तुम्हारे खिलाफ़ इतने पुख्ता गवाह और ऐसे अकाटय सबूत कहां से पैदा हो गए जिन्हें शहजाद राय जैसा धुरन्धर वकील न काट सका ।"
"इस किस्म के सवालों का जवाब अगर मेरे पास होता तो आज आप उसे सच न मान रहे होते जिसे मान रहे हैं ।"
"एक सेकेंड के लिए मान ले कि तुम सच बोल रहे हो तो-;------"'इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें हत्यारा सावित करने वाले पुख्ता गवाह और अकाट्य सबूत किसी के द्वारा प्लांट किये गये हैं !"
"अब इन बातों पर गौर करने का वक्त निकल चुका है जज साहब ।"
"क्या तुम्हें किसी पर शक है !"
"कैसा शक ?”
"कि फलां शख्स तुम्हें अपनी बीबी की हत्या के जुर्म में फंसाने की चेष्टा कर सकता है ।"
"जो कुछ एाप कह रहे हैं वह मेरे लिए नया नहीं है, राय साहब भी यही सब कहते रहे है और मैं-----मैं यह सब सोचता रहा हू…इतना सोचा है मैंने कि अब तो सोचने की " कल्पना से ही दिमाग में दर्द शुरू हो जाता है सोचते-सोचते आपकी तरह मुझे भी हर बार ऐसा जरूर लगा कि किसी के प्रयास कि बगैर मैं इतनी बुरी तरह नहीं कंस सकता किसी-न-किसी ने तो मेरे चारों तरफ चक्रव्यूह रचा ही है ।"
"चक्रव्यूह ?"
"हां, जो कुछ हुआ है, उसे शायद यही शब्द दिया जाना उपयुक्त है-----किसी ने, ऐसे शख्स ने मेरे चारों तरफ कोई चक्रव्यूह रचा है 'जिसके बोरे में मैं कल्पनाओं तक में नहीं सोच पाया हूं
जब मुझे यही नहीं मालूम कि चक्रव्यूह किसने रचा है तो उसे तोडने का प्रयास कहां से शुरू करता और फिर.......... "मेरी तो बिसात क्या है-इस चक्रव्यूह को इंस्पेक्टर अक्षय श्रीवास्तव जैसा घाघ पुलिसिया न तोड़ सका, शहजाद राय जैसे धुरन्धर वकील न तोड सके---और बैरिस्टर साहब तक इस चक्रव्यूह में फंस गए हैं !"
"हम और विश्वनाथ ?"
"क्यों, क्या खुद को आप चक्रव्यूह के चक्र से बाहर समझते हैं ?"
"हम कैसे फंसे हुए हैं ?"
" आपने खुद कबूल किया कि अगर मां बेगुनाह हूं तो किसी ने मुझे फंसाया है-जाहिर है कि फंसाने वाले का लक्ष्य मुझे अपनी बीबी की हत्या के जुर्म में फांसी करा देना है, और मुझे फांसी के फंदे तक पहुचाने की जिम्मेदारी से न आप बच सकते हैं, न बैरिस्टर साहब ।"
“देखो शेखर, हम सिर्फ वह करते हैं जो सबूत और गवाह कराते हैं ।"
"और वे सबूत और गवाह वकील अाप ही के किसी के द्वारा 'प्लॉट' किये गए हो सकते हैँ…प्लांट किये गये सबूत और गवाहों के फेर में पडकर अगर आप एक बेगुनाह को फांसी पर चढा देते हैं तो क्या यह नहीं माना जायेगा कि किस अदृश्य ताकत द्वारा रचे गये चक्रव्यूह में फंसकर मैं फांसी के फंदे पर झूल जाऊंगा उसी ताकत द्वारा रचे गये चक्रव्यूह में फंसकर अाप व बैरिस्टर साहब भी वह कर रहे हैं, जो वह करवा रहा है ?"
"हम नहीं समझते कि हम किसी चक्रव्यूह में फंसे हुए ।"
"वह चक्रव्यूह ही क्या हुआ जज साहब, जिसमें फंसे शख्स को यह इल्म हो जाये कि वह फंसा हुआ है खैर , मुझें लगता है कि बहस लम्बी होती जा रही है बहस भी वह जिसका कोई लाभ नहीं है-----मैँ आपको दोष देने नहीं आया----इतना जाहिल भी नहीं हूं कि आपके और बैरिस्टर साहब के कर्त्तव्य को न समझता होऊं-------जानता हूं कि आप और बैरिस्टर साहब अपना कर्तव्य मुकम्मल ईमानदारी से निभा रहे हैं, मैं तो सिर्फ इतना सावित करके अपने दिल को समझाने की चेष्टा कर रहा हूँ कि चक्रव्यूह जिसने रचा है, उसके फेर में मैं कम-से-कम अकेला फंसा हुआ नहीं हूं बल्कि-------आप, बैरिस्टर साहब, शहजाद राय और श्रीवास्तव भी फंसे हुए हैं-------यह सोच-सोचकर मुझे चैन मिलता है कि जिस चक्रव्यूह का शिकार ऐसी-ऐसी धुरन्धर 'घाघ' खुर्राट और काइयां हस्ती हैं , उसमें अगर मैं फंस गया तो कौन-सी बडी बात है-जिस चक्रव्यूह को ऐसी हस्तियां न तोड़ सकी उसे तोड़ने की 'कुव्वत' मैं अदना-सा शख्स भला कहाँ से लाता…खैर आपने मेरी बातें सुनीं --- बहस की, भले ही कुछ सेकेंड के लिए सही, मगर मुझे बेगुनाह माना तो है ही, इन सबके लिए शुक्रिया ---- अब मैं चलता हूं ।
कहने के बाद शेखर मल्होत्रा लम्बे-लम्बे कदमों के साथ ड्राइंगरूम से बाहर निकल गया, जिला एवं सत्र न्यायधीश ने उसे रोकने की चेष्टा नहीं की ।
वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा उठा ।
किरन इस हमले का तात्पर्य तक न समझ पाई थी कि स्टेयरिंग काबू से बाहर होने लगा-----गाड़ी नशे में धुत शराबी के भांति लडखडाई और यह पहला क्षण था जब किरन को लगा की किसी ने उसकी गाड़ी के टायरों को निशाना बनाया गया है !
दिमाग पर आतंक सवार हो गया ।