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Thriller चक्रव्यूह

Rahul

Kingkong
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awesome update bhaiya ji
 

Rahul

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Rahulp143

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“आपने ऐसा कहा था ?" किरन ने अतर जैन से पूछा।


"जी हां ।"


किरन ने पुन: शेखर से सवाल किया---"तुमने उनका क्या किया ?"



"संगीता को सौंप दी थीं-मगर....।"

"वे चोरी चली गई ?"


" च--चोरी चली गई है"' किरन बुरी तरह चौकीं --- “कब ?"



"संगीता की मौत से करीब एक हफ्ता पहले ।"


"कुछ और भी चोरी गया था या सिर्फ गुलाब चन्द की अंगुठियां ?"




“काफी कुछ चला गया था, बल्कि अगर यह कहा जाये तो गलत न होगा कि संगीता का जो जेवर लॉकर में न होकर धर की सेफ में था बह सभी चला गया था ।"



"क्या तुम लोगों ने इस चोरी की रपट लिखवाई थी ?"


"हाँ.....लिखवाई थी!!!!

मगर आज तक तो इंस्पेक्टर अक्षय चोर पकड नहीं सका है…ज़ब चोर का मामला ताजा-ताजा था तब संगीता करीब-करीब रोज ही फोन पर अक्षय से बात करके पूछा करती थी कि चोर पकडा गया या नहीं, परन्तु सकारात्मक जवाब कभी नहीं मिला---दिन गुजरते गए और बात आई-गई हो गई…संगीता ने भी निराश होकर फोन-वोन करने छोड़ दिये ।"




शेखर की बात खाम होते-होते वे स्टडी के दरवाजे के नजदीक पहुच गए और जब किरन ने धक्का देकर दरवाजे को खोलना चाहा तो पाया कि वह अन्दर से बंद था ।



किरन चिहुंक उठी ।


चकरा सभी गये थे ।



सन्ताटे से धिरे धड़कते दिलों के साथ वे सभी आंखों में सवालिया निशान लिए एक-दुसरे की तरफ़ देखते रह गये--- जो सवालिया निशान सबकी आंखों में 'कैबरे' कर रहा था उसका जवाब किसी के पास नहीं था ।


करीब-करीब एक मिनट उनके बीच सन्नाटा कायम रहा ।


खौफनाक सन्माटा ।


ऐसा, जिससे एक विशेष प्रकार की सांय-सांय की आवाज की होती है ।




सन्नाटे युक्त उस एक मिनट के अन्दर-अन्दर किरन सहित सभी के दिल 'घाड़-धाड़', करके बजने लगे थे ---- सस्पेंस की ज्यादती सभी के चेहरों पर स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी----खुद पर नियंत्रण पाकर मुंह से सबसे पहला शब्द निकालने की हिम्मत किरन ने ही की, उसने शेखर से पूछता-"क्या स्टडी का कोई दूसरा दरवाजा भी है ?" '


"नहीं !"


"खिडकी अादि ?"



"पूरी कोटी में स्टडी ही ऐसी जगह है जिसके तीन तरफ कमरे हैं: चौथी तरफ बारादरी यानि जहाँ हम खडे़ हैं किसी भी कमरे में न स्टडी का दरवाजा है, न खिड़की----बाबूजी कहा करते थे "कि स्टडी ऐसी होनी चाहीए जहां लान में चहक रही चिड़ीयों की चहचहाट तक सुनाई न दे ।"



"यानि स्टडी के अन्दर सिर्फ एक तहखाना है?"


“हां !"


" तहखाने का कोई अन्य रास्ता?"


" नहीं है ।”


"इसका मतलब खुद. को गुलाब चन्द की लाश बनाने वाला शख्स स्टडी या तहखाने में ही होना चाहिए ?"
" तहखाने की जानकारी भला किसी को कैसे हो सकती है, उसके बारे में केवल तीन शख्स जानते थे जिनमें से दो आज इस दुनिया में नहीं हैं और तीसरा मैं खुद खड़ा हू।”


"तो वह स्टडी में होगा ?"


"होना तो चाहिए क्योंकि बाहर निकलने का इस दरवाजे के अलावा कोई रास्ता नहीं है ।"


"और वह अन्दर बंद है ।" किरन बड़बड़ाई ।


जवाब किसी ने नहीं दिया ।


सव उसी की तरफ देख रहे थे मानो अनजाने में ही सबने उसका नेतृत्व कुबूल कर लिया हो-सबके चेहरों पर साफ-साफ लिखा था कि वे किरन का फैसला जानना चाहते हैं----यह आशंका सबको थरथराये दे रही थी कि गुलाब चन्द की लाश वना शख्स स्टडी के अन्दर हो सकता है, सबसे खस्ता हालत बुन्दू की थी ।


"तो अब स्टडी के अन्दर जाने के लिए दरवाजे को " तोडने के अलावा कोई चारा नहीं है ?”


. "क-क्या आप स्टडी के अन्दर जाने की सोच रही हैं?"


किरन ने 'कहा----"भेद जानने का इसके अलावा और चारा भी क्या है?"

"म-मैं इस तरह से आपको स्टडी में जाने की इजाजत नहीं दूगा ।”

" क्यों ?"


"कमाल की बात कर रही हैं आप ।" शेखर चकित स्वर में कहता चला गया…“अन्दर जो भी है, अकेला भले ही सही मगर उसके पास कोई हथियार हो सकता है----हम लोगों पर आक्रमण कर सकता है वह ।"



मोहक मुस्कान के साथ किरन ने कुछ कहना चाहा ही था कि किसी ने उसे बोलने नहीं दिया----सबने शेखर के सुर से सर मिला दिया था और अपने ऊपर हुए हमले की याद आते ही किरन ने फैसला किया कि ज्यादा बहादुरी दिखाने का कोई लाभ नहीं, अत: बोली---“तो फोन करके पुलिस को बुला लेते हैं !"


"यह ठीक रहेगा ।" सबने एक स्वर में कहा ।


"आप लीग यहीं ठहरिये ।" किरन बाहर की तरफ वाली सांकल लगाती हुई 'बोलीं----"मैं पुलिस को फोन करके अाती हू ।"


वुन्दू तपाक से बोल उठा-----"आपके साथ चलुंगा मेमशाब .।"



किरन मुस्कराकर रह गई---ये क्षण इतने तनावपूर्ण थे कि अन्य किसी के होंठों पर मुस्कान तक न उभरी !

" न-नहीं, डॉक्टर साहब !". अक्षय श्रीवास्तव फोन पर लगभग चीख पड़ा और अगले ही पल जाने क्या हुआ कि अपने पहले लहजे के ठीक विपरीत गिड़मिड़ा उठा-----प-प्लीज"......इस बारे में आप किसीसे जिक्र न कीजिएगा ।"


दूसरी तरफ से कुछ कहा गया ।

जवाब में अक्षय बोला----"न न -नहीं............'उससे तो भूलकर भी मत कहिएगा ---- उसे पता न लग पाये , खास तौर से इसीलिए तो किसी से जिक्र न करने की रिक्वेस्ट कर रहा हूं !!
पुन: कुछ कहा गया ।

"हाँ-हां पता तो लगना ही है ।" जवाब में उसने कहा---यह तो मैं भी जानता हू कि पता तो उसे लगेगा ही और जब पता लगेगा तो 'शॉक' भी लगेगा उसे, मगर यदि समय से पहले पता लग गया, अभी पता लग गया तो तो रो-रोकर वह अपनी जान दे देगी ---- प्लीज मुझे उसका हँसता-खिलखिलाता चेहरा देखने दो डॉक्टर ।"


दूसरी तरफ से बोलने वाले ने शायद शिकस्त कुबूल कर ली ।


. “थैंक्यू' ....."थेंक्यू वेरी मच डॉक्टर ।" कहने के बाद उसने रिसीवर क्रेडिल पर पटका और मुंह से ऐसी सांस निकलीे जो यह बता रही थी कि वह वहुत थक गया है ।



अपना सिर कुर्सी की पुश्त पर टिकाकर उसने आँफिस के लैंटर की तरफ देखा और फिर जाने किस रहस्यमय सोचों के कारण आंखें आँसुओं से डबाडब भर गयीं !


जाने कितनी देर तक वह वही सव सोचता रहा जो उसे असीमित पीड़ा पहुचा रहा था कि फोन की घन्टी घनघना उठी ।


वह सीधा हुआ ।
 

Rahulp143

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दोनों हथेलियों से आंसू पोंछे, रिसीवर उठाया और पुलिसिया स्टाइल में बोला-+--"सिविल लाइन थाने सै इंस्पेक्टर अक्षय श्रीवास्तव बोल रहा हूं !



"मैं किरन हूं इंस्पेक्टर ।"


"ओह !" इंस्पेक्टर के काले होंठों पर अजीब-भी मुस्कान उभरी----" आपकी रपट दर्ज करके मैं छानबीन कर चुका हुं ---क्षतिग्रस्त गाड़ी वर्कशाप भिजवा दी है मगर काफी प्रयासों के बावजूद अभी तक विना नम्बर प्लेट वाली काली एम्बेसेडर नहीं पकडी जा सकी-वेसे क्या आपने हमलावरों में से किसी को देखा था ?"



उसके सवाल पर ध्यान न देकर किरन ने कहा---" इस वक्त मैं शेखर मल्होत्रा की कोठी से बोल रही हूं -- इंस्पेक्टर और आपको यह बताने के लिए फोन किया है कि फौरन से पेश्तर यहां आपकी जरूरत है !"



"क्यों क्या हुआ. ?"



"ब्रुन्दू ने अपनी आंखों से गुलाब चन्द की लाश देखी है और उस लाश ने इस वक्त खुद को स्टडी में बन्द कर रखा है ।” कहने के बाद किरन रिसीवर वापस क्रेडिल पर रख दिया, जानती थी कि जितना कह चुकी है उतना सुनने के बाद इंस्पेक्टर लाख जरूरी काम छोड़कर तत्काल यहाँ के लिए रवाना हो जाएगा ।

"क-क्या. ?" अक्षय श्रीवास्तव उछल पड़ा--'' क-क्या कहा आपने, आप संगीता मर्डर केस की "रि-इन्वेस्टीगेशन करने निकली हैं ?"



"हां ।" किरन हौले से मुस्कराई !



"बात कुछ समझ में नहीं आई ।" अक्षय अपने आश्चर्य पर काबू नहीं कर पा रहा था----"संगीता मर्डर केस में रिं-इन्वेस्टीगेशन के लिए आखिर है ही क्या. ?"



किरन और अक्षय . के बीच ये बातें शेखर मल्होत्रा की कोठी के एक तन्हा कमरे में हो रही थी ।



"मैं ये जानना चाहती हूं कि अाप इस केस में कैसे इत्वॉल्व हुए?”



बेडौल शरीर वाले करीब पच्चीस वर्षीय काले-कलूटे इंस्पेक्टर ने गहरी सांस ती---किरन की तरफ ऐसे अन्दाज में देखा जैसे किसी 'क्रैक' की तरफ देख रहा हो, बोला उस रात मैं नाइट डूयूटी पर था-अपने ओंफिस में बैठा खाली वक्त गुजारने के लिए वेद प्रकाश शमी का "सुहाग से बडा' पढ रहा था कि फोन की घन्टी घनघना उठी ।"


"किसका फोन था है"'


"रधिया यानि इस कोठी की नौकरानी का ।"


“क्या कहा उसने ? "


"उसकी आबाज से जाहिर था कि वह बुरी तरह डरी और घबराई हुई है !" अक्षय कहता चला गया…“हकला-हकलाकर बडी मुश्किल से बता पाई कि उसके 'साब' ने मेम-साहब को मार डाला है, मैं उछल पडा, चीखकर उसका नाम-पता पूछा----पता बताया जाते ही पूछा कि "तुम्हरे साहब कहां हैं-उसने बताया कि निक्कू और बुंदू 'उन्हें पकडे खड़े हैं---मेरे यह पूछने पर कि निक्कू और बुन्दू कौन हैं उसने वताया कि वे मेरी तरह नौकर हैं …मैंने यह निदेश देकर फोन क्रेडिल पर पटक दिया कि वे लोग किसी चीज को छेड़े नहीं और एक कांस्टेबल तथा दो सिपाहियों को साथ लेकर जीप द्वारा यहाँ पहुचा ।"



"यहां आपने क्या पाया ?"


"वुन्दू कोठी के लोहे वाले गेट पर मिल गया था…वह हमें सीधा उस कमरे में ले गया जहाँ संगीता की लाश पड्री थी---वह शेखर और संगीता का बेडरूम था…ताजे गाढे और गर्म खून से सराबोर संगीता की लाश डबलबेड के नजदीक फर्श पर पड़ी थी लाश की खुली आंखें बेडरूम के लेटर को को घूर रही थीं-----मैं समझ गया कि मरते समय उन आंखों ने अपने हत्यारे को देखा है मगर कम-से-कम संगीता अब अपने हत्यारे के बारे में कुछ नहीं बता सकती थी-उसके जिस्म पर चाकू के तीन ज़ख्म थे-----पहला छाती में, दुसरा पेट में और तीसरा चेहरे पर, यह कहना गलत न होगा कि लाश की अवस्था वेहद बीभत्स थी ।" "शेखर मल्होत्रा कंहा" था उस वक्त ?"

बेडरूम ही में लॉन की तरफ़ खुलने वाली खिडकी के नजदीक बेहोश पड़ा था ?"


"बेहोश कैसे हो गया था ?"


"वुन्दू और निवकू ने किया था ।"


“क्यों ?"


" मैनें दोनों नौकरों और नौकरानी के बयान अलग-अलग लिए मगर तीनों के बयान अक्षरश: एक ही थे---रत्ती भर भी विरोधाभास नहीं था-उनके बयान से जो कहानी प्रकाश में अाई वह यह थी कि उस वक्त वे निक्कू के कमरे में बैठे 'तीन-शे-पांच खेल रहे थे जब सन्नटे के चीरती चीख की आवाज सुनी----तीनों चोंक पडे ।


निवकू चीखा--"ये तो मेमशाब हैं”------आवाज को पहचान बुन्दू और रधिया भी गए थे----किसी अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त वे आंधी-तूफान की तरह चीख की दिशा में भागे-बेडरूम में पहुंचे और उस वक्त एक नकाबपोश खून से रंगे चाकू सहित खुली खिड़की के माध्यम से लान में कुदने वाला था जब बलिष्ठ वुन्दू ने उसे दबोच लिया ने उसके बंधनों से निकलने की चेष्टा की परन्तु तब तक निवकू और रधिया भी उसे जकड चुके थे------लाख कोशिशों के बावजूद वह खुद को न छुडा सका-उसी हाथापाई के दरम्यान नाकाबपोश का चाकू कमरे के फर्श पर जा गिरा----उसे पूरी तरह अपने कब्जे में करने के बाद निक्कू ने चेहरे से नकाब नोंच लिया ।
चेहरे पर नजर पड़ते ही तीनों के हलक से चीखें निकल गई ।


वह चेहरा उनके अपने मालिक का था !


शेखर मल्होत्रा का ।


" श-शाब .......शाब अाप है"' रधिया के हलक से घुटी धुटी सी चीख निकल गई थी ।

"म मुझे छोड़ दो, संगीता की हत्या मैंने नहीं की… हत्यारा भाग रहा है, मुझे छोड़कर उसे पकडो ।" शेखर गुर्राया ।


परन्तु !


“निक्कू-बुन्दू समझ गए कि शेखर उन्हें धोखा देने की कोशिश कर रहा है, अत: उसे नहीं छोड़ा बल्कि रधिया ने पुलिस स्टेशन फोन कर दिया…निक्कू---बुन्दू उस वक्त शेखर को जकड़े खड़े थे…झ्धर रधिया ने रिसीवर वापिस क्रेडिल पर रखा । उधर शेखर ने पुन: खुद क्रो आजाद कराने की केशिश शुरू कर दी और इस बार की हाथापाई का परिणाम यह निकल कि शेखर बेहोश हो गया ।”


"ओह !"


" मैंने पोस्टमार्टम और फिंगर प्रिंटस विभाग वालों को फोन किया----जिस वक्त वे अपना काम निपटा रहे थे उस वक्त बुन्दू और रधिया के मुकम्मल बयान लिए अन्य बातों के साथ-साथ उन्होंने यह भी बताया कि उनकी जानकारी के मुताविक शेखर मल्होत्रा दस वाली ट्रेन से बम्बई चला गया था-ड्राइवर खुद उसे स्टेशन छोड़कर आया था ।"


"क्या शेखर की जेब से ट्रेन का टिकट निकला था ?"


" ट्रेन का भी और प्लेन का भी ।"


"क्या मतलब" ?


"प्लेन का टिकट रात के एक बजे वाली फ्लाइट का था और ये दोनों टिकट अपनी कहानी अाप कह रहे थे----स्पष्ट था कि मर्डर करने के बाद एक वाले प्लेन से बम्बई के लिए रवाना हो जाता----प्लेन यहां से एक घन्टा दस मिनट, में बम्बई पहुच जाता है जबकि दस बजे चली ट्रेन ग्यारह बजे पहुंचती है-कहने का मतलब ये कि शेखर दिखाना चाहता था कि जिस वक्त संगीता की हत्या हुई उस वक्त बह ट्रेन में था !"

ड्राइवर स्वयं यह बयान देता कि अपने मालिक को ट्रेन में सवार कराके आया था ।"

" बम्बई के इन दो टिकटों के बारे में शेखर मल्होत्रा का क्या कहना है ? "


" प्लेन के टिकट के बारे में बड़ी हास्यास्पद बात कहता है वह ।"


"क्या ? "


"यह कि प्लेन का टिकट उसने नहीं खरीदा---यह भी नहीं जानता कि उसके नाम का प्लेन का टिकट उसकी जेब में कहां से आ गया ?"


"यानि प्लेन 'का टिकट उसके नाम से किसी और ने खरीदकर उसकी जेब में डाल दिया ।"



अक्षय हँसा, हँसकर बोला------“कहना तो वह यही चाहता था और साथ में यह भी चाहता था कि उसकी इस बकवास पर पुलिस ही नहीं बल्कि अदालत भी यकीन कर ले ।"



"ट्रेन के टिकट के बारे में क्या कहता है वह ?"


"कहता है कि सचमुच ट्रेन से बम्बई के लिए यात्रा" कर रहा था परन्तु अभी ट्रेन इस शहर के मुख्य स्टेशन से चलकर कैट स्टेशन पर पहुंची ही थी कि एक अजनबी उसकी बर्थ के निकट अाया और उसे वहां देखते ही चीख पड़ा, बोला ---“आप यहाँ ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं मिस्टर मल्होत्रा और वहां--आपकी फैक्ट्री में अाग लग गई'है, शेखर के बयान के मुताबिक अजनबी से पूछा कि "तुम मुझें कैसे जानते हो?--जवाब में अजनबी ने कहा कि "आपको शहर में भला कौन नहीं जानता, अाप इस शहर में एकमात्र ऐसे शख्स हैं जिसकी फैक्ट्री में वने देसी घी के डिब्बे सारे देश में सप्लाई होते हैँ'----बस इतनी बात सुनते ही शेखर मल्होत्रा समझ गया कि यह व्यक्ति मुझसे परिचित है

और अभी वह उससे उसका परिचय पूछने ही वाला था . कि ट्रेन पटरियों पर, सरकने लगी, शेखर मल्होत्रा ट्रेन से कूद पड़ा !"


" "वहां से -फेक्ट्री पहुंचा ?"


"हां !'

" फैट्री को सहीँ सलामत देखकर उस पर क्या प्रतिक्रिया हुई ?"



" कहता है कि मैं दंग रह गया ।"


"उसके बाद ?"


“बकौल अपने यह काफी देर तक यह सोच-सोचकर हैरान होता रहा कि अजनबी ने झूठ क्यों बोला -----" जब कोई कारण समझ में न अाया तो यह सोचकर खुद को संतुष्ट कर लिया कि अजनबी ने उसके साथ "शरारतपूर्ण मजाक किया होगा---जिस टेक्सी से स्टेशन से दिल्ली पहुचा था उसी से कोठी पर पहुचा, कोठी तक पहुचते-पहुंचते उसके दिमाग में यह बात अाई कि संगीता यह सोचकर बेसुध सोई पडी होगी कि वह शहर में नहीं है और जब "अचानक उसे अपने सामने देखेगी तो उस पर-क्या प्रतिक्रिया होगी-चह सोच-सोचकर वह रोमांचित हो उठा और यही सब सोचते-सोचते उसके दिमाग में संगीता को "सरप्राइज" देने की बात अाई-सो, वह सीधे रास्ते से कोठी में दाखिल होने की जगह चारदीवारी फांदकर लान में पहुंचा और अपने बेडरूम की खिड़की की तरफ़ बढा ।"


"क्या उसे मालूम था कि खिड़की खुली हुई होगी ?"


"कहता है कि उसे मालूम था -इसलिए मालूम था क्योंकि जानता था कि खिड़की बद करके संगीता को नींद नहीं जाती ।"


"फिर ?"



"अभी खिड़की के नजदीक पहुचा ही था कि सन्नाटे के कलेजे को चीरकर रख देने वाली संगीता की चीख सुनी वह बुरी तरह हड़बड़ा गया, ठीक से कुछ समझ भी नहीं पाया था कि पुन: संगीता की चीख दूर-दूर तक गूंज गई----झपटकर वह खिडकी पर चढ़ गया और यही क्षण था जब संगीता तीसरी बार चीखी-इस चीख के साथ उसने संगीता को बैड के नजदीक फर्श पर गिरते देखा और साथ ही देखा खून से सराबोर चाकू हाथ में लिए एक नकाबपोश को-----उसे, जिसका सम्पूर्ण जिस्म काले लबादे में छुपा हुआ था---इधर संगीता फर्श पर गिरी । उधर नकाबपोश ने अपने दूसरे हाथ से उसके गले में मौजूद एक लाख की कीमत का वह डायमंड नेकलेस नोंच लिया जो अपनी "मैरिज एनीवर्सरी' के मौके पर उसने संगीता को 'प्रेजेन्ट' किया था-विना सोचे-समझे शेखर हलक फाड़कर चीख पड़ा---“कौन है?” सुनते ही नकाबपोश पलटा और शेखर को खिड़की के रास्ते से कमरे के फर्श पर कूदता देखकर बौखला गया----बोखलाकर वह अन्दर की तरफ की दरवाजे की तरफ भागा और अभी दरवाजे की चटकनी गिरा ही पाया था कि शेखर ने उसे दबोच लिया-दोनों के बीच हाथापाई होने लगी--शेखर ने उसके हाथ से चाकू छीनकर कब्जाया ही था कि बेडरूम का दरवाजा "भड़ाक' से खुला---बुन्दू और रधिया अन्दर दाखिल हुयेे--बेडरूम का दृश्य देखकर वे भौंचक्के रह गये---नाकाबपोश से हाथापाई करते शेखर ने चीखकर रधिया और वुन्दू से कहा कि -----" संगीता का खून कर दिया है, इसे पकडने में मेरी मदद करो' और फिर तीनों ने नकाबपोश क्रो जकड़ लिया-चेहरे से नकाब नोचते ही वे उछल पडे, हत्यारा कोठी का तीसरा नौकर यानि निवकू था----शेखर का कहना है कि 'उस क्षण मैं समझ गया कि निक्कू ने एक लाख के नैकलेस के लालच में संगीता की हत्या कर दी है---उस वक्त तक बुन्दू और रधिया 'मेरा' (शेखर) का ही साथ दे रहे थे !
 

Rahulp143

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मगर.......... अचानक निक्कू ने गुर्राकर बुन्दू और रधिया से कहा कि अगर तुमने मेरे खिलाफ कुछ भी करने की कोशिश की तो मैं वह भेद तुम दोनों के घरवालों पर खोल दूगा जिसे तुम अब तक छुपाये हुए हो------शेखर मल्होत्रा का कहना ये है कि निक्कू के शब्द सुनते ही बुन्दू और रधिया के चेहरे पीले पड गये-----ऐसी हालत हो गई उनकी कि काटो तो न नही…हक्के-बक्के से अभी वे एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे कि निक्कू ने गुर्राकर एक और चोट की--"वह भेद जानते ही तेरा पति परखच्चे उड़ा देगा रधिया और तेरी घरवाली तुझे कच्चा चबा जायेगी वुन्दू-----बोलो, क्या तुम दोनों अपने-अपने पति व पली से बच सकोगे ?"



बुन्दू और रधिया के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगी थीं ।


आंखों में खौफ़ लिए अभी वे निक्कू की तरफ देख ही रहे थे कि निक्कू ने खतरनाक स्वर में कहा---"मुझे छोड़ दो अगर मुझे कुछ हो गया तो याद रखना तुम को बरबाद करके रख दूंगा मैं ।"



और !

आश्चर्यजनक ढंग से उन दोनों ने निक्कू् को छोड़ दिया ।



उनके हटते ही निक्कू ने अपने जिस्म को जोरदार झटका दिया----वकौल शेखर के, उस वक्त चूंकि वह स्वयं हक्का बक्का था, अत: निक्कू को अपनी पकड से निकलने से न रोक सका और पलक झपकते ही पासा यूं पलता कि वह स्वयं निक्कू के बन्धनों में छटपटा रहा था, कि निक्कू चीखा-अगर तुम अपने भेद को हमेशा के लिए भेद ही बनाये रखना चाहते हो तो वहीं करों जो मैं कहता दूं। "



" क क क्या करें हम ?" बोखलाये हुए स्वर में बुन्दू ने पूछा ।
इसे फंसाने में मेरी मदद करो ।”


" क-केसी मदद करें ?"


और बस !


शेखर मल्होत्रा का कहना ये है कि मैं उनके बीच होने वाला वार्तालाप अागे न सुन सका क्योंकि निक्कू ने बुन्दू के सवाल का जवाब देने स्थान पर_ 'मेरी' कनपटी पर इतनी जोर से 'कराटे‘ मारी कि पल-भर के लिए मेरी आंखो के सामने रंग-बिरंगे तारे नाच उठे तथा 'मैं' बेहोश होता चला गया, जब होश अाया तो यहां, "खुद को हवालात में पाया ।"


“क्या शेखर मल्होत्रा ने यह बयान हवालात में दिया था ?"
" हाँ अपने वकील से बात करने के वाद ।"


"क्या मतलब ?"


"घटनास्थल से अपनी कार्यवाही निपटाने और संगीता की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद मैं बुन्दू , रधिया और निक्कू के साथ बेहोश शेखर मल्होत्रा को थाने ले गया था ।" अक्षय कहता चला गया----"होश आने पर जव मैंने उसका बयान लेना चाहा तो बोला कि वह जो कुछ कहेगा अपने वकील के सामने कहेगा और वकील से सलाह मशवरा किये विना एक लफ्ज नहीं कहेगा----मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी----सो उसे अपना वकील वुलाने की इजाजत दे दी----तब उसने फोन करके शहजाद राय को थाने बुलाया----एकान्त में उसके और शहजाद राय के बीच जाने क्या बातें हुई-----मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि उस वार्ता के बाद शेखर मल्होत्रा ने उपरोक्त बयान दिया---शहजाद राय कोर्ट में इस कहानी को सच्ची साबित करना चाहते थे कि नौकरों ने शेखर को पुलिस के अाने तक लबादा और नकाब पहनाकर उसे फंसाया है…शहंजाद राय ने कोर्ट में ये भेद खोला कि रधिया, बुन्दू के बच्चे की मां बनने बाली है -------

जब दोनों ही शादीशुदा है और दोनों के पति-पत्नी अलग--अलग गावों में रहते हैं यह सच भी था यानि मेडिकल चैकअप द्वारा रधिया के गर्भ में पांच माह का भ्रूण पाया गया जबकि वह पिछले छ: महीने से अपने पति से नहीं मिली थी ।”


किरन ने उत्साहजनक स्वर में कहा----“यानि शेखर मल्होत्रा के बयान में थोडा वहुत 'तत्व' था ?"



"अदालत ने ऐसे नहीं माना !"


"क्यों ?"



"मैंने कोर्ट में उस कपडा और चाकू बिक्रेता को पेश कर दिया, जिससे शेखर ने लबादे का काला कपडा और चाकू खरीदा था उस टेलर को पेश कर दिया, जिससे उसने लबादा सिलवाया था -- चाकू की मूठ पर शेखर मल्होत्रा की अंगुलियों के निशान थे संगीता के खून से सराबोर था वह…कहने का मतलब ये कि मेरे द्वारा पेश किये गए अकाट्य सबूतों और गवाहों की रोशनी में, अदालत ने शहजाद राय की कहानी को पूरी तरह अविश्वसनीय और काल्पनिक करार दिया-अदालत ने कहा कि बेशक यह सच है कि वुन्दू और रधिया के बीच अवेध सम्बन्थ हैं मगर बचाव पक्ष अगर यह सोचता है कि वह इस एक सत्य के चारों तरफ़ चासनी में डूबी और अविश्वसनीय कहानी को भी सच साबित कर सकता है तो यह उसकी भूल है--एक छोटी सी सच्चाई की आड़ में इतने बड़े झूठ को भी सच साबित करने की कोशिश हास्यास्पद है----एक तरफ जहाँ बचाव पक्ष सिर्फ एक काल्पनिक कहानी सुना रहा है वहीं पुलिस ने ऐसे पुख्ता सबूत और गवाह पेश किए हैं जिन्हें बचाव पक्ष क्रास' नहीं कर पा रहा है ।"



"क्या असली घी का बिजनेस शेखर मल्होत्रा ने खुद सम्भाला हुआ था ?"

"हां ।"-----अक्षय ने कहा---“गुलाब चन्द की मृत्यु के बाद फैक्ट्री को वहीं देख रहा था ।”



"संगीता का उसमें कोई दखल नहीं था. ?"
“नहीं ।"


"तब तो ये थ्योंरी कुछ जमती नहीं कि शेखर ने संगीता की हत्या दौलत की खातिर की ।"'


"क्यों नहीं जमती हैं"


"जिस दौलत को इन्सान खुद पैदा कर रहा हो, उसे भोग रहा हो-जिस दौलत के किसी भी हिस्से को वह मनचाही इच्छा से खर्च करने के लिए स्वतन्त्र हो । उसके लिए वह किसी की हत्या क्यों करेगा ?"



"दौलत उसके अपनी तो नहीं थी न, था तो सब कुछ संगीता के ही नाम. ?"


"और संगीता उसकी पत्नी थी…-पत्नी भी ऐसी जो शेखर मल्होत्रा के साथ खुश थी-“मेरे ख्याल से संगीता की मौत के बाद कोर्ट में या बाहर भी, किसी ने यह नहीं कहा है कि शेखर और संगीता के बीच कोई मनमुटाव या झगडा-टंटा था ?"


"बेशक ऐसा किसी ने नहीं कहा…मगर इस प्योंइन्ट को उठाकर आप कहना क्या चाहती हैं ?"'



"आदमी दौलत क्यों हासिल करना चाहता है?"


"यह तो आदमी-आदमी की नेचर पर निर्भर है ।"


"बेशक है, मगर सभी लोगों के लिए एक 'कॉमन' बात कही जा सकती है और वह यह कि हर शख्स दौलत इसलिए हासिल करना चाहता है ताकि उसका मनचाहा उपयोग कर सके-इसके अलावा दौलत का कोई इस्तेमाल है ही नहीं, आप मानते हैं न?


"मानता हूं ।"


हल्ली-भी मुस्कान के साथ किरन कहती चली गई

“और यह आप पहले ही मान चुके हैं कि शेखर उस दौलत का मनचाहा इस्तेमाल कर रहा था----जिसके नाम ये दौलत थी यानि संगीता की तरफ़ से उस पर कोई बंदिश नहीं थी, जब उस पर बंदिश नहीं थी तो संगीता का मर्डर करने की उसे जरूरत क्या थी ?"



अक्षय पुन: सकपका गया, संभलकर बोला…“मुमकिन है कि संगीता की तरफ़ से कोई बंदिश हो ?”



"अब आप मुमकिन पर आ गये ।" कहते वक्त किरन के होंठों पर वेहद जीवन्त मुस्कान उभरी थी…“आपका मुमकिन पर आना साबित करता है कि मेरा तर्क आपके भेजे में घुस गया है-दरअसल जायदाद अगर पत्ना के नाम हो, और पत्नी की हत्या हो जाये तो लोग कूदकर इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि हत्या पति ने ही की है-इस मामले में भी यही हुआ है----विना सोचे-समझे नतीजा निकाल लिया गया कि शेखर मल्होत्रा ने दौलत के खातिर अपनी बीबी की हत्या कर दी…इतने धुरंधर-पुरन्दर लोगों ने यह बात सोचने की चेष्टा नहीं की कि शेखर को दौलत की खातिर पत्नी का कत्ल करने की जरूरत ही नहीं थी ।”


अक्षय किरन का मुंह ताकता रह गया ।


अपने चेहरे पर विजेता के भाव लिए किरन उठकर खड़ी हो गयी, बोली------प्रमुख होता है हत्या का उद्देश्य और हमारी संक्षिप्त बहस का परिणाम यह निकला कि -हत्या का उद्देश्य ठोस नहीं है----अगर आप अभी यह दावा करते हैं इंस्पेक्टर कि संगीता की हत्या दौलत की खातिर हुई है तो मैं यह दावा करती हूं कि हत्यारा शेखर मल्होत्रा नहीं है तो अगर आप अभी भी उसे ही हत्यारा मानते हैं तो मैं ये कहूंगी कि अाप अपनी थ्योरी में सुधार कीजिए -कम-से-कम दौलत की खातिर उसे यह हत्या करने की जरूरत नहीं थी ।”

“मेरे ख्याल से फिलहाल हम इस सम्बन्ध में बहस न करके अगर उसकी खबर लें जिसने गुलाब चन्द की लाश के रूप में खुद को स्टडी में बन्द कर रखा है तो बेहतर होगा !""



“ओह संगीता मर्डर केस की कहानी में डूबकर उसे तो मैं भूल ही गयी थी ।" कहते वक्त किरन के जहन में यह सवाल रह-रहकर कौंध रहा था कि अगर यह बात सच है कि शेखर मल्होत्रा के नौकरों ने फंसाया है तो शेखर बार बार यह क्यों, कह रहा है कि उसे चक्रव्यूह के रचयिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है ।

“हम तुम्हें अन्तिम चेतावनी देते है ।” हाथ में रिवॉल्वर लिए स्टडी के के दरवाजे के नजदीक खडे इंस्पेक्टर अक्षय ने अपनी ऊंची आवाज में कहा…"या तो एक मिनट के अन्दर-अन्दर बाहर निकल आओ अन्यथा दरवाजा तोड दिया जायेगा ।"

जवाब में पुन: पहले जैसा सन्नाटा व्याप्त रहा ।

अक्षय ने कम-से-कम पांचवी बार उक्त शब्द दोहराये ये… उसके पीछे स्टडी के दरवाजे के ठीक सामने हाथों में बन्दूक लिए चार पुतिसिये ऐसे मुस्तेद खड़े थे जैसे मोर्चे पर खडे हों । "

किरन आदि को इंस्पेक्टर ने दरवाजे के सामने से थोड़ा-सा हटाकर खडा किया था !"
 
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धड़कते दिल से सभी एक मिनट के गुजरने का इन्तजार करते रहे, परन्तु वह मिनट गुजर जाने के वावजूद स्टडी के अन्दर से हल्की-सी हलचल तक का आभास न मिला । '

तब, दरवाजे के नजदीक से हटते हुए अक्षय ने ऊंची आवाज में सिपाहियों से कहा'-…"'दरवाजा तोड़ दो ।"

सिपाहियों क्रो हुक्म मिलने की देर थी कि वे अागे बड़े ।
और बन्दूको के 'बट्ट' से दरवाजे पर प्रहार करने लगे ।



दरवाजा मजबूत था मगर कोई चीज चाहे जितनी मजबूत हो, इनसानी इरादों से ज्यादा मजबूत नहीं हो सकती । कहने का मतलब ये कि सिपाही पसीने से तर हो गये परन्तु वह क्षण आ ही गया जव दरवाजा 'भड्राक' की आवाज के साथ चौखट से अलग होकर स्टडी के अन्दर जा गिरा । ' सबके दिल जोर-जोर से धड़क रहे थे ।


हाथ में रिवॉल्वर लिए रास्ते में पड़े दरवाजे पर से गुजरता अक्षय स्टडी के अन्दर प्रविष्ट हुआ---अपने अफ़सर को किसी भी 'बला' से बचाने हेतु सिपाही बन्दूकें ताने मुस्तेद खडे़ थे किन्तु कोई बला उस पर नहीं झपटी।


कहीं कोई हलचल नहीं ।


लम्बी-चौड़ी स्टडी का भरपूर निरीक्षण करने के बाद जव उसने घोषणा की कि वहाँ कोई नहीं है तो लोग स्टडी के अन्दर अा गये-फर्शं से शुरू होकर दीवारों के सहारे-सहारे छत तक चली गई "रेक्स' में लगी किताबों को वे सभी इस तरह घूर रहे थे जैसे वे रहस्यमय वस्तुएं हों ।


स्टडी में जब अक्षय को ऐसी कोई जगह नजर नहीं आई जहाँ कोई व्यक्ति खुद को छुपा सके, तो उसने शेखर से मुखातिब होकर सवाल किया-" तहखाने का रास्ता कहां है ?"


स्टडी के बींचों-बीच रखी विशाल मेज के ठीक ऊपर लटके फानूस की तरफ इशारा करके शेखर ने कहा-"तहखाने का दरवाजा इस फानूस के सबसे नीचे वाले लटूटू को पकड़कर लटकने से खुल जाता है ।”


"खोलो ।"


शेखर मेज की तरफ बढा ।


एकाएक किरन ने उससे पूछा…"क्या तुम बता सकते हो के गुलाब चन्द ने तहखाना बनवाया किस मकसद से था ?"
इस बारे में न मैंने संगीता से कभी कुछ पूछा न उसने बताया ।" मेज के नजदीक पहुंचकर ठिठकत्ते हुए उसने कहा…""हां, बाबूजी की मौत के बाद संगीता एक बार मुझे तहखाने में ले गई थी मगर उस वक्त वहाँ कुछ पुराने और जर्जर दरवाजों और ड्रामों के अलावा कुछ नहीं था !"



" तहखाने में कोई चीज छुपाकर नहीं रखी गई थी ?"



"मुझे 'तो बहाँ ऐसी कोई जगह ही नजर नहीं अाई जहाँ कुछ छुपाकर रखा जा सकता और न ही संगीता ने किसी छुपी हुई चीज का जिक्र किया ।” कहने के साथ शेखर न केवल मेज के ऊपर खड़ा हो गया बल्कि दोनों हाथ ऊपर उठाकर फानुस के सबसे नीचे वाले लटृटू पर लटक भी गया ।


. . उसका लटकना था कि स्टडी में गड़गड़ाहट की हल्की-सी आवाज गुंजी ।



ठीक मेज के फ़र्श में एक गडढा नजर अाने लगा ।


किरन और अक्षय सहित सभी चकित नजरों से उसे देख रहे थे---गडढे में दो सीढियां नजर आ रही थी ॰॰॰॰॰॰ इधर शेखर मेज से कूदा उधर अक्षय ने कहा----"" मेज को तहखाने के रास्ते ऊपर से हटा दो !"


सिपाहियों ने हुक्म का पालन किया ।


हाथ में रिवॉल्वर लिए अक्षय गडढे के निकट पहुंचा, परन्तु स्थिति में केवल इतना ही परिवर्तन आया कि दो के स्थान पर तीन सीढियां नजर अाने लर्गी-उससे नीचे का हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था ।
"सबसे ऊपर वाली सीढी के पृष्ठ भाग में एक स्विच है ।" शेखर ने कहा----"उसे आन करने पर तहखाने के अन्दर लगा बल्ब अान' हो जायेगा ।"

"आंन करों ।" अक्षय ने संक्षिप्त आदेश दिया ।


शेखर ने गडढे के नजदीक बैठकर सीढी के पृष्ट भाग में हाथ डाला और बोला----“ये तो आंन पड़ा है ।"



“तो बल्ब क्यों नहीं जल रहा?”


किरन ने कहा…“या तो बल्ब फ्यूज हो गया है या किसी ने होल्डर से निकाल लिया है ।"



"टॉर्च है यहां ?" अक्षय ने पूछा ।



और ।



कुछ देर मेँ टॉर्च आगई।



सबके दिमाग यह सोचने में तल्लीन थे कि क्या तहखाने में गुलाब चन्द की कथित लाश होगी या तहखाने " से भी वैसी निराशा हाथ लगेगी जैसी स्टडी से लगी थी --- लेकिन अगर यह लाश तहखाने में न हुई तो गई कहां ?



स्टडी का दरवाजा अन्दर से बन्द क्यों था ?


अक्षय के आदेश पर सबसे पहले तहखाने में उतरने के काम दो सिंपाहयों ने सम्भाला-अागे वाले के एक हाथ में टॉर्च थी दूसरे में बन्दूक-पीछे वाला दोनों हाथों से बन्दूक सम्भाले हुया था !



शेखर ने चेतावनी दी…“सबसे नीचे वाली सीड़ी पर पैर मत रखना, उस पर पैर रखते ही तहखाने का दरवाजा बंद हो जायेगा ।"


सिपाहियों ने उसकी बात सुनी, दिमाग में बैठाई और उतरना शुरू कर दिया-आगे वाला सिपाही अपने से नीचे बाली सीढ़ी पर प्रकाश का गोल दायरा स्थिर करता और यह निश्चय करने के बाद उस पर कदम रख देता कि वह अन्तिम सीढी नहीं हे…ऊपर यानि तहखाने के रास्ते और टॉर्च के गोल प्रकाश दायरे के अलावा दोनों सिपाहियों को अपने चारों तरफ अंधेरा-ही-अंधेरा नजर अा रहा था । "सैर्किंड-लास्ट' सीढी से वे सीधे तहखाने के फर्श पर कूदे !

अागे वाले सिपाही ने टॉर्च के प्रकाश के दायरे को तहखाने में घुमाना शुरु किया-वहीं भरे आड़-कबाड़ पर से फिसलता हुआ प्रकाश दायरा एक ऐसे स्थान पर पहुचा जहाँ पहुंचते ही दोनों के हलक से जोरदार चीखें उबल पड़ी।



"क-क्या हुआ ?" गडढे के नजदीक खडा अक्षय चिल्लाया----" क्या हुआ रामदीन ?"'



" ल लाश ------ यहां एक लाश है सर ।"


"किसकी लाश है ?"



"क-किसी औरत की लाश है सर, उफ्फ-बहुत डरावनी है ये।"


अक्षय के नजदीक पहुंचती किरन उत्तेजनायुक्त स्वर में वोली ----“लाश रधिया की होगी है"'


" रररर-रधिया की ?" अक्षय चौकां " आपको कैसे मालुम ?"



“मेरे दिमाग में शुरू से ही यह बात कौंध रही है कि रधिया कहाँ गई, वह गायब है ।"

लाश, सचमुच रधिया की थी ।


एक पुराने ड्रम के साथ पीठ टिकाये वह आंखें फाडे़ सीढियों की तरफ देख रही थी-मुंह खुला हुआ था, करीब ढाई इंच लम्बी जीभ बाहर लटकी हुई थी !!!

कोहनियों पर से मुड़े दोंनों हाथ बैसी दशा में थे जैसी दशा में तब होते है जब भयाक्रांत होकर चीखता है ।



हाथों की सारी अंगुलियां एक-दूसरे से दूर दूर थी ।

फैली हुई !


मुद्रा ऐसी थी जैसे अभी भी मारे खौफ़ के चीख पढ़ना चाहती हो अथवा हर उस शख्स को चिढा रही हो जो उसकी तरफ देख रहा था ------ गैस के हंडे के साथ सभी लोग वहां पहुंच चुके थे ।



वे सब, मारे दहशत के जिनका बुरा हाल था ।



रधिया की मौत और खासतौर से लाश की भयानकता ने उनके होश फाख्ता कर रखे थे----अक्षय पोस्टमार्टम और , फिंगर प्रिंटृस विभाग वालो को फोन कर चुका था, यह घोषणा कभी कर दी थी उसने कि कोई भी शख्स तहखाने में मौजूद किसी वस्तु को छेड़ने का प्रयत्न न करे !!



उलटे पड़े एक ड्रम के ऊपर रखे बल्ब के नजदीक पहुंचकर किरन ने कहा---- बल्ब, फ्यूज नहीं है, इसका मतलब, -ये हुआ इंस्पेक्टर कि हत्यारे ने जानबूझकर होल्डर , से निकालकर यहाँ रखा है और अगर उसने दस्ताने नहीं पहन रखे थे तो इस पर अंगुलियों के निशान काफी स्पष्ट होने चाहिएं ।"



"अंगुलियों के निशान तो लाश की गर्दन पर भी होंगे ।" लाश को विना छेड़े बहुत नजदीक से उसका निरीक्षण कर रहे अक्षय ने कहा---'" रधिया का गला घोंटकर मारा गया है ।"



. "म-मेरा भी उसने गला घोटने की कोशिश की थी शाब ।" बुन्दू कह उठा ।



अक्षय ने पूछा…“क्या यह काम तुम्हारी पत्नी या उसका भाईं-बन्द अथवा रधिया का पति कर सकता है ?”



"क-कया मतलब शाब ?"



"तुम्हारे और रधिया के सम्बन्धों के बारे में उन्हें पता लग गया होगा न ?"



"नहीं शाब, बिलकुल नहीं--- दोनों में से किसी के भी गांव तक यह रव्रबर नहीं पहुंची ।"

"सारे अखबारों में छपी है, फिर गांव तक भला कैसे नहीं पंहुची होगी?"



"पहली बात तो ये शाब कि अखबारों में सिर्फ नौकर और नौकरानी छपा है-हमारे नाम नहीं छपे । दूसरी ये कि मेरी घरवाली और रधिया का मरद पड़े लिखे नहीं हैं… तीसरी ये कि हम दोनों में से किसी के गांव में एक भी . अखवार-नहीं पहुंचता;--चौथी और सबसे बडी बात ये है हैं शाबजी कि तब अब तक मैं और रधिया कई वारं गांव हो आए हैं---न मेरी औरत को ही कुछ पता लगा न रधिया के मरद को ।"


" आपका दिमाग इनके सम्बन्धों और गांव तक इसीलिए पहुंचा है न इंस्पेक्टर, गुलाब चन्द की लाश के रूप में जो भी था उसने रधिया की हत्या की है या बुन्दू को मारने की चेष्टा. ?"



"जाहिर-सी बात है ।" अक्षय ने कहा-“मैं सोच रहा हूं कि कहीं इस वारदात के पीछे इनके अबैध सम्बन्ध ही तो नही थे !!!!



किरन ने कहा-----"और मैं दावे के साथ कह सकती हू्ं के यह हत्या किसी अनपढ़ ग्रामीन ने नहीं बल्कि पढे-लिखे और शहरी व्यक्ति ने की है !"
 
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ऐसा दावा अाप कैसे कर सकती हैं?"




" "दावा मैं नहीं बल्कि ये फाउन्टेन पैन कर रहा है ।" कहने के साथ ही ड्रम ही बगल में पड़े पैन को रूमाल की मदद से उठाकर किरन ने कहा'-----इस पैन पर 'मेड इन हांगकांग' लिखा है-रधिया का तो यह हो नहीं सकता, जाहिर है कि हत्यारे का होगा और अनपढ व्यक्ति जेब में 'मेड इन हांगकांग' वाला पेन लेकर क्यों घूमेगा ?"



"कह तो अाप ठीक रही हैं ।" अक्षय प्रभावित हुए विना न रह सका ।



अभी वह इस बारे में ज्यादा डिंसकस न कर पाए थे कि फोटोग्राफर और फिगर प्रिंट विभाग वाले वहाँ पहुच गये तब अक्षय ने कहा----"'अागे की इन्वेस्टीगेशन हम इन लोगों का काम निपट जाने के बाद करेंगे ।"

"ओके !" किरन बोली ।
उधर फिगर प्रिंट विभाग के लोग अपना काम निपटा रहे थे इधर शेखर मल्होत्रा को खींचकर किरन एक तन्हा कमरे में ले गई और गुर्राईं-----"तुमने मुझसे झूठ क्यों बोला ?"



“झ-झूठ-क्या झूठ बोला मैंने ?"



"यह कि तुम्हे उसका नाम तक पता नहीं जिसने तुम्हें संगीता की हित्या के 'जुर्म में फंसाया है ।"


पुरी मासूमियत के साथ कहा शेखर ने-“इसमें झूठ क्या है , अगर मुझे चक्रव्यूह के रचियता का नाम पता , होता तो फिर बात ही क्या थी ?"


"क्या तुम्हें फंसाने वाले निवकू रधिया और बुन्दू नहीं हैं ?"


"नहीं ।"


"नहीं ?” मारे हैरत के किरन का बूरा हाल हो गया । "



"ओह........ "अच्छा !" शेखर इस तरह बोला जैसे सारी बात समझ में आ गई हो…“आप शायद उस बयान को सच मान रही हैं जो इस केस की फाइल में दर्ज है-----जो मैंने हवालात में और फिर कोर्ट में दिया था ।"




बुरी तरह चकित किरन ने पूछा…"क्यों, यह बयान झूठा था ?"




"सरासर झूठा है"'



“झूठा बयान तुमने दिया क्यों है"'

" शहजाद राय के कहने पर !"


यह कि घटना बाली रात से तीन दिन पहले यानी 29 मार्च को हमारी मैरिज एनीवर्सरी थी ---- वह हमने एकान्त में हंसी खुशी मनाई --- मैनें संगीता को एक नेकलस दिया था और उसने मुझे यह डायमंड वाली रिस्टवॉच !" कहने के साथ शेखर ने अपनी घड़ी वाली कलाई आगे कर दी !
किरन ने चुपचाप देखा, बोली कुछ नहीं ।



शेखर मल्होत्रा कहता चला गया…“हमारी "मैरिज एनीवर्सरी' के केवल दो दिन बद 'फर्स्ट अप्रैल पड़ता हे…उन्तीस तारीख को जाने किस बात में से बात निकली कि फर्स्ट अप्रैल' पर बात चल निकली----मैं कह बैठा कि फर्स्ट अप्रैल वाले दिन लोग अच्छे से अच्छे समझदार व्यक्ति को बेवकूफ वना देते हैं ।-----संगीता मानने को तैयार नहीं थी कह रही थी कि सारे दिन आदमी सतर्क रहे तो लाख प्रयत्न करने के बावजूद उसे कोई बेवकूफ नहीं बना सकता---मैनें विरोध किया---अपने बचपन के वे किस्से सुनाए जिनके इस्तेमाल से दोस्तों को बेवकूफ़ बनाया करता था------बहस ही बहस में संगीता कह बैठी कि अगर फ़र्स्ट अप्रेल वाले दिन मुझे बेवकूफ वना दो तो जानूं, वह शायद कोई मनहूस घड़ी थी…हां, अब तो उस घड़ी को मनहूस ही कहा जायेगा, जब मैंने जोश में भरकर संगीता की चुनौती स्वीकार कर ली और दुकान से काला कपडा लिया तथा पहली तारीख के वायदे पर उसे टेलर के यहाँ सिलने दे दिया ।"



"ओह !" किरन के दिमाग की नसें खुलती चली गई ।
“चाकू मैंने उसी दिन यानि पहली अप्रैल की दोपहर को खरीदा था ।" शेखर मल्होत्रा बताता चला गया…“मेरा इरादा रात के वक्त खिड़की के माध्यम से अपने बेडरूम में जाकर संगीता को डराने का था'-पूरा विश्वास था कि इस तरीके से संगीता को डराने और बेवकूफ बनाने में कामयाब हो जाऊंगा मगर चाकू खरीदने के बाद फैकट्री पहुचा ही था कि हमारे बम्बई के सोल एजेन्ट का ********* मिला…********* में लिखा था कि उसकी दुकान से हमारी कैवट्री के कुछ डिब्बे शुद्धता की जांच हेतु फूड विभाग वाले ले गए हैँ-जांच कल यानि दो अप्रैल को होगी, अत: मेरा वहां मौजूद रहना अावश्यक है-इस ********* को पढ़कर एक बार तो लगा कि संगीता को बेवकूफ बनाने के सारे प्लान पर पानी फिर गया है, मगर थोडी देर सोचने के बाद समस्या हल कर ली--समस्या के हल के रूप में मैंने अपनी फेवट्री के मैनेजर से दस बजे वाली ट्रेन और एक वाली पलाइट के टिकट मंगाए--योजना यह थी संगीता को ********* दिखाता हुआ उससे कहूगा कि दस वाली ट्रेन से बम्बई जा रहा हू---ड्राइवर को साथ ले जाकर ट्रेन में सवार भी हो जाऊंगा और उसके जाते ही स्टेशन से बाहर निकल आऊंगा----२बेडरूम में पहुंचकर संगीता को डराऊँगा और फिर एक वाली फ्लाइट से सचमुच बम्बई चला जाऊंगा फैक्ट्री की छुट्टी करके जब मैं यहाँ यानि कोठी पर आया और ********* संगीता को दिखाते हुए कहा कि दस वाली ट्रेन से बम्बई जाना होगा तो उसने कहा कि कहीं तुम मेरा "अप्रैल फूल' तो नहीं बना रहे हो-यह सोचकर मैं सकपका गया कि वह पूरी तरह सतर्क है, परन्तु पुरा विश्वास था कि भले ही चाहे जितनी सतर्क हो मगर उसे बेवकूफ बनाने की मेरी जो योजना है उसमें वह हर हालत में फंस जाएगी। अत: बिना जरा भी "कन्फयूज‘ हुए मैंने अपनी योजना पर अमल किया !!!


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उस वक्त रात के पौने बारह बजे थे जब मैं चोरों की तरह चारदीवारी फ़लांग कर छाती के किचन लॉन में पहुचाअमरूद के पेड़ के नीचे जिस्म पर चौंगा डाला, चेहरे पर नकाब और हाथ में खुला चाकू लेकर खिडकी की तरफ बढा ।"


“तुमने यह सच्चाई कोर्ट में क्यों नहीं रखी ?"



"बताता हु-बात आपकी समझ में तभी आयेगी जब सब कुछ क्रमवार बताऊंगा ----चोंगे और नकाब में छुपा हाथ में चाकू लिए मैं लान की तरफ खुलने वाली अपने बेडरूम की रिव्रड़की तक पहुंचा ही था कि संन्नाटे की चीरती संगीता की चीख ने कलेजा हिला दिया-मैं बौखला गया और ठीक से कुछ' समझ भी न पाया था कि संगीता दूसरी बार चीखी ।


हड़बड़ाकर मैं खिड़की पर चढ गया-----ठीर यही क्षण था जब मैंने एक नकाबपोश को संगीता के चेहरे पर चाकू से वार करते देखा ।"



"क्या उसके जिस्म पर भी तुम्हारे जैसे रंग का यानि काला बैगा था ?"


"उसका चोंगा काला था और नकाब भी ।"


"चाकू?"


“चाकू भी ठीक मेरे ही जैसा था, उसी चाकू को बाद में मेरा कहा गया ।"
“क्या मतलब?"


"चेहरे पर चाकू लगते ही संगीता के हलक से एक और चीख निकली -उस वक्त वह लहराकर बेड के नजदीक गिर रही थी जब मारे गुस्से के मैं पागल हुआ हमलावर पर झपटा-----मुझे देखकर वह जरा भी नहीं चौंका-----क्षण मात्र में मेरा मुकाबला करने के लिए खुद को इस तरह तैयार कर लिया जैसे पहले ही से जानता हो कि संगीता का कत्ल करने के बाद मेरा मुकाबला करना है----

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"मै उसके नजदीक पहुचा, वार करने के लिए चाकू वाली कलाई हवा में उठाई ही थी, उसने झपटकर मेरी कलाई पकडी और मरोड थी--मेरे हाथ से चाकू निकल गया---उसनै तुरन्त मुझे छोड़कर अपना चाकू फर्श पर फैंका और मेरा उठा लिया------------इस बीच मैं उस पर जम्प लगा चुका था-----गुत्थमगुत्था हुए दोनों फ़र्श पर काफी दूर तक लुढ़कते चले गए और किर उसने अपने दोनों जूतों को मेरे पेट में फंसाकर ऐसा झटका दिया कि हवा में लहराकर मैं फर्श पर पडे़ उसके चाकू के नजदीक गिरा---अपनी तरफ़ से भरपूर फुर्ती के साथ मैं उछलकर खडा हो गया--मुझसे तीन कदम दूर खिड़की के नजदीक खड़ा वह अपने दस्तानेयुक्त हाथ में मेरा चाकू लिए मेरे किसी भी हमले का मुकाबला करने के लिए तैयार खडा था-जब चाकू को खतरनाक ढंग से उसने हवा में घुमाया तो मुझे लगा कि निहत्थे ही उस पर झपट पड़ना बेवकूफी होगी और विना सोचे समझे फर्श पर पडा उसका चाकू उठा लिया, खून से सना चाकू हाथ में लिए मैं उस पर झपटने ही वाला था कि गेलरी में भागते कदमों की आवाज सुनाई दी--क्षणभर के लिए मेरी तबज्जो उस तरफ चली गई और इसी क्षण मेरे चाकू सहित हमलावर ने खिडकी के पार जम्प लगा दी…मैं खिड़की की तरफ़ लपका-तभी "भड़ाक' की जोरदार आवाज के साथ दरवाजा खुला और उस ववत्त मैं खिडकी के चौखट पर चढकर लॉन में कूदने वाला था कि बून्दू ने पीछे से पकड़ लिया---जनावर का पीछा करने की गरज से खुद को बुन्दू से छुडाने का प्रयत्न कर ही रहा था कि निवकू और रधिया ने भी मुझे पकड़ लिया----मैं चीख-चीखकर कहता रहा कि “मैँने संगीता की हत्या नहीं की असली हत्यारा भाग रहा है, मगर उन्होंने मेरी एक न सुनी और लाख प्रयत्नों के बावजूद उनके चंगुल से खुद को निकाल न सका…चाकू बेडरूम के एक कोने में जा गिरा था ----------------
निवकू और बुन्दू ने मुझे जकढ़ लिया---उस वक्त तो होश ही उड़ गए जब रधिया ने मेरे सामने ही फोन पर पुलिस से यह कहा कि मैंने संगीता की हत्या कर दी है---बुरी तरह बौखला गया बल्कि कहना चाहिए कि यह सोचकर छक्के छूट गए कि मैं संगीता का हत्यारा साबित होने जा रहा हूं और उसी हड़बड़ाहट का नतीजा यह था कि एक वार फिर उनके चंगुल से निकलकर फरार हो जाने की अपनी इस कोशिश के परिणामस्वरूप इस बार मुझे बेहोश हो जाना पड़ा ।"



"इसका मतलब यह हुआ कि नौकरों के बयान बिल्कुल सच्चे हैं ?"



“तभी तो कह रहा है मुझे फंसाने में उनका कोई हाथ नहीं है-उन पर शक तब किया जा सकता था जबकि उनमें से कोई झूठ बोल रहा होता ।"


""खैर, फिर क्या हुआ ?"


"होश में अाने पर सब-कूछ विधुत गति से दिमाग में कौंध गया…यह बात समझ में आ गई मुझे संगीता का हत्यारा समझ लिया गया है…हत्यारे को मैंने देखा था और मेरी बात किसी को विश्वसनीय नहीं लगेगी, अत: विना किसी वकील की सलाह के पुलिस से एक लपज भी कहना मुझे अपने लिए घातक लगा-तब फोन करके शहजाद राय को थाने बुला लिया ।"


“उसके बाद ?” '


" "एकान्त मैं उम्हें सब-कुछ सच…सच बताया ।"


"वही जो तुमने मुझे बताया है ?"


"हां ।"


“फिर ?"


"मेरी बातें सुनने के बाद शहजाद राय ने बुरा-सा मुंह बनाया और बोले कि "फ़र्स्ट अप्रैल' की इस बात पर दुनिया का कोई भी आदमी विश्वास नहीं करेगा !!
 
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"अाप विश्वास कीजिए, सच्चाई यही है ।”



"मेरे विश्वास करने से कुछ नहीं होगा ।" शहजाद राय भड़क उठे-"बिश्वास पुलिस को आना चाहिए, अदालत को आना चाहिए और दावा है कि उन्हें इस बेवकूफी भरी कहानी पर विश्वास नहीं जाएगा-लोग इस बात पर हंसेंगे कि आधी रात के वक्त जिस्म पर चौंगा, चेहरे पर नकाब और हाथ में चाकू लिए बेडरूम में तुम अपनी पत्नी को "अप्रैल-फूल' बनाने के मकसद से गये थे----पूरी तरह अविश्वसनीय, असम्भव और बचकाना बयान होगा यह ।"



"तो फिर मैं क्या कंहू, आप ही सलाह दीजिये ।" मैं अधीर होकर कह उठा…"मैं आपको वकील नियुक्त करता हूं । वहीं कंरूगा जो आप कहेंगें ---- 'इस झमेले से निकालने की जिम्मेदारी अाप ले लिजिए !"



शहजाद राय खामोश हो गये ।


मुद्रा बता रही थी कि कुछ सोच रहे हैं ।



लुटा पिटा मैं उम्मीदजनक अवस्था में उनकी तरफ़ देख रहा था ।



वे बड़बड़ाये----“तुम्हें बुन्दू , निक्कू और रधिया ने रंगे हाथों पकड़ा है, तुम केवल एक अवस्था में बच सकते होतब, जबकि अदालत में इन तीनों को अविश्वसनीय साबित कर दिया जाए, और ये तीनों अविश्वसनीय तब साबित हो सकते है जब प्रमाणित किया जाये कि तुम्हें संगीता की हत्या के जुर्म में फंसाने के पीछे इनका स्वार्थ है !"



. मैं चुपचाप उनकी बड़बड़ाहट को सुन रहा था ।


एकाएक उन्होंने मुझसे पूछा --- " नोकर का तुम्हें फंसाने के पीछे क्या स्वार्थ हो सकता है ?"


"उन्होंने मुझे फंसाया ही कब है ?" मैंने मुर्खों की मानिंद कहा !
"फ'साया नहीं है बेवकूफ है" शहजाद राय झुंझला उठे-“बल्कि अदालत में साबित कर रहे हैं कि उन्होंने तुम्हें फंसाया है, सोचना ये है कि वे तुम्हें क्यों फंसायेगे ?"



काठ के उल्लू की तरह मैं उन्हें देखता रहा ।


एकाएक उन्होंने पूछा'----"वह डायमंड नेकलेस कहाँ है जो तुमने अपनी मैरिज एनीवर्सरी पर संगीता को दिया था?"


. "मेरे लॉकर में ।"


"वहां क्या कर रहा है ?"


"अगले ही दिन यानि तीस तारीख को संगीता ने यह कहकर नेक्लेस मुझे दे दिया था कि इतना महंगा नेकलेस 'डेली यूज' के लिए नहीं होता-इसे विशेष अवसरों पर पहना करूंगी, वेसे भी इतना महंगा नेकलेस कोठी में रखना समझदारी नहीं थी ।"


"और तुम---नेकलेस को लॉकर में रख अाये ?"


"हां !"


वे बोले-" यह झूठ है ।"


" ज ..... जी ?" मैं चकराया ।


"यह बात तुम्हें किसी के सामने अपने मुंह से नहीं निकालनी कि नेकेलेस लॉकर में है-इस सच्चाई को भूल जाओ और इस झूठ को याद रखो कि तुमने इन तीन नीकरों में से किसी को संगीता के गले से नेकलेस खींचते देखा है ।"


" ज---जी......मैं कछ समझा नहीं ।"


" सब समझ जाओगे ।" शहजाद राय का दिमाग मानो कम्यूटर की-सी तेजी से काम कर रहा था--- यह बताओ कि क्या तुम्हें इन तीनों नौकरों में से किसी का कोई ऐसा भेद मालूम है जिसके खुलने से वह डरता हो ?"


"म-मैं समझा नहीं कि आप क्या पूछ रहे हैं ।"
"लगभग प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कोइं-न-कोई क्षण ऐसा आता है जव उससे कोई ऐसा काम हो जाता है जिसके बारे में वह अपने अलावा किसी को पता नहीं लगने देना चाहता-य-यानि वह उसके जीवन का ऐसा भेद बन जाता है कि जिसके बारे में अगर लोगों को पता लग जाये तो उसके जीवन में तूफान आ सकता है ।"



"एक दिन संगीता कह रही थी कि रधिया गर्भवती है!!"'


शहजाद राय ने उत्सुक स्वर में पूछा…" क्या वह शादीशुदा नहीं है?”


" है मगर…


"मगर?"


"उसका पति गांव में रहता है और वह छः महीने से गांव नहीं गई है ।"


चमचमा रही आँखों के साथ शहजाद राय ने तुरन्त पूछा…“फिर गर्भवती कैसे हो गई वह है ?"



"संगीता ने वताया था कि वुन्दू के साथ उसके सम्बन्ध हैं !”



"वैरी गुड, बुँन्दू शादीशुदा है या कुंवारा ?"


"शादीशुदा है , उसकी पत्नी भी गांव में रहती है !"


" वन गई कहानी!" शहजाद राय चुटकी बजाकर कह उठे और फिर उन्होंने मुझे वह कहानी सुनाई जो मैंने हवालात में इंस्पेक्टर अक्षय को और फिर अदालत में सुनाई थी---शहजाद राय के निर्देश पर मैं इसी कहानी पर डटा रहा, मगर झूठ की यह हांडी चढी नहीं, आपके पापा ने मेरे और शहजाद राय के झूठ की धज्जियां उड़ाकर रख दी--अक्षय ने केस को इतना पुख्ता बनाकर क्रोर्ट में पेश किया कि शहजाद राय की एक नहीं चली ।"
किरन गहरे सोच में डूब गई थी ।
फोटोग्राफ़र और फिंगर प्रिन्टृस विभाग बालों का काम निपटते ही अक्षय और किरन पुनः लाश के इर्दगिर्द का निरीक्षण करते हुए इन्वेस्टीगेशन में जुट गए और कुछ देर बाद किरन ने घोषणा की--" अब मैं एक बहुत ही जबरदस्त और धमाकेदार बात पूरे दावे के साथ कह सकती हूं ।"


".क्या ?" अक्षय ने पूछा ।



जाने कैसी मुस्कुराहट के साथ किरन पलटकर शेखर से बोली--" उस अादमी की लम्बाई क्या थी जिसे तुमने संगीता पर हमला करते देखा था ?"

अक्षय चौका…“इसने संगीता पर किसी को हमला करते देखा था ?"



"प-प्लीज इंस्पेक्टर, मैंने शेखर से सवाल किया है----तुमने जवाब नहीं दिया शेखर, क्या लम्बाई रही होगी उसकी?"



"इ-इस तरह तो उसकी लम्बाई बताना मेरे लिए मुश्किल होगा ।"



"यह तो बता सकते हो कि तुमसे लम्बा था अथवा गुटृटा?"



शेखर ने तुरन्त जवाब दिया--" मुझसे तो लम्बा था ।"



“इधर आओ ।" किरन ने अंगुली के इशारे से उसे नजदीक बुलाया और फिर तहखाने की एक दीवार के नजदीक ले गई ---वहाँ उसने शेखर को दीवार के सहारे लाठी की तरह खड़ा कर दिया और अपने लम्बे बालो से एक शेयर पिन निकालकर उसके सिर के ऊपर दीवार में एक निशान लगाने के बाद बोली----“हट जाओं ।"

असमंजस में फंसा शेखर हट गया ।


अकेला वह क्या ?


सभी असमंजस में फंसे हुए थे ।


औरों की तो बात ही दूर, स्वयं अक्षय नहीं समझ पा रहा था कि वह कर क्या कर रही है----सबकी नजरें किरन पर इस तरह केद्रित थी जैसे वह कोई जादूगर हो और हैरत में डाल देने वाला कोई जादु दिखाने जा रही हो--- कुछ देर तक ध्यान से दीवार को घूरती रही और फिर अचानक अक्षय की तरउ पलटकर बोली--"' मैं रधिया की हत्या का कारण बता सकती हूं !"



"दीवार पर कारण लिखा है क्या ?"



"ऐसा ही समझो ।" किरन के पतले होंठों पर बेहद प्यारी मुस्कान उभरी ।


“तो बताइये, वहाँ आपने क्या पढा ?"



"दीवार पर 'कोडवर्ड' में लिखा है कि रधिया संगीता के हत्यारे से मिली हुई थी ।"


"संगीता का हत्यारा ?" अक्षय उछल संगीता का हत्यारा तो शेखर मल्होत्रा है ।"



"नहीं ।" पूरी सख्ती और मुकम्मल दृढता के साथ कहा किरन ने---“संगीता का हत्यारा वह है जिसने रधिया की हत्या की है ।"'



"प-पता नहीं आप कौन-सी बात किस आधार पर कह रही हैं ?"



"मेरे 'एक्टिव' होते ही हत्यारा इसलिए बौखला गया क्योकि वह समझ चुका था कि मैं एक सवाल .................सिर्फ एक सवाल करके रधिया को 'तोड' सकती हू और अगर वह टूट गई तो उसके चेहरे से नकाब खुद नुंच जाएगा---ऐसा वक्त आने से पहले ही उसने रधिया हत्या कर दी ।"



“मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप क्या कह रही हैं ?"

एकाएक किरन ने वुन्दू से सवाल किया----तुम बोलो बुन्दू तुम्हें उस रात थाने का फोन नम्बर मालूम था जिस रात संगीता का कत्ल हुआ ?”



"नहीं, मुझे तो अाज भी मालूम नहीं है ।"



"और तुम्हें निक्कू ?"


निवकू ने कहा…"थाने के नम्बर की मुझे भला जरूरत ही क्या पड़ती जो मालूम होगा ?"



"तो रधिया को कैसे मालूम था ?"


दोनों सकपका गये, एक साथ बोले…“ह-हमेँ क्या पता? "'


“क्या उसने नम्बर डायरेक्टरी या कहीं अन्य से देखा था ?"


"नहीं ।" निक्कू बोला---"नम्बर उसने तुरन्त, इस तरह मिला दिया था जैसे उसे याद हो ।"



“आप बताइये इंस्पेक्टर साहब, अच्छी तरह दिमाग लड़ाने के बाद बताइए कि रधिया को थाने का नम्बर इस कदर रटा हुआ कैसे था कि फर्राटे के साथ अापसे सम्बन्थ स्थापित कर लिया !"



"कमाल की बात है ।" अक्षय बड़बड़ाया ।


' "इससे ज्यादा कमाल की बात ये है कि यह सवाल इन्वेस्टीगेशन के दरम्यान न आपने रधिया से पूछा और न ही कोर्ट में जिरह के वक्त शहजाद राय ने जबकि यह सवाल................यह एक मात्र सवाल रधिया को बोखलाकर रख देता-उसे बताना पड़ता कि एक अनपढ नौकरानी को अगर थाने का नम्बर मालूम था तो क्यों-यह नम्बर उसे किसने और किस मकसद से रटाया था-क्या इसलिए कि शेखर के पकडे जाते ही वह पुलिस को सूचित कर दे ?"


" म---मगर आप यह कैसे कह सकती हैं कि संगीता का हत्यारा ही रधिया का हत्यारा है ?"

"शेखर के बयान के मुताबिक हत्यारे का कद इससे ज्यादा था और मजे की बात तो ये है इंस्पेक्टर साहब कि रधिया का कत्ल उसी ने किया है जिसका कद शेखर के कद से ज्यादा है ।”
 
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Avir

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Rahulp143

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"शेखर के बयान की भला क्या विश्वसनीयता.........



“मेँ जानती हूं इंस्पेक्टर !" किरन कहती चली गई… जानती हूं कि आप यह कहेंगे कि शेखर के मुंह से निकला एक भी लपज विश्वसनीय नहीं माना जा सकता---- आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मात्र शेखर के बयान के आधार पर न मैं किसी निष्कर्ष पर पहुंची हूं और न ही सब कुछ कह रही हूं ---यह सव मैं तब कह रही दूं जब शेखर के बयान की पुष्टि कर चुकी हूं !!


“कैसी पुष्टि ?"


"शेखर को यह तो मालूम नहीं था कि रधिया का हत्यारा कद में इससे ज्यादा था या कम हैं"'



“यह बात भला इसे कैसे मालूम हो सकती है ?"



"अब मान लो, मैंने शेखर से संगीता के हत्यारे का कद पूछा तो इसने तिकड़म से, जो मुह में आया बता दिया…यह वात मैं सोचकर कह रही हूं कि शेखर सरासर झूठ बोल रहा है----इसने किसी को संगीता की हत्या करते नहीं देखा, मगर क्या इतना बड़ा इत्तेफाक हो सकता है कि जो कद उसने बताया है, रधिया का कातिल उसी कद का निकल जाए ?"



"आप कैसे कह सकती हैं कि रधिया का कातिल उसी कद का है ।"



कछ देर पहले जिस दीवारके सहारे मैंने शेखर को खड़ा किया था उस दीवार पर फर्श के करीब पांच फूट दो इंच ऊपर हाकी-सी चिकनाई लगी हुई है----------
जव आप उस चिकनाई को सूंघने के बाद रधिया की लाश का सिर सुंघेगे तो पायेंगे कि दीवार पर चिकनाई का निशान रधिया के सिर से वना है और इसका कद अगर 'एक्यूरेट' नहीं तो करीब-करीब पांच फूट दो, एक या तीन इंच होगा ।



उसके करीब आठ इंच ऊपर यानि पांच फुट दस इंच के आसपास चिकनाई का एक और निशान है, उसमें कोई गंध नहीं है…यह निशान हत्यारे के सिर के अलावा किसी का नहीं हो सकता क्योंकि दोनों निशान मिलकर यह कहानी कह रहे हैं कि रधिया और हत्यारे के बीच संधर्ष हुआ, एक बार रधिया ने हत्यारे को दीवार से सटा दिया और एक बार हत्यारे ने रधिया को--यानि दूसरा निशान यह बता रहा है । हत्यारे का कद पांच फूट नौ दस' या ग्यारह इंच के आसपास होना चाहिए-दीवार पर मैंने शेखर के कद की ऊंचाई पर शेयर पिन से निशान लगा रखा है । दीवार के नजदीक जाकर अाप खुद गोर फरमा सकते हैं कि निशान गन्धहीन चिकनाई से करीब दो इंच नीचे है या नहीं ?"'


अक्षय की अक्ल मानो चमगादड़ बनकर तहखाने का चंवकर लगा रही थी ।
शेखर मल्होत्रा की समझ में यह बात आने लगी थी कि किरन उसके हक में अगर सबूत नहीं तो कुछ हद तक तर्क जुटाने में अवश्य कामयाब हो चुकी थी-----शायद इसीलिए उसकी आंखें हीरों की मानिन्द चमकने लगी थी । खुशी की ज्यादती के कारण जिस्म में पैदा होती कंपकंपाहट को वह चाहकर भी नियन्वित नहीं कर पा रहा था ।


पोस्टमार्टम वाले लाश ले गए ।


यह रहस्य अपनी जगह कायम था कि गुलाब चन्द की लाश या रधिया का हत्यारा स्टडी का दरवाजा अन्दर से बन्द करके कहीं और कैसे गायब हो गया-काफी कोशिश के बावजूद तहखाने का कोई अन्य रास्ता न अक्षय को मिल सका और न ही किरन को !



अक्षय ने शेखर, निक्कू बुन्दू और अतर एण्ड फैमिली के एक-एक मेम्बर से घोट--घोट कर पूछा कि किसी ने आज से पहले गुलाब चन्द की लाश कोठी में नहीं देखी थी ?


जिस वक्त वह सबके बयान ले रहा था उस वक्त किरन उस कमरे की तलाशी लेने पहुंची जहां रधिया रहती थी और इस तलाशी में उसे एक ऐसी चीज बरामद हुई जिसे देखते----किरन की आंखें बिस्फारित अंदाज में फटी की फटी रह गई, मगर शिघ्र ही उसने खुद को सम्हाल लिया और यहाँ से मिली चीज का जिक्र किसी से नहीं किया । "


सबका जवाब इंकार में था ।

अतर जैन से बात करके किरन ने उस कहानी की पुष्टि कर ली जो शेखर ने सुनाई थी---अतर का कहना भी यही था कि सुब्रत जैन की शक्ल उसने उस दिन के बाद से नहीं देखी जिस दिन वह घर छोडकर गया था ।
अन्त में किरन ने कहा-मुझे अाप सबका एक-एक फोटो चाहिए ।"



"फ-फोटो है"' अतर जैन चौंक पड़ा----“हमारे फोटुओं का क्या करेंगी अाप ?"

"एलबम में सजाऊंगी ।" किरन ने मजेदार स्वर में कहर-"मुझें एक शौक है, बड़ा विचित्र शोक ।"

"कैसा शौक ?”



"मैँ जिससे मिलती हूं अपनी एलबम में लगाने के लिए उसका फोटो जरूर ले लेती हुं- मिलने वाला चाहे मोची हो या रिक्शा-पुलर--आज़ तक जितने लोगों से मिली हूं --मेरे पास सबके फोटो हैं ।"



"नहीं.........असम्भव ।" अतर जैन कह उठा----'' हो ही नहीं सकता, मान लीजिए कि आप घूमने के लिए किसी हिल स्टेशन पर जाती हैं---वंहा होटल में ठहरती हैं---मेनेजर से मिलती हैं---वेटर्स के सम्पर्क में अाती है तो क्या आपके पास उन सबके फोटो.....

“मेरे पास उस खच्चर का फोटो भी है जिस पर बैठकर नैनीताल से "टिफिन टॉप' और चाइनापीक गई थी ।" किरन ने कहा----क्या अप लोगों को फोटो देने में एतराज है !""

"ए---एतराज ?" अतर जैन सकपकाया, कमल की तरफ देखता हुआ बोला----"एतराज भला क्यों होगा ?"



एकाएक किरन ने कमल की आंखों में आंखें डालकर पूछा…"आपको एतराज है ?”



"न-नहीं तो ।"


"तो लाइए, अपना एक…एक फोटो दे दीजिए मुझे और इंस्पेक्टर साहब, अाप भी ।



"म-मैं भी है"' अक्षय उछल पड़ा ।


"क्यों, क्या अपासे नहीं मिली हू मैं ?"'

"मिली तो है, खैर, कल सुबह आपके घर पहुच जाएगा ।"



"थेंक्यू! अरे आप लोग भी अभी तक यहीं खड़े हैं, अपना-अपना फोटो लेने गए नहीं ?"



कमल ने कहा---“हमारे फोटो भी कल सुबह आपके पास पहुंच जायेंगे ।" .

"" ओ.के ।" किरन के कहा-“लेकिन अगर सुबह होते ही आपमें से किसी का फोटो नहीं पहुचा तो मैं यह समझुंगी कि उसके दिल में चोर है और इतना तो अाप जानते ही होंगे कि चोर किसके दिल में होता है ?"

सभी सहम गए ।


एक अजीब-भी चेतावनी दे डाली थी किरन ने ।


अभी उनमें से किसी के मुंह से बोल न फूटा था कि किरन ने शेखर से कहा-----"मुझे एक तुम्हारा फोटो चाहिए और एक संगीता का ।"


"स-संगीता का क्यों, उससे अाप मिली हैं ?"



"बाह ! जिसके मर्डर की तहकीकात कर रही हूं क्या उसका फोटो मेरे पास नहीं होना चाहिए ?"



"ठीक है, मैं अपने कमरे से फोटो लाकर दे देता हू।"


"मैं साथ चल रही हू ।"


एकाएक अक्षय ने क्हा----"अच्छा तो किरन जी, मैं चलू !"



"ओं के सी यू इंस्पेक्टर !" किरन ने उसकी तरफ़ विदाई का हाथ हिलाया, उधर अक्षय लोहे वाले रेट के बाहर खडी अपनी जीप की तरफ़ बढा ।



इधर किरन के नजर वुन्दू और निक्कू पर पड्री, बोली-“अा्प दोनो के फोटो भी कल सुबह तक मेरे पास पहुच जाने चाहिएं ।"


"म-मगर मेमशाब, हम फोटो पहुचायेगा कहाँ ?"


"ओहू सॉरी ।" कहने के साथ उसने पर्स में से एक विजिटिंग कार्ड निकलकर उन्हें पकडा दिया और शेखर के साथ उसके कमरे की तरफ बढ़ गई-मगर उसने महसूस किया आसपास कोई नहीं है तो बोली---------अब मैं शर्त लगाकर कह सकती है शेखर कि तुम्हें बेगुनाह सबित कर दूंगीं !!



"म-मैँ. . ..मैं समझ नहीं पा रहा है किरन जी कि किन शब्दों में मैं आपका शुक्रिया अदा करू ?" खुशी की पराकाष्ठा के कारण शेखर का लहजा कांप रहा था…



“अब तो मुझे यकीन होने लगा है कि आप यह चमत्कार कर दिखायेंगी ।"


"मेरे एक सवाल का जवाब और दो ।"

पूछिए क्या---" यह बात किस-किसको पता थी कि तुम संगीता का अप्रैलफूल बनाने जा रहे हो ?"



"किसी को नहीं ।" उसके कमरे में पहुंचकर सोफे पर बैठती हुई किरन ने कहा…“ऐसा नहीं हो सकता ।"



"कैसा ?"



"यह कि अप्रैल-फूल वाली बात किसी को पता नहीं थी ! असली हत्यारे ने योजना और जिस चालाकी के साथ तुम्हें हत्यारे के 'रूप में" प्लांट किया है, उतनी खूबसूरती के साथ तुम्हारी मुकम्मल योजना जाने विना कोई नहीं कर सकती----“याद कर ले, मुमकिन है, कि यार'-दोस्ताने में तुमने अपनी योजना किसी को बता दी हो ?"



"खूब सोच चुका हु, किरन जी, इस बोरे में मैंने किसी से जिक्र नहीं किया है ।"



एक पल सोचने के बाद किरन ने अगला सवाल किया…"अपने मैनेजर के बारे में क्या ख्याल है तुम्हारा ?"



"म-मैनेजर?” तुमने उससे एक ही रात के ट्रेन और प्लेन के टिकट मंगाये … सम्भव है कि वह इस अजीब बात की तह में गया हो और फिर किसी ढंग से तुम्हारी योजना की भनक लगी हो उसे ?"



"जो योजना सिर्फ और सिर्फ मेरे दिमाग में थी--जिसका एक भी लफ्ज़ मैंने फूटे मुह से किसी से नहीं कहा, उसकी भनक भला किसी को लग ही कैसे सकती है ?"



"भनक तो लगी है----भनक लगे विना कोई शख्स वह सब कर ही नहीं सकता जो हत्यारे ने किया है-पता यह लगाना है कि तुम्हारे प्लान की भनक उसे कहां से लगी ?" शेखर चुपचाप 'चांद' को देखता रहा ।

अच्छा, ये बताओ कि---" अपनी मैरिज एनीवर्सरी तुमने कहां मनाई थी ?"


"होटल ताज पैलेस में ।"

"फर्स्ट अप्रैल पर तुम्हारे और संगीता के बीच बहस वहीं हुई थी ?"



"वंहा, डिनर के दरम्यान ।"


"और उस वक्त तुमने यह सावधानी नहीं बरती होगी कि कोई तुम्हारी बहस न सुन पाये ?"


"सावधानी बरतने का सवाल ही नहीं था, हम कोई अपराध थोड़ी कर रहे थे ?"



किरन की आंखे जुगनुओं की मानिन्द चमक उठी… “उस वक्त तुमने ये ध्यान भी नहीं दिया होगा कि दायेँ-बायेँ और आगे-पीछे वाली सीटों पर कौन बैठा है ?"



"सवाल ही नहीं ।"



"यानि उस वक्त तुम्हारे बीच हुई बहस किसी ने सुनी हो सकती है ।"



"सुनी तो हो सकती है मगर सुनने से किसी को लाभ क्या हुआ होगा -सच्चाइं ये है कि उस क्षण स्वयं मुझे . मालूम नहीं था कि संगीता को अप्रैल-फूल किस तरह बनाऊंगा, योजना तो मेरे दिमाग में बाद में वनी---., जबकि मेरे और संगीता के बीच चैलेंजों का आदान-प्रदान हो चुका था ।"


“माना कि उस वात किसी ऐसे शख्स ने तुम्हारी बहस सुनी जो ऐसे मौके की फिराक में था कि संगीता का मर्डर करके तुम्हें फंसा सके-बस बहस के बद उसने तीस-इकतीस और पहली तारीख को साये की तरह तुम्हारा पीछा किया…तुम्हें काला कपडा खरीदते, उसे टेलर को देते और चाकू खरीदते देखा--फिर किसी ढंग से यह भी पता लगा लिया कि तुमने एक ही साथ के ट्रेन और पलेन के टिकट मंगाये है----- उसने तुम्हारी योजना का अनुमान लगा लिया होगा ।"



"भला इस तरह "अनुमान कैसे लग सकता है ?"




"जो लोग जिस फिराक में होते हैं वे अपने मतलब के अनुमान बखूबी लगा लेते हैं शेखर, लिफाफा देखकर " मजमून भांप जाने वाले लोगों के बारे में तुमने ज़रूर सुना होगा और फिर कौन जानता है कि वह शख्स कौन था---खेर, मैं तुम्हारी फेवट्री के मैनेजर से मिलना चाहती हूं ! इस वक्त कहां होगा वह ?"
 
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