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Incest चाची - भतीजे के गुलछर्रे

vakharia

Supreme
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मेनका को मालूम था कि विवेक अपनी छोटी बहन की गांड मारने को लालायित है. उसने जब लंड का साइज़ देखा तो समझ गई कि अगर झडाया नहीं गया और इसी लंड से बच्ची की गांड मारी गई तो जरूर फ़ट जाएगी. इसलिये वह भी बोली. "ऐसा करो, मुट्ठ मार लो मुन्नी के मुंह में, उसे भी जरा इस गाढे गाढे वीर्य का स्वाद चखने दो. मै तो रोज ही पाती हूँ, आज मेरी ननद को पाने दो यह प्रसाद."

विवेक दीवाना हुआ जा रहा था. उसने एक हाथ से मुन्नी के सिर को पकड कर सहारा दिया कि धक्कों से आगे पीछे न हो और दूसरे हाथ से लंड का डंडा मुट्ठी में लेकर जोर जोर से आगे पीछे करता हुआ हस्तमैथुन करने लगा. मुंह में फ़ूलता सिकुडता लज़ीज़ सुपाडा उस किशोरी को इतना भाया कि जीभ रगड रगड कर आँखें बंद कर के वह उस रसीले फ़ल को चूसने लगी.

विवेक को इतना सुख सहन नहीं हुआ और पाँच ही मिनिट में वह एकदम स्खलित हो गया. "हाऽयरीऽ प्यारी बच्ची, तूने मुझे मार डाला, मेनका रानी, यह तो चूसने में उस्ताद है, ऊ ऽ आह ऽ ऽ " मुन्नी मलाई जैसा गाढ़ा गरम गरम वीर्य बडे स्वाद से निगल रही थी. दो महीनों बाद वीर्य निगला और वह भी बडे भाई का! विवेक का उछलता लंड उसने आखरी बूंद निकलने तक अपने मुंह में दबाए रखा जब तक वह सिकुड नहीं गया.

मुन्नी भी अब तक मेनका के चूसने से कई बार झड गई थी. मेनका चटखारे ले लेकर उसकी बुर का पानी चूस रही थी. विवेक बोला "चलो, बाजू हटो, मुझे भी अपनी बहन की चूत चूसने दो." मुन्नी मस्ती में बोली "हाँ भाभी, भैया को मेरी बुर का शरबत पीने दो, तुम अब जरा मुझे अपनी चूत चटाओ भाभी, जल्दी करो ऽ ना ऽ" वह मचल उठी.



मेनका उठी और उठ कर कुर्सी में बैठ गई. अपनी भरी पूरी गुदाज टांगें फ़ैला कर बोली "आ मेरी रानी, अपनी भाभी की बुर में आ जा, देख भाभी की चूत ने क्या रस बनाया है अपनी लाडली ननद के लिये."

मुन्नी उठकर तुरंत मेनका के सामने फ़र्श पर बैठ गयी और भाभी की बुर अपने हाथों से खोलते हुए उसे चाटने लगी. उस कोमल जीभ का स्पर्श होते ही मेनका मस्ती से सिसक उठी और मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ घुमाती हुई उसे पास खींच कर और ठीक से चूसने को कहने लगी. "हाय मेरी गुड़िया, क्या जीभ है तेरी, चाट ना, और मन भर कर चाट, जीभ अंदर भी डाल ननद रानी, असली माल तो अंदर है." मुन्नी के अधीर चाटने से मेनका कुछ ही देर में झड गयी और चुदासी की प्यासी मुन्नी के लिये तो मानों रस की धार उसकी भाभी की बुर से फ़ूट पडी.


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विवेक अब तक मुन्नी के पीछे लेट गया था. सरककर उसने मुन्नी के नितंब फ़र्श पर से उठाये और अपना सिर उसके नीचे लाकर फ़िर से मुन्नी को अपने मुंह पर ही बिठा लिया. उसकी रसीली चूत चूसते हुए वह अपनी छोटी बहन के नितंब प्यार से सहलाने लगा. मुन्नी तो अब मानों काम सुख के सागर में गोते लगा रही थी. एक तरफ़ उसे अपनी भाभी की बुर का रस चूसने मिल रहा था और दूसरी ओर उसके भैया उसकी चूत चूस रहे थे. वह तुरंत झड गयी और मस्ती में ऊपर नीचे होते हुए विवेक को अपनी बुर का रस पिलाते हुए उसका मुंह चोदने लगी.

18

विवेक ने अपनी जीभ कडी करके उसकी चूत में एक लंड की तरह डाल दी और उस कमसिन चूत को चोदने लगा. साथ ही अब वह धीरे धीरे मुन्नी के कसे हुई मुलायम चूतड़ों को प्यार से सहलाने लगा. सहलाते सहलाते उसने नितंबों के बीच की लकीर में उंगली चलाना शुरू कर दी और हौले हौले उस कोमल गांड का जरा सा छेद टटोलने लगा.

विवेक अब यह सोच कर दीवाना हुआ जा रहा था कि जब उस नन्ही गांड में उसका भारी भरकम लंड जायेगा तो कितना मजा आयेगा पर बेचारी मुन्नी जो अपने भाई के इस इरादे से अनभिग्य थी, मस्ती से चहक उठी. गांड को टटोलती उंगली ने उसे ऐसा मस्त किया कि वह और उछल उछल कर अपने भाई का मुंह चोदने लगी और झडकर उसे अपनी बुर से बहते अमृत का प्रसाद पिलाने लगी.

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मुन्नी आखिर बार बार झडकर लस्त पडने लगी. मुन्नी के मुंह में झडने के बावजूद मेनका की बुर अब बुरी तरह से चू रही थी क्योंकी वह समझ गयी थी कि बच्ची की गांड मारने का समय नजदीक आता जा रहा है. मुन्नी अब पूरी तरह से तृप्त होकर हार मान चुकी थी और अपने भाई से प्रार्थना कर रही थी कि अब वह उसकी बुर न चूसे. "भैया, छोड दो अब, अब नहीं रहा जाता, बुर दुखती है तुम चूसते हो तो, प्लीज़ भैया, मेरी चूत मत चाटो अब."

मेनका ने मुन्नी का सिर अपनी झांटों में खींच कर अपनी चूत से उसका मुंह बंद कर दिया और जांघों से उसके सिर को दबा लिया. फ़िर बोली "डार्लिंग, तुम चूसते रहो जब तक मन करे, यह छोकरी तो नादान है, और उसकी गांड भी चूसो जरा, स्वाद बदल बदल कर चूसोगे तो मजा आयेगा"

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अगले दस मिनट विवेक मुन्नी की बुर और गांड बारी बारी से चूसता रहा. बच्ची की झडी चूत पर और नन्हे से क्लिट पर अब जब विवेक की जीभ चलती तो वह अजीब से संवेदन से तडप उठती. उसे यह सहन नहीं हो रहा था और बेचारी रोने को आ गई कि कब भैया उस पर तरस खाकर उसकी यह मीठी यातना समाप्त करें. वह कमसिन छोकरी मुंह बंद होने से कुछ नहीं कर सकी, सिर्फ़ मेनका की बुर में गोम्गियाकर रह गयी.

मेनका ने जब देखा कि मुन्नी बिल्कुल लस्त हो गयी है तब उसने विवेक को इशारा किया. "चलो जी, अपनी बहन को उठाकर पलंग पर ले चलो, आगे का काम भी करना है कि नहीं." विवेक धडकते दिल से उठा. उसकी प्रतीक्षा की घडी समाप्त होने वाली थी. उठाकर अपनी बहन का नाजुक लस्त हुआ शरीर उसने पलंग पर पटक दिया और मुन्नी को औंधे मुंह लिटा दिया. वह फ़िर पलंग पर चढ कर बैठ गया और मुन्नी के नितंब सहलाने और मसलने लगा.

मेनका उसका लंड चूसने लगी. चूसते चूसते विवेक से पूछा "क्यों, सूखी ही मारोगे या मक्खन लाऊँ" विवेक मस्ती में बोला "सूखी मारने में बहुत मजा आयेगा मेरी जान" मेनका उस मोटे लंड को देखकर बोली "मैं तुमसे रोज गांड मराती हूँ पर मुझे भी आज इस की साइज़ देखकर डर लगा रहा है, फ़ट जायेगी गांड, मैं मक्खन लेकर आती हूँ, आज चिकनी कर के मारो, अब तो रोज ही मारना है, सूखी बाद में चोद लेना"

मेनका उठकर मक्खन लाने को चली गयी. विवेक प्यार से औंधी पडी अपनी छोटी बहन के नितंब सहलाता रहा. लस्त मुन्नी भी पडी पडी आराम करती रही. उसे लगा मेनका और भैया में उनके आपस के गुदा संभोग की बातें चल रही हैं, उसे क्या लेना देना था. बेचारी बच्ची नहीं जानती थी कि उस की गांड मारने की तैयारी हो रही है.

मेनका मक्खन लेकर आयी और विवेक के हाथ मे देकर आँख मारकर पलंग पर चढ गयी. लेटकर उसने मुन्नी को उठा कर अपने ऊपर औंधा लिटा लिया और उसे चूमने लगी. मुन्नी के हाथ उसने अपने शरीर के गिर्द लिपटा लिये और अपनी पीठ के नीचे दबा लिये जिससे वह कुछ प्रतिकार न कर सके. अपनी टांगों में मुन्नी के पैर जकड लिये और उसे बांध सा लिया.

मुन्नी की मुलायम गोरी गांड देखकर विवेक अब अपनी वासना पर काबू न रख सका. वह उठा और मुन्नी की कुंवारी गांड मारने की तैयारी करने लगा. अब मेनका भी मजा लेने लगी. उसने मुन्नी से कहा. "मेरी प्यारी ननद रानी, मैने तुझसे वायदा किया था ना कि भैया आज तुझे नहीं चोदेंगे" मुन्नी घबरा गयी. मेनका ने उसे दिलासा देते हुए कहा. "घबरा मत बिटिया, सच में नहीं चोदेंगे" फ़िर कुछ रुक कर मजा लेती हुई बोली "आज वे तेरी गांड मारेंगे"

मुन्नी सकते में आ गयी और घबरा कर रोने लगी. विवेक अब पूरी तरह से उत्तेजित था. उसने एक उंगली मक्खन में चुपड कर मुन्नी के गुदा में घुसेड दी. उस नाजुक गांड को सिर्फ़ एक उंगली में ही ऐसा दर्द हुआ कि वह हिचक कर रो पडी. विवेक को मजा आ गया और उसने मुन्नी का सिर उठाकर अपना लंड उस बच्ची को दिखाया. "देख बहन, तेरी गांड के लिये क्या मस्त लौडा खडा किया है."

उस बडे महाकाय लंड को देखकर मुन्नी की आँखें पथरा गईं. विवेक का लंड अब कम से कम आठ इंच लंबा और ढाई इन्च मोटा हो गया था. वह विवेक से अपनी चूत चुसवाने के आनंद में यह भूल ही गयी थी कि आज उस की कोमल कुंवारी गांड भी मारी जा सकती है.

विवेक ने उसका भयभीत चेहरा देखा तो मस्ती से वह और मुस्काया. असल में उसका सपना हमेशा से यही था कि पहली बार वह मुन्नी की गांड मारे तो वह जबर्दस्ती करते हुए मारे. इसीलिये उसने मुन्नी को बार बार चूसकर उसकी सारी मस्ती उतार दी थी. उसे पता था कि मस्ती उतरने के बाद मुन्नी संभोग से घबरायेगी और उस रोती गिडगिडाते सुन्दर चिकनी लडकी की नरम कुंवारी गांड अपने शैतानी लंड से चोदने में स्वर्ग का आनंद आयेगा.

मेनका भी अब एक क्रूरता भरी मस्ती में थी. बोली "बहन, तेरी गांड तो इतनी नाजुक और संकरी है कि सिर्फ़ एक उंगली डालने से ही तू रो पडती है. तो अब जब यह घूँसे जैसा सुपाडा और तेरे हाथ जितना मोटा लंड तेरे चूतड़ों के बीच जायेगा तो तेरा क्या होगा?"

मुन्नी अब बुरी तरह से घबरा गयी थी. मौसी के घर उसने जितनी भी बार गांड मरवाई थी तब उसे काफी दर्द होता था। और भैया का तो लंड भी इतना खूंखार था। उसकी सारी मस्ती खतम हो चुकी थी. वह रोती हुई बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगी पर मेनका की गिरफ़्त से नहीं छूट पायी. रोते रोते वह गिडगिडा रही थी. "भैया, भाभी, मुझे छोड दीजिये, मेरी गांड फ़ट जायेगी, मैं मर जाऊँगी, मेरी गांड मत मारिये, मैं आपकी मुट्ठ मार देती हूँ, लंड चूस कर मैं आपको खुश कर दूँगी. या फ़िर चोद ही लीजिये पर गांड मत मारिये"

मेनका ने उसे दबोचा हुआ था ही, अपनी मांसल टांगें भी उसने मुन्नी के इर्द गिर्द जकड लीं और मुन्नी को पुचकारती हुई बोली "घबरा मत बेटी, मरेगी नहीं, भैया बहुत प्यार से मन लगा कर मारेंगे तेरी और फ़िर तुझे आखिर अब रोज ही मराना है. हाँ, दर्द तुझे बहुत होगा और तू गांड पहली बार चुदते हुए बहुत छटपटायेगी इसलिये मैं तुझे पकड कर अपनी बाहों मे कैद रखूंगी." मेनका फ़िर विवेक को बोली. "शुरू हो जाओ जी" और मुन्नी का रोता मुंह अपने मुंह में पकड कर उसे चुप कर दिया

विवेक ने ड्रावर से मेनका की दो ब्रा निकालीं और एक से मुन्नी के पैर आपस में कस कर बांध दिये. फ़िर उसके हाथ ऊपर कर के पंजे भी दूसरी ब्रेसियर से बांध दिये. "बहन ये ब्रा तेरी भाभी की हैं, तेरी मनपसंद, इसलिये गांड मराते हुए यह याद रख कि अपनी भाभी के ब्रेसियर से तुझे बांधा गया था" उसने मुन्नी को बताया. मुन्नी के पीछे बैठकर विवेक ने उसके चूतड़ों को प्यार करना शुरू किया. उसका लंड अब सूज कर वासना से फ़टा जा रहा था पर वह मन भर के उन सुन्दर नितंबों की पूजा करना चाहता था.

पहले तो उसने बडे प्यार से उन्हें चाटा. फ़िर उन्हें मसलता हुआ वह उन्हें हौले हौले दांतों से काटने लगा. नरम नरम चिकने चूतड़ों को चबाने में उसे बहुत मजा आ रहा था. मुन्नी के गोरे गोरे नितंबों के बीच का छेद एक गुलाब की कली जैसा मोहक दिख रहा था. विवेक ने अपने मजबूत हाथों से उसके चूतड पकड कर अलग किये और अपना मुंह उस गुलाबी गुदाद्वार पर जमा कर चूसने लगा. अपनी जीभ उसने पूरी उस मुलायम छेद में डाल दी और अन्दर से मुन्नी की गांड की नरम नरम म्यान को चाटने लगा. मख्खन लगी गांड के सौंधे सौंधे स्वाद और महक ने उसे और मदमस्त कर दिया.

वह उठकर बैठ गया और एक बडा मक्खन का लौन्दा लेकर मुन्नी की गांड मे अपनी उंगली से भर दिया. एक के बाद एक वह मक्खन के गोले उस संकरी गांड में भरता रहा जब तक करीब करीब पूरा पाव किलो मक्खन बच्ची की गांड में नहीं समा गया. मेनका ने कुछ देर को अपना मुंह मुन्नी के मुंह से हटा कर कहा "लबालब मक्खन तेरी गांड में भरा रहेगा बेटी, तो गांड मस्त मारी जायेगी, लौडा ऐसे फ़िसलेगा जैसे सिलिन्डर में पिस्टन."

बचा हुआ मक्खन विवेक अपने भरीभरकम लंड पर दोनों हथेलियों से चुपडने लगा. उसे अब अपने ही लोहे जैसे कडे शिश्न की मक्खन से मालिश करते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कि वह घोडे का लंड हाथ में लिये है. फ़ूली हुई नसें तो अब ऐसी दिख रही थी कि जैसे किसी पहलवान के कसरती हाथ की माँस-पेशियाँ हों. उसने अपने हाथ चाटे और मक्खन साफ़ किया जिससे मुन्नी की चूचियाँ दबाते हुए न फ़िसलें.

मेनका मुन्नी के गालों को चूमते हुए बोली "अब तू मन भर के चिल्ला सकती है मुन्नी बहन पर कोई तेरी पुकार सुन नहीं पायेगा क्योंकी मैं अपनी चूची से तेरा मुंह बंद कर दूँगी. पर जब दर्द हो तो चिल्लाना जरूर, तेरी गोम्गियाने की आवाज से तेरे भैया की मस्ती और बढेगी." फ़िर उसने अपनी एक मांसल चूची उस कमसिन किशोरी के मुंह में ठूंस दी और कस के उसका सिर अपनी छाती पर दबाती हुई अपने पति से बोली "चलो, अब देर मत करो, मुझ से नहीं रह जाता"

गांड मारने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. बडी बेसब्री से विवेक अपनी टांगें अपनी बहन के शरीर के दोनों बाजू में जमा कर बैठ गया और अपना मोटे सेब जैसा सुपाडा उस कोमल गांड पर रख कर पेलने लगा. अपने लंड को उसने भाले की तरह अपने दाहिने हाथ से पकडा हुआ था ताकि फ़िसल ना जाये. पहले तो कुछ नही हुआ क्योंकी इतने जरा से छेद में इतना मोटा गोला जाना असंभव था. विवेक ने फ़िर बडी बेसब्री से अपने बायें हाथ से मुन्नी के नितंब फ़ैलाये और फ़िर जोर से अपने पूरे वजन के साथ लौडे को उस गुदा के छेद में पेला. गांड खुल कर चौडी होने लगी और धीरे धीरे वह विशाल लाल लाल सुपाडा उस कोमल गांड के अन्दर जाने लगा.

मुन्नी अब छटपटाने लगी. उसका गुदाद्वार चौडा होता जा रहा था और ऐसा लगता था कि बस फ़टने ही वाला है. विवेक ने पहले सोचा था कि बहुत धीरे धीरे मुन्नी की गांड मारेगा पर उससे रहा नहीं गया और जबरदस्त जोर लगा कर उसने एकदम अपना सुपाडा उस कोमल किशोरी के गुदा के छल्ले के नीचे उतार दिया. मुन्नी इस तरह उछली जैसे कि पानी से निकाली मछली हो. वह अपने बंद मुंह में से गोम्गियाने लगी और उसका नाजुक शरीर इस तरह कांपने लगा जैसे बिजली का झटका लगा हो.

विवेक को ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी मुलायम हाथ ने उसके सुपाडे को जोर से दबोच लिया हो, क्योंकी उसकी प्यारी बहन की टाइट गांड इस जोर से उसे भींच रही थी. वह इस सुख का आनंद लेते हुए कुछ देर रुका. फ़िर जब मुन्नी का तडपना कुछ कम हुआ तो अब वह अपना बचा डंडा उसकी गांड में धीरे धीरे उतारने लगा. इंच इंच कर के उसका शक्तिशाली लौडा मुन्नी की संकरी गांड में गडता गया.

मुन्नी का कोमल कमसिन शरीर बार बार ऐसे एंठ जाता जैसे कोई उसका गला दबा रहा हो. उसके चूची भरे हुए मुंह से सिसकने और कराहने की दबी दबी आवाजें निकल रही थी जिन्हे सुन सुन के विवेक और मस्त हो रहा था. करीब ६ इंच लंड अंदर जाने पर वह फंस कर रुक गया क्योंकी उसके बाद मुन्नी की आंत बहुत संकरी थी.

मेनका बोली "रुक क्यों गये, मारो गांड, पूरा लंड जड तक उतार दो, साली की गांड फ़ट जाये तो फ़ट जाने दो, अपनी डॉक्टर दीदी से सिलवा लेंगे. वह मुझ पर मरती है इसलिये कुछ नहीं पूछेगी, चुपचाप सी देगी. हाय मुझे इतना मजा आ रहा है जैसा तुमसे पहली बार मराते हुए भी नहीं आया था. काश मैं मर्द होती तो इस लौंडियाँ की गांड खुद मार सकती"

विवेक कुछ देर रुका पर अंत में उससे रहा नहीं गया, उसने निश्चय किया कि कुछ भी हो जाये वह मेनका के कहने के अनुसार जड तक अपना शिश्न घुसेड कर रहेगा. उसने कचकचा के एक जोर का धक्का लगाया और पूरा लंड एक झटके में जड तक मुन्नी की कोमल गांड में समा गया. विवेक को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका सुपाडा मुन्नी के पेट में घुस गया हो. मुन्नी ने एक दबी चीख मारी और होश खो बैठी.

विवेक अब सातवे आसमान पर था. मुन्नी की पीडा की अब उसे कोई परवाह नहीं थी. यह बंधीं हुई लडकी तो अब उसके लिये जैसे एक रबर की सुंदर गुड़िया थी जिससे वह मन भर कर खेलना चाहता था. हाँ, टटोल कर उसने यह देख लिया कि उस कमसिन कली की गांड सच में फ़ट तो नहीं गयी. गुदा के बुरी तरह से खींचे हुए मुंह को सकुशल पाकर उसने एक चैन की सांस ली.


अब बेहिचक वह अपनी बीवी की बाहों में जकडे उस पट पडे बेहोश कोमल शरीर पर चढ गया. अपनी बाहों में भर के वह पटापट मुन्नी के कोमल गाल चूमने लगा. मुन्नी का मुंह मेनका के स्तन से भरा होने से वह उसके होंठों को नहीं चूम सकता था इसलिये बेतहाशा उसके गालों, कानों और आँखों को चूमते हुए उसने आखिर अपने प्यारे शिकार की गांड मारना शुरू की.
 
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Ajju Landwalia

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मेनका को मालूम था कि विवेक अपनी छोटी बहन की गांड मारने को लालायित है. उसने जब लंड का साइज़ देखा तो समझ गई कि अगर झडाया नहीं गया और इसी लंड से बच्ची की गांड मारी गई तो जरूर फ़ट जाएगी. इसलिये वह भी बोली. "ऐसा करो, मुट्ठ मार लो मुन्नी के मुंह में, उसे भी जरा इस गाढे गाढे वीर्य का स्वाद चखने दो. मै तो रोज ही पाती हूँ, आज मेरी ननद को पाने दो यह प्रसाद."

विवेक दीवाना हुआ जा रहा था. उसने एक हाथ से मुन्नी के सिर को पकड कर सहारा दिया कि धक्कों से आगे पीछे न हो और दूसरे हाथ से लंड का डंडा मुट्ठी में लेकर जोर जोर से आगे पीछे करता हुआ हस्तमैथुन करने लगा. मुंह में फ़ूलता सिकुडता लज़ीज़ सुपाडा उस किशोरी को इतना भाया कि जीभ रगड रगड कर आँखें बंद कर के वह उस रसीले फ़ल को चूसने लगी.

विवेक को इतना सुख सहन नहीं हुआ और पाँच ही मिनिट में वह एकदम स्खलित हो गया. "हाऽयरीऽ प्यारी बच्ची, तूने मुझे मार डाला, मेनका रानी, यह तो चूसने में उस्ताद है, ऊ ऽ आह ऽ ऽ " मुन्नी मलाई जैसा गाढ़ा गरम गरम वीर्य बडे स्वाद से निगल रही थी. दो महीनों बाद वीर्य निगला और वह भी बडे भाई का! विवेक का उछलता लंड उसने आखरी बूंद निकलने तक अपने मुंह में दबाए रखा जब तक वह सिकुड नहीं गया.

मुन्नी भी अब तक मेनका के चूसने से कई बार झड गई थी. मेनका चटखारे ले लेकर उसकी बुर का पानी चूस रही थी. विवेक बोला "चलो, बाजू हटो, मुझे भी अपनी बहन की चूत चूसने दो." मुन्नी मस्ती में बोली "हाँ भाभी, भैया को मेरी बुर का शरबत पीने दो, तुम अब जरा मुझे अपनी चूत चटाओ भाभी, जल्दी करो ऽ ना ऽ" वह मचल उठी.



मेनका उठी और उठ कर कुर्सी में बैठ गई. अपनी भरी पूरी गुदाज टांगें फ़ैला कर बोली "आ मेरी रानी, अपनी भाभी की बुर में आ जा, देख भाभी की चूत ने क्या रस बनाया है अपनी लाडली ननद के लिये."

मुन्नी उठकर तुरंत मेनका के सामने फ़र्श पर बैठ गयी और भाभी की बुर अपने हाथों से खोलते हुए उसे चाटने लगी. उस कोमल जीभ का स्पर्श होते ही मेनका मस्ती से सिसक उठी और मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ घुमाती हुई उसे पास खींच कर और ठीक से चूसने को कहने लगी. "हाय मेरी गुड़िया, क्या जीभ है तेरी, चाट ना, और मन भर कर चाट, जीभ अंदर भी डाल ननद रानी, असली माल तो अंदर है." मुन्नी के अधीर चाटने से मेनका कुछ ही देर में झड गयी और चुदासी की प्यासी मुन्नी के लिये तो मानों रस की धार उसकी भाभी की बुर से फ़ूट पडी.


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विवेक अब तक मुन्नी के पीछे लेट गया था. सरककर उसने मुन्नी के नितंब फ़र्श पर से उठाये और अपना सिर उसके नीचे लाकर फ़िर से मुन्नी को अपने मुंह पर ही बिठा लिया. उसकी रसीली चूत चूसते हुए वह अपनी छोटी बहन के नितंब प्यार से सहलाने लगा. मुन्नी तो अब मानों काम सुख के सागर में गोते लगा रही थी. एक तरफ़ उसे अपनी भाभी की बुर का रस चूसने मिल रहा था और दूसरी ओर उसके भैया उसकी चूत चूस रहे थे. वह तुरंत झड गयी और मस्ती में ऊपर नीचे होते हुए विवेक को अपनी बुर का रस पिलाते हुए उसका मुंह चोदने लगी.

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विवेक ने अपनी जीभ कडी करके उसकी चूत में एक लंड की तरह डाल दी और उस कमसिन चूत को चोदने लगा. साथ ही अब वह धीरे धीरे मुन्नी के कसे हुई मुलायम चूतड़ों को प्यार से सहलाने लगा. सहलाते सहलाते उसने नितंबों के बीच की लकीर में उंगली चलाना शुरू कर दी और हौले हौले उस कोमल गांड का जरा सा छेद टटोलने लगा.

विवेक अब यह सोच कर दीवाना हुआ जा रहा था कि जब उस नन्ही गांड में उसका भारी भरकम लंड जायेगा तो कितना मजा आयेगा पर बेचारी मुन्नी जो अपने भाई के इस इरादे से अनभिग्य थी, मस्ती से चहक उठी. गांड को टटोलती उंगली ने उसे ऐसा मस्त किया कि वह और उछल उछल कर अपने भाई का मुंह चोदने लगी और झडकर उसे अपनी बुर से बहते अमृत का प्रसाद पिलाने लगी.

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मुन्नी आखिर बार बार झडकर लस्त पडने लगी. मुन्नी के मुंह में झडने के बावजूद मेनका की बुर अब बुरी तरह से चू रही थी क्योंकी वह समझ गयी थी कि बच्ची की गांड मारने का समय नजदीक आता जा रहा है. मुन्नी अब पूरी तरह से तृप्त होकर हार मान चुकी थी और अपने भाई से प्रार्थना कर रही थी कि अब वह उसकी बुर न चूसे. "भैया, छोड दो अब, अब नहीं रहा जाता, बुर दुखती है तुम चूसते हो तो, प्लीज़ भैया, मेरी चूत मत चाटो अब."

मेनका ने मुन्नी का सिर अपनी झांटों में खींच कर अपनी चूत से उसका मुंह बंद कर दिया और जांघों से उसके सिर को दबा लिया. फ़िर बोली "डार्लिंग, तुम चूसते रहो जब तक मन करे, यह छोकरी तो नादान है, और उसकी गांड भी चूसो जरा, स्वाद बदल बदल कर चूसोगे तो मजा आयेगा"

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अगले दस मिनट विवेक मुन्नी की बुर और गांड बारी बारी से चूसता रहा. बच्ची की झडी चूत पर और नन्हे से क्लिट पर अब जब विवेक की जीभ चलती तो वह अजीब से संवेदन से तडप उठती. उसे यह सहन नहीं हो रहा था और बेचारी रोने को आ गई कि कब भैया उस पर तरस खाकर उसकी यह मीठी यातना समाप्त करें. वह कमसिन छोकरी मुंह बंद होने से कुछ नहीं कर सकी, सिर्फ़ मेनका की बुर में गोम्गियाकर रह गयी.

मेनका ने जब देखा कि मुन्नी बिल्कुल लस्त हो गयी है तब उसने विवेक को इशारा किया. "चलो जी, अपनी बहन को उठाकर पलंग पर ले चलो, आगे का काम भी करना है कि नहीं." विवेक धडकते दिल से उठा. उसकी प्रतीक्षा की घडी समाप्त होने वाली थी. उठाकर अपनी बहन का नाजुक लस्त हुआ शरीर उसने पलंग पर पटक दिया और मुन्नी को औंधे मुंह लिटा दिया. वह फ़िर पलंग पर चढ कर बैठ गया और मुन्नी के नितंब सहलाने और मसलने लगा.

मेनका उसका लंड चूसने लगी. चूसते चूसते विवेक से पूछा "क्यों, सूखी ही मारोगे या मक्खन लाऊँ" विवेक मस्ती में बोला "सूखी मारने में बहुत मजा आयेगा मेरी जान" मेनका उस मोटे लंड को देखकर बोली "मैं तुमसे रोज गांड मराती हूँ पर मुझे भी आज इस की साइज़ देखकर डर लगा रहा है, फ़ट जायेगी गांड, मैं मक्खन लेकर आती हूँ, आज चिकनी कर के मारो, अब तो रोज ही मारना है, सूखी बाद में चोद लेना"

मेनका उठकर मक्खन लाने को चली गयी. विवेक प्यार से औंधी पडी अपनी छोटी बहन के नितंब सहलाता रहा. लस्त मुन्नी भी पडी पडी आराम करती रही. उसे लगा मेनका और भैया में उनके आपस के गुदा संभोग की बातें चल रही हैं, उसे क्या लेना देना था. बेचारी बच्ची नहीं जानती थी कि उस की गांड मारने की तैयारी हो रही है.

मेनका मक्खन लेकर आयी और विवेक के हाथ मे देकर आँख मारकर पलंग पर चढ गयी. लेटकर उसने मुन्नी को उठा कर अपने ऊपर औंधा लिटा लिया और उसे चूमने लगी. मुन्नी के हाथ उसने अपने शरीर के गिर्द लिपटा लिये और अपनी पीठ के नीचे दबा लिये जिससे वह कुछ प्रतिकार न कर सके. अपनी टांगों में मुन्नी के पैर जकड लिये और उसे बांध सा लिया.

मुन्नी की मुलायम गोरी गांड देखकर विवेक अब अपनी वासना पर काबू न रख सका. वह उठा और मुन्नी की कुंवारी गांड मारने की तैयारी करने लगा. अब मेनका भी मजा लेने लगी. उसने मुन्नी से कहा. "मेरी प्यारी ननद रानी, मैने तुझसे वायदा किया था ना कि भैया आज तुझे नहीं चोदेंगे" मुन्नी घबरा गयी. मेनका ने उसे दिलासा देते हुए कहा. "घबरा मत बिटिया, सच में नहीं चोदेंगे" फ़िर कुछ रुक कर मजा लेती हुई बोली "आज वे तेरी गांड मारेंगे"

मुन्नी सकते में आ गयी और घबरा कर रोने लगी. विवेक अब पूरी तरह से उत्तेजित था. उसने एक उंगली मक्खन में चुपड कर मुन्नी के गुदा में घुसेड दी. उस नाजुक गांड को सिर्फ़ एक उंगली में ही ऐसा दर्द हुआ कि वह हिचक कर रो पडी. विवेक को मजा आ गया और उसने मुन्नी का सिर उठाकर अपना लंड उस बच्ची को दिखाया. "देख बहन, तेरी गांड के लिये क्या मस्त लौडा खडा किया है."

उस बडे महाकाय लंड को देखकर मुन्नी की आँखें पथरा गईं. विवेक का लंड अब कम से कम आठ इंच लंबा और ढाई इन्च मोटा हो गया था. वह विवेक से अपनी चूत चुसवाने के आनंद में यह भूल ही गयी थी कि आज उस की कोमल कुंवारी गांड भी मारी जा सकती है.

विवेक ने उसका भयभीत चेहरा देखा तो मस्ती से वह और मुस्काया. असल में उसका सपना हमेशा से यही था कि पहली बार वह मुन्नी की गांड मारे तो वह जबर्दस्ती करते हुए मारे. इसीलिये उसने मुन्नी को बार बार चूसकर उसकी सारी मस्ती उतार दी थी. उसे पता था कि मस्ती उतरने के बाद मुन्नी संभोग से घबरायेगी और उस रोती गिडगिडाते सुन्दर चिकनी लडकी की नरम कुंवारी गांड अपने शैतानी लंड से चोदने में स्वर्ग का आनंद आयेगा.

मेनका भी अब एक क्रूरता भरी मस्ती में थी. बोली "बहन, तेरी गांड तो इतनी नाजुक और संकरी है कि सिर्फ़ एक उंगली डालने से ही तू रो पडती है. तो अब जब यह घूँसे जैसा सुपाडा और तेरे हाथ जितना मोटा लंड तेरे चूतड़ों के बीच जायेगा तो तेरा क्या होगा?"

मुन्नी अब बुरी तरह से घबरा गयी थी. मौसी के घर उसने जितनी भी बार गांड मरवाई थी तब उसे काफी दर्द होता था। और भैया का तो लंड भी इतना खूंखार था। उसकी सारी मस्ती खतम हो चुकी थी. वह रोती हुई बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगी पर मेनका की गिरफ़्त से नहीं छूट पायी. रोते रोते वह गिडगिडा रही थी. "भैया, भाभी, मुझे छोड दीजिये, मेरी गांड फ़ट जायेगी, मैं मर जाऊँगी, मेरी गांड मत मारिये, मैं आपकी मुट्ठ मार देती हूँ, लंड चूस कर मैं आपको खुश कर दूँगी. या फ़िर चोद ही लीजिये पर गांड मत मारिये"

मेनका ने उसे दबोचा हुआ था ही, अपनी मांसल टांगें भी उसने मुन्नी के इर्द गिर्द जकड लीं और मुन्नी को पुचकारती हुई बोली "घबरा मत बेटी, मरेगी नहीं, भैया बहुत प्यार से मन लगा कर मारेंगे तेरी और फ़िर तुझे आखिर अब रोज ही मराना है. हाँ, दर्द तुझे बहुत होगा और तू गांड पहली बार चुदते हुए बहुत छटपटायेगी इसलिये मैं तुझे पकड कर अपनी बाहों मे कैद रखूंगी." मेनका फ़िर विवेक को बोली. "शुरू हो जाओ जी" और मुन्नी का रोता मुंह अपने मुंह में पकड कर उसे चुप कर दिया

विवेक ने ड्रावर से मेनका की दो ब्रा निकालीं और एक से मुन्नी के पैर आपस में कस कर बांध दिये. फ़िर उसके हाथ ऊपर कर के पंजे भी दूसरी ब्रेसियर से बांध दिये. "बहन ये ब्रा तेरी भाभी की हैं, तेरी मनपसंद, इसलिये गांड मराते हुए यह याद रख कि अपनी भाभी के ब्रेसियर से तुझे बांधा गया था" उसने मुन्नी को बताया. मुन्नी के पीछे बैठकर विवेक ने उसके चूतड़ों को प्यार करना शुरू किया. उसका लंड अब सूज कर वासना से फ़टा जा रहा था पर वह मन भर के उन सुन्दर नितंबों की पूजा करना चाहता था.

पहले तो उसने बडे प्यार से उन्हें चाटा. फ़िर उन्हें मसलता हुआ वह उन्हें हौले हौले दांतों से काटने लगा. नरम नरम चिकने चूतड़ों को चबाने में उसे बहुत मजा आ रहा था. मुन्नी के गोरे गोरे नितंबों के बीच का छेद एक गुलाब की कली जैसा मोहक दिख रहा था. विवेक ने अपने मजबूत हाथों से उसके चूतड पकड कर अलग किये और अपना मुंह उस गुलाबी गुदाद्वार पर जमा कर चूसने लगा. अपनी जीभ उसने पूरी उस मुलायम छेद में डाल दी और अन्दर से मुन्नी की गांड की नरम नरम म्यान को चाटने लगा. मख्खन लगी गांड के सौंधे सौंधे स्वाद और महक ने उसे और मदमस्त कर दिया.

वह उठकर बैठ गया और एक बडा मक्खन का लौन्दा लेकर मुन्नी की गांड मे अपनी उंगली से भर दिया. एक के बाद एक वह मक्खन के गोले उस संकरी गांड में भरता रहा जब तक करीब करीब पूरा पाव किलो मक्खन बच्ची की गांड में नहीं समा गया. मेनका ने कुछ देर को अपना मुंह मुन्नी के मुंह से हटा कर कहा "लबालब मक्खन तेरी गांड में भरा रहेगा बेटी, तो गांड मस्त मारी जायेगी, लौडा ऐसे फ़िसलेगा जैसे सिलिन्डर में पिस्टन."

बचा हुआ मक्खन विवेक अपने भरीभरकम लंड पर दोनों हथेलियों से चुपडने लगा. उसे अब अपने ही लोहे जैसे कडे शिश्न की मक्खन से मालिश करते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कि वह घोडे का लंड हाथ में लिये है. फ़ूली हुई नसें तो अब ऐसी दिख रही थी कि जैसे किसी पहलवान के कसरती हाथ की माँस-पेशियाँ हों. उसने अपने हाथ चाटे और मक्खन साफ़ किया जिससे मुन्नी की चूचियाँ दबाते हुए न फ़िसलें.

मेनका मुन्नी के गालों को चूमते हुए बोली "अब तू मन भर के चिल्ला सकती है मुन्नी बहन पर कोई तेरी पुकार सुन नहीं पायेगा क्योंकी मैं अपनी चूची से तेरा मुंह बंद कर दूँगी. पर जब दर्द हो तो चिल्लाना जरूर, तेरी गोम्गियाने की आवाज से तेरे भैया की मस्ती और बढेगी." फ़िर उसने अपनी एक मांसल चूची उस कमसिन किशोरी के मुंह में ठूंस दी और कस के उसका सिर अपनी छाती पर दबाती हुई अपने पति से बोली "चलो, अब देर मत करो, मुझ से नहीं रह जाता"

गांड मारने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. बडी बेसब्री से विवेक अपनी टांगें अपनी बहन के शरीर के दोनों बाजू में जमा कर बैठ गया और अपना मोटे सेब जैसा सुपाडा उस कोमल गांड पर रख कर पेलने लगा. अपने लंड को उसने भाले की तरह अपने दाहिने हाथ से पकडा हुआ था ताकि फ़िसल ना जाये. पहले तो कुछ नही हुआ क्योंकी इतने जरा से छेद में इतना मोटा गोला जाना असंभव था. विवेक ने फ़िर बडी बेसब्री से अपने बायें हाथ से मुन्नी के नितंब फ़ैलाये और फ़िर जोर से अपने पूरे वजन के साथ लौडे को उस गुदा के छेद में पेला. गांड खुल कर चौडी होने लगी और धीरे धीरे वह विशाल लाल लाल सुपाडा उस कोमल गांड के अन्दर जाने लगा.

मुन्नी अब छटपटाने लगी. उसका गुदाद्वार चौडा होता जा रहा था और ऐसा लगता था कि बस फ़टने ही वाला है. विवेक ने पहले सोचा था कि बहुत धीरे धीरे मुन्नी की गांड मारेगा पर उससे रहा नहीं गया और जबरदस्त जोर लगा कर उसने एकदम अपना सुपाडा उस कोमल किशोरी के गुदा के छल्ले के नीचे उतार दिया. मुन्नी इस तरह उछली जैसे कि पानी से निकाली मछली हो. वह अपने बंद मुंह में से गोम्गियाने लगी और उसका नाजुक शरीर इस तरह कांपने लगा जैसे बिजली का झटका लगा हो.

विवेक को ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी मुलायम हाथ ने उसके सुपाडे को जोर से दबोच लिया हो, क्योंकी उसकी प्यारी बहन की टाइट गांड इस जोर से उसे भींच रही थी. वह इस सुख का आनंद लेते हुए कुछ देर रुका. फ़िर जब मुन्नी का तडपना कुछ कम हुआ तो अब वह अपना बचा डंडा उसकी गांड में धीरे धीरे उतारने लगा. इंच इंच कर के उसका शक्तिशाली लौडा मुन्नी की संकरी गांड में गडता गया.

मुन्नी का कोमल कमसिन शरीर बार बार ऐसे एंठ जाता जैसे कोई उसका गला दबा रहा हो. उसके चूची भरे हुए मुंह से सिसकने और कराहने की दबी दबी आवाजें निकल रही थी जिन्हे सुन सुन के विवेक और मस्त हो रहा था. करीब ६ इंच लंड अंदर जाने पर वह फंस कर रुक गया क्योंकी उसके बाद मुन्नी की आंत बहुत संकरी थी.

मेनका बोली "रुक क्यों गये, मारो गांड, पूरा लंड जड तक उतार दो, साली की गांड फ़ट जाये तो फ़ट जाने दो, अपनी डॉक्टर दीदी से सिलवा लेंगे. वह मुझ पर मरती है इसलिये कुछ नहीं पूछेगी, चुपचाप सी देगी. हाय मुझे इतना मजा आ रहा है जैसा तुमसे पहली बार मराते हुए भी नहीं आया था. काश मैं मर्द होती तो इस लौंडियाँ की गांड खुद मार सकती"

विवेक कुछ देर रुका पर अंत में उससे रहा नहीं गया, उसने निश्चय किया कि कुछ भी हो जाये वह मेनका के कहने के अनुसार जड तक अपना शिश्न घुसेड कर रहेगा. उसने कचकचा के एक जोर का धक्का लगाया और पूरा लंड एक झटके में जड तक मुन्नी की कोमल गांड में समा गया. विवेक को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका सुपाडा मुन्नी के पेट में घुस गया हो. मुन्नी ने एक दबी चीख मारी और होश खो बैठी.

विवेक अब सातवे आसमान पर था. मुन्नी की पीडा की अब उसे कोई परवाह नहीं थी. यह बंधीं हुई लडकी तो अब उसके लिये जैसे एक रबर की सुंदर गुड़िया थी जिससे वह मन भर कर खेलना चाहता था. हाँ, टटोल कर उसने यह देख लिया कि उस कमसिन कली की गांड सच में फ़ट तो नहीं गयी. गुदा के बुरी तरह से खींचे हुए मुंह को सकुशल पाकर उसने एक चैन की सांस ली.


अब बेहिचक वह अपनी बीवी की बाहों में जकडे उस पट पडे बेहोश कोमल शरीर पर चढ गया. अपनी बाहों में भर के वह पटापट मुन्नी के कोमल गाल चूमने लगा. मुन्नी का मुंह मेनका के स्तन से भरा होने से वह उसके होंठों को नहीं चूम सकता था इसलिये बेतहाशा उसके गालों, कानों और आँखों को चूमते हुए उसने आखिर अपने प्यारे शिकार की गांड मारना शुरू की.

Wah kya mast update post ki he vakharia Bhai,

Munni ne socha bhi na tha ki ye dono log lugayi is tarha se uska istemal karenge............

Jaisa kasai bakri ko katata he vaise hi thok diya munni ko vivek ne.........

Agli dhamakedar update ki pratiksha rahegi
 

vakharia

Supreme
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अंजू मौसी और गीता चाची कथाप्रेमी की दो मशहूर कहानियां थीं ।

इस कहानी को पढ़कर कथा प्रेमी जी की याद आना स्वाभाविक है ।

कहानी बहुत अच्छी बन पड़ी है , चची का व्यवहार , भतीजे की झिझक सब कुछ बहुत अच्छा है और सबसे बढ़कर चित्र जो उत्तेजना को बढ़ाते हैं। कहानी थोड़ी अलग है पर एक तरह से मैं कहूंगी कथाप्रेमी जी को ट्रिब्यूट है और बहुत शानदार ट्रिब्यूट है।

बहुत अच्छे अपडेट्स
Thanks❤️💖❤️
 

sunoanuj

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Bahut hee kamuk update … dono ne dhoke se munni ki gaand ko godaam bana diya…: 👏🏻👏🏻👏🏻

Keep posting…
 

Ek number

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मेनका को मालूम था कि विवेक अपनी छोटी बहन की गांड मारने को लालायित है. उसने जब लंड का साइज़ देखा तो समझ गई कि अगर झडाया नहीं गया और इसी लंड से बच्ची की गांड मारी गई तो जरूर फ़ट जाएगी. इसलिये वह भी बोली. "ऐसा करो, मुट्ठ मार लो मुन्नी के मुंह में, उसे भी जरा इस गाढे गाढे वीर्य का स्वाद चखने दो. मै तो रोज ही पाती हूँ, आज मेरी ननद को पाने दो यह प्रसाद."

विवेक दीवाना हुआ जा रहा था. उसने एक हाथ से मुन्नी के सिर को पकड कर सहारा दिया कि धक्कों से आगे पीछे न हो और दूसरे हाथ से लंड का डंडा मुट्ठी में लेकर जोर जोर से आगे पीछे करता हुआ हस्तमैथुन करने लगा. मुंह में फ़ूलता सिकुडता लज़ीज़ सुपाडा उस किशोरी को इतना भाया कि जीभ रगड रगड कर आँखें बंद कर के वह उस रसीले फ़ल को चूसने लगी.

विवेक को इतना सुख सहन नहीं हुआ और पाँच ही मिनिट में वह एकदम स्खलित हो गया. "हाऽयरीऽ प्यारी बच्ची, तूने मुझे मार डाला, मेनका रानी, यह तो चूसने में उस्ताद है, ऊ ऽ आह ऽ ऽ " मुन्नी मलाई जैसा गाढ़ा गरम गरम वीर्य बडे स्वाद से निगल रही थी. दो महीनों बाद वीर्य निगला और वह भी बडे भाई का! विवेक का उछलता लंड उसने आखरी बूंद निकलने तक अपने मुंह में दबाए रखा जब तक वह सिकुड नहीं गया.

मुन्नी भी अब तक मेनका के चूसने से कई बार झड गई थी. मेनका चटखारे ले लेकर उसकी बुर का पानी चूस रही थी. विवेक बोला "चलो, बाजू हटो, मुझे भी अपनी बहन की चूत चूसने दो." मुन्नी मस्ती में बोली "हाँ भाभी, भैया को मेरी बुर का शरबत पीने दो, तुम अब जरा मुझे अपनी चूत चटाओ भाभी, जल्दी करो ऽ ना ऽ" वह मचल उठी.



मेनका उठी और उठ कर कुर्सी में बैठ गई. अपनी भरी पूरी गुदाज टांगें फ़ैला कर बोली "आ मेरी रानी, अपनी भाभी की बुर में आ जा, देख भाभी की चूत ने क्या रस बनाया है अपनी लाडली ननद के लिये."

मुन्नी उठकर तुरंत मेनका के सामने फ़र्श पर बैठ गयी और भाभी की बुर अपने हाथों से खोलते हुए उसे चाटने लगी. उस कोमल जीभ का स्पर्श होते ही मेनका मस्ती से सिसक उठी और मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ घुमाती हुई उसे पास खींच कर और ठीक से चूसने को कहने लगी. "हाय मेरी गुड़िया, क्या जीभ है तेरी, चाट ना, और मन भर कर चाट, जीभ अंदर भी डाल ननद रानी, असली माल तो अंदर है." मुन्नी के अधीर चाटने से मेनका कुछ ही देर में झड गयी और चुदासी की प्यासी मुन्नी के लिये तो मानों रस की धार उसकी भाभी की बुर से फ़ूट पडी.


cln

विवेक अब तक मुन्नी के पीछे लेट गया था. सरककर उसने मुन्नी के नितंब फ़र्श पर से उठाये और अपना सिर उसके नीचे लाकर फ़िर से मुन्नी को अपने मुंह पर ही बिठा लिया. उसकी रसीली चूत चूसते हुए वह अपनी छोटी बहन के नितंब प्यार से सहलाने लगा. मुन्नी तो अब मानों काम सुख के सागर में गोते लगा रही थी. एक तरफ़ उसे अपनी भाभी की बुर का रस चूसने मिल रहा था और दूसरी ओर उसके भैया उसकी चूत चूस रहे थे. वह तुरंत झड गयी और मस्ती में ऊपर नीचे होते हुए विवेक को अपनी बुर का रस पिलाते हुए उसका मुंह चोदने लगी.

18

विवेक ने अपनी जीभ कडी करके उसकी चूत में एक लंड की तरह डाल दी और उस कमसिन चूत को चोदने लगा. साथ ही अब वह धीरे धीरे मुन्नी के कसे हुई मुलायम चूतड़ों को प्यार से सहलाने लगा. सहलाते सहलाते उसने नितंबों के बीच की लकीर में उंगली चलाना शुरू कर दी और हौले हौले उस कोमल गांड का जरा सा छेद टटोलने लगा.

विवेक अब यह सोच कर दीवाना हुआ जा रहा था कि जब उस नन्ही गांड में उसका भारी भरकम लंड जायेगा तो कितना मजा आयेगा पर बेचारी मुन्नी जो अपने भाई के इस इरादे से अनभिग्य थी, मस्ती से चहक उठी. गांड को टटोलती उंगली ने उसे ऐसा मस्त किया कि वह और उछल उछल कर अपने भाई का मुंह चोदने लगी और झडकर उसे अपनी बुर से बहते अमृत का प्रसाद पिलाने लगी.

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मुन्नी आखिर बार बार झडकर लस्त पडने लगी. मुन्नी के मुंह में झडने के बावजूद मेनका की बुर अब बुरी तरह से चू रही थी क्योंकी वह समझ गयी थी कि बच्ची की गांड मारने का समय नजदीक आता जा रहा है. मुन्नी अब पूरी तरह से तृप्त होकर हार मान चुकी थी और अपने भाई से प्रार्थना कर रही थी कि अब वह उसकी बुर न चूसे. "भैया, छोड दो अब, अब नहीं रहा जाता, बुर दुखती है तुम चूसते हो तो, प्लीज़ भैया, मेरी चूत मत चाटो अब."

मेनका ने मुन्नी का सिर अपनी झांटों में खींच कर अपनी चूत से उसका मुंह बंद कर दिया और जांघों से उसके सिर को दबा लिया. फ़िर बोली "डार्लिंग, तुम चूसते रहो जब तक मन करे, यह छोकरी तो नादान है, और उसकी गांड भी चूसो जरा, स्वाद बदल बदल कर चूसोगे तो मजा आयेगा"

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अगले दस मिनट विवेक मुन्नी की बुर और गांड बारी बारी से चूसता रहा. बच्ची की झडी चूत पर और नन्हे से क्लिट पर अब जब विवेक की जीभ चलती तो वह अजीब से संवेदन से तडप उठती. उसे यह सहन नहीं हो रहा था और बेचारी रोने को आ गई कि कब भैया उस पर तरस खाकर उसकी यह मीठी यातना समाप्त करें. वह कमसिन छोकरी मुंह बंद होने से कुछ नहीं कर सकी, सिर्फ़ मेनका की बुर में गोम्गियाकर रह गयी.

मेनका ने जब देखा कि मुन्नी बिल्कुल लस्त हो गयी है तब उसने विवेक को इशारा किया. "चलो जी, अपनी बहन को उठाकर पलंग पर ले चलो, आगे का काम भी करना है कि नहीं." विवेक धडकते दिल से उठा. उसकी प्रतीक्षा की घडी समाप्त होने वाली थी. उठाकर अपनी बहन का नाजुक लस्त हुआ शरीर उसने पलंग पर पटक दिया और मुन्नी को औंधे मुंह लिटा दिया. वह फ़िर पलंग पर चढ कर बैठ गया और मुन्नी के नितंब सहलाने और मसलने लगा.

मेनका उसका लंड चूसने लगी. चूसते चूसते विवेक से पूछा "क्यों, सूखी ही मारोगे या मक्खन लाऊँ" विवेक मस्ती में बोला "सूखी मारने में बहुत मजा आयेगा मेरी जान" मेनका उस मोटे लंड को देखकर बोली "मैं तुमसे रोज गांड मराती हूँ पर मुझे भी आज इस की साइज़ देखकर डर लगा रहा है, फ़ट जायेगी गांड, मैं मक्खन लेकर आती हूँ, आज चिकनी कर के मारो, अब तो रोज ही मारना है, सूखी बाद में चोद लेना"

मेनका उठकर मक्खन लाने को चली गयी. विवेक प्यार से औंधी पडी अपनी छोटी बहन के नितंब सहलाता रहा. लस्त मुन्नी भी पडी पडी आराम करती रही. उसे लगा मेनका और भैया में उनके आपस के गुदा संभोग की बातें चल रही हैं, उसे क्या लेना देना था. बेचारी बच्ची नहीं जानती थी कि उस की गांड मारने की तैयारी हो रही है.

मेनका मक्खन लेकर आयी और विवेक के हाथ मे देकर आँख मारकर पलंग पर चढ गयी. लेटकर उसने मुन्नी को उठा कर अपने ऊपर औंधा लिटा लिया और उसे चूमने लगी. मुन्नी के हाथ उसने अपने शरीर के गिर्द लिपटा लिये और अपनी पीठ के नीचे दबा लिये जिससे वह कुछ प्रतिकार न कर सके. अपनी टांगों में मुन्नी के पैर जकड लिये और उसे बांध सा लिया.

मुन्नी की मुलायम गोरी गांड देखकर विवेक अब अपनी वासना पर काबू न रख सका. वह उठा और मुन्नी की कुंवारी गांड मारने की तैयारी करने लगा. अब मेनका भी मजा लेने लगी. उसने मुन्नी से कहा. "मेरी प्यारी ननद रानी, मैने तुझसे वायदा किया था ना कि भैया आज तुझे नहीं चोदेंगे" मुन्नी घबरा गयी. मेनका ने उसे दिलासा देते हुए कहा. "घबरा मत बिटिया, सच में नहीं चोदेंगे" फ़िर कुछ रुक कर मजा लेती हुई बोली "आज वे तेरी गांड मारेंगे"

मुन्नी सकते में आ गयी और घबरा कर रोने लगी. विवेक अब पूरी तरह से उत्तेजित था. उसने एक उंगली मक्खन में चुपड कर मुन्नी के गुदा में घुसेड दी. उस नाजुक गांड को सिर्फ़ एक उंगली में ही ऐसा दर्द हुआ कि वह हिचक कर रो पडी. विवेक को मजा आ गया और उसने मुन्नी का सिर उठाकर अपना लंड उस बच्ची को दिखाया. "देख बहन, तेरी गांड के लिये क्या मस्त लौडा खडा किया है."

उस बडे महाकाय लंड को देखकर मुन्नी की आँखें पथरा गईं. विवेक का लंड अब कम से कम आठ इंच लंबा और ढाई इन्च मोटा हो गया था. वह विवेक से अपनी चूत चुसवाने के आनंद में यह भूल ही गयी थी कि आज उस की कोमल कुंवारी गांड भी मारी जा सकती है.

विवेक ने उसका भयभीत चेहरा देखा तो मस्ती से वह और मुस्काया. असल में उसका सपना हमेशा से यही था कि पहली बार वह मुन्नी की गांड मारे तो वह जबर्दस्ती करते हुए मारे. इसीलिये उसने मुन्नी को बार बार चूसकर उसकी सारी मस्ती उतार दी थी. उसे पता था कि मस्ती उतरने के बाद मुन्नी संभोग से घबरायेगी और उस रोती गिडगिडाते सुन्दर चिकनी लडकी की नरम कुंवारी गांड अपने शैतानी लंड से चोदने में स्वर्ग का आनंद आयेगा.

मेनका भी अब एक क्रूरता भरी मस्ती में थी. बोली "बहन, तेरी गांड तो इतनी नाजुक और संकरी है कि सिर्फ़ एक उंगली डालने से ही तू रो पडती है. तो अब जब यह घूँसे जैसा सुपाडा और तेरे हाथ जितना मोटा लंड तेरे चूतड़ों के बीच जायेगा तो तेरा क्या होगा?"

मुन्नी अब बुरी तरह से घबरा गयी थी. मौसी के घर उसने जितनी भी बार गांड मरवाई थी तब उसे काफी दर्द होता था। और भैया का तो लंड भी इतना खूंखार था। उसकी सारी मस्ती खतम हो चुकी थी. वह रोती हुई बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगी पर मेनका की गिरफ़्त से नहीं छूट पायी. रोते रोते वह गिडगिडा रही थी. "भैया, भाभी, मुझे छोड दीजिये, मेरी गांड फ़ट जायेगी, मैं मर जाऊँगी, मेरी गांड मत मारिये, मैं आपकी मुट्ठ मार देती हूँ, लंड चूस कर मैं आपको खुश कर दूँगी. या फ़िर चोद ही लीजिये पर गांड मत मारिये"

मेनका ने उसे दबोचा हुआ था ही, अपनी मांसल टांगें भी उसने मुन्नी के इर्द गिर्द जकड लीं और मुन्नी को पुचकारती हुई बोली "घबरा मत बेटी, मरेगी नहीं, भैया बहुत प्यार से मन लगा कर मारेंगे तेरी और फ़िर तुझे आखिर अब रोज ही मराना है. हाँ, दर्द तुझे बहुत होगा और तू गांड पहली बार चुदते हुए बहुत छटपटायेगी इसलिये मैं तुझे पकड कर अपनी बाहों मे कैद रखूंगी." मेनका फ़िर विवेक को बोली. "शुरू हो जाओ जी" और मुन्नी का रोता मुंह अपने मुंह में पकड कर उसे चुप कर दिया

विवेक ने ड्रावर से मेनका की दो ब्रा निकालीं और एक से मुन्नी के पैर आपस में कस कर बांध दिये. फ़िर उसके हाथ ऊपर कर के पंजे भी दूसरी ब्रेसियर से बांध दिये. "बहन ये ब्रा तेरी भाभी की हैं, तेरी मनपसंद, इसलिये गांड मराते हुए यह याद रख कि अपनी भाभी के ब्रेसियर से तुझे बांधा गया था" उसने मुन्नी को बताया. मुन्नी के पीछे बैठकर विवेक ने उसके चूतड़ों को प्यार करना शुरू किया. उसका लंड अब सूज कर वासना से फ़टा जा रहा था पर वह मन भर के उन सुन्दर नितंबों की पूजा करना चाहता था.

पहले तो उसने बडे प्यार से उन्हें चाटा. फ़िर उन्हें मसलता हुआ वह उन्हें हौले हौले दांतों से काटने लगा. नरम नरम चिकने चूतड़ों को चबाने में उसे बहुत मजा आ रहा था. मुन्नी के गोरे गोरे नितंबों के बीच का छेद एक गुलाब की कली जैसा मोहक दिख रहा था. विवेक ने अपने मजबूत हाथों से उसके चूतड पकड कर अलग किये और अपना मुंह उस गुलाबी गुदाद्वार पर जमा कर चूसने लगा. अपनी जीभ उसने पूरी उस मुलायम छेद में डाल दी और अन्दर से मुन्नी की गांड की नरम नरम म्यान को चाटने लगा. मख्खन लगी गांड के सौंधे सौंधे स्वाद और महक ने उसे और मदमस्त कर दिया.

वह उठकर बैठ गया और एक बडा मक्खन का लौन्दा लेकर मुन्नी की गांड मे अपनी उंगली से भर दिया. एक के बाद एक वह मक्खन के गोले उस संकरी गांड में भरता रहा जब तक करीब करीब पूरा पाव किलो मक्खन बच्ची की गांड में नहीं समा गया. मेनका ने कुछ देर को अपना मुंह मुन्नी के मुंह से हटा कर कहा "लबालब मक्खन तेरी गांड में भरा रहेगा बेटी, तो गांड मस्त मारी जायेगी, लौडा ऐसे फ़िसलेगा जैसे सिलिन्डर में पिस्टन."

बचा हुआ मक्खन विवेक अपने भरीभरकम लंड पर दोनों हथेलियों से चुपडने लगा. उसे अब अपने ही लोहे जैसे कडे शिश्न की मक्खन से मालिश करते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कि वह घोडे का लंड हाथ में लिये है. फ़ूली हुई नसें तो अब ऐसी दिख रही थी कि जैसे किसी पहलवान के कसरती हाथ की माँस-पेशियाँ हों. उसने अपने हाथ चाटे और मक्खन साफ़ किया जिससे मुन्नी की चूचियाँ दबाते हुए न फ़िसलें.

मेनका मुन्नी के गालों को चूमते हुए बोली "अब तू मन भर के चिल्ला सकती है मुन्नी बहन पर कोई तेरी पुकार सुन नहीं पायेगा क्योंकी मैं अपनी चूची से तेरा मुंह बंद कर दूँगी. पर जब दर्द हो तो चिल्लाना जरूर, तेरी गोम्गियाने की आवाज से तेरे भैया की मस्ती और बढेगी." फ़िर उसने अपनी एक मांसल चूची उस कमसिन किशोरी के मुंह में ठूंस दी और कस के उसका सिर अपनी छाती पर दबाती हुई अपने पति से बोली "चलो, अब देर मत करो, मुझ से नहीं रह जाता"

गांड मारने की तैयारी पूरी हो चुकी थी. बडी बेसब्री से विवेक अपनी टांगें अपनी बहन के शरीर के दोनों बाजू में जमा कर बैठ गया और अपना मोटे सेब जैसा सुपाडा उस कोमल गांड पर रख कर पेलने लगा. अपने लंड को उसने भाले की तरह अपने दाहिने हाथ से पकडा हुआ था ताकि फ़िसल ना जाये. पहले तो कुछ नही हुआ क्योंकी इतने जरा से छेद में इतना मोटा गोला जाना असंभव था. विवेक ने फ़िर बडी बेसब्री से अपने बायें हाथ से मुन्नी के नितंब फ़ैलाये और फ़िर जोर से अपने पूरे वजन के साथ लौडे को उस गुदा के छेद में पेला. गांड खुल कर चौडी होने लगी और धीरे धीरे वह विशाल लाल लाल सुपाडा उस कोमल गांड के अन्दर जाने लगा.

मुन्नी अब छटपटाने लगी. उसका गुदाद्वार चौडा होता जा रहा था और ऐसा लगता था कि बस फ़टने ही वाला है. विवेक ने पहले सोचा था कि बहुत धीरे धीरे मुन्नी की गांड मारेगा पर उससे रहा नहीं गया और जबरदस्त जोर लगा कर उसने एकदम अपना सुपाडा उस कोमल किशोरी के गुदा के छल्ले के नीचे उतार दिया. मुन्नी इस तरह उछली जैसे कि पानी से निकाली मछली हो. वह अपने बंद मुंह में से गोम्गियाने लगी और उसका नाजुक शरीर इस तरह कांपने लगा जैसे बिजली का झटका लगा हो.

विवेक को ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी मुलायम हाथ ने उसके सुपाडे को जोर से दबोच लिया हो, क्योंकी उसकी प्यारी बहन की टाइट गांड इस जोर से उसे भींच रही थी. वह इस सुख का आनंद लेते हुए कुछ देर रुका. फ़िर जब मुन्नी का तडपना कुछ कम हुआ तो अब वह अपना बचा डंडा उसकी गांड में धीरे धीरे उतारने लगा. इंच इंच कर के उसका शक्तिशाली लौडा मुन्नी की संकरी गांड में गडता गया.

मुन्नी का कोमल कमसिन शरीर बार बार ऐसे एंठ जाता जैसे कोई उसका गला दबा रहा हो. उसके चूची भरे हुए मुंह से सिसकने और कराहने की दबी दबी आवाजें निकल रही थी जिन्हे सुन सुन के विवेक और मस्त हो रहा था. करीब ६ इंच लंड अंदर जाने पर वह फंस कर रुक गया क्योंकी उसके बाद मुन्नी की आंत बहुत संकरी थी.

मेनका बोली "रुक क्यों गये, मारो गांड, पूरा लंड जड तक उतार दो, साली की गांड फ़ट जाये तो फ़ट जाने दो, अपनी डॉक्टर दीदी से सिलवा लेंगे. वह मुझ पर मरती है इसलिये कुछ नहीं पूछेगी, चुपचाप सी देगी. हाय मुझे इतना मजा आ रहा है जैसा तुमसे पहली बार मराते हुए भी नहीं आया था. काश मैं मर्द होती तो इस लौंडियाँ की गांड खुद मार सकती"

विवेक कुछ देर रुका पर अंत में उससे रहा नहीं गया, उसने निश्चय किया कि कुछ भी हो जाये वह मेनका के कहने के अनुसार जड तक अपना शिश्न घुसेड कर रहेगा. उसने कचकचा के एक जोर का धक्का लगाया और पूरा लंड एक झटके में जड तक मुन्नी की कोमल गांड में समा गया. विवेक को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका सुपाडा मुन्नी के पेट में घुस गया हो. मुन्नी ने एक दबी चीख मारी और होश खो बैठी.

विवेक अब सातवे आसमान पर था. मुन्नी की पीडा की अब उसे कोई परवाह नहीं थी. यह बंधीं हुई लडकी तो अब उसके लिये जैसे एक रबर की सुंदर गुड़िया थी जिससे वह मन भर कर खेलना चाहता था. हाँ, टटोल कर उसने यह देख लिया कि उस कमसिन कली की गांड सच में फ़ट तो नहीं गयी. गुदा के बुरी तरह से खींचे हुए मुंह को सकुशल पाकर उसने एक चैन की सांस ली.


अब बेहिचक वह अपनी बीवी की बाहों में जकडे उस पट पडे बेहोश कोमल शरीर पर चढ गया. अपनी बाहों में भर के वह पटापट मुन्नी के कोमल गाल चूमने लगा. मुन्नी का मुंह मेनका के स्तन से भरा होने से वह उसके होंठों को नहीं चूम सकता था इसलिये बेतहाशा उसके गालों, कानों और आँखों को चूमते हुए उसने आखिर अपने प्यारे शिकार की गांड मारना शुरू की.
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