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maakaloda

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Update 39

गौतम जब सुमन को लेकर वापस आने के लिए निकला तो आधे रास्ते में सुमन उससे कार चलाना सिखने की बात करने लगी औऱ गौतम गाडी हाईवे से नीचे उतार कर खड़ी रोड पर ले आया..

गौतम सुमन को गाडी चलाना सिखाने के लिए हाईवे के बगल वाली खाली सुनसान रोड पर ले आया था जहा सुमन गौतम की गोद में बैठकर गाडी चलाना सिख रही थी औऱ गौतम सुमन को धीरे धीरे गाडी चलाना सिखाते हुए उसे बदन का लुफ्त ले रहा था..

गौतम सुमन की कमर पकड़कर उसकी गांड को अच्छे से लंड पर टिकता हुआ - माँ ठीक से बैठो ना यार.. आप तो ऐसे डर रही हो जैसा मेरा लंड चला जाएगा आपकी चुत में..
सुमन स्टाइरिंग पकड़कर धीरे धीरे गाडी चलाते हुए - बेटा चुभ रहा है तेरा.. तूने लोअर क्यों नीचे सरका दिया है अपना..
गौतम - लोअर ही तो सरकाया है माँ.. कोनसी आपकी साडी उठा दी मैंने.. आप गाडी चलाने पर ध्यान दो.. देखो संभाल के ब्रैक औऱ क्लच दबाओ..
सुमन - बेटा मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कब ब्रेक दबाना है औऱ कब क्लच दबाना है..
गौतम सुमन का ब्लाउज खोलकर उसकी ब्रा उतार देता है औऱ सुमन के दोनों चुचे अपने दोनों हाथों के पंजो में पकड़ लेता है औऱ सुमन से कहता है - देखो माँ मैं जब आपका राइट बोबा दबाउ तो आपको ब्रेक मारना है औऱ लेफ्ट बोबा दबाउ तो कल्च दबाना है..
औऱ जब दोनों बोबो एक साथ दबाउ तो हॉर्न दबाना है.. औऱ जब नीचे से गांड पर झटका मारु तो समझ जाना गाडी रोकनी है..
सुमन हसते हुए - गुगु मैं तेरी माँ हूँ बेटा.. औऱ तू मेरे ही मज़े ले रहा है.. बहुत शैतान है तू..
गौतम - अब आपको ही गाडी चलाना सीखना था मैं तो इसी तरह सिखाता हूँ.. नहीं सीखना तो बोलो..
सुमन - ठीक है बेटा.. तुझे जो दबाना है दबा.. पर आज मैं गाडी चलाना सिखकर रहूंगी.. तू मेरा गुरु मैं तेरी चेली..
गौतम - माँ थोड़ी देर के लिए भूल जाओ मैं आपका बेटा हूँ.. अब से मुझे गुरूजी कहना औऱ मैं आपको अपनी चेली समझ कर गाडी चलाना सिखाऊंगा..
सुमन - ठीक है गुरूजी.. आप जैसा बोलो..
गौतम जोर से सुमन का राइट बोबा दबा देता है औऱ सुमन ब्रेक मारने की जगह चिल्ला देती है..
गौतम - ब्रेक मारने की जगह चिल्ला क्यों रही है..
सुमन गौतम को देखती हुई - इतना जोर से क्यों दबाया तूने..
गौतम वापस बोबा दबाकर - गुरूजी से तू करके बात करती है.. कैसी चेली है?
सुमन वापस आह करते हुए - गुरूजी आप बहुत जोर से दबाते हो.. लाल हो गए मेरे चुचे..
गौतम लेफ्ट बोबा दबाते हुए - गुरूजी तो ऐसे ही दबाते है..
सुमन अहह करते हुए कल्च दबती है औऱ अब इसीलिए तरह गौतम हाईवे से सटे सुनसान रास्ते पर सुमन को गाडी चलाना सिखाने लगता है.. औऱ दोनों में बातें होती रहती है.. सुमन भी इस मीठी छेड़खानी का मज़ा लेटे हुए गौतम से गाडी चलाना सीखती है औऱ बार बार गौतम को देखकर उसे थोड़ा डांटते हुए कम छेड़खानी करने औऱ धीरे खेड़खानी करने को कहती रहती है.. मगर गौतम अपने ही हिसाब से सुमन के बदन से छेड़खानी कर मज़े लुटता रहता है..

करीब डेढ़ घंटे इसी तरह दोनों इधर उधर घूमते रहते है औऱ सुनसान जगह के काफी अंदर तक आ जाते है जहा देखने से जंगल सा नज़ारा दिखाई देता औऱ वहा उन दोनों को एक खंडर दिखाई देता है.. जिसके आस पास ना इंसान था ना जानवर.. दूर दूर तक लोगों का नमो निशान तक नहीं था.. गौतम ने जोर से सुमन की गांड पे लंड का झटका दिया तो गौतम का इशारा समझ कर सुमन ने गाडी रोक दी..
सुमन हैरानी से - इतनी सुनसान जगह पर ये खंडर..
गौतम - भूतिया खंडर है माँ.. एक दोस्त ने बताया था यहां के बारे में.. लोग यहां नहीं आते जाते औऱ दो किलोमीटर दूर से ही गुजर जाते है..
सुमन - बेटा मुझे भूतो से बहुत डर लगता है.. चल यहां से चलते है..
गौतम - रुको ना माँ.. कितनी खूबसूरत जगह है.. चलो ना देखते है इस खंडर को..
सुमन - बेटा पर भूत से डरना ही अच्छा है.. यहां से दूर चलते है..
गौतम - माँ आप भी ना.. फालतू ही डरती हो.. भूत जैसा कुछ नहीं होता है.. लोग तो अफवाह उड़ाते है उनसे ही डरते है. आप चलो देखते है इस खंडर को..
सुमन डरते हुए - पर बेटा..
गौतम उतरते हुए - आप भी ना माँ.. चलो उतरो.. मैं हूँ ना..
सुमन अपने कपडे पहन कर गाडी से उतर जाती है औऱ गौतम का हाथ कस कर पकड़ लेती है..
गौतम सुमन के साथ खंडर के अंदर आ जाता है औऱ सुमन डरते हुए कसके गौतम का हाथ पकड़कर उसके साथ चलती है..
सुमन - बेटा ये खंडर तो बहुत डरावना औऱ बड़ा है..
गौतम आगे चलते हुए - आज डरावना है माँ पहले के समय कितना सुन्दर रहा होगा..
सुमन डरते हुए - बस बेटा अब वापस चलते है.. औऱ नहीं देखना..
गौतम सुमन को बाहों में भरके - अभी तो कुछ देखा ही नहीं माँ.. देखो नीचे तहखना है ऊपर भी कमरे बने हुए है.. चलो सीढ़िओ से ऊपर चलते है..
सुमन - बेटा बहुत डर लग रहा है..
गौतम - क्यों बेवजह डरती हो माँ.. चलो ना अभी तो सिर्फ खंडर शुरू ही हुआ है..
गौतम सुमन को बाहों में भरके ऊपर सीढ़ियों की तरफ ले जाता है जहा ऊपर पहुंचने पर दोनों के कान में कुछ आवाजे सुनाई देती है.. जिससे सुमन डर जाती है औऱ गौतम से लिपट जाती है मगर गौतम धीरे धीरे आवाज की औऱ जाने लगता है सुमन भी मज़बूरी में गौतम के साथ जाने लगती है.. धीरे धीरे आवाज साफ होने लगती है औऱ उन दोनों को समझ आ जाता है की ये आवाजे कैसी है..
गौतम औऱ सुमन एक दूसरे को देखते है औऱ गौतम मुस्कुराते हुए आगे चलकर औऱ आवाजे सुनने लगता है अब सुमन को भी आवाजे सुनने की इच्छाहो रही थी.. ये आवाज खंडर के ऊपर पीछे बने आखिरी कमरे से आ रही थी.. जहा किसी की चुदाई का कार्यक्रम कर पुरे जोर के साथ चल रहा था.

गौतम औऱ सुमन उस कमरे के करीब आती है तो दोनों को दिखाई देता है कि एक 25 साल के करीब का लड़का एक 40-42 साल के करीब कि औऱत को चोद रहा था.. नीचे एक कपड़ा बिछाकार दोनों मस्ती से चुदाई कर रहे थे..
औरत चुदवाते हुए - जल्दी कर हरिया.. आज तेरा बाप शहर से वापस आने वाला है..
हरिया चोदते हुए - आ जाने दे मंजू.. कोनसा वो आके हम माँ बेटे के बारे में पता ही लगा लेगा..
मंजू - बेटा 5 साल से अपनी माँ को यहां लाकर चोद रहा है तू.. कभी कोई देख लेगा तो पता नहीं क्या होगा..
हरिया - 5 साल से कौन हमें देखने यहां आया है मंजू? तू क्यों इतना फालतू डरती है? तू अच्छे से जानती है मैं तेरी चुत के बिना औऱ तू मेरे लंड के बिना अब नहीं ज़ी सकते.. तो हर बार इतना क्यों डरती है..

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मंजू - घर में ही चोद लिया कर अपनी माँ को हरिया.. क्यों मुझे चोदने के लिए यहां लाता है बार बार?
हरिया - मंजू घर में जब भी तेरा घाघरा खोलता हूँ कोई ना कोई आ जाता है.. दादी भी घर में रहती है.. यहाँ जितना आराम औऱ सुकून से तुझे चोदने में मज़ा आता है उतना घर पर नहीं आता..
मंजू - शादी कि उम्र हो गई है तेरी.. अब अपनी माँ का पीछा छोड़ दे.. तेरी चाची बता रही थी उसके गाँव में एक अच्छी लड़की है.. मैंने तेरी बात चलाने के लिए कहा है.. अगर सब ठीक रहा तो लगे हाथ तेरा ब्याह इसी बरस हो जाएगा..
हरिया चुत मारता हुआ - मंजू तुझसे कितनी बार कहु मुझे सरला के अलवा किसी से ब्याह नहीं करना..
मंजू चुदते हुए - अरे अपनी उस विधवा भाभी से शादी करके तुझे क्या मिल जाएगा हरिया? तुझे अगर सरला पसंद है तो दो-चार बार चोदकर मज़े लेले.. मैं सब संभाल लुंगी.. पर शादी क्यों करता है.. तेरी चाची बता रही थी लड़की वाले दहेज़ में दुपहिया मोटर देने को त्यार है.. तू बस हाँ कर.. लड़की अठरा बरस की है हरिया.. अभी किसी ने हाथ नहीं लगाया उसे.. कच्ची कली है बिलकुल..
हरिया - क्यों चुदाई के समय सर ख़राब करती है मंजू? सरला को मैं पसंद नहीं करता बल्कि उससे प्यार करता हूँ.. जितना प्यार तुझसे करता हूँ उतना ही सरला से भी.. भईया की मौत के सदमे में भाभी जान देने वाली थी.. पर मैंने भाभी से शादी का वादा किया औऱ समझाया तब भाभी मानी.. मंजू मैं सिर्फ तुझे ही यहां लाकर नहीं चोदता.. सरला भी यहां मुझसे चुदवाती है..
मंजू - हरिया क्यों उस विधवा रांड के चक्कर में इतने अच्छे रिश्ते को लात मार रहा है.. एक बार फिर सोच ले.. मैं तेरी सगी माँ हूँ तेरा बुरा नहीं सोचूंगी..
हरिया एक जोरदार थप्पड़ मंजू के गाल पर जमाता हुआ - बहन की लोड़ी रांड वो नहीं तू है.. मुझसे पहले किस किस से चुद चुकी है तू.. भूल गई? मेरे दोस्तों को भी नहीं छोड़ा था तूने.. सरला तो सिर्फ भईया के बाद मेरे नीचे लेटी है पर तू तो साली कई लोगों के नीचे लेट चुकी है..
मंजू - एक औऱ थप्पड़ मार दे मगर मेरी बात समझ.. तू जवान मर्द है अपनी भाभी को रखैल बनाकर भी रखेगा तो कोई तुझपर सवाल नहीं उठायेगा..
हरिया मंजू के मुंह में लोडा देते हुए - समझ नहीं आता मंजू मेरे बाप ने तेरे जैसी लालची रांड से क्यों ब्याह किया? तेरी चुत अगर मेरी कमजोरी नहीं होती ना मंजू तो मैं कबका तुझे छोड़कर चला गया होता..

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मंजू लोडा चूसते हुए - लालची नहीं बेटा मैं तो बस तेरे भले के लिए बोल रही हूँ.. माँ जो हूँ तेरी..
हरिया मुंह में माल झाड़कर - मंजू ये माँ बेटे वाला रिश्ता गाँव में सबके सामने ठीक है.. अकेले में इस रिश्ते की दुहाई मत दिया कर मंजू.. चल अब कपडे पहन..
मंजू माल पीकर कपडे पहनकर - चल हरिया.. चलते है.
हरिया - चल मंजू..

हरिया औऱ मंजू को गौतम औऱ सुमन छुपकर देख सुन रहे थे.. जब वो दोनों जाने लगे तो गौतम ने चुपके से सुमन को खंडर के एक कोने में लेजाकर खड़ा कर दिया औऱ हरिया औऱ मंजू वहा से चले गए.. उनके जाने के बाद गौतम सुमन को उस कमरे में लाता हुआ बोला..
गौतम - देखा माँ? हर जगह कोई ना कोई बेटा अपनी माँ की चुदाई कर रहा है.. औऱ आप कहती है ऐसा कहीं कुछ नहीं होता.. यहां इतने सारे कंडोम औऱ चड्डीया पड़ी है जो सबूत है इस बात का की यहां हरिया औऱ मंजू ने सगा माँ बेटा होते हुए अपनी चुदाईयो को अंजाम दिया है.. अब आप अपनेआप को रोक रही हो? आप भी मेरे साथ सेक्स करना चाहती हो ये मैं अच्छे से जानता हूँ.. पर आप ना जाने क्यों अपनेआप को मेरे करीब आने से हर बार रोक लेती हो..

सुमन आंसू बहाते हुए - मुझे माफ़ कर दे बेटा पर मैं वो नहीं कर सकती.. मेरा मन उसके लिए गवाही नहीं देता.. तू चाहे तो यही मेरी आबरू लूट ले.. जो चाहता है कर ले मैं मना नहीं करुँगी.. ये कहते हुए सुमन ने साडी का पल्लू गिरा दिया..
गौतम - माँ मुझे अगर आपकी चुदाई इसी तरह करनी होती तो बहुत पहले कर चुका होता.. मुझे आपके बदन के साथ आपकी रूह भी चाहिए.. मुझे कुत्ते बिल्लियों वाली चुदाई नहीं करनी.. जब तक आप अपने हाथ से पकड़ कर मेरा लंड अपनी चुत में नहीं डलवाती.. तब तक मैं आपको नहीं चोदने वाला..
सुमन - मैं मजबूर हूँ बेटा..
गौतम - जब तक आपकी मज़बूरी ख़त्म नहीं हो जाती माँ मेरा लंड आपकी चुत का इंतजार कर लेगा..
ये कहकर गौतम वहा से जाने लगता है मगर सुमन गौतम का हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लेती है औऱ उसे गले लगाकर कहती है..
सुमन - ग़ुगु मुझे माफ़ कर दे बेटा.. मैं बहुत बुरी माँ हूँ.. तूने मुझसे पहली बार कुछ माँगा औऱ वो भी मैं तुझे नहीं सकती..
गौतम सुमन के आंसू पोछकर - किसने कहा की आप नहीं दे सकती? आप जरुर देंगी.. मुझे यक़ीन है.. अब चलो माँ.. घर चलते है..
गौतम सुमन को खंडर से वापस गाडी में ले आया.. औऱ गाडी चलाते हुए हाईवे पर आ गया औऱ थोड़ी देर बाद दोनों अजमेर पहुंच चुके थे..

सुमन - नाराज है ग़ुगु?
गौतम गाडी चलाते हुए - नहीं तो..
सुमन - तो फिर इतनी देर से चुप क्यों हो?
गौतम - बस यूँही..
सुमन - मैं जानती हूँ ग़ुगु.. तु क्यों चुप है पर तू समझ.. मैं वो सब नहीं कर सकती.. मैंने इस चुत से तुझे पैदा किया है अब इसी चुत में तुझे वापस लेने का ख्याल मुझे बहुत गलत लगता है..
गौतम - कोई बात नहीं माँ.. मैं आपसे कुछ नहीं कह रहा..
सुमन - ग़ुगु वहा गाडी रोक..
गौतम - माँ वो मिट शॉप है..
सुमन - पता है रोक ना..
गौतम मिट शॉप के आगे गाडी रोकते हुए - यहां क्या करना है आपको?
सुमन मुस्कुराते हुए - दो मिनट रुक मैं आती हूँ..
सुमन गाडी उतर कर मिट शॉप में जाती है औऱ कुछ देर बाद एक काली पन्नी में कुछ लेकर वापस आ जाती है..
गौतम काली पन्नी देखकर - इसमें क्या है?
सुमन - चीकन... तुझे चिकन करी पसंद है ना.. आज अपने हाथों से बनाकर खिलाऊंगी अपने ग़ुगु को..
गौतम गाडी चलाते हुए - अच्छा तो इस तरह से आप मेरा मन बहलाना चाहती हो.. पर आपको बनाना कहा आता है?
सुमन - नहीं आता तो रूपा से पूछ लुंगी..
गौतम ठेके के सामने गाडी रोककर - मिट के साथ दारू तो जरुरी है माँ.. कोनसा ब्राड पीना पसंद करोगी?
सुमन मुस्कुराते हुए - जो मेरे ग़ुगु को पसंद हो..
गौतम जाकर एक शराब की बोतल ले आता है.. औऱ गाडी घर के आगे लगा देता है.. सुमन औऱ गौतम घर के अंदर चले जाते है शाम होने लगी थी.. गौतम ने गाडी रूपा से कहकर वापस भिजवा दी थी..

गौतम शराब के दो पेग बनाकर - लो माँ.. शुरू करो..
सुमन चिकन धोती हुई - रुक ग़ुगु.. इसे धो लिया है बस हल्का सा काट दूँ..
गौतम - फ़ोन में देखकर क्यों बना रही हो माँ? मुझे आता है मैं सिखाता हूँ आज आपको..
सुमन पेग उठाकर गौतम से चर्स करके पेग पीते हुए - अच्छा.. तो सीखा मुझे..
गौतम पेग ख़त्म करके - ठीक है माँ.. आओ यहां..
सुमन पेग ख़त्म करके - चलो सिखाओ..
गौतम - सबसे पहले गैस ऑन करके उसपर पतीला रखो.. फिर सरसो का तेल डालकर गर्म करो..
सुमन मुस्कुराते हुए - इतना तो मुझे भी आता है मेरे शहजादे..
गौतम दूसरा पेग बनाकर एक सुमन को देते हुआ - तेल गर्म होने पर उसमे कुछ खड़े मसाले डालकर थोड़ी सी देर बाद कटे हुए प्यार औऱ हरी मिर्च डाल दो.. फिर उसमें थोड़ा सा नमक डालो..
सुमन पेग आधा ख़त्म करके - उसके बाद ग़ुगु ज़ी?
गौतम दूसरा पेग ख़त्म करके सुमन को बाहों में भरकर - उसके बाद में.. आपके जैसी किसी हसीन औऱ खूबसूरत औरत को तब तक चुम्मो जब तक प्याज थोड़े पक नहीं जाते.. ये कहते हुए गौतम सुमन को चूमने लगता है..

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सुमन गौतम को होंठों से होंठ लगाकर चूमते हुए एक हाथ से कड़ची चलाती रहती है..
थोड़ी देर बाद गौतम से चुम्मा तोड़कर सुमन - तुम्हारे प्याज ने थोड़े पक गए गुगुजी.. अब आगे?
गौतम - अब पतिले में अदरक लसन का पेस्ट डालकर तब तक पकायेगे जब तक साड़ी ब्लाउज औऱ पेटीकोट नहीं खुल जाता.. ये कहकर गौतम सुमन की साडी ब्लाउज औऱ पेटीकोट उतार देता है औऱ सुमन को ब्रा पेंटी में खड़ा कर देता है..
सुमन अपना पेग ख़त्म करके - अब आगे क्या करना चाहिए ग़ुगु ज़ी?
गौतम - अब चीकन को पतिले में डाल देना चाहिए सुमन ज़ी..
सुमन मुस्कुराते हुए चीकन पतिले में डालकर कड़ची चलाती रहती है औऱ गौतम अब तीसरे पेग को बनाकर दोनों के सामने रख देता है..
सुमन नशे में - मुझे नंगा करके खुद कपडे पहन रखा है बेशर्म खोल तू भी.. सुमन भी गौतम के सारे कपडे उतार कर रसोई में वही रख देती है जहा सुमन की साडी ब्लाउज औऱ पेटीकोट रखा था.. गौतम भी अब चड्डी में आ चूका था..
गौतम कड़ची चलाते हुए - अब थोड़ा सा चिकन को भून लेंगे..
सुमन थोड़ी देर बाद एक सिगरेट जलाकर कश लेती हुई नशे में बोली - भूनने के बाद क्या करें ग़ुगु ज़ी..
गौतम सुमन से सिगरेट लेकर कश लेटे हुए सुमन के हाथ में कटोरी देकर बोला - अब सुमन ज़ी जो आपने कटोरी में दही औऱ मसाले डालकर मिक्सचर तैयार किया है उसे पतिले में डाल देंगे..
सुमन कटोरी में दही औऱ सभी मसालो का मिक्सचर डालकर कड़ची चलाते हुए बोली - अब ग़ुगु ज़ी..
गौतम एक सिगरेट का लम्बा कश लेकर सिगरेट सुमन को देते हुए तीसरा पेग ख़त्म करके घुटनो पर बैठकर सुमन की पेंटी नीचे करते हुए सुमन की चुत चाटकर - अब अपनी माँ की चुत तबतक चाटेगे जबतक माँ की चुत जड़ नहीं जाती..

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सुमन कड़ची चलाकर सिगरेट के कश लेटी हुई अपनी एक टांग उठाकर चुत खोल देती है औऱ गौतम से अपनी चुत चटवाने लगती है..
सुमन सिगरेट के कश लेटी हुई गौतम के बाल पकड़कर नशे में उससे अपनी चुत चटवाये जा रही थी औऱ दस पंद्रह मिनट बाद सुमन गौतम के मुंह में झड़ गई..

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गौतम चुत का पानी पीकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया औऱ सुमन गौतम को देखकर नशे में कड़ची चलाते हुए बोली - अब क्या करना चाहिए ग़ुगु ज़ी..
गौतम पतिले को देखकर सुमन से बोला - अब सुमन ज़ी पतिले में मिट मसाला औऱ हरा धनिया डालकर धीमी आंच पर तब तक पकायेंगे जब तक मेरा लंड आपके मुंह में पानी नहीं छोड़ देता..
गौतम का इशारा पाकर सुमन मुस्कुराते हुए घुटनो पर आ गयी औऱ गौतम की चड्डी नीचे सरका कर उसका लंड मुंह में लेते हुए रंडियो की तरह चूसने लगी..

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गौतम ने कड़ची चला कर पतिले को ढक दिया औऱ एक सिगरेट जलाकर कश लेते हुए होनी माँ के बाल पकड़ कर उसके मुंह में झटके मारते हुए सुमन को अपना लंड चूसाने लगा..
सुमन ने बीच में तीसरा पेग भी ख़त्म कर लिया औऱ अब नशे में पूरी तरह उतर कर पूरी रांड जैसे गौतम के लंड के साथ साथ उसके आंड को भी चुसने लगी.. गौतम अपनी माँ का ये रूम देखकर मंतरमुग्ध हो गया था सुमन बिलकुल किसी रंडी की तरह गौतम के लंड के साथ साथ उसके टट्टे औऱ जांघो के आस पास की जगह को चूसने चाटने लगी थी..
करीब 20-25 मिनट बाद गौतम का माल सुमन के मुंह में झड़ गया जिसे सुमन पी गई औऱ अगला पेग बनाने लगी.. सुमन के पैर लड़खडाने लगे थे..

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गौतम ने उसे चौथा पेग बनाने से रोक दिया औऱ बाहों में भरता हुआ बोला - लो सुमन ज़ी त्यार है आपकी चिकन करी..
सुमन मुस्कुराते हुए नशे में - तू बहुत प्यारा है ग़ुगु.. आई लव यू..
गौतम एक बड़ी सी प्लेट पर चिकेन करी डालकर - गर्म है सुमन ज़ी थोड़ा ठंडा होने दो.. फिर बताना कैसी बनी है?
सुमन नशे में - तब तक एक पेग औऱ पीते है ग़ुगु..
गौतम - नहीं आपके ज्यादा हो गई है..
सुमन - नहीं हुई.. लो अपने हाथ से पिलाओ एक पेग..
गौतम शराब नहीं डालता औऱ सिर्फ पानी का पेग बनता है..
गौतम पानी का पेग पीलाते हुए - लो सुमन ज़ी पियो..
सुमन पेग पीकर समझ जाती है कि वो सादा पानी था औऱ कुछ नहीं..
सुमन नशे में ग़ुगु का लंड पकड़ कर - मज़ाक़ मत कर गौतम.. बना मेरा पेग मुझे पीना है..
गौतम - पहले ये खाओ.. लो ठंडा कर दिया..
सुमन चिकेन लग पीस उठाकर आधा गौतम को खिलाती है औऱ आधा खुद खा जाती है..
सुमन उंगलियां चाटते हुए - उफ्फ्फ... क्या मस्त बनी है चिकेनकरी ग़ुगु..
गौतम - पहले तो कितना नाटक करती थी. मैं ये नहीं खाती वो नहीं खाती.. घर में नहीं बनेगा.. औऱ अब देखो..
सुमन औऱ गौतम एक दूसरे को चिकेन करी खिलाते हुए हलकी फुलकी छेड छाड़ करते है औऱ खाने के बाद सुमन के जोर देने पर उसे गौतम एक छोटा सा पेग औऱ बना के पीला देता है..
सुमन नशे में गौतम के होंठ चूस कर - आई लव यू बच्चा.. आई लव यू..
गौतम सुमन को रूम में लाकर बेड पर बैठा देता है..
सुमन गौतम को बाहों में भरके नशे में बोलती है - देख तूने अपनी माँ के बोबे दबा दबा के कितने बड़े कर दिए है ग़ुगु.. मेरी ब्रा कितनी टाइट हो गई है.. अब तू ही मुझे नई ब्रा लाकर देगा..
गौतम मुस्कुराते हुए ब्रा उतारकर - ला दूंगा माँ.. अब अपने बच्चे को अपना दूध पीला दो..
सुमन अपना बोबा पकड़ कर गौतम के मुंह में देती हुई - ले बेटा.. पी ना अपनी माँ का दूध.. कौन रोकता है तुझे मेरा दूध पिने से? तेरे लिए ही तो है मेरा दूध.
गौतम बूब्स चूसता हुआ - आई लव यू माँ...
सुमन बोबा चूसाते हुए - आई लोब यू टू बेटा.. चूस मेरा बोबा.. खा जा इन दोनों बोबो को बेटा.. आह्ह..
गौतम बूब्स चूसकर सुमन को पीछे धकेल देता है औऱ बेड पर पीठ के बल गिरता हुआ उसके ऊपर आ जाता है औऱ सुमन के होंठ चूमकर कहता है - माँ ट्रुथ एंड डेयर खेलते है..
सुमन गौतम का चेहरा पकड़कर - ठीक है बेटा..
दोनों कि नज़र मिलती है सुमन कि हार हो जाती है..
गौतम -माँ बोलो ट्रुथ एंड डेयर?
सुमन मुस्कुराते हुए - ग़ुगु ट्रुथ.. पूछ क्या पूछना है तुझे..
गौतम जानता था सुमन पुरे नशे में है उसने सुमन से पूछा - आखिरी बार मामा से कब चुदवाया था?
सुमन नशे में थी उसे समझ नहीं आया था कि गौतम ने उसे कितना बड़ा सवाल पूछ लिया है सुमन नशे में ही बोल पड़ी - दो महीने पहले जब तेरे पापा ने तुझसे वो फ़ाइल मंगवाई थी ना.. इतना बोल कर सुमन को अहसास हुआ की गौतम ने क्या सवाल पूछा है औऱ उसने क्या जवाब दिया है.. सुमन का नशा हल्का हो गया था औऱ नज़र शर्म से नीचे..

गौतम सुमन का चेहरा उठाते हुए बोला - उस दिन आपकी अलमारी में कंडोम देखकर मुझे अजीब लगा था पर अब समझ आया.. उस दिन अलमारी में कंडोम क्यों औऱ किसके लिए रखा हुआ था.. आप चिंता मत करो माँ.. मैं किसी से भी आपके उस राज़ का जिक्र नहीं करूँगा..
सुमन बिस्तर से उठना चाहती थी मगर गौतम ने अब उसे अपनी बाहों में कसके जकड़ दिया था औऱ सुमन शर्म से लाल पड़ रही थी..
गौतम जानता था की सुमन अब कुछ नहीं बोलेगी इसलिए उसने सुमन से आगे अपनी बात कही - माँ शर्माओ मत.. शादी की रात जब आप छत पर मामा से बाटकर रही थी उस वक़्त में उस कमरे के अंदर ही था.. मैंने सारी बात सुन ली थी औऱ मुझे मालूम हो गया था की मेरी तरह ऋतू भी आपकी चुत से निकली है.. हम दोनों के बाप अलग अलग हो पर माँ एक ही है.. आपका ये राज़ किसी को नहीं पता लगेगा माँ.. मैं किसीको नहीं बताऊंगा..
सुमन नशे में - ग़ुगु मुझे माफ़ कर दे..
गौतम - किस बात के लिए माँ? आपने कोई गलती नहीं की.. आप एक खूबसूरत हसीन औरत हो.. अगर आपका ख्याल पापा नहीं रखते तो आपको पूरा हक़ है किसी से भी अपना रिश्ता बनाने का..
सुमन - ग़ुगु उस दिन तेरे मामा ज़ी आये थे.. मगर सालों से उनका हाल भी वैसा ही है.. जैसा तेरे पापा है.. अब वो भी एक मिनट में ही चित हो जाते है.. मैं नहीं जानती ग़ुगु तू मेरे बारे में क्या सोच रहा है ये जानने के बाद.. पर मैने औऱ किसी को अपने करीब नहीं आने दिया..
गौतम - मुझे सफाइ देने की जरुरत नहीं है माँ.. मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ.. ना ही कभी हो सकता हूँ.. मैं खुद चाहता हूँ आप खुश रहो.. मेरे साथ नहीं तो जिसके साथ आपका मन करें उसके साथ..

सुमन मुस्कुराते हुए नशे में लड़खड़ाती हुई उठकर अलमारी से वही कंडोम निकालकर उसमे से एक कंडोम फाड़कर गौतम के करीब आ जाती है औऱ गौतम के लंड को पकड़कर उसे कंडोम पहना देती है औऱ अपनी पेंटी उतारकर गौतम के ऊपर बैठते हुए उसका लंड अपनी चुत में घुसाने लगती है मगर गौतम का लंड टोपे से थोड़ा सा ज्यादा सुमन की चुत में घुसता है गौतम सुमन को रोक देता है औऱ बोलता है..
गौतम - रहने दो माँ.. आप अभी नशे में ही.. आप नहीं जानती आप क्या कर रही हो..
सुमन - मुझे मत रोक ग़ुगु.. मुझे बहुत पहले तुझे अपनी चुत दे देनी चाहिए थी.. तेरे जैसा सुन्दर संस्कारी औऱ सुशील बेटा कब से मेरी चुत के लिए तरस रहा है.. औऱ मैं तुझसे ही अपनी चुत बचा रही हूँ.. मुझे तो अब खुद पर शर्म आने लगी है.. तूने दिन में कहा था ना ले आज मैं खुद तेरा लंड पकड़कर अपनी चुत में डाल रही हूँ.. ले चोद ले अपनी माँ को ग़ुगु.. चोद दे ग़ुगु मुझे..
गौतम लंड पकड़कर उसपर से कंडोम उतार कर फेंकता हुआ - आप नशे में ये सब बोल रही हो माँ.. सो जाओ.. सुबह होने पर आपको पछतावा होगा अगर मैंने कुछ किया तो..
सुमन शराब की बोतल उठाकर पीते हुए - तेरी माँ को अब तेरा लंड चाहिए ग़ुगु.. अगर तू मुझे नहीं चोदेगा तो मैं तुझे चोद दूंगी..
गौतम हसता हुआ सुमन से शराब की बोतल लेकर साइड में रख देता है औऱ सुमन को चूमता हुआ बिस्तर में गिर जाता है औऱ एक हाथ से सुमन की चुत में उंगलि करने लगता है..
सुमन सिस्कारी लेटी हुआ गौतम को चूमने लगती है मगर कुछ देर बाद अपनी चुत से पानी का छिड़काव करके नशे में ही बिस्तर पर हलकी हलकी नींद में खोने लगती है.. गौतम सुमन को बच्चों की तरह सुला देता है औऱ सुमन को बाहों में भरके एक चादर ओढ़कर खुद भी उसीके साथ लेट जाता है..

गौतम का धागा लाल था वो समझ चूका था की अब सुमन की चुत उसके लिए तैयार है औऱ सुमन अब ज्यादा वक़्त नहीं लेगी उसे होनी चुत में एंट्री देने के लिए..

गौतम लेता हुआ था की ररूपा का फ़ोन आता है जिसपर रूपा औऱ माधुरी दोनों होती है औऱ गौतम दोनों से एक साथ बात जरता है.. गोयम बताता है कि कल वो सुमन के साथ बाबाजी के जाने वाला है औऱ वही सुमन से रूपा औऱ माधुरी मिलकर उसे साथ रहने के लिए मना सकती है.. बात करने के कुछ देर बाद गौतम भी सुमन की बाहों में सो जाता है..

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ellysperry

Humko jante ho ya hum bhi de apna introduction
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Update 39

गौतम जब सुमन को लेकर वापस आने के लिए निकला तो आधे रास्ते में सुमन उससे कार चलाना सिखने की बात करने लगी औऱ गौतम गाडी हाईवे से नीचे उतार कर खड़ी रोड पर ले आया..

गौतम सुमन को गाडी चलाना सिखाने के लिए हाईवे के बगल वाली खाली सुनसान रोड पर ले आया था जहा सुमन गौतम की गोद में बैठकर गाडी चलाना सिख रही थी औऱ गौतम सुमन को धीरे धीरे गाडी चलाना सिखाते हुए उसे बदन का लुफ्त ले रहा था..

गौतम सुमन की कमर पकड़कर उसकी गांड को अच्छे से लंड पर टिकता हुआ - माँ ठीक से बैठो ना यार.. आप तो ऐसे डर रही हो जैसा मेरा लंड चला जाएगा आपकी चुत में..
सुमन स्टाइरिंग पकड़कर धीरे धीरे गाडी चलाते हुए - बेटा चुभ रहा है तेरा.. तूने लोअर क्यों नीचे सरका दिया है अपना..
गौतम - लोअर ही तो सरकाया है माँ.. कोनसी आपकी साडी उठा दी मैंने.. आप गाडी चलाने पर ध्यान दो.. देखो संभाल के ब्रैक औऱ क्लच दबाओ..
सुमन - बेटा मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कब ब्रेक दबाना है औऱ कब क्लच दबाना है..
गौतम सुमन का ब्लाउज खोलकर उसकी ब्रा उतार देता है औऱ सुमन के दोनों चुचे अपने दोनों हाथों के पंजो में पकड़ लेता है औऱ सुमन से कहता है - देखो माँ मैं जब आपका राइट बोबा दबाउ तो आपको ब्रेक मारना है औऱ लेफ्ट बोबा दबाउ तो कल्च दबाना है..
औऱ जब दोनों बोबो एक साथ दबाउ तो हॉर्न दबाना है.. औऱ जब नीचे से गांड पर झटका मारु तो समझ जाना गाडी रोकनी है..
सुमन हसते हुए - गुगु मैं तेरी माँ हूँ बेटा.. औऱ तू मेरे ही मज़े ले रहा है.. बहुत शैतान है तू..
गौतम - अब आपको ही गाडी चलाना सीखना था मैं तो इसी तरह सिखाता हूँ.. नहीं सीखना तो बोलो..
सुमन - ठीक है बेटा.. तुझे जो दबाना है दबा.. पर आज मैं गाडी चलाना सिखकर रहूंगी.. तू मेरा गुरु मैं तेरी चेली..
गौतम - माँ थोड़ी देर के लिए भूल जाओ मैं आपका बेटा हूँ.. अब से मुझे गुरूजी कहना औऱ मैं आपको अपनी चेली समझ कर गाडी चलाना सिखाऊंगा..
सुमन - ठीक है गुरूजी.. आप जैसा बोलो..
गौतम जोर से सुमन का राइट बोबा दबा देता है औऱ सुमन ब्रेक मारने की जगह चिल्ला देती है..
गौतम - ब्रेक मारने की जगह चिल्ला क्यों रही है..
सुमन गौतम को देखती हुई - इतना जोर से क्यों दबाया तूने..
गौतम वापस बोबा दबाकर - गुरूजी से तू करके बात करती है.. कैसी चेली है?
सुमन वापस आह करते हुए - गुरूजी आप बहुत जोर से दबाते हो.. लाल हो गए मेरे चुचे..
गौतम लेफ्ट बोबा दबाते हुए - गुरूजी तो ऐसे ही दबाते है..
सुमन अहह करते हुए कल्च दबती है औऱ अब इसीलिए तरह गौतम हाईवे से सटे सुनसान रास्ते पर सुमन को गाडी चलाना सिखाने लगता है.. औऱ दोनों में बातें होती रहती है.. सुमन भी इस मीठी छेड़खानी का मज़ा लेटे हुए गौतम से गाडी चलाना सीखती है औऱ बार बार गौतम को देखकर उसे थोड़ा डांटते हुए कम छेड़खानी करने औऱ धीरे खेड़खानी करने को कहती रहती है.. मगर गौतम अपने ही हिसाब से सुमन के बदन से छेड़खानी कर मज़े लुटता रहता है..

करीब डेढ़ घंटे इसी तरह दोनों इधर उधर घूमते रहते है औऱ सुनसान जगह के काफी अंदर तक आ जाते है जहा देखने से जंगल सा नज़ारा दिखाई देता औऱ वहा उन दोनों को एक खंडर दिखाई देता है.. जिसके आस पास ना इंसान था ना जानवर.. दूर दूर तक लोगों का नमो निशान तक नहीं था.. गौतम ने जोर से सुमन की गांड पे लंड का झटका दिया तो गौतम का इशारा समझ कर सुमन ने गाडी रोक दी..
सुमन हैरानी से - इतनी सुनसान जगह पर ये खंडर..
गौतम - भूतिया खंडर है माँ.. एक दोस्त ने बताया था यहां के बारे में.. लोग यहां नहीं आते जाते औऱ दो किलोमीटर दूर से ही गुजर जाते है..
सुमन - बेटा मुझे भूतो से बहुत डर लगता है.. चल यहां से चलते है..
गौतम - रुको ना माँ.. कितनी खूबसूरत जगह है.. चलो ना देखते है इस खंडर को..
सुमन - बेटा पर भूत से डरना ही अच्छा है.. यहां से दूर चलते है..
गौतम - माँ आप भी ना.. फालतू ही डरती हो.. भूत जैसा कुछ नहीं होता है.. लोग तो अफवाह उड़ाते है उनसे ही डरते है. आप चलो देखते है इस खंडर को..
सुमन डरते हुए - पर बेटा..
गौतम उतरते हुए - आप भी ना माँ.. चलो उतरो.. मैं हूँ ना..
सुमन अपने कपडे पहन कर गाडी से उतर जाती है औऱ गौतम का हाथ कस कर पकड़ लेती है..
गौतम सुमन के साथ खंडर के अंदर आ जाता है औऱ सुमन डरते हुए कसके गौतम का हाथ पकड़कर उसके साथ चलती है..
सुमन - बेटा ये खंडर तो बहुत डरावना औऱ बड़ा है..
गौतम आगे चलते हुए - आज डरावना है माँ पहले के समय कितना सुन्दर रहा होगा..
सुमन डरते हुए - बस बेटा अब वापस चलते है.. औऱ नहीं देखना..
गौतम सुमन को बाहों में भरके - अभी तो कुछ देखा ही नहीं माँ.. देखो नीचे तहखना है ऊपर भी कमरे बने हुए है.. चलो सीढ़िओ से ऊपर चलते है..
सुमन - बेटा बहुत डर लग रहा है..
गौतम - क्यों बेवजह डरती हो माँ.. चलो ना अभी तो सिर्फ खंडर शुरू ही हुआ है..
गौतम सुमन को बाहों में भरके ऊपर सीढ़ियों की तरफ ले जाता है जहा ऊपर पहुंचने पर दोनों के कान में कुछ आवाजे सुनाई देती है.. जिससे सुमन डर जाती है औऱ गौतम से लिपट जाती है मगर गौतम धीरे धीरे आवाज की औऱ जाने लगता है सुमन भी मज़बूरी में गौतम के साथ जाने लगती है.. धीरे धीरे आवाज साफ होने लगती है औऱ उन दोनों को समझ आ जाता है की ये आवाजे कैसी है..
गौतम औऱ सुमन एक दूसरे को देखते है औऱ गौतम मुस्कुराते हुए आगे चलकर औऱ आवाजे सुनने लगता है अब सुमन को भी आवाजे सुनने की इच्छाहो रही थी.. ये आवाज खंडर के ऊपर पीछे बने आखिरी कमरे से आ रही थी.. जहा किसी की चुदाई का कार्यक्रम कर पुरे जोर के साथ चल रहा था.

गौतम औऱ सुमन उस कमरे के करीब आती है तो दोनों को दिखाई देता है कि एक 25 साल के करीब का लड़का एक 40-42 साल के करीब कि औऱत को चोद रहा था.. नीचे एक कपड़ा बिछाकार दोनों मस्ती से चुदाई कर रहे थे..
औरत चुदवाते हुए - जल्दी कर हरिया.. आज तेरा बाप शहर से वापस आने वाला है..
हरिया चोदते हुए - आ जाने दे मंजू.. कोनसा वो आके हम माँ बेटे के बारे में पता ही लगा लेगा..
मंजू - बेटा 5 साल से अपनी माँ को यहां लाकर चोद रहा है तू.. कभी कोई देख लेगा तो पता नहीं क्या होगा..
हरिया - 5 साल से कौन हमें देखने यहां आया है मंजू? तू क्यों इतना फालतू डरती है? तू अच्छे से जानती है मैं तेरी चुत के बिना औऱ तू मेरे लंड के बिना अब नहीं ज़ी सकते.. तो हर बार इतना क्यों डरती है..

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मंजू - घर में ही चोद लिया कर अपनी माँ को हरिया.. क्यों मुझे चोदने के लिए यहां लाता है बार बार?
हरिया - मंजू घर में जब भी तेरा घाघरा खोलता हूँ कोई ना कोई आ जाता है.. दादी भी घर में रहती है.. यहाँ जितना आराम औऱ सुकून से तुझे चोदने में मज़ा आता है उतना घर पर नहीं आता..
मंजू - शादी कि उम्र हो गई है तेरी.. अब अपनी माँ का पीछा छोड़ दे.. तेरी चाची बता रही थी उसके गाँव में एक अच्छी लड़की है.. मैंने तेरी बात चलाने के लिए कहा है.. अगर सब ठीक रहा तो लगे हाथ तेरा ब्याह इसी बरस हो जाएगा..
हरिया चुत मारता हुआ - मंजू तुझसे कितनी बार कहु मुझे सरला के अलवा किसी से ब्याह नहीं करना..
मंजू चुदते हुए - अरे अपनी उस विधवा भाभी से शादी करके तुझे क्या मिल जाएगा हरिया? तुझे अगर सरला पसंद है तो दो-चार बार चोदकर मज़े लेले.. मैं सब संभाल लुंगी.. पर शादी क्यों करता है.. तेरी चाची बता रही थी लड़की वाले दहेज़ में दुपहिया मोटर देने को त्यार है.. तू बस हाँ कर.. लड़की अठरा बरस की है हरिया.. अभी किसी ने हाथ नहीं लगाया उसे.. कच्ची कली है बिलकुल..
हरिया - क्यों चुदाई के समय सर ख़राब करती है मंजू? सरला को मैं पसंद नहीं करता बल्कि उससे प्यार करता हूँ.. जितना प्यार तुझसे करता हूँ उतना ही सरला से भी.. भईया की मौत के सदमे में भाभी जान देने वाली थी.. पर मैंने भाभी से शादी का वादा किया औऱ समझाया तब भाभी मानी.. मंजू मैं सिर्फ तुझे ही यहां लाकर नहीं चोदता.. सरला भी यहां मुझसे चुदवाती है..
मंजू - हरिया क्यों उस विधवा रांड के चक्कर में इतने अच्छे रिश्ते को लात मार रहा है.. एक बार फिर सोच ले.. मैं तेरी सगी माँ हूँ तेरा बुरा नहीं सोचूंगी..
हरिया एक जोरदार थप्पड़ मंजू के गाल पर जमाता हुआ - बहन की लोड़ी रांड वो नहीं तू है.. मुझसे पहले किस किस से चुद चुकी है तू.. भूल गई? मेरे दोस्तों को भी नहीं छोड़ा था तूने.. सरला तो सिर्फ भईया के बाद मेरे नीचे लेटी है पर तू तो साली कई लोगों के नीचे लेट चुकी है..
मंजू - एक औऱ थप्पड़ मार दे मगर मेरी बात समझ.. तू जवान मर्द है अपनी भाभी को रखैल बनाकर भी रखेगा तो कोई तुझपर सवाल नहीं उठायेगा..
हरिया मंजू के मुंह में लोडा देते हुए - समझ नहीं आता मंजू मेरे बाप ने तेरे जैसी लालची रांड से क्यों ब्याह किया? तेरी चुत अगर मेरी कमजोरी नहीं होती ना मंजू तो मैं कबका तुझे छोड़कर चला गया होता..

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मंजू लोडा चूसते हुए - लालची नहीं बेटा मैं तो बस तेरे भले के लिए बोल रही हूँ.. माँ जो हूँ तेरी..
हरिया मुंह में माल झाड़कर - मंजू ये माँ बेटे वाला रिश्ता गाँव में सबके सामने ठीक है.. अकेले में इस रिश्ते की दुहाई मत दिया कर मंजू.. चल अब कपडे पहन..
मंजू माल पीकर कपडे पहनकर - चल हरिया.. चलते है.
हरिया - चल मंजू..

हरिया औऱ मंजू को गौतम औऱ सुमन छुपकर देख सुन रहे थे.. जब वो दोनों जाने लगे तो गौतम ने चुपके से सुमन को खंडर के एक कोने में लेजाकर खड़ा कर दिया औऱ हरिया औऱ मंजू वहा से चले गए.. उनके जाने के बाद गौतम सुमन को उस कमरे में लाता हुआ बोला..
गौतम - देखा माँ? हर जगह कोई ना कोई बेटा अपनी माँ की चुदाई कर रहा है.. औऱ आप कहती है ऐसा कहीं कुछ नहीं होता.. यहां इतने सारे कंडोम औऱ चड्डीया पड़ी है जो सबूत है इस बात का की यहां हरिया औऱ मंजू ने सगा माँ बेटा होते हुए अपनी चुदाईयो को अंजाम दिया है.. अब आप अपनेआप को रोक रही हो? आप भी मेरे साथ सेक्स करना चाहती हो ये मैं अच्छे से जानता हूँ.. पर आप ना जाने क्यों अपनेआप को मेरे करीब आने से हर बार रोक लेती हो..

सुमन आंसू बहाते हुए - मुझे माफ़ कर दे बेटा पर मैं वो नहीं कर सकती.. मेरा मन उसके लिए गवाही नहीं देता.. तू चाहे तो यही मेरी आबरू लूट ले.. जो चाहता है कर ले मैं मना नहीं करुँगी.. ये कहते हुए सुमन ने साडी का पल्लू गिरा दिया..
गौतम - माँ मुझे अगर आपकी चुदाई इसी तरह करनी होती तो बहुत पहले कर चुका होता.. मुझे आपके बदन के साथ आपकी रूह भी चाहिए.. मुझे कुत्ते बिल्लियों वाली चुदाई नहीं करनी.. जब तक आप अपने हाथ से पकड़ कर मेरा लंड अपनी चुत में नहीं डलवाती.. तब तक मैं आपको नहीं चोदने वाला..
सुमन - मैं मजबूर हूँ बेटा..
गौतम - जब तक आपकी मज़बूरी ख़त्म नहीं हो जाती माँ मेरा लंड आपकी चुत का इंतजार कर लेगा..
ये कहकर गौतम वहा से जाने लगता है मगर सुमन गौतम का हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लेती है औऱ उसे गले लगाकर कहती है..
सुमन - ग़ुगु मुझे माफ़ कर दे बेटा.. मैं बहुत बुरी माँ हूँ.. तूने मुझसे पहली बार कुछ माँगा औऱ वो भी मैं तुझे नहीं सकती..
गौतम सुमन के आंसू पोछकर - किसने कहा की आप नहीं दे सकती? आप जरुर देंगी.. मुझे यक़ीन है.. अब चलो माँ.. घर चलते है..
गौतम सुमन को खंडर से वापस गाडी में ले आया.. औऱ गाडी चलाते हुए हाईवे पर आ गया औऱ थोड़ी देर बाद दोनों अजमेर पहुंच चुके थे..

सुमन - नाराज है ग़ुगु?
गौतम गाडी चलाते हुए - नहीं तो..
सुमन - तो फिर इतनी देर से चुप क्यों हो?
गौतम - बस यूँही..
सुमन - मैं जानती हूँ ग़ुगु.. तु क्यों चुप है पर तू समझ.. मैं वो सब नहीं कर सकती.. मैंने इस चुत से तुझे पैदा किया है अब इसी चुत में तुझे वापस लेने का ख्याल मुझे बहुत गलत लगता है..
गौतम - कोई बात नहीं माँ.. मैं आपसे कुछ नहीं कह रहा..
सुमन - ग़ुगु वहा गाडी रोक..
गौतम - माँ वो मिट शॉप है..
सुमन - पता है रोक ना..
गौतम मिट शॉप के आगे गाडी रोकते हुए - यहां क्या करना है आपको?
सुमन मुस्कुराते हुए - दो मिनट रुक मैं आती हूँ..
सुमन गाडी उतर कर मिट शॉप में जाती है औऱ कुछ देर बाद एक काली पन्नी में कुछ लेकर वापस आ जाती है..
गौतम काली पन्नी देखकर - इसमें क्या है?
सुमन - चीकन... तुझे चिकन करी पसंद है ना.. आज अपने हाथों से बनाकर खिलाऊंगी अपने ग़ुगु को..
गौतम गाडी चलाते हुए - अच्छा तो इस तरह से आप मेरा मन बहलाना चाहती हो.. पर आपको बनाना कहा आता है?
सुमन - नहीं आता तो रूपा से पूछ लुंगी..
गौतम ठेके के सामने गाडी रोककर - मिट के साथ दारू तो जरुरी है माँ.. कोनसा ब्राड पीना पसंद करोगी?
सुमन मुस्कुराते हुए - जो मेरे ग़ुगु को पसंद हो..
गौतम जाकर एक शराब की बोतल ले आता है.. औऱ गाडी घर के आगे लगा देता है.. सुमन औऱ गौतम घर के अंदर चले जाते है शाम होने लगी थी.. गौतम ने गाडी रूपा से कहकर वापस भिजवा दी थी..

गौतम शराब के दो पेग बनाकर - लो माँ.. शुरू करो..
सुमन चिकन धोती हुई - रुक ग़ुगु.. इसे धो लिया है बस हल्का सा काट दूँ..
गौतम - फ़ोन में देखकर क्यों बना रही हो माँ? मुझे आता है मैं सिखाता हूँ आज आपको..
सुमन पेग उठाकर गौतम से चर्स करके पेग पीते हुए - अच्छा.. तो सीखा मुझे..
गौतम पेग ख़त्म करके - ठीक है माँ.. आओ यहां..
सुमन पेग ख़त्म करके - चलो सिखाओ..
गौतम - सबसे पहले गैस ऑन करके उसपर पतीला रखो.. फिर सरसो का तेल डालकर गर्म करो..
सुमन मुस्कुराते हुए - इतना तो मुझे भी आता है मेरे शहजादे..
गौतम दूसरा पेग बनाकर एक सुमन को देते हुआ - तेल गर्म होने पर उसमे कुछ खड़े मसाले डालकर थोड़ी सी देर बाद कटे हुए प्यार औऱ हरी मिर्च डाल दो.. फिर उसमें थोड़ा सा नमक डालो..
सुमन पेग आधा ख़त्म करके - उसके बाद ग़ुगु ज़ी?
गौतम दूसरा पेग ख़त्म करके सुमन को बाहों में भरकर - उसके बाद में.. आपके जैसी किसी हसीन औऱ खूबसूरत औरत को तब तक चुम्मो जब तक प्याज थोड़े पक नहीं जाते.. ये कहते हुए गौतम सुमन को चूमने लगता है..

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सुमन गौतम को होंठों से होंठ लगाकर चूमते हुए एक हाथ से कड़ची चलाती रहती है..
थोड़ी देर बाद गौतम से चुम्मा तोड़कर सुमन - तुम्हारे प्याज ने थोड़े पक गए गुगुजी.. अब आगे?
गौतम - अब पतिले में अदरक लसन का पेस्ट डालकर तब तक पकायेगे जब तक साड़ी ब्लाउज औऱ पेटीकोट नहीं खुल जाता.. ये कहकर गौतम सुमन की साडी ब्लाउज औऱ पेटीकोट उतार देता है औऱ सुमन को ब्रा पेंटी में खड़ा कर देता है..
सुमन अपना पेग ख़त्म करके - अब आगे क्या करना चाहिए ग़ुगु ज़ी?
गौतम - अब चीकन को पतिले में डाल देना चाहिए सुमन ज़ी..
सुमन मुस्कुराते हुए चीकन पतिले में डालकर कड़ची चलाती रहती है औऱ गौतम अब तीसरे पेग को बनाकर दोनों के सामने रख देता है..
सुमन नशे में - मुझे नंगा करके खुद कपडे पहन रखा है बेशर्म खोल तू भी.. सुमन भी गौतम के सारे कपडे उतार कर रसोई में वही रख देती है जहा सुमन की साडी ब्लाउज औऱ पेटीकोट रखा था.. गौतम भी अब चड्डी में आ चूका था..
गौतम कड़ची चलाते हुए - अब थोड़ा सा चिकन को भून लेंगे..
सुमन थोड़ी देर बाद एक सिगरेट जलाकर कश लेती हुई नशे में बोली - भूनने के बाद क्या करें ग़ुगु ज़ी..
गौतम सुमन से सिगरेट लेकर कश लेटे हुए सुमन के हाथ में कटोरी देकर बोला - अब सुमन ज़ी जो आपने कटोरी में दही औऱ मसाले डालकर मिक्सचर तैयार किया है उसे पतिले में डाल देंगे..
सुमन कटोरी में दही औऱ सभी मसालो का मिक्सचर डालकर कड़ची चलाते हुए बोली - अब ग़ुगु ज़ी..
गौतम एक सिगरेट का लम्बा कश लेकर सिगरेट सुमन को देते हुए तीसरा पेग ख़त्म करके घुटनो पर बैठकर सुमन की पेंटी नीचे करते हुए सुमन की चुत चाटकर - अब अपनी माँ की चुत तबतक चाटेगे जबतक माँ की चुत जड़ नहीं जाती..

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सुमन कड़ची चलाकर सिगरेट के कश लेटी हुई अपनी एक टांग उठाकर चुत खोल देती है औऱ गौतम से अपनी चुत चटवाने लगती है..
सुमन सिगरेट के कश लेटी हुई गौतम के बाल पकड़कर नशे में उससे अपनी चुत चटवाये जा रही थी औऱ दस पंद्रह मिनट बाद सुमन गौतम के मुंह में झड़ गई..

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गौतम चुत का पानी पीकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया औऱ सुमन गौतम को देखकर नशे में कड़ची चलाते हुए बोली - अब क्या करना चाहिए ग़ुगु ज़ी..
गौतम पतिले को देखकर सुमन से बोला - अब सुमन ज़ी पतिले में मिट मसाला औऱ हरा धनिया डालकर धीमी आंच पर तब तक पकायेंगे जब तक मेरा लंड आपके मुंह में पानी नहीं छोड़ देता..
गौतम का इशारा पाकर सुमन मुस्कुराते हुए घुटनो पर आ गयी औऱ गौतम की चड्डी नीचे सरका कर उसका लंड मुंह में लेते हुए रंडियो की तरह चूसने लगी..

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गौतम ने कड़ची चला कर पतिले को ढक दिया औऱ एक सिगरेट जलाकर कश लेते हुए होनी माँ के बाल पकड़ कर उसके मुंह में झटके मारते हुए सुमन को अपना लंड चूसाने लगा..
सुमन ने बीच में तीसरा पेग भी ख़त्म कर लिया औऱ अब नशे में पूरी तरह उतर कर पूरी रांड जैसे गौतम के लंड के साथ साथ उसके आंड को भी चुसने लगी.. गौतम अपनी माँ का ये रूम देखकर मंतरमुग्ध हो गया था सुमन बिलकुल किसी रंडी की तरह गौतम के लंड के साथ साथ उसके टट्टे औऱ जांघो के आस पास की जगह को चूसने चाटने लगी थी..
करीब 20-25 मिनट बाद गौतम का माल सुमन के मुंह में झड़ गया जिसे सुमन पी गई औऱ अगला पेग बनाने लगी.. सुमन के पैर लड़खडाने लगे थे..

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गौतम ने उसे चौथा पेग बनाने से रोक दिया औऱ बाहों में भरता हुआ बोला - लो सुमन ज़ी त्यार है आपकी चिकन करी..
सुमन मुस्कुराते हुए नशे में - तू बहुत प्यारा है ग़ुगु.. आई लव यू..
गौतम एक बड़ी सी प्लेट पर चिकेन करी डालकर - गर्म है सुमन ज़ी थोड़ा ठंडा होने दो.. फिर बताना कैसी बनी है?
सुमन नशे में - तब तक एक पेग औऱ पीते है ग़ुगु..
गौतम - नहीं आपके ज्यादा हो गई है..
सुमन - नहीं हुई.. लो अपने हाथ से पिलाओ एक पेग..
गौतम शराब नहीं डालता औऱ सिर्फ पानी का पेग बनता है..
गौतम पानी का पेग पीलाते हुए - लो सुमन ज़ी पियो..
सुमन पेग पीकर समझ जाती है कि वो सादा पानी था औऱ कुछ नहीं..
सुमन नशे में ग़ुगु का लंड पकड़ कर - मज़ाक़ मत कर गौतम.. बना मेरा पेग मुझे पीना है..
गौतम - पहले ये खाओ.. लो ठंडा कर दिया..
सुमन चिकेन लग पीस उठाकर आधा गौतम को खिलाती है औऱ आधा खुद खा जाती है..
सुमन उंगलियां चाटते हुए - उफ्फ्फ... क्या मस्त बनी है चिकेनकरी ग़ुगु..
गौतम - पहले तो कितना नाटक करती थी. मैं ये नहीं खाती वो नहीं खाती.. घर में नहीं बनेगा.. औऱ अब देखो..
सुमन औऱ गौतम एक दूसरे को चिकेन करी खिलाते हुए हलकी फुलकी छेड छाड़ करते है औऱ खाने के बाद सुमन के जोर देने पर उसे गौतम एक छोटा सा पेग औऱ बना के पीला देता है..
सुमन नशे में गौतम के होंठ चूस कर - आई लव यू बच्चा.. आई लव यू..
गौतम सुमन को रूम में लाकर बेड पर बैठा देता है..
सुमन गौतम को बाहों में भरके नशे में बोलती है - देख तूने अपनी माँ के बोबे दबा दबा के कितने बड़े कर दिए है ग़ुगु.. मेरी ब्रा कितनी टाइट हो गई है.. अब तू ही मुझे नई ब्रा लाकर देगा..
गौतम मुस्कुराते हुए ब्रा उतारकर - ला दूंगा माँ.. अब अपने बच्चे को अपना दूध पीला दो..
सुमन अपना बोबा पकड़ कर गौतम के मुंह में देती हुई - ले बेटा.. पी ना अपनी माँ का दूध.. कौन रोकता है तुझे मेरा दूध पिने से? तेरे लिए ही तो है मेरा दूध.
गौतम बूब्स चूसता हुआ - आई लव यू माँ...
सुमन बोबा चूसाते हुए - आई लोब यू टू बेटा.. चूस मेरा बोबा.. खा जा इन दोनों बोबो को बेटा.. आह्ह..
गौतम बूब्स चूसकर सुमन को पीछे धकेल देता है औऱ बेड पर पीठ के बल गिरता हुआ उसके ऊपर आ जाता है औऱ सुमन के होंठ चूमकर कहता है - माँ ट्रुथ एंड डेयर खेलते है..
सुमन गौतम का चेहरा पकड़कर - ठीक है बेटा..
दोनों कि नज़र मिलती है सुमन कि हार हो जाती है..
गौतम -माँ बोलो ट्रुथ एंड डेयर?
सुमन मुस्कुराते हुए - ग़ुगु ट्रुथ.. पूछ क्या पूछना है तुझे..
गौतम जानता था सुमन पुरे नशे में है उसने सुमन से पूछा - आखिरी बार मामा से कब चुदवाया था?
सुमन नशे में थी उसे समझ नहीं आया था कि गौतम ने उसे कितना बड़ा सवाल पूछ लिया है सुमन नशे में ही बोल पड़ी - दो महीने पहले जब तेरे पापा ने तुझसे वो फ़ाइल मंगवाई थी ना.. इतना बोल कर सुमन को अहसास हुआ की गौतम ने क्या सवाल पूछा है औऱ उसने क्या जवाब दिया है.. सुमन का नशा हल्का हो गया था औऱ नज़र शर्म से नीचे..

गौतम सुमन का चेहरा उठाते हुए बोला - उस दिन आपकी अलमारी में कंडोम देखकर मुझे अजीब लगा था पर अब समझ आया.. उस दिन अलमारी में कंडोम क्यों औऱ किसके लिए रखा हुआ था.. आप चिंता मत करो माँ.. मैं किसी से भी आपके उस राज़ का जिक्र नहीं करूँगा..
सुमन बिस्तर से उठना चाहती थी मगर गौतम ने अब उसे अपनी बाहों में कसके जकड़ दिया था औऱ सुमन शर्म से लाल पड़ रही थी..
गौतम जानता था की सुमन अब कुछ नहीं बोलेगी इसलिए उसने सुमन से आगे अपनी बात कही - माँ शर्माओ मत.. शादी की रात जब आप छत पर मामा से बाटकर रही थी उस वक़्त में उस कमरे के अंदर ही था.. मैंने सारी बात सुन ली थी औऱ मुझे मालूम हो गया था की मेरी तरह ऋतू भी आपकी चुत से निकली है.. हम दोनों के बाप अलग अलग हो पर माँ एक ही है.. आपका ये राज़ किसी को नहीं पता लगेगा माँ.. मैं किसीको नहीं बताऊंगा..
सुमन नशे में - ग़ुगु मुझे माफ़ कर दे..
गौतम - किस बात के लिए माँ? आपने कोई गलती नहीं की.. आप एक खूबसूरत हसीन औरत हो.. अगर आपका ख्याल पापा नहीं रखते तो आपको पूरा हक़ है किसी से भी अपना रिश्ता बनाने का..
सुमन - ग़ुगु उस दिन तेरे मामा ज़ी आये थे.. मगर सालों से उनका हाल भी वैसा ही है.. जैसा तेरे पापा है.. अब वो भी एक मिनट में ही चित हो जाते है.. मैं नहीं जानती ग़ुगु तू मेरे बारे में क्या सोच रहा है ये जानने के बाद.. पर मैने औऱ किसी को अपने करीब नहीं आने दिया..
गौतम - मुझे सफाइ देने की जरुरत नहीं है माँ.. मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ.. ना ही कभी हो सकता हूँ.. मैं खुद चाहता हूँ आप खुश रहो.. मेरे साथ नहीं तो जिसके साथ आपका मन करें उसके साथ..

सुमन मुस्कुराते हुए नशे में लड़खड़ाती हुई उठकर अलमारी से वही कंडोम निकालकर उसमे से एक कंडोम फाड़कर गौतम के करीब आ जाती है औऱ गौतम के लंड को पकड़कर उसे कंडोम पहना देती है औऱ अपनी पेंटी उतारकर गौतम के ऊपर बैठते हुए उसका लंड अपनी चुत में घुसाने लगती है मगर गौतम का लंड टोपे से थोड़ा सा ज्यादा सुमन की चुत में घुसता है गौतम सुमन को रोक देता है औऱ बोलता है..
गौतम - रहने दो माँ.. आप अभी नशे में ही.. आप नहीं जानती आप क्या कर रही हो..
सुमन - मुझे मत रोक ग़ुगु.. मुझे बहुत पहले तुझे अपनी चुत दे देनी चाहिए थी.. तेरे जैसा सुन्दर संस्कारी औऱ सुशील बेटा कब से मेरी चुत के लिए तरस रहा है.. औऱ मैं तुझसे ही अपनी चुत बचा रही हूँ.. मुझे तो अब खुद पर शर्म आने लगी है.. तूने दिन में कहा था ना ले आज मैं खुद तेरा लंड पकड़कर अपनी चुत में डाल रही हूँ.. ले चोद ले अपनी माँ को ग़ुगु.. चोद दे ग़ुगु मुझे..
गौतम लंड पकड़कर उसपर से कंडोम उतार कर फेंकता हुआ - आप नशे में ये सब बोल रही हो माँ.. सो जाओ.. सुबह होने पर आपको पछतावा होगा अगर मैंने कुछ किया तो..
सुमन शराब की बोतल उठाकर पीते हुए - तेरी माँ को अब तेरा लंड चाहिए ग़ुगु.. अगर तू मुझे नहीं चोदेगा तो मैं तुझे चोद दूंगी..
गौतम हसता हुआ सुमन से शराब की बोतल लेकर साइड में रख देता है औऱ सुमन को चूमता हुआ बिस्तर में गिर जाता है औऱ एक हाथ से सुमन की चुत में उंगलि करने लगता है..
सुमन सिस्कारी लेटी हुआ गौतम को चूमने लगती है मगर कुछ देर बाद अपनी चुत से पानी का छिड़काव करके नशे में ही बिस्तर पर हलकी हलकी नींद में खोने लगती है.. गौतम सुमन को बच्चों की तरह सुला देता है औऱ सुमन को बाहों में भरके एक चादर ओढ़कर खुद भी उसीके साथ लेट जाता है..

गौतम का धागा लाल था वो समझ चूका था की अब सुमन की चुत उसके लिए तैयार है औऱ सुमन अब ज्यादा वक़्त नहीं लेगी उसे होनी चुत में एंट्री देने के लिए..

गौतम लेता हुआ था की ररूपा का फ़ोन आता है जिसपर रूपा औऱ माधुरी दोनों होती है औऱ गौतम दोनों से एक साथ बात जरता है.. गोयम बताता है कि कल वो सुमन के साथ बाबाजी के जाने वाला है औऱ वही सुमन से रूपा औऱ माधुरी मिलकर उसे साथ रहने के लिए मना सकती है.. बात करने के कुछ देर बाद गौतम भी सुमन की बाहों में सो जाता है..

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Story jesi lag rhi hai comments me bta sakte ho aur koi suggestion hai to wo bhi share kr sakte hai..
Awesome update
 
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Bhai badhiya likh rahe ho bass lage raho pichhli se milti julti hai lekin majaa aa rha hai
 

maakaloda

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Update 48

जंगल के खंडर के जिस कमरे में गौतम औऱ सुमन ने हरिया औऱ मंजू को चुदाई करते हुए देखा था वहां अब हलकी सी सफाई कि जा चुकी थी.. एक खाट किसी ने लाकर रख दी थी जिसपर एक रुई का गद्दा भी पड़ा था औऱ साथ में एक फोल्डबल टेबल भी साइड में थी जिस पर शराब की एक बोतल सिगरेट के पैकेट लाइटर औऱ पानी की बोतल रखी हुई थी..

ये सब आज सुबह गौतम ने ही इस कमरे में रखे थे औऱ अब वो अपनी माँ को भी अपने साथ लेकर खंडर के बाहर आ चूका था औऱ गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर उसे खंडर के अंदर ले आया.. सुमन को डर लग रहा था मगर गौतम के साथ में होने से उसका डर काफूर भी हो रहा था.. गौतम ने सुमन को अपनी गोद में उठा लिया औऱ सीढ़ियों से खंडर के ऊपरी मंज़िल पर आ पंहुचा..

सुमन के मन में इस वक्त अजीब अजीब ख्याल चल रहे थे और उसके बदन में सुरसुरी कौंध रही थी.. सुमन का दिल जोरो से धड़क रहा था और आने वाले पलों की कल्पना करके काम वासना के भाव से भरी जा रही थी.. सुमन की आंखों के सामने गौतम का चेहरा था जिसे वह बड़ी प्यार से देख रही थी और अपने हाथ से उसके प्यारे मुख को सहला भी रही थी..

सुमन को पता नहीं था कि गौतम के मन में क्या चल रहा है.. गौतम आज किसी भी कीमत पर सुमन को पा लेना चाहता था और इस नियत से वह सुमन को अपनी गोद में उठा खंडर के इस कमरे पर आ रहा था जहाँ उसने सारी तैयारी कर रही थी.. गौतम ने अपने सुहाग दिन को मनाने के लिए पूरा प्रबंध किया हुआ था..

गौतम ने सुमन को लाकर कमरे में बिछी उसी खत पर पटक दिया औऱ शराब कि बोतल खोलकर सुमन औऱ खुद के लिए एक एक पेग बना दिया..
गौतम पेग देते हुए - लो माँ..
सुमन पेग लेकर - यहां इस खंडर में करोगे अपनी ख्वाहिश पूरी?
गौतम पेग पीकर अपने लिए दूसरा पेग बनाते हुए - यहां तु खुलकर चीख-चिल्ला सकती है सुमन.. तेरी आवाजे सुनकर यहां कोई नहीं आएगा.. औऱ तु मुझसे बचकर कहीं भाग भी नहीं पाओगी..
सुमन पेग पीते हुए - मैं क्यों भागने लगी भला.. मैं भी अब तेरे साथ हर हद पार करना चाहती हूँ..
गौतम दूसरा पेग ख़त्म करके एक सिगरेट सुलगा लेता है औऱ सुमन अपना पहला पेग ख़त्म कर देती है.. गौतम सुमन के करीब खाट पर बैठ कर अपना एक हाथ सुमन के गले में डालकर उसका चुचा पकड़कर मसलते हुए सिगरेट के कश लेता हुआ कहता है..
गौतम - एक बात सच सच बतायेगी सुमन?
सुमन गौतम से सिगरेट लेकर कश मारती हुई - पूछ ना मेरी जान.. जो तुझे पूछना है.. आज तेरी माँ नहीं शर्माने वाली.. मेरे चुचे 34 कमर 28 गांड 36 है..
गौतम सुमन के निप्पल्स मरोड़ता हुआ - मेरा असली बाप कौन है?
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सुमन सिसकती हुई - आह्ह.. गौतम.. ये तू केसा सवाल कर रहा है.. जगमोहन तेरा बाप है..
गौतम सुमन से सिगरेट लेकर कश मारता हुआ वापस सुमन के चुचे पर उभरा हुआ चुचक मसल देता है औऱ बोलता है - सुमन मै मज़ाक़ नहीं कर रहा.. सच सच बता.. मेरा असली बाप कौन है?
सुमन दर्द से - अह्ह्ह्ह.. ग़ुगु मरोड़ मत मेरी निप्पल्स.. औऱ तू अचानक कैसी बात कर रहा है.. औऱ क्या बेतुका सवाल पूछ रहा है...
गौतम सिगरेट का कश लेकर सिगरेट फर्श पर फेंककर अपने जूते से बुझा देता है औऱ सुमन को धक्का देकर खाट पर पीठ के बल लिटाता हुआ उसके ऊपर चढ़कर उसके बालो को अपनी मुट्ठी में भींचकर पकड़ते हुए कहता है - मुझे चुतिया समझा है माँ तूने? चुपचाप मुझे मेरे असली बाप का नाम बता दे.. वरना आज चोदने के बाद तुझे हमेशा के लिए अकेला छोड़ जाऊँगा..

सुमन हैरानी परेशानी औऱ फ़िक्र से भरी हुई - ग़ुगु तू क्या बोले जा रहा है बेटा.. तू जो बोले रहा है मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा..
गौतम गुस्से में एक जोरदार तमाचा सुमन के गाल पर मार देता है औऱ कहता है - अब समझ आया तुझे रंडी? बंद कर अपना ये संस्कारी बनने का ढोंग.. मुझे पता चल गया तू कितनी बड़ी रांड रह चुकी है..
सुमन अपने गाल पर हाथ लगा कर - बेटा.. मैं सच कह रही हूँ तेरा बाप जगमोहन ही है..
गौतम हलके नशे में थोड़ा पीछे होता है औऱ सुमन की साडी का पल्लू हटाकर सुमने के चुचो पर अपने दोनों हाथ रखकर ब्लाउज को कस के पकड़ता है औऱ इतना जोर से खींचता है कि सुमन कि छाती पर से उसका ब्लाउज एक बार में फटकार अलग हो जाता है औऱ साथ में ब्रा भी उतर जाती है..

गौतम सुमन के दोनों चुचो को अपने दोनों हाथों के पंजो में पकड़कर दबा दबा के मसलते हुए - अब तो सच बोल दे रंडी.. मैं जान गया हूँ जगमोहन मेरा बाप नहीं है औऱ ना ही वो किसी औऱ का बाप बन सकता है.. ना ही कभी बन सकता था.. वो शुरु से बाप बनने के काबिल नहीं था.
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सुमन गोतम को हैरानी से देखती हुई सिसक कर - गौतम तुझे कैसे..
गौतम सुमन के तनकर खड़े हुई चुचक को मुंह में लेकर चूसता हुआ - मुझे कैसे पता? तू यही सोच रही है ना सुमन.. आज मुझे बहुत कुछ पता चला है तेरे बारे में.. अब मुझे सच सच बता कौन है मेरा असली बाप?
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सुमन गोतम के चेहरे को पकड़कर उसके होंठ पर अपने होंठ रखते हुए चूमती हुई - छोड़ ना गौतम.. अब क्या फर्क पड़ता है.. सालों पहले की बात है..
गौतम सुमन में बाल पकड़कर उसके होंठों को अपने होंठों से अलग करता हुआ उसकी आँखों में देखकर कहता है - फर्क पड़ता है माँ.. तू शादी से पहले जिस जिस के नीचे लेटी है मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है.. बस तू इतना बता दे उनमे से मेरा बाप कौन था?
सुमन गौतम के हाथों से अपने बाल छुड़ाकर वापस उसके होंठों पर टूट पडती है औऱ गौतम को चूमती हुई कहती है - उन सब बातों का अब क्या फ़ायदा मेरे शहजादे.. देख तेरी माँ आज तुझे पूरी तरफ से अपनाने को तैयार है.. कर ले अपने मन कि हर ख्वाहिश पूरी बेटा.. होजा मेरे साथ एक जिस्म दो जान..
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गौतम फिर से सुमन के होंठों से अपने होंठ हटाते हुए - मुझे जानना है माँ.. कि कौन था वो जिसने तेरी टाँगे चौड़ी करके तेरी चुत में लंड घुसाकार अपना माल तेरी चुत में झाड़ा जिसके करण तूने मुझे अपनी चुत से निकला..
सुमन अपनी साडी निकालकर पटीकोट का नाड़ा खोलती हुई - गौतम तू कैसी बातें लेकर बैठ गया.. आज तेरा औऱ मेरा पहला मिलन है.. देख तेरी माँ ने तेरे लिए आज अपनी चुत के सारे बाल शेव करके चुत को कितना चिकना कर दिया है...
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गौतम सुमन के मुंह पर थूक देता है औऱ कहता है - हट माँ.. अगर तू मुझे उस आदमी का नाम नहीं बतायेगी तो तुझे चोदने से अच्छा है मैं कोठे पर कोई रंडी चोद लु..
सुमन गौतम का थूक चेहरे से साफ करके मुंह में भर लेटी है औऱ गटकते हुए गौतम का शर्ट खोलती हुई कहती है - मुझे कोठे की रांड समझकर ही चोद ले ग़ुगु.. मैं कोनसी कुछ कह रही हूँ.. तू तो फालतू की ज़िद पकड़ कर बैठ गया.. अब इतने साल बाद क्या मतलब इन बातों का..
गौतम शर्टलेस होकर उठकर कमरे की खिड़की से बाहर जंगल की तरफ देखने लगता है औऱ सुमन से कहता - मुझे मेरे असली बाप का नाम तक नहीं पता औऱ तू कहती है मैं फालतू की ज़िद पकड़ कर बैठा हूँ..
सुमन टेबल पर रखी शराब की बोतल से एक पेग बनती है औऱ पेग के साथ सिगरेट लाइटर हाथ में लेकर गौतम के पास आती है.. - नाम जानने से क्या हो जाएगा गौतम.. हम अब तक जैसे जी रहे थे वैसे ही जी सकते है ना.. तू कब से मेरे पीछे पडा था.. अब जब मैं तैयार हूँ तो तू ऐसे कर रहा है.. ये कहते हुए सुमन ने पेग गौतम के हाथ में दे दिया औऱ उसके होंठों पर एक सिगरेट लगाकर जलाते हुए अपने घुटने पर आ बैठी.. सुमन गौतम की जीन्स का हुक खोलकर उसके लंड को चूमने लगी..
गौतम सिगरेट का कश लेकर पेग पिने लगा औऱ फिर अपने आगे घुटनो पर बैठकर अपने लंड ओर चुम्मिया बरसाती हुई होनी माँ सुमन को देखता हुआ बोला - मैं तुझे औऱ कुछ नहीं कहूंगा सुमन.. तू बस मुझे इतना बता दे की मैं किसके लंड की पैदाईश हूँ?
सुमन लंड पर चुम्मियो की बरसात करने के बाद लंड को मुंह में भरती हुई - आज क्या हुआ है तेरे लंड को गौतम? इतनी चुम्मिया करने औऱ हिलाने के बाद भी खड़ा नहीं हो रहा..
गौतम पेग ख़त्म करके गिलास एक तरफ रख देता है औऱ सिगरेट का लम्बा कश खींचकर सुमन के बाल पकड़कर उसे खड़ा करके उसके मुंह पर सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए कहता है - जब तक इसे अपने बाप का नाम नहीं पता चलता ये खड़ा नहीं होने वाला.. समझी सुमन.. अब बता कौन है मेरा बाप? क्या वो बाबा मेरा असली बाप है जिसके पास जाकर तू कुछ ना कुछ मांगती रहती है..
सुमन हिचकती हुई - गौतम.. बाबाजी के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा..
गौतम सिगरेट का कश लेकर सिगरेट खिड़की से बाहर फेंक देता है औऱ सुमन की चुत को अपनी मुट्ठी में पकड़कर मसलते हुए कहता है - रिश्ता कैसे नहीं रहा? उसने तुझे नंगा नहीं किया था रातों में? तेरी इस चुत में लंड तो उसका भी जा चूका है.. मैं जान चूका हूँ की बच्चे की मन्नत लेकर आई हर औरत को बाबाजी औऱ उसका साथी किशोर रात रात भर होने बिस्तर में चोदते है.. तुझे भी चोदा होगा ना वहा किसीने जब तू बच्चे की मन्नत लेकर वहा गई थी..

सुमन सिसकियाँ लेती हुई गौतम को बाहों में भरकर उसे चूमती हुई - नहीं मेरे शहजादे.. अह्ह्ह्ह... मैं तेरी कसम खाती हूँ.. मैं उस पहाड़ी पर बाबाजी के बिस्तर में नंगी जरुर हुई थी मगर वक़्त रहते मैंने अपना इरादा बदल लिया था औऱ मैं बीना चुदे ही वहा से वापस आ गई थी..

गौतम सुमन को चूमता हुआ खाट में आ जाता है औऱ उसके चुचो का मर्दन करता हुआ कहता है - वहा नहीं चुदी तो कय हुआ माँ? संजय मामा ने तो तुझे शादी के बाद भी बहुत बार चोदा था.. क्या मैं उसकी चुदाई से पैदा हुआ हूँ?
सुमन गौतम का लंड पकड़कर अपनी चुत पर रगडती हुई - नहीं बेटा.. तेरे मामा ने मेरी शादी के बाद कभी मेरी चुत में अपना माल नहीं झाड़ा.. तू तेरे मामा का बेटा नहीं है ग़ुगु..
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गौतम सुमन के चुचो को दांतो से खींचता हुआ चूसता है औऱ सुमन की आँखों में देखकर कहता है - तो क्या मैं तेरे उस पुराने आशिक विजय का बेटा हूँ, जो तुझे सिनेमा दिखाने के बाद अपने दोस्त कमल की पंचर की दूकान में लेजाकर चोदता था.. जिससे तू अब इतने सालों बाद फिर से इंस्टा पर बात करने लगी है..
सुमन गौतम का लंड चुत पर रगढ़ते हुए चौंककर - गौतम तुझे कैसे पता मैं इंस्टा चलाती हूँ औऱ विजय से बात करने लगी हूँ?

गौतम सुमन की गर्दन चाटता हुआ - पूराना अकाउंट डिलीट करके नया बना लेने से तुझे क्या लगा.. मुझे आता नहीं चलेगा.. शर्मीली सुमन नाम से अकाउंट बनाया है ना तूने नया.. उसपर अपनी चिकनी कमर की फोटो डालने से तुझे क्या लगा मुझे पता नहीं चलेगा? माँ.. तेरी कमर के तिल ने मुझे बता दिया कि ये तेरा अकाउंट है.. मैंने तेरे फ़ोन में इंस्टा के पास देखकर अपने फ़ोन में तेरा अकाउंट खोला था सुबह.. औऱ जिस जिस से तूने जो जो बात कि है सब पढ़ ली..
सुमन शर्माते हुए - गौतम तूने ऐसा क्यों किया.. मुझे शर्मिंदा करने से तुझे क्या मिल जाएगा.. मैं तेरी सगी माँ हूँ क्या ये तेरे लिए काफी नहीं?
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गौतम सुमन की टाँगे चौड़ी करके उसके चुत के दाने को चूमकर होंठों से खींचता हुआ - मुझे बस अपने बाप का नाम जानना है सुमन.. अगर तू मुझे उसका असली नाम बता देगी तो मैं वादा करता हूँ.. मैं अपने ईस लंड की छत्रछाया मैं तुझे हमेशा सुखी रखूँगा.. बता सुमन कौन है मेरा असली बाप? क्या वो विजय का दोस्त कमल है? जो विजय के चोदने के बाद तेरी चुदाई करता था..
सुमन गौतम का सर पकड़कर अपनी चुत में घुसाती हुई - नहीं.. गौतम.. वो ना विजय है ना कमल..
गौतम जोर जोर से सुमन की चुत चाटता हुआ - तो बता ना रंडी.. वो कौन है? कौन है मेरा असली बाप?
सुमन का बदन अकड़ने लगता है औऱ वो गौतम के मुंह में झड़ते हुए एक नाम लेती है - वो तेरे चाचा है गौतम.. बृजमोहन..
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गौतम के मुंह पर सुमन की चुत से जबरदस्त पिचकारी की धार निकलकर पडती है औऱ गौतम का सारा मुंह सुमन के पानी से भीग जाता है..
सुमन झड़ने के बाद तेज़ तेज़ सांस लेती हुई सिसकियाँ लेकर - वो तेरा चाचा है गौतम.. तेरा चाचा ही तेरा असली बाप है..
गौतम सुमन की चड्डी से अपना चेहरा साथ करता हुआ - बृजमोहन..
सुमन शरमाते हुए पछतावे से - हाँ गौतम हां.. बृजमोहन.. वही है तेरा असली बाप..
गौतम खाट से खड़ा होकर पानी की बोतल से पानी पीते हुए सुमन को देखकर - मुझे सारी बात बता माँ.. उसने कब औऱ कैसे क्या क्या किया तेरे साथ...
सुमन - वो सब जानकर तू क्या करेगा बेटा.. रहने दे उन बातों को..
गौतम वापस खाट पाकर सुमन की टाँगे चौड़ी करके चुत के छेद लड़ लंड टिका कर दबाव बनाते हुए - मुझे सब जानना है माँ.. तेरे साथ उसने कब कब औऱ क्या क्या किया है..
सुमन गौतम के लंड को चुत के अंदर लेने के लिए पकड़ लेती है चुत में घुसाने लगती है जिसमे उसे बहुत दर्द भी होने लगा था
सुमन सिसकियाँ लेती हुई - बता दूंगी बेटा.. सबकुछ बता दूंगी.. अब तुझसे छीपा कर करुँगी भी क्या?

फूलों का लेप लगाने से सुमन की चुत सिकुड़ चुकी थी और उसे गौतम का मोटा लंड लेने में बहुत तकलीफ होने लगी थी सुमन अभी तक केवल लंड का टोपा ही अपनी चुत में घुसा पाई थी कि उसकी आहे निकलने लगी वो तेज़ सिसकियाँ लेने लगी और किसी कुंवारी की तरह मचलने लगी..
सुमन को समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उसे यह क्या हुआ है और वह कैसे इतनी सिकुड़ी हुई चुत की मालकिन बन गई है.. गौतम ने अपनी पूरी कोशिश और दबाव डालते हुए सुमन की सिकुड़ चुकी चुत में अपने लंड को टोपे से थोड़ा आगे औऱ प्रवेश करवा दिया औऱ सुमन के चेहरे पर आते कामुकता औऱ दर्द से भरपुर भावो को देखने लगा.. जिसमे उसे अद्भुत आनंद आ रहा था.. गौतम सोच रहा था ईसी योनि से सालों पहले दो बच्चे निकल चुके हैं लेकिन अभी यह योनि कितनी टाइट है और लेप लगाने के बाद कितनी सिकुड़ चुकी है..

सुमन सिसकियाँ भरती हुई - आराम से गौतम बहुत दर्द हो रहा है.. पता नहीं कैसे इतनी सिकुड़ गई..पता नहीं कैसे तेरे इतने बड़े लंड को अंदर ले पाऊँगी..
गौतम सुमन को देखता हुआ - माँ मुझे माफ़ कर दो..
सुमन - क्यों बेटा.. तूने कोनसी गलती कर दी जो तू माफी मांग रहा है.. सारी गलती तो मेरी है..
गौतम - गलती की नहीं माँ.. करने वाला हूँ..
सुमन - कैसी गलती गौतम..
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गौतम ने एक हाथ सुमन की गर्दन के नीचे लेजाकर उसका कन्धा पकड़ लिया औऱ दूसरे हाथ से सुमन की गांड औऱ पूरी ताकत से एक धमाकेदार झटके के साथ अपने लंड को सुमन की चुत के अंदर पूरा जड़ तक घुसेड़ दिया जिससे सुमन की चुत में गौतम का पूरा लंड घुस गया औऱ खून की कुछ बुँदे चुत से निकल कर बह गई.. इसीके साथ सुमन के गले से इतनी जोर से चीखे निकली की खंडर से दूर दूर तक हवा में उसकी आवाज सुनाई दे जा रही थी.. गौतम के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी औऱ सुमन के चेहरे पर दर्द शिकायत औऱ रहम की उम्मीद करती आँखों के साथ दया के भाव.

सुमन गुस्से औऱ दर्द से चिल्लाते हुए गौतम के गाल पर थप्पड़ मारती हुई - गौतम मादरचोद..
गौतम सुमन के दोनों हाथ पकड़कर सुमन के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसका मुंह बंद करता हुआ - सुमन बेटाचोद..

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सुमन की चुत में गौतम का लंड बच्चेदानी तक घुसा हुआ था औऱ उसके दोनों हाथ गौतम ने अपने हाथों से पकड़कर सर के ऊपर कर दिए थे.. उसके होंठों पर भी गौतम ने अपने होंठ चिपका दिए थे.. सुमन की आँखों से आंसू की बुँदे निकल कर बह रही थी.. गौतम सुमन की आँखों में रहम औऱ शिकवे के उठते भाव देख सकता था..

गौतम अब प्यार से सुमन के होंठ चूमने लगा था औऱ मगर फिर भी सुमन गौतम का साथ नहीं दे रही थी औऱ गौतम के होंठो की क़ैद से बार बार अपना मुंह इधर उधर घुमाकर अपने होंठों को रिहा करवा रही थी.
गोतम अपनी माँ की इस हरकत पर मुस्कुराते हुए उसे देख कर बार बार उसके होंठों को अपने होंठों में भरकर चुमने की कोशिश कर रहा था औऱ बार बार सुमन गौतम के होंठों से अपने होंठ छुड़वा रही थी.. सुमन जब मुंह घूमती तो गौतम उसके गाल औऱ गर्दन पर चुम लेटा औऱ प्यार से जीभ निकालकर चाट लेटा..

सुमन को अब इस छेदखानी में हल्का मीठा सा मज़ा आने लगा था औऱ उसकी चुत में घुसा हुआ गौतम का शैतानी लड उसे पहले की तुलना में कम दर्द दे रहा था.. 10-15 मिनट तक ऐसा ही चलता रहा औऱ गौतम सुमन के होंठों के बीच की जंग जारी रही जिसमे बार बार गौतम को सुमन से हार का सामना करना पड़ रहा था.
अब गौतम मुस्कुराते हुए सुमन को देखकर उसे छेड़े जारहा था जिससे सुमन को भी अच्छा लगने लगा था..
गौतमप्यार से - इतने नखरे? लगता है मेरी माँ को बहुत गुस्सा आ रहा है मेरी ऊपर..
सुमन गौतम की बात पर अपने हाथ गौतम के हाथों से छुड़वा कर गौतम के चेहरे को पकड़ लेती है औऱ गौतम के होंठों को अपने होंठों में भरके चूमती हुई दांतो से इतना जोर से काटती है की गौतम की आह्ह निकल जाती है औऱ वो दर्द से चीख उठता है औऱ कहता है..
गौतम - तेरी माँ को चोदू.. खा जायेगी क्या? दर्द होता है ना..

सुमन वापस गौतम के होंठ चूमते हुए - सिर्फ तुझे ही दर्द होता है क्या.. रंडी की औलाद.. एक झटके में इतना बड़ा लंड घुसाया है मेरे दर्द नहीं होता क्या? मेरी चुत से खून निकाल दिया तूने..
गौतम चुत से निकला हुआ खून जो गौतम औऱ सुमन की कटी हुई साफ झांटो पर लंड औऱ चुत के मिलन के आसपास चिपचिप कर रहा था, उसे ऊँगली में लगाकर सुमन के मांग में भर देता है औऱ कहता है - इसी खून से मैं तेरी मांग भर रहा हूँ माँ.. आज से तू मेरी हुई.. मुझे ख़ुशी है मेरी दुल्हन कुंवारी निकली.. आज से तेरी चुत पर सिर्फ मेरा हक़ है सुमन..

सुमन का दर्द अब बहुत कम हो चूका था औऱ मीठा मीठा अहसास हुए होने लगा था.. पिछले 20 मिनट से गौतम का लंड उसकी चुत में पूरा घुसा हुआ था औऱ गौतम उसके ऊपर लेटा हुआ था..
सुमन गौतम होंठ दांतो से खींचकर चूमती हुई अपना मगलसूत्र उतारकर उसे देती हुई - मांग तो भर दी तूने मेरी शहजादे.. मगलसूत्र भी पहना दे..
गौतम मगलसूत्र पहनाता हुआ - शादी मुबारक हो माँ..
सुमन - अब बेटा.. इस हालत में मैं तेरे पैर छूकर तेरा आशीर्वाद कैसे लूँ?
गौतम - चुदाई के बाद पैर छू लेना माँ.. मैं नहीं रोकूंगा.. अब बताओ मुझे वो सब कुछ.. जो तेरे औऱ चाचा के बीच हुआ था.. एक भी बात मुझसे मत छुपाना..
सुमन - मेरी चुत में लंड घुसा के तू मुझसे मेरी चुदाई की कहानी सुनेगा? मुझे शर्म आएगी बेटा..
गौतम सुमन के निप्पल्स से छेड़खानी करता हुआ - पति पत्नी में शर्म अच्छी बात नहीं है माँ.. जो हुआ था वो साफ साफ औऱ खुलके कहो.. मैं सुनने को बेताब हूँ..
सुमन - एक पेग पीके बताती हूँ.. एक बार निकाल ले..
गौतम खाट से थोड़ा दूर रखी टेबल को हाथ बढाकर अपने करीब खींचता है औऱ सुमन से कहता है - लंड नहीं निकलेगा माँ.. पेग मैं यही से बना देता हूँ..
गौतम पेग बनाकर सुमन को पीला देता है.. सुमन पेग पीके एक सिगरेट अपने होंठों पर लगा लेती है औऱ लाइटर से सुलगाते हुए पहला लम्बा कश लेकर धुआँ छोड़ते हुए कहती है..
सुमन - तो सुन मेरे शहजादे.. मैं आज तुझे वो बात बता देती हूँ जो अबतक किसी को नहीं पता.. तेरे चाचा बृजमोहन को भी नहीं..
गौतम - क्या? चाचा को भी नहीं पता मतलब?
सुमन - हाँ गौतम.. तेरे चाचा भी नहीं जामते कि तू उनका बेटा है..
गौतम - ये कैसे मुमकिन है माँ.. चाचा को भी नहीं पता कि मैं उनका बेटा हूँ..
सुमन - हुआ ही कुछ ऐसा था गौतम.. पता नहीं इसमें किसका दोष था..
गौतम - मुझे साफ साफ पूरी कहानी शुरुआत से बताओ माँ.. क्या हुआ था?

सुमन सिगरेट का अगला कश लेकर - बात तेरे पैदा होने से 9 महीने पहले की है जब मेरी शादी को 3 साल हो चुके थे औऱ मुझे कोई बच्चा नहीं हुआ था.. सब मुझे बाँझ समझने लगे थे मगर मैं जानती थी कि कमी मुझमे नहीं है क्युकी ऋतू भी मेरी ही कोख से जन्मी थी.. लेकिन फिर भी मैं सबकी बातें सुनकर बाबाजी के पास एक औलाद की मन्नत लेकर आने लगी.. औऱ हर तरह एक बच्चा पैदा करने के जतन करने लगी.. फिर एक दिन वो हुआ जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी..

सवान के बाद भादो ने गाँव की उस धरती को बारिश की तेज़ तर्रार बूंदो से सराबोर कर रखा था शाम के वक़्त की बात थी जब जगमोहन तेरे दादा के साथ खेत की जुताई के लिए खाद लेने गया था औऱ बारिश का पानी भर जाने से आने जाने वाला रास्ता पानी के भराव से बंद हो चूका था औऱ जगमोहन तेरे दादाजी के साथ वही फंस गया था.. तेरी दादी पड़ोस के गाँव में तेरी दादी हेमा की मुंह बोली बहन माला के यहां उसके बेटे के लगन में गयी थी औऱ वो भी बारिश के करण वही फंस गई थी.. मानसी की तबियत खराब थी और वो गलती से मेरे कमरे में आकर सो गई थी..
मौसम की बरसात, ठंडी बहती हवा औऱ जोबन का बाईसवा साल.. मेरा अंग अंग नई तरंग से भरकर मुझे कामोतेजना में खींच रहा थ.. मैं उस वक़्त मेरे शरीर की आग बुझाना चाहती थी.. शाम से रात का समय हो चला था अमावस की रात में घर के कई कोनो में मैंने दिए जला के रख दिए थे.. लाइट का कोई नामो निशान नहीं था. मैं तेरे चाचा बृजमोहन के कमरे में दिया रखने गई थी कि तभी बाहर से मुझे किसी के आने की आहट सुनाई दी औऱ मैं इससे पहले की पीछे देख पाती किसीने मुझे पीछे से अपनी बाहों में भर लिया. मेरी हाथ से दिया नीचे गिरकर बुझ गया था औऱ अब कमरे में अंधेरा ही अंधेरा था.. अमावस की उस काली रात में अन्धकार इस तरह फैला हुआ था जैसे दिल्ली की हवाओ में ज़हर...

मैं शराब की आती बू से समझ गई थी की ये ब्रिजमोहन ही है.. उसने मुझे सीधा बिस्तर पर लिटा दिया औऱ मेरी साडी ऊपर करके पीछे से उसने सीधा लंड मेरी चुत में डाल दिया औऱ कुछ देर चोदा.. वो नशे में धुत मुझे मानसी समझकर मुझे चोदे जा रहा था औऱ मैं काम भावना से भरी हुई चुपचाप उससे चुदे जारही थी.. मैं झड़ गई थी औऱ कुछ पलों में वो भी झड़ गया था.. नशे की हालत में बृजमोहन पूरी तरह उतर हुआ था औऱ मुझे चोदने के बाद वो बिस्तर पर ही उल्टा मुंह करके सो गया था.. उसे अँधेरे में ये भी नहीं दिखा कि जिसे वो मानसी समझ रहा था वो मानसी नहीं थी..
चुदने के बाद मैं वहा से बाहर आ गयी जब मौसम ठीक हुआ औऱ तेरे दादा दादी औऱ जगमोहन घर आये तो सब कुछ पहले की तरह ही था.. दिन बीतने लगे औऱ कुछ समय बाद मुझे एक दिन पता चला कि मैं पेट से हूँ.. फिर तू पैदा हुआ औऱ उसके 2 साल बाद कुसुम.. कुसुम के पैदा होने के छः महीने बाद ही हमने मीलकर तेरी औऱ कुसुम कि शादी करवा दी.. मगर फिर बटवारे का विवाद खड़ा हो गया औऱ हमें यहां आना पड़ा..
सुमन आखिरी कश लेकर मुंह से धुआँ छोड़ती हुई - बस गौतम.. यही सब हुआ था..

गौतम सुमन की गांड पकड़कर बिना लंड चुत से निकाले सुमन को खाट के बीच में लाते हुए - टाँगे चौड़ी कर ले माँ.. मैं शुरु कर रहा हूँ..
सुमन टाँगे फैलाती हुई - धीरे धीरे करना बेटा.. अभी भी दर्द बाकी है..
गौतम लंड को आधा बाहर निकालकर वापस अंदर डाल देता है औऱ अब ऐसे ही सुमन को चोदने लगता है..
गौतम चोदते हुए - आज किसी रहम की उम्मीद मत कर मुझसे सुमन..
सुमन खुलकर मादक सिसकियाँ भरती हुई - अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्ह.... अह्ह्ह्ह... गौतम.. आह्ह.. अह्ह्ह्ह... बेटा धीरे... अह्ह्ह्ह... गौतम... अह्ह्ह्ह अह्ह्ह.. आराम से बेटा.. अह्ह्ह्ह.. दर्द हो रहा है.. अह्ह्ह्ह... गौतम... अह्ह्ह्ह... bbc-porn-gif-46
दिन के तीन बजे का समय था जब गौतम ने सुमन को खंडर के उस कमरे में चोदना शुरु किया औऱ खाट पर लेटाकर मिशनरी में सुमन की चुत की खुदाई शुरु कर दी.. गौतम पुरे जोश में धक्के पर धक्के मारता हूँ सुमन को चोद रहा था औऱ सुमन गौतम का लंड झेलती हुई किसी कुत्तिया की तरह उसके सीने में अपने नाख़ून गड़ाकर दहाड़े मार मार चिल्ला रही थी औऱ गौतम से आराम से चोदने की गुहार लगा रही थी मगर गौतम अपनी माँ को ऐसे चोद रहा जैसे वो कोई बाज़ारू रांड हो.. गौतम के मन कोई पछतावा औऱ दुख नहीं था वो आज सुमन की चुत पर अपने लंड की सील लगा देना चाहता था औऱ उसके लिए पूरी जोशओखरोश से सुमन को चोद रहा था..
मिशनरी पोज़ में गौतम के मारे हर एक झटके पर सुमन ऊपर से नीचे तक पत्ते की तरफ फड़फड़ाती हुई हिल रही थी औऱ चीखते हुए आह्ह कर रही थी....
गौतम चोदते हुए - औऱ जोर से चिल्ला माँ.. यहां तेरी कोई नहीं सुनने वाला..
सुमन चिल्लाते हुए - आराम से गौतम.. अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह... माँ हूँ तेरी.. अह्ह्ह्ह... धीरे... आराम से..
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गौतम सुमकी दोनों टांग अपने कंधे पर रखकर चुत में ताबड़तोड़ झटके मारते हुए - माँ के साथ दुल्हन भी तो है तू मेरी सुमन.. झटके तो ऐसे ही पड़ेगे तेरी चुत में मेरी जान.. जितना जोर से चिल्लाना है चिल्ला..
सुमन सिसकती हुई हाथ जोड़कर - अह्ह्ह्ह... गौतम.. भगवान के लिए.. आराम से बेटा.. मेरे वापस दर्द होने लगा है.. चुत में.. धीरे चोद मुझे.. धीरे चोद बेटा..
गौतम जब सुमन को हाथ जोड़ता देखता है तो वो सुमन के दोनों हाथ अपने हाथ में पकड़ लेता है औऱ जोर से पूरी रफ़्तार से झटके मारने लगता है जिससे सुमन कुतिया की तरह अह्ह्ह... अह्ह्ह.. करती हुई गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला है.. औऱ गौतम को देखकर रोने जैसा मुंह बनाकर चुदती है..
सुमन - अब नहीं गौतम.. अब नहीं.. बहुत दर्द हो रहा है. अह्ह्ह्ह... छोड़ मुझे.. आराम से.. गौतम...
गौतम हाथ छोड़कर सुमन की चुत से लंड निकाल लेता है औऱ सुमन की गांड पकड़ कर उसे पलटकर खाट पर अपने आगे घोड़ी बना लेता है औऱ मजबूती से उसकी कमर थाम कर लंड वापस चुत में घुसा देता है जिससे वापस सुमन की आह्ह निकल जाती है.. इस बार चुत औऱ लंड के मिलन की मधुर आवाज से कमरा औऱ खंडर का कुछ हिस्सा गूंजने लगता है..
सुमन - अह्ह्ह.. गौतम.. अह्ह्ह्ह...
गौतम सुमन की कमर पकड़कर चुदाई के मीठे झटके मारता हुआ - अब मज़ा आ रहा है ना माँ? अब तो दर्द नहीं हो रहा ना तेरी चुत में?
सुमन घोड़ी बनी हुई - अह्ह्ह.. बेटा.. आह्ह... अह्ह्ह्ह.. गौतम आराम से... अह्ह्ह.. आराम से.. ऐसे ही.. धीरे धीरे... अह्ह्ह्ह...
गौतम - अब तो नहीं रोकेगी ना माँ मुझे अपनी इस चुत की सवारी करने से
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सुमन - नहीं ग़ुगु... तू ऐसे ही प्यार से करता रह बेटा.. बहुत मज़ा आ रहा है.. सालों बाद आ जाकर मुझे ठंडक मिल रही है.. अह्ह्ह्ह...
गौतम सुमन के बाल अपनी मुट्ठी में भींचकर पीछे से झटके मारते हुए - बहुतो को चोदा माँ.. पर तेरे जैसी कोई नहीं.. परफेक्ट अरेबियन घोड़ी है तू.. तेरी सवारी करने में लंड को मज़ा आ रहा है..
सुमन - ऐसे ही चोद अपनी माँ को घोड़ी बनाके गौतम.. आह्ह.. चोद मुझे..
गौतम सुमन की बात सुनकर चोदने की स्पीड बढ़ा देता है औऱ रफ़्तार से सुमन की चुत मारने लगरा है..
सुमन - अह्ह्ह.. गौतम.. आराम से दर्द हो रहा है आह्ह.. बेटा.. धीरे...
गौतम सुमन की बात नहीं सुनता औऱ झटके मारता हुआ सुमन के बाल खींचकर मज़े से उसकी चुदाई करता है औऱ सुमन अह्ह्ह करती हुई जोर से चिल्लाने लगती है..
सुमन - गौतम दर्द हो रहा है... आह्ह... धीरे कर.. अह्ह्ह.. आराम से कर गौतम...
गौतम सुमन के बाल छोड़कर उसकी कमर में हाथ डालकर आगे से उसका पेट पकड़ लेता है औऱ उसे अपने ऊपर लेते हुए खुद खाट पर पीठ के बल लेट जाता है औऱ सुमन की चुत में नीचे से धक्के पर धक्के मारते हुए उसकी चुत के दाने को रगडकर मसलने लगता है..
सुमन पूरी कामुकता की नदी में बहती हुई - अह्ह्ह्ह.. बेटा.. उम्म्म्म... अह्ह्ह्ह.... ऐसे ही... अह्ह्ह्ह... चोद गौतम.. उम्म्म्म... अह्ह्ह्ह... उह्ह....
गौतम - मज़ा आ रहा है ना माँ?
सुमन - बहुत मज़ा आ रहा है बेटा.. ऐसे ही चोद अपनी माँ..
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गौतम सुमन के चुचे पर हाथ रखते हुए - माँ तेरे चुचे कितने तेज़ हिल रहे है..
सुमन - मेरे कहा है बेटा. अब सब तेरा है.. मेरा चुचा मेरी चुत औऱ मैं.. सब.. तेरी है...
गौतम रफ़्तार से झटके मारते हुए चुत के दाने को ऊँगली से तेज़ रगढ़ता है औऱ सुमन को चोदता है..
सुमन मादकता भरी सिस्कारी लेती हुई झड़ जाती है औऱ साथ में तेज़ तेज़ धार निकाल कर चुत से मूत भी देती है जिसमे गौतम का हाथ मूत से गिला हो जाता है औऱ उसका लंड बाहर निकल जाता है..

गौतम का लंड अब भी तनकर योद्धा की तरह खड़ा था औऱ सुमन झड़कर गोतम के सीने के ऊपर से हटकर खाट से उतरती हुई खड़ी होने की कोशिश में लड़खड़ा कर फर्श पर गिर जाती है औऱ खाट पकड़कर वापस खड़ी होने की कोशिश करने लगती है मगर बहुत जोर लगाने पर भी हिलती हुई टांगो से खड़ी होकर काँपती हुई खाट पर वापस बैठ जाती है.. चुदाई में लगी मेहनत औऱ बहे पसीने से शराब का नशा उतरकर पूरा हल्का हो चूका था..
सुमन गौतम को देखती हुई शिकायत भरी आवाज में - प्यार से भी तो कर सकता है तू..
गौतम शराब के दो लार्ज़ पेग बनाकर एक पेग सुमन को देदेता है औऱ दूसरा खुद पिने लगता है.. शराब का पेग ख़त्म होने के बाद गौतम फिर से सुमन को पकड़ लेटा है औऱ खड़ा होते हुए खाट से उतरकर सुमन को अपने आगे झुका लेता औऱ चुत में लंड घुसाकर हलके झटके मारता हुआ उसे चोदता हुआ खिड़की के पास ले आता है जहा से बाहर जंगल का नज़ारा दिख रहा था.. सुमन होने दोनों हाथ खींडकी की दिवार पर रख देती है औऱ पीछे से गौतम सुमन को वापस चोदने लगता है..
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सुमन - एक घंटा हो गया गौतम.. तूने मुझे चोद चोद कर थका दिया.. तेरा कब निकलेगा? अब तक मैं 2 बार झड़ चुकी हूँ.. तू कब झडेगा बेटा..
गौतम पीछे से झटके मारते हुए - इतनी भी क्या जल्दी है माँ.. कितना इंतजार किया है तेरी चुत का.. बहुत सब्र किया है मैंने.. चोदने दे आराम से मुझे...
सुमन - एक ही बार में चोद चोद कर मेरी चुत को ढीली कर देगा क्या?
गौतम सुमन को दोनों हाथ पकड़ कर लंड के झटके मारते हुए - ढीली हो गई तो टाइट करनी मुझे आती माँ.. तू चिंता मत कर.. मेरे लंड को तेरी चुत का नशा हो गया है.. अब ये किसी की बात नहीं सुनने वाला..
सुमन - अह्ह्ह्ह गौतम.. आराम से... अह्ह्ह्ह... उफ्फ्फ.. देख सामने पेड़ पर बन्दर हमें कैसे देख रहा है.. अह्ह्ह्ह...
गौतम सुमन को चोदते हुए बन्दर से चिल्लाकर कहता है - क्या देख रहा है साले.. माँ है मेरी... है ना सेक्सी? बिलकुल सनी लियॉन जैसी... देख साले मेरी माँ के चुचे पर ये टैटू.. है ना मस्त..
सुमन चुदते हुए हलकी सी हस्ती हुई - गौतम.. पागल हो गया क्या तू? बन्दर से क्या बात कर रहा है..
गौतम रफ़्तार में आता हुआ - जो तू सुन रही है माँ..
सुमन - अह्ह्ह्ह... आराम से गौतम.. दर्द होता है जब तू रफ़्तार से चोदता है.
गौतम सुमन के बाल खींचकर - आदत डाल ले माँ...
सुमन - अह्ह्ह.. रंडी की औलाद... धीरे.. आराम से..
गौतम सुमन को अपनी तरफ पलटकर गोद में उठाकर चोदता हुआ - तुझे रोज़ सपनो में इसी तरह गोद में उठा उठाके चोदता था माँ.. अब जाकर हुई है मेरी ख्वाहिश पूरी..
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सुमन अपने दोनों हाथ गौतम के गले में डालकर नीचे से गौतम के झटके खाती हुई - पहली बार ऐसा मज़ा आ रहा है बेटा... अह्ह्ह.. मैं तो फिर से झड़ने वाली लगती हूँ.. अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्ह.. उफ्फ्फ.. अह्ह्ह...
गौतम - पसंद आया ना माँ तुझे मेरा लंड?
सुमन - मैं तो दिवानी हो गई बेटा.. तेरे लंड की.. अब तो तुझे हरदम खुश रखूंगी.. अह्ह्ह्ह... गौतम.. आई love you.. मेरे शहजादे...
गौतम - आई love you too मेरी शहजादी...
सुमन - अह्ह्ह.. गौतम मेरा होने वाला है वापस...
गौतम सुमन को खाट पर पटककर चोदता हुआ - बस माँ.. मैं भी झड़ने वाला हूँ.. आज तेरी चुत को मैं अपने वीर्य से इतना भर दूंगा कि नो महीने बाड़ तू मेरा बच्चा पैदा करेगी..
सुमन - भर दे मेरे शहजादे.. डाल दे होना माल होनी माँ की चुत में.. झड़ जा..
गौतम गाना गाता हुआ - माँ तेरी जांघो का पसीना बन गया तेल चमेली का.. ओ माँ तेरी जांघो का पसीना बन गया तेल चमेली का..
सुमन चुदवाते हुये हस्ती हुई गाती है - बेटा चोद दे अपनी माँ को खाके गुड़ बरेली का.. ओ बेटा चोद दे अपनी माँ को खाके गुड़ बरेली का..
गौतम - माँ तेरी मोटी मोटी गांड तू रांड बन जा कोठा पे.. ओ माँ तेरी मोटी मोटी गांड तू रांड बन जा कोठा पे..
सुमन - बेटा रांड भी बन जाउंगी तू आजा चोदने कोठे पे.. ओ बेटा रांड भी बन जाउंगी तू आजा चोदने कोठे पे..
गौतम चुत में लंड धीरे धीरे हिलता हुआ - माँ तू मत दबवाये बोबा ब्लाउज हो जाएगा टाइट रे.. ओ माँ तू मत दबवाये बोबा ब्लाउज हो जाएगा टाइट रे..
सुमन झड़ते हुए - बेटा तू मुंह लगा के चूस दे बोबा कर दे ढीला रे.. ओ बेटा तू मुंह लगा के चूस दे बोबा कर दे ढीला रे..
गौतम झड़ते हुए - माँ तेरी चुत में लंड घुसाते ही निकली पिचकारी की धार.. ओ माँ तेरी चुत में लंड घुसाते ही निकली पिचकारी की धार..
सुमन गौतम के होंठ पकड़कर चूमती हुई - चोद के अपनी माँ को तू खुश है ना मेरी यार..
गौतम सुमन की चुत में लंड डाल के लेटा हुआ - बहुत खुश माँ..


दिन के पांच बज चुके थे.. गौतम औऱ सुमन अब खाट पर एक साथ ऊपर नीचे लेटे हुए एकदूसरे को देख रहे थे..
सुमन - शाम होने वाली है गौतम.. अब घर ले चल मुझे..
गौतम - इतनी जल्दी क्या है माँ.. अभी वक़्त है..
सुमन - खंडर है बेटा.. कोई आ गया तो अनर्थ हो जाएगा..
गौतम - कुछ नहीं होगा माँ.. कोई नहीं आने वाला.. औऱ ये बार बार अपनी चुत को कपडे से ढकना बंद कर.. खुला छोड़ दे इसे..
सुमन चुत सहलाती हुई - कितनी बेरहमी से चोदा है तूने मेरी चुत को.. फूलकर लाल हो गई है बेचारी.. मैं तेरी कितनी परवाह करती हूँ मगर तुझे जरा भी तरस नहीं आता मुझपर...
गौतम शराब डालकर पेग बनाते हुए - आता है पर क्या करू माँ.. तेरे बदन का नशा ऐसा है कि बहक जाता हूँ..
सुमन सिगरेट उठाकर सुलगाती हुई कश लेकर - अभी तो तूने मुझे डेढ़ घंटा चोदा है औऱ वापस तेरा लंड खड़ा हो गया..
गौतम पेग पीकर सुमन के होंठों पर लगी सिगरेट का एक कश लेकर सिगरेट फेंक देता है औऱ सुमन की टांग फिर से चौड़ी करके लंड घुसाने लगता है...-
सुमन अजीब ओ गरीब हाव भाव चेहरे पर लाकर - गौतम अब नहीं.. बहुत दर्द होगा.. अब नहीं.. दुखेगा.. बेटा... अह्ह्ह्ह... गौतम.. अह्ह्ह्ह..
गौतम लंड घुसाके चोदना शुरु करते हुए - उफ्फ्फ माँ तेरा ये नखरा.. कहीं मेरी जान ही ना लेले..
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सुमन - जान तो तू मेरी लेने पर तुला हुआ है.. मैंने हां क्या की तूने तो रंडी ही समझ लिया.. कैसे नॉनस्टॉप चोदे जा रहा है...
गौतम सुमन की कमर में एक हाथ डालकर उसे गोद में उठा लेता है औऱ खाट से खड़ा होता हुआ शराब की आधी खाली बोतल को दुसरे हाथ में उठाकर सुमन को लंड पर उछालकर चोदता हुआ शराब के घूंट लगाते हुए खंडर के उस कमरे से बाहर आ जाता है औऱ सीढ़ियों से ऊपर छत की ओर चला जाता है.. जहा खुले आसमान के नीचे गौतम नंगा अपनी नंगी माँ को अपने लंड पर उछाल उछाल कर चोदता हुआ शराब की बोतल से शराब के घूंट लगाता है..

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सुमन गौतम लंड पर उछलते हुए - अह्ह्ह्ह.. हे भगवान.. अह्ह्ह... उफ्फ्फ.. केसा बेटा पैदा किया है मैने.. मुझे रंडियो की तरह खुले में लंड पर उछालते हुए चोदकर शराब पी रहा है..
गौतम सुमन के सर पर बोतल से शराब ढ़ोलता हुआ बोतल खाली कर देता है ओर कहता है - माँ तूने मर्द पैदा किया है.. मर्द...
सुमन लंड पर उछलती हुई - हाँ हां.. अह्ह्ह.. मान गई तू मर्द है.. अह्ह्ह्ह.. अब चल यहां से..
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गौतम खाली बोतल फेंक कर सुमन को लंड पर से नीचे उतार देता है मगर सुमन खड़ी भी नहीं हो पाती ओर गौतम का सहारा लेकर नीचे बैठने लगती है मगर गौतम सुमन को पलट कर अपने आगे झुका लेटा है ओर सुमन की गांड के चुत पर थूक लगा कर अपने लंड सेट करते हुए कहता है..
गौतम नशे में - आखिरी बार गांड कब मरवाई थी तूने?
सुमन अपनी गांड पर लंड महसूस करके गौतम को गांड चोदने से रोकने ही वाली होती है की गौतम उसकी कमर पकड़कर गांड के छेद में थूक लगाकर लंड का इतना जोरदार झटका देता है की लंड आधा गांड में घुस जाता है ओर सुमन पूरी ताकत से चिल्लाती है - गौतम मादरचोद...
सुमन की चीख सुनकर गौतम हसते हुए गांड में धक्के पर धक्का देकर चोदते हुए चिल्लाता है - सुमन बेटाचोद...

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सुमन गांड मरवाते हुए - गौतम मेरी गांड के साथ खिलवाड़ मत कर...
गौतम नशे में - खिलवाड़ कहा कररहा हूँ माँ.. मैं चोद रहा हूँ.. गांड भी एक नम्बर है तेरी तो.. अह्ह्ह..
सुमन पूरी आवाज के साथ चिल्लाती हुई सिसकियाँ लेकर - अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह.. गौतम.. नहीं.. अह्ह्ह.. गौतम.. छोड़ दे मेरी गांड..
गौतम - चोद के छोड़ दूंगा माँ.. क्यों परेशान हो रही हो..
सुमन - बहुत दर्द हो रहा है बेटा..
गौतम गांड में झेटके पे झेटके मारता हुआ - माँ तू मेरी लिए नहीं सह सकती थोड़ा दर्द..
सुमन गांड मरवाती हुई - तू बहुत बड़ा मादरचोद है गौतम..
गौतम गांड मारता हुआ - तूने ही तो मादरचोद बनाया है माँ.. अब तुझे तेरा ये मादरचोद मुबारक हो..
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शाम के छः बजने वाले थे ओर खंडर की छत ओपर गौतम सुमन की अच्छे से गांड मारके उसे लंड चूसा रहा था..
सुमन लंड चुस्ती हुई - कब निकलेगा तेरा.. चुत ओर गांड के बाद अब मुंह भी दुखने लगा है.... मुझे अब डर भी लगने लगा है यहां..
गौतम - डरने की क्या बात है सुमन? तेरा बेटा है ना तेरे साथ.. तू बस मेरी लंड की सेवा कर बाकी सब भूल जा...
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सुमन लंड को गले तक लेकर जोर जोर से चुस्ती हुई गौतम को देखती है ओर उसके आंड भी हाथ से सहलाती है जिससे गौतम झड़ने के मूंड में आ जाता है ओर सुमन के मुंह से अपना लंड निकलकर हिलाते हुए सुमन के मुंह पर अपने वीर्य की धार मार कर झड़ जाता है..

अपनी माँ के मुंह पर लंड से वीर्य के गाढ़ी पिचकारी की धार मारने के बाद गौतम थोड़ा ठंडा हुआ ओर उसने सुमन की एक चूची पकड़कर उसे खड़ा करते हुए अपने कंधे पर उठा लिया और खंडर की छत से नशे में झूलते हुए कदमो की साथ वापस उसी कक्ष में आ गया जहा चुदाई का शुभारम्भ हुआ था..
गौतम ने सुमन को खाट पर पटक दिया और सुमन खाट पर आते ही आस पास बिखरे अपने कपड़ो को समेटकर बिना खाट से उतरे एक तरफ करने लगी..
गौतम नशे में चूर था उसने अपना लंड अपने हाथ में थाम लिया और खाट पर बैठकर कपडे समेटती हुई अपनी माँ की मुंह पर लंड से निशाना लगाकर मूतना शुरु कर दिया..
गौतम की मूत की धार सीधी सुमन की माथे की बिंदिया पर पड़ी फिर उसके चेहरे की बाकी हिस्सों पर.. सुमन ने जब देखा की उसका बेटा एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर उसके ऊपर मूत रहा है वो कपड़ो को एक गिला होने की डर से एक तरफ रख देती है और अपने चेहरे से होकर अपने बदन पर पडती मूत की धार को अनदेखा करके आगे बढ़ते हुए अपने हाथ से गौतम का लंड पकड़ कर झट से अपने मुंह में भर लेती है और उसका मूत पिने लगती है...

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गौतम अपनी माँ की मुंह में मूत देता है और सुमन उसका मूत आसानी पी जाती है और पिने की बाद उसके लंड को साफ करके उसे कपडे देते हुए पहनने को कहती है और खुद भी पहनने लगती है..

सुमन फ़िक्र से - तूने ब्लाउज फाड़ दिया अब क्या पहनू मैं?
गौतम नशे में - आजकल ब्लाउज के साथ साड़ी नहीं पहनते माँ.. ब्रा के साथ पहनते है.

गौतम जीन्स शर्ट पहनकर सुमन की पास खाट पर बैठ जाता है और सुमन खाट पर घुटने की बल खड़ी हुई साडी बाँधने लगती है खड़े होने पर उसके पैर काँप रहे थे और चलने में उसे दर्द महसूस हो रहा था सुमन बार बार गौतम को शिकायत भरी नज़रो से देख रही थी और गौतम नशे की सुरूर में अपनी ही दुनिया में खोया था उसे जो सुकून और संतुष्ट सुमन ने आज दे दी थी उसका परिणाम था की गौतम को अब और किसी की याद नहीं आ रही थी..

सुमन खाट से उतरकर चलने को हुई तो लड़खड़ा गई और गौतम की तरफ गिरते हुए उसे पकड़ लिया गौतम समझ चूका था कि सुमन अब कुछ दिनों तक ठीक से चल नहीं पाएगी उसने सुमन को अपनी गोद में उठा लिया और खंडर से बाहर कार में लाकर बैठा दिया.. एक पल की लिए उसे लगा कि कोई उसे देख रहा है मगर जब उसने पीछे देखा तो वहा कोई नहीं था.. गौतम भी सुमन के साथ कार में बैठ गया और अंधेरा होते होते दोनों खंडर से निकल कर घर की लिए चल दिये..

सुमन की चुत और गांड में भले ही दर्द अब तक हो रहा था मगर उसके दिल में एक सुकून और संतुस्टी से घुला हुआ मीठा मीठा अहसास भी था वो गौतम को देखकर मुस्कुराते जा रही थी अब उसे गौतम में बेटे के साथ साथ अपने हवस मिटाकर प्यार देने वाला मर्द भी नज़र आ रहा था..
गौतम ने कार चलाते हुए बार बार रोककर रास्ते में कई बार उल्टिया की हाईवे पर पहुंचते पहुंचते उसका नशा कम हो चूका था गौतम ने सुमन की साथ एक शिकंजी वाले की पास गाडी रोककर 2-3 गलास निम्बू पानी भी पिया जिससे उसका नशा शहर में पहुंचते पहुंचते बिलकुल हल्का हो चूका था...
सुमन ने चुत देकर गौतम का दिल चुरा लिया था वो रास्ते में जहा भी चाट पकोड़ी की दूकान देखती गौतम से कहकर गाडी रुकवाती और बिना गाडी से उतरे मज़े ले लेकर चाट खाती.. सुमन ने साड़ी से बदन इस तरह ढक लिया था कि किसीको उसके ब्लाउज न पहने का पता नहीं चल सकता था.. Cरास्ते में दोनों ने सुमन की पसंद की अलग अलग चाट खाई और एक दूसरे की साथ प्यार भरी बातें करते हुए खाना एन्जॉय किया..


Jabardast Maa chodi hai
 
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moms_bachha

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Update 52


गौतम जब झील में उतरा तो पलक झपकते ही उसकी आत्मा उसके पुराने जन्म के शरीर में पहुंच गई और वह आंख खोल कर अपने आप को देखने लगा..
गौतम ने देखा कि वह एक झील से बाहर पड़ा हुआ है उसके आसपास में बड़े-बड़े पेड़ पौधे थे और छोटे मोटे जानवर इधर-उधर घूम रहे थे..
झील के पानी के अक्स में उसने अपना चेहरा देखा तो मन में सोचते हुए बोला..
गौतम मन में - शकल सूरत कदकाठी तो उस शरीर की तरह इस शरीर की भी बहुत अच्छी है.. मतलब पिछले जन्म में मेरा दिमाग ही चुतिया था..
गौतम ने अपने शरीर पर कपड़े देखे तो वह चौंक गया कि उसकी शरीर पर केवल एक धोती लिपटी हुई थी और ऊपर बनियान जैसी एक चीज.. गौतम ने झील के आसपास देखने शुरू किया और उस पेड़ के पास आ गया जिसके नीचे उसने सारा सामान गाडा था..

झील के आसपास देखने पर उसे थोड़ी देर बाद एक पेड़ दिखाई दिया जो बिल्कुल उसी तरह का था जिस तरह का बड़े बाबा जी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह ने उसे बताया था..
गौतम ने उसी पेड़ के नीचे वहीं पर खोदना शुरू किया जहां पर उसने अपना सामान गाड़ा था.. थोड़ी देर खोदने के बाद उसे अपना वह बैग मिल गया जो वह गाड कर इस जन्म में आया था.. गौतम में सबसे पहले झील में कमर तक उतरकर नहाना शुरू किया और फिर बाहर आकर बेग से तोलिया निकाल कर अपना बदन पोंछा फिर कपड़े पहन कर बैक से कुछ चीज अपने पास रख ली और वहां से चला गया..

गौतम जब वहां से चला तो उस जंगल के रास्ते सपने में देखे हुए लग रहे थे और वह उसी रास्ते के आधार पर चला जा रहा था गौतम को अब काबिले का रास्ता भी पता था और वीरेंद्र सिंह की जागीर कुशलगढ़ में जाने का रास्ता भी पता था.. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह कहां पहले जाकर अपना काम करें..

गौतम ने सबसे पहले बंजारा काबिले में जाकर अपनी मां मुन्नी और मौसी शीला को छुड़ाने का निश्चय किया और कबीले की तरफ कदम बढ़ाते हुए चला गया..
कबीले से थोड़ा दूर एक पनघट पर जब उसे प्यास लगी तो वह पानी पीने के लिए रुक गया जहां पर कुछ महिला है और कुछ लड़कियां पानी भर रही थी..

गौतम उनसे - थोड़ा पानी मिलेगा?
पनघट पर पानी भर रही औरतें और लड़कियां गौतम और उसके पहनावे को देखकर हैरान थी और वह गौतम को ऐसे देख रही थी जैसे गौतम इस दुनिया का नहीं कहीं और का हो.. मगर उनमें से एक लड़की पानी का बर्तन हाथ में लिए पनघट से आगे बढ़ गई और गौतम को दे देते हुए बोली.

लड़की - ले पिले.. और तू कहा चला गया था? कब से तुझे ढूंढ रही हूँ.. मगर तू है कि मिलने का नाम ही नहीं लेता.. और ये क्या पहना है.. और ये सुगंध कैसी है तेरे बदन से? अब चुप क्यों खड़ा है बोल ना..
पीछे से दूसरी लड़की - अरे उर्मि.. तू बोलने दे तो कुछ बोले ना हाक़िम.. बेचारे को कब से सुना रही है.. फिर से पहले की तरफ रोकर चला ना जाए.. बहुत नाजुक और भोला है तेरा हाक़िम..
(उर्मि हाक़िम की मौसी शीला की बेटी थी जो 20 साल की थी और हाक़िम इस वक़्त 21 साल का था)
(अब से गौतम को हाक़िम कहा जाएगा)
हाक़िम पानी पी लेता है और बर्तन वापस देकर आगे जाने लगता है कि उर्मि उसका हाथ पकड़ लेती है उससे कहती है..
उर्मि - अरे अब कहा चले.. चुपचाप मेरे साथ चलो.. मौसी से मिलो चुपचाप.. बस्ती में तुम्हारे आने पर मनाही है.. मगर बस्ती के पीछे घाटी के छज्जर में तुम्हारी माँ रोज़ सांझ तक तुम्हारा रास्ता देखती है..
पीछे से लड़की - हाँ लेजा लेजा.. रास्ते में अपने हाक़िम से पिछली गलती की माफ़ी भी मांग लेना..
उर्मि शर्माती हुए - गलती कैसी? अपने हाक़िम को छुआ था मैंने किसी पराये को तो नहीं.. मगर ये लड़कियों जैसे रूठ के चला गया तो इसमें मेरा क्या दोष? कभी ना कभी तो मेरे साथ इसे सबकुछ करना ही पड़ेगा.. विवाह भी..
पीछे की लड़कि - हां हां.. पर हाक़िम माने तब ना.. कब से तुझसे पीछा छुड़वा रहा है.. पर तू है की इसके पीछे ही लगी हुई है..
हकीम सारी बातें सुन रहा था और उसे यह पता चल रहा था कि उसकी मौसी शीला की बेटी उर्मी उसके पीछे पड़ी हुई है और उससे शादी करना चाहती है और हाक़िम उससे दूर भाग रहा है..
उर्मि हाकिम का हाथ पकड़कर ले जाते हुए - मैं इसका पीछा छोडूंगी तब ना..

उर्मि हकीम का हाथ पकड़ कर पनघट से पगडंडी वाला रास्ता ले लेती है और हकीम के साथ चलती हुई उससे इधर-उधर की और जो मन में आता है वही बात करती हुई चलती रहती है हकीम सब सुनता है और उर्मि को देखता रहता है..
हकीम ने अब तक उर्मि को ठीक से नहीं देखा था मगर अब रास्ते पर चलते हुए वो उर्मि के नरमी और प्यार भरे लहज़े में की हुई बातें सुनते हुए उसका बदन की बनावट को आँखों में बसा रहा था..
उर्मि बेहद हसीन और जवा लड़की थी जिसके खूबसूरत चेहरे के नीचे सुराहीदार गर्दन और जवानी में भरे हुए छाती पर आम सामने देखते हुए छोटी सी चोली में क़ैद थे कमर ऐसी चिकनी की पनघट का पत्थर भी शर्मा जाए.. एक घुटने तक आता घाघरा जो उर्मि की कमर के नीचे एक डोरी की मदद से बंधा हुआ था.. हाक़िम ये सब देखकर कामुक हो रहा था और सोच रहा था की वो पिछले जन्म में कितना चुतिया था कि ऐसी दिलकश लड़की जो उसकी मौसी शीला की बेटी भी है उसके पीछे पड़ी हुई है और वो उससे दूर भाग रहा है..

उर्मि रास्ते में एक जगह ठहर कर - अरे.. तू कहा देख रहा है और क्या सोच रहा है? देख मेरा ध्यान भटका कर भाग मत जाना.. वरना अगली बार मिलेगा तो मैं बहुत सताऊंगी तुझे..
उर्मि ने इतनी बात अपने मुंह से कही थी कि हाक़िम ने आगे बढ़कर उसकी नंगी चिकनी कमर में हाथ डाल दिया और उर्मि को अपने सीने से चिपका कर उसके उर्मि के होंठों ओर अपने होंठ रख दिये..
उर्मि जैसे सन्न खड़ी रह गई.. उसे कोई उम्मीद नहीं थी कि हाक़िम ऐसा कर सकता है और हाक़िम मैं इतनी हिम्मत है कि वह आगे बढ़कर कोई पहल कर सकता है.. उर्मी के होठों पर हकीम के होंठ लगे हुए थे और हकीम धीरे-धीरे उर्मी के होठों से काम रस पी रहा था और उर्मि चुपचाप खड़ी हुई यह सब होता देख रही थी.. उसे ये विश्वास कर पाना मुश्किल था कि हकीम में अभी-अभी उसे अपनी बाहों में भर के उसके होठों पर अपने होंठ लगा दिए हैं और उसकी होंठों का रस पी रहा है..

हकीम एक चट्टान का सहारा लेकर उर्मि को उस पर सटा दिया और उसके होंठों को चूमते हुए अपना दूसरा हाथ उसकी छोटी सी चोली के ऊपर रखकर उसके उरोज को दबाने लगा..
उर्मि सोचने लगी थी कि आज तक हकीम शर्मा कर उसे दूर भागता था मगर अब उसे खुद शर्म आने लगी थी जिस तरह हाक़िम उसे चूम रहा था और उसके छाती पर हाथ फिराकर उसकी छतिया दबा रहा था इससे वह खुद शर्माने लगी थी..

हकीम समझ गया था कि उर्मि उसे पसंद करती है और उसे नहीं रोकने वाली.. उसने उर्मि के होंठों पर से अपने होंठ हटा लिए और उर्मि कि गर्दन और चेहरे पर चुम्बन करते हुए अपना सर उर्मि कि छाती पर लगा दिया और चोली के हुक खोलकर उर्मि के नये नये जवा होकर तने हुए चुचे को मुंह में भर लिया और उसके चुचक चूसने लगा...

उर्मि हाक़िम को ऐसा करते देखकर पागल सी हो गई और हाक़िम के बालों को पकड़ कर जोर से अपनी छाती में दबाने लगी और मादक सिस्कारी लेने लगी..
हाक़िम एक पत्थर बैठ गया और उर्मि को अपनी गोद में बैठाकर उसका एक हाथ अपनी गर्दन के पीछे रखकर उर्मि कि चूची मुंह में भरकर चूसने और चाटने लगा.. उर्मि प्यार और काम वासना के हाक़िम को देख रही थी और उसपर अपना प्यार लुटाने को तैयार हो रही थी..

उर्मि अपनी चूची चुसवाते हुए - आह्ह.. हाक़िम आज क्या हो गया है तुम्हे... आह्ह.. हाक़िम.. तुम कितने बदल गए हो.. पहले तो मुझसे कितना दूर भागते थे अब कितने पास आ गए हो.. तुम्हे क्या हो गया है हाक़िम.. अह्ह्ह...
हाक़िम ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उर्मि के घाघरे में डाल दिया और उसकी चुत से छेड़खानी करने लगा.. उर्मि कामुकता के शिखर पर पहुंच गई थी और हाक़िम की छेड़खानी से उसकी चुत जो पहले से गीली होकर बह रही थी उसने पानी छोड़ दिया और झड़ गई..

हाक़िम ने उर्मि को अपनी गोद में उठा लिया और उसे चूमते हुए चट्टान के पीछे खाली जगह ले जाकर घास में लेटा दिया और उसकी घघरी उठा कर चुत को नंगी करते हुए सहलाकर बोला..
हाक़िम - बहुत चिकनी चुत है तेरी.. उर्मि..
उर्मि - चुत क्या?
हाक़िम - कुछ नहीं..
यह कहते हुए हाक़िम उर्मि की चुत पर आ जाता है और जीभ निकाल कर एक बार जबान से उर्मि की चुत चाट लेता है जिससे उर्मि सिसक कर आह भरती है और कहती है..
उर्मि - छी.. क्या कर रहे हो हाक़िम.. मुख क्यों लगाते हो.. ये कोई मुंह लगाने वाला स्थान है..
हाक़िम - चुप रहो.. देखो मैं क्या करता हूँ.. ये कहते हुए हाक़िम में फिर से उर्मि की चुत पर मुंह लगा दिया और इस बार पूरी कामुकता से उर्मि की चुत चाट कर चुत का दाना सहलाने लगा.. जिससे उर्मि अलग ही दुनिया में पहुंच गई और सिसकियाँ लेते हुए गौतम को देखकर मदहोश होने लगी.. उसे फिर से झड़ने में समय नहीं लगा.. वो हाक़िम के मुंह में ही झड़ गई और फिर कुछ देर यूँ ही रहकर हाक़िम को देखती हुई मुस्कुराने लगी.. उसे अब बहुत शर्म आ रही थी..
हाक़िम ने अब अपनी जीन्स उनहुक करके नीचे सरका दी.. और अपने लंड को देखने लगा जो बिना जामुन खाये ही काफी तगड़ा और मोटा था उसने एक दो बार लंड हिला कर उर्मि के मुंह के पास ले गया और उसे कहा..
हाक़िम - अब तेरी बारी...
उर्मि - नहीं.. मुख में थोड़ी लेते है इसे..
हाक़िम - नहीं लोगी तो मैं जाता हूँ..
उर्मि - रुको.. क्या बालक जैसे करते हो.. लेती हूँ..

हाक़िम ने उर्मि के मुंह में अपना लंड दे दिया और उसे बिना दाँत लगाए चूसने को कहा और उर्मि ने हाक़िम के प्यार में पागल होकर बिलकुल वैसा ही किया..

कुछ देर लंड चूसाने के बाद हाक़िम ने उर्मि के मुंह से लंड निकाला और उर्मि की टांग चौड़ी करते हुए उसकी चुत में लंड सटा के एक झटके में पेल दिया..
उर्मि की चुत से खून और मुंह से चिंख एक साथ निकल गई हाक़िम जानता था की ऐसा होगा इसलिए उसे उर्मि के मुंह पर हाथ रख दिया था.. जिससे वो ज्यादा तेज़ नहीं चिल्ला पाई..
हाक़िम ने दो मिनट लंड को उसी तरह रहने दिया और फिर धीरे धीरे उर्मि को चोदने लगा..
उर्मि - अह्ह्ह.. हाक़िम.. ये क्या किया तुमने?
हाक़िम - प्यार किया है जानेमन..
उर्मि - पीड़ा हो रही है..
हाक़िम - बस.. थोड़ी देर में मज़ा भी आएगा..
उर्मि - मज़ा? वो क्या होता है?
हाक़िम - आनंद.. मेरी जान..
उर्मि - आह्ह.. तुम बहुत पीड़ा देते हो..
हाक़िम - नहीं करना तो बता दे उर्मि.. मैं चला जाता हूँ..
उर्मि हाक़िम को चूमकर - ऐसी बात ना करो हाक़िम.. पहला मिलन है हमारा.. मैं तो बता रही थी.. अह्ह्ह.. बहुत पीड़ा हुई जब तुमने..
हाक़िम - अंदर डाला.. यही ना उर्मि..

उर्मि शर्मा जाती है और धीमी धीमी आहे भरने लगती है वही हाक़िम अब रफ़्तार बढ़ा कर उर्मि की चुत चोदने लगता है और उर्मि की सिस्कारिया भी तेज़ होने लगती है वो हाक़िम के गले में हाथ डालकर उसे अपने आप से चिपका लेती है और चुदवाते हुए हाक़िम को चूमकर आहे भरने लगती है...

हाक़िम उर्मि को पलट देता है और कमर पकड़ कर घोड़ी बनाते हुए उसकी चुत में लंड वापस पेल देता है और ताबड़तोड़ झटके मारता हुआ उसे चोदने लगता है..

हाक़िम को बहुत मज़ा आ रहा था और उर्मि वापस झड़ने लगी थी और साथ में उसका मूत भी निकल गया था मगर हाक़िम उर्मि की चुत में लंड के झटके पर झटके मारता हुआ उसे चोद रहा था..

हाक़िम ने अब उर्मि के बाल पकड़कर उसकी घुड़सवारी शुरु कर दी और उर्मि चुत में लंड लेती हुई अब वापस सिसकने लगी..
हाक़िम ने उर्मि को वापस पीठ के बल लेटा कर मिशनरी में चोदने लगा और और अब उर्मि के साथ साथ वो भी उर्मि की चुत में झड़ गया..

उर्मि हाक़िम को प्यार भरी निगाहो से देखती हुई - हाक़िम.. तुम तो बड़े ही बुरे हो.. ऐसा कोई करता है किसी के साथ.. अब विवाह भी कर लो मुझसे..
हाक़िम जीन्स से एक गर्भ निरोधक गोली निकालकर उर्मि को देता हुआ..
हाक़िम - इसे खा ले उर्मि..
उर्मि - ये क्या है?
हाक़िम - ये नहीं खाएगी तो तेरा पेट फूल जाएगा और नो महीने बाद तू मेरे बच्चे की माँ बन जायेगी....
उर्मि - तो क्यों खाऊ? मैं चाहती हूँ तेरे बच्चे की माँ बनना..
हाक़िम - बिना विवाह के?
उर्मि - विवाह नहीं करोगे?
हाकीम - नहीं.. पहले उस डाकी की माँ चोदनी है.. साला मेरी माँ को रखैल बनाके रखेगा..
उर्मि - तुम क्या क्या बोल रहे हो कुछ समझ नहीं आता.
हाकीम - 300 साल बाद इस्तेमाल होने वाले शब्द है.. तु नहीं समझेगी.. चल खा ले चुपचाप..
उर्मि मुस्कुराते हुए गोली खा लेती है और कहती है - अब ऐसे ही रहोगे मेरे अंदर?
हाक़िम का लंड अब भी उर्मि की चुत में घुसा हुआ था..
हाक़िम - थोड़ी देर रहने दे उर्मि.. आराम करने दे बेचारे को..
उर्मि - कोई देखा हाक़िम.. यहां आगे से काबिले की कई लड़किया पानी लेकर गुजरती है..

उर्मि इतना बोल ही पाई थी की किसी ने पीछे से कहा..
और तेरी माँ भी इसी रास्ते जाती है कलमुही..

हाक़िम और उर्मि ने एक साथ आवाज की दिशा में देखा तो पाया की एक 40 साल की औरत जो उर्मि की तरह ही छोटा ब्लाउज पहनकर कमर से नीचे घुटनो तक लम्बा घाघरा पहना था.. सर पर एक छोटी से ओढ़ानी लिये बगल में पानी का घड़ा लेकर खड़ी थी.. बहुत खूबसूरत लग रही थी..

उर्मि ने औरत को देखकर कहा - माँ...
हाक़िम समझ गया कि ये उर्मि की माँ और उसकी मौसी शीला ही है..
वो उर्मि के ऊपर से खड़ा हुआ और उर्मि भी लड़खड़ा कर खड़ी होती हुई शीला की तरफ देखती हुई वहा से लचके खाकर जाने लगी.. तभी शीला बोली..
शीला - विवाह तक तो रुक जाती कलमुही.. कब से हाक़िम के पीछे पड़ी थी आज कर लिया तूने मुंह काला हाक़िम के साथ.. ये बेचारा भोलाभाला आ गया तेरे चक्कर में..
उर्मि जाते हुए - अरे माँ.. आज मैंने कुछ नहीं किया आज तो यही मुझे सता रहा है.. अब भोला नहीं रहा हाक़िम.. बदल गया है..
शीला - हाँ हाँ जानती हूँ दोनों को.. जा अब..
हाक़िम तो उर्मि के बाद शीला को देखे जा रहा था शीला भी देखने में कम सुन्दर नहीं थी.. शीला को देखकर हाक़िम को वापस कामुकता ने घेरना शुरु कर दिया.. उसका लंड जो अभी अभी उर्मि की चुत से निकला था वीर्य से सना हुआ था..

शीला की नज़र गौतम के लंड पर गई तो उसने घड़ा एक जगह रख दिया और हाक़िम के लंड को बिना किसी शर्म लिहाज और झिझक के मुस्कुराते हुए पकड़ते हुए अपना घाघरा हाथ में लेकर साफ करने लगी..

शीला का हाथ लगते ही लंड में वापस तनाव आने लगा और हाक़िम का लंड वापस पूरी औकात में अकड़कर आसमान की तरफ देखता हुआ खड़ा हो गया.. शीला ने जब ऐसा होता देखा तो वो मुस्कुराते हुए हाक़िम के चेहरे की तरफ देखी और लंड का पूरा साफ कर दिया..

शीला और हकीम एक दूसरे को देख रहे थे और दोनों के होठों पर एक अजीब सी मुस्कान तैर रही थी दोनों की आंखों ही आंखों में बातें हो रही थी जिसका अर्थ वह दोनों जानते थे कि क्या हो सकता है दोनों की बातें बिना होठों से कह भी एक दूसरे को समझ में आ रही थी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित होते जा रहे थे..

हाक़िम शीला को देखकर इतना कामुक हो गया था कि उसने अपना हाथ कब शीला के छाती पर रख कर उसके चुचे को पकड़ लिया था उसे खुद पता नहीं चला
शीला को भी इस बात की खबर तब तक नहीं लगी जब तक हकीम ने उसकी चूची को जोर से मसाला नहीं दिया..
शीला - अह्ह्ह.. हाक़िम..
हाक़िम शीला की कमर मे हाथ डालकर उसी जगह लेटा देता है जहा थोड़ी देर पहले उसकी बेटी उर्मि लेटी हुई थी..
शीला - हाक़िम छोड़.. क्या करता है... पहले तो बिन बताये कहीं भाग गया और आते ही पहले अपनी होने वाली घरवाली उर्मि के साथ और अब मेरे साथ ये सब करने लगा.. तेरी माँ सुनेगी तो गुस्सा करेंगी तेरे ऊपर..
हाक़िम अपना हाथ शीला की घाघरी में डालकर उसकी चुत मसलते हुए - छोडो ना मासी.. माँ से भी बात कर लूंगा..
शीला सिसकियाँ लेते हुए - अह्ह्ह..हाक़िम.. तू कितना बदल गया है रे.. अह्ह्ह्ह. छोडो.. मैं तेरी होने वाली घरवाली की माँ हूँ... तेरी माँ की बहन भी..
हाक़िम चुत में ऊँगली घुसा देता है और ऊँगली करते हुए कहता है..
हाक़िम - इसलिए कह रहा हूँ मासी.. चुप रहो.. थोड़ी देर की बात है सिर्फ.. क्यों इतने संकोच करती हूँ..
शीला अह्ह्ह करती हुई - तू तो बिलकुल ही बदल गया है हाक़िम.. पहले कितना शांत और भोला था.. छोटी बातों पर नाराज़ होता था हमसे रूठकर चला जाता था.. अब तो बिलकुल बदल गया है तू..
हाक़िम अपना लंड चुत पर रगढ़ते हुए - मासी भूल जाओ उस हाक़िम को.. अब नया हाक़िम आया है..
शीला - हाक़िम.. छोड़ जाने दे.. वरना कोई आ जाएगा.. वो डाकी बहुत बुरा है..
हाक़िम - डाकी की माँ तो मैं चोदुँगा मासी..
शीला - क्या..
हाक़िम चुत पर लंड सेट करते हुए - कुछ नहीं.. बड़ी मस्त है तुम्हारी मौसी..
ये कहते हुए बिना किसी संकोच के हाक़िम शीला की चुत में लंड पेल देता है और चुदाई का कार्यकर्म शुरु कर देता है..
शिला चुदवाते हुए - अह्ह्ह.. हाक़िम.. तेरी माँ लड़ेगी मुझसे..
हाकिम चोदता हुआ - पता चलेगा तब लड़ेगी ना मौसी.. वैसे भी डाकी की रखैल हो तुम दोनों बहने... रात को वो साला चोदता होगा तुम दोनों को..
शीला - क्या? चोदता..?
हाक़िम - अरे जो मैं अब कर रहा हूँ वो रात में करता होगा ना डाकी तेरे और माँ के साथ में..
शीला - अब क्या करें हाक़िम.. जो सरदर बनता है उसे हक़ होता है रखैल रखने का.. और नए सरदार को पुराने सरदार की रखैल मिल जाती है...
हाक़िम शीला का बोबा निकाल कर चूसते हुए - यानी मैं सरदार बन जाऊ तो तू और माँ मेरी रखैल बन जाओगी..
शीला - अह्ह्ह.. हाँ पर वो तो मुमकिम नहीं हाक़िम.. डाकी बहुत शक्ति शाली है..
हाक़िम पलटकर नीचे आ जाता है और शीला को अपने ऊपर ले लेता है और नीचे से झटके मारता हुआ कहता है - कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो मौसी.. मैं उसे हरा दूंगा और काबिले का नया सरदार बनुगा.. और तुझे और माँ को अपने साथ रखूँगा..
शीला - अह्ह्ह हाक़िम ऐसा सोचना भी मत डाकी तुझे मार डालेगा..
हाक़िम हसते हुए - मुझे तो बस तेरे जैसी कोई औरत ही मार सकती है मौसी अपनी चुत में घुसा के..
शीला झड़ती हुई - हाक़िम अब छोड़.. जाने दे वरना डाकी किसी को भेज देगा बुलाने...
हाक़िम शीला को वापस पतट देता है और चोदते हुए कहता है - भेजनें दे मौसी.. अब तू मेरी बनकर रहेंगी..
शीला - हाक़िम.. तुझे क्या हो गया है. तू पहले तो ऐसा नहीं था..
हाक़िम - सही कह रही हो.. मुझे पहले ही ऐसा हो जाना चाहिए था.. मैं तब कमजोर और डरपोक था मौसी.. अब नहीं.. उस डाकी को अब मैं बताऊंगा..
शीला - अब जाने दे हाक़िम.. नहीं वो डाकी मेरी जान ले लेगा..
हाक़िम शीला को घोड़ी बनाते हुए चोदने लगता है..
हाक़िम - तेरी गांड तो मस्त है मौसी.. सेक्सी बिलकुल..
शीला - अह्ह्ह्ह...
हाक़िम शीला के मुंह में लोडा डाल देता है और फिर थोड़ी देर में मुंह में ही झड़ जाता है..
शीला माल थूकती हुई - ये क्या कर डाला तूने हाक़िम.. कितना बुरा है ये..
हाक़िम - पहली बार मुंह में लिया है ना मौसी.. धीरे धीरे आदत पड़ जायेगी..

शीला अपने कपड़े ठीक करके घड़ा उठाते हुए - तेरी माँ छप्पर में तेरी राह देख रही है हाक़िम... जब से तू गया है वो तेरे बारे में पूछती है.. जाकर मिल ले.. और पता नहीं कैसे वस्त्र पहने है तूने.. अब जा..
गौतम जीन्स पहनकर - ठीक है मौसी.. पर कल इसी वक़्त यही आ जाना मिलने..
शीला मुस्कुराते हुए - उर्मि को भेज दूंगी.. कर लेना जो करना है उसके साथ.. तेरी होने वाली घरवाली है वो.. उसे सुखी रख हाक़िम.. मैं तो अब किस काम की...
हाक़िम शीला की कमर पकड़कर होंठ चूमते हुए - तू भी आना उर्मि के साथ मौसी.. कुछ पूछना है मुझे..
शीला मुस्कुराते हुए - ठीक है हाक़िम. अब जाने दे..
शीला लचकती हुई वहा से चली जाती है और वापस झील के पास उस पेड़ के नीचे आ जाता है.. खाना निकाल कर खाने लगता है साथ वो जामुन भी खा लेता है जो बाबा के कहने पर साथ लाया था.. उसके बाद सामान से सिगरेट का पैकेट लाइटर लेकर और शराब की बोतल से 3-4 पेग पीकर वापस चला जाता है..

हाक़िम.. तू कहा था.. पता है कितना ढूंढा तुझे?
सब कह रहे थे मंगरू हाक़िम कहीं चला गया है तुझे नहीं मिलेगा पर मैंने मेरे मित्र और मेरी बहन उर्मि के होने वाले पति को ढूंढ ही लिया..
हाक़िम नशे में - मंगरू..
मंगरू - हाक़िम ये क्या पहना हुआ है तूने और इस तरह क्यों मुझे देख रहा है..
हाक़िम नशे में भी समझ गया था कि ये मंगरू उसका दोस्त होगा और काबिले में रहता होगा..
हाक़िम - मंगरू.. अब क्या बताऊ.. तू मुझे छप्पर तक ले चल..
मंगरू - हाँ चल.. तेरी माँ सबसे तेरे बारे में पूछती रहती है..
हाक़िम नशे में मंगरू के साथ चल पड़ता है और मंगरू से काबिले के बारे में बहुत सी बातें पूछने लगता है..
मंगरू - हाक़िम.. डाकी ने सबको दुखी किया हुआ है.. काबिले के बहुत से लोग उसे मारना चाहते है मगर उसकी ताक़त इतनी है कि कोई उसे लड़ने की चुनौती नहीं दे सकता.. और उसके साथी भी बहुत है..
हाक़िम - तू चिंता ना कर मंगरू.. मैं डाकी को जल्द हरा कर सरदार बन जाऊँगा..
मंगरू - हाक़िम.. तू? तू कैसे हरायेगा डाकी को?
हाक़िम - मंगरू.. वो सब मुझ पर छोड़ दे.. मैं कल उसे लड़ने की चुनौती दूंगा.. और उसे हरा दूंगा.. फिर सब ठीक हो जाएगा..
मंगरू - नहीं हाक़िम.. वो बहुत ताक़तवर है.. उसने हमारे नाना लाखा को आसानी से हरा कर मार डाला था.. और तेरी मेरी माँ के साथ..
हाक़िम - जानता हूँ मंगरू.. मगर अब उसे सबका उत्तर देना होगा.. मैं माँ को उसकी रखैल नहीं बने रहने दूंगा..
मंगरू - तू क्या कह रहा है हाक़िम.. ऐसा करना असंभव है वो इतना लम्बा चौड़ा और बाहुबली है..
हाक़िम - तू मुझे नहीं जानता मंगरू.. मैं अब पहले वाला डरपोक और कमजोर हाक़िम नहीं हूँ.. मैं कल उसे ललकार कर लड़ने के लिए बुलाऊंगा..
मंगरू - एक बार फिर विचार कर हाक़िम.. ये साधारण काम नहीं है.. ले छप्पर आ गया.. तू रुक यही.. मैं काबिले में जाकर तेरी माँ मम्मी मुन्नी मौसी को बताता हूँ..
मंगरू हाक़िम को काबिले से कुछ दूर जंगल में एक घाटी के पास समतल जगह पर बने छप्पर जहा जागीरदार की सेना गुजरते हुए विश्राम करती है वहा छोड़कर काबिले की तरफ चला जाता है..
हाक़िम छप्पर के नीचे एक बड़े से पत्थर पर बैठकर नशे में अपनी गर्दन इधर उधर हिलाकर आस पास के माहौल और वातावरण को देखता है फिर कुछ देर बाद एक सिगरेट जलाकर कश लेने लगता है..

हाक़िम सिगरेट के एक दो कश लेता है की उसे सामने एक बेहद खूबसूरत हसीन और मदमस्त जोबन से भरी हुई औरत भागते हुए उसकी और आती हुई दिखाई देती है जिसके भागने से उसके चुचे ऊपर नीचे ऐसे हिल रहे थे जैसे तेज़ हवा में घर की छत पर सुखाये हुए कपड़े हिलते है.. औरत की कमर दूधिया गोरी और पतली थी मगर कमर के ऊपर और नीचे भरीपन था जो उसकी छाती पर और गांड पर साथ दिख रहा था.. औरत का चेहरा अभी साफ साफ नहीं दिखा था और हाक़िम सिगरेट के कश लेते हुए अपने लंड में आ रही अकड़न को महसूस करता हुआ पत्थर से खड़ा हो गया था..
भागने से औरत के सर की ओढ़ानी जमीन पर गिर गई थी और उसके बदन पर एक छोटा सा ब्लाउज जिसमे उसके आधे चुचे उछल कर बाहर आ रहे थे और कमर से घुटनो तक लम्बा घाघरा था.. औरत को देखकर ऐसा लगता था जैसे कामदेवी दे अवतार लिया हो..
हाक़िम का लंड अब खड़ा हो चूका था जिसे जीन्स ने क़ैद किया हुआ था..

हाक़िम सिगरेट पीते हुए उस औरत की कमर देखकर तय कर लिया था कि इसे मन भरके चोदे बिना वो वापस नहीं जाएगा..

औरत जब उसके करीब आई तो हाक़िम ने सिगरेट का आखिरी कश लेकर सिगरेट फेंक दी और औरत के चेहरे को देखा जो चन्द्रमा कि तरह प्रकाशित और सुन्दर था..
औरत भागती हुई आकर सीधे हाकिम के गले से लग गई और बोली..
औरत - कहा चला गया था हाक़िम अपनी माँ को छोड़कर.. मैं जानती हूँ तू नहीं चाहता कि मैं डाकी की दासी बनकर रहू पर मैं कर भी क्या सकती हूँ.. कहा जा सकती हूँ.. कोई और ठोर ठिकाना भी तो नहीं है मेरे पास.. तेरे नाना को मार कर वो डाकी सरदार बन बैठा है और अब काबिले पर मनमानी कर रहा है..
हाक़िम अपनी माँ मुन्नी के बदन को बाहों में भरके उसके बदन का मुआयना कर रहा था और उसके कानो में मुन्नी की बाते कम ही जा रही थी.. हाक़िम ने अपनी माँ की चिकनी कमर को ऐसे थाम रखा था जैसे वो उसे अपने अंदर समा लेना चाहता हो..
मुन्नी उसी तरह गले लगी हुई वापस बोली - तू वापस काबिले में आजा हाक़िम मैं डाकी से किसी तरह तुझे काबिले में रहने की स्वीकृति दिला दूंगी..
हाक़िम नशे में था और उसके बाहों में बेहद हसीन औरत थी जो उसकी माँ थी मगर फिर भी हाक़िम से रहा ना गया और उसने मुन्नी के चेहरे को एक हाथ से थामकर उसके गुलाब सुर्ख होंठों को बिना मुन्नी की इज़ाज़त के अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया और बड़े प्यार से चूमने लगा..

हाक़िम को ऐसा लग रहा था जैसे कोई जन्नत की हूर उसे मिल गई है और हाक़िम अपनी माँ मुन्नी के लबों का रस पिने लगा जिसमे मुन्नी के मुंह की लार हाक़िम के मुंह की लार से मिलकर नया एक स्वाद दोनों के मुख में घोल रही थी.. हाक़िम बार बार मुन्नी के होंठों को खींचता हुआ चुम रहा था और निचले होंठ को दांतो से खींचते हुए ऐसे चुम रहा था जैसे आमरस पी रहा हो..
हाक़िम का हाथ मुन्नी की गर्दन पर से नीचे आ गया और मुन्नी की चोली में क़ैद उसके उन्नत विकसित सुडोल और उठे हुए उरोजो पर चला गया.. हाक़िम में मुन्नी की छाती के उभार को मसलते हुए उसके चुचक को पकड़ लिया ऊँगली से छेड़खानी करते मरोड़ने लगा..
मुन्नी जब भागते हुए आई थी उसकी आँखों में आंसू थे मगर हाक़िम जो अभी अभी उसके साथ छेड़खानी कर रहा था उससे उसके मन की पीड़ा और आँखों को आंसू विलुप्त हो गए और मुन्नी आश्चर्य और संकोच में पड़ गई.. उसके बेटा हाक़िम उसे बाहों में लिए चुम रहा था और बिना किसी शर्म लिहाज़ और हिचक के उसके छाती के मादक उभार को अपने हाथ से मथ रहा था..

मुन्नी आश्चर्य के साथ भ्रम में थी की उसे इस वक़्त क्या करना चाहिए और क्या नहीं.. वो इतने दिनों से अपने बेटे हाक़िम के जाने से अफ़सोस और पीड़ा में थी और जब उससे मिली तो हाक़िम की हरकतो से आश्चर्यचकित..
हाक़िम ने बिना चुंबन तोड़े अपना हाथ मुन्नी के चूची के दाने से नीचे लेजाकर मुन्नी के घाघरे में डाल दिया और उसकी चुत पर उगे हुए लम्बे लम्बे बालों से होते हुए उसकी चुत पर आ पंहुचा.. चुत पर जैसे ही हाक़िम ने हाथ लगाया मुन्नी ने चुम्बन तोड़कर हाक़िम को थोड़ा पीछे धकेला और एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया.

मुन्नी - ये क्या कर रहा है तू.. माँ हूँ मैं तेरी और तू मेरे ही साथ.... मैं जानती हूँ तू मुझसे रूठा है ओर ऐसा करेगा अपनी माँ के साथ.. मदिरा का नशा है ना तेरे ऊपर? तू सही गलत नहीं समझ पा रहा इस समय.. कैसे वस्त्र पहनें है तूने.. बहरूपिया सा लगता है.. चल मेरे साथ..
हाक़िम अपना गाल पकड़ कर पत्थर पर बैठता हुआ - मुझे कहीं नहीं जाना..
मुन्नी हाक़िम का हाथ पकड़ कर - मैं कहती हूँ हाक़िम चल मेरे साथ.. मैं डाकी से क्षमा मागकर तुझे काबिले में रहने की अभी स्वीकृति दिला दूंगी..
हाक़िम मुन्नी से हाथ छुड़वाते हुए - वहा जाकर क्या करूँगा मैं माँ.. तुझे उस डाकी के साथ देखूंगा? जब वो तेरे इस बदन को छुएगा, निर्वस्त्र करेगा मैं कैसे खुदको वहा रोक पाऊंगा?
मुन्नी हाक़िम को समझाते हुए - मैं उसकी दासी हूँ हाक़िम.. वो काबिले का सरदार.. मुझे उसकी हर बात माननी पड़ेगी वरना वो कुछ भी कर सकता है..
हाक़िम मुन्नी की कमर में हाथ डालकर उसे सीने से लगता हुआ - अगर ऐसी बात है तो कल मैं उस डाकी को लड़ने के लिए ललकारूँगा और उसे हराकर मैं काबिले का सरदार बनुगा.. फिर माँ.. तुझे मेरी हर बात माननी पड़ेगी.. जैसे तू डाकी को खुश रखती है तुझे मुझे भी खुश रखना पड़ेगा..
मुन्नी हाक़िम का हाथ अपनी चुत पर रखकर - अगर तू मुझे पाना चाहता है हाक़िम.. तो यही पर जो करना है कर ले.. मगर डाकी से लड़ने की बात भूल जा.. वो बहुत ख़तरनाक है.. हाक़िम तू उसे नहीं हरा पायेगा.. मैं तुझे नहीं खोना चाहती..
हाक़िम मुन्नी की चुत मुट्ठी में पकड़कर मसलते हुए - अब तो इसका स्वाद सरदार बनने के बाद ही लूंगा माँ.. अपनी जेब से एक गोली निकालकर.. माँ कल जब वो मुझसे लड़ने आये तब तू ये किसी चीज में मिलाकर डाकी को खिला देना.. बस..
मुन्नी अपनी चुत से हाक़िम का हाथ हटाते हुए - ये क्या है?
हाकीम - अचेत होने की चीज़ है.. जब वो इसे खा लेगा तो पूरा नशे में हो जाएगा और अपने होश गवाकर अचेत होकर मुझसे लड़ेगा.. फिर मैं उसे आसानी से हरा दूंगा.
मुन्नी - मैंने कहा ना हाक़िम तू डाकी को नहीं ललकारेगा.. उसके साथ और भी लोग है जो बहुत खतरनाक है.. अपना इरादा बदल दे.. मैं तुझे ऐसा नहीं करने दूंगी..
मंगरू आते हुए - मौसी ओढ़नी..
मुन्नी ओढ़नी लेकर सर पर रखती हुई - मंगरू समझा हाक़िम को.. कैसे उल्टी सीधी बात कर रहा है.. अचानक से वीर योद्धा बनने चला है..
मंगरू - मौसी मुझसे भी ऐसी ही बात कर रहा था.. आप जाओ काबिले में.. मैं हाक़िम को अपने साथ ले जाता हूँ.. कल तक इसका मन बदल जाएगा..
मुन्नी जाते हुए - हाक़िम.. तू डाकी से नहीं लड़ेगा..
मंगरू - चल हाक़िम..
हाक़िम - कहा ले जाएगा मंगरू?
मंगरू - हाक़िम काबिले में हमारी तरफ पहरा नहीं होता.. तू मेरे साथ चल.. रात को मेरे साथ ठहर जाना.. वहा और कोई नहीं होगा तो किसी को ये भी खबर नहीं लगेगी कि तू मेरे साथ है..
हाक़िम - ठीक है मंगरू.. आज रात तेरे झपडे में रहता हूँ पर तुझे मेरा एक काम करना होगा..
मंगरू - क्या हाक़िम?
हाक़िम - उर्मि को जाकर बता दे की आज रात मैं तेरे साथ हूँ..
मंगरू - पहले तो तू उससे कितना दूर दूर और बचके रहता था अब खुद से बुला रहा है..
हाक़िम - पिछले जन्म में चुतिया था ना..
मंगरू - क्या?
हाक़िम - कुछ नहीं.. चल.. बता.. कहाँ है तेरा झोपड़ा..
मंगरू - पर हाक़िम.. अगर तू उर्मि के साथ झोपड़े में रहेगा तो मैं कहा जाऊंगा?
हाक़िम - इतना छोटा झोपड़ा है तेरा?
मंगरू - नहीं.. पर उर्मि मेरी बहन है हाक़िम..
हाक़िम - मंगरू.. आज रात की बात है.. और उर्मि से मेरा विवाह भी होने वाला तो इसमें गलत क्या है..
मंगरू - ठीक है हाक़िम.. मैं आज झोपड़े के बाहर रह लूंगा..
हाक़िम - मंगरू तेरी माँ और मेरी माँ दोनों को उस डाकी से कल मैं आजाद करवा दूंगा..
मंगरू - ऐसा सच में हो सकता है हाक़िम?
हाक़िम - हाँ.. मंगरू..
मंगरू - हाक़िम यहाँ से थोड़ा छुपके चल.. मेरा झोपड़ा आने वाला है..

मंगरू हाक़िम को अपने झोपड़े में ले आता है जहा कुछ भी नहीं था एक तार पर कुछ कपड़े थे और एक तरफ कुछ बिछा के सोने का सामान..
मंगरू हाक़िम को झोपड़े में छोड़कर उर्मि के पास चला जाता है और उसे हाक़िम के बारे में बात करता है उर्मि अपने साथ कुछ लेकर मंगरू के साथ लचकते हुए उसके झोपड़े में आ जाती है और हाक़िम के गले लग जाती है..

उर्मि - पहले इतना पीछे पड़ी रहती थी तब पलट के भी नहीं देखा और अब मेरे बिना रह भी नहीं पा रहे..
हाक़िम - काबिले की सरदारनी होने वाली है तू.. बस यही बताने बुलाया था..
उर्मि - छोडो इस बात को.. एक दम से सरदार बनने का भुत आ गया है तुम पर.. चलो में भोजन लाई हूँ..
हाक़िम - अपने हाथों से खिलाओगी तो खाऊंगा..
उर्मि जैसे तुम बोलो...
मंगरू झोपड़े से बाहर चला जाता है..

उर्मि झोपड़े में कुछ बिछा कर उसके हाक़िम के साथ बैठ जाती है और उसे अपने हाथ से भोजन बनाकर खिलाने लगती है और उसीके साथ खुद भी भोजन करती है..
हाक़िम और उर्मि भोजन करने के पश्चात् उसी जगह एक दूसरे से लिपटकर लेट जाते है..
हाक़िम उर्मि को अपने ऊपर खींचकर चूमने लगता है..
उर्मि - अरे अरे मुख से मुख मिलाकर ऐसे चुम्बन करते हो जैसे मैं कहीं भाग जाउंगी.. मुझे दम तो लेने दो..
हाक़िम उर्मि की चोली खोलते हुए - तू है इतनी मस्त यार क्या करू..
उर्मि - तुम ना क्या क्या बोल जाते हो समझ आता ही नहीं है..
हाक़िम - उस डाकी ने तेरे साथ तो कुछ नहीं किया ना उर्मि..
उर्मि - मैं तो केवल तेरी हूँ हाक़िम.. तेरे अलावा कोई और छुएगा तो उसकी जान ले लुंगी.
हाक़िम घाघरा खोलते हुए उसे नीचे ले लेता है और जीन्स खोलकर उसकी चुत में लंड घुसा देता है..
उर्मि - अह्ह्ह.. हाक़िम तुम्हारा पहले से बड़ा लग रहा है..
हाक़िम - आंनद आ रहा है ना तुम्हे मेरी उर्मि..
उर्मि - हाँ.. हाक़िम बहुत आंनद आ रहा है.. पर बहुत दर्द भी होने लगा है.. आह्ह
हाक़िम उर्मि को घोड़ी बना लेता है चोदने लगता है..
सारी रात उर्मि और हाक़िम दोनों एक दूसरे को प्रेम करते है और सुबह तक साथ ही बिना कपड़ो के लिपटे रहते है..

हकीम सुबह मंगरु के झोपड़े से निकलकर बाहर आ जाता है और जंगल की तरफ चला जाता है वहां पर वह सोचने लगता है कि कैसे सरदार डकी को हराकर वह कबीले का सरदार बन सकता है उसने अपने मन में तय कर लिया था कि वह किसी भी तरह डकी को हराकर कबीले का सरदार बनेगा और अपनी मां और मौसी को उसके चंगुल से आजाद करवा कर अपने साथ रखेंगी और कबीर का सरदार बनकर दोनों को अपने पास रखेगी उसके बाद वह उर्मि से विवाह करेगा और उर्मी को कबीले की सरदारनी बनाएगा..

हातिम जानता था कि उसके पास एक महीने का समय है और एक महीने में उसे दिया गया काम करके वापस भी जाना है लेकिन वह इतना जल्दी वीरेंद्र सिंह की जागीर में जाकर बैरागी से नहीं मिलना चाहता था और वह चाहता था कि जब अगली अमावस्या आने का समय हो उससे पहले ही वह बैरागी से मिलकर जड़ी बूटी ले ले और वहां से चला जाए..

मगर उससे पहले वह चाहता था कि काबिले की दशा बदल दे और डाकी को हराकर नया शासन स्थापित करें जिससे कबीले के सभी लोग फिर से सुख शांति से अपना जीवन यापन करें और कबीले में सुख शांति और संपन्निता बनी रहे वह अपने नाना लक्खा की तरह काबिले को फिर से इस संपन्नता और सुख से भरा हुआ देखना चाहता था जैसे पहले था..

हाकीम रातभर उर्मी के साथ रहने से उसके लिए भी मन में प्रेम जागने लगा था और वह चाहता था की उर्मी के साथ हो विवाह करके प्रेम से रह सके और साथ ही अपनी मां मुन्नी और मौसी शीला को भी अपने साथ रख सके.. आज उसने निश्चय कर लिया था कि वह डाकी को ललकार देगा और उसे लड़कर किसी भी तरह से हरा देगा चाहे उसके लिए उसे बंदूक का सहारा लेना पड़े या फिर कोई और पेत्तरा इस्तेमाल करना पड़े उसने सोच लिया था कि डॉगी को आज हराकर उसे जान से मार देगा और उसको उसके किए की सारी सजा देगा..

मगर यह सब करने से पहले उसने आज जागीर जाकर जागीर में हो रही गतिविधियों को जाने का और यह भी तय करेगा कि उसे कब और कैसे बैरागी से मिलना है और कब उस जड़ी बूटी हासिल करनी है जिससे वह अपना दिया गया काम आसानी से पूरा कर सकेगा और वापस जब अपनी दुनिया में जाएगा या अगले जन्म में जाएगा तो वह जड़ी बूटी लेकर ही जाएगा.. हकीम जंगल के मुहाने पर था और अब वह जागीर की तरफ चल रहा था जहां उसे महल में प्रवेश करने से पहले ही दरबारों ने रोक दिया और महल के भीतर प्रवेश करने नहीं दिया जिससे हकीम बिन महल की गतिविधियां जाने ही वहां से लौट आया मगर उसने रास्ते में किसी सैनिक से इस बारे में बात करके यह जान लिया था कि अभी बैरागी मैं कोई भी इस प्रकार की जड़ी बूटी नहीं बनाई है पर वीरेंद्र सिंह ने सिपाही पश्चिम की तरफ भेजे है जिससे जड़ी बूटी का निर्माण हो सके इसलिए हाक़िम बेफिक्र होकर वापस आ गया और पहले कबीले का सरदार बनने का निश्चय किया..

जंगल के मुहाने पर नदी के किनारे बसी हुई बस्ती जो बंजारा उसे भरी हुई थी और उनके झोपड़ी और बीच में सरदार के बड़े से आलीशान तंबू से सजी हुई थी वहां पर कई लोग अपने-अपने काम में लगे हुए थे और डाकी जो भोगविलास में व्यस्त था उसने अपने सामने नाच रही महिलाओं को देखते हुए मदिरापान करना शुरू कर दिया था.. डाकी के कई विश्वसनीय साथी उसके साथ थे जो डाकी को संभालते थे और सुरक्षित रखते थे इसी के साथ में वह लोग कबीले के दूसरे लोगों पर अत्याचार भी करते थे जिससे पूरा कबीला परेशान था और बस्ती के सभी लोग अपनी अपनी तरफ से डाकी से डर कर छुपाते रहते थे और सोचते थे कि वह कभी डकी से ना मिले और डाकी की नजर से बचे रहे..

जहां पर कल हकीम ने शीला और उर्मी से बात की थी वहीं पर आज फिर से शीला उपस्थित होकर हकीम के सामने खड़ी थी और हकीम उसके सामने बैठा हुआ उसे देखे जा रहा था और कबीले की रीति और नीति जानने के लिए आतुर था.. वह शीला से नए सरदार बनने के लिए उसे क्या करना होगा और किस तरह उसे सरदार को ललकार ना होगा और इसी के साथ में उसे किस तरह द्वंद युद्ध किया जाएगा और उसमें क्या-क्या हो सकता है और क्या-क्या कार्य किए जाएंगे इससे अवगत होने के लिए शीला से बात कर रहा था..

शीला बड़ी सी चट्टान के पीछे घास में पीठ के बल लेटी थी और हाक़िम उसकी चुत में लंड घुसाये उसके ऊपर लेटा हुआ उसे धीरे धीरे चोदता हुए बात कर रहा था.

हाक़िम - और बता मौसी.. मेरे ललकारने के बाद डाकी क्या करेगा?
शीला - हाक़िम तू डाकी को ललकारेगा तो उसके कुछ देर बाद काबिले के मध्य में तेरा और उसका द्वन्द युद्ध होगा जिसमे तुम दोनों एक दूसरे के साथ कोई एक हथियार लेकर लड़ोगे.. और एक दूसरे को हारने के लिए प्रयास करोगे. डाकी को तलवार बाजी बहुत अच्छी तरह अति है और उसके साथीयों को भी..
हाक़िम शीला के बोबे मसलकर उसे चोदते हुए - मैं उसे हरा दूंगा तो फिर क्या होगा मौसी?
शीला - अह्ह्ह.. उसके बाद तू काबिले का नया सरदार बन जाएगा और काबिले को तेरा हर हुकुम मानना पड़ेगा.. डाकी की सभी दासी तेरी दासी बन जायेगी. मैं और मुन्नी भी.. तू जिसके साथ चाहे जो कर सकेगा.. तू चाहे तो उर्मि के साथ तय हुआ तेरा विवाह भी तोड़ सकता है.. उसे तेरी बात माननी होगी..
हाक़िम - मौसी तेरी तेरी बेटी और तूने मेरी इतनी सेवा की है कि तुम दोनों पर मेरा दिल आ गया है और अब मैं तुम दोनों को बिल्कुल भी नहीं छोड़ने वाला मैं सरदार बन जाऊंगा तो तुम दोनों मेरे साथ रहोगी..
शीला - हाक़िम तूने फिर से मेरे अंदर ही निकाल दिया.. ऐसा बार बार करेगा तो जानता है क्या होगा?
हाक़िम शीला कि चुत से लंड निकालते हुए - तू माँ बन जायेगी मौसी.. और क्या होगा? उर्मि और मंगरू के बाद तीसरा बच्चा पैदा होगा तेरी योनि से...
शीला अपने घाघरे से चुत साफ करती हुई - कल से पता नहीं क्या हो गया है तुझे जब भी मिलता है ऐसे बात करता है जैसे मैं तेरी मौसी नहीं कोई दासी हूं..
हाक़िम शीला के होंठ चूमते हुए - मौसी अब जा.. जाकर बोल दे मां से कि मैं डाकी को ललकार ने आ रहा हूं और वह मेरा इंतजार करें अब मैं उसे हराकर सरदार बन जाऊंगा और आज ही इस काबिले के नियम को बदलकर वापस उसी तरह चलाऊंगा जैसे नाना जी चला रहे थे.. अब किसी को डरने की जरूरत नहीं है..
मौसी - एक बार फिर सोच ले हाक़िम...
हाक़िम शीला को घुमा जे उसकी गांड पर थप्पड़ मारता हुआ - सोच लिया शीला.. अब अपने ये मोटे मोटे चुत्तड़ हिलाती हुई चली जा और बता दे सबको कि मैं आ रहा हूँ... और माँ से भी कह देना..
शीला - जाती हूँ हाक़िम..

शीला लचक्ति हुई कबीले की तरफ चली जाती है और दूसरी तरफ हाकीम इस पेड़ के नीचे आकर अपने सामान में से पिस्तौल निकाल लेता है जो बड़े बाबा जी ने उसे दी थी इसी के साथ वह वापस आ जाता है और कबीले में घुसता हुआ सभी को ललकार डाकी से मिलने की बात करता है..

सरदार.. सरदार..
क्या हुआ बाला? क्यों हाँफ्ता हुआ आ रहा है? क्या करण है जो तू मेरे एकान्त के पल में दखल दे रहा है..
बाला - सरदार.. हाक़िम..
डाकी - हाक़िम क्या?
बाला - हाक़िम ने आपको द्वन्द युद्ध के लिए ललकारा है..
डाकी अपने आगे घोड़ी बनी हुई काबिले की नई नई जवाँ हुई लड़की के बाल खींचकर उसकी गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा - इतनी हिम्मत उस हाक़िम कि? आज तो उसे जीवन से हाथ धोना पड़ेगा..
मुन्नी तम्बू में आकर हाथ जोड़ते हुए - नहीं सरदार.. माफ़ कर दो हाक़िम को..
डाकी लड़की कि चुत में से लंड निकालता हुआ - माफ़ नहीं मुन्नी आज साफ करूंगा तेरे हाक़िम को तेरे बाप लाखा की तरह..
मुन्नी डाकी के पैर पकड़ लेती है और क्षमा की भीख मागती हुई हाक़िम को समझाने की बात करती है मगर डाकी नहीं मानता और मुन्नी को एक जोरदार थप्पड़ के साथ एक तरफ कर देता है और रोती हुई मुन्नी को छोड़ कर बाहर जाने लगता है कि मुन्नी को हकीम की दी हुई गोली याद आ जाती है और वह उसे एक प्याली में मिलाकर मदिरा के साथ डाकी को परोसती हुई कहती है - सरदार हाक़िम बच्चा है आप उसे माफ़ कर दो..
डाकी मदिरा का प्याला पीकर मुन्नी का बोबा पकड़ कर अपने आगे से हटा देता है और बाहर आ जाता है और द्वन्द युद्ध कि जगह हाक़िम को खड़ा देखकर उसके सामने आ जाता है..

डाकी हल्का सा नशे में - गलती कि जो तेरी माँ के कहने पर तुझे पिछली बार जीवित छोड़ दिया.. किन्तु इस बार तू जीवित नहीं बच्चेगा.. मैं आज तेरे प्राण लेकर तेरी माँ मुन्नी को तेरा मरा हुआ मुंह दिखाऊंगा.. उठा ले तलवार.. और कर मेरा सामना.. मैं भी देखु तेरा जैसा डरपोक कितने समय मेरे आगे खड़ा रहता है..
हाक़िम पिस्तौल निकालकर - साले तूने मेरी माँ को मेरा मरा हुआ मुंह दिखायेगा.. पहले तो सोचा था तुझे हरा कर यहां से जीवित जाने दूंगा पर अब नहीं.. हाक़िम चिल्लाते हुए जो भी इस डाकी कि तरफ है वो सब मेरे सामने आ जाओ.. मैं अभी तुम्हारा खात्मा किये देता हूँ..
डाकी और उसके साथ उसके कई साथी हसते हुए - अरे ये खिलौना क्या है.. लगता है..
सरदार ये वस्त्र भी बहुत अतरंगी पहनें हुए है..
लगता है कोई साया है इसके ऊपर..
सरदार इसे ख़त्म कर दो.. और बता दो आपके जैसा ताक़तवर इस काबिले में कोई और नहीं..
डाकी तलवार लेकर - आज तेरा अंतिम दिन है हाक़िम.. तेरे नाना लाखा जैसे तू भी आज मेरे हाथों मरेगा..

शीला और उर्मि दोनों एक दूसरे से संवाद करते हुए हाक़िम को देख रहे थे और हाक़िम और डाकी एक दूसरे को मारने की नीयत से एक दूसरे के सामने अपने हथियार लेकर खड़े थे वही उर्मी और शीला एक किनारे खड़ी होकर हकीम को देख रही थी जो अपने हाथ में पिस्टल लिए हुए डाकी के सामने खड़ा था शीला और उर्मी बहुत चिंतित थी और डरते हुए सोच रही थी कि हाकीम आप भी अगर भाग जाए तो उसकी जान बच सकती है मगर हाकीम भागने वाला नहीं था उधर मुन्नी भी उसे तंबू से बाहर निकाल कर आ चुकी थी और आखरी बार डाकी से अपने बेटे हकीम को छोड़ देने और जान देने की बात कर रही थी उसके साथ शीला और उर्मि भी आ गई थी... मगर डाकी ने किसकी एक बात नहीं सुनी और सबको धक्का देते हुए किनारे पर गिरा दिया जिससे हकीम गुस्सा हो गया और चिल्लाते हुए अपनी पिस्तौल का निशान डाकी के सर पर करते हुए पिस्तौल चला दी..

काबिले के सभी लोग घेरा लगाकर यह सब होता देख रहे थे और जैसे ही हकीम में पिस्टल चलाई बंदूक की निकली गोली से डाकी का सर फट गया और वह जमीन पर गिर गया.. कबीले के सारे लोग हकीम को आश्चर्य की नजर से देखने लगे और सोचने लगे कि उसके पास ऐसा क्या है जिसके चलने से इतनी दूर से डाकी का सर इतना तेज फट गया और वह मर के जमीन पर गिर गया.. काबिले के सभी लोगो के मन में उत्साह जाग उठा और डाकी के मरने पर वह लोग मुस्कुराते हुए खुशी से झूमने लगे मगर डाकी के साथियों ने हकीम पर हमला कर दिया और उसे मारने के नियत से अपनी अपनी तलवार उठाकर उसके पास बढ़ने लगे मगर हकीम ने एक-एक करके सबको गोली मार दी और कल 13 लोगों को जो डाकी के विश्वसनीय थे सबको मौत के घाट उतार दिया..

मुन्नी शीला और उर्मि ऐसा होते देखकर आश्चर्यचकित थी और उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कैसे हकीम ने एक ही झटके में द्वन्द युद्ध की ललकार देकर अपने छोटे से हथियार से डाकी और उसके सभी साथियों को इतनी जल्दी मार डाला और अपनेआपको कबीले का नया सरदार बना दिया.. मुन्नी बहुत खुश थी और उसे अब हातिम पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था.. कबीले के सभी लोगों ने हकीम को अपने कंधे पर उठा लिया और उसकी जय जयकार करते हुए सरदार की गद्दी पर बैठा दिया सरदार की गद्दी पर बैठकर हकीम ने सभी को फिर से खुलकर जीने का कहते हुए फिर डाकी के बनाये हुए सभी कठोर नियम बदल दिए.. और पहले जैसे लाखा की सरदारी में काबिला चल रहा था वैसे ही काबिले को चलाने की बात कही जिससे काबिले के सभी लोग खुशी से झूम उठे और सभी हकीम के पैरों में गिरते हुए उसकी धूल को माथे से लगाकर झूमते नाचते गाते हुए रात के जश्न का आयोजन करने लगे..

रात को जश्न के आयोजन में काबिले के सभी लोग नए सरदार के बनने की खुशी का इजहार कर रहे थे और चारों तरफ कबीले के लोग खुशी से हंसते मुस्कुराते हुए ढोल मंजीरे की ताल पर नाच गा रहे थे वहीं महिलाएं भी उसी खुशी में शामिल होती हुई मर्दों के साथ नाच गा रही थी और एक जलती हुई आग के आसपास सभी लोग घेरा बांधकर बैठे हुए यह सब कार्यक्रम कर रहे थे.
गौतम के कहने पर सभी ने उन लोगों की लाशों को पास के ही जंगल में दफना दिया और अब गौतम मुन्नी के पास आ गया..

सरदार के तंबू के अंदर मुन्नी एक तरफ कोने में अपने घुटनों को मोड़कर हाथों से बंधे हुए बैठी हुई थी..
हाक़िम तम्बू में आते हुए - पूरा कबिला देख लिया.. और तुम यहां बैठी हो..
मुन्नी उठकर हाक़िम को गले लगाते हुए - तुमने आखिरकार अपने नाना जी का बदला ले लिया हाक़िम.. तु उस डाकी हो हरा कर सरदार बन ही गया.. तेरी माँ आज बहुत खुश है..
हाक़िम मुन्नी कि कमर थामकर उसके गर्दन पर अपने होंठ रखकर चूमता हुआ - ये सब मैंने नानाजी का बदला लेने के लिए नहीं किया मां.. नहीं इस कबीले का सरदार बनने के लिए मैंने डाकी को मारा है.. मैंने तो बस तुझे पाने के लिए यह सब किया है.. मैं तुझे कबीले की सरदारनी बनाता हुआ देखना चाहता हूँ..
मुन्नी हाक़िम से अलग होते हुए - यह कैसे मुमकिन है हकीम... मैं तेरी मां हूं और तू मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकता.. उर्मी के साथ तेरी शादी से हुई है और उसी के साथ होगी..
हाक़िम फिर मुन्नी को बाहों में भरता हुआ - मैंने कब उर्मि से विवाह के लिए मना किया है मां.. मगर उर्मी के साथ में तेरे और मौसी के साथ भी विवाह करूंगा.. तुम तीनो से विवाह करके मैं इस काबिले को नए वारिस दूंगा..
मुन्नी हाक़िम को देखते हुए - ऐसा नहीं हो सकता हाक़िम..
हाक़िम मुन्नी के घाघरे में हाथ डालता हुआ - सब होगा माँ.. मैंने कहा था ना सरदार बनने के बाद तेरी चुत मारूंगा..
मुन्नी - हाक़िम छोड़ मुझे.. मैं तेरी माँ हूँ..
हाक़िम छोड़ते हुए - और मैं इस काबिले का सरदार.. मौसी ने बताया है की जश्न में मुझे अपनी पसंदीदा औरत चुनने का पूरा अधीकार है.. जश्न के बाद मैं अपनी पसंद की औरत चुन लूंगा.. फिर देखता हूँ तू अपने सरदार का हुकुम कैसे नहीं मानती..
मुन्नी हाक़िम का हाथ पकड़ कर - हाक़िम.. क्या हो गया है तुझे? मैं तेरी माँ हूँ.. कुछ तो लिहाज़ कर..
हाक़िम - किस बात का? मौसी ने बताया है कि मेरे ऊपर किसी का दबाव नहीं होगा मैं जिसे भी चाहु अपना बना सकता हूँ.. आज जश्न के बाद मैं तुझे अपना बना लूंगा.. तैयार रहना माँ..
मुन्नी गुस्से के साथ हाक़िम को देखकर - अगर तू ऐसा करेगा तो मैं तुझे ललकार दूंगी और कल तेरा मेरा द्वन्द युद्ध होगा.. और तुझे मुझे भी मारना होगा..
हाक़िम प्यार से करीब जाकर मुन्नी को गले लगाते हुए - ललकार कर तो देख.. पुरे काबिले के सामने नंगा करके ऐसा चोदुँगा कि याद रखेगी..
मुन्नी - हाक़िम तू गलत कर रहा है अपनी माँ के साथ..
हाक़िम मुन्नी के होंठ चूमते हुए - मर्ज़ी तेरी है माँ.. मेरी दासी बनकर एक कोने में पड़े रहकर मुझसे प्रेम करना है या काबिले कि सरदारनी बनकर सबपर हुकुम चलाते हुए मुझसे प्रेम करना है..
मुन्नी - अगर मैं तेरी सारी बात मान लूं तो तूझे भी मेरे साथ एक वादा करना पड़ेगा..
हाक़िम मुन्नी के होंठों का रस पीता हुआ - बोल ना माँ..
मुन्नी गंभीरता से - तुझे मेरी हर बात माननी होगी.. और जो भी मैं कहु करना होगा..
हाक़िम मुस्कुराते हुए - मैं तेरा गुलाम बनकर रहूँगा माँ.. बस बिस्तर में तुझे मेरा गुलाम बनना पड़ेगा..
मुन्नी हाक़िम को दूर करते हुए - जा अपनी सरदारनी को जश्न के बाद अपनाकर मिलना..

काबिले मैं जलती हुई एक बड़ी सी आग के इर्द-गिर्द सभी कबीले के लोग जश्न बनाते हुए ढोल मंजीरे बजाते हुए नाचते गाते हुए झूम रहे थे गा रहे थे और खुशियां मना रहे थे वही जश्न में अब खाना भी लगने लगा था और सभी खुशी से खाते हुए नए सरदार को बधाइयां दे रहे थे और अपनी अपनी तरफ से तोहफे दे रहे थे.. हकीम सरदार की गाद्दी पर बैठा हुआ अपने सामने चल रहे जश्न को देखा हुआ खुशी से झूम रहा था उसके आसपास में कई दासियां और कई बांदीया थी.. जो डाकी के मरने के बाद अब उसकी दासियां बन चुकी थी.

जश्न के बाद जब काबिले के एक बुजुर्ग आदमी ने हकीम से अपने मनपसंद की औरतो को चुनकर अपने साथ रखने के लिए और सरदारनी बनाने के लिए कहा तो हकीम अपनी गाद्दी पर से उठ गया और सामने खड़े हुए कबीले के सभी लोगों को देखा हुआ बोला..
हाक़िम - मैं मेरे आस-पास में जितनी भी मेरी दासियां हैं उन सभी को आजाद करता हूं और उन्हें आजादी देता हूं कि वह काबिले में अपनी मनमर्जी से रह सकेंगी और अब उन्हें किसी के भी गुलाम बने रहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी..
बुजुर्ग - आपने ये नेक कार्य किया है अब काबिले से अपनी सरदारनी भी चुनो सरदार..
हाक़िम - मैं मुन्नी और शीला दोनों बहनो को जो मेरी माँ और मौसी भी है उन्हें सरदारनी बनाता हु.. और इसके साथ जैसा कि पहले तय था उर्मि को भी विवाह करके अपनी सरदानी बनाता हूँ..

कभी लेकर सभी लोग चकित थे कि कैसे हाक़िम ने बिना किसी लाज शरम और परवाह के अपनी बात कह दी थी और कबीले के सभी लोगों को अब उसकी बात माननी होगी.. काबिले के किसी भी व्यक्ति ने उसकी बात का निरादर नहीं किया और सहर्ष उसकी बात स्वीकार कर ली और अब काबिले के सरदार के रूप में हाकीम गाड़ी पर बैठा हुआ था और उसी के साथ में कुछ सेविकाओं ने मुन्नी शीला और उर्मी को साथ में तैयार करके हकीम की गद्दी के आसपास बैठा दिया..
हकीम ने एक साथ तीनों से विवाह किया और यह ऐलान कर दिया कि अब से उर्मि, मुन्नी और शीला इस कबीले की सरदारनी है और उनकी कोख से जो पहला बच्चा जन्मेगा वह आने वाला कबीले का वारिश होगा..

काबिले के सभी लोगों ने हकीम की बात को स्वीकार कर लिया और नाचते गाते हुए उसके नाम के जय-जय कार लगाते हुए जश्न के बाद अपने-अपने तंबू की ओर चले गए और सोने लगे..


जश्न समाप्त होने के बाद रात का समय हो चुका था जहां पर अंधेरी अमावस के काले प्रकाश ने धरती को अपने आगोश में ले लिया था और हर तरफ अधकार ही अंधकार था.. जंगल के मुहाने पर नदी के किनारे बसी हुई इस बस्ती को देखकर ऐसा लगता था जैसे संतकर में इस बस्ती में चलती हुई मसाले और लालटेन इस अंधकार को दूर कर रही है और जीवन का नया स्रोत बताती हुई रोशनी का प्रकाश फैल रही है..
हकीम नशे में चूर अपने सरदार की गद्दी से उठा और लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ अपने तंबू की ओर जाने लगा मगर रास्ते में ही उसने अपने तंबू से लगाते हुए दूसरे तंबू जहां दासी और बाँदिया दिया रहा करती थी उसमें जा घुसा..
हातिम ने देखा कि अब वहां कोई नहीं था और सिर्फ उर्मी और उसकी मां शीला वहा उपस्थित थी.. जो तंबू में लगे हुए बिस्तर पर अगल-बगल लेटी हुई सो रही थी..
हकीम लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ बिस्तर के ऊपर चला गया और गिरते हुए शीला के ऊपर आ गया..
गौतम के गिरने से उर्मी और शीला दोनों को पता लग गया है कि हकीम यहां आ गया है और उनके बिस्तर में आ लेटा है..
शीला हाक़िम को देखकर - सरदार...
हाक़िम शीला के होंठपर अपने होंठ रखते हुए - सरदार नहीं मौसी.. हाक़िम.. तुम्हारा हाक़िम..
उर्मि अपने बगल में लेटी हुई अपनी माँ के ऊपर हाक़िम को लटा देखकर गुस्से से भर गई और बिस्तर से उठने लगी तो हाक़िम ने शीला से चुम्बन तोड़कर उर्मि का हाथ पकड़ लिया और उसे वापस अपने पास खींचते हुए बोला मदिरा के नशे में - तू कहाँ जा रही है?
उर्मि अपनी माँ शीला के ऊपर लेटे हुए हाक़िम को गुस्से से देखकर बोली - तुमने अच्छा नहीं किया हाक़िम.. तूने मुझे सरदारनी बनाने का वादा किया था..
हाक़िम - बना तो दिया तुझे सरदारनी.. फिर क्यों रूठी हुई है..
उर्मि - मेरे साथ माँ और मौसी को क्यों बनाया.. तूमने अपनी माँ और मौसी से विवाह क्यों किया?
हाक़िम शीला के ऊपर से उठकर उर्मि को शीला के बगल लटाता हुए उर्मि के ऊपर आकर उसे चूमते हुए कहता है - इतना क्रोध अपने हकीम पर? किसी पराई से तो विवाह नहीं कीया ना.. देख तेरी मां को ऊपर से नीचे तक.. मौसी अब भी कितनी योवन से भरपूर है..
अगर मैं मौसी को नहीं अपनाऊगा तो कौन अपनायेगा उर्मि? डाकी ने दासी बना के रखा था मौसी और माँ को.. उनका क्या होता?
शीला करवट लेकर उर्मि और हाक़िम के पास आते हुए - उर्मि छोड़ दे अपना क्रोध.. हाक़िम ने कुछ गलत नहीं किया.. ये तो केवल हम तीनो को सुखी रखना चाहता है..
उर्मि - माँ आप बीच में मत बोलो.. और हाक़िम का पक्ष लेना बंद करो.. ये मेरे और मेरे पति के बीच की बात है..
शीला हाक़िम का गाल चूमती हुई - उर्मि अब हाक़िम मेरा भी पति है.. और हाक़िम पर मेरा भी उतना अधिकारी है जितना तेरा..
उर्मि - होगा.. किन्तु हाक़िम मुझे ज्यादा प्रेम करता है..
शीला - वो तो हाक़िम ही बता देगा..
हाक़िम शीला का बोबा पकड़कर मसलते हुए - तुम दोनों माँ बेटी हो या दुशमन? कैसे कुत्ते बिलियो जैसे लड़ती हो..
उर्मि हाक़िम का हाथ शीला के बोबे पर से हटाते हुए - लड़ाया भी तो तूमने है.. हम माँ बेटी को एकदूसरे सौतन बना दिया..
शीला हाक़िम का हाथ पकड़ कर अपने बोबे पर वापस रखवाती हुई - उर्मि हाक़िम हमारे पति के साथ साथ काबिले का सरदार भी है.. हाक़िम को खुश रखना हमारी पहली प्राथमिकता है..
हाक़िम नशे में - छोडो ना अब ये बातें.. तुम दोनों दासी के तम्बू में क्या कर रही हो...
उर्मि क्रोध से - जाकर अपनी माँ से पूछो.. जिसने हम दोनों को सरदार के तम्बू से निकाल कर यहां रहने को कहा है..
शीला - उर्मि.. मुन्नी का अधिकार हमसे पहले है हाक़िम पर.. और मुन्नी ने सिर्फ आज रात के लिए हमें यहां रहने के लिए कहा है..
उर्मि - कहा नहीं है माँ.. हुकुम सुनाया है मुन्नी मौसी ने.. हम दोनों को..
सरदार... सरदार.... बाहर से कोई आवाज डेता है हाक़िम - कौन?
मैं मंगरू सरदार...
हाक़िम हसते हुए शीला और उर्मि के बीच में पीठ के बल लेट जाता है और उनसे कहता है..
हाक़िम - लगता है मंगरू नहीं चाहता आज उसकी माँ और बहन एक साथ मुझसे चुदे..
उर्मि जोर से - क्या बात है मंगरू?
मंगरू - सरदार को मुन्नी मौसी ने सरदार के तम्बू में बुलवाया है..
हाक़िम खड़ा होने लगता है कहता है - जाकर बोल मैं आ रहा हूँ...
उर्मि हाक़िम का हाथ पकड़ कर - और हम? हाक़िम तुम आज रात हमें छोड़कर जाओगे?
शीला - उर्मि मत रोक हाकिम को.. जाने दे...
हाक़िम बारी बारी से शीला और उर्मि के होंठ चूमते हुए - आज रात की बात है.. कल से हर रात तुम्हारे नाम होगी..
हाक़िम खड़ा होकर तम्बू से बाहर निकल जाता है और अपने तम्बू में घुस जाता है..

हाक़िम जब तम्बू के अंदर घुसा तो उसने देखा कि मुन्नी बिस्तर पर बैठी हुई थी मैंने आज अपने आप को इस तरह तैयार किया था कि वह किसी दुल्हन की तरह लग रही थी और उसे देखकर कोई नहीं कर सकता था कि वह एक 38-40 साल की महिला है.. आज उसका रूप खुलकर सामने आया था और उसकी आभा इस अंधकार में रात को प्रकाश दे रही थी..
हाक़िम नशे में लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ करने के पास आ गया और उसके पास बिस्तर पर बैठ गया..

हाक़िम प्यार से - बहुत सुन्दर लग रही हो माँ..
मुन्नी हाक़िम को देखकर मुस्कुराते हुए - तू भी तो चाँद का टुकड़ा लग रहा है..
हाक़िम अपनी टीशर्ट उतारते हुए - क्यों बुलवाया मुझे?
मुन्नी अपने हाथ से मदिरा का प्याला हाक़िम को देती हुई - एक पत्नी अपने पति को रात में अपने पास क्यों बुलाती है.. समझा नहीं आता तुम्हे? तुम्हे जो चाहिए वो देने बुलाया है..
हाक़िम प्याला लेकर एक तरफ रखते हुए - मदिरा पिने से ज्यादा आंनद तो तुम्हारे होंठ चूमने से आता है माँ..
मुन्नी हाक़िम को अपने ऊपर खींचती हुई - तो चुम ले अपनी माँ के होंठ हाक़िम.. तेरी माँ अब तेरी है..
हाक़िम मुन्नी के होंठ पर अपने होंठ रखते हुए - बहुत मीठे होंठ है माँ तेरे..
मुन्नी चूमते हुए - हाक़िम... तूने अपने होंठो से मेरे होंठ मिलाकर मेरे होंठों को अपना गुलाम बना लिया है.. तेरा इतना प्यार से चूमना मेरे अंग अंग में नई उमंग भर रहा है.. आज मेरी देह के साथ मेरा मन भी तुझे अपनाने को आतुर है.. मैं अपनेआप को तेरे कदमो में समर्पित करती हूँ हाक़िम..
हाक़िम ने टीशर्ट उतार दी थी और अब कमर से ऊपर नंगा था उसने मुन्नी की चोली खोलकर उसपर तने हुए चुचक छेड़ते हुए कहा - माँ तेरे मन की सारी व्यथा तेरी छाती पर तनकर खड़े हुए स्तन के ये दाने बता रहे है.. मैं जानता हूँ जितना मैं तुझे पाने को आतुर हूँ उतना ही तू भी मुझे अपनाने के लिए उत्सुक है.. मेरे सीने में तीर की तरह चुभते तेरे दोनों चुचक इस बात का प्रमाण है कि हमारा मिलन वासना नहीं प्रेम है.. माँ मैं आज भी बचपन की तरह तेरे इन दोनों स्तन से दूध पीना चाहता हूँ.. क्या तुम मुझे दूध पीलाओगी?
मुन्नी हाक़िम का सर पकड़कर उसके मुंह में अपना एक बोबा देती हुई - हाक़िम.. तू कबसे मुझसे पूछने लगा.. बचपन में तो भागता हुआ आकर मेरी चोली सरकाता हुआ अपना ये प्यारा मुंह मेरे स्तन से लगा देता था और मन भरके दूध पी लेता था.. आज तू अपनी माँ का दूध पिने से पहले पूछ रहा है.. हाक़िम मैं तेरी माँ हूँ मेरा दूध पिने के लिए तुझे मुझसे पूछने की क्या आवश्यकता?
हाक़िम बोबा चूसते हुए - माँ तेरे स्तन से अब अमृत की धार नहीं बहती.. लगता है तेरे छाती में दूध जम गया है..
मुन्नी हाक़िम का सर सहलाती हुई - कुछ महीनों बाद फिर से निकल आएगा मेरे बच्चे... फिर जी भरके पी लेना अपनी माँ का दूध.. तुझे कोई नहीं रोकने वाला..
हाक़िम अपने दोनों हाथों से मुन्नी के छाती के सुडोल और उन्नत उभार का मर्दन करता हुआ चूसता हुआ कहता है - माँ उस के लिए तो हमें कुछ करना पड़ेगा.. जिसमे तुम्हे दर्द झेलना पड़ेगा..
मुन्नी मुस्कुराते हुए हाक़िम के मुंह से होना बोबा निकालकर उसके होंठो पर चुम्बन करती हुई - मैं हर पीड़ा झेलने को तैयार हूँ हाक़िम.. तूने तो अपनी माँ की छाती से मुंह लगा लिया मुझे भी तेरे सीने से मुंह लगाने दे हाक़िम..
हाक़िम बिस्तर पर पीठ के बल लेट जाता और मुन्नी उसके सीने पर आकर अपनी जीभ से हाक़िम के निप्पल्स चाटने लगती है फिर अपने दोनों होंठो लगाकर ऐसे चुस्ती है जैसे हाक़िम के निप्पल्स में से दूध निकाल देगी.. हाक़िम आहे भरते हुए कामुकता से सिसकियाँ भरने लगता है और अपनी माँ मुन्नी की चुदाई कला और ज्ञान से प्रभावित होकर मुन्नी को अपने सीने के दोनों निप्पल्स चुसवाने लगता है..
हाक़िम - अह्ह्ह.. माँ खा जाओगी क्या मेरे निप्पल्स को..
मुन्नी हाक़िम के निप्पल्स चूसना छोड़कर होठो पर आते हुए - हाक़िम.. पता है जब बचपन में तुझे अपने अलग सुलाती थी तब तू हर रात वापस मेरे पास आकर मेरे ऊपर चढ़कर सो जाता था.. मुझे कितना सुख मिलता था तेरे मेरे ऊपर सोने से.. तू तब मुझे प्राण से प्रिय था और अब भी मुझे प्राण से प्रिये है...
हाक़िम मुन्नी के होंठो को चूमकर अपने पेंट खोलकर नीचे सरकाते हुए - माँ.. पुरे काबिले में तुझसे सुन्दर कोई और औरत नहीं है.. मैं बहुत पहले से तुझे पाने के स्वप्न देखता आया हूँ आज मेरा स्वप्न पूरा होगा...
मुन्नी अपना घाघरा खोलते हुए - हाक़िम.. तू मेरा पुत्र और सरदार दोनों है तेरा हर हुकुम मानना मेरा काम.. ले आज तेरी माँ तेरे आगे अपना सबकुछ हार जाना चाहती है.. आ मेरे हाक़िम.. कर ले अपनी हठ पूरी..
हाक़िम अपनी माँ मुन्नी कि चुत पर आकर उसकी चुत को करीब से देखकर सहलाता है और फिर एक नज़र अपनी माँ मुन्नी को देखकर अपने होंठ झट से मुन्नी कि गुलाबी चुत पर लगा कर चुत चाटना शुरु कर देता है..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह... हाक़िम ये क्या कर रहा है तू.. ऐसा मत कर.. ये बुरा है.. अह्ह्ह्ह... हाक़िम... नहीं...
मुन्नी को अब से पहले चुत चटवाने का सुख नहीं मिल पाया था और अब हाक़िम उसकी चुत चाटकर उसे सुखी कर रहा था जिसे मुन्नी ऊपरी तौर से नकारते हुए अंदर ही अंदर काम सुख कि तृप्ति से भरी जा रही थी उसकी कामुकता चरम ओर थी और हाक़िम के चुत चाटने के कुछ ही मिनटों में वो किसी सुनामी कि तरह बह गई और अकड़ते हुए झड़ गई..
मुन्नी शर्म से पानी पानी होकर अपना मुंह उतरी हुई चोली से ढक्कर छिपाने लगी और हाक़िम से शर्माने लगी..
हाक़िम मुन्नी के चेहरे से चोली हटाकर उसके मुखड़े को देखता हुआ कहता है - इतनी लाज करने कि क्या आवश्यकता माँ.. अब मैं तेरा पति भी हूँ..
मुन्नी - हाक़िम तूने ये क्या किया.. वहा होंठ नहीं लगाते मगर तू लगा रहा है और मैं अपने आपे से बाहर हो रही हूँ..
हाक़िम - मैं जानता हूँ माँ तुम बहुत प्यासी हो और काम सुख से वंचित भी.. मैं तुम्हे आज पूरा तृप्त कर दूंगा..
मुन्नी - हाक़िम अब वहा होंठों से मत छूना.. मुझे लाज आएगी..
हाक़िम - छूना तो पड़ेगा माँ.. तू मेरी छुलो... मैं तुम्हारी छू लेता हूँ..
मुन्नी हैरानी से - क्या?
हाक़िम मुन्नी के ऊपर आकर 69 कि पोजीशन में आता हुआ - माँ आरम्भ करो..
मुन्नी - क्या? अह्ह्ह्ह..
हाक़िम फिर से अपनी माँ मुन्नी कि चुत को मुंह में लेकर चूसना चाटना शुरु कर देता है और मुन्नी सिसकियाँ लेते हुए हाक़िम के अपने मुंह पर लटक रहे लंड को देखने लगती है जो उसके मुंह पर खड़ा हुआ पड़ा हुआ था... मुन्नी ने चुत चटाई का मज़ा लेते हुए हाक़िम का लंड पकड़ कर बिना कुछ सोचे समझें मुंह में भर लिया और वो भी चूसने लगी..
69 में दोनों माँ बेटे एक दूसरे के गुपतांग को मुंह से मज़ा दे रहे थे.इस बार भी मुन्नी से रहा ना गया और वो झड़ते हुए हाक़िम के मुंह पर ही फारीक हो गई और उसके मुंह से हाक़िम का लंड निकल गया..
हाक़िम अपना चेहरा मुन्नी के घाघरे से साफ करके बिस्तर पर घुटनो के बल खड़ा हो जाता है और अपने सामने शर्म से लाल होकर चेहरा छुपाती अपनी माँ मुन्नी को देखता है जो किसी नई नवेली दुल्हन सी शर्म से हाक़िम के सामने नग्न होकर बैठी थी..
हाक़िम ने मुन्नी का हाथ पकड़ के अपनी तरफ खींचा और उसके बाल पकड़ कर अपने लंड पर झुकाते हुए अपनी माँ मुन्नी के मुंह में वापस अपना लंड घुसा दिया और उसे लंड चूसा दिया.. मुन्नी शर्म से हाक़िम का लंड मुंह में भरकर चूसे जा रही थी..
हाक़िम काम के सुख से अभीबूत होकर आँख बंद करके अपनी माँ से मुखमैथुन का सुख ले रहा था और उसका दिल मुन्नी पर आता जा रहा था...
हाक़िम ने थोड़ी देर अपनी माँ मुन्नी को अपना लंड चूसाने के बाद उसे लेटा दिया और उसकी चुत पर अपना लंड रगढ़ते हुए छेद पर लगा कर दबाव ड़ालते हुए अपनी माँ मुन्नी कि चुत में लंड पेल दिया..
मुन्नी दर्द और सुकून के मिश्ररित भाव से - अह्ह्ह्ह... हाक़िम... अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह...
हाक़िम अपना आधा लंड अंदर करके - उफ्फ्फ माँ.. कितनी टाइट है तेरी चुत..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह... हाक़िम.. धीरे करना..
हाक़िम - डाकी कि रखैल बनने के बाद भी इतनी सिकुड़ी हुई चुत..
मुन्नी - हाक़िम.. डाकी बहुत कम हाथ लगाता था मुझे.. उसे नई नई जवाँ हुई औरत ही पसंद थी..
हाकिम - तू चिंता मत कर माँ अब मैं हाथ लगाऊंगा ना तुझे..
मुन्नी ने सिसकियाँ लेते हुए हाक़िम का पूरा लंड चुत में ले लिया और हाक़िम मुन्नी के चेहरे पर दर्द और सुकून के घुले हुए भाव देखकर कामुकता से उसे मिशनरी पोज़ में चोदने लगा..
मुन्नी - अह्ह्ह.. हाक़िम आराम से.. तेरी माँ हूँ..
हाक़िम मिशनरी पोज़ अपनी माँ मुन्नी की चुत मार रहा था और मुन्नी कामुकता और मादकता के मिश्रित भाव अपने चेहरे पर लाकर सिसकियां लेते हुए अपने बेटे हाकिम से चुदवा रही थी.. दोनों के संभोग की खबर तंबू के आसपास तैनात पहरेदार को भी हो रही थी..

मुन्नी कि चुत का जादू हाक़िम पर चल गया था और वो अपनी सिसकियाँ भरती हुई माँ को देखते हुए उसकी चुत में उसीके साथ झड़ गया..
मुन्नी शर्माते हुए - और कोई हुकुम मेरे सरदार.. जो आपकी ये दासी पूरा कर सके..
हाक़िम अपनी माँ का बोबा मसलते हुए - हाँ...
मुन्नी - क्या सरदार..
हाक़िम मुन्नी को पकड़कर घोड़ी बनाते हुए - तेरी सवारी करनी है माँ..
मुन्नी अपने दोनों हाथ पीछे करके हाक़िम को देती हुई - कर लो सरदार अपनी घोड़ी की सवारी..
गौतम चुत में लंड पेलकर अपनी माँ के दोनों हाथ पकड़ लेता है और पीछे से झटके पर झटके मारने लगता है जिसकी आवाज तम्बू से बाहर जा रही थी और पहरेदार के कान में साफ साफ सुनाई पड़ रही थी..
हाक़िम ने अपनी माँ मुन्नी को इस तरह कुछ देर तक चोदा और फिर उसके हाथ छोड़ कर बाल पकड़ लिए और जोर जोर से झटके मारते हुए मुन्नी की चीखे निकाल दी जिससे बाहर खड़े पहरदार भी चीखे सुनकर कामुक हो उठे और लंड पकड़ कर हिलाने लगे...
हकीम ने इतनी जोर से झटके मारे की मुन्नी रोते हुए हाथ छोड़कर उससे विनती की कि उसे छोड़ दे और छोड़कर उसे आराम करने दे..
हाक़िम अपनी माँ को पीछे से घोड़ी बनाकर बाल पकड़ के चोद रहा था और उसकी माँ मुन्नी रोते हुए आगे हाथ जोड़कर हाक़िम से उसे छोड़ देने को कह रही थी.. मुन्नी की हालत खराब होने लगी थी और वो चुत में झटके खाते हुए आह्ह.. उह्ह्ह... करती हुई हाक़िम के सामने गिड़गिड़ा रही थी..
हाक़िम को अपनी माँ पर तरस आ गया और उसने चुत से लंड निकाल दिया और अपनी माँ को पलट दिया फिर कमर में हाथ डालकर उठा लिए और खड़ा होकर उसे लंड पर उछाल उछाल कर चोदने लगा जिसमे मुन्नी को पहले की तुलना में कम दर्द हो रहा था और वो हाक़िम के गले में हाथ डालकर उसके लंड से झटके खा रही थी...
मुन्नी शर्म के मारे आंख बंद करके सिसक रही थी और हाक़िम उसे चोदे जा रहा था..
हाक़िम तम्बू के अंदर बीच में नंगा खड़ा होकर अपनी नंगी माँ को ऐसे चोदे जा रहा था जैसे वो कोई सस्ती रंडी हो..
हाक़िम को अपनी माँ मुन्नी की चुत का नशा हो गया था उसने मुन्नी को चोदते हुए मदिरा का प्याला पी लोया औरक पल के लिए मुन्नी को बिस्तर ओर पटक दिया और प्याले में और मदिरा डालकर पिने लगा..
मुन्नी रोरही थी और सोच रही थी की उसका बेटा हाक़िम कितना बड़ा चोदू राजा है.. मुन्नी ने अपने आंसू पोंछ लिए और अपनी चुत को देखा जो पानी से गीली थी और गुलाबी से लाल होकर हलकी सूज चुकी थी...
मुन्नी समझ चुकी थी कि अगर वो यहां रहेंगी तो हाक़िम उसके रातभर चैन से नहीं सोने देगा ना ही प्यार चोदेगा.. हाक़िम पर नशा हो चूका था..
मुन्नी ने मौका देखा और अपने कपड़े हाथ में लेकर तम्बू के पीछे से चुपचाप निकल के लंगड़ाकर लचकती हुई भागने लगी.. हाक़िम ने जब अपनी माँ को तम्बू के पीछे से भागते देखा तो मुस्कुराते हुए अपनी जीन्स से सिगरेट और लाइटर लेकर चलता हुआ नंगा ही तंबू के पीछे मुन्नी के पीछे चल दिया..
मुन्नी लचकती हुई और लंगड़ाती हुई तंबू के पीछे से भागकर जंगल की तरफ भाग गई.. कुछ दूर जाने के बाद वो उसी छप्पर पर आकर एक पत्थर पर बैठ गई और कपड़े पहनने ही वाली थी हाक़िम ने मुन्नी के कपड़े छीन लिए और दूर फेक दिए..
मुन्नी - हाक़िम मैं और नहीं झेल पाउंगी तुझे.
हाक़िम सिगरेट जलाता हुआ - माँ आज रात तो मुझे झेलना ही होगा..
मुन्नी - तू मदिरा पी कर धुत है हाक़िम.. इतना जोर से करेगा तो मैं कैसे तुझे संभाल पाउंगी..
हाक़िम - अब प्यार से करूँगा माँ.. आजा..
मुन्नी ना चाहते हुए भी हाक़िम के करीब आकर खड़ी हो गई और हाक़िम ने मुन्नी के होंठो को चूमना शुरू कर दिया और इस बार उसी जगह घास में लिटा कर झटके मारने शुरू कर दिया..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह... हाक़िम.. प्रेम से..
हाक़िम - हां माँ..
हाक़िम पीठ के बल घास में लेट गया और मुन्नी को अपने ऊपर खींचकर झटके मारने लगा..
मुन्नी हाक़िम को चूमते हुए - अह्ह्ह तू कब और कैसे इतना बड़ा बन गया रे.. मुझे तो पता ही नहीं चला..
हाक़िम चुत में झटके मारता हुआ - जामुन खाके माँ..
मुन्नी - इसी प्रेम से मुझे अपना बनाके रखेगा ना हाक़िम..
हाक़िम - हां माँ... हमेशा तुझे अपना बनाके रखूँगा..
मुन्नी - वापस चल ना हाक़िम.. यहां कोई जानवर आ जाएगा..
हाक़िम मुन्नी को लंड पर ही बैठाके वापस तम्बू की तरफ चल देता है और रास्ते में लंड पर उछाल उछाल के अपनी माँ मुन्नी को छेड़ता हुआ मज़े लेता है जीपर मुन्नी शर्म से पानी पानी होकर मुस्कुराते हुए हाक़िम के सीने में अपने मुंह छिपा लेती है..
हाक़िम मुन्नी तम्बू के पीछे से ही वापस तम्बू के अंदर ले आता है और बिस्तर में पटक के वापस मिशनरी में धीरे धीरे अपनी माँ को अपना प्रेम बताते हुए चोदने लगता है..
हाक़िम - अब तो नहीं भागेगी ना माँ..
मुन्नी - अह्ह्ह हाक़िम... इतना प्रेम से मुझे भोगेगा तो क्यों भागने लगी मैं...
हाक़िम - गलती हो गई माँ जो थोड़ा जोर लगा दिया मैं..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह.. थोड़ा जोर.. हाक़िम तूने तो मेरे प्राण ही निकाल दिए थे.. अब वैसा मत करना..
हाक़िम - अकड़ क्यों रही है.. होने वाला है क्या माँ तेरा..
मुन्नी - हाँ हाक़िम.. अह्ह्ह्ह...
हाक़िम - मैं भी झड़ने वाला हूँ माँ...
हाक़िम और मुन्नी एकसाथ झड़ जाते है और दोनों एक दुसरे के बदन से लिपटे हुए एक दूसरे जो देखने लगते है..
हाक़िम - क्या देख रही हो माँ..
मुन्नी हाक़िम को चूमकर - तुम्हे मेरे सरदार...
हाक़िम मुन्नी को अपने ऊपर खींचकर उसके होंठो के करीब अपने होंठ लाकर उसकी साँसे अपनी साँसों से मिलाते हुए - हाक़िम.. मुन्नी का हाक़िम..
मुन्नी चूमते हुए - तूने तो खड़े होने लायक़ नहीं छोड़ा मेरे हाक़िम..
हाक़िम हसते हुए - खड़े होकर क्या करेगी माँ.. अब तो तेरे लेटने का समय है..
मुन्नी शर्म हसते हुए - धत...

सुबह सुबह की पहली किरण निकलते ही हकीम तंबू से बाहर आ गया और अंगड़ाइयां लेते हुए इधर-उधर देखने लगा उसने कबीले में सब तरफ देखा और इस मनोहर सुबह को महसूस करता हुआ टहलने लगा.. उसके सिपाही ढोला गोला बासा मंगरू मुंडा जागा पौखा सब उसे सालामी दे रहे थे..
और तुम कुछ देर घूम कर वापस अपने तंबू में आ गया और उसने देखा की मुन्नी अब भी उसी तरह प्यार से सो रही है.. उसने प्यार से मुन्नी को जगाया..
हाक़िम - सुजार चढ़ आया है माँ..
मुन्नी मुस्कुराते हुए हाक़िम को अपनी तरफ खींचकर चूमती हुई - रात को सोने नहीं दिया और अब भी सोने से मना करहा है.. बड़ा जालिम है रे तू..
हाक़िम पेंट खोलकर मुन्नी के ऊपर से चादर हटाकर उसकी चुत में लंड पेलता हुआ - सरदार को जालिम कहती हो.. सजा तो मिलेगी माँ..
मुन्नी हसते हुए - आराम से.. बहुत दर्द हो रहा है..
हाक़िम धीरे धीरे चोदते हुए - ये तो मुझे जालिम बोलने से पहले सोचना चाहिए था..
उर्मि और शीला तम्बू में आते हुए - हम भी तुम्हारी पत्नी है सरदार.. सिर्फ तुम्हारी माँ का अधिकार नहीं तुमपर..
हाक़िम दोनों को बिस्तर में आने का इशारा और मुन्नी की चुत से लंड निकालकर बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया उसका लंड खड़ा था जिसे शीला ने आगे बढ़ कर अपने मुंह में ले लिया और मुन्नी भी शीला के साथ हाक़िम के लंड को चूसने लगी..
दोनों बहने हाक़िम के लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे बच्चे लॉलीपॉप को..
हाक़िम ने उर्मि को अपने पास खींचते हुए उर्मि के होंठो को चुम लिया..
शीला और मुन्नी हाक़िम के दोनों आण्डों को मुंह में लेकर प्यार से चूस रही थी और अब उर्मि मुन्नी और शीला के बीच बैठकर उसके लंड को चूसने लगी..
हाक़िम मुन्नी शीला और उर्मि तीनो को अपने लंड और आंड चूसते चाटते देखकर काम के सुख से ओत प्रोत हो गया था..
और अब उसने तीनो की चुदाई एक साथ करनी शुरू कर दी..

हाक़िम अपनी माँ मौसी और बहन की चुत में ऐसा खोया कि उसे पता ही नहीं चला कब एक महीना उसे होने का आ गया..


 

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सरदार... सरदार..

क्या हुआ ढोला.. सुबह सुबह क्यों आये हो? क्या बात है?

सरदार.. नदी का प्रवाह बढ़ने लगा है.. इस बार बारिश में नदी के आसपास की सारी जगह डूबने की सम्भावना है.. आस पास के काबिले अपना पड़ाव यहां से उठाकर कहीं और डालने की बात कर रहे है.. हमें भी कोई कदम उठाना होगा..

हाक़िम - ठीक है ढोला.. तुम आज काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए कोई और जगह देखो और रात को मुझे बताओ... कल हम यहां से अपना पड़ाव उठा लेंगे और नदी के बहाव क्षेत्र से दूर चले जाएंगे.. मंगरू को भी अपने साथ ले जाना..

ढोला - सरदार... कल पढ़ाव उठाना अशुभ होगा.. कल अमावस्या है.. और नदी का प्रवाह कभी भी असामान्य रूप से बढ़ सकता है..

हाक़िम चौंकते हुए - कल अमावस्या है?

ढोला - हाँ सरदार.. कल अमावस्या है.. और मैंने काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए जगह भी देख ली है जो यहां से 12 मिल दूर पूर्बमें है.. हमें आज ही यहां से अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम गहरी सोच में खो जाता है जिसे उस सोच से बाहर निकालते हुए ढोला आगे कहता है - क्या हुआ सरदार? किस स्वप्न में चले गए.. हमें आज ही अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम - ठीक है.. तुम मंगरू के साथ पुरे काबिले को कह दो कि हम अगले पढ़ाव के लिए सूरज चढ़ते ही निकलेंगे..

ढोला - ठीक है सरदार..

हाक़िम - ढोला..

ढोला - जी सरदार...

हाक़िम - मैं जागीरदार से मिलने जा रहा हूँ तुम मंगरू के साथ मिलकर पुरे काबिले को अगले पढ़ाव तक ले जाओ.. मगर ध्यान रहे.. अगले पढ़ाव पर पानी कि उचित व्यवस्था हो..

ढोला - मैं सब देख चूका हूँ सरदार.. वहा एक छोटा पानी का स्रोत है जो नदी से निकलता है और अविरल बहता है.. आप निश्चित होकर जागीरदार से मिल आइये मगर सरदार पौखा बता रहा था आज जागीरदार किसी पर हमले के लिए सेना लेकर निकल चूका है.. सरदार.. जागीरदार वीरेंद्र सिंह ने आस पास की सारी रियासत तो पहले ही जीत ली अब पता नहीं किसपर हमले के लिए सेना लेकर जा रहा है...

हाक़िम - ढोला क्या कह रहा है? ये कब हुआ?

ढोला - सरदार आप पिछले एक महीने से आपकी पत्नियों के साथ थे.. मंगरू ने आपको बताना भी चाहा मगर आपने उसे जाने को कह दिया.. मैंने भी इन गतिविधियों से आपको सचेत करने का प्रयास किया किन्तु ऐसा करने में नाकाम रहा..

हाक़िम - मतलब बैरागी...

ढोला - बैरागी की मृत्यु हो चुकी है सरदार.. अफवाह है की जागीरदार ने उसकी हत्या कर दी.. रानी सुजाता भी मारी गई..

हाक़िम सर पकड़ के बैठता हुआ - इसका मतलब.. अब मैं बैरागी से नहीं मिल पाऊंगा..

ढोला - सरदार ये आप क्या कर रहे है.. हमें अभीकुछ देर में निकलना होगा..

हाक़िम - वीरेंद्र सिंह.. उसके पास जदिबूती की सारी जानकारी होगी.. इससे पहले की जोगी उससे नर्क दिखाए.. मुझे अब उससे ही मिलकर मुझे वो जदिबूती हासिल करनी पड़ेगी..

ढोला - कोनसी जदिबूती.. और कौन जोगी सरदार..

हाक़िम - कुछ नहीं ढोला.. तुम पुरे काबिले को कह दो की पढ़ाव की जगह बदलने वाली है सब अपना सामान बाँध ले..

ढोला जाते हुए - जी सरदार..



मंगरू - आपने बुलाया सरदार..

हाक़िम - मंगरू मैं जागीरदार के पास जा रहा हूँ.. ढोला ने एक नई जगह देखी है जहाँ अगला पढ़ाव डाला जाएगा.. उर्मि के साथ माँ और मौसी सकुशल अगले पड़ाव तक पहुंच जाए ये तुम्हारा काम है..

मंगरू - जी सरदार.. मैं समझा गया.. मगर आपका जागीर जाना उचित नहीं होगा.. पौखा ने कहा है जागीरदार बदल गया है अब वो काबिले के सरदारो से नहीं मिलता..

हाक़िम - वो सब तू मुझपर छोड़ दे मंगरू.. तू बस वही कर जो मैं कहता हूँ..

मंगरू - जी सरदार..



हाक़िम काबिले से चल देता है और जागीरदार के महल के पास पहुंचते पहुंचते सूरज चढ़ आया था और महल के आस पास हाक़िम लोगों को भागता हुआ देखता है.. हर तरफ अफरा तफरी मची हुई थी.. ऐसा लगता था की लोग अपनी जान बचा के वहा से भाग रहे है..



हाक़िम जब तक महल के दरवाजे पर पंहुचा उसने देखा की वहा कोई नहीं था और हर तरफ उजाड़ और ताबही का मंजर था.. वीरेंद्र सिंह को उसने महल के हर कोने में और आस पास की हर जगह देखा मगर उसे कहीं नहीं पाया.. हाक़िम सोच रहा था की अब वो क्या करेगा? कैसे जड़ी बूटी हासिल करेगा?



हाक़िम वीरेंद्र सिंह को ढूंढ़ते हुए दुपहर की शाम कर चूका था मगर उसका कहीं पता नहीं था और अब हाक़िम यही सोच रहा था की वो वापस जाकर वीरेंद्र सिंह और बैरागी को क्या जवाब देगा?



हाक़िम अपने आप को इस सब का दोष देने लगा की वो भोग विलास में इतना डूब गया की उसे अपने लक्ष्य की याद ही नहीं रही..



हाक़िम काबिले के अगले पड़ाव की और चल दिया था की रास्ते में उसे जोगी की याद आई और वो सोचने लगा की जोगी को वीरेंद्र का पता होगा और वो वीरेंद्र सिंह को जरुर ढूंढ़कर उसे बता सकता है मगर अब जोगी उसे कहा मिलेगा? हाक़िम को उसी जगह की याद आई जागा जोगी की कुटीया थी.. हाक़िम तेज़ी से अपने कदम बढ़ाता हुआ जोगी की उस कुटिया के पास आ गया जहाँ उसने देखा की जोगी घोर विलाप के आंसू अपनी आँखों से बहा रहा है और वो जहाँ बैठा है वो मृदुला की क़ब्र थी..



हाक़िम - एक्सक्यूज़ मी अंकल...

जोगी अपनी रूआसी आँखों मी गुस्सा भरके हाक़िम की तरफ देखकर - कौन है तू और यहां क्या कर रहा है?

हाक़िम - अंकल मैं फ्यूचर.. मतलब भविष्य से आया हूँ और आपकी मदद चाहता हूँ..

जोगी - मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता लड़के चला जा यहां नहीं तो मेरा क्रोध मुझे तेरे प्राण लेने पर विवश कर देगा.. चला जा अपने प्राण बचाके यहां से..

हाक़िम - देखो अंकल.. मैं चला जाऊँगा तो बहुत गलत हो जाएगा.. जिन लोगों ने मुझे यहां भेजा है उन्होंने कुछ काम देकर भेजा था मगर मैं वो काम नहीं कर पाया.. अगर वापस जाऊँगा तो मुझसे मेरा बड़ा लंड... मतलब मेरी शक्तियां छीन लेंगे और मुझे वापस दुख दर्द तकलीफ के साथ जीने को मजबूर कर देंगे.. आप प्लीज मेरी मदद करिये..

जोगी - लड़के तू मेरी बात मान और चला जा यहां से नहीं तो तेरे लिए ये घड़ी जीवन की अंतिम घड़ी हो जायेगी..

हाक़िम - मैं बिना आपसे मदद लिए नहीं जाऊँगा अंकल..

जोगी अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए - तू ऐसे नहीं मानेगी.. बता तुझे क्या चाहिए..

हाक़िम - अंकल.. वीरेंद्र सिंह का पता चाहिए..

जोगी क्रोध से - तू वीरेंद्र सिंह के साथ है? मैं तुझे जीवित नहीं छोडूंगा..

ये कहते हुए जोगी ने अपने सुला हाक़िम की तरफ फेंका मगर जोगी का सुला हाक़िम के ऊपर आकर बेअसर हो गया और जोगी हाक़िम को रहस्य की निगाहो से देखने लगा.. जोगी ने हाक़िम के गले में वही ताबिज़ देखा जो उसने बैरागी के गले में देखा था जब उसने बैरागी की क़ब्र के पास पड़ा हुआ देखा था.. और जोगी समझा चूका था की ये ताबिज़ वही है और इसके करण ही हाक़िम की रक्षा हुई है..

जोगी गुस्से में - तू वीरेंद्र सिंह को क्यों पूछ रहा है?

हाक़िम - जदिबूती के लिए..

जोगी - कोनसी जदिबूती?

हाक़िम - अरे वही जिसे खाकर वो अगले 800 सालों के लिए अमर हो गया.. मगर आपने उससे सारा भौतिक सुख छीनकर उसे धरती पर नर्क भोगने के लिए आजाद के दिया.. मैं उस जदिबूती के बारे में वीरेंद्र सिंह से पूछना चाहता हूँ जिससे मे वापस भविष्य में जा सकूँ.. और वापस भविष्य में जाकर वीरेंद्र सिंह को वही जड़ीबूटी खिला सकूँ जिससे वीरेंद्र सिंह मर कर मुक्त हो सके और बैरागी आगे आयाम पर जा सके..

जोगी - तू कैसे जानता है आज बैरागी को मैंने वीरेंद्र सिंह के सर पर बाँध दिया है..

हाक़िम आगे आते हुए - देखो अंकल... मैंने कहा मैं भविष्य से आया हूँ..

जोगी का शेर दहाड़ने लगता है..

हाक़िम - अंकल संभालो इस शेर को.. कहीं काट वात लेगा तो मैं जान और जहान दोनों से चला जाऊँगा..

जोगी - मैं तेरी मदद नहीं करूँगा लड़के.. तू जा यहां से वरना मैं तेरे गले से ये ताबिज़ निकालकर तेरी जान ले लूंगा..

हाक़िम पास आकर बैठते हुए - अंकल.. मैं जानता हूँ आपको दुख है तकलीफ है और मृदुला के जाने की बहुत पीड़ा है.. पर आपने वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी को भी सजा दे दी.. जो उन्होंने 300 सालों तक भोगा है.. अब और नहीं अंकल.. आप अपना गुस्सा शांत करके मेरी मदद करो अंकल...

जोगी - तू मुझसे झूठ कहता है.. तू भविष्य से कैसे आ सकता है.. भूतकाल और भविष्य पर किसका जोर चलता है..

हाक़िम - आज नहीं चलता मगर हो सकता है आगे चलकर चले.. देखो.. मैं झूठ नहीं बोल रहा है.. मेरा विश्वास करो... वीरेंद्र सिंह अब हर साधू सन्यासी और तांत्रिक के पास जाकर आपके बंधन को काटने की विद्या सीखेगा मगर उसे सफलता नहीं मिलेगी और आखिर में वो मुझे भविष्य से यहां अपने पिछले जन्म में भेजेगा..

जोगी हाक़िम के सर पर हाथ रखकर उसकी सारी यादे देखता है... और जब वापस आता है उसके मुंह से आवाज आती है - मृदुला..

जोगी - मृदुला??

हाक़िम - क्या हुआ? मृदुला... अंकल ओ अंकल.. प्लीज मुझे वीरेंद्रसिंह के पास वापस वो जदिबूती लेकर जाने में मेरी मदद करें..

जोगी - मुझे ले चल बेटा... अगले जन्म में मुझे ले चल..

हाक़िम - मुझे जड़ी बूटी लेकर जाना है अंकल... आपको लेजाकर क्या करूँगा...

जोगी - अगर तू मुझे नहीं ले जाएगा तो मैं तुझे यही समाप्त कर दूंगा.. मुझे मेरी मृदुला से मिलना है.. मैंने जाते हुए उससे वादा किया था..

हाक़िम - पर मृदुला तो आपको छोडके जा चुकी है.. आप कैसे उसे मिलोगे?

जोगी - मृदुला ने कुसुम बनकर जन्म लिया है.. और अगर तू मुझे अपने साथ लेकर नहीं गया और मुझे मेरी मृदुला से नहीं मिलवाया तो मैं तेरा काबिला समाप्त कर दूंगा...

हाक़िम - ठीक है ठीक है.. पर वीरेंद्र सिंह का क्या? बैरागी? वो कैसे मुक्त होंगे?

जोगी - तू मुझे उनके पास ले जा मैं उसका बंधन खुद ही काट दूंगा और वो मेरे बंधन से आजाद हो जाएंगे..

हाक़िम - पर मेरी शर्त है..

जोगी - क्या?

हाक़िम - मुझे ये पावर चाहिए जैसे आप सर पर हाथ रखकर सब देख लेते हो मुझे भी सीखना है..

जोगी - ये एक सिद्धि है बेटा.. अगर तू मुझे वापस ले गया तो मैं तुझे ये सिद्धि दे दूंगा..

हाक़िम - ठीक है.. कल सुबह मुझे जंगल पूर्व वाली झील पर मिलना..

जोगी - और एक बात सिर्फ मृदुला का ही नहीं मुन्नी का भी अगला जन्म हुआ है तेरे ही समकालीन..

हाक़िम - कौन?

जोगी - प्रमिला..

हाक़िम - मेरी माँ मुन्नी अगले जन्म में मेरी बुआ पिंकी है...

जोगी - हाँ... अब जा कल मैं तुझे झील के पास मिलूंगा सुबह समय से आ जाना...



*************



इतना समय क्यों लग गया तुम्हे..

हाक़िम रोते हुए - कुछ नहीं अंकल... बस ऐसे ही.. चलो उस पेड़ के नीचे आपको गाड़ना होगा फिर मैं इस झील में उतर जाऊँगा और हम दोनों अगले जन्म में पहुंच जाएंगे...

जोगी - रुको मैं खड्डा का निर्माण करता हूँ..

हाक़िम - ठीक है.. फ़ालतू मेहनत नहीं करनी पड़ेगी..

जोगी खड्डा बना देता है और उसमे बैठ जाता वही हाक़िम जोगी के ऊपर मिट्टी डालकर उसके दबा देता है और नंगा होकर रोते हुए झील में उतर जाता है..



वीरेंद्र सिंह गौतम को होश में आते देखकर - बैरागी ये देखो.. गौतम वापस आ गया है.. लगता है इसने हमारा कार्य सफल कर दिया है..

बैरागी - हुकुम पहले इसे पूरी तरफ होश में आने दो और पूछो कि क्या ये जदिबूती लाने में सफल हो भी पाया है या नहीं..

वीरेंद्र सिंह - गौतम... गौतम..

गौतम होश में आते हुए - बड़े बाबाजी.. प्रणाम..

वीरेंद्र सिंह उत्सुकता से - बोल बेटा.. क्या तुम वो जड़ी बूटी लाये हो.. क्या मेरा कार्य सफल हुआ है?

बोलो बेटा..

गौतम - जदिबूती तो नहीं ला पाया बाबाजी.. मैं जब तक महल पंहुचा सब बर्बाद हो चूका था..

वीरेंद्र सिंह क्रोध से - क्या?

बैरागी - तुमसे जो कहा गया था तुमने जरुरत उससे विपरीत कुछ किया होगा तभी ये कार्य सफल नहीं हुआ.. अब हमने हमेशा ऐसे ही रहना पड़ेगा..

गौतम - नहीं.. नहीं रहना पड़ेगा.. मैं कुछ ऐसा लाया हूँ जो बाबाजी के समस्या का समाधान करके मुक्ति दे देगा.. और तुमको भी आजाद कर देगा..

वीरेंद्र सिंह क्रोध को भूलकर ख़ुशी से - क्या? क्या लाया है जो मुझे मृत्यु दे देगा.. और मुक्त कर देगा उस अभिश्राप से..

गौतम - वो आप खुद ही पेड़ के नीचे खोद कर देख लो..

वीरेंद्र सिंह - नहीं वो तुम्हे खोदना पड़ेगा.. तभी तुम्हारी गाडी हुई चीज यहां आ पाएगी..

गौतम - ठीक चलते है.. मगर मेरी एक शर्त है..

वीरेंद्र सिंह - क्या?

गौतम - आपको मुक्ति मिलने मेरे पास जो है वो तो नहीं छीन जायेगा ना..

बैरागी - नहीं गौतम.. ऐसा कुछ नहीं होगा..

गौतम पेड़ के नीचे आते हुए - आप सच कह रहे है?

वीरेंद्र सिंह - हाँ.. सच है गौतम.. यकीन आ ये तो मैं तुझे अपनी सारी सिद्धिया और ज्ञान देकर मुक्ति लूंगा..

गौतम खड्डा खोदते हुए - ठीक है कोई पुराना मिलने वाला है आपका जिसमे में लाया हूँ..

वीरेंद्र सिंह - ऐसा कौन मेरा पुराना मिलने वाला हो सकता है जो मेरी मुक्ति कर सके..

गौतम खड्डे खोड़कर - खुद देख लो..

वीरेंद्र सिंह जोगी को देखकर उसके पैरों में गिरता हुआ - माफ़ी... माफ़ी... माफ़ी... दे दो मुझे.. मेरी गलती की माफ़ी दे दो महाराज...

जोगी - मैं तुझे मुक्ति देने ही आया हूँ वीरेंद्र सिंह..

बैरागी - मुझे भी माफ़ी चाहिए बाबा..

जोगी - तुझे नहीं मुझे तुझसे माफ़ी मांगनी चाहिए रागी... मैं इतना क्रोध में था कि मृदुला के मरने का क्रोध तेरे ऊपर भी उतार दिया.. और तुझे वीरेंद्र सिंह के साथ बाँध दिया.. लेकिन अब मैं तुम्हे इस बंधन से मुक्त करने आ गया हूँ...

गौतम - अंकल बाबाजी को मुक्त करने से पहले बाबाजी मुझे अपनी सिद्धिया देना चाहते है..

जोगी - बेटा तू प्रकृति से खिलवाड़ मत कर.. वीरेंद्र सिंह ने जो हासिल किया है वो आम विद्या नहीं है.. और ना ही तू इसे संभाल पायेगा..

गौतम - तो क्या अब आप वो सर ओर हाथ रखकर यादे देखने वाला मंतर भी नहीं सिखाओगे मुझे? मतलब आपने मुझे चुतिया बना दिया..

जोगी - मैं तुझे वो दूंगा जिसकी तुझे जरुरत है.. मगर उसकी मांग मत कर जो तेरे किसी काम का नहीं..

गौतम उदासी से - ठीक है.. अब जल्दी मुक्ति दो बाबाजी और बैरागी को.. बेचारे 300साल से लटके हुए है..

जोगी बीरेंद्र सिंह और बैरागी पर से अपने बंधन को वापस ले लेता है जिसके कारण बैरागी कि आत्मा अपने नए आयाम में चली जाती है और पुनर्जन्म के लिए आगे बढ़ जाती है वही वीरेंद्र सिंह के ऊपर से बामधन हटते ही वो फिर से एक आम इंसान बन जाता है जो 73 वर्ष का वृद्ध होता है.. मगर अब वो अपनी मर्ज़ी का खा सकता था पहन सकता था और सो भी सकता था..



वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़ कर - मुझे माफ़ कर दो..

जोगी - अब जो हुआ उसे भूल जाओ वीरेंद्र सिंह.. तुम्हारे करण बहुत लोगों का कल्याण भी हुआ जिसका फल तुम्हे मिलेगा.. तुम चाहो तो मृत्यु को गले लगा सकते हो या कुछ और साल जीवित रहकर मन मुताबित जीवन जी सकते हो..

वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़कर - मुंहे तो मृत्यु ही चाहिए.. बहुत तरसा हूँ मैं मृत्यु के लिए अब जीने की लालसा ख़त्म हो गई है.. मगर एक बार में विरम से मिलना चाहता हूँ और उसे अपने जाने की बात बतलाना चाहता हूँ...

जोगी - जैसा तुम चाहो वीरेंद्र सिंह.. आज तुम्हरे प्राण स्वाहा हो जायेगे...



गौतम - देखो अंकल अब चलो.. और ये भेस नहीं चलेगा.. बाबाजी आश्रम में कुछ अच्छे कपड़े होंगे?

वीरेंद्र सिंह - विरम सबकी व्यवस्था कर देगा..



गौतम जोगी को आश्रम में ले आता है और जोगी नहा कर वर्तमान के कपड़े पहन लेता है गौतम भी नहा कर नये कपड़े पहन लेता है..



गौतम - आज रात यही रहो अंकल.. कल सुबह में कुसुम से मिलवाने ले जाऊँगा आपको..

जोगी - ठीक है बेटा..





***********





तू नहीं आता वही अच्छा था.. दोपहर से मेरी चुत में घुसा हुआ है मन नहीं भरता क्या तेरा? मैं कितना झेल पाउंगी तुझे.. मेरी चुत फिर पहले जैसी कर दी तूने.. कमीने तेरी माँ हूँ थोड़ी तो शर्म कर.. जिस चुत से निकला है उसीको चोद चोद के सुजा दिया है.. पहले तेरी शकल देखकर प्यार आता था अब शर्म आती है..

गौतम मिशनरी में पेलते हुए - शर्म तो औरत का गहना होता है माँ.. तू शरमाते हुए इतनी प्यारी लगती है कि क्या कहु.. माँ जब तू चुदवाते हुए मुंह बनाती है ना दिल कि धड़कन बढ़ जाती है.. मन करता है तुझे ऐसे ही चोदता रहू..

सुमन - हां.. तू तो मुझे चोदता रहेगा मगर मेरा क्या? मुश्किल से चाल सही हुई थी तूने आते ही वापस मुझे लंगड़ी घोड़ी बना दिया.. दोपहर से बस नंगा करके लिटा रखा है.. ना खाना खाया है ना कुछ और..

गौतम चुत में झाड़ता हुआ - मतलब भूक लगी है मेरी माँ को? अभी तो रात के 10 बजे कोई ना कोई रेस्टोरेंट खुला होगा.. बाहर चलके खाते है..

सुमन गुस्से से आँख दिखाती हुई - लंगड़ी करके बाहर ले जाएगा खाना खिलाने? तूझे बिलकुल शर्म नहीं है ना.. और अब निकाल अपने लंड को मेरी चुत से बाहर.. कैसी लाल कर दी है..

गौतम लंड निकालता हुआ - ठीक है माँ.. अच्छा यही आर्डर कर लेते है रुको.. बताओ क्या खाओगी?

सुमन अपनी चुत से निकलता वीर्य साफ करते हुए - कुछ मगा ले..

गौतम - ठीक है हांडी मटन और नान मगा लेता हूँ.. रायते के साथ..

सुमन ब्रा पेंटी पहनते हुए - नहीं.. आज मंगलवार है.. तू कुछ वेज मंगा..

गौतम - मिक्स वेज कर देता हूँ चपाती के साथ.. और कुछ?

सुमन बेड से खड़ी होती हुई - नहीं..

और लचकती हुई बाथरूम चली जाती है..



हेलो बुआ?

हां मेरे बाबू..

कैसी हो?

मैं अच्छी.. तू तो टूर ओर क्या गया गायब ही हो गया.. पता नहीं कैसे निकला है ये महीना तुझसे बात किये बिना..

अब नहीं जाऊँगा बुआ.. I love you.. पता है किसी ने मुझे बताया है कि पिछले जन्म में आप मेरी माँ थी..

काश इस जन्म में भी होती मेरे बाबू..

मेरी नहीं तो क्या हुआ मेरे बच्चे ही तो हो बुआ..

कल आ रही हूँ मैं तेरे पास.. अब मिले भी ना रहा जाता मेरे बाबू..

बुआ गाँव आना.. कल गाँव जा रहा हूँ मैं..

क्यों?

बुआ कल कुसुम को बंधन में लेने वाला हूँ..

अरे पर तीन महीने बोला था ना अभी तो एक ही हुआ है..

बुआ वो नाराज़ है एक महीने उससे भी बात नहीं कि थी तो मेरा फ़ोन तक नहीं उठा रही.. लगता है मेरी शामत आने वाली है..

अरे अरे.. इतना भी क्या अपनी होने वाली पत्नी से डरना..

डरना तो पड़ेगा बुआ वो कोई आम लड़की थोड़ी है.. शैतान है उसके अंदर अगर उसे खुश नहीं रखूँगा तो मेरा पता नहीं क्या हाल करेगी वो..

ठीक है.. वो तो खुश हो जायेगी..

फ़ोन तो उठाये मेरा..

अरे तू चिंता मत कर मैं बोल देती हूँ उठा लेगी फ़ोन..

थैंक्स बुआ.. यू आर बेस्ट..

सुमन - किसका फ़ोन है?

गौतम - बुआ का.. बात करोगी..

सुमन - मैं क्या बात करूंगी.. तू कर ले..

गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर खींचते हुए - अरे बुआ माँ बनने वाली है..

सुमन - पता है.. बताया था जगमोहन ने..

गौतम - मेरे बच्चे की...

सुमन हैरात से - क्या?

पिंकी - ग़ुगु..

गौतम फ़ोन स्पीकर पर डाल कर - बुआ माँ को सब पता है हमारे बारे में..

पिंकी - क्या कह रहा है तू.. पागल हो गया है क्या..

गौतम - लगता है खाना आ गया.. बुआ माँ से बात करो..

सुमन - पिंकी..

पिंकी - भाभी ग़ुगु की बात को सीरियस मत लेना वो मज़ाक़ कर रहा है..

सुमन - मैं सब जानती हूँ पिंकी.. अब मुझसे छिपाने की जरुरत नहीं है तुम्हे.. मुझे तेरे और गौतम के रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं है..

पिंकी - भाभी क्या आप भी..

सुमन - अब मैं कुछ छिपाना नहीं चाहती तुझसे पिंकी.. मैं भी गौतम के साथ वैसे ही रिश्ते में हूँ जैसे कि तू..

पिंकी - भाभी ग़ुगु आपका बेटा है.. उसके साथ आप.. ये सही नहीं है..

सुमन - ये बात तुम कर रही हो पिंकी.. हवस में अंधी होकर अपने भतीजे के साथ सोने में तुम्हे शर्म नहीं आई और मुझे सही गलत समझा रही हो.. पिंकी मैं जानती हूँ तुम भी गौतम से बहुत प्यार करती हो.. मैं तुम्हे कुछ नहीं कहूँगी..

पिंकी - भाभी.. ग़ुगु के साथ आपका वो रिश्ता समाज के लिए पाप है.. आपने मुझे अपने बारे में बता दिया है पर आप और किसीसे इस बात का जिक्र तक नहीं करना.. कुसुम से तो बिलकुल नहीं..

सुमन - मैं अच्छे से जानती हूँ पिंकी.. मुझे किसके साथ क्या बात करनी है.. तूम उसकी चिंता मत करो..



गौतम - खाना तैयार है माँ.. आ जाओ..

सुमन - लो बात करो अपनी बुआ से..

गौतम - हाँ बुआ..

पिंकी - कमीने कुत्ते अपनी माँ के साथ ही सो गया तू.. भाभी ने सब बता दिया कैसे तूने भाभी के साथ अपना रिश्ता बनाया..

गौतम हसते हुए - बुआ अब मैं क्या करू.. आपकी तरफ माँ से भी बहुत प्यार करता हूँ..

पिंकी - अच्छा.. तो क्या भाभी को नंगा ही रखेगा घर में.. बेचारी तुझे इतना प्यार करती है और तू उनके साथ पता नहीं क्या क्या करता है.

गौतम खाना खाते हुए - आप आ जाओ ना.. बचा लो अपनी भाभी को मुझसे..

पिंकी - जल्दी आउंगी.. अब खाना खा..

गौतम - अच्छा किस्सी तो दे दो गीली वाली..

पिंकी - उम्महां... अब मिलूंगी ना भाभी के साथ मिलकर तेरा चीरहरण करूंगी.. चल बाय..

गौतम - love you बुआ..

पिंकी - love you too बाबू..

सुमन - बाय पिंकी..

पिंकी - बाय भाभी.. ज्यादा तंग करें तो एक थप्पड़ रख देना इस शैतान के..

सुमन हसते हुए - अच्छा ठीक है.. बाय...



सुमन और गौतम खाना ख़ाकर वापस बेड ओर आ जाते है..

सोने दे ना ग़ुगु..

मैं कहा रोक रहा हूँ सोने से माँ..

ऐसे छेड़खानी करेगा तो कैसे सो पाउंगी.. तू वापस शुरू हो गया.. देख सोने वरना सच में एक थप्पड़ मार दूंगी..

अच्छा ठीक है मेरी माँ.. सो जाओ..

तू कहा जा रहा है?

कहीं नहीं.. छत पर..

क्यों?

बस ऐसे ही..

नहीं जाना.. यहां आ.. मेरे पास.. सो जा तू भी..

गौतम सुमन को बाहों में भरकर लेट जाता है..

अरे अब किसका फ़ोन आ गया तेरे फ़ोन पर?

कुसुम का है माँ..

बात कर क्या कहती है..

कहेगी क्या.. मुझे ताने मारेगी..

बात तो कर..

हेलो...

बोलो?

क्या बोलू?

बुआ ने कहा तुम कुछ बोलना चाहते हो तो बोलो..

इतना गुस्से में क्यों है तू? एक महीने बात नहीं कि तो इतनी नाराज़गी?

एक महीना... तुम्हारे लिए सिर्फ एक महीना है.. पता है मेरा कितना बुरा हाल हुआ है.. रोज़ तुम्हे याद करके.. मन तो कररहा है फ़ोन में घुसकर तुम्हारा वो हाल करू कि याद रखो तुम..

अच्छा सॉरी ना कुसुम..

सॉरी.. सोरी से सब ठीक नहीं होता.. कितने फ़ोन और massage किये पर तुम हो कि.. छोडो.. जो कहना है कहो मुझे सोना है..

अकेले सोना है? मेरे साथ नहीं सोना चाहती?

मसखरी करने के लिए फ़ोन किया है? कितने बुरे तो तुम.. जरा भी अंदाजा नहीं है तुम्हे मेरे मन का.. क्या बीत रही है मेरे ऊपर.. और तुम्हे इस रात में मसखारी करनी है..

ठीक है मेरी प्यारी कुसुम.. कल आ रहा हूँ मैं तुझे लेने.. मैं भी तेरे बिना नहीं रह पाऊंगा अब...

फिर से मसखरी.. देखो ऐसा करोगे ना तो याद रखना मैं भी बहुत सताऊंगी तुम्हे..

मज़ाक़ नहीं कर रहा पागल.. सच में कल आ रहा हूँ मैं माँ को लेकर.. यक़ीन ना हो तो बात कर लो..

सुमन - हेलो कुसुम...

कुसुम - हाँ बड़ी माँ..

सुमन - गौतम मज़ाक़ नहीं कर रहा बेटा.. कल वो सच में आ रहा है.. और कल ही तेरे साथ बंधन करके तुझे अपने साथ ले आएगा..

कुसुम ख़ुशी से - सच..

गौतम सुमन से फ़ोन लेकर - और क्या मज़ाक़ कर रहा हूँ?

कुसुम - हाय.. मुझे तो लाज आ रही है..

गौतम - अभी से.. अभी तो कुछ हुआ भी नहीं..

कुसुम फ़ोन काटते हुए - छी...



सुमन मुस्कुराते हुए - बेचारी...

गौतम बिन बताये सुमन कि पेंटी सरकाकर लंड अंदर घुसाते हुए - माँ गलती से चला गया..

सुमन सिसकते हुए - अह्ह्ह.. बार बार यही गलती करता है ना तू..

गौतम - माँ गलती से अंदर फिसल गया सच्ची..

सुमन - अह्ह्ह.. बेशर्म.. अब चोद भी गलती से रहा है क्या?

गौतम - माँ.. पता नहीं.. अपने आप लंड अंदर बाहर हो रहा है..

सुमन - झूठे मक्कार.. बहाने बहाने से चुत में घुसा देता है.. कहता है गलती से हो गया. अह्ह्ह.. आराम से मदरचोद..

गौतम चोदते हुए - गाली कितनी प्यारी लगती है तुम्हारे मुहसे माँ...

सुमन - कमीने मेरा बेटा नहीं होता ना.. बहुत मार खाता तू..

गौतम - घोड़ी बनो ना..

सुमन - बाल नहीं खींचेगा..

गौतम - ठीक है..

सुमन घोड़ी बनती हुई - प्यार से कर..

गौतम चुत में ड़ालते हुए - आराम से करूँगा माँ तुझे भी मज़ा आएगा..

सुमन चुदवाते हुए - अह्ह्ह... अह्ह्ह... अह्ह्ह...

गौतम टीवी पर एक ब्लू फ़िल्म चला देता है और अपनी माँ को घोड़ी वाले पोज़ में चोदता रहता है..

सुमन - अब झड़ भी जा.. मैं कितना झेलू तुझे.. तू तो बस चोदना ही जानता है.. झड़ने का नाम ही नहीं लेता..

गौतम - माँ यार मैं क्या करू? आप जल्दी झड़ जाती हो तो.. मेरा होने में टाइम लगता है..

सुमन मिशनरी में चुदवाती हुई - एक घंटा हो गया.. जलन सूजन और अब दर्द भी होने लगा है मुझे.. और तू है कि बस..

गौतम चुत में झड़ते हुए - अच्छा बस हो गया माँ...

सुमन - अह्ह्ह... महीने भर से दूर तो बहुत याद आता था अब आ गया है तो ऐसा लगता है दूर ही अच्छा था.. कितना गन्दा चोदता है तू.. कुसुम का तो पता नहीं क्या हाल होगा.. देख... कितना सूज गई है फिर से..

गौतम - चाटकर सूजन कम करदु.. आप कहो तो?

सुमन - अब सो जा शहजादे.. कल जाना भी है गाँव...

गौतम - ठीक है माँ..





अह्ह्ह...

क्या हुआ? ठीक तो हो माँ...

कल इतना बुरा किया और पूछ रहा है ठीक हूँ या नहीं.. वापस लंगड़ी कर दिया तूने..

अच्छा सॉरी माँ.. लो आओ मैं गोद में उठाके ले चलता हूँ..

नहीं रहने दे मैं चलकर ही गाडी में बैठ जाउंगी..

गौतम सुमन को उठाते हुए - ज्यादा नखरे मत किया करो... समझी..

सुमन - अरे दरवाजा तो बंद कर दे.. और लॉक भी कर दे..

गौतम - ठीक है..

गौतम रास्ते में उसी पहाड़ी के नीचे आजाता है..

सुमन - बाबाजी के पास क्यों लाया है? गाँव जाना था ना..

गौतम किसीको फ़ोन करता हुआ - एक और आदमी है जो गाँव चलेगा..

हेलो... हाँ.. नीचे बरगद के पास.. ठीक आ जाओ...

सुमन - कौन आदमी गौतम?

गौतम - है कोई बाबाजी चाहते है बंधन के समय वो उपस्थित रहे...

सुमन - मुझसे तो कुछ नहीं कहा बाबाजी ने..

गौतम - पर मुझसे कहा था... लो वो आ गया.. कैसे हो अंकल...

किशोर जोगी को गाडी में बैठाते हुए - गौतम बड़े बाबाजी और बैरागी...

गौतम - जानता हूँ...

जोगी - बहुत तरक्की कर ली है दुनिया ने..

गौतम गाडी चलाता हुआ - हाँ अंकल..

जोगी - ये तुम्हारी माँ है..

गौतम - हाँ... आप तो सब जानते हो..

सुमन - ये कौन है गौतम?

गौतम - माँ ये बाबाजी के पापा जी है.. जो बाबाजी नहीं कर सकते वो सब ये कर सकते है.. उन्होंने बताया है कि बुआ पिछले जन्म में मेरी माँ थी.. अंकल माँ के बारे में बताओ ना कुछ.. अगले पिछले जन्म में माँ कौन थी..

जोगी - क्या करेगा ये जानकार बेटा...

सुमन - नहीं नहीं.. मुझे कुछ ऐसी पहेली बुझा दो कि ये मुझसे झूठ ना कह पाए कभी..

जोगी - तेरा बेटा जब भी झूठ बोलेगा तुझे पता चल जाएगा बेटी...

सुमन - कैसे?

जोगी - तेरा मन तुझे बता देगा..

गौतम - अंकल ऐसा मत करो... यार..

सुमन - अब बोल बच्चू...

गौतम - अंकल ठीक नहीं किया आपने.. अब आपको मृदुला से नहीं मिलवा सकता..

सुमन - कौन मृदुला?

गौतम - कुसुम पिछले जन्म में इनकी बेटी मृदुला थी.. और ये 300 साल पहले से यहां आये है..

सुमन हसते हुए - चल झूठा..

गौतम - अंकल आप ही समझा दो..

जोगी - बेटी ये सच कह रहा है...

सुमन - अच्छा..

गौतम - हाँ.. और मैं कोई टूर पर नहीं गया था.. पिछले जन्म में गया था बड़े बाबाजी के काम से..

सुमन - बड़े बाबाजी तुझसे मिले थे?

गौतम - सिर्फ मिले नहीं थे.. उन्होंने ही मुझे पिछले जन्म में भेजा था.. ताकि मैं जदिबूती लाकर उनको दे सकूँ और वो मर सके.. बड़े बाबाजी को अंकल ने ही जागीरदार से एक फ़कीर बना दिया था.. और 300 साल से बड़े बाबाजी अपनी सजा काटरहे थे..

सुमन - क्या कह रहा है ग़ुगु...

गौतम - सच कह रहा हूँ माँ.. मैं जदिबूती कि जगह अंकल को ले आया और अंकल ने बड़े बाबाजी और उनके ऊपर जो बैरागी की आत्मा थी दोनों को मुक्ति दे दी..

जोगी - और कितना समय है बेटा..

गौतम - बस आधे घंटे में पहुंच जायेंगे अंकल.. वैसे कुसुम तो आपको पहचानेगी नहीं फिर आप क्या करोगे?

जोगी - मैंने मृदुला से वादा किया था बेटा.. मैं उसे मिलने जरुर आऊंगा.. वो जैसे ही मुझे देखेगी उसे सब याद आ जाएगा..

गौतम - बैरागी भी?

जोगी - इस जन्म में उसके लिए अब तू ही बैरागी है बेटा..

सुमन - क्या बात हो रही मेरी तो कुछ समझ नहीं आता..

गौतम - आप मत समझो.. लो अंकल आ गया गाँव भी.. मिल लो आपकी मृदुला से...

हेमा - आओ बेटा... ये बहुत अच्छा फैसला किया तुमने जो बंधन जल्दी करने की हामी भर ली.. आज रात बहुत धूमधाम से सब होगा..

मानसी - आओ जमाई राजा.. बड़ा इंतजार हो रहा है तुम्हारा.. आओ सुमन..

गौतम - कुसुम कहा है?

मानसी - थोड़ा सब्र रखो जमाई राजा.. कुसुम अपने कमरे में है.. शाम को बंधन के बाद आराम से मिल लेना और ले जाना अपने साथ..



शाम को पंचायत के सामने बंधन की सारी रस्मे हो जाती है और गौतम कुसुम को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेता है..



कुसुम - छत ओर क्या कर रहे हो?

गौतम - किसीको मिलना है तुमसे..

कुसुम - कौन?

गौतम - तुम्हारे बाबा..

कुसुम - बाबा?

गौतम - हाँ.. देखो..

कुसुम जोगी को देखकर आंसू बहती हुई - बाबा...

जोगी - रोते हुए - मृदुला..

सुमन नीचे से ऊपर छत पर आती हुई - गौतम??

जोगी - मैंने वादा किया था ना मृदुला.. मैं तुमसे मिलने जरुर आऊंगा..

कुसुम - बाबा... आप कहा चले गए थे..

जोगी - मृदुला.. तूने व्यर्थ ही हठ करके जान गवा दी.. अगर बैरागी की बात मानकर जंगल से बाहर चली जाती तो शायद मुझे और तुझे मिलने के लिए इतना इंतेज़ार नहीं करना होता..

कुसुम - बाबा.. आप अब कहीं नहीं जाएंगे ना..

जोगी - जाना तो पड़ेगा मृदुला.. प्रकृति के नियम तोड़कर मैं यहां नहीं रह सकता मुझे वापस उस दुनिया में जाना होगा...

कुसुम - मैं भी आपके साथ चलूंगी बाबा...

जोगी कुसुम के सर ओर हाथ रखकर - नहीं मृदुला.. मैं तुझे तेरी सारी विद्या जो पिछले जन्म में तेरे पास थी उसे तुझे स्मरण करवा रहा हूँ.. अब तू साधारण नहीं है..

गौतम - ओ अंकल ये सब मत करो.. ये पहले ही मुझे बहुत तंग करती है इतना ताक़त और शक्ति पाने के बाद तो ये पागल हो जायेगी..

कुसुम हस्ती हुई - बाबा... ये बहुत मनमौजी है..

जोगी - इसका उपचार तो तू ही कर सकती है मृदुला... अब मुझे जाने दे.. अब मैं सुख से रह पाऊंगा वहा..

कुसुम गले लगते हुए - बाबा..

सुमन हैरात से - मतलब... सच में..

गौतम सुमन - और क्या मैं मज़ाक़ कर रहा था..

जोगी - अपना ख्याल रखना मेरी बच्ची...

जोगी ये कहकर जने लगता है..

गौतम - वापस जाओगे कैसे ससुर जी?

जोगी - मरने से पहले वीरेंद्र सिंह से मैंने आयामों के मध्य का रहस्य जान लिया था.. मेरे लिए वापस जाना कठिन नहीं.. लेकिन अब मेरी मृदुला की रक्षा और सुख तेरे ऊपर है बेटा..

गौतम - टेंशन मत लो.. ससुर जी..

कुसुम - बाबा.. मेरी चिंता मत करो..

जोगी जाते हुए - सुखी रह मेरी बच्ची..



जोगी के जाने के बाद..

सुमन - कुसुम सँभालना अपने गौतम को.. मुंह मारने की आदत है इसे...

कुसुम गौतम को पकड़कर उसके लंड ओर हाथ लगती हुई - आप फ़िक्र मर करो बड़ी माँ.. घर के अलावा अगर ये किसी और के साथ मुंह काला करना भी चाहेगा तो इसका सामान खड़ा नहीं होगा..

गौतम - ऐ जादूगरनी... ये फालतू का जादूगर टोना मुझे ओर मत करना समझी ना..

कुसुम मुस्कुराते हुए - जादू तो हो चूका है..

सुमन - घर की मतलब?

कुसुम - मैं आपका मन पढ़ सकती हूँ बड़ी माँ.. मैं गौतम का मन भी पढ़ सकती हूँ.. घर की मतलब घर की..

सुमन - कुसुम.. तू?

कुसुम - हाँ बड़ी माँ.. आप और बुआ सब..

गौतम - और भाभी..

कुसुम - हम्म भाभी भी घर की है..

गौतम कुसुम और सुमन को बाहों में भरकर - मतलब दोनों दुल्हन आज मेरे साथ.....


*******************

एक जोर का थप्पड़ सो रहे गौतम के गाल पर पड़ता है....
गोतम नींद से जागता हुआ - हा.... क्या.. क्या हुआ..
सुमन गुस्से में - खड़ा हो जा.. कब तक सोता रहेगा.. ऊपर से नींद में अनाप शनाप बोले जा रहा है... जल्दी से तैयार हो जा... आज बाबाजी के जाना है.. तेरे पापा भी आज जल्दी थाने चले गए..

गौतम. - ये पुलिस क्वाटर?
सुमन - तो और क्या महल में रहता है तू... उठा जा.. और ये सपने देखना बंद कर...
गौतम - मतलब ये सब सपना था...
सुमन गुस्से से - ओ सपनो के सौदागर... उठता है या और एक जमाउ तेरे गाल पर... बस सपने ही देखता रहता है दिन रात...

गौतम सोच रहा था की कितना हसीन सपना था.. जिसमे उसकी सारी ख्वाहिश और इच्छाएं पूरी हो रही थी.. वो उठकर बाथरूम में चला जाता है और आम दिनों की तरह मुट्ठी मारके नहाता है और फिर अपना कीपेड फ़ोन उठाकर अपनी माँ सुमन को उसी पुरानी और बाबा आदम के जामने की बाइक जिसे उसके बाप जगमोहन ने दिलवाया था उसपर बैठाकर बाबाजी के चल पड़ता है..

गौतम उदासी से - पेट्रोल नहीं है..
सुमन - 500 का नोट देती हुई.. डलवा ले..

गौतम 200 का पेट्रोल डलवा कर 300 जेब में डाल लेता है और सुमन को बाबाजी के पास उसी पहाड़ी के नीचे बरगद के पास ले आता है..

सुमन - चल ऊपर..
गौतम - नहीं जाना आप जाओ..

सुमन - सुबह से देख रही हूँ जब से जागा है अजीब बर्ताव कर रहा है.. क्या बात है..
गौतम कुछ नहीं... आप जाओ मैं यही इंतेज़ार कर लूंगा..
सुमन - ठीक है तेरी मर्ज़ी पर यही मिलना.. समझा..

सुमन चली जाती है और गौतम के फ़ोन ओर आदिल का फ़ोन आता है..

आदिल - क्या कर रहा था रंडी?
गौतम - नींद में तेरी अम्मी शबाना को चोद रहा था..
आदिल - अबे लोड़ू.. फालतू बात मत कर..
गौतम - तो बोल ना रंडी के क्या बात है..
आदिल - रांड चोदने चलेगा रात को..
गौतम - पैसे तू दे तो चल...

आदिल - आज तक कौन तेरा बाप ठुल्ला दे रहा था.. रात को 7 बजे घर आ जाना..
गौतम - ठीक है गांडू... फ़ोन कट हो जाता है...


गौतम मन में - कितना हसीन सपना था यार... काश वो सब सच होता...

 
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Update 36

रेशमा गौतम को बाहों में भरके - खानदान चोदेगा? इतना बड़ा है तेरा?

गौतम - फ़ोन में देखा नहीं था क्या तूने? चल अब सामने से देख ले.. गौतम पेंट नीचे करके लंड निकाल लेता है..

रेशमा फलेश लाइट में लंड हाथ में पकड़कर देखती हुई - क्या खाया था कुत्ते जो इतना बड़ा हो गया?

गौतम रेशमा के मुंह में लोडा देते हुए - काले जामुन मेरी कुतिया.. चल अब चूस बहन की लोड़ी.. कब से तरसा रही थी..

रेशमा मुंह में लेती हुई - आज तो पूरा निचोड़ लुंगी तुझे..

रेशमा मुंह में लंड भरके जोर जोर से चूसने लगती है औऱ गौतम सिगरेट सुलगाते हुए रेशमा को लोडा चूसाने लगता है..

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गौतम सिगरेट के कश लेता हुआ - उफ्फ्फ कुत्तिया क्या चुस्ती है तू.. लगता है मुंह से निकलवा देगी मेरा पानी..
रेशमा मुंह से लंड निकाल कर गौतम से सिगरेट लेकर एक लम्बा कश खींचती है औऱ वापस सिगरेट देकर लंड चूसने लग जाती है..
गौतम - पहले कितने नखरे दिखाती थी कितना लड़ती झगड़ती थी ताने मारती थी.. कबाड़ी की औलाद.. साली कबाड़न मुझे.. अब देखो कैसे रंडी की तरह लंड चूस रही है.. साली कबाड़न...
रेशमा - कबाड़न बोला तो तेरी अम्मी चोद दूंगी..
गौतम हसते हुए - लंड है तेरे पास? साली कबाड़न..
रेशमा लंड पर दाँत लगाते हुए काटने लगती है..
गौतम दर्द से - अबे ओ.. क्या कर रही है पागल हो गई है क्या.. बहनचोद दर्द हो रहा है..
रेशमा - बोलेगा कबाड़न वापस? साले ठुल्ले की औलाद..
गोतम लंड सहलाते हुए - साले तुम दोनों बहम भाई एक जैसे हो.. कितना जोर से काटा है..
रेशमा वापस लंड पकड़कर काटी हुई जगह को चूमते हुए - प्यार करोगे तो प्यार मिलेगा.. उल्टा बोलोगे तो सुनना भी पड़ेगा.. मुझे इतनी सीधी मत समझना.. बहुत बड़ी खिलाड़ी हूँ मैं..
गौतम सिगरेट का कश लेकर सिगरेट फेंक देता है औऱ रेशमा को खड़ा करके बाहों में भरते हुए कहता है - सच में कुत्तिया है तू.. बहुत काटती है.. औऱ कितनी बड़ी खिलाड़ी है ये तो अभी पता चल जाएगा मेरी जान..
रेशमा मुस्कुराते हुए - गौतम.. एक सच बताऊ?
गौतम होंठ चूमकर - बोल ना..
रेशमा - जब तुझे पहली बार देखा था ना.. मन में आया था कच्चा खा जाऊ.. इतना पसंद आया था तू.. मैं तुझसे सिर्फ इसलिए लड़ती थी ताकि तू मुझसे बात कर सके.. तेरी पसंद - नपसंद सब पता है मुझे.. तेरे लिए बड़े प्यार खाना बनाती थी.. जो आदिल लेजाकर तेरे साथ खाता था.. बस तू ये जो बेज्जतीया करता रहता था ना मेरी.. उसपर बहुत गुस्सा आता है..
गौतम मुस्कुराते हुए - मतलब मेरी कबाड़न भी मुझसे प्यार करती है.. ये औऱ भी अच्छा है..
रेशमा - तू फिर से शुरु हो गया ना.. एक बार औऱ कबाड़न बोला तो खा जाउंगी तुझे कच्चा...
गौतम प्यार से गाल चूमते हुए - अच्छा अब सलवार खोल दे.. बहुत मन कर रहा है..
रेशमा - पहले कुछ गिफ्ट दो..
गौतम - क्या गिफ्ट चाहिए?
रेशमा - कुछ भी.. इतनी आसानी थोड़ी खज़ाना दे दूंगी.. पहले तुम्हे भी कुछ देना पड़ेगा..
गौतम - अबे मैं तेरे भाई को लुटता हूँ तू मुझे लूट रही है...
रेशमा - रेशमा की सलवार का नाड़ा तो तभी खुलेगा जब तुम कुछ दोगे.. वरना मेरे लिए यहां तक आये हो इसलिए ऊपर ऊपर से कुछ भी कर सकते हो..
गौतम जेब एक चॉक्लेट कैंडी निकालकर - ये चलेगी?
रेशमा चॉकलेट कैन्डी लेकर सलवार का नाड़ा खोलते हुए - एक टॉफी के बदले चुत दे रही हूँ.. अहसान याद रखना मेरा.. औऱ कभी मिलने से मना किया तो तेरा क्या हाल करुँगी वो अंजाम भी याद रखना..
गौतम नीचे बैठकर चुत सूंघता है औऱ उसपर चुम्मा करके कहता है - बहुत कमीनी हो रेशमा.. पूरी चिकनी करके आई हो..
रेशमा - पहली बार पसंद के आदमी से चुद रही हूँ.. कोई शिकायत का मौका नहीं देना चाहती थी ..
गौतम चुत पर होंठ लगा देता है औऱ धीरे धीरे जीभ से चुत को अगल बगल से सहलाते हुए चाटने लगता है. रेशमा प्यार से अपनी टाँगे चौड़ी करके अपनी चुत के दाने को गौतम के मुंह में देकर जबरदस्ती गौतम को चूसाने लगती है औऱ काम भावना से भरकर कामुक सिसकियाँ भरने लगती है..

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जिस तरह से गौतम रेशमा की चुत का चटकारा ले रहा था उससे रेशमा का ज्यादा देर तक अपनेआप को काम की बारिश में भीगने से रोके रखना मुश्किल था.. कुछ ही मिनटों में रेशमा गौतम के मुंह में अपने जवानी का पानी छोड़कर फारीक हो गई..
गौतम रेशमा का पानी निकालकर खडा हो गया औऱ रेशमा की कुर्ती के ऊपर से ही उसके मदमस्त सुडोल औऱ सुगठित उरोजो का मर्दन करते हुए रेशमा के गले औऱ गले से नीचे अपने चुम्बन औऱ छूअन से उसे फिर वासना औऱ प्रेम की मिली हुई आंधी में उड़ा के ले गया..

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रेशमा ने गौतम के शर्ट को उतारकर उसके सीने औऱ गर्दन को अपने होंठों की अनगिनत छुअन औऱ चुम्बन से सजा दिया औऱ जगह जगह प्यार से दाँत चुभो कर काटने लगी.. रेशमा ने गौतम के निप्पल्स के मुंह में ले कर इस तरह चूसा जैसा गौतम के निप्पल्स से दूध निकल आएगा औऱ गौतम भी रेशमा के इस तरह से करने पर काम से भरते हुए कामदेव की शरण में बैठ गया था..
गौतम ने रेशमा की कुर्ती उतार दी औऱ इस बार रेशमा के चुचो का स्वाद लेने लगा..

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रेशमा के बदन से उठती महक गौतम की नाक में चढ़ रही थी वो रेशमा के बोबे जितना मुंह में भर सकता था भरकर चूस रहा था.. औऱ रेशमा तो जैसे आज गौतम के प्रति अपनेआप को समर्पित कर देना चाहती थी.. रेशमा ने बारी बारी से अपने दोनों चुचो को गौतम को चूसाया औऱ गौतम के चूसने औऱ दबाने के लिए खुला छोड़ दिया.. गौतम बूब्स पर lovebite छोड़ रहा था जिसमे रेशमा को होते मीठे दर्द औऱ गौतम को खुश करने की लालसा साफ झलक रही थी..

अच्छे से अपने बूब्स का भोग गौतम को लगाने के बाद रेशमा ने पलट कर अपनी एक टांग उठाकर आगे पड़ी हुई पट्टी पर रख दिया औऱ पीछे देखते हुए अपने दोनों हाथों से अपनी गांड खोल के गौतम से बोली..
रेशमा - आजा मेरे कुत्ते.. तेरी कुत्तिया तैयार है..
गौतम रेशमा की गांड पकड़ते हुए उसकी चुत के मुहाने पर लंड लगाकर बोला..
गौतम - बहुत टाइट है रेशमा..
रेशमा चुत में लंड घुसवाते हुए - तू डाल दे जानू.. मेरी चिंता मत कर..
गौतम धीरे धीरे प्यार से लंड घुसा देता है.. औऱ आधे से थोड़ा ज्यादा जाते जाते रेशमा की कामुक सिस्कारिया दर्द औऱ तकलीफ की आहो में बदल जाती है.. गौतम औऱ अंदर नहीं घुसाता औऱ उतने लंड से ही रेशमा को पेलने लगता है.. गौतम पीछे से रेशमा की चुत ले रहा रहा औऱ उसे बड़े प्यार से चोद रहा था.. रेशमा को इस बात की ख़ुशी थी की गौतम उसकी तकलीफ समझता है औऱ हवस में अंधा होकर उसके साथ जोर जबरदस्ती नहीं कर रहा.. वही अपने आप पर गर्व भी हो रहा था कि उसकी पसंद गलत नहीं है..

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गौतम ने पीछे से थोड़ी देर चोदकर रेशमा को अपने तरफ घुमा लिया औऱ उसकी एक टांग उठाकर उसकी चुत चोदने लगा.. रेशमा से रहा ना गया औऱ वो गौतम के सर को पकड़कर चूमने लगी औऱ खुद अपनी गांड आगे पीछे करती हुई चुदवाने लगी जैसे उसे अब इसमें कोई शर्म लिहाज नहीं रह गई हो.. दोनों के होंठ से होंठ औऱ चुत से लंड आपस में मिले हुए थे.. दोनों का मिलन एक अद्भुत माहौल बना रहा था..

गौतम ने रेशमा को अपनी गोद में उठा लिया औऱ लंड पर उछाल उछाल कर पेलने लगा.. इस बार रेशमा गौतम का पूरा लंड झेल गई औऱ उसे अब तकलीफ भी नहीं हो रही थी उसने चुदते चुदते गौतम को बहुत कुछ बता दिया दिया औऱ अपने मन के हर कोने से रूबरू करवा दिया था रेशमा गौतम के प्यार में अब औऱ गहराई में उतर चुकी थी.. वो गौतम लंडपर उछल रही थी मगर इस वक़्त उसका दिल भी उछल रहा था जो निकल कर गौतम के कदमो में आ गिरना चाहता था.. रेशमा ने पीछले कुछ वक़्त से गौतम के होंठों को जरा भी आराम नहीं करने दिया था.. वो लगतार चुदते हुए गौतम के होंठ कुतर रही थी..

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रेशमा वापस झड़ गई थी औऱ अब भी गौतम उसे चोदे ही जा रहा था.. दोनों को मज़बूरी में खड़े खड़े चुदाई करनी पड़ रही थी औऱ अब गौतम ने रेशमा को गोद से नीचे उतार कर अपने आगे झुका लिया था औऱ पीछे से रेशमा कि चुत पर हमला बोल दिया था जिसमे वो रेशमा के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी चुत पर एक के बाद एक जोरदार झटके दे रहा था जिसकी आवाज उस कमरे में गूंजने लगी थी.. इस बार भी रेशमा को झड़ने में वक़्त नहीं लगा वो गौतम के झड़ने के साथ ही झड़ गई.. औऱ दोनों का पहला सम्भोग संपन्न हो गया..

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टप की आवाज के साथ गौतम का लंड रेशमा की चुत से बाहर निकला औऱ रेशमा नीचे बैठकर उसके लंड को मुंह में भरकर चूसते हुए साफ करने लगी.. गौतम औऱ रेशमा पसीने से लथपथ थे.. लंड साफ करने के बाद रेशमा खड़ी हुई तो गौतम ने उसके बदन को अपने रुमाल से पोंछा औऱ दोनों ने कपडे पहनें..

रेशमा अपने आप को आज बहुत हल्का महसूस कर रही थी उसने गौतम को गले लगाते हुए कहा - आई लव यू मेरे कुत्ते..
गौतम - लव टू मेरी कबाड़न..
रेशमा गुस्से से - गौतम..
गौतम - प्यार से बोल रहा हूँ मेरी कुतिया..
रेशमा - कबाड़न मत बोलो ना जानू.. प्लीज..
गौतम - ठीक है मेरी कुतिया.. अब नहीं चिढ़ाता..
रेशमा - तुम खुश हो ना?
गौतम - तुम्हे क्या लगता है?
रेशमा - चिढ़ा नहीं रहे मतलब खुश हो..
गौतम - चल यार भूक लगी है खाना खाते है वैसे भी थोड़ी देर में कोहराम मचने वाला है.. जब शमा की खबर लगेगी सबको.
रेशमा - तुम जाओ.. मुझे किसी ने तुम्हारे साथ देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी.. मैं पीछे पीछे आती हूँ..
गौतम - चल ठीक है मेरी जानू.. जैसा तू बोले..
रेशमा चूमते हुए - फ़ोन करुँगी.
गौतम - बाए..
गौतम वहां से शादी वाले घर आ जाता है जहा छत पर असलम पी के टुन होके पड़ा था औऱ आदिल साइड में बैठा हुआ फ़ोन में कुछ कर रहा था.
गौतम - चल गांडू खाना खाते है..
आदिल - बाद में खा लेंगे..
गौतम - बाद में नहीं अभी.. मुझे जाना है वापस..
आदिल - चल यार..
गौतम - आराम से खा लेते यार.. कोनसा ख़त्म हो जाएगा...
गौतम - गांडु.. हंगामा होने वाला है..
आदिल हसते हुए - क्यों दुल्हन भागने वाली है क्या?
गौतम - हाँ..
आदिल - सच?
गौतम - तेरी कसम.. चल खाके निकलता हूँ वरना खामखा नौटंकी देखनी पड़ेगी..
आदिल - तुझे कैसे पता?
गौतम - मैंने ही भगवाया है एक लड़के साथ..
आदिल - बहन के लंड.. तू आदमी है झांट का बाल? लड़की को भगा दिया..
गौतम - अबे जबरदस्ती शादी हो रही थी यार उसकी.. लड़की किसी औऱ को चाहती है इसमें मेरी क्या गलती.. पनीर औऱ ले.. कम पड़ेगा..
आदिल - भोस्डिके तुझे क्या मतलब.. उसकी मर्ज़ी ना मर्ज़ी से.. यहां बैठते है आजा.. साले अच्छी भली शादी की अम्मी चोद दी तूने.
गौतम खाना खाते हुए - अम्मी तो तेरी चोदी है भूल गया.. औऱ छोड़ ना.. तू क्या इतना दुखी हो रहा है.. तेरी दुल्हन थोड़ी भागी है..
आदिल खाना खाते हुए - सलमा से मिला?
गौतम - हाँ.. दो बार.. मन भरके मिला.. उसे बोल दिया है वापस अजमेर आने के लिए. जल्द आ जायेगी..
आदिल - तू अभी रेशमा के साथ था..
गौतम - हाँ यार पसंद आ गई तेरी बहन... पर बहुत अकड़ू है यार तेरी बहन..
आदिल - तूने साले अकड़ तोड़ डी होगी.. मुझे पता है..
गौतम - भाई रेशमा को मैं ही प्यार करूँगा.. तू उसकी लेने का ख्याल छोड़ देना.. याद रखना..
आदिल - चल ठीक है.. चल अब निकल..
गौतम - अच्छा सुन.. तेरी बहन के लिए पायल खरीदी थी.. उसे दे देना यार.. मैं भूल गया देना..
आदिल - मैं क्या बोल के दूंगा साले तू ही दे दे..
गौतम - अब कहा अकेली मिलेगी.. यार.. चल कोई नहीं कुछ करता हूँ.. कल वापस जा रहा हूँ वहा मिलता हूँ तुझसे..
आदिल - ठीक है भाई..
गौतम वापस छत पर जाता है औऱ असलम के शर्ट की जेब में पायल रख देता है औऱ रेशमा को massage करके पायल लेने को कह देता है..
रेशमा असलम की शर्ट की जेब से पायल निकालकर मुस्कुराते हुए गौतम को याद करने लगती है..

गौतम घर पहुंच कर थकान से नींद के आगोश में चला जाता है औऱ फिर से कोई सपना देखने लगता है जिसमे उसके पिछले सपने के आगे की कहानी पता चलती है..

Shaandar Mast Lajwab Hot Update 🔥🔥🔥
Aadil ki aapa bhi chud gayi 😀😀😀
 

Danny69

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Update 30

समर का मन बार बार उसे गजसिंह की बातों पर यक़ीन करने रोक रहा था.. मगर कहीं ना कहीं समर गजसिंह की कही हुई बातों में छुपी सच्चाई की तलाश कर लेना चाहता था.. समर अपने मन में ये प्राथना कर रहा था कि गजसिंह की कहीं हर बात झूठ निकले औऱ उसके मन की जीत हो.. मगर गजसिंह ने जो जो बात समर को बताइ थी उनमे से कुछ ऐसी बात थी जो सिर्फ समर जानता था औऱ उसने अपनी माँ लता को बताइ थी..

समर गजसिंह का कटा हुआ सर लेकर जब अपने घर पहुंचा तब लता धान साफ कर रही थी औऱ बाहर द्वार पर किसी के आने की आहट पाकर लता उठ खड़ी हुई औऱ बाहर झाँक कर देखी तो उसे समर खून से लथपथ दिखाई दिया.. लता द्वार पर जाकर ही समर को देखने लगी..
लता - इतना लहू? कहा चोट लगी है? मैं जाकर वैद को बुला लाती है तू बैठ यहां..
समर - मैं ठीक हूँ माँ.. ये खून उन शत्रुओ का है जिन्होंने रास्ते में राजकुमारी पर हमला किया था..
लता - तेरे ऊपर हमला हुआ था?
समर थैले से गजसिंह का सर निकालते हुए - हाँ माँ.. मैंने कहा था ना.. तेरे दोषियों को सजा दूंगा.. देख उस चांडाल का सर..
लता गजसिंह का कटा हुआ सर देखकर कुछ भी नहीं बोल सकी औऱ सन्न खड़ी रह गई..

समर अपनी माँ के चेहरे पर गजसिंह का कटा सर देखने के बाद भी ख़ुशी औऱ उल्लास के स्थान पर एक फ़िक्र औऱ बेकसी देखकर हैरान था उसके मन की हार होने लगी थी औऱ वो अब औऱ भी चिंता में डूबे जा रहा था लता के हावभाव उसके मन के मेड़ को बहा ले जा रहे थे..

लता सन्न खड़ी हुई उस कटे सर को देखकर ऐसे चुप थी जैसे जमींदार का फरमाबरदार डांट खाकर हो जाता है.. अपनी माँ की ऐसी हालत देखकर समर का शक अब यकीन में बदलने लगा था मगर अब भी उसके मन में कहीं ना कहीं अपनी माँ के लिए इज़्ज़त औऱ सम्मान था जिसके करण वो अब भी पूरी तरह यक़ीन करने में असमर्थ था..
समर - ख़ुशी नहीं हुई माँ आपको?
लता सन्नाटे से बाहर आती हुई - समर तूने सच में गजसिंह को मार डाला..
समर - माँ आपका अपमान करने वाले को मैं कैसे छोड़ सकता हूँ? मेंने कहा था ना मैं इस जालिम को एक ना एक दिन जरूर ढूंढ़ के मौत के घाट उतार दूंगा.. मैंने उतार दिया..
लता आगे कुछ नहीं बोलती औऱ भीतर चली जाती है.. समर लता का ये व्यवहार समझ नहीं पाया था उसके मन में लता के मन के भाव जानने की इच्छा थी जो अब पूरी नहीं उसी थी.. समर ने गजसिंह का सर घर से थोड़ा दूर लेकर लकड़ियों के साथ जला दिया औऱ वापस घर आ गया..

रात होने पर लता ने खाना पकाया था मगर अब तक लता ने समर से कुछ बात ना की थी.. रात का खाना खाते हुए समर ने लता से कहा..
समर - माँ आप इतनी बेचैन क्यों है?
लता मुस्कुराते का नाटक करती हुई - नहीं तो बेटा.. मैं तो बहुत खुश हूँ तूने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर साबित कर दिया कि तू भी सच्चा मर्द है.. एक माँ को इससे ज्यादा औऱ क्या ख़ुशी होगी.. ले.. खा ना.. आज स्वाद नहीं बना भोजन?
समर लता की बातों के पीछे उसके भाव उसके बनावटी चेहरे से बखूबी पढ़ रहा था उसने खाना खाया औऱ उठकर सोने चला गया.. अब उसके मन में गजसिंह की बातें पूरी तरह उतर चुकी थी.. उसे लग्ने लेगा था कि गजसिंह जो कुछ कह रहा था सब सच औऱ सत्य है..
समर को गजसिंह की एक बात याद आने लगी.. गजसिंह ने कहा था उसके बाजू पर बना निशान लता की गांड पर भी है गौतम ने तय करलिया था की वो अपनी माँ के गांड के निशान को देखकर रहेगा..

आधी से ज्यादा का समय बीत चूका था समर चारपाई से उठकर भीतर सो रही अपनी माँ लता के पास जाने लगा.. अंदर दिए की रोशनी में उसे लता सोती दिखी.. देखने से लगता था कि लता सो गई है मगर वो सोइ नहीं थी.. समर लता के करीब जाकर चटाई पर लेट गया जिसका आभास लता को हो चूका था औऱ उसका मन उथल पुथल मचाने लगा था.

लता ये सोच कर शाम से ही डरही थी कहीं गजसिंह ने समर को सारी सच्चाई ना बता दी हो वही समर इस बात से डर रहा था कि गजसिह की बटाइ बातें सच ना हो..

समर बाती की रोशनी जमीन पर चटाई पर सो रही अपने माँ लता की गांड के पास लेजाकर अपनी माँ लता के घाघरे को धीरे धोरे ऊपर करने लगा.. लता समझ गई थी की समर निशान देखने की कोशिश कर रहा है..
समर ने धीरे धीरे जांघो तक घाघरा उठा लिया औऱ अब उसे गांड पर बना निशान हल्का सा दिखने लगा था कि लता ने समर का हाथ पकड़ते हुए उसे अपना घाघरा औऱ ऊपर उठाने से रोक दिया औऱ बोली..
लता - औऱ ऊपर मतकर समर.. रात बहुत हो गई है.. यही मेरे पास सो जा..
समर अपनी माँ लता के बदल में चटाई पर लेटते हुए - यानी जो कुछ गजसिंह कह रहा था सब सच है.. (समर की आँखों से आंसू बहने लगे थे)
लता समर के आंसू पोंछकर - मैंने अबतक जो भी किया कभी मज़बूरी में तो कभी हमारी भलाई के लिए किया है समर..
समर - आपने बाबूजी को..
लता समर का गाल सहलाती हुई - अगर मैं नहीं मारती तो वो मुझे मार देता बेटा..
समर - उस रात जो हुआ सब आपकी मर्ज़ी से हुआ?
लता - उन बातों को भूला दे समर.. उनसे किसी का भला नहीं होगा..
समर - वापसी का रास्ता भी आपने ही बताया था गजसिंह को?
लता समर को बाहों में लेकर सर सहलाती हुई - मैं मजबूर थी बेटा..
समर - माँ राजकुमारी को कुछ भी हो सकता था. वो डर गई थी..
लता - वो तो राजकुमारी है समर.. हम जेसो का क्या? इतने बड़े खतरे को टालने के बाद भी जागीरदार ने तुझे याद तक नहीं किया..
समर लता को देखकर - मैंने किसी को नहीं बताया कि मैंने गजसिंह औऱ कर्मा को मार दिया है.. इसलिए सब उन दोनों को ढूंढ़ रहे है..
लता - बता भी देगा तो कोनसा वीरेंद्र सिंह तेरे लिए महल के दरवाजे खोल देगा? समर मैंने दुनिया देखी है मुझे परख है सबकी.. तू मुझसे प्रेम करता है ये तुझे अब साबित करना होगा.. मेरी गलती के लिए तू मुझे माफ़ कर.. और मेरी बात सुन समर.. वीरेंद्र सिंह औऱ जागीर के प्रति तेरी निष्ठा तुझे तकलीफ ही देगी..
ये कहते हुए लता ने समर को अपने गले से लगा लिया औऱ उसके समर के सर को अपनी चाती में घुसाती हुई बातों में हाथ फेरकार सुलाने लगी.. समर थका हुआ बोझाल आँखों के साथ नींद के हवाले होने लगा था. कुछ देर बाद उसे लता की बाहों में नींद आ गई..

सुबह समर उठा तो लता ने उसके आगे रसोई परोस दी जिसे ठुकराते हुए समर ने लता से कहा..
समर - मैं अब आपके हाथ का खाना नहीं खा सकता.. मेरी निष्ठा औऱ कर्त्तग्यता जागीरदार के प्रति है.. मैं उनसे गद्दारी नहीं कर सकता है.. आपने जो किया गलत किया.. मैं आपके साथ अब औऱ नहीं रह सकता..
लता चिंता से सुबकती हुई - समर तू जागीरदार को अपनी माँ के बारे में सब बता देगा? बेटा तू जानता है गद्दार को कैसी सजा मिलती है.. मेरी बात सुन बेटा.. मैं तेरी माँ हूँ.. मेरे साथ ऐसा मत कर..
समर - मेरा हाथ छोड़ दो.. मैं अब औऱ यहां नहीं रुकने वाला.. रात को सच्चाई जानने के बाद एक पाल के लिए में गुम राह जरूर हुआ था मगर अब मुझे होश आ गया है..
लता भय चिंता औऱ क्रोध से भरते हुए बोली - समर अगर तूने घर से कदम बाहर रखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.. मैं आखिरी बार कहती हूँ रुक जा समर..
समर लता की बात नहीं सुनता औऱ घर से चला जाता वही लता सोचने लगती है की समर जागीरदार को उसके सच्चाई बता देगा औऱ जागीरदार गद्दारों को मिलने वाली दर्दनाक मौत की सजा लता को भी देगा.. मगर समर के मन में लता के प्रति प्रेम औऱ सम्मान पूरी तरह से नहीं निकला था.. उसने लता के बारे में जागीरदार को बताने के बारे में नहीं सोचा था औऱ ना ही वो अपनी माँ की जासूसी के बारे में बताना चाहता था.. वो जानता था की जागीरदार को अगर वो लता की सच्चाई बता देगा तो लता कितनी कड़ी सजा मिलेगी..

लता को समर पर क्रोध आ रहा था वही उसके चिंता भी थी की समर्थन अब जागीरदार को सब सच बता देगा औऱ भय इस बात का था कि जागीरदार उसे एक दर्दनाक भयानक मौत देगा.. लता ने अपने एक साथी लंगड़ू के पास चली गई जिसे समर अपने मामा के रूप में जानता था क्युकी लता ने बचपन से लंगड़ू को अपना भाई बनाकर समर से मिलवाया था...

क्रोध भय औऱ चिंता से भरी हुई लता ने लंगड़ू से कुछ बात की औऱ उसके 4-5 साथियो से साथ हो गई वही समर महल के जनाना कश के बाहर पहरेदारी ओर खड़ा हो गया..

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सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना
कबतक औऱ किस-किस को सुनाये
मिलन की रतिया गीत पुराना
विराह की बाते कर मो से
उ याद दिलावे भीत पुराना
हाय रे बैरी ज़ी ना छोड़े
ज़ी से गावे संगीत पुराना
सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना

बैरागी सांझ ढले महल के पीछे उद्यान में बैठे हुए गीत गुनगुना रहा था..
उसके आस पास औऱ कोई नहीं था.. रात्रि का काला प्रकाश उजाले को निगलने ही वाला था.. बैरागी बंद आँख से अपने अतीत की स्वर्णिम यादो की मिठास में खोया हुआ था उसे कब सुबह से दिन हुआ औऱ दिन से रात हुई पता ही नहीं चल सका था.. बैरागी बस गीत गाता हुआ एक नीम की ठंडी चाव में सुबह का बैठा रात तक बैठा ही रहा था..

प्रेम अगर रोग बन जाए तो रोग का उपचार आवश्यकत बन जाता है.. आपके मधुरम गीत.. सुनने वाले के कान में मिश्री सी मिठास घोल देते है मगर इसके पीछे की विराह को जानना उनके लिए चोसर के खेल से कम नहीं..
समर ने बैरागी के समीप बैठते हुए उससे कहा तो समर की बात का प्रतिउत्तर देते हुए बैरागी बोला..
प्रेम तो अपनेआप में उपचार है.. जिसके होने से फूल खिल उठता है औऱ बारिश बरसने लगती है.. पपीहे गाने लगते है औऱ पंछी गुनगुनाने.. प्रेम तो जीवन का आधार है.. प्रेम के बिना तो सब वासना है..
समर - प्रेम औऱ वासना में अंतर मनुष्य के लिए आसान नहीं रागी भईया..
बैरागी - प्रकृति के लिए तो है समर.. प्रेम करुणा है औऱ वासना क्रोध.. प्रेम कोमल है वासना क्रूर.. प्रेम कुछ देता है वासना कुछ मांगती है.. प्रेम किसी के साथ भी हो सकता है वासना हर किसी पे नहीं होती..
समर - प्रेम औऱ सम्बन्ध का अल्पज्ञान मेरी सोच की सीमाओ को सिमित रखता है रागी भईया.. आपकी बातें मेरे जैसे साधारण योद्धा के कहा समझा आ सकती है..
बैरागी - तो फिर आने का प्रयोजन बताओ समर.. बिना कारण ही तुम मुझे इस तरह मेरे एकान्त से नहीं निकालोगे.. अभी तो रात्रि भोजन में भी समय है..
समर - रानी माँ.. मेरे आने का करण रानी माँ है बरागी भईया.. उन्होंने आपको अविलम्ब उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बैरागी खड़ा होता हुआ - तो चलिए.. चलकर उनके बुलावे का करण जान लेते है..
समर साथ चलते हुए आसमान देखकर - लगता है पहली बारिश कभी भी हो सकती है.. बदल मंडराने लगे है..
बैरागी - बदलो के आने से वर्षा नहीं होती समर.. ये तो बस एक ऊपरी दिखावा है जों कुछ पल उम्मीद दे चला जाता है..
समर - इतना निराश होना मृत्यु के सामान है रागी भईया.. जयसिंह ज़ी कहते है.. औऱ आप देखना आज पहली बारिश होकर ही रहेगी..
बैरागी - तुमसे किसने कहा मैं निराश हूँ? मैं तो हर पल अपने मीत की प्रीत में गीत गाते हुए आनंदित रहता हूँ.. आशातीत रहता हूँ.. उसके साथ भी उसका था उसके बाद भी उसका हूँ..
समर - कुछ बताओ ना उनके बारे में..
बैरागी - क्या बताऊ समर.. उसके बारे में कुछ भी तो शब्दो से बयाँ कर पाना कठिन है.. हाँ बस एक बात मुझे आश्चर्य की लगती है.. मृदुला का मुख तुम्हारे मुख से बिलकुल मेल खाता है.. उसके नयननक्श, रंग औऱ आँखे बिलकुल तुम्हारे जैसी थी.. जैसे तुम्हारी जुड़वाँ बहन हो..
समर - उस दिन परछाई में मैं अपना अक्स देखा था.. तब से मैं यही सोच रहा था की ये कैसे संभव है? मैं औऱ आपकी मृदुला एक सामान मुख वाले कैसे हो सकते है?
बैरागी - मुझे ये जानने में कोई रूचि नहीं समर.. हाँ तुम चाहो तो अपनी संतुस्टी के लिए जान लो.. मृदुला ने बताया था की उसे कोई औरत जंगल में छोड़ कर चली गई थी.. उसके बाद जंगल में एक साधना करने वाले आदमी ने उसे पाला.. जिसे मृदुला बाबा बोलती थी.. औऱ वो आदमी भी मृदुला को बेटी ही समझता था.. लो.. हम पहुंच गए..

बैरागी महल के जनाना हिस्से में रानी सुजाता के साथ चला जाता है औऱ समर बैरागी से बात करके महल के जनाना हिस्से के बाहर पहरेदारी पर खड़ा हो जाता है..

समर के सर में बैरागी की कही एक एक बात वापस घूमने लगी औऱ वो सोचने लगा कि क्या सच में ऐसा हो सकता है कि उसकी कोई जुड़वाँ बहन हो?
समर को रह रह कर उस पागल की याद आ रही थी जो ये बात बताता था की उस रात उसने शान्ति को बच्चा ले जाते देखा था.. समर ने ये तय कर लिया था की अब वो शान्ति से इस सच्चाई को उगलवा के रहेगा.. चाहे कुछ भी हो जाये वो सच्चाई जानकार रहेगा.. वो अधीरता से अपने पहरेदारी के समय की समाप्ति का इंतजार करने लगा..

बैरागी जब जनाना महल में पंहुचा तो उसे सुजाता रुक्मा के कश में ले गई जहा रुक्मा ज्वार में थी वैद्य भी वही बैठा था..
बैरागी के आते ही वैद्य ने कहा - मेरी उम्र तुमसे तीन गुना है बैरागी.. मगर मैं जानता हूँ मेरा ज्ञान तुमसे उतना ही अल्प है..
बैरागी - बात क्या है वैद्य ज़ी.. कुछ बताएंगे..
सुजाता - रुक्मा जब से गढ़ से वापस आई है रागी.. उसपर ज्वार चढ़ा हुआ है.. तीन दिनों से ना ठीक से खाया है ना पिया है.. बस नींद में राजकुमार कहकर चुप हो जाती है.. मुझे तो लगता है रास्ते में जो कुछ हुआ उसका भय रुक्मा के मन में बैठ गया है.. जागीरदार भी गजसिंह औऱ कर्मा की तलाश में जा चुके है उन्हें संदेसा भिजवाया है पर उनका कोई पता नहीं.. अब मुझे समझ नहीं आ रहा रागी मैं क्या करू?
वैद्य - ज्वार में जो औषधि दी जाती है मैं राजकुमारी को दे चूका हूँ पर ये ज्वार तो जाने का नाम ही नहीं लेता.. तुम ही कुछ उपाए बताओ बेटा..
बैरागी नींद में लेटी रुक्मा की जांच करके - ज्वार तो बहुत तेज़ है औऱ आपकी दी हुई औषधि भी सही है.. फिर राजकुमारी के स्वास्थ्य में सुधार क्यों नहीं हो रहा? ये आश्चर्य की बात है रानी माँ..
सुजाता - रागी अब तुम ही कोई उपाय करो..
बैरागी - मैं कुछ करता हूँ रानी माँ.. आप बाहर से समर को बुलवा दीजिये.. मुझे उससे कुछ मँगवाना है..
सुजाता ने एक पहरेदार से समर को अंदर भेजनें को कहा..
समर अंदर आकर सर झुकाते हुए - रानी माँ..
समर की आवाज रुक्मा के कानो में जाते ही उसकी आँख खुल गई औऱ उसकी नज़र समर पर पड़ते ही रुक्मा की आँखों में चमक आ गई..
बैरागी की नज़र भी रुक्मा पर पड़ गई औऱ रुक्मा जिस प्रेम लगाव औऱ तृष्णा की भावना से भरकर समर को देख रही थी उससे बैरागी को समझते देर न लगी कि रुक्मा का ज्वार किसी औषधि से नहीं बल्कि समर की उपस्थिति से ठीक होगा..
सुजाता बैरागी से - रागी.. बताओ क्या लिवाना है.. समर उपस्थित है..
बैरागी मुस्कुराते हुए - अब कुछ लिवाने की आवश्यकता नहीं है रानी माँ.. आप खाने का आदेश दीजिये.. राजकुमारी को भूख लगी है..
रुक्मा समर को देखे जा रही थी औऱ अब समर की नज़र भी रुक्मा से मिल चुकी थी मगर समर ने होनी आँख नीचे झुका ली..
सुजाता ये बात नहीं समझ सकी थी वो बोली - क्या कह रहे हो रागी? रुक्मा ने तीन दिनों से खुश नहीं खाया..
बैरागी मुस्कुराते हुए - रानी माँ.. अब आप खिलाइये.. राजकुमार सब खा लेगी.. औऱ वैद्य ज़ी के साथ समर को भी यही रहने दीजिये.. उसे राजकुमारी के कश की पहरेदारी पर लगा दीजिये.. वैद्य ज़ी को आसानी होगी..
सुजाता खाना मंगवाती है औऱ रुक्मा को खिलाने लगती है रुक्मा कश के बाहर तैनात समर को खिड़की के झरोखे से देखती हुई खाना खा लेती है..

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बैरागी बाहर आ जाता है औऱ बाहर होती बरखा देखकर मुस्कुराता आसमान औऱ फिर धरती की तरफ देखता है..
रुक्मा को खाना खिलाने के बाद सुजाता वहा से आ जाती है औऱ बैरागी को गलियारे के किनारे पर खड़ा देखकर उसके पास आ जाती है..

सुजाता - सावन की पहली बरखा.. कितनी मनोरम होती है.. मन में मोर नाचते हुए प्रतीत होते है.. कोयल की मधुर आवाज औऱ पपीहे की कुहू ह्रदय को कितना सुख देती है.. ऐसे में साजन या सजनी साथ ना ही तो सावन भी जेठ लगने लगता है..
बैरागी सुजाता को देखकर - रानी माँ.. सावन प्रेम के बंजर को हरा भरा रखने के लिए प्रकृति का वरदान है.. किसी के लिए ये वियोग का विलाप है तो किसी के लिए मिलन की मधुर बेला.. इसे देखना अपनी अपनी आँख की बात है.. जिसे जैसा लगता है वैसा कहता है.. मेरे लिए तो ये आज भी मृदुला की मनमोहक यादो से जुडा हुआ है..
सुजाता - इतना प्रेम? रागी.. मैं ये कहने की अधिकारी तो नहीं, मगर तुम मेरे पुत्र सामान हो तो कह देती हूँ.. प्रेम अविरल बहने की रीत है.. रुकने पर जैसे नदी का पानी सड़ जाता है वैसे ही प्रेम भी रुकने पर मानव के सम्पूर्ण जीवन को सड़ा कर नस्ट कर देता है.. जो हो गया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ो.. मृदुला के प्रति तुम्हारा प्रेम, मृदुला के बाद तुम्हारे जीवन को नस्ट कर रहा है.. केवल 24 वर्ष की आयु मैं यूँ बैराग धारण करना सही नहीं है.. तुम अब भी फिर से प्रेम करने औऱ प्रेम पाने के योग्य हो.. अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे विवाह योग्य स्त्री ढूंढती हूँ.. किसी के जाने से जीवन नहीं समाप्त होता..
बैरागी मुस्कुराते हुए - मिलन औऱ विरह दोनों ही प्रेम के पूरक है रानी माँ.. मैंने जितना मेरे प्रियतम के साथ मिलन का सुख भोगा है उतनी ही उसके वियोग में विराह की पीड़ा भी भोगने का पात्र हूँ..
सुजाता बैरागी के करीब आकर - रागी.. मैं कामना करती हूँ तुम्हारी पीड़ा का जल्द ही समापन हो. औऱ कोई तुम्हे उसी तरह चाहे जैसे तुम मृदुला से प्रेम करते हो..
बैरागी मुस्कुराते हुए सुजाता को देखता है औऱ सुजाता भी मुस्कुराते हुए बैरागी को देखकर वहा से चली जाती है..

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जब समर के पहरदारी करने का समय समाप्त हुआ था वो सीधा शान्ति के पास चला गया.. शांति घर के अंदर थी औऱ उसका पति खेत में गया हुआ था.. आँगन में उसके 14 का बेटा औऱ 9 की बेटी खेल रहे था.. समर ने लड़के को अपने पास बैठा लिया औऱ लड़की को अंदर शान्ति को बुलवाने भेजा..
शान्ति जब बाहर आई तो उसने समर को देखकर कहा..
शान्ति - अरे समर तू कब आया? कुछ काम था?
समर अपनी कटार निकाल कर लड़के की हथेली पर चुभाते हुए - हाँ.. मौसी.. काम तो था.. औऱ बहुत जरुरी काम था..
शान्ति - समर क्या कर रहा है.. उसे लगेगा.. रक्त आ जाएगा..
समर - आएगा.. मगर तब जब आप झूठ बोलोगी..
शान्ति - मैं समझी नहीं समर तू क्या कह रहा है?
समर - वो बुढ़ा पागल.. जो कहता ये था कि उसने तुम्हे मेरे जन्म की रात मेरे घर से एक बच्चा ले जाते हुए देखा था.. कहा ले गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति हड़बड़ाती हुई - कोनसा बच्चा समर? क्या कह रहा है.. देख उसे लग जाएगा..
समर लड़की की हथेली पर कटार चुबो कर रक्त निकाल देता है औऱ कटार अब लड़के के गले पर लगा देता है..
समर - एक औऱ झूठ औऱ ये यही चित... मैं वापस नहीं बताऊंगी मौसी.. कहा लेकर गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति डर से चिल्लाते हुए - जंगल.. समर छोड़ उसे..
समर - मुझे पूरी बात जाननी है मौसी..
शान्ति डरते हुए जमीन पर बैठकर समर को सारी सच्चाई बता देती है.. औऱ समर सच्चाई जानने के बाद लड़के को छोड़कर शांति के घर से निकल जाता है औऱ जंगल की तरफ उसी दिशा में जाने लगता है जहा शान्ति ने उसे बताया है..

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समर के पीछे उसकी माँ लता औऱ उसके 4-5 साथी लंगड़ू के साथ समर का पीछा कर रहे थे..
जंगल में एक जगह समर जाकर खड़ा हुआ औऱ जमीन पर गिरे हुए जामुन को खाने की नियत से उठाने के लिए नीचे झुका की पीछे से लंगड़ू का चलाया तीर समर के झुकने से उसे ना लगकर पेड़ को लगा औऱ समर अपनी तलवार निकालकर पीछे मुड़ गया जहा उसने 6 लोगो को खड़ा देखा.. लता पेड़ के पीछे छुप गई थी..
उन लोगों ने आव देखा ना ताव.. औऱ समर को मारने के लिए उसपर कुच कर दी मगर सभी लोग एक एक करके समर की तलवार के वार से जीवन को छोड़ कर चले गए.. लंगड़ू घायल होकर जमीन पर था..
लंगड़ू - समर मुझे छोड़ दे समर.. मैं तेरा मामा हूँ ना.. देख मैं तुझे नहीं मारना चाहता था.. समर... मुझे तो तेरी माँ यहाँ लाई थी..
लता एक मरे हुए साथी की तलवार उठा कर पीछे से समर पर हमला कर देती है मगर समर उसके तलवार का वार नाकाम करके एक जोरदार थप्पड़ लता के गाल पर मार देता है जिससे लता के हाथ से तलवार छुटकरा गिर जाती है औऱ लेता भी जमीन पर गिर जाती है..
समर लंगड़ू को मार देता है औऱ लेता जब वापस समर पर हमला करती है तो समर वापस उसके गाल पर थप्पड़ जड़ देता है औऱ एक लात लता की गांड पर मारकर उसको जमीन पर गिरा देता है..
लेता गुस्से में देखते हुए - खड़ा खड़ा देख क्या रहा है मार दे मुझे भी.. जागीरदार की सजा से तड़पकर मरू उससे अच्छा है तेरे हाथो से मर जाऊ...



गौतम लता की ओढ़ानी खींचकर उससे अपनी तलवार साफ करता हुआ कहता है - वैश्या को मारा नहीं जाता.. उसके साथ बदन की आग बुझाई जाती है..

ये कहते हुए समर ने अपनी तलवार एक तरफ रख दी औऱ अपनी माँ के ऊपर आ जाता है औऱ उसकी चोली फाड़ देता है..
लता एक थप्पड़ मारकर - छोड़ मुझे..
समर लेता का घाघरा उठा कर उसकी झंगिया नीचे सरका देता है औऱ अपना फंफनता हुआ लंड अपनी माँ की चुत में घुसा देता है औऱ अपनी माँ को चोदने लगता है..

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लता लंड घुसते ही - समर.. अह्ह्ह्ह...
समर लगातार लता की चुत में झटके पर झटके मारके अपनी माँ लता उर्फ़ लीलावती को चोदने लगता है जिससे लता भी अब कामुक होने लगती है.. पहलेपहल विरोध औऱ बगावत करने वाली लता अब काम पीपासा से भर गई थी.. उसकी सारी चिंता, भय औऱ क्रोध अब काम की अग्नि में जलकर स्वाह हो गई थी...

कुछ देर पहले तक लता अपने बेटे समर के प्राण लेने पर उतारु थी मगर अब वो समर के नीचे पड़ी हुई समर की मर्दानगी से प्रभावित होकर समर को देख रही थी.. समर के सुन्दर मुखमंडल को देखते हुए लता चुदाई का सुख भोगने लगी थी अभी तक उसने अपनी औऱ से कोई शुरुआत नहीं की थी मगर अब उसने समर का विरोध करना भी छोड़ दिया था.

समर लगातार चोदते हुए अपनी माँ को गुस्से की नज़र से देख रहा था मगर अब लता की आँखों में समर के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि प्रेम उतर चूका था..
समर के मजबूत औऱ बड़े लंड की चोट खाकर लता गजसिंह के बूढ़े पतले औऱ अदमरे लंड को भूल चुकी थी..
समर के लंड की ठोकरे खाकर लता की चुत ने अपने बाँध का पानी छोड़ दिया औऱ वो झड़ गई जिससे अब समर का लंड औऱ आसानी से लता की चुत में अंदर बाहर होने लगा औऱ थप थप घप घप की आवाज का औऱ भी अधिक मधुरम संगीत आस पास सुनाई देने लगा..

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समर चोदते हुए लता का एक बोबा पकड़कर मसलते हुए पहली बार अपने होंठ लता के होंठों ओर रख देता है जिसे लता अपने होंठों से चूमने लगती है औऱ अपने दोनों हाथ समर के गले में डालकर उसके बाल सहलाते हुए समर के मुंह में अपनी जीभ डाल देती है औऱ समर एक दम से लता के इस व्यवहार से चौंक जाता है मगर लता की कामकला में पारंगत होने के करण समर लता को रोक नहीं पाता औऱ लता के मुख का स्वाद लेने लगता है..
समर को चोदते हुए काफी देर हो गई थी मगर उसका निकला नहीं था लता ने समर को धक्का देते हुए पलट दिया औऱ उसके ऊपर आकर जोर जोर से अपनी गांड हिलाने लगी जिससे समर सम्भोग के जाल में बुरी तरह फंस गया.. स्मार्ट अब लता को अपनी माँ या गद्दार के रूप में नहीं बल्कि एक चुदाई के सामान के रूप में देखने लगा था..

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उसे लगा था की वो लता को चोद कर सजा देगा मगर अब लता ही समर को चोद रही थी औऱ उसके साथ अपनी भी काम इच्छा संतुष्ट कर रही थी..
लता फिर से झड़ने की कगार पर थी औऱ समर भी लता के गांड हिलाने की कला से अब झड़ने के नज़दीक था..
दोनों एक साथ झड़ते हुए सम्भोग के शिखर तक पहुंच गए.. फिर लता समर के ऊपर ही गिर गई...

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लता के चुचक समर के सीने में चुभ रहे थे.. जो उसे एक मीठा औऱ दिलकश अहसास देने लगे थे.. समर का सारा गुस्सा लता की चुत ने शांत कर दिया था औऱ अब समर को केवल लता से नाराजगी थी..
वही लता का भी सारा डर चिंता औऱ भय समाप्त हो चूका था.. उसके मन में अब अपने बेटे समर के प्रति काम इच्छा का उदय हो चूका था..
कुछ देर यूँही पड़े रहे के बाद समर लता को अपने ऊपर हटाते हुए खड़ा हो गया औऱ अपने वस्त्र ठीक करने लगा.. लता ने भी कपडे पहन लिए औऱ समर के हाथो में उसकी तलवार देकर बोली - जान नहीं लेगा मेरी?

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समर लता का घाघरा उठाकर उससे अपना लंड साफ करता हुआ - मुझे अगर तुम्हारी जान लेनी होती तो मैं सुबह ही ले लेता लीलावती... या जागीरदार को सच्चाई बताकर तुझे क़ैद करवा लिया होता..
लता समर के हाथ से घाघरा लेकर खुद समर का लंड साफ करते हुए शर्म औऱ पछतावे भरे स्वर में - मुझे क्षमा कर दे समर.. मैं तेरी दोषी हूँ.. मैंने तेरी जान लेने की कोशिश की है..
समर जाते हुए - तुम मेरे लिए मर चुकी हो लीलावती.. अच्छा होगा कि तुम भी मुझे अब मरा हुआ मान लो.. तुम्हे जैसे जिसके साथ भी जीना है जाओ जिओ..
लता खड़ी खड़ी समर को जाते हुए देखती रहती है औऱ तब तक देखती जबतक समर आँखों से ओझल नहीं हो जाता.. फिर लता जंगल से निकलकर घर चली जाती है औऱ समर को मनाने का निर्णय करने लगी.. समर भी जंगल में इधर उधर घूमकर वापस आ जाता है उसे कहीं मृदुला के निशान नहीं मिले थे. समर घर जाने बजाये किसी औऱ के पास जाकर रात बिताता है औऱ सुबह फिर पहरेदारी पर तैनात हो जाता है..

समर पहरेदारी पर तैनात था.. रुकमा अपने कक्ष से रह रहकर समर को देख रही थी.. खिड़की से मिलती समर की झलक रुकमा के मन में प्रेम की छाप आपको और प्रगाढ़ कर रही थी.. रुक्मा अब तक समर से बात नहीं की थी वह समर से बात करना चाहती थी मगर वेद जी की उपस्थिति सुजाता के आने जाने और अन्य पहरेदारों के होने से उसकी हिम्मत समर से बात करने की नहीं हो रही थी.. रुकमा की बीमारी में सुधार आया था ये वैध जी की औषधि ने काम नहीं किया किंतु समर की उपस्थिति में रुकमा के स्वास्थ्य को सुधारने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई..
समर अपने प्रति रुकमा के मन में भरे प्रेम से पूरी तरह अनजान था.. समर को अब तक नहीं पता लगता था कि रुकमा उसे पर पूरी तरह से अपना दिल और जान हार बैठी है..

पहरेदारी के दौरान जब बैरागी और समर की बातचीत हुई तब समर ने बैरागी को बताया कि किस तरह शांति ने जन्म के दौरान उसकी जुड़वा बहन को जंगल में ले जाकर छोड़ दिया था.. बैरागी ये जानकार कर पूरी तरह समझ हो चुका था कि समर मृदुला का ही जुड़वाँ भाई है.. समर ने बैरागी से मृदुला के बारे में जानने की कोशिश की.. और बैरागी ने बड़े इत्मीनान और ठहराव के साथ समर को मृदुला के स्वभाव और गुणो के बारे में बताना शुरू कर दिया.. समय मृदुला की एक मनोरम छवि अपने हृदय में बना कर उसके बारे में सोचने लगा.. जिस तरह बैरागी में मृदुला का गुणगान किया था उससे समर को अपनी बहन से ना मिल पाने और उसे ना देख पाने का पछतावा और दुख हो रहा था.. उसे लग रहा था कि क्यों उसने उस बूढ़े आदमी कि बात पर पहले विश्वास नहीं किया और पहले अपनी बहन को नहीं खोजा..

बैरागी बैठा हुआ पौधों को देखा और परख रहा था.. विरेंद्र सिंह की बताई हुई जगह पर बैठकर बैरागी ने चार दिनों के भीतर कई रोग का इलाज ढूंढ लिया था जिसमें से एक स्त्री रोग भी था.. बैरागी किसी और रोग का उपचार ढूंढ रहा था कि वहां सुजाता आ गई और बैरागी को देखकर उससे बात करने लगी.. बैरागी और सुजाता की बात बैरागी के काम के साथ चलने लगी बैरागी पौधों की जांच और परख करता हुआ औषधि निर्माण कर रहा था और सुजाता उससे उस बारे में बातचीत करते हुए औषधीय और पौधों के बारे में जानकारी ले रही थी..

वीरेंद्र सिंह गजसिंह और कर्मा डाकू को ढूंढने के लिए निकल चुका था मगर उसे दोनों कहीं नहीं मिले.. और ना ही उसे इस बात की खबर मिली कि समर में उन दोनों को पहले ही मार गिराया है.. वीरेंद्र सिंह जंगल में यहां वहां भटकता हुआ जागीर की सीमा के बाहर भीतर आ जा रहा था और गजसिंह और कर्मा के सारे ठिकानों पर ढाबा बोल रहा था जहां उसे कोई नहीं मिल रहा था.. हर जगह बस उसे गजसिंह औऱ कर्मा के गांब होने की खबर मिल रही थी..

वीरेंद्र सिंह ने जिन सैनिको को पश्चिम में भेजा था वो लोग वही ठहर कर पहली बारिश का इंतजार कर रहे थे औऱ बटाइ गई चीज लाने को आतुर थे.. पश्चिम में अभी सावन की पहली बरखा नहीं गिरी थी..

लता समर के साथ सम्भोग के बाद पूरी तरफ बदल गई थी औऱ अब वो समर से माफ़ी मांगकर उसे अपने पचाताप का अहसास दिलाना चाहती थी.. इसके साथ ही लता चाहती थी की समर उसके जोबन की अभिलाषा को शांत कर उसके साथ नया रिश्ता कायम करें..


गौतम ने सपने में इतना सब देखा औऱ फिर उसकी नींद खुल गई.. उसने सपने के बारे में कुछ देर सोचा फिर उसे एक सामान्य सपना मानकर अपने ख्याल से निकाल दिया..

Is Update sa Bahut kuch pata chala..
Or 400 sal pahala, aga kasi Chudai ho sakti ha, us ka vi avas mila....

Gugu to Janam janmantar ka Matherchod ha...
Gugu ki Aklaka Punarjanam huwa, to thik ha...

400 sal pahala Gugu jana anjana ma Ghor pap kar batha...
Basa uski Paap ka pura shraya, Chutiya Gajsingh ko hi jata ha...
Agar Gugu uska beta tha, to bahut pahala aa bat Gugu ko batana cahiya tha...
Talbar jab Gardan tak paucha, tab muh khola Chutiya Gajsing....

Par Lata Mummy ka sath Gugu ko bura bartav nhi karna cahiya tha....
Caha oh kitni hi buri kuw na ho, akhir ha to uski Mummy, or ek Spy vi....
Oh to apni Kam hi kar rahi thi...
Chutiya to Dhupsingh ha, jo bina jankari ka, Randi sa sadi kar batha...
Or Pichwara ma Nishan, oh sala andha tha kiya, jo Pichwara chat ta bawkt vi nhi dekha...

Basa jo vi ho, Gugu ka dono janam ma accha Baap nhi mila, Bechara....
Pichla janam ma to Nam or Janam dana bala alag tha...
Is Janam ka mujha thoda Confusion ho...

Basa aap na bola, Ritu ki Maa Suman ha, Baap Gugu ka Mama...
Gugu ka is janam ma Baap kon ha, kiya uska Mama, ya oh Police bala...
Agar aap na Clear kiya vi ha, to sayad ma chuk gaya, agar nhi kiya ha to kiya bata sakta ha Lekhak ji...



Jabardas Update tha....
Jasa aap deta ha...
Or chalo accha huwa, 400 sal pahala Chudai to chalu huwa, barna bahut rukhi sukhi thi 400 purani bali pahala ki Update....


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