मेनका ने जोर जोर से साइकिल चला कर आखिर अपनी चूत झडा ली और आनंद की सिसकारियाँ भरती हुई मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगी. मुन्नी को भाभी की चूत मे से रिसते पानी को चाटने में दस मिनट लग गये. तब तक वह खुद भी मेनका की जीभ से चुदती रही. मेनका ने उसका जरा सा मटर के दाने जैसा क्लिटोरिस मुंह में लेके ऐसा चूसा कि वह किशोरी भी तडप कर झड गयी. मुन्नी का दिल अपनी भाभी के प्रति प्यार और कामना से भर उठा क्योंकी उसकी प्यारी भाभी अपनी जीभ से उसे दो बार झडा चुकी थी. एक दूसरे की बुर को चाट चाट कर साफ़ करने के बाद ही दोनों चुदैल भाभी ननद कुछ शांत हुई.
थोडा सुस्ताने के लिये दोनों रुकीं तब मेनका ने पूछा. "मुन्नी बेटी, मजा आया?" मुन्नी हुमक कर बोली "हाय भाभी कितना अच्छा लगता है बुर चूसने और चुसवाने में." मेनका बोली "अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ सिक्सटी - नाइन करने से बढकर कोई सुख नहीं है हम जैसी चुदैलो के लिये, कितना मजा आता है एक दूसरे की बुर चूस कर. य़ह क्रीडा हम अब घंटों तक कर सकते हैं."
"भाभी चलो और करते हैं ना" मुन्नी ने अधीरता से फ़रमाइश की और मेनका मान गयी. ननद भाभी का चूत चूसने का यह कार्यक्रम दो तीन घन्टे तक लगातार चला जब तक दोनों थक कर चूर नहीं हो गईं. मौसी के घर से लौटने के बाद पहली बार मुन्नी इतना झडी थी. आखिर लस्त होकर बिस्तर पर निश्चल पड गई. दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपटकर प्रेमियों जैसे सो गईं.
शाम को मेनका ने चूम कर बच्ची को उठाया. "चल मुन्नी, उठ, तेरे भैया के आने का समय हो गया. कपडे पहन ले नहीं तो नंगा देखकर फ़िर तुझ पर चढ पड़ेंगे" मुन्नी घबरा कर उठ बैठी. "भाभी मुझे बचा लो, भैया को मुझे चोदने मत देना, बहुत दुखता है."
मेनका ने उसे डांटा "पर मजे से हचक के हचक के चुदा भी तो रही थी बाद में, ’हाय भैया, चोदो मुझे’ कह कह के". मुन्नी शरमा कर बोली. "भाभी बस आज रात छोड दो, मेरी बुर को थोडा आराम मिल जाये, कल से जो तुम कहोगी, वह करूंगी". "चल अच्छा, आज तेरी चूत नहीं चुदने दूँगी." मेनका ने वादा किया और मुन्नी खुश होकर उससे लिपट गयी.
विवेक वापस आया तो तन्नाया हुआ लंड लेकर. उसके पेन्ट में से भी उसका आकार साफ़ दिख रहा था. मुन्नी उसे देख कर शरमाती हुई और कुछ घबरा कर मेनका के पीछे छुप गयी. दोपहर की चुदाई की पीडा याद कर उसका दिल भय से बैठा जा रहा था. "भाभी, भैया से कहो ना कि अब मुझे ना चोदे, मेरी बुर अभी तक दुख रही है. अब चोदा तो जरूर फ़ट जायेगी!"
मेनका ने आँख मारते हुए विवेक को झूठा डाँटते हुए कहा कि वह मुन्नी की बुर आज न चोदे.
विवेक समझ गया कि सिर्फ़ बुर न चोदने का वादा है, गांड के बारे में तो कुछ बात ही नहीं हुई. वह बोला "चलो, आज तुम्हारी चूत नहीं चोदूँगा मेरी नन्ही बहन, पर आज से तू हमारे साथ हमारे पलंग पर सोयेगी और मै और तेरी भाभी जैसा कहेंगे वैसे खुद को चुदवाएगी और हमें अपनी यह कमसिन जवानी हर तरीके से भोगने देगी."
विवेक के कहने पर मेनका ने मुन्नी की मदद से जल्दी जल्दी खाना बनाया और भोजन कर किचन की साफ़ सफाई कर तीनों नौ बजे ही बेडरूम में घुस गये. विवेक ने अपने सारे कपडे उतार दिये और अपना खडा लंड हाथ में लेकर उसे पुचकारता हुआ खुद कुर्सी में बैठ गया और भाभी ननद को एक दूसरे को नंगा करने को कहकर मजा देखने लगा.
दोनों चुदैलो के मुंह में उस रसीले लंड को देखकर पानी भर आया. मुन्नी फ़िर थोडी डर भी गई थी क्योंकी वह कुछ देर के लिये भूल ही गई थी कि विवेक का लंड कितना महाकाय है. पर उसके मन में एक अजीब वासना भी जाग उठी. वह मन ही मन सोचने लगी कि अगर भैया फ़िर से उसे जबरदस्ती चोद भी डालें तो दर्द तो होगा पर मजा भी आयेगा.
मेनका ने पहले अपने कपडे उतारे. ब्रेसियर और पेन्टी मुन्नी से उतरवाई जिससे मुन्नी भी भाभी के नंगे शरीर को पास से देखकर फ़िर उत्तेजित हो गयी. फ़िर मेनका ने हंसते हुए शरमाती हुई उस किशोरी की स्कर्ट और पेन्टी उतारी. ब्रेसियर उसने दोपहर की चुदाई के बाद पहनी ही नहीं थी. मेनका उस खूबसूरत छोकरी के नग्न शरीर को बाहों में भरकर बिस्तर पर लेट गयी और चूमने लगी. मेनका की बुर मुन्नी का कमसिन शरीर बाहों में पाकर गीली हो गई थी. साथ ही मेनका जानती थी कि आज रात मुन्नी की कैसी चुदाई होने वाली है और इसलिये उसे मुन्नी की होने वाले ठुकाई की कल्पना कर कर के और मजा आ रहा था.
वह विवेक को बोली. "क्यों जी, वहाँ लंड को पकडकर बैठने से कुछ नहीं होगा, यहाँ आओ और इस मस्त चीज़ को लूटना शुरू करो." विवेक उठ कर पलंग पर आ गया और फ़िर दोनों पति पत्नी मिलकर उस कोमल सकुचाती किशोरी को प्यार करने के लिये उसपर चढ गये.
मेनका मुन्नी का प्यारा मीठा मुखडा चूमने लगी और विवेक ने अपना ध्यान उसके नन्हें उरोजों पर लगाया. झुक कर उन छोटे गुलाब की कलियों जैसे निप्पलों को मुंह में लिया और चूसने लगा. मुन्नी को इतना अच्छा लगा कि उसने अपनी बाहें अपने बडे भाई के गले में डाल दीं और उसका मुंह अपनी छाती पर भींच लिया कि और जोर से निप्पल चूसे.
उधर मेनका ने मुन्नी की रसीली जीभ अपने मुंह में ले ली और उसे चूसते हुए अपने हाथों से धीरे धीरे उसकी कमसिन बुर की मालिश करने लगी. अपनी उंगली से उसने मुन्नी के क्लिटोरिस को सहलाया और चूत के पपोटॉ को दबाया और खोलकर उनमें उंगली करनी लगी.
उधर विवेक भी बारी बारी से मुन्नी के चूचुक चूस रहा था और हाथों में उन मुलायम चूचियों को लेकर प्यार से सहला रहा था. असल में उसका मन तो हो रहा था कि दोपहर की तरह उन्हें जोर जोर से बेरहमी के साथ मसले और मुन्नी को रुला दे पर उसने खुद को काबू में रखा. गांड मारने में अभी समय था और वह अभी से अपनी छोटी बहन को डराना नहीं चाहता था. उसने मन ही मन सोचा कि गांड मारते समय वह उस खूबसूरत कमसिन गुड़िया के मम्मे मन भर कर भोंपू जैसे दबाएगा.
मुन्नी अब तक मस्त हो चुकी थी और भाभी के मुंह को मन लगा कर चूस रही थी. उसकी कच्ची जवान बुर से अब पानी बहने लगा था. मेनका ने विवेक से कहा. "लडकी मस्त हो गयी है, बुर तो देखो क्या चू रही है, अब इस अमृत को तुम चूसते हो या मैं चूस लू?"
विवेक ने उठ कर मुन्नी के सिर को अपनी ओर खींचते हुआ कहा "मेरी रानी, पहले तुम चूस लो अपनी ननद को, मैं तब तक थोडा इसके मुंह का स्वाद ले लूँ, फ़िर इसे अपना लंड चुसवाता हूँ. दोपहर को रह ही गया, यह भी बोल रही होगी कि भैया ने लंड का स्वाद भी नहीं चखाया"
विवेक ने अपने होंठ मुन्नी के कोमल होंठों पर जमा दिये और चूस चूस कर उसे चूमता हुआ अपनी छोटी बहन के मुंह का रस पीने लगा. उधर मेनका ने मुन्नी की टांगें फैलाईं और झुक कर उसकी बुर चाटने लगी. उसकी जीभ जब जब बच्ची के क्लिटोरिस पर से गुजरती तो एक धीमी सिसकी मुन्नी के विवेक के होंठों के बीच दबे मुंह से निकल जाती. उस कमसिन चूत से अब रस की धार बह रही थी और उसका पूरा फ़ायदा उठा कर मेनका बुर में जीभ घुसेड घुसेड कर उस अमृत का पान करने लगी.
विवेक ने मुन्नी को एक आखरी बार चूम कर उसका सिर अपनी गोद में ले लिया. फ़िर अपना बडा टमाटर जैसा सुपाडा उसके गालों और होंठों पर रगडने लगा.
"ले मुन्नी, जरा अपने भैया के लंड का मजा ले, चूस कर देख क्या मजा आयेगा. डालू तेरे मुंह में?" उसने पूछा.
मुन्नी को भी सुपाडे की रेशमी मुलायम चमडी का स्पर्श बडा अच्छा लग रहा था. "हाय भैया, बिलकुल मखमल जैसा चिकना और मुलायम है." वह किलकारी भरती हुई बोली. विवेक ने उसका उत्साह बढ़ाया और लंड को मुन्नी के मुंह में पेलने लगा.
"चूस कर तो देख, स्वाद भी उतना ही अच्छा है." मेनका ने मुन्नी की जांघों में से जरा मुंह उठाकर कहा और फ़िर बुर का पानी चूसने में लग गयी. मुन्नी अब मस्ती में चूर थी. वह अपनी जीभ निकालकर इस लंड और सुपाडे को चाटने लगी. विवेक ने काफ़ी देर उसका मजा लिया और फ़िर मुन्नी के गाल दबाता हुआ बोला. "चल बहुत खेल हो गया, अब मुंह में ले और चूस."
गाल दबाने से मुन्नी का मुंह खुल गया और विवेक ने उसमें अपना सुपाडा घुसेड दिया. सुपाडा बडा था इस लिये मुन्नी को अपना मुंह पूरी तरह खोलना पडा. पर सुपाडा अंदर जाते ही उसे इतना मजा आया कि मुंह बंद कर के वह उसे एक बडे लोलिपोप जैसे चूसने लगी. विवेक ने एक सुख की आह भरी, अपनी छोटी बहन के प्यारे मुंह का स्पर्श उसके लंड को सहन नहीं हो रहा था. "हाय मेनका, मैं झडने वाला हूँ इस छोकरी के मुंह में. निकाल लूँ लौडा? आगे का काम शुरू करते हैं."
मेनका को मालूम था कि विवेक अपनी छोटी बहन की गांड मारने को लालायित है. उसने जब लंड का साइज़ देखा तो समझ गई कि अगर झडाया नहीं गया और इसी लंड से बच्ची की गांड मारी गई तो जरूर फ़ट जाएगी. इसलिये वह भी बोली. "ऐसा करो, मुट्ठ मार लो मुन्नी के मुंह में, उसे भी जरा इस गाढे गाढे वीर्य का स्वाद चखने दो. मै तो रोज ही पाती हूँ, आज मेरी ननद को पाने दो यह प्रसाद."
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मेनका ने जोर जोर से साइकिल चला कर आखिर अपनी चूत झडा ली और आनंद की सिसकारियाँ भरती हुई मुन्नी के रेशमी बालों में अपनी उँगलियाँ चलाने लगी. मुन्नी को भाभी की चूत मे से रिसते पानी को चाटने में दस मिनट लग गये. तब तक वह खुद भी मेनका की जीभ से चुदती रही. मेनका ने उसका जरा सा मटर के दाने जैसा क्लिटोरिस मुंह में लेके ऐसा चूसा कि वह किशोरी भी तडप कर झड गयी. मुन्नी का दिल अपनी भाभी के प्रति प्यार और कामना से भर उठा क्योंकी उसकी प्यारी भाभी अपनी जीभ से उसे दो बार झडा चुकी थी. एक दूसरे की बुर को चाट चाट कर साफ़ करने के बाद ही दोनों चुदैल भाभी ननद कुछ शांत हुई.
थोडा सुस्ताने के लिये दोनों रुकीं तब मेनका ने पूछा. "मुन्नी बेटी, मजा आया?" मुन्नी हुमक कर बोली "हाय भाभी कितना अच्छा लगता है बुर चूसने और चुसवाने में." मेनका बोली "अपनी प्यारी प्रेमिका के साथ सिक्सटी - नाइन करने से बढकर कोई सुख नहीं है हम जैसी चुदैलो के लिये, कितना मजा आता है एक दूसरे की बुर चूस कर. य़ह क्रीडा हम अब घंटों तक कर सकते हैं."
"भाभी चलो और करते हैं ना" मुन्नी ने अधीरता से फ़रमाइश की और मेनका मान गयी. ननद भाभी का चूत चूसने का यह कार्यक्रम दो तीन घन्टे तक लगातार चला जब तक दोनों थक कर चूर नहीं हो गईं. मौसी के घर से लौटने के बाद पहली बार मुन्नी इतना झडी थी. आखिर लस्त होकर बिस्तर पर निश्चल पड गई. दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपटकर प्रेमियों जैसे सो गईं.
शाम को मेनका ने चूम कर बच्ची को उठाया. "चल मुन्नी, उठ, तेरे भैया के आने का समय हो गया. कपडे पहन ले नहीं तो नंगा देखकर फ़िर तुझ पर चढ पड़ेंगे" मुन्नी घबरा कर उठ बैठी. "भाभी मुझे बचा लो, भैया को मुझे चोदने मत देना, बहुत दुखता है."
मेनका ने उसे डांटा "पर मजे से हचक के हचक के चुदा भी तो रही थी बाद में, ’हाय भैया, चोदो मुझे’ कह कह के". मुन्नी शरमा कर बोली. "भाभी बस आज रात छोड दो, मेरी बुर को थोडा आराम मिल जाये, कल से जो तुम कहोगी, वह करूंगी". "चल अच्छा, आज तेरी चूत नहीं चुदने दूँगी." मेनका ने वादा किया और मुन्नी खुश होकर उससे लिपट गयी.
विवेक वापस आया तो तन्नाया हुआ लंड लेकर. उसके पेन्ट में से भी उसका आकार साफ़ दिख रहा था. मुन्नी उसे देख कर शरमाती हुई और कुछ घबरा कर मेनका के पीछे छुप गयी. दोपहर की चुदाई की पीडा याद कर उसका दिल भय से बैठा जा रहा था. "भाभी, भैया से कहो ना कि अब मुझे ना चोदे, मेरी बुर अभी तक दुख रही है. अब चोदा तो जरूर फ़ट जायेगी!"
मेनका ने आँख मारते हुए विवेक को झूठा डाँटते हुए कहा कि वह मुन्नी की बुर आज न चोदे.
विवेक समझ गया कि सिर्फ़ बुर न चोदने का वादा है, गांड के बारे में तो कुछ बात ही नहीं हुई. वह बोला "चलो, आज तुम्हारी चूत नहीं चोदूँगा मेरी नन्ही बहन, पर आज से तू हमारे साथ हमारे पलंग पर सोयेगी और मै और तेरी भाभी जैसा कहेंगे वैसे खुद को चुदवाएगी और हमें अपनी यह कमसिन जवानी हर तरीके से भोगने देगी."
विवेक के कहने पर मेनका ने मुन्नी की मदद से जल्दी जल्दी खाना बनाया और भोजन कर किचन की साफ़ सफाई कर तीनों नौ बजे ही बेडरूम में घुस गये. विवेक ने अपने सारे कपडे उतार दिये और अपना खडा लंड हाथ में लेकर उसे पुचकारता हुआ खुद कुर्सी में बैठ गया और भाभी ननद को एक दूसरे को नंगा करने को कहकर मजा देखने लगा.
दोनों चुदैलो के मुंह में उस रसीले लंड को देखकर पानी भर आया. मुन्नी फ़िर थोडी डर भी गई थी क्योंकी वह कुछ देर के लिये भूल ही गई थी कि विवेक का लंड कितना महाकाय है. पर उसके मन में एक अजीब वासना भी जाग उठी. वह मन ही मन सोचने लगी कि अगर भैया फ़िर से उसे जबरदस्ती चोद भी डालें तो दर्द तो होगा पर मजा भी आयेगा.
मेनका ने पहले अपने कपडे उतारे. ब्रेसियर और पेन्टी मुन्नी से उतरवाई जिससे मुन्नी भी भाभी के नंगे शरीर को पास से देखकर फ़िर उत्तेजित हो गयी. फ़िर मेनका ने हंसते हुए शरमाती हुई उस किशोरी की स्कर्ट और पेन्टी उतारी. ब्रेसियर उसने दोपहर की चुदाई के बाद पहनी ही नहीं थी. मेनका उस खूबसूरत छोकरी के नग्न शरीर को बाहों में भरकर बिस्तर पर लेट गयी और चूमने लगी. मेनका की बुर मुन्नी का कमसिन शरीर बाहों में पाकर गीली हो गई थी. साथ ही मेनका जानती थी कि आज रात मुन्नी की कैसी चुदाई होने वाली है और इसलिये उसे मुन्नी की होने वाले ठुकाई की कल्पना कर कर के और मजा आ रहा था.
वह विवेक को बोली. "क्यों जी, वहाँ लंड को पकडकर बैठने से कुछ नहीं होगा, यहाँ आओ और इस मस्त चीज़ को लूटना शुरू करो." विवेक उठ कर पलंग पर आ गया और फ़िर दोनों पति पत्नी मिलकर उस कोमल सकुचाती किशोरी को प्यार करने के लिये उसपर चढ गये.
मेनका मुन्नी का प्यारा मीठा मुखडा चूमने लगी और विवेक ने अपना ध्यान उसके नन्हें उरोजों पर लगाया. झुक कर उन छोटे गुलाब की कलियों जैसे निप्पलों को मुंह में लिया और चूसने लगा. मुन्नी को इतना अच्छा लगा कि उसने अपनी बाहें अपने बडे भाई के गले में डाल दीं और उसका मुंह अपनी छाती पर भींच लिया कि और जोर से निप्पल चूसे.
उधर मेनका ने मुन्नी की रसीली जीभ अपने मुंह में ले ली और उसे चूसते हुए अपने हाथों से धीरे धीरे उसकी कमसिन बुर की मालिश करने लगी. अपनी उंगली से उसने मुन्नी के क्लिटोरिस को सहलाया और चूत के पपोटॉ को दबाया और खोलकर उनमें उंगली करनी लगी.
उधर विवेक भी बारी बारी से मुन्नी के चूचुक चूस रहा था और हाथों में उन मुलायम चूचियों को लेकर प्यार से सहला रहा था. असल में उसका मन तो हो रहा था कि दोपहर की तरह उन्हें जोर जोर से बेरहमी के साथ मसले और मुन्नी को रुला दे पर उसने खुद को काबू में रखा. गांड मारने में अभी समय था और वह अभी से अपनी छोटी बहन को डराना नहीं चाहता था. उसने मन ही मन सोचा कि गांड मारते समय वह उस खूबसूरत कमसिन गुड़िया के मम्मे मन भर कर भोंपू जैसे दबाएगा.
मुन्नी अब तक मस्त हो चुकी थी और भाभी के मुंह को मन लगा कर चूस रही थी. उसकी कच्ची जवान बुर से अब पानी बहने लगा था. मेनका ने विवेक से कहा. "लडकी मस्त हो गयी है, बुर तो देखो क्या चू रही है, अब इस अमृत को तुम चूसते हो या मैं चूस लू?"
विवेक ने उठ कर मुन्नी के सिर को अपनी ओर खींचते हुआ कहा "मेरी रानी, पहले तुम चूस लो अपनी ननद को, मैं तब तक थोडा इसके मुंह का स्वाद ले लूँ, फ़िर इसे अपना लंड चुसवाता हूँ. दोपहर को रह ही गया, यह भी बोल रही होगी कि भैया ने लंड का स्वाद भी नहीं चखाया"
विवेक ने अपने होंठ मुन्नी के कोमल होंठों पर जमा दिये और चूस चूस कर उसे चूमता हुआ अपनी छोटी बहन के मुंह का रस पीने लगा. उधर मेनका ने मुन्नी की टांगें फैलाईं और झुक कर उसकी बुर चाटने लगी. उसकी जीभ जब जब बच्ची के क्लिटोरिस पर से गुजरती तो एक धीमी सिसकी मुन्नी के विवेक के होंठों के बीच दबे मुंह से निकल जाती. उस कमसिन चूत से अब रस की धार बह रही थी और उसका पूरा फ़ायदा उठा कर मेनका बुर में जीभ घुसेड घुसेड कर उस अमृत का पान करने लगी.
विवेक ने मुन्नी को एक आखरी बार चूम कर उसका सिर अपनी गोद में ले लिया. फ़िर अपना बडा टमाटर जैसा सुपाडा उसके गालों और होंठों पर रगडने लगा.
"ले मुन्नी, जरा अपने भैया के लंड का मजा ले, चूस कर देख क्या मजा आयेगा. डालू तेरे मुंह में?" उसने पूछा.
मुन्नी को भी सुपाडे की रेशमी मुलायम चमडी का स्पर्श बडा अच्छा लग रहा था. "हाय भैया, बिलकुल मखमल जैसा चिकना और मुलायम है." वह किलकारी भरती हुई बोली. विवेक ने उसका उत्साह बढ़ाया और लंड को मुन्नी के मुंह में पेलने लगा.
"चूस कर तो देख, स्वाद भी उतना ही अच्छा है." मेनका ने मुन्नी की जांघों में से जरा मुंह उठाकर कहा और फ़िर बुर का पानी चूसने में लग गयी. मुन्नी अब मस्ती में चूर थी. वह अपनी जीभ निकालकर इस लंड और सुपाडे को चाटने लगी. विवेक ने काफ़ी देर उसका मजा लिया और फ़िर मुन्नी के गाल दबाता हुआ बोला. "चल बहुत खेल हो गया, अब मुंह में ले और चूस."
गाल दबाने से मुन्नी का मुंह खुल गया और विवेक ने उसमें अपना सुपाडा घुसेड दिया. सुपाडा बडा था इस लिये मुन्नी को अपना मुंह पूरी तरह खोलना पडा. पर सुपाडा अंदर जाते ही उसे इतना मजा आया कि मुंह बंद कर के वह उसे एक बडे लोलिपोप जैसे चूसने लगी. विवेक ने एक सुख की आह भरी, अपनी छोटी बहन के प्यारे मुंह का स्पर्श उसके लंड को सहन नहीं हो रहा था. "हाय मेनका, मैं झडने वाला हूँ इस छोकरी के मुंह में. निकाल लूँ लौडा? आगे का काम शुरू करते हैं."
मेनका को मालूम था कि विवेक अपनी छोटी बहन की गांड मारने को लालायित है. उसने जब लंड का साइज़ देखा तो समझ गई कि अगर झडाया नहीं गया और इसी लंड से बच्ची की गांड मारी गई तो जरूर फ़ट जाएगी. इसलिये वह भी बोली. "ऐसा करो, मुट्ठ मार लो मुन्नी के मुंह में, उसे भी जरा इस गाढे गाढे वीर्य का स्वाद चखने दो. मै तो रोज ही पाती हूँ, आज मेरी ननद को पाने दो यह प्रसाद."