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sunoanuj

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Danny69

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Update 16


बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - कौन? कौन है बाहर?

किशोर - बड़े बाबाजी.. मैं किशोर..

बड़े बाबाजी - किशोर.. तुम.. आज दोपहर मैं ही आ गए.. कहो कैसे आना हुआ?

किशोर - बड़े बाबाजी वो बाबाजी पूछ रहे थे कि क्या वो आपसे मिल सकते है?

बड़े बाबाजी - अचानक विरम को मुझसे क्या काम पड़ गया?

किशोर - बड़े बाबाजी सेठ धनीराम भी है बाबाजी के साथ.. आपसे मिलने कि आज्ञा चाहते है.. पूछ रहे थे जब आप उचित समझें तब वो आ जाए..

बड़े बाबाजी - किशोर विरम से बोल कि वो अभी मुझसे मिलने आ सकता है.. मैं मिलने को सज्य हूँ..

किशोर - जैसे आप कहे बड़े बाबाजी..


किशोर - बाबाजी बड़े बाबाजी ने अभी मिलने के लिए कहा है..

बाबाजी उर्फ़ विरम - किशोर तू सच कह रहा है? आज मिल सकते है हम..

किशोर - ज़ी बाबाजी.. बड़े बाबाजी ने अभी ही आपको सेठ धनीराम के साथ उपस्थित होने को कहा है..

बाबाजी उर्फ़ विरम - अच्छा तो फिर हमें बिना देरी किये यहां से गुरुदेव के पास पहुंचना चाहिए..

धनीराम - आज तो नसीब पुरे उफान पर लगता है बाबाजी.. वरना दिन हफ्ते या महीने ना जाने कितना टाइम लगता बड़े बाबाजी के दर्शन करने के लिए..

बाबाजी उर्फ़ विरम, धनिराम औऱ धनिराम के पीछे एक नौकर अपने हाथ में कई डब्बे लिए हुए चल देते है..


बाबाजी - इन डब्बो में क्या ले आये हो धनिराम...

धनिराम - इनमे शहर के सबसे नामी हलवाई के दूकान की ताज़ा बनी मिठाईया है बाबाजी.. आपके लिए जो लाया तो वो नोकर से कहकर आपकी धर्मपत्नी के पास भिजवा दी औऱ ये बड़े बाबा ज़ी के लिए है..

किशोर - मगर बड़े बाबाजी तो ताज़ा मिठाई छोडो ताज़ा दाल रोती तक नहीं खाते.. सन्यासी इतने बड़े है कि क्या बताया जाए? कल जो बना था आज खाते है औऱ आज जो बना है वो कल खाते है.. हमेशा बासी खाना ही खाते है बड़े बाबाजी..


बाबाजी उर्फ़ विरम, धनीराम औऱ किशोर बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह की कुटिया के बाहर आ जाते है..


बाबाजी उर्फ़ वीरम आवाज लगाते हुए - गुरुदेव...

अंदर से बड़े बाबाजी - आजा वीरम.. ले आ धनिराम को..

बाबाजी औऱ धनीराम कुटिया में आते हुए - प्रणाम बाबाजी.. प्रणाम गुरुदेव..

बड़े बाबाजी - कहो धनिराम.. इस बार क्या चाहते हो..

धनीराम नोकर को इशारे से मिठाई के डब्बे बड़े बाबाजी के सामने रखने के लिए कहता है औऱ नौकर धनीराम के कहे अनुसार बड़े बाबाजी के सामने मिठाई के डब्बे रख देता है जिसमे से उठती महक उस मिठाई की गुणवत्ता औऱ किस्म को उजागर कर रही होती है..



बड़े बाबाजी - मैं तो रूखी सुखी खाने का आदि हूँ धनिराम मुझे ये सब लालच क्यों दे रहा है.. तू बता तुझे क्या चाहिए?

धनिराम - बाबाजी.. आप तो जानते ही है सब.. फिर मेरा सवाल भी जानते ही होंगे तो आप ही बता दीजिये.. क्या मैं जो नया काम शुरू करने जारहा हूँ वो मेरे हित में रहेगा या मुझे नुकसान पहुचायेगा?

बड़े बाबाजी - हित तेरे धैर्य पर निर्भर है औऱ नुक्सान तेरी अधीरता पर.. अभी उचित समय की प्रतीक्षा कर धनिराम.. तेरी पुत्रवधु के गर्भ से अगले माह कन्या जन्म लेगी जिसके हाथ से तू जो भी कार्य शुरू करेगा सब फुले फलेगा.. कुछ चाहता है तो बता नहीं तो अब जा यहां से..


बड़े बाबाजी के कहने पर बाबाज़ी औऱ धनीराम कुटिया से बाहर आकर वापस पहाड़ी ओर जाने लगते है औऱ इधर बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह सामने रखी मिठाईया देखकर मुंह से लार टपकाने लगता है औऱ बाबाजी औऱ धनिराम के जाने के बाद डब्बे में से मिठाई निकालकर जल्दी से अपने मुंह में भर लेता है मगर जैसे ही बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह मिठाई अपने ने मुंह में डालता है मिठाई राख़ में बदल जाती है औऱ बड़े बाबाजी जोर जोर से थूकते हुए घड़े से पानी निकाल कर पिने लगता है औऱ अपने बगल में लेटे वैरागी के साये से कहता है..

बड़े बाबाजी - एक टुकड़ा तो खाने दे बैरागी.. कितना समय बीत गया बस बासी खाना ही खा रहा हूँ.. बहुत मन करता है कुछ स्वादिस्ट खाने का..

बैरागी - पर मैंने तो आपको कभी कुछ खाने से रोका ही नहीं हुकुम..

बड़े बाबा उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - याद है बैरागी जब हमने एक साथ भोजन किया था.. तब तूने मुझसे क्या कहा था..

बैरागी - मुझे तो आज भी एक एक पल याद है हुकुम.. मुझे जब आपके पहरेदार उस बैठक से एक आलीशान कश में ले गए थे औऱ मैं वहा टहल रहा रहा.....


फलेशबैक शुरू


पहरेदार बैरागी को वीरेंद्र सिंह की बैठक से अपने पीछे पीछे महल के एक अलीशान कमरे में ले आता है जो काफ़ी बड़ा औऱ सुन्दर था साथ में ही पहरेदार बैरागी के लिए साफ कपडे औऱ नहाने की व्यवस्था भी कर देता औऱ बढ़ेबाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह का संदेसा सुनाते हुए बैरागी से कहता है की जागीरदार ने उसे शाम के भोजन पर आमंत्रित किया है. बैरागी को नहाने औऱ हज़ाम से अपनी हज़ामत करवाने का कहकर पहरेदार उसके कमरे के बाहर आकर दो लोगों को पहरेदारी करने के लिए लगाता है औऱ खुद वापस वीरेंद्र सिंह के बैठक की तरफ चला जाता है..


बैरागी कई हफ्तों से नहीं नहाया था औऱ आज उसके नहाने औऱ अपने बड़े बड़े बाल औऱ दाढ़ी मुछ कटवाने औऱ वीरेंद्र सिंह के भिजवाए वस्त्र पहनकर उसका रूप पहले की तरह खिल उठा था.. उसके चेहरे से उसके दर्द का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था औऱ उसकी पीड़ा को भाँपना मुश्किल था..


बैरागी ने दिन में उसके सामने लाया गया भोजन करने से इंकार कर दिया था औऱ स्वच्छन्द भाव से अपने कमरे से बाहर आ गया औऱ महल के बाग़ की तरफ टहलने लगा..

बाग़ में खिले हुए फूल औऱ उन फूलों से उठती हुई महक बाग़ के आस पास का वातावरण को अपनी खुशबु से सराबोर कर रही थी..

बैरागी महल से बाग़ में उतरती सीढ़ियों पर बैठ गया औऱ सामने खिलते हुए फूलों का जोड़ा देखकर अपने औऱ मृदुला के साथ बिताये उन हसीन तरीन पलो को याद करने लगा जिसमे दोनों ने साथ में जीवन के उस सुख को अनुभव किया था जिसे परमात्मा ने मनुष्य को वरदान के रूप में दिया है..


बैरागी बैठा हुआ अपने अतीत के पन्ने बदल रहा था की उसके कानो में मिठास घोल देने वाली मधुर आवाज सुनाई देने लगी औऱ वो अपने अतीत से वर्तमान में आ गया.. किसी औरत के गाने की इस आवाज ने बैरागी को अपनी जगह से उठने पर मजबूर कर दिया औऱ बैरागी आवाज का पीछा करते हुए बाग़ को पार करके एक मंदिर के पास आ गया मगर मंदिर के अंदर जाने की हिम्मत उसकी नहीं हुई औऱ वो मंदिर के बाहर ही खड़ा होकर उस गाने को सुनने लगा..


औरत ने बैरागी के मंदिर तक आने के कुछ देर बाद गाना बंद कर दिया. औरत के हाथ में थाली थी जिसमे पूजा का सामान रखा हुआ था औऱ साथ में प्रसाद.. औरत ने मंदिर में खड़े लोगों को प्रसाद बाँटा औऱ अपनी सेविकाओं को साथ लेकर मंदिर से बाहर आ गई..


औरत का नाम सुजाता था जो जागीरदार वीरेंद्र सिंह

की पत्नी थी.. सुजाता ने मंदिर से बाहर आने के बाद बैरागी को बाहर खड़े देखा तो सुजाता की सेविका ने सुजाता को बैरागी के बारे मे बताते हुए कहा कि बैरागी वीरेंद्र सिंह के मेहमान है औऱ आज ही महल में अतिथि बनकर आये है..

सुजाता अपनी सेविका से ये जानकार बैरागी की औऱ बढ़ी औऱ अपने साथ से प्रसाद देने लगी औऱ बोली..

सुजाता - मंदिर के बाहर खड़े होकर क्या कर रहे हो? मंदिर के अंदर क्यों नहीं आये? सब लोगों ने भगवान के दर्शन किये एक तुम ही उनके दर्शन से वंचित रह गए..

बैरागी ने सुजाता के पहनावे औऱ भाषा की शालीनता औऱ मुख पर तेज़ देखते हुए पहचान लिया कि ये इस जागीर के मालिक वीरेंद्र सिंह की पत्नी है..

बैरागी प्रसाद लेने से मना करते हुए - माफ़ करना रानी माँ.. मैं ईश्वर की परिकल्पना में विश्वास नहीं करता इसलिए ये प्रसाद मेरे लिए केवल मिठाई मात्र ही है.. मैं इसे प्रसाद के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता.. औऱ रही बात मेरे मंदिर के अंदर आने की है तो मैं पहले ही आपको अपने कुल गौत्र से अवगत करवा देता हूँ.. मैं एक नीच जाती मैं पैदा हुआ हूँ जिसका छुआ आप खाना भी पसंद नहीं करते..

सुजाता मुस्कुराते हुए अपने हाथों से बैरागी को प्रसाद खिला देती है औऱ कहती है - जात पात औऱ उच नीच तो समाज में रहने वाले लोगों के बनाये जाल है बेटा.. ईश्वर के सामने तो क्या राजा क्या रंक सभी सामान है.. मैंने प्रसाद समझकर दिया है तू मिठाई समझकर खा ले..

बैरागी हाथ फैलाते हुए - अगर ऐसी बात है तो एक औऱ लड्डू खिला दो रानी माँ.. कई दिन हो गए पेट में अन्न डाले.. अब तो जैसे बदन में खून सूखने लगा है..

सुजाता बैरागी के हाथ में लड्डू देते हुए - इतनी सी उम्र में ये मायूसी? कोई बात है जो दिल में चुबती है? बता दे.. बताने से मन हल्का हो जाएगा..

बैरागी लड्डू खाते हुए - अपनी पीड़ा औऱ दुख मनुष्य अगर अकेला भोग ले तो अच्छा है.. बताने से व्यथा बन जाती है जिसे सुन पाना सबके बस में नहीं होता..

सुजाता - तेरी आँखों में विराह का दुख नज़र आता है.. कोई ऐसा छोड़कर चला गया है जिसका वापस पाना संभव है.. सही कहा ना मैंने?

बैरागी - छोड़कर जाने वाले की विराह में जलना तो बहुत साधारण बात है रानी माँ.. मेरी प्रीत तो गंगा के पानी की तरह पवित्र है जो मेरे प्रियतम को हमेशा मेरे साथ रखती है.. मैं जब चाहु उससे बात करता हूँ.. उससे रूठता हूँ उसे मनाता हूँ..

सुजाता की सेविका - आपको अब महल में वापस चलना चाहिए.. हुकुम ने आपसे शीघ्र आने का आग्रह किया था..

सुजाता बैरागी से - प्रेम अंधे की आँख है बेटा.. प्रेम तो वासना को जानता भी नहीं.. प्रेम से वासना लाखों कोस दूर ही रहती है.. मैं तेरे अंदर झांककर देख सकती हूँ कि तू अपने प्रेमी से अब भी कितना प्रेम करता है..

बैरागी - प्रेम तो अविरल चलने वाली हवा का नाम है रानी माँ.. वक़्त के साथ कम ज्यादा होना प्रेम नहीं.. मेरा प्रेम मेरी मृदुला के लिए मेरे अंत तक ऐसे ही बना रहेगा.. इसे कोई भी मेरे ह्रदय से नहीं निकाल सकता..

सुजाता मुस्कुराते हुए - मृदुला.. जिसके स्वभाव में शालीनता हो.. हम्म्म.. मैं तेरी पीड़ा तो नहीं मिटा सकती.. ना ही तेरी मृदुला को ये बता सकती हूँ कि तू उससे कितना प्रेम करता है.. पर इतना जरूर कर सकती हूँ कि आज रात रात्रिभोज पर अपने हाथ से खाना पका कर खिलाऊ.. रात्रिभोज पर प्रतीक्षा रहेगी..

बैरागी - रानी माँ..

बैरागी सुजाता के रास्ते से परे हट जाता है औऱ सुजाता महल की औऱ चली जाती है उसके पीछे पीछे सुजाता की सेविकाऐ भी चली जाती है औऱ बैरागी मंदिर से वापस बाग़ की तरफ आकर बाग़ पार करते हुए महल में घूमने लगता है जहा गलती से वह कोषागार की तरफ आ जाता है औऱ उसमे प्रवेश करने वाला होता है की तभी पीछे से एक लड़का उसके कंधे पर हाथ रखकर बैरागी को पीछे खींच केता है औऱ दिवार से सटा के अपनी तलवार बैरागी के गले पर रख देता है..


लड़का - कौन है तू? और यहा क्या कर है?

बैरागी लड़के की सूरत देखकर हैरान हो गया था उसे जैसे अपनी आँखों पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि वो क्या देख रहा है.. औऱ जो वो देख रहा है, वो सच है भी कि नहीं..

लड़का- बता.. वरना अभी तेरे कांधे से सर उतार लूंगा..

बैरागी मुस्कुराते हुए - साधारण सा आदमी हूँ.. दिखाई नहीं देता?

लड़का - मसखरी बंद कर नहीं तो तेरी जीवन लीला यही समाप्त हो जायेगी..

एक पहरेदार आते हुए - समर छोड़ उसे.. समर.. ये तो हमारे हुकुम के मेहमान है आज ही पधारे है.. छोड़ समर...


पहरेदार समर के हाथों की तलवार से बैरागी को बचा लेता है मगर पहरेदार के समर को पीछे धकेलने पर समर की तलवार की हलकी सी खरोच बैरागी के गले पर लग जाती है जिससे बैरागी के गले से खून की एक बून्द निकल पडती है.. पहरेदार बैरागी को वहा से बाहर ले जाता है मगर समर जैसे वही जम जाता है.. समर चाहकर भी अपनी जगह से नहीं हिल पाता औऱ अचरज से इधर उधर देखने लगता है, उसके आस पास कोई नहीं था मगर उसे महसूस हो रहा था जैसे कोई उसके सर पर मंडरा रहा है.. समर ने फिर से अपनी तलवार मजबूत पकड़ ली औऱ अपनी पूरी ताकत से अपनी जगह से हिलते हुए पीछे घूम गया जहा उसे एक परछाई दिखी.. समर ने आगे बढ़कर परछाई के पास जाने की कोशिश की मगर समर ने जैसे ही उस परछाई के पास जाने के लिए पहला कदम बढ़ाया एक हवा का झोंखा समर को पीछे उड़ा के ले गया औऱ समर दिवार से टकरा गया जिससे उसके सर से हल्का सा खून निकलने लगा..

परछाई समर के करीब आने लगी औऱ समर भी अपने आप को सँभालते हुए फिर से खड़ा होने लगा मगर इस बार परछाई में समर को एक लड़की की छवि दिखी औऱ उसके हाथों की तलवार उठने की जगह अपनेआप नीचे झुक गई.. समर ने गौर से उस छवि को देखा तो उसे उस छवि में अपना ही अक्स दिखाई दिया.. बिलकुल उसीके जैसे नयन नक्श औऱ चेहरा परछाई की छवि में समर को दिखा.. परछाई ने आगे बढ़कर जैसे समर को जान से मारने की नियत से प्रहार करना चाहा बैरागी वापस आते हुए समर का हाथ पकड़ कर समर को उसकी जगह से खींच लेता है औऱ परछाई का वार बेकार हो जाता है..

इससे पहले की परछाई अपना दूसरा वार करती बैरागी परछाई के पास जाता है औऱ उसे अपने गले से लगाकर अपने आप में समाहित कर लेता है औऱ वो परछाई लुप्त हो जाती है..


समर अभी तक उस परछाई की सूरत में ही अटका हुआ था उसे अपने सामने हो रही किसी भी चीज का कोई होश नहीं था.. उसने अभी अभी कुछ ऐसा देखा था जो देखना किसी भी आम इंसान के लिए संभव नहीं था उसके सामने एक परछाई थी जिसने लगभग उसके प्राण ले ही लिए थे. मगर एन मोके पर बैरागी ने आकर उसके प्राण बचा लिए..


बैरागी परछाई को अपने आप में समाकर वापस समर के करीब आ जाता है औऱ उसे सहारा देते हुए उठा कर वहा से बाहर ले आता है जहा दूसरे पहरेदार समर को देखते ही उसे एक जगह बैठा देते है.. बैरागी समर के सर पर गली चोट को देखते हुए उसका उपचार करने लगता है तभी उसे समर की गर्दन पर वैसा ही तिल नज़र आता है जैसा उसने प्रेम प्रसंग के समय मृदुला की गर्दन पर देखा था.. बैरागी कै मन में उसी तरह कई प्रश्न घूम रहे थे जैसे समर के मन में घूम रहे थे दोनों को ही अपने सवाल के जवाब नहीं मिले.. बैरागी सोच रहा था क्यों समर की शकल सूरत मृदुला से इतनी मेल खाती है औऱ उसके गर्दन पर वो तिल के निशान जो मृदुला के भी थे कैसे बने हुए है? बैरागी ने समर का उपचार कर दिया औऱ वहां से चला गया समर भी अपनी जगह बैठा रहा औऱ बैरागी कब वहा से गया उसे पता ही नहीं चला..


बैरागी अपने कमरे में था की एक पहरेदार ने उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक देते हुए रात्रिभोज के लिए साथ आने का कहा.. जिसपर बैरागी उस पहरेदार के साथ साथ होकर चल दिया.. पहरेदार उसे लेकर जागीरदार के निवास स्थान पर ले आया जहा एक बड़े से कमरे में जागीरदार वीरेंद्र सिंह सामने की तरफ एक बड़े से आसान पर बैठा हुआ था..

वीरेंद्र सिंह - आओ बैरागी बैठो..

वीरेंद्र सिंह ने वैरागी को अपने सामने कुछ दूर नीचे जमीन पर बिछी चटाई पर बैठने को कहा जहा चौकी पर खाली खाने की थाली रखी हुई थी..

बैरागी उस थाली के सामने बैठ जाता है तभी वीरेंद्र सिंह पहरेदार को कुछ इशारा करता है औऱ पहरेदार समर को उस बड़े से कमरे में ले आता है.. समर के हाथ में बेड़िया थी औऱ उससे उसकी तलवार भी छीन ली गई थी..

वीरेंद्र सिंह - कोषागार में इस पहरेदार ने तुम्हारे साथ जो किया उसकी सुचना हमे मिल चुकी है.. तुम्हारा दोषी तुम्हारे सामने है बैरागी जो सजा इसे देना चाहो दे सकते हो.. चाहो तो इसकी तलवार से इसका सर अलग कर दो..

बैरागी अपनी जगह से खड़ा हो कर समर के करीब जाता है औऱ वीरेंद्र सिंह से कहता है..

बैरागी - मेरे साथ जो हुआ वो मेरी भूल का परिणाम था हुकुम.. मगर ये तो अपना कर्तव्य का निर्वाहन कर रहा था.. इसे इस तरह बाँध कर लाना तो आपका न्याय नहीं हो सकता..

सुजाता कमरे में प्रवेश करते हुए - बिलकुल सही कहा तुमने.. जिसका सम्मान होना चाहिए उसका अपमान करना उचित नहीं..

समर औऱ बैरागी झुककर प्रणाम करते हुए - रानी माँ..

वीरेंद्र सिंह - मगर इसने हमारे अतिथि के गले पर अपनी तलवार रखी है.. सजा तो इसे मिलनी ही चाहिए..

सुजाता समर के हाथों की बेड़िया खोलती हुई - अतिथि अगर वर्जित जगह पर प्रवेश करें तो पहरेदार का कर्तव्य है उस अतिथि को सही रास्ता दिखाए.. इससे जो कुछ हुआ वो भूलवश हुआ अगर इसे पता होता की ये आपका अतिथि है तो कभी ऐसी भूल नहीं करता..

बैरागी - रानी माँ.. सत्य कहती है हुकुम.. समर से जो कुछ हुआ वो उसके अज्ञान औऱ मेरी भूल के कारण हुआ.. जिसका फल हम दोनों को मिल चूका है.. इस तरह इसे सजा देना न्यायसंगत कैसे हो सकता है?

वीरेंद्र सिंह - अज्ञान में ही सही मगर इस लड़के ने हमारे अतिथि पर तलवार उठाई है कुछ तो सजा इसे मिलनी ही चाहिए..

सुजाता - आपके अतिथि के अपमान की सजा, हम इस लड़के को देते है.. आज ये लड़का कोषागार की पहरेदारी से हटाकर महल के उस हिस्से की पहरेदारी करेगा जहा हम निवास करते है.. अब से ये हमारी रक्षा करेगा..

वीरेंद्र सिंह - ये तो कोई सजा नहीं हुई..

सुजाता अपने साथ आई सेविकाओ को खाना परोसने का इशारा करते हुए - एक योद्धा से उसकी जगह छीन लेना उसकी जान लेने से ज्यादा कहीं बड़ी सजा है.. आप तो अच्छे से जानते है.. अब भोजन करिये..

वीरेंद्र सिंह आगे कोई औऱ बात नहीं करता औऱ सेविकाओं के द्वारा परोसा गया भोजन बैरागी को खाने के लिए बोलकर स्वम भी खाने लगता है..


सुजाता समर को उसकी तलवार लोटा देती है औऱ समर सुजाता के पीछे पीछे उस कमरे से बाहर आ जाता है औऱ थोड़ा दूर सुजाता के पीछे चल कर सुजाता से कहता है..

समर - मेरी जान बचाने के लिए धन्यवाद रानी माँ...

सुजाता मुस्कुराते हुए - इसमें धन्यवाद केसा? तू अपना कर्तव्य का पालन कर रहा था.. तेरी जान लेना जागीरदार का पाप होता औऱ मैं कैसे ये पाप होने दे सकती थी..


वीरेंद्र सिंह - तुम्हारे सामने खाने की कितनी ही स्वादिस्ट वस्तुए पड़ी है बैरागी.. मगर तुम हो की बस ये साधारण सी चीज खाये जा रहे हो..

बैरागी - मेरा भोजन तो मेरे प्रियतम के बिना अधूरा है हुकुम.. मेरे भोजन करने का उद्देश्य मात्र इतना की मैं अपने शारीर को तब तक जिन्दा रख सकूँ जब तक मुझे वो नहीं मिल जाता जिसे में खोज रहा हूँ.. मेरे लिए इन सब व्यंजनो का कोई महत्त्व नहीं..

वीरेंद्र सिंह - जैसा तुम चाहो बैरागी.. कल मैं तुम्हे कुछ ऐसा दिखाऊंगा जिसकी तुम्हे तलाश है.. मगर अभी मुझे भोजन का स्वाद लेने की इच्छा है.. इस तरह का स्वादिस्ट भोजन सबके भाग्य में नहीं...

बैरागी - सही कहा आपने हुकुम ऐसा भोजन सबके भाग्य में कहा.. आप आराम से भोजन करिये.. आगे भविष्य के घर्भ में क्या छीपा है किसको पता?


फ़्लैशबैक ख़त्म


भविष्य के गर्भ में क्या छीपा है किसीको क्या पता...

बड़े बाबाजी उफ़ वीरेंद्र सिंह - सही कहा था तूने बैरागी.. मुझे कहा पता था कि भविष्य ने मेरे लिए अपने गर्भ में क्या छीपा रखा था.. रोज़ पचासो तरह के व्यंजन खाने का अभ्यास मैं साधारण खाने के एक निवाले को भी तरस जाऊँगा.. रोज़ बासी खाना खाते हुए सैकड़ो साल बीत गए मगर मेरी ये सजा है की ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती.. मृत्यु मोक्ष लगने लगी है वैरागी..

बैरागी - अगर आपने वो जदिबूती नहीं खाई होती तो मैं ही आपको मुक्ति दे देता हुकुम.. मुझसे भी आपकी ये दशा नहीं देखी जाती.. आपके साथ ही मेरी मुक्ति भी जुडी हुई है.. मैं भी कब से आपके साथ आपकी परछाई बनकर रहता आया हूँ..

बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - एक बात सच बताऊ बैरागी.. उस दिन जब तू मेरे सामने चटाई पर बैठकर सारा भोजन छोड़कर सिर्फ सादा खाना खाने लगा था तब मैंने सोचा था कि तू बस कुछ दिन ही अपनी पत्नी का शोक मनायेगा औऱ आनंद से जीवन बिताएगा.. मगर तु तो आज साढ़े तीन सो साल बीत जाने के बाद भी अपनी पत्नी को ऐसे याद करता है जैसे तेरी विराह अभी शुरू हुई हो.. तेरे गीत सुनकर तो मुझे भी सुजाता की याद आने लगती है.. कितना उज्वल प्रकाश से भरा हुआ चेहरा था उसका..

बैरागी - सही कहा आपने हुकुम.. रानी माँ की करुणा सब पर बनी हुई थी.. आपके लिए उन्होंने अपने प्राण तक दे दिए..

बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - उसी बात का तो मुझे अब भी दुख है बैरागी.. काश उसदिन मेरे ही प्राण चले गए होते..


बैरागी - बार बार उस पाल को याद करके क्यों उदास हो रहे हो हुकुम.. चलिए जंगल में चलते है.. खुली हवा में सांस लोगे तो अच्छा लगेगा..
Yaaaaar.....
Jab vi Flashback ma jata ho...
Pura Emotional kar deta ho...
Asa lagta ha Devdas ya Mother India chal raha ha....
Pura Classic Type ki writing ha....
Aap to har chij ka Master malum hota ha....
Chaya Maa Ki Mamta ho, Mummy ko Seduced karna ho, Chodan Patti ho, Action ho, Drama ho ya fir Emotion....
Shandar....
Lajabab....

Basa mera ek sabal ha...
Ho saka to batana....
Flashback ma, 400 sal pahala, Virendra Singh, Bairagi, Sujata or Samar ki age kiya rahi hogi, jab aa sab mila honga ek dusra sa....
Pata hota to imagination ma asa ni hota...

Mera khayal sa..
Virendra Singh or Sujata 45 sa 50 ka honga...
Bairagi 30 ka hoga
Or Samar 25 ka...
Galat hu to, sahi kar dena....

Jindagi ki maja sirf Chudai ma nhi, Piyar ma vi ha, is Update sa aa pata chal raha ha....


❤❤❤❤❤👍👍👍👍👍👍🤤🤤🤤🤤🤤
 

moms_bachha

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Mera khayal sa..
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Bairagi 30 ka hoga
Or Samar 25 ka...
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वीरेंद्र सिंह उर्फ़ बड़े बाबाजी - 46
बैरागी - 24
समर - 20
सुजाता - 44
रुक्मा - 18
 
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moms_bachha

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Update 26


गौतम जब नीचे आया दूल्हे औऱ दुल्हन का खाना लग चूका था.. आरती ने गौतम का हाथ पकड़ कर उसे भी अपने साथ खाने की मेज पर बैठा लिया औऱ बोली..
आरती - क्यों देवर ज़ी.. आज तो अपनी भाभी से मिलने की फुर्सत ही नहीं मिली आपको.. कितना ढूंढा पर आप कभी यहां तो कभी वहा.. आज तो हवा की तरह बह रहे थे.. अब पकड़ में आये हो..
कोमल - अरे आरती क्यों तंग रही है ग़ुगु को..
सुमन भी खाने की टेबल पर बैठी थी उसने कोमल से कहा - अरे भाभी.. आप देवर भाभी के बीच क्यों बोलती हो.. अब आरती अपने देवर से हंसी मज़ाक़ नहीं करेंगी तो किस्से करेंगी.. आपसे?
आरती - सही कहा बुआ.. औऱ देवर जब इतना प्यारा हो तो मज़ाक़ के साथ साथ औऱ भी बहुत कुछ करना पड़ता है..
आरती की बात पर सब हँसने लगते है..
गौतम - भाभी छोडो मुझे.. मुझे दीदी के साथ बैठके खाना है आज.. बहुत सताया है मैंने दीदी को..
(गौतम उठकर ऋतू के साथ वाली कुर्सी पर बैठकर) दीदी जीजा ज़ी के हाथ से बाद में खाना पहले मेरे हाथ से खाओ..
ऋतू मुस्कुराते हुए गौतम का गाल चूमकर - ग़ुगु.. सच में बहुत सताया तूने मुझे..

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गौतम - मैंने जितना सताया उसका बदला आप ससुराल जाकर जीजाजी को सताकर पूरा कर लेना..
ऋतू हसते हुए गौतम को गले लगा कर - मेरा प्यारा भाई..
कोमल - अब खाना भी खालो.. दोनों भाई बहन क्या बात ही करते रहोगे..
गौतम - हाँ मामी.. मुझे तो बहुत भूख लगी है..
आरती - ऋतू जरा राहुल ज़ी को भी तो खिला अपने हाथो से..
सुमन - अब तो इसे सारी उम्र यही करना है आरती..
आरती - ये सच कहा बुआ आपने.. अब तो देवर ज़ी बचे है.. उनके लिए भी लड़की देखनी पड़ेगी..
गौतम - आप हो ना भाभी.. कोई औऱ लड़की देखने की क्या जरुरत है..
आरती - देख रही हो बुआ.. पहले तो बोलने से भी बात नहीं करता था.. अब केसे कैंची की तरह जुबान चलाने लगा है आपका ग़ुगु..
सुमन खाना खाते हुए - तुम अपनी देवर भाभी की बातों में मुझे मत खींचो..
गौतम - दीदी ये स्वाद है.. इसे लो ना..
आरती - देवर ज़ी हमें भी दे दो क्या स्वाद बना है.. आप तो अपनी दीदी से ही चिपके हुए हो..
गौतम अपनी जगह से उठकर आरती के पास जाता है औऱ एक निवाला उसे खिलाकर कहता है- लो कहा लो.. बस?
कोमल - अब तो खुश हो आरती? देवर ने अपने हाथों से भी खिला दिया..
आरती - मैं कल ही खुश हो गई थी देवर ज़ी से मम्मी ज़ी..
गौतम आरती को देखता हुआ - मतलब?
आरती - कल देवर ज़ी आपने गन्ने का जूस पिलाया था ना.. उसके बारे में बात कर रही हूँ..
गायत्री - जूस तो ग़ुगु ने आज मुझे भी पिलाया था..
कोमल - आप दोनों से पहले ग़ुगु मेरे पास आया था.. जूस लेकर.. मुझे तो दो दो बार पिलाया था.. जूस पीते पीते ही तो मेरे पैर में मोच आई थी..
संजय - ग़ुगु.. ये क्या बात हुई सिर्फ अपनी नानी मामी औऱ भाभी को ही तुमने जूस पिलाया.. हमसे क्या दुश्मनी है तुम्हारी?
गौतम - मामाजी.. वो एक ही गन्ना था.. बेचारे से कितना जूस निकालता.. मैंने तो अभी तक माँ औऱ ऋतू दीदी को भी नहीं पिलाया..
सुमन - छोडो ना भईया.. क्या गन्ने के पीछे पड़ गए सब लोग.. आज हमारी ऋतू कितनी प्यारी लग रही है..
गौतम - माँ सही कह रही हो.. दीदी तो बिलकुल चाँद जैसी लग रही है..

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ऋतू - चाँद तो तू है.. मेरा प्यारा सा ग़ुगु..
सुमन - अब ये प्यार अपने पति को करना ऋतू.. भाई को नहीं.
ऋतू - बुआ.. बड़ी मुश्किल से ग़ुगु मुझसे बात करने लगा है औऱ आप कह रही हो प्यार ना करू.. ग़ुगु को तो मैं बहुत प्यार करुँगी.. शादी होने से बदल थोड़ी जाउंगी..
गौतम खड़ा होता हुआ - मेरा तो खाना हो गया..
कोमल - इतनी जल्दी?
गौतम - औऱ भूख नहीं है मामी.. ये कहते हुए गौतम हॉल से बाहर निकल कर बाथरूम की तरफ चला जाता है..
गौतम बाथरूम करके बाथरूम के बाहर खड़ा हो जाता है औऱ सिगरेट सुलगा कर पहला कश लेता ही है की पीछे से आरती आकर उसे अपनी बाहों में भर लेती है..


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आरती - आज तो बहुत तड़पाया आपने देवर ज़ी..
गौतम मुड़कर आरती की बाहों से अपने आप को छुड़वाता है औऱ आरती का हाथ पकड़कर कहता है..
गौतम - भाभी यहां कोई देख लेगा.. इस तरफ आओ..
गौतम आरती को बाथरूम के दाई तरफ हलवाई के लिए बने कमरे के पीछे खाली जगह ले आता है.. जहा हलकी सी रौशनी के अलावा कुछ नहीं था..
आरती गौतम से सिगरेट लेकर कश मारती हुई - बताओ देवर ज़ी.. अपना लंहगा मैं उठाउ या इतनी मेहनत आप खुद कर लोगे?
गौतम लुहंगा उठाते हुए - देवर के होते हुए भाभी मेहनत करें.. ये तो गलत बात है..
गौतम अपनी पेंट चड्डी सहित नीचे करके अपने लंड को आरती की चुत में डाल देता है औऱ दिवार से लगा कर धीरे धीरे आरती को चोदने लगता है..

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आरती सिगरेट के कश लगाती हुई चुदते चुदते कहती है - देवर ज़ी आप तो जोनी सिंन्स के भी बाप हो.. आप चले जाओगे तो कैसे ज़ी पाउंगी मैं आपके बिना..
गौतम चोदते हुए - अब तो आना जाना लगा ही रहेगा भाभी.. क्यों चिंता करती हो..
आरती सिगरेट का कश लेकर अँधेरे में किसीको खड़ा देखकर - कौन? कौन है तू?
एक 25-30 साल का दुबला पतला सीधा साधा आदमी - ज़ी.. मैं बिरजू..
आरती गुस्से में - क्या कर रहा है चुतिया यहां खड़ा खड़ा.. निकल यहां से..
गौतम - अरे रुक रुक.. इधर आ..
बिरजू - ज़ी..
गौतम आरती का बोबा पकड़कर चूसते हुए - लड़की मस्त है ना..

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बिरजू आरती को देखकर हाँ में सर हिलता है ..
गौतम - ये पीछे कमरे में कौन है?
बिरजू धीरे से - कोई नहीं है.. मैं अकेला रहता हूँ.. लोन की देखरेख करता हूँ..
गौतम - देख बिरजू ये मेरी भाभी है.. औऱ मैं इसे तसल्ली से चोदना चाहता हूँ.. कोई जगह है तो बता.. तेरी तनख्वाह बढ़वा दूंगा..
आरती बिरजू का लंड उसके पज़ामे के बाहर से पकड़ कर सिगरेट का कश लेती हुई - देखो बिरजू भईया.. मुझे अपनी बहन समझो.. औऱ इनको अपने जीजाजी.. आपकी बहन आपके जीजाजी से चुदना चाहती है.. अंदर कमरे में कोई गद्दा वद्दा पड़ा है जिसपर आपकी ये बहन आराम से चुदवा सके तो बता दो..
बिरजू - गद्दा तो नहीं है.. एक खाट पड़ी है बस..
गौतम आरती से सिगरेट लेकर एक कश मारता है औऱ सिगरेट फेंककर बिरजू से कहता है - चल दिखा..
बिरजू गौतम औऱ आरती को पीछे कमरे में ले आता है जहा धीमी रौशनी वाला बल्ब जल रहा था औऱ एक पुरानी खाट पर चटाई बिछी हुई थी..
गौतम ने आरती को खाट पर बिठा दिया औऱ अपनी शर्ट निकालता हुआ बिरजू को एक 500 का नोट देकर बोला - बाहर जाकर खड़ा रह.. मैं तेरी ये बहन चोद ना दू तब तक कोई अन्दर नहीं आना नहीं चाहिए.. समझा..
बिरजू बाहर चला जाता है औऱ खिड़की से अंदर झांकने लगता है वही गौतम आरती को खाट पर लेटा कर लहंगा उठाते हुए अपना लोडा आरती की चुत में फिट करके आरती को चोदने लगता है...
गौतम के झटको पर आरती जोर जोर से खुलकर आहे भरने लगती है औऱ बाहर बिरजू आरती की कामुक सिस्कारिया सुनकर अपना लंड हिला कर मुठ मारने लगता है...

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आरती - आह्ह..देवर ज़ी यही रह जाओ ना.. मेरे पास.. बहुत प्यार दूंगी आपको.. अपनी इस चुत में घुसा के रखूंगी..
गौतम - आपके पास रह जाऊँगा भाभी तो आपकी उन बहनो का क्या होगा जो अपनी टाँगे चौड़ी करके मेरे इंतजार में लेटी है..
आरती - अब तक कितनी लड़कियों को दीवाना बना चुके हो देवर ज़ी?
गौतम चोदते हुए - लड़किया नहीं भाभी ऑन्टीया.. औऱ उनकी तो गिनती करनी पड़ेगी..
आरती चुदवाते हुए - देवर ज़ी सिगरेट..
गौतम चोदते हुए - पेंट में है भाभी..
आरती आवाज लगाते हुए - बिरजू भईया.. ओ बिरजू भईया..
बिरजू एक बार झड़ चूका था औऱ अब दूसरी बार लंड हिला रहा था.. आरती की आवाज सुनकर वो लंड पजामे में डालाकर अंदर आ गया.
बिरजू चुदवाती हुई आरती को देखकर - ज़ी दीदी..
आरती चुदवाते हुए प्यार से- बिरजू भईया.. आपके जीजाजी की पेंट वहा पड़ी है उसमे से सिगरेट का पैकेट औऱ लाइटर दो अपनी इस बहन को..
बिरजू गौतम की पेंट से दोनों चीज निकालकर आरती को दे देता है औऱ जाने लगता है तभी गौतम चोदते हुए कहता है..
गौतम - बिरजू यही बैठा जा.. किसी औऱ चीज की भी जरुरत पड़ सकती है..
आरती एक सिगरेट सुलगाकर बिरजू से - बिरजू भईया आप पिओगे सिगरेट?

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बिरजू नीचे सर करके - मैं नहीं पिता दीदी..
आरती सिगरेट का कश लेकर गौतम से चुदवाते हुए - देखो ना बिरजू भईया आपके जीजाजी अपकी बहन को कैसे चोद रहे है.. आप बच्चाओगे नहीं अपनी बहन को चुदने से..
गौतम धीरे धीरे चोदते हुए - बिरजू तो तिरछी नज़रो से आपके बूब्स देख रहा है.. लगता आपके दोनों कबूतर देखने की इच्छा है बिरजू की..
आरती सिगरेट पीते हुआ - सच में बिरजू भईया? अब देखो मैं चोली तो उतार नहीं सकती आप चोली के ऊपर से ही मेरे बूब्स दबाना चाहो तो दबा लो..
गौतम - ले भाई बिरजू.. दे दीं परमिशन तुझे.. दबा ले अपनी बहन के बोबे..
बिरजू खाट के पास ही बैठा था उसने डरते हुए अपना रखा हाथ आरती के चुचे पर रख दिया औऱ धीरे से दबा दिया..
आरती सिगरेट के कश लेकर मुस्कुराती हुई - डर क्यों रहे हो बिरजू भईया.. खुलके दबाओ अपनी बहन के बोबे..
गौतम - दबा ना बिरजू.. क्यों शर्मा रहा है..
बिरजू पूरी ताक़त से आरती का बोबा अपने पंजे में लेकर मसल देता है जिससे आरती की आह निकल जाती है..
गौतम बिरजू से - मज़ा आया?
बिरजू - ज़ी..
आरती सिगरेट पीती हुई - इतना भी जोर से मत दबाओ बिरज्जू भईया थोड़ा धीरे..
गौतम - बोल बिरजू है ना मस्त मोटा बोबा तेरी बहन का..
बिरजू मुस्कुराते हुए - ज़ी भईया..
गौतम चोदते हुए - बिरजू ये बड़े घर की बेटी है इनके बोबे औऱ भोसड़े दोनों बड़े होते है..
आरती झड़ चुकी थी औऱ अब गौतम भी कुछ ही झटको में आरती की चुत में झड़ गया..

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आरती गौतम के सर को पकड़कर चूमने लगती है..
दोनों का चुम्बम ख़त्म होने पर गौतम खाट से खड़ा हो जाता है मगर आरती गौतम के रुमाल से अपनी चुत साफ करने लगती है..
गौतम चुपचाप बैठे हुए बिरजू को धीरे धीरे पज़ामे के ऊपर से अपना लंड मसलता देखकर - चोदेगा क्या बिरजू अपनी बहन को?
बिरजू शर्माते हुए कोई जवाब नहीं देता औऱ आरती उसे देखकर हँसने लगती है औऱ खाट से खड़ी होती हुई कहती है - बेचारा.. चलो देवरजी.. लगता है फेरे शुरू होने वाले है..
गौतम - हाँ भाभी.. आप जाओ.. मैं थोड़ी देर में आता हूँ..
आरती जाते हुए - ठीक है.. बाय बिरजू भईया..
आरती वहा से चली जाती है...
बिरजू - भईया ज़ी भाभी बहुत खूबसूरत है..
गौतम - तू अकेला ही रहता है यहां..
बिरजू - ज़ी भईया ज़ी..
गौतम - सुन.. रात में हो सकता है मैं औऱ भी किसी लड़की को यहां लेके आउ.. तू जागता रहना आज रात..
बिरजू - भईया ज़ी आप चिता मत करिये मैं पूरी रात जागता रहूँगा.. आप चाहे जितनी लड़की यहां ले आइये..
गौतम - साले लड़की के सामने जुबान नहीं खुली तेरी अब कैसे पक पक बोल रहे है.
बिरजू - वो भईया ज़ी.. मैं लड़की के सामने थोड़ा शरमाता हूँ.
गौतम - अबे शर्माना लड़कियों का काम है.. अच्छा याद रखना रात को आ सकता हूँ..
बिरजू - चिंता मत करिये भईया ज़ी.. आप कभी भी आइये.. हम जागते रहेंगे..

 
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