रजनी अपनी चूत को मसलते हुए अपनी चूत की आग को ठंडा करने के कोशिश कर रही थी, पर रजनी जैसे गरम औरत को भला उसकी पतली सी ऊँगलियाँ कैसे ठंडा कर सकती थीं।
फिर अचानक से रजनी के दिमाग़ में कुछ आया और वो उठ कर बैठ गई।
‘अगर वो साली छिनाल उस जवान लौंडे का लण्ड अपनी बुर में ले सकती है तो मैं क्यों अपनी उँगलियों से अपनी चूत की आग बुझाने की कोशिश करूँ… चाहे कुछ भी हो जाए..आज उसे नए लौंडे का लण्ड अपनी चूत में पिलवा कर ही रहूँगी।’
यह सोचते ही बेला के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और वो उठ कर अपनी साड़ी पहनने लगी।
साड़ी पहनने के बाद वो अपने कमरे से बाहर आकर घर के पीछे की ओर चली गई।
सोनू बाहर ही चारपाई पर लेटा हुआ था और सुनहरी धूप का आनन्द ले रहा था।
रजनी के कदमों की आवाज़ सुन कर वो उठ कर खड़ा हो गया और रजनी की तरफ देखने लगा।
‘आराम कर रहे हो… लगता है आज बहुत थक गए हो तुम?’
रजनी ने मुस्कुराते हुए सोनू से कहा।
‘जी नहीं.. वो कुछ काम नहीं था, इसलिए लेट गया।’
रजनी- अच्छी बात है, आज तुम आराम कर लो अभी.. क्योंकि रात को तुझे मेरी मालिश करनी है… समझे… थोड़ा वक्त लगेगा आज…
सोनू सर झुकाए हुए- जी।
रजनी पलट कर जाने लगी, वो अपनी गाण्ड आज कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी, जैसे वो घर के आगे की तरफ पहुँची, तो मुख्य दरवाजा पर किसी के आने के दस्तक हुई।
रजनी ने जाकर दरवाजा खोला, तो रजनी के चेहरे का रंग उड़ गया। सामने चन्डीमल की चाची खड़ी थीं, जो उसी गाँव में रहती थीं- और सुना बहू कैसी हो?
चन्डीमल के चाची ने अन्दर आते हुए रजनी से पूछा।
चन्डीमल की चाची का नाम कान्ति देवी था।
कान्ति देवी शुरू से ही गरम मिजाज़ की औरत थी। भले ही अपनी जवानी में उसने बहुत गुल खिलाए थे, पर अब 65 साल की हो चुकी कान्ति देवी अपनी बहुओं पर कड़ी नज़र रखती थी।
आप कह सकते हैं कि उसे डर था कि जवानी में जो गुल उसने खिलाए थे, वो उसकी बहुएँ ना कर सकें।
कान्ति देवी को देख रजनी का मुँह थोड़ा सा लटक गया, पर फिर भी होंठों पर बनावटी मुस्कान लाकर कान्ति देवी के पैरों को हाथ लगाते हुए बोली- मैं ठीक हूँ चाची जी.. आप सुनाइए आप कैसी हैं?
कान्ति अन्दर के ओर बढ़ते हुए- ठीक हूँ बहू.. अब तो जितने दिन निकल जाएँ… वही जिंदगी, बाकी कल का क्या भरोसा। कल इस बुढ़िया की आँख खुले या ना खुले।
रजनी- क्या चाची.. अभी आपकी उम्र ही क्या है.. अभी तो आप अच्छे-भले चल-फिर रही हो।
रजनी चाची को अपने कमरे में ले गई, कान्ति रजनी के बिस्तर पर पालती मार कर बैठ गई- वो गेन्दा कह गया था मुझसे कि आज रात तुम अकेली होगी.. इसलिए मैं तुम्हारे पास सो जाऊँ, इसलिए चली आई।
रजनी भले ही अपने मन ही मन बुढ़िया को कोस रही थी, पर वो उसके सामने कुछ बोल भी तो नहीं सकती थी।
‘यह तो आपने बहुत अच्छा किया चाची… और वैसे भी आप हमें कब सेवा करने का मौका देती हो.. अच्छा किया जो आप यहाँ आ गईं।’
कान्ति- अब क्या बताऊँ बहू.. मुझे तो मेरी बहुएँ कहीं जाने ही नहीं देती, बस आज निकल कर आ गई।
रजनी- अच्छा किया चाची जी आपने।
शाम ढल चुकी थी और रजनी का मन बेचैन हो रहा था। वो जान चुकी थी कि आज फिर उसकी चूत को तरसना पड़ेगा।
बेला सेठ के घर से आ चुकी थी और खाना बनाने में लगी हुई थी और सोनू भी घर के छोटे-मोटे कामों में लगा हुआ था।
सोनू अपना काम निपटा कर पीछे अपने कमरे में चला गया।
बेला की बेटी बिंदया भी आ गई, बेला ने रजनी और कान्ति को खाना दिया।
रजनी और कान्ति देवी बाहर आँगन में बैठ कर खाना खा रही थीं।
बेला ने उन दोनों को खाना देने के बाद सोनू के लिए खाना परोसा और पीछे की तरफ जाने लगी।
रजनी बेला को पीछे के तरफ जाता देख कर- अए, कहाँ जा रही है?
बेला रजनी की कड़क आवाज़ सुन कर घबराते हुए- जी वो सोनू को खाना देने जा रही थी।
रजनी- तुम रुको.. ये थाली बिंदया को दे.. वो खाना दे आती है, तू जाकर ये पानी गरम कर ला… इतना ठंडा पानी दिया है.. क्या हमारा गला खराब करेगी।
रजनी की बात सुन कर बेला का मुँह लटक गया, उसने बिंदया को खाना दिया और सोनू को देकर आने के लिए बोला और खुद मुँह में बड़बड़ाती हुई रसोई में चली गई।
बिंदया बहुत ही चंचल स्वभाव की थी, वो सोनू को घर के पीछे बने उसके कमरे में खाना देने के लिए गई और अपने चंचल स्वभाव के चलते वो सीधा बिना किसी चेतावनी के अन्दर जा घुसी।
अन्दर का नज़ारा देख कर जैसे बिंदया को सांप सूंघ गया हो, अन्दर सोनू पलंग पर लेटा हुआ था।
उसका पजामा, उसके पैरों में अटका हुआ था और वो अपने लण्ड को हाथ में लिए हुए तेज़ी से मुठ्ठ मार रहा था, उसके दिमाग़ में सुबह की चुदाई के सीन घूम रहे थे।
बिंदया की तो जैसे आवाज़ ही गुम हो गई हो।
सोनू बिस्तर पर लेटा हुआ अपने 8 इंच लंबे और 3 इंच मोटे लण्ड को तेज़ी से हिला रहा था और बिंदया सोनू के मूसल लण्ड को आँखें फाड़े हुए देखे जा रही थी।
सोनू इससे बेख़बर था कि उसके कमरे में कोई है।